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सर्वदर्शनसंग्रहेसाथ मिलता है तब सुख-दुःख की अनुभूति होती है-यही वेदनास्कन्ध है । सुख-दुःख चूंकि चित्त के परिणाम हैं इसलिए भौतिक नहीं हैं । घट, पट आदि नाम संज्ञास्कन्ध ( Symbolical word ) है। ये केवल संकेत हैं जो अवयवों के आधार पर दिये जाते हैं। इस विषय में सुविख्यात मिलिन्दप्रश्न कानागसेन-मिलिन्द-संवाद देखने योग्य है। घटादि में नाम-रूप ( Name and Form ) दो भाग हैं। रूप भौतिक है किन्तु नाम चित्त की एक विशेष विकृति के कारण अमूर्त है । राग द्वेषादि क्लेश हैं, मान-मद-मोहादि उपक्लेश, धर्म-अधर्म-ये संस्कारस्कन्ध हैं। ये भी चैत है। स्मरणीय है कि इन स्कन्धों के पूर्ण विनाश के बाद निर्वाण की प्राप्ति होती है ।
(२८. चार आर्य सत्य-दुःख, समुदाय, निरोध, मार्ग) तदिदं सर्व दुःखं दुःखायतनं दुःखसाधनं चेति भावयित्वा तन्निरोधोपायं तत्त्वज्ञानं संपादयेत् । अत एवोक्तम्-दुःखसमुदायनिरोधमार्गाश्चत्वार आर्यबुद्धस्थाभिमतानि तत्त्वानि । तत्र दुःखं प्रसिद्धम् ॥
तो यह समूचा संसार दुःख है, दुःख का घर है और दुःख का साधन है ( यहीं से दुःख मिलता है )—यह ध्यान करके, उससे बचने के उपाय-तत्त्वज्ञान-को प्राप्त करना चाहिए । इसीलिए कहा है—(१) दुःख ( Suffering ) ( २ ) समुदाय ( Cause of Suffering ), ( ३ ) निरोध ( Cessation of Suffering ) तथा मार्ग ( Way to Cessation )—ये चार तत्त्व आर्य-बुद्ध के द्वारा सम्मत हैं। इनमें दुःख तो प्रसिद्ध है ( संसार में दुःख की सत्ता अनिवार्यरूप से है-देखिए इसी दर्शन का विगत अंश ) ।
विशेष-आचर्य यह है कि दुःख, समुदाय, निरोध और मार्ग-ये चार तत्त्व प्रसिद्ध होने पर भी गफ ने अपने अंग्रेजी-अनुवाद में इन्हें द्वन्द्व-समास में न लेकर षठी तत्पुरुष में लिया है और लिखा है-'दुःख के समूह को रोकने के चार मार्ग हैं' ( • • • 'are to the saints the four methods of suppressing the aggregate of pain. p. 30. ) । माना कि अर्थ वही है पर ये निरोध के चार मार्ग कौन-कौन हैं ? गिना तो दें सही । भगवान् बुद्ध के मूल उपदेश ये ही चार आर्य सत्य हैं । वस्तुतः दर्शनशास्त्र मात्र के ही ये चार व्यूह या पहलू ( Aspects ) हैं। जिस प्रकार चिकित्साशास्त्र में चार व्यूह हैं-रोग, रोग का कारण, आरोग्य और भैषज्य । उसी प्रकार यहाँ भी संसार, संसार का कारण, मोक्ष और मोक्ष का उपाय-ये चार पहल हैं ( द्रष्टव्य, व्यासभाष्य २०१५ )। वैद्यक शास्त्र की इसी समता के कारण बुद्ध को महाभिषक् कहा गया है।
१-बौद्ध लोग 'समुदय' ( दुःखकारण ) कहते हैं किन्तु सर्वदर्शनसंग्रह में इसे 'समुदाय' कहा गया है। सम्भव है दुःख के कारणों की शृङ्खला-द्वादश निदानों-को देखकर समूहवाचक समुदाय नाम दिया गया हो।