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आर्हत-दर्शनम्
सभी सावयव ( अवयव समवायी ) पदार्थ कार्य हैं, चूंकि सामान्य भी सावयव ( अवयव समवायी ) हैं, इसलिए सामान्य कार्य है ।
फिर नैयायिकों के कान खड़े हो गये । 'सामान्य को वे कार्य मानते नहीं' फिर यह सिद्ध कैसे हुआ ? जरूर कहीं दाल में काला है । इसलिए 'Tiara' का अर्थ 'अवयवों से समवाय सम्बन्ध होना' लेंगे तो सामान्य को भी कार्य मानना पड़ेगा, अतिव्याप्ति हो जायगी । अतः 'सावयव' का यह अर्थ ठीक नहीं है । द्रव्यत्व का सम्बन्ध घट के अवयवों के साथ कैसे ? दो उपाय हैं—एक तो घट के अवयव भी उसी प्रकार द्रव्य हैं जिस प्रकार घट, अतः उनसे भी द्रव्यत्व जाति नित्यरूप से सम्बद्ध है । दूसरे, द्रव्यत्व का सम्बन्ध घटत्व से है और घटत्व घट के प्रत्येक अवयव में है नहीं तो वह घट ( पूर्ण ) को व्याप्त कैसे करेगा ? [ हम ऐसा कह भी नहीं सकते कि अमुक खण्ड में घटत्व है, अमुक में नहीं । ] ( ३ ) तीसरा विकल्प [ कि सावयवत्व का अर्थ अवयवों से दोषरहित नहीं क्योंकि यह हमारे साध्य ( 'कार्यत्व' ) से अभिन्न हो लोग कार्यत्व को सिद्ध करना चाहते हैं क्योंकि वह संदिग्ध है । उसी संदिग्ध है । इसे स्वयं ही सिद्ध करने की आवश्यकता है फिर यह कार्यत्व को क्या सिद्ध करेगा ? बात यह है कि कार्य और जन्य एक ही हैं । 'पट' कार्य को सिद्ध करने के लिए यह कहना अप्रामाणिक होगा कि एकत्र किये गये सूत ही पट हैं । अतः सावयवत्व का यह अर्थ भी व्यर्थ है । ]
उत्पन्न होना है ] भी जायगा । [ अभी हम
प्रकार 'जन्यत्व' भी
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न चतुर्थः । विकल्पयुगलार्गलग्रहगलत्वात् । समवायसम्बन्धमात्रवद् द्रव्यत्वं समवेतद्रव्यत्वमन्यत्र समवेतद्रव्यत्वं वा विवक्षितं हेतुक्रियते ?
आद्ये गगनादौ व्यभिचारः । तस्यापि गुणादिसमवायवत्व द्रव्यत्वयोः सम्भवात् । द्वितीये साध्याविशिष्टता । अन्यशब्दार्थेषु समवायका रणभूतेष्ववयवेषु समवायस्य साधनीयत्वात् । अभ्युपगम्यैतदभाणि । वस्तुतस्तु समवाय एव न समस्ति । प्रमाणाभावात् ।
( ४ ) चौथा विकल्प [ कि सावयव नित्यरूप से सम्बद्ध द्रव्य है, ] भी ठीक नहीं क्योंकि इसकी गर्दन दो विकल्पों की अर्गला ( किवाड़ बन्द करने की लकड़ी, बेड़ा ) से पकड़ ली जाती है । [ विकल्प इस प्रकार हैं ] आप 'समवेत द्रव्य होना' से क्या समझते हैं - ( क ) क्या अपने-आप में नित्यरूप से ( = समवाय ) सम्बन्ध रखनेवाला द्रव्य समझते हैं, या : ( ख ) अपने अभीष्ट कथन ( विवक्षित ) का हेतु देने के लिए ( = अपनी बात को सिद्ध करने के लिए ) किसी दूसरे पदार्थ से समवाय सम्बन्ध रखनेवाले द्रव्य 'समवेत द्रव्य' समझते हैं ? [ प्रथम विकल्प का अर्थ है कि द्रव्य अपने-अपने रूप में ही समवाय सम्बन्ध रखते हैं, दूसरा विकल्प कहता है कि द्रव्य अपने से भिन्न किसी पदार्थ मे
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