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रसेश्वर-वर्शनम्
३२९ विशेष-पारद के अठारह संस्कारों का वर्णन किसी रसायन-शास्त्र की पुस्तक में देखें । इनमें कितनी प्रक्रियाएं तो वैज्ञानिक हैं, आधुनिकता से पूरा मेल रखती हैं । इनका सामान्य अर्थ इस प्रकार है-(१) स्वेदन = आर्द्रता निकाल देना, (२) मर्दन = मसलना, घिसना, ( ३ ) मूर्छन = घनत्व और तरलता निकाल देना, ( ४ ) स्थापन = ' स्थिर आकार का करना, ( ५ ) पातन = गिराना, ( ६ ) निरोधन = रोकना, (७) नियमन = सीमित करना, (८) दीपन = जलाना, (९) गमन = चलना या उड़ाना, (१०) ग्रासप्रमाण = गोली बनाना, (११) जारण = चूर्ण बनाना, (१२) पिधान = ढंक देना, (१३ ) गर्भद्रुति = आंतरिक परिवर्तन, (१४) बाह्यद्रुति = बाह्य परिवर्तन, (१५) क्षारण = क्षार के रूप में कर देना, (१६ ) संराग = रंगना, (१७ ) सारण = छिड़कना, तथा ( १८ ) क्रामण (टुकड़े करके ) और वेधन ( चीर कर ) करके भक्षण करना।
(८. देहवेध और उसको आवश्यकता ) न च रसशास्त्रं धातुवादार्थमेवेति मन्तव्यम् । देहवेधद्वारा मुक्तरेव परमप्रयोजनत्वात् । तदुक्तं रसाणवे
१८. लोहवेधस्त्वया देव यदर्थमुपवर्णितः ।
तं देहवेधमाचक्ष्व येन स्यात्खेचरी गतिः॥ १९. यथा लोहे तथा देहे कर्तव्यः सूतकः सता।
समानं कुरुते देवि प्रत्ययं देहलोहयोः ॥
पूर्व लोहे परीक्षेत पश्चाद्देहे प्रयोजयेत् ॥ इति । यह न समझें कि रस-शास्त्र केवल धातुओं के अर्थवाद ( स्तुतिपरक लाक्षणिक वाक्य = प्रशंसा ) के लिए है, क्योंकि परम लक्ष्य तो देहवेध ( शरीर में पारे का प्रयोग ) से होनेवाली मुक्ति ही है । यह रसार्णव में कहा है-[ पार्वती शिव से पूछती हैं कि ] हे देव, जिस प्रयोजन की सिद्धि के लिए आपने लोहवेध का वर्णन किया है उस देहवेध का वर्णन कीजिए, जिससे आकाश में चलने की शक्ति प्राप्त होती है। [शिव ने कहा ] हे देवि, सज्जनों को चाहिए कि जिस प्रकार लौह में ( = रक्त में ) पारद का प्रयोग करते हैं उसी प्रकार देह में भी करें [ क्योंकि ] शरीर और रक्त दोनों में इसका एक ही रूप रहता है। पहले रक्त में परीक्षा करे, फिर देह में प्रयोग करे ।
विशेष-अर्थवाद = स्तुति या निन्दा के लिए प्रयुक्त लक्ष्यार्थयुक्त वाक्य, जैसेअपि गिरि शिरसा भिन्द्यात् = ऐसा करने पर पहाड़ को भी सिर से तोड़ दे सकता है। इसका लक्ष्यार्थ है कि उसके पास काफी शक्ति हो जायगी। अभिप्राय यह है कि रसशास्त्र में धातुओं की प्रशंसा ही है, सो बात नहीं-उसका अन्तिम लक्ष्य है मुक्ति ( जीवन्मुक्ति ); जो देहवेध से होती है। देहवेध = शरीर को नित्य करना, पारे का शरीर में प्रयोग ।