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प्रशस्तपादाचार्यप्रणीतम्
प्रशस्तपादभाष्यम् [ पदार्थधर्मसङ्ग्रहाख्यम्]
श्रीधरभट्टकृतन्यायकन्दलीव्याख्योपेतम् श्रीदुर्गाधरझाकृत-हिन्दीभाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् प्रणम्य हेतुमीश्वरं मुनि कणादमन्वतः ।
पदार्थधर्मसङ्ग्रहः प्रवक्ष्यते महोदयः ॥ ( सभी जन्यपदार्थों के ) कारण ईश्वर को प्रणाम करने के पश्चात् कणाद मुनि को प्रणाम करके 'महोदय' अर्थात् मोक्ष देनेवाले 'पदार्थधर्मसङ्ग्रह' नाम के ग्रन्थ को लिख रहा हूँ।
न्यायकन्दली अनादिनिधनं देवं जगत्कारणमीश्वरम् । प्रपद्ये सत्यसङ्कल्पं नित्यविज्ञानविग्रहम् ॥१॥ ध्यानकतानमनसो विगतप्रचाराः
पश्यन्ति यं कमपि निर्मलमद्वितीयम् । ज्ञानात्मने विघटिताखिलबन्धनाय
तस्मै नमो भगवते पुरुषोत्तमाय ॥२॥ आदि और विनाश से रहित एवं जगत् के निमित्तकारण, तथा जिनके संकल्प कभी विफल नहीं होते, नित्यविज्ञानस्वरूप उन परमेश्वर की शरण को मैं प्राप्त होऊ ॥२॥
सभी दोषों से रहित एवं सांसारिक सभी वस्तुओं से सर्वथा विलक्षण जिस वस्तु को योगिगण एकाग्र होने पर देखते हैं, सभी बन्धनों से शून्य ज्ञान-स्वरूप उन भगवान् पुरुषोत्तम को मैं प्रणाम करता हूँ ॥२॥
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