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बौद्ध दर्शनम्
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वैभाषिक लोग अर्थको ज्ञान से युक्त ( प्रत्यक्षगम्य ) मानते हैं, सौत्रान्तिक बाह्य अर्थ को प्रत्यक्ष द्वारा ग्रहणीय नहीं लेते ( अनुमेय मानते हैं ) । योगाचार के मत से बुद्धि ही आकार के साथ है ( बुद्धि में ही बाह्यार्थ चले आते हैं - भेद-भाव नहीं ) । माध्यमिक केवल ज्ञान को ही अपने में स्थित मानते हैं ।
३९. रागादिज्ञानसंतानवासनोच्छेदसम्भवा चतुर्णामपि बौद्धानां मुक्तिरेषा प्रकीर्तिता ॥ ४०. कृत्तिः कमण्डलु मौण्ड्यं चीरं पूर्वाभोजनम् । सङ्घो रक्ताम्बरत्वं च शिश्रिये बौद्धभिक्षुभिः ॥
इति श्रीमत्सायणमाधवीये सर्वदर्शनसंग्रहे बौद्ध दर्शनम् ॥
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( वि० वि० ८।२६५-७५ ) इति ।
रागादि-ज्ञान को परम्परारूपी वासना के नष्ट हो जाने से उत्पन्न मुक्ति चारों प्रकार के बौद्धों के लिए कही गयी है । चर्म, कमण्डलु, मुण्डन, चीर (वस्त्र), पूर्वाह्ण में [ एक बार ] भोजन, संघ में रहना और लाल ( कषाय ) वस्त्र धारण करना • बौद्ध भिक्षु इन्हें ही स्वीकार करते हैं । ' ( विवेक - विलास, ८।२६५-७५ ) ।
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इस प्रकार श्रीमान् सायण माधव के सर्वदर्शन-संग्रह में बौद्धदर्शन [ समाप्त हुआ ] । ॥ इति बालकविनोमाशङ्करेण रचितायां सर्वदर्शन संग्रहस्य प्रकाशाख्यायां
व्याख्यायां बौद्धदर्शनमवसितम् ॥
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