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सर्वदर्शनसंग्रहेद्वयणुकनाशः, नष्टे व्यणुके परमाणावग्निसंयोगाच्छचामादीनां निवृत्तिः। निवृत्तेषु श्यामादिषु पुनरन्यस्मादग्निसंयोगाद् रक्तादीनामुत्पत्तिः।
अब यह प्रश्न होता है कि एक द्वयणुक का नाश होने पर, कितने क्षणों के बाद फिर दूसरा द्वयणुक उत्पन्न होकर रूप-रस आदि से युक्त होता है। इस जिज्ञासा के उत्तर में अब हम व्यणुक की उत्पत्ति को रूपरेखा ( प्रकार ) प्रस्तुत करते हैं।
(१) सबसे पहले नोदन ( संयोग, अग्नि-संयोग, इनुद् प्रेरणा, Motion ) आदि के क्रम से' द्वयणुक ( दो अणुओं के सम्मिलित रूप ) का नाश होता है। (२) यणक के नष्ट हो जाने पर परमाणु में अग्नि-संयोग होता है जिससे श्याम आदि गुणों की निवृत्ति (नाश ) होती है । ( ३ ) अब श्याम आदि भूतपूर्व गुणों के हट जाने पर उस परमाणु में पुनः अग्नि-संयोग होता है । जिससे रक्त आदि गुणों की उत्पत्ति होती है।
विशेष-'पाक' का अर्थ है तेजःसंयोग । अग्नि के साथ संयोग होने पर द्रव्यों में रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का अन्तर या परिवर्तन होता है। कच्चा घड़ा काला है किन्तु जब उसमें अग्नि का संयोग होगा तब वह लाल हो जायगा। आम, अमरूद आदि के हरे फलों में तेज के संयोग से पीलापन आ जाता है-यह रूप का परिवर्तन है। कच्चा फल स्वाद ( रस ) में खट्टा, गन्ध में दूसरी तरह का तथा स्पर्श में कड़ा लगता है, जब कि अग्निसंयोग (धूप से ) हो जाने पर जब वह पक जाता है तब उसमें मधुरता, सुगन्ध तथा कोमलता आ जाती है । इसी तरह से द्रव्यों में रूपादि चार गुणों का पाकजत्व देखा जाता है, किन्तु स्मरणीय है कि नव द्रव्यों में केवल पृथ्वी में ही यह पाकजत्व होता है-'एतेषां पाकजत्वं तु क्षितो नान्यत्र कुत्रचित्' ( भा० प० १०५ )। जलादि द्रव्यों में पाकजत्व नहीं होता। ____अब प्रश्न यह है कि पाक होता किसका है-परमाणुओं का या पूरे द्रव्य (पिण्ड ) का? वैशेषिक कहते हैं कि परमाणुओं में ही पाकज गुणों ( रूप, रस, गन्ध, स्पर्श का परिवर्तन होता है-तत्रापि परमाणौ स्यात्पाको वैशेषिके नये ( भा० ५० १०५ ) । उनके सिद्धान्त को पीलुपाक-प्रक्रिया कहते हैं, क्योंकि 'पौलु' का अर्थ परमाणु होता है । दूसरी ओर नेयायिकों की मान्यता है कि पिण्ड में ही रूपादि का परावर्तन होता है । अवयव और अवयवी ( जैसे घट) का नित्य सम्बन्ध होने के कारण दोनों का एक साथ विनाश और एक ही साथ उदय होता है । अतः पूर्वरूप आदि का नाश या विकास अवयवी (पिण्ड )
१. अग्नि-संयोग ( नोदन) से घट के अणुओं में क्रिया उत्पन्न होती है, तब एक अणु से दूसरे अणु का पृथक्करण ( Separation ) होता है। फिर कृष्ण (कच्चा ) घट का निर्माण करनेवाले अणुओं के संयोग का नाश होता है और अन्त में द्वषणुक का विनाश होता है। यह घणुक नष्ट होने पर पुनः नवम क्षण में दूसरा दूपणुक दूसरे रूप को उत्पन्न करता है।