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नकुलोश-पाशुपत-दर्शनम् पञ्चमल-लघुकरणार्थमागमाविरोधिनोऽन्नार्जनोपाया वृत्तयो भक्ष्योत्सृष्टयथालब्धाभिधा इति । शेषमशेषमाकर एवावगन्तव्यम् ।
(७) पाँच दीक्षाकारियों ( दीक्षा के तत्वों Aspects or initiation ) का कथन हुआ है--द्रव्य ( दीक्षा के समय उपयोगी वस्तुएँ), काल ( शुभ मुहूर्त, दोक्षा के योग्य समय ), क्रिया ( गुरुसेवनादि, दीक्षा को विधियाँ ), मूर्ति ( देवप्रतिमा) और गुरु, यह पांचवां है।
(८) पाँच बल हैं--गुरुभक्ति, बुद्धि की निर्मलता, सुख-दुःखादि द्वन्द्वो पर विजय, धर्म और अप्रमाद ( सावधान रहना ), इस तरह बल पाँच प्रकार का माना गया है ।
(९) पाँच मलों को क्षीण ( कम ) करने के लिए, आगमों ( शात्रों ) के विरुद्ध नहीं जानेवाले ( शास्त्रानुकूल कर्म करनेवाले ) पुरुषों के अन्नार्जन ( जीविकानिर्वाह ) के उपायों को वृत्ति कहते हैं । [ पाँच मलों का विनाश वासचर्या आदि उपायों से होता है। किन्तु किसी भी वस्तु का तुरत विनाश कर देना सम्भव नहीं है, अतः पहले इन्हें कम करते हैं । इसी में वृत्तियाँ काम देती हैं जो तीन हैं-] भिक्षा में मिले हुए अन्न पर निर्वाह करना, लोग जिसे छोड़ दें उसे ग्रहण करना ( उत्सृष्ट ) तथा जो मिल जाय उसे ही लेना । ( यहाँ ध्येय है कि इन सभी पदार्थों का ग्रहण करते समय शास्त्र के विरोध पर भी ध्यान दिया जाता है, नहीं तो कीटादि दूषित अन्न या नीचादि व्यक्तियों से मिला अन्न भी ग्राह्य ही होगा । शास्त्र इस प्रकार के अन्न का विरोध करते हैं, अतः इन्हें लेना वृत्ति नहीं है । अवशिष्ट सारी बातें आकर-ग्रन्थों से ही जाननी चाहिए।
विशेष-प्रथम सत्र में स्थित 'अर्थ' शब्द की व्याख्या में ही गुरु के द्वारा ज्ञातव्य इन नव गणों का उल्लेख कर दिया गया है। अब दूसरे शब्द 'अतः' की व्याख्या में दुःखान्त. का, 'पशु' के द्वारा कार्य का, 'पति के द्वारा कारण का तथा 'योग' और 'विधि' का स्वतन्त्र रूप से विचार होगा, इस प्रकार पांचों पदार्थों का वर्णन हो जायगा।
(२ क. सूत्र के अन्य शब्द-अतः, पति आदि ) अतःशब्देन दुःखान्तस्य प्रतिपादनम् । आध्यात्मिकादिदुःखत्रयव्यपोहप्रश्नार्थत्वात्तस्य । पशुशब्देन कार्यस्य । परतन्त्रवचनत्वात्तस्य। पतिशब्देन कारणस्य । 'ईश्वरः पतिरीशिता' इति जगत्कारणीभूतेश्वरवचनत्वात्तस्य । योगविधी तु प्रसिद्धौ। . 'अतः' ( इसलिए ) शब्द के द्वारा दुःखान्त का प्रतिपादन होता है, क्योंकि इस शब्द से आध्यात्मिक आदि तीन दुःखों के विनाश के लिए प्रश्न करना व्यक्त होता है । [ जव शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया कि दुःखान्त कैसे हो तब उसका उत्तर देने के लिए गुरु तैयार हुए और बोले---'इसलिए। अब यहाँ 'इसलिा' के द्वारा 'दुःखान्त के लिए' का वोध हो