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सर्वदर्शनसंग्रहे
है - 'जो निरन्तर मेरे साथ युक्त होने की इच्छा करते हैं तथा प्रीतिपूर्वक मेरा भजन करते हैं, उन्हें मैं बुद्धि-योग ( भक्ति ) देता हूँ जिससे वे मेरे पास चले आते हैं, ।' ( गी० १०।१० ) तथा, 'हे अर्जुन, वह परम पुरुष ( परमात्मा ) अनन्य ( एकनिष्ठ ) भक्ति से ही पाया जा सकता है ।' ( गी० ८२२ ) [ इस प्रकार यह निदिध्यासन भक्ति का रूप धारण कर लेता है । ]
( २१. भक्ति का निरूपण )
निरतिशयानन्दप्रियानन्यप्रयोजन-सकलेतरवैतृष्ण्यवज्ज्ञान
भक्तिस्तु
विशेष एव । तत्सिद्धिश्च विवेकादिभ्यो भवतीति वाक्यकारेणोक्तंतल्लब्धिविवेकविमोकाभ्या साक्रियाकल्याणानव सादानुद्धर्षेभ्यः निर्वचनाच्चेति ।
तत्र विवेको नामादुष्टादन्नात्सत्त्वशुद्धिः । अत्र निर्वचनम् - ' आहारशुद्वः सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धया ध्रुवास्मृतिः' इति । विमोकः कामानभिष्वङ्गः । शान्त उपासीतेति निर्वचनम् ।
सम्भवा
भक्ति एक प्रकार के ज्ञान को हो कहते हैं जिसमें निरतिशय ( Unsurpassable ) आनन्द के समान प्रिय परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई भी प्रयोजन ( लक्ष्य ) नहीं है तथा जिसमें अन्य सभी विषयों से वितृष्णा या वैराग्य रहता है । [ जिस ज्ञान का लक्ष्य परमात्मा है तथा जिसे पाकर सभी वस्तुओं से वैराग्य हो जाता है उसी ज्ञान को भक्ति कहते हैं | ] उसकी सिद्धि विवेक आदि से होती है जैसा कि वाक्यकार ने कहा है- 'उस ( भक्ति ) की प्राप्ति विवेक ( Discrimination ), विमोक ( Exemption ), अभ्यास ( Practice ), क्रिया ( Observance ), कल्याण ( Excellence ), अनवसाद ( Freedom from Despondency ) तथा अनुद्धर्ष ( Satisfaction ) के द्वारा, युक्त ( सम्भव ) तथा निर्वचन ( व्याख्या ) के अनुसार होती है ।' [ भक्ति की प्राप्ति के ये साधन हैं, इनमें दो बातें रहती हैं - सम्भव ( युक्ति ) अर्थात् प्रत्येक साधन का युक्तियुक्त लक्षण दिया जाता है तथा प्रत्येक की व्याख्या की जाती है जो प्रामाणिक वचनों के रूप में रहती है । इस प्रकार लक्षण और व्याख्या करके भक्ति-प्राप्ति के उपायों को समझाते हैं ।
उनमें विवेक का अर्थ है, अ-दूषित अन्न से सत्त्व ( प्रकृति ) की शुद्धि, [ यह सम्भव है ] अब इसका निर्वचन है- ' आहार की शुद्धि से प्रकृति शुद्ध होती है, प्रकृति की शुद्धि से ध्रुवा स्मृति प्राप्त होती है ।' विमोक कामनाओं में आसक्ति न रखने को कहते हैं । इसका निर्वचन है शान्त होकर ( विषयों से अस्पृष्ट होने पर ) उपासना करे ।'
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विशेष - अन्न ( भोजन ) तीन प्रकार लहसुन -प्याज आदि दूषित हैं । आश्रय-दोष से
दोष से दूषित होता है - जातिदोष से पतित - चाण्डाल आदि का अन्न दूषित होता