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आर्हत-दर्शनम्
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लेगा । आत्मा भी अवयवों के विचार से युक्त बुद्धि का विषय है फिर भी इसे कार्य के रूप में स्वीकार नहीं करते । [ इससे बचने के लिए ] आप यह नहीं कह सकते कि आत्मा के अवयवहीन होने पर भी, अवयवयुक्त वस्तुओं ( सावयव -अर्थ, जैसे शरीर आदि ) के साथ सम्बन्ध होने के कारण जो इसे ( = आत्मा को ) ' अवयवों के विचार से युक्त बुद्धि का विषय' कहते हैं, वह लाक्षणिक ( औपचारिक Metaphorical ) भाषा में कहा जाता है ( इसलिए आत्मा आदि का व्यभिचार इस लक्षण के द्वारा नहीं होता — लेकिन यह रक्षकतर्क ठीक नहीं ) । कारण यह है कि अवयवहीन पदार्थ और व्यापक - पदार्थ में परमाणु की तरह ( परमाणु अवयवहीन है पर व्यापक नहीं ) ही विरोध है ।
विशेष- - आत्मा अवयवहीन है, किन्तु शरीरादि अवयवयुक्त वस्तुओं के साथ ( जैसे मैं शरीरधारी हूँ ) इसका सम्बन्ध देखा जाता है इसलिए औपचारिक प्रयोग से इसे सावयव बुद्धि का विषय कहते हैं । औपचारिक प्रयोग मानने का कारण यह है कि आत्मा में कार्यत्व ( जो यहाँ साध्य है ) का अत्यन्त अभाव है, उसमें 'सावयव बुद्धि का विषयत्व' इस हेतु का भी अभाव है । लेकिन यह तर्क भी ठीक नहीं है, क्योंकि अवयवहीन पदार्थ व्यापक नहीं हो सकते, दोनों में परस्पर विरोध है । औपचारिक प्रयोग कुछ कर नहीं सकता ।
इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि पृथ्वी आदि कार्य नहीं हैं, इसलिए इनके कर्ता के रूप में ईश्वर की सिद्धि नहीं हो सकती । अब कर्ता पर ही शंकाएँ उठायी जाती हैं कि कर्ता एक है या अनेक । फिर ईश्वर को कर्ता माननेवालों को ( नैयायिकादि को ) अच्छी फटकार दी जायगी ।
( १२. ईश्वर के कर्त्ता बनने पर आपत्ति )
किं च, किमेकः कर्त्ता साध्यते, किं वाऽनेके ? प्रथमे प्रासादादौ व्यभिचारः । स्थपत्यादीनां बहूनां पुरुषाणां तत्र कर्तृत्वोपलम्भात् । द्वितीये बहूनां विश्वनिर्मातृत्वे तेषु मिथो वैमत्यसम्भावनाया अनिवार्यत्वादेकैकस्य वस्तुनोऽन्यान्यरूपतया सर्वमसमज्जसमापद्येत । सर्वेषां सामर्थ्यसाम्येनैकेनैव सकलजगदुत्पत्तिसिद्धौ इतरवैयर्थ्यं च ।
पाये
यदि दूसरा
इसके अलावे, क्या आप एक कर्त्ता सिद्ध करते हैं या अनेक ? यदि प्रथम विकल्प ( एक कर्ता होना ) लेते हैं तो प्रासाद ( महल ) आदि [ के कर्तृत्व ] में विरोध हो जायगा । उसके निर्माण में कर्ता के रूप स्थपति ( बढ़ई Carpenter ) आदि बहुत से पुरुष जाते हैं [ यदि एक हा कर्ता मानेंगे तो प्रासादादि का निर्माण कैसे होगा ? विकल्प लेते हैं ( कि बहुत से कर्त्ता होते हैं ) तब तो बहुत से कर्त्ता मिलकर विश्व का निर्माण करेंगे, उनमें परस्पर मतभेद की भी सम्भावना अनिवार्य है । फल यह होगा कि एक-एक चीज के भिन्न-भिन्न रूप हो जायँगे और सब कुछ असमंजस ( गड़बड़, Incoherent ) हो जायगा । दूसरी ओर, यदि सबों में समान शक्ति मानकर किसी एक के द्वारा समस्त संसार की उत्पत्ति सिद्ध करते हैं तो दूसरे कर्ता व्यर्थ हो जायँगे ।