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सर्वदर्शनसंग्रहेके [ गुण ] रूपत्व ( वर्ण ) आदि सामान्य स्वभाव हैं । धर्म, अधर्म, आकाश और काल के [ गुण ] यथासम्भव गति ( धर्म-गुण ), स्थिति ( अधर्म-गुण), अवगाह ( आकाश-गुण ) और वर्तनाहेतुत्व ( = किसी विशेष अवस्था में रहना, काल-गुण) आदि के सामान्य
उस द्रव्य का उपर्युक्त रूप से ( = भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में जाकर ) होना पर्याय ( Action ) कहलाता है। [ द्रव्य के ] पर्याय ये हैं-उत्पाद ( उत्पत्ति Production ), तद्भाव ( सत्ता Existence: ), परिणाम ( Development ) और पर्याय ( Action )। जैसे जीव के [ पर्याय ] घट आदि का ज्ञान, सुख, क्लेश आदि हैं; पुद्गल के [ पर्याय ] मिट्टी का पिण्ड, घट आदि हैं, धर्मादि के [ पर्याय ] गति आदि के विशेष ( सामान्य नहीं, क्योंकि वह गुण में रहता है ) हैं। इसीलिए प्रसिद्धि है कि द्रव्य छह हैं ( पाँच अस्तिकाय+काल )।
विशेष-द्रव्य का यही लक्षण नैयायिकों ने भी स्वीकार किया है । अन्तर यही है कि जैन 'पर्याय' का प्रयोग करते हैं, नैयायिक 'कर्म' का । हेमचन्द्र ने पर्याय को कर्म भी कहा है । एक स्थान पर ( अभिधानरत्नमाला, १५०३ में ) उसे यों कहा है-पर्यायोऽनुक्रमः क्रमः । अब द्रव्यलक्षण की व्याख्या करें जिस धर्म के चलते एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से भिन्न किया जाता है ( Distinguished ) द्रव्य में निवास करनेवाला वह धर्म गुण है, जैसे ज्ञानत्व । इसी से जीव-द्रव्य का भेद पुद्गलादि द्रव्यों से किया जाता है। पुद्गल-द्रव्य को रूपत्व के चलते दूसरे द्रव्यों से पृथक् करते हैं। तो, यहाँ ज्ञान, रूप आदि गुण हैं । द्रव्य की विशेष अवस्था का नाम पर्याय है, जो क्रमशः उत्पन्न होती है। जैसे जीव में घटज्ञान, पटज्ञान, क्रोध, मान इत्यादि और पुद्गल में श्वेत, कृष्ण आदि । ये देखने में गुण-जैसा लगते हैं । भ्रम में न पड़ें। पर्याय द्रव्य क अवस्था-विशेष का नाम है, अतः गुण भी उसमें रहते हैं।
वृहद् द्रव्यसंग्रह नामक ग्रन्थ में दोनों की परिभाषा ऐसी दी गई हैं-( १ ) सहभावी धर्मो गुणः। (२) क्रमभावी पर्यायः । द्रव्य के साथ होनेवाले धर्म को गृण कहते हैं जैसे जीव का गुण-उपयोग, पुद्गल का गुण-ग्रहण करना, धर्मास्तिकाय का गुण-गति उत्पन्न करना, अधर्मास्तिकाय का-स्थिति उत्पन्न करना, काल का गुण-सत्ता उत्पन्न करना आदि । द्रव्य के साथ-साथ गुण उत्पन्न होते हैं। क्रम ( Succession ) नहीं होता। दूसरी ओर क्रम से उत्पन्न होनेवाले, द्रव्य के बाद आनेवाले पर्याय हैं। जीव के पर्याय नरक आदि; पुद्गल के रूप, रस, स्पर्शादि, धर्म, अधर्म और आकाश का पर्याय अभिव्यक्ति है।
काल का गुण है-वर्तनाहेतुत्व । वर्तन का अर्थ है--द्रव्य का भिन्न-भिन्न रूपों तथा अवस्थाओं में रहना । चावल भान के रूप में, दूध दही के रूप में, बीज अंकुर, काण्ड,