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रामानुज-वर्शनम्
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उसके गुण के अनुसार ही सुख और दुःख इन दोनों का उपभोग करने से भोक्ता बनना, भगवान् के स्वरूप का ज्ञान, भगवान् के चरणों की प्राप्ति आदि [ उस जीवात्मा. ] स्वभाव हैं ।
( २ ) अचित् वस्तुएँ भोग्य ( भोग करने के योग्य Enjoyable ) हैं, इनके स्वभाव ( Nature ) हैं - अचेतन होना, पुरुषार्थों ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) की प्राप्ति न करना ( अपुरुषार्थ ), विकार प्राप्त करना इत्यादि ।
( ३ ) परमेश्वर के स्वभाव हैं - भोक्ता ( जीव ) और भोग्य ( जड़ ) दोनों के आन्तरिक नियन्ता ( Internal controller ) के रूप में अवस्थित रहना, असीम ( अपरिच्छेद्य) ज्ञान, ऐश्वर्य ( Dominion ), वीर्य ( Majesty ), शक्ति ( Power ), तेज ( Brilliance ) इत्यादि अनन्त अतिशयों ( Glory ) से युक्त तथा असंख्य कल्याणकारी गुणों का समूह होना, अपने संकल्प ( इच्छा ) से ही प्रवृत्त होकर अपने से भिन्न सारी चित् और अचित् वस्तुओं को उत्पन्न करना, अपने अभीष्ट तथा अपने अनुरूप, एक रूप से तथा दिव्य रूप से [ युक्त होकर ] निरतिशय ( जिसे कोई पार न कर सके Unsurpassable ) विविध और अनन्त भूषणों ( विशेषणों ) को धारण करना इत्यादि ।
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विशेष - ईश्वर के अतिशयों में ज्ञान वह गुण है जो सदा सभी विषयों का प्रकाशन करते हुए अपना प्रकाशन भी करता है । ऐश्वर्य : स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करना, सभी जीवों और जड़ों पर नियन्त्रण का सामर्थ्य रखना । वीर्य = संसार का उपादान कारण होने पर भी विकृति न होना । शक्ति = संसार का मूल कारण होना, न घटी हुई घटना उत्पन्न करना । तेज = सहकारियों ( Subordinates ) की आवश्यकता न होना, दूसरों से अभिभूत ( Controlled ) नहीं होना । इस प्रकार सभी पदार्थों की विशेषताएं ( Characteristics ) बतलाई गई । अब वेंकटनाथ के तत्त्वमुक्ताकलाप के आधार पर पदार्थों का वर्णन होगा ।
वेङ्कटनाथेन त्वत्थं निरटङ्कि पदार्थविभागः
८. द्रव्याद्रव्यप्रभेदान्मितमुभयविधं तद्विदस्तत्त्वमाहुः द्रव्यं द्वेधा विभक्तं जडमजडमिति प्राच्यमव्यक्तकालौ । अन्त्यं प्रत्यक्पराक्च प्रथममुभयथा तत्र जीवेशभेदान्नित्या भूतिर्मतिश्चेत्यपरमिह जडामादिमां केचिदाहुः ॥
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( त० मु० १|६ )
९. तत्र द्रव्यं दशावत्प्रकृतिरिह गुणैः सत्त्वपूर्वरुपेता कालोऽब्दाद्याकृतिः स्यादणुरवगतिमाञ्जीव ईशोऽन्य आत्मा । सम्प्रोक्ता नित्यभूतिस्त्रिगुणसमधिका सत्त्वयुक्ता तथैव ज्ञातुर्ज्ञेयावभासो मतिरिति कथितं सङ्ग्रहाद् द्रव्यलक्ष्म ॥ ( त० मु० १1७ ) इत्यादिना ।