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सर्वदर्शनसंग्रहे
साधर्म्य से अनुकूल दृष्टान्त देना-जो कुछ उत्पन्न होता है वह अनित्य है, जैसे घट । वस्तु के वेधयं से प्रतिकूल दृष्टान्त देना-जो अनित्य नहीं है वह उत्पन्न नहीं होता, जेसे आत्मा । उदाहरण के आधार पर जो निष्कर्ष या उपसंहार निकलता है कि यह ऐसा है या ऐसा नहीं है, वही उपनय कहलाता है, जैसे-शब्द भी उत्पन्न होता है ( वैसा ही है ) या शब्द अनुत्पन्न होनेवाला नहीं है ( वैसा नहीं है ) । कारण का उल्लेख होने पर प्रतिज्ञा का पुनः कथन करना निगमन है, जैसे-इसलिए शब्द अनित्य है । इस प्रकार वस्तु के साधर्म्य या वेधर्म्य के कारण परार्थानुमान में पञ्चावयववाक्य के दो रूप होंगे
साधर्म्य का रूप(१) प्रतिज्ञा-शब्द अनित्य है। (२) हेतु-क्योंकि यह उत्पन्न होता है। ( ३ ) उदाहरण-जो भी उत्पन्न होता है वह अनित्य है, जैसे घट । (४) उपनय—शब्द भी वैसा ( उत्पन्न होने वाला ) ही है। (५) निगमन-इसलिए शब्द अनित्य है। वैधर्म्य का रूप(१) प्रतिज्ञा-शब्द अनित्य है । (२) हेतु—क्योंकि यह उत्पन्न होता है । ( ३ ) उदाहरण-जो नित्य होता है वह उत्पन्न नहीं होता, जैसे-आत्मा । (४) उपनय-शब्द वैसा नहीं है ( अनुत्पन्न नहीं होता उत्पन्न होता है)। ( ५ ) निगमन-इसलिए शब्द नित्य है।
बहुत से नेयायिक वाक्य में दस अवयव मानने का साहस करते हैं। वे अन्य अवयव हैं-जिज्ञासा, संशय, शक्यप्राप्ति, प्रयोजन और संशयव्युदास। इनका वर्णन वात्स्यायन ने ( ११११३२ ) की व्याख्या में किया है । अन्त में माना है कि ये अनिवार्य अंग नहीं हैं। ]
विशेष—इन अवयवों को ही न्याय कहते हैं, क्योंकि वास्तव में न्यायदर्शन के ये केन्द्रबिन्दु हैं जिससे चारों ओर न्यायदर्शन घूमता है। स्पष्टतः वाचस्पति संबद्ध में न्यायस्वरूप मानते हैं।
(५. तर्क का स्वरूप और भेद ) व्याप्यारोपेण व्यापकारोपस्तर्कः । स चैकादशविधः । व्याघातात्माश्रयेतरेतराश्रय-चक्रकाश्रयानवस्थाप्रतिबन्धिकल्पनाकल्पनालाघवकल्पनागौरवोत्सर्गापवादवैजात्यभेदात् । ___ व्याप्य पदार्थ का आरोपण करके व्यापक पदार्थ का आरोपण करना तर्क है । [ यदि यहाँ अग्नि का अभाव होता तो धूम का भी अभाव हो जाता । ऐसा कहना तर्क है। इसमें अग्नि का अभाव व्याप्य है जिसका आरोपण हुआ है; उसी के आधार पर व्यापक-धूमा