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सर्वदर्शनसंग्रहे
गया । पाँच पदार्थों में दुःखान्त भी एक है। जिसकी ध्वनि प्रथम सूत्र में मिलती है । यही नहीं, अन्य पदार्थ भी इस सूत्र से ध्वनित हो जाते हैं । ] ___'पशु' शब्द के द्वारा कार्य का प्रतिपादन होता है, क्योंकि वह ( पशु या कार्य ) परतन्त्र होता है [ पशु पति के वश में रहता है और कार्य कारण के अधीन है। इस समानता से दोनों की एकरूपता सिद्ध हो जाती है। 1 'पति' शब्द से कारण का बोध होता है, क्योंकि 'ईश्वर शासन करनेवाला पति है' इस वाक्य में संसार के कारणस्वरूप ईश्वर का वर्णन है । [ पति शब्द से ईश्वर का बोध होता है और ईश्वर संसार का कारण है। अत: पति के द्वारा कारण की ध्वनि निकलती है।] योग और विधि तो अपने आप में स्पष्ट हैं ( शब्दों से ही व्यक्त हैं)।
विशेष-पाशुपत-दर्शन में कहे गये पाँचों पदार्थों का प्रतिपादन प्रथम सूत्र के द्वारा ही हो गया है । सूत्र का अर्थ है कि शिष्य के द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर में गुरु दुःखान्त की सिद्धि के लिए महेश्वर के द्वारा प्रतिपादित महेश्वर की प्राप्ति के लिए जो योग ( Union ) है उसकी विधि बतलाते हैं । इस प्रकार पाशुपत-शास्त्र के आरम्भ की यह प्रतिज्ञा है । पशु के द्वारा कार्य, पति के द्वारा कारण, अतः के द्वारा दुःखान्त-इस प्रकार इन तीन पदार्थों की ध्वनि है; योग और विधि तो शब्दों से ही स्पष्ट हैं ।
सभी परतन्त्र पदार्थों ( पशु, मनुष्य, द्रव्य ) को पशु कहते हैं । जिस प्रकार पशु अपने स्वामियों के अधीन होते हैं उसी प्रकार ये पारिभाषिक 'पशु' भी अपने पति ( ईश्वर ) के अधीन हैं। चिदात्मक या अचिदात्मक, सभी पदार्थ पशु ( कार्य ) हैं जिनका कारण स्वतन्त्र परमेश्वर है । परतन्त्र सदा स्वतन्त्र के अधीन रहता है। जप, ध्यान आदि को योग कहते हैं और भस्मलेपन, स्नान आदि के व्रतविधि हैं । दुःख से निवृत्त होने पर ऐश्वर्य की प्राप्ति करना दुःखान्त है । ये ही पाँच तत्त्व हैं क्योंकि परम पुरुषार्थ के साधन हैं तत्व वही है जिसका ज्ञान परम-पुरुषार्थ का साधन हो । प्रस्तुत दर्शन में इन पांचों का ज्ञान उसकी प्राप्ति के लिए अनिवार्य है। पञ्चम तत्त्व (दुःखान्त ) तो परम-पुरुषार्थ के रूप में ही है अत: उसका ज्ञान तो आवश्यक है ही; दुःख के बीज रूप में अस्वतन्त्र ( कार्य, पशु ) को जानना भी नितान्त आवश्यक है, क्योंकि इसी की निवृत्ति करनी हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए स्वतन्त्र ईश्वर ( कारण, पति ) को जानना अनिवार्य है, यह कौन अस्वीकार करेगा ? ऐश्वर्य को प्राप्ति के लिए भस्म-स्नानादि विधि के साथ जप-ध्यानादि योग भी ज्ञेय हैं । इस प्रकार पाँचों का ज्ञान परमावश्यक है।
(३. दुःखान्त का निरूपण ) तत्र दुःखान्तो द्विविधः-अनात्मकः सात्मकति । तत्रानात्मकः सर्वदुःखानामत्यन्तोच्छेदरूपः। सात्मकस्तु दृक्क्रियाशक्तिलक्षणमैश्वर्यम् । तत्र दृकशक्तिरेकाऽपि विषयभेदात्पञ्चविधोपचर्यते-दर्शनं श्रवणं मननं विज्ञानं सर्वज्ञत्वं चेति ।