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रसेश्वर-दर्शनम्
माहेश्वरः कलितकाञ्चनचाररूपो रोगक्षपाक्षरणदीप्तदिनेशरश्मिः ।
मोक्षं च जीवति जने तनुतेऽक्षरं यः
पायादपायनिचयात्परपारदोऽसौ ॥ -- ऋषिः
( १. रस से जीवन्मुक्ति - पारद और उसका स्वरूप )
अपरे माहेश्वराः परमेश्वरतादात्म्यवादिनोऽपि पिण्डस्थेयें सर्वाभिमता जीवन्मुक्तिः सेत्स्यतीत्यास्थाय पिण्डस्थैर्योपायं पारदादिपदवेदनीयं रसमेव संगिरन्ते ।
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[ उपर्युक्त ] महेश्वर - सम्प्रदायों में (= नकुलीशपाशुपत, शेव, प्रत्यभिज्ञा तथा रसेश्वर में ) कुछ दूसरे [ दार्शनिक ] ( = रसेश्वर सम्प्रदाय को माननेवाले ) यद्यपि परमेश्वर ( परमात्मा ) के साथ [ जीव का ] तादात्म्य ( एकरूप होना ) स्वीकार करते हैं, तथापि सभी [ दर्शनकारों ] से सम्मत जीवन्मुक्ति ( = शरीर के रहते हुए जरामरणादि से छूट जाना ) शरीर ( पिण्ड ) की स्थिरता होने से ही मिलेगी - ऐसी आस्था ( विश्वास ) रखकर, शरीर को स्थिर करने का उपाय रस को, जिसको 'पारद' - आदि शब्दों से भी जानते हैं ( पारद = रस ), बतलाते हैं ।
विशेष - महेश्वर ( शिव ) को परम तत्त्व के रूप में स्वीकार करनेवाले दार्शनिक माहेश्वर कहलाते हैं । सर्वदर्शनसंग्रह में चार माहेश्वरों का वर्णन है— नकुलीशपाशुपत, शेव, प्रत्यभिज्ञा और रसेश्वर । वे सभी जीवात्मा का परमात्मा से ऐकरूप्य मानते हैं । 'रसेश्वर-दर्शन इन सबों से इसलिए पृथक् है कि इनमें जीवन्मुक्ति के लिए रस अर्थात् पारद - रस का प्रयोग अनिवार्य माना गया है । पारद - रस से शरीर को अजर-अमर कर देते हैं, बिना वैसा किये जीवन्मुक्ति नहीं मिल सकती है । जीवन्मुक्ति वह है जिसमें आत्मतत्त्व का साक्षात्कार हो जाय, अभ्यास के आधिक्य से मिथ्याज्ञान का विनाश हो जाय, किन्तु प्रारब्ध - कर्म को भोगने के लिए जीव-धारण किया जाय । इसे अपर मुक्ति भी कहते हैं । सभी दार्शनिक इसे स्वीकार करते हैं, रामानुज आदि नहीं मानते यह दूसरी बात है । रसेश्वर के अनुयायियों का कहना है कि जीवन्मुक्ति का वास्तविक आनन्द हम लोग ही जानते हैं, क्योंकि शरीर को बिना अमर किये अनन्त जीवन्मुक्ति हो नहीं सकती । आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार पारद का महत्त्व प्रतिपादित किया जाता है ।
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