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सर्वदर्शनसंग्रहेविवेक-विलास में बौद्ध-मत का इस प्रकार वर्णन किया गया है-'बौद्धों के देवता सुगत ( बुद्ध ) हैं, संसार क्षण में नष्ट हो जाता है। आर्यसत्य नाम के चार तत्त्वों को क्रमशः [ जानना चाहिए ] | दुःख, दुःख का स्थान, तब समुदाय तथा मार्ग ( ये सुप्रसिद्ध आर्यसत्य नहीं हैं, क्योंकि वे हैं-दुःख, समुदाय, निरोध और मार्ग)-अब इनकी व्याख्या क्रमशः सुनें। ३२. दुखं संसारिणः स्कन्धास्ते च पञ्च प्रकीर्तिताः ।
विज्ञानं वेदना संज्ञा संस्कारो रूपमेव च ॥ ३३. पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषयाः पञ्च मानसम् ।
धर्मायतनमेतानि द्वादशायतानि तु ॥ ३४. रागादीनां गणो यस्मात्समुदेति नृणां हृदि ।
आत्मात्मीयस्वभावाख्यः स स्यात्समुदयः पुनः॥ दुःख का अर्थ है संसार में रहनेवाले प्राणी के स्कन्ध, जो पांच कहे गये हैं-विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार और रूप ।
द्वादश आयतन ये हैं--पाँच इन्द्रियाँ ( ज्ञान की ), शब्दादि पाँच विषय ( दूसरे मत में पाँच कर्म की इन्द्रियाँ ), मन तथा धर्म का आयतन ( निवास स्थान अर्थात् बुद्धि )।
जिससे रागादि का समूह मनुष्यों के हृदय में उत्पन्न होता है, आत्मा के अपने स्वभाव के नाम से जो विद्यमान है-वही समुदय है। ३५. क्षणिकाः सर्वसंस्कारा इति या वासना स्थिरा।
स मार्ग इति विज्ञेयः स च मोक्षोऽभिधीयते ॥ ३६. प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणद्वितयं तथा ।
चतुष्प्रस्थानिका बौद्धाः ख्याता वैभाषिकादयः ॥ 'सभी संस्कार क्षणिक हैं' यह जो स्थिर वासना ( विचार ) है, इसे ही मार्ग जानें । इसे मोक्ष भी कहते हैं।
प्रत्यक्ष और अनुमान-ये केवल दो प्रमाण हैं । वैभाषिक आदि बौद्धों के चार प्रस्थान ( Schools ) प्रसिद्ध हैं। ३७. अर्थो ज्ञानान्वितो वैभाषिकेण बहु मन्यते ।
सौत्रान्तिकेन प्रत्यक्षग्राह्योऽर्थो न बहिर्मतः ॥ ३८. आकारसहिता बुद्धिर्योगाचारस्य संमता।
__ केवलां संविदं स्वस्थां मन्यन्ते मध्यमाः पुनः ॥ १-अन्यत्राप्युक्तम्---मुख्यो माध्यमिको विवर्तमखिलं शून्यस्य मेने जगत्,
योगाचारमते तु सन्ति मतयस्तासां विवर्तोऽखिलः । अर्थोऽस्ति क्षणिकस्त्वसावनुमितो बुद्धयेति सौज्ञान्तिकः, प्रत्यक्षम् क्षणभंगुरम् च सकलम् वैभाषिको भाषते ॥