________________
सर्वदर्शनसंग्रहे
यदि आप वस्तु के स्वरूप को भेद माननेवाले लोगों ( मध्वों ) पर यह आरोप लगा रहे हैं, तो ठीक नहीं कर रहे हैं— जैसे चोर के अपराध से माण्डव्य ऋषि को पकड़कर दण्ड दिया गया, वही स्थिति हो जायगी । ( खेत खाय गदहा मार खाय जोलहा ) । [ महाभारत के आदिपर्व (अध्याय १०७ - ८ ) में यह कथा आयी है— माण्डव्य नाम के ऋषि को किसी राजा ने चोर समझकर पकड़ लिया । राजा ने जब उन्हें दण्ड देकर शूली पर चढ़ाया, उसी समय दूसरा असली चोर पकड़ा गया । तुरत उन ऋषि को शूली से उतारा गया और राजा ने उनसे क्षमा कर देने की प्रार्थना की । माण्डव्य ऋषि ने सोचा कि यह मेरे किसी-न-किसी कर्म का ही फल है, अतः उसका पता लगाने के लिए यमलोक में गये । यमराज ने बतलाया कि बचपन में किसी कोड़े को आपने बाँध लिया था उसी का यह फल भोगने को मिला है । माण्डव्य बहुत क्रुद्ध हुए और बोले कि अनजान में हुए अपराध का दण्ड इस प्रकार का नहीं मिलना चाहिए । उन्होंने यमराज को शाप दिया कि मर्त्यलोक में तुम शूद्रयोनि में जन्म लो । तदनुसार वे विचित्रवीर्य की दासी के गर्भ में व्यास के संयोग से आये और विदुर के रूप में उत्पन्न हुए। उसी दिन से यमराज ने यह नियम ( Convention ) चला दिया कि अज्ञान में किये गये अपराध को क्षमा कर दिया जाय । जहाँ एक व्यक्ति का अपराध हो और दूसरे को दण्ड मिले, वहीं इस न्याय का प्रयोग होता है । ]
२१६
इसका कारण यह है कि आपके द्वारा आरोपित दोषों के क्षेत्र ( Jurisdiction, Subject ) में स्वरूप-भेदवादी लोग नहीं आते । [ पूर्वपक्षियों का कहना था कि भेदवादी लोग धर्मी और प्रतियोगी के साथ ही प्रत्यक्ष का ज्ञान होना मानते हैं जो बिल्कुल असम्भव है | यह अपराध धर्म को भेद माननेवालों का है, स्वरूपभेदवादियों का नहीं, परन्तु यदि आप हमारे ( स्वरूप भेदवादियों के ) ऊपर भी यही आरोप लगाते हैं तो ठीक नहीं । दूसरे के अपराध से हमें क्यों पकड़ रहे हैं ? आपके द्वारा प्रतिपादित दोष वस्तु के स्वरूप को भेद माननेवाले सिद्धान्त पर नहीं लग सकते । यदि वस्तु से भिन्न धर्मों के साथ दूसरी वस्तु के रूप में भेद हो तभी प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा भेद का ज्ञान होगा, केवल भेद का या धर्म-प्रतियोगी के साथ भेद का । पूर्वपक्षियों ने फिर विकल्प किया था कि धर्मी और प्रतियोगी के ज्ञान के बाद भेद का ज्ञान होता है या एक ही साथ - तो ये विकल्प भी धर्मभेदवादी को ही लग सकते हैं। स्वरूप को भेद माननेवाले लोगों में कभी भी ये विकल्प नहीं लग सकते । ]
[ मध्वाचार्य ने शंकर के उत्तर में धर्मभेदवादियों को घसीटा है, सोचा कि इन्हें ही शंकर से भिड़ा दें, हम बिल्कुल बच जायेंगे । पर लेने के देने पड़े, धर्मभेदवादी अब मध्वों ( स्वरूप भेदवादियों) पर ही बिगड़ खड़े हुए। अब दोनों भेदवादियों में ही शास्त्रार्थ चला । धर्मभेदवादी पूछते हैं- ] यदि वस्तु के स्वरूप को ही भेद मान लें तो घट की किसी प्रतियोगी ( Contrary, Counterpart ) की
अपेक्षा नहीं
तरह,