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सर्वदर्शनसंग्रहे
का चिन्तन ( विचार ) किया गया है । दो ही आह्निकों से विभूषित षष्ठ अध्याय में श्रुतियों में प्रतिपादित धर्म का निरूपण किया गया है । जिसमें प्रथम आह्निक में दान दान करना ) और प्रतिग्रह ( दान लेना ) – इन दो धर्मों पर विचार किया गया है। द्वितीय आह्निक में चारों आश्रमों के लिए उचित धर्म का निरूपण हुआ है ।
तथाविधे सप्तमे गुणसमवायप्रतिपादनम् । तत्रापि प्रथमे बुद्धिनिरपेक्षगुणप्रतिपादनम् । द्वितीये तत्सापेक्षगुणप्रतिपादनं समवायप्रतिपादनं च ।
अष्टमे निर्विकल्पक सविकल्पक प्रत्यक्षप्रमाणचिन्तनम् । नवमे बुद्धिविशेषप्रतिपादनम् । दशमेऽनुमानभेदप्रतिपादनम् ।
उसी प्रकार के विभाजनवाले सप्तम अध्याय में गुणों और समवाय का प्रतिपादन हुआ है जिसमें प्रथम आह्निक में उन गुणों का प्रतिपादन हुआ है जो बुद्धि की अपेक्षा नहीं रखते ( रूप, रस, गन्ध आदि ) । द्वितीय आह्निक में बुद्धि की अपेक्षा रखनेवाले गुणों ( द्वित्व, परत्व, अपरत्व, पृथक्त्व आदि ) का तथा इसी में सामान्य का भी प्रतिपादन हुआ 1 [ द्वित्व, एकत्व, बहुत्व आदि को संख्या कहते हैं, वह भी बुद्धि पर निर्भर करती है । इसका विशद विचार आगे करेंगे । ]
अष्टम अध्याय में निर्विकल्पक ( Indeterminate ) तथा सविकल्पक ( Determinate ) प्रत्यक्ष प्रमाण का निरूपण हुआ है । नवम अध्याय में बुद्धि के विशेषों ( भेदों ) का वर्णन है । दशम अध्याय में अनुमान के भेदों का वर्णन है । [ यह आश्चर्य है कि नवम और दशम अध्यायों के विषय में माधवाचार्य इतने भ्रम में हैं । वास्तव में नवम अध्याय में अतीन्द्रिय संयोगादि से होनेवाले प्रत्यक्ष का तथा अनुमान का वर्णन है । दशम में सुखदुःखादि आत्मा के गुणों का वर्णन एवं त्रिविध कारण का भी प्रतिपादन हुआ है । माधव के भ्रम का कारण समझ में नहीं आता ! ]
( ३. शास्त्र की प्रवृत्ति - - उद्देश, लक्षण, परीक्षा )
तत्रोद्देश लक्षणं परीक्षा चेति त्रिविधास्य शास्त्रस्य प्रवृत्ति: ( वात्स्यायन० १।१।१ ) । ननुविभागापेक्षया चातुविध्ये वक्तव्ये कथं त्रैविध्यमुक्तमिति चेत् — मैवं मंस्थाः । विभागस्य विशेषोद्देशरूपत्वात् उद्देश एवान्तर्भावात् । तत्र द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवाया इति षडेव ते पदार्था इत्युद्देशः ।
[ वात्स्यायन का कहना है कि ] इस शास्त्र ( न्याय-वैशेषिक ) की प्रवृत्ति ( प्रतिपादन ) तीन प्रकार से होती है - उद्देश ( Enumeration, गणना ) लक्षण ( Definition ) और परीक्षा ( लक्षणों का आरोपण, Examination ) । [ वस्तु का केवल नाम ले लेना या गिना देना ही उद्देश कहलाता है । जैसे यह कहना कि द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय, ये छह पदार्थ हैं । लक्षण में वस्तु के उस धर्म का उल्लेख करते हैं