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आहेत-पर्सनम् अच्छी बात है, जड़ता का ही ग्रहण नहीं होगा, हमारी क्या हानि है ? [ उत्तर यह है कि ] जड़ता का ग्रहण न होने पर भी, जब नील ( या घट ) के आकार का ग्रहण होता है उस समय दोनों में ( जड़ता और पदार्थ में ) भेद होता है (जैसा कि घट और पट में है (जिसके चलते वे धूम और अग्नि की तरह कभी-कभी ही–व्यभिचरित होकरमिलते हैं। ) [ आशय यह है कि घटाकार और जड़ता में या तो भेद होगा या व्यभिचार सम्बन्ध होगा । 'घट जड़ है' ऐसा कहने पर भी जड़ और घट भिन्न हैं, इसमें कोई विश्वास नहीं करेगा। अतः जड़ता घट का स्वरूप ही है। फिर भी यदि घट ग्रहण होने पर भी जड़ता का ग्रहण नहीं हो, तो वे दोनों भिन्न हैं, ऐसा सन्देह हो जायगा और अभेद का निश्चय भी नहीं होगा।] नीलाकार का ग्रहण हो जाने पर भी जिस जड़ता का ग्रहण होता है वह उसका स्वरूप कैसे होगा ? अन्यथा ( अदि अगृहीत गुण भी गृहीत वस्तु का स्वरूप हो, तब-) गृहीत स्तम्भ का रूप अगृहीत त्रैलोक्य ही हो जायगा । [ यदि आप कहते हैं कि अवयव न भी देखा जाय और अवयवी देखा जाय, कोई हानि नहीं, तो मैं कहता हूँ कि त्रैलोक्य अवयव है और खम्भा अवयवी । ]
इन सभी विषयों का प्रतिपादन प्रभाचन्द्र इत्यादि अर्हत् ( जैन ) मत को माननेवाले विद्वानों के द्वारा प्रमेयकमलमार्तण्ड इत्यादि ग्रन्थों में हुआ है इसलिए ग्रन्थ बड़ा हो जाने के भय से यहाँ नहीं दे रहे हैं।
विशेष-माधवाचार्य की यह स्वाभावोक्ति है—ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से अब विराम करें। कई जगह ऐसा प्रयोग है। जैन ग्रन्थकारों में प्रभाचन्द्र बहुत से हुए हैं । प्रमेयकमलमार्तण्ड के रचयिता प्रभाचन्द्र ८२५. ई० में विद्यमान थे। विद्यानन्दी (८०० ई० ) ने आप्तपरीक्षा नामक ग्रन्थ लिखा जिसको टीका माणिक्यनन्दी ( ८०० ई० ) ने परीक्षामुख नाम से की । प्रमेयकमलमार्तण्ड इसी परीक्षामुख की टीका है।
(७. अर्हत्-मत की सुगमता, अर्हत् का स्वरूप ) तस्मात्पुरुषार्थाभिलाषुकः पुरुषः सौगती गतिर्नानुगन्तव्या, अपि तु आहतो एवार्हणीया। अर्हत्स्वरूपं च हेमचन्द्रसूरिभिराप्तनिश्चयालङ्कारे निरटङ्कि
५. सर्वज्ञो जितरागादिदोषस्त्रैलोक्यपूजितः ।
यथास्थितार्थवादी च देवोऽर्हन्परमेश्वरः ॥ इति । इसलिए पुरुषार्थ ( मोक्ष ) की इच्छा करनेवाले लोगों को बुद्ध की पद्धति का अनुगमन नहीं करना चाहिए, बल्कि अर्हत् (जिन ) की सरणि का पूजन करना चाहिए । अहंत ( जैनों के ईश्वर ) का स्वरूप हेमचन्द्र सूरि ने अपने आप्तनिश्चयालंकार नामक ग्रंथ में इस प्रकार दिया है-'जो सब कुछ जानता हो, गग ( आसक्ति ) आदि