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आहेत-वर्शनम्
उसका फल-भोग कर रहा है'-इस प्रकार स्पष्ट ( प्रत्यक्ष ) प्रमाण से मालम होता है कि पर्व ( पहले ) और अपर ( बाद में ) काल में होनेवाला कार्य या भाव स्थायी ( अक्षणिक ) है। यही कारण है कि सत्य का अनुसंधान करनेवाले जैन लोग ( अर्हत् ) उस क्षणिकता को ग्रहण करने में असमर्थ हैं जिसमें पूर्वापर के क्रम से रहित, काल के एक छोटे अंश ( कला ) तक ही [ किसी पदार्थ की ] स्थिति स्वीकार की जाती है। [ स्थायी पदार्थ में पूर्व और अपर का क्रम रहता है। दिन स्थायी है, उसका पूर्व भाग और अपर भाग हो सकता है, लेकिन एक क्षण का न तो पूर्वभाग होता न अपरभाग। चूंकि उदाहरणों से स्पष्ट किया जाता है कि किसी भी सता के पूर्व और अपर-दो खंड होते हैं इसलिए सत्ता स्थायी ही होगी क्योंकि क्षणिक में पूर्वापर नहीं होता।]
(२. क्षणिक-पक्ष में बौद्धों की युक्ति ) अथ मन्येथाः- .
प्रमाणवत्त्वादायातःप्रवाहः केन वार्यते ? - इति न्यायेन 'यत्सत्तक्षणिकम्' इत्यादिना प्रमाणेन क्षणिकतायाः प्रमिततया, तदनुसारेण समानसंतानवतिनामेव प्राचीनः प्रत्ययः कर्मकर्ता, तदुत्तरः प्रत्ययः फलभोक्ता। ___ आप लोग यह कह सकते हैं-'प्रमाणों से सिद्ध होकर निकला हुआ [ क्षणिकसत्ता का ] यह प्रवाह कौन रोक सकता है ?' इस नियम से, 'जो कुछ सत् (स्थित existent ) है, क्षणिक है' इस प्रकार के प्रमाण से क्षणिकता मालूम होती है । इसके अनुसार, एक ही संतान अर्थात् परम्परा में रहनेवाले [ ज्ञानों में ] पहले का प्रत्यय ( ज्ञान ) काम करनेवाला है, उसके बाद का ज्ञान फल भोगनेवाला होगा। [ आशय यह है कि आपाततः अनुचित लगनेवाली बात भी यदि प्रमाणों से सिद्ध हो जाय तो उसे मान लेना चाहिए । इसलिए 'यत् सत्, तत् क्षणिकम्' इस अनुमान से सिद्ध क्षणिकत्व को हमें मान लेना ही पड़ेगा, भले ही अनुभव ऐसा करने को नहीं कह रहा हो। हर व्यक्ति की अपनी ज्ञान-परम्परा ( या प्रत्यय-सन्तान ) होती है। उस परम्परा में पूर्वक्षण और अपरक्षण तो रहेंगे ही ! मान लिया कि राम के प्रत्यय-संतान में पूर्वक्षण में वर्तमान किसी आत्मा या प्रत्यय ने काम किया तो फल का भोग भी उसी संतान में विद्यमान उसके बाद के क्षण की आत्मा करेगी। इसमें कोई असंगति की बात नहीं है। ]
न चातिप्रसङ्गः। कार्यकारणभावस्य नियामकत्वात् । यथा मधुररसभावितानामाम्रबीजानां परिकर्षितायां भूमावुप्तानामकुरकाण्डस्कन्धशाखापल्लवादिषु तद्वारा परम्परया फले माधुर्यनियमः। यथा वा लाक्षारसावसिक्तानां कार्पासबीजादीनामङकुरादिपारम्पर्येण कार्पासादौ रक्तिमनियमः।