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रसेश्वर-दर्शनम्
३३३ १०।३।९)-इस प्रकार के पौराणिक-लक्षणों के आधार पर, तीन प्रमाणों से सिद्ध होने पर भी नरसिंह का शरीर केसे असत् होगा। यही कारण है कि सत् आदि (चित्, नित्य, निज आदि ) विशेषणों का प्रतिपादन, विष्णुस्वामी के चरणों में अपने अन्तःकरण को लगानेवाले उनके शिष्य श्रीकान्त मिश्र ने किया है। इसलिए हमारा प्रतिपाद्य विषय जो देह का नित्यत्व है वह बिल्कुल नहीं देखा गया, ऐसी बात नहीं—यह पुरुषार्थ की कामना करनेवाले व्यक्ति खोज लें इसी से कहा है-'सभी विद्याओं का समूह तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल एकमात्र अजर और अमर शरीर को छोड़कर, दूसरा क्या [ हो सकता है ] ?'
(१२. पारद-रस के सेवन से जरामरण से मुक्ति ) . अजरामरीकरणसमर्थश्च रसेन्द्र एव। तदाह
एकोऽसौ रसराजः शरीरमराजमरं कुरुते । इति । किं वर्ण्यते रसस्य माहात्म्यम् ? दर्शनस्पर्शनादिनापि महत्फलं भवति ।
अजर और अमर करने की सामर्थ्य रसराज ( पारद ) में ही है। उसे कहा है'एक रसराज ही शरीर अजर-अमर करता है।' रस की महिमा क्या कही जाय ? देखने और छूने से भी बड़ा फल मिलता है।
. ( १३. पारद-लिंग की महिमा ) तदुक्तं रसाणवे
२७. दर्शनात्स्पर्शनात्तस्य भक्षणात्स्मरणादपि ।
पूजनाद्रसदानाच्च दृश्यते षड्विधं फलम् ।। २८. केदारादीनि लिङ्गानि पृथिव्यां यानि कानिचित् । तानि दृष्ट्वा तु यत्पुण्यं तत्पुण्यं रसदर्शनात् ॥
इत्यादिना। अन्यत्रापि
२९. काश्यादिसर्वलिङ्गभ्यो रसलिङ्गार्चनाच्छिवः।
प्राप्यते येन तल्लिङ्ग भोगारोग्यामृतप्रदम् ॥ इति । ___वैसा ही रसार्णव में कहा गया है-'उसके देखने से, छूने से, खाने से या केवल स्मरण से भी, इसकी पूजा करने से या स्वाद लेने से छह प्रकार के फल मिलते हैं। पृथ्वी में केदार आदि या दूसरे जो भी लिंग ( शिवलिंग ) हैं, उन्हें देखने से जो पुण्य होता है, वह रस ( पारद ) के दर्शन से भी मिलता है। दूसरी जगह भी—'काशी-आदि [ सभी तीर्थों ]
१. तुल० कालिदास, कुमार०-शरीरमाद्य खलु धर्मसाधनम् ( ५।३३)।