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बौद्ध-दर्शनम् समर्थः स्यात् । आलयविज्ञानसन्तानवतित्वाविशेषात् । सर्वे समर्था इति पक्षे कालक्षेपानुपपत्तिः । ततश्च कादाचित्कत्वनिर्वाहाय शब्दस्पर्शरूपरसगन्धविषयाः सुखादिविषयाः षडपि प्रत्ययाश्चतुरः प्रत्ययान् प्रतीत्योत्पाद्यन्त इति चतुरेणानिच्छताप्यच्छमतिना स्वानुभवमनाच्छाद्य परिच्छेत्तव्यम् ॥ ___ इसलिए, प्रवृत्ति-विज्ञान को उत्पन्न करनेवाले आलय-विज्ञान में रहनेवाली वासना का परिपाक ( उत्पन्न ) करने में, आलय-विज्ञान में स्थित सारी क्षणिक-वासनाए समर्थ हैं—ऐसा कहें। ( आलय-विज्ञान समुद्रवत् है, इससे ही प्रवृत्ति-विज्ञान की उत्पत्ति होती है । आलय-विज्ञान में क्षणिक वासनाएं हैं, जो वासना का परिपाक कर सकती हैं, अर्थात् वासना को कार्योत्पादन में लगा सकती हैं। ) [ यदि सभी क्षणिक वासनाओं में यह सामर्थ्य ] नहीं होती तो एक भी क्षणिक वासना समर्थ नहीं होती, क्योंकि आलय-विज्ञान की परम्परा में रहने पर कोई भेद-भाव नहीं होता ( 'कुछ' का प्रश्न नहीं है, सभी समर्थ हैं)। ____ यदि यह कहें कि सभी क्षणिक वासनाएं समर्थ हैं तो कालक्षेप ( समय बिताना ) नहीं होगा ( सभी वासनाएं तुरत ही कार्योत्पादन करेंगी, क्योंकि जो अपने कार्य के उत्पादन में समर्थ है, वह कालक्षेप नहीं सह सकता-तुरत कार्य उत्पन्न करेगा। फिर कार्य भी एक समान होंगे )। अब इसलिए वासनाओं का 'कभी-कभी होना' सिद्ध करने के लिए ( क्योंकि यह जरूरी है, अन्यथा विश्व के रङ्गमंच पर कभी-कभी होने वाले कार्यों की उत्पत्ति विज्ञानवादी कैसी वासना से सिद्ध करेंगे ? ), चतुर व्यक्ति को, इच्छा न होते हुए भी स्वच्छ बुद्धि से, अपनी अनुभूति को बिना ढंके हुए, विचार करना चाहिए कि शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध के विषय तथा सुखादि के विषय ( Objects ) ये छह प्रकार की प्रतीतियाँ चार प्रत्ययों ( कारणों) को पाकर ही उत्पन्न की जाती हैं । [ शब्दादि पाँच विषय बाह्य हैं, सुखादि विषय मन के हैं, अतः आन्तरिक हैं- इन छह प्रतीतियों का कुछ बाह्य कारण खोज लें (वे हैं चार कारण ) नहीं तो 'कादाचित्क' का निर्वाह नहीं होगा, क्योंकि समर्थ वासनाएँ परिपाक उत्पन्न करती रहेंगी-सभी उत्पन्न होंगे , कभी-कभी' नहीं हो सकेगा।
(२६. ज्ञान के चार कारण ) ते चत्वारः प्रत्ययाः प्रसिद्धा आलम्बन-समनन्तर-सहकार्यधिपतिरूपाः। तत्र ज्ञानपदवेदनीयस्य नीलाद्यवभासस्य चित्तस्य नीलादालम्बनप्रत्ययान्नीलाकारता भवति । समनन्तरप्रत्ययात् प्राचीनज्ञानोद्बोधरूपता । सहकारिप्रत्ययात् आलोकात् स्पष्टता। चक्षुषोऽधिपतिप्रत्ययाद्विषयग्रहणप्रतिनियमः॥
ये चार कारण प्रसिद्ध हैं- (१) आलम्बन ( Substratum ), (२) समनन्तर ( Suggestion ), ( ३ ) सहकारी ( Medium ) और ( ४ ) अधिपति ( Dominant