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सर्वदर्शनसंग्रहेविशेष-रस-हृदय गोविन्द भगवत्पादाचार्य का लिखा हुआ ग्रन्थ है । ये आद्य शंकराचार्य के गुरु थे। इनका समय प्रायः ७८० ई० है । यह आयुर्वेद-रसायन- शास्त्र का सुविख्यात ग्रन्थ है । अभ्रक पारद मेलन से दिव्यशरीर धारण करके मृत्यु का नाश कर सकते हैं, सिद्ध-पारद से विद्ध होने पर लोहा सुवर्ण बन जाता है इसी से इसे दरिद्रता का नाशक कहा गया है । 'रससिद्ध' शब्द में श्लेष दिखलाते हुए भर्तृहरि ने नीतिशतक में ऐसे ही मुक्त पुरुषों का संकेत किया है
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः ।
नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम् ॥
(४. रस की सामर्थ्य से दिव्य-देह की प्राप्ति ) अत्यल्पमिदमुच्यते । देवदैत्यमुनिमानवादिषु बहवो रससामर्थ्यादिव्यं देहमाश्रित्य जीवन्मुक्तिमाश्रिताः श्रूयन्ते रसेश्वरसिद्धान्ते७. देवाः केचिन्महेशाद्या दैत्याः काव्यपुरस्सराः।
मुनयो बालखिल्याद्या नृपाः सोमेश्वरादयः॥ ८. गोविन्दभगवत्पादाचार्यो गोविन्दनायकः ।
चर्वटिः कपिलो व्यालिः कापालिः कन्दलायनः॥ ९. एतेऽन्ये बहवः सिद्धा जीवन्मुक्ताश्चरन्ति हि ।
तनुं रसमयीं प्राप्य तदात्मककथाचणाः ॥ इति । यह तो बहुत थोड़ा ही कहा है। रसेश्वर सिद्धान्त में कहा गया है कि देवों, दैत्यों, मुनियों और मनुष्यों में बहुत लोगों ने, रस की शक्ति से, दिव्य शरीर धारण करके जीवन्मुक्ति पाई है। [ वे हैं-] कुछ देवतागण, जैसे—महेश इत्यादि, काव्य ( शुक्राचार्य ) इत्यादि देत्य, बालखिल्य आदि मुनि, सोमेश्वर आदि राजा, गोविन्द-भगवत्पादाचार्य, गोविन्दनायक, चर्वटि, कपिल, व्यालि, कापालि, कन्दलायन-ये तथा दूसरे भी बहुत से सिद्ध लोग, जीवन्मुक्त होकर [ पारद-] रस से बना शरीर पाकर, उस ( रस की प्रशंसा ) से परिपूर्ण आख्यानों से प्रसिद्ध होकर, विचरण करते हैं।
विशेष-रसेश्वर सिद्धान्त सोमदेव का लिखा हुआ ग्रन्थ है जिनका समय निर्धारित नहीं हो सका है । महेशाद्याः से अभिप्राय है शेवदर्शन में उक्त विद्यश्वरों का अनन्त, सूक्ष्म, शिवोत्तम, एकनेत्र, एकरुद्र, त्रिमूर्तिक, श्रीकण्ठ, शिखण्डी आदि । कथाचणाः= कथाओं से प्रसिद्ध । 'तेन वित्तश्चुञ्चुप्चणपो' (पा० सू० ५।२।२६ ) से 'कथाभिः वित्तः प्रसिद्धः' इस अर्थ में चणप् प्रत्यय हुआ है। अर्थ होगा-सदा रस की कथा कहनेवाले, कथाओं से प्रसिद्ध।
(५. दो प्रकार के कर्म-योग ) अयमेवार्थः परमेश्वरेण परमेश्वरी प्रति प्रपश्चितः