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औलूक्य दर्शनम्
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पर चार प्रकार के विवाद सम्भव हैं । उदाहरणत: ( १ ) भाट्ट मीमांसकों और वेदान्तियों का यह कथन है कि अन्धकार एक द्रव्य है [ स्वाभाविक नीलरूप से विशिष्ट द्रव्य ही अन्मकार है जैसे कज्जल, कालिख आदि हैं । ] दूसरी ओर ( २ ) श्रीधराचार्य कहते हैं कि अन्धकार वह है जिस पर नील रूप का आरोपण हुआ हो । [ वास्तव में अन्धकार द्रव्य ही है किन्तु नीला रूप वास्तविक नहीं है, आरोपित किया जाता है । जैसे जल पर श्वेत रूप या आकाश पर नील रूप का आरोपण होता है । ] ( ३ ) तीसरा पक्ष प्रभाकरमीमांसकों के दल के कुछ लोगों का है जो कहते हैं कि प्रकाश के ज्ञान के अभाव को अन्धकार कहते हैं । ( ४ ) अन्त में नैयायिकों का सिद्धान्त है कि प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है । [ इसे कुछ दूसरे लोग भी मानते हैं । ]
उपर्युक्त शंका होने पर इसका उत्तर निम्नलिखित रूप से देंगे ।
तत्र द्रव्यत्वपक्षो न घटते । विकल्पानुपपत्तेः । द्रव्यं भवदन्धकाराख्यं पृथिव्याद्यन्यतममन्यद्वा । नाद्यः । यत्रान्तर्भावोऽस्य तस्य यावन्तो गुणास्तावद्गुणकत्वप्रसङ्गात् । न द्वितीयः । निर्गुणस्य तस्य द्रव्यत्वासम्भवेन द्रव्यान्तरत्वस्य सुतरामसम्भवात ।
( १ ) इनमें अन्धकार को द्रव्य माननेवाला पक्ष सम्भव नहीं है, क्योंकि निम्नलिखित दोनों ही विकल्प असिद्ध हो जाते हैं। प्रश्न है कि यह अन्धकार नामक द्रव्य पृथ्वी आदि नौ द्रव्यों में ही किसी के अन्तर्गत है या इनके अतिरिक्त दशम द्रव्य है ? पहला पक्ष नहीं लिया जा सकता, क्योंकि जिस द्रव्य में अन्धकार का अन्तर्भाव ( Inclusion ) करेंगे उस द्रव्य के सभी गुण अन्धकार के भी अपने गुण होंगे, ऐसी स्थिति हो जायगी। दूसरा पक्ष, कि अन्धकार दशम द्रव्य है, यह भी स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि अन्धकार निर्गुण होने के कारण पहले तो द्रव्य ही नहीं हो सकता ( द्रव्य सगुण होता है ), द्रव्यान्तर होना तो दूर की बात है ।
विशेष -- अन्धकार को यदि पृथिवी में लेते हैं तो पृथिवी की तरह ही उसमें भी चौदह गुण मानने पड़ेंगे । फिर तो अन्धकार में भी शुक्ल, पीत आदि नाना प्रकार के रूप और रस, गन्ध आदि गुण होने लगें । लेकिन बात ऐसी नहीं है। इसी प्रकार जल में अन्धकार का ग्रहण करने से शीतस्पर्श, रस, द्रव्यत्व आदि गुणों की उपलब्धि होने लगेगी । तेजस में अन्तर्भाव करने पर उष्णस्पर्श आदि की उपलब्धि होगी । पृथिवी आदि नौ द्रव्यों में रहनेवाले गुणों का निदर्शन भाषा-परिच्छेद ( ३०-३४ ) में किया गया है
१. वायु - स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व तथा वेग नामक संस्कार ( ९ गुण ) |
२. तेजस् – स्पर्शादि आठ, रूप, वेग तथा द्रवत्व ( ११ गुण ) ।
३. जल – स्पर्शादि आठ, वेग, गुरुत्व, रूप, रस तथा स्नेह ( १४ गुण ) ।