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सर्वदर्शनसंग्रहे
घटात्मा न भवतीति । संसर्गप्रतियोगिकः प्रतिषेधोऽत्यन्ताभावः । यथा वायौ रूपसम्बन्धो नास्तीति ।
न चास्य पुरुषार्थीौपयिकत्वं नास्तीत्याशङ्कनीयम् । दुःखात्यन्तोच्छेदापरपर्यायनिःश्रेयसरूपत्वेन परमपुरुषार्थत्वात् ॥
इति श्रीमत्सायाणमाधवीये सर्वदर्शनसंग्रहे औलूक्यदर्शनम् ॥
अब यदि कोई यह सोचे कि अन्योन्याभाव ही अत्यन्ताभाव है तो हम कहेंगे कि आप लोगों को राजमार्ग (चौड़ी सड़क ) पर भी रास्ता भूलना पड़ रहा है । तादात्म्य के विरोधी प्रतिषेध ( Negation ) को अन्योन्याभाव कहते हैं, जैसे-घट पट की आत्मा नहीं है [ यहाँ घट और पट के तादात्म्य ( एकरूपता Identity ) का प्रतिषेध होता है-घट पट नहीं है, घटात्मा पटात्मा नहीं है । ] दूसरी ओर, अत्यन्ताभाव वह प्रतिषेध है जो संसर्ग या सम्बन्ध का विरोध करता है जैसे - वायु में रूप का सम्बन्ध नहीं है [ इसका उलटा होगा'वायु में रूप है' यहाँ सम्बन्ध बतलाया जा रहा है ] ।
कि छह पदार्थों के
।
परन्तु अभाव के
ऐसी आशंका नहीं करना चाहिए कि यह ( अभाव ) पुरुषार्थ प्राप्ति का साधन ( उपाय ) नहीं हो सकता । [ तात्पर्य यह है तत्त्वज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है, यह तो सिद्ध है - कणाद ने ही कहा है ज्ञान से यह कहाँ तक हो सकता है ? यही शंकाकार की शंका है, पर यह ठीक नहीं । ] दुःख का आत्यन्तिक विनाश होना, जिसे दूसरे शब्दों में निःश्रेयस ( मोक्ष ) कहते हैं, वही तो परम पुरुषार्थ ( Summum bonum ) है। [ अभाव को पुरुषार्थ का उपयोगी नहीं मानते हैं. इसमें कोई क्षति नहीं है । यह अभाव स्वयं ही परम पुरुषार्थ है । दुःख का आत्यन्तिक अभाव ही मोक्ष है । इस प्रकार मोक्ष अभावात्मक शब्द है । ]
इस प्रकार सायणमाधवं के सर्वदर्शनसंग्रह में औलूक्य-दर्शन [ समाप्त हुआ ] ।
इति बालकविनोमाशङ्करेण रचितायां सर्वदर्शनसंग्रहस्य प्रकाशाख्यायां व्याख्यायामौलूक्यदर्शनमवसितम् ।