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शैव-दर्शनम्
पाशः पशुः पतिरिति वित्तयेन सर्व
व्याप्तं स एव भगवाञ्छिव ईश्वरोऽत्र । कर्माद्यपेक्षत इतीह विशेषणेन
युक्तं . तमेव पतिमीश्वररूपमोडे ॥--ऋषिः ।
(१. शैवागमसिद्धान्त के तीन पदार्थ ) तमिमं 'परमेश्वरः कर्मादिनिरपेक्षः कारणमिति' पक्षं वैषम्य-नण्यदोषदूषितत्वात् प्रतिक्षिपन्तः केचन माहेश्वराः शैवागमसिद्धान्ततत्त्वं यथावदीक्षमाणाः, 'कर्मादिसापेक्षः परमेश्वरः कारणमिति' पक्षं कक्षीकुर्वाणाः, पक्षान्तरमुपक्षिपन्ति-पतिपशुपाशभेदात् त्रयः पदार्था इति। तदुक्तम् तन्त्रतत्त्वज्ञैः
१. त्रिपदार्थ चतुष्पादं महातन्त्र जगद्गुरुः।
सूत्रेणकेन संक्षिप्य प्राह विस्तरतः पुनः ॥ इति । कुछ माहेश्वर ( महेश्वर-सम्प्रदाय के दार्शनिक ) इस उपर्युक्त (पाशुपत ) पक्ष को स्वीकार नहीं करते कि 'कर्मादि से पृथक् रहकर परमेश्वर संसार का कारण है' । यह पक्ष इसलिए तिरस्करणीय है कि इसे स्वीकार करने में दो दोष आते हैं-वैषम्य ( अर्थात् जीवों के सुख-दुःख के सम्बन्ध में ईश्वर की दृष्टि असमान या पक्षपाती रहेगी, कुछ जीव अपने-आप दुःख ही दुःख झेलेंगे दूसरे सुखोपभोग करेंगे-ईश्वर कारण होने पर भी देखता रहेगा, लोग उस पर पक्षपात का आरोप करेंगे ही ) तथा निर्दयता ( ईश्वर निर्दयतापूर्वक संसार का संहार करेंगे क्योंकि प्राणियों के कर्म से तो ईश्वर को कुछ लेना-देना नहीं है ) । [ यदि ईश्वर कर्मादिसापेक्ष रहें तो कोई दोष ही न रहे-सुख-दुःख का उपभोग अपने आप नहीं होगा, प्राणियों के कर्मों का भी फलदान के समय विचार होगा, कर्म भी असाधारण कारण रहेंगे; अतः न तो पक्षपात की भावना रहेगी क्योंकि कर्मानुसार फल मिलेगा, और न निर्दयता का आरोप ईश्वर पर लगेगा क्योंकि न्याय होने पर निर्दय और सदय कैसा ? ] ये ( माहेश्वर ) शैवागम ( सभी शैव सम्प्रदायों का मूलग्रन्थ ) के सिद्धान्तों के रहस्य को यथार्थ रूप से देखते हैं वे यह पक्ष मानते हैं कि कर्मादि से सम्बद्ध ( सापेक्ष ) परमेश्वर संसार का कारण है, इस प्रकार दूसरे पक्षों ( मतों) का प्रस्ताव करते हैं--पति ( ईश्वर ), पशु ( जीव ), पाश ( बन्धन ) के भेद से पदार्थ तीन हैं।