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आहेत-दर्शनम् है या गुरु के अधिगम ( शिक्षा ) से ।' दूसरों के उपदेश की अपेक्षा न रखनेवाले आत्मस्वरूप ( स्वभाव ) का नाम निसर्ग ( Nature ) है । व्याख्यान आदि के रूप में दूसरों के उपदेश से उत्पन्न ज्ञान अधिगम ( Instruction ) कहलाता है।
( १५. सम्यक ज्ञान और उसके पांच रूप ) येन स्वभावेन जीवादयः पदार्था व्यवस्थितास्तेन स्वभावेन मोहसंशयरहितत्वेनावगमः सम्यग्ज्ञानम् यथोक्तम्
१९. यथावस्थिततत्त्वानां संक्षेपाद्विस्तरेण वा ।
योऽवबोधस्तमत्राहुः सम्यग्ज्ञानं मनीषिणः ॥ इति ।।। 'जिस स्वभाव से ( रूप में ) जीव आदि पदार्थ व्यवस्थित हैं, उसी रूप में माह ( भ्रम False knowledge: ) तथा संयम से रहित होकर [ उन्हें ] जान्ना सम्यक ज्ञान है।' जैसा कि कहा है-'तत्वों का, उनकी अवस्था के अनुरूप, संक्षेप या विस्तार से, जो बोध होता है, उसे ही विद्वान् लोग सम्यक् ज्ञान कहते हैं ।' ___ तज्ज्ञानं पञ्चविधं मतिश्रुतावधिमनःपर्यायकेवलभेदेन । तदुक्तम् ---मतिश्रुतावधि-मनःपर्याय-केवलानि ज्ञानमिति । अस्यार्थः-ज्ञानावरणक्षयोपशमे सति इन्द्रियमनसी पुरस्कृत्य व्यापृतः सन्यथार्थं मनुते सा मतिः । ज्ञानावरणक्षयोपशमे सति मतिजनितं स्पष्टं ज्ञानं श्रतम् । सम्यग्दर्शनादिगुणनितक्षयोपशमनिमित्तमवच्छिन्नविषयं ज्ञानमवधिः। ईर्ष्यान्तरायज्ञानावरणक्षयोपशमे सति परमनोगतस्यार्थस्य स्फुटं परिच्छेदं ज्ञानं मनः पर्यायः। तपःक्रियाविशेषान्यदर्थ सेवन्ते तपस्विनः तज्ज्ञानमन्यज्ञानासंसृष्टं केवलम् ।
वह ज्ञान--(१) मति, (२) श्रुत, (३) अवधि, (४) मनःपर्याय और ( 2 ) । केवल-इन भेदों के कारण पाँच प्रकार का है। यह कहा भी है-मति, थुत, अवधि, मनःपर्याय तथा केवल ये ज्ञान हैं । इसका अर्थ [ निम्नलिखित है -
(१) मति ( Sensuous congnition )-ज्ञान के आवरण' ( प्रतिवन्धक ) का क्षय ( बिल्कुल विनष्ट ) या उपशम ( थोड़ी देर के लिए नष्ट ) हो जाने पर इन्द्रिय और मन को आगे रखकर ( उनकी सहायता से युक्त होकर पदार्थ का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना
१. ज्ञान के आवरण तीन प्रकार के हैं.-मनोगत ( Mental ). इन्द्रियगन ( Shisuous ) तथा विषयगत ( Objective)। हठ, मन्मग्ता, अभियान आदि के कारण ज्ञान का आवत होना मनोगत आवरण है । नेत्रगंगों या इन्द्रियों में किंगी दाप के कारण ज्ञान का आवरण इन्द्रियगत है । सूक्ष्म होने या अन्धाार में लिग होने के कारण वस्तु को नहीं देख सकना विषयगत आवरण है ।