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आहेत-दर्शनम्
१२७ कहीं तो पंक का क्षय है, कहीं उपशम । दोनों लक्ष्य रहने पर भाव क्षायौपशमिक कहलाता है। यह भी जीव की एक विशिष्ट अवस्था है । ( ४ ) द्रव्यादि निमित्तों से जब कर्म-फल की प्राप्ति शुरू हो जाती है उसे उदय ( Rise ) कहते हैं। जैसे जल में पंक का ऊपर उठना । इसी से सम्बद्ध भाव औदयिक है। यह भी जीव की एक विशिष्ट अवस्था है, जिसमें कर्म मिले रहते हैं । ( ५ ) एक और स्थिति है परिणाम ( Manifestation ), जिसमें किसी द्रव्य को अपने स्वरूप में मिल जाना पड़ता है। इसमें कर्मोपशम आदि रहते ही नहीं, अपना स्वाभाविक रूप ( जैसे आत्मा के लिए चैतन्य ) मिल जाता है । इससे सम्बद्ध भाव पारिणामिक है ।
स्मरणीय है कि इन भावों में पारिणामिक भाव जीव के लिए स्वाभाविक है, क्योंकि इसमें कर्मोदय, उपशम आदि बिल्कुल नहीं रहते । औपशमिक आदि चार भाव जीव के लिए नैमित्तिक हैं, क्योंकि विशिष्ट अवस्थाओं में ही ये उपपन्न होते हैं और कर्मोपशम आदि की अपेक्षा रहती है। ये पांचों भाव ही जीव की अवस्थाओं (पर्यायों ) की बात चलने ( विवक्षा ) पर जीव का स्वरूप कहलाते हैं। जब केवल 'जीव' (पदार्थ) की बात चले ( उसकी अवस्थाओं की नहीं), तब उसका स्वरूप ही भाव कहलाता है । इसे. अभी स्पष्ट करेंगे___ अनुदयप्राप्तिरूपे कर्मण उपशमे सति जीवस्योत्पद्यमानोभाव औपशमिकः । यथा पके कलुषतां कुर्वति कतकातिद्रव्यसम्बन्धादधःपतिते जलस्य स्वच्छता। ( आर्हततत्त्वानुसन्धानवशाद् रागादिपङ्कक्षालनेन निर्मलतापादकः क्षायिको भावः।) कर्मणः क्षये सति जायमानो भावः क्षायिकः। यथा पकात्पृथग्भूतस्य निर्मलस्य स्फाटिकादिभाजनान्तर्गतस्य जलस्य स्वच्छता। यथा मोक्षः।
उभयात्मा भावो मिश्रः। यथा जलास्यार्धस्वच्छता। कर्मोदये सति भवन्भाव औदयिकः। कर्मोपशमाद्यनपेक्षः सहजो भावश्चेतनत्वादिः पारिणामिकः। तदेतद्यथासम्भवं भव्यस्याभव्यस्य वा जीवस्य स्वरूपमिति सूत्रार्थः ॥
(१) जब कर्म का उपशम हो जाय और [ भविष्यत् को प्रभावित करने के लिए नये कर्म का ) उदय न मिले, तब जीव में उत्पन्न होनेवाले भाव को औपशमिक कहते हैं । उदाहरणार्थ-गन्दा करनेवाले पंक के कतक ( पानी साफ करनेवाला एक द्रव्य ) आदि द्रव्यों के संयोग से नीचे बैठ जाने पर जल में स्वच्छता आती है।
(२) अर्हतों के द्वारा उपदिष्ट तत्त्वों के अनुसंधान से राग ( आसक्ति, लाली) आदि पंकों को धोकर निर्मलता देनेवाला भाव क्षायिक है ( यह वाक्य प्रक्षिप्त जान पड़ता है क्योंकि इसके बाद पूनः क्षायिक भाव का वर्णन है। इसे औपशमिक में भी नहीं रख सकते क्योंकि स्पष्ट शब्द में 'क्षायिक' का प्रयोग है )। कर्म का क्षय (सदा के लिए