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आहेत-दर्शनम्
( Synthesis ) से द्वयणुक आदि होते हैं। कभी-कभी स्कन्ध की उत्पत्ति विश्लेषण और संघात दोनों के प्रयोग से होती है। इसलिए भरने ( मिलने, प+णिच् ) या पृथक्पृथक् होने (/गल ) के कारण इन्हें पुद्गल कहते हैं ।
विशेष-पुद्गल के लक्षण में प्राचीन पुस्तकों में 'गन्ध' नहीं दिया गया है--जिसका अनुवाद कॉवेल ने भी किया है पर सूत्र में 'गन्ध' का प्रयोग है। स्पर्श के आठ भेद हैंकठोर, मृदु, लघु, गुरु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष । रस पाँच प्रकार का है-तिक्त, कट, कषाय, अम्ल, मधुर । गन्ध दो प्रकार की है--सुरभि, असुरभि । वर्ण के पाँच भेद हैंकृष्ण, नील, लोहित, पीत, शुक्ल । ___ अणु = / अण् से, अर्थ है-स्पर्शादि अवस्थाओं के उत्पादन में समर्थ है, ऐसा जिसे कहते हैं । स्कन्ध = / स्कन्ध से, अर्थ-ग्रहण, निक्षेपण आदि व्यापारों का उपयोगी । ये दोनों ही पुद्गलों की विशेष अवस्थाओं के नाम हैं । प्रकृति में अणु, फिर स्कन्ध । द्वयणुकादि स्कन्धों का विश्लेषण करने पर अन्त में पुद्गलों को अणु-अवस्था ( परिणाम ) में पहुँचते हैं । अणुओं को मिलाने पर पुद्गलों की स्कन्धावस्था में पहुँचते हैं। कभी-कभी भेद और संघात दोनों करने पर स्कन्ध-परिणाम की प्राप्ति होती है, जैसे
द्वयणुक = त्र्यणुक का विश्लेषण या, द्वयणुक = अणुओं का संघात ।
(२०. काल भी एक द्रव्य है ) कालस्यानेकप्रदेशत्वाभावेन अस्तिकायत्वाभावेऽपि द्रव्यत्वमस्ति । तल्लक्षणयोगात् । तदुक्तं-गुणपर्यायवद् द्रव्यम् (त० सू० ५।३८ ) इति। द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ( त० सू० ५॥३९)। यथा जीवस्य ज्ञानत्वादिधर्मरूपाः, पुद्गलस्य रूपत्वादिसामान्यस्वभावाः। धर्माधर्माकाशकालानां यथासम्भवं गतिस्थित्यवगाहवर्तनाहेतुत्वादिसामान्यानि गुणाः।
तस्य द्रव्यस्योक्तरूपेण भवनं पर्यायः । उत्पादस्तद्भावः परिणामः पर्याय इति पर्यायाः । यथा जीवस्य घटादिज्ञानसुखक्लेशादयः । पुद्गलस्य मृत्पिण्डघटादयः। धर्मादीनां गत्यादिविशेषाः। अतएव षड् द्रव्याणीति प्रसिद्धिः। ____ यद्यपि काल ( Time ) अनेक स्थानों में अवस्थित न होने के कारण अस्तिकाय नहीं है फिर भी यह द्रव्य ( Substance तत्त्व) है। कारण यह है कि द्रव्य के लक्षण इसमें लगते हैं । कहा है कि गुण और पर्याय ( = कर्म-हेमचन्द्र ) से युक्त द्रव्य होता है ( तत्त्व सू० ५।३८१ ) द्रव्य में रहनेवाले किन्तु स्वयं गुण धारण न करनेवाले को गुण (Qualities) कहते हैं । उदाहरणार्थ, जीव के गुण, ज्ञानत्व आदि धर्मों के रूप में हैं, पुद्गल
१. देखिए वैशेषिक सूत्र-( १।१।१५ ) ।