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सर्वदर्शनसंबहे
( १६. रामानुज-मत की तस्वमीमांसा ) किमत्र तत्त्वं भेदोऽभेद उभयात्मकं वा ? सर्व तत्त्वम् । तत्र सर्वशरीर. तया सर्वप्रकारं ब्रह्मवावस्थितमित्यभेदोऽभ्युपेयते। एकमेव ब्रह्म नानाभूतचिदचित्प्रकारात् नानात्वेनावस्थितमिति भेदाभेदो। चिवचिदीश्वराणां स्वरूपस्वभाववलक्षण्यादसङ्कराच्च भेदः।।
रामानुज के मत से तत्त्व किस प्रकार का है-भेदात्मक, अभेदात्मक या उभयात्मक ? सभी प्रकार का तत्त्व है । सबों का शरीर बनकर, सब प्रकार से केवल ब्रह्म ही अवस्थित है, इसलिए अभेदवाद की उपपत्ति होती है। ब्रह्म एक ही है, नाना प्रकार के चित् और अचित् पदार्थों के भेद के कारण नाना रूप से अवस्थित है-इसलिए भेदाभेदवाद की सिद्धि होती है। चित्, अचित् और ईश्वर में स्वरूप और स्वभाव को लेकर भेद ( विलक्षणता Peculiarity ) है, उन्हें मिलाकर नहीं रख सकते, इसलिए भेदवाद की भी सिद्धि होती है।
विशेष-चित् का स्वरूप है ज्ञानस्वरूप होना, इससे अचित् भिन्न है। चित् और ईश्वर में यद्यपि ज्ञानात्मकता समान है पर चित् का स्वरूप अणु है, ईश्वर का विभु-यही भेद होता है । अब तीनों पदार्थों के स्वभाव अपनी अलंकृत शैली में रामानुज उपस्थित करते हैं।
(१६. क. चित्, अचित् और ईश्वर के स्वभाव ) तत्र चिद्रूपाणां जीवात्मनामसंकुचितापरिच्छिन्न-निर्मलज्ञानरूपाणाम् अनादिकर्मरूपाविद्यावेष्टितानां तत्तत्कर्मानुरूपज्ञानसङ्कोचविकाशौ भोग्यभूताचित्संसर्गस्तदनुगुणसुख-दुःखोपभोगद्वयरूपा भोक्तृता भगवत्प्रतिपत्तिभगवत्पदप्राप्तिरित्यादयः स्वभावाः । ____ अचिद्वस्तूनां तु भोग्यभूतानामचेतनत्वमपुरुषार्थत्वं विकारास्पदत्वमित्यादयः ।
परस्येश्वरस्य भोक्त-भोग्ययोरन्तर्यामिरूपेणावस्थानमपरिच्छेद्यज्ञानेश्वर्यवीर्यशक्ति-तेजःप्रभृत्यनवधिकातिशयासंख्येय-कल्याण गुणगणता स्वसंकल्पप्रवृत्तस्वेतरसमस्तचिदचिद्वस्तुजातता स्वाभिमतस्वानुरूपैकरूपदिव्यरूपनिरतिशयविविधानन्तभूषणतत्यादयः।
(१) इनमें चित् के रूप में जीवात्मा हैं, वे संकोचरहित, सीमाहीन, निर्मल ज्ञान के स्वरूप हैं, अनादि कर्मरूपी अविद्या से घिरे हैं, इसलिए अपने-अपने कर्म के अनुसार ज्ञान का संकोच और विकास होना, भोगने योग्य अचित् वस्तुओं के संसर्ग में आना,
१. स्मरणीय है कि स्वरूप-ज्ञान का संकोच-विकास नहीं होता, जो ज्ञान जीवात्मा में गुण के रूप में है उसी में संकोच-विकास होते हैं। अतः यहाँ इसी ज्ञान से अभिप्राय है। रामानुज कर्म को ही अविद्या मानते हैं जिससे ज्ञान का संकोच और विकास होता है।