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रामानुज-पर्शनम्
१६५ न द्वितीयः। अभावस्य षष्ठप्रमाणगोचरत्वेन ज्ञानस्य नित्यानुमेयत्वेन च तदभावस्य प्रत्यक्षविषयत्वानुपपत्तेः। यदि पुनः प्रत्यक्षाभाववादी कश्चिदेवमाचक्षक्षीत, तं प्रत्याचक्षीत-अहमज्ञ इत्यस्मिन्ननुभवेऽहमित्यात्मनोऽभावर्मितया ज्ञानस्य प्रतियोगितया चावगतिरस्ति न वा ? अस्ति
चेत्, विरोधादेव न ज्ञानानुभवः । न चेत्, मिप्रतियोगिज्ञानसापेक्षो ज्ञानाभावानुभवः सुतरां न सम्भवति । तस्याज्ञानस्य भावरूपत्वे प्रागुक्तदूषणाभावात् अयमनुभवो भावरूपाज्ञानगोचर एवाभ्युपगन्तव्य इति ।
दूसरी जोर, भाट्ट-मीमांसक भी ऐसा नहीं कह सकते । अभाव का ज्ञान उनके अनुसार
प्रमाण मुलांघ) से होता है (प्रत्यक्ष प्रमाण से नहीं ), तथा ज्ञान भी सदा ही सपना रहता है अतः इसका अभाव ( = ज्ञानाभाव ) भी प्रत्यक्ष का विषय नहीं हो समासा यद्यपि अभाव को भाट्ट लोग एक पृथक् पदार्थ स्वीकार करते हैं फिर भी 'मैं नहीं जानता' इस प्रकार की प्रत्यक्ष ज्ञानाभाव का विषय नहीं । ज्ञान को प्रत्यक्ष मानने पर हाउसकामाव प्रत्यक्ष का विषय हो सकता है, पर भाट्ट लोग ज्ञान को प्रत्यक्ष न मालकरत्वानुमन मानते हैं । नैयायिकों का यह कथन है कि 'मैं जानता हूँ' यह वाक्य अनुव्यवसायात्मक आन्तर' प्रत्यक्ष से निष्पन्न होता है इसलिए ज्ञान प्रत्यक्ष का विषय है, परन्तु यह ठीक नहीं । इस प्रकार का शान दूसरे वनुव्यवसायात्मक ज्ञान की अपेक्षा रखता है, वह भी डीसरे को अपेक्षा करेगा इस तरह अनवस्था नाम का दोष उत्पन्न हो जायगा । इसलिए को भाट्टमतानुसार स्वप्रकाशक ( दीप की तरह ) मानना ही उपयुक्त है। एक दीप इसरे दीप से प्रकाशित नहीं होता, अपना प्रकाशन आप ही करता है । निष्कर्ष यह है कि जान इनके अनुसार अतीन्द्रिय है । प्रत्यक्ष के योग्य पदार्थों का अभाव भले ही प्रत्यक्ष हो, लेकिन प्रत्यक्ष से ग्रहण न करने योग्य पदार्थों ( जैसे, ज्ञान ) का अभाव भी प्रत्यक्ष का विषय नहीं। फलित यह हुआ कि 'मैं अज्ञ हूँ' यह प्रत्यक्ष ज्ञानाभाव का विषय नहीं, भावस्वरूप अज्ञान का ही विषय मानना पड़ेगा.। ज्ञानाभाव का प्रत्यक्ष नहीं है-प्रत्यक्ष जानाभाव नहीं है ( Simple conversion )1]. - अब यदि अभाव को प्रत्यक्ष ( अनुपलब्धि को प्रत्यक्ष प्रमाण में अन्तभूत ) माननेवाला व्यक्ति ऐसी बात कहे, तो उससे पूछना चाहिए-'मैं अज्ञ हूँ' इस प्रकार के प्रत्यक्ष अनुभव में, अभाव-धर्म के रूप में या ज्ञान के प्रतियोगी ( विरोधी- नहीं जानना ) के रूप में, आत्मा ( 'अहम्' शब्द से प्रतीत होनेवाली ) की अवगति ( ज्ञान Apprehension ) होती है या नहीं ? यदि ऐसी अवस्था में आत्मा का बोध होता है, तो विरोध के ही कारण ज्ञान के अभाव का अनुभव नहीं होगा। यदि नहीं होता तो ज्ञान के अभाव का अनुभव और नहीं होगा, क्योकि कोई भी अभाव तभी जाना:जा सकता है जब अभाव के धर्मो में