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औलूक्य-दर्शनम्
३५७ आदि । ये दोनों अकाल हैं तथा विभु हैं, किन्तु विशेष गुण से रहित नहीं हैं । मन में अतिव्याप्ति रोकने के लिए ‘महती' कहा गया है । मन अकाल भी है, विशेष गुण से रहित भी, किन्तु विभु नहीं है। इसीलिए यह लक्षण केवल दिक् का ही हुआ।]
आत्ममनसोरात्मत्वमनस्त्वे । आत्मत्वं नामामूर्तसमवेतद्रव्यत्वापरजातिः। मनस्त्वं नाम द्रव्यसमवायिकारणत्वरहिताणुसमवेतद्रव्यत्वापरजातिः। ___ आत्मन् और मनस् के लक्षण हैं आत्मत्व अर्थात् आत्मा का सामान्य तथा मनस्त्व अर्थात् मन का सामान्य । [ अब इन दोनों सामान्यों के लक्षण दिये जायंगे।]
आत्मत्व का लक्षण-आत्मत्व ऐसी जाति है जो मूर्त द्रव्यों में समवेत न हो तथा द्रव्यत्व के द्वारा व्याप्त होती है। [ पृथिवी, जल, तेज, वायु और मन-ये पाँच मूर्त द्रव्य हैं। उनमें उन-उन द्रव्यों की जातियाँ समवेत रहती हैं। उन सबों का निरसन इसी विशेषण से होता है-अमूर्तसमवेत । आकाश, काल और दिक् एक-एक ही हैं, इसलिए उनमें तो जाति का प्रश्न ही नहीं उठता । इस प्रकार आत्मत्व-जाति ही लक्षित होती है। ___मनस्त्व का लक्षण-जो अणु ( Atoms ) द्रव्य का समवायि-कारण नहीं हो सकते उन अणुओं में समवेत ( Eternally connected ) तथा द्रव्यत्व के द्वारा व्याप्त होनेवाली जाति को मनस्त्व-जाति कहते हैं। [ मन के परमाणु ऐसे हैं जो किसी द्रव्य का समवायि-कारण नहीं बन सकते । पृथिवी, जल, तेज और वायु के परमाणुओं का संयोग होने पर उन द्रव्यों के द्वषणुक, व्यणुक, चतुरणुक आदि बनते हैं । इस प्रकार वे परमाणु द्वयणुकादि के समवायि-कारण होते हैं। मन इनसे पृथक् है, क्योंकि इसके अणु समवापिकारण नहीं हैं । अणु कहने से उन पदार्थों की व्यावृत्ति होती है जो विभु हैं, जैसेआकाश, काल, दिक् आत्मा । मन अणु होता है।
इस प्रकार नौ द्रव्यों के लक्षण समाप्त हुए । उन द्रव्यों में पृथिवी, जल, तेज, वायु तथा आत्मा, मन की जातियां हैं; जब कि आकाश, काल और दिक् अकेले हैं । ]
(७. गुण के भेद और उनके लक्षण ) रूप-रस-गन्ध-स्पर्श-संख्या-परिमाण-पृथक्त्व-संयोग-विभाग-परत्वा-परत्वबुद्धि-सुख-दुःखेच्छा-द्वेष-प्रयत्नाश्च कण्ठोक्ताः सप्तदश; चशब्दसमुच्चिताः गुरुत्व-द्रवत्व-स्नेह-संस्कारादृष्ट-शब्दाः सप्तैवेत्येवं चतुर्विशतिगुंणाः ।
तत्र रूपादिशब्दान्तानां रूपत्वादिजातिर्लक्षणम् । रूपत्वं नाम नीलसमवेतगुणत्वापरजातिः । अनया दिशा शिष्टानां लक्षणानि द्रष्टव्यानि । __गुण चौबीस होते हैं। उनमें सत्रह तो साक्षात् कणाद के मुख से ही कहे गये हैंरूप ( Colour ), रस ( Taste ), गन्ध ( Smell ), स्पर्श ( Touch ), संख्या ( Number ), मरिणाम ( Magnitude ), पृथक्त्व ( Distinctuss ). भोग