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औलुक्य-दर्शनम्
३५५ ही स्पर्श का अनुभव होता है। द्रव्यत्व में वायु भी आता है, इसलिए साक्षाद् व्याप्त होता है। ] ___आकाश, काल और दिक्-ये तीनों अकेले-अकेले हैं । इसलिए इनके ऊपर कोई जाति नहीं। यही कारण है कि पारिभाषिक संज्ञाएं ये तीनों स्वयं हैं-आकाश, काल और दिक् । [ उपर्युक्त द्रव्यों में पारिभाषिक संज्ञाएं उनकी जातियां थीं, जैसे--पृथिवी का पृथिवीत्व, जल का जलत्व । परन्तु यहां सीधे आकाश का ही लक्षण होगा-आकाशत्व का नहीं। आकाश एक होता है । जाति तभी होती है जब अनेकता हो । अनेक गौ होने पर ही गोत्व का प्रयोग होता है । सामान्य ( समानता, जाति ) के लिए न्यूनतम दो व्यक्ति हो रहने चाहिए अन्यथा समानता किसमें ? ]
संयोगाजन्यजन्यविशेषगुणसमानाधिकरणविशेषाधिकरणमाकाशम् । विभुत्वे सति दिगसमवेतपरत्वासमवायिकारणाधिकरणः कालः । अकालत्वे सति अविशेषगुणा महती दिक् ।
आकाश का लक्षण-संयोग से उत्पन्न न होनेवाले ( संयोगाजन्य ) तथा अनित्य (जन्य ) [ आकाश के ] विशिष्ट गुण के साथ जो विशेष समानाधिकरण ( समान ) हो उसी विशेष का आधार आकाश है। [ ऊपर देख चुके हैं कि विशेष नामक पदार्थ केवल नित्य द्रव्यों के साथ अवस्थित रहता है । आकाश भी नित्य है, इसीलिए इसमें कोई विशेष अवश्य ही होगा । दूसरे शब्दों में, आकाश विशेष का आधार या अधिकरण है । आकाश में एक विशिष्ट गुण ( Special quality ) है शब्द । इस शब्द के साथ ही आकाश में अवस्थित विशेष समानाधिकरण है । कारण यह है कि शब्द का आधार भी आकाश है, उस विशेष का आधार भी आकाश है। आधार या अधिकरण की समानता के कारण दोनों समानाधिकरण हैं । इस लक्षण में उस विशिष्ट गुण ( शब्द ) के दो विशेषण हैं-संयोगाजन्य तथा जन्य । शब्द जन्य अर्थात् अनित्य है, उत्पन्न किया जाता है इसलिए अनित्य है । यह ध्येय है कि मीमांसक और वैयाकरण लोग शब्द को नित्य मानते हैं, जब कि नैयायिक और वैशेषिक उसे अनित्य स्वीकार करते हैं । संयोग से उत्पन्न न होना भी शब्द का धर्म है । वैशेषिकों के यहां विभाग से उत्पन्न तथा शब्द से उत्पन्न शब्द की सत्ता मानी जाती है। ___ अब हम लक्षण के तार्किक पक्ष पर चलें । 'विशेषाधिकरण' कहने से द्वयणुक, व्यणुक आदि, एवं गुण, कर्म आदि तथा सभी अनित्य द्रव्यों की व्यावृत्ति होती है । विशेष गुण को संयोग से अजन्य तथा जन्य ( अंनित्य ) भी होना चाहिए । देखिए, पृथ्वी के परमाणुओं में स्थित रूपादि गुण यद्यपि जन्य ( उत्पन्न होने के कारण, अनित्य ) हैं, किन्तु संयोग से उत्पन्न न होते हों, ऐसी बात नहीं है । ये विशेष गुण पाकज अर्थात् तेज के संयोग से उत्पन्न होते हैं । जल, तेज और वायु के परमाणुओं में जो विशेष गुण हैं वे जन्य ही नहीं