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औलूक्य-दर्शनम्
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अनादि नहीं है । घटोत्पत्ति के पूर्व घट का अभाव कब से है, ब्रह्मा भी नहीं बतला सकते, औरों की तो बात ही क्या है ? इस प्रकार प्रागभाव की उत्पत्ति का काल किसी के लिए भी अज्ञेय है । ]
प्रध्वंसाभाव वह है जिसकी उत्पत्ति होती है, किन्तु जिसका विनाश नहीं होगा । [ दूसरे शब्दों में जिसका आरम्भ हो किन्तु अन्त नहीं हो वही प्रध्वंसाभाव है । घट के फूट जाने पर अभाव का आरम्भ तो हुआ किन्तु इसका अन्त नहीं हो सकता ब्रह्मा भी घटाभाव की इयत्ता नहीं बतला सकते । ] अत्यन्ताभाव वह अभाव है जो अपने प्रतियोगी में आश्रय ग्रहण करे । [ प्रागभाव और प्रव्वंसाभाव का आश्रय कभी प्रतियोगी ( विरोधी ) नहीं होता, क्योंकि प्रतियोगी ( घट ) के साथ इनका सम्बन्ध-भेद नहीं होता - हम नहीं कह सकते कि घट में घट का अभाव है ( यह उदाहरण अत्यन्ताभाव का होगा जो अनादि और अनन्त होता है ) । घटोत्पत्ति के पूर्व जिस समय प्रागभाव रहता है उस समय घटाभाव का प्रतियोगी ( घट ) नहीं रहता । उसी तरह घटनाश के पश्चात् ( प्रध्वंसाभाव के समय में ) घटाभाव का प्रतियोगी (घट) नहीं रहता है । अन्योन्यायभाव में भी यह बात है | घट घटाभाव है — ऐसा हम नहीं कह सकते । केवल अत्यन्ताभाव में ही आश्रय प्रतियोगी होता है । भूतल में घट का अभाव है - इस वाक्य में भूतल आश्रय है, घटाभाव धर्मी जिसका प्रतियोगी घट होता है । अब यह घटाभाव अपने प्रतियोगी में भी रह सकता है—घट में घटाभाव है । कोई पदार्थ अपने में रह नहीं सकता है—घट में घट नहीं रहेगा । अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव का पृथक्करण होता है । अत्यन्ताभाव प्रतियोगी के समानाधिकरण होने पर कभी भी प्रतीत नहीं होता - भूतल में घट की सत्ता होने पर उसमें घटात्यन्ताभाव होता है फिर भी प्रतीत नहीं होता । दूसरी ओर अन्योन्याभाव की प्रतीति प्रतियोगी ( घट ) के समानाधिकरण होने पर भी होती है । घटयुक्त भूतल में भी घटभेद की प्रतीति होती है । अत्यन्ताभाव के उपर्युक्त लक्षण में 'अभाव' शब्द नहीं रखें; केवल 'प्रतियोग्याश्रयः' हो कहें तो प्रकाश अतिव्याप्ति होगी । आकाश के समान सूर्यप्रकाश व्यापक है - इस वाक्य में सादृश्यसम्बन्ध का अनुयोगी प्रकाश है । प्रतियोगी आकाश है । प्रकाश आकाश में आश्रित है अतः यह भी प्रतियोगी में आश्रित होने के कारण अत्यन्ताभाव के लक्षण से ही लक्षित हो जायगा । 'अभाव' कहने से ऐसी समस्या नहीं उठेगी, क्योंकि प्रकाश अभाव नहीं है ।
में
अन्योन्याभाव वह अभाव है जो अत्यन्ताभाव से पृथक् है तथा [ कालगत ] अवधि से रहित है । [ अभाव शब्द का प्रयोग करने से नित्य परमाणुओं तथा आकाशादि भावों में अतिव्याप्ति रोकी जाती है । अनवधि का अर्थ है नित्य । ]
ननु अन्योन्याभाव एवात्यन्ताभाव इति चेत्-अहो राजमार्ग एव भ्रमः । अन्योन्याभावो हि तादात्म्यप्रतियोगिकः प्रतिषेधः ।
यथा घटः