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प्रत्यभिज्ञा-वर्शनम्
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इच्छा करके घट और अंकुर उत्पन्न कर देते हैं जो [ इन्द्रजाल या आभासमात्र नहीं, प्रत्युत ] लौकिक घट और अंकुर की तरह स्थिर तथा अपनी-अपनी आवश्यक क्रियाओं (जैसे जल लाना, पेड़ बनाना ) के सम्पादन में भी समर्थ हैं-[ ऐसा बहुधा सुना जाता है ] ॥ १७ ॥
अब यहाँ प्रश्न होता है कि वास्तव में (पारमार्थिक दृष्टि से ) घटादि के कारण मृत्तिकादि ही होते हैं । यह कैसी बात है कि योगियों की इच्छा करने से ही घटादि पदार्थों का जन्म हो जाता है ? यहाँ उत्तर यह होगा-जो घट और अंकुर मिट्टी और बीज से उत्पन्न होते हैं वे कुछ दूसरे ही हैं । [ योगियों की इच्छा से उत्पन्न होने पर भी दूसरे घड़ों और अंकुरों का सम्बन्ध मिट्टी-बीज से टूटता नहीं । उनका वास्तविक सम्बन्ध रहेगा ही।] इसमें भी आप को जानना चाहिए कि सामग्री के भेद से कार्य में भेद पड़ता ही है। यह तो समूचे संसार में प्रसिद्ध है। [ जिन घटों का निर्माण मिट्टी से होता है उनमें भी तो सामग्री के भेद के कारण भेद दिखलाई पड़ता है । कम मिट्टी लगाने पर छोटा या पतला घड़ा बनता है, दूसरी मिट्टी का दूसरा ही घड़ा होता है इत्यादि । सामान्य रूप से घट मिट्टी से ही बनता है । विशेष स्थितियों में योगी लोग भी बनाते हैं और ऐसे घटों में पर्याप्त भेद रहता है। ]
(८. उपादान कारण और पदार्थों की उत्पत्ति ) ये तु वर्णयन्ति नोपादानं विना घटाद्युत्पत्तिरिति, योगी त्विच्छया परमाणूव्यापारयन् संघटयतीति तेऽपि बोधनीयाः। यदि परिदृष्टकार्यकारणभावविपर्ययो न लभ्येत तहि घटे मृदण्डचक्रादि देहे स्त्रीपुरुषसंयोगादि सर्वमपेक्ष्येत । तथा च योगीच्छासमनन्तरसंजातघटदेहादिसंभवो दुःसमर्थ एव स्यात् ।
जो लोग कहते हैं कि उपादान ( Material ) कारण के बिना घट आदि की उत्पत्ति नहीं हो सकती और उधर योगी अपनी इच्छा से परमाणुओं का संचालन करके उनका नवीन संघटन ( Organisation ) करता है, ऐसे लोगों को भी यह जानना चाहिए कि यदि कार्य-कारण-सम्बन्ध ( Causal relation ) का सुस्पष्ट उल्लंघन (विपर्यय Violation ) नहीं हो रहा हो ( अर्थात् योगियों की इच्छा के बाद ही कार्य संपादित नहीं होकर विलम्ब से हो) तब तो कार्य के उत्पादन के लिए सभी कारणों के व्यापारों की अपेक्षा रहेगी ही; घट के लिए मिट्टी, डण्डा, चाक आदि की आवश्यकता होगी, शरीर-निर्माण के लिए स्त्री-पुरुष के संयोग आदि को आवश्यकता होगी। ऐसा करने पर योगी की इच्छा के तुरन्त बाद में उत्पन्न होनेवाले घट, देहादि की सम्भावना करना बिल्कुल असंगत ही हो जायगा ।
विशेष-इस संदर्भ में उन मतवादियों का उल्लेख किया गया है जो योगियों के कार्य में भी सामान्य-नियम के समान कार्य कारण-सम्बन्ध ढंढ़ने का प्रयत्न करते हैं। वे बिना