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सर्वदर्शनसंग्रहे
जिन जीवों ( अणुओं) के कलुष परिपक्व नहीं हुए हैं वे बद्ध हैं । उन्हें परमेश्वर कर्म के कारण भोग भोगने देता है । यह भी कहा है- 'अवशिष्ट बचे हुए दूसरे पुरुषों को, जो अपने कर्मों में बँधे हैं, परमेश्वर उनके कर्मों के अनुसार भोग भोगने का विधान करता है; इस प्रकार पशुओं या जीवों का निरूपण समाप्त हुआ 1
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( ६. 'पाश' पदार्थ का निरूपण )
अथ पाशपदार्थः कथ्यते । पाशश्चतुविधः - मलकर्ममायारोधशक्तिभेदात् । ननु -
२८. शवागमेषु मुख्यं पतिपशुपाशा इति क्रमात् त्रितयम् ।
तत्र पतिः शिव उक्तः पशवो ह्यणवोऽर्थपञ्चकं पाशाः ॥ इति पाशः पञ्चविधः कथ्यते । तत्कथं चतुविध इति गण्यते ? अब पाश पदार्थ के विषय में कहा जाता है । पाश चार प्रकार के हैं-मल, कर्म, माया और रोधशक्ति । कुछ लोग आशंका करते हैं कि निम्नलिखित श्लोक में पाँच प्रकार के पाश बतलाये गये हैं, फिर आप लोग चार ही प्रकार कैसे गिनाते हैं ? - 'शैवागमों में मुख्य रूप से पति, पशु और पाश ये क्रमशः तीन पदार्थ हैं । उनमें पति शिव को कहते हैं, अणु अर्थात् जीव पशु हैं और पाँच पदार्थ पाश में हैं ।' [ इस आशंका का उत्तर अब
दिया जायगा । ]
उच्यते--बिन्दोर्मायात्मनः शिवतत्त्वपदवेदनीयस्य शिवपदप्राप्तिलक्षणपरममुक्त्यपेक्षया पाशत्वेऽपि तद्योगस्य विद्येश्वरादिपदप्राप्तिहेतुत्वेन अपरमुक्तित्वात्पाशत्वेनानुपादानम् इत्यविरोधः । अत एवोक्तं तत्त्वप्रकाशे --' पाशाश्चतुविधाः स्युः' इति । श्रीमन्मृगेन्द्रेऽपि - २९. प्रावृतीशो बलं कर्म मायाकार्यं चतुर्विधम् ।
पाशजालं समासेन धर्मा नाम्नैव कीर्तिताः ॥ इति ।
आशंका का उत्तर दिया जाता है-माया के रूप में जो बिन्दु है, जिसे 'शिवतत्त्व' भी कहते हैं [ यही पंचम पाश है ]। जिस मुक्ति में शिवपद की प्राप्ति हो जाय वही परम- मुक्ति है । इसकी अपेक्षा करने से तो बिन्दु पाश ही है किन्तु इससे सम्बन्ध होने पर केवल विद्येश्वर आदि के पदों की प्राप्ति होती है । इसलिए इससे केवल अपर-मुक्ति ही होती है - यही कारण है कि इसे पाश के रूप में नहीं लिया जाता है, इस प्रकार दोनों मतों में कोई विरोध नहीं । [ तात्पर्य यह है कि पांचवां पाश मायात्मक बिन्दु को मानते हैं, जिसका दूसरा नाम शिवतत्त्व भी है। इस पास से बद्ध जीव को परामुक्ति, जिसमें शिवपद की प्राप्ति होती है, नहीं मिलती । हाँ, अपरा या गौण मुक्ति मिलती है, क्योंकि यह पाश केवल विद्येश्वर आदि पद ही दे सकता है । मलादि की तरह इसकी गति सर्वत्र नहीं है इसलिए इसे पाश नहीं माना जाता । ]