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सर्वदर्शनसंग्रहे
( १०. ईश्वर के ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति )
ननु दर्शनान्तरेऽपीश्वरज्ञानान्मोक्षो लभ्यत एवेति कुतोऽस्य विशेष इति चेत् — मैवं वादीः । विकल्पानुपपत्तेः । किमोश्वरविषयज्ञानमात्रं निर्वाणकारणं किं वा साक्षात्कारः अथवा यथावत्तत्त्वनिश्चय ?
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नाद्यः - शास्त्रमन्तरेणापि प्राकृतजनवद् 'देवानामधिपो महादेवः' इति ज्ञानोत्पत्तिमात्रेण मोक्षसिद्धौ शात्राभ्यास वैफल्यप्रसङ्गात् । नापि द्वितीयः - अनेकमलपचयोपचितानां पिशितलोचनानां पशूनाम् परमेश्वरसाक्षात्कारानुपपत्तेः ।
कोई यह पूछ सकते हैं कि दूसरे दर्शनों में भी तो ईश्वर के ज्ञान से मोक्ष मिलता ही है, इस पाशुपात दर्शन में क्या विशेषता है ? हम कहेंगे कि ऐसा मत कहो । नीचे दिये गये विकल्पों में [ किसी के द्वारा भी तुम्हारी बात ] सिद्ध नहीं होगी । निर्वाण या मोक्ष का कारण वास्तव में क्या है - ईश्वर के विषय में केवल ज्ञान प्राप्त कर लेना या उसका साक्षात्कार ( दर्शन ) करना या यथार्थ रूप से ( जैसी वस्तुस्थिति है ) तत्त्वों का निर्णय करना ?
पहला विकल्प तो ठीक नहीं है क्योंकि बिना शास्त्र के भी साधारण व्यक्तियों की तरह, महादेव देवताओं के राजा हैं' केवल इसी ज्ञान की उत्पत्ति से ही मोक्ष की सिद्धि हो जायेगी, शास्त्रों का अभ्यास करना निष्फल है ।
दूसरा विकल्प भी नहीं ही ठीक है । अनेक प्रकार के मलों के समूह से भरे हुए तथा मांस की आँखोंवाले पशु (जीव ) परमेश्वर का साक्षात्कार कर सकेंगे, यह असम्भव है । -तृतीयेऽस्मन्मतापातः । पाशुपतशास्त्रमन्तरेण यथावत्तत्वनिश्चयानुपपत्तेः । तदुक्तमाचार्यै:
१०. ज्ञानमात्रे वृथा शास्त्रं साक्षाद् दृष्टिस्तु दुर्लभा । पञ्चार्थादन्यतो नास्ति यथावत्तत्त्वनिश्चयः ॥ इति । तस्मात्पुरुषार्थकामैः पुरुषधौरेयैः पश्वार्थप्रतिपादनपरं पाशुपतशास्त्रमाश्रयणीयमिति रमणीयम् ॥
इति श्रीमत्सायणमाधवीये सर्वदर्शनसंग्रहे नकुलीशपाशुपतदर्शनम् ॥
तीसरे विकल्प को स्वीकार करने पर तो फिर हमारे ही दर्शन में आना पड़ेगा । पाशुपतशास्त्र के बिना तत्त्वों का यथार्थ निश्चय नहीं हो सकता । इसी बात को आचार्यों ने