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राम्गनुज-चर्शनम् कालवाले शब्दों से उस पुरुष ( देवदत ) की प्रतीति संभव नहीं है, इसलिए दोनों पदों को हम व्यक्ति ( देवदत्त ) का बोधक मानकर व्यक्ति की एकता समझ सकते हैं। [ तात्पर्य यह है कि देवदत्त के उद्देश्य के रूप में दो शब्द 'यह' और 'वही' आते हैं किन्तु दोनों शब्दों में स्थान और काल को लेकर काफी अन्तर है। जब दोनों एक ही व्यक्ति के उद्देश्य हैं तो अवश्य ही दोनों में एकता होनी चाहिए, एकता तभी स्थापित हो सकती है जब दोनों शब्द मतभेदवाले अंश को निकाल दें। ऐसी दशा में उनका अपना अर्थ कम हो जायगा तथा लक्षणा से दूसरे अल्प अर्थ की कल्पना करनी पड़ेगी। इसी को 'विरुद्ध भाग का त्याग करानेवाली लक्षणा' कहते हैं । इस प्रकार 'सः' और 'अयम्' के बीच एकता समानाधिकरण के नियम ( Law of identity ) से हो जायगी । ] इसी प्रकार, यहाँ भी जीवात्मा और परमात्मा दोनों के बीच, 'तत्वमसि' महावाक्य में एकता हो सकती है यहि उन दोनों के विरुख अंश, जैसे थोड़ा जानना ( जीव का गुण), सब कुछ जानना (परीक्षा का गुण ) बादि, का त्याग हो जाय और दोनों के अखंड-स्वरूप का बोध हो जाला सामावादी लोगों का पूर्वपक्ष हुआ।]
( ११. रामानुन का उत्तर-पक्ष ) विषमोऽयमुपन्यासः। दृष्टान्तेऽपि विरोधवैधुर्येण लक्षणागन्धासम्भवात् । एकस्य तापद भूतवर्तमानकालद्वयसम्बन्धो न विरुद्धः। देशान्तरस्थितिभूता संनिहितदेशस्थितिवर्तत इति देशभेदसम्बन्धविरोधश्च कालभेदेन परिहरणीयः । लक्षणापक्षेऽप्येकस्यव पदस्य लक्षकत्वाश्रयणेन विरोधपरिहारे पदद्वयस्य लाक्षणिकत्वस्वीकारो न संगच्छते ।
मायावादियों की स्थापना बिल्कुल व्यर्थ है। यह वही देवदत्त है' इस दृष्टान्त में भी विरोध नहीं है, अतः लक्षणा की ग-ध भी इस वाक्य में नहीं है। एक व्यक्ति का सम्बन्ध यदि भूत और वर्तमान दोनों कालों से [ भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में, एक साथ नहीं ] है तो कोई भी विरोध की बात नहीं [जिससे लक्षणा स्वीकार करने की आवश्यकता हो, यह तो स्वाभाविक ही है। ] दूसरे स्थान में उसकी स्थिति भूतकाल में थी अब उसकी स्थिति निकट स्थान में है इसलिए स्थान के भेदों का सम्बन्ध, जिससे विरोध होने की सम्भावना है, उसे काल का भेद मानकर समझा सकते हैं। [ कहने का अभिप्राय यह है कि 'सः' और 'अयम्' शब्दों में विरोध है ही नहीं कि लक्षणा मानें । यह माना कि 'सः' का मतलब दूसरे काल और दूसरे स्थान में अवस्थित पुरुष है, यह भी माना कि 'अयम्' का अर्थ निकट स्थान में अवस्थित पुरुष है। किन्तु क्या दो स्थानों में एक ही व्यक्ति नहीं रह सकता ? हाँ, यदि एक ही समय में कहें तो सम्भव नहीं है । सो बात तो यहाँ है नहीं । वह पुरुष दो विभिन्न कालों में दो स्थानों पर था। भूतकाल में दूर पर था लेकिन वर्तमान-काल में निकट आ गया । अतः कोई विरोध यहां नहीं है । फिर लक्षणा क्यों स्वीकार करें ? ]