________________
२९१
शैव-दर्शनम् है। 'करण' शब्द से ज्ञान और कर्म की दस इन्द्रियाँ ली जाती हैं । [ इस तरह कुल तीस तत्वों को पुर्यष्टक कहते हैं। ]
विशेष-कलादि सात तत्त्वों से सृष्टि का क्रम समझा जाता है। समस्त सृष्टि के मल में माया-तत्त्व है जो अत्यन्त सूक्ष्म तथा प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होनेवाला है । परमेश्वर के साथ, सृष्टि के आरम्भ में, उसका सम्पर्क होता है और उसमें परिणाम उत्पन्न होते हैं । प्रथम परिणाम कला है जो माया की अपेक्षा कम सूक्ष्म तथा प्रलयकाल में नष्ट हो जानेवाली है । अभी भी तीन गुणों की उत्पत्ति न होने के कारण यह गुणत्रय से भी परे है। इसके बाद काल आता है जो एक ही है, बाद में आनेवाली सभी चीजें काल के अधीन हैं । तदनन्तर नियति की उत्पत्ति होती है जो विभिन्न प्रकार की है, क्योंकि जीव के द्वारा किये गये पूर्व कर्मों के अनुसार काल के नियम से, जीवों से यह सम्बद्ध रहती है। नियति से विद्या उत्पन्न होती है, जिसे चित्त के रूप में जीव का गुण भी मानते हैं। उसके बाद राग (विषयासक्ति ) आता है । यह द्वेष का विरोधी तथा जीव का एक गुण ही है । उपयुक्त दोनों तत्त्व ( विद्या और राग ) प्रत्येक जीव के लिए भिन्न-भिन्न हैं। तब प्रकृति (स्वभाव ) तत्त्व उत्पन्न होता है, तब तीन गुण आते हैं ।
इन सात तत्त्वों की उत्पत्ति के बाद ही तीन अन्तःकरण उत्पन्न होते हैं। अन्तःकरण के पश्चात् पांच सूक्ष्म-तत्त्व ( शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श-ये तन्मात्र ) उत्पन्न होते हैं तथा पाँच स्थूल-तत्त्व (पृथ्वी आदि पांच महाभूत ) उसके बाद आते हैं। पांच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों की उत्पत्ति उसके बाद होने पर स्थूल देह बनती है। यह सृष्टिक्रम सांख्यदर्शन से बहुलांश में समान है । यहाँ इन तीन तत्त्वों को पुर्यष्टक कहते हैं । ननु श्रीमत्कालोत्तरे-- २३. शब्दः स्पर्शस्तथा रूपं रसो गन्धश्च पश्चकम् ।
बुद्धिर्मनस्त्वहंकारः पुर्यष्टकमुदाहृतम् ॥ इति श्रूयते । तत्कथमन्यथा कथ्यते ? अद्धा, अत एव च तत्रभवता रामकाण्डेन तत्सूत्रं त्रिंशत्तत्त्वपरतया व्याख्यायीत्यलमतिप्रपञ्चेन । ___ अब कोई पूछ सकता है कि श्रीमत् कालोत्तर नामक आगम में ऐसा सुनते हैं--शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध इन पांचों का समूह तथा बुद्धि, मन और अहंकार-ये मिलकर पुर्यष्टक कहलाते हैं। तो फिर आप लोग यहाँ अन्य प्रकार से ( तीस तत्त्वों का पुर्यष्टक ) केसे कहते हैं ? ठीक है, इसीलिए तो आदरणीय रामकाण्ड ने उपर्युक्त उद्धृत सूत्र ( श्लोकात्मक ) की व्याख्या इस तरह की है कि तीस तत्त्वों का अभिप्राय निकले-अधिक विस्तार क्या करें?
विशेष--पुर्यष्टक में दो शब्द हैं 'पुरि = शरीरे, अष्टकम् ।' शरीर में आठ चीजों __ का ही वास्तव में ग्रहण करना चाहिए किन्तु मल-शब्द को कौन पूछता है ? शब्द पड़ा रह