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सर्वदर्शनसंग्रहे
कर्म का नाश' कहते हैं । (२) अकृतकर्मभोग-दूसरी ओर फल का भोग उसे करना पड़ेगा, जिसने काम नहीं किया; दूसरे के द्वारा काम किया गया था, फिर भी क्षणिकवाद ने उसे फलभोग करने को बाध्य ही कर दिया। देवदत्त कृत-कर्म का फल भोगता है. यज्ञदत्त? इस प्रकार दूसरा दोष भी इस वाद में है। (३) भवभंग-इसका अर्थ है, संसार का विनाश । संसार में प्राणियों का जन्म इसलिए होता है कि वे अपने पूर्वजन्म में किये हए कर्म का फल भोग लें। इसी से संसार चलता है, किन्तु जब सत्ता क्षणिक है, तब प्राणियों में अपने कर्मफल को भोगने के प्रति उत्तरदायित्व रहेगा ही नहीं, फिर वे क्यों जन्म लेंगे। दूसरे के कर्म का फल तो दूसरा भोग ही लेगा। जो प्राणी गया, सो गया। इस प्रकार संसार की उत्पत्ति असम्भव है। (४) मोक्षभंग-मोक्ष उसे कहते हैं, जिसमें प्राणी कर्मफल के बन्धन से मुक्त होकर फिर जन्म न ले । बौद्ध लोग आत्मा को क्षणिक मानते हैं, तो मृत्यु के बाद सुखी होने के लिए प्रयत्नवान कौन होगा ? आत्मा की कोई सन्तान या परम्परा भी वास्तव में नहीं चलती । यदि वास्तव में हो भी तो क्षणिकवाद सिद्धान्त को बाधा पहुँचेगी। अष्टांगमार्ग आदि जो मोक्ष के साधन बौद्धों के सम्मत हैं, वे कर्मफल के क्षणिक होने के कारण स्वयं क्षणक हैं---उनसे मोक्ष पाना बिल्कुल असम्भव है। अतएव मोक्ष के सिद्धान्त की हानि होती है। ( ५ ) स्मृतिभंग-अनुभव करनेवाले व्यक्ति का तुरंत विनाश हो जाता है, इसलिए स्मृति ( Memory ) नाम की कोई चीज नहीं रहती। सभी लोग जरते हैं कि अनुभव करनेवाला और स्मरण करनेवाला व्यक्ति एक ही है, लेकिन क्षणिकवाद के अनुसार ये दो व्यक्ति हैं । भले ही ये उसी सन्तान में हों, पर हैं दो व्यक्ति--इसमें सन्देह नहीं। इसी तरह प्रत्यभिज्ञा ( Recognition ) भी असिद्ध हो जाती हैं। कोई किसी को पूर्वानुभव के आधार पर पहचान नहीं सकता। इसीलिए बौद्धों को ये महामाहसिक कहते हैं । साहसिक = सहसा विना विचारे हुए काम करनेवाला। जयन भट्ट ने क्षणिकादि वासनाओं में वौद्धों का दम्भ माना है---
नास्त्यात्मा फलभोगमात्रमथ च स्वर्गाय चैत्यार्चनं, संस्काराः मणिका युगस्थितिभृतश्चैते विहाराः कृताः । सर्वम् शून्यमिदं वसूनि गुरुवे देहीति चादिश्यते, वौद्धानां चरितं किमन्यदियतो दम्भस्य भूमिः परा ॥
(न्यायमञ्जरी, पृ० ३९) एक ओर बौद्ध लोग मानते हैं कि आमा की सत्ता नहीं केवल फल का भोग मात्र होता है, दूसरी ओर स्वर्ग की प्राप्ति के लिए चैत्य ( पवित्र मन्दिर और मूर्ति ) की अर्चना भी करते हैं । सभी संस्कार क्षणिक हैं, और दूसरी ओर युगों तक स्थित रहनेवाले विहारों का ( मठों का ) निर्माण हो रहा है। एक ओर ‘सब कुछ शून्य है' का उद्घोष चल रहा