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सर्वदर्शन संप्रहे
वेंकटनाथ ने पदार्थों का विभाजन इस रूप में वर्णित किया है— 'द्रव्य और अद्रव्य के भेद से दो प्रकार का तत्व जाना जाता है—उसके ज्ञाता लोग ऐसा कहते हैं । द्रव्य भी दो प्रकार का है जड़ और अजड़ । उनमें पहला ( जड़ ) भी दो भेदों का है—अव्यक्त ( प्रकृति और जगत् दोनों ) तथा काल । दूसरा ( अजड़ ) भी दो भेदों का हैप्रत्यक् ( निकट ) और पराक् ( दूर ) [ अपने लिए प्रकाशित होनेवाला प्रत्यक् है, दूसरों के लिए प्रकाशित अजड़ पराक् है । ] इनमें भी प्रथम ( प्रत्यक् ) जीव और ईश्वर के भेद से दो प्रकार का है । दूसरे ( पराक् ) के भी दो भेद हैं- नित्यविभूति तथा मति । पहली ( नित्यविभूति ) को कुछ विद्वान् 'जड़ा' भी कहते हैं' ( तत्त्वमुक्ताकलाप १।६ ) |
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'उनमें द्रव्य अवस्था धारण करता है ( यह द्रव्य का लक्षण हुआ - विभिन्न अवस्थाओं में द्रव्य ही परिवर्तित होता है । सत्त्व आदि ( रजस्, तमस् ) गुणों से युक्त इसकी प्रकृति ( मूल अवस्था ) है | शब्द ( वर्ष ) आदि के आकार ( रूप ) में काल है । जीव अणु तथा ज्ञान (अवर्गात ) से युक्त है, दूसरी आत्मा ( चेतनस्वरूप ) को ईश्वर कहते हैं । नित्य विभूति ( Eternal bliss ) उसे कहा गया है जो तीन गुणों से परे हो तथा सत्त्व गुण से युक्त हो । ज्ञाता ( जीव + ईश्वर ) को जो ज्ञेय ( जानने के लायक ) वस्तु का अवभास ( विषय का प्रकाश ) मिलता है, उसे मति कहते । इस प्रकार संक्षेप में द्रव्य का लक्षण
कहा गया है । ' ( त० मु० क० १।७ ) ।
विशेष- इन भेदों के स्पष्टोकरण के लिए हम चित्रांकन ( Figure ) करें
अव्यक्त
द्रव्य
काल प्रत्यक्
तत्त्व
अजड़
1
1
पराक्
अद्रव्य ( Non-Substance )
जीव ईश्वर नित्यविभूति (जड़ा ) मति
पहले श्लोक में द्रव्य का विभाजन है, दूसरे में उनके लक्षण हैं । द्रव्य का सामान्य लक्षण है ' दशा में रहना' अवस्थाश्रयीभूतं द्रव्यम् ( जो अवस्था का आश्रय या आधार हो ) ।