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रामानुज-वर्शनम्
१८३ कोई प्रमाण नहीं है, यह कह चुके हैं। ब्रह्म और आत्मा में प्रत्यक्ष भेद है जिसका तिरस्कार नहीं किया जा सकता, अतः ब्रह्म और आत्मा की एकता प्रमाणों के द्वारा सिद्ध नहीं होती । यही नहीं, जब सभी प्रमाणों को सविशेषवस्तु के रूप में विषय की आवश्यकता पड़ती है, तब तो विशेष का अर्थ है एक और पदार्थ । विशेषण और विशेष्य में एकता कैसी ? अतः जीव ब्रह्म का विशेषण है, दोनों में एकता किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं होती। जब एकता नहीं है तो किसी भी मूल्य पर प्रपञ्च का नाश नहीं होगा । स्मरणीय है कि शंकर अविद्या की निवृत्ति से जीव-ब्रह्म की एकता मानते हैं और उसके बाद प्रपञ्च की भ्रान्ति मिट जाती है जिससे पुरुष मुक्त होता है । रामानुज न तो भ्रान्तिमूलक प्रपञ्च मानते हैं, न प्रपञ्च का नाश, न ब्रह्म-जीव की एकता और न ही जीवन्मुक्ति ।] ___ अब, यदि सत्य के रूप में प्रपञ्च को प्रतिष्ठित ( सिद्ध ) करें तो भी ‘एक के ज्ञान से सबों का ज्ञान हो जायगा' इस प्रतिज्ञा में बाधा नहीं पड़ती। [ शंकराचार्य परमात्मा के अतिरिक्त किसी को सत्य नहीं मानते । प्रपञ्चमात्र को आत्मा पर आरोपित करते हैं, इसलिए प्रपञ्च के आधार के रूप में जो आत्मा है उसे जान लेने पर सारे प्रपञ्च का ज्ञान हो जाता है । छान्दोग्य उपनिषद् ( ६११४ ) में कहा गया है-यथा सौम्यकेन मृत्पिण्डेन सर्व मृण्मयं विज्ञातं स्यात् इसी की ओर संकेत है । रस्सी जान लेने पर ‘साँप में क्या तत्त्व है', यह ज्ञात हो जाता है। सभी वस्तुओं के ज्ञान का अर्थ है-सबों में विद्यमान तत्वांश का ज्ञान हो जाना । दूसरे अंशों में साम्य है कि नहीं, यह दिखलाना जरूरी नहीं है। इसीलिए सम्पूर्ण जगत् के विवर्त का उपादान कारण ( Material cause ) परमात्मा सिद्ध होता है । रामानुज केवल परमात्मा को ही सत्य नहीं मानते, संसारमात्र उनके लिए सत्य है । ऐसी अवस्था में केवल एक ज्ञान से सबों का ज्ञान होगा, यह कहना बड़ा कठिन है। घट के ज्ञान से पट का ज्ञान नहीं हो जाता । तब तो रामानुज के अनुसार उपर्युक्त श्रुतिवाक्य की निरर्थकता ही सिद्ध हो जायगी। यही इस शंका का आशय है । रामानुज इसका प्रतिवाद करते हुए कारण अगले वाक्यों में देते हैं । ]
प्रकृति-पुरुष-महदहङ्कार-तन्मात्र-भूतेन्द्रिय-चतुर्दशभुवनात्मकब्रह्माण्डतदन्तर्वति-देव-तिर्यङ्-मनुष्य-स्थावरादि-सर्वप्रकार-संस्थान-संस्थितं कार्यमपि सर्व ब्रह्मवेति कारणभूतब्रह्मात्मज्ञानादेवसर्वविज्ञानं भवतीत्येक विज्ञानेन सर्वविज्ञानस्योपपन्नतरत्वात् । अपि च ब्रह्मव्यतिरिक्तस्य सर्वस्य मिथ्यात्वे सर्वस्यासत्त्वादेव एकविज्ञानेन सर्वविज्ञानप्रतिज्ञा बाध्येत । __ यह ब्रह्माण्ड ( Universe ) चौदह भुवनों (Worlds ) से बना है जो प्रकृति ( Primary cause ), पुरुष ( Self ), महत् ( Intellect ), अहङ्कार ( Self-position ), तन्मात्रों ( Subtle elements ), भूतों ( Gross clements ) तथा इन्द्रियों