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सर्वदर्शनसंग्रहे
द्रव्य इन दोनों का आधार है। विशेषों का भी साक्षात् आधार द्रव्य ही है। समवाय का कहीं तो वह साक्षात् आधार होता है, कहीं गुणादि के द्वारा । तात्पर्य यह है कि द्रव्य या तो सभी पदार्थों का साक्षात् आधार है या परम्परा से आधार है। प्रमुख होने के कारण द्रव्य को पहले रखते हैं ] ___ इसके बाद गुणत्व उपाधि के रूप में सभी द्रव्यों में पाये जानेवाले गुण का नाम है । [ गुण का अर्थ अप्रधान रूप से विद्यमान रहनेवाले गुणों को द्रव्य के बाद रखते हैं । यद्यपि गुण, कर्म आदि पाँचों पदार्थों को समान रूप से अप्रधान (गुण ) कहा जा सकता है, किन्तु वैशेषिक लोग रूप, रस आदि को ही सांकेतिक रूप से गुण कहते हैं। गुण का सामान्य अर्थ बहुत व्यापक होने पर भी शास्त्रीय-दृष्टि से एक विशेष पदार्थ को ही गुण कहते हैं जो सभी द्रव्यों में रहता है । इसका यह अर्थ कभी नहीं समझना चाहिए कि द्रव्यों में सभी गुण रहते हैं-पृथ्वी में रूप-रस आदि नहीं है, न बुद्धि ही है। किन्तु कोई-नकोई गुण सभी द्रव्यों में रहता ही है। यह सौभाग्य अन्य पदार्थों को नहीं। यही कारण है कि द्रव्य के पश्चात् और अन्य पदार्थों के पहले गुण का नाम लिया जाता है। ]
इसके बाद कर्म का उद्देश होता है, क्योंकि [ द्रव्य, गुण और कर्म तीनों में ] सामान्य की सत्ता रहती है, यही समानता है। [ द्रव्य, गुण और कर्म तीनों में जाति ( Class ) रहती है। इसलिए तीनों को एक साथ ही रखना चाहिए । द्रव्य, अपने विशिष्ट कारणों से पहले आ चुके हैं । अवशिष्ट कर्म ही है, इसलिए गुण के बाद उसे रखते हैं । इसके अतिरिक्त यह ध्येय है कि गुण, कर्म के बीच गुण को प्रधानता मिलती है, क्योंकि गुणों की . पहुंच ( वृत्ति ) सभी द्रव्यों तक रहती है, कर्म बेचारे कुछ ही द्रव्यों तक पहुँच पाते हैं
आकाश, काल, दिशा, आत्मा इन विभु द्रव्यों में कर्म पहुँच नहीं सकते। गुणों की अपेक्षा कर्म द्रव्य के पास पैरवी पहुंचाने में पिछड़ जाते हैं, इसलिए गुणों के उपरान्त ही इनका स्थान होता है।]
इसके बाद इन तीनों में आश्रय लेनेवाले सामान्य या जाति का उद्देश होता है । [ ऊपर कह चुके हैं कि आधार के बाद ही आधेय पदार्थ आते हैं । द्रव्य, गुण, कर्म तीनों ही सामान्य के लिए आधार हैं । इसलिए वे सामान्य की अपेक्षा प्रधान हैं। दूसरों के भरोसे जीनेवाला पहले नहीं रह सकता । पहले उसके आश्रयदाता का नाम रहेगा-तभी उसका नाम रहेगा । यही कारण है कि सामान्य इन तीनों के अन्त में आता है।] ____ इसके अनन्तर समवाय के आधार के रूप में अवस्थित विशेष का नाम लेते हैं और अन्त में बचे हुए समवाय का नाम आता है-यही क्रम है । [ विशेष और समवाय को सबसे पीछे डालने का यह कारण है कि इनका प्रत्यक्ष कभी नहीं होता। प्रत्यक्ष होनेवाले पदार्थों से अप्रत्यक्ष पदार्थ पीछे रहेंगे ही। अब ये दोनों निर्णय करें कि कौन पहले रहेगा, कौन पीछे ? फिर आधार-आधेय का सम्बन्ध हो गया। समवाय आधेय है, विशेष आधार । आधार पहले होता है, आधेय पीछे । बस, विशेष के बाद समवाय का नाम है । ]