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बौद्ध-दर्शनम् प्रमाण है ( नील और उसके ज्ञान में सहोपलम्भ-नियम है जिससे दोनों अभिन्न हैं; बुद्धि की सत्ता इससे सिद्ध होती है )। इसका कारण यह है कि वेद्य और वेदक में अभेद सिद्ध करने के लिए [ जिस सहोपलम्भ-नियम का ] प्रयोग आप करते हैं वह अभेद को सिद्ध करने में कारण ( प्रयोजक ) नहीं बन सकता क्यों कि 'विपक्ष में वह नहीं रहेगा' (=विपक्ष -व्यावृत्ति )—यह संदेहपूर्ण है । [ आशय है कि जैसे धूम और अग्नि में सम्बन्ध दिखलाने के समय अग्नि का अभाव धारण करनेवाले पदार्थ विपक्ष हैं, उनमें देशान्तर या कालान्तर में कभी धूम हो सकता है । विपक्ष में कभी नहीं होगा, यह नियम कहाँ है ? ऐसी आशंका धूम और अग्नि के कार्य-कारण-भाव नष्ट हो जाने के भय से नहीं की जाती ( आशंका का खण्डन हो जाता है )। यह तर्क ठीक है, प्रयोजक है। किन्तु उसी प्रकार यहाँ 'भेद होने पर भी सहोपलम्भ-नियम रह सकता है-इस आशंका का निरसन नहीं होता। इसलिए विपक्ष में हेतु की व्यावृत्ति होगी, अतएव यह संदिग्ध है और अनुमान नहीं हो सकता।]
[यदि विज्ञानकारी शंका करें कि ] भेद को भी सिद्ध करने के लिए सहोपलम्भ का नियम साधन नहीं बन सकता, तो ( हम कहेंगे कि ) ऐसी बात नहीं है, क्योंकि [ प्रत्यक्ष प्रमाण से ही विरोध हो जायगा ] ज्ञान तो आन्तरवस्तु है, और ('घटादि ) ज्ञेय पदार्थ बाह्य हैं-इस प्रकार भेद तो स्पष्ट ( प्रत्यक्ष रूप ) प्रतीत होता है । [ इस प्रकार उपर्युक्त अनुमान प्रत्यक्षविरोधी है। ]
दूसरी युक्ति यह है कि सहोपलम्भ का नियम होना हो असंभव है क्योंकि [ आत्मनिष्ठ ज्ञान है और बाह्य-वस्तुनिष्ठ विषय हैं, दोनों के दो स्थान हैं; विषय पूर्वक्षण में रहता है, शान उत्तर क्षण में, इसलिए] विषय और ज्ञान का एक देश में या एक काल में होना सम्भव नहीं है, इसलिए दोनों के स्वरूप ( लक्षण) मिलेंगे ही कब [कि सहोपलम्भ आपको दिखलाई पड़ेगा ] ?
किं च नीलाद्यर्थस्य ज्ञानाकारत्वेऽहमिति प्रतिभासः स्यात् । न तु 'इदमिति' प्रतिपत्तिः। प्रत्यायादव्यतिरेकात् । अथोच्यते-ज्ञानस्वरूपोऽपि नोलाकारो भ्रान्त्या बहिर्वत् भेदेन प्रतिभासत इति, न च तत्राहमुल्लेख इति । तथोक्तम्
१९. परिच्छेदान्तराद्योऽयं भागो बहिरिव स्थितः। . ज्ञानस्यामेदिनो भेदप्रतिभासोऽप्युपप्लवः ॥ इति ।
२०. यदन्त यतत्त्वं तदहिर्वदवभासते । इति च ।
इसके अतिरिक्त नीलादि अर्थ यदि ज्ञान ( बुद्धि ) के ही स्वरूप हों तो [ जिस प्रकार ज्ञाता आत्मा को 'अहम्' कहते हैं उसी प्रकार उन ] बाहरी पदार्थों में भी 'अहम्' ऐसी प्रतीति होगी, 'इदम् ( यह ) ऐसा ज्ञान नहीं होगा। कारण यह है कि | बाह्य पदार्थ |
५स० सं०