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सर्वदर्शनसंग्रहे
उपादान के कार्योत्पत्ति मानते ही नहीं। यदि योगियों की क्रियाओं में कार्य-कारण सम्बन्ध नहीं मिला, तो कार्योत्पत्ति को ये असंगत ( Baseless ) सिद्ध कर देंगे। योगी जो अपनी इच्छा से कार्य उत्पन्न किया करते हैं उनमें भी परमाणुओं का संघटन होता ही होगा। किसी निर्धन व्यक्ति को योगी आशीर्वाद देकर धनाढ्य बना दें तथा वह व्यक्ति घर आकर देखे कि उसके यहाँ मिट्टी के स्थान पर सोने की दीवाल है तो इस इच्छात्मक आशीर्वाद में भी स्वर्ण के परमाणुओं की क्रिया हुई होगी-किसी भी अवस्था में कार्य के लिए कारणसामग्री अपेक्षित ही है, वह चाहे सामान्य कार्य हो या योगी की इच्छा से उत्पन्न कार्य हो ।
अब योगियों की इच्छा से उत्पन्न कार्य के भी दो भेद सम्भव हैं-एक तो वह जब योगियों की इच्छा ( आशीर्वाद ) के बाद ही कार्य हो जाय और दूसरा वह जब इच्छा के बहुत देर के बाद कार्य उत्पन्न हो। पहली स्थिति में तो कार्य-कारण का सम्बन्ध स्थिर करना बड़ा ही कठिन है, क्योंकि बेचारे परमाणुओं को संघटित होने का समय कहाँ मिलता है कि उपादान बनकर कार्य उत्पन्न करें। हाँ, दूसरी स्थिति में कल्पना कर सकते हैं कि योगियों की इच्छा के बाद परमाणुओं को संघटित होने का पर्याप्त अवसर मिलता है जिससे वे कार्य उत्पन्न करते हैं । योगी लोग दोनों तरह के कार्य उत्पन्न करते देखे जाते हैं । किसी को देखते ही रोगमुक्त कर देते हैं तथा यथासमय पुत्र होने का भी आशीर्वाद देते हैं । शीघ्र कार्य करनेवाले योगियों की इच्छा से कार्य उत्पन्न होने पर कार्य-कारण-भाव की रक्षा तो किसी मूल्य पर नहीं हो सकती। देर से होनेवाले कार्य में भी अलक्षित परमाणु-व्यापार की कल्पना व्यर्थ ही है। किसी भी स्थिति में योगियों के कार्य में कार्य-कारण-भाव का बड़ा भारी अपमान होता है जो न्यायशास्त्र की दृष्टि से बहुत बड़ा अपराध है। यही उन मतवादियों का कथन है।
अब प्रत्यभिज्ञा-दर्शनवाले अपने पक्ष की रक्षा करते हुए, भगवान् की दुहाई देते हुए तथा उनके समक्ष कार्य-कारण-भाव की असंगति को गौण बतलाते हुए उत्तर देंगे।
चेतन एव तु तथा भाति, भगवान् भूरिभगो महादेवो नियत्यनुवर्तनोल्लङ्घनतरस्वातन्त्र्य इति पक्षे न काचिदनुपपत्तिः । अत एवोक्तं वसुगुप्ताचार्य:
१८. निरुपादानसंभारमभित्तावेव तन्वते । ___ जगच्चित्रं नमस्तस्मै कलानाथाय शूलिने ॥ इति ।
उपर्युक्त असंगति सामान्य चेतन पदार्थों के साथ ही हो सकती है [ अर्थात् योगियों के कार्य में आप भले ही असंगति दिखा दें ] किन्तु विपुल ऐश्वर्यवाले भगवान महादेव तो नियति ( Nature ) का अनुवर्तन या उल्लंघन करने में बिल्कुल स्वतन्त्र हैं, उनके पक्ष में कार्यकारणभाव के विषय में कोई भी असंगति ( Difficulty, Impropriety ) नहीं