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औलूक्य दर्शनम्
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कर्मणो गगनविभागाकर्तृत्वस्य द्रव्यारम्भकसंयोगविरोधिविभागा रम्भकत्वेन धूमस्य धूमध्वजवर्गेणेव व्यभिचारानुपलम्भात् । ततश्चावयवकर्मावयवान्तरादेव विभागं करोति नाकाशादिदेशात् । तस्माद्विभागाद् द्रव्यारम्भकसंयोगनिवृत्तिः । ततः कारणाभावात्कार्याभाव इति न्यायादवयवनिवृत्तिः ।
= स्थानजन्य
जिस प्रकार धूम का व्यभिचार धूमध्वज ( अग्नि ) के साथ कहीं प्राप्त नहीं होता ( अग्नि के बिना घूम नहीं मिलता ), ठीक उसी प्रकार कर्म ( = घटध्वंस - कर्म ) जिसे हम स्थान ( Space ) के विचार से होनेवाले विभाग का कर्ता नहीं मानते ( विभाग का अनारंभक कर्म ) ), द्रव्य का आरम्भ करनेवाले संयोग के विरोधी विभाग के उत्पादक के रूप में ही सदा रहता है, व्यभिचरित नहीं होता । [ ऊपर कही गई बातों को ही इसमें फैलाया जा रहा है । स्थानगत विभाग को जो कर्म उत्पन्न नहीं करता, वही कर्म द्रव्यारंभक संयोग का विरोध करनेवाले विभाग को उत्पन्न करता है— दोनों कर्मों में कार्यकारण सम्बन्ध है । चूंकि संयोग और विभाग में सीधा विरोध है इसीलिए स्थान-स्थान पर 'संयोग-प्रतिद्वन्द्विविभाग की तरह की उक्तियाँ दी जाती हैं । ]
इसलिए अवयवों का [ घटध्वंस रूपी ] कर्म अपना विभाग दूसरे अवयवों से ही उत्पन्न करता है, आकाश आदि देशों ( Space ) से नहीं । इस विभाग के बाद द्रव्य ( घट ) का आरम्भ करनेवाले संयोग की निवृत्ति होती है । उसके बाद, 'कारण का अभाव होने पर कार्य का अभाव होता है' इस नियम से द्रव्यारंभक संयोग-रूपी कारण के नष्ट हो जाने से उसके कार्य अर्थात् ] अवयवी ( घट ) की भी निवृत्ति हो जाती है ।
निवत्तेऽवयविनि तत्कारणयोरवयवयोः वर्तमानो विभागः कार्यविनाशविशिष्टं कालं स्वतन्त्रं वायवयमपेक्ष्य न सक्रियस्यैवावयवस्य कार्यसंयुक्तादाकाशदेशदेशाद्विभागमारभते न निष्क्रियस्य । कारणाभावात् ।
इस प्रकार जब अवयवी ( घट ) का विनाश हो जाता है तब उस ( विनाश ) के कारणस्वरूप जो दोनों अवयव ( टुकड़े ) हैं उनके बीच विद्यमान विभाग या तो कार्य के विनाश से सम्बद्ध काल ( Time ) की अपेक्षा रखता है या किसी स्वतन्त्र अवयव की अपेक्षा करके ही केवल सक्रिय अवयव का ही विभाग कार्य-सम्बद्ध आकाश-देश से आरंभ करता है, निष्क्रिय अवयव का ही विभाग वह इसलिए आरम्भ नहीं करता कि उसका कोई कारण ही नहीं दिखलाई पड़ता । [ अभिप्राय यह है कि दो अवयवों का विभाग होने से घट की निवृत्ति होती है । उन दोनों अवयवों में एक को सक्रिय मानते हैं, दूसरे को निष्क्रिय | हम ऊपर देख चुके हैं कि अवयवों का पारस्परिक विभाग होने के बाद उनका विभाग आकाश-देश ( स्थान Space ) से भी होता है । इसलिए अब प्रथम विभाग आकाशदेशविभाग को उत्पन्न करता है । किन्तु यहाँ भी निष्क्रिय अवयव से आकाश-विभाग