Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ-सूत्रम् NISITHA - SUTRA सम्पादक उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि मुनि श्री कन्हैयालाल "कमल' Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ About the Book Nishtha is an important Agama text of the Jainas. The Bhashya of Sthavira Pungava Shri Vishahagani Mahattara and the Churni of Jinadasa Mahattara on this, Agama text posses a great value and special significance. The Bhashya described different aspects of conduct situated to time and place. Besides, the Bhashya throws light on the cultural, Political, Social and other aspects contemporaneous with the period of Bhashyadara. In fact, Nishith is an encyclopaedia of knowledge which the Bhashya suppliments additionally. It was first published by Sanmati Gyan Peeth, Agra under the Editor-ship of Pujya Shri Amar Muni Ji Maharaj and Muni Shri Kanhaiya Lalji. A number of scholars have written thesis on the work obtained Doctorates. With the first edition going out of print, there has been an incresing demand for the supply of this book. It is to meet this long -felt need of scholars, Universities and private Institutions that this present in the same Type reprint has seen the light of the day. Due to Flourish the name of Pujya Gurudev the limited Copies have again printed as a Ilnd edition. Complete set in four parts Rs.1000/ JEducor Interna Tsonal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थवि :- पुंगव श्री विसाहगणि महत्तर- प्रणीतं, सभाष्यं निशीथ-सूत्रम् आचार्य प्रवर श्री जिनदास महत्तर- विरचितया विशेष- चूर्णी समलंकृतम् - चतुर्थी विभाग: उद्देशकाः 16-20 सम्पादक : उपाध्याय कवि श्री अमरमुनि जी महाराज व मुनि श्री कन्हैयालाल जी महाराज " कमल" अमर पब्लिकेशन वाराणसी- 1 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशन : अमर पब्लिकेशन सी. के. - 13/23, सत्ती चौत्तरा वाराणसी. फोन : (0542 ) 2392378 वितरक : भारतीय विद्या प्रकाशन 1, यू. बी. जवाहर नगर, बंगलो रोड़, दिल्ली- 7. फोन : 011-23851570 पोस्ट बोक्स न. 1108, कचौड़ी गली, वाराणसी फोन : (0542 ) 2392378 मूल्य : 1200.00 ( चार भाग में ) संस्करण: 2005 मूद्रक : टिविन्क्ल ग्राफिक्स, दिल्ली-110088. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NISHITH SUTRAM (With Bhashya) By STHAVIR PUNGAVA SHRI VISAHGANI MAHATTAR and Vishesh Churni By ACHARYA PRAVAR SHRI JINDAS MAHATTAR PART IV UDESHIKA 16-20 Edited by Upadhaya Kavi Shri Amarchand Ji Maharaj Ву Muni Shri Kanhaiyalal Ji Maharaj “Kamal" AMAR PUBLICATIONS VARANASI-1 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by : AMAR PUBLICATIONS CK-13/23, Satti Chautra Varanasi. Phone : (0542) 2392376 Distributers : BHARATIYA VIDYA PRAKASHAN 1, U.B., Jawahar Nagar, Bungalow Road, Delhi-7. Phone : 011-23851570 Post Box No. 1108, Chauchari Gali, Varanasi Phone : (0512) 2392378 Price : Rs. 1200.00 (In four parts) Edition : 2005 Printed by : Twinkle Graphics, Delhi-110088. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार - शास्त्र सतर्क एवं सजग मर्मी अध्येताओं को --उपाध्याय अमर मुनि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय यह निशीथचूणि का चतुर्थ खण्ड है, और अब निशीथचूणि अपने में पूर्ण है। इतने बड़े भीमकाय ग्रन्थ का सम्पादन एवं प्रकाशन इतनी शीघ्रता के साथ पूर्ण होना, वस्तुतः एक श्राश्चर्य है। जिस गति से प्रारम्भ में सम्पादन एवं मुद्रण चल रहे थे, यदि वही गति अन्त तक बनी रहती, तो संभव था, इतना विलम्ब भी न होता। परन्तु कुछ ऐसी विघ्न-परम्परा उपस्थित होती रही कि हम चाहते हुए भी तदनुसार कुछ न कर सके। निशीथचूणि अद्यावधि कहीं भी मुद्रित नहीं हुई है। यह पहला ही मुद्रण है। अतः सम्पादन से सम्बन्धित सभी प्रकार की सतर्कता रखते हुए भी, हम, और तो क्या, अपनी कल्पना के अनुसार भी सफल नहीं हो सके। कारण यह था कि लिखित पुस्तक-प्रतियाँ अधिकतर अशुद्ध मिलीं, और ताडपत्र की प्रति तो उपलब्ध ही न हो सकी। और सबसे बड़ी बात यह भी थी कि इस प्रकार का सम्पादन-कार्य हमारे लिए पहला ही था, जिसके लिए 'सौरम्मा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः' कहा गया है। प्रस्तु, सम्पादन में त्रुटियां रही हैं, जो हमारे भी ध्यान में हैं, परन्तु, एतदर्थ क्षमायाचना के अतिरिक्त, अब हम अन्य कुछ कर भी तो नहीं सकते। प्रस्तुत सम्पादन का विद्वजगत् में बड़ा आदर हुअा है । विश्वविद्यालय तथा तत्स्तरीय अन्य सर्वोच्च शिक्षा-संस्थाओं ने अपने पुस्तकालयों के लिए इस ग्रन्थ की प्रतियां मंगाई हैं और अध्ययन के बाद मुक्त भाव से प्रशंसा-पत्र प्रेषित किये हैं। भुवनेश्वर (उड़ीसा) में, अक्टूबर १९५६ में आयोजित 'अखिल भारतीय प्राच्य विद्या-परिषद्' (आल इंडिया ओरिएंटल कान्फ्रेन्स) के बीसवें अधिवेशन के प्राकृत एवं जैन धर्म विभाग के अध्यक्ष डा० सांडेसरा ने भी अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में प्रस्तुत सम्पादन को 'नोध-पात्र' गिना है। विद्वान् मुनिवरों ने भी खूब दिल खोलकर इसे सराहा है । हमें प्रसन्नता है कि हमारा यह नगण्य कार्य, साहित्यिक क्षेत्र में उल्लेख. नीय विशिष्ट स्थान प्राम कर सका। एक बात और भी है । कुछ लोग उक्त प्रकाशन से नाराज भी हुए हैं । क्यों? इसका उत्तर हम क्या दें! हमारा काम एक प्राचीन ग्रन्थ को, जो अबतक भंडारों के जीर्ण-शीर्ण हस्तलेखों की सीमा में ही प्रायः काल-यापन कर रहा था, मात्र, बाहर प्रकाश में लाना था, और वह हमने ला दिया । हमारी दृष्टि सु-विशुद्ध रूप से ज्ञानोपासना की रही है । कोन आचार्य हैं ? किस परम्परा के हैं ? उन्होंने क्या लिखा है ? वह आज के युग में कहाँ तक अनुकूल है या प्रतिकूल ? Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और उस युग में भी वह कहां तक औचित्य की सीमा में था? हमारे अपने साम्प्रदायिक पक्षबद्ध मनोवृत्ति के व्यक्ति क्या कहेंगे और क्या नहीं? उनसे प्रशंसा प्राप्त होगी अथवा निन्दा ? यह सब सोचना साहित्यकार का काम नहीं है । साहित्यकार का काम है, शुद्ध भाव से ज्ञान-साधना करना। और वह हमने 'यावबुद्धि बलोदयं' की है। बस, अपना कार्य पूरा हुआ। निशीथ-चूणि को हम जैन-साहित्य का, जैन-साहित्य का ही नहीं, भारतीय साहित्य का एक महान् ग्रन्थ मानते हैं । जन-प्राचार का यह शेखर ग्रन्थ है । प्राचार-शास्त्र की गुत्थियों का रहस्योद्घाटन, जैसा इस ग्रन्थ में हुअा है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। भारतीय इतिहास तथा लोक-संस्कृति की प्रकट एवं अप्रकट विपुल सामग्री का तो एक प्रकार से यह विश्व-कोप ही है। इसके अध्ययन के विना, निशीथ-सूत्र एवं अन्य छेद-सूत्र कथमपि बुद्धिगम्य नहीं हो सकते; यह हमाग अधिकार की भाषा में किया जाने वाला सुनिश्चित दावा है, जो किसी के भी मिथ्या प्रचार से झुठलाया नहीं जा सकता । निशीथ-चूणि क्या है, और उसमें ऐसा क्या कुछ है, जो वह पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, तथैव जैन एवं जेनेतर सभी विद्वानों के आकर्षण का केन्द्र बनी हई है ? इसके लिए पं० दलसुखभाई मालवणिया (प्राध्यापक-जैन-दर्शन, हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी) की विस्तृत प्रस्तावना 'निशीयः एक अध्ययन' का अवलोकन किया जा सकता है। पण्डित जी ने गम्भीर अथच तलस्पर्शी अध्ययन के साथ जो तत्कालीन ऐतिहासिक स्थिति का विश्लेषण किया है, वह विद्वजगत् को चकित कर देने वाला है। हम यहां इस सम्बन्ध में स्वयं और कुछ लिखकर पुनरुक्ति नहीं करना चाहते । यह ठीक है कि चूणि एक मध्यकालीन प्राचीन कृति है, एक विशेष संप्रदाय एवं परम्परा से सम्बन्धित है, वह उग्र साध्वाचार की अपक्रान्ति के एक विलक्षण मोड़ पर शब्दबद्ध हुई है, उस पर देश एवं काल की बदली हुई परिस्थितियों का भी अनेकविध प्रभाव पड़ा है। ग्रस्तु, चूणि की कुछ बातें ऐसी हैं, जो अटपटी सी है, जैन धर्म की मूल परम्परा से काफी दूर जा पड़ी हैं। परन्तु इस सबप क्या ! पाठक को अपनी बुद्धि का उपयोग करना है, हंस के नीर-क्षीर-विवेक से काम लेना है । किसी भी छद्मस्थ प्राचार्य की सभी बातें पूर्ण रूपेण ग्राह्य हों, एवं सर्वप्रकारेण सभी को मान्य हों; यह तो न कभी हुआ है, और न कभी होगा। “पन्नासमिक्खए धम्म' का उत्तराध्ययनसूत्रीय सन्देश आखिर किस काम आयेगा ! इस सम्बन्ध में हम निशीथचूणि के प्रथम भाग की प्रस्तावना (सन् १९५७) में पहले से ही पाठकों को सतर्क रहने के लिए, वह भी काफी स्पष्टता के साथ, लिख चुके हैं। अस्तु हम समझते हैं, फिर भी जो लोग चूर्णि की तयुगीन कुछ अटपटी बातों को ही अग्रस्थान देकर अनर्गल अपप्रचार कर रहे हैं, वे अपने कलुषित अहं का ही कुप्रदर्शन कर रहे हैं। यदि कोई गुलाब के मोहक एवं सुवासित पुष्प में केवल कटे ही देखता है। यदि कोई निर्मल चन्द्र में मात्र कलंक के ही दर्शन करता है, तो यह उसके 'दोषदृष्टिपरं मनः' का ही दोष कहा जायगा, और क्या ? हाँ, तो गुण-ग्रहण के भाव से निशीथ-णि का अध्ययन करना चाहिए। प्राचार्य जिनदाम ने साधक के मानसिक जगत् की सूक्ष्मताओं का, उतार-चढ़ावों का बड़ी कुशलता के साथ चित्रण किया है । प्राचार की कठोर, कठोरतर एवं कठोरतम चर्या को अग्रस्थान देते हुए उन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में दुर्बल साधक को, कथंचित् अपवाद-प्ररूपणा के द्वारा, सर्वथा Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " अपभ्रष्ट होने से संरक्षण भी दिया है। आखिर 'जीवन्नरो भद्रशतानि पश्येत्' के यथार्थवादी सिद्धान्त को कोई कैसे सहसा अपदस्थ कर सकता है ? साधना और जीवन का प्रामाणिक विश्लेषण करने की दिशा में, चूणि, एक महत्त्वपूर्ण उपादेय सामग्री प्रस्तुत करती है । कुछेक प्रतिकूल बातों को छोड़कर शेष समस्त ग्रन्थ सूत्रार्थ की गंभीर एवं उच्चतर विपुल सामग्री से अटा पड़ा है। आखिर, २० x ३० उपेजी १६७३ पृष्टों के महाग्रन्थ की अमूल्य चिन्तन सामग्री से, कुछेक प्रतिकूल बातों की कल्पित भीति से वंचित रहना, विचारमूढ़ता नहीं तो और क्या है ? 'अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्, विचार - मूढ़ः प्रतिभासि मे त्वम् ।' अस्तु, आशा है आज का चिन्तनशील तटस्थ साधक, अपनी तत्त्वसंग्राहिणी प्रतिभा के उज्ज्वल प्रकाश में, सारासार का ठीक मूल्यांकन करके, स्वपर की संयम साधना को निरन्तर उज्ज्वल से उज्ज्वलतर बनायेगा | मुनि श्री अखिलेशचन्द्र जी का प्रस्तुत सम्पादन कार्य में, प्रारंभ से ही उत्साहवर्द्धक सहयोग रहा है । उनकी व्यवस्था-बुद्धि के द्वारा, समय-समय पर काफी सुविधाएँ उपलब्ध हुई हैं । अस्तु, उनकी मधुर स्मृति का समुल्लेख यहां हमारे लिए आनन्दे की वस्तु है । महावीर-दीक्षा कल्याणक, मार्गशिर कृ० दशमी, वीराब्द २४८६ } - उपाध्याय अमरमुनि - मुनि कन्हैयालाल Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ----- - - ------ amamyanmuTRढाजपदान निविदाययकायगेमात्रमयनविज्ञापनमाधयानिगगरियाणISODE Lammarमामायalठमाटातानतदक्रमवासनावरणासमहायाग्राममcिarविडताaनिमिश्रमaalaaनामapaiyadl 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भाव सामारिक अर्थात् दिव्य, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी • प्रतिमा तथा रूप-सहगत का स्वरूप और उसके प्रकार दिव्य प्रतिमा का स्वरूप रूप = दिव्य प्रतिमा के प्रकार दिव्य प्रतिमा वाले उपाश्रय में निवास करने से स्थान प्रौर प्रतिसेवना- निमित्तक लगने वाले प्रायश्चित्त और तत्सम्बन्धी प्रश्नोत्तर दिव्य प्रतिमा-युक्त उपाश्रय में निवास करने से लगने वाले श्राज्ञाभङ्ग आदि दोष और उनकी व्याख्या । श्राज्ञाभङ्ग पर गुरुतर दण्ड देने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य का दृष्टान्त गाथाङ्क ५०६५ ५०६६ ५०६७ ५०६८ ५०६६-५११२ ५०६६-५१०२ ५१०३-५११२ ५११३-५२२७ ५११३-५११४ ५११५ ५११६- ५१६५ ५११७-५११८ ५११६-५१३६ ५१३७-५१४३ पृष्ठाङ्क १ १-२६ १ १ १ २-४ २ ३-४ ५-२६ ५ ५ ५-१६ ५-६ ६-१० १८- ११ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र संख्या विषय देवतादि के सानिध्यवाली दिव्य प्रतिमानों से युक्त उपाश्रय में रहने से देवता की ओर से की जाने वाली परीक्षा, प्रत्यनीकता तथा भोगेच्छा के निमित्त से होने वाली चेष्टाए और तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त देवता के सान्निध्यवाली प्रतिमानों के प्रकार प्रतिमाओं के सान्निध्यकारी देवता के सुखविज्ञप्य, सुखमोच्य आदि चार प्रकार और तत्सम्बन्धी प्रकरनंगम, रत्नदेवता आदि के उदाहरण [ २ ] जनसाधारण, कौटुम्बिक तथा दण्डिक के स्वामित्व वाली दिव्य स्त्री-प्रतिमानों, प्रतिमा ही नहीं उनकी स्त्रियों, और तत्सम्बन्धी प्रायश्चितों की गुरुता, लघुता और उसके कारण मनुष्य - प्रतिमा का स्वरूप जनसाधारण आदि के स्वामित्ववाली मनुष्य-प्रतिमाषों के जघन्य, मध्यम प्रादि प्रकार और उक्त प्रतिमाओं वाले उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोष और तद्विषयक प्रायश्चित मनुष्य- स्त्री के सुखविज्ञप्य सुखमोच्य श्रादि चार प्रकार, उनके उदाहरण, दोष, प्रायश्चित और तत्सम्बन्धी गुरुतालघुता श्रादि तिर्यञ्च प्रतिमा का स्वरूप जनसाधारण, कौटुम्बिक तथा दण्डिक के स्वामित्ववाली तिर्यञ्च प्रतिमानों के जघन्य, मध्यम आदि प्रकार और उक्त प्रतिमा वाले उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोष एवं उनके प्रायश्चित्त तिर्यञ्च स्त्री के सुखविज्ञप्य सुखमोच्य प्रादि चार प्रकार और तत्सम्बन्धी उदाहरण निर्ग्रन्थियों के लिए द्विव्यादि स्त्री-प्रतिमा के स्थान में पुरुषप्रतिमा की सूचना और कुक्कुरसेवी स्त्री का दृष्टान्त सागारिक शय्या सम्बन्धी श्रपवाद और तद्विषयक चिलिमिलिका, निशिजागरण आदि यतना सागारिक शय्या का सामान्य वर्णन करने के अनन्तर श्रमणश्रमणी के विभाग से विशेष वर्णन की प्रतिज्ञा श्रमणों को स्त्री उपाश्रय में तथा श्रमणियों को पुरुष - उपाश्रय में रहने का निषेध एवं सजातीय उपाश्रय में रहने का विधान सूत्र- रचना-विषयक शङ्का और उसका समाधान निर्ग्रन्थ-विषयक सागारिक सूत्र की विस्तृत व्याख्या गाथाङ्क ५१४४-५१५३ ५४५४ ५१५५-५१५८ ५१५६-५१६५ ५१६६-५१७६ ५१६६-५१७६ ५१-५१७६ ५१८०- ५१६२ ५१८०- ५१८६ ५१६०- ५१६२ ५१६३ ५५६४ - ५१६६ ५१६७ ५१६८ ५१६६-५२०२ ५२०३-५२२२ पृष्ठाङ्क ११-१३ १३ १३-१४ १५-१६ १६-१६ १६-१८ १६ १६-२२ १६-२१ २१-२२ २२ २२-२३ २३ २३ २३-२४ २४-२८ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रसंख्या २ विषय सविकार पुरुष तथा नपुंसक का स्वरूप, उसके मध्यस्व आदि चार प्रकार; तत्सम्बन्धित उपाश्रय में रहने से संयम - विराधनादि दोष और उनका प्रायश्चित्त । यदि कारणवश तथाकथित सागारिक उपाश्रय में रहना ही पड़े तो तत्सम्बन्धी यतना और अपवाद निग्रन्थियों के लिए भी सागारिक शय्या सूत्र सम्बन्धी निर्ग्रन्थपरक व्याख्या को ही यत्किचित् परिवर्तन के साथ जान लेने की सूचना सोदक (जलसंयुक्त शय्या का निषेध सोदक शय्या की व्याख्या [ ३ ] जल के शीत, उष्ण और प्रासुक अप्रासुक विषयक चार भङ्ग और तत्सम्बन्धित उपाश्रय में रहने से प्रगीतार्थं को प्रायश्चित्त द्रव्य, क्षेत्र आदि के भेद से प्रासुक की व्याख्या उत्सर्ग तथा अपवाद-सम्वन्धी विस्तृत चर्चा प्रगीतार्थ-विषयक शङ्का समाधान, उत्सर्ग-सूत्र, प्रादि छह प्रकार के सूत्रों तथा देश-सूत्र श्रादि चार प्रकार के सूत्रों का सोदाहरण स्वरूप अपवादसूत्र प्रोत्सर्गिक तथा प्रापवादिक सूत्रों के विषय और उनके स्वस्थान प्रश्नोत्तरी के द्वारा उत्सर्ग और अपवाद का रहस्योद्घाटन अनुज्ञापना आदि त्रिविध यतना का स्वरूप त्रिविध यतना-विषयक प्रगीतार्थ की प्रज्ञानता प्रगीतार्थ-विषयक अनुज्ञापना प्रयतना का स्वरूप प्रगीतार्थ-विषयक स्वपक्ष श्रयतना का स्वरूप प्रगीतार्थ-विषयक परपक्ष प्रयतना का स्वरूप गीतार्थ - विषयक अनुज्ञापना- यतना का स्वरूप गीतार्थ-विषयक स्वपक्ष- यतना का स्वरूप गीतार्थ-विषयक परपक्ष-यतना का स्वरूप जागरिका पर वत्स नरेश की भगिनी जयन्ती श्राविका का उदाहरण, गाथा ५३०६ ] दकतीर की विस्तृत व्याख्या दकतीर पर स्थानादि, यूपकवास भौर प्रतापना करने से प्रायश्चित्त कतीर की सीमा के सम्बन्ध में प्रचलित सात प्रदेशों (मतों) का उल्लेख और उनमें से प्रामाणिक प्रदेशों का निर्णय जलाशय के किनारे खड़े होने, बैठने, सोने और स्वाध्याय आदि करने से लगने वाले अधिकरण आदि दोष एवं उनका स्वरूप गाथाङ्क ५२०३-५२२२ ५२२३-५२२७ ५२२८ ५२२६ ५२३० ५२३१-५२५० ५२३१-५२४३ ५२४४-५२४५ ५२४६-५२५० ५२५१-५३०८ ५२५१ ५२५२-५२५६ ५२६०-५२७१ ५२७२-५२८२ ५२८३-५२८७ ५२८८-५२६६ ५२६७-५३०८ ५३०६-५३५१ ५३०६-५३१० ५३११-५३१२ ५३१३-५३२४ पृष्ठाङ्क २४-२८ २८-२६ २६-५७ २६ २६ ३० ३०-३५ ३०-३४ ३४ ३४-३५ ३५-४६ ३५ ३५-३७ ३७-३६ ३६-४१ ४१-४२ ४२-४४ ४४-४६ ४६-५७ ४६ ४६-४७ ४७-५० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रसंख्या विषय जलाशय के निकट स्थान, निषीदन प्रादि दस स्थानों के सम्बन्ध में सामान्य प्रायश्चित्त निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला का स्वरूप दकतीर के संपातिम तथा असंपातिम नामक दो भेद, उक्त दकतीर द्वय पर स्थान एवं निषीदन प्रादि दस स्थानों को सेवन करने वाले प्राचार्य, उपाध्याय आदि पाँच निर्ग्रन्थों तथैव प्रवर्तिनी, अभिषेका आदि पाँच निर्ग्रन्थियों के लिए प्रायश्चित्तविषयक विभिन्न प्रदेश [ ४ ] १४ यूपक स्वरूप और तद्विषयक प्रायश्चित्त दकतीर पर श्रातापना लेने से लगने वाले दोष दकतीर, यूपक तथा प्रतापना विषयक अपवाद एवं यतना साग्नि (अग्निसहित) शय्या का निषेध साग्नि शय्या के भेद-प्रभेद उत्सर्ग और अपवाद-विषयक विस्तृत चर्चा अनुज्ञापना आदि त्रिविध यतना ज्योतियुक्त उपाश्रय में निवास करने से लगने वाले दोषों का प्रतिलेखनादि पतनान्त पदों द्वारा निरूपण, तद्विषयक प्रायश्चित्त, अनवाद एवं तत्सम्बन्धी यतना [प्रसङ्गवश पणितशाला आदि छह शालाओं का निरूपण, गाथा ५३६०-६१] दीपक के प्रकार, तयुक्त उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोषों का प्रतिमादहनादि पदों द्वारा निरूपण, तद्विषयक प्रायश्चित्त, अपवाद और यतना ४-७ सचित्त तथा सचित्त प्रतिष्ठित इभु के भोजन एवं विदशन का निषेध ८- ९१ इक्षु के सचित्त तथा सचित्त प्रतिष्ठित विभिन्न विभागों के भोजन एवं विदशन का निषेध इक्षु के अन्तरिक्षु आदि विभिन्न विभागों की व्याख्या १२ - १३ अरण्य आदि में जाते- प्राते लोगों से प्रशनादि लेने का निषेध वन-यात्रा के हेतु जाते- प्राते यात्रियों से प्रशनादि लेने से दोष तथा अशिवादि अपवाद वसुरातिक (संयमी ) को अवसुरातिक (असंयमी ) कहने का निषेध गाथाङ्क ५३२५ ५३२६ ५३२७-५३३७ ५३३८-५३४१ ५३४२-५३४५ ५३४६-५३५१ ५३५२-५३५३ ५३५४-५३७३ ५३७४ ५३७५-५४०३ ५४०४- ५४०६ ५४१० ५४११-५४१२ ५४१३-५४१६ पृष्ठाङ्क ५० ५१ ५१-५३ ५४ ५५ ५६-५७ ५७-६५ ५७ ५७-५६ ५६ ५६-६४ ६१ ६४-६५ ६५ ६५ ६५-६६ ६६ ६६-६७ ६७-७२ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय पृष्ठाङ्क ६७-७२ ७२-७३ १५ ७३-१०० ७३ ७५-८७ ७५-७७ [ ५ ] सूत्रसंख्या गाथाङ्क मूलसूत्रगत वसुराति या सिराति शब्द की विभिन्न नियुक्तियाँ, वसुराति के प्रति असद्गुणोद्भावन के कारण, संविग्नों की असंविग्नों द्वारा की जाने वाली अवहेलना और उसका प्रतिवाद, तथा प्रस्तुत निषेध का अपवाद ५४२०-५४४१ अवसुरातिक को वसुरातिक कहने का निषेध ५४४२-५४४६ वसुरातिक गण से अवसुरातिक गण में संक्रमण का निषेध काल की दृष्टि से उपसम्पदा के तीन प्रकार ५४५१-५४५३ गच्छवास के गुण और उनकी व्याख्या ज्ञान-दर्शनादि की अभिवृद्धि के लिए गणान्तरोपसम्पदा की स्वीकृति ज्ञानार्थ उपसम्पदा ५४५६-५५२२ सूत्र, अर्थ आदि के ज्ञानार्थ को जाने वाली उपसम्पदा और उसके भीत आदि पाठ अतिचार, उनका स्वरूप एवं तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त ५४५६-५४७२ निष्कारण प्रतिषेधक प्रादि के निकट उपसम्पदा स्वीकार करने की विधि ५४७३-५४७४ अप्रतिषेधक आदि से सम्बन्धित अपवाद ५४७५-५४८० व्यक्त तथा अव्यक्त शिष्यों का स्वरूप, उन्हें उपसम्पदा लेने के लिए साथ में अन्य साधु को भेजने के सम्बन्ध में प्रतीच्छनीय प्राचार्य एवं मूलाचार्य-सम्बन्धी प्राभाव्य एवं अनाभाव्य का विभाग ५४८१-५४८९ प्राचार्य-उपाध्याय आदि की आज्ञा के विना उपसम्पदा स्वीकार करने वाले शिष्य एवं प्रतीच्छक प्राचार्य को प्रायश्चित्त और आज्ञा न देने के कारण ५४६०-५४६१ ज्ञानार्थ उपसम्पदा की विधि ५४६२-५५२२ दर्शनार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि ५५२३-५५३८ चारित्रार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि ५५३६-५५५० निर्ग्रन्थी-विषयक ज्ञानादि उपसम्पदा ५५५१-५५५२ संभोगार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि ५५५३-५५७० प्राचार्य-उपाध्यायार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि। ५५७१-५५६३ १७-२५ कलह के कारण संघ से निष्क्रान्त भिक्षुओं के साथ अशनादि, वस्त्रादि, वमति एवं स्वाध्याय के दानादान का निषेध ७७-७४ ७६-८० ८०-८१ ८१-८७ ८७-८९ ८९-१२ १२ ६२-६६ ६६-१०० १००-१०५ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क पृष्ठाङ्क १०१-१०५ १०५-५२४ १०६-१०७ १८८-१८४ १८-११० अपक्रमण के प्रकार, बहुग्तादि सात निह्नवों का परिचय, निह्नवों के साथ अशनादि-दानादान सम्बन्धी प्रायश्चित और अपवाद ५५६४-५६३३ पाहारादि की दृष्टि से सुलभ जनपदों के रहते अनेक दिन-गमनीय अध्वा के विहार का निषेध मूलसूत्रगत 'विह' शब्द का अर्थ और अध्वा के प्रकार ५६३४-५६:५ दिन अथवा रात्रि में गमन और रात्रि-विषयक मान्यता के सम्बन्ध में दो आदेश ५६३६ रात्रि में मार्गरूप अध्वगमन से होने वाले दोषों का वर्णन और तत्सम्बन्धी अपवाद ५६३७-५६४४ पन्य के छिन्नादि दो प्रकार और तदगमन की विधि ५६४५-५६४६ रात्रि में पंथरूप प्रध्वगमन से लगने वाले प्रात्मविराधना प्रादि दोषों का स्वरूप तथा अध्योपयोगी उपकरण न रखने से होने वाले दोप ५६४७-५६५२ अध्वगमन-सम्बन्धी अपवाद के कारण, अध्वोपयोगी उपकरणों का संग्रह तथा योग्य सार्थवाह की शोध ५६५३-५६५७ भण्डी, वहिलक आदि पाँच प्रकार के सार्थ और उनके साथ जाने की विधि ५६५८-५६६० सार्थ और सार्थवाह ग्रादि कैसे है ? सार्थ की खाद्य-सामग्री और पडाव डालने प्रादि की क्या व्यवस्था है ? इत्यादि बातों के सम्बन्ध में उचित जानकारी प्राप्त करने की विधि ५६६१-५६७० आठ प्रकार के सार्थवाह और पाठ ही प्रकार के प्रति प्रात्रिकसार्थ-व्यवस्थापक ५६७१ अध्वगमन-विषयक ५१२० भङ्ग ५६७२-५६७६ सार्थवाह से सहयात्रा की आज्ञा प्राप्त करने की विधि, और भिक्षा आदि से सम्बन्धित यतना ५६७७-५६८२ अध्वगमनोपयोगी अध्व-कल्प का स्वरूप ५६८३-५६८८ अध्वकल्प और आधार्मिक की सदोषता-निर्दोषता के सम्बन्ध में शंका-समाधानादि ५६८४-५६६४ अध्वगमन-विषयक श्वापद, स्तेन, अशिव, दुर्भिक्ष आदि व्याघात और तत्सम्बन्धी यतनायों की सविस्तर विवेचना ५६६५-५७२६ सुलभ जनपदों के रहते विरूप, दस्यु और अनार्य आदि प्रदेशों में विहार करने का निषेध विरूप, प्रत्यंत, अनार्य आदि की व्याख्या ५७२७-५७२८ प्रार्य-पार्यसंक्रम प्रादि संक्रमण-सम्बन्धी चतुर्भङ्गी ५७२६-५७३१ १५०-११२ ११२ ११२-११३ ११३-११५ ११५-११६ ११६-११७ ११७-५२४ १२४-१३१ १२४ १२५ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र संख्या [ ७ ] विषय लिङ्ग-पम्बन्धी आर्य-अनार्य व्यवहार और तद्विषयक चतुर्भङ्गी श्रार्य-क्षेत्र की सीमा प्रार्य क्षेत्र में विहार करने के हेतु अनायंदेश - गमनविषयक चतुगुरु प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में शङ्का समाधान आर्य-क्षेत्र से बाहर विहार करने से लगने वाले दोष और इस सम्बन्ध में स्कन्दकाचार्य का दृष्टान्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि को सुरक्षा एवं अभिवृद्धि के लिए प्रार्य क्षेत्र की सीमा ( गा० ५७३३ ) से बाहर विहार करने की अनुज्ञा और इस सम्बन्ध में सम्प्रति राजो के द्वारा प्रत्यंत देशों में किये गये धर्म प्रचार का उल्लेख २८ - ३३ जुगुप्सित कुलों में प्रशनादि, वस्त्रादि, वसति तथा स्वाध्याय का निषेध जुगुप्सा के प्रकार, जुगुप्सित कुलों में प्रशन-वस्त्रादिग्रहण एवं स्वाध्याय से होने वाले दोष प्रपवाद और तत्नम्बन्धी यतना ३४-३६ पृथ्वी, संस्तारक और आकाश (ऊंचाई) पर प्रशनादि खने का निषेध पृथ्वी, संस्तारक प्रादि पर प्रशनादि-निक्षेप से होने वाले दोष, अपवाद और यतना ३७-३८ अन्यतीर्थी तथा गृहस्थों के साथ एक पात्र तथा एक पंक्ति में भोजन करने का निषेध अन्यतीर्थी तथा गृहस्थों के भेदानुभेद, उनके साथ भोजन करने से दोप, प्रायश्चित्त और अपवाद ३६ ग्राचार्य तथा उपाध्याय के शय्या संस्तारक को पैर से संघट्टित कर देने पर बिना क्षमा माँगे चले जाने का निषेध ४० प्रमाणातिरिक्त और गणनातिरिक्त उपधि रखने का निध उपधि के भेद-प्रभेद उपधि के प्रमाणादि की सूचक द्वार-गाथा १. प्रमाण-द्वार जिन-कल्पिक प्रौर स्थविर - कल्लिक की पात्र सम्बन्धित उपधि की संख्या गाथाङ्क ५७३२ ५७३३ ५७३४-५७३८ ५७३६ ५७४०-५७४३ ५७४४-२७५८ ५७५६-५७६४ ५७६५-५७७० ५७७१-५७८० ५७८१-५७८४ ५७८६ ५७८७-५८१२ ५७८७ ५७८५ पृष्ठाङ्क १२५ १२५ १२५-१२६ १२६ १२७-१२८ १२८-१३१ १३१-१३३ १३२-१३३ १३३–१३४ १३३-१३४ १३४-१३६ १३४-१३६ १३७ १३८ - १६० १३८ १३८ १३८-१४२ १३८ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रसंख्या विषय जिन-कल्पिक की शरीर-सम्बन्धित उपधि की संख्या जिन -कल्पिक की जघन्य, मध्यम एवं उत्कृट उपधि की संख्या और उसका प्रभाग ( कल्प, पात्रक बन्ध और रजस्त्राग का नाप ) गच्छवासियों के कल्प का प्रमाण और उसका कारण ग्रीष्म, शिशिर तथा वर्षा ऋतु प्राश्रित पटलकों की संख्या और उसका प्रमाण रजोहरण का स्वरूप और उसका प्रमाण संस्तारक, उत्तरपट्ट, चोलपट्ट, मुखवस्त्रिका, गोन्टग, पात्रप्रत्युपेक्षणिका और पात्रस्थापन का प्रमाण हीनाधिक वस्त्र को लेकर एक-दूसरे की निन्दा न करने का श्रादेश [८] कल्प के गुण और उसका उत्सर्ग एवं अपवाद की दृष्टि से प्रमाण २. हीनातिरिक्त द्वार कम या अधिक उपधि रखने से होने वाले दोष ३. परिकर्म-द्वार वस्त्र - परिकर्म-विषयक सकारण अकारण पद के साथ विधिfift पद की चतुभंडी, तथा विधि परिकर्म और प्रविधि - परिकर्म का स्वरूप ४. विभूषा- द्वार विभूषा- निमित्तक उपधि- प्रक्षालन करने वाले को प्रायश्चित्त और उसके कारण ५ मूर्च्छा-द्वार मूर्च्छा से उपधि रखने वाले को दोष और प्रायश्चित्त पात्र विषयक विधि पात्र के प्रमाण आदि की सूचक द्वार-गाथा १. प्रमाणातिरेक - हीनदोष द्वार शास्त्रोक्त दो पात्र से अधिक तथा विहित प्रमाण से बड़े पात्र रखने से होने वाले दोष और प्रायश्चित शास्त्रोक्त संख्या से कम तथा विहित प्रमाण से छोटे पात्र रखने से होने वाले दोष और प्रायश्चित्त पात्र का प्रमाण (नाम) २. अपवाद द्वार गाथाङ्क ५७८८ ५७८६-५७६३ ५७६४-५७१५ ५८०३-५८०६ ५८०७ ५७६६-५७६६ १४० ५८००-५८०२ १४० '२८०८-५८१२ ५८१३ ५८१४- ५८१५ ५८२०-५८२१ ५८२२-५८८५ ५८२२-५८२३ ५८२४-५८३६ ५८२४- ५८२७ पृष्ठाङ्क ५८२८-५८३६ ५८३७-५८३६ ५८४०-५८४५ १३८ १३८ - १३६ १३६ ५८१६-५८१६ १४३ १४०-१४१ १४१ १४१-१४२ १४२ १४२ १४४ १४४ - १५७ १४४ १४४-१४७ १४४-१४५ १४५ - १४७ १४७ १४७-१४८ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठाकू १४८-१४६ सूत्रसंख्या विषय . गाथाङ्क संख्या से अधिक या कम, और प्रमाण से बड़े या छोटे पात्र रखने का अपवाद ३. लक्षणाऽलक्षण द्वार ५८४६-५८५१ पात्र के सुलक्षण तथा प्रपलक्षण, तद्विषयक गुण-दोष एवं प्रायश्चित ४. त्रिविधोपधि द्वार ५८५२ पात्र के तुम्बा भादि तथा यथाकृत प्रादि तीन प्रकार और उनके लेने का क्रम ५. विपर्यस्त द्वार ५८५३ पात्र-ग्रहण के क्रम को भंग करने से होने वाले दोष एवं प्रायश्चित्त ६. कः द्वार ५८५४ पात्र की याचना करने वाले अधिकारी निर्ग्रन्थ का स्वरूप ७. पौरुषी द्वार ५८५५ पात्र की याचना का समय ८. काल-द्वार ५८५६-५८५७ कितने दिनों तक पात्र की याचना करनी चाहिए ? ६. आकर द्वार ५८५८-५८६१ पात्र-प्राप्ति के योग्य स्थान और तत्सम्बन्धी विधि १०. चाउल द्वार ५८६२-५८६७ तन्दुल-धावन, तथा उष्णोदक आदि से भावित कल्पनीय पात्र, और उसके ग्रहण की विधि ११. जघन्य यतना द्वार ५८६८-५८७४ पात्र-ग्रहण विषयक जघन्य यतना १२-१३. चोदक तथा असति अशिव द्वार ५८७५-५८७७ जघन्य यतना-विषयक शंका-समाधान १४. प्रमाण-उपयोग-छेदन द्वार ५८५८-५८८३ प्रमाण-युक्त पात्र के न मिलने पर उपलब्ध पात्र के छेदन का विधान १५. मुख प्रमाण द्वार ५८८४-५८८५ पात्र-मुख के तीन भेद और उनका प्रमाण मात्रक-विषयक विधि ५८८६-५६०१ १५०-१५१ १५१-१५३ १५३-१५४ १५४-१५५ १५५-१५६ १५६-१५७ १५७-१६० Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रसंख्या विषय मात्रक के ग्रहरण का विधान मात्रक न लेने से होने वाले दोषों की द्वार-गाथा [१०] १. अग्रहरणे वारत्रक द्वार मात्रक न रखने से लगने वाले दोष धीर वारत्रक का दृष्टान्त २. प्रमाण-द्वार मात्रक का प्रमाण और इस सम्बन्ध में तीन प्रादेश सूत्रोक्त विशेषरण - विशिष्ट पृथ्वी प्रादि पर उच्चार- प्रस्रवण करने के दोष भौर अपवाद छोटे-बड़े भ्राताओं के उल्लेख के साथ चूर्णिकार का अपना परिचय सप्तदश उद्ददेशक षोडश और सप्तदश उद्देशक का सम्बन्ध १ - २ कौतूहल से त्रस प्राणियों को बांधने तथा छोड़ने का निषेध ३ - ५ कौतूहल से तृणमाला, मुजमाला आदि मालाओं के निर्माण, एवं धारण आदि का निषेध ६-८ कौतूहल से लौह आदि धातुओं के निर्माण एवं धारण प्रादि का निषेध गाथाङ्क ३-४ हीनद्वार - अधिकद्वार शास्त्र - विहित प्रमाण से छोटा या बड़ा मात्रक रखने से दोष ५-६ शोधि, अपवाद, परिभोग, ग्रहण तथा द्वितीय पद द्वार श्राचार्य, बाल, वृद्ध, तपस्वी एवं रोगी प्रादि के लिए मात्रक का ग्रहण, तथा निष्कारण स्वयं मात्रक का उपयोग करने पर प्रायश्चित्त आदि । मात्रक के लेप की विधि ५६०० पाणि-प्रतिग्रही यादि जिन कल्पिक, परिहार- विशुद्धि, माहालन्दिक, स्थविर कल्पिक तथा निग्रन्थियों का उपधि-विभाग ५६०१ ४१-४५ सचित्त, सस्निग्ध तथा जीव-प्रतिष्ठित प्रादि पृथ्वी पर उच्चार-प्रस्रवरण करने का निषेध ४६-४८ जीव- प्रतिष्ठित शिला आदि पर उच्चार-प्रस्रवण करने का निषेध ४६-५१ थूणा श्रादि, कुण्ड आदि, प्राकार आदि पर उच्चारप्रस्रवण करने का निषेध ५८६६-५८८७ १५७ १५.७ ५८८६-५८६० १५८ ५८ ५८६१-५८६३ ५८६४ -५८६६ ५८६७-५८६६ ५६०२-५६०३ ५६०४ ५६०५-५६०६ ५६१०-५६११ पृष्ठाङ्क १५८-१५६ १५६ १५६ - १६० १६० १६१ १६१-१६२ १६२ १६२ १६२-१६३ १६३ १६५ १६५-१६६ १६६ ५६१२-५६१३ १६६-१६७ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठाङ्क १६७ १६८ १६६-१७६ १७६-१८७ १८७-१६० १८७ १८७ १८ सूत्रसंख्या विषय गायाङ्क t-११ कौतूहल से हार, अर्धहार आदि के निर्माण एवं धारण ___आदि का निषेध ५६१४-५६१५ १२-१४ कौतूहल से अजिन, कम्बल आदि के निर्माण एवं धारण आदि का निषेध ५६१६-५६१७ १५-६७ निन्थी को निग्रन्थ के पाद, काय, व्रण आदि का अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ से प्रमार्जन, परिमर्दन, उद्वर्तन एवं प्रक्षालन आदि करने का निषेध ५६१८-४६३० ६८-१२० निग्रन्थ को निन्थी के पाद, काय, व्रण आदि का अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ से प्रमार्जन, परिमर्दन, उद्वर्तन तथा प्रक्षालन आदि कराने का निषेध ५६३१ १२१ सदृश निर्ग्रन्थ को उपाश्रय में विद्यमान स्थान न देने वाले निग्रन्थ को प्रायश्चित्त सहशता की व्याख्या ५६३२ दशविध स्थित कल्प ५६३३ स्थापना-कल्प के दो प्रकार और उत्तरगुण-कल्प ५६३४-५६३५ सदृश का आदेशान्तर, स्थान न देने पर प्रायश्चिन, तथा निर्ग्रन्य के प्रागमन के कारण ५६३६-५६३८ वसति से बाहर रहने में दोष तथा वसति-दान के अपवाद, यतना मादि १२२ सदृश निग्रन्थी को उपाश्रय में विद्यमान स्थान न देने वाली निग्रन्थी को प्रायश्चित्त ५६४८ १२३ माला-हृत अशनादि लेने का निषेध मालाहृत के ऊर्ध्व, अधः प्रादि भेद-प्रभेद; दोष, प्रायश्चित्त तथा अपवाद २६४६-१९५३ १२४ कुशूल आदि में रखे हुए, फलतः कठिनता से ऊँचे-नीचे होकर दिये जाने वाले प्रशनादि का निषेध ५९५४ ५२५ वृत्तिका से लिप्त, फलतः भेदन करके दिये जाने वाले अशनादि का निषेध ५६५५-५६५७ १२६-१२६ पृथ्वी, जल, अग्नि और वनस्पति पर रखे हुए प्रश नादि का निषेध पृथ्वी आदि और निक्षिप्त के प्रकार, दोष, शंकासमाधान, अपवाद और तद्विषयक यतना ५६५८-५६६४ १८८ ५६३६-५६४७ १८६-१६० १६१ १६१ १६१ १६१-१६२ १६२ १६२-१६३ १६३-१६४ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२ ] सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क पृष्ठात १३०-१३१ सूर्प आदि से शीतल करके दिये जाने वाले अत्यन्त ऊष्ण तथा उष्णोष्ण (गरमागरम) प्रशनादि का निषेध ५६६५-५६६८१६४ १३२ पूर्ण रूप से शस्त्र-परिणत होकर अचित्त न हुए, इस प्रकार के उत्स्वेदिम आदि जल का निषेध १६५-१६६ उत्स्वेदिम प्रादि की व्याख्या, जन की प्रचित्तता के परिज्ञान के सम्बन्ध में शङ्का-समाधान, अपवाद प्रादि ५६६१-५६७६ १६५-१६६ १३३ अपने आचार्य-योग्य लक्षणों के कथन का निषेव । १९७-१६८ प्राचार्य के लक्षण, लक्षण-कथन से होने वाले दोष प्रादि ५६७७-५९८६ १९७-१९८ १३४ गायन-वादन-नृत्य आदि करने का निषेध ५६८७-५६६३ १९९-२०० १३५-१५० भेरी आदि, वीणा आदि, ताल आदि, वप्र आदि के शब्द सुनने की अभिलाषा का निषेव । ५६६४-५६६६ २००-२०३ १५१ लौकिक तथा पारलौकिक आदि विविध रूपों में आसक्ति रखने का निषेध अष्टादश उद्देशक सप्तदश और अष्टादश उद्देशक का सम्बन्ध ५६६७ १ विना प्रयोजन नाव पर चढ़ने का निषेध ५६६८-६०८० २८५ २-५ नाव के खरीदने आदि का निषेध ६०८१-६०८४ २०६-२८७ ६-७ स्थल से जल में और जल से स्थल में नाव के खींचने का निषेध २०७ ८-६ नाव में से जल को उलीचने और कीचड़ में से फंसी नाव को बाहर निकालने का निषेध १० नाव में पानी भरता देख छिद्र को हस्तादि से बन्द करने का निषेध २०८ ११ दूरस्थ नाव को अभीष्ट स्थान पर मंगाने का निषेध १२-१३ ऊर्श्वगामिनी आदि तथा योजनमामिनी आदि नाव में बैठने का निषेध २०८ १४-१६ नाव को खींचने, खेने, निकालने और जलरिक्त करने आदि का निषेध २०८-२११ उत्तिङ्ग आदि की व्याख्या तथा अपवाद, प्राचार्य मादि एवं निग्रन्थी को पूर्वापर रूप से नौका द्वारा पार उतारने का क्रम ६०१२-६०२३ २०८-२११ ६०१० २०८ ६०११ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठाङ्क २१२-२३ २१३-२१८ २१६ २१६-२२४ २२४-२२५ २२५-२२६ [ १३ ] सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क २०-२३ नौका-स्थित लोगों से प्रशनादि ग्रहण करने का निषेध ६०२४-६०२६ २४-७४ वस्त्र खरीदने आदि का निषेध (चतुर्दश उद्देशक के । पात्र-प्रकरण के समान) ६०२७ एकोनविंशतितम उद्देशक अष्टादश और एकोनविंशतितम उद्देशक का सम्बन्ध ६०२८-६०२६ १-७ विकट के खरीदने आदि का निषेध और ग्लानापवाद ६०३०-६०५३ __ ८ चार संध्याओं में स्वाध्याय का निषेध ६०५५-६०५८ ९-१० संध्या आदि में कालिक श्रुत एवं दृष्टिवाद के क्रम से ३ तथा ७ से अधिक प्रश्न पूछने का निषेध ६०५६-६०६३ ११-१२ इन्द्र महोत्सवादि चार महामहोत्सवों और ग्रीष्म कालीन आदि महाप्रतिपदाओं में स्वाध्याय का निषेध ६०६४-६०६८ १३ पौरुषी स्वाध्याय के अतिक्रमण का निषेध १४ स्वाध्याय-काल में स्वाध्याय न करने पर प्रायश्चित्त ६८७०-६०७३ १५ अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने का निषेध प्रस्वाध्याय के भेद-प्रभेद ६०७४ अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने पर दण्ड मोर इस सम्बन्ध में राजा का दृष्टान्त ६०७५-६०७८ संयमघाती प्रस्वाध्याय ६०७६-६०८४ पौत्पातिक अस्वाध्याय ६०८५-६०८७ दिव्यकृत प्रस्वाध्याय ६०८८-६०६३ विग्रह-सम्बन्धी प्रस्वाध्याय ६०६४-६०६८ शरीर-सम्बन्धी प्रस्वाध्याय ६०६६-६११७. काल-प्रतिलेखना-सम्बन्धी सहा-समाधान तथा अपवाद प्रादि ६१५८-६१६४ १६ स्वशरीर-समुत्थ अस्वाध्याय में स्वयं स्वाध्याय करने का निषेध ६१६५-६१७६ १७ पहले के समवसरणों का वाचन किये विना अग्रिम समवसरणों के वाचन का निषेध ६१८०-६१८३ १८ नव ब्रह्मचर्य (प्राचारांग) का वाचन किये विना उत्तर या उत्तम श्रुत (छेद-सूत्र आदि) के वाचन का निषेध उत्तम श्रुत की व्याख्या, प्रायंरक्षित के द्वारा युगानुसार अनुयोगों का पृथक्करण, अनुयोगों का क्रम, दोष तथा ६१८५-६१६५ २२६-२२७ २२७ २२७-२२८ २२०-२४४ २२६ २२६-२३१ २३१-२३२ २३२-२३३ २३३-२३४ २३४-२३६ २३१-२४४ २४६-२५१ २५२ २५२-२५५ अपवाद २५३-२५५ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठाङ्क २५५ २५५ २५५-२६२. २५५-२६० २६२-२६३ २६२-२६३ २६३-२६४ [ १४ । सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क १६ अपात्र (अयोग्य) को वाचना देने का निषेध २० पात्र को वाचना न देने पर प्रायश्चित २१ क्रम से अध्ययन न करने वाले को वाचना देने का निषेध २२ क्रमशः अध्ययन करने वाले को पाचना न देने पर प्रायश्चित्त तिन्तणिक आदि अपात्र तथा प्रदृष्टभाव' मादि अव्यक्त की विस्तृत व्याख्या, दोष एवं अपवाद ६१६८-६२३६ २३-२६ अब्यक्त तथा अप्राप्त को वाचना देने का निषेध और व्यक्त तथा प्रात को वाचना न देने पर प्रायश्चित व्यक्त और अव्यक्त की परिभाषा, अप्राप्त-सम्बन्धी चतुर्भङ्गी, दोष तथा अपवाद ६२३७-६२४३ २७ दो समान गुणवाले अध्येताओं में से एक को अध्ययन कराने और दूसरे को अध्ययन न कराने की भेद-बुद्धि का निषेध ६२४४-६२५६ २८ प्राचार्य तथा उपाध्याय द्वारा प्रदत्त वाणी के ग्रहण का निषेध वाणी के भेद, अदत वाणी-ग्रहण के कारण, तप:स्तेन मादि, मावस्तेन के सम्बन्ध में गोविन्द वाचक का उदाहरण, दोष तथा अपवाद ६२५०-६२५७ २६-४० अन्यतीर्थी, गृहस्थ, पार्श्वस्थ तथा कुशील आदि के साथ वाचना के दानाऽदान व्यवहार का निषेध . अन्यतीर्थी प्रादि को वाचना देने-लेने पर प्रायश्चित्त, वाचना के देने-लेने से दोष स्वपाषण्डी और अन्यपाषण्डी की व्याख्या. अपवाद और तद्विषयक यतना ६२५८-६२५१ विंशतितम उद्देशक एकोनविंशतितम और विंशतितम उद्देशक का सम्बन्ध ६२७२ १ मासिक परिहार-स्थान के दोषी को परिकुञ्चित तथा अपरिकुञ्चित पालोचना के भेद से प्रायश्चित्त भिक्षु-पद के निक्षेप और तत्सम्बन्धी शङ्का-समाधान ६२७३-६२८१ मास पद के निक्षेप और नक्षत्रादि मासों का प्रमाण ६२८२-६२६१ परिहार-पद के निक्षेप ६२६२-६२६५ स्थान-पद के निक्षेप ६२६६-६३०२ २६५-२६६ २६५-२६६ २६६-२६६ २६६-२६६ २७१ २७१-३०४ २७२-२७४ २७४-२७६ २७६-२८० २८०-२८२ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठा २८२-२८३ २८३-२८४ २८४-२८६ २८६-३०० ३००-३०२ ३०३ ३०३-३०४ ३०४-३०५ ३०५-३०७ ३०५-३०७ [ १५ ] सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क प्रतिसेवना के भेद-प्रभेद और तद्विषयक शङ्का-समाधान । ६३०३-६३०८ शल्योदरण के लिए आलोचना भोर उसके तीन प्रकार ६३०६-६३११ विहारालोचना ६३१२-६३२२ उपसम्पदालोचना ६३२३-६३७६ अपराधालोचना ६३७७-६३६० माया-मद मुक्त मालोचना के गुण ६३६१-६३६२ मालोचनाहं के दो प्रकार-मागम व्यवहारी और श्रुत-व्यवहारी ६३६३-६३६५ मायावी मालोचक को अश्व प्रौर दण्डिक के दृष्टान्तों द्वारा उद्बोधनादि ६३६६-६३१८ २-६ द्विमासिक प्रादि परिहार-स्थान के दोषी को परिकुञ्चित तथा अपरिकुञ्चित पालोचना के भेद से प्रायश्चित्त दिमामादि परिकुञ्चित मालोचना के विषय में यथाक्रम कुचित तापस, शल्य,मालाकार प्रादि के उदाहरण तथा छः मास से अधिक तपः प्रायश्चित्त न देने का हेतु ६३६६ ७-१२ अनेक बार मासिक आदि परिहार-स्थान सेवन करने वाले को परिकुचित एवं अपरिकुचित आलोचना के भेद से प्रायश्चित्त एक बार और अनेक गर के दोषी को समान प्रायश्चित्त देने के सम्बन्ध में शड्डा-समाधार तथा रासम-मूल्य, कोष्ठागार एवं खल्वाट के उदाहरण ६४००-६४२७ १३ मासिक आदि परिहार स्थानों के प्रायश्चित्त का संयोगसूत्र संयोग-सूत्र के सम्बन्ध में शङ्का-समाधान ६४१८-६४१६ १४ बहुशः मासिक आदि परिहार-स्थानों के प्रायश्चित्त का संयोग-सूत्र संयोग-सूत्रों के . अन्य प्रकार, उनकी रचना-विधि, पौर तत्सम्बन्धी शङ्का-समाधान ६४२०-६४२६ १. स्थापना-संचय द्वार ६४२७-६४६२ स्थापना तथा प्रारोपणा की व्याख्या और उनके प्रकार प्रादि २. राशि द्वार ६४६३-६४६५ प्रायश्चित्त-राशि की उत्पत्ति के असंयम स्थान ३. मान द्वार विभिन्न तीर्थङ्करों की अपेक्षा से प्रायश्चित्त के मान (प्रमाण) की विविधता ४. प्रभु द्वार ६४६७-६४६८ ३०८-३१३ ३०८-३१३ ३१३-३१४ ३१३-३१४ ३१४-३६० ३१४-३१८ ३१८-३३० ३३० ३३०-३३१ ३३१ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क पृष्ठाङ्क प्रायश्चित्त-दान के योग्य अधिकारी ५. कियान द्वार ६४६१-५६६ ३३१-३३८ प्रायश्चिनों की गणना तथा कृत्स्न और प्रकृत्स्न प्रारोपणा अतिक्रमादि के सम्बन्ध में विचार-चर्चा ६४६७-६४६६ ३३८-३३६ नवम पूर्व से निशीथ का उद्धार ३३६ अनेक दोषों की शुद्धि के लिए एक प्रायश्चित्त देने का हेतु, इस सम्बन्ध में घृत-कुट आदि के उदाहरण तथा अन्य आवश्यक शङ्का-समाधान ६५०५-६५२६ ३३६-३४६ मूल व्रतातिचार तथा उत्तर गुणातिचार-सम्बन्धी चर्चा ६५२७-६५३५ ३४६-३४८ प्रायश्चित्त वहन करने वालों के भेद-प्रभेद ६५३६-६५७४ ३४६-३६० १५-१६ चातुर्मासिक, सातिरेक चातुर्मासिक आदि पालोचना-सूत्र ३६०-३६७ प्रालोचक के गुण एवं दोष तथा प्रालोचना-विधि ६५७५-६५८३ ३६१-३६७ १७-२० चातुर्मासिक, सातिरेक चातुर्मासिक आदि अारोपणा-सूत्र ३६७-३८६ परिहार तप और शुद्ध तप की विवेचना ६५८४-६६०४ ३६६-३७५ वैयावृत्य के तीन प्रकार तथा प्राचार्य के गुण ६६०५-६६१५ ३७५-३७७ आरोपणा के भेद-प्रभेद तथा आलोचना की चतुर्भनी ६६.६-६६४७ ३७७-३८७ २१-५३ प्रायश्चित्त-स्वरूप तप वहन करते हए बीच में लगे दोषों का प्रायश्चित्त निशीथ के निर्माता विशाखागणी की प्रशस्ति प्रायश्चित वहन करने वालों के कृत करणादि भेद-भेद ६६४८-६६६५ ३६६-४०१ निशीथ-कल्प के श्रद्धान कल्प प्रादि चार प्रकार ६६६६-६६७६ ४०१-४०४ प्रायश्चित्त-प्रदान के हेतु ६६७७-६६७६४०४ दशविध प्रायश्चित्तों का ऐतिहासिक काल-क्रम ६६८० प्रोधनिष्पन्न तथा विस्तार निष्पन्न के भेद से प्रायश्चित्त के दो प्रकार ६६८१-६६८२ ४८५ उत्सगं और अपवाद के आचरण की विधि, अथवा छेद-सूत्रों में प्रतिसूत्र-प्रतिषेध, अपवाद आदि चतुर्विध अनुयोग-विधि ६६८३-६६६८ ४०५-४०६ अनुयोगधर की ओर से स्वगौरव का परिहार ६६६ ४०६ निशीथ-सूत्र के अनेकविध अर्थाधिकार ६७००-६७०१ ४०६-४१० निशीथ-सूत्र के अधिकारी और अनधिकारी ६७०२-६७०३ ४१० निशीथ-चूर्णिकार की स्वनामोल्लेखपूर्वक प्रशस्ति ४११ निशीथ-चूणि के विंशतितम उद्देशक की संस्कृत में सुबोधा व्याख्या ४१३-४४३ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ४४७-५३५ ५३६-५४१ ५४२-५४४ १. प्रथम परिशिष्ट भाष्यगाथा-सूची २. द्वितीय परिशिष्ट उधृत गायादि के प्रमाण ३. तृतीय परिशिष्ट प्रमाणत्वेन निदिष्ट ग्रन्थ ४. चतुर्थ परिशिष्ट भाष्य-चूर्ण्यन्तर्गत दृष्टान्त ५. पञ्चम परिशिष्ट विशेष नामों की विभागशः अनुक्रमणिका षष्ठ परिशिष्ट सुभाषित-सुधासार ५४५-५५१ ५५२-५७० ५७१-५७२ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "अपक्षपातेन यदर्थनिर्णयस् , तदेव धर्मः परमो मनीषिणाम् ।" - विना किसी पक्ष-पात के यथार्थ सत्य का निर्णय करना ही, विद्वानों का परम धर्म है। * Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ-सूत्रम् [ भाष्य-सहितम् ] आचार्यप्रवर श्री जिनदासमहत्तर-विरचितया विशेषचूा समलंकृतम् विंशतितमोद्देशकस्य सुबोधाख्यया संस्कृत-व्याख्यया सहितञ्च चतुर्थों विभागः . उद्देशका १६-२० Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ण वि किंचि अणुण्णायं, पडिसिद्ध वा वि जिणवरिंदेहिं । . एसा तेसिं आणा, कज्जे सच्चेण होयव्वं ॥ ५२४८ ॥ दोसा जेण निरुभंति, जेण खिज्जति पुवकम्माई। सो सो मोक्खोवानो, रोगावत्थासु समणं व ॥ ५२५० ।। -भाष्यकार। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उदेशक: उक्तः पंचदशमोद्दे शकः । इदानीं षोडशः प्रारभ्यते, तत्रायं सम्बन्व : - देहविभूसा बंभस्स अगुत्ती उज्जलोवहित्तं च । सागारित य (वि) वसतो, बंभस्स विराहणाजोगो ||५०६५ || पंचमुद्देगे देहविभूसाकरणं उज्जलोवधिधारणं च णिसिद्ध मा गंभवयस्स प्रगुत्ती पसंगतो मा बंभव्वयस्स विराहणा भविस्सति । इहावि सोलसमुद्देसगे मा भगुती बंभविराहणा वा मतो सागारियवस हिणिसेहो कज्जति । एस सम्बन्धो ॥ ५०६५ ।। एतेण सम्बन्धेणागयस्स सोलसमुद्देसगस्स इमं पढमं सुत्तं जे भिक्खू सागारियसेज्जं अणुपविसर, अणुपविसंतं वा सातिज्जति ॥ १ ॥ सह श्रागारीहि सागारिया, जो तं गेण्हति वहि तस्स प्राणादी दोसा, चउलहुं च से पच्छितं ॥ सन्नासुतं सागारियं ति जहि मेहुणुब्भवो होइ । जत्थित्थी पुरिसा वा, वसंति सुत्तं तु सट्टाणे ॥ ५०६६ ।। जं सुत्ते "सागारियं" ति एसा सामयिकी संज्ञा । जत्थ वसहीए ठियाणं मेहुणुग्भवो भवति सा सागारिगा, तत्थ चउगुरुगा । अघवा जत्य इत्थिपुरिसा जसंति सा सागारिका, इत्विसागारिंगे चउगुरुगा सुत्तनिवातो । "सट्टाणि" त्ति जा पुरिससागारिगा, णिग्गंधीगं पुरिससागारिंगे चउगुरुगा । सेसं सहेत्र ।। ५०६६ ।। स सु । www मणिज्जुतिवित्थरो सागारिया उ सेज्जा, ओहे य विभागओ उ दुविहाओ । ठाण - पडिवणार, दुबिहा पुण ग्रोह होति ॥ ५०६७ || सामारिया सेज्जा दुविहा - श्रहेण विभागम्रो च । श्रोहेण पुण दुविधा - ठाणातो पडिसेवणादो प्र । एतेसु पन्छितं भणिहिति ॥५०६७॥ सागारियणिक्खेवो, चउव्विहो होइ श्रणुपुवीए । णामं ठवणा दविए, आवे य चउव्विहो भेदो ||५०६८ || Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - १, सागारिगणिक्खेवो णामठवणादिगो चउव्विधो कायव्वो । स पश्चार्धेन कृतश्चतुविधः । दव्वे भागमस्रो, णो भागमप्रोय ||५०६८ ।। णो आगमी जाणग-भवियव्वइरित्तं दव्वसागारियं इमं "रूव "त्ति अस्य व्याख्या रूवं भरणविही, वत्थालंकारभोगणे गंधे | आज्ज णट्ट णाडग, गीए सयणे य दव्वम्मि || ५०६६ || → जं कटुकम्ममादिसु, रूयं सट्टाणे तं भवे दव्वं । जं वा जीवविमुक्कं विसरिसरूवं तु भावम्मि || ५१०० ॥ रूवं णाम जं कट्ठचित्तले कम्मे वा पुरिसरूवं कयं प्रहवा - जीवविप्यमुक्कं पुरिससरीरं तं "सट्ठाणे" ति गिग्गंथाणं पुरिसरूवं दव्त्रसागारियं, जे इत्यीसरीरा तं भावसागारियं । एतेसु चेत्र कटुकम्मा दिसु जं इत्थीरूवं तं निग्गंधीणं दव्वसागारियं, जे पुत्र पुरिसरूवा तं तासि भावसागारियं । श्राभरणा कडगादी ज पुरिसंजोग्गा ते गिग्गंथाण दव्त्रे, जे पुण इत्थि जोग्गा ते भावे । इत्यीगं इरिथजोग्गा दवे, पुरिसजोग्गा भावे ।। ५१०० ।। हवा इमं णट्ट "वत्यादि अलंकारं चउन्विहं । भोयणं असणादियं चउत्रिहं । कोट्ठगपुडगादी गंधा घणेगविहा । भाउज्जं चउन्विहं - ततं विततं घणं भुसिरं । उट्टं चउव्विहं - अंचियं रिभियं प्रारभडं भसोलं ति । - - ण ं होत अगीयं, गीयजुयं णाडयं तु तं होइ । हरणादी पुरिसोवभोग दव्वं तु सट्ठाणे ॥ ५१०१ ।। एतेसु इमं च्छित्तं गीतेण विरोहतं ट्ट, गोटेणं जुत्तं गाडगं । गीयं चउन्विहं तंतिसमं तालसमं गहसमं लयसमं च । सयणिज्जं पल्लं कादि बहुप्पगारं । “४दव्वे" त्ति दव्वसागारियमेवमुद्दिट्ठ भोयण-गंधव्व-प्राप्रोज्ज-सयणाणि । उभयले विसरित्तणतो णियमा दव्वंसागारियं चेव, सेसाणि दव्वभावेसु भाणियव्वाणि । सरिसे दव्वसागारिय विसरिसे भावसागारियं ॥ ५१०१ ।। -- एक्क्कम्मि य ठाणे, भोगणवज्जाण चउलहू होंति । चउगुरुग भोयणम्मी, तत्थ वि आणादिणो दोसा || ५१०२ || रूवादिदव्वसागारियप्पगारेसु एक्केककम्मि ठाणे ठायमाणस्स भोयणं वज्जेत्ता सेसेसु च उलहुगा, भोयणं चउगुरु । केसि च श्रायरियाणं - अलंकारवत्थेसु त्रिचउगुरुगा, प्राणादिया य दोसा भवंति । चोदक ग्रह - सव्वे ते साहू, कहं ते दोसे करेज्ज ?, १ गा० ५०६६ । २ गा० ५०६६ । ३ स्वरसाम्येन गानं । ४ गा० ५०६६ । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५०९६-५१०७] षोडश उदेशक: उच्यते - को जाणति "केरिसओ, कस्स व माहप्पता समत्थत्ते । धिइदुब्बला उ केई, डेवेति पुणो अगारिजणं ॥५१०३॥ छउमत्थो को जाणइ णाणादेसियाणं कस्स केरिसो भावो; इस्थिपरिस्सहे उदिण्णे कस्स वा माहप्पता, महंतो प्रप्पा माहप्पता। अहवा - माहप्ता प्रभावो। तं च माहप्पं पभावं वा समत्थता चितिजति । सामत्थं धिती, सारीरा सत्ती । इंदियणिग्गहं प्रति ब्रह्मब्रतपरिपालने वा कस्स किं माहात्म्यमिति । एयम्मि वि अपरिणाए सागारियवसधीए ठियाणं तत्थ जे घितिदुब्बला ते रूवादीहि प्रक्खित्ता विगयसंजमधुरा अगारिट्ठाणं "डेवेंति' - परिभुजंतीत्यर्थः ।।५१०३॥ ते य संजया पुवावस्था इमेरिसा होज्जा - केइत्थ भुत्तभोई, अभुत्तभोई य केइ निक्खंता । रमणिज्ज लोइयं ति य, अम्हं पेयारिसं आसी ॥५१०४॥ भुत्ताऽभुत्ता दो वि भणंति - रमणिज्जो लोइनो धम्मो। जे भुत्तभोगी ते भणंति - मम्हं पि गिहाममे ठियाणं एरिसं खाणपाणादिक आसि ।।५१०४।। कि च - एरिसओ उवभोगो, अम्ह वि आसि (त्ति) ण्ह एण्हि उज्जल्ला । दुक्कर करेमो भुत्ते, कोउगमितरस्स ने दटुं ॥५१०॥ “उवभोगो' ति ण्हाणवस्था भरणगंधमल्लाणुलेवणधूवणवासतंबोलादियाण पुण्वं प्रासी। इण्हिं इदाणि, उज्जल्ला प्राबल्येन, मलिणसरीरा लद्धसुहासादा अम्हे सुदुक्कर सहामो, एवं भुत्तभोगी चिंतयति । "इतर"त्ति प्रभुत्तभोगी, तं तं रूवादि दट्टे कोउग्रं करेजा ॥५१०५।। सति कोउएण दोण्ह वि, परिहेज्ज लएज्ज वा वि आभरणं । अण्णेसिं उवभोगं, करेज्ज वाएज्ज उड्डाहो ॥५१०६॥ "सति" ति पुवरयादियाण सरणं भुत्तभोगिणो, इयरस्स कोउग्रं । एते दोणि वि असुभभावुप्पण्णा वत्थे वा परिहेज्ज, प्राभरणं वा "लएज्ज" ति अप्पणो पाभरेज, अण्णेसि वा वत्थादियाण उवभोगं करेज, वाएज वा पातोज । प्रसंजतो वा संजतं प्रायरियादि द? उड्डाहं करेज ।।५१०६।। कि च - तच्चित्ता तल्लेसा, भिक्खा-सज्झायमुक्कतत्तीया । विकहा-विसुत्तियमणा, गमणुस्सुग उस्सुगब्भूया ॥५१०७॥ तं इत्थीमादी रूव दठ्ठ तदगावयवसरूवचिंतणं चित्तं, तदंगपरिभोगऽज्झवसामो लेसा .(भिक्खा) सरझायादिसंजमजोगकरणमुक्कतत्ती णिवावारादित्यर्थः । वायिगजोगेण संजमाराहणी कहा, तब्विवक्खभूता विकहा। कुसलमणधारणोदीरणेण संजमसासविद्धि (?)करेत्ता सो वस्तमना ततो विगहाविसोति यमणा भवंति। एवं १ को किरिसो, इति बृहत्कल्पे गा० २४५५ । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - १ इत्थिमा दिवसमागमतो उदिष्णमोहाण त्थीपरिभोगुस्सुयभूताणं गमणे प्रोत्सुक्यं भवति । प्रभिप्रेतार्थं त्वरितसम्प्रापणं प्रौत्सुक्यमित्यर्थः ॥ ५१०७॥ रूवं प्राभरणं वा दट्ठ एगो भणाति - "सुटुं" त्ति लट्ठ कयं । बितिम्रो तं भणाति - "एतं विणा सियं प्रविसेसण्णू तुमं, ण जाणसि कि जि" । एवं उत्तरोत्तरेण श्रधिकरणं भवति, प्रशंसतो या रागो, इतरस्स दोसो । “मुच्छ" त्ति मुच्छ्रं वा करेज्ज | मुच्छायो वा सपरिग्गहो होजा । 1 गंपेति चंदनादिणा विलित्ते धूविते वा अप्पाणे उड्डाहो भवति । प्रातोज्ज-गीयसद्दा दिएसु विसोत्तिया भवति ।।५१०८।। कि. च सुट्टु कयं आभरणं, विणासियं ण वि य जाणसि तुमं पि । मुच्छुडाहो गंधे, विसोत्तिया गीयसदेसु ॥ ५१०८|| ॥५११०॥ च्विमिति तीए वसहीए सव्वकालगीतादिसद्देहिं प्रवधियमणस्स पडिलेहणादिकरणं सव्वेसि संजमजोगाणं दव्वकरणं भवति ॥५१०६ ।। णिच्च पि दव्वकरणं, श्रवहितहिययस्स गीयसदेसु । पडिलेहण सज्झाए, आवासग भुंज वेरत्ती ॥ ५१०६ ।। ते सीदिउमारद्धा, संजमजोगेहि वसहिदोसेणं । गलति जतुं तप्पंतं, एवं चरितं मुणेयव्वं ॥ ५११० ॥ तेसि एवं वसहिदो सेणं सीअंताणं 'वरितहाणी । कहं ?, उच्यते । इमो दिट्टंतो - जहा जउ अग्गिणा तप्पंतं गलति एवं जहुत्तसंजमज्ञोगस्स प्रकरणतातो चरित्तं गलति, वसहिदोसेण जो इत्थिमादीविसयोवभोगभावो प्रसुभो उप्पण्णो ' तणिक्खता केई, पुणो वि सम्मेलणाइदोसेणं । वच्चति संभरंता, भेत्तण चरित्तपागारं ॥ ५१११ ॥ तस्मान्निक्खता त वा परित्यज्य नि:क्रान्ता तण्णिक्खता के चिन्न सर्वे । सेसं कंठं । J एगम्मि दोस् तीसु व, मोहावंतेसु तत्थ श्रायरियो | मूलं प्रणवट्टप्पो, पावति पारंचियं ठाणं ।। ५११२ ।। वसहिकरण दोसेण जइ एक्को उष्णिक्खमति तो प्रायरियस्स मूलं, दोसु भ्रणवट्टो, तिसु पारंचियं । जस्स वा वसेण तत्थ ठिता तस्स वा एवं पतिं ।।५११२ ।। दव्वसागारियं गतं । १ उणि इति बृहत्कल्पे गा० २४६३ । . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१०८-५११७ ] षोडश उद्देशकः इदाणि भावसागारियं - 'अट्ठारसविहमबभं, भावउ ओरालियं च दिव्वं च । मणवयणकायगच्छण, भावम्मि य रूबसंजुत्तं ।।५११३।। एयं दव्वसागारियं भयंतेण भावसागारियपि एत्थेव भणियं, तहावि वित्थरतो पुणो भण्णति - तं मावसागारियं भट्टारसविहं प्रबंभ। तस्स मूलभेदा दो - पोरालियं च दिव्वं च। तत्य पोरालिय नवविहं इमं - पोरालियं कामभोगा मणसा गच्छति, गच्छावेति, गच्छंतं अणुजाणति । एवं वायाए वि । कारणं वि । एते तिष्णि तिया णव । एवं दिव्वेण वि णव । एते दो गवगा अट्ठारस । एवं अट्ठारसविहं प्रबंभं भावसागारियं ॥५११३॥ "भावम्मि य रूवसंजुत्तं" त्ति अस्य व्याख्या - अहव अबभं जत्तो, भावो रूवा सहगयातो वा । भसण-जीवजुतं वा, सहगय तन्वज्जियं रूवं ॥५११४॥ अबभभावो जतो उप्पज्जइ तं च रूवं स्वसंजुत्तं वा, कारणे कज्जोवयारामो, तं चेक भावतो प्रबंभं। अहवा- उदिण्णभावो जं पडिसेवति तं च रूवं वा होज्ज, रूवसहगतं वा । तत्थ जं इत्थीसरीरं सचेयणं भूसणसं जुत्तं तं रूवसहगतं । अहवा - प्रणाभरणं पि जीवजुत्तं तं रूवसहगतं भाति, “तव्वज्जियं रूव" ति सवेयणं इत्थीसरीर भूसण वज्जियं रूवं भण्णति, अचेयणं वा रूवं भण्णति ।।५११४।। तं पुण रूवं तिविहं, दिव्वं माणुस्सगं च तेरिच्छं । तत्थ उ दिव्वं तिविहं, जहण्णयं मभिमुक्कोसं ॥५११५॥ कंठा दिव्वे इमे मूलभेदा - पडिमेतरं तु दुविहं, सपरिग्गह एक्कमेक्कगं तिविहं । पायावच्च-कुटुंबिय-डंडियपरिग्गहं चेव ॥५११६।। पडिमाजुयं तं दुविहं - सणिहितं असणिहितं वा । “इतर" ति - देह जुयं तं पि सचेयणं अचेयणं वा । पुणो एककेकं सपरिग्गहं अपरिग्गरं वा । जं सपरिगहं तं तिविधेहि परिहित । पच्छद्ध कठं ।।५११६॥ दिव्वं जहण्णादिगं तिविधं इमं - वाणंतरिय जहण्णं, भवणवती जोइसं च मज्झिमगं । वेमाणियमुक्कोसं, पगयं पुण ताण पडिमासु ॥५११७|| वाणमंतरं जहण्णं, भवणवासि जोइसियं च मज्झिमयं, वेमाणियं उक्कोसयं । ह पडिमाजतेग अधिकारी जेण वसहिविसोही प्रधिकया ।।५११७॥ १ मट्ठारसविहऽबभं इति बृहत्कल्पे गा० १४६५ । २ गा० ५११३ । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-१ अहवा - पडिमाजुएण जहण्णादिया इमे भेदा - कडे पोत्थे चित्ते, जहण्णयं मज्झिमं च दंतम्मि । सेलम्मि य उक्कोसं, जं वा रूवातो णिप्फणं ॥५११८॥ जा दिश्वपडिमा कट्ठ पोत्थे लेप्पगे चित्तकम्मे वा जा कीरइ एयं जहणयं, अनिष्टस्पर्शत्वात् । जा पुण हस्थिदंते कीरति सा मज्झिमा, जेण सुभतरफरिसा, अत्रापि होरसंभवः । मणिसीलादिमु जा कोर इ सा उक्कोसा, सुकुमालफरिसत्तणतो अहीरत्तणतो य । अधवा - जं विरूवं कयं तं जहां । जं मज्झिमरुवं तं मज्झिमं । जं पृण सुरूवं कयं तं उक्कोसयं ॥५११८॥ सव्वोहतो पडिमाजुए ठायमाणस्स चउलहं। प्रोहविभागे इमं - ठाण-पडिसेवणाए, तिविहे दुविहं तु होइ पच्छित्तं । लहुगा तिण्णि विसिट्ठा, अपरिग्गहे ठायमाणस्स ||५११६।। "तिविध" ति - दिव्यमाणुसतेरिच्छे दुविध पच्छित्तं - ठाणपन्छितं पडिसेवणापच्छित्तं च । एवं प्रत्यनिरूवणं काउ। एय चेव पुवद्धं । अण्णहा भाणियव्वं - "तिविधे" ति जहण्ण मज्झिमुक्कोसे दुविहं पच्छित - ठाणओ पडिसेवणम्रो य । तत्थ पडिसेवणो ताव ठप्पं । ठायंतस्स इम - "लहुगा तिणि विसिट्टा", दिव्वे पडिमाजुए असणिहिए जहन्ने चउलहुया उभयलहु, मज्झिमे लहुगा चेव काल गुरू, उक्कोसे लहुगा चेव तवगुरू । ग्रहवा - "तिविधे दुविधं तु" - तिविधं जहणागादी, तं सणिहियासपिहितेण दुविहं । अहवा - पडिसेवणाए तं चेव जहणादिकं तिविधं । दिद्वादिद्वेण दुविधं ।।५११६।। विभागे प्रोहपच्छित्तं इमं - चत्तारि य उग्घाया, पढमे बितियम्मि ते अणुग्धाता । छम्मासा उग्घाता, उक्कोसे ठायमाणस्स ॥५१२०|| पढमे ति जहणणे, तत्थ उग्धाय ति वउन्नहु। बितियं मज्झिमं तत्थ अणुग्घाय ति चउगुरु । उक्कोसे छम्मासा, उग्घाय त्ति छल्लहु । ०य टायमाण स एयरस इमा उच्चारणविधी - जहण्णे पायावच्चपरिग्गहिते ठाति ङ्क । मज्झिमए पातावच्चपरिग्गहिते ठाति था । उक्कोसे पातावच्चपरिग्गहिते ठाति ॥५१२०॥ इदाणि एते पच्छिता विसेसिज्जति - पायावच्चपरिग्गहे, दोहि वि लहू होंति एते पच्छित्ता । कालगुरू कोडंबे, डंडियपारिग्गहे तवसा ॥५१२१॥ जे एते पायावच्चपरिग्गहिते जहाए मज्झिमए उक्कोसए य ठायमाणस्स चउलहु चउगुरु छल्लहुप्रा पच्छिता भगिता । एते कालेण वि तवेण वि लहुगा णायव्वा ।। कोटुबियपरिग्गहिते एते चेव तिणि पच्छित्ता कालगुरु तवलहुप्रा । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५११८- ५१२७ ] षोडश उद्देशकः इंडियपरिग्गहिते एते चेव तिष्णि पच्छिता काललहुना तवगुरुप्रा । जम्हा जहष्णादिविभागेण कतं सणिहितासं णिहितेण ण विसेसियव्वं, तम्हा विभागे प्रहो गम्रो ।।५१२१ ।। इदाणि विभागपच्छित्तं - तत्थ एयाणि चैव जहणमज्झिमुक्कोसाणि श्रसणिहियसणिहियभिण्णा खटाणा भवति । ता भणति - चत्तारि य उरघाया, पढमे बितियम्मि ते अणुग्धाया । ततियम्मि य एमेवा, चउत्थे छम्मास उग्घाता ।। ५१२२ ।। जहणेण प्रसणिहियं पढमं ठाणं, सण्णिहियं बितियं ठाणं । मज्झिमे सहियं तइयद्वाणं, सष्णिहियं चउत्थं । उक्कोसेण प्रसणिहियं पंचमं सष्णिहियं छटुं । जहणए प्रसणिहिए पायावच्चपरिग्गहिते ठाति चउलहुयं सष्णिहिए चउगुरु । मज्झिमए प्रणिहिए "एमेव" ति चउगुरुमा, सनिहिए छल्लहुगा ।। ५१२२ ।। पंचमगम्मि वि एवं छट्ठे छम्मास होतऽणुग्धाया । 1 सन्निहिते सन्निहिते, एस विही ठायमाणस्स ॥ ५१२३॥ Enter forहिए पायावच्चपरिगाहिते ठाति एमेव त्ति छल्लढुगा, सग्णिहिए छग्गुरू । एसो ठाणपच्छितस्स विधी भणितो ।।५१२३ ॥ पायावच्चपरिग्गह, दोहि वि लहु होंति एते पच्छित्ता | काल गुरु कोडुंबे, डंडियपारिग्गहे तवसा ।। ५१२४|| पायावच्चे उभयलहुं, कोटुंबिए कालगुरू, डंडिए तवगुरू | सेसं पूर्ववत् ॥ ५१२४ ।। ठाणपच्छित्तं चैव बितियादेसतो भण्णति - हवा भिक्खुस्सेयं, जहण्णगाइम्मि ठाणपच्छित्तं । गणिणो उवरिं छेदो, मूलायरिए हसति हेट्ठा ॥ ५ १२५ ।। ७ ज एवं जहणगादी प्रसन्निहियसन्निहियभेदेण नउलहुगादि - छग्गुरुगावसाणं एयं भिक्खुस्स भणियं । "गणि" त्ति उवज्झाश्रो, तस्स चउगुरुगादी छेदे ठायति । प्रायरियस्स छल्लहुगादी मूले ठायति । इह चारणाविकप्पे जहा उवरिपदं वडति तहा हेट्ठापदं हस्सति । ५२५॥ पढमिल्लुगम्मि ठाणे, दोहि वि लहुगा तवेण कालेणं । बितियम्मिय कालगुरू, तवगुरुगा होंति तइयम्मि || ५१२६ || इह पढमिल्लुगं पागतितं ठाणं, बितियं कोटुंबं, ततितं दंडियं । सेसं पूर्ववत् ।। ५२६ ।। एयं ठायंतस्स पच्छित्तं भणियं । इदाणि पडिंसेवंतस्स पच्छित्तं भणति चत्तारि छच्च लहु गुरु, छम्मासिय छेद लहुग गुरुगो तु । मूलं जहण्णगम्मी, सेवंते पसज्जणं मोत्तुं ||५१२७|| Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१ पायावच्चपरिग्गहे जहण्णे प्रमणिहिए प्रदिट्टे छ । दिट्टे का । सणिहिते प्रदिट्टे हा। दिटे । कोटुंबियपरिग्गहे जहण्णए असणिहिए - प्रदिट्टे । दिढे फो । सणिहिते प्रदिद्वे फ्री । दिउ छम्मासितो लहुतो छेदो । डंडियपरिग्गहिते जहणए प्रसणिहिते. अदितु छम्मासिनो लहुच्छेदो । दिढे छम्मासिनो गुरू छेदो । सणिहिए अदिढे छम्मासितो गुरू छेदो। दिटे मूलं । एयं जहण्णपदं अमुयतेण उदिण्णमहत्तणतो पडिमं पडिसेवंतस्स पच्छित्तं भणिय पसज्जणं मोत्त पसज्जणा णाम दिट्ट संका भोइगादी, अधवा – गेण्हण कड्डणादी ।।५१२७॥ चगुरुग छच्च लहु गुरु, छम्मासियछेदो लहुग गुरुगो य । मूलं अणवटुप्पो, मज्झिमए पसज्जणं मोत्तुं ॥५१२८।। मज्झिमे वि एवं चेव चारणविधी, णवरं - चउगुरुगाग्रो प्राढते - प्रणवढे ठाति ॥५१२८।। तवछेदो लहु गुरुगो, छम्मासिनो मूल सेवमाणस्स । अणवठ्ठप्पो पारंचियो य उक्कोस विण्णवणे ॥५१२६।। उक्कोसे वि एवं चेव चारणविधी, णवरं - चउगुरुगानो ( छल्लहुगातो ) अाढत्तं पारंचिते ठाति । विष्णवणति पडिसेवणा पत्थणा वा, ॥५१२६॥ इमेण कमेण चारणं करतेण पालावो कायब्वो - पायावञ्चपरिग्गह, जहण्ण सन्निहित तह असन्निहिते । अद्दिट्ट दिट्ठ सेवति, अलावो एस सव्वत्थ ।।५१३०॥कंठा अण्णे चारणियं एवं करेंति - जहणो पायावच्चपरिगहे प्रणिहिते सणिहिते प्रदिष्टु दिदु ति. एयं पायावच्चपयं अचयंतेण मज्झिमुककोगा वि चारियया । पच्छितं चउलहुगादि मूलावसाणं ते चेव । एयं कोउंबियं पिच उगुरुगादि प्रणवदृप्पावसाय । इंडियं पि छल्लहुगादि पारंचियावसाणं । एत्थ पायावच्च जहण कोटबं मज्झिमं डंडियं 3 सं भाणिय वं, उभयहा वि चारिज्जतं अविरुदं ॥५१३०॥ चोदगो भणति - जम्हा पढमे मूलं, वितिए अणवट्ठ ततिय पारंची। तम्हा ठायंतस्सा, मृलं अणवट्ठ पारंची ॥५१३१॥ "पढमे" त्ति - जहणे चउलहुगातो प्राढतं मूले ठाति, मज्झिमे चउगुरुगातो प्राढत्तं प्रणवढे ठाति, उक्कोसे छल्लहुयातो पाढतं पारंचिए ठाति । जइ एवं पडिसेवमाणस्स पायच्छित्तं भवति तम्हा ठायंतस्सेव पारंचियं भवतु । अधवा - ठाणपच्छित्तं वि भूलाणवठ्ठपारंचिया भवंतु । किं कारणं ? अवश्यमेव प्रसजनां प्रतीत्य मूलानवस्थाप्यपारंचिकान् प्राप्स्यन्ति ।।११३१।। पायरियो भणइ - पडिसेवणाए एवं, पसज्जणा होति तत्थ एक्कक्के । चरिमपदे चरिमपदं, तं पि य आणादिणिप्फण्णं ॥५१३२।। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१२८-५१३५ ] षोडश उद्देशकः "पडिसेवणाए" त्ति - पहिसेवंतस्स प्रतियाराणुरूवा मूलाणवट्ठपारंचिया एवं संभवंति । जति पुण ठितो ण चेव पडिसेवति तो कहं एते भवंतु ? ॥५१३२॥ जति पुण सव्वो वि ठितो, सेवेज्जा होज्ज चरिमपच्छित्तं । तम्हा पसंगरहितं, जं सेवति तं ॥ सेसाई ॥५१३३॥ जति णियमो होज्ज सव्वो ठायंतो पडिसेवेज्जा तो जुज्जइ तं तुम भणसि, जेण पुण ण सव्वो। ठायतो पहिसेवति तेण कारणेण पतंगरहियं जं ठाणं सेवति तत्येव पायच्छित्तं भवति ॥५१३३॥ "पसज्जणा तत्थ होति एक्के क्क" ति एवकेक्कातो पायच्छित्तठाणातो पसज्जणा भवति । कहं ?, उच्यते - तं साधु तत्थ ठियं दट्ठ अविरयो को वि तस्सेव संक करेज्जा - ''पूर्ण पडिसेवणाणिमित्तेणं एस एत्थ ठिप्रो,” ताहे दिढे संवा भोतिगादो भेदा भवंति । ग्रह पसंगं इच्छसि तो इमो पसंगो “२चरिमपदे चरिमपदं" ति अस्य व्याख्या - अहिट्ठातो दिटुं, चरिमं तहि संकमादि जा चरिमं ।। अहव ण चरिमाऽऽरोवण, ततो वि पुण पावती चरिमं ॥५१३४॥ चारणियाए कज्जमाणीए अदिढदिहि अदिद्रुपदा तो जं दिट्ठपदं तं चरिमपदं भण्णति, ततो चरिमादातो सका भोतिगादिपदेहिं विभासाए जाव चरिमं पानचियं च पावति । स्यान् मति :- "अथ दृष्टं कथं संका ?, ननु नि: शंकितमेव । उच्यते - दूरेण गच्छतो दिदै वि अविभाविते संका, अहवा - पासण तो वि ईसि प्रद्धऽच्छि णिरिक्खणेण संका भवति । ग्रहवा - "चरिमपदे चरिमपदं" मण्ण ति । असण्णिाहितपदातो सणिहितपदं चरिमपदं ति । तत्थ सण्णिहिया पडिमा खित्तमादी करेजा, परितावणमादिपदेहि चरिमं पावेज्जा । अहव ण चरिमारोवण त्ति तृतीयः प्रकार: - जहणे चरिमं मूलं, मज्झिमे चरिम अणवट्ठो, उक्कोसे चरिमं पारंचियं । ततो एक्केकतातो चरिमपदातो संकादिपदेहि चरिमं पारंचियं पावइ ।।५१३४।। 3तं पि य ग्राणादिनिप्फण्णं" ति अस्य व्याख्या - अहवा आणादिविराहणाओ एक्केक्कियाओ चरिमपदं । पावति तेण उ णियमा, पच्छित्तधरा अतिपसंगो ॥५१३५।। अहवा -- प्राणाणवत्थमिच्छतविराहणाणं चउण्हं पयाणं विराहणापदं चरिम, सा विराहणा दुविहा - पाय-संजमेसु । तत्थ एक्केक्कातो तं चरिमपदं णिप्फाइ। . ___कहं ?, उच्यते - तस्सामिणा दि? पंताबिए पायाए परितावणादि चरिम पावति, संजमे भग्गे पुण संठवणे - छक्काय च उसु गाहा । एवं चरिमं पावति। जम्हा पसंगमो बहुविहं भवति तम्हा पसंगरहियं जं चेव प्रासेवितं तं चेव दायव्वं । ठायमाणस्स ठाणपच्छित्तं चेव, पडिसेवमाणस्स पडिसेवणापच्छितं - न प्रसंगमित्यर्थः। ॥५१३५।। १ गा० ५१३२ । २ गा० ५१३२ । ३ गा० ५१३२ । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१ णत्थि खलु अपच्छित्ती, एवं ण य दाणि कोइ मुंचेज्जा। कारि-अकारी समता, एवं सति राग-दोसा य ॥५१३६।। एवं नास्ति कश्चिदप्रायभित्ती, न वा कश्चिदसेवमानोऽपि कर्मबन्धान्मुच्यते, जो वि पडिसे वति तस्स वितं. जो वि ण पडिसेवति तस्स वि तं। एवं कारि अकारिसमभावता भवति । एवं प्रायश्चित्तसंभवे सति राग दोससंभवो य भवति ॥५१३६।।। . "तं पि य प्राणादिणिफण्णं" पुनरप्यस्यैव पदस्य व्याख्या - मुरियादी आणाए, अणवत्थ परंपराए थिरकरणं । मिच्छत्तं संकादी, पसज्जणा जाव चरिमपदं ।।५१३७॥ सबमेयं पच्छित्तं प्राणादिपदेहि पिप्फजति, प्रवराहपदे पवतंतो तित्यकराणाभंग करेति तत्य से घउगुरु, माणाभंगे मुरियदिटुंतो कजति । तम्मि चेद काले प्रणवत्थपदे वट्टति तत्थ से हू । प्रणवत्थतो य परंपरेणं संजमवोच्छेदो भवति । तम्मि चेव काले देसेण मिच्छत्तमालेवति, परस्स वा मिच्छतं जगेति, थिरं वा करेति, तत्य से छ। प्रवराहपदे पुण वट्टतो विराहणापद वदृति चेव तत्थ परस्स संकं जणेति जहेयं मोसं तहण पि । अहव संकाभोइगादी पसजणा चउलहुगादी जाव चरिमं पदं पावति ॥५१३७।। एत्थ चोदक पाह अवराहे लहुगतरो, किं णु हु आणाए गुरुतरो दंडो। . आणाए च्चिय चरणं, तब्भंगे किं न भग्गं तु ॥५१३८॥ चोदगो भणति - "प्रवराहपदे पउलहुं पच्छित्तं प्राणाभंगे चउगुरु दिटुं । एवं कहं भवति, गणु प्रवराहपदे गुरुतरेण भवियब्वं" ? आयरियो पाह - "प्राणाए विर" पच्छदं। परमत्थरो प्राणाए च्चिय चरणं ठिय, प्राणा दुवालसंगं गणिपिडगं ति काउं, तब्बतिक्कमे तब्भंगे कि ण भग्गं भवति ?, किं च लोइया वि प्राणाए भंगे गुरुतरं डंडं करेंति (पवतेति)। एत्थ दिटुंतो मुरियादि । मुरिय त्ति मोरपोसगवंसो चंदगुत्तो । ग्रादिग्गहणातो अण्णेरायाणो। ते आणाभंगे गुरुतर डंडं पवत्तेति । एवं अम्ह वि प्राणा बलिया ॥५१३८।। इमं णिदरिसणं - भत्तमदाणमडते, आणट्ठवणंब छेत्तु वंसवती।। गविसण पत्त दरिसिते, पुरिसवति सबालडहणं च ॥५१३४।। चंदगुत्तो मोरपोसगो ति जे अनिजाणंति खत्तिया ते तस्स प्राणं परिभवंति । चाणक्कस्स चिंता-प्राणाहीणो केरिसो राया ? कहं आणातिक्खो होज ? त्ति । तस्स य चाणक्कस्स कप्पडियत्ते अडंतस्स एगम्मि गामे भत्तं न लद्ध। तत्थ य गामे बहू अंबा वंसा य । तस्स य गामस्स पडिणिविट्ठणं माणट्ठवणणिमितं लिहियं पेसियं इमेरिसं "अाम्रान् छित्वा वंशानां Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१३६-५१४४] षोडश उद्देशकः ११ वृत्तिः शीघ्र कार्ये" ति । तेहि य गामेयगेहि दुल्लिहियं ति काउं वंसे छेत्तु अंबाण वती कता। गवेसाविया चाणक्केण - "किं कतं ?" ति । प्रागतो, उवालद्धा, एते वंसा रोधगादिसु उवउज्जति, कीस मे छिण्णा ?, दंसियं लेहचीरियं - "अण्णं संदिट्ट अण्णं चेव करेहि" त्ति डंडपत्ता । ततो तस्त गामस्स सबालवुड्डे हिं पुरिसेहिं अधोसिरेहिं वर्ति काउंसो गामो सव्वो दड्डो। अण्णे भणंति - सबालवुड्डा पुरिसा तीए वतीए छोड़े दड्डा ॥५१३६।। एगमरणं तु लोए, आणति वा उत्तरे अणंताई । अवराहरक्खणट्ठा, तेणाणा उत्तरे वलिया ।।५१४०॥ लोइयप्राणाइक्कमे (एगमरणं)। लोगुत्तरे पुण प्राणाइक्कमे प्रणेगाति जम्ममरणाइं पावंति । अण्ण च प्रतिचाररक्खणटा चेव प्राणा बलिया, माणाप्रणतिक्कमे य पहयाराइक्कमो रक्खितो चेव भवति ॥५१४०।। "प्रणवत्थ" ति अस्य व्याख्या - अणवत्थाए पसंगो, मिच्छत्ते संकमादिया दोसा । दुविहा विराहणा पुण, तहियं पुण संजमे इणमो ॥५१४१।। कंठा अणट्ठाडंडो विकहा, वक्खेव विसोत्ति याए सतिकरणं । आलिंगणादिदोसा, असण्णिहिए ठायमाणस्स ॥५१४२॥ अकारणे डंडो प्रण?-डंडो, सो- दवे भावे य । दवे अकारणे अवरद्धं रायकुलं डंडेति। मावडंडो गाणादीणं हाणी ॥५१४२॥ "विकहाए' वक्खाणं - सुटठु कया अह पडिमा, विणासिया ण वि य जाणसि तुमं ति । इति विकहादधिकरणं, आलिंगणे भंग भदितरा ।।५१४३॥ कंठा प्रालिगणे कजमाणे कयादि हत्यादियाण भंगो हवेज, तत्थ सपरिग्गहे भद्दपंताइ दोसा हवेज्जा, वक्खेवो तं पेक्खंतस्स, उल्लावं च करेंतस्स मुत्तत्यपलिमंथो । विमोतिया दव्वे भावे य। दब्वे सारणिपाणीयं वहतं तृणमादिणा रुद्धं, अण्णतो कासारादिसु गच्छति, ततो सस्सहाणी भवति । भावे गाणादोणं, प्रागमस्स विसोत्तियाए चरित्तस्स विणासो भवति । सतिकरणं ति भुत्तभोगीण, प्रभुतभोगीण कोउग्रं । . अध कोइ मोहोदएण प्रालिंगेज्ज, प्रालिगिता भज्जज्जा, प्रणिहिए सपरिग्गहे भपंतदोसा, पच्छाकम्मदोसा य, पंतो तत्थ गेम्हणादी करेज । एते असणिहिते ठायमाणस्स दोसा ।।५५४३।। इमे य सण्णिहिए - वीमंमा पडिणीयट्ठया व भोगत्थिणी व सन्निहिया । काणच्छी उक्कंपण, आलाव णिमंतण पलोभे ॥५१४४॥ स णहिया तिहिं कारणेहिं साधु पलोहेज्जा - वीमंसट्ठया पडिणीयट्ठयाए भोग स्थिणी वा । १ गा० ५१४२। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे तत्य वीमसाए- "किं एस सवति खोभेउं व" त्ति पडिमाए अणुपविसित्ता काणऽच्छी करेज, थणुक्कंपं (उक्कंपणं) वा करेज, पालावं वा करेज्ज - हे प्रमुग णाम ! कुसलं ते, निमंतणं वा करेन्ज ~ मए समं सामि ! भोगा भुंजसु. एवमादिएहिं पलोभेजा । अहवा - पलोभेति थणकक्खोरुपक्षणदसिएहिं. कडक्वच्छिविकारणिरिविखतेहिं ॥५१४४।। काणच्छिमाइएहिं, खोभियद्धाति तम्मि भद्दा तु। णासति इतरो मोहं, 'सुवण्णकारेण दिलुतो ॥५१४५॥ जाहे काणच्छिमादिएहि आगारेहि खोभितो ताहे गिण्हामि त्ति उद्घातितो, ताहे सा देवता भद्दा णासेति, इतरो णाम सो खोभियसाधू तीए अहंसगं गताए सम्मोहं गतो पडितो तं दठुमिच्छति । कत्तो गयासि ?, विलवति, पणविज्जतो वि पण्णवणं ण गेण्हति । जहा अणंगसेणसुवण्णगारो ॥५१४५।। एसा भद्दविमंसा। इदाणि “२पडिणीयट्ठताए" ति - वीमंसा पडिणीता, विद्दरिसणऽखित्तमाइणो दोसा।। असंपत्ती संपत्ती, लग्गस्स य कट्टणादीणि ॥५१४६॥ पडिणीया वि काणच्छिमातिएहि वीमसेउ, एत्य वीमसा णाम केवला, जाहे खुभिगो धातितो गिण्हामि त्ति ताहे सा पडिणीया "प्रसंपत्ति" ति जाव ण चेव गेहति हत्यादिणा ताव विदरिसणं विकृतरूपं दर्शयति । अहवा - विद्दरिसणं अलग्गमेव लोगो लग्गं पासति, खित्तमादि वा करेज, मारेज वा । अधवा-- सा पहिणीया पडिभोगसंपत्ति काउं तत्थेव लाएज्ज स्वानादिवत, पडिणीयदेवतापमोगग्रो व लेप्पगसामिणा अण्णेण वा दिढे गेण्हणकवणादिया दोसा करेज्ज ।।५१४६।। पंता उ असंपत्ती, तहेव मारेज्ज खित्तमादी वा । संपत्तीइ वि लाएतु, कट्टणमादीणि कारज्ज ॥५१४७॥ गतार्था इदाणिं भोगत्थिणी - भोगस्थिणी विगते, कोउयम्मि खित्तादि दित्तचित्तं वा । दछृण व सेवंतं, देउलसामी करेज्ज इमं ॥५१४८॥ भोगत्थिणी देवता काणच्छिमादिएहि उवलोभत्ता खुभिएण सह भोगे मुंजित्ता विगयभोगकोतुका मा अण्णाए सह भोगे मुंजउ त्ति खित्तादिचित्तं करेज्जा। अहवा-तीए सह सेवणं करेंतं दणं देउलसामी महाभावेण इमं करेज्ज ॥५१४८।। तं चेव गिट्ठवेंती, बंधण णिच्छुभण कडगमद्दो य । आयरिए गच्छमि य, कुल गण संघे य पत्थारो ॥५१४६॥ ___ तं सेवंसं दर्छ कुद्धो णिट्ठिवेति त्ति - मारेज्जा, पभू वा सयं बंधिज्जा, अप्पभू वि पमुणा बंधाविज्जा । अधवा - वसधी गाम नगर देस रज्जानो वा णिच्छूभेज्जा। 'कडगो' ति खंधावारो। जहा सो १ अणंगसेणेण, इत्यपि पाठः । २ गा०५१४४ । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१४५-५१५४ ] परविसयमइष्णो एगस्स रण्णो श्रभिणिवेसेण प्रकारिणो वि गामणगरादि सब्वे विणासेइ, एवं एगेण कयमकज्जं सव्त्रो बालवुड्डादी जो जत्थ दीसइ सो तत्थ मारिज्जति । एस कडगमद्दो ! अधवा इमो कडगमद्दो, सह तेण कारिणा, मोत्तुं वा तं कारि (णं), जो प्रायरिनो गच्छो वा कुलं गणो वा तं वावादेति, तत्थ वा ठाणे जो संघो तं वावादेति ॥ ५१४६॥ - अधवा इमं कुज्जा ।।५१५३ ।। षोडश उद्देशक: गेहणे गुरुगा छम्मास कडूणे छेदो होति ववहारे । पच्छाकडम्मि मूलं, उड्डहण - विरुगणे णवमं ॥ ५१५० ।। डिसेवते गहि छेदो । पच्छा कडो ति जितो मूलं । उड्डाहे कते विरु गिते वा प्रणवट्टो भवति ।। ५१५० ।। उद्दात्रण णिच्चिसए, एगमणेगे पदोस पारंची । वट्टप्पो दोसु य, दोसु य पारंचि होति ॥ ५१५१ ।। उद्विते णिव्विस वा कते एगमणेगेसु वा पदोसे कते सो पडिसेवगो पारंचियं पावति । उड्डण विरुगण एतेसु दोसु श्रणवट्टो भवति, निव्विसतोद्दवणेसु दोसु पदेसु पारंचियं ॥ ५१५१ ॥ । अधवा - पदुट्टो इमं कुज्जा | हत्थे वत्थे वा घेत्तुं कडिते गीते रायकुलं । तेण परिकङ्क्षिते र्फा । ववहारे एयस्स णत्थि दोसो, परिक्खितदिक्खगस्स अह दोसो । इति पंतो णिव्विसए, उद्दवण विरुंगणं व करे ।।५१५२|| एसपिडिसेवगस्स ण दोसो, जो अपरिक्खितं दिखेति तस्स एस दोसो, इति एवं चितेउं पंतप्रायरियं णिव्विसयं करेज्जा, उद्दवेज्ज वा, कण्ण णास णयणुग्धायणं वा करेज्ज, एयं विरूवकरणं विरूवणं ।।५१५२।। १३ हवा सणिहिते इमे दोसा तत्थेव य पडिबंधो, दिट्ठ गमणादि वा अर्णेतीए । एते अण्णे य तर्हि, दोसा होंति सग्णिहिए ॥ ५१५३ ! तत्थेव पडिमाए पडिबंषं करेज्जा, अदिट्ठे त्ति - लेप्यगसामिणा अदिट्ठे त्रि इमे दोसा भवंति । अधवा-सा वाणमंतरी विगयकोउगा णागच्छति, तीए प्रर्णेतीए सो पडिगमणादी करेज्ज ताओ पुण सणिहियरडिमा इमम्मि होज्जा - कट्ठे पोते चित्ते, दंतकम्मे य सेलकम्मे य । दिट्टिप्पसे रूवे, खित्तचित्तस्स भंसणया ||५१५४ ॥ पुग्वद्धं कंठं । दिट्टिणा पत्तं रूवं दृष्टमित्यर्थः । तेण रुवेण खित्तं चित्तं जस्स सो खित्तचित्तो, तस्स खित्तचित्तस्स पमत्तत्तणम्रो घारितानो जीवियाश्रो वा सो भवति ।। १५४ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१ तासिं पुण सण्णिहियाणं देवयाणं विण्णवणं पडुच्च इमो पगारो भावो होज्जा सुहविष्णप्पा सुहमोइया य सुहविण्णप्पा य होंति दुहमोया । दुहविण्णप्पा य सुहा, दुहविण्गप्पा य दुहमोया ॥५१५५॥ एतीए गाहाए चउभंगो गहितो ।।५१५५।। तत्थ पढमभंगे इमं उदाहरण - सोपारयम्मि णयरे, रण्णा किर मग्गियो य णिगमकरो । अकरो त्ति मरणधम्मो, बालतवे धुत्तसंजोगो ॥५१५६।। सोपारयम्मि णगरे णेगमो त्ति वाणियजणो वसति । ताण य पंच कुडुबियसयाणि वसंति। तत्य य राया मंतिणा वुग्गाहितो - "एते रूवगकरं मग्गिज्जति ।" रण्णा मग्गिता । ते य 'अकरे' त्ति पुत्ताणुपुत्तियो करो भविस्सई, ण देमो। रण्णा भणिया- 'जति ण देह, तो इमम्मि गिहे अग्गिपवेसं करेह" । ततो तेहिं मरण. धम्मो ववसितो। “ण य णाम करपवत्ति करेमो", सव्वे अग्गिं पविट्ठा । ।।५१५६।। पंचसयभोगि अगणी, अपरिग्गह सालभंजि सिंदूरे । तुह मज्झ धुत्तपुत्ताइ अवण्णे विज्जखीलणता ॥५१५७।। तेसि पंच महिलसताई, ताणि वि अग्गिं पविट्ठाणि । तानो य बालतवेण पंच वि सयाइ अपरिग्गहिया जाता। तेहि य णिगमेहि तम्मि चेव णगरे सिंदूरं सभाधरं कारियं । तत्थ पंच सालिभंजिता सता । ते तेहिं देवतेहि य परिग्गहिता । __ तानो य देवताप्रो ण कोइ देवो इच्छइ, ताहे धुत्तेहि सह संपलग्गाग्रो। ते धुत्ता तस्संबधे भंडणं काउमाढत्ता, एसा ण तुहं मझ, इतरो वि भणाति - मझ ण तुहं । जा य जेण धुत्तेण सह अच्छइ सा तस्स सव्वं पूव्वभवं साहति । ततो ते भणंति - हरे ! अमुगणामधेया एस तुझ माता भगिणि वा इदाणि अमुगेण सह संपलग्गा, ता य एगम्मि पीति ण बंधति. जो जो पडिहाति तेण सह अच्छंति । तं च सोउं अयसो त्ति काउं विज्जावातिएणं खीलावियात' ।।५१५७।। गतो पढम भंगो। इदाणि तिण्णि वि भंगा एगगाहाए वक्वाणेति - बितियम्मि रयणदेवय, तइए भंगम्मि सुइयविज्जातो । 'गोरी-गंधारीया, दुहविण्णप्पा य दुहमोया ॥५१५८|| बितियभंगे रयणदेवता उदाहरणं । अप्पड्डियत्तणतो कामाउरत्तणयो य सा सुहविण्णवणा, सव्वसुहसंपायत्तणो य सा दुहमोया । १ गंधाराई, इत्यपि पाठ. । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१५५-५१६२ ] षोडश उद्देशक: ततियभंगे सुइयविजापो भवंति - तारो य णिचं सुइसमायारत्तणो सव्वसुइदव्वपडिसेवणतो महिड्डियत्तणो य दुहविण्णप्पागो, तेसिं उग्गत्तणतो णिच्चं दुरणुचरत्तणो य छेहे य सावायत्तणो सुहमोया। __ चउत्थभंगे गोरि-गंधारीग्रो मातंगविजारो साहणकाले लोगगरहियत्तणतो दुहविण्णवणाग्रो, जहिट्ठकामसंपायत्तणो य दुहमोया ॥५१५८।। एवं चउत्थभंगो वक्खायो। इदाणि तिविधपरिग्गहे गुरु लाघवं भण्णति-- तिण्ह वि कतरो गुरुयो, पागतिय कुटुंबि डंडिए चेव । साहस असमिक्ख भए, इतरे पडिपक्ख पभुराया ।।५१५९।। सीसो पुच्छति - "पायावच्च कुडंबिय-डडियारिग्गहाण कत्थ गुरुतरो दोसो, कत्थ वा अप्पतरो ?” एत्थ य भयणा भण्णति - पागतियं गुरुतरं, कोडुबिय-डडियं लहुतरं । कहं ?, उच्यते - मो मुक्खत्तणेण साहसकारी असमिक्खियकारी य, अणीसरत्तणो य भयं ण भवति । एव सो पागतिप्रो मारणं पि ववसेज्जा । "इयरे" ति कोडुबिय-डंडिया. ते पागतितस्स पडिपाखभूतो। कह ?, उच्यते - ते साहसकारी ण भवंति, असमिक्खियकारी य ण भवंति, पन्ना भवंति, भयं च तसि भवति । ५१५६।। इम - ईसरियत्ता रज्जा, व भंसए मंतुपहरणा रिसत्रो । तेण समिक्खियकारी, अण्णा वि य सिं बहू अत्थि ।।५१६०॥ __ मन्तु कोवो । एते रिसो कोवपहरणा भवंति, रुद्वा य मा में रज्जाग्रो ईसरत्तणमो य भंसेहिति, प्रतो ते समिक्खियकारी भवति । अण्णं च तेसिं अण्णाम्रो वि बहू पडिमानो अस्थि, अतो तेसु अणादरा ।।५१६०।। (अत्रोच्यते ) अहवा - "१पत्थरो" ति अस्य व्याख्या - पत्थारदोसकारी, णिवावराधो य बहुजणे फुसइ । पागतिओ पुण तस्स व निवस्स व भया ण पडिकुज्जा ।।५१६१।। डंडिय कोडुबिनो गुरुतरो, पागतितो लहुतरो । राया पहू, सो एगस्स प्रत्थस्स रुट्ठो संधे पत्थारं करेज्जा, रायावकारो य बहुजणे फुसति, तेण सो गुरुतरो । पागतियावराहो पुण बहुजणे ण फुसइ, अण्णं च - पागतितो "तस्स” ति साहुस्स "भया" शिवस्स भया पच्चवकारं ण करेति, एतेण कारणेण नागतितो लहुतरो ॥५१६१॥ कि च - अवि य हु कम्मद्दण्णा, ण य गुत्ती तेसि णेव दारिद्वा । तेण कयं पि ण णज्जति, इतरत्थ धुवो भवे दोसो ॥५१६२॥ १ गा० ५१४६ । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे 1 मूत्र-१ ते पागतिता खेत्ते खलादिसु कम्मक्खणिया पडिमाण उदंतं ण वहंति, तेण तत्य कतो वि प्रवराहो ग णज्जति, ण य तेसि संतियासु देवद्रोणीसु रखवालो भवति, ण वा दारपालो भवति । इतरत्थ ति रायकुडुबिएसु धुवो दोसो भवइ ।।५१६२॥ तुल्ले मेहुणभावे, णाणत्ताऽऽरोवणा य एमेव । जेण णिवे पत्थारो, रागो वि य वत्थुमासज्ज !॥५१६३।। पागतिय कुडुबिय-डंडिएसु तुल्ले मेहुणभावे प्रवराहणाणतणमो चेव पायच्छित्ते पाणतं । पायावच्चपरिग्गहातो कोडुबियपरिग्गहे कालगुरुगा, डंडियपरिग्गहे तव गुरुगा भणिता । प्रणं च कोडुबिय-डडिए सु पत्थारदोसतो अधिकतरं पच्छित्तं । अहवा - वत्थुविसेसप्रो रागविसेसो, रागविसेसपो पच्छित्तविरोसो भवइ ।।५१६३।। जतो भण्गति जतिभागगया मत्ता, रागादीणं तहा चय। कम्मे । रागादिविधुरता वि हु, पायं वत्थूण विहुरत्ता ।।५१६४॥ जारिसी रागभागमात्रा मंदा मध्या तीव्रा वा तारिसी मात्रा कर्मबंगे भवति । अहवा - जावतिया रागविसेसा तावतिया कम्मानुभागविसेसा भवति - तुल्या इत्यर्थः । तेण भणति – जतियं भागं गता रागमात्रा । मात्राशब्दः परिमाणवाचकः । तन्मात्र: कर्मबन्धो भवतीत्यर्थः । “रागाइ विहुरया वि हु"-रागादिविधुरता नाम विषमत्वं । हु शब्दो यस्मादर्थे । यत्समुत्यो रागः प्रतिमादिके तस्य यस्मात् प्रतिमादिवस्तुविधुरता तस्माद्रागादिविधुरत्वं भवति ।।५१६४।। अयमन्यप्रकारः विधुरत्वप्रदर्शने - रपणो य इत्थिया खलु, संपत्तीकारणम्मि पारंची । अमच्ची अणवठ्ठप्पो, मूलं पुण पागयजणम्मि ॥५१६॥ रण्णो जा इत्थो तीए सह मेहुणसंपत्ती, एतेण मेहुणसंपत्तिकारणेण पारंचियं पायच्छित्तं । प्रमच्चिए प्रणवट्ठो। पागतिए मूलं । एयं पच्छिके णाणतं वत्थुणाणताो चेव भणियं ॥५१६५॥ दिवं गयं । इदाणि माणुस्स भण्णइ माणुस्सगं पि तिविहं, जहण्णयं मज्झिमं च उक्कोसं । पायावच्च कुडुंबिय, दंडिगपारिग्गहं चेव ।।५१६६।। जहण्णादिगं तिविधं पुणो एकेक पायावच्चातिपरिग्गहे भाणियव्यं । उक्कोस मा -भज्जा, मज्झ पुण भइणि-धूयमादीओ।' खरियादी य जहण्णा, पगयं सचि (जि) तेतरे देहे ॥५१६७।। माता अप्पणो अगम्मा, अण्णस्स य तं ण देति, प्रतो तीए सह जं मेहुणे तिनरागझवसाणं उपज्जति तं उक्कोसं । भज्ज अण्णस्स ण देति प्रतो तम्मि मुच्छितो उक्कोसं । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१६३-५१७१ ] षोडश उद्देशक: मिहुणकाले भगिणी गम्मा । सेसकाले भगिणी, धूया य सम्बकालं प्रपणो प्रगम्मा, अण्णस्स तातो देति त्ति प्रतो ताहि सह जं मेहणं तं मज्झिमं । खरिगादिसु मव्वजणसामण्णासु ण तिव्वाभिणिवेसो, प्रतो तं जहणं । इह माणुस्सदेहजुएण अधिकारो, ण पडिमासु । तं देहं दुविधं - सचेयण मचेयणं वा ।।५१६७॥ सामण्णतो देहजुए ठायंतस्स इमं - .. 'पदमिल्लुगम्मि ठाणे, चउरो मासा हवंतऽणुग्धाता। छम्मासा उग्घाया, बितिए ततिए भवे छेदो ॥१६॥ पढमिल्लुग त्ति जहणं, पायावच्चपरिणहितो जहणे ठाति दू। बितिए ति मन्झिमे पायावच्चपरिग्गहे ठःति । ततियं नि उनकोस पायावच्चपरिगहे उक्कोसे ठाति छेदो ॥५१६८।। ण भणियं कोविव छेदो, अतस्तज्ज्ञापनार्थमिदमुध्यते पढमस्स ततियठाणे, छम्मासुग्घाइयो भवे छेदो। चउमासो छम्मासो, बितिए ततिए अणुग्धातो ।।५१६६।। एत्थ पढनट्ठाणं पायावच्चपरिग्गहं, तस्स ततियं ठाणं उक्कोसयं, तत्य जो सो छेदो सो छम्मासितो उग्धातितो णायबो । “च उमासो" पच्छद प्रनयोस्तृतीयस्थानानुवर्तनादिदमुच्यते । वितिए त्ति कोटुबे उक्कोसे कोडुबपरिग्गहे चउ गुरुपो छेदो। ततिए त्ति इंडियपरिग्गहे गुरुप्रो छम्मासियो छेदो । अर्थादापनं कोटुबे जहण्णए मज्झिमए य जं चेव पायावच्चे, एवं चेव डंडिए वि जहण्णमज्झिमे ।।५१६६॥ पढमिल्लुगम्मि तवारिह, दोहि वि लहु होति एए पच्छित्ता। वितियम्मि य कालगुरू, तवगुरुगा होति सतियम्मि ॥५१७०॥ पढमिल्लुगं णाम पायावच्चपरिग्गहे दोणि प्रादिल्ला तवारिहा, ते दो वि लहुया । बितिए ति कोडुबिए जे तवारिहा वोणि पाइल्ला ते कालगुरु तवलहु । ततिए त्ति उंडियपरिग्गहिए जे प्रादिल्ला दोष्णि तवारिहा ते काललहू तवगुरू ॥५१७०।। एवं ठाण पच्छित्तं । मणुएसु गतं । इदाणि पडिसेवणापच्छित्तं - चतुगुरुगा छग्गुरुगा, छेदो मूलं जहण्णए होति । छग्गुरुग छेद मूलं, अणवटुप्पो य मज्झिमए ।।५१७१॥ १ प्रथमं नाम जघन्य मानुष्यरूपं, तत्र प्राजापत्यपरिगृहीतादो भेदत्रयेऽपि तिष्ठतश्चत्वारोऽनुद्धाता मासा गुरव इत्यर्थः । द्वितीयं - मध्यम, तत्रापि विष्वपि भेदेषु षण्मासा अनुदाताः । तृतीय - उत्कृष्ट, तत्र भेदत्रयेऽपि तिष्ठतश्छेदो भवेत्, बृहत्कल्पे गा० २५१८ । २ ऽघुग्घाया, इति वृहकल्पे पा० २५१८ । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-भूणिके निशीयसूत्रे छेदो मूलं च तहा, अणवदुप्पो य होति पारंची। एवं दिट्ठमदिडे, सेवंते पसज्जणं मोत्तुं ॥५१७२।। पायावच्चपरिग्गहे जहणे अदि? :: । दि::: । कोबिए परिग्गहे जहण्णे मदिट्टे :: : । दिटे छेदो। डंडियपरिग्गहे जहणे अदि? छेदो । दिढे मूलं । पायावच्चपरिग्गहे मज्झिमे मदिट्ट छग्गुरुगा । दिटे छेदो। कोडंबियपरिगहे मज्झिमे प्रदिटे छेदो । दिहे मूलं । इंडियपरिग्गहे मज्झिमे अदिढे मूलं । दिह्र प्रणवट्ठो। पायावच्चपरिग्गहे उक्कोसए अदिट्टे छेदो । दिट्ठ मूलं । कुडुंबियपरिग्गहे उक्कोसए अट्ठि मूलं । दिट्ठ प्रणवट्ठो । इंडियारिग्गहे उक्कोसए अदिट्ठ प्रणवट्ठो । दिट्ठ पारंचियं । अहवा - पायावच्चे जहण्णमज्झिमुक्कोसे अदिदिट्ठसु च उगुरुगादि मूले ठायति । कोडुबिए जहण्णादिो छग्गुरुगादि प्रणवढे ठायति । इंडियपरिग्गहे जहण्णादिगे छेदादि पारंचिए ठाति ॥५१७२।। चोदगाह जम्हा पढमे मूलं, वितिए अणवट्ठ ततिय पारंची। तम्हा ठायंतस्सा, मूलं अणवट्ठ पारंची ॥५१७३॥ पूर्ववत प्राचार्य आह - पडिसेवणाए एवं, पसज्जणा होति तत्थ एक्कंक्के । चरिमपदे चरिमपदं, तं चिय प्राणादिणिफण्णं ॥५१७४॥ पूर्ववत् ते चेव तत्थ दोसा, मोरियाणाए जे भणित पुट्विं । आलिंगणादि मोत्तुं, माणुस्से सेवमाणस्स ॥५१७॥ ते चेव पुवभणिता प्रणवत्थादिगा दोसा भवंति । "तत्थ" त्ति माणुस्से । चोदगेण चोदितं – “कीस प्राणाए गुरुतरो डंडो?' प्रायरिएण मोरियाणाए दिटुंतं काउं तित्थकराणा गुरुतरी कता । एवं जहा पुव्वं भणियं तहा माणियव्यं । दिव्वे लेप्पगे प्रालिंगणभंगदोसा ते भोत्तुं सेसा दोसा माणुस सेवमाणस्स सव्वे ते चेव भाणियव्वा ॥५१७॥ इदमेव फुडतरमाह - आलिंगते हत्यादिभंजणे जे तु पच्छकम्मादी । ते इह णत्थि इमे पुण, णक्खादिविछेयणे सूया ॥५१७६।। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५१७२-११८१ षोडश उद्देशकः लेप्पगं मालिगंतस्स जे हत्यादिभंगे पच्छ कम्मादिया दोसा भवंति ते इह देहजुते ण भवंति । इमे देहजुए दोसा भवंति- इत्थी कामातुरत्तणो णहेहि ता छिदेज, दंतेहिं वा छिदेज्ज, तेहि सो सूइबति सपक्षेष वा परपक्षेण वा जहा एस सेवगो त्ति ॥५१७६॥ माणुसीसु वि इमे चउरो विकप्पा सुहविण्णप्पा सुहमोइया य सुहविण्णप्पा य होंति दुहमोया । दुहविण्णप्पा य सुहा, दुहविष्णप्पा य दुहमोया ॥५१७७॥ भंगच उक्कं ठं। च उसु वि भंगेसु जहक्कम्मं इमे उदाहरणा - खरिया महिडिगणिया, अंतेपुरिया य रायमाया य । उभयं सुहविष्णवणे, सुमोय दोहिं पि य दुहाओ ॥५१७८॥ ग्या सव्वजणसामण्णं ति सुहविण्णवणा, परिपेलवसुहलवासादत्तणतो सुहमोया पढमभंगिला। महिड्डिगणिया वि गणियत्तणतो चेव सुहविण्णप्पा जोव्वणरूवविब्भमरूवादिभावजुत्तत्तणतो य भावववववकारिणि त्ति दुहमोया बितियभंगिल्ली। ननियभगे अंतेपुरिया । तत्थ दुप्पवेसं भयं च, अतो दुहविण्णवणा, अवायबहुलत्तणो मुहमोया। च उत्थे भंगे रण्णो माता । सा सुरक्खिया भयं च सव्वस्स य गुरुठाणे पूयणिज्जति दृहविण्णवणा, सव्वसुहसंपायकारिणी प्रवाए य रक्खति जम्हा तेण दुहमोया। पच्छद्ध ण एते चेव जहक्कम्मं चउरो भंगा गहिया ।।५१७८।। चोदगो पुच्छइ - तिण्ह वि कतरो गुरुओ, पागतिय कुटुंबि डंडिए चेव । साहस असमिक्खभए, इत् । पडिपक्व पभु राया ॥५१७६॥ कंठा पूर्ववत् । गतं माणुस्सगं । इदाणि तेरिच्छं - तेरिच्छं पि य तिविहं, जहण्णयं मज्झिमं च उक्कोसं । पायावच्च कुटुंबिय, दंडियपारिग्गहं चेव ॥५१८०॥ जहण्णगादिगं तिविध, एक्के पायावच्चादितिपरिग्गहियं भागियध्वं । अतिग अमिला जहण्णा, खरि महिसी मज्झिमा क्लवमादी । गोणि कणेरुक्कोसं, पगतं सजितेतरे देहे ॥५१८१॥ इह दयावेसतो जहण्णमज्झिमुक्कोसगा। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१२ अघवा- प्रइयममिलासु णिरपायत्तणतो सुहपावणियासु ण तम्बऽज्झतसाम्रो प्रतो जहणं । खरि-महिसिमादियासु सावयासु जो परिभोगऽऽझवसामो स तिव्वतरो प्रतो मज्झिमं । गोणि-कणेरुसु, कणेरु त्ति हत्थिणी, लोगगरहियसावयासु जो प्रज्झवसामो तिव्वतमो अतो उक्कोसं । फरिसो वा विसेसो भाणियन्यो । तिरियाण वि पडिमासु णाधिकारो, देहेण अधिकारी । तं देहं दुविधं - सचेयणं प्रचंयणं वा ॥५१८१॥ सामण्णतो देहजुए इमं पच्छितं ठायमाणस्स - चत्तारि य उग्धाया, जहण्णिए मज्झिमे अणुग्घाया । छम्मासा उग्धाया, उक्कोसे ठायमाणस्स ॥५१८२॥ पायावच्चपरिगहे जहष्णए ठाति : : । मज्झिमए :: । उकोसए । एवं चेत्र कोडुबिए डंलिए य ॥५१८२।। इमो विसेसो पढमिल्लुगम्मि ठाणे, दोहि वि लहुगा तवेण कालेणं । बितियम्मि य कालगुरू, तवगुरुगा होंति तइयम्मि ।।५१८३॥ पदमिल्लुगं ठाणं पागतितं, बितिय ठाणं कोडुबियं, ततियं डंडियं, सेसं कंठं । ठाणपच्छितं गतं तिरिएसु । इदाणि तिरिएसु पडिसेवणापच्छित्तं - चउरो लहुगा गुरुगा, छेदो मूलं जहण्णए होति । चउगुरुग छेद मूलं, अणवठ्ठप्पो य मज्झिमए ।।५१८४॥ छेदो मूलं च तहा, अणवठ्ठप्पो य होइ पारंची। एवं दिट्ठमदिढे, सेवंते पसज्जणं मोत्तुं ॥५१८।। पायावच्चपरिग्गहे जहण्णए अदिढे पडिसेवंतस्स डू। दिवे का। कोडुबियपरिग्गहे जहण्णए पडिसेवंतस्स अदिटु च उगुरु । दिटे सेवंतस्स छेदो। इंडिए जहण्णए अदिट्ठ छेदो। दिढे मूलं । पायावच्चपरिाहे मज्झिमए अविट्ठ एका । दि? छेदो । कोडुबिए मज्झिमए य अदिट्ठ छेदो। ट्ठि मूल । उडियपरिगहे मज्झिमपरिग्गहे अदिट्ठ मूल । दि8 प्रणवट्ठो। पायावच्चपरिणहे उक्कोसे अदिढे छेदो । दिद्वे मूल । कोडुबिए उक्कोसे प्रदिटुं मूल । दिढे प्रणवट्ठो। दंडिए उक्कोसे अदिट्टे प्रणवट्ठो। दिढे पारंचियं । एयं पच्छिनं पसंगविरहियं भणियं ।। १८ ।। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाष्यगाथा ५१८२-५१६१] चोदगाह - जम्हा पढमे मूलं, बितिए अणवट्ठ तइय पारंची । तम्हा ठायंतस्सा, मूलं अणवट्ठ पारंची ||५१८६ ॥ कंठा प्राचार्याह षोडश उद्देशकः पडिसेवणाए एवं, पसज्जणा तत्थ होइ एक्केक्के । चरिमपदे चरिमपदं, तं पिय आणादिणिफण्णं ॥ ५१८७ || कंठा ते चैव तत्थ दोसा, मोरियाणाएं जे भणित पुव्विं । आलवणादी मोतुं, तेरिच्छे सेवमाणस्स || ५.१८८ ॥ 1 पूर्ववत् पुब्वद्ध ं कंठं | माणुसित्थीसु जहा श्रालवणविन्भमा भवंति तहा तिरिक्खी णत्थि । प्रतो ते प्रालवणादि तिरिक्खीसु मोतं, सेसा श्रायसंजमविराणादिदोसा सव्वे सभवति ।। ५१८८ ।। जह हास-खेड्ड-आकार- विभमा होंति मणुयइत्थीसु । आलावा बहुविहा, ते णत्थि तिरिक्खइत्थीसु ॥ ५१८६|| विष्णवणे इमो च उभंगो - सुहविण्णप्पा सुहमोइयाय, सुहविष्णप्पा य होंति दुहमोया । दुहविण्णप्पा य सुहा, दुहविष्णप्पा य दुहमोया || ५१६०|| चभंगरयणा कंठा कायव्वा ॥ ५१६oll चभंगे जहसंखं इमे उदाहरणा मिलादी उभयसुहा, रहण्णगमादिमक्कडि दुमोया । गोणादि ततियभंगे, उभयदुहा सीहि वग्घीओ ॥ ५१६१ ॥ २१ कंठा पढमभंगे सुहग्गहणे निरपायत्वात् सुहविण्णवणा, लोगगरहिय अप्पत्वाच्च सुहमोया । बितियभंगे वाणरिमादी रिउकाले कामातुरत्तणतो सुहविष्णप्पा, ताम्रो चेव जदा प्रणुरता तदा दुहमोया । एत्थ दिट्ठतो रहण्णगो । ततियभंगे गोणादियाओ सपक्खे वि दुक्खं समागमं इच्छंति, किमंग पुण मणुए । अतो दुहविण्णवणा, लोगगरहियत्तणतो सुहमोया । चरिमभंगे सीहिमादियाम्रो जीवियंतकरी तेण दुहविण्णप्पाश्री, ताम्रो चेव जया प्रणुरताो प्रबंधं ण मुयंति त्ति दुहमोया ।। ५१६१ ॥ चोदगो पुच्छति - "को एरिसो प्रभो भावो हुज्जा, जो तिरिक्वजोगीओ लोगगरहियाओ प्रासेवेज्जा" ? Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ प्रायरिग्रह - सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे जति ता सणण्फतीनू, मेहुणसनं तु पावती पुरिसो । जीवितदोच्चा जहियं किं पुण सेसासु जातीसु ॥५१६२ ॥ सव्वे जे "णहारा ते सणप्फया भष्णंति इह सीही घेत्तव्वा । जइ ताव सीहीसु जीवितंतकरीसु पुरिमो मेहुणं पावति किं पुण सेसासु प्रमिलादिजातिसु त्ति । एत्थ दिट्टंतो एक्का सीही खुडलिया चेव गहिता, सा बंधणत्था चेव जोव्वणं पत्ता । रितुकाले मेहुणत्थी, सजातिपुरिसं श्रलभंती ग्रहावतीतो एक्केणं पुरिसेणं सागारियठाणे छिक्का, साय चाडु का उमाढत्ता, सा य तेण अप्पसागारिए पडिसेविता । तत्थ तेसि दोण्ह वि संसाराणुभावतो प्रणुरागो जातो। तेण सा बंधणा मुक्का । सा तं पुरिसं घेत्तु पलाता प्रडवि पविट्ठा | त पुरिसं गुहाए छोढुं प्राणेउं पोग्गले देति । सो वि तं पडिसेवति ।। ५१६२॥ एवं पुरिसाण भणियं । इदाणि संजतीणं भण्णइ 1 एसेव गमो नियमा, णिग्गंथीणं पि होति नायव्वो । पुरिसपडिमा तासिं, साणम्मि य जं च अणुरागो ॥ ५१६३ ॥ | माणुसे मनुयपुरिया 1 संजतीण वि एमेव सव्वं दट्ठव्वं, णवरं - लेपगे दिव्वपुरिसपडिमा तेरिच्छे तिरियनुरिसा य दटुव्वा । रिच्छे सादितोय कायव्वो - एक्क़ा अगारी अवाउडा काइय वोसिरंती विरहे साणेण दिट्ठा | सो य साणो पुच्छं *लोलतो चाटु करेंतो उच्चासणाए प्रल्लीणो । सा प्रगारी चिंतेइ - "पेच्छामि एस किं करेति" त्ति । सा तस्स पुरतो सागारियं प्रभिमुहं काउं हत्थेहि जाणुएहि य अधोमुही ठिता । तेण सा पडिसेविता । ती अगारीए तत्थेव साणे प्रणुरागो जातो। एवं मिग-छगल- वाणरादी वि अगारि अभिलसंति । जम्हा एवमादि दोसा तम्हा सागारिए ण वसियव्वं ॥ ५१६३ ॥ इमं बितियपदं - अद्वाणणिग्गयादी, तिक्खुत्तो मग्गिऊण असतीए । गीयत्था जयणाए, वसंति तो दव्वसागरिए || ५१६४॥ [ सूत्र - १ श्रद्धाणणिग्गयति श्रद्धाणप्रतिपन्नाः तिक्खुत्तो तिनि वारा अष्णं सुद्धं वर्साह मग्गियं । "असति ति लभता ताहे दव्वसागारियवसपीए जयणाए वसंति । काय जयणा ?, गीयसद्दाइसु उच्चेण सद्देण सज्झायं करेंति, झाणलद्धी वा झाणं झायति ।।५१६४।। इमो भावसागारियस्स अववातो - श्रद्धाणणिग्गयादी, वासे सावयभए व तेणभए । आवरिया तिविहे वी, वसंति जतपाए गीयत्था ।। ५१६५ ।। १ नाहरा इत्यपि । २ चालतो, इत्यपि पाठः । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५१६२ - ५२०० ] तो गामादीण सुद्धवसह ग्रहवा बाहि सीहमा दिसावयभयं तिविधा विपडिमा दिव्वा माणूसा एवं गीयत्था जयगार वसंता सुज्झति ॥५१६५।। - षोडश उद्देशकः अलमंता बाहि गामस्स निवसति । इमेहि कारणेहिं - वासं वासति, सरीरोव हितेणगभयं वा, ताहे तो चेव भावसागारिए वसति । तत्थ तिरिया य वत्यमा दिएहिं प्रावति, अंतरे वा कडगचिलिमिलि दति ! बहुधा दव्वभावसागारियसंभवे इमं भण्णति - - जहि पतरा दोसा, आभरणादीण दूरतो य मिगा | चिलिमिणि णिसि जागरणं, गीते सज्झाय-झाणादी || ५१६६ ॥ अप्पतरदोसे गीयत्था ठायंति, श्राभरणाउज्जभत्तादीण य श्रगीयत्था दूरतो ठविज्जति तं दिसं अपणा ठायंति, अंतरे वा कडगचिलिमिलि देंति, रातो य जागरण करेंति, गीयत्था इत्थिमादिगीतादिसमु य सभायं करेति, झाणं वा झायंति ।। ५१६६ ॥ एसा खलु ओहेणं, सही सागारिया समक्खाया । एत्तो उ विभागेणं, दोण्ह वि वग्गाण वोच्छामि ॥ ५१६७ || ज पुरिसइत्थीण सामण्णतो श्रविभागेण अक्खायं एस ग्रोहो भण्ण्ड । सेसं कंठ ! इम कप्पत्ते ( प्रथमोद्द शके सूत्र २६, २७, २८, २६ ) विभागो भणितो णो कप्पर णिग्गथाणं इत्थिसागारिए उवस्सए वत्थए । कप्पर णिग्गंथाणं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए । णो पति णिग्गंथी पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए । कप्पइ णिग्गंथीणं इत्थिसागारिए उवस्सए वत्थए ।।५१६८ ।। एसेव सुत्तक्कमो इमो भणितो समणाणं इत्थीसुं, ण कप्पति कप्पतीय पुरिसेसुं । समणीणं पुरिसेसुं, ण कप्पति कप्पती थीसुं ॥ ५१६८|| कंठा इत्थीसागारिए उवस्यम्मि सव्वेव इत्थिगा होती । देवी मणुय तिरिक्खी, सच्चेव पसज्जणा तत्थ ॥ ५१६६॥ जाए इत्थीए सामारिए उवस्सए या कप्पइ वसिउं सा इत्यो भाणियव्वा, प्रतो भण्णति - सञ्चव इत्थिया होइ जा हेट्ठा नंतरसुत्ते भणिता, ता य देवी मगुस्सी तिरिच्छी । एतासु ठियस्स तं चैव पच्छितं ते प्रायसं मवि राहणादोसा, सच्चेव पसज्जणापसज्जनवच्चितं त चेव जं पुव्वसुत्ते भणियं ॥ ५१६६॥ चोदगाह - जति सव्वेव य इत्थी, सोही य पसज्जणा य सच्चेव । सुतं तु किमारद्धं चोदग ! सुण कारणं एत्थं ॥ ५२०० ॥ जइ सव्वं चैव तं जं पुव्वसुते भणियं, तो किमिह पुण इत्यसानारियसुत्तसमारंभो ? २३ " Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्र ग्राचार्य ग्रह - हे चोदग ! एत्य कारणं सुणसु - पुव्वभणितं तु जं एत्थ, भण्णती तत्थ कारणं श्रत्थि । पडसे हे अण्णा, कारणविसेसोचलंभो वा ।। ५२०१ ।। पुत्रद्ध ं कंठ । जे पुब्वं प्रणुजागंतेण प्रत्था भणिता ते चैवत्ये पडिमेघंतो भगइ, ण दोसो । अहवा जे पुव्वं डिसेतो प्रत्था भणिता, ते देव श्रणुष्णं करेंतो दंसेति ण दोमो | "कारणं" ति हेउ दरितो भगाति, ण दोसो | ग्रहवा ग्रहवा विसेसोवलंभ वा दरिमतो पुत्रभणियं भणाति, ण दोसो ।। ५२०१ ॥ किं च - - हे मन्त्रणिसेहो सरिमाणुष्णा विभागसुते | जयणाहेतुं भेदो, तह मज्झत्थादयो वा वि || ५२०२|| य ।।५२०३।। हमने सामण्णतो सव्वं चेत्र णिसिद्धं, विभागमुत्ते पुर्ण सपवखे श्रणुष्णा, जहा पूरिसाण रसगारिए कप्पति, इत्थीणं इत्थी कप्पइ । ग्रहवा जयगा जहा पुरिसे इस्योसु वा कता तं दरिसते विभागसुते भेदो कती । अहवा - पुरिसेसु इत्यीसु य मज्झत्यादयों विसेसा दसेहामि त्तिविभागसुत्तसमारंभो । ग्रथवा श्रणंतरसुते सागरिय प्रत्थम्रो भणियं । इह पुण त चैव गुण नियमंति, विसे मलो वा इमो पुरिस नपुंमग इत्थीम् ॥५२०२ ।। तत्थ पुरिसेसु इमं - पुरिसस गरिए उवस्मयम्मि 'चउरो मासा हवंति उग्घाया । ते वय पुरिसा दुविहा, सविकारा निव्विकाराय || ५२०३ || जइ पुरिससागारिए उवस्सए ठाति तो चउलहुआ । ते य पुरिसा दुविधा - सविकारा निव्विकारा [ सूत्र- १ तत्थ सविकारा इमे - रूवं आभरणविहिं, वत्था - ऽलंकार - भोगणे गंध । आज भट्ट गाडग, गीए य मणोरमे सुणिया ||५२०४ || तत्थ रूव उद्वर्तनस्नानजघास्वेदकरणहदनवालसठावणादियं श्राभरणवत्थाणि वा णाणादेसियाणि विविहाणि परिटेंति, ग्राभरणमल्लादिणा वा श्रलंकरणेग अलकरेंति, भोवणं वा विभवेण विसिद्धं भुजंति, मज्जादि वा पिवति, चदणककुमकोट्ठपुडा दीहि वा गर्नेह प्रयाणं प्रालिपेंति, वासेंति वा, घूर्वेति वा, तयादि वा चउव्विहमा उज्जं वादेति णच्वंति वा, गाडगं गार्डेति, मनोहारि वा मणोरमं गेयं करेंति, रूवादि वा द गंधे मोहरे प्रग्धाएता गीयादिए य सद्दे सुणित्ता जत्थ गंधो तत्थ रसो वि । एवमादिएहि इदियऽत्यहि भुक्तभोगिण सतिकरण, प्रभुत्तभोगिणो कोतुअं, पडिगमणादयो दोसा ||५२०४ || १ चउरो लहुगा य दोस भाणादी, इति बृहत्कल्पे गा० २५५६ । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५२०१-५२१० ] षोडश उदेशकः एतेसु ठायमाणस्स इमं पच्छित्तं - एक्केक्कम्मि य ठाणे, चउरो मासा हवंति उग्घाया। आणाइणो य दोसा, विराहणा संजमाऽऽताए ॥५२०५।। एतेसु रूवाभरणादिसु एक्कक्के ठायमागस्स चउलहुया ।।५२०५।। एवं ता सविगारे, णिवीगारे इमे भवे दोसा । संसद्दण विबुद्ध, अहिगरणं सुत्तपरिहाणी ॥५२०६।। पुव्वद्ध कठं । साधूणं सम्झ यसदेणं प्रावस्सियणिसीहियस द्दण वा रातो सुतादि बुझेज्झा ततो अधिकरणं भवति । अह अभिकरणभया सुत्तत्थपोरिसीमो ण करेंति तो सुत्तत्थपरिहाणी भवति । ___ अहवा - "प्रधिकरणे' ति - साधू काइयादि णिफिडंता पविसंता वा प्रावडेज वा पवडेज वा. णिसीहियादिस हेण वा गिहत्था विबुद्धा रोस करेज्जा, ततो प्रधिकरण उत्तरुतरतो भवेज्ज । अधिकरणेण वा पिट्टापिट्टि करेज्ज । तनो प्रायविराहणा सुत्तादिपरिहाणी य भवति ॥५२०६॥ अधवा - "अधिकरणे" ति पदस्य इमा व्याख्या आउज्जोवण वणिए, अगणि कुडुबि कुकम्म कुम्मरिए । तेणे मालागारे, उभामग पंथिए जंते ॥५२०७।। जम्हा एते दोसा तम्हा एएसु पुरिसेसु वि ण वायव्वं ॥५२०७॥ चोदगो भणति - एवं सुत्तं अफलं सुनणिवातो उ असति वसहीए । गीयत्था जयणाए, वसंति तो पुरिससागरिए ॥५२०८।। पायरियो भणति - सुत्तणिवायो विसुद्धवसहीए मसइ पुरिसाण जं पुरिससागारियं तं दवसागारियं, तत्थ गीयत्था जयणाए वसंति ॥५२०८॥ ते वि य पुरिमा दुविहा, सन्नी य असन्निणो य बोधव्या । मज्झत्थाऽऽभरणपिया, कंदप्पा काहिया चेव ।।५२०६।। ते पुरिसा दुविधा - प्रसणिणो सणिमो य । जे सम्मिणो ते च उठिवहा - मज्झत्था प्राभरणपिया कदप्पिया काहिया य । ।।५२०६॥ इमे प्राभरणपिया - आभरणपिए जाणसु, अलंकरेंते उ केसमादीणि । सइरहसिय-प्पललिया, सरीरकुइणो उ कंदप्पा ॥५२१०।। पुवढं कठं । इमे कदप्पिया - "सइर" पच्छदं । सहरं ति गुरुभिरनिवार्यमाणाः स्वेच्छया हसंति, अनेकक्रीडासु अंदोलकादिदप्पललिया घेइणो इव प्रणे गसरीरकिरियामो करेंतो कंदप्पा भवति ।।५२१०॥ १ गा० ५२०६ । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१ इमे य काहिया - अक्खातिगा उ अक्खाणगाणि गीयाणि छलियकवाणि । कहयंता उ कहाओ, तिसमुत्था काहिया होंति ॥५२११।। तरंगवतीमादिग्रक्खातियानो अक्खाणगा धुत्तक्खाणगा, पदाणि धुवगादियाणि कहिति।जे तेसि वण्णा सेतुमादिया छलियकव्वा, वसुदेवचरियचेडगादिकहानो, धम्मत्थकामेसु य प्रणामो वि कहाप्रो कहेंता काहिया भवंति ॥५२११।। एएमि तिण्डं पी, जे उ विगाराण बाहिरा पुरिसा। वेरग्गरुई णिया, णिसग्गहिरिमं तु मज्झत्था ।।५२१२॥ वेरग्गं रुच्चति जैसि ते वेरु (र) गरुई, करचरणिदिएसु जे सत्या अच्छंति ते णिहुया, निसम्मो नाम स्वभावः हिरिमं जे सलज्जा इत्यर्थः । एवंविहा मज्झत्या ॥५२१२॥ पुणो एतेसि इमो भेदो एक्केक्का ते तिविहा, थेरा तह मज्झिमा य तरुणा य । एवं सन्नी बारस, बारस अस्सण्णिणो होंति ॥५२१३।। मज्झत्या तिविधा - घेरा मज्झिमा तरुणा । एवं प्राभरणप्पिया वि कंदप्पिया वि क हिया वि निविघा एवं एते बारसविधा सणियो। एवं भसण्णिो विबारसविधा कायम्वा ॥५२.३॥ पुरिससागारियस्स अलंभे, कदाति णपु सगसागारियो उवस्सप्रो लभेजा, तत्थवि इमो भेदो-. एमेव बारसविहो, पुरिस-णपंसाण सण्णिणं भेदो। अस्मण्णीण वि एवं, पडिसेवग अपडिसेवीणं ॥५२१४॥ एमेवऽवधारणे, जहा पुरिसाणं भेदो बारसविहो तहा सणीणं असणीणं च णसगाणं बारसभेदा कायव्वा । ते सत्वे वि मगसतो दुविधा दटुव्वा - इथिको वत्थिगा पुरिसणेवत्थिमा य । जे पुरिमणेवत्या ते दुविध! - पडिमेवी य अपडिसेवी य । जे इत्यिवत्थिया ते णियमा पडिसेवी ॥५२१४।। एवं विभागेसु विभत्तेसु इमं पच्छिनं भण्णति - काहीया तरुणसं, चउसु वि चउगुरुग ठायमाणाणं । सेमेसु वि चउलहुगा, समणाणं पुरिसवग्गम्मि ||५२१।। मणीणं एकको काहियतरुणो, प्रमणीण वि एक्को, एते दोणि । जे परिसणपुंसा पुरिसणेवत्थं. अपडिसेवगा तमु वि सणिभेदे एक्को काहियतरुण तेसु चे । प्रसगिभेदे वि एक्को, एते वि दो। एते दो दुना च उरो। ऐतेसु च उसु काहियतरुणेसु ठायमा गागं पत्तेय च उगुरुगा, सेससु चोयालीसाए भेदेसु ठायमाणाण पत्तेयं च उलहुगं । एयं पच्छितं पुरिसवग्गे भणिय णिक्करणो ठायमाणाणं । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५२११-५२१६ ] षोडल उद्देशकः कारणे पुण इयाए विधीए ठायमाणा सुज्भंति - "असति वसहीए " त्ति ।।५११५ ।। सणी पदमवग्गे, असति असण्णीसु पदमवग्गम्मि । तेण परं सण्णीसुं, कमेण अस्सनिस चेव || ५२१६|| सष्णीणं पढमवग्गे मज्झत्या ते तिविधा, तत्थ पढमं येरेसु ठाति, येरासति मज्झिमेसु तेसऽसति तरुणे ठाई | सष्णीणं पढमवग्गासति ताहे प्रसणीणं पढमवगे पेर-मज्झिम- तरुणेसु कमेण ठाति । सि सतीए सण्णीणं बितियनग्गे येर-मज्झिम- तरुणेसु ठायंति । तेसि प्रसह सण्णीसु चैव तइयवग्गे पेर मज्झिम तरुणेसु ठायंति । afe प्रसइ सण्णीसु चैव काहिएस येर-मज्झिमेसु ठायति । ताहे सति सणणं प्रसण्णीसु बितियवग्गाम्रो कमेण एवं चैव जाव का हिय-मज्झिमाणं असतीए ताहे सनी काहि तरुणेसु ठायंति, ते पण्णविज्जति जेण कहाम्रो ण कहेंति । दाणि पु सगे भणति सि सति प्रसणी वि काहिय-तरुणेसु ठायंति, ते वि पष्णविज्जति ।। ५२१६ ।। पुरिसेसु एयं पच्छितं ठायव्वं, जयणा य भणिया । जह चैत्र य पुरिसे, सोही तह चैव पुरिसवेसेसु । तेरा सिएस सुविहित, पडिसेवग पडिसेत्रीसु ॥ ५२१७॥ जह चैव पुरिसेसु सोधी भणिता तह चेव णपुंसेसु पुरिसवेमणेवत्येसु प्रपडिसेवगैस पडिसेवगेसु वा भाणिव्वा । ठायव्वे वि जयणाविधी तह चेत्र भाणियव्या ॥५२१७। जह कारणम्मि पुरिसे, तह कारणे इत्थियासु वि वसंति । अद्धाण-वास- सावय- तेणेसु वि कारणे वसति ।। ५२१ ८ ।। २७ जह पुरिससागारिकारणेण ठाइ तहेव कारणं अवलंबिऊन इत्यिसागारिए वि जयणाए ठायंति वसंतीत्यर्थः । श्रद्धाणादिणिग्गया सुद्धवसहि प्रप्णतरदोसवसहि वा तिक्खुतो मग्गिउं मलभंता इत्विसागारिए वसंत । इमेहि कारणेहि पडिबद्धं वासं पडइ, बाहि वा सावयभयं, उवधिसरीरतेणभयं वा । इत्यसागारिए वि वारस भेदा जहा पुरिसेसु । श्रसणित्थीसु वि बारस, इत्यिवेसणपुंसेसु सणीसुवि तेसु चेद मसणीसु वि बारस ॥५२१८।। बारस, इमं पच्छित्तं - काहीता तरुणीसुं, चउसु वि मूलं ठायमाणाणं । सेसासु विचउगुरुगा, समणाणं इत्थवग्गम्मि । ५२१६ || eforeाहिक तरुणी, श्रसष्णिका हिकतरुणी, इत्थवेसगपुंससष्णिका धिकतरुणी, ना चेव प्रसणिकाहिक तरुणी, एयासु चउसु वि जइ ठायंति तो मूलं 1 सेसासु सणि प्रसण्णिसु वा वीसाए इत्योसु चउगुरुता । एवं समणाणं इत्थवगे ठायंताणं पतिं ॥५२१६ ।। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे जह चैव य इत्थीसु, सोही तह चेव इत्थिवेसेमु । तेरासिएस सुविहिय, ते पुण णियमा उ पडिसेवी || ५२२०|| जहा समणाणं इत्थी ठायमाणाणं सोधी भणिया तह चेव इत्थिवेसेसु णqसगेसु ठायताण सोश्री भाणियन्त्र, जेण ते नियमा पडिसेवी । ५२२० ।। इमा तासु ठायव्वे जयणाविधी ।। ५२२३।। एमेव होइ इत्थी, बारस सण्णी तहेव असण्णी । सणीसु पढमवग्गे, सति असण्णीसु पढमंमि || ५२२१|| जहा पुरिमेसु भेदा एवं इत्थीसुत्रि सण्णीसु बारम भेदा, प्रसणीसु वि बारस । एयासु ठ यव्वे जयगा "सणीसु पढमत्रग्गे" त्ति, मज्झित्यो थेरमज्झिमनरुगीमु प्रमति तेसि श्रमणो । पम तेसिसणीसु बितियवग्गे । श्रसति तेसि असण्णीसु तितियवग्गे ।। १२२१ ।। असत एवं एक्केक्क तिगं, वोच्चत्थगमेण होइ विष्णेयं । मोत्तूण चरिम सण्णीं, एमेव नपुंसएहिं पि ।। ५२२२|| आहरणप्पियाणं असण्णोण प्रसति सग्गीसु कंदप्पियासु ततियवग्गे ठाति । तेसि श्रसति श्रमण्णी कंदप्पियांसु, नेसि प्रसति सणी काहियासु थेरमज्झिमासु । सितिणी काहियासु थेरमज्झिमासु । ततो सण्णी तरुणीसु । ततो श्रमष्णीनु तरुणी । एवमेव इत्थिणपुंसेस त्रि ठायव्वे जयणा भाणियन्त्रा ।।५२२२|| एस पुरिसाण पुरिसेसु इत्थीसु य सोधी ठायव्वे जयणा भणिता । दाणि इत्थी पुरिसेसु य सोधी ठायव्वे जयणा भण्णति एसेव गमो णिगमा, णिग्गंधीणं पि होड़ णायव्वो । जड़ तेसि इत्थियाओ, तह तासि पुमा मुणेयच्चा || ५२२३|| पुव्वद्धं कंठं । जहा तेसि पुरिमाणं इत्थम्रो गुरुगाम्रो तहा तेसि इत्थियाणं पुरिसा गुरुगा मुणेयव्त्रा इत्थियाणं इमं सपक्खे पच्छित्तं .. काहीता तरुणीसुं, चउसु वि चउगुरुग ठायमाणीणं । सासु विचउलहुगा, समणीणं इत्थवग्गम्मि ॥ ५२२४ ॥ पूर्ववत्कंठा । णवरं - इत्थियात्री भाणियव्वा ।।५२२४।। इमं पुरिसेसु ठायमाणीणं पच्छित्तं [ सूत्र - १ काहीगातरुणेमुं, चउसु वि मूलं तु ठायमाणीणं । सेसेसु विचउगुरुगा, समणीणं पुरिसवग्गम्मि ॥ ५२२५॥ पूर्ववत्कंठा । णवरं - इत्थियात्र पुरिसेसु वत्तव्वा ।।५२२५ ।। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५२२०-५२२६ ] षोडश उद्देशक: २६ अधवा - इमो अण्णो पायच्छित्तादेसो, सण्णीसु बारससु असण्णीसु य बारससु - थेरातितिविह अधवा पंचग पण्णरस मासलहुश्रो य । छेदो मज्झत्थादिसु, काधिगतरुणेसु चउलहुगा ॥५२२६॥ मज्झत्थे थेरे पंच राइंदिया छेदो। मज्झत्थे मज्झिमे पण रस राइंदिया छेदो। मज्झत्ये तरुणे मासलहू छेदो । एवं ग्राभरणकंदप्पेसु वि, काहिएमु वि थेरमझिमेसु एवं चेव, •णवरं - काहिगतरुणेसु चउलहुछेदो । असणीग वि बारस विकरपे एवं चेष ।।५२२६।। सण्णीमु असण्णी, पुरिस-णपुंसेमु एव साहूर्ण । एयासु चिय थीसुं, गुरुगो समणीण विवरीओ ॥५२२७॥ सणिसणीण विकप्पेसु चउत्रीसा पुरिसणपसेसु, एवं चेव इत्थीसु वि, एयासु चेव चउवीसभेदासु इत्थिवेसधारीसु य पसगेसु च उवीसविकप्पेसु एम चेव छेदो एवं चेव दायवो, णवरं - गुरुमो कायवो। "समणीण विवरीयो" त्ति समणीण समणीपक्खे जहा पुरिसाणं पुरिसपक्खे, तासि पुरिसपक्खे जहा पुरिसाणं इत्थिपक्खे ॥५२२७॥ । जे भिक्खू सउदगं सेज्जं उबागच्छइ, उवागच्छंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥२॥ सह उदएण सउदया, उपेत्य गच्छति उपागच्छति, साइज्जणा दुविहा - मणुमोयणा कारावणा य, तिसु वि डू::। अह सउदगा उ सेज्जा, जत्थ दगं जा य दगसमीवम्मि । एयासिं पत्तेयं, दोण्हं पि परूवणं वोच्छं ॥५२२८॥ अधेत्ययं निपातः, सागारिय अणंतरभेदप्रदर्शने वा निपतति । "जत्थ दगं" ति पाणियघरं प्रपादि, जाए वा सेज्जाए उदगं समोवे वपाति । जा उदगसमीवे सा चिट्ठउ ताव जत्थ उदगं तं ताव परवेमि ॥५२२८॥ जत्थ णाणाविहा उदया अच्छंति इमे - सीतोदे उसिणोदे, फासुमफासुगे य चउमंगों। ठायंते लहु लहुगा, कोस अगीयत्थसुत्तं तु ॥५२२६॥ सीतोदगं फासुयं, सीतोदगं प्रफासयं । उसिणोदगं फासुयं, उसिणोदगं प्रफासयं ।। पढमभगे उसिणोदग सीतीमूतं चाउलोदगादि वा, बितियभंगे सच्चित्तोदर्ग चैव । सतियभंगे उसिणोदगं उन्नत्तहंडं, चउत्थभंगे तावोदगादि । पढमततियभंगे ठायंतरस मासलहुं । बितियचउत्थेमु चलहूं। एयं कम्स पच्छित्तं ? आर्यारो भणइ - एयं अगीयस्स पच्छित्तं ॥५२२६॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० फासुगस्स इमं वक्खाणं भावप्रो य । सीतितरफासु चउहा, दव्त्रे संसट्टमीसगं खेत्ते । कालतो पोरिसि परतो, वण्णादी परिणतं भावे || ५२३० ॥ जं सीतोदगं फासूयं, "इयर" ति जं च उण्होदगं फासूयं तं चउन्विहं - दव्वधो खेतम्रो कालयो दव्य जं गोरससंसट्टे भायणे छूडं, सोतोदगं तं तेण गोरसेण परिणामितं दव्वतो फासूयं । खेतम्रो जं कूवतलागाइसु ठियं मधुरं लवण मीसिज्जति लवणं वा मधुरेण । कालतो जं इंधणे छूटे पहरमेतेण फासुगं भवति । जं वण्णगंधरसफरिसविप्परिणयं भावतो जं (तं) फासूयं वृत्तं ।। ५२३०॥ "जो 'अगीयत्थो भिक्खू ठाति तस्स एयं पच्छित्तं" । एत्थ चोदगो चोएति सभाष्य. चूर्णिके निशीथसूत्रे णत्थि गीयत्थो वा, सुत्ने गीओ व कोइ णिद्दिट्ठो | जा पुण गाण्णा, सा सेच्छा कारणं किं वा ।।५२३१।। - - "गीतो भगोतो वा सुत्ते ण भणतो । जं पुण एगस्स गीयत्थपक्वस्स प्रणुष्णं करेह, प्रगीयपक्खस्स डिसे करेह, एस (एत्थ ) तुज्भं चेव स्वेच्छा, ण तित्थगरभणियं । अघवा किं वा कारणं, जं गोयस्म प्रणुष्णा, प्रगोयस्स पडिसेहो ।।१२३१|| आयरिश्रो भणति - एतारिसम्म वासो, ण कप्पती जति वि सुत्तणिद्दिट्ठो | वोडोउ भणितो, आगरियो उवेहती अत्थं ॥ ५२३२ || - [ सूत्र -२ पुन्वद्धं कंठे । जम्हा य अगीतो कारणं प्रकारणं वा जयणं प्रजयणं वा ण यागति तेज अगीते पच्छितं । प्रण्णं च सुत्ते प्रत्यो अव्वोगडो भणिश्रोत्ति, प्रविमेसितो, तं प्रविसिद्धं प्रत्थं प्रायरिओ " उवेहति” उत्प्रेक्षते विशेषयतीत्यर्थः । जहा एगातो पिंडाम्रो कुलालो प्रणेगे घडादिरूवे घडेति एवं प्रायरिम्रो एमाओ सुत्ताश्रो प्रणेगे प्रत्थविगप्पे दंसेति । अधवा जहा अंधारे अप्पासिते संता वि घडादिया ण दिसंति एवं सुते प्रत्थविसेसा, ते य प्रायरियपदीवेण जदि पगासिता भवंति तदा उवलब्भति ।। ५२३२ ।। किं च जं जह सुत्ते भणियं, तहेव तं जति विद्यारणा णत्थि । किं. कालियाणुओगो, दिट्ठो दिट्टिप्पहाणेहिं ॥ ५२३३ ॥ जति सुत्ताभिहिते विचारणा ण कज्जति तो कालियसुत्तस्स प्रणुप्रोगपोरिसीकरणं कि दिट्ठ दिपिहाणेहि ?, दिट्टिप्पहाणा जिणा गणहरा वा । श्रतो प्रणुप्रोगकरणम्रो गज्जति - जहा ने बहू अत्थपदा, ते य प्रायरिएण निगदिता ति ।।५२३३॥ १ गा० ५२२६ । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ५२३०-५२३७ ] कि च - षोडश उद्देशकः उस्सग्गसुयं किंची, किंची अववाइयं मुणेयव्वं । तदुभयमुत्तं किंची, सुत्तस्स गमा मुणेयव्वा || ५२३४ ॥ किं चि उसामुतं । किं चि प्रववादसुतं । किं चि तदुभयमुत्तं । तं दुविहं तं जहा बादियं, प्रतवादुसग्गिय । एते मुत्तगमा सूत्रप्रकारा इत्यर्थः । अधवा -मुत्तगमा द्विरभिहितो गमः, तं जहा उस सग्गियं श्रववादाववादियं चेति । एते वि छ मुत्तपगारा प्रायरिएण बोधिता गज्जति ।।५२३४|| इमो वा सुत्ते ग्रत्थपतिबंधो भवति - 'गेसु एगगहणं, सलोम णिल्लोम अकसिणे अजिणे । विहिभिण्णस्य गहणे, अववादुस्सग्गियं सुतं ॥ ५२३५|| - उस्सग्गठिई सुद्ध, जम्हा दव्वं विवज्जयं लहइ । णय तं होड़ विरुद्ध, एमेव इमं पि पासामो || ५२३६ || इमो प्रणाणुपुवीए एतेन मुत्ताणं प्रत्यो दंसिज्जनि -- "विधिभिष्णस्स य" पच्छद्धं । १"" कप्पति णिग्गंथीणं पक्के तालपलंबे भिण्णे पडिग्गाहित्तए से वि य विधिभिण्णे, णो चेव णं प्रविधिभिण्णे, " प्रत्रवादेण गहणे पत्ते जं प्रविधिभिष्णस्स पडिसेहं करेइ, एस अववादे उस्सगो ।।५२३५ ।। ववादाणुण्णायं कहं पुणो पडिसिज्झति ?, प्रतो भणति - ग्रहवा - "गोगरग्गपविट्टो उ णणिसीएज्झ कत्थति । वह च ण सबंधिज्जा, चिट्ठित्ता ण व संजए" । - ३१ ठाणं ठिती, उस्सग्गस्स लिई उस्सग्गठिई उत्सगंस्थानमित्यर्थः । उस्सग्गठाणेसु जं चैव दव्वं कपतितं चेत्र दव्वं ग्रसथरणे जम्हा विवज्जयं लभति । "विवज्जतो" विवरीयता - प्रसुद्धमित्यर्थः । तं श्रमृद्ध गुणकरेति घेपण विरुद्ध भवति । "एमेव इमं पिपासामो" ति श्रववातश्रणुष्णाए अविधिभि दमजतो भवति तेग पुगो डिसेहो कज्जइ दोष इत्यर्थः ॥ ५२३६॥ उस्सग्गे गोयरम्मी, णिसिज्जकृष्णाऽववाय तिन्हं । मंमंदलमा अहिं, अववाउस्सग्गियं सुत्तं ॥ ५२३७॥ हम उस "णो कति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अंतरगिहंसि आसइत्तए वा जाव का उस्मा वा ठाणं ठातित्तए वा" । उस्सग्गव इमं पवत्रादिकं "घ पुण एवं जाणेज्जा - जुण्णे वाहिए तवस्सि दुब्बले किलते मुन्छेज वा पवडेज्जवा एव ण्हं कप्पति अंतरगिहंसि ग्रामइत्तए वा जाव उस्सग्गठाणं ठातित्तम्" । १ गा० ५२३५ । २ दश० प्र० ५ उ०० गा० ७ । ३ दश० अ० ६ गा० ० Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-२ अहवा - “तिहमण्णतरागस्स, णिसेज्जा जस्स कप्पति । जराए अभिभूयस्स, वाहिगस्स तवस्सिणो ॥६०॥ इमं प्रववादुस्सग्गियं-" 'बहुट्टियं पोग्गलं अणिमिसं वा बहुकंटयं ।" एवं प्रववादतो गिण्हंतो भणाति - "मंसं दल मा अट्ठिय" ति ।।५२३७॥ अघवा - णो कप्पति वाऽभिण्णं, अववाएणं तु कप्पती भिण्णं । कप्पइ पक्कं भिण्णं, विहीय अववायउस्सग्गं ॥५२३८|| "णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा प्रामे तालपलंबे अभिण्णे पडिग्गाहित्तए" (बृह० उ० १ सू० १) एयं उस्सग्गियं । "कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा प्रामे तालपलबे भिण्णे पडिग्गाहित्तए", (वृह० उ० १ सू० २) एवं अववादियं । पच्छदं कंठं ।। २पूर्वोक्त इम उस्सग्गाववा इयं - ‘णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा रातो वा वियाले वा सेज्जासंथारए पडिग्गाहित्तए, ।। णण्णत्थेगेणं पुवपडिलेहिएणं सेजासथारएणं" । (बृह० उ० ३ सू० ४२, ४३) इमं उस्सग्गुस्सग्गियं । “जे भिक्खू असणं वा पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा (क) पढमाए पोरिसोए पडिग्गाहेता पच्छिम पोरिसिं उवातिणावेति. उवातिणावेंत वा सातिजति; से य पाहच्च उवातिणाविते सिया जो तं भुजति भुजतं वा सातिज्नति ।" (बृह० उ० ४ सू० १६) इमं प्रववादाववादिय । जेसु प्रववादो सुत्तेसु निबद्धो तेसु चेव सुत्तेसु प्रत्थतो पुणा अशुण्णा पवत्तति, ते प्रववायाववातिय । सुत्ता, जतो सा वितियाणुणा सुतत्वाणुगता इति । इदाणि बितियगाहाए पुव्वद्धस्स इमं वक्खाणं - प्रणगेसु मुत्तत्थेसु घेत्तन्वेसु एगस्स प्रत्थस्स गहणं करेति, जहा जत्थ सुत्ते पाणातिवातविरतिग्गहण तत्थ सेसा महन्ववया प्रत्यतो ददुवा । एवं कसायइंदियनासवेमु वि भागियव्व । इमे पत्तेयसुत्ता - णो कप्पति णिग्गंथाणं अलोमाई चम्माई धारित्तए वा परिहरितए वा।( कप्पा णिग्गंथाणं सलोमाई चम्माई धारित्तए वा परिहित्तए वा । (बृह० उ. ३ मू०४) णो कप्पति,णिग्गंथीणं सलोमाई चम्माइंधारित्तए वा परिहरित्तए वा। (बृह० उ०३ मु०३) कप्पति णिग्गंथीणं अलोमाई चम्माई धारित्तए वा परिहरित्तए वा । ( इमं सामण्णसुतं । णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा कसिणाइ चम्माईधारित्तए वा परिहित्तए वा। कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अकसिणाई चम्माई धारित्तए वा परिहित्तए वा। (बृह० उ० ३ मू० ५-६) ॥५२३८।। किं चान्यत् - कत्थइ देसग्गहणं, कत्थइ भण्णंति निरवसेसाई । उक्कम-कमजुत्ताई, कारणवसतो निउत्ताई ।।५२३६।। १ दश० ० ५ उ० १ गा० ४३ । २ गा० ५२३४ । ३ गा० ५२३५ । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यमाथा ५२३८-५२४२ ] षोडश उद्देशकः ३३ . अस्य व्याख्या - देसग्गहणे बीएहि सूइया मूलमाइणो होति । कोहाति अणिग्गहिया, सिंचंति भवं निरवसेसं ॥५२४०॥ क्वचित सूत्र देशग्रहणं करेति, जहा कप्पस्स पढमसुत्ते पलंबग्गहणातो सेसवणस्सइभेदा मूल-कंदसंध-तया-साह-प्पसाह-पत्त-पुप्फ-बीया य गहिया । बीयरगहणातो वा लेसा दटुब्वा । इम मिरवसेसग्गहणं - "कोहो य माणो य अणिग्गहीया, माया य लोभो य विवड्डमाणा। चत्तारि एते कसिणा कसाया, सिंचति मूलाई पुणब्नवस्स ।" (दश०८,४०) ॥५२४०।। क्वचित् सूत्रागि उत्क्रमेण कृतानि क्वचित् क्रमेण जहा - सत्थपरिण्णा उक्कमो, गोयरपिंडेसणा कमेणं तु । जं पि य उक्कमकरणं, तं पऽहिणवधम्ममायट्ठा ॥५२४१॥ सत्थपरिणऽज्झयणे - तेउकायम्स उवरि वाउक्कायो भवति, सो य न तत्थ भणितो, तसाणुवरि भणितो, दुःश्रद्धेयत्वात् । जंत उक्कमकरणं तं पहिणवस्स सेहस्स धम्मप्रतिपत्तिकारणा वाउकातिगजीवत्वप्रतिपत्तिकारणा वा इत्यर्थः ।। गोयरपिंडेसणा कमेण" ति तत्थ गोयरातिमे अभिग्गहविसेसतो जाणियन्वा भवति, तंजहा-पेला, पद्धपेला, गोमुत्तिया, पयंगवीहिया, अंतोसंवुक्का वट्टा, बाहिं संवुक्का बट्टा, गंतुपच्चागया, उक्खिप्तचरगा, उक्खित्तणिक्खित्तचरगा। इमानो सत्त पिंडेसणाप्रो - प्रसंसट्ठा, संसट्ठा, उद्धडा, अप्पलेवा, उवगहिया, पग्गहिया, उज्झियधम्मिया य। दायगो प्रसंसद्धेहि हत्थमत्तेहिं देति ति प्रसंसट्टदायगो । संसद्धेहिं हत्थमतेहिं देति त्ति संसट्टा । जत्थ उवक्खडियं भायणे तातो उद्धरियं बप्पगादिमु, एस उद्धडा । जस्स दिज्जमाणस्स दबस्स गिफ्फाक चणगादिगस्स लेवो ण भवति, सा अप्पलेवा । जं परिवेसगेण परिवेसणाए परस्स कडुच्छुतादिणा उवगहियं - प्राणियंति वुत्तं भवति, तेण । तं पडिसिद्ध तं तहुक्खित्तं चेव साधुस्स देइ । एसा उवग्गहिया । जं असणादिगं भोत्तुकामेण कंसादिभायणे गहियं भुंजामि त्ति प्रसंसट्टिते चेव साधू प्रागतो तं चेव देति, एस पग्गहिया । जं असणादिगं गिही उझिउकामो साहू य उवट्टितो तं तस्स देति, ण य तं कोइ अण्णो दुपदादी अभिलसति, एसा उज्झियधम्मिया ॥५२४१।। बीएहि कंदमादी, वि सूइया तेहि सव्ववणकायो । भोमातिका वणेण तु, सभेदमारोवणा भणिता ॥५२४२॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसुत्रे । सूत्र-२ कम्हिवि सुतं बीयरगहणं कतं, तेण बीयग्गहणेण मूलकंदादिया सूइता, तेहिं सम्बो परित्ताणतो सभेदो वणस्सइकागो मूनितो, तेण वणस्सतिशा भोमादिया पंच काया मूतिता, एवं सप्रझेदा प्रारोवणा केसुइ सुत्तेसु भाणियब्वा ।।५२४२।। किं च - जत्थ तु देसग्गहणं, तत्थ उ सेसाणि सूइयवसेणं । मोत्तण अहीकारं, अणुप्रोगधरा पभासंति ॥५२४३।। पुव्वद्धं गतार्थं । कम्हिवि सुने प्रगुप्रोगधरा अधिगतं प्रत्थं मोत्तूणं सुनाशुपायिप्पसंगागयमत्थं ताव भणति । एवं विचित्ता सुत्ता, विचित्तो य सुत्तत्थो, ण णज्जति जाव सूरिणा ण पागडिग्रो ॥५२४३।। उस्सग्गेणं भणिताणि जाणि अक्वायत्रो य जाणि भवे । कारणजाएण मुणी ! सव्वाणि वि जाणियव्याणि ||५२४४॥ उस्सग्गेण भणिताणि जाणि मुत्त णि अववादेण य जाणि सुत्ताणि भगिताणि, "कारण जातेण मुणि'' त्ति पडिसिद्धस्स प्रायरणहेऊ कारणं, "जाय" ति उपगं, "मुणि" ति प्रामतणे, सन्माणि वि जाणियवाणीति । कहं ?, उच्यते - अववायसुत्तेसु-सग्गो अत्थतो भगितो अववादकारणे सुत्तणिबंधो, उस्सग्गसुत्तस्स उस्सग्गसुत्ते णिबंधो, यत्थती कारण जाते अणुणा प्रतो सबसुत्तेसु उस्सग्गो अववादो य दि@ो । अतो भणति - ‘कारणजातेण मृगी ! सव्वाणि वि जाणियवाणि "सूत्राशीत्यर्थः। ते य उम्सग्गऽत्रबादा गुरुणा बोधिता गजंति । ते य जाणिऊण अप्पप्पणो ठाणे समायरति । अजाणित् पुण ते कह समायरंति?, ॥१२४४॥ अववादट्टाणे पत्ते - उम्सग्गेण णिसिद्धाणि जाणि दव्वाणि संथरे मुणिणो । कारणजाए जाते, सव्वाणि वि ताणि कप्पंति ।।५२४५॥ जाणि संथरमाणस्स उस्सग्गेण दवाणि णिसिद्धाणि ताणि चेव दयाणि अववायका रणजाते, “जाय" सद्दो प्रकारवाची. बितिग्रो ‘जाय" सद्दो उCC वाची, अन्यतमे कारणप्रकारे उत्पने इत्यर्थः । जाणि उस्सग्गे पडिसिद्धाणि उप्पणे कारणे सवाणि वि तागि कप्पति ण दोसो ॥५२४५।। चोदगाह - जं पुव्वं पडिसिद्धं, जति तं तस्सेव कप्पती भुज्जो । एवं होयऽणवत्था. ण य तित्थं व सच्चं तु ॥५२४६।। सुत्तत्थस्स प्रणवत्था भवति, चरणकरणस्स वा अणवत्थयो य तित्थं ण भवति, पडिसिद्धमणुजाणणतस्स सव्वं ण भवति ॥५२४६।। उम्मत्तवायसरिसं, खुदंसणं न वि य कप्पऽकप्पं तु । अह ते एवं सिद्धी, न होज्ज सिद्धी उ कस्सेवं ॥५२४७।। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५२४३ - ५२५१ ] षोडश उद्देशकः "पुव्वावर विरुद्धं सुतं पावइ उम्मत्तवचनवत्", "इमं कप्पं, इमं प्रकप्पं " एयं भष्णहा पावति तो कप्पं पि कप्पं भवति । जइ एवं तुज्भं प्रभिप्पेयत्थसिद्धो भवति तो चरगादियाण वि श्रप्पप्पणी प्रभित्थसिद्धी भवेज्ज ।।५२४७ ।। आचार्य ग्रह - सुणेहि एत्थ णिच्छियऽत्थं विकिंचि अणुण्णायं, पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहिं । एसा तेसिं आणा, कज्जे सच्चेण होयव्वं ||५२४८ || 3 किरणे प्रकप्पणिज्जं ण कि चि अणुष्णायं श्रववायकारणे उत्पष्णे प्रकप्पणिज्जं कि चि डिसिद्ध णिच्छ्रयववहारतो एस तित्थकराणा, "कज्जे सच्चेण भवियव्वं" कज्जं ति अववादकारणं, तेण जति पं पडिसेवति तहांवि सच्चो भवति, सच्चो ति संजमो ।। ५२४८।। अहवा कज्जं णाणादीर्य, उस्सग्गववाय भवे सच्चं । तं तह समायरंतो, तं सफलं होइ सव्वं पि ॥ ५२४६|| कज्जं ति णाणदंसण चरणा । ते जहा जहा उस्सप्पति तहा तहा समायरंतस्स संजमो भवति स्यात् ||५२४६ ॥ कथं संजमो भवति - दोमा जेण निरु मंति, जेण खिज्जति पुव्त्रकम्माई । सो सो मोक्खोवाओ, रोगावस्थासु समणं व ।। ५२५० || उस्सगे उस्सग्गं प्रववादे श्रववादं करेंतस्स रागादिया दोसा णिरुभंति, पुव्वोवचियकम्मा य खिज्जति, एवं जो जो साधुस्स दोसनिरोधकम्मखवणो किरियाजोगो सो सो सव्त्रो मोक्खोवातो । इमो दिट्ठतो – “रोगावत्थासु समणं व", रोगावत्था रोगप्रकारा, तेसि रोगाणं प्रशमनं पत्थं पडिसिज्झति, जेण य प्रशमंति तं तस्स दिज्जति । अधवा कस्स ति रोगिस्स णिसेहो कज्जति, कस्स वि पुणो तमेव प्रणुण्णवति । एवं कम्मरोगखवणे व समत्थस्स अकम्पपडिसेहो कज्जति । असंथरस्स पुण तमेव श्रणुष्णवति । हे चोदक ! जं तं तुब्भे भणियं सुत्ते प्रगोतो गीतो वा नत्थि कोइ भणितो तं, एयं सुते गीयादीया पवयणातो विष्णेया ।। ५२५०॥ - ३५ अग्गीतस्स ण कप्पति, तिविहं जगणं तु सो न जाणाति । गुणवणार जणं, सपक्ख- परपक्खजयणं च ।। ५२५१ ॥ - "अगस्स कि कारणं ण कति ? "तिविधं जगणं" ति जेण सो न याणइ । चोदको भणति आयरिश्रो भइ पुणो चोदगो भणति - "कयरा मा तिविधा जयणा" ? आयरिश्रो भइ चोदको भणति - "सुते पढिए प्रगीतो कहूं जयणं न जाणति ?" प्रणुण्णावण जयणा सपक्खजयणा परपक्खजयणा य । - Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ समाध्य-चूणिके निशीथसूत्रे ! मूत्र-२ आयरियो भणति - हे चोदक ! पायरिसहाया सव्वागमा भवंति जेण पढिज्जति ॥५२५१॥ णिउणो खलु सुत्तत्थो, न हु सको अपडिबोहितो नाउं। ते सुणह तत्थ दोसा, जे तेसिं तहिं वसंताणं ॥५२५२॥ णिउणो ति सुहुमो सुत्तत्थो, सो य पायरिएण पडिबोहितो गजति, अण्णह ण णजति, जे अगोयत्याणं तहिं वसंताणं दोसा ते भण्णमाणे सुणसु ॥५२५२॥ अग्गीया खलु साहू, णवरं दोसा गुणे अजाणता । रमणिजभिक्ख गामे, ठायंती उदगसालाए ॥५२५३।। अगीयसाधू साधुकिरियाए जुत्ता णवरं - सदोसणिद्दोस-वसहिअणुणवणे दोसगुणे ण याणंति, प्रजयणाए अणुण्णवणे दोसा, जयणाणुण्णवणाए य गुणा । सदोसाए य कारणे ठिया जयणं काउंण याणंति जे य तत्थ दोसा उप्पज्जति ।।५२५३॥ "रमणिज्ज" पच्छद्ध अस्य व्याख्या - रमणिज्जभिक्ख गामो, ठायामो इहेव वसहि झोसेह । उदगघराणुण्णवणा, जति रक्खह देमि तो भंते ! ।।५२५४।। अगीयस्थगच्छो दूइज्जंनो एगत्थ गामे बाहि ठितो, भिक्खा हिंडिया पभूता इट्ठा य लद्धा, ताहे भणंति- “एस रमणिनो गामो, भिक्खा य अस्थि, प्रत्येव मासकप्पविहारेणऽच्छिहामो, वसहि झोसेह धम्मकहि" ति । तेहि उदगसाला दिट्ठा, तं अणुण्णवेत्ता उदगघरसामिणा भणिता - "जति उदगं घरं वा रक्खिस्सह तो मे देमि" त्ति ॥५२५४॥ किं च ते गिहत्था भणति - वसहीरक्खणवग्गा, कम्मं ण करेमो णेव पवसामो । णिचिंता होह तुमं, अम्हे रत्तिं पि जग्गामो ॥५२५॥ "उदयघरादिरक्खवावडा प्रम्हे किसिमादि कम्म पि ण करेमो, ण य प्रामंतणादिसु गामंतरं पि पवेसामो" । ताहे भगीयत्था भणंति - "णिच्चिंतो होहि तुम, अम्हे रति पि जग्गिस्सामो” ॥५२५५।। इमा वि अणुण्णवणे अविधी चेव - जोतिस निमित्तमादी, छंदं गणियं च अम्ह साहित्था । ' अक्खरमादि व डिंभे, 'गाहेस्सह अजतणा सुणणे ॥५२५६॥ जति प्रणण्णविज्जते वसहिसामी भणति - 'जति जोइसं निमित्तं छदं गणियं वा अम्हं कहेस्सह, "उिभ' ति डिभरूवं तं प्रक्खरे गाहिस्सह. प्रादिसद्दातो अण्णं वा किं चि पावसुत्तं वागरणादि।" __ एत्य साधू जति पडिसुणेति - "कहेस्तामो सिक्खावेस्सामो वा" तो अणुण्णवणे अजयणा कया भवति ॥५२५६॥ १ गाहिजह। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५२५२-५२६२ । षोडश उददेशक: अजयणाऽणुण्णवणाए ठियाणं इमे दोसा - अणुण्णवण अजयणाए, पउत्थसागारिए घरे चेव । तेसि पि य चीयत्तं, सागारियज्जियं जातं ॥५२५७।। अस्य पूर्वाधस्य व्याख्या - तेसु ठितेसु पउत्थो, अच्छंतो वा वि ण वहती तत्ति । जइ वि य पविसितुकामो, तह वि य ण चएति अतिगंतु ॥५२५८|| "तेसु" ति - अगीयत्थेसु प्रजयणाणुण्णवणार ठियाणं "उदगादिघरं संजता रक्खंति" ति सागारिगो गिच्चितो पवसइ, घरे वा अच्छतो उदगादिभायणाणं वावारंण वहति, “तेसि पि" - संजयाणं “चियत्तं' - जं प्राह तेण सागारिणो णागच्छति । ___ अहवा - जे संजता उदगरसकोउप्रा तेसि चियत्तं. अधवा - सो पविसि उकामो तह वि न सके इ तत्थ पविसिउं ॥५२५८॥ केण कारणेण ? अतो भण्णति - संथारएहि य तहिं, समंततो आतिकिण्ण वितिकिणं । सागारिओ ण इंती, दोसे य तहिं ण जाणाति ॥५२५६॥ प्रतिकिणां प्राकीणं परिवाडीए, वितिकिण्णं विप्रकोणं प्रणाणुपुव्वीए, अड्डवियहु त्ति वुनं भवति, एतेण कारणेण सो सेज्जातरो गण पविसति । तेसु उदग भायणेसु जे सेवणादिदोसा ने ण याणंति ॥५२५६।। अणुण्णवण त्ति गता। इदाणि सपस्खे जयणा - ते तत्थ सण्णिविट्ठा, गहिता संथारगा जहिच्छाए । णाणादेसी साहू, कस्सति चिंता समुप्पण्णा ॥५२६०॥ ___ "सगिविटु" ति ठिता 'जहिच्छ' त्ति जहा इच्छति, णो गणावच्छेइएण दिण्णा महारातिणियाए । ॥५२६० । तत्थ कस्स ति साधुस्स इमा चिंता उप्पण्णा अणुभूता उदगरसा, णवरं मोत्तणिमेसि उदगाणं । काहामि कोउहल्लं. पासुत्तसं समारद्धो ॥५२६।। "केरिसो उदगरसो" ति कोतुग्रं, तं कोउप्राणुकूलं काहामो ति सो सुत्तेप्नु सामु समारद्धो पाउं ॥५२६१॥ इमे उदगे - धारोदए महासलिलजले संभारिते च दव्वेहिं । तण्हाइयस्स व सती, दिया व रात्री व उप्पज्झे ॥५२६२।। १ गा० ५२५७ । २ गा० ५२५१ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ मूत्र- २ धारोदगं जहा सत्तवारादिसु महासलिलोदगं गंगासिंघुमादीहि दव्वेहि वा संभारियं कप्पूरादिपाणियवासेग वासियं एवमादिउदगेसु तण्डाइयस्स प्रभिलासो भवति, पुव्वाणुभूतेण वा सती संभरणा भवति, प्रणणुभूते वा कोउणं सती भवति ॥ ५२३२ ।। ता सती उप्पण्णाए ग्रप्पणी हिययपच्चक्खं भणति इहरा कहासु सुणिमो. इमं खु तं विमलसीतलं तोयं । विगतस्स वि णत्थि रसो, इति सेवति धारतोयादी ।। ५२६३ ॥ "इहरे" त्ति पञ्चवखं सुतिमेतोवलद्धं, "इमं" ति पच्चक्खं जं पि अम्हे उण्होदगादि विगतजीवं पिवामो तस्स वि सत्योवहयस्म प्रणाहाभूतस्स रमो गत्थि, इति एवं चितेउं धारोदगादि सेवइ ।।५.२६३।। ३८ तम्मि पडिसेविते इमे दोसा वियम्मि कोउहल्ले, बडवयविराहणं ति पडिगमणं । वेधाणस वाणे, गिलाण - सेहेण वा दिट्ठो ||५२६४|| तम्मि उदगे आसेविए विगते उदगरसको उए छटुं रातीभोषणविरति वयं भग्गं तम्मि भग्गे सवयाणवि भंगो, ताहे "भग्गब्बतो मि" त्ति स गिहे पडिगमणं करेज्ज, वेहाणसं वा करेज्ज, विहाराम्री वा ग्रहण करेज्ज, गिलाणेण सेहेण वा प्रभिणवघम्मेण दिट्ठो तं पडिमेवतो ।। ५२६४, 1 ताहे गिलाणो इमं कुज्ज: - हाति गिलाणी, तं दिस्स पिएज्ज जा विराहणया । एमेव सेहमादी, पियंति अप्पच्चयो वा सिं ॥ ५२६५ ॥ - तं दट्ठे विवंतं गिलाणो वितिसित पिवेज्ज, अतिसितो वा कोउएण पिवेज्जा । तेश पीएन अपत्ये जाणागाढादिविराहणा तष्णिष्फण्णं पच्चित्तं तम्स माधुस्स भवति । ग्रह उद्दाति तो चरिमं । एवं सेहे विदिट्ठे सेहो वि पिवेज्जा, सेहस्स वा प्रपच्चयो भवेज्ज, जहेयं मोसं तहणणं पि ॥ ५२६।। ग्रहवा उड्डाहं च करेज्जा, विष्परिणामो व होज्ज सेहस्स । गेहंतेण व तेणं, खंडित भिण्णे व विद्धे वा ॥ ५२६६|| सो वा सेहो प्रणमणस्स श्रक्खतो उड्डाहं करेज्जा । हवा - सेहो प्रयाणतो भणेज्ज - "एस तेणो श्राहइ" त्ति उड्डाहं करेज्जा, तं वा दट्ठे सेहो विपरिणमेज्ज, विपरिणतो सम्मतं चरणं लिंग वा छड्डेज्ज । श्रगिलाजसाधुणा गिलाणेण वा सेहेण वा एतेसि प्रणतरेण उदगं गेण्हतेण तं उद्गभाषणं खंडियं भिण्णं वा वेहो से वा कतो ।। ५२६६ ।। अधवा फेडितमुद्दा तेणं, कज्जे सागारियस्स श्रतिगमणं । केण इमं तेोहिं, तेणाणं श्रागमो कत्तो ।। ५२६७।। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यमाथा ५२६३-५२७२ ] षोडश उददेशक: ३६ मुद्दियस्स वा मुद्दा फेडिया, अप्पणो य कज्जेण सागारितो "ग्रइगतो" ति पविट्टो तेण दिढें । दिट्टे भणाति - केण इमं खंडियं ? भिणणं वा ? साह भणंति-तेणेहिं। ताहे सागारितो भणइ - "तेणाणं भागमो कहं जातो? जो अम्हेहिं ण णातो" ||५२६७॥ ताहे सागारिगेण चित्तेण अवधारितं - "एतेहि चेव उदगं पीतं भायणं वा खंडियं भिष्णं वा ।" तत्थ सो भद्दो हवेज्ज पंतो वा। भद्दो इमं भणेज्जा - इहरह वि ताव अम्हं, भिक्खं च बलिं च गेण्हह ण किंचि । एहि सु तारिओ मि, गेव्हह छदेण जेणडो॥५२६८॥ एवं उदगरगहणं मोत्तुं "इहरह वि" ति चरगादिसामण्ण भिवखग्गहणकाले जं. 'कुटुंबप्पगतं ततो भिवखं अम्हं घरे ण हिंडह, जं वा देवताणं वलीकयं ततो उवन्यिं पि ण गेण्हह, इण्डिं पुण उदगग्गहणेन प्रणुग्गहो कतो, संसारातो य तारिता । एत्थ जेण भे अण्णण वि अट्ठो तं पि तुम्भे छंदेण अप्पणो इच्छाए पज्जत्तियं गेण्हह ।। ५२६८।। इमं भद्दपंतेसु पच्छितं - लहुगा अणुगहम्मी, अप्पत्तिय धम्मकंचुगे गुरुगा । कडुग फरुसं भणंते, छम्मासो करभरे छेत्रो ॥५२६६॥ जति भद्दगो "अणुग्गह" ति भणेज्ज तो चउलहुं । पंतो अप्पत्तियं करेज्जा । अत्तियो वा इमं भणेज्ज - "एते धम्मकंचुगपविट्ठा एगलेस्सा लोग मुसंति", एत्थ से चउगुरु । कटुगवयगं फरुसवयणं वा भणंति छग्गुरुगा। रायकरभरेहि भग्गाणं समणकरो वोढव्यो त्ति भणंते छेदो भवति ।।५२६६॥ मूलं सएज्झएसु, अणवटुप्पो तिए चउक्केसु । रच्छा महापहेसु य, पावति पारंचियं ठाणं ॥५२७०॥ - सइज्झा समोसियगा, तेहिं उदगं तेणियं ति एत्थ मूलं. तिगे चउक्के वा पसरिते 'तेणगा वा एते' प्रणवट्ठो, महापहेसु सेस रत्थासु य तेणियं ति य सुए पारंचियं ॥५२७०॥ 'कटुगफरुसं' पच्छद्धस्स इमं वक्खाणं चोरो त्ति कडु दुव्बोडिअो ति फरुसं हतो सि पवावी । समणकरो वोढव्वो, जाते मे करभरहताणं ॥५२७१।। कंठा । सपक्खजयणा एसा गता। परपक्खजयणा इमा परपक्खम्मि य जयणा, दारे पिहितम्भि चठलहू होंति । पिहिणे वि होंति लहुगा, जं ते तसपाणघातो य ॥५२७२।। १ कुटुंबपागवयं, इत्यपि पाठः । २ सएझिया-प्रातिवेश्मिका । ३ गा० ५२६६ । ४ गा० ५२५१ । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र -२ मणुयगोणादी प्रसंजतो सव्वो परपक्खो भाणियन्त्रो, भावत्तणपे ढयाए जीववव रोवणभया जति दारं न पिहंति तो चउलहुं । ग्रह पिनि तहावि भावत्तणपेठियाजते संचारयलूया उद्देहिगमादीण य तसाणं घातो भवति, एत्थ वि चउलढुं तसणिष्फळां च ॥५२७२ ।। ४० पिहिते इमे दोसा - गोणे य सामादी, वारणे लहुगा य जं च अहिकरणं । खरए य तेणए था, गुरुगा य पदोसतो जं च ।। ५२७३ ।। दुवारे प्रपिहिते गोणादी पविसेज्जा, ते जति वारेति तो चउलहुं । सोय वारितो वच्चतो श्रधिकरणं जेण हरितादि भलेहिति, तष्णिष्कण्णं अंतरायं च से कयं । अहवा * खरए" त्ति तस्सेव संतिप्रो दासो दासी वा तेणगा वा पविसेज्जा, ते जति वारेति तो चरगुरुगा, वारिया समाण पट्टा जं छोभग-परितावणादि काहिति तणिष्कष्णं पात्रति ।। ५२७३ ।। सि वारणे लहुगा, गोसे सागारियस्स सिट्ठम्मि । लहुगा य जं च जत्तो, असिडे संकापदं जं च ॥५२७४॥ गोण साण-स्वर-खरिय-तेजगा य जति ण वारेति तो पत्तेयं । ते य भवारिता उदगं पिएज्जा, हरेज्जा वा भायणादि वा विणासेजा । गोमे त्ति पच्चूसे जइ सम्गारियस्स साहेति " अमुगेण श्रमुगीए वा अगेण वा तेणेण राम्रो उदगं पीतं" ति वउलहुगा । कहिते सो रुट्ठो दुत्रक्खरियादीण जं परितावणादि काहीति, "जतो" त्ति बंधणघायण विसेसा, तो तणिफणं सव्वं पावइ । ग्रहण कहिति तो वि चउलहुगा । साधू य ट्ठे संकेज्जा, संकाए चउलहुं । निस्संकिते चउगुरु | प्रणुग्गहादि वा भद्दपंतदोसा हवेज्ज, "जं च" पट्टो णिच्छु भणादि करेज्ज ।। ५२७४ ।। गोणादियाण सव्वेसिं वारणे इमे दोसा तिरियनिवारण श्रमिहणण मारणं जीवघातो नासंते । खरिया छोम विसागणि, खरए पंतावणादीया || ५२७५ || - सव्वे वि गोगादी तिरिया णिवारिज्जता सिंगादिणा ब्राहणेज्ज, तत्थ परितावणादि जाव मरणं भवे, सो वा णिवारितो जीवघातं करेंतो वन्चेज्जा । खरिया य णिवारिता छोभगं देख " एस मे समणो पत्येति", विसगरादि वा देज, वसह वा अगणिया झामेज | खरगो वि पट्ठो पंतावणादि करेज्ज, भायणाणि वा विणासेज्ज, सेज्जातरं वा पंतावेज || ५२७५ ।। तेगा इमेहि कारणेहि उदगं हरेज्जा - सण यछणूसवो, कज्जं पिय तारिसेण उदएण | तेणाण य आगमणं, अच्छह तुण्डिक्कगा तेण || ५२७६ || श्रासणं छणे ऊसवे वा, छणो जत्य विसिद्धं भत्तपाणं उवसाहिज्जति, ऊसवो जत्थ तं च उवसाधिज्जति, जणो य प्रलंकिय विभूषितो उज्जाणादिसु मित्तादिजणपरिवुडो खज्जा दिणा उवललति । तम्मि छणे ऊसवे वा तारिसेण उदगेण श्रवस्सं कज्जं । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ५२७३-५२८२ ] षोडश उद्देशकः तम्मिय प्रप्पणी गिहे श्रविज्जमाणे उदगतेणणट्टाए श्रागता तेणा । ताहे श्रगीता भणति - "तेणा श्रागता, अच्छह भंते ! तुण्डिक्का, ण कप्पति कहेतुं श्रयं तेणो, श्रयं उवचरए" ति । अधवा तेणा श्रागता संजते हि दिट्ठा। ते तेणगा भणंति - " तुहिक्का प्रच्छह, मा भे उद्दविस्सामो" ॥५२७६ ॥ उच्छवछणेसु संभारितं दगं ति सितरोगितट्ठा वा । दोहल - कुतूहले व, हरंति पडिसेवियादीया ॥ ५२७७॥ छवे तिसिया पीयगट्ठाए उदगं वासवासियं कप्पूरपाडलावासियं वा चउपंचमूलसंभारकयं वा रोगियस्साए वहनि, गुव्विणीए वा डोहलट्ठाए, कोउगेण वा केरियो एयस्स साम्रो ? त्ति, पडिसेविता अगे वा प्रवहरति ॥५२७७॥ गहितं च तेहि उदगं घेत्तूण गता जतो सि गंतव्वं । " सागारितो उ भणती, सउणो वि य रक्खती नेडु ॥ ५२७८ || - तेगा घेत्तुं उदगं गता जत्थ गंतव्वं । श्रप्पणी य कज्जेण सागारियो पभाए श्रागतो । मुद्दाभेदं दट्टु भणाति • "अज्जो ! सउणो वि, "नेड्ड" ति गिहं, सो वि ताव प्रप्पणी गिहं रक्खति, तुब्भेहि इमं ण रविखयं" ।। ५२७८ ॥ - दगभाणणे द, सजलं व हितं दगं च परिसडितं । केण हियं ? तेणेहिं, असि भद्देतर इमे तू || ५२७६॥ अहवा जले भरियं भायणं दगं च परिसडियं । तत्थ दठ्ठे सागारिगो पुच्छति - केण हियं । साहू भांति - तेणेंहिति । तत्थ जति तेणगं वण्णरुवेण कहेंति तो बंधणादिया दोसा, " असिट्ठि" त्ति कहिते भदोसा “ इतरे" त्ति पंतदोसा य इमे ।। ५२७६ ॥ rr लहुगा अणुग्गहमी, अप्पत्तियधम्मकंचुगे गुरुगा | कडुग - फरुसं भणते, छम्मासो कर भरे छेओ || ५२८० ।। पूर्ववत् मूलं सएज्झएसुं, श्रणवटुप्पो तिए चउक्सु । रच्छ - महापहेतु य, पावति पारंचियं ठाणं ॥ ५२८१ ॥ पूर्ववत् एगमणेगे छेदो, दिय रातो विषास- गरहमादीया । जं पाविहिंति विहणिग्गतादि वसहिं अलभमाणा ||५२८२|| पूर्ववत् । एगस्स साधुस्स प्रगाण वा वोच्छेद करेज्जा । ग्रहवा - तद्दव्वस्स प्रगाण वा 1 जति दिवसतो णिच्छुभेज्जा : : रातो वा : : । श्रष्णं वा वसहि अलभता तेणसावयादिएहि विणासं पाविज्जति, लोगेण वा गरहिज्जति । एते तेणग त्ति । ततो य णिच्छूढा विहं पडिवण्णा जं सी उपहप्पिवासपरी सहमादी तेणसावयादीहिं वा वसहि अलभता जं पावेंति तष्णिष्फण्णं पावेंति । अधवा तस्स दोसेण श्रणे विह-णिग्गता दिया वसहि अलभंता जं पाविहिति णिष्णं पावति । एवं कहिज्जते तेगे दोसा । ग्रध तेणं कहेज्ज - जं ते तेणगाण काहिति तेणगा वा तस्स साघुस्स वा जं काहिति ॥ ५२८२॥ एते प्रगीयत्थस्स दोसा । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाप्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२ इदाणि गियत्थस्स विधी भण्णइ -- गीयत्थस्स वि एवं, णिक्कारण कारणे अजतणाए। कारणे कडजोगिस्स उ, कप्पति वि तिविहाए जयणाए ॥५२८३॥ ___ गीयत्थो वि जो निक्कारणे उदगसालाए ठाति, कारणे वा ठितो जयणं ण करेति । कडजोगी गीयत्यो। तिविधा जयणा - अणुगवणजयणा सपक्खजयणा परपक्खजयणा य ॥५२८३।। निक्कारणम्मि दोसा, पडिबंधे कारणम्मि णिद्दोसा । ते चेव अजयणाए, पुणो वि सो पावती दोसे ।।५२८४॥ जइ निक्कारणे उदगपडिबद्धाए वसहीए ठाति तो ते चेव पुखभणिता दोसा भवंति । कारणे पुण ते चेव दोस पावति जे अजयणट्टिताणं ॥५२८४॥ कि पुण तं कारणं ?, इमं - अद्धाणणिग्गयादी, तिक्खुत्तो मग्गिऊण असतीए । गीयत्था जयणाए, वसंति तो उदगसालाए ॥५२८॥ विसुद्धवसहीए असति सेसं कंठं ॥५२८५॥ तत्थ य प्रणुणवणाए जति वसहिसानी भोज - "जति अम्ह किं चि जोतिसाति कहेस्सह तो मे वसहि देमो ।" तत्थ साधूहि वत्तव्वं - न वि जोतिसं न गणियं, न चक्खरे न वि य किं चि रक्खामो । अप्पस्सगा असुणगा, भायणखंभोवमा वसिमो ।।५२८६।। जोतिसाति णा सिक्खवेमो, ण वा जाणामो ति वत्तव्वं, जहा भायणखंभ-कुड्डादिया तुझ सुत्थदुत्थेसु वावार ण वहति एवं अम्हे विसामो । जति ते किंचि कज्जविवत्ति पेच्छामो तं पेच्छता वि अपस्सगा इह अच्छा मो । जइ वा कोइ भणेज्जा - इम सेज्जातरम्स कहेज्जह, असुणतं वा सुणावेह, तत्थ वि अम्हे असुणगा । ॥५२८६॥ णिक्कारणम्मि एवं, कारणदुलभे भणंतिमं वसभा । अम्हे ठियल्लग च्चिय, अहापवत्तं वहह तुम्भे ॥५२८७॥ उस्सग्गेणं एवं ठायति । असिवोमादिदुभिक्खकारणेसु अण्णतो प्रगच्छना तत्थ य सुद्धवसही दुल्लभा ताहे उदगसालाए ठायंता इमं भणति साधारणवयणं वसभा “अम्हे ता ठियचित्ता, तुम्हे पुण जं अहापवत्तं वावारवहणं दिवसदेवसियं तं वहेह चेव ।।५२८७।। गया अणुण्णवणजयणा। इमा 'सपक्खजयणा - आम ति अब्भुवगए, भिक्ख-वियारादि णिग्गय मिएसुं । भणति गुरू सागरियं, कत्थुदगं जाणणहाए ॥५२८८।। १ गा०५२८३ । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५२६३-५२९४ ] षोडश उद्देशकः सांगारिगेण मन्भुवगयं - "णिरुवगारी होउं प्रच्छह 'त्ति, महापवत्तं वावारं वहिस्सामो" ति, ताहे तत्थ ठिया, इहरा ण ठायति । तत्थ ठियाणं इमा विही - जाहे सव्वे मिगा भिक्खादिणिग्गता भवति ताहे गुरू उदगजाणणट्ठा मण्णावदेसेण सागारियस पुरतो ॥५२८८॥ . इमं भणति - चउमूल पंचमूला, तालोदाणं च तावतोयाणं । दिट्ठभए सनिचिया, अण्णादेसे कुटुंबीणं ॥५२८६॥ चउहिं पंचहि वा अण्णतमेहिं सुरहिमलेहिं पाणहा संभारकडं तालोदं तोसलीए. तावोदगं रायगिहे ॥५२८६॥ एवं च भणितमेत्तम्मि कारणे सो भणाति आयरिए । अत्थि ममं सन्निचिया, पेच्छह णाणाविहे उदए ॥५२६०॥ जाहे एवं भगितो गुरुणा ताहे कमपत्ते कहणकारणे सेज्जातरो पच्छदेण भणति - "पत्थभोयणे __तावोदग, एत्थ तालोदग", एवं तेण सव्वे कहिता ॥५२६० ।। ते य गुरुगा - उवलक्खिया य उदगा, संथाराणं जहाविही गहणं । जो जस्स उ पाओग्गो, सो तस्स तहिं तु दायव्यो ॥५२६१।। ताहे संथारगाणं अहाराइणियाए विहिगहणे पत्ते वि तं सामायारि भेत्तुं गुरको अप्पत्तियं तत्थ करेंति, जो जस्स जम्मि ठाणे जोगो संथारगो नस्स तहिं ठाणं देति ॥५२६१।। तथिमो विही - निक्खम-पवेसवज्जण, दूरे य अभाविता उ उदगस्स । उदयंतेण परिणता, चिलिमिणि राइंदिय असुण्णं ॥५२६२॥ सागारियस्स उदगादिगहणट्ठा पविसमाणस्स णिक्खमण-पवेसो वज्जेयव्वो। उदगमायणाण य प्रभाविया अगीया अतिपरिणामगा गंदधम्मा य दूरतो ठविनंति । जे पुण धम्मसद्धिया थिरचित्ता ते उदगभायणाण ठाणे य अंतरे कडगो चिलिमिली वा दिज्जति । गीयत्थपरिणामगेहि य दियारातो य असुण्णं कज्जति ॥५२६२।। ते तत्थ सन्निविट्ठा, गहिता संथारगा विधीपुव्वं । जागरमाण वसंती, सपक्खजयणाए गीयत्था ॥५२६३।। जहा तत्थ दोसो ण भवति तहा संथारगा घेत्तव्वा, एसेव तत्य विधी । सपक्खं रक्खंता तत्य गीयत्था सदा सजागरा सुवंति ।।५२६३॥ अधवा - ठाणं वा ठायंती, णिसेज्ज अहना सजागरे सुवति । बहुसो अभिवंते, वयणमिणं वायणं देमि ॥५२६४|| Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२ जो वा दढसंघयणो प्रचितगो सो ठाणं ठाति, णिसण्णो वा झायमाणो चिट्ठइ । अधवा - गीयत्थो कृतकेन सव्वेसि पुरतो भणति-"संदिसह भंते ! सबराइयं उस्सगं करेस्सामि।" पच्छा सुत्तेसु सुवति, अण्णदिणं अण्णो संदिसावेति । एवं रक्खंति । वसमा वा सजागरा सुवंति, जति तत्य दगाभिलासी दगभायणतेण आगच्छति तत्थ तहा गुरवो वसमा वा संजोहारं करेंति, जहा सो पडिणीयत्त ति । अध सो पुणो पुणो अभिवति ताहे गुरू सामण्णतो वयणं भणाति - "उढेह भंते ! वायणं देमि।" तं वा भणाइ "अज्जो ! वायणं वा ते देमि" ।।५२६४॥ फिडितं च दगढि वा, जतणा वारेंति ण तु फुडं बेति । मा तं सोच्छिति अण्णो, णित्थक्कोऽकज्ज गमणं वा ॥५२६५।। फुडं रुक्खं ण भणति, मा तं अण्णो सोउं अण्णेसि कहेस्सति । पच्छा सव्वेहि णाते गुरुणा वा फुड मणिते णित्थक्को गिल्लज्जो भवति । पच्छा णिल्लज्ज ज्जं पि करेति, णातो मि त्ति लज्जितो वा पडिगमणादीणि करेज्ज। ॥५२६॥ "'जयणाए वारेंति" त्ति अस्य व्याख्या - दारं न होति एत्तो, निदामत्ताणि पुच्छ अच्छीणि । भण जं च संकितं ते, गेण्हह वेरत्तियं भंते ! ॥५२६६।। कंठा । सपक्खजयणा गता। २इमा परपक्खजयणा - परपक्खम्मि वि दारं, ठयंति जयणाए दो वि वारेति । तहवि य अठायमाणे, उबेह पुट्ठा व साहति ॥५२६७॥ परपक्खेसु दारं ठयंति इमाए जयणाए - पेहपमज्जणसणियं, उवोगं काउं दारे घट्टेति । तिरिय णर दोण्णि एते, खर-खरि त्थि-पुं णिसिडितरे ॥५२६८।। चक्खुणा पेहिउँ रयोहरणेण पमज्जति, अचक्खुविसए वा उवग्रोग काउं । अथवा - सचखुविसए वि उवप्रोगकरणं ण विरुज्झति । एवं च राशियं जहा जीवविराघणा श भवति तहा जयणाए दारं ठयति । अहवा - "जयणाए दो वि वाति" तिरिया परा य एते दोणि । अहवा - दोण्णि - दासो दासी य, अहवा - दोणि - इत्थी पुरिसो य । अहवा - दोणि "निसिद्धितर" ति जेसि पवेसोऽगुणात्तो ते निसिट्ठा, णाणुणातो पवेसो जेमि ते इतर त्ति। १ गा० ५२६५। २ गा० ५२८३ । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५२६५-५३०६] षोडश उद्देशक: ४५ अहवा - अक्कतियतेणा णिसट्टा इतरे अणिसट्टा, उरि वक्खाणिज्जमाणा, जयणाए । तहा य अट्ठायमाणेसु "उवेह" त्ति तुहिक्को अच्छति । सागारिणा वा पुट्ठो - "केणुदगं गीयं?" ति ताहे साहेति "प्रमुगेण प्रमुगीए वा" ॥५२६८।। गेहंतेसु य दोसु वि, वयणमिणं तत्थ बेति गीयत्था । बहुगं च णेसि उदगं, किं पगयं होहिती कल्लं ॥५२६६।। इस्थिपुरिसादिसु दोसु वि गेण्हतेसु गुरुमादी गीयत्था इमं वयणं (भगंति) पच्छद्धं कंठं ।।५२६६॥ तेणगेसु इमा विही - नीसढेसु उवेहं, सत्थेणं तासिता तु तुसिणीया । बहुसो य भणति महिलं, जह तं वयणं सुणति अन्नो ॥५३००॥ तेणा दुविधा - णिसट्टतेणा प्रणिसट्टतेणा य । णिसट्ठा अक्कंतिया बला अवहरंति जहा पभवो। तेसु प्रागतेस उवेहं करेइ, तुहिकको अच्छइ । अहवा - खग्गादिणा सत्थेण तासिता - तुहिक्का अच्छह मा भे मारेमं । मह महिला उदगं ति तत्थ इमं वयणं - "बहुसो य पच्छद्ध" ॥५३००॥ अस्य व्याख्या - साहूणं वसहीए, रत्तिं महिला ण कप्पती एंती। बहुगं च नेसि उदगं, किं पाहुणगा वियाले य ॥५३०१॥ तेणेसु णिसट्टेसुं पुव्वा-ऽवररत्तिमल्लियंतेसु । तेणुदयरक्खणट्ठा, वयणमिमं वेति गीयत्था ॥५३०२॥ "तेणे" त्ति उदगं जे तेणेति, तेसि रक्खणहा गीयत्था उच्चसद्देश इस भणति ।।५३०२।। जागरह णरा ! णिच्च, जागरमाणस्स बड़ती बुद्धी । जो सुवतिण सो सुहितो, जो जग्गति सो सया सुहितो॥५३०३॥ कंठा सुवति सुवंतस्स सुयं, संकियखलियं भवे पमत्तस्स । जागरमाणस्स सुयं, थिरपरिचियप्पमत्तस्स ॥५३०४॥ "सुवति" ति नश्यतीत्यर्थः । अहवा - निद्राप्रमत्तस्य सुक्तत्था संकिता भवंति खलंति वा, गो दरदरस्स प्रागच्छति, संभरणेण प्रागच्छति, नागच्छति वेत्यर्थः । विगहादीहिं वा पमत्तस्स सुयं अथिरं भवति ॥५३०४।। सुवइ य अजगरभूतो, सुयं पि से णासती अमयभूयं । होहिति गोणन्भूयो, सुयं पि णट्टे अमयभूये ॥५३०५॥ अयगरस्स किल महंती निद्दा भवति, जेण जहा निच्चितो सुवइ । कि चान्यत् - जागरिता धम्मीणं, आधम्मीणं च सुत्तगा सेया। वच्छाहिवभगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए ॥५३०६॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे सूत्र-२ वच्छजणवए कोसंबी णगरी, तस्स अहिवो संताणितो राया, तस्स भगिणी जयंती। तीए भगवं वद्धमाणो पुच्छियो। 'धम्मियाणं किं सुत्तया, सेया ? जागरिया सेया? भगवया वागरियं - "धम्मियाणं जागरिया सेया, णो सुत्तया। अधम्मियाणं सुत्तया सेया, णो जागरिया ।" __ "अहिंसु" ति अतीते एवं कहियवान् ॥५३०६॥ किं चान्यत् - णालस्सेण समं सोक्खं, ण विज्जा सह णिदया । ण वेरग्गं ममत्तेणं, णारंभेण दयालुया ॥५३०७॥ कंठा तासेतूण अवहिते, अवेइएहि व गोसे साहेति । जाणते वि य तेणं, साहंति न वण्ण-रूवेहि ॥५३०८॥ अक्कंतियतेणेहिं सत्येणं तासेउ, प्रणवकंतिएहि वा प्रवेइएहि य, एवं अण्णयरप्पगारेण हरिते, "गो' ति पच्चूसे सेज्जातरस्स कहेंति, जति वि ते णामगोएणं जाणंति तहावि तं ण कहेंति, प्रकहिज्जते वा जति पच्चंगिरा भवति तो कहेंति ॥५३०८।। “स उदग" ति सेज्जा गता। इदाणि उदगसमीवे सा भण्णइ - इति सउदगा तु एसा, उदगसमीवम्मि तिण्णिमे भेदा । एक्केक्क चिट्ठणादी, आहारुच्चार-झाणादी ॥५३०६॥ जा सा उदगसमीवे तस्स तिण्णि भेदा, तेसु तिसु भेदेसु एक्केक्के चिट्ठणादिया किरियविसेसा करेज्ज ||५३०६॥ ते य इमे तिण्णि भेदा - दगतीरचिट्ठणादी, जूवग आतावणा य बोधव्वा । लहुगो लहुगा लहुगा, तत्थ वि आणादिणो दोसा ॥५३१०॥ चिट्ठणादिया दस वि पदा एक्कं पदं । जूवगं ति बितियं । मायावणं ति ततियं । चिट्ठणादि दस वि उदगसमीवं करेंतस्स पत्तेयं मासलहुं । जूवगे वसहि गेहति छ। पातवेति दू। जूवर्ग वा संकमेण गच्छति । तिसु वि ठाणेसु पत्तेयं प्राणादिया दोसा भवंति ॥५३१०॥ दगतीरं दगासण्णं दगम्भासं ति वा एगटुं । तस्स पमाणे इमे पाएसा - णयणे पूरे दिडे, तडि सिंचण वीइमेव पुढे य । आगच्छंते आरण्ण, गाम पसु मणुय इत्थीओ ॥५३११॥ चोदगो भणइ- "अहं दगतीरं भणामि, उदगागरातो जत्थ णिज्जति उदगं तं उदगतीर" ? १. भग० श० १२ उ० २ । २ गा० ७ देखो ५३२५ । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग्यगाथा ५३०७-५३१५ । षोडश उद्देशक: पायरियो भणति -- दूर पिणज्जति उदगं, तम्हा ण होइ तं उदगतीरं । तो जत्तियं णदीपूरेण प्रक्कमइ तं उदगतीरं । अधवा - जहिं ठिएहिं जलं दीसइ, अधवा - णदीए तडी उदगतीरं । अधवा - जहिं ठितो जलट्ठिएण सिंविज्जइ सिंगगादिणा तं जलतीरं । अधवा - जावतियं वीति (चि) प्रो फुसति, अथवा - जावतियं जलेण पुटुं तं दगतीरं" । पायरिग्रो भणइ - ‘ण होइ एयं दकतीर।" दगतोरलक्खणं इमं भणति - प्रारण्णा गामेयगा वा दगट्ठिणो प्रागच्छमाणा पसु मणुस्सा इत्थिगामो वा साधु दगतीरट्टियं दट्ठ थक्कंति -- णियत्तंति वा जत्तो तं उदगतीरं ॥५३११॥ पुणरवि पायरियो भणति - सिंचण-वीयी-पुट्ठा, दगतीरं होइ ण पुण तम्मत्तं । अोयरिउत्तरितुमणा, जहि दिस्स तसंति तं तीरं ॥५३१२ णयणादियाणं सत्तण्ह प्रादेसाणं चरिमा तिणि सिंचण, वीति, पुट्ठो य, एते णियमा दमतीरं । सेसा भयणिज्जा । इमं अव्यभिचारि दगतीरं - प्रारण्णा गामेयगा वा तिरिया वा मणुस्सा वा दगट्ठिणो प्रोयरिउमणा पाउ वा उत्तरिउमणा जलचरा वा जहि ठियं साधू दळूणं चिटुंति, संति वा तं दगतीरं भवति ॥५३१२॥ दगतीरे चिट्ठणादिसु इमे दोसा - अहिकरणमंतराए, छेदण उस्सास अणहियासे य । आणा सिंचण जल-थल-खहचरपाणाण वित्तासो ॥५३१३॥ दगतीरे चिट्ठतस्स अधिकरणं भवति, बहूण य अंतरायं करेति । "छेदणं" ति - साधुस्स चलणा जो उद्विय-रसो सो जले णिवडति । "उस्सासे" ति - उम्सासविमुक्कपोग्गला जले निवडंति । जलं वा खोभेति । दगतीरे ठिनो वा तिसितो धितिदुबलो प्रणधियासो जलं पिवेज्जा । तित्थकराणाभंगो य । दगतीरे ठियं वा अणुकंप-पडिणीययाए कोति सिंचेज्जा । दगतीरट्टियो य जल-थल-खहचराणं वित्तासं करेति ।।५३१३॥ "अधिकरणं' ति अस्य व्याख्या - दठूण वा णियत्तण, अभिहणणं वा वि अण्णतूहेणं । गामा-ऽऽरण्णपसूणं, जा जहि आरोवणा भणिया ॥५३१४ "'दळूणं वा नियत्तण" त्ति अस्य व्याख्या - पडिपहणियत्तमाणम्मि अंतरागं (यं) च तिमरणे चरिमं । सिग्धगति तन्निमित्तं, अभिघातो काय-आताए ॥५३१५ गामेयगा प्ररण्णवासिणो वा, गामेयगा ताव ठप्पा । पारण्णा तिसिया तित्थाहिमुहा एता दगतीरे तं साधु दण पडिपहेण गच्छतेसु अधिकरणं, छक्काए य वहें ति, उदगं च अपाउं जति ते पहिपहेणं २ गा० ५३१३ । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२ गच्छंति तो अंतरायं भवति, चसद्दातो पारतावादी दोसा, एगम्मि परिताविते छेदो, दोसु मूलं, तिसु • अणवट्ठो।' अह एक्कं तिसाए मरइ तो मूलं, दोस्, प्रणवट्ठो, तिसु पारंचियं । "२अभिहणणं वा वि" अस्य व्याख्या - "सिग्धगति" पच्छद्धं, "तणिमितं" ति-तं साधु दटुं गीता सिग्वगती अण्णं प्रणोणं वा अभिधायंति, छक्काए वा घाएंति, साहुस्म वा दित्ता वाघातं, करेज्जा, तिसिया वा प्राधियासत्तणतो साहुं णोल्ले उ अभिहणेउं गच्छेज्जा ॥५३१५॥ "अण्णतूहेणं" ति अस्य व्याख्या -- अतड-पवातो सो च्चेव य मग्गो अपरिभुत्त हरितादी । अोवड कूडे मगरा, जदि घोट्टे तसा य दुहतो वि ॥५३१६॥ तत्य ठितं साधु दठ्ठ 'प्रतड" ति अतित्थं प्रणोतारं तेण भोयरेज्जा । तत्य छिण्णटंके प्रपाते प्रायविराहणा से हवेज। अहवा - सो चेत्र अहिणवो मन्गो पयट्टज्ज, तत्थ अपरिभुत्ते प्रणाणुपुव्वीए छक्काया विराहिज्जेज्ज । "प्रोवड" त्ति- खड्डातीते पडेज्ज, प्रतित्थे वा कूडेण घेप्पेज्ज, प्रतित्थे वा जलमोइण्णो मगरातिणा सावयेण खज्जेज्ज । साधुनिमित्तं "तित्येण प्रतित्येण वा प्रोयरित्ता प्रतसे माउक्काए जति सो घोट्टे करेइ ततिया चउलहुगा, अचित्ते पाउकाए जइ बेंदिये ग्रसति तो छल्लहुगं, ते इंदिए छग्गुरुगं, चउरिदिए छेदो, पंचेंदिए एक्कम्मि मूल, दोसु प्रणवट्ठो, तिसु पारंचियं । 'दुहतो वि" ति - जत्थ प्राउक्कानो सचित्तो सतसो य तत्थ दो वि पच्छित्ता भवंति, चउरिदिएसु चउसु पारंचिय, तेइंदिएसु पंचसु पारंचियं, बेंदिएसु छसु पारंचियं ॥५३१६।। एते ताव मारण्णगाणं दोसा भणिता। इदाणि 'गामेयगाणं दोसा भण्णंति - गामेय कुच्छियमकुच्छिते य एक्केक्क दुट्टऽदुवा य । दुट्ठा जह आरण्गा, दुगुंछित ऽदुगुंछिता णेया ।।५३१७|| ते गामेयगा तिरिया दुविधा - दुगुंछिता अदुगंछिता य । दुगंछिता गद्दभाती, अदुगुछिता गवादी। दुगंछिता दुट्टा अट्ठा य । अदुगुंछिया वि एवं। जे दुगंछिता अदुगुंछिता वा दुवा ते दोवि जहा पारण्णा भणिता तहा भाणियब्वा ।।५३१७॥ जे अदुगु छिता अदुट्टा तेसु नत्थि दोसा जहासंभवं भाणियव्वा, जे ते दुगु छिया अदुवा तेसु इमे दोसा - भुत्तेयरदोस कुच्छिते, पडिणीए छोभ गेण्हणादीया । भारण्णमणुय-थीसु वि, ते चेव णियत्तणादीया ॥५३१८।। तिरियंनी महासहिता दुगुंछिताले, जेण गिहिका भुत्ता तस्स तं दद्रु सतिकरणं, "इतरे" ति - जर्ण ण भुत्ता तस्स तं दद्रु कोउग्रं प्रवति, कुच्छियासु वा प्रासण्णठियासु पडिणीतो कोइ छोभ देज्ज - "मए १ चतुर्ष परितापितेषु पारांचिक, इति ६० वृ० गा० २३८६ । २ गा० ५३१४ । ३ गा० ५३१४ । ४ उवग, इति पूनासत्कताडपत्रप्रतो। ५ अन्नतित्थेण, इत्यपि पाठः । ६ गा० ५३१४ । ७ ऽकुछिता इत्यपि पाठः । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५३१६-५३२२] षोडश उद्देशक: एस समणगो महासद्दियं पडिसेवंतो दिट्ठो", तत्थ वि गेण्हणादिया दोसा । एवं गामारण्णतिरिएसु दोसा भणिता। जा य जत्य काए मारोवणा भणिता सा सव्वा उवउंजितूण भाणियन्या ॥ एते तिरियाणं दोसा भणिता । इदाणि मणुस्साणं "प्रारणमणुय" पच्छद्ध। मणुया दुविधा - प्रारणगा गामेयगा य । (स्थ मारणयाणं पुरिसाण य इत्थियाण य ते चेव णियत्तणादिया दोसा जे तिरियाणं भणिया ।।५३१८।। इमे य अण्णे दोसा - पावं अवाउडातो, सबरादीतो तहे। णित्थक्का । भारियपुरिस कुतूहल, आतुभयपुलिंद आसुवधो ॥५३१६।। पुवढे कंठं । णित्थक्का णिल्लज्जा । तातो साधु दळूणं पारियपुरिसो त्ति काउं पुलिदियादिप्रणारिया कोउएणं साधुसमीवं एज्जंतानो दटुं प्रायपर उभयसमुत्था दोसा भवेज्ज । मेहुणपुलिंदो वा तं इथियं साधुसगासमागतं दद्रु ईसायतो रुट्ठो “मासु" सिग्धं मारेन्ज ।।५३१६॥ थी-पुरिसअणायारे, खोमो सागारियं ति वा पहणे । गामित्थी-पुरिसेसु वि, ते विय दोसा इमे चऽण्णे ॥५३२०॥ अधवा - सो पुलिंदपुरिसो पुलिंदयाए सह प्रणायारं प्रायरेज, तत्थ भुत्ताभुत्ताण सतिकरणकोउएहि चित्तखोहो हवेज । खुभिए य वित्त पडिगमणादिया दोसा ।। अहवा - सो पुलिंदतो प्रणायारमायरिउकामो सागारियं ति काउं साधुं पहणेजा मारेज वा । एते मारण्णयाण दोसा । गामेयकपुरिसइत्थीण वि एते चेव दोसा, इमे य प्रणे दोसा ॥५३२०॥ - चंकमणं पिल्लेवण, चिट्टित्ता चेव तम्मि तूहम्मि । अच्छते संकापद, मज्जण दटुं सतीकरणं ॥५३२१॥ 'चंकमणे" ति अस्य व्याख्या - अण्णत्थ व चंकमती, 'मज्जण अण्णत्थ वा वि वोसिरती। कोनाली चंकमणे, परकूलातो वि तत्थेति ॥५३२२॥ कोइ पण्णत्थ चंकमतो साधू दगतीरे दटुं तत्येति एत्य साधुसमीवे चेव चंकमणं करेस्सामि, किं चि पुच्छिस्सामि वा बोल्लालाव-संकहाए अच्छिस्सामि, साधु वा दगतीरे चंकमंतं दह्र गिही अण्णथाणामो तत्थेइ महं पि एत्थेव चंकमिस्सं, सो य प्रयगोलसमो विभासा । अहवा - तत्थ 3दगतीरे चंकमणं करेस्सामीति प्रागतो तत्थ साधं दळूणं वितेति - "जामि इतो ठाणातो अण्णत्थ चंकमणं करेस्सामी" ति गच्छति, गच्छंते अधिकरणं । "४णिल्लेवणं' ति अस्य व्याख्या - मज्जण अण्णत्थ वा वि वोसिरति" ! सणं वोसिरितुं प्रणत्थ पिल्लेवे उकामो साधु दट्ठ साहुसमीवे एउं निल्लेवेइ । एवं मजणंपि, मजणं ति हाणं । अहवा - तत्थ मिल्लेविउं कामो साहुं दटुं प्रणत्व गंतुं णिल्लेवेति एवं मज्जण सण्णवोसिरणं पि । १ गा० ५३२। २ प्रायमण"इत्यपि पाठः । ३ . समीवे, इत्यपि पाठः । ४ गा० ५३२१ । ५ प्रायमण"इत्यपि पाठः । ६ गा० ५३२२ । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [सूत्र-२ "चिट्ठिता चेव तम्मि तूहम्मि" अस्य व्याख्या - "कोनाली" पच्छदं । गंतुकामो सागारिगो साधू दगतीरे दटुं तम्मि चेव "तूहम्मि” त्ति तित्ये चिट्ठति । - अहवा-परकूलातो वि साधुसमीवं एति । "कोनालि' त्ति गोट्ठी। गोट्ठीए साधुणा सह बोल्लालावसंकहेण चंकमणं करेंतो मच्छिस्सं, तत्थ साधुसंलावणिमित्तं अच्छंतो छक्काए वधति ॥५३२२॥ "अच्छते संकापद" ति अस्य व्याख्या - दग-मेहुणसंकाए, लहुगा गुरुगा य मूल णीसंके । दगतूर कंचवीरग, पघंस केसादलंकारे ॥५३२३।। दगतीरे साधु अच्छतं दद्रु कोइ संकेज्जा - कि उदगट्ठा अच्छति । अह कि संगारदिण्णतो ? तत्य दगसंकाए चउलहुं, णिस्संके चउगुरु । मेहुणसंकाए चउगुरु, णिस्संकिते मूलं । "3मज्जण दळु सतीकरणं" ति अस्य व्याख्या - "दगतूरं" पच्छदं । कोति सविगारं मज्जति, दगतूरं करेंतो एरिसं जलं प्रप्फालेति जेण पुरवसद्दो भवति । एवं पडह-पणव-भेरिमादिया सहा करेंति । अधवा - कुचवीरगेण जलं पाहिंडति । कुंचवीरगो सगडपक्खसारिच्छं जलजाणं कज्जति । सुगंधदन्वेहि य आघंसमाणं केसवत्थमल्लयामरणालंकारेण य प्राभरेते दर्दू भुत्तभोगिसतिकरणं, इयराण कोउयं भवइ । पडिगमणादी दोसा ।।५३२ इमे इत्थीसु मज्जण-हाणट्ठाणेसु अच्छती इत्थिणं ति गहणादी । एमेव कुच्छितेतर-इत्थीसविसेस मिहुणेसु ॥५३२४॥ इत्थीमो दुविहा - प्रदुगुंछिता दुगुंछिता य। तत्थ प्रदुगंछिता बंभणी खत्तिया वेसि सुद्दी य। दुगुंछिता संभोइयदुप्रक्खरियाप्रो, अहवा णडवरुडादियानो प्रसंभोइय इत्थिप्रामो । एताप्रो वि दुविधाम्रो - सपरिग्गहा अपरिगहाम्रो य । एत्थ सपरिम्गहित्थियाणं वसंताइसु अण्णत्थ ऊसवे विभवेण जा जलक्रीडा संमज्जणं, मलडाहोवसमकरणमेत्तं व्हाणं, जलवहणपहेसु वा प्रणेसु वा णिल्लेवणट्ठाणेसु इत्थीणं अच्छंतस्स प्रायपरोभयससुत्या दोसा। अधवा - तसिं गाययो पासित्ता जत्थऽम्ह इत्थीमो मज्जणादी करेंति तत्थ सो समणो परिभवं - कामेमाणो अच्छति, दुट्टो ति काउ गेण्हणादयो दोसा । जाप्रो पुण अपरिग्गहापो कुच्छिया इयर त्ति अकुच्छिया कः इत्थीमो तासु वि एवं चेव पायपरोभयसमुत्था दोसा। "मिहुणं" ति जे सइत्थिया पुरिसा तेसु मिहुणक्रीडासु क्रीडतेसु सविसेसतरा दोसा भवंति ॥५३२४॥ जम्हा दगसमीवे एवमादिया' दोसा तम्हा 'चिट्ठणादिया पदा इमे तत्थ णो कुज्जा - चिट्ठण णिसिय तुयट्टे, निदा पयला तहेव सज्झाए । झाणाऽऽहारवियारे, काउस्सग्गे य मासलहुं ॥५३२५॥ उद्धट्टितो चिट्ठइ, णिसीयणं उवविट्ठो चिट्ठइ, तुयट्टो णिव्वष्णो अच्छति ॥५३२५।। १ गा० ५३२१ । २ गा० ५३२१ । ३ गा० ५३२१ । ४ गा० ५३१० । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ५३२३ षोडश उद्देशकः पयलणिद्दाणं इमं वक्खाणं सुहपडिबोहो णिहा, दुहपडिबोहो य णिद्द-णिद्दा य । पयला होति ठियस्सा, पयलापयला उ चंकमतो ॥५३२६॥ वायणादि पंचविहो सझाप्रो । “ झाणि" ति धम्मसुक्के झायति, प्राहारं वा प्राहारेति,"वियारे" त्ति-उच्चारपासवणं करेति, अभिभवस्म काउस्सगं वा करेति । एतेसु ताव दसस पदेसु अविसिटुं असामायारिणिप्फ मासलहुं ।।५३२६॥ ___ इदाणि विभागप्रो पच्छित्तं वण्णे उकामो प्रणाणुपुत्वीचारणियपदसंगहं चारणियविकप्पसु च जं पच्छित्तं तं भणामि - संपाइमे असंपाइमे य अदिढे तहेव दिढे य । पणगं लहु गुरु लहुगा गुरुग अहालंद पोरिसी अधिका ॥५३२७॥ तं दगतीरं दुविहं संपातिममसंपातिमं वा । एतेसिं इमा विभासा - जलजाओ असंपातिम, संपाइम सेसगा उ पंचेंदी। अहवा विहंगवज्जा, होति असंपाइमा सेसा ॥५३२८॥ अण्णठाणातो पागंतु जे जले जलचरा वा थलचरा वा पंचेंदिया संपतंति ते संपाइमा, जे पुण जलचरा वा तत्रस्था एव ते असंपातिमा । अहवा - खहचरा प्रागत्य जले संपतंति संपाइमा । सेसा विहंगवज्जा थलचरा सव्वे असंपाइमा । एतेहिं संपाइमऽसंपातिमेहिं जुत्तं दुविधं दगतीरं । एयम्मि दुविधे दगतीरे तेहिं संपातिमेहि दिट्ठो अच्छति अदिट्टो वा । जं तं प्रच्छति कालं तस्सिमे विभागा- अधालंदं पोरिसि । अधिगं च पोरिसिं लंदमिति कालस्तस्य व्याख्या - तरुणित्थीए उदउल्लो करो जावतिएण कालेण सुक्कति जहण्णो लंदकालो । उक्कोसेण पुवकोडी । सेसो मझो। ____ अहवा - जहण्णो सो चेव, उक्कोसो "प्रलंद" ति जहालंदं, जहा जस्स जुत्तं, जहा - पडिमापडिवण्णाणं अहालंदियाण य पंचराइंदिया, परिहारविसुद्धियाणं जिणकप्पियाणं णिक्कारणो य गच्छवासीण वा उडुब मासं, वासासु चउमासं, अज्जाणं उडुबद्धे दुमासं, मज्झिमाणं पुन्चकोडी, । एत्य जहण्णेण प्रहालंदकालेणं अधिकारो॥५३२८॥ इदाणि संपाति-असंपाति-अधालंदियादिसु अदिट्ठ-दिद्वेसु य पच्छित्तं भणंति - असंपाति अहालंदे, अदिढे पंच दिट्ठ मासो उ । पोरिसि अदिट्ट दिडे, लहु गुरु अहि गुरुग लहुगा य ॥५३२६॥ प्रसंपातिमे महालंदं प्रदिढे प्रकृति पंच राइंदिया । दिढे अच्छइ मासलहुँ । प्रसंपाइमेसु पोरिसिं प्रदिढे अच्छइ मासलहू । दिट्टे मासगुरू । १ या० ५३२५ । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५.२ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे अधियं पोरिसि प्रदिट्ठे प्रच्छति मासगुरुं । दिट्ठे चउलहुगं । संपामेसु हालद प्रदिट्ठे मासलहुं । दिट्ठे मासगुरु । पोरिसि अदि मासगुरु । दिट्ठे चउलहंगे । श्रधियं पोरिसिं अदिट्ठे चउलहुं । दिट्ठे चउगुरुं ॥५३२६ ॥ संपातिमेवि एवं मासादी णवरि ठाति चउगुरुए । भिक्खु वसहाभिसेगे, आयरिए दिसेसिता अहवा ॥ ५३३०|| पुव्वद्धं गतार्थं । एवं प्रोहियं गयं । प्रधवा • एवं चैव भिक्खुम्स वसभस्स श्रभिसेस्स प्रायरियस्य विमेसियं दिज्जति । भिक्खुस्स उभयहुं, वसभस्स कालगुरु, श्रभिसेगस्स तवगुरु प्रायरियस्स, उभयगुरु । एस वितिम्रो प्रादेसो ।। ५३३० ।। हवा भिक्खुस्सेवं, वसभे लहुगाति ठाति छल्लहुगे । अभिसेगे गुरुगादी, छग्गुरु लहुगादि छेदतं ।। ५३३१॥ भिक्खुस्स एवं जं वृत्तं । वसभस्स श्रसंपाम- संपा इमं प्रधालंदपोरिमिः प्रधिय- अदिदिट्ठे सुपुत्र चारणियविहीते मासलहुगाश्रो श्राढतं छल्लहुए ठायति । उवज्झायरस संपाइमेसु मासगुरुगाम्रो प्राढत्तं छल्लहुए ठायति, संपातिमेमु चउलहुगातो प्रदत्तं छग्गुरुए ठायति । प्रायरियस्स चउलहुगाओ आढत्तं छेदे ठायति । एस ततिओ पगारो ।। ५३३१ ॥ संजतीण समणाण चेव पंचण्हं । हा पंच पणगादी आरद्धा, यव्वा जाव चरिमं तु || ५३३२ ॥ पंच संजती इमा - खुड्डी, येरी, भिक्खुणी, अभिसेगि, पवत्तिशी चेव । समयाण वि एते चैव पंच मेदा । " पणगादि जाव चरिमं" ति ॥ ५३३२॥ इमे पच्छित्तठाणा - [ सूत्र -२ पण दस पण्णर वीसा, पणवीसा मास चउर छच्चेव । लहुगुरुगा सव्वेते, लंदादि संप - संपदिसुं ॥ ५३३३॥ पणगादि जाव छम्मासो, सव्वे एते लहुगुरुभेदभिण्णा सोलस भवति । छेदो मूलं प्रणवट्ठो पारंचियं च एते चउरो, सव्वे वीसं ठाणा । श्रहालंदादिया तिणि पदा, असंपाइमा दो पदा, श्रदिदिट्ठा य दो पदा चिट्टणादिया य दसपदा ॥ ३३३ ॥ इदाणि चारणिया कज्जति पणगादि संपादिमं संपातिमदिट्ठमेव दिट्ठे य । गुरुगे ठाति खुड्डी, सेसाणं बुडि एक्केक्कं ॥ ५३३४॥ खुड्डी चिट्ठति प्रसंपामे महालंद काल प्रदिट्ठे पंचराइंदिया लहुया । दिट्ठे पंच राइंदिया गुरुया । खुड्डी विट्ठति प्रसंपातिमे पोरिसि प्रदिट्ठे पंच राईदिया गुरुया । दिट्ठे दस राइंदिया लहुया । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५३३० - ५३३७ ] षोडश उद्देशकः खुड्डी चिट्ट संपामे ग्रधियं पोरिमि प्रदिट्ठे दसराइदिया लहुया । दिट्ठे दस राइदिया गुरुया । एयं असंगतिमे भगियं । संगमे पंचराईदिएहि गुरुएहिं प्राढतं. पण्णरमराईदिएहि लहुए ठाति । एयं चिनीए भणियं गिसीयनीए पंचराईदिएहि गुरुहि प्रादत्तं पण्णरसहिं गुरूहि ठाति । तुती श्रसपातिम-संगातिमेहि दमसु राईदिएसु लहुएमु प्राढत्तं वीसाए राइदिएहिं लहुएहि ठाति । मद्दायनीए बीमाए गुरुहि ठाति । लायंतीए पणुवीसाए लहुएहिं ठाति । सज्झा करेंतीए पणुवीसाए राइदिएहिं गुरुएहि ठाति । झा झायंतीए मासलहुए ठाति । ग्राहारं श्राहारतीए मासगुरुए ठाति । वियार करेंतीए चउलहुए ठाति । काउस्मग्गं करतीए चउगुरुए ठाति । एयं खुड्डीए भणियं । थेरमादियाण हेट्ठा एवकं पदं हुसेज्जा उवरि एक्कं वड्डेज्जा ।। ५३३४ ।। छल्लहुगे ठाति थेरी, भिक्खुणि छग्गुरुग छेदो गणिणीए । मूलं पवित्तिणी पुण, जहभिक्खुणि खुड्डए एवं ॥ ५३३५|| थेरीए गुरुपगगातो प्राढत्तं छल्लहुगे ठाति । भिक्खुणीए दसहं राईदियाण लहुयाण प्राढतं छग्गुरुए ठाति । श्रभिसेयाए दमहं इंदियाण गुरुप्राण प्राढतं छेदे ठाति । पवित्तिणीए पण्णरस लहुगा आढत्तं मूले ठायति । एवं संजतीण भणियं । • इदागि संजयाणं भण्णति तत्थ प्रतिदेसो कीरति । जहा भिक्खुणी भगिता तहा खुड्डो भाणियव्वो । जहा गणिणी भणिया तहा भिक्खू भाणियन्नो । उवज्झायस्स गुरूएहिं गण्णरसहि प्रादत्तं प्रणवट्टे ठाति । आयरिश्रमे वीसाए लहुएहि राईदिएहिं प्राढतं पारंचिए ठाति ॥ ५३३५।। गणिणिसरि सो उ थेरो, पवत्तिणीसरिसत्रो भवे भिक्खू । अड्रोक्कंती एवं सपदं सपदं गणि - गुरूणं ।। ५३३६ ॥ गतार्था । गणिस्स सपदं प्रणत्र, गुरुस्स सपदं पारंचियं ॥ ५३३६॥ एमेव चिणादिसु सव्वेसु पदेसु जाव उस्सग्गो । पच्छिते एसा एक्केक्कपदम्मि बचारि ॥ ५३३७ || 9 १ प्रचलाहारनिहारस्वाध्याय- ध्यानकायोत्सर्गाः, इति क्रमेण प्रायश्चित्तान्युक्तानि, हु० क० २४०६ गाथा - वृत्तौ । ५३ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-२ चिटणादिपदे असंपातिमसंपातिमे य प्रदिटु-टिट्टेसु चउरो पच्छित्ता भवंति । एवं णिसीयणादिसु वि एक्कक्के चउरो पच्छित्ता भवंति ।। ग्रहवा - चिट्ठणादिसु एककेके चउरो प्रादेसा इमे - एक्कं प्रोहियं, बितियं तं चेव कालविसेसितं, ततियं छेदंतं पच्छित्तं, चउत्थं 'महल्लं पच्छितं ॥५३३७॥ सम्मत्तं दगतीरं ति दारं। अधुना जूवकस्यावसरः प्राप्तः । तत्थ गाहा - संकम जवे अचले. चले य लहगो य होति लहुगा थ। तम्मि वि सो चेव गमो, नवरि गिलाणे इमं होति ॥५३३८॥ जूवयं णाम विट्ठ (वी) पाणियपरिविवत्तं । तत्थ पुण देउलिया धरं वा होज, तत्थ वसति गेण्हति चउलहुगा, एयं वसहिगहणगिफणं । तं जूवर्ग संकमेण जलेग वा गम्मइ ।। संकमो दुविहो - चलो अचलो य । अचलेण जाति मासलहू । चलो दुविहो - सपच्चवानो अपचवायो य । शिपच्चवाएणं जइ जाति तो चउलहुं सपञ्चवाएण जाति च उगुरू । जलेश वि सच्चवाए। गच्छति चउगुरु । णिप्पञ्चवाए चउलहुँ। "तम्मि वि सच्चेव" पच्छद्ध - तम्मि वि जूबते सच्चेव वत्त वया जा उदगतीरए भणिता । "3अधिकरणं अतराए" ति एत्तो प्राढतं जाव कवकपदम्मि चतारि" ति, गरि - इमे दोसा अब्भहिता गिलाणं पडुच्च ।। ३६८।। दछृण व सतिकरणं, ओभासण विरहिते व आतियणं । परितावण चउगुरुगा, अकप्प पडिसेव मूलदुर्ग ।।५३३६।।.. गिलाणस्स उदा दटुं "सतिकरण" नि एरिसी मती उप्पज्जति पियामि त्ति । ताहे प्रोभासइ। जई दिज्जति तो संजमवि राहणा । अह ण दिज्जति तो गिलाणो परिचत्तो, विरहियं साहूहिं अण्णेहि य ताहे पादिएज्ज । जति सलिंगेणं प्रादियति तो चउलहुं । अहाऽकप्पं पडिसेवति "दुग" पि गिहिलिगेणं अतिथियलिगेण वा तो मूलं । अहवा - प्रादिए आउ कार्याणफण च उलहुग्रं । तसेमु य तसणिप्फ बणियव्वं । पंचिदिएम तिमु चरिम, तेण वा प्रात्थेणं परितावादिणिप्फणं । अह प्रोभासेंतस्स | देंति असंजमो त्ति काउं, तत्थ प्रणागाढदिणिप्फ । अह उद्दातितो चरिमं. जणो य भगइ - "अहो ! णि रणुकंपा मगंतस्स थि ण देंति' । अहवा - अकप्पं पडिसेवतो अोहावेज - एगो मूलं, दोसु प्रणा बटुं, तिमु चरिमं ।। १३३६।। आउक्काए लहुगा, पूतरगादीतमेसु जा चरिमं । जे गेलण्णे दोसा, धितिब्बल-सेहे ते चेव ॥५३४०॥ एत्य कायणिप्फणं पच्छिसं भाणियव्वं । छक्काय चउसु लहुगा, परिन लहुगा य गुरुगमाहरण । संघट्टण परितावण, लहुगुरुगऽतिवायतो मूलं ॥५३४१॥ १ चारणि का प्रायश्चित्तं । २ गा० ५३१० । ३ गा० ५३१३ । ४ गा ५३३७ । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५२३८-५३४५ । षोडश उद्देशकः - ५५ कंठा । जे गिलाणदोसा भणिता ते धितिदुब्बले वि दोसा, सेहे वि तच्चेव दोसा ॥५३४१।। जूवगेत्ति गयं। इदाणि 'मायावणा - आतावण तह चेव उ, णवरि इमं तत्थ होति नाणत्तं । मज्जण-सिंचण-परिणाम-वित्ति तह देवता पंतर ॥५३४२॥ जदि दगसमीवे पायावेति तत्थ तह चेव अधिकरणादि दोसा । जे उदगतीरे भणिया जे जूवगे भणिया संभवंति ते सो अविसेसेण भाणियव्वा । दगसमीवे मायावेतस्स चउलहुँ। आयावणाए इमे अब्भहिया . 'मज्जण-सिंच परिणाम-नित्तिदेवतापंत" त्ति ॥५३४२॥ मज्जण-सिंचगपरिणामा एते तिणि पदा जुगवं एक्कगाहाए वक्खाणेति । मज्जंति व सिंचंति व, पडिणीयऽणुकंपया व णं कोई । तण्हुण्हपरिणतस्स व, परिणामो ण्हाण-पियणेसु ॥५३४३।। तं २दगतीरातावर्ग मज्जति हवंति पडिगीयत्तणतो, घम्मितो पयावणेणं सिंचंति तं सिगच्छडाहि अंजलीहिं वा, तं पि अणुकंपया पडिणीयतया वा कश्चित् प्रहभद्रः प्रत्यनीको वा एवं करेति । अहवा- तस्स दगतीरातावगस्स "तण्हपरिणतोमि" त्ति तिसिनो उण्हपरिणतो घम्मितो, एयावत्थमूयस्स घम्मियस्स हाणपरिणामो उप्पज्जति, तिसियम्स पियणपरिणामो ति ॥५३४३॥ दारा तिन्नि गता। "3वित्ति" अस्य व्याख्या - आउट्टजणे मरुगाण अदाणे खरि-तिरिक्खिछोभादी । पच्चक्ख देवपूयण, खरियाचरणं च खित्तादी ॥५३४४।। पुव्वद्धस्स इमा विभासा - अातावण साहुस्सा, अणुकंपंतस्स कुणति गामो तु । मरुगाणं च पदोसा, पडिणीयाणं च संका उ ॥५३४॥ तस्स साहुस्स दगतीरे प्रायावेतस्स प्राउट्टो सो गामजणो अणुकंपतो य पारणगदिणे गत्तादियं सविसेसं देति,-"इमो पच्चक्खदेवो त्ति किं अम्हं अन्नेसि मरुगादीणं दिनेणं होहिति, एयस्स दिण्णं महफलं" त्ति । ताहे मरुगादि अदिज्जते पदोसं गता। "खरि" त्ति दुवक्खरिता, "तिरिक्खी" महासद्दियादि, एयासु "छोभगो" त्ति अयसं देंति,-"एस संजतो दुवकलरियं परिभुजति, तिरिक्खियं वा" । ग्रहवा – दुवक्खरियं दाणसंगहियं काउ महाजणमझे बोलावेंति, महासद्दियं वा तत्थ संजतसमीवे नेउ संजयवेसेण गिव्हंति, संजयं च अप्पसागारियं ठवेंति, अन्ने य बोलं करेंति - "एस संजतो एरिसो" ति । तत्थ जे पडिणीया तेसि संका भवति । निरसकिए मूलं । अधवा - जे पडिणीया ते संकंति कीस एसो तित्थठाणे प्रायवेति, किं तेणट्टेण, कि ताव मेहुणद्वेण । “वित्ति" गतं । इदाणिं "तह देवता पंता" अस्य व्याख्या - "पच्चक्खदेव" पच्छद्ध । जत्थ पायावेति तस्स सम्मेवे देवता जत्थ जणो पुत्वं पूयापरो प्रासीत्, साहुं मायावेतं दळु इमो पच्चक्खदेवो त्ति साहुस्स १ गा० ५३१० । २ ता प कं, इत्यपि पाठः । ३ गा० ५३४२ । ४ गा० ५३४८ । ५ गा० ५३४२ । ६ गा० ५३४८ । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-२ पूर्य काउमारद्धो न देवताए, सा देवया जहा मरुगा पट्ठा तहा दुवक्खरिंग-तिरिक्सिसु करेन, अहदा - सा देवता साहुरूवं पावरेत्ता भन्न च तस्स पडिरूवं करेत्ता दुवक्खरिगं तिरिक्खी वा परिभुजंतं लोगस्स दसेति । अहवा - खितचित्तादिगं करेज । पन्नामो वा प्रकप्पपडिसेवणा अकिरियानी दरिसेज्ज । जम्हा तत्व एत्तिया दोसा तम्हा तत्व दगतीरे न ठाएज्जा ॥५३।। बीयपए ठाएज्ज वि दगतीरे - पढमे गिलाणकारण, बितिए वसही य असति ठाएज्जा । रातिणियकज्जकारण, ततिए बितियपयजयणाए ॥५३४६। "पढम" ति दगतीरं, तत्थ गिलाणकारणे ग ठाएज्जा । "बितिय" ति जुवगं तत्थ ठायजा वसधिनिमित्तं । "ततियं" ति - पायावणा, "राइणिउ" त्ति कुलगणसंघकज्जं तेण राइणो कज्ज हवेज, एते. तिनिवि बितियपदा ।।५३४६॥ कहं पुण गिलाणट्ठा दगतीराए ठाएज्जा ? विज्ज-दवियट्ठाए, णिज्जतो गिलाणो असति वसतीए । जोग्गाए वा असती, चिट्टे दगतीरणोतारे ॥५३४७।। वेजस्स सगासं निजतो, प्रोमहट्टा वा ["असति"] अनत्थ निजतो, अन्नत्थ नत्थि वसधी दगतीरे य अस्थि ताहे तत्थ ठाएज्ज, गिलाणजोगा वा वसही अन्नत्य नत्थि । अहवा - वीसमणट्ठा दगतीरए मुहुत्तमेतं प्रोयारिज्जइ तत्थ वि मणुयतिरियाण प्रोयरणमग्गे नोतारिज्जति ॥५३४७॥ तत्थ ठियाणं इमा जयणा - उदगंतेण चिलिमिणी, पडिचरए मोत्तु सेस अण्णत्थ । पडिचर पडिसंलीणा, करेज्ज सव्वाणि वि पदाणि ॥५३४८॥ उदगतेण चिलिमिणी कडगो वा दिज्जइ, जे गिलाणपडियरगा ते परं तत्थ अच्छंति सेसा अन्नत्य अच्छति । पडियरगा वि पडिसंलीणा अच्छति जहा असंपातिसंपातिनाणं सत्ताणं संत्रासो न भवति । एवं ठिया सव्वाणि वि चिट्ठणादिपदाणि करेज्ज ॥५३४८।। पढमे ति गतं । इदाणिं 'बितिय त्ति - श्रद्धाणणिग्गयादी, संकम अप्पाबडं असुण्णं तु । गेलण्ण-सेहभावे संसठ्ठसिणं व (सु) निव्ववियं ॥५३४६॥ श्रद्धाणनिग्गयादी दोसा साहुणो अन्नाए वसहिए सति जूवगे ठायति । तत्थ जति संकमेण गमणं, तेसु संकमेसु अप्पाबहुअं, जो एगनियो अचलो प्रपरिसाडी गिप्पच्चवातो य तेण गंतव्वं, अण्णेसु वि जो बहुगुणो तेण गंतव्वं । दिया। रामो य वसही असुण्या कायब्वा । तत्थ य ठियाण जति गिलाणस्स सेहस्स वा पाणियं पियामो त्ति प्रसुमो भावो उप्पज्जति ताहेत पणविज्जति, तहावि प्रद्विते भावे ताहे संसद्धपाणगं उसिणोदवं वा "सुणिन्ववितं" ति सुसीयलं काउं दिज्जति, अण्णं वा फासुगं ।।५३४६॥ जूवगजयणा गता। १गा० ५३४६ । . Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माव्यगाथा ५३४६-५३५४] षोडश उद्देशकः इदाणि 'रातिणियकज्जति - उल्लोयण णिग्गमणे, ससहातो दगसमीव आतावे । उभयदढो जोगजढे, कज्जे आउट्ट पुच्छणया ॥५३५०॥ - चेतियाण वा तद्दनविणासे वा संजतिकारणे वा अण्णम्मि वा कम्हि य कज्जे रायाहीणे, सो य राया तं कज्ज ण करेति, सयं बुग्गाहितो वा, तस्साउट्टणाणिमित्तं दगतोरे भातावेज । तं च दगतीरं रणो प्रोलोयणठियं पिगमणाहे वा । तत्थ य प्राताचेतो ससहाम्रो पातावेति उभयदढो घितिसंघयणेहिं । तिरियाणं जो प्रवतरणपहो मणुयाण य पहाणादिमोगट्ठाणं तं च वज्जेउं पातावेइ । कज्जे तं महातवजुत्तं दट्टे अल्लिएज्ज, राया प्राउट्टो य पुच्छेज्जा - "f कज्जं पायावेसि ? अहं ते कज्ज करेमि, भोगे वा पयच्छामि, वरेहि वा वरं जेण ते अट्ठो"। ताहे भणाति साहू - "ण मे कज्जं वरेहि, इयं संघकज्जं करेहि" ॥५३५०।। इमेरिसो सो य सहायो भावित करण सहायो, उत्तर-सिंचणपहे य मोत्तूणं । मज्जणगाइणिवारण, ण हिंडति पुष्फ वारेति ।।५३५१।। धम्म प्रति भावितो, ईसत्थे धणुवेदादिए कयकरणे संजमकरणे वा कयकरणे, ससमयपरसमयगहियऽ स्थत्तणमो उत्तरसमत्थो, अप्पणो वि एरिसो चेव । सो य सहामो जति कोइ अणुकूलपडिणीयत्तणेणं सिंचति वा मजति वा पुष्पाणि वा पालएति तो तं वारेति । तम्मि गामे णगरे वा सो पायावगो भिक्खं ण हिंडइ, मा मरुगादि पदुवा विसगरादि देज्ज ॥५३५१॥ जे भिक्खू सागणियसेज्जं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसंतं वा सातिजति ।।सू०॥३॥ सह अगणिणा सागणिया । सागणिया तू सेजा, होति सजोती य सप्पदीवा य । एतेसिं दोहं पी, पत्तेय-परूवणं वोच्छं ॥५३५२॥ सागणिसेज्जा दुविधा - जोती दीवो वा । पुणो एक्केक्का दुविधा - प्रसव्वरातो सब्बराती य । असवरातीए दीवे मासलहुं । सेसेसु तिसु विकप्पेसु चउलहुगा पत्तेयं ।।३३५२॥ दुविहा य होति जोई, असव्वराई य सव्वरादी य । ठायंतगाण लहुगा, कीस अगीयस्थ सुत्तं तु ।।५३५३।। "जोइ" त्ति उद्दियंत । सेसं कंठं । चोदगाह रणत्थि अगीयत्थो वा, सुत्ते गीओ य कोति णिहिट्ठो! जा पुण एगाणुण्णा, सा सेच्छा कारणं किं वा ॥५३५४।। १ गा० २५० । २ देखो गा० ५३३१ से ५३५३ । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-३ मायरियाह एयारिसम्मि वासो, ण कप्पती जति वि सुत्तणिहिट्ठो। अव्वोकडो उ भणितो, आयरिश्रो उबेहती अत्यं ॥५३५५॥ जं जह सुत्ते मणियं, तहेव तं जति वियारणा णत्थि । किं कालियाणुअोगो, दिट्ठो दिहि प्पहाणेहिं ॥५३५६।। उस्सग्गसुतं किंची, किंची अववाइयं मुणेयव्वं । तदुभयसुत्तं किंची, सुत्तस्स गमा मुणेयव्वा ॥५३५७॥ गेस एगगहणं, सलोम-णिल्लोम अकसिणे अजिणे । विहिभिण्णस्स.य गहणे, अववाउस्सग्गियं सुत्तं ॥५३५८॥ उस्सग्गठिई सुद्ध, जम्हा दव्वं विवज्जयं लहइ । न य त होइ विरुद्धं, एमेव इमं पि पासामो ॥५३५६।। उस्सग्गे गोयरम्मी, णिसिज्जऽकप्पाववायत्रो निण्हं । मंसं दल मा अहूिं, अववाउस्सग्गियं सुत्तं ॥५३६०॥ गो कप्पति वाऽभिण्णं, अववाएणं तु कप्पती भिण्णं । कप्पइ पक्कं भिण्णं, विहीय अवधायउस्सग्गं ॥५३६१।। कत्थति देसग्गहणं, कत्थइ भण्णंति निरवसेसाई । उक्कमकमजुत्ताई, कारणवसतो णिउत्ताई ॥५३६२।। देसग्गहणे बीए, हि सूइया मूलमाइणो होति । कोहाति अणिग्गहिया, सिंचंति भवं निरवसेसं ॥५३६३।। सत्थपरिण्णा उक्कमे, गोयरपिंडेसणा कमेणं तु । जं पि य उक्कमकरणं, तं पिऽभिनवधम्ममातहा ॥५३६४॥ बीएहि कंदमादी, विसूइया तेहि सव्ववणकायो। भोमातिका वर्णण तु, सभेदमारोवणा भणिता ॥५३६॥ जत्थ उ देसग्गहणं, तत्थ उ सेसाणि सूइयवसेणं । मोत्तण अहीकारं, अणुश्रोगधरा पभासेंति ॥५३६६॥ उस्सग्गेणं भणिताणि जाणि अववादो य जाणि भवे । कारणजाएण मुणी !, सव्वाणि वि जाणियव्याणि ॥५३६७॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५३५५-५३७७ ] षोडश उद्देशकः उस्सग्गेण णिसिद्धाणि जाणि दब्वाणि संथरे मुणिणो। कारणजाए जाते, सव्वाणि वि ताणि कप्पंति ॥५३६८|| चोदगाह - जं पुव्वं पडिसिद्धं, जति तं तस्सेव कप्पती भुज्जो । एवं होयऽणवत्था, ण य तित्थं णेव सच्चं तु ॥५३६६॥ उम्मतवायसरिसं, सु दंसणं न वि य कप्पऽकप्पं तु । अह ते एवं सिद्धी, न होज्ज सिद्धो उ कस्सेवं ॥५३७०॥ आयरियो ण वि किं चि अणुण्णायं, पडिसिद्ध वा वि जिणवरिंदेहि । एसा तेसिं आणा, कज्जे सच्चेण होय ॥५३७१।। कज्जं णाणादीयं, उस्सग्गववायत्रो भवे सच्चं । तं तह समायरंतो, तं सफलं होइ सव्वं पि ॥५३७२।। दोसा जेण णिरुभंति, जेण खिज्जति पुवकम्माई । सो सो मोक्खोवाओ, रोगावत्थासु समणं व ॥५३७३।। अग्गीतस्स ण कप्पति, तिविहं जयणं तु सो ण जाणाति । अणुण्णवणाइजयणं, सपक्ख-परपक्खजयणं च ॥५३७४।। णिउणो खलु सुत्तत्थो, न हु सक्को अपडिबोहितो नाउं । ते सुणह तत्थ दोसा, जे तेसिं तहिं वसंताणं ॥५३७५।। . अग्गीया खलु साहू, पवरं दोसा गुणे अजाणता । रमणिज्ज भिक्ख गामे, ठायंती जोइसालाए ॥५३७६।। एततो (५३५४) पाढतं जाव 'अग्गीया' गाह (५३७६)। एयानो सव्वापो गाहाप्रो जहा उदगसालाए भणिता तहा भाणियव्वा । सजोइवसधीए ठियाणं इमे दोसा - पडिमाए झामियाए, उड्डाहो तणाणि वा तहि होज्जा । साणादि वालणा लाली, मूसए खंभतणाई पलिप्पेज्जा ॥५३७७॥ तेण जोतिधा पडिमा झामिज्बेज्जा, तत्य उड्डाहो एतेहि पडिणीयताए णारायणादिपडिमा भामिता, तत्थ गेण्हमादी दोसा। संथारगादिकया वा तणा पलिवेज । साणेण वा उम्मए चालिए पलीवणं होज । पासा - Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-३ जत्थ पदीवो तत्थ मूसगो "लाल" ति वट्टी तं कट्टति, तत्य खंभो पलिप्पइ णिवेसणाणि वा पलिपंति ॥५३७७॥ बितिय० गाहा (५१५८) प्रद्धाणनिग्गया.गाहा (५१९४) ।।५३७८॥ ॥५३७६।। कंट्या पूर्ववत् । सजोतिवसहीए दव्वतो ठायंतस्स इमे दोसा पच्छित्तं च - उवकरणेऽपडिलेहा, पमज्जणावास पोरिसि मणे य । णिक्खमणे य पवेसो, आवडणे चेव पडणे य ॥५३८०॥ च उण्हं दाराणं इमं वक्खाणं - पेह पमज्जण वासए, अग्गी ताणि अकुव्वतो जा परिहाणी । पोरिसिभंगे अभंगे, सजोती होति मणे तु रति अरति वा ॥५३८१॥ जति उवगरणं ण पडिलेहेइ, “मा छेदणेहिं अगणिसंघट्टो भविस्सइ" त्ति तो मासलहुं उवधिणिप्फ वा । ते य अपडिलेहंतस्स संजमपरिहाणो भवति । अह पडिलेहेति तो छेदणेहिं अगणिकायसंघटो भवति, तत्थ चउलहुं । सुत्तपोरिसिं ण करेति मासलहुं, अत्थपोरिसिं ण करेति मासगुरु, सुत्तं णासेइ चउलहुं, प्रत्थं णासेति चउगुरु । मणेण य जइ जोइसालाए रती भवति “सजोतीए सुहं अच्छिजइ" तो चउगुरु, अह परती उप्पजइ, जोतीए दोसं भण्णइ तो चउलहुं ॥५३८१।। 'प्रावासए त्ति अस्य व्याख्या - जति उस्सग्गे ण कुणति, ततिमासा सव्वअकरणे लहुगा । वंदण-थुती अकरणे, मासो संडासगादिसु य ॥५३८२।। 'जोति' त्ति काउं जत्तिया का उस्सग्गा ण करेति तत्तिया मासलहुं । सव्वं श्रावस्सयं ण करेति चउलहुगा । अह सजोइयाए प्रावस्सयं करेति तहावि जत्तिया उस्सग्गा करेति प्रगणिविराहण ति काउ तत्तिया चउलया । सव्वम्मि चउलहुगं चेव । अगणि त्ति का वदणयं न देंति, थुतीतो ण देति, संडासयं ण पमज्जति उवसंता, तिसु वि पत्तेयं मासलहुं । अह करेति तह वि मासलहुँ । छेदणगेहि य अगणि विराहणाए चउलहुं ॥५३८२॥ २णिक्खमणे य पच्छद्ध ग्रस्य व्याख्या - आवस्सिया णिसीहिय, पमज्ज आसज्ज अकरणे इमं तु । पणगं पणगं लहु लहु, आवडणे लहुग जं चऽण्णं ॥५३८३।। ___णिक्खमंता आवासियं ण करेंति तो पण गं, पविसंता णिसीहियं ण करेंति तो पणगं चेव । अधवापविसंता णिता वा ण पमति, वसहि वा ण पमज्जति तो मा पलहुं. अह पमज्जति तो मासलहुं, पमज्जंतस्स य छेदणेहि अगणि विराहणे चउलहुं । प्रासज्ज ण करेति मासलहुं । प्रावडण त्ति उम्मुपादिसु पखलणा तत्थ चउलहुं । 'जं चऽन" ति प्रणागाढपरितावणाणिप्फणं ॥५३८३॥ अधवा - "जं चऽऽण्णं" ति - सेहस्स विसीयणता, ओसक्कऽहिसक्क अण्णहिं नयणं । विज्जविऊण तुयट्टण, अहवा वि भवे पलीवणता ॥५३८४॥ १ गा० ५३८० । २ गा० ५३८० । ३ गा० ५३८० । ४ गा० ५३८३ । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५३७८-५३६१] षोडश उद्देशक: सेहो कोइ सीयतो विसीएज तेण वा उज्जालिते जइ प्रण्णो तप्पइ तो चउलहुँ । जसिया वारा हत्या परावतेइ तावेइ वा श्रण्णं वा गायं तत्तिया चउलहुगा । " श्रोसक्केइ " त्ति उस्सारे उम्मुयं " प्रहिसक्के ह त्ति प्रगणि तेण उत्तुप्रति, सुयंतो जगतो वा तं श्रगणि अण्णत्थ णेति, सुयंतो वा जति विज्झावति- एएसु सव्वेस पत्तेयं चउलहुआ, पयावमाणस्स पमादेण पलिप्पेजा || ५३६४ || तत्थिमं पच्छित्तं - गाउय दुगुणाद्गुणं, बत्तीसं जोयणाइ चरिमपदं । चत्तारि छच्च लहु गुरु, छेदो मूलं तह दुगं च || ५३८५|| जइ गाउयं ज्झति तो : : । श्रद्धजोयणं उज्झति : : । जोयणं : : : । दोहि जोयणेहि : : : । चउहि जोयणेहि छेदो । प्रट्ठहिं मूलं । सोलसहि प्रणवट्ठो । बत्तीसाए चरिमं ।। ५३८५ ।। गोणे य साणमादी, वारणे लहुगा य जं च अहिकरणं । लहुगा वारणम्मि, खंभतणाई पलीवेज्जा || ५३८६ ॥ तत्थ वि ग्रह गोणसाणे वारेति मा पलीवणं करेहि त्ति तो चउलहुगा । वारिया य हरितादी विराहेत्ता वच्चति, अधिक तत्थ वि चउलहूं, कायणिफण्णं वा । ग्रहण वारेति तत्थ खंभं तणादि वा पली वेज्जा ।।५३८६॥ - गाउय दुगुणाद्गुणं, बत्तीसं जोयणाइ चरिमपदं । चत्तारि छच्च लहू गुरु, छेदो मूलं तह दुगं च || ५३८७ || पूर्ववत् जम्हा एते दोसा तम्हा णो जोतिसालाए ठाएज्जा, कारणे ठायंति - अद्धाणिग्गतादी, तिक्खुत्तो मग्गिऊण असतीए । गीयत्था जयणाए, वसंति तो जोतिसालाए ||५३८८|| पुत्रभणितो श्रववातो गाममज् जा जोतिसाला देवकुलं वा । इमो कुंभकारसालाए प्रववादो, जेण कुंभकारस्स पंचसालाम्रो भणिया, इमाओ " पणिया य भंडसाला, कम्मे पयणे य वग्धरणसाला । इंधणसाला गुरुगा, सेसासु वि होंति चउलडुगा || ५३ ८ ६ || एतेसिं इमा विभासा - ६१ कोलालियावणा खलु, पणिला भंडसाल जहिं भंडं । कुंभारसाल कम्मे, पयणे वासासु आवातो ॥ ५३६० ॥ तोसलिए वग्धरणा, अग्गीकुंडं तहिं जलति णिच्चं । तत्थ सयंवरहेउ, चेडा चेडी य छुब्भंति ॥ ५३६१ ।। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [मूत्र-३ पणियसाला जत्थ भायणाणि विक्केति, वाणिय कुंभकारो वा एसा पणियसाला । भंडसाला जहि भायणाणि संगोवियाणि अच्छति । कम्मसाला जत्थ कम्मं करेति कुंभकारो। पयणसाला जहिं पच्चंति भायणाणि । इंधणसाला जत्थ तण-करिसभारा प्रच्छंति । वग्धारणसाला तोसलिविसए गाममझे साला कीरइ । तत्थ अगणिकुंडं णिच्चमोव अच्छति सयंवरणिमित्तं । तत्थ य बहवे चेडा एकका य सयंवरा चेडी पविसिजति, जो से चेडीए भावति तं वरेति । एयासु समासु इमं पच्छितं । ॥५३६१॥ णवरं इंधणसाला गुरुगा, आलित्ते तत्थ णासिउदुक्खं । दुविहविराहणा झुसिरे, सेसा अगणी उ सागरियं ॥५३६२।। पुबद्धं कंठं । अण्णं च इंधणसालाए झुसिरं, तत्थ दुविधा विराधणा - प्रायविराहणाए चउगुरुगा, संजमविगवणाए तत्थ संघट्टादिकं जं प्रावज्जति तं पावति । सेसासु पणियसालादिसु सागारियं पयणसालाए पुण अगणिदोसो ॥५३६२।। एयासु अववादेण ठायंतस्स इमो कमो - पढमं तु भंडसाला, तहिं सागारि णत्थि उभयकाले वि । कम्माऽऽपणि णिसि पत्थी, सेसकमेणिधणं जाव ॥५३६३।। अण्णाए वसहीए असति पढमं भंडसालाए ठाति, तत्थ उभयकाले वि सागारियं नत्थि । उभयकालो-दिया रातो य । ततो पन्छा कम्मसालाए । ततो पच्छा पणियसालाए। अहवा - कम्मपणियसालाण कमो णत्थि, तुल्लदोसत्तणतो, । सेसेसु पयण-वग्धरण-इंधणाइसु प्रसति कमेण ठाएज्जा ॥५३६३॥ ते तत्थ सन्निविट्ठा, गहिता संथारगा विही पुव्वं । जागरमाणवसंती, सपक्खजयणाए गीयत्था ॥५३६४॥ कंठ्या तत्थ वसंताण इमा जयणा पासे तणाण सोहण, प्रोसक्कऽहिसक्क अन्नहिं नयणं । संवरणा लिंपणया, छुक्कार णिवारणोकड्डी ॥५३६५ पुरातना गाथा। प्रगणिकायस्स पासे तणागि विसोहिम्जति. अक्कंतियतेणेसु वा अोसक्किजति, लीवणभएण वा प्रक्क तियतेणेसु वा उस्सक्किज्जति, गिलाणट्ठा सावयभएण वा प्रद्धाणे वा विवित्तासीयं व तेण प्रइसक्कावेज्जा वि, अण्णहि वा सोउमणो नेज्जा, बाहि वा ठवेज्जा, कते वा कज्जे छारेण संवरिज्जति, रक्कमइ ति वुत्तं भवति मल्लगेण वा, प्रहाउभं पालेता विज्झाहित्ति । खंभो छगणादिणा वा लिप्पति । लवणभया साणो गोणो तेणो वा तत्थ सुत्ति हडि त्ति वा भन्नइ, तह वि अटता वारिज्जंति, सहसा वा लित्ते तत्थतो उक्कड्डिज्जति जेव्वं । तणाणि वा, कडगो वा उदग-धूलीहि वा बिज्झविज्जति, पालं वा कज्जति ५३६५॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उददेशकः सजोतिवसहीए उवकरण- पडिलेहणादिदारेसु इमं जयणं करेंतिकडो व चिलिमिली वा, असती सभए व बाहि जं अंतं । ठागासति सभयम्मि व, विज्झायऽगणिम्मि पेहंति || ५३६६ || भाष्यगाथा ५३६२ - ५४०२ ] जोतीए अंतरे को कज्जति, चिलिमिली वा । प्रसति कडगचिलिमिलीए वा जति य उवहितेगगभयं प्रत्थि ताहे अंतोवही बाहि पडिलेहिज्जति, अहवा बाहि पितेणगभयं ठागो वा गत्थि ताहे विज्झाए गणिम पेहिति ॥५३६६ ॥ णिता ण पमज्जति, मृगा वा संतु वंदणगहीणं । पोरिसि वाहि मणेण व, सेहाण व देंति अणुसट्ठि ||५३६७|| गिता पविसंता वा ण पमज्जंति, श्रावासगं वाइयजोग-विरहियं मूत्रं करेंति, वारसावत्तवंदणं दिति पोरिसिं सुत्तत्याणं वाहि करिति । ग्रह बाहि ठागो णत्थि ताहे "मणे" ति मणसा अणुपेहिति । जत्थ सेहो प्रष्णो वा उद्दिते रागं गच्छति तत्य भ्रणुसट्ठि देति गीयत्था ॥ ५३६७ ॥ आवास वाहि असती, ठित वंदण विगड जतण थुतिहीण | सुत्तत्थ वाहियंतो, चिलिमिणि काऊण व सरंति || ५३६८|| गतार्था । बाहि प्रसति ठागस्म जो जहि ठिम्रो सो तहि चेत्र ठिम्रो पडिक्कमति वंदणहीणं । . विगणाप्रालोयणा, तं जयणाते करेति । थूईतो मणसा कढति । सुत्तस्थ बहि गयत्थं जोतिअंतरेवि चिलिमिलि काउं तो चैत्र सुत्तत्ये सरति ||५३६८|| इमा प्रसट्ठी सेहादीणं - नाणुज्जोया साहू, दव्वुज्जोयम्मि मा हु सज्जित्था | जस्स वि न एति निद्दा, स पाउया णिमीलियं गिम्हे || ५३६६ || सज्जति त्ति रज्जते । जस्स वि सजोतिए णिद्दा ण एइ सोवि पाउम्रो सुवति । श्रह गिम्हे धम्मो सो अच्छोणि णिमिल्लेति जाव सुवति १५३६६ ॥ मूगा विसंति णिति व, उम्मुगमादी कतार छिवंता । सेहा य जोइ दूरे, जग्गंती जा धरति जोती || ५४००|| ૬૩ मूगा विशंति प्रविशति । मूप्रति णिसीहियं ण करेति णितो प्रावस्सियं ण करेति, प्रावट्टणादिभया श्रगणि संघट्टणभया उम्मुप्रादि ण च्छिवेति, सेहे भगीता श्रपरिणता गिद्धम्मा य जोतीए दूरे ठविज्जति, जे य गीता वसभा ते जग्गंति जाव सो जोति घरति ॥ ५४०० ॥ ग्रहवा - विहिणिग्गतादि अतिनिद्दपेल्लितो गीओ सक्किउ सुवति । सावयभय उस्सक्कण, तेणभए होति भयणा उ || ५४०१ । श्रद्धाणविवित्ता वा, परकड असती सयं तु जालंति । सूलादी व तवेउ, कयकज्जे छार अक्कमणं ||५४०२ ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ सभाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्र । मूत्र ३-११ विहिणिग्गतो श्रान्तः प्रतीवनिहातितो वा ताहे मोसक्किउं सुवति, गीयत्यो सीहसावयादिभए वा प्रोसक्कति, तेणभए य भयणा, अक्कंतिएसु विज्झावेति, इयरेसु ण विज्झावेति । प्रद्धाणे विवित्ता मुसिता सीतेण वा अभिभूता ताहे जो परकडो प्रगणी तत्थ विसीतंति, परकडस्स असति सयं जालेंति, सूलादिसु कज्ज काउं छारेण प्रक्कमति णिव्ववेंति वा ।।५४०२।। सावयभए आणिति व, सोउमणा वा वि बाहि णीणंति । बाहिं पलीवणभया, छारे तस्सासति णिवावे ॥५४०३॥ अण्णतो वि प्राणेति, वसहीतो बाहिं णेति । सेसं कठं ॥५४०३॥ जोति ति गतं । इदाणिं 'दीवो - दुविहो य होति दीवो, असव्वराती य सव्वराती य । ठायंते लहु लहुगा, करीस अगीतत्थमुत्तं तु ॥५४०४।। एत्ततो पाढत्तं सव्व भाणियब्वं । "णत्थि अगीतत्यो वा" गाहा (५३५४) "एयारिसम्मि" गाहा (५३५५) “जं जह गाहा (५३५६) "उस्सग्गसुयं" गाहा (५३५७) जाव ते "तत्थ सन्निविट्ठा" गाहा (५३९४) । पडिमाझामण श्रोरुभणं, लिंपणा दीवगस्स अोरुमणं । उव्वत्तण परियनण, छुक्कारण वारणोकड्डी ॥५४०५॥ जस्थ पडिमाझामणभयं होजा तत्थ तमो प्रोगासाप्रो पडिमा फेडिज्जति, जति सक्कति फेडेतुं । अह ण सति तो दीवतो फेडिज्जति, खंभकडणकुड्डाणि य लिप्पंति । अहवा - संकलदीवगो ण सक्कति उत्तारेउं ताहे वत्ती उवत्तिज्जति, णिपोलिज्जति वा, साणगोणादि वा छुक्कारिजति, पविसंता वा साणगोणादी वारिज्जंति, बही वा मोकड्डिजति, तेणगेसु वा उस्सक्किजति, सम्पादिमए वा ॥५४०५।। संकलदीवे वत्ती, उव्वत्ते पीलए य मा डज्झे । रूतेण व तं तेल्लं, घेत्तण दिया विगिचंति ॥५४०६॥ कंठा पासे तणाण सोहण, अहिसक्कोसक्क अण्णहिं णयणं । आगाढकारणम्मि, ओसक्कऽहिसक्कणं कुज्जा ॥५४०७॥ दीवगस्स जे पासे तणा, दीवग वा अहिसक्केति । "प्रोसक्कति" त्ति उस्सक्केति वा प्रणाहिं वा णेति । जं तं उस्सक्कण प्रोसक्कणं करेंति त प्रागाढे करेंति, णो प्रणागाढे ॥५४०७॥ मज्झे व देउलादी, बाहिं व ठियाण होति अतिगमणं । जे तत्थ सेहदोसा, ते इह आगाढजतणाए ॥५४०८॥ अधवा - ते साधू वियोले प्रागता देउले ठातेज्ज, मज्झे वा गामदेउलं तद्दिवसतो सागारियाउलं एवि आगता तत्थ दिवसतो ण ठायंति, बाहिं अच्छंति, विसरिएमु सागारिएसु संझाए पविसंति, १ गा० ५३५२ । २ भाष्ये गृहीत्वात् । ३ अत्र सर्वासु यत्र यत्रोदगसालादि तत्र बोइसालादि उपयुज्य क्तिव्यं भाष्यवचनात् । : Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५४०३-५४१०] षोडश उद्देशक: बाहि वासे तेणमावयादिभयं जाणिऊण तत्य सजोतियाए सालाए सदीवए वा जे सेहादिदोसा पुव्वुत्ता ते इह कारणे प्रागाठे जयण'ए कायव्वा ।।५४०८।। तत्थ जति कहिं वि पलिवेज्जा तो इमा जयणा - अण्णाते तुसिणीया, णाते दळूण करण सविउलं । बाहिं च देउलादी, संसद्दा आगय खरंटो ॥५४०६।। जति केणइ ण णाता 'एत्थ संनया ठिय' ति तो तुसिणोया णासंति । अघ णाया लोगेण तो पलित्तं दटुं महता सद्देण सविउलं बोल करेंति ताव जाव जत्थ बहुजणो मिलियो, ताहे बहुजणस्स पुरनो भणंति"केणति पावेण पलीवणं कतं, तुम्भोह चेव पलीवितं 'समणा दुभंतु' ति, 'प्राहं च सव्वं उवकरणं एत्थ दुडु', एवं ते खरंटिया ण किंचि उल्लति "प्र (तु) म्हेहिं पलीवित" ति । जत्य वि बाहिं गामस्स देउलं तत्थ वि एवं चेव, अधवा - देउलातो बाहिं णिग्गंतु ससद्द कज्जति ॥५४०६॥ जे भिक्खू सचित्तं उच्छु भुंजइ, भुंजतं वा सातिज्जइ ॥२०॥४॥ जे भिक्खू सचित्तं उच्छु विडसइ, विडसंतं वा सातिज्जइ ॥सू०॥५॥ जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं उच्छु भुंजइ, भुंजतं वा सातिज्जइ ।।सू०।।६।। जे भिक्खू सचित्तपइट्टियं उन्छु विडसइ, विडसंतं वा सातिज्जइ ।।सू०।।७।। "भुजति जं भुक्खत्तो, लीला पुण विडसण त्ति णायब्वा ।। जीवजुतं सच्चित्तं, मच्चित्तं सचेयण-पतिटुं ।" एतेसिं चेव चउण्हं सुत्ताणं इमो अतिदेसो सच्चित्तंबफलेहिं, पण्णरसे जो गमो समक्खातो । सो चेव गिरवसेसो, सोलसमे होति इक्खुम्मि ||५४१०॥ कंठा प्राणादिया दोसा चउलहुं पच्छित्तं । इमे उच्छुविभागसुत्ता - जे भिक्खू सचित्तं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा भुंजइ, भुजंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥८॥ जे भिक्खू सचित्तं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा विडसइ,विडसंतं वा सातिज्जति ॥०॥६॥ जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगंवा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगंवा उच्छुडालगंवा भुंजइ, भुजंतं वा सातिज्जति ॥०॥१०॥ जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं अतंरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगंवा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगंवा उच्छुडालगंवा विडसइ, विडसंतं वा सातिज्जइ ॥सू०॥११॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे पव्वसहितं तु खंडं, तव्वज्जिय अंतरुच्छ्रयं होड़ । डगलं चक्कलिछेदो, मोयं पुण छल्लिपरिहीणं ॥। ५४११ ।। पेरु उभयो पत्रदेससहितखंडं पव्वं, उभयो पेरुरहियं अंतरुच्छ्रयं, चक्कलिछेदछिण्णं डगलं भण्णति, मोयं श्रब्भंतरो गीरो ।। ५४११ ॥ सगलं पुण तस्स बाहिरा छल्ली । चोयं तु होति हीरो, काणं घुण मुक्कं वा, इतरजुतं तप्पइङ्कं तु ॥ ५४१२ || वंसहीरसहितो चोयं भण्णति, सगल बाहिरी छल्ली भण्णति, घुणकाणियं अंगार इयं वा वृत्तय, सियालदीहि वा खइयं, उवरि मुक्कं इयरं ति सचितं तम्मि सचित्तविभागे पतिट्टियं सचित्तपतिट्टितं भाति ।। ५४१२ जे भिक्खू आरणगाणं 'वण्णंधाणं अडविजत्ता संपइ ट्ठिताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेड़, परिगातं वा सातिज्जति ||०||१२|| जे भिक्खू आरणगाणं वण्णंधाणं ऋडविजत्ताओ पडिनियत्ताणं असणं वागणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गा हेड, पडिग्गातं वा साइज्जति ||सू०||१३|| अरणं गच्छतीति श्रारण्णगा, वर्ण धावंतीति वगंधा, आरण्यं वणार्थाय धावतीत्यर्थः । तेसि जत्तापट्ठियाणं जो असणादी गेण्हति जत्तापडिनियत्ताणं असणादिसंसं खउरादि वा जो गेहति तस्स प्रागादी दोसा, चउलहुं च पच्छितं । तणक हारगादी, आरण वर्णधगा उ विष्णेया । डविं पविसंताणं, णियत्तमाणाण तत्तो य || ५४१३|| [ सूत्र १२-१३ प्रादिसद्दाती पुप्फफलमूलकंदादीणं, तेसि वण्णंधाणं अडवि पविसंताणं जं संबलं पकतं तत्तो णियत्ताणं जं किचि अण्णादि । सेस कंठं ।। ५४१३ ।। तण-कट्ठ- पुप्फ-फल-मूल- कंद - पत्तादिहारगा चेव । पत्थयणं वच्चंता, करेंति पविसंति तस्सेसं ॥ ५४१४ ॥ तणादिहारमा डवि पविसंता अप्पणो पत्थयणं करेंति, सेसं उव्वरिय सिद्धं । डवी पविसंताणं, हवा तत्तो य पडिनियत्ताणं । जे भिक्खू सणादी, पडिच्छते आणमादीणि ।। ५४१५ || कंठा १ वर्णवयाण । २ संपट्टियाणं इति जिनविजय संपादित मूल पुस्तके । ३ गा० ५४१८ । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५४११-५४२० ] षोडश उद्देशक: इमे दोसा - पच्छाकम्ममतिते, णियट्टमाणे वि बंधवा तेसिं । अच्छिज्जा णु तदा सा, तद्दव्वे अण्णदव्वे य ॥५४१६॥ अडविपविसंतेणं जं संबलं कसं तं साधूण दातुं पच्छा प्रप्पणो अण्णं करेति । सण्णियट्टाण विण घेत्तव्वं, तेसि बंधवा तद्दव्वे अण्णदव्वे वा कतासा अच्छेजा । तद्दवं चेव जं घरातो गीतं, अण्णदव्वं जं अडविए कंदचण्णादि उप्पजति ।।५४१६।। पत्थयणं दाउं इमं करेति - कम्मं कीतं पामिच्चियं च अच्छेन्ज अगहण दिगिंछा । कंदादीण व घातं, करेंति पंचिंदियाणं च ॥५४१७।। अप्पणो "कम्म" ति अण्णं करेंति, अप्पो वा किणाति, "पामिच्न" ति उच्छिण्णं गेण्हति, प्रणेसि वा अच्छि दति, ग्रह ण गेहति पत्थपणं तो दिगिचति, छुहाए जं प्रणागाढादि परिताविज्जति, अहवा - भुक्खितो कंदादि गेण्हति, प्रत्य परिताणंतण्णिप्फण्णं ।। अधवा - भुक्खित्तो जं लावगतित्तिरादि घातिस्सति, परितावणादिणिप्फण्णं तिसु चरिमं ॥५४१७।। अरण्णातो णिग्गच्छमाणो जो गेण्हति तस्स इमे दोसा - चुण्णखउरादि दाऊं, कप्पटग देह कोव जह गोवो। चड्डण अण्ण व वए, खउरादि वऽसंखडे भोयी ॥५४१८॥ चुणो बदरादियाण, खोरखदिरमादियाण खउरो, भत्तसेस वा साधूण दाउं कप्पट्टिएहि पुत्तणत्तुभत्तिजगादिराहि मणहि य तदासाए अच्छमाणेहि जानिज्जमाणा-“देह णे कंदे मूले चुण्णख उरभत्तसेसं वा", ते भणंति"दिण्णा अम्हेहि साधूगं". एव भगते ते पहाणा कणं करेंताणि ताणि दळूणं पदोसं गच्छेज्ज, जड़ा गोवो पिंडणिज्जु तीए । एतेगु वा चडु नेम अटवीम अण्णं वा प्राणेति खउरादि "भोइ" ति भारिया ती सह असंखड भवनि, अंतगयामा य । जम्हा एवमादि दोमा तम्हा वणं पविसंताणं णिताण वा ण घेतव्वं ।।५४५८।। भवे कारणं - ___अमिव ओमोयरिए, गय8 भए व गेलण्णे। ग्राण गेहए वा, जयणागहणं तु गीयत्थे ॥५४१६॥ अयण नि गणगपरिहाणीप जाते. न उलहुं पत्तो ताहे सावसेसं गेहति ॥५४१६॥ . जे भिक्ग्यू वमुराइयं अवमुराइयं वयइ, वयंतं वा साहिज्जति ।।सू०।१३।। वमूणि ग्यणाणि, नेमु रातो वगुगती, अधवा – राती दीप्तिमाभ्राजते वा शोभत इत्यर्थः, तं विवरीयं जो भणनि नस्म च उन्लहुँ । इमा णि नुत्ती - वसुमं नि व वमिमं ति च, वसति व बुमिम व पज्जया चरणे । नेमु रनो चुमिरानी, अबुमिम्मि रतो अवुमिराती ।।५४२०॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे सूत्र-१३ वसु ति रयणा, ते दुविधा-दव्वे भावे य । दवे मणिरयणादिया, मावे जाणादिया । इह भाववसूहि अधिकारो । ताणि जरस प्रत्थि सो वसुमं ति भण्णति । अधवा - इंदियाणि जस्स वमे वटुंति सो वसिमं भण्णति । अधवा - गाणदसणचरित्तेसु जो वराति गिच्चकालं सो वस (बुसिम) ति रातिणिप्रो भणति । अहवा - व्युत्सृजति पापं अन्यपदार्थाख्यानं, चारित्रं वा वुसिमं ति बुच्चति । वसति वा चारित्ते वसुराती भण्णति । ग्रहवा - "पज्जया चरणे" ति एते चारितठियस्स पजता एगट्ठिता इत्यर्थः । एस बुसिरादी भण्णति, पडिपवखे अवुसिराती ।।५४२०॥ अहवा - ____ वुसि संविग्गो भणितो, अत्रुसि असंविग ते तु वोच्चत्थं । जे भिक्खु वएज्जा ही, सो पावति आणमादीणि ॥५४२१।। कंठा । वोच्चत्थं ति वुसिरातियं अवुसिरातित भणति हा॥५४२१॥ एत्थ पढमं वुसिरातियं प्रवुसिरातियं भण्णति इमेहि कारणेहिं - रोसेण पडिणिवेसेण वा वि अकयन्नु मिच्छभावणं । संतगुणे छाएत्ता, भासंति अगुण असंते उ ॥५४२२॥ कोइ कस्सति कारणे अकारणे वा रुट्ठो, पडिनिवेसणं एसो पूतिज्जइ प्रहं ण पूइज्जामि, एवमादिविभासा । अकयष्णुयाए एतेण तस्म उवयारो करो ताहे मा एयस्स पडिउवयारो कायव्वो होहिइ त्ति, मिच्छाभावेणं मिच्छतेणं उद्दिष्णोणं । सेसं कंठं ।।५४२२॥ असंविग्गा संविग्गजणं इमेण आलंबणेण हीलंति - धीरपुरिसपरिहाणी, नाऊणं मंदधम्मिया केई हीलंति विहरमाणं, संविग्गजणं अबुद्धीतो ॥५४२३॥ के पुण धीरपुरिसा ?, इमे - केवल-मणोहि-चोदस-दस-णवपुबीहि विरहिए एण्हिं । सुद्धमसुद्धचरणं, को जाणति कस्स भावं च ॥५४२४॥ एते संपई णत्थि, जति संपइ एते होतो तो जाणंता असीदंताणं चरणं सुदं इयरेसिं प्रसुद्ध, केवलिमादिणो णा पडिचोयंता पच्छित्तं च जहारुहं देता चितंति अभंतरगो वि एरिसो चेव भावो, ण य एगतेण बाहिरकरणजुत्तो प्रभ्यंतरकरणयुक्तो भवति । कहं ? उच्यते-जेण विवजतो दीसति, जहा उदायिमारयस्स पसण्णचंदस्स य । बाहिर पत्रिसुद्धो वि भरहो विसुद्धो चेव ॥५४२४॥ बाहिरकरणेण समं, अभिंतरयं करेंसि अमुणेता । गंता तं च भवे, विवज्जो दिस्सते जेणं ॥५४२॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५४२१-५४३१] षोडश उद्देशकः जति वा णिरतीचारा, हवेज्ज तव्वज्जिया य सुज्झज्जा। ण य होंति णिरतिचारा, संघयणधितीण दोब्बल्ला ॥५४२६॥ संपयकालं जति णिरतिचारा हवेज, अहवा - तवजिया णाम प्रोहिणाणादीहिं यजिते जइ चरित्तसुद्धी हवेज तो जुत्तं वत्तुं - इमे विसुद्धचरणा, इमे अविसुद्धचरणा । संघयणधितीण दुब्बलत्तणतो 'य - पच्छित्तं करेंति ॥५४२६॥ संघयण-धितिदुब्बलत्तणतो चेव इमं च प्रोसण्णा भणंति - को वा तहा समत्थो, जह तेहि कयं तु धीरपुरिसेहिं । जहसत्ती पुण कीरति, जिहा] पइण्णा हवइ एवं ॥५४२७॥ धीरपुरिसा तित्थकरादी जहात्तिए कीरति एवं भण्णमाणे दढा पइण्णा भवति, अनलियं च ___ भवति जो एवं भगति । जो पुण अण्णहा वदति अण्णहा य करेति, तस्स सच्चपइण्णा ण भवति ॥५४२७॥ आयरियो भणति - सव्वेसि एगचरणं, सरणं मोयावगं दुहसयाणं । मा रागदोसवसगा, अप्पणो सरणं पलीवेह ॥५४२८॥ ___ सञ्चेसि भवसिद्धियाणं चरणं च सरीरमाणसाणं दुक्खाण विमोक्खणकर, तं तुन्भे सयं सीयमाणा अप्पणो चरित्तेण रागाणगता उज्जयचरगाणं चरणदोसमावणा मा भणह - "चरणं णत्थि, मा जत्थेव वसह तं चेव सरणं पलीवेह 'णासहेत्यर्थः" ॥५४२८॥ कि च संतगुणणासणा खलु, परपरिवाओ य होति अलियं च । धम्मे य अबहुमाणो, साहुपदोसे य संसारो ॥५४२६॥ चरणं णत्थि त्ति एवं भयंतेहिं साधूहि संतनुणणासो कतो भवति, पवयणस्स परिभवो कतों भवति, अलियवयणं च भवति, चरणधम्मे पलोविज्जते दरणधम्मे य प्रबहुमाणो कतो भवति, साघूण य पदोसो कतो भवति, साधुपदोसे य णियमा संसारो वुड्डितो भवति ।।५४२६॥ कि च खय उवसम मीसं पि य, जिणकाले वि तिविहं भवे चरणं । मिस्सातो च्चिय पावति, खयउवसमं च णण्णत्तो ॥५४३०।। तित्थकरकाले वि तिविहं चारित्तं - खतियं उवसमियं खग्रोवसमियं न । तम्मि वि तित्थकरकाले मिस्सातो चेव चरित्तातो खतियं उवसमियं वा चरित्तं पावति, नान्यस्मात् । बहुतरा य चरित्तविसेसा खम्रोवसमभावे भवंति ॥५४३०।। कि च तीर्थकाले वि ... अइयारो वि हु चरणे, ठितस्स मिस्से ण दोसु इतरेगु । वत्थातुरदिट्ठता, पच्छिरेणं स तु विसुज्झो ॥५४३१॥ १ण य । (ताड़) । २ दढा, इति चूर्णी : ३ साधूण, इत्यपि पाठः । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे . [सूत्र-१३ "इयरेसु" ति खतिए उपसमिए य । जहा वत्यं खारादीहिं सुज्झति, मातुरस्स वा रोगो विरेयणप्रोसहपमोगेहिं सोहिज्जति, तथा साधुस्स मिस्सचरणादिमइयारो पच्छितेणं सुज्झति ॥५४३१॥ जं च भणियं - "अतिसयरहिएहि सुद्धासुद्धचरणं ण णज्जति भावो"। तत्य भण्णति - दुविहं चेव पमाणं, पच्चक्खं चेव तह परोक्खं च । श्रोधाति तिहा पढम, अणुमाणोवम्मसुत्तितरं ॥५४३२॥ मोहि मणपन्जव केवलं च एवं तिविध पच्चक्खं । धूमादग्निज्ञानमनुमानं । यथा गौस्तथा गवय भौपम्यं । सुत्तमिति भागमः । इयरंति एवं तिविधं परोक्खं ।।५४३२॥ सुद्धमसुद्धचरणं, जहा उ जाणंति ओहिणाणादी। आगारेहि मणं पि व, जाणंति तहेतरा भावं ॥५४३३॥ पुव्वद्धं कंठं। जहा परस्स भमुहणेत्ति (भमुहाणण) बाहिरागारेहिं अंतरगतो मणो णज्जति तहा "इयर" त्ति परोक्खणाणी घालोयणाविहाणं सोउं पुन्वावरबाहियाहिं गिराहिं प्राचरणेहिं य जाणति चरित्तं __ सुद्धासुदं भावं च सुदेतरं ॥५४३३॥ चोदगाह - "जइ प्रागारेण भावो णज्जति तो उदातिमारदिणं किं ण णातो?" आचार्याह कामं जिणपञ्चक्खो, गूढाचाराण दुम्मणो भावो । तहऽवि य परोक्खसुद्धी, जुत्तस्स व पण्णवीसाए ॥५४३४॥ काममिति अनुमितार्थे । जइ वि जे उदायिमारणादि गूढाणरा तेसि खउमत्येणं दुवखं उवलभति भावो, सो जिणाणं पुण पच्वक्खो, तहावि परोक्खणाणी भागमाणुसारेण चरित्तसुदि करेंति चेव । कहं ?, उच्यते - "जुत्तस्स व" ति जहा सुतोवउत्तो "मीसजायज्झोयरो एगो" ति पण्णरस उग्गमदोसा, दस एसणादोसा, एते पण्णुवीसं जहासुयाणुसारेण सोहंतो चरणं सोहेति, तहा सुत्ताणसारेण पच्छितं देतो करेंतो य परित्तं सोधेति ॥५४३४॥ अणुज्जतचरणो इमेहिं कज्जेहिं होज होज्ज हु वसणप्पत्तो, सीरदोब्बल्लताए असमत्थो । चरण-करणे असुद्ध, सुद्धं मागं परवेज्जा ॥५४३५।। वसणं प्रावती मज्जगीतादित वा, 'तम्मि ण उज्जमति, अहवा- सरीरदुम्बलतणतो असमत्यो सज्झायपडिलेहणादिकिरियं काउं अकप्पियादिपडिसेहणं च । अधवा -- सरीरदोब्बला असमत्था प्रदढधम्मा एवमादिकारणेहि चरणकरणं से प्रविसुद्धं, तहावि अप्पाणं गरिहंतो सुदं साहुमग्गं पस्वेतो पाराधगो भवति ॥५४३५॥ १ तेण, इत्यपि पाठः । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ५४३२-५४१ षोडश उद्देशक: ७१ इमो चेव अत्थो भण्णति - श्रोसण्णो वि विहारे, कम्मं सिढिलेति सुलभवोही य । चरणकरणं विसुद्ध', उववृहेंतो परूवेतो ॥५४३६॥ कठ्या । जो पुण प्रोसणो होउं प्रोसण्णमग्गं उववूहइ, सुद्धं चरणकरणमग्गं गृहति इमेहिं कारणेहिं । इमं च से दुलभबोहिअतं फलं परियायपूयहेतुं, ओसण्णाणं च आणुवत्तीए । चरणकरणं णिगृहति, तं दुल्लभबोहियं जाणे ॥५४३७॥ कंध्या। अहवा गुणसयसहस्सकलियं, गुणुत्तरतरं च अभिलसंताणं । चरणकरणाभिलासी, गुणुत्तरतरं तु सो लहति ।।५४३८।। गुणाणं सतं गुणसत, गुणसयाणं महस्सा गुणमयसहस्सा, छंदोभंगभया सकारस्स हुस्सता कता, ते य प्रहारससोलंगसहस्सा, तेहि कलियं जुत्तं संखियं वा । कि त ?, चारित्तं जो तं पसंसति । किं च गुणश्चासौ उत्तरं च गुणोत्तर, अधबा-अन्येऽ.प गुगाः सन्ति क्षमादयस्तेषां उत्तरं त च गुणोत्तरं स रागचारित्त, गुणुत्तरतरं पुण अहवखायं चारितं भति, तं च जे अभिलसंति, ते उज्जयचरणा इत्यथः । ते य उववूहते जो प्रोसण्णो ग्रपणा य उज्जयचरणो होहति चरणकरणाभिलाषी भण्यति स एवंवादी गुणत्तरतर लभति ग्रहक्खायचारित्रमित्यर्थः । अहवा- गुणुत्तरं भवत्थकेवलिसुह, गुणुत्तरतरं पुण मोक्खमुह भणति, तं.लभति ॥५४३८॥ जो पुणोसण्णो जिणवयणभासितेणं, गुणुत्तरतरं तु सो वियाणित्ता । चरणकरणाभिघाती, गुणुत्तरतरं तु सो हणति ।।५४३६।। गुणत्तरतरं चारित्र साधू वा अप्पणा य चरणकरणोवधाते वट्टति । अहवा- चरणकरणस्स जत्ताण वा निदापरोवघायं करेइ, स एवंवादी गुणुत्तरं वा चारित्रं मोक्खसहं वा हणति ण लब्भइ त्ति, जेण सो दोहसंसारितणं णिवत्तेति ।।५४३९।। जो प्रोसण्णं प्रोसण्णमगं वा उवहति - सो होती पडिणीतो, पंचण्हं अप्पणो अहितियो य । सुहसीलवियत्ताणं, नाणे चरणे य मोक्खे य ॥५४४०॥ पंच पासत्यादि सुहमीला विहारलिंगा प्रोधावि उकामा प्रवियता प्रगीयत्था णाणचरणमो खस्स य एतेसि सत्वेसि पडिणीतो भवति ।।५४४०।। इमेहिं पुण कारणेहिं पोसण्णं प्रोसण्णमग्गं वा उवहेजा बितियपदमणप्पज्झे, वएज्ज अविकोविए वि अप्पज्झे । जाणते वा वि पुणो, भयसा तव्वाति गच्छट्ठा ॥५४४१॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रं [ सूत्र १४-१५ "तपश्विनं राया सोसणाणुवत्तियो भया भणेज्जा । तव्वादित्ति कश्चिद वादी ब्रूयात् तपश्विनं ब्रवतः पापं भवतीति नः प्रतिज्ञा", तत्प्रतिघात करणे वुसिरातियं प्रवुसिरातियं भणेज्ज, दुब्भिक्खादिसु वा श्रोसण्णभाविएसु खेत्तेसु प्रच्छंतो श्रोमण्णाणुवत्तियो गच्छपरिपालनद्वा भज्ज ।। ५५४१ ।। जे भिक्खू सिराइयं त्रुसिराइयं वग्रह, वयंतं वा सातिज्जति | | ० || १४॥ एमेव वितियमुत्ते, अमीरातिं वज्ज वुसिरातिं । कह पुण वज्ञ सोऊण असिरातिं तु वुसिराति ||५४४२ || कंठा एगचरिं मन्नंता, सगं च तेसु य पदेसु वट्टंता । सगदोसछायणड्डा, केइ पसंसंति णिद्धम्मे || ५४४३ ॥ कोइ पासत्यादीणं एगवारियं भणति "एस सुंदरी, एयस्स एग गिणो ण केण सह रागदोसा उप्पज्जति", सो वि श्रप्पणा गच्छपंजरभग्गो तम्मि चेव ठाणे वट्टति, सो य प्रप्पणिज्जदोसे छाएउकामी तं पासन्यादि एगचारि गिद्धम्मं पससति ।। १४४३ ॥ इमं च भणति - ७२ दुक्करयं खुजत्तं, जहुत्वादट्ठियावि सीदति । एम निति हु मग्गो, जहसत्तीए चरणमुद्री || ५४४४ || एवं भणते इमे दोसा भक्खाणं णिस्संकया य अस्संजमंमि य थिरत्तं । अप्पा सो अवि चत्तो, श्रवण्णवातोय तित्थस्स || ५४४५ ॥ भसंतभावुभावणं श्रन्भवखाणं, अवुसिरातियं वुमिरातियं भगति, मोय मीतंनो पसंसिज्मार्ग सिंको भवति, मंदधम्माण वि श्रसंजमे थिरीकरण करेति, अणां च उम्मापणाने अप्पणी य उम्मापट्टितां चत्तो, तित्यस्स य अन्यपदार्थेन अवर्णवादः कृतो भवति 112.८४५॥ किं च जो जत्थ होइ भग्गो, वामं सो परस्स विदंतो । गंतुं तत्थऽचतो, इमं पहाणं ति वोमेति ।। ५४४६॥ श्रद्धाण गदिते ओसो उवसंघारेयव्त्रो, मेमं कंठ ।। ५४४६ ।। कि च पुव्वगयकालिय सुए, संतासंतेहिं केइ खोभति । ओसण्णचरणकरणा, इमं पहाणं ति घोति ॥ ५४४७|| पुव्वगय कालिय मुनिबंधपच्चयतो सीदति, तत्थ कालियसुने इमेरिसो ग्रालावगो " बहुमोहो वि य ण पुव्वं विहरेत्ता पच्छा संबुडे काल करेज्जा, कि ग्राराहुए विराहए ? गोयमा ! आराहए, णो विराहए" । ( . Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उद्देशकः भाष्यगाथा ५४४३-५४५३ ] एवं पुब्बगए विजे के वि मालावगा ते उच्चरिता । परं लोभंति, प्रप्पणा खोभंति - सोदंतीत्यर्थः । ते य श्रोसण्णचरणकरणा "इमं" ति प्रप्पणो चरियं पहाणं घोर्सेति ॥ ५४४७ ।। इमेसि पुरतो. बहुस्सु श्रगीयत्थे, तरुणे मंदधम्मिए । परियारपूयहेऊ, सम्मोहेउ निरुभंति || ५४४८|| जे प्रायारगप्पो ण भातितो एस प्रबहुस्सुतो, जेण भावस्सगादियाणं प्रत्यो ण सुतो सो प्रगीयत्यो, सोलसवरिसाण प्राढवेत्तु जाव न चत्तालीसवरिसो एस तरुणो, प्रसंविग्गो मंदघम्मो, एते पुरिसे विपरिणामेति, अपणो परिवारहेड, एतेहि य परिवारितो लोयस्स पूर्याणिज्जो होहं, कालियदिट्टिवाए भणितेहि, ग्रहवा - प्रभणिह वा सम्मोहेउं प्रप्पणी पासे निरु भति धरतीत्यर्थः । अधवा जो एवं पण्णवेति सो चेव बहुश्रो प्रगोयस्थो वा तरुणी मंदधम्मो वा । सेसं कंठं ।। १४४८ ॥ जत्तो चुतो विहारा, तं चेव पसंसए सुलभ वोही । सण विहारं पुण, पसंसए दीहसंसारी || ५४४६ ॥ जतो चुतो विहारा, संविग्गविहारातो चुत्रो तं पसंसति जो सो सुलभबोधी । जो पुण प्रोसाविहारं पसंसति सो दोहसंसारी भवति ।। ५४४६ ।। बितियपदमणप्पज्झे, वएज्ज अविकोविए व अप्प | जाणते वा वि पुणो, भयसा तव्वादिगच्छट्टा ॥। ५४५० ॥ पूर्ववत् जे भिक्खु सिरातियगणातो अनुसिराइयं गणं संक्रमइ, संकमंतं वा साइज ॥ १५ ॥ सिरातियागणातो, जे भिक्खु संकमे सिरातिं । सिरातिया बुसिं बा, सो पावति यणमादीणि ॥ ५४५१ ॥ ७३ सिरातियातो वुसिराइयं चउभंगो कार्यव्त्रो । चत्यभंगो प्रवत्थु । ततियभंगे श्रगुणा पति कमो पडिसिद्धो । पढमे संकमतस्स मासलहुं । बिलिए चउलहुँ । चोदगाह - "जुत्तं वितिए पडिसेहो, पढमभंगे कि पडिते हो" ? आचार्याह - तत्थ णिक्कारणे पडिसेहो, कारणे पुणो पढमभंगे नवसंपदं करेति ।। ५४५१ ।। सा य उवसंपया कालं पडुच्च तिविहा इमा छम्मासे उवसंपद, जहण्ण बारससमा उ मज्झिमिया | आवका उक्कोसे, पडिच्छसीसे तु जाजीवं ॥ ५४५२ !! - उवसंपदा तिविहा- जहण्णा मज्झिमा उक्कोसा । जहण्णा छम्मासे, मज्झिमा बारमवरिसे, उक्कोसा जावज्जीवं । एवं पडिच्छगस्स सीसस्स एगविहो चैव जावज्जीवं प्रायरिम्रो ण मोतव्यो ।।५४५२ ।। छम्मासे भरेंतो, गुरुमा बारससमा चउलडुमा । तेण परं मास्त्रियं तू, मणित्तं पुण भारतो कज्जे ४५४५३ ।। जेण परिच्छगेणं छम्मानिया उवसंपया कया सो जति छम्मासे प्रपूरिता जाति तस्स चउगुरुगा । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे 1. सूत्र - १२ जेण बारसवरिसा कया ते अपूरिता जाइ चउलहुँ । जेण जावज्जीवं उवसंपदा कता सो जाइ तस्स मासलहुं । छण्हं मासाणं परेण शिक्कारणे गच्छस्स मासलहं । जेण बारससमा उत्रसंपदा कया तस्म वि छम्मासे अपूरेंतस्स चउगुरुगा चेव । बारससमातो पण शिक्कारणे मासलहुँ । जेण जावज्जीवोवसंपया कया तस्स छम्मासे अपूरेतस्स चउगुरुगा चंव, तस्सेव बारससमाम्रो चउलहुगा ।। ५४५३ ।। एस सोही गच्छतो णितस्स भणितो । गच्छे पुण वसंतस्स इमे गुणा ७४ " भीतावास रतीधम्मे, श्रणायतणवज्जणं । णिग्गहो य कसायाणं, एयं धीराण सासणं || ५४५४ || "भीतावासो" त्ति प्रस्य व्याख्या - - आयरियादीण भया, पच्छित्तभया ण सेवति कज्जं । वेयावच्चऽज्झणे सज्जते तदुवयोगेणं || ५४५५।। कंठा पुव्वद्ध कंठं । रतीधम्मे अस्य व्याख्या "वेयावच्च” पच्छद्धं । प्रायरियादीणं वेयावच्च करेति । श्रज्झयणं ति सज्झायं करेति । तदुवप्रोगो सुत्तत्थोवोगो, तेण सुत्तत्थोवप्रोगेण वेयावच्चज्भपणे रज्जति रति करेइतिवृत्तं भवइ । ग्रहवा - तदुवप्रोगो अप्पणी प्रायरियादीहिं य भण्गमाणो वेयावच्चज्झयणादिसु रज्जति ।। ५४५५। "3 प्रणायतणवज्जण " त्ति प्रस्य व्याख्या एगो इत्थीगम्मो, तेणादिभया य अल्लियपगारे । कोहादी व उदिष्णे, परिणिव्वावेति से अण्णे || ५४५६ || कंठा "" कसायणिग्गहो" ग्रस्य व्याख्या - कोहादी पच्छद्धं । गच्छवासे वसंतस्स अष्णेय आयरियादी परिवावेंति सकसाए । गच्छवासे वसंतेण एयं वीरसासणे धीर-सासणे वा जं भणियं तं प्राराहियं भवति ।। ५४५६ ।। इमे कायव्वो ।।५४५७।। प्रणे गच्छवासे वसंतस्स गुणा - णाणस्स होइ भागी, थिरयरतो दंसणे चरिते य । धण्णा आवकहाए, गुरुकुलवासं न मुंचति || ५४५७|| जम्हा गच्छवासे वसंतस्स एवमादी गुणा तम्हा शिक्कारणे संविग्गेण संविग्गेसु वि संकमण कारणे करेज्ज ते य इमे कारणा पुण णाण्ड दंसणडा, चरितट्ठा एवमाइसंक्रमणं । संभोगा व पुणो, आयरियट्ठा व गातव्वं । । ५४५८ ।। ५ गा० ५४२४ । २ गा० ५४५४ | ३ गा० ५४५४ । ४ अल्लियागारे, इत्यपि पाटः । ५ गा० ५४५४ । - Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५४५४ षोडश उद्देशक: णाणट्ठ त्ति अस्य व्याख्या - सुत्तस्स व अत्थस्स व, उभयस्स व कारणा तु संकमणं । वीसज्जियस्स गमणं, भीश्रो य णियत्तई कोई ॥५५५६।। पुव्वद्धं कंठं । तेण अप्पणो प्रायरियाणं जं सुत्तं प्रत्थि तं गहियं, अत्थि य से सत्ती प्रणं पि घेत्तं, ताहे जत्थ अस्थि अधिगसुत्तं संविग्गेसु तत्थ संकमइ विस जितो प्रायरिएणं, अविसज्जिएण ण गंतव्वं । प्रह गच्छति तो च उलहुगा। विसज्जितो य इमे पदे मायरेज्जा जइ तेसिं प्रायरियाणं कक्खडचरियं सो कोति भीग्रो णियत्तेज तो पणगं ॥५४५६।। चिंतेंतो वइगादी, गामे वा संखडी अपडिसेहो । सीसपडिच्छग परिसा, पिसुगादायरियपेसवित्रो ॥५४६०॥ पणगं च भिण्णमासो, मासो लहुगो य सेसए इमं तु । संखडि सेह गुरुगा, पेसविनोमि त्ति मासगुरु ॥५४६१॥ पडिसेहगस्स लहुगा, परिसिल्ले छ त्तु चरिमओ सुद्धो । तेसि पि होंति लहुगा, जं वाऽऽभव्वं तु ण लभंति ॥५४६२॥ एतेसिं तिह वि गाहाणं अत्थो सह पच्छितेण भणति - चितेति-कि वच्चामि ण वच्चामि तत्थ अण्णत्थ वा चितेति भिण्णमासो (पणगं)। वच्चंतो वा वइयादिसु 'पडिवज्जति, दधिखीरट्ठा उन्नत्तति वा मासलहुं । प्रादिसद्दातो सण्णीसु वा दाणराड्ढेसु भद्देसु वा दीहं वा गोयरं करेज्ज, अपत्तं वा देसकालं पडिच्छेज्ज, खद्धादाणियगामे वा पडिवज्जति सव्वेसेतेसु पत्तेयं मासलहुं । संखडीए वा पडिवज्जति चउगुरुगा, पडिसेवगरस वा पासे अंतरा चिद्वेज्ज तत्थ य तेसि पविसंताणं चउलहुगा, सेहेण सह चउगुरुगा, गहिरोवकरण उवधिणिप्फणं । पडिसेहगस्स पडिसेहत्तणं करेंतस्स चउलहुं, सेहट्ठा करेंतस्स चउगुरुगा। "सीसपडिच्छा" ति सो पडिसेहगो सीसपडिच्छए वावारेति तम्मि अागते णिउणं २सुतं पुच्छेज्ज, परिसिल्लस्स वा पासे अंतरा पविसेज्जा तेसिं तत्थ चउलहुगा, सह सेहेण चउगुरुगा, उवकरणे उबहिगिफण्णं । परिसिल्लत्तणं करेंतस्स अप्पणो छल्लहुगा । पिसुया मंकुशाण वा भया णियत्तति, अण्णतो वा गच्छति मासलहुँ । अहवा - तत्थ संपत्तो भगाइ “प्रायरिएणाहं तुज्झ समीवं अमुगसुत्तत्थणिमित्तं पेसविरो', एवं भणंतस्स चउगुरुं । “चरिमो" ति जो भणति - "अहं आयरियविसज्जितो तुज्झ समीवमागतो" सो सुद्धो। "तेसि पि होति लहुगो" त्ति अण्णं अभिघारेउं भण्णं वदंतस्स च उलहुं, पडिच्छंतस्स वि चउलहुं, जं च सचित्ताचित्तं कि चि तं तेण लमंति, जत्थ पट्ठवितो जो पुषधारिउं तस्स तं प्राभव्वं ।।५४६२॥ एयं चेव अत्थं सिद्धसेणखमासमणो वक्खाणेति । १ बज्झति इत्यपि पाठः । २ सुतत्यं करेज्ज । ३ पुव्वमभिधारियो । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ समाष्य वृफिके निशीथसूत्रे "भीश्रोणियत्तइ" त्ति प्रस्य व्याख्या संप्ताहगस्स सोतुं, पडिपंथियमाइयस्स वा भयो । आचरणा तत्थ खरा, सयं च नाउं पडिनियत्तो ॥ ५४६३॥ संसाहग अणुवच्चगो । सेसं कंठ्य । "चितेंतो" त्ति अस्य व्याख्या - - पुव्वं चिंतेयव्वं, णिग्गतो चिंतेति किं णु हु करेमि | वच्चामि णियत्तामि व, तहिं व अण्णत्थ वा गच्छे || ५४६४ ॥ जाव णणिग्गच्छति प्रायरियं वा ण पुच्छति ताव सुचितियं कायव्वं, सेसं कंठं ॥५४६४॥ " वइयगामसंखडिमादिसु" इमा व्याख्या उव्वत्तणमप्पत्ते, लहुगो खद्धे भुत्तम्मि होंति चउलहुगा | निसट्ट सुवण्ण लहुगो, संखडि गुरुगा य जं चऽण्णं ॥ ५४६५ ॥ ― पंथात वइयमादिश्रो उव्वत्तति । श्रप्पत्तं वा वेलं पडिक्खति । "जं चऽण्णं" ति संखडीए हत्थेण हत्थे संघट्टियपुः वे पाएणं वा पाए अक्कतपुब्वे, सीसेण वा सीसे प्राउडियपुल्वे संजमविराहणा वा भायणभंगो वा भवति । स गतार्थं कंठ्यं ॥ ५४६५ ।। इदाणि "पडिसेह सीसपडिच्छग" अस्य व्याख्या - 1 मुत्थमु वच्चति, मेहावी तस्स कड्डूणट्टाए । अण्णग्गामे पंथे, उवस्सए वा वि वावारे || ५४६६॥ अभिलावसुद्धपुच्छा, रोलेणं मा हु ते विणासेज्जा । इति कडू ते लहुगा, जति सेहट्ठाए तो गुरुगा || ५४६७॥ अक्खर - वंजणमुद्धं, मं पुच्छह तम्मि गए संते । घोसेहि य परिसुद्धं, पुच्छह णिउणे य सुत्तस्थे ॥ ५४६८॥ [ मूग- १५ को ति प्रायरियो विसुद्धसुत्तत्थो फुडवियडवंजणाभिलावी भपडिसेधितो वि पडिसेहगो चेव भावतो लब्भति, तेण च सुयं जहा अमुगत्थ श्रमुगो साहू मेघावी, श्रमुगसुत्तणिमित्तं गच्छति, तेजवि चितियं मा मं अतिक्कमेउ, तस्स कङ्कणट्ठाए "उड्डावणकं करेति, उवरिएण श्रष्णगामेण गच्छंतस्स पंथे वा अप्पणी वा उस्सए सीसे पन्छिए य वावारेति, जष्णिमित्तं सो वञ्चति तम्मि प्रागते "तं तुम्भे परियट्टेह, हिलाव - शुद्ध प्रत्यं च गुणेज्जह, प्रत्थं च से पुच्छिज्जह, ते एवं णिक्काएति, पुणो पुणो मा रोलेणं त्रिणासेबह त्ति, अष्णं पि सुयं प्रक्खरवं जणघोससुद्ध पढेज्जह, तम्मि आगते अष्णं पि णिउणे सुसत्ये पुच्छेज्जह" एवं कड्डिए चउलहुं, सेहट्ठा कड्डिए चउगुरु ॥५४६८ ॥ पविसंतस्स वि एवं चेव । १ गा० ५४५६ । २ गा० ५४६० । ३ गा० ५४६० । ४ गा० ५४६० । ५ प्राकर्षणं । - Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५४६३-५४७५ ] षोडश उद्देशक: इदाणि 'परिसिल्लस्स व्याख्या - पाउतमपाउता घट्ट मह लोय खुर विविहवेसधरा । परिसिल्लस्स तु परिसा, थलिए व ण किंचि वारेति ॥५४६६॥ तत्थ पवेसे लहुगा, सच्चित्ते चउगुरुं च नायव्वं । उवहिणिप्फणं पि य, अचित्त देंते य गिण्हते ॥५४७०॥ परिसिल्लो सस्स संविग्गासंविग्गस्स परिसणिमित्तं संगहं करेति । घट्टा फेशादिणा जंघानो, तेल्लेण केसे सरीरं वा मटुंति, थलि ति देवद्रोणी । सेसं कंठं ॥५४७०॥ इदाणि "२पिसुत गुरुहि पेसितो मि" त्ति एतेसिं व्याख्या - हिंकुण-पिसुगादि तहिं, सोउं नातुं व सन्नियत्तंते । मुग सुतत्थनिमित्ते, तुझंति गुरूहि पेसवितो ॥५४७१: कंठया चोदगाह - "गुरूहि पेसियो मि त्ति भणंतस्स को दोसो" ? प्राचार्याह - आणाए जिणवराणं, न हु बलियतरा उ आयरियाणा । जिणाणाए परिभवो, एवं गन्यो अविणश्रो य ॥५४७२॥ जिणिदेहि चेव भणियं णिद्दोसो विधिमागतो पडिच्छियो ति, णो पायरियाणुवत्तीए पडिच्छियव्यो, जिणाणा य परामविता भवति, पेसंतस्स उवसंगजंतस्स पडिच्छितस्स वि तिहि वि गवो भवति, तित्थकरा सुयस्स य प्रविणतो कमो भवति ।।५४७२।। जो जं अभिधारेउं पट्टितो तत्थ जो अच्चासंगेण गतो सो सुद्धो - अण्णं अभिधातुं, पडिसेह परिसिल्ल अण्णं वा । पविसेते कुलातिगुरू, पच्चित्तादि च से हातुं ॥५४७३।। जो पुण मण्णं अभिधारेउं अपडिसेहगस्स पडिसेहगस्स परिसिल्लस्स अण्णस्स वा पासे पविसति पच्छा कुलगणसंघथेरेहि णातो तो जं देण सचित्ताचितादि उवणीयं तं से हरंति ॥५४७३॥ ते दोवालभित्ता, अभिधारिजंति देति तं थेरा। घट्टण वियारणं ति य, पुच्छा विप्फालणेगट्ठा ॥५४७४॥ कोस तुमं प्रणं अभिधारेत्ता एत्थ ठितो जेण य पडिच्छितो ? सो वि भण्णति - “किं ते एस पडिच्छितो ?" तं सचितादिगं थेरा जो पुन्वअभिधारितो तस्स विसज्जति । सेसं कंठं ।।५४७४।। घट्टेड सञ्चित्तं, एसा आरोवणा य अविहीए। बितियपदमसंविग्गे, जयणा ए कयम्मि तो सुद्धो ||५४७॥ गा० ५ ६२ २ गा०५४६०।३ कीस, इत्यपि पाठः । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१५ "घट्टण" ति पुच्छा, जइ निक्कारणे तत्थ ठितो तो सचित्तादी हरेज्ज, पच्छित्तं च से प्रविधिपदे दिज्जति, णिक्कारणे ति वुत्तं भवति । पडिसेहगस्स अवाप्रो भण्णति - "बितियपद" पच्छद्धं । जं सो अभिधारेति सो प्रसंविग्गे ताहे जयणाए पडिसेहं करेंति । का जयणा ?, पढमं सव्वेहि भगावेति, मा तत्थ वच्चाहि, पच्छा प्रपणो वि भणावेज्ज, पुव्वुत्तेण वा सीसपडिच्छगवावारणपयोगेण धरेज्जा, ण दोसो। एवं करेंतो कारणे पुज्झति, णवरं - जं तत्थ सचित्ताचित्तं सव्वं पुवाभिधारियस्स पयट्टेयव्वं ।।५४७५॥ इदमेवत्थं भण्णति - अभिधारेंते पासत्थमादिणो तं च जइ सुतं अस्थि । जे अ पडिसेहदोसा, ते कुब्वंता हि णिदोसो ॥५४७६॥ जं सो सुतं अभिलसति, जइ सुतं अत्थि तो पडिसेहत्तणं करेंतस्स वि जे दोसा भणिया ते ण भवंत्ति ॥५४७६।। जं पुण सञ्चित्तादी, तं तेसिं देंति ण वि सयं गेण्हे । वितियं वित्तण पेसे, जावतियं वा असंथरणे ॥५४७७।। पूव्वद्ध कठं । जं वत्वादिगं प्रचित्तं तं कारणे अप्पणा विसरतो असिवादिकारणेहि अण्ण प्रलभंतो ण पेसेति जावतियं उवउज्जति, जेण प्रसंथरणं वा तावतियं गेहति, सेसं विसज्जेति, अहवा - सव्वं पिए विसज्जेति ॥५४७७॥ कारणे इमो सचित्तस्स अववातो - पाऊण य वोच्छेयं, पुव्वगए कालियाणुओगे य।। सयमेव दिसाबंधं, करेज्ज तेसि ण पेसेज्जा ।।५४७८।। जो तेण सेहो प्राणितो सो परममेहावी, अप्पणो गच्छे णत्थि को वि पायरियपदजोग्गो, जे च मे पुव्वगतं कालियसुयं च तस्स गाहगो पत्थि, ताहे तेसि वोच्छेदं जाणिऊणं तं सेहं प्रप्पणो सीसं णिबंधइ, ण पुवाभिधारियस्स पट्ठवेइ ॥५४७८।। इदाणि परिसिल्ले अववादो भण्णति - असहारो परिसिल्लत्तणं पि कुज्जा उ मंदधम्मसु । पप्प व काल-ऽद्धाणे, सञ्चित्तादी वि गिण्हेज्जा ॥५४७६|| असहायो प्रायरियो पलिसिल्लत्तणं पि करेइ. तं संवग्गं असं विगं वा सहायं गेण्हति । सिस्सा वा मंदधम्मा गुरुस्स वावार ण वहंति, ताहे अण्णं सहायं गेहति । सडा वा मंदधम्मा गुरुणो जोग्गं ण देति ताहे लद्धिसंपणं परिगेण्हति । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ आरण । भाष्यगाथा ५४७६-५४८५ ] .. षोडश उद्देशक: दुभिक्खादिकाले वा प्रद्धाणं वा पविसंतो - एवमादिकारणेहिं परिसिल्लत्तणं करेंतो सुद्धो। सचित्ताचित्तं पुण पेसेति ण पेसेति वा, पुवणियकारणेहिं ।।५४७६॥ जो सो अभिधारेंतो वच्चति तस्स अववादो भण्णति - असिवादिकारणेहिं, कालगतं वा वि सो व्व इतरो तु | पडिसेहे परिसिल्ले, अण्णं व विसिज्ज बितियपदे ॥५४८०॥ जत्थ गंतुकामो तत्थ असिवं अंतरा वा, अहवा - जो अभिधारितो प्रायरिमो सो कालगतो, ''इयरो" त्ति जो सो पहावितो साधू पडिसेहगपरिसिल्ले अण्णस्स वा पायरियस्स पासं पविसेज्ज, बितियपदेणं ण दोसो ॥५४८०॥ एयं अविसेसित्त भणियं । इमं 'ग्रामव्वाणाभव्वं विसेसियं भण्णति - वच्चंतो वि य दुविहो, वत्तमवत्तस्स मग्गणा होति । वत्तम्मि खेत्तवज्ज, अव्वत्तणं पि तं जाव.॥५४८१॥ पुव्वद्धस्स इमा विभासा - सुभ अव्वत्तो अगीओ, वएण जो सोलसह आरेणं । तविवरीतो वत्तो, वत्तमवत्ते च चउभंगो ॥५४८२।। सुएण वि अव्वत्तो वएण वि अव्वत्तो चउभंगो कायवो। सुएण अगीयो अव्वत्तो। वएण जो सोलसण्हं बासाणं प्रारतो । तविवरीतो वत्तो जाणियव्वो। सो पुण वच्चतो ससहाप्रो वच्चति असहायो वा ।।५४८२।। वत्तस्स वि दायन्वो, पहुप्पमाणे सहाओ किमु इतरे । खेत्तविवज्जं अव्वंतिएसु जं लब्भति पुरिल्ले ॥५४८३॥ प्रायरिएण पहुप्पमाणेसु साहुसु वत्तस्स वि सहाम्रो दायबो अवरसं, किमंग पुण अवत्ते । "२वत्तम्मि खेतवज्जम्मि" अस्य व्याख्या - "खेतविवज्ज" पच्छद्ध । वत्तो भवत्तो वा प्रवतिया मे सहाया तेणेव सह गतुकामो परखेतं मात्तुं ज सो य लब्भंति तं सव्वं पुरिमस्स अभिधारेंतस्स .. प्राभवति, परखेत्ते जं पुण लद्धतं खेत्तियस्स प्राभवति ।।५४८३।। जति णेतु एतुमाणा, जं ते मग्गिल्ल वत्तपुरिमस्स । नियमऽव्वत्तसहाओ, उ णियत्तति जं सो य ॥५४८४॥ अह ते सहाया तं पराणेत्ता पडियागंतुकामा ज ते सहाया लब्भति तं मग्गिल्लस्स अप्पणिज प्रायरियस्स प्राभवति । सो पुण वच्चतो अप्पणा जति वत्तो तो ज सो लब्भति तं पुरिमस्स अभिधारिज्जंतस्स देति । "अव्वत्तेणं पि जाव" त्ति अस्य व्याख्या - अव्वत्तो पुण नियमा ससहायो भवति, तस्स सहाया जे ते य णेतु णियत्तिउकामो जं सो ते य लभंति तं सव्वं पुविल्लायरियस्स प्राभवति ॥५४८४।। बितियं अपहप्पंते, ण देज्ज वत्तस्स सो सहाओ तु । वइयाइ अपडिवज्झतगस्स उवही विसुद्धो उ ।।५४८२॥ १ गा० ५४६२ । २ गा० ५४८१ । ६ गा० ५४८१ । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [.पूत्र-११ , वितिय ति भववादतो, पायरिपो अपहुप्पंतेसु सहायं न देज्जा, सो य अप्पणा सुव-वएसु वत्तो, तस्स वइगादिसु अप्पडिवजंतस्स उवहीए वाघातो ण भवति, अह वइयादिसु पडिवज्जइ तो तष्णिप्फण्ण, उपकरणोवघायट्ठाणेसु व वटुंतस्स उवही उवहम्मति ॥५४८५॥ एगे तू वच्चंते, उग्गहवज्ज तु लभति सच्चित्तं ।। बच्चंतो उ गिलाणो, अंतरा उवहिमग्गणा होति ॥५४८६॥ जो वत्तो एगागी गच्छति सो जति अण्णस्स प्रायरिया जो उग्गहो तं वज्जेउं प्रणोग्गहखेत्ते किंचि लमति तं सव्वं अभिधारिज्जते देति । अहवा - एगागी वच्चंतो दो तिणि वा प्रायरिए अभिधारेज, तस्स य अंतरा गेलणं होज्ज, जे अभिधारिता तेहि पारिएहि सुयं जहा अम्हे धारतो साधू यतो गिलाणो जागो ॥५४८६॥ आयरिय दोषिण आगत, एक्के एक्के व णागए गुरुगा। न य लभती सञ्चितं, कालगए विप्परिणए य ॥५४८७॥ जे ते अभिधारिता ते जति सम्वे प्रागता तो तेगं जं अंतराले लद्धं तं तेमि सम्वेसिं साधारणं । अह तत्थ एगो प्रागतो अवसेमा णागता । जे नागया तेसि चउगुरु', तं सचित्ताचित्तं लभंति । जो गतो गवेसगो तस्स तं सध्वं प्राभवति । कालगते वि एवं चेत्र । अह गिलाणो वि विप्परिणप्रो जस्स सो ण लभति, जं पुण अभिधारिज्जते लद्धं पच्छा विपरिणतो जं प्रविपरिणते भावे लद्ध तं लभंति, विप्परिणए भावे जंल तं ण लमति । ५४८७॥ एसा सुमभिधारणे आभवंतमग्गणा भणिया। इमा अण्णा वाताहडमग्गणा भण्णति - पंथसहायमसडो, धम्म सोऊण पव्वयामि ति। खेते य पाहि परिणत, सहियं पुण मग्गणा इणमो ॥५४८८।। एक्को कारणितो विहरति, तस्स पंथे भसढो वाताहडो सहाप्रो मिलितो, सो व तम्स साहुम्स पासे धम्मं सुभेत्ता प्रसुणेत्ता वा पम्वयामि ति परिणामो जातो - "दिक्खेह मं" ति । सो परिणामो अति साधुपरिग्गहियखेतस्स अंतो जातो तो सो सेहो खेत्तियस्त प्राभवति, ग्रह बाहिं खेत्तस्स अपरिमाहे खेत्ते परिणामो होज्ज तो तस्सेव साहुस्स प्राभब्वो ॥५४५६॥ खित्तम्मि खेत्तियस्सा, खेतबहिं परिणते पुरिन्लस्स । अंतरपरिणयविप्परिणए य कायव मम्गणता ॥५४८६।। पुग्धद्ध गतार्थ । णवरं- "पुरिल्लस्स" त्ति साधोः पूर्वाचार्यस्येत्यर्थः । एवं अंतरा पवजापरिणामो पुण विपरिणामो, एवं अस्प प्रयट्टितो परिणामो जामी सो पमाणं - खेसे सित्तियस्स, प्रक्षेते तस्सेव । जो पुण सम्मट्ठिी तस्स जह सणपज्जातो पस्थि तो इच्छा, दमणपज्जायमच्छिणे जेष सम्मतं माहितो तस्त भवति । ॥५४८६॥ एस विही तु विसज्जिते, भविसज्जि जहुगमासज्यापुच्छा। तेसि पि होति लहुगा, जं वाऽऽभव्यं च ण लभंति ।।५४६०॥ For Private &Personal-Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५४८६-५४९५ ] षोडश उद्देशक: अविसज्जितो जह सीसो गच्छइ छ, पडिच्छगो जह जाइ तो चउलहुगा । मह विसज्जितो दोच्चं वारं प्रणापुच्छाए गच्छइ, सीसो पडिच्छमो वा तो मासलहुं, तेसि पि पहिच्छताणं चउलहुगा, जं च सचित्तादिगं तं ते पडिच्छंतगा ण लभंति ।।५४६०॥ . पायरिओ पुण इमेहिं कारणेहिं ण विसज्जेति - परिवार-पूयहेडं, अविसज्जते ममत्तदोसा वा । अणुलोमेण गमेज्जा, दुक्खं सु विसज्जिउ गुरुणो ॥५४६१॥ पप्पणो परिवारणिमित्तं, बहूहि वा परिवारितो पूयणिज्जो भविस्सं, मम सीसो अण्णस्स पास गच्छति ति हममत्तेण वा ण विसज्जेति । पच्छद्ध कंठं । अम्हा अविसज्जिते सोही ण भवति, ग य सो गुरू पडिच्छइ तम्हा पुच्छियव्वं ।।५४६१॥ ___साय प्रापुच्छा दुविहा - प्रविधी विधी य। प्रविधिमापुच्छणे तं चेव पच्छित्तं जं भपुच्छिए । विधिपुच्छाए पुण सुद्धो। सा इमा विधी - नाणम्मि तिण्णि पक्खा, आयरिय-उवज्झाय-सेसगाणं तु । एक्केक्के पंच दिवसो, अहवा पक्खेण एक्केक्कं ।।५४६२॥ णाणणिमित्तेण जंतो तिणि पक्खे प्रापुच्छ करेति, तत्थ प्रायरियं मापुच्छति पंच दिणा, जति ण विसज्जेति तो उवज्झायं पंचदिणे, जति सो वि ण विसज्जेति तो गच्छ पंचदिणे, पुणो पायरिय उवज्झायगच्छ च पंचपंचदिणे, पुणो एते चेव पंचपंचदिणे, एवं एककेक्के पक्खो भवति, एवं तिण्णि पक्खा । अहवा- अणुबद्ध पायरियपक्खं, पच्छा उवज्झायं, पच्छा गच्छपक्ख, एवं वा तिण्णि पक्खा । एवं जति ण विसज्जितो तो पविसज्जितो चेव गच्छति ।।५४६२।।। एतविहिमागतं तू, पडिच्छ अपडिच्छणमि भवे लहुगा । अहवा इमेहिं आगत, एगादि पडिच्छए गुरुगा ॥५४६३॥ कंठं अह एगादिकारणेहिं आगयं पडिच्छति तो चउगुरुगा ॥५४९३॥ एगे अपरिणए या, अप्पाहारे य थेरए । गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहुडे ॥५४६४॥ एमागि मायरियं छहुत्ता मागतो । प्रपरिणता वा सेहा, माहारवत्थपादादियाण अकप्पिया तेसि सहियं पायरियं छड्डत्ता मागतो। अप्पाहारो मायरितो त चेव पुच्छित्ता सुत्तत्ये वायणं देति, तं मोत्तुमागतो। घेरं गिलाणं पायरियं छड्डत्ता मागतो। बहुरोगी णाम जो चिरकालं बहूहि वा रोगेहिं अभिभूतो तं छड्डता मागतो। अहवा - सीसो गुरू वा मंदधम्मा, तस्स गुणे ण सामायारी पडिपूरेति तं "छड्डत्ता" मागतो। “पाहुडे" त्ति पायरिएण सह कलहेत्ता मागतो ।।५४१४॥ एतारिसं विउसज्ज, विप्पवासो ण कप्पती। सीस-पडिच्छा-ऽऽयरिए, पायच्छित्तं विहिज्जति ॥५४६५॥ कंठं Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-पूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-२ सिस्सस्स पडिच्छगस्स पायरियस्स य तिण्ह वि पच्छित्तं भण्णति - एगे गिलाणपाहुड, तिण्ह वि गुरुगा तु सीसमादीणं । सेसे सीसे गुरुगा, लहुगपडिच्छे य गुरुसरिसं ॥५४६६। एगे गिलाणे पाहुडे य तिसु वि दारेसु तिण्ह वि सीमपडिच्छगायरियाणं पत्तेयं गुरुगा भवंति, सेसा के प्रपरिणयादी दारा तेसु सीसस्स पउगुरुगा, तेसु चेव परिच्छयस्स चउलहुगा, गुरुसरिसं ति जइ सीस पहिच्छइ तो चउगुरुगा, मह पडिच्छगं तो चउलहुगा ॥१४६६॥ 'णाणट्ठा तिण्णि पक्खे आपुच्छियव्वं तस्स इमो अववातो - वितियपदमसंविग्गे, संविग्गे वा वि कारणाऽऽगाढे । नाऊण तस्स मावं, कप्पति गमणं चऽणापुच्छा ॥५४६७।। मायरियादीसु पसंविग्गीभूतेसु णापुच्छिज्जा वि। अहवा - संविग्गेसु मायरियादिसु अप्पणो से किंचि इत्विमादियं चरित्तविणासकारणं भागाढं उप्पण्णं ताहे मणापुच्छिए वि गच्छति । "मा एस गच्छति (त्ति) गुरुमादियाण वा भावे गाते प्रणाते प्रणापुच्छाए वि गच्छति ॥५४६७॥ अविसज्जिएण ण गंतव्वं ति एयस्स अववादो अज्झयणं वोच्छिज्जति, तस्स य गहणम्मि अस्थि सामत्थं । ण य वितरंति चिरेण वि, णातुं अविसज्जितो गच्छे ।।५४६८॥ठ्या एवं प्रविसज्जिनो गच्छति, ण दोसो। प्रविधिमागतो प्रायरिएण ण पडिच्छियव्यो ति । एयस्स अववादो णाऊण य वोच्छेयं, पुव्वगए कालियाणुश्रोगे य । सुत्तत्थजाणतो खलु, अविहीय विश्रागतं वाए ॥५४६६।। , प्रणापुच्छविसज्जियं वइयादिपडिबझंतगं वा प्रविषिमागयं वोच्छेदादिकारणे अवलंबिऊण पडिच्छति चोदेति वा ण दोसो ॥५४६६ "जो तेण आगंतुगेण सेहो आणितो तस्स अभिधारियस्स अणाभव्वो, सो तेण ण गेण्हियन्वो' त्ति एयस्स अववादो इमो - णाऊण य वोच्छेयं, पुव्वगए कालियाणुओगे य । सुत्तत्थजाणगस्स तु, कारणजाते दिसाबंधो ॥५५००॥ चोदक आह - 'अणिबद्धो कि ण वाइज्जति' ? प्राचार्य आह - अणिबद्धो गच्छइ स गुरूहि वातिज्जइ, कालसभाषदोसेण वा ममत्तीकतं वाएति, प्रतो दिसाबंधो मणुष्णातो। जो य सो णिबज्झइ सो इमो ससहायअवत्तेण, खेत्ते वि उवट्ठियं तु सच्चित्तं । दलयंतु नानुबंधति, उभयममत्तट्ठया तं वा ॥५५०१॥ १गा० ५४६२ । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बायनाचा ५४६६-१५०५] षोडश उद्देशकः मध्यत्तेण ससहायेण वत्तेण वा असहाएण परखेत्ते उवद्वितो सच्चित्तो सो खेत्तियाण पाभवो तहावि तं दलयंति परममेहाविणं गुरुपदजोगं च, अप्पणो य सो गच्छे मायरियजोग्गो गत्थि ति ताहे तस्स मप्पणो दिसाबंध करेति । "उभयं" ति सजता संमतीपो य । अहवा-तस्स सगच्छिल्लगाण य परोप्परं ममीकारकरणं भवति, प्रम्हं सज्झतिउत्ति, "तं " ति जो पडिच्छगो मागतो तं वा णिबंध । जो सो सेहो परिच्छगो प्रागतो तं वा भिबंधइ ॥५५०१।। जो सो सेहो पडिच्छगो वा णिबद्धो सो तत्थ णिम्मातो - . आयरिए कालगते, परियट्टति सो गणं सयं चेत्र । चोदेति व अपदंते, इमा तु तहि मग्गणा होति ॥५५०२॥ मायरिए कालगए सो तं गच्छं ण मुयइ, एत्थ गच्छस्स णिबद्धायरियस्स ववहारो भणति, सो ठं सयमेव गणं परियट्टेइ, सो य गच्छो ण पति, अपढतो य तेण चोदेयम्वो, जति चोदिया वि ण पढंति तो इमो भाभवंतमगणा ॥५५०२॥ साहारणं तु पढमे, बितिए खेत्तम्मि ततिए सुहदुक्खं । अणहिज्जते सेसे; हवंति एक्कारस विभागा॥५५०३|| कालगयस्स जाव पढमवरिसं ताव गच्छस्स जो सो ठितो प्रायरिमो एतेसिं दोण्ह वि साधारणं सचित्तादि सामान्यमित्यर्थः । बितिए वरिसे -जं खेतोवसंपण्णनो लभति तं ते अपढंता लभति। ततिए वरिसे -जं सुहदुक्खोवसंपण्णतो लभति तं ते लभंति । चउत्थे वरिसे - कालगतायरियसीसा अणहिज्जता ण किं चि लभंति, सव्वं पडिच्छगायरियस्स भवति ॥५५०३॥ सीसो पुच्छइ - "कि खेत्तोवसंपण्णप्रो सुइदुक्खिनो वा लभइ ?" ति। उच्यते - णातीवग्गं दुविहं, मित्ता । वयंसगा य खेत्तम्मि । पुरपच्छसंधुता वा, सुहदुक्ख चउत्थए सव्वं ॥५५०४॥ दुविधं णातीवग्गं - पुव्वसंथुता पच्छासंथुता य । सहजायगादि मित्ता, पुषुप्पणा वयंसगा, एते सब्वे खेतोवसंपण्णतो लभति, सुहदुक्खीतो पुण पुरपच्छसंयुता एव केवला भवंति । जे पुण अहिज्जंति तेसि 'एक्कारस विभागा । तस्स य कालगयायरियस्स चउविधो गणो - पडिच्छया सिस्सा सिस्सिणोमो - पडिच्छिणीमो य । एतेसि ज तेण प्रायरिएण जीवंतेण उद्दिटुं तं पुवुद्दिटुं भण्णति, जं पुण तेण पडिच्छगायरिएण उद्दिटुं तं पच्छुद्दिई भण्णति ।।१५०४।। खेत्तोवसंपयाए, बावीसं संथुया य मित्ता य । सुहदुक्खमित्तवज्जा, चउत्थए णालबद्धा य ॥५५०५॥ १ गा० ५५०३। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे । मूत्र ३-१५ पुव्वुद्दिय़ तस्स उ, पच्छुद्दिट्ट पवाततंतस्स । संवच्छरम्मि पढमे, पडिच्छए जंतु सच्चित्तं ॥५५०६।। जं जीवतेण प्रायरिएण पडिच्छगल्स उद्दिष्टुं तं चेव पढंतस्स पढमवरिसे जं सचित्ताचित्तं लन्भति तं सव्वं "तस्स" त्ति जेण उद्दिटुं तस्स प्राभव्वं । एस एक्को विभागो। अह इमेण उद्दिटुं पडिच्छगस्स पढमवरिसे तो जं सचित्ताचित्तं लभति तं सव्वं वा देंतस्स । एस बितिमो. विभागो ॥५५०६।। बितियवरिसे - पुन्वं पच्छुद्दिष्टे, पांडेच्छए जं तु होइ सच्चित्तं । संवच्छरम्मि बितिए, तं सव्वं पवाययंतस्स ॥५५०७॥ पडिच्छगो नितियवरिसे पुवुष्टुिं वा पच्छुद्दिलु वा पढउ जं तस्स सचित्ताचित्तं सव्वं वाएंतस्स । एग ततिम्रो विभागो ॥५५०७॥ इदागि सीसस्स भण्णति - पुव्वं पच्छुद्दिष्टुं, सीसम्मी जं तु होइ सच्चित्तं । संवच्छरम्मि पढमे, तं सव्वं गुरुस्स आभवति ॥५५०८।। सीसस्स पढमवरिसे कालगतायरिएण च उद्दिटुं इमेण वा पडिच्छगारिएण उद्दिटुं पढ़तस्स नं सचित्ताचित्तं त सव्वं कालगतस्स गुरुस्स प्राभवति । एस चउत्थो विभागो ॥५५०८!! सीसस्स बितिए वरिसे - पुव्वुद्दिटुंतस्स उ, पच्छुद्दिष्टुं पवाययंतस्स । संवच्छरम्मि वितिए, सीसम्मी जं तु सच्चित्तं ॥५५०६।। जहा पडिच्छगस्स पढमवरिसे दो आदेसा तहा सीसस्स बितियव रिसे दो आदेसा भाणियव्वा । एत्य पंच-छ? विभागा सीसस्स बितीयवरिसे ||५५०६।। पुव्वं पच्छुदिटुं, सीसम्मी जंतु होति सच्चित्तं । संवच्छरम्मि तइए, तं सव्वं पवाययंतस्स ।।५५१०॥ (क) जहा पडिच्छास्स बितियवरिसे तहा सीसस्स ततियवरिसे । एस सत्तमो विभागो ॥५५१०॥ इदाणि सिस्सिणी पढम-बितियसंवच्छरेसु भाणियव्वा पडिच्छगतुल्ला - पुबुद्दिटुंतस्सा, पच्छुद्दिष्टुं पवाययंतस्स। संवच्छरम्मि पढमे, सिस्सिणिए जं तु सच्चित्तं ॥५५११॥ पुव्वं पच्छुद्दिटुं, सीसिणिए जं तु होति सच्चित्तं । संवच्छरम्मि बितिए, तं सव्वं पवाययंतस्स ॥५५१२॥ तत्य तिण्णि विभागा पुविल्लेसु जुत्ता दस विभागा। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५५०६-" षोडश उद्देशकः इदाणि पडिच्छगा - पुव्वं पच्छुट्टि, पडिच्छए जं तु होति सच्चित्तं । संवच्छरम्मि पढमे, तं सव्वं पवाययंतस्स ॥५५१३॥ परिच्छगाए पढमे चेव संवच्छरे मायरिएण वा उद्दिट्ट इमेण वा उद्धिं पढउ जं से सचित्तादि तं सम्बं वाएंतो गेण्हति, एते एक्कारस विभागा ।।५५१३।। एसो विभागे पोहो, इमो विभागेण पुण अण्णो मादेसो भण्णइ. अहवा - एसो विधि जो सो सेहो प्रप्पणो णिबद्धो तस्स भणितो। जो पुण सो पाडिच्छगो णिबद्धो तस्सिमो विधी - सो तिविहो होज - कुलिच्चो. गणिच्चो, संघियो वा होज । संवच्छराणि तिण्णि उ, सीसम्मि पडिच्छए उ तदिवसं । एवं कुले गणे या, संवच्छर संघे छम्मासा ॥५५१४॥ जइ सो एगकुलिच्चो तो तिष्णि वरिसे सचित्तादि सिसाण ण गेण्हति, परिच्छगाण पुण जद्दिवसं चेव पायरियो कालगो तद्दिवसं चेव गेहति, एवं कुलिच्चए भणियं ।। अह सो एगगणिच्चो तो संवत्सरं सिस्साण सचित्तादि ण गेष्हति । जो य कुलगणिच्चो [ण] भवति सो णियमा संघियो। सो संधियो छम्मासे सिस्साण सचितादि ण गेण्डति, ते पहिच्छगायरिएण तत्थ गच्छे तिणि वरिसा अवस्म प्रच्छियव्वं, परेण इच्छा ॥५५१४॥ तत्थेव य निम्माए, अणिग्गते जिग्गते इमा मेरा । सकुले तिणि तिगाई, गणे दुगं वच्छरं संघे ॥५५१५॥ तत्येव पडिच्छगायरियस्स समीवे तम्मि प्रणिगए जति कोति तम्मि गच्छे णिम्मातो तो सुंदरं । मह ण णिम्मानो सो य तिण्ह वरिसाण परतो णिग्गतो, अहवा - एस प्रम्ह सचित्तादि हरति त्ति ते वा णिग्गता तेसि इमा मेरा - सकुले समवायं काउं कुले घेरेसु वा उवट्ठायति ताहे तेसिं कुलं वायणायरियं देति, वारएण वा वाएति कुलं, तिणि तिया णववरिसे वाएति ग य सचित्तादि गेहति, जइ णिम्मातो विहरइ ततो सुंदरं । मह ९कको वि ण जिम्मातो ततो परं सचित्तादि गेण्हति, ताहे सगणे उवट्ठाति गणो वायणायरियं देति, सो वि दोण्णि वरिसे वातेति, ण य सचित्तादि गेण्हति; जति गिम्मातो एक्को वि तो विहरंतु, प्रणि. माते संघ उवट्ठायंति, संघो वायणायरियं देति, सो य नरिसं वाएति, ण य सचित्तादि गेण्हति, णिम्माए विहरंतु । एते बारस वरिसा ।।५५१५॥ अह एतेसि एक्को वि णिम्मातो, कहं पुण एवतिएण कालेण णिम्माति ? उच्यते - ओमादिकारणेहि व, दुम्मेहत्तेण वा ण णिम्मानो। काऊण कुलसमायं, कुल थेरे वा उवट्ठति ॥५५१६।। प्रोमसिवदुभिक्खमाइएहिं अडतो न निम्मातो दुम्मेहत्तणेण वा, ताहे पुणो कुलादिसु कुलादिपेरेसु वा उवट्ठायंति तेणेव कमेण, एते वि वारस दरिसे । दो बारस चउम्बीसं । जति एक्को वि णिम्मातो Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभामा - चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र- १५ विहरंतु, ग्रह न निम्मातो तो पुणो कुलादिसु तेणेव कमेण उवद्वायंति, एते वि बारस बरिसे, सव्वे छत्तीसं जाता । एवं जति छत्तीसाए वरिसेहि जिम्मातो तो सुंदरं, यह न निम्मातो ताहे भ्रष्णं परममेहाविणं पतं उपादाय पम्बावेत्ता उवसंपज्ञ्जति ।।५५१६।। ८६ साथ उवसंपदा एतारिसे ठाणं - - श्रीसक्क पव्वज्जएगपक्खिय, उवसंपद पंचहा सए ठाणे । छत्तीसाऽतिक्कंते, उवसंपद पत्तुवादाय || ५५१७॥ 1 पुब्वटस्स इमा विभासा, "पव्वज्ज एगपक्खी" इमे - गुरुसज्झिलए सज्यंतिए य गुरुगुरु गुरुस्स वा नत्त् अहवा कुलिच्चयो ऊ पव्वज्ज। एगपक्खी उ ।। ५५१८ || पितृम्य:, भ्राता पितामहः, पौत्रकः भ्रातृव्य इत्यर्थः । अहवा - एगकुलिच्चए तेसि एक्का सव्वा सामाचारी, सुतेण एगपक्वितो बस्स एगवायजियं सुतं ॥ " पव्वज्जाए सुएण य, चउमंगुवसंपया कमेणं तु । पुव्वाहियविस्तारिए, पढमासति तइयभंगो उ ।। ५५१६ || पुग्वद्धमणियमकमेण उवसंपदा पढमततियभंगेसु ति जम्हा तेसु पुत्राहितं विस्सरियं पुणो उज्जुयारे 1 - चोदकाह - " साहम्मियबन्धल्लयाए सब्वस्सेव कायव्यं कि कुलातिविभागेण उवट्टवणं कर्त" ? उच्यते "उवसंपदं पंचविध" त्ति अस्य व्याख्या सव्वस्स वि कातव्वं, निच्छयओ किं कुलं व कुलं वा । कालसभावममत्ते, गारवलज्जाए काहिंति || ५५२० || कंठा पच्छद्धं गतार्थं । उवसंपदा इमो ग्राभवतववहारो सुतसुहदुक्खं खेत्ते, भग्गे विणए य होति बोधव्वे । उवसंपया उ एसा, पंचविहा देसिता सुत्ते || ५५२१ ।। गा० ५५१७ । २ पुरे इत्यपि पाठः । - सुम्मि णालबद्धा, गातीबद्धा व दुविहमित्तादी | खेते सुहदुक्खे पुण, पुव्वसंधु मग्गदिट्ठादी || ५५२२ ।। सुलोवसंपदा दुविधा - पढते प्रभिषारते य । दुविधाए वि सुत्तोवसंपदाए छ गालबद्धा इमे माता पिता भ्राता भगिणी पुतो धृता । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायबापा ५५१७-५५२६ ] पोटश उद्देशकः एतेसि परावि सोलस इमे माउम्माता पिता माता भगिणी, एवं पिउणो वि चउरो, भाउपुत्तो धूया य, एवं भगिणी पुत्तभूयाण वि दो दो, एते सोलस, छ सोलस य बावीस, एते गालबद्धा, सुत्तोवसंपण्णो समति । खेतोवसंपण्णो बावीसं पुवपच्छसंयुया य मित्ता य लमति । सुहदुक्खी पुण बावीस पुवपच्छसंयुया य लभंति । मग्गोवसंपण्णतो एते सव्वे लमंति दिट्ठा भट्ठा य लभति । विणग्रोवसंपनाते सव्यं लभति, णवरं - विणयाणरिहस्स ग बंदणाविणयं पउंजति । ""सगे ठाण" ति-पठ जाए सुतेण य जो एगपक्स्सी पढम तत्य य उवसंपज्जति, पच्छा कुलेष सुएण य जो एमपसी, पच्छा सुएण य जो एगपक्षी, पंच्छ सुएण गणेण य जो एगपक्सो, तस्स वि पच्छा बितियभगेसु, पच्छा चउत्थभंगे, एवं उपसंपदाते ठायति । अहवा - "'सहाणे" त्ति - सुत्तत्थिस्स जम्स सुयं पत्थि तं सट्ठाणं एवं सुहदुक्खियस्स उत्प देयावच्चकरा पत्थि, खेत्तोवसंपदत्थिस्स जस्स वत्थभत्तादियं मत्यि, मग्गोवसंपदत्यिस्स जत्थ मम्गं पत्थि, विणयोवसंपदत्यिस्स जल विणयकरणं जुज्जति। एते मट्ठाणा एतेलु उवसंपदा॥५५२२॥ गाणटोवसंपदा गता। इदाणिं दंसणट्टा भण्णति । कहं वा दंसणट्ठा गम्मति !, उच्यते - कालियपुव्वगते वा, णिम्माअो जदि य अस्थि से सत्ती। दंसणदीवगहेडं, गच्छद अहवा इमेहिं तू ॥५५२३॥ कालियसुते पुष्वगयसुते वा जं वा जम्मि काले पतरति सुत्तं तम्मि सुतत्थतदुभएसुणिम्मातो ताहे बइ से दंसणदीवगेसु गहणधारणसत्ती परिष ताहे अपणो परस्स य दरिसणं दीवगत्ति दीप्तं करोति हेतुः कारणं तानि दर्शनविशोधनानीत्यर्थः । प्रहवा - इमेहिं कारणेहिं गच्छति ॥५५२३॥ मिक्खूगा जहि देसे, बोडिय-थलि निण्हएहि संसग्गी। . तेसिं पण्णवणं असहमाणे वीसज्जिते गमणं ॥५५२४॥ जत्थ गांमे गरे देसे वा भिक्खुग-बोडिय-निहगाण वा चली तत्य ते पायरिया ठिता, तेहिं सदि मायरियसंसग्गी- प्रीतिरित्यर्थः । ते य भिक्खुमादी अप्पणो सिदंतं पणति, सो य मापरिमो तेसि दक्सिणंण तुष्हिक्को मच्छति ॥५५२३॥ लोगे वि य परिवाभो, भिक्खुपमादी य गाढ चमडेति । विप्परिणमति सेहा, श्रोमामिज्जति सडा य ॥५५२।। एते भिक्खूमादी जाणगा, इमे पुण मोदणमुंडा, ते य भिवखुमादी अम्हं पक्कं गाडं चमडेति, सेह सट्टा य विपरिणमंति, भणंति य - एते सेयभिक्खू धम्मवादियो, बइ सामत्थं परिष गं तो प्रम्ह उत्तरं देंतु, एवं सपक्सेसु सड्ढा मोहाविज्बंति, ॥५५२५॥ अह तेहिं भिक्खुगमाइहिं थलीए वट्टगो णिबद्धो - रसगिद्धो य थलीए, परतित्थियतज्जणं असहमाणो। . गमणं बहुस्सुयत्तं, भागमणं वादिपरिसामो ॥५५२६॥ १ या० ५५१७ । २ गा. ५४५८ । . Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ सभाष्य-चूर्णिके निशीषसूत्रे [सूत्र-१५ सो य पायरियो रसगिद्धो गोउलपिंडहतो, सति 'वि सामत्ये भण्णमाणो विण किं चि उत्तरं देति, एवमादि तेसि परतित्थियाणं पण्णवणतज्जर्ण असहमाणो सिस्सो प्रायरिए विधीए पुच्छति, जाहे विसज्जितो ताहे विहिणा गमो, सो य सुणेत्ता बहुस्सुमो जामो, प्रागमणं, पागतेण य पुव्वं पायरिया दट्ठन्वा, अण्णवसहीए सो ठाइ, जे तत्य पंडिया वादिपरिसं च गेहति, ते परिजियायत्ते करेति, ते रणो महाजणास वा पुरतो णिरुत्तरे करेति ॥५५२६॥ वादपरायणकुविया, जति पडिसेहेंति साहु लटुं च । अह चिरणुगतो अम्हं, मा से पवत्तं परिहवेह ।।५५२७॥ वादकरणे जिता कुविया जइ ते तं पायरियस्म निबंध पडिसेहेंति तो सुंदरं, प्रहवा - तत्य कोइ तुदो भणिज्ज - "एयस्स को दोसो ? एस प्रम्हं चिरणगतो, पुष्ववत्तं वट्टयं मा परिहवेह" ॥५५२७॥ श्रोहे वत्त अवत्ते, प्रामव्वे जो गमों तु गाणट्ठा । सो चेव दंसणट्ठा, पच्चागते हो इमो वऽण्णो ॥५५२८|| मोहविभागे नाणट्ठा संजयस्स वत्तस्स प्रवत्तस्स य जो सचित्तादियाण प्राभन्वाऽणाभन्वगमो भणिमो सो चेव असेसो दंसणट्टा गच्छंतस्स भवति, पच्चागते कते वादे जितेसु भिक्षुगादिसु भायरिर भणति-णीह एतत्तो तुन्भे ॥५५२८॥ जइ एवं भण्णमाणो णीति तो इमा विधी - कातूण य पणामं, छेदसुतस्स ददाहि पडिपुच्छं । अण्णत्थ वसहि जग्गण, तेसिं च निवेयणं काउं ॥५५२६॥ आयरियस्स पादे पणमित्ता भणति --'छेदसुयस्स ददाहि पडिपुच्छं" ति, अस्य व्याख्या सदं च हेउसत्थं, चऽहिज्जिो छेदसुत्त णटुं मे । एत्थ य मा असुयत्था, सुणेज्ज तो अण्णहिं वसिमो ॥५५३०॥ सद्दे त्ति व्याकरणं, हेतुसत्यं अक्खपादादि, एवमादि अहिजतो छेदसुत्तं णिसीहादि गटुं सुत्तमो प्रत्यमो तदुभमो वा, तस्स मे पडिपुच्छं देह । 'अण्णत्थ वसहि" ति अस्य व्याख्या - "एत्व में" पच्छद्ध । “एत्य बहुवसहीए मसुयत्या सेहा प्रगीता प्रपरिणामगा य, मा ते सुणेज्जा तो अण्णवसहीए ठामो, एवं ववएसेण णीणेति, ॥५५३०॥ अहवा - वसहीनो खेतमो वा णो इच्छह णिग्गंतुं । "रजग्गण तेसि णिवेदण" ति अस्य व्याख्या - खेत्तारक्खिनिवेयण, इतरे पुव्वं तु गाहिता समणा। जग्गविभो सो य चिरं, जह णिज्जंतो ण चेतेति ॥५५३१॥ भारक्खिगो त्ति दंडवासिगो, तस्स णिवेदिज्जति - "अम्हं मंदो पभू अत्यि, तं अम्हे रपणीए वेज्जमूलं नेहामो ति तुम्भे मा किं चि भणेज्जह", इतरे य भगीता समणा ते गमिया - "अम्हे प्रायरियं एवं १ गा० ५५२६ । २ गा० ५५२९ । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५५२७-५५३९ ] पोडस उद्देशकः हामो तुम्हे भा बोल करेजह।" "जग्गण" ति सोय पारिनो राम्रो किषि अक्साइगादि कहाविज्जति सुचिरं जेण णिसट्ठसुत्त बिज्जतो ण किंचि वेदति, ताहे संघारगे छोणं णेति, मह चेतेति विलवति वा ताहे "खित्तचित्तो" त्ति लोगस्स कहेयव्वं ॥५५३१॥ जिण्हयसंसग्गीए, बहुसो भण्णंतुवेह सो भणति । तुह किं ति वत्ति वच्चसु, गता-ऽऽगते णीणितो विहिणा ॥५५३२॥ मह बोडियाण णिण्हयाणं वा संसग्गी तेण ण गच्छति, बहुसो वि भणतो उवेहति - तुहिरको अच्छति । अहवा भणेज्ज - “जति हं णिण्हवगसंसग्गीए अच्छामि तो तुम्भं कि दुक्खति?, वह तुम्भे जतो भे गतव्वं, प्रहं ण गच्छामि", एस्थ वि सिस्सेण सिक्खषगतागतेण णिहगादि घेउं भायरिमो विहिणा जोणियम्वो ॥५५३२॥ एसा विही विसज्जिते, अविसज्जिए लहुग गुरुगमासो य । लहुगुरुग पडिच्छंते, आगतमविही इमो तु विही ॥५५३३॥ पडिच्छगस्स चउलहुप, सीसस्स च उगुरुगा, दोच्चं मापुच्छणे मासो, प्रगापुच्छे पागयं जा पडिच्छगं पडिच्छइ तो चउलहुं, पह सीस तो च उगुरुगा, एवं प्रविहिमागयस्स पच्छित्तं । इमा विही भण्णति ॥५५५३।। दसणपक्खे आयरिओवज्माए चेव सेसगाणं च । एक्केक्के पंचदिणे, अहवा पक्खेण सव्वे वि ॥५५३४।। दंसणभावगाण सत्थाण सिक्खगस्स गच्छंतस्स पक्खं मापुच्छणकालो, तत्थ प्रायरियं पंचदिणे, सेसा पंचदिणा। "अहवा - "पक्खेण सव्वे" ति बितियादेसो, दिणे दिणे सव्वे पुच्छति जाप पक्खो पुण्णो ॥५५३४॥ एतविहिमागतं तू, पडिच्छ अपडिच्छणे भवे लगा। अहवा इमेहि आगत, एगादिपडिच्छए गुरुगा ॥५५३५॥ एगे अपरिणए या, अप्पाहारे य धेरए । गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहुडे ।।५५३६।। एतारिसे विप्रोसेज्ज, विप्पवासो न कप्पती । सीसे भायरिए या, पायच्छित्तं विहिज्जती ॥५५३७।। बितियपदमसंविग्गे, संविग्गे चेव कारणागाढे । पाऊण तस्स भावं, होति तु गमणं अणापुच्छा ॥५५३८॥ गतार्थाः दंसणट्ठा गयं। इदाणि 'चरित्तटा - चरितद्व देस दुविहा, एसणदोसा य इत्थिदोसा य । गच्छम्मि विसीयंते, आतसमुत्थेहि दोसेहिं ॥५५३६॥ १गा०५४५८ । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाध्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१५ चरित्तट्टगमणं दुविहं - देसदोसेहिं प्रायसमुत्यदोसेहि य । देस-दोसा दुविधा - एसणदोसा, इरिषदोसा य । मायसमुत्था दुविहा - गुरुदोसा, गच्छदोसा य । तत्व गच्छे जति मायसमुत्येहि चक्कवालसमारिवितहकरणेहिं सीएज तत्य पक्वं प्रापुच्छतो मच्छति, परतो गच्छइ ।।५५३९॥ इमे संजमोवधायदोसा, एतेसु उवदेसो - न गंतव्वं - जहियं एसणदोसा, पुरकम्मादी ण तत्थ. गंतव्वं । उदयपउरो व देसो, जहि तं चरियादिसंकिण्णो ॥५५४०॥ उदयप्रचुरः सिधुविषयवत्, परिद्राजिका कापालिका तच्चण्णगी भगवी च एवमादिचरगादीहिं जो माइण्णो विसनो तं पि ण गंतव्वं ॥५५४०॥ अह संजमविसए असिवादी कारणा होज्न ताहे असंजमखेत्तं पविट्ठा असिवादीहि गया पुण, तक्कज्जसमाणिया ततो णिति । आयरिए अणिते पुण, आपुच्छितु अप्पणा णेति ॥५५४१॥ मादिसद्दातो दुन्भिक्सपरचक्कादिया। "तक्कज्जसमाणिय" ति तम्मि संजमखेत्ते जया ते प्रसिवादिया फिट्टा ताहे तो प्रसंजमखित्तामो णिग्गंतव्वं । जइ मायरिमो केणइ पडिबंषेण सीयंतो वा णणिग्गच्छति तो जो एगो दो बहू वा प्रसीदंता ते पायरियं विधीए पुच्छिता अप्पणा णिग्गच्छति ॥५५४१।। णिग्गच्छणे इमा विधी दो मासे एसणाए, इत्थिं वज्जेज्ज अट्ठ दिवसाणि । ___ श्रातसमुत्थे दोसे, आगाढे एगदिवसं तु ॥५५४२॥ जत्थ एसणादोसा तत्थ जयणाए धणेसणिज्जं गिव्हतो वि दो मासे, मायरियं प्रापुच्छते वि उदिक्खति सहसा ण परिच्चयति, मह 'इत्यिसयझिगादि उवसम्गेति, मप्पणो य दढं चित्तं, तो अढदिवसे पापुच्छति । तप्परतो प्रणितेसु पप्पणा णिग्गच्छति । मह - इत्थीए प्रप्पणा अज्झोववष्णो तो एरिसे पायसमुत्ये प्रागाढे दोसे एगदिवसं पुच्छित्ता अणितेसु बितियदिवसे अप्पणा णीणेति ॥५५४२॥ सेज्जायरमादि सएज्झिया व अउत्थदोस उभए वा । आपुच्छति सण्णिहितं, सण्णातिगतो व तत्तो उ ॥५५४३॥ मह प्रप्पणा सेज्जातरीए सएग्झिगाए वा प्रतीव प्रज्झोववण्णो । "उभयए" वत्ति परोप्परमो तो जति सो मायरितो सणिहितो मापुच्छति, प्रसणिहिते पहिस्सयगमो सणादिभूमिगमो वा महा - सणिहितं साधु पुच्छित्ता ततो चैव गच्छति ॥५५४३॥ १ मा० इत्थी सेहमियादि इत्यपि पाठः । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उपदेशनः एयविहिमागयं तु, पडिच्छ श्रपडिच्छणे भवे लहुगा । हवा इमेहि श्रागत, एगादिपडिच्छणे गुरुगा ॥ ५५४४ || पूर्ववत् काव्यगाथा ५५४०–५५४८ ] एगे अपरिणते या अप्पाहारे य थेरए । गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहुडे || ५५४५|| पूर्ववत् एतारिसं विप्रसज्ज, विप्पवासो गा कप्पति । सीसे श्ररिए या, पायच्छित्तं विहिज्जती ।। ५५४६ ॥ पूर्ववत् भवे कारणं ण पुच्छिज्जा वि बितियपदमसंविग्गे, संविग्गे चैव कारणागाढे । नाऊण तस्स भावं, अप्पणी भावं चणापुच्छा ॥ ५५४७॥ प्रायरियादी प्रसंविग्गा होज्ज, संविग्गा वा कारणं भागाढं महिडनकादि अवलंबित्ता न पुच्छेज्ज, तस्स वा भाव जाणेति, सुचिरेण वि ण विसज्जेति, अप्पणो वा भावं जाणति - "भ्रम्हं प्रच्छंतो अवस्सं सि (सी) दामि ", एवमादिकारणेहि भ्रणापुच्छिता वच्चेज्जा चरितट्ठा ५५४७ ।। ग्रह गुरु इत्थिदोसेहि सीएज्जा - सेज्जायरकप्पट्टी, चरितठवणाए अभिगया खरिया | सावित्र गिहत्थो, सो वि उवारण हरियव्वे ॥ ५५४८ || सेज्जायरस्स भूणिगा जोग्वण कप्पे ठिया, कप्पटुयं पडुब्ब प्रायरिएण चरितं ठवियं तं ' पडि सेवतीत्यर्थः । महवा - दुबक्लरिगा अभिगता सम्मद्दिट्ठी तं वा पडिसेवेति श्रहवा - प्रभिगते ति प्रासक्ता, सो पुण प्रायरिम्रो चरित्तवज्जितो वेसधारी वा बाहिकरणजुत्तो होज्जा । लिंगी वा सारूविगो बा सिद्धपुत्तो वा गित्यो वा होज्ज । लिंगधारी लिंगी । बाहिरन्तकरण वज्जितो सारूवी । ist क्किलवासधारी कच्छं ण बंघति प्रबंभचारी प्रभज्जगो भिक्लं हिन्इ । जो पुण मुंडी ससिहो सुक्कंबरधरो समज्जगो सो सिद्धपुत्तो, एयणाय रविकप्पे ठितो । ११ - "उवाएण हरियब्यो” पुब्वं गुरु ं प्रणुकूलं भष्णति - इमामो सेताओो बच्चामो, जदा नेच्छति ताहे जत्थ सां पडिबद्धो सा पण्णविज्जति " एसो बहूणं माहारो, एवं विसज्जेहि, तुमं किंच मा महामोहकम्बं पगरेहि" । जति सा ठिया तो सुंदरं, ग्रह म ठाति तो सा विज्जमंतणिमितेहि माउट्टिज्जति वसीकञ्जति बा, प्रति विज्जादियाण प्रत्यं दाउ मोएंति, गुरुं य एगंते व भण्णमाणो सम्बहा प्रणिच्छतो पुम्वकमेणं राम्रो हरियो ||५५४८ ।। - Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ सभाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे सव्वा प्रायरिए प्रणिते प्रप्पणा ततो र्णेति श्रणेगा एगो वा । जा एगस्स विधी सा प्रगाण वि दट्ठव्वा ।। ५५५१ ।। एगे तू वच्चंते, उग्गहवज्जं तु लभति सच्चित्तं । चरित जो तु ति सच्चित्तं णऽप्पिणे जाव || ५५४६ ॥ जो साहू वत्तो एगणितो वति सो परोवग्गहवज्जं सचित्तादिजं लभति तं प्रप्पणी 'समगिल्लस्स वा गुरुस, चरितस्स वा 'स्वपोरुषलक्षणचरितट्ठा पुण जो सहाम्रो नेति तत्थ सचितादि णेंतस्स जं सचित्तादि तंजाव ण समप्पेति ताव पूर्वाचार्यस्य भव्वत्तसहाए वि ण लभति पुरिल्लो, जदा पुण उवसंपण्णो समपितो वा तदा लभति, तक्कालानो वा चरितपरिचालणा ।। ५५४६|| एमेव गणात्रच्छे, तिविहो उ गमो उ होति णाणादी । आयरिय-उवज्झाए, एसेव य जवरि ते वत्ता || ५५५० ॥ जहा साधुस्स भणियं तहा गणावच्छेइयस्स तिविषो गमो णाणदंसणचरितट्ठा गच्छंतस्स, एवं भायरिउवज्झायाण वि । णवरं ते णियमा वता भवंति ॥५५५० ।। एसेव गमो नियमा, निग्गंथीणं पि होइ नायव्वो । गाणट्टं जो तु ती, सच्चित्तं नऽप्पणिज्जा वा ॥ ५५५१ | णवरं - ताम्रो णियमा ससहायाम्रो जो पुण तातो णेति सचित्तादी तस्स, समप्पियामु बाएंतस्स कोण तातो ति ?, पंचण्डं एगतरे, उग्गहवज्जं तु लभति सच्चित्तं । श्रपुच्छ टु पक्खे, इत्थीवग्गेण संविग्गे ॥५५५२ || संगतीतो जाणट्टा ति प्रायरिय उवज्झायो वा पवित्ती गणी वा येरो वा, एएसि पंचव्हं प्रणतरो गितो उम्गहवज्जं सचित्तादि लभति । इत्वी पुण णाणट्ठा बच्वंती प्रटुपकले प्रापुच्छति पायरियं उवज्झायं वसभं गच्छ वा । एवं संजतिवग्गे वि चउरो इत्योप्रो सत्थेण णेयव्वाम्रो, संविग्गो मीयत्थो परिणयवयो णेति । चरितट्ठा गयं ।। ५५५२।। तिहट्टा संकमणं, एवं संभोइएस जं भणितं । तेसऽसति अण्णसंभोइए वि वच्चेज्ज तिहट्ठा || ५५५३ || पाणातितिगस्ट्ठा एवं संक्रमणं संभोइएस भणियं संभोइयाण प्रसती मण्णसंभोइएस वि पाणातितिगस्सट्टा संकमति ।। ५५५३ ।। ग्रहवा- संभोगट्ठा संकमति 2 [ सूत्र- १५ - संभोगा वि हु तिहिं, कारणेहिं तत्थ चरणे इमो भेदो । संकमच उक्कमंगो, पढमे गच्छम्मि सीदंते || ५५५४ ॥ १ सेससिस्सस्स इत्यपि पाठः । २ लक्षणस्स अट्ठा चरित ट्ठा, इत्यपि पाठः । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५५४६-५५५८ ] षोडश उद्देश: संभोगो वि तिहट्ठा इच्छिज्जइ, तंतहा णाणस्स दस गस्स चरित्तस्स । णाणसणट्टा जस्स उवसंपण्णो तम्मि सीयते ततो णिग्गमो भाणियम्यो, जहा प्रप्पणो गच्छाम्रो। चरित्तदा पुण जस्स उपसंपण्णो तस्स बरण प्रति सीदंतेसु इमो चउम्विहो विगप्पो। कहं पुण संकमति ?, चउभंगे। इमो चउभंगो - गच्छो सीदति, णो मायरियो । णो गच्छो, प्रायरियो । गच्छो वि, प्रायरियो वि । णो गम्छो, णो मायरियो । पढमे गच्छो सीदति ॥५५५४।। सो पुण इमेहि सीदति - __ पडिलेह दियतुयट्टण, णिक्खवणाऽऽयाण विणय सज्झाते । आलोय-ठवण-भत्तट्ठ-भास-पडलग-सेज्जातरादीसु ॥५५५॥ पडिलेहणा काले ण पहिलेहेंति, [ग] पडिलेहेति वा विवच्चासेण, [वा) ऊणातिरित्तमादिदोसेहि वा पडिले हेति । गुरुपरिणगिलाणसेहाण वा न पडिलेहेंति । निक्कारणे वा दिया तुटुंति । णिक्खवणे मादाणे वाण पडिलेहति, ण मज्जति, सत्तभंगा। विणयं प्रहारिहं या पयजति । सज्झाए सुत्तत्यपोरिसीमो प्रण करेंति, प्रकाले प्रसझाए वा करेंति । पक्खियादिसु प्रालोयणं ण पांजति, भतादि वा ण पालोएंति, दोसेहि वा प्रालोएंति, संखडिए वा भत्तं प्रालोएंति-णि रक्खतीत्यर्थः । ठवण कुलाणि वा ण ठवंति, ठविएसु पणापुच्छाए विसंति भत्तटुं । मंडलीए ण भंजति. वीसं भुजंति, दोसेहि वा भुजति, गुरुणो वा प्रणालोगेण भुजंति । प्रगारमासादिहिं भासंति, सावज भासंति । पडले हिं प्राणियं भिहां भुजति । सेज्जायरपिंडं वा भुजंति । मादिग्गहणेणं उग्गमउप्पादणेसणादोसेहि य गेहति ॥५५५५।। एवमादिएहिं गच्छं सोदंतं - चोदावेति गुरूण व, सीदंतं गणं सयं व चोदेति । आयरियं सीदंतं, सयं गणेणं व चोदावे ||५५५६॥ गच्छो सीयतो गुरुणा चोइज्जति. प्रप्पणा वा चोएनि, जे वा तहिं ण सीदति ते वा चोएति । बीयभगे प्रायरियं सीदतं सतं वा चोएति, गणो वा तं प्रायरियं चोएति ततियगे ॥५५५६।। दोणि वि विसीयमाने, सयं च जे वा तहिं ण सीदति । ठाणं ठाणासज्जतु, अणुलोमादीहि चोदावे ॥५५५७॥ दोषि वि जत्थ गच्छो पायरिपो य सीदति तत्य य सयं चोएति । जे वा तहिं ण सीयंति हि चोयावेति । "ठाणं ठाणासज्ज" ति मायरिय-उवम्झाय-पवत्ति-यर-गणावग्छ-भिक्खु-खुड्डा य महवा खर-मग्ममउय-कूरातरा वा बस्स बारिसी महा चोदणा जो वा जहा पोदणं गेहति सो तहा चोदेयन्वो ॥५५५५।। अपमाण भाणवेतो, प्रयापमाणस्स पक्ल उस्कोसो। लज्जाए पंच तिण्णि व. तह किंति व परिणते विवेगो ॥५५५८॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - १५ गच्छं सीदंतं, प्रायरियं वा उभयं वा सीदंतं सयं चोदेंतो प्रण्णेहि वा चोयावेतो प्रच्छति । जत्थ ज जाणति जहा एते भण्णमाणा वि णो उज्जमिउकामा तत्थ उक्कोसेण पवलं प्रच्छति गुरु पुण सीदतं लज्जाए गारवेण वा जाणतो वि पंच तिणि वा दिवसे अभणतोवि सुद्धो । ६४ ग्रह चोदिज्जतो गच्छो गुरू वा उभयं वा भणेज्जा "तुम्हं कि दुक्खति ? जइ भ्रम्हे सीदामो, भ्रम्हे चैव दोग्गति जाईहामो”, एवं भावपरिणए विवेगो गन्द्रस्स गुरुस्स उभयस्स व कज्जति । श्रन्नं गणं गच्छइ । सो पुग एगो अगेगा वा प्रसंविग्गगणाती संविग्गगणं संकमेति । एवं चउभंगो ॥५५५८ ॥ गीयत्थविहारातो, संविग्गा दोणि एज्ज अण्णतरे । पालोइयम्मि सुद्धा, तिविहुवधीमग्गणा णवरिं । ५५५६ ।। गोयस्थ गहणा तो उज्जयविहारी गहितो, ततो उज्जयविहारातो सत्रिग्गा, दोंण्णि एज्ज ।। ५५५६ ।। "अण्णतरे" त्ति प्रस्य व्याख्या गमगीतागीते, अपडिबंधे ण होति उवघातो । अग्गीय वि एवं जेण सुया श्रहणिज्जुती || ५५६० ॥ जइ एगो सो गीश्रो प्रगीमो वा ग्रह दुगादी होज्ज ते गीता भगीता वा मिस्सा वा, जति एगो गीतो वइयादि पडिबज्झतो वच्चति तो उवधिउवघातो ण भवति, जो वि श्रगीतो जहलोण जेण सुतः प्रहणिज्जत्ती तस्स वि अप्पडिउज्यंतस्स उवही ण उवहम्मति ।। ५५६० । गीयाण व मीसाण व दोण्ह वयंताण वइगमादीसु । पडिबज्झताणं पि हु, उवहि ण हम्मे ण वाऽऽरुवणा ॥५५६१ ॥ दोहं गीताणं विमिस्साणं वा दोन्हं जइ वि वतियादिसु पडिवज्यंति सेससामायारि करेंति तेसि उवही ण उवहम्मति ण वा पच्छित्तं भवति । भगिय विवज्जते उवधिउवघातो चितणिज्जो । एवं संविग्गविहारातो एगो प्रणेगा वा विहीए प्रागता, जप्पमिति गणातो फिडिया ततो भ्राढवेत्तु प्रालोयणा दायव्वा, ततो सुद्धा ।। ३५६१। "" तिविध उवही मग्गणा णवरि" ति ग्रस्य व्याख्या आगंतु हाकडयं, वत्थव ग्रहाकडस्स असती य । मेलेंति मज्झिमेहिं, मा गारवकारणमगीए || ५५६२ ।। "तिविहो" त्ति प्रहाकडो ग्रप्पपरिकम्मो बहुपरिकम्मो य । एवं वत्थव्वाण वि तिविधो, ग्रहाकडं महाकडेहि मेलिज्जति, इतरे वि दो एवं । वत्थव्वाण अहाकडा णत्थि ताहे श्रागंतुगा प्रधाकटा वत्थवंगमह मेलज्जति मा सो आगंतु प्रगीयत्यो गारवं करेस्सति "ममेव उवधी उक्कोसतरो" त्ति ।।५५६२ ।। गीत्थे ण मेलिज्जति, जो पुण गीओ वि गारवं कुणइ | ག तस्सुवही मेलिज्जर, अहिगरण अपच इहरा || ५५६३ || १ गा० ५५५६ । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५५५६-५५६६ ] पोग्श उद्देशकः गीयत्यो जइ प्रगारवी वत्यब्वग्रहाकरप्रसतीते तहा वे महाकडपरिभोगेणेव मुंजति, मह सेधाणं अण्णाण वा पुरनो मणति । "ममोवही उक्कोसो, तुभ उवही असुद्धो" एवं भणंतो वारिज्जति । जइ ठितो तो सुंदरं, ग्रहण ठाति, ताहे अण्णोवहिसमो कज्जति । "इहरे" ति अमेलिज्जतो अगीयसेहाण प्रप्पञ्चयो कि प्रम्हेहितो एस उज्जमततरो जेण उवधि उक्कोसपरिभोगेण मुंजति । “ममोरही उक्कोसो" ति इतरे असहमाणा अधिकरणं करेज्जा, तम्हा मेलिज्जति ॥५५६३॥ एवं खलु संविग्गे, संविग्गे संकम करेमाणे । संविग्गमसंविग्गे, -ऽसंविग्गे या वि संविग्गे ॥५५६४॥ पुवढे पढमभंगो गतो, पच्छद्धे वितिय ततियभंगा। तत्थ बितियभंगसंकमे इमे दोसा - . सीहगुहं बग्घगुहं, उदहिं व पलित्तर्ग व जो पविसे । असिवं प्रोमोयरियं, धुवं से अप्पा परिचत्तो ।।५५६५॥ जो संविग्गो असंविग्गेसु संकमति तस्स इ, प्राणादिया य दोप्ता, सेमं कंठं ॥५५६५।। चरण-करणपरिहीणे, पासत्थे जो उ पविसए समणो । जयमाणए य जहितं, जो ठाणे परिजए तिण्णि ॥५५६६॥ प्रोसणादी सी गुहादिसठाणा, सीहगुहादिपनेसे एगमवि य मरणं पावति । जो पुण पासत्यादी प्रतीति सो अणेगाई जाइव्व-मरियव्वाइं पावति ॥५५६६।। एमेव अहाछंदे, कुसील प्रोसण्णमेव संसत्ते । जं तिण्णि परिचयती, णाणं तह दसण चरित्तं ॥५५६७।। कंछया । गतो बितियभंगो। पंचण्हं एगतरे, संविग्गे सं..मं करेमाणे | पालोइए विवेगो, दोसु असंविग्गे सच्छंदो ॥५५६८॥ पंचविहो असंविग्गो - पासत्थो प्रोसणो कुसीलो संसतो अहाछंदो। एतेसि अण्णयरो संविग्गेसु संकमज्जा, सो संविग्गमझगतो संतो पालोयणं देति, प्रविसुद्धोवधिस्स विवेगं करेति, अण्णो मे विसुद्धोवधी दिज्जति । "दोसु" त्ति असंविग्गो असंविग्गेसु मंकम करेति, एस चउत्थभंगो । एस "सच्छंदो" इच्छा से "प्रविधि" त्ति काउं प्रवत्थू चेव ॥५५६८।। पंचेगतरे गीए, आरुभिय वदे जतंत एमाणे । जं उवहिं उप्पाए, संभोइय सेसमुज्झति ॥५५६६।। पंचहं पासत्थादियाण एगतरो एंतो जइ गीयत्यो भारियं अभिधारेउं तहिं चेव महव्ययउच्चारणं काउं प्रागंतव्वं । विधीए पडिबज्झतो पागच्छमाणो पंथे जं उवकरणं उप्पाएंतो एति तं सव्वं संभोतितं । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाध्य - चूर्णिके निशीयसूत्रे सूत्र - १५ "सेसो" त्ति जो पासस्थोवधी प्रविसुद्धा तं परिद्ववेंति, जो पुण प्रगीयत्थो तस्स वते प्राथरितो देति, उवधी से पुराणो श्रहिणवुप्पातितो वा से सव्वो परिठविज्जति, प्रालोइए जं भावण्णो तं से पच्छि देज्जति ।। ५५६६ ॥ पासत्यादिसु इमं प्रालोयणाविधाणं ६ पासत्थादीमंडिते, प्रालोयण होति दिक्खपभितिं तु । संविग्ग पुराणे पुण, जप्पिभिति चेत्र सण्णो ॥ ५५७० ॥ श्रच्च तपासत्थो जो तस्स पव्वज्ज दी प्रालोयणा । जो पुण पच्छा पासत्यो जातो सो जतो पासत्यो जातो ततो कालतो प्राढवेत्तु श्रालोयणं देति । एयं श्रहाछंदवज्जाण । प्रहाछंदो जाहे पडिक्कमति त हे तस्स ङ्क । श्रवसेसं तहेव ।। ५५७० ॥ एवं संभोगट्ठा गये । इमो प्रायरियट्ठा नियमो भण्णति रवि तिहि कारणेहि णाण दंसणचरिते । गाणे महकप्पसुतं, दंसणजुत्ता इमं चरणे ।। ५५७१ ॥ श्रायरियादि णानिमित्तं उवसंज्जति । ग्रहवा "णाणे महाकप्पसुयं" ति नाणे महकप्पसुर्य, सीसत्ता केइ उवगते देइ । Ras उद्दिसिज्जा, सेच्छा खलु सा ण जिणाणा ।। ५५७२ ।। केसि चि आयरियाणं कुले गणे वा महाकप्पसुयं प्रत्थि । तेहि गणसंठिती कया "जो म्हं प्राकहियसीसत्ताए उट्ठाइ तस्स महाकष्पसुय दायव्वं, णो अण्णस्स" । अष्णतो गणे विजमाणे श्रविज्ञमाणे वा 'महाकष्पसुतं उद्दिट्ठे श्रायरिए तम्मि गहिए सो पुरिल्लागं चेव, ण वाएंतस्थ, जेण तेसि सा सेच्छा | ज जिणगण हरेहिं भणियं - "प्रावकहियसीससाए उबगयस्सेव सुयं देयमिति" ।।५५७२ ।। दंसणट्ठा - - विज्जा-मंत- णिमित्तं, हेतूसत्थड दंसणट्टाए । चरितट्ठा पुव्वगमो, हव इमे होंति आएसा ॥। ५५७३ ।। रिट्ठा इमो ग्रासो आयरिय-उवज्झाए, - - हेतुसत्थ- गोविंद णिज्जतादियट्ठा उवपज्जति । - सण्णोहाविते व कालगते । सण छव्विहे खन्नु, वत्तमवत्तस्स मग्गणता ॥ ५५७४ ।। प्रायश्रिो प्रोसष्णो जातो, प्रोघासितो वा गिहत्वो जातो, कालयतो वा । जति श्रोसण्णो तो छहं भ्रष्णतरो – पासत्थो, श्रोसण्णो, कुसीलो, संसतो, जीतितो, महाच्छंदो य । जो य तस्स सीसो आयरियपदे जोग्गो सो वत्तो प्रत्रत्तो वा ।। ५५७४ | १. सुतट्ठा प्रदिट्ठे, इत्यपि पाठ: । - Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यमाथा ५५७०-५५७६ ] षोडस उद्देशकः वत्ते खलु गीयत्थे, अव्वत्तवएण अहवऽगीयत्थे । वत्तिच्छ सार पेसण, अहवा सणे सयं गमणं ॥५५७५।। वत्तो वएण, सुएण वत्तो गीयत्यो । एस पढमभंगो। वत्तो वएण, सुएण प्रवत्तो । एम प्रत्थतो बितियभंगो प्रव्वत्तो वएण, सुएण वत्तो । एस पत्थतो ततियभंगो। प्रवत्तो वएण प्रहवा भगीयत्य ति । एस च उत्थो भंगो। पढमभंगिल्लो जो वत्तो तस्स इच्छा गणं सारेति वा ण वा । अहवा- तस्स इच्छा प्रणं पायरियं उद्दिसइ वा ण वा, जाव ण उद्दिमति ताव गणं सारवेति । अहवा - तं पायरियं दूर-थं "सारेति" ति - चोदेति साघुसंघाडगपेसणेण । प्रह पासण्णे सो य प्रायरितो तो सयमेव गतुं चोदेति ॥५५७५॥ चोदणे इमं कालपरिमाणं - एगाह पणग पक्खे, चउमासे वरिस जत्थ वा मिलती। चोयति चोयावेति य, अणिच्छे वट्टावए सयं तू ॥५५७६॥ अप्पणा चोदेति, सगच्छ-सरगच्छिच्चेहि वा चोतावेति, सब्वहा प्रणिच्छे समत्यो सयमेव गणं वट्टावेति ।।५५७६॥ अहवा - अण्णं च उद्दिसावे, पंतावणहा ण संगहट्ठाए । जति णाम गारवेण वि, मुएज्जऽणिच्छे सयं ठाति ॥५५७७॥ ण गच्छस्स संगहोवग्गहणिमित्तं प्रायरियं उदिसति, पातावणट्ठा उद्दिसति । तत्थ गतो मणति – “प्रहं प्रणं वा मायरियं उद्दिसावेमि, जइ तुम्भे एत्ततो ठागातो ण उपरमह"। सो चितेति "मए जीवंते अण्णं पायरियं पडिवज्नति, मुयामि पासत्थत्तणं", जइउवरतो तो सुंदरं । सम्वहा तम्मि प्रणिच्थे मह समत्वो तो अप्पणा गच्छाधिवो ठाति ॥५५७७॥ गतो पढमभंगो। इमो बितियभंगो सुतवत्तो वयवत्तो, भणति गणं ते ण सारिउ सत्तो। सगणं सारेहे तं, अण्णं व वयामो पायरियं ॥५५७८॥ असमत्थो मप्पणो गच्छं वहावेउं सो तं मायरियं ताव भणति - "प्रहं असमत्यो गच्छं वट्टावे तुम्हे चेव इमे सीसा, प्रहं च अण्णेसि सिस्सो होहामि", अहवा - "एते य प्रहं च अण्णं भापरियं वयामो उहिसामो" इत्यर्थः ॥५५७८।। आयरिय उवज्झाए, अणिछते अप्पणा य असमत्थो । तिवसंवच्छरमद्धं, कुलगणसं दिसाबंधो ॥५५७६।। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-१५ एवं पि मणिग्रो प्रायरियो उवज्झामो वा जाहे ण इच्छति संजमे ठाउं, गणाहिवत्ते वा अप्पणो य असमत्थो य, ताहे कुलिच्च प्रायरियं विपति तिणि वासे । ताहे तहिं ठितो तं परिसारेति चोदेति य । तिण्हं वरिसाणं परमो जं सचित्ताचित्तं सो कुलिच्चायरिओ हरति ताहे गणिच्चं उद्दिसावेति वरिसं, ततो संघिच्चं छम्मासे उद्दिसावेति ॥५५७६।। कुलातो गणं, गणातो वा संघ संकमंतो पायरियं इमं भणाति - सच्चित्तादि हरति णे, कुलं .पि णेच्छामो जं कुलं तुझं । वच्चामो अण्णगणं, संघ च तुमं जति ण ठासि ॥५५८०॥ एवं भयंते जति अब्भुट्ठितो तो सुंदरं ।।५५८०॥ एवं पि अठायंते, तावतं अद्धपंचमे वरिसे । सयमेव धरेति गणं, अणुलोमेणं व णं सारे ॥५५८१॥ अद्धपंचमवरिसोवरि वएण वतीभूतो समत्यो सयमेव गणं घारेति, ठिपो वि तं प्रायरिय अणुलोमेहि सारेति ॥५५८१॥ अहवा – बितियभंगिल्लो कुलगणसंघेसु नो उवसंपज्जति । कहं ?, उच्यते - अहव जदि अस्थि थेरा, सत्ता परिउट्टिऊण तं गच्छं । दुहओ दत्तसरिसको, तस्स उ गमो मुणेयव्यो ।।५५८२।। सुयवत्तो प्रप्पणा सुत्तत्थपोरिसीतो देति, गीयत्या थेरा गच्छंति परियदृति, एस पढमभंगतुल्लो चेव भवति । "गमो" त्ति पढमभंगप्रकार एव, एसो वि पायरियं सारेति तावेति य ।।५५८२।। गतो वितियभंगो। इमो ततियभंगो वत्तवओ उ अगीओ, जति थेरा तत्थ केति गीयत्था । तेसंतिए पढंतो, चोदे तेसऽसति अण्णत्थ ।।५५८३।। वत्तवयत्तणेण गणं रक्खेति चोदयति. असति येराणं गीयत्थाणं अामायरियं पनजसुएणं एगपक्खियं सह गणेण उवसंपज्जति । __अहवा - ततियभंगिल्लो जइ अगीयत्थत्तणनो गणं परियटिउं असमत्थो थेरा य से गीयत्था तेसंतिए पढंति, अण्णे य थेरा गच्छपरियट्टणे कुसला ते गणं परियटुंति, एरिसो वि णो अण्णस्स उवसंपज्जति, असति थेराण उवसंपज्जति ।।५५८३।। गतो ततियभंगो। इमो चउत्थभंगो - जो पुण उभयावत्तो, वट्टाक्ग असति तो उ उद्दिसति । सव्वे वि उद्दिसंता. मोत्तणमिमे तु उद्दिसती ॥५५८४॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५५८०-५५८६ ] षोडश उद्देशक: जति मेरा पाढेंया प्रत्थि गणं च बट्टावेतया तो एसो वि ण उद्दिसति, अण्णं च वट्टावगथेराणं पुण असति उद्दिसति ।। ५५८४।। सव्वे विप्रायरियं उद्दिसंता इमेरिसे आयरियं भोतु उद्दिसंति संविग्गमगीतत्थं, संविग्गं खलु रहेव गीयत्थं । श्रसंविग्गमगीयत्थं, उद्दिसमाणस्स चउगुरुगा || ५५८५॥ तिविधं पि उद्दितस्स चउगुरुगा, ग्रहवा - काल-तव- उभएहि गुरुगा कायन्वा ।। १५८५।। एते उद्दिसु य प्रणाउट्टं तस्स इमं कालगतं पच्छितं सत्तरतं तवो होति, ततो घेतो पहात्रती । छेदे छिण्णपरिभाए, ततो मूलं तत्र दुगं ॥५५८६ ॥ सत्तदिवसे चउगुरुगं । ऋणे सत्तदिवसे छल्लहुं । प्रणे सत्तदिणे खम्गुरु ं । श्रष्णे सत्तदिणे छेदो । मूलं एक्कं दिणं, प्रगट्ठ एक्कदिणं । एक्कतीसइने दिणे पारंचिए । ग्रहवा द्वितितो इमो प्रदेसो-एक्कवीस दिवसे तो पूर्ववत् । तवोवरि सत्तदिवसे चउगुरु छेदो । सत्तदिवसे छलहुछेदो । अण्णे सत्तदिवसे छगुरुछेदो, ततो मूलऽगवदुपारंचिया पणयालीसइमे दिवसे । ग्रहवा छेदे ततितो प्रादेसो - पणगादि सत्त सत्त दिणेहि णेयब्वो, एत्थ छत्तीसुत्तरसत्त दिवसे पारंचियं च पावति । जम्हा एते दोसा तम्हा संविग्गो गीयत्थो उद्दिसियन्वो ।। ५५८६ ॥ बाणविरहियं वा, संविग्गं वा वि वयति गीयत्थं । चउरो वि अणुग्धाया, तत्थ वि आणादिणो दोसा ||५५८७ || εE एयं पि संविग्गगीयत्थं छट्टाणविरहयं । जति मामकं काहियं पासणियं संपसारियं उद्दिसावेति तो चउगुरुगा प्राप्पादिया दोसा ।। ५५८७ ।। डाणा जा णिति तव्विर हियका हिगादिया चउरो । ते वि य उद्दिसमाणो, छट्टाणगताण जे दोसा ॥५५८८|| गतार्था । एत्थ वि सत्तरतादितवच्छेदविसेसा य सव्वे भाणियव्वा । एतस्स इमो श्रववातो - गीयत्यस्स संविग्गस्स असति गीयत्थं प्रसंविग्गं पव्वज्जसुतेण एगपखियं उद्दिसति एवं कुलगणसंघिच्चयं पि, एवंपि ता प्रोसष्णो गतो ।। ५५८८ || हावित- कालगते, जाविच्छा ता तह उद्दिसावेंति । व्वत् तिविहे वी, नियमा पुण संगहडाए || ५५८६ ॥ जो प्रोहावितो सो सारूवितो लिंगत्थो गिहत्यो वा, मो विऽष्णेणं गवेसियन्वो, श्रप्पसागारियं च विष्णविवो, जाहे च्छति प्रवणाय श्रण्णं प्रायरियं इच्छति ताहे उद्दिसावेति । "प्रव्वत्तो तिविहो" पढमभंगवज्जा ततो भंगा, अहवा - तिविहो अन्वत्तो तिविहे वि कुले गण संघ य उद्दिसावेति । एतेसि दोन्ह वि पगाराणं उद्दिसावेतो णियमा संगणिमित्तं उद्दिसावेति । कालगए वि एस चैव विही, नवरं चोदण-तावणा णत्थि ।। ५५८६ ।। - Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० समाष्टा-चूणिके मिशीपसूत्रे [सूत्र १६-२४ वसम्मि जो गमो खलु, गणवच्छे सो गमो उ आयरिए । णिक्खिवणे तम्मि चत्ता, जमुद्दिसे तम्मि ते पच्छा ॥५५६०॥ जो वत्तस्स भिवखुस्स गमो सो गमो गणावच्छेदए पायरियाणं । इमं णाणत्तं - जइ णाण-दसण. णिमित्तं गच्छति प्रप्पणोय से प्रायरियो संविग्गो तस्स पासे णिक्विविउं गच्छं प्रप्पबितितो ततितो वा गच्छति । प्रह से अप्पणो प्रायरियो प्रसंविगो तो ते साधू जति तस्स पासि णिक्सिविसं गच्छति तो सेण ते चत्ता भवंति, तम्हा ण णिविखयव्वा यन्वः । तेण ते जेण तेण पगारेण ते य घेत्तुं जत्थ गतो तत्थ पढमं अप्पाणं णिक्खिवति, पच्छा भणति - "जहा भे अहं, तहा भे इमे वि" । "तम्मि ते पच्छा" तस्स सिस्ता भवति ॥५५१०॥ णिक्खिवणा अप्पाणो परे य संतेसु तस्स ते देसि । संघाडगं असंते, सो वि ण वावारऽणापुच्छा ॥५५६१॥ जदा अप्पा परो य णिक्खित्तो तदा तस्स वि प्रायरियस्स किं वा जाया ?, जति से संति ति पप्पणो य सहाया पहुप्पंति ताहे तेण तस्स चेव दायवा, असंतेसु संघाडगं एग देति, प्रवसेसा अप्पणा गेण्हति । प्रह सव्वहा असहातो सव्वे वि गेहति, तेण वि से कायब्वं, तस्स गुरुस्स प्रणापुच्छाए सो ते ण वावारेति ॥५५६१॥ आयरियं गिहिभूयं प्रोसणं वा जत्थ पेच्छति तत्थिमं भणति - श्रोहावित-उस्सण्णे, भण्णति अणाहओ विणा वयं तुम्भे । कमसीसमसागरिए, दुप्पडियरगं जतो तिण्हं ॥५५६२॥ पुव्वदं कंठ । पोसण्णस्म पुव्वगुरुस्स कमा पादा सिरेण तेसु णिवडति भसागारिए । सीसो भणति - "तस्स प्रसंजयम्स कहं चलणेसु णिवडिज्जई"। पायरियो भणति - "दुप्पडियायं जतो तिह" दुक्खं उवकारिस्स पच्चुवकारो किज्जति, तं जहा - माता पिउणो, सामिन, घम्मायरियस्स । अतो तस्स पादेसु वि पडिज्जति, ण दोसो ।।५५६२।। किं च - जो जेण जम्मि ठाणम्मि, ठावित्रो दंसणे व चरणे वा । सो तं तो चुयं तम्मि चेव कातं भवे निरिणो ॥५५६३।। सो सीसो तेण प्रायरिएण णाणादिसु ठविप्रो, इदाणि सो प्रायरियो ततो गाणादिभावामो चुतो, तं चुनं सो सीसो तेसु चेव णाणादिसु ठवेंतो गिरण्णो भवति ।।५५६२॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ, देंतं वा साइज्जइ ॥सू०॥१६॥ जे भिक्खू बुग्गहवक्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा सातिज्जइ ।।सू०॥१७॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ, देंतं वा साइज्जइ ॥सू०॥१८॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५५६०-५५६६ ] षोडश उदेशक: जे भिक्खू वग्गहवक्ताणं वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छइ, पडिच्छतं वा साइज्जइ ॥सू०॥१६॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्ताणं वसहिं देइ, देंतं वा साइज्जइ ॥०॥२०॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्ताणं वसहिं पडिच्छ', पडिच्छंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥२१॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वसहिं अणुपदिसइ, अणुपविसंतं वा साइज्जइ ॥सू०॥२२॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं सज्झायं देइ, दंतं वा साइज्जइ ॥२०॥२३॥ जे भिक्खू वुग्गहवक्तार्ण सज्झायं पडिच्छाइ, पडिच्छंतं वा साइज्जइ ।।।॥२४॥ सव्वे सुत्ता भाणियव्वा - वुग्गहवक्कंताणं, जे भिक्खू असणमादि देज्जाहि । चउलहुग अट्टहा पुण, णियमा हि इमं अवक्कमणं ॥५५६४।। बुग्गहो कलहो, तं काउं प्रवक्कमति । एकग्गहणा तम्जातीयग्गहणमिति वचनात् अट्टहिं ठाहि गणाग्रो प्रवक्कमणे पाते - अन्भुज्जत ओहाणे, एक्केक्क-दुभेद होज्जऽवक्कमणं । णाणादिकारणं वा, वुग्गहो वा इहं पगतं ॥५५६५।। अन्भुज्जयं दुविधं - अब्भुज्जतमरणेण मन्मुज्जयविहारेण वा। मोहाणं दुविधं - विहारोधावणेण लिंगोधावणेण वा, गाणट्ठा प्रादिग्गहणातो दंसणचरित्तट्ठा य, बुग्गहेण वा । एते उच्चारितसरिस त्ति काउं इह वुग्गहेण पगतं, वुग्गहेण वुक्कता । वुग्गहो ति कलहो ति वा भंडणं ति वा विवादो सि वा एगटुं ।।५५६५॥ के पुण ते वुग्गहवक्कंता ?, इमे सत्त - बहुरयपदेस अव्वत्त समुच्छा दुग तिग अब द्धिया चेव । सत्तेते णिण्हगा खलु, बुग्गहो होंत वक्ता ॥५५६६।। जेट्ठा सुदंसण जमालिऽणोज्ज सावन्थि-तिंदुगुज्जाणे । पंचसया य सहस्सं, ढंकेण जमालि मोत्तूणं ।।५५६७।। रायगिहे गुणसिलए, वसु चोद्दसपुब्धि तीसगुत्तायो । आमलकप्पा णगरी, मित्तसिरी कूर पिउडाई ।।५५६८।। सेयविपोलासाढे, जोगे तदिवसहिययसूले य । सोधम्म-णलिणिगुम्मे, रायगिहे मुरियवलभद्दे ।।५५६६।। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२४ मिहिलाए लच्छिघरे, महगिरि कोडिण्ण आसमित्ते य । नेउणियणुप्पवाए, रायगिहे खंडरक्खा य ॥५६००। नदिखेडजणवउल्लुग, महगिरि धणगुत्त अज्जगंगे य । किरिया दो रायगिहे, महातवो तीरमणिणाए ॥५६०१॥ पुरिमंतरंजि भूयगिह, बलसिरि सिरिगुत्त रोहगत्ते य । परिवायपोट्टसाले घोसणपडिसेहणा वादे ॥५६०२।। विच्छ य सप्पे मूसग, मिगी वराही य काग पोयाई । एयाहिं विज्जाहिं, सो य परिव्वायगो कुसलो ॥५६०३।। मोरी नउली बिराली, वग्घी सिही य उलुगि अोवाइ । एयाओ विज्जाओ, गिण्ह परियाय महणीश्रो ॥५६०४॥ सिरिगुत्तेणं छलुगो छम्मास विकड्डिऊण वाए जित्रो । आहरण कुत्तिश्रावण, चोयालसएण पुच्छाणं ।।५६०५।। वाए पराजिओ सो, निव्विसओ कारिओ नरिंदेण । घोसावियं च नयर, जयइ जिणो बद्धमाणो त्ति ॥५६०६॥ दसउर-नगरुच्छुघरे, अज्जरक्खिय पूसमित्ततियगं च । गोट्ठा माहिल नवमट्टमेसु, पुच्छाय विझम्म ५६०७।। पुट्ठो जहा अबद्धो, कंचुडणं कंचुओ समन्नेछ । एवं पुट्ठमबद्ध, जीवं कम्मं समन्नेइ ।।५६०८॥ रहवीरपुरं नगरं, दीवगमुज्जाणमज्जकण्हे य । सिवभूइस्सुवहिम्मि, पुच्छा थेराण कहणा य ।।५६०६।। उहाए पण्णत्तं, बोडिय-सिवभूइ उत्तराहि इमं । मिच्छादसणमिणमो, रहवीरपुरे समुप्पण्णं ॥५६१०॥ चाद्दस वासाणि तया, जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स । तो बहुरयाण विट्ठी, सावत्थीए समुप्पन्ना ॥५६११॥ सोलम वासाणि तया, जिणेण उप्पाडियस्म नाणम्स । जिवपएसियदिट्टी, नो उमभपूरे समुप्पण्णा ॥५६१२।। चोद्दा दो वासमया, तइया मिद्धिं गयस्म वीरम्स । तो अव्वत्तय दिट्ठी, सेविआए समुप्पण्णा ॥५६१३।। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उद्देशकः वीसा दो वाससया, तइया सिद्धिं भयस्स वीरस्स । सामुच्छेयदिट्ठी, मिहिलपुरीए समुप्पन्ना || ५६१४॥ अट्ठावीसा दो वाससया, तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स । दो किरियाणं दिट्ठी, उल्लुगतीरे समुप्पण्णा ॥। ५६१५ ।। पंचसया चोयाला, तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स । पुरिमंतर जियाए, तेरासियदिट्ठि उपपन्ना || ५६१६ | छब्बाससयाई नवुत्तराई, तइत्र सिद्धिं गयस्स वीरस्स । तो बोडियाण दिट्ठी, रहवीरपुरे समुप्पण्णा ||५६१७॥ चोदस सोलस वासा, चोदावीसुत्तरा य दोनि सया । अट्ठावीसा यदुवे, पंचेव सया य चोत्राला ॥ ५६१८ || पंचसया चुलसीया, तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स । तो बयादिट्ठी, दसउरणयरे समुप्पन्ना || ५६१६ ।। बोडियसिवभूइओ, बोडियलिंगस्स होइ उप्पत्ती | कोडिन को वीरा, परंपरा फासमुप्पन्ना || ५६२० || पंचसया चुलसीओ, छच्चेव सया नवुत्तरा हुंति । नाणुष्पत्तीए दुवे, उप्पन्ना निव्वुए सेसा || ५६२१ || सावत्थी उसभपुर, सेम्बिया मिहिल उल्लुगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुर रहवीरपुरं च नयराई || ५६२२ ॥ सत्तेया दिडीओ, जाइ - जरा - मरण - गव्भ-वसहीणं । मूलं संसारस्स उ, हवंति निग्गंथरूवेणं || ५६२३|| मोत्तृण एत्थ एक्कं, सेसाणं जावजीविया दिडी | एक्केक्स्स य एत्तो, दो दो दोसा मुणेयव्वा ।। '५६२४|| बहरयादी जाव बोडिया एएसि तु परूवण, पुव्विं जा वन्निया उ विहिसुत्ते । सच्चे णिरवसेसा, इहमुद्दे सम्मि नायव्वा || ५६२५ ।। भाष्यगाथा ५६००- ५६२६ ] एनेमि परूवणा कायव्वा "विधिमुत्ते" त्ति जहा श्रावस्सगे सामाइय- णिज्जुत्सीए ॥ ५६२५|| एतेसिंमणादी, वत्थादवसहि-वायणादीणि । जे देज्ज पडिच्छेज्ज व सो पावति यणमादीणि ।। ५६२६ || १–“५६०३”–‘'५६२४" परिमिताः सर्वाः खलु गाथा: पूनासत्क मूल भाष्य प्रतो मात्र प्रथमपदोल्लेखरूपेव संकेतिता प्रासन् श्रतोऽस्माभिरावश्यक सामायिक नियुक्तितः पूर्णीकृताः । १०३ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-बूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-२४ तेसि असणादि देते पच्छितं सम्बपदेसु चउलहूं, प्रत्ये बउगुरू, प्राणादिया य दोसा, प्रणवत्थपसंगा मण्णो वि दाहिति, सड्डाण वि मिश्चत्तं जणेति ॥५६२६॥ दाणग्गहणे संवासाप्रो य वायण पडिच्छणादी य । सरिसं पभासमाणा, जुत्ति सुवण्णेण ववहरंति ॥५६२७॥ "दाणे" त्ति अस्य व्याख्या - गव्वेण ते उद्दिण्णा, अण्णे वा देंते द? भासंति । नूणं एते पहाणा, विसादि संसग्गिए गच्छे ॥५६२८।। प्रम्हं एते प्रसणादि देंति गव्वं करेज्ज, तेण गब्वेण उविण्णण पलावा भवेज्ज । अण्णो वा दिज्जतं दलै भणेज्ज - "Yणं एते चेव पहाणा" । तेसि वा कि चि महाभावेण गेलणं होज्ज, ते ..णे :ज - "एतेहि कि पि विसादि दिणं", एत्थ गेण्हण-कडगादिया दोसा । एवं दाणसंसग्गीए प्रगोयसेहादिया चोदित। तेसु चेव वएज्जा ॥५६२८॥ "गहणे त्ति अस्य व्याख्या - तेसिं पडिच्छणे आणा, उग्गममविसुद्ध आभियोगं वा । पडिणीयया व देज्जा, बहुआगमियस्स विसमादी ।।५६२६।। तेसि हत्थातो भत्तादि पडिच्छतस्स तित्थकराणातिककमो, उग्गमादि प्रमुद्धं परिभु ननि, वसीकरणं वा देज्ज 'प्रम्हं एते पडिवक्खो" त्ति पडिणीवत्तणे । अहवा - एस बहु प्रागमिउ ति विसादि देन । एगवसहिसंवासेण सेहा गिद्धम्मा सोदंति, तेसि वा चरियं गेहति । सुय-वायग पडिच्छ गादिसु वि संस गमादिदोसा । जुत्तिसुवणदिटुंतेण वा सरिसं चरणकरणं कहेंतो सेहादी हरति । जम्हा एवमादि दोसा तम्हा जो कि वि तेसि देजा, पडिम्छेन वा, ण वा संवसेजा । एवं संकरण पुस्खभणिया दोमा परिहरिया भवति । ॥५६२६॥ भवे कारण असिवे प्रोमोयरिए रायदुढे भए व गेलण्णे । अद्धाण रोहए वा, प्रयाणमाणे वि वितियपदं ॥५६३०।। असिवादिकारणेहि तेसि दिज्जति डिच्छति वा ।।५६३०।। इमं गेलण्णे - गेलण्यं मे कीरति, न कीरती एव तुम्भ भणियम्मि । एस गिलाणो एत्थं, गवेसणा णिण्हो मो य ॥५६३१॥ १ गा० ५६२७ । २ गा० ५६२७ । ३ गा० ५६२७ । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग्यमाथा ५६२७-५६३५ ] - गत्य गा साधू गच्छंता भणिता - "तुब्भं गिलाणस्स कि वैयावच्चं कोरइ, न कीरइ वा " । साधु भणति "कि वा ते" । गिट्टी भणइ "एस गिलाणो तुम्भसं तिम्रो ।" एत्थ गमे साहुणा पविसिउं गविट्ठो जाव णिण्हतो सो ।। ५६३१ ।। जणपुरतो फासुएणं, अफासुग्रमग्गणे असमणो उ । पण्णवणपडिक्कामण, अविसेसित णिण्हए वा वि || ५६३२ || जणसमक्खं उग्गमुप्पादणे सणासुद्धच्छेण करेंति, जाहे सुद्धं ण लभति सोय श्रसुद्धं मग्गति ताहे लोगस्स पुरश्रो उस्सां पण्णवेति भणति य - " एस समणो" । षोडश उद्देशकः तंपि भगति - " जति तुमं हिदिट्ठी पडिवकर्मात पासत्यादितो वा तो ते सव्वहा करेमो ।" तहाय पण्णवेंति जहा सो तट्ठाणाओ पडिक्कमति । ग्रहवा जत्थ साधूणं णिण्हगाण य विसेसो पण जर किंचि ।।५६३२।। दुक्खं खु निरणुकंपा, लोए अदेंते य होति उड्डाहो । सारूवम्म यदिस्सति दिज्जति तेणेवमादीसु || ५६३३ || 1 " जइ विसो ओसण्णो निण्हो वा तहावि प्रकज्जते णिरणुकंपया भवति सा य दुक्खं कज्जइ, लोगो य तत्थ उड्डाह करेति - "जइ वि पव्वजाए एरिसं अणाहतणं ण परोपरं कतोयकारियाम्रो भलं पव्वज्जाए," सारूपं सरिसं लिंगं दीसति, एवनादि कारणेहि करेंतो सुद्धो ॥५६३३॥ जे भिक्खू विहं अगाहगमणिज्जं सति लाढे विहाराए संथरमाणेसु जणत्रएसु विहारपडियाए अभिसंधारे, अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ||०||२५|| "जे" ति •णिसे, भिक्खु पुत्रवण्णितो । विहं ण म अद्धाणं, अणेगेहि महेहि जं गम्मति तं प्रणेगागमणिज्जं श्रहो णाम दिवसो । ग्रहवा गेहूं महेहि गमणिज्ज भणेगाहगमणिज्जं । अकारणेण गमणं पडिसिद्धं । इमो णिज्जुत्ति- वित्थरो - - किं कारणं गमनं पडिसेहेति ?, जम्हा एत्थ गम्ममाणं श्रणेगा संजमाताए दोसा पसज्जति । जम्मि सिए गुणा तवणियमसं जमसज्झायमादिया तं विसय, "लाढे" ति सहू, बम्हा उग्गमुप्पादणे सणासुद्वेण श्राहारोवधिणा संजमभारवहणट्टयाए अप्पणो सरीरंगं लाढेतीति लाढो, विहारायेति । दप्पेण देसदंसणाए विहरति । "संथरमाणसु जणवएसु" ति प्राहारोव हिवसहिमा दिएहिं सुलभेहि जमवए, तं जणवयं विहाय पव्वज्जए तस्म पब्वज्जतो सुद्ध सुद्धेण वि गच्छमाणस्स चउलहुं । एस सुत्तत्थो । गयत्था । विहं णाम प्रद्धा । विहमद्भाणं भणितं णेगा य अहा अणेगदिवसा तु । सति पुण विज्जंतम्मी, लाडे पुण साहुणो अक्खा || ५६३४|| १०५ • श्रद्धाणं पिय दुविहं, पंथो मग्गो थ होइ नायव्वो । पंथfम्म णत्थि किंची, मग्ग सगामी तु गुरु आणा ॥५६३५|| Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र ( मूग-२५ तं दुविध-पंथो मग्गो य । पुणो पंथो दुविहो - छिण्णो अछिणो य । छिण्णे णत्थि किचि, सुष्णं सव्वं । पच्छिण्णे पल्लिवइता वा प्रत्थि । गामाणुगामि मग्गो। पंथे चउगुरुगा, मग्गे च उलहुं प्राणादिया य दोसा ।।५६३५॥ तं पुण गमेज्ज दिवा, रत्तिं वा पंथ गमणमग्गे वा। रत्तिं आदेसदुगं, दोसु वि गुरुगा य आणादी ।।५६३६।। तं पं मग्गं वा दिवसो वा राम्रो गच्छति । राइसद्दे प्रादेसदुगं - संझाराती, संझावगमो वा राती। कहं ?, उच्यते - संझा जेग रापति सोभति दिप्पति तेण संझराती । संझावगमो वियालो । ग्रहवा - संझावगमो राती । कहं ?, उच्यते - जम्हा संझावगमे चोर-पारद्दारिया रमंति तेण सझावगमो राती । संझाए जम्हा एते विरमंति तेण संझा विकालो। पथं मग वा जइ रातीए विगाले वा गच्छइ तो वउगुरुगा ।।५६३६॥ तत्थ मग्गे ताव इमे दोसा - मिच्छत्ते उड्डाहो, विराहणं होति संजमाताए । इरियाति संजमम्मी, छक्काय अचक्खुविसयम्मी ॥५६३७॥ "मिच्छत्ते उड्डाहो" दोण्हं विभासा - किं मण्णे णिसिगमणं, जाती ण सोहेति वा कहं इरियं । जतिवसेण व तेणा, अडंति गहणादि उड्डाहो ॥५६३८॥ इहलोयचत्तकज्जाणं परलोयकज्जुज्जताणं किं रातो गमणं ? किं मणे दुट्टचित्ता एते होज्जा? कहं वा इरियं मोहंति, इरिउव उता वा जति ?, जहा एवं प्रसच्चं तहा प्रणं पि मिच्छतं जणेज्जा, जइवेमेण वा तेण त्ति काउं रातो अडंता गहिया कड्डणववहारादिसु पदेसु उड्डाहो ॥६५३६॥ १.विराहण संजमाताए" एसा विभासा - संजमविराहणाए, महव्वया तत्थ पढमे छक्काया । वितिए अतेण तेणे, तइए अदिन्नं तु कंदादी ॥५६३६।। संजमविराघणा दुविधा - मूलगुणे उत्तरगुणे य । मूलगुणे पंचमहन्वया, पढमे य महब्बए छक्कायविराहणं करेनि, बिनिए महब्बए प्रतेणं तेणमिति भासेज्जा, ततिए महत्वए कंदादि अदिण्णा गेण्हेज ॥५६६।। अहवा - दियदिन्ने वि सचित्ते, जिणतेण्णं किमुत सव्वरीविसए । जेसिं च ते सरीरा, अविदिण्णा तेहि जीवेहिं ॥५६४०॥ सचित्तं जिणेहिं णाणुण्णायं तेण दिवसतो वि तेष्णं, रात्री रातो वा प्रदिणं, अहवा - जेसि ते कंदादिया मरोरा जीवाणं तेहिं वा प्रदिण्णं ति तेणं ।।५६४०।। १ गा० ५६३७१ - Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६३६-५६४६ । षोडश उद्देशकः पंचमे अणेसणादी, छठे कप्पो व पदम वितिया वा । भग्गवो ति मि जाओ, अपरिणो मेहुणं पि वए ॥५६४१॥ पंचमे त्ति वते प्रणेसणिज्जं गेहंतस्स परिग्गहो भवति, छठे त्ति रातीभोयणे प्रद्धाणं कप्पं भुजंतस्स रातीभोयणभंगो भवति । पढमो प्ति-खुहापरीसहो बितिग्रो पिवासापरीसहो तेहिं प्रातुरो राति भुजेज्ज वा पिएज्ज वा, एगवतभंगे सव्ववयभगो ति काउं मेधुणं पि सेवेज्जा । अहवा - अपरिणतो प्रबुद्धधम्मत्तणमो दिया रातो सत्थे वञ्चमाणे का इयानिमित्तं उसक्को, अगारी ति काइ उसक्का, अप्पसागारिए तं पडिसेवेज्ज ॥५६४१॥ रिया इति अस्य व्याख्या - रीयादसोधि रत्ति, भासाए उच्चसद्दवाहरणं । ण य आदाणुस्सग्गे, सोहए काया व ठाणादि ॥५६४२॥ रामो इरियासमिई न सोहेइ । भासासमिइए वि असमियो पथाइविप्पणढे उच्चसद्देण वाहरेजा। रामणाममिति ण संभवति, रातो दिवसतो वा प्रद्धाण पढमबितियपरीसहाउरो एसणं पेलेज्जा । आदाणणिखेवममितीए ठाणणिसीदणाणि वा करेंतो रातो ण सोहेति । काइयाहिररिट्ठवणं पि करेंतो थंडिल्लं पि ण सोहेति ॥५६४२॥ एसा सव्वा संजमविराहणा। इमा प्रायविराहणा - वाले तेणे तह सावए य विसमे य खाण कंटे य । अकम्हा भय प्रातसमुत्थं रत्तिं मग्गे भवे दोसा ॥५६४३।। सम्पादी वाला तेसु डसिज्जति, उवकरणसरीरतेणा ते उवकरणं संजतं वा हरेज्जा, सीहादिसावरण खज्जति, विसमे पडियस्स अण्णतरगा य विराहणा हवेज्जा, खाणकंटए वा वि सप्पो हवेजा, अकस्माद् भयं अहेतुकं भवति, राम्रो मग्गे वि एते दोसा, किमुत पंथे ॥५६४३॥ इमं बितियपदं - कप्पति तु गिलाणट्ठा, रतिं मग्गो तहेव संझाए । पंथो य पुव्वदिट्ठो, प्रारक्खिनो पुश्वभणितो य ॥५६४४॥ प्रारक्खिगो त्ति दंडवासिगो, पुवामेवं भण्णति अम्हे गिलाणादिकारणेण रातो गमिस्सामो, म। किचि छल काहिसि । प्रगुणाते गच्छति, सेसं कंठं ॥५:४४।। मग्ग त्ति गतं । इदाणि पंथो भण्णति - दुविहो य होइ पंथो, छिण्णद्धाणंतरं अछिण्णं च । छिण्णे ण होइ किंची, अछिण्णे पल्लीहि वइगाहिं ।।५६४५।। इमो विधी - छिण्णण अछिण्णण व, रत्तिं गुरुगा तु दिवसतो लहुगा। उद्दद्दरे पवज्जण, सुद्धपदे सेवती जं च ॥५६४६।। १ गा० ५५६८।२ गा० ५६३५ । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-२५ उद्दद्दरे जइ प्रद्धाणं पन्नजति तस्य सुलंसुद्धेण वि गच्छमाणस्स एवं पच्छित्तं, जं च प्रकप्पादि कि चि संवति तं सव्वं पावति ॥५६४६।। इमा प्रायविराहणा - वात खलु वात कंटग, बावडणं विसम-खाण-कंटेसु । वाले सावय तेणे, एमाइ होति आयाए ॥५६४७॥ खलुगा जाणुगादिसंधाणा वातेण घेप्पति, चम्मकंटगो वातकंटगो प्रहवा गृद्धिसो हड्डागृद्धिसी वा कायकंटगो वा । सेसं कंठ्य ॥५६४७॥ एसा प्रायविराहणा। इमा सजमविराहणा छक्कायाण विराहण, उवगरणं बालवुड्सेहा य । पढमेण व बितिएण व, सावय तेणे य मेच्छे य ॥५६४८|| प्रथंडिलेसु पुढविमादिछण्हं कायाणं संघट्टणादिविराहणं करेति, बालवुड्डसेहा पढमबितियपरीसहेटिं परिताविज्जति, साधू उज्झिउं सावो सावएण वा खज्जेज्जा । तेणगेहि मेच्छेहि वा उवकरणं खुड्डुगादि वा होरेज्जा ॥५६४८॥ २उवकरण त्ति एयस्स इमं वक्खाणं - उवगरण-गेण्हणे भार-वेदणे तेणगम्म अधिकरणं । रीयादि अणुवोगो, गोम्मिय भरवाह उड्डाहो ॥५६४६॥ नंदिपडिग्गह-श्रद्धाणकप दुलिंगमादिपंथोवकरणं च जइ गिव्हंति तो भारेण वेयणा भवति, विहडप्फडा य तेणगगम्मा भवति, तेणेहि वा उवकरणे गहिए अधिकरणं, मारवकता य इरियोवउत्ता ण भति, बहूवकरणा वा गोमिएहि घेप्पंति, गोमिया य चितेंति उल्लावेति य - "अहो ! बहुलोभा भारवहा य" एवं उड्डाहो भवे । अहवा - एतद्दोसभया उवकरणं उज्झंति तो जं तेण उवकरणेण विणा विराहणं पावेंति तमावज्जंति ॥५६४६॥ इमं पंथोवकरणं - चम्मकरग सत्थादी, दुलिंगकप्पे य चिलिमिलिग्गहणे । तस विपरिणमुड्डाहो, कंदादिवहो य कुच्छा य ॥५६५०॥ जइ चम्मकरगो ण घेप्पति सत्य कोसगं वा, "दुल्लिंग' वा गिहत्यलिंगोवकरणं प्रासंडियलिगोवकरणं वा, "कप्प" ति-प्रद्धाणकप्पं, चिलिमिणि ति, एतेसि अग्गहणे इमे दोसा जहासंखं पच्छद्ध भणिया । चम्मकरग अग्गहणे तसविराहणा, पिप्पलगुलिया गोरस-पोत्तगादि अग्गहणे संहमादियाण विप्परिणामो भवति, पिप्पलगादिसेत्थेण पुण पलंबे विकरणे काउं प्राणिज्जति, दुल्लिंगेण विणा रातो गेण्हताण पिसियादि वा उड्डाहो भवति । प्रद्धाणकप्पेण विणा कंदादियाण छण्ह वा कायाण विराणा भवति, चिलिमिलियं विणा मंडलीए भुजंताणं जणो दुगंछति ॥५६:५०॥ पंथजोग्गोवकरण अग्गहणे अजयकरणे य इमे दोसा - अपरिणामगमरणं, अतिपरिणामा य होंति णित्थक्का । णिग्गत गहणे चोदित, भणंति तइया कहं कप्पे॥५६५१॥ १ कट्यधोमागवर्ती संधिवायुः । २ गा० १६४८ । ३ व्याकुला, इत्यर्थः । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६४७-५६५६ ] षोडश उद्देशकः १०६ "अकप्पियं" ति णाउं अपरिणामगो ण गेण्हति, प्रमेहणे मरति । प्रद्धाणे अकपियगहणं दटुं प्रतिपरिणामा — णित्यक्का" णिल्लज्जा भवंति, प्रद्धाणातो णिग्गया प्रकप्पं गेण्हता चोदिता - "मा गेण्हह त्ति, ण वट्टति" ते पडिभणंति - "ततिया श्रद्धाणे कहं कप्पे' ।।३६५१।। काउडीए विणा इमे दोसा - तेणभयोदककज्जे, रत्ति सिग्धगति दूरगमणे य । वहणावहणे दोसा, बालादी सल्लविद्धे य ।।५६५२।। तेग भया रातो सिग्धं गंतवं, उदगणिमित्तं जहा माविसए रातो सिग्धं दूरं च गंतव्वं । तत्थ कावोडीए बालवुड्डा असहू सल्लविद्धा उवकरणं च वोढव्वं, अह ण वहंति तो एते परिचत्ता भवति । उवकरणं पि छड्ड यव्वं । अहवा - "तेण" ति-तेणभए डंडचिलिमिली घेप्पति । अकप्पणिज्जकज्जे परतित्थियउवकरणं । उदगकज्जे चम्मकरगो, उदगकज्जे चेव गुलिगगहणं, उदगगहणद्वया दतिग्गहणं । रातो सिग्घगतिगमणे तलियग्गहणं । दूर गतुं सत्यो ठाइस्सति तत्थ बालादिसल्लविद्धवहणट्ठा कावोडी । सल्लुद्धरणादिणिमित्तं सत्यकोसो घेपाइ । एवमादिउवकरणं वहतो भारमादिया दोसा, अवहंतस्स प्रायसंजमविराधणादिया दोसा, तम्हा शिकारणे अद्धाण णो पवज्जेज्ज ॥५६५२॥ कारणे पवज्जति तत्थ इमो कमो - बितियपदं गम्ममाणे, मग्गे असतीए पंथजयणाए । पडिपुच्छिऊण गमणं, अछिण्णपल्लीहि वतियाहिं ॥५६५३॥ पढमं मग्गेण गंतव्यं । प्रसति मग्गस जणवयं पुच्छिउण पछिण्णपंथेग पल्लिवतिगादीहिं गंतवं, ततो छिष्णेण ।।५६५३॥ इमेहि कारणेहिं पंथेण गम्मति - असिवे ओमोयरिए, रायदुट्टे भए व आगाढे । गेलण्ण उत्तिमढे, णाणे तह दंसण चरित्ते ॥५६५४॥ अण्णतरे वा प्रागाढे, जहा - सुधम्मसामिगणहरस्स मासकप्पे असंपुण्णे रायगिहे णगरे तणकटुधारगो दमगो पन्वइतो।त भिक्खं हिंडतं लोगो भणति-"तणकट्ठहारगो" त्ति । तस्स असहणं, सुधम्मस्स अभयाऽऽपुच्छणं । अभयस्स पुच्छा, कहणं "सेहस्स सागारियं" ति, तिकोडिपरिच्चागो विभासा - एएहि कारणेहिं, आगाढहिं तु गम्ममाणेहिं । उवगरण पुचपडिलेहिएण सत्थेण गंतव्वं ॥५६५५॥ पंथजोग्गोवकरणपडिलेहा गहणं, अह पुव्वं सत्थं पडिलेहेउं सुद्धे ण तेण सह गमणं ।।५६५५।। असिवे अगम्ममाणे, गुरुगा दुविहा विराहणा नियमा ।। तम्हा खलु गंतव्वं, विहिणा जो वणिो हेट्ठा ॥५६५६।। दुविहा विराहणा- माय-संजमेसु । अहवा - अप्पयो परस्स य । हेट्ठा पोहणिज्जुत्तीए जो गमो भाणतो, सेसा वि प्रोमोदरियादमो जहेव प्रोहणिज्जुत्तीए तहा माणियव्वा ॥५६५६।। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे । सूत्र-२५ उवगरण पुन्वभणितं, अप्पडिलेहेंते चउगुरू आणा । ओमाण पंथ सत्थिय, अतियत्ति अप्पपत्थयणे ॥५६५७।। उवकरणं चम्मकरगादी, जं वा बवख माणं त अगेहमाणस्स सत्थ वाऽपडिलेहतस्स चउगुरुगा। अपडिलेहीए दोसा भवंति - प्रोमाण पेल्लिो व होज्जा, सत्थवाहो प्रतियत्ती पासत्थो वा पंतो होज्ज, सत्यो वा अप्पपत्थयणो अप्पसबलो होज्ज, अण्णे वा पथिया तत्व पता होज्ज । तम्हा एयद्दोसपरिहणत्थं पडिलेहियन्यो सत्थो ।।५६५७॥ सो केरिसो सत्थपडिलेहगो रागदोसविमुक्को, सत्थं पडिलह सो उ पंचविहो । भंडी वहिलग भरवह, अोदरिय कप्पडिय सत्थो ५६५८॥ मो सत्यो पंचविहो - भंडि ति गंडी, बहिलगा उट्ट बलिदादी, भारवहा पोलिया वाहगा, उदरिया णाम जहिं गता तहि चेव रूवगादी छोढं समुद्दिसति पच्छा गम्मति, ग्रहवा- गहियसंबला उदरिया, कप्पडिया मिक्खायरा ॥५६५८।। रागदोमिए इमे दोसा - गंतव्वदेसरागी, अपत्थ सत्थं करेति जे दोसा । • इयरो सत्थमसत्थं, करेति अच्छंति जे दोसा ॥५५५६।। जस्स गंतब्दे गगो मो जति सत्यपडिलेहगो मो असत्थं पि सत्थं करेजा, तेण कुसत्थेण गच्छताण थे दोमा तमावज्जति । "इयरे" ति जो गंतवो दोसी मो मुझमाणपत्थं पि असत्यं करेति, तत्प प्रसिवादिसु प्रच्छताण जे दोसा ते पावति ॥५६५६।। उप्परिवाडी गुरुगा, तिसु कंजिमादि संभवो होज्जा । परिवहणं दोसु भवे, बालादी सन्ल-गेलण्णे ॥५६६०॥ भंडीसु विज्जमाणामु जइ बहिलगेसु गच्छति तो चउगुरुगा, एवं सेमेसु वि । प्रादिल्लेसु तिमु कंजियमादिपाणगसंभवो होज्ज, दोसु मंडिबहिल गेमु परिवहणं होज्ज । केसि परिवहणं ?, उच्यते - बालादोण, प्रादिसह गहणणं वुड्डाणं दुबलाणं स्वयंकियाण य सल्लविद्धाण गिलाणाप य ॥५६६०॥ सत्यं पडिलेइंति तम्हा सत्थो पडिलहियव्वो। सत्थे इमं पडिलेहियव्वं - सत्थं च सत्थवाह, मत्थविहाणं च आदियत्तं च । दव्वं खेत्तं कालं, भावोमाणं च पडिलेहे ।।५६६१।। पुग्वद्धस्स इमा वक्खा - मत्थे त्ति पंचभेदा, सत्थाहा अट्ट आतियत्तीया । सत्थस्स विहाणं पुण, गणिमाति चउविहेक्केक्कं ॥५६६२।। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६५७-५६६६ ] षोडश उद्देशक: सत्यस्स पंच भेदा - मंडीमादि। सत्थवाहो प्रविहो । माइयत्तिया ति प्रदविहा उतरि भणिहिति । सत्यविहाणं पूण गणिमादि चउन्विधं, गणिमं पूगफलादि, परिमं जं तुलाए दिज्जति खंडसकरादि, मेज्नं ततंदुलादि, पारिच्छ रयणमोतियादि । “एक्केके" ति वहिलगेसु वि एवं चउविहं । भारवहेसु वि एवं पउम्विहं । उदरियकपडिएसु तं भंडं चउम्विहं भाणियव्वं ।।५६६२॥ दव्वादि चउक्कं च पडिलेहेज्ज, तत्थ दब्वे - अणुरंगादी जाणे, गुंठादी वाहणे अणुण्णवणे । धम्मो त्ति व भत्ती य व, बालादि अणिच्छे पडिकुटुं ।।५६६३।। प्रणरंगा णाम घसियो । जाणा सगडिगातो वा वाहणा । गुंठादी- गंठो घोडगो, प्रादिसद्दातो मस्सो उट्टो हत्यी वा । ते अणुण्ण विज्जति - जइ अम्हं कोइ बालो प्रादिसद्दामो वुड्ढो दुबलो गिलाणो वा गंतुंग सक्केज्जा सो तुन्भेहिं चडावेयब्यो, जइ प्रणुजागति धम्मेण तो तेहिं समं सुदं गमणं । मह मुल्लेण विषा गेच्छंति तो तं कि अन्भुवगच्छिज्जति । अह मुल्लेण वि णेच्छति तो तेहिं समं पडिकुटुं गमणं, ग तेहिं समं गम्मति ।।५६६३॥ किं च इमेरिसभंडभरितो इच्छिज्जति सत्थो दंतिक्क-गोर-तेल्ले, गुल-सप्पिएमातिभंडभरितासु । अंतरवापातम्मि उ, देंतेतिधरा उ किं देउ ॥५६६४॥ मोदग-साग-वट्टिमादी दंतखज्जयं बहुविहं दंतिक्कं ! अहवा -- तंदुला दंतिक्का, सव्वं वा दंतसज्जयं दंतिक्कं । गोर त्ति गोधूमा । सहा तेल्सगुलसप्पिणाणाविधाण य पण्णाण भंडीमो जइ मरियातो तो सो दबतो सुद्धो। किं कारणं ?, अंतरा वाघाए उप्पण्णे तं प्रप्पणा खंति प्रम्हाणं वि देति । "इहरह" त्ति बाइ कुंकुम-करपूरिय - तगर पत्तचोय-हिंगु-संखलोयमादी प्रखज्जदव्वभरिए पतरा वाघाते संबले णिट्ठिए कि दितु, तम्हा एरिसमरिण ण गंतव्वं ।।५६६४॥ अंतरा वाघातो इमो वासेण णदीपूरेण वा वि तेणभय हस्थि रोहे वा । खोभो जत्थ व गम्मति, असिवं एमादि वाधातो ॥५६६।। अंतरा गाढं वासमारलं, चउमासवाहिणी का महानदी पूरेण प्रागता, प्रगतो वा चोरभयं, दुदुहत्थिणा वा पंथो रुद्धो, जत्थ वा सत्यो गंतुकामो तत्थ रोहगो, रबखोभो वा तत्थ, प्रसिवं वा तत्व, एवमादिकज्नेसु अंतरा सण्णिवेसं काउं सत्यो पच्छ ते ॥५६६५ । एवं दव्वतो पडिलेहा । इमा 'खेत्त-काल-भावेसु - खेत्तं जं बालादी, अपरिस्संता वर्तति श्रद्धाणं । काले जो पुव्वण्हे, भावे सपक्ख-परपक्खणादिण्णो ॥५६६६।। १ गा०१६६१। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे । सूत्र-२५ जत्तियं खेत्तं बालवुड्डादिगच्छो पारिश्रांतो गच्छति तत्तियं जति सत्यो जाति तो खेतमो सुद्धो। कालो जो उदयवेलाए पत्थिते पुचण्हे ठानि सो कालतो सुद्धो । भावे जो सपक्ख-परपक्वभिक्खायरेहि प्राणाइण्णो सो भावमो सुद्धो॥५६६६॥ एक्केको सो दुविहो, सुद्धो ओमाणपेल्लितो चेव । मिच्छत्तपरिग्गहितो, गमणाऽऽदिवणे य ठाणे य ॥५६६७॥ "एकोक्को" ति भंडिबहिलगादिसत्थो दुविहो- सुद्धो असुद्धो य । सुद्धो अणोमाणो, प्रोमाणपेल्लियो असुद्धो । सत्यवाहो प्रातियती वा जे वा तत्व अधप्पहाणा एते मिच्छद्दिट्ठी। एतेहिं सो सत्यो परिग्गहितो होज्ज ॥५६६७॥ प्रोमाणपेल्लियो इमेहिं होज्ज - समणा समणि सपक्खो, परपक्खो लिंगिणो गिहत्था य । आता संजमदोसा, असती य मपक्खवज्जेणं ॥५६६८॥ पुबद्धं कंठं । बहूसु सपक्ख-परपक्खभिक्खायरेमु प्रप्फव्वंताणं प्रायवि राहणा, कदादिग्गहणे वा संजमविराहणा। प्रणोमाणस्स असतीते सपक्खामाणं वजिता परपक्खोमाणेण गंतवं, तत्थ जणो भिक्खग्गहणे विसेसं जाणति ॥२६६८।। "'गमणे" त्ति अस्य व्याख्या -- गमणे जो जुत्तगती, वइगापल्लीहि वा अछिण्णेणं । थंडिल्लं तत्थ भवे, भिक्खग्गहणे य वसही य ।।५६६६॥ जुत्तगती णाम मिदुगती - न शीघ्र गच्छतीत्यर्थः । अछिण्णपहे। वइयपल्लीमादीहि वा गच्छति, तत्य पंडिल्लं भवति, वइयपल्लीहिं य भिक्ख सभइ, वसही य लम्भति ॥५६६६।। २यादियणे" त्ति अस्य व्याख्या - आतियणे मोत्तणं, ण चलति अकरण्हे तेण गंतव्वं । तेण परं भयणा उ, ठाणे थंडिल्लठायीसु ।।५६७०॥ ग्रातियणे ति जो मुंजणवेलाए ठाति, भोत्तूण य अवरोहे जो ण चलति तेण गंतब्य । तेणं पर भयणे त्ति भयणा णाम जइ प्रवरण्हे भोत्तुं चलए तत्थ जइ सब्वे समत्था गतु तो सुद्धो, अह ण सक्केंति तो असुद्धो, ण तेण गंतव्वं । ठाणे त्ति जो सत्थो सण्णिवेसडलेमु ठानि सो मुद्धो, अडिले ठाति असुद्धो ।।५६७०।। जं वृत्तं सत्थहा अट्ठ आयियत्ती य अस्य व्याख्या - पुराणसावग सम्मदिहि अहाभद्द दाणसड्ढे य । अणभिग्गहिते मिच्छे, अभिग्गहिते अण्णतित्थी य ।।५६७१॥ पुराणो, गहिताणुष्वतो सावगो, अविरयसम्मद्दिट्टी, अहाभद्दगो, दाणसड्डो, प्रणभिग्गहियमिच्छो अभिग्गहियमिच्छट्ठिी, अण्णतित्थिरो य, एते सत्थाहिवा अट्ठ । प्रातियत्तिया वि एते चेव अट्ठ ।।५६७१।। १ गा० ५६६७ । २ गा० ५६६७ । ३ गा० ५६६२ । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६६७-५६७६ ] षोडश उद्देशकः ११३ प्रद्धाणं पडुच्च भंगदसणत्थं भण्णति - सत्थपणए य सुद्धे, य पेल्लिते कालऽकालगम-भोजी । कालमकालट्ठाई, सत्थाहऽहाऽऽदियती वा ॥५६७२।। सस्थपणग ति पंच सत्था, एयं गुणकारपयं, ते य सत्था सुद्धा । कहं ?, उच्यते - सपक्ख परपक्खतोमाण अपेल्लिय ति, कालप्रकाले गमणं, कालप्रकाले भोयणं, कालप्रकालणिवेसो, ठाइ त्ति थंडिलप्रथंडिलठाई। एते च उरो सपडिपक्वा सोलसभंगकरणपया। अट्ट सत्थवाहा प्रतियत्ति ते दो वि गुणकारपया - एत्थ काले गच्छइ, काले भंजद, काले निवेसइ, थंडिले ठाइ-एए सुद्धपया, पडिखे असुद्धा । मत्थवाहादिया पढमा चउरो नियमा भद्दा, पच्छिमा चउरो भयणिजा भवंति, अइयत्ती वि ॥५६७२।। एमा भद्दबाहुकया गाहा, एईए अत्यनो सोलस भंगा उत्तरभंगा, उत्तरभंगविगप्पा य सव्वे सूतिया। जतो भण्णति - एतेसिं च पयाणं, भयणाए सयाइ एगपण्णं तु । वीसं च गमा जेया, एत्तो य सयग्गलो जतणा ॥५६७३।। सत्थपण गपदं, चउरो य सोलसभंगपदा, अट्ठ सत्थवाहा, प्रादियत्ति अट्ठ पदा य, एतेसिं पदाणं संजोगे भयण ति भंगा, एतेसि एककावणसया भवंति वीस च भंगा । एत्थ सत्थेसु सुद्धासुद्धेसु सत्यवाहाइयत्तसु य भद्दपंतेसु अप्प बहुचिताए सयगेहि जयणा भवति ।।५६७३।। एसेवत्यो 'फुडो कज्जति - कालुट्ठाई कालनिवेसी, ठाणट्ठाई कालभोई य । उग्गयऽणथमियथंडिल भज्झण्ह धरंत सूरे वा ॥५६७४॥ कालुद्वाती उगए प्राइच्चे दिवसतो जो गच्छति, काल नेवेसी जे प्रणामए प्रादिच्चे थक्क्रति, ठाण हाती यडिल्ले थकाइ, कालभोती जो म झण्हे भुजइ, प्रणथमिए वा ।।५६७४।। एतेसिं तु पयाणं, भयणा मोलसविहा तु कायव्वा । सत्थपणएण गुणिता, असीति भंगाउ नायव्वा ॥५६७|| एतेमि च उण्ह पयाणं इमेण विहिगा सोलस भगा कायवा - कालुट्ठाती कालनिवेसी ठाणट्ठाती कालभोनी (१), एवं सपडिपक्खेसु मोलम भगा कायव्वा । एते मोलम भंगा सत्थपणएण गुणिता असीति भंगा भवति ।।५६७५॥ मत्थाहऽढगगुणिता, असीति चत्ताल छस्मया होंति । ते आइयत्तिगणिता, सन एक्कावण्ण वीसऽहिया ॥५६७६।। असीति अहि सत्थाहिवेहि गुगिया छस्सता चत्ताला भवंति । ते प्रवृहि प्रतिप्रतिएहिं गुणिता एककावणं सता वीसा (५१२०) भवति । एत्य प्रायरे सत्थे भंगविगप्पेण वा मुद्दे प्रागत् प्रायरियाण पालोएति मत्यपडिलेहगा ।।५६७६।। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ इदाणि प्रवणा भण्णति -- सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे दोह वि चित्ते गमणं, एगस्सऽचियत्ते होति भयणा उ । अप्पत्ताण णिमित्तं, पत्ते सत्थम्मि परिसा || ५६७७|| जत्थ एगो सत्थवाहो तत्थ तं प्रणुष्णवेंति, जे य ग्रहपधाणा पुरिसा ते वि श्रणुष्णर्वेति जत्थ दो सत्याधिवा तत्थ दोऽवि प्रणुष्णवेंति, दोण्ह वि चियत्ते गमणं । ग्रह एगस्स श्रचियत्तं तो भयणा, जति पेल्लगम्स चित्तं तो गम्मति, ग्रह पेल्लगस्स श्रचियत्तं तो ण गम्मति । पंथिता वा जाव ण मिलति सत्ये ताव सउणादिनिमित्तं गेण्हति सत्थे पुण पत्ता सत्यस्स चेव सउणेण गच्छति । प्रष्णं च सत्यपत्ता तिणि परिसा करेंति - पुरतो मिगपरिसा, मज्झे सीहपरिसा, पिट्ठतो वसभपरिसा ॥ ५६७७।। दोह वित्ति प्रस्य व्याख्या दोह व समागता सत्थिय व जस्स व वसेण गम्मति ऊ । गुणवणे गुरुगा, एमेव य एगतरपंते || ५६७८ || - "दोरह” वि सत्यो सत्थवाहो य एते दो वि समागत् समगं प्रणुन्नवेंति । ग्रहवा सत्यवाह जस्स य वसेण गम्म एते दो वि समागते समगं अन्नवेंति । ग्रहवा- सत्याहिवं चेव एक्कं प्रगुण्णवे । एवं जइ णो प्रणुन्नवेंति तो चउगुरुगा, जति दोणि अहिवा ते दो वि पेल्लगा तत्थ एवक अणुण्णवेति, एत्थ विचगुरुगा । एगतरे वा पंते पेल्लगे जइ गच्छति तत्य एमेव चउगुरुगं ।। ५६७८ ।। जो वा वि पेल्लिओ तं भांति तुह बाहुछायसंगहिया | बच्चामऽणुग्गहोत्तिय, गमणं इहरा गुरू आणा || ५६७६ || सत्याहि वं सत्यं वा जो वा तम्मि सत्यं पेल्लगे तं भगति जति श्रणुजाणह श्रम्हं तो तुम्भेहि समं तुह बाहुच्छायट्टिता समं वच्चामो । ते पंता भद्दगा वा - जइ सो भगेज - 'प्रणुग्गहो" ततो गम्मति । ग्रह तुहिक्को अच्छति भणई वा जइ गच्छति तो चउगुरुगं, प्राणादिया य दोसा ॥ ५६७६ ॥ जति सत्थस्स प्रचियते सत्याहिवस्स वा ग्रन्नस्स वा पेल्लगस्स प्रचियत्ते गम्मति तो इमे दोसा [ सूत्र -२५ - पडिसेहण णिच्छुभणं, उवकरणं बालमाति वा हारे । अतियत्ति गोम्मएहि व, उड्डज्यंते (उदुज्जंते) ण वारेंति || ५६८० || अडविमज्भे गयाणं भत्तपाणं पडिसेहेज, सत्यातो वा गिच्छुभेज्ज, उवकरणं वा बालं वा प्रणे हरावेज, प्रतियत्तिएहि "गोमिय" त्ति.गो ( था ) इल्लया तेहि उदुज्जते न वारेति ॥ ५६८० ॥ भगवणे गमणं, भिक्ख भत्तट्टणाए बसहीए । थंडिल्लासति मत्तग, वसभा य पदम वोसिरणं ॥ ५६८१|| "मा गच्छह. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६७७-५६८६ षोडश उद्देशकः ११५ __ अणुण्णविए भद्दगवयणे गम्मति, इमं भगवयणं - ज तुन्भेहिं संदिसह तं मे सव्वं पडिपावेस्सं सिद्धत्थपुष्पाविव सिरटिना मे पीडं ण करेह । एवं भयंते गंतव्वं ॥५६८१।। पुन्यमणितो व जयणा, भिक्खे भत्तट्ट वसहि थंडिल्ले । सच्चेव य होति इहं, णाणत्तं णवरि कप्पम्मि ॥५६८२॥ पुव्वं भणिता सवट्टसुत्ते थंडिल्लस्स प्रसति मत्तगेसु वोसिरित्तु वहंति जाव थंडिलं, एवं वसभा जयंति । थंडिलमत्तगासति धम्माधम्मागासप्पदेसेसु वोसिरंति । इह कप्पे णाणतं ।।५६८२।। तस्सिमो विही अग्गहणे कप्पस्स उ, गुरुगा दुविहा विराहणा नियमा । पुरिसऽद्धाणं सत्थं, णाऊण ण वा वि गिण्हेज्जा ॥५६८३॥ जति छिणे प्रच्छिणे वा पंथे प्रद्धाणकप्पं ण गेहंति तो चउगुरुगा, भत्तादिप्रलंभे खुहियस्स प्रायविराहणा, खुहत्तो वा कंदादी हेज्ज संजमविराहणा । अहवा-- सव्वे जइ संघयण-धिति-बलिया पुरिसा प्रद्धाणं वा जति एगदेवसियं दो देवसियं वा, सत्थं त्ति - जति सत्थे अत्यि भिक्ख पभूयं घुवलंभो भद्दगो सत्थगो कालभोईय कालट्ठाती य एवमादिणा णातुं छिण्णदाणे विण गेण्हेज्ज ।।५६८३॥ सो पुण अद्धाणकप्पो केरिसो घेत्तव्यो - सक्कर-घय-गुलमीसा, खज्जूर अगंथिमा य तम्मीसा । सत्तुअ पिण्णाश्रो वा, घय-गुलमिस्से खरेणं वा ॥५६८४॥ सक्कराए घएण य, सक्कराभावे गुलेण वा घएण वा, एतेहिं मिस्सिया अगथिमा धेप्पति । अगंथिमा णाम कयलया। अण्णे भणंति - मरहट्टविसए फलाण कयलकप्पमाणाम्रो पेंडीग्रो एक्कम्मि डाले बहुक्किमो भवंति. ताणि फलाणि खंडाखडीण कयाणि घेप्पंति, तेसिं असति खज्जूरा घयगुलमिस्सा घिप्पति, एतेसि असतीए सत्तुमा घयगुलमिस्सा घेप्पंति, अमति घयस्स खरसण्हगुलमिस्सो पिण्णाम्रो घेत्तवो ॥५६८४।। एतेसि इमो गुणो थोवा वि हणंति खुहं, ण य तण्ह करेंति एते खज्जंता। सुक्खोदणोवऽलंभे, समितिम दंतिक्क चुण्णं वा ॥५६८५॥ पुव्वद्ध कंठं । एरिमप्रद्धाण कप्पस्स प्रलंभे "सुक्खोदणो” – सुक्खकूरो, “समितिमं" सुक्खमंडगा, "दंतिक्क" - प्रणेगागारं खजग । अहवा- दंतिक चुणो तंदुललोट्टो दंतिक्कगहणेण तंदुलचुण्णो, चुण्णग्गहगातो खजगचूरी, एम दंनिक्कचुणो खजगचूरी वा धयगुलेग मिस्मिजति, मा संसजहिति । जति सुद्ध लभंति तो प्रद्धाणकप्पं भजति, जनिएण वा ऊणं सुद्ध तत्तियं प्राणकप्पं भुजति, अणुवट्ठावियाण वा दिजति प्रद्धाणकपो॥५६८५।। । इमं च गिण्हति तिविहाऽऽमयभेसज्जे, वणभेसज्जे य सप्पि-महु-पट्टे । मुद्धाऽमति तिपरिरए, जा कम्म गाउमद्धाणं ।।५६८६।। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२५ वात-पित्त-सिंभवसहातो सण्णिवातियाण वा रोगातंकाणं भेसजा मोसहा व्रण-पोसहाणि य गेण्हंति, वणभंगट्ठा य घतमहु, व्रणबंधट्ठा य खीरपट्ट गेण्हंति । सव्वं पेयं सुद्ध मग्गियन्वं, असति सुदस्स तिपरिरयजयणाए पणगपरिहाणीए जाव अहाकम्मं वि गेण्हंति, पमाणतो प्राणकप्पं थोवं बहुं वा प्रद्धाणं गाउं गेण्हंति, गच्छप्रमाणं वा नाउं ॥५६८६।। सभए सरभेदादी, लिंगविवेगं च कातु गीतत्था । खरकम्मिया व होउं, करेंति गुत्तिं उभयवग्गे ।।५६८७|| जत्थ सभयं तत्थ वसमा सरभेयवण्णभेयकारिगुलियाहिं अपणो अण्णारिसं सरवण्णभेदं काउं, अहवारयोहरणादि दवलिंगं मोत्तुं गिहिलिंग काउं जहा ण णज्जति एते संजय त्ति खरकम्मिया व सन्नद्धपरियरा जहासंभवगहियाउधा होउं साहुसाहुणोउभयवग्गे गुत्तिरक्खं करेंति ।।५६८७॥ किं च. जे पुव्वं उवगरणा, गहिता अद्धाण पविसमाणेहिं । जं जं जोग्गं जत्थ उ, अद्धाणे तस्स परिभोगो ॥५६८८॥ पुज्बद्धं कंठं । जं जोग्गं - जत्थ उदगगलणकाले चम्मकरगो, वहणकाले कावोडी उड्डा, भिक्खायरियकाले सिक्कगा, विकरणकाले पिप्पलगो, एवमादि ।।५६८८।। सुक्खोदणो समितिमा, कंजुसिणोदेहि उण्हविय भुंजे। मूलुत्तरे विभासा, जतितूर्ण णिग्गते विवेगो ॥५६८६॥ जो सुक्खोदणो गहितो, जे य समितिमादी खरा, एते उन्होदणेणं कजिएण वा उण्हे गाहेत्ता सूईकरेत्ता भोत्तव्वा । “मूलुत्तरे विभास" ति श्रद्धाणकप्पो मूलगुणोवघातो, प्रहाकम्मं उत्तरगुणोवघामो। कि अद्धाणकप्पं भुजउ ? अह अहाकम्म लब्भमाणं भुजउ ?, अत्रोच्यते-"एत्य दो प्रादेसा, जम्हा कप्पो मूलगुणघाती, महाकम्मं उत्तर गुणधाती, तम्हा कम्मं लहुतरं भोत्तव्वं । जम्हा पाहाकम्मे छपहुवघातो, कप्पो पुण फासुमो । एत्थ वरं कप्पो, ण कम्म" ॥५६८६॥ चोदगाह - “जो कप्पो माहाकम्मिनो तत्थ कहं दुदोसदुट्ठो' ?, प्राचार्य प्राह - कामं कम्म पि सो कप्पो, णिसिं च परिवासितो । तहावि खलु सो सेयो, ण य कम्मं दिणे दिणे ॥५६६०॥ सर्वथा बर प्रद्धाणकप्प एव, न चाहाकम्म, दिने दिने बहुसत्त्वोपघातित्वात् ॥५६९०।। आहाकम्मं सई घातो, सयं पुवहते सिया । जे ते तु कम्ममिच्छंति, निग्घीणा ते ण मे मता ॥५६६१॥ प्रद्धाणकप्पे जं प्राहाकम्म तत्र पूर्वहते सकृदेव जीवोवघात: ( जे पुण ) अद्धागकप्पं मूल गुणा ण भंजति । “उत्तरगुणो ति" जे पुण प्राधाकम्म भंति दिने दिने ते अत्यंतनिघृणा सत्त्वेषु, न ते मम सम्मता संयमायतनं प्रति । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६८७-५६६५ ] षोडश उद्देशकः “जतिऊणं णिग्गए विवेगो" ति एवं प्रद्धाणे जतित्ता जाहे प्रद्धाणातो णिग्गता ताहे प्रमुत्तं भुतुदरियं वा अद्धाणकापं विवेगो त्ति परिवेति ।।५६६१॥ भद्दगवयणे त्ति गयं । इदाणिं " 'भिक्खित्ति" दारस्स कोति विसेसो भण्णति - कालुट्ठादीमादिसु, भंगेसु जतंति वितियभंगादी। लिंगविवेगोऽक्कते, चुडलीअो मग्गो अभए ॥५६६२।। कालुट्ठाती कालनिवेसी, ठाणठाती कालभोती। एत्थ पढमभंगो सुद्धो । एत्थ भंगजयणा णत्थि । बितियभंगादिसु जयंति-तत्थ वितियभंगे अकालमोती, तत्य सलिंगविधेगं काउं रामो परलिंगेण गिहति। ततिय-च उत्थभंगेसु अ ठाणटाती तत्थ जयंति, जं गोणादीहिं मक्कतढाणं मासि तहि ठायंति। न उत्थभगे लिंगविवेगेणा भत्तादि गेण्हंति, गोणादिअक्कते य ठायति ।। पंचमादिभंगेसु चउसु "चुडली" संथारभूमादिसु बिलादि जोइउठायति । गवमादिसोलसंतेसु अटुभंगेसु प्रकालट्ठातीसु रातो गमणमगतो "अभए" त्ति जति वच्चंता 'भगतो" त्ति पच्छतो अभयं तो पच्छतो ठिता जयंति । एसा भंगजयणा ॥५६६२॥ पुन्वं भणिता जतणा, भिक्खे भत्तट्ठ वसहि थंडिल्ले । सच्चेव य होति इहं, जयणा ततियम्मि भंगम्मि ॥५६६३।। संवदृसुत्तमादिसु बहुसो भणिया जयणा।। अहवा - णवगणिवेसे जहा भिक्खग्गहणं तहा कायव्वं भत्तट्ठाणं, प्रकालठातिस्स निम्भए पुरतो गंतु समृदिसंति, जेण समुद्दिद्वे सत्थो अभति, वसहिमज्झे सत्यस्स गिम्हति, प्रथंडिले मत्तएसु जयंति, मत्तगासति पदेसेसु वि । अहवा - ततियभंगे प्रथंडिलाइम्मि सच्चेव जयणा जा संवट्टसुत्ते सवित्थरा मणिया ॥५६६३॥ सावय अण्णहकडे, अट्ठा सयमेव जोति जतणाए । गोउलविउव्यणाए, आसासपरंपरा सुद्धो ॥५६६४॥ सावय त्ति प्रद्धाणे जति सावयभयं होज्ज तो अण्णेहिं सथिल्लएहि जा अप्पणट्ठा कया भगणी तमल्लियंति, तस्स य असति अण्णत्थकडं प्रणि घेत्तण फायदारुएहि जालंति, प्रदे॒त्ति जा सथिल्लगेहि संजयट्ठाए कडा तं सेवंति, परकडअसति त्ति सयमेव अगशि प्रहरुत्तरेण जणंति जोइज इणाए त्ति - कते कब्जे जोडसालभणियजयणाए विज्झतीत्यर्थः ॥५६६४।। "२गोउल" पश्चाध, अस्य व्याख्या - सावय-तेण-परद्धे, सत्थे फिडिता ततो जति हवेज्जा। अंतिमवइया वेंटिय, नियट्टणय गोउलं कहणा ॥५६६।। . १ गा० ५६८१ । २ गा० ५६६४। . " Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र- २१ अंतरा महाडवीए सिंघा दिसावयतेणेंहि वा सत्यो परद्धो, सव्वो दिसोदिसि णट्टो, साधू वि एक्कतो ट्टा, सत्याम्रो फिडिया ण किं चि सत्थिल्लयं पस्संति, पंथं च प्रजाणमाणा भीमानि पवज्जेज्जा । तस्य वमभा गणिरोगा सेसा सन्वत्थामेण गच्छरक्खणं करोति जयणाए ताहे दिसाभागम मुर्णेता सबालवुड्डुगच्छस्स रक्खणट्ठ गणदेवताए उस्सगं करेंति, सा प्रागंपिया दिसिभागं पंथं वा कहेज्ज, सम्मद्दिट्ठिदेवता वा भण्णोत्र देसतो बइयाश्रो विउव्वति, ते साधू तं वइयं पासित्ता प्राससिया, ते साधू ताए देवताए गोउलपरंपरएण ताव नीया जाव जणवयं पत्ता ताहे सा देवता प्रतिमवइयाए जाव उवगरणवेंटियं विस्तरावेइ, तीए मट्ठा साहुणो जियत्ता गोउलं न पेच्छति, वेंटियं घेत्तुं पडिगया । गुरुणो कहेंति - नत्थि सा वइयत्ति, नायं जहा देवयाए कय ति, एत्थ सुद्धा चेव । नत्थि पच्छित्तं ॥ ५६६५ ॥ भंडी - बहिलग-भरवाहिएस एसा व वष्णिया जतणा । दरिय विवित्सुं जयणा इमा तत्थ नायव्वा ॥ ५६६६।। विचित्ता कपडिया, अहवा - विवित्ता मुसिता, सेसं कंठं । दरिए पत्थयणा, ऽसति पत्थयणं तेसि कंदमूलफला । अग्गहणम्मि य रज्जू, वर्लेति गहणं तु जयणाए ॥ ५६६७|| १९८ डि हिलगभर वहाणं प्रसति प्रगाढे रायदुद्व । दिकज्जे उदरिगादिसु वि सह गम्मेज्ज । तत्थ मोरिगेहि सह गम्ममाणे श्रद्धाणकप्पादि श्रोदरिगादीण वि पत्थयणासति जाहे ते प्रोदरिया पत्थयण- खीणा, तासि पत्थयां कंदमूलफलादि, साहूणं ते च्वेव होज्ज || ५६६७।। "अहणम्मि" पच्छद्ध, अस्य व्याख्या - कंदादि भुजंते, परिणते सत्थियाण कहयंति । पुच्छा वेहासे पुर्ण, दुक्खहरा खाइतुं पुरतो || ५६६८|| तत्थ जे परिणया ते च्छति कंदादि भुजिउं, ताहे वसभा तेसि सत्य इल्लाणं कहेंति । ते वसभा सत्थििल्लए भांति - एते तहा बीहावेह, जहा खायंति । ताहे ते सत्थिल्लया रज्जुनो वलति प्रपरिणता पुच्छति । परिणयाण वा पुरतो साहू पुच्छति कि एयाहि रज्जूहि ?, ता ते सत्थिया भणंति - ब्रम्हे एक्कणावारूढा । श्रम्ह कंदादि ण खाइतं श्रम्हे एताहि वेहाणसे उल्लंबे हामो, इहरा तेसि पुरम्रो दुःखं खायामो ॥५६६८ ।। इरा वि मरति एसो, अम्हे खायामो सो वि तु भएं । कंदादि कज्जगहणे, इमा उ जतणा तहिं होति || ५६६६॥ सो कंद्रादि प्रखायंतो इह पडवीए प्रवस्स चैव मरइ तम्हा तं माता प्रम्हे सुहं चेत्र खायामो । सो परिणम एवं सोचा भया खायति, एवमादिकज्जे कंदा दिग्गाह इमा जयणा ।। ५६६६ ।। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६६६-५७०१] षोडश उद्देशक ११६ फासुगजोणि...'गाहा ॥५७००॥ बद्धट्ठिए वि एवं... 'गाहा ॥५७०१॥ एमेव होइ....'गाहा ॥५७०२॥ साहारण.'गाहा ॥५७०३॥ तुवरे... 'गाहा ॥५७०४॥ पासंदण...''गाहा ॥५७०शा 'एवं छ गाहारो भाणियव्यो । एयाप्रो जहा पलंबसूत्रे, पूर्ववत् । सिवे त्ति गतं । इदाणिं प्रोमे त्ति - ओमे एसण सोही, पजहति परितावितो दिगिछाए । अलभंते वि य मरणं, असमाही तित्थवोच्छेदो ॥५७०६॥ प्रोमे प्रद्धाणं पवजियव्वं प्रोमे अच्छंनो दिगिंछाए परिताविप्रो एसणं पजहति । अहवा- अलभंतो भत्तपाणं मरति, प्रसमाही वा भवति, असमाहिमरणेण वा णाराधइ, अण्णोण्णमरतेसु य तित्थवोच्छेरो भवति, एते प्रगमणे दोसा ॥५७००। गमणे इमा पंथजयणा - श्रोमोयरियागमणे, मग्गे असती य पंथजयणाए । परिपुच्छिऊण गमणं चतुम्विहं रायदुटुं तु ॥५७०७।। जया प्रोमे गम्मति तदा पुत्वं मग्गेण गंतव्वं, मसति मग्गस्स पंथेण, तत्थ वि पुष्वं प्रच्छिण्णे, पच्छा छिणोण । गमणे विही सच्चेव जो असिवे । प्रोमे ति गतं । इदाणि "रायदुद्वे", तं चउन्विहं वक्खमाणं ॥५७०७॥ । पूनासत्कमूलभाष्यपुस्तकादशें, टाइपप्रकितपुस्तकादर्श च "फासुग जोणि गाहा" तः प्रारभ्य "एवं छ गाहारो भाणियव्वानो" इत्यन्तः पाठः उपरिनिर्दिष्टरूपेण भाष्ये समुपलभ्यते । किन्तु चूर्णिकारेण "एयानो जहा प्रलंबसूत्रे पूर्ववत्" इति सूचना विहिता, तदनुसारेण प्रलम्बमूत्राधिकारे तु गाथात्रयमेव, न तु गाथा षट्कम् । ताः खलु तिस्रो गाथास्स्वेता : फासुग जोणि परित्ते, एगढेि अबद्ध भिण्णऽभिण्णे य। बद्धट्ठिए वि एवं, एमेव य होंति बहुबीए ॥३४६७।। एमेव होति उवरिं, बट्ठिय तह होंति बहुबीए । साहारणस्स भावा, आदीए बहुगुणं जं च ॥३४६८॥ तुवरे फले य पत्ते, रुक्ख-सिला-तुप्प-महणादीसु । पासंदणे पवाते, प्रायवतत्ते वहे अवहे ॥६४७०॥ माथाऽवलोकनेन स्फुटं प्रतिभाति - यह "बद्धट्ठिए वि एवं" ५७०१, साहारण ५७०३, पासंदण ५७०५, मधुमिता गाथा: "फासुगजोणि" ५७००, “एमेवहोइ" ५७०२, "तुवरे" ५७०४, अमितान माधानामुत्तरांशरूपा एव । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [ सूत्र-२३ सो पुण राया कहं पदुद्दो?, अत उच्यते - ओरोहधरिसणाए, अब्भरहियसेहदिक्खणाए य । अहिमर अणिद्वदरिसण, वुग्गाहण वा अणायारे ॥५७०८।। मोरोहयो अंतेपुरं, तं लिंगत्थमादिणा केणइ प्रापरिसियं । अहवा - तास रणो अन्भरहिरो ति पासणो कोह सेहो दिक्खितो । ग्रहवा - साधुवेसेण महिमरा पविट्ठा। अहवा - स्वभावेण कोइ साधू अणिट्ठो, अणिटुं वा साधुदंसणं मण्णति, मंतिमादीण वा दुग्गा. हितो, वाए वा जितो, संजनो वा अगारीए समं प्रणायारं पडिसेवंतो ट्ठिो ॥५७०८।। . एवमादिकारणेहिं पट्ठो इमं कुजा - णिन्विसओत्ति य पढमो, बितिश्रो मा देह भत्त-पाणं से । ततिओ उवकरणहरो, जीविय-चरित्तस्स वा भेदो ॥५७०६॥ जेण रण्णा णिन्विसया प्राणता तत्य जति , गच्छति तो चउगुरुगं, अण्णं न प्राणाइक्कमे कबमाणे राया गाढवरं रुस्सति । एते पढमभेदे दोसा ॥५७०६॥ गुरुगा आणालोवे, बलियतरं कुप्पे पढमए दोसा । गेण्हंत-देंतदोसा, बितिए चरिमे दुविधमेतो ॥५७१०॥ जेण रणा रुटेणं गाम-गगरादिसु भत्तपाणं वारितं तत्थ देताण गेण्हताण वि दोसा, एते वितिते वोसा। ततिए उवकरणहरो तत्थ वि एते चेव । चरिमो त्ति चउत्यो सत्य दुविधभेददोसी जीवियभेदं वा करेज्ज, चरणभेयं वा । जम्हा मच्छंताण एवमादी दोसा तम्हा गंतव्वं ॥५७१०॥ णिव्विसयाण ताण तिविहं गमणं इमं - सच्छंदण य गमणं, भिक्खे भत्तट्टणा य वसहीए। दारे ठिो रु भति, एगल्थ ठिो व आणावे ॥५७११।। "सच्छंदेण य गमणं भिक्खे' अस्य व्याख्या - सच्छंदेण सयं वा, गमणं सत्येण वा वि पुव्वुत्तं । तत्थुग्गमातिसुद्ध, असंथरे वा पणगहाणी ॥५७१२॥ सच्छंदगमणं प्रप्पणो इच्छाए, सयं ति विणा सत्येण वा गच्छति, तं च गमणं पुव्वुत्तं इहेव असिवदारे प्रोहणिज्जुत्तीए वा । तत्थ सच्छंदगमणे उग्गमादिसुदं भत्तपाणं गेण्हतो अच्छतु, सुद्धासति वा असंथरे पणगपरिहाणीए जयता गेण्हति । "दारे व ठि3" ति यस्स विभासा - णिविसयमाणत्तेसु मा एत्येव जणवदे णिलुक्का अधिहिति, ताहे पुरिसे माहन्जे देति । १ गा० ५७११ । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायगापा ५७०२-५७१६ ] षोडस उद्देशक: १२१ ते पुरिसा भिक्खग्गहणकाले भणंति - "तुम्हे पविसह गामं णगरं वा भिवखं हिंडित्ता ततो चेव भोत्तुं पागच्छह, इह चेय दारहिता उद्दिक्खामो।" ते तत्थ ठिया जो जो साधू एति तं तं च णिरु भति जावं सम्वे मिलिया। अहवा - ते रायपुरिसा एगस्थ समाए देउले वा ठिता भणंति - तुम्भे भिक्खं हिंडित्ता इहं प्राणेह, प्रम्ह समीवे भुजह ति ॥५७१२॥ तिण्हेगतरे गमणं, एसणमादीसु होइ जइतव्वं । । भत्तट्ठ ण थंडिल्ले, असति सोही व जा जत्थ ॥५७१३।। "तिण्हेगयर" त्ति - सच्छंदगमणं एक्को, दारे भति बितिग्रो, इह प्राणेह ति ततिम्रो, एयण्णयरप्पगारेण गच्छमाणा एसणा। आदिसद्दातो उग्गमुप्पायणा य । तेसु विसुद्ध भत्तपाणं गेण्हति, भत्तटुं दोसु विहिणा करेंति। रायपुरिससमीवट्टितेसु भयणा थंडिल्लसामायारी ण हावेति, रायपुरिससमोवट्टितेहिं वा कुरुकुयं करेंति । सच्छंद वसमाणा वसहिस।मायारिं न परिहावंति । अह रायपुरिसा भणेज्ज - "अम्हं समीवे वसियत्वं ।" तत्थ वि जहा विरोहतो ण हावेंति । भत्तादिसुद्धस्स असति पणगपरिहाणीए विसोधि अविसोधीए जयतस्स जा जत्य अपतरदोसकोडी त गेण्हति ॥५७१३॥ जे भणिया भद्दबाहुकयाए गाहाए सच्छंदगमणाइया तिण्णि पगारा, ते चेव सिद्धसेणखमासमणेहिं फुडतरा करेंतेहिं इमे भणिता सच्छंदण उ एक्कं, बितियं अण्णत्थ भोत्तिहं मिलह । ततिम्रो घेत्तं भिक्खं, इह भंजह तीसु वी जतणा ॥५७१४॥ तिसु वि पगारेसु गच्छता तिसु वि उग्गमुप्पायणेसणासु जतंति, ससत्ति ण हार्वेति । शेषं गतार्थम् ॥५७१४|| अहवा - कोइ कम्मघणकक्खडो स्वचितनिकृतिवंचनानुमानपरमविजृम्भादिद कुर्यात - सबितिज्जए व मुंचति, आणावेत्तुं च चोल्लए देंनि । ___अम्हुग्गमाइसुद्ध, अणुसट्ठि अणिच्छ जं अंतं ॥५७१५|| साघूण भिक्खं हिंडताण रायपुरिसबितिज्जते जइ उत्तसंता प्रणेसणिज्ज पि गिहार्वेति तत्थ ते पण्णवेयना - अम्हं उग्गमातिसूद घेप्पति । अहवा - एगत्थ णिरु भिउं चोल्लए प्राणावेऊण देति "एवं भुजह" त्ति । ताहे सो रायपुरिसो भणति - "अम्हे उग्गमाइ सुद्ध भुजेमो, ण कप्पइ एयं ।" एवं भणियो जह उस्संकलइ ताहे भिक्खं हिंडंति, अगिच्छे अगुमट्ठो, धम्मकहालद्धी तो धम्म कहेति, गिमित्तेण वा प्राउहिजति, मंतजोएण वा वसीक जति, असति प्रणिच्छे य ज चोल्लगेसु आणीयं तत्थ जं अंतपंतं तं भुजति ॥५७१५॥ अहवा पुव्वं व उवक्खडियं, खीरादी वा अणिच्छे जं देति । कमढग भुत्ते सन्ना, कुरुकुयदुविहेण वि दवेणं ॥५७१६|| Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ मो रायपुरिसो भण्णति प्राप्याविज्जउ ।" प्रहवा - चोल्लगे जं पुष्वग्द्ध दहिखीरादि व मंजति, जर पुम्बरद्ध दहिखीरादि वा नेच्छति प्राणावेत्तुं ताहे सुद्धमसुद्ध वा जं सो देति तं भुजति । इमा भत्तट्ठजयणा - कमढगेसुं संतरं भुजति, गिहिभायणेसु वा । सण्णं च वोसिरिता फा सुय मट्टियाए बहुवेण कुरुकु करेंति, दुविषेण वि दवेणं प्रचित्तेण य सचितेग वि, पुष्वं मीसेण पच्छा ववहारसविते । ""प्रसति सोघी य जा जत्य" ति एवं पदं श्रण्णहा भण्णति - जति जयणा संभवे अजयणं करति, विसुद्धाहारे वा लब्धंते असुद्ध भत्तट्ठ, थंडिल्लविहि वा ण करेंति, तो जा जत्य सोही समावज्जति । णिव्विसय त्ति गयं । सभाष्य-पूर्णिके निशीयसूत्रे [ सूत्र -२५ "जं पुठवरद्ध तं श्रम्ह चोल्लगे प्राणिजउ, दधिखीरादि वा इदाणि बितिओ " मा देह भत्तपाण" त्ति अत्रोच्यते - - वा वासपिडी जयंति ।। ५७१७। - बितिए वि होति जयणा, भत्ते पाणे अलग्भमाणे वि । दोसीण तक्क पिंडी, एसणमादीसु जहयव्वं ॥ ५७१७| पुव्वद्ध ं कठं । जात्र जणो ण संचरति ताद साणुवेलाए दोसीगं तक्कं वा गेव्हंति भिक्खवेलाए गेहति, ततो एसणार ने प्रप्पतरा दोसा ततो उप्पायणाए ततो उग्गमेण प्रपतरदोसेसु अहवा - इमा जयणा पुराणादि पण्णत्रेउ, णिसिं पि गीयत्थे होइ गहणं तु । अग्गीते दिवा गहणं, सुण्णघरे ओमरादीसु ॥ ५७१८ || पुराणो सावगो वा गहियाणुव्वतो खेयष्णो पष्णविजति । सो पष्णविप्रो देवकुले बलिलक्खेण ठावे, तं दिवा घेप्पड़, तारिसस्स प्रसइ गीयत्थेसु रातो वि घेप्पति । श्रगीएसु दिवा गहणं, देवकुले सुष्णाघरे वसंतघरे वा श्रवणलक्खेण प्रोमराईसु ठवियं ॥ ५७१८ ॥ उम्मर कोट्टिबेसु य, देवकुले वा णिवेदणं रण्णो । कयकरणे करणं वा, असती गंदी दुविधदव्वे || ५७१६॥ इदाणि उवकरणहरे त्ति "कोट्टिने" ति - जत्थ गोभत्तं दिज्जति तत्य गोभन लक्खेण ठवियं गेहति, जाव उवसामिज्जति राया ताव एवं जयणजुत्ता अच्छंति । जति सन्त्रहा उवसामिज्जतो गोवसमति ताहे जो संजतो कयकरणो ईत्ये सोतं बंधेउं सासेति, विज्जाबलेग वा सासेति, विउव्विणिढिसंपणो वा सासेति । जाहे कयकरणादियाण प्रसति ताहे "नंदि"त्ति गंदी हरिसो, एसो तुट्ठी, जेण दुविधदव्वेण भवति तं गेण्हति । दुविधदव्वं फासुगमफासुगं वा, पतिमतं वा, श्रसणिहि सणिहि वा, एसणिज्जं प्रणेसणिज्जं वा । एवमादिभत्तवाणं पडिसेव त्ति ।। ५७२६ ।। मा देह भत्तपाणंति गयं । ततिए वि होति जयणा, वत्थे पादे अलब्भभाणम्मि | उच्छुद्ध विप्पण्णे, एसणमादीसु जतियव्वं || ५७२० || १ गा० ५७०६ । २ गा० ५७१३ । ३ गा० ५७०६ । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५७१७-५ षोडश उद्देशक १२३ रण्णा पडिसिद्ध मा एतेसिं कोइ देज्जा एवं वस्यपादेसु मलम्ममाणेसु इमा जयणा -जं देवकुलादिसु कप्पडिए सु उन्शुद्ध तं गिण्हंति, विप्पइण्णं जं उक्कुरुडियादिसु ठितं एसणादिसु वा जतंति पूर्ववत् ॥५७२०॥ हितसेसगाण असती, तण अगणी सिक्कगा य वागा य । पेहुण-चम्मग्गहणे, भत्तं च पलास पाणिसु वा ॥५७२१॥ __रणा रुद्रुण साधूण उवकरणं हरितं, सेसं ति अण्णं णत्यि, ताहे सीताभिभूता तणाणि गेण्हेज्जा, प्रगणि गेण्हेज्ज, प्रगणि वा सेवेखा । पत्तगबंधाभावे सिक्कगढ़ियादे काउं हि (डे) ज्ज, सन्नादि प (व) क्कतया पाउरणा मेण्हेज्ज, पेहुणं ति मोरंगमया पिच्छया रयहरणटाणे करेज्ज, पत्थरण पाउरणं वा बह बोडियाण, चम्मयं वा पत्थरणपाउरणं गेण्हेज, पलासपत्तिमादिसु भत्तं गेण्हेज्ज, अहवा - भत्तं कंडगादिसु गेण्हेज्जा पलासपत्तेसु वा मुंजेज्ज । पाणीसु वा गहणं भुंजणं वा ।।५७२१॥ असती य लिंगकरणं, पण्णवणट्ठा सयं व गहणट्ठा । आगाढकारणम्मि, जहेब हंसादिणं गहणं ॥५७२२॥ असति रण्णोवसमम्स, उवकरणस्स वा असति, ताहे परलिंगं करेंसि । जं रणो अणुमतं तेण लिंगेण ठिता ससमय-परसमयविदू वसभा रायाणं पण्णवेंति - उवसातीत्यर्थः । तेन वा परलिंगेन ठिता उपकरणं स्वयमेव गृहन्ति, एयं चेव प्रागाढं । अण्णम्मि वा आगाढे अहेव हंसमादितेल्लाण गहणं दिटुं तहा इहं पि प्रागाढं कारणे वत्थ पत्तादियाण गहणं कायव्वं । प्रोसोवण-तालुग्घाडमादिएहिं मन्येन वाहिं संप्रयोगेनेत्यर्थः ॥५७२२।। उवकरणहडे त्ति गयं ।। इदाणि 'भेदे त्ति - दुविहम्मि भेरवम्मि, विज्जणिमित्ते य चुण्ण देवीए । सेट्ठिम्मि अमच्चम्मि य, एसणमादीसु जइयव्वं ॥५७२३।। भेरवं भयानक, तं दुविहं जीवियानो चारित्तानो वा ववरोवेति तं रायाणं पदुद्धं विज्जादीहिं वसीकरेजा, णिमित्तण वा पाउट्टिज्जति, चुणेहि वा प्राघसमादीहि वसीकज्जति । "देवी य" ति जा य तस्स महादेवी हा सा वा विवादीहि पाउट्टिजति, ग्रहवा - खंतगो खंतिगा वा से जो वा रणो अवुक्कमणिज्जो, जइ तेहि भणतो ठितं. सुंदरं । मह ण ठाति ताहे सेटैि भणति, अमच्च वा, जइ ते उवसमेज्जा । अहवा- जाव उवसमह ताव सेदि-प्रमच्चाणं प्रवगहे मच्चति, जो वा रण्णो अवुक्कमणिज्जो तस्स वा घरे अच्छति, एसणादिसु जयंति पूर्ववत् । पासंजणं (पासंडगणं) वा उवट्ठावेज्जा, जइ गाम ते उवसामेज प्रप्पणिज्जाहिं अणुसासणादीहिं ॥५७२३॥ आगाढे अण्णलिंगं, कालक्खेवो बहिं निगमणं वा । कतकरणे करणं वा, पच्छायण थावरादीसु ॥५७२४॥ प्रणवसमते एरिसे आगाढकारणे अण्णलिंग करेति, तेण परलिंगेण तत्येव कालक्लेवं करेति, मनजमाणा विसयतरं वा गच्छति, जाहे सव्वहा उवमामे ण तीरइ ताहे "कयकरणे करणं " ति सहस्सजोही तं सासेज, प्रह तं पि णत्यि ताहे "पच्छादणथावरादीसु" ति जाव पसादिजंलि ताव रुक्खगहणेसु १ गा. ५५०६। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ समाष्य-भूणिके निशीथसूत्रे [सून-२६ अप्पाणं पच्छादेति, पउमसरादिसु वा लिक्किया अच्छति, अहवा - दिया एतेसु निलुक्कया मच्छति, रामो वच्चंति । एवं रायदुठे जयंति ।।५७२४॥ इदाणि 'भयादिदारा बोहिंग-मेच्छादिमए, एमेव य गम्ममाण जयणाए । दोण्हऽट्ठा य गिलाणे, णाणादट्ठा व गम्मते ॥५७२५॥ "भयं" ति बोहियभयं, बोहिगा मालबादिमेच्छा, ते पव्वयमालेसु ठिया माणुसाणि हरंति । तेसि भया गम्ममाणे एवं चेव गमणं, जयणा य जहा असिवादिसु । भयमेवागाढं । अहवा- किंचि उत्पत्तियमागाढं, जहा मातापितिसण्णायगेणं संदिटुं- "इमं कुलं पव्वज्जमब्भुवगच्छति जति तमं प्रागच्छसि" अहवा-'णागच्छसि तो विप्परिणमंति अण्णम्मि वा सासणे पत्रयंति" एरिसे वा गतव्वं । गेलण्णवेज्जस्स वा प्रोसहाण य । उत्तिमट्टे य पडियरगो विसोहिकामो वा । ___णाणसणेसु सुत्तणिमित्तं । अहवा - प्रत्थस्स । अहवा-उभयस्स । चरित्तट्ठा पूच भणिय । एवमादिकारणेसु पुत्वं मग्गेण, पच्छा अच्छिण्णपंथेण, ततो छिण्णपण ।।५७२५।। एत्थ एक्केक्के असिवादिकारणे - . एगापण्णं व सतावीसं च ठाण णिग्गमा णेया। एतो एक्केक्कम्मि, सयग्गसो होइ जयणा उ ॥५७२६।। पूर्ववत् जे भिक्खू विरूवरूबाई दसुयायणाई अणारियाई मिलक्खूई पच्चंतियाई सति लाढे विहाराए संथरमाणेमु जणवएसु विहारपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारतं वा सातिज्जति ॥२६॥ इमो सुत्तत्थो - सग-जवणादिविरुवा, छव्वीसद्धंतवासि पच्चंता । कम्माणज्जमणारिय, दसणेहि दसति तेण दम् ॥५७२७॥ सग-जवणादिअण्णण्णवेसभासादिद्विता विविधरूवा विरूवा मगहादियाणं अद्धछब्बीसाए प्रारियजणवयाणं, तेसिं प्रणतरं ठिया जे प्रणारिया ते पच्चंतिया, प्रारुटा दंतेहिं दंसंति तेण दसू, तेसि २प्रायतणा विासमो पल्लिमादी वा । हिंसादिप्रकज्जकम्मकारिणो अणायरिया ।।५७२७।। मिल्लक्खूऽबत्तभासी, संथरणिज्जा उ जणवया सगुणा । आहारोवहिसेज्जा, संथारुच्चारसज्झाए ।।५७२८|| मिलक्खू जे अव्वत्तं अफुड भासंति ते मिलबखू । जदा रुट्ठा तदा दुक्खं सणविज्जति दुस्सण्णप्पा । दुक्खं चरणकरणजातमाताउत्तिए धम्मे पणविज्जति दुप्पण्णवणिजा, रातो सव्वादरेण भुजंति अकालपरिभोगिणो, रातो चेव पडिबुज्झति प्रकालपडिबोही, सद्धम्मे दुक्ख बुझंति त्ति दुप्पडिबोहीणि । सति विजमाणे "लाठे" १गा० ५६३० । २ मायरिय निवासमो पल्लिगादी वा इत्यपि पाठः । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५७२५-५७३३ ] षोडश उददेशकः १२५ त्ति साघुणो प्रक्खा, सगुणा जणवया संथरणिजा भवंति । ते पुण गुणा श्राहारो उवही सेजा संथारगो, भ्रष्णो य बहुविहो । उवधी सततं प्रविरुद्धो लब्भति, उच्चारपासवणभूमीश्रो य संति, सज्झायो सुज्झति । “विहाराए" त्ति दप्पेणं णो प्रसिवादिकारणे, तस्स चउलहुं प्राणादिया य दोसा ॥। ५७२८ ।। इमो णिज्जुत्तिवित्थारो - आरियमणारिए, चउक्कभयणा तु संकमे होति । पढमततिए अण्णा, बितिय उत्थाऽणणुण्णाया || ५७२६|| श्रारितात जणवयाश्रो आरियं जगवयं संक्रमइ, एवं चउभंगो कायव्वो, सेसं कंठ ॥५७२६ ॥ रियरियकम अद्धछवीसं हवंति सेसा तु । -2 आरियमणारियर्सकम, बोधिगमादी मुणेतव्वा || ५७३०|| श्रद्धछवीसाए जणवयाणं प्रणतराम्रो प्रण्णतरं चेत्र श्ररियं संकमति तस्स पढमभंगो, प्रारियातो प्रणयरबोहिगविसयं संकमनस्स बितिम्रो ।। ५७३० ।। मारिया रियकम, अंधादमिला य होंति णायव्वा । अणारियणारियसंकम, सग-जवणादी मुणेतच्चा ।। ५७३१ || दमिलादिविसयाम्रो प्रारियविसयं संकमंतस्स तइओ, श्रणारियातो सगविसयाम्रो श्रणारियं चेव जवणविसयं संकमंतस्स चउत्थो । एस खित्तं पडुच्च च उभंगो भणितो ॥१५७३१ ।। इमं लिंगं पडुच्च भणति - भिक्खुसरक्खे तावस, चरगे कावाल गारलिंगं च । एते णारिया खलु, अज्जं आयारभंडेणं ॥ ५७३२|| भिक्खूमादी प्रणारिया लिंगा, " प्रज्जं" ति श्रारियं तं पुण आयारभंडय रोहरण-मुहपोत्तियाबोलपट्टकप्पा य पडिग्गहो समत्तो य । आया भंडग एत्थ वि चउभंगो कायवों । श्ररियलिंगाश्रो प्रारियलिंग एस पढमभंगो। एत्थ थेरकप्पातो जिणकातिसु संकर्म करेति । वितिश्रो कारण, ततिए भिक्खुमादि उवसंतो, चउत्थे भिक्खुमादी सरक्खादीसु । ग्रहवा चउभंगो - आयरिश्रो प्रारियलिंगं संक्रमति भावणा कायन्वा । ग्रहवा चउभंगो - प्रारिएणं लिगेगं प्ररियविसयं संक्रमति, भावणा कायव्त्रा । जो मारिएण वि लिंगेणं प्रणारियविसयं संकमति, एत्थ मुत्तगवातो। सेसं त्रिकोणट्ठा भणियं ॥ ५७३२ ।। को पुण प्रारियो, को वा प्रणारियो ? ग्रतो भण्णति मगहा कोसंबीया, धूणाविस कुणालविस य । एसा विहारभूमी, पत्ता वा आरियं खेत्तं || ५७३३ || Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सून-२६ पुवेण मगहविसनो, दक्षिण कोसंबी, प्रवरेण यूगाविसम्रो, उत्तरेण कुणाला विसम्रो। एतेसि म शरियं परतो प्रणारियं ।। ५७३३ ।। १२६ 3 प्रारियविसयं विहरंताणं के गुणा, प्रतो भण्णति - समणगुणविदुत्थ जणो, सुलभो उवही सतंत श्रविरुद्धो । रियवियम्मिगुणा, णाण-चरण-गच्छवुडी य || ५७३४ || समणाणं गुणा समणगुणा । के गुणा ?, मूलगुण-उत्तरगुणा । पंचमहस्त्रया मूलगुणा, उम्गमुष्णा देसणा अट्ठारससीलंगसहस्सा णि य उत्तरगुणा । "विद-ज्ञाने" श्रमणगुणविदुः । कश्चासौ ?, उच्यते - जनसुलभो उवधी मोहिम्रो उवग्गहिम्रो य । अस्मिन् तंत्रे - श्रविरुद्धो एसणिजो लब्गति, एवमादि गुणा प्रारिसु । किं च नागदंसणचरिताण विद्धी नास्ति व्याघातः, गच्छवुड्डी य तत्थ पव्वज्जति सिक्खापदाणि य गिण्हति ।।५७३४ ।। इमं च प्ररिए जणे भवति जम्मण - क्खिमणेसु य, तित्थकराणं करेंति महिमाओ । भवणवति वाणमंतर - जोतिस - वेमाणिया देवा || ५७३५ || तं दठ्ठे भग्वा विज्भंति शुव्वयंति य, चिरपव्वइया वि थिरतरा भवति ॥ ५७३५ ।। तित्थकरा इमं धर्मोपदेशादिकं प्रारिए जणे करेंति - उप्पण् णाणवरे, तम्मिश्रणंते पहीणकम्माणो । तो उवदिसंति धम्मं जगजीवहियाय तित्थगरा || ५७३६ || इमो समोसरणातिसप्रो - लोगच्छेरयभूयं, उप्पयणं नित्रयणं च देवाणं । संसयदागरणाणि य, पुच्छंति तहिं जिणवरिंदे || ५७३७|| सणी बहु जुगवं संसए पुच्छति, तेसि चेव जिणो जुगव चेव वागरणं करेति, तेहि प्रारियजणव ए | जिनवरिंदे पुच्छति ॥५७३७॥ एत्थ किर सन्नि सावग, जाणंति अभिग्गहे सुविहिताणं । एएहिं कारणेहिं, बहि गमणे होतऽणुग्धाता ||५७३८|| - एत्थ किर प्रारियजणवए, "किर" त्ति परोक्खवयणं, श्रविरयसम्मद्दिट्ठी सण्णी गहिया णुव्वतो नागो एते जाणंति "अभिग्गहे" ति प्राहारोरधि से ज्जा गहण विहाणं, तं जाणंता तहा देति । ग्रहवा श्रभिग्गहो दव्यखेत्तकालभावेहि तं जागंता तहेत्र पडिपूरेति । जम्हा एते गुणा ग्रास्यिजणवए तम्हा "बहि" ति प्रणारियविसयं गच्छंताण चउगुरुगा ॥५७३८ ।। चोदगाह - सुत्तस्स विसंवादो, सुत्तनिवातो इहं तु संकप्पे । चत्तारि छच्च लघुगुरु, सट्टाणं चैव श्रवण्णे || ५७३६|| - Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उद्देशक: इह सोलसमुद्दे सगे चउलहुगाऽधिकारो - तुमं च प्रणारियविसयसंक मे चउगुरु देखि प्रती माध्यगाथा ५७३४-५७४२ ] सुत्तविसंवातो । आयरिओ भणइ - तुमं सुतणिवातं ण याणसि । इह सुत्तणिवातो मणसंकल्पे चउलहुँ, पदभेदे गुरु, पंथमोइस छल्लहुं, प्रणारियविसयपत्तेसु छग्गुरु संजमा यविराहणाए सट्टाणं । तत्थ संजमवि राहणाए "छक्काय चउसु लहु" गाहा भावणिज्जा । श्रायविराहणाए चउगुरुगं परितावणाई वा ।। ५७३६ ।। श्राणादिणो य दोसा, विराहणा खंदएण दिट्ठतो ! एवं ततियविरोहो, पडुच्चकालं तु पण्णवणा || ५७४०|| विराहणार खंदगो दिट्टंतो दोच्चेण श्रागतो खंदएण वाए पराजित्रो कुवितो । खंदगदिक्खा पुच्छा निवारणाऽऽराध तव्वज्जा ।। ५७४१ ॥ चंपा णाम णगरी, तत्थ खंदगो राया । तस्स भगिणी पुरंदरजसा उत्तरापथे 'कुभाकारकडे नगरे डंडगिस्स रण्णो दिण्णा । १२७ तस्स पुरोहिश्रो महगो पालगो, सो य प्रकिरियदिट्ठी । प्रण्णया सो दूस्रो आागतो चंपं । खदगस्स पुरतो जिणसाहुप्रवण्णं करेति । खंदगेण वादे जिप्रो, कुविप्रो, गम्रो सणगर । खंदगस्स वहं चितेंतो अच्छइ । दगो वि पुत्तं रज्जे ठवित्ता मुणिसुव्वयसामितिए पंचसयपरिवारो पव्वतितो अधीयसुयस्स गच्छो प्रणुष्णाश्रो । या भगिणीं दिच्छामि त्ति जिणं पुच्छति । सोवस्सग्गं से कहियं । पुणो पुच्छति - " आराहगो ण व ?" त्ति । कहियं जिणं - तुमं मोत्तु प्राराहगा सेसा । गतो णिवारिज्जतोऽवि ।। ५७४१ ।। सुतो पालगेण ग्रागच्छमाणो - — उज्जाणाऽऽउह मेण, णिवकहणं कोव जंतयं पुव्वं । बंध चिरिक्क णिदाणे, कंबलदाणे रजोहरणं ॥ ५७४२ || पालगेण प्रग्गुज्जाणे पंचसया आयुहाण ठविया । साहवो प्रागया तत्थ ठिता । पुरंदरजसा दिट्टा, खंदगो कंबलरयणेन पडिलाभितो । तत्थ णिसिज्जाओ कयाश्रो । पालगेण राया बुग्गाहितो । एस परिसहपराजियो ग्रागो तुम मारेउ रज्जं ग्रहिहेति । कहं णज्जति ?, आयुधा दंसिया । पालगो भणितो - मारेहि त्ति । तेण इक्खुजंतं कयं । कुविप्रो राया, खंदगेण भणियं - 'मं पुव्वं मारेहि।' जंतसमीवे खंभे बंधिउं ठविप्रो, साहु पीलिउ हिरचिरिकाहि खंदगो भरितो । खुड्डगो प्रायरियं विलवंतो, सो वि आराहगो । खंदगेण णियाणं कतं ।। ५७४२ ।। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [मूत्र-२६ अग्गिकुमारूववातो, चिंता देवीए चिण्ह रयहरणं । खिज्जण सपरिसदिक्खा, जिण साहर वात डाहो य ॥५७४३॥ अग्गिकुमारेसु उववण्णो। पुरंदरजसाए देवीए चिता उव्वण्णा वट्टति “साधुणो पाणगपढमालियाणिमित्तं णागच्छति किं होज' ? एत्यंतरे खंदगेण “सण्ण" ति - सकुलिकारूवं काउं रयहरणं रुहिरालित्तं पुरंदरजसापुरतो पाडियं, दिटुं, सहसा अक्कंदं करेंती उट्ठिया, भणियो राया - पाव ! विणट्ठो सि विणट्ठो सि । - सा तेण खंदगेण सपरिवारा मुणिसुव्वयस्स समोवं णीया दिक्खिया। खंदगेण संव्वट्टगवायं विउव्वित्ता रायाणं सबलवाहणं पुरं च स कोहाविट्ठो बारसजोयणं खेतं णिड्डहति । 'ग्रज वि डंडगारण्णं ति भण्णति ।।५७४३।। जम्हा एवमादी दोसा तम्हा प्रारियातो प्रणारियं ण गंतव्वं । चोदगाह - ॥ एवं ततियविरोहो त्ति - एवं वक्खाणिज्जते जं गाहामुत्ते ततियभंगो प्रणुणाप्रो, तं विरुज्झति । जह प्रणारिएसु गमो णत्थि धम्मो वा, तो भिक्खुस्स प्रणारियानो पारिएसु प्रागमो कहं ?, पायरिओ भणइ - २सुत्ते पणीयणकालं पडुच्च पढमभंगो। ततियभंगो पुग अनागो मासियमुत्तत्थेण संपइरायकुलं पडुच्च पण वज्जति । एत्य संपइस्स उप्पत्ती - कोसंबाऽऽहारकए, अज्जसुहत्थीण दमगपव्वज्जा । अव्वत्तेणं सामाइएण रण्णो घरे जातो॥५७४४॥ कोसंबीए णगरीए अज्जमहागिरी अज्जसुहत्यी य दोवि समोसढा । तया य प्रबीयकाले साधूजणो य हिंडमाणो फव्वंति । तत्थ एगेण दमएण ते दिट्ठा। ताहे सो भत्तं जायति । तेहिं भणियं - अम्हं पायरिया जाणंति । ताहे सो आगमो पायरियसगासं । पायरिया उवउत्ता, तेहिं णात - "एस पवयणउवग्गहे वट्टिहिति" त्ति । ताहे भणियो- जति पव्वयसि तो दिन भत्तं। सो भणइ - पव्वयामि त्ति। ताहे पाहारकते 'सो दमगो पन्वावितो। सामाइयं से कयं, ते अतिसमुट्ठिो । सो य तेण कालगयो । सो य तस्स अव्वत्तसामाइयस्स भावेण कुणालकुमारस्स अंवस्स रण्णो पुत्तो जातो। को कुणालो ? कहं वा अंघो? त्ति - पाडलिपुत्ते असोगसिरी राया, तस्स पुत्तो कुणालो।तस्स कुमारस्स भुत्ती उज्जेणी दिण्णा। सो य अट्ठवरिसो, रण्णा लेहो विसज्जितो- शीघ्रमवीयतां कुमारः । असंवत्तियलेहे रण्णो उद्वितस्स माईसवत्तीए कतं "अंधीयतां कुमारः" । सयमेव तत्तसलागाए अच्छी अंजिया। सुतं रण्णा । गामो १ गा० ५७४० । २.."रयगा"इत्यपि पाठः । ३ प्रचियकालो इति वृहत्कल्प भाव्य चूर्णी गा० ३२७५ । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगापा ५७४३-५७४८] षोडश उद्देशक: १२९ से दिण्णो। गंधव्वकलासिक्खणं । पुत्तस्स रज्जत्थी प्रागो पाइलिपुत्तं । असोगसिरिणो जवणियंतरितो गंधव्वं करेति, प्राउट्टो राया, मग्गसु जं ते अभिच्छितं ।।५७४४।। तेण भणियं चंदगुत्तपपुत्तो य, विंदुसारस्स णत्तुओ। असोगसिरिणो पुत्तो, अंधो जायति कागिणि ॥५७४५॥ उवउत्तो राया, णातो किं ते अंधस्स कागिणीए ? कागिणी-रज्ज। तेण भणियं - पुत्तस्स मे कज्जं । संपति पुत्तो वित्ति । प्राणेहि तं पेच्छामो, प्राणियो, संवडियो, दिण्णं रज्जं । सव्वे पच्चंता विसया तेण उयविया विक्कंतो रज्जं भुजइ ॥५७४५।। अण्णया अज्जसुहत्थाऽऽगमणं, दट्टुं सरणं च पुच्छणा कहणं । पावयणम्मि य भत्ती, तो जाया संपतीरणो ॥५७४६॥ उज्जेणीए समोसरणे अणुजाणे रहपुरतो रायंगणे बहुसिस्सपरिवारो आलोयणठितेण रण्णा अजमहत्थी आलोइयो, तं दळूण जाती संभरिया, प्रागतो गुरुसमीवं । धम्म सोउं पुच्छति - अहं भे कहिं चि दिट्टपुन्वो ?, पुच्छति य - इमस्स धम्मस्स कि फलं ?, गुरुणाऽभिहितं सग्गो मोक्खो वा। पुणो पुच्छइ-इमस्स सामाइयस्स किं फलं ?, गुरू भणइ-अव्वत्तस्स सामाइयस्स रज्जं फलं । सो संभंतो भणाति सच्चं । ताहे सुहत्थी उवउजिऊण भणति - “दिदिल्लयो ति ।" सव्वं से परिकहियं । ताहे सो पवयणभत्तो परमसावगो जातो ॥५७४६॥ जवमझ मुरियवंसो, दारे वणि-विवणि दाणसंभोगो। तसपाणपडिक्कमओ, पभावो समणसंघस्स ॥५७४७॥ चंदगुत्तातो बिंदुसारो महंततरो, ततो असोगसिरी महंततरो, तत्तो संपत्ती सव्वमहतो, ततो हाणी, एवं मुरियवंसो जवागारो, मज्झे संपइ - प्रासी। "दारे"त्ति अस्य व्याख्या - उदरियमो चउसुवि, दारेसु महाणसे स कारेति । णिताऽऽणिते भोयण, पुच्छा सेसे अभुत्ते य ॥५७४८।। पुव्वभवे प्रोदरियो ति पिंडोलगो पासि, तं संभरित्ता णगरस्स चउसु वि दारेसु सत्ता कारमहाणसे कारवेति, णितो पविसंतो वा जो इच्छइ सो सम्वो भुजति, जं सेसं उन्वरति तं महाणसियाण आभवति । .१गा०५७४७। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० समाध्य-पूणिके निशीथसूत्रे [गूत्र २६-२७ ताहे राया ते महाणसिए पुच्छति - जं सेसं तेण तुब्मे किं करेह?, ते भणंति - घरे उव उज्जति ॥५७४६॥ ताहे राया भणति - जं सेसं-अभुत्तं तं तुन्भे साहूण देह एयं, अह मे दाहेमि तत्तियं मोल्लं । णेच्छति घरे घेत्तुं, समणा मम रायपिंडो त्ति ॥५७४६।। एवं महाणसिता भणिता देंति साधूणं। "'वणि-विवणि-दाणि" ति अस्य व्याख्या - एमेव तेल्ल-गोलिय,-पूर्वीय-मोरंड दृसिए चेव । जं देह तस्स मोल्लं, दलामि पुच्छा य महगिरिणो ॥५७५०॥ वणित्ति - जे णिच्चद्विता दवहरंति, "विवणी" त्ति-जे विणा प्रावणेण उन्भट्टिता वाणिज्ज करेंति । अहवा - विवणि नि प्रवाणियगा । रण्णा भणिया - तेल्लविक्किण्णा साधूणं तेल्लं देजह, अहं भे मोल्लं दाहामि । एवं "गो (कु) लिय त्ति" महियविक्कया, पूलिकादि पूविगा, तिलमोदगा मोरंडविक्कया, वत्थाणि य दोसिया। पच्छद्ध कंठं। _ "संभोगो" त्ति एवं पभूते किमिच्छए लब्भमाणे महागिरी अज्जसुहत्थी पुच्छति - अज्जो ! जाणसु, मा प्रणेसणा होज्जा ।।५७५०।। ताहे - अज्जसुहत्थि ममत्ते, अणुरायाधम्मतो जणो देति । संभोग वीसुकरणं, तक्खण आउंटण-णियत्ती ॥५७५१॥ अज्जसुहत्थी जाणतो वि अणेसणं अप्पणो सीसममत्तेणं भणइ- अणुराया धम्मानो जणो पति त्ति -- रायाणमणुवत्तए जणो, जहा राया भद्दनो तहा जणो वि, राजानुवर्तितो धर्मश्च भविष्यतीत्यतो जनो ददाति" । एवं भणंतो महागिरिणा प्रज्जसुहत्यीण सह संभोगो वीसुकयो, विसंभोगकरणमित्यर्थः । __ताहे अजसुहत्थी चितेइ - "मए असणा भुत्त" ति, तक्खणमेव उट्टो संभुत्तो, प्रकल्पसेवणाप्रो य णियत्ती ॥५७५१॥ सो रायाचतिवती, समणाणं सावत्रो सुविहियाणं । पच्चंतियरायाणो, सव्वे सद्दाविता तेणं ॥५७५२॥ का अवंतीजणवए उज्जेणीणगरी - ___ कहितो तेसि धम्मो, वित्थरतो गाहिता च सम्मत्तं । अप्पाहियाय बहुसो, समणाणं सावगा होइ ॥५७५३।। कंत्र .. १ गा० ५७४७ । २ गा० ५७७ । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५७४६-५७५८] षोडश उद्देशकः अणुयाणे अणुयासी, पुप्फारुहणाइ उक्खिरणगाई। पूयं च चेतियाणं, ते वि सरज्जेसु कारति ॥५७५४॥ अणजाणं रहजत्ता, तेसु सो राया अणुजाणति, भडचडगसहितो रहेण सह हिंडति, रहेसु पुष्फारुहणं करेति, रहग्गतो य विविधफले खज्जगे य कवडगवत्थमादी य उक्खिरणे करेति, अन्नेसि च चेइयघरट्ठियाणं चेइया पूयं करेंति, ते वि रायाणो एवं चैव सरज्जेसुकारावेंति ॥५७४७॥ इमं च ते पच्चंतियरायाणो भणंति - जति मं जाणह सामि, समणाणं पणमधा सुविहियाणं । दम्वेण मे ण कज्ज, एयं खु पियं कुणह मज्झ ॥५७५।। गच्छह सरज्जेसु, एवं करेह ति ॥५७५५।। वीसज्जिता य तेणं, गमणं घोसावणं सरज्जेसु । साहूण सुहविहारा, जाया पच्चंतिया देसा ॥५७५६॥ तेण संपइणा रण्णा विसज्जिता, सरज्जाणि गंतु अमाघातं घोसंति, चेइयघरे य करंति, रहजाणे य । अंवदमिलकुडक्कमरहट्ठता एते पच्चंतिया, संपतिकालातो पारब्भ सुहविहारा जाता। संपतिणा साधू भणिया - गच्छह एते पच्चंतियविसए, विबोहेंता हिंडह। ततो साधूहिं भणियं - एते ण किंचि साधूण कप्पाकप्पं एसणं वा जाणंति, कहं विहरामो ? ।।५७५६।। ताहे तेण संपतिणा समणभडभावितेसुं, तेसुं रज्जेसु एसणादीहिं । . साहू सुह पविहरिता, तेणं चिय मद्दगा ते उ ॥५७५७॥ समणवेसधारी भडा विसज्जिया . बहू, ते जहा साधूण कप्पाकप्पं तहा तं दरिसंतेहि एसणसुद्धच भिक्खग्गहणं करेंतेहिं जाहे सो जणो भावितो ताहे साधू पविट्ठा,तेसि सुहविहारं जातं, ते य भद्दया तप्पभिई जाया ॥५७५७।। उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणो, स पत्थिवो णिज्जितसत्तुसेणो । ___ समंततो साहुसुहप्पयारे, अकासि अंधे दमिले य धोरे ॥५७५८॥ उदिण्णा संजायबला, के ते?,जोहा, तेहिं पाउलो-बहवस्ते इत्यर्थः। तेण उदिण्णाउलत्तणं सिद्धा सेणा जस्स सो उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणो । उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणत्तणतो चेव विपक्खभूता सत्तुसेणा ते निज्जिया जेण स पत्थिवो णिज्जियसत्तुसेणो सो अंघडविडाईसु प्रकासि कृतवान् सुहविहारमित्यर्थः ॥५७५८॥ जे भिक्खु दुगुंछियकुलेसु असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥२०॥२७॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [ सूत्र २८-३५ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा . पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥२८॥ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वसहिं पडिग्गाहेइ. पडिग्गाहेंतं वा सातिजति॥॥२६॥ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं उद्दिसइ, उद्दिसंतं वा सातिज्जति ॥२॥३०॥ जे भिक्खू दुर्गुछियकुलेसु सज्झायं वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जति ॥२०॥३१॥ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं पडिच्छा, पडिच्छतं वा सातिजति ।।।।३२।। चउलहुं, तेसि इमो भेदो सरूवं च - दुविहा दुर्गुछिया खलु, इत्तरिया होति आवकहिया य । एएसिं णाणत्तं, वोच्छामि अहाणुपुबीए ॥५७५६॥ "इत्तिरिय" त्ति सूयगमतगकुलाई, इत्तरिया जे य होंति निज्जूढा । जे जत्थ जुंगिता खलु, ते होंति य आवकहिया तु ॥५७६० इत्तरियत्ति सुत्तणिज्जूढा - जे ठप्पा कया ! सलागपडिय ति भावकहिगा, जे जत्थविसए जात्यादिजुगिता जहा दक्षिणावहे लोहकारकल्लाला,लाडेसु णडवरुडचम्मकारादि । एते प्रावकहिया ॥५७६०।। इमे य दोसा तेसु असणवत्थादी, वसही वा अहव वायणादीणि । जे भित्र गेण्हेज्जा, विसेज्ज कुज्जा व आणादी ॥५७६१॥ असणवत्थादियाणं गहणं, वसहीए वा विसेज पविसति, वायणादिसज्झायं कुज्जा, तस्स प्राणादिया दोसा ॥५७६१॥ अयसो पक्यणहाणी, विप्परिणामो तहेव कुच्छा य । तेसिं वि होति संका, सव्वे एयारिसा मण्णे ॥५७६२।। सर्वसाधवो नीचेत्यादि प्रयसः, प्रभोज्जसंपक्कं न कश्चित् प्रव्रजतीति एवं परिहाणी, प्रभोज्जेसु भक्तादिग्गहणं दृष्ट्वा धर्माभिमुखा पूर्वप्रतिपन्नगा वा विपरिणमते, श्वपाकादिसमाना इति जुगुप्सा, जेसु वि गेण्हइ तेसि वि संका - सव्वे एयलिंगधारिणो एते "एतारिस" त्ति प्रम्हे सरिसा ।।५७६२॥ इमो अववादो असिवे ओमोयरिए, रायदुढे भए व गेलण्णे । श्रद्धाण रोहए वा, अयाणमाणे वि वितियपदं ॥५७६३।। एतेहिं मसिवादिएहि कारणेहि जया घेप्पति तदा पणगपरिहाणीए ॥५७६३॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उद्देशकः जाहे चहुं पत्तो ताहे इमाए जयणाए गेण्हंति भाष्यगाथा ५७५६-५७६६ ] storत्थ ठेवावे, लिंगविवेगं च काउ पविसेज्जा । काऊण व उपयोगं, अदिट्ठे मत्ताति संवरितो || ५७६४॥ ― सो दुति प्रणवत्यादी अप्पस गारियं अष्णत्थ सुष्णघरादिमु ठवाविज्जति, तम्मि गते पच्छा गेहति । ग्रहवा - रोहरणादिउवकरणं अष्णत्थ ठवेतुं सरवखादिपरलिंगं काउं जहा श्रयसादिदोसा ण भवंति तहा पविसिद्धं गेण्हति । ग्रहवा - मज्भण्हादी विश्रणकाले दिगावलोयणं काउं प्रणेण प्रदिसतो मत्तयं पत्तं वा वासकप्पमादिणा सुठु श्रावरेत्ता पविसति गेण्हइ य, वत्थादियं पि जहा अविसुद्धं तहा गेव्हंति, वसहि पण्णत्थ प्रलभंतो बाहि सावयतेणभएमु वसह गेण्हेज्ज, जहा ण णज्जति तहा वसति । सज्झायं ण करेति । रायदुद्रुादि अभिगमो पसगारिए सज्झायभाणधम्मकहादी वि करेज्ज ॥५७६४।। जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुढवीए णिक्खिवर, णिक्खिवंतं वा सातिज्जति ॥ ३३ ॥ जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाडमं वा साइमं वा संथारए णिक्खिवर, णिक्खिवंतं वा सातिज्जति ॥ ३४ ॥ जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वेहासे णिक्खिवह णिक्खिवंतं वा सातिज्जति ॥ ३५ ॥ पुढवि-तण-वत्थमातिसु, संथारे तह य होड़ वेहासे । जे भिक्खू णिक्खिवती, सो पावति प्राणमादीणि || ५७६५।। तत्थ संजमे - पुढविग्गणातो उन्चट्टगादिभेदा दट्टव्वा, दम्भादितणसंथारए वा, वत्थे, वत्थसंथारए वा, कंबलादिफलहसंथारए वा वेहासे वा दोरगेण उल्लंबेड, एवमादिपगाराण श्रण्णय रेण जो णिक्खिवइ तस्स चहुं तस्स प्राणादिया य दोसा, संजमायविराहणा य ।। ५७६५ ।। तक्कंत परोप्परओ, पलोदृछिष्णे य भेद कायवहो । अहि- मूसलाल-विच्छुय, संचयदोसा पसंगो वा ॥ ५७६६॥ १३३ सुष्णे भत्तपाणे चउरिदियाश्रो घरकोइलातो तक्केंति, तं पि मज्जारा, एवं तक्केंतपरपरो डेप्पतं वाता दिवसेण वा पलोट्टेति छक्कायविराहणा, प्राथपरिहाणी य वेहासट्ठितं मूसगादिद्दिष्णे भायणभेदो छक्कायवहो परिहाणी | एसा संजमविराहणा । इमा प्रायविराहणा अहिस्स मूसगम्स वा उस्सिघमाणस्स लाला पडेज, जीससंतो वा विसं मुंचेज, विच्छुगाइ वा पडेब, विमं वा मुंचेज्ज, जे वा सन्निहिसंचए दोसा तत्थ वि णिक्खिते ते चैत्र दोसा, पसंगतो सहि पिट्ठवेज्जा ॥५७६६॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ समाष्य-पूणिके निशीपसूत्रे [मूत्र ३६-३७ किं च जो भत्तपाणं णिक्खिवइ सो समणसुविहियाणं, कप्पाओ अविचितो ति णायव्यो। दसरातम्मि य पुण्णे, सो उवही उवहतो होति ॥५७६७|| समणकप्पो तम्मि प्रवगमो अपगतः समणकप्पातो वा अवचिनो, एवं णिक्खेवंतस्स दसराते गते जम्मि पादे जं भत्तादि मिक्खिवइ तं उवहतं होइ, जो य उवही गिक्सित्ता अच्छइ दसराई प्राडिले हिउं सोवि. उवहतो भवति ॥५७६७।। ओबद्धपीठफलयं, तु संजयं ठविय भत्तपाणं तु । सुविहियकप्पावचितं, सेयस्थि विवज्जए साहू । ५७६८।। संथारगादियाणं बंधे जो पक्खस्स ण मुवति सो बद्धो णिक्सित्तभत्तपाणा य जो सो सुविहियकप्पातो अवगतो, जो सेयत्यी साधू तेण वज्जेयव्वो, ण तेण सह संभोगो कायरो ।।५७६८।। इमो अववाग्रो - वितियपयं गेलण्णे, रोहग अद्धाण उत्तिमढे वा । एतेहि कारणेहिं, जयणाए णिक्खिवे भिक्खू ॥५७६६।। गिलाणकज्जवावडो णिक्खिवति, रोहगे वा संकुडवसहीए वेहासे करेति, श्रद्धाणे वा सागारिए मुंजमाणो उत्तिमट्ठपवण्णस्स वा करणिज्ज करेंतो णिविखवति ॥५७६६।। एवमादिकारणेहि णिक्खिवंतो इमाए जयणाए णिक्खिवति - दूरगमणे णिसिं वा, वेहासे इहरहा तु संधारे । भूमीए ठवेज्ज व णं, घणबंध अभिक्ख उवोगो ॥५७७०॥ दूरं गंतुकामो णिसि वा जं परिवातिज्जति तं वेहासे दोरगेण गिक्खिवति. "इहरह" ति प्रासणे गंतुकामो मासणे वा किंचि लोयमादिकाउकामो तत्थ संथारे भूमीए वा ठवेति, वकारो विगप्पे, णकारो पादपूरण । तं पि ठवेंतो घणं चीरेण बंधइ, पिपीलिगभया छगणादीहिं वा लिपइ, पभिक्खणं च उपयोगं करेति ॥५७७०॥ जे भिक्खू अण्णतित्थीहिं वा गारत्थीहिं वा सद्धिं भुंजइ,मुंजतं वा सातिज्जति॥३६॥ जे भिक्खू अण्णतित्थीहिं वा गारत्थीहि वा सद्धिं आवेदिय परिवेढिय भुंजइ, भुजंतं वा सातिज्जति ॥२०॥३७॥ प्रणउत्थिया तच्चन्नियादि बंभणा, खत्तिया गारत्था, तेहि सद्धि एगमायणे भोयणं एगदु-तिदिसिट्टितेसु प्रावेढिउं, सम्बनिसिट्टितेमु परिवेढिलं, ग्रहवा - प्राङ् मर्यादया वेष्टितः । दिसिविदिसासु विच्छिण्णट्टितेसु परिवेष्टितः । अहवा – एगपंतीए समंता ठिएसु मावेष्टितः, दुगातिसु पंतीसु समंता परिट्ठियासु परिवेष्टितः । गिहि-अण्णतित्थिए हि व, सद्धिं परिवेडीए व तम्मज्झे जे भिक्खू असणादी, भुंजेज्जा आणमादीणि ॥५७७१।। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५७६७-५७७७ ] षोडश उद्देशकः १३५ अण्णउत्थियहि समं भुजति अण्णउत्थियाण वा मझे ठितो परिवेढितो भुजति, प्राणादिया दोसा, मोहमो चउलहुं पच्छित्तं ॥५७७१॥ विभागतो इमं - पुव्वं पच्छा संथुय, असोयवाई य सोयवादी य । लहुगा चउ जमलपदे, चरिमपदे दोहि वी गुरुगा ॥५७७२।। पुव्वसंयुया प्रसोय-सोयवाति य, पच्छासंथुया असोय-सोय ति। एतेसु चउसु पदेसु लहुगा चउ ति, जमलपदं वि कालतवेहिं विसेसिज्ज ति जाव चरिमपदं । पच्छासंथुतो सोयवादी तत्थ च उलहुगं तं कालतवेहि दोहि वि गुरुगं भवति । ५७७२।। थीसुं ते चिय गुरुगा, छल्लहुगा होति अण्णतित्थीसु । परउत्थिणि छग्गुरुगा, पुवावरसमणि सत्तऽ? ॥५७७३॥ एयासु चेव इत्थीसु. पुरपच्छप्रसोयसोयासु चउगुरुगा कालतवेहिं विसेसिता। एतेसु चेव अण्णतित्थियपुरिसेसु चउसु छल्लहुगा कालतवविसिट्ठा। एयासु चेव परतित्थिपोसु छग्गुरुगा। पुनसंथुयासु समणीसु छेदो, प्रवर ति पच्छसंथुयासु समणीसु अट्ठम ति मूल ॥५७७३॥ अयमपरः कल्पः - अहवा वि णालबद्ध, अणुव्वश्रीवासए व चउलहुगा । एयासुं चिय थीसं, णालसम्मे य चउगुरुगा ॥५७७४।। णालबद्धेण पुरिसेण प्रणालबद्धण य गहिताणुव्वतो वा सावगेण, एतेसु दोसु वि चउलहुगा । एयासुं चिय दोसु इत्थीसु णालबद्ध य अविरयसम्मद्दिष्टुिम्मि एतेसु वि चउगुरुगा ॥५७७४।। अण्णालदंसणित्थिसु, छल्लहु पुरिसे य दिदुआमटे । दिहित्थि पुम अदिट्टे, मेहुणि भोती य छग्गुरुगा ॥५७७५।। इत्यीसु प्रणालबद्धासु अविरयसम्मट्ठिीसु. दिवाभट्टेसु पुरिसेसु एतेसु दोसु वि छल्लहुगा, इत्थोसु दिट्टाभट्ठासु पुरिसेसु अ अदिट्टाभट्टेसु 'मेहुणि ति माउलपिउास्सयधाता, भोइय त्ति पुश्वभज्जा, एतेसु चउसु वि छग्गुरुगा ॥५७७५॥ अद्धिट्ठाभट्ठासुं थीसुं संभोगसंजती छेदो। अमणुण्णसंजतीए मूलं थीफाससंबंधो ॥५७७६॥ __ इत्थी पदिट्टाभट्टासु संभोइय-संजतीसु य एयासु दोसु वि छेप्रो, अमणुन ति असंभोइय-संजतीसु मूलं, इत्थीहि सह भुजंतस्स फासे संबंधो, पायपरोभयदोसा, दिह्र संकातिया य दोसा, जति संजतिसंतितो समुद्दे सो तो चउलहुं प्रधिकरणं वा ॥५७७६।। पुव्वं पच्छाकम्मे, एगतरदुगुंछ उडमुड्डाहो । अण्णोण्णामयगहणं खद्धग्गहणे य अचियत्तं ॥५७७७।। १ मेहुणि मामाकी तथा भूपा की लड़की तथा साली (पत्नी की बहिन)।" Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र ३७-३८ पुरेकम्मं संजतेण सह भोयव्यं हत्यपादादिसुद्धं करेइ, संजतो भुंजिस्सइ त्ति प्रधिकतरं रंधावेति । पच्छाकम्मं "कोवि एसो" ति सचेलण्हाणं करेज्ज, पच्छितं वा पडिवज्जेज्ज, संजतेण वा भुत्ते पहुप्पंते भ्रष्णं पि रंधिज्जा, संजतो गिही वा एगतरो जुगुछं करेज्ज, विलिंगभावेण वा उड्डु करेज्जा, श्रणेण दिने उड्डाहो भवति, कासादिरोगो वा संकमेज्ज, अधिकतरखद्वेण वा श्रचियतं भवेज्ज || ५७७७॥ एवं तु भुंजमाणं, तेहिं सद्धिं तु वण्णिता दोसा । परिवारितमज्झगते, भुज्जंते लहुग दोस इमे ॥ ५७७८ ॥ १३६ परिवारितो जति भुजइ तो बउलहुं ।। ५७७८।। इमे य दोसा www परिवारियमज्झगते, भुंजते सन्य होंति चउलहुगा । गिहिमत्तचडुगादिसु, कुरुकुयदोसा य उड्डाहो || ५७७६ ॥ मज्भे ठितो जणस्स परिवारिम्रो जइ भुंजइ, ग्रहवा-समंता परिवारिम्रो दोन्हं तिण्हं वा जइ मन्गो भुंजइ, सव्वप्यगारेहिं चउनहूं, गिहिमायणे य ग भुंजियव्वं तत्थ भुजंतो प्रायाराम्रो भस्सा | ""कंसेसु कंसपाएसु" - सिलोगो । मत्तगचडुगादिसु य भुजंतस्स उड्डाहो भवति, कंजियदत्रेण य उड्डाहो, इयरेण प्राक्कायवि राहणा बहुत्रेण य कुरुकुयकरणे उपिलावणादि दोसा, जम्हा एवमादिदोसा तम्हा एतेहि सद्धि परिवेढिएण वाण भुजियव्वं ॥ ५७७६ ।। समुद्दिसेज्ज | बितियपद सेहसाहारणे य गेलण्ण रायदुट्ठे य । आहार तेण श्रद्धाण रोहए भयलभे तत्थेव || ५७८०|| पुव्वसंधुतो पच्छासंयुतो वा पुव्वं एगभायणो प्रासी से तस्स णेहेण श्रागतो जति ग भुंजति तो विपरिणमति, भतो सेहेण समं भुजति, परिवेदितोवि तेसागण्सु मा एतेसि संक। भविस्सति "कि एस अपसागारियं समुद्दिसति त्ति ग्रम्हे बाहि करेति" बाहिभावं गच्छे प्रतो परिवेदितो भुंजति । साहारणं वा लद्धं तं पण चैव भुजियव्वं, ग्रह कक्खडं प्रोमं ताहे घेतु वीसुं भुजति, ग्रह दाया न देइ, ते वा न देति, ताहे तेहि चैत्र सद्धि परिवुडो वा भुजति । गिलाणो वा वेज्जस्स पुरतो समुद्दिसेज्जा, जयगाए कुरुकुयं करेज्जा । राय रायपुरिसेहि णिज्जतो तेहि परिवेदितो भुजेज्जा | श्राहारतेणगेसु तेसि पुरनो भुजेज्ज । श्रद्धाणतेणसावयभया सत्यस्स मज्भे चैव भुजनि । - रोहगे सम्बेसि एक्का वसही होज्जा, बोहिगादिभए जगेण सह कंदराइमु प्रच्छति, तत्थ तेसिं पुरतो - प्रोम कहिचि सत्तागारे तत्थेव भुजंताण लब्मति, भाययेसु ण लब्भति तत्थेव भुजेज्जा | सगारिए एक्को परिवेसणं करे चड्डगाइमु संतरं संभुजति, गाउं दुविहदवेण कुरुकुयं करेइ सब्बेसु जहासंभवं । एसा जयणा ॥५७८०|| १ दशवे० प्र० ६ गा० ५१ । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश उददेशक: जे भिक्खू आयरिय-उवज्झायाणं सेज्जासंथारगं पाएणं संघट्टेत्ता हत्थेणं गुणवत्ता धारयमाणो गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जइ ॥ | सू०||३८|| भाष्यगाथा ५७७८-५७८४ ] प्राचार्य एवं उपाध्याय प्रायरिय उवज्झाम्रो भण्णति, केसिचि प्रायरिम्रो केसिंचि प्रायरिभ्रउवज्झातो । हवा - जहा प्रायरियस्स तहा उवज्झायस्स वि न संघट्टेज्जति । पातो सव्वाऽफरिसित्ति प्रविणतो । हत्थे प्रणणुष्णवति न हन्तेन स्पृष्ट्रा नमस्कारयति मिध्यादुष्कृतं च न भाषते, तस्स चउलहुँ । सेज्जासंथारग्गहणातो इमे वि गहिया - आहार उवहि देह, गुरुणा संघट्टियाण पादेहि | जे भिक्खु ण खामेति, सो पावति ऋणमादीणि ॥ ५७८१ ॥ जत्थ मत्तगे भत्तं धारितं, उवहि त्ति - कप्पादी, सेसं कंठं ।।५७८१ ॥ हारे कहं पुण संघट्टेति ?, भण्णति - पविते णिक्खमंते, य चंकमंते व वावरंते वा । चेडविण्णाऽऽउंटण, पसारयंते व संघट्टे ॥ ५७८२ ॥ पंथे वा चंक्रमतो विस्सामणादिवावारं करेंतो, सेसं कंठं ॥ ५७८२ ।। चोदगाह - "जुतं प्राहारउवधिदेहस्स य प्रघट्टणं । संथारगभूमी किं ण संघट्टिजति ? को वा उवकरणाति संघट्टिएमु दोसो ?, आचार्य ग्राह - कमरेणु बहुमाणो, अविणय परितारणा य इत्यादी । संथारम्गहणमत्रा, उच्छुवणस्सेव वति रक्खा || ५७८३ || १३७ कति पदे जा रेणू सा संघारगभूमीए परिसडति, उवकरणे वा लग्गति, अबहुमाणो प्रविणो य संघट्टिएको, प्रणं च उच्छ्रवणे रक्खियव्वे वर्ति रखखति - ण भंजणं देति, तस्स रक्खणे उच्छुवर्ण रखितं चैव एवं संचारगस्स प्रसंघणे गुरुस्स देहातियां दूरातो चेव परिहरिता । संजमायविराहणा य, प्रायारयं च प्रवमष्णतेण संजमो विराहिश्रो । कहं ? जेण तम्मि चेव णाणदंसणचरिताणि प्रीणाणि ""जे यावि मंदे त्ति गुरु ०" वृत्तं । प्रायविराहणा - जाए देवयाए प्रायरिया परिगाहिता सा विराहेज्ज, प्रष्णो वा कोइ प्रायरिय पक्खित्तो साधू उट्टेज्जा, तत्थ असंखडादी दोसा ।। ५७८३ ।। चितियपदमणप्पज्झे, ण खमे अविकोविते व अप्पज्झे । खित्तादोसण्णं वा, खामे श्रउट्टिया वा वि || ५७८४|| - प्रणवको सेहो वा अजाणतो ण स्वामेति प्रायरियं वा खितादिचित्तं सारवेंतो दित्तचित्तं वा उवेच संघट्टेज्जा, श्रोसण्णं वा "मं एए प्रोसण्णमिति परिभवंति" त्ति उज्जमेज्जा, एवं प्राउट्टियाए वि संघट्टेज्जा पच्छा समावे६ ।। ५७८४।। १ दशवं० प्र० ६ गा० २ । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ V १३८ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे जे भिक्खू पमाणाइरित्तं वा गणणाइरित्तं वा उवहिं धरेह, धरेतं वा सातिज्जति ॥ | सू०||३६|| गणणा पमाणेण य, हीणतिरित्तं व जो धरेज्जाहि । होवग्गह उवही, सो पावति आगमादीणि ॥ ५७८५|| उवधी दुविहो - प्रोहोवही उवग्गहितो य । एक्केक्को तित्रिहो - जहणो मज्झिमो उक्कोसो य । तत्थ शक्केके गणणापमाणं पमाणपमाणं च तं हीणं अधिकं वा जो घरेति । तत्थ प्रोमो - सुत्तभणियं चउलहं । विभागतो -प्रणाप्रत्येण उवधिणिष्कण्णं भारभयपरितावणादी दोसा, जम्हा एते दोसा तम्हा ण होगातिरिक्तं धरेयध्वं ॥ ५७८५॥ जिण थेराणं गणणातिपमाणेण जाणणत्थं भण्णति - दव्वष्पमाणगणणाइरेग परिकम्म विभूषणा य मुच्छा य । उवहिस्स य प्रमाणं, जिणथेर अधक्कमं वोच्छं ||५७८६|| जिथेराणं इमं पायणिज्जोगपमाणं - पत्तं पत्तावधी पायवणं च पायकेसरिया ! पडलाइ रयत्ताणं, च गुच्छम्रो पायनिज्जोगो || ५७८७|| कंठ्या इमं जिणकप्पियाणं सरीरोवाहिप्पमाण - तिण्णेव य पच्छागा, स्यहरणं चेव होइ मुहपोत्ती । एसो दुवास विहो, उवही जिणकप्पियाणं तु ||५७८८|| कंठ्या इमं जहणमज्झिमुकोसाण कप्पाण य प्पमाणं - चत्तारि उ उक्कोसा, मज्झिमगा जहण्णगा वि चत्तारि । कप्पाणं तु पमाणं, संडासो दो य रयणी || ५७८६॥ संडासोत्ति कुडंडो, रयणित्ति दो हत्था, एयं दीहत्तणेण, वित्थ रेण दिवड रर्याणि । ग्रहवा जिण कप्पियाणं कप्पपरिमाणं दीहत्तणेण संडासो वित्थारेण दोणि रयणीप्रो, एस श्रादेशो वक्खमाणो ||५७८६ ।। इमं पत्तगबंधस्स पमाणप्पमाणं - पत्ताबंधपमाणं, भाणपमाणेण होइ कायव्वं । जह गठिम्मि कयम्मी, कोणा चउरंगुला होंति || ५७६०|| [ सूत्र- ३९ जं च समचउरंसं तस्स जा बाहिरतो परिही तेण भायणप्पमाणेण पत्तगबंधो कायव्वो, जं पुण विसमं तस्स जा परिही महंततरी तेणप्पमाणेण पत्तगबंधो कायव्वो, हवा - गंठीए कयाए जहा पत्तगबंधकण्णा चउरंगुला भवंति - गंठीए अतिरिक्त्ता भवतीत्यर्थः ।। ५७६० इमं रयताणस्स पमाणप्यमाणं - रयताणपमाणं भाणपमाणेण होइ निष्फण्णं । पायाहिणं करतं, मज्झे चउरंगुलं कमह || ५७६१ ॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५७८५-५७६५] षोडश उद्देशकः १३६ मज्झि ति - मुहंताम्रो मुहासो बहा दो वि अंता चउरंगुलं कर्मति एवं रयताणप्पमाणं ॥५७६१॥ अहवा - जिणकप्पियस्स कप्पप्पमाणं इम अवरो वि य आएसो, संडासो सोत्थिए निवण्णे य । जं खंडियं ददं तं, छम्मासे दुब्बलं इयरं ॥५७६२॥ प्रादेसो ति - प्रकारः । संडासो ति कप्पाण दीहप्पमाणं, एयं जाणुसंडासगातो माढतं पुते पडिच्छादेंता जाव बंध एवं दीहत्तणं । सोत्थिए त्ति - दो वि बोधवकण्णे दोहि वि हत्यहि घेत्तु दो वि बाहुसोसे पावति । कहं ? उच्यते - दाहिणणं वाम बाहुसीसं, एवं दोण्ह वि कलादीण हृदयपदेसे सोत्थियागारो भवति । एवं कप्पाण बोधव्वं ॥५७६२।। एत्थ पाएसेण इमं कारणं - संडासछिड्डेण हिमाइ एति, गुत्ता अगुत्ता वि य तस्स सेज्जा। हत्थेहि तो गेव्हिय दो वि कण्णे, काऊण खंधे सुबई व झाई ।५७६३॥ जिणकप्पियाण गुत्ता प्रगुत्ता वा सेजा होज्जा, ताए सेज्जाए उक्कुडुअशिविट्ठस्स संडासछिड्डे सु प्रही हिमवातो वा प्रागच्छेज्ज, तस्स रक्खणट्ठाते, तेण कारणेण एस पाउरणविही, कप्पाण एवं पमाणं भणिय - "दो वि कणे' ति दो वि वत्थस्स कणे घेत्तु णिवण्णो णिसण्णो वा सुवति झायति वा । सो पुण उक्कुडतो चेव अच्छइ प्रायो जग्गति य । केई भणंति - उक्कुडुप्रो चेव णिहाइयो सुवइ ईसिमेत्तं ततियजामे । सो पुण केरिसं वत्थं गेण्हति ? जं"खंडियं" ति छिण्णं जं एक्कातो पासाउ, तं च ज छम्मासं घरति जहणणं तं दढं गेहति, २"इयर" ति जं छम्मासं ण घरति तं दुब्बलं ण गेण्हति ॥५७६३॥ एवं गच्छणिग्गयाणं पमाणं गतं । इदाणिं गच्छवासीणं प्रमाण प्रमाण-प्रमाणं च भण्णत्ति - कप्पा आतपमाणा, अड्राइज्जा उ वित्थडा हत्थे। एवं मज्झिम माणं, उक्कोसं होंति चत्तारि ॥५७६४॥ उक्कोसेण चत्तारि हत्था दीहत्तणेणं एवं पमाणं अणुग्गहत्थं थेराण भवति, पुटुत्ते वि छ अंगुला समाधिया कति ।।५७६४।। मज्झिमुक्कोसएसु दोसु वि पमाणेसु इमं कारणं - संकुचित तरुण आतप्पमाण सुवणे ण सीतसंफासो । दुहतो पेल्लण थेरे, अणुचिय पाणादिरक्खा य ॥५७६५॥ तरुणभिक्खू बलवंतो, सो संकुचियपापो सुवति, जेण कारणेणं तस्स " सीतस्पर्शो भवति तेण तस्स कप्पा पायप्पमाणा। जो पुण थेरो सो खीणबलो ण सक्केति संकुचियपादो सुविउं तेण तस्स अहियप्पमाणा १ गा० ५७२२ । २ गा० ५७६२ । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [सूत्र-३९ कप्पा कप्पंति । "पेल्लणं" ति प्रक्कमणं "दुहमो" ति - सिरपादांतेसु दोसु म पासेसु एवं तस्स सीतं ग भवति । सेहस्स वि अणुच्चिए सुवणविहिम्मि एवं चेव कप्पाण पमाणं कबति । भवि य पाणदया कया भवति, न मंडूकप्लुत्या कीडाती पविसंतीति ॥५७६५॥ इमं पडलाण गणणप्पमाणं - तिविधम्मि कालछेदे, तिविधा पडलाओ होंति पादस्स । गिम्ह-सिसिर-वासासुं, उक्कोसा मज्झिम जहण्णा ॥५७६६॥ ने दढा ते उक्कोसा, ८ढदुम्बला मज्झिमा, दुब्बला जहण्णा, सेसं कंठं। गिम्हासु तिण्णि पडला, चउरो हेमंति पंच वासासु । उक्कोसगा उ एए, एत्तो पुण मज्झिमे वोच्छं ।।५७६७।। गिम्हासु चउ पडला, पंच य हेमंति छच्च वासासु । एए खलु मज्झिमा य, एत्तो उ जहनओ वुच्छं ॥५७६८॥ गिम्हासु पंच पडला, छप्पुण हेमंति सत्त वासासु । तिविहंमि कालछेए, पायावरणा भवे पडला ॥५७६६॥ तिन्नि वि गाहामो कंठात्रो कायव्वाप्रो । इमं रयोहरणं - घणं मूले थिरं मज्झे, अग्गे मद्दवजुत्तयं । एगंगियं अझुसिरं, पोरायाम तिपासियं ॥५८००॥ हत्यग्गहपदेसे मूल भणति, तत्थ धगं वेढिज्जति, मति रयहरणपट्टगो सो य दढो, गभगो वा मज्झसो दढो, अग्गा दसानो तारो महवामो कायव्वानो, एगगियं दुगादिखंड न भवति, प्रभुसिरं ति रोमबहुलं न भवति, वेढियं प्रगुट्ठपव्व मेत्तं तिमागे तज्जायदोरेण बद्धं तिपासियं ॥५८००।। भण्णति - अप्पोल्लं मिउपम्हं, पडिपुण्णं हत्थपूरिमं । तिपरियल्लमणिस्सिटुं, रयहरणं धारए एगं ॥५८०१॥ अप्पोल्लं-अमुसिरमित्यर्थः, मृदुदशं, पडिपुष्णं प्रमाणतः बत्तीसंगुलं सह णिसेज्जाए, हत्यपूरिमणिसेज्जाए तिपरियलं वेढिज्जति, "प्रणिसह" ति उग्णहा अफिट्ट धरिज्जति ॥५८०११॥ उणियं उट्टियं वावि, कंबलं पायपुच्छणं । रयणिप्पमाणमित्रं, कुज्जा पोरपरिग्गहं ॥५८०२॥ उणिय-कंबलं उट्टियकंबलं वा पायपुंछणं भवति । रयणि त्ति हत्यो, तप्पमाणो पट्टगो ॥५८०२॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५७६६-५८०६] पोश उद्देशकः १४१ संथारुत्तरपट्टो, अडाइज्जा य आयया हत्था । दोहंपि य वित्थारो, हत्थो चउरंगुलं चेव ॥५८०३।। उण्णिमो संथारपट्टगो, खोमियो तप्पमाणो उत्तरपट्टगो, सेसं कंठ्य ॥५८०६॥ इमो चोलपट्टगो दुगुणो चउग्गुणो वा, हत्थो चउरंस चोलपट्टो य । थेरजुवाणाणट्ठा, सण्हे धृलंमि य विभासा ॥५८०४॥ दढो जो सो दीहत्तणेण दो हत्था वित्थारेण हत्थो सो दुगुणो कतो समच उरंसो भवति, जो दढ. दुब्बलो सो दोहत्तगेण चउरो हत्था, सो वि च उगुणो को हत्थमेत्तो चउरसो भवति, एगगुणं ति गणणप्पमाणे, उणिया एगा णिसिज्जा पमाणपमाणेन हस्तप्रमाणा तप्पमाणा चेव तस्स अंतो पच्छादणा खोमिया गिसेज्जा ॥५८०४॥ चउरंगुलं वितत्थी, एयं मुहणंतगस्स उ पमाणं । बीओवि य आएसो, मुहप्पमाणेण निप्फनं ॥५८०॥ वितियप्पमाणं विकणकोणग'हयं णासिगमुहं पच्छादेति जहा किकाडियाए गंठी भवति ॥५८०५।। गोच्छयपादट्टवणं, पडिलेहणिया य होइ णायव्वा । तिण्हं पि उ प्पमाणं, वितथि चउरंगुलं चेव ॥५८०६॥ कंठ्या जो वि दुवत्थ तिवत्थो, एगेण अचेलतो व संथरती । ण हु ते खिसंति परं, सव्वेण वि तिषिण घेत्तव्या ॥५८०७॥ जिणकप्पियाण गहणं, थेरकप्पियाण परिभोगं प्रति, जो एगेणं संथरति सो एगं गेहति परि जति वा । जो दोहि संथरति सो दो गेहति परिमु जति वा, एवं ततिमो वि। जिणकप्पियो वा अचेलो जो संघरति सो अचेलो चेव अच्छति, एस अभिग्गहविसेसो भणियो । एतेण अभिग्गहंविसेसट्ठिएण अधिकतरवत्थो ण हीलियन्वो । कि कारणं? जम्हा जिणाण एसा प्राणा, वेण वि तिणि कप्पा घेत्तव्वा । पेरकप्पियाणं जइ अपाउएण संथरति तहा व तिष्णि कप्पा णियमा घेत्तवा ॥५८०७॥ कप्पाण इमो गुणो अप्पा असंथरंतो. निवारिओ होति तिहि उ वत्थेहिं । गिण्हति गुरू विदिण्णे पगासपडिलेहणे सत्त ॥५८०८॥ सीतादिणा प्रसंथरंतस्स तं प्रसंथरणं वत्थपरिभोगेणं णिवारितं भवति । ते यं वत्थे गुरुणा पायरिएण दिण्णे गेण्हति, पगासपडिलेहण त्ति प्रचोरहरणिज्जे, उक्कोसेण सत्त गेहति ॥५८०॥ इमं उस्सग्गतो, अववादियं च प्रमाणं - तिण्णि कसिणे जहण्णे, पंच य दढदुबला य गेण्हेज्जा।' सत्त य परिजुण्णाई, एयं उक्कोसयं गहणं ॥५८०६।। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-३६ - कसिण त्ति वणातो जुत्तप्पमाणा घणमसिणा, जेहिं सविया अंतरितो न दीसह तारिसा, जहणेण तिष्णि गेण्हति । पंच दढदुब्बले, परिजुणे सत्ता गेण्हइ ।।५८०६॥ भिण्णं गणणाजुत्तं, पमाण-इंगाल-धूमपरिसुद्ध। उवहिं धारए भिक्खू, जो गणचितं न चिंतेइ ॥५८१०॥ भिण्णं ति अदसं सगलं न भवति, गणणप्पमाणेण पमाणप्पमाणेण य जुत्तं गेण्हइ । इंगालो त्ति रागो, धूमो त्ति दोसो, तेहि परिसुद्धं - न तेहिं परिभंजतीत्यर्थः ।।५८१०॥ जो सामण्णभिक्खू तस्सेयं वत्थप्पमाणं भणियं । जो पुण गणचितगो गणावच्छेदगादि तस्सिमं पमाणं - गणचिंतगस्स एत्तो, उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो य । सव्वो वि होइ उवही, उवग्गहकरो महा (ज) णस्स ॥५८११।। गचितगो गणावच्छेइगो तस्स जहण्णमज्झिमुक्कोसो सव्वो वि मोहितो उवग्गहितो वा, महाजणो गच्छो ।।५८११।। आलंबणे विसुद्ध, दुगुणो तिगुणो चउगुणो वा वि । सव्यो वि होइ उवही, उवग्गहकरो महाणस्स ॥५८१२॥ प्रालंबति ज तं प्रालंबणं, 'त' दुविधं - दव्वे रज्जुमादी, भावे जाणादी। इह पुण भावे दुल्लभवत्थादिदेसे तत्थ जो गणचितगो सो दुगुणं पडोयारं तिगुणं वा च उगुणं वा, अहवा - जो अतिरित्तो प्रोहितो उवगहितो सबो गणचितगस्स परिग्गहो भवति, महाजणो ति गच्छो तस्स प्रावतिकाले उवग्गहकरो भविस्सइ ४५८१२॥ गणणप्पमाणेत्ति गयं । इदाणि अइरेगहीणे त्ति - पेहा-ऽपेहकता दोसा, भारो अहिकरणमेव अतिरित्ते । एते हवंति दोसा. कज्जविवत्ती य हीणम्मि ||५८१३॥ अतिरेग पडिलेहंतस्स सुत्तादिपलिमथो, अपेहंतस्स उवहिणिप्फण्णं, अपरिभोगे अनुपभोगत्वात् मधिकरणं भवति, हीणे पुण कज्जविवत्ति विणासो भवति ।।५८१३॥ हीणाइरित्ते त्ति गयं । इदाणि परिकम्मणे त्ति - परिकम्मणे चउभंगो, कारण विही बितिओ कारणे अविही । णिक्कारणम्मि य विही, चउत्थो निक्कारणे अविही ॥५८१४॥ कारण अणुण्ण विहिणा, सुद्धो सेसेसु मासिया तिण्णि । तव-कालेहि विसिट्ठा, अंते गुरुगा य दोहिं पि ॥५८१५॥ सुद्धो कारणे विहीए एस पढमभंगो, एत्थ प्रणुणे त्ति परिकम्मे ति सुद्धो ति ण पच्छित्तं । सेसेसु तिसु भंगेसु पत्तेयं मासलहुं । प्रितियभंगे कालगुरु । ततियभगे तवगुरु । मंतिल्लो चउत्थभंगो तत्थ तवकालेहि १ मा० ५७८६ । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाध्यगाथा ५८१०-५८१८] षोडश उद्देशक: १४३ दोहि वि गुरु । परिकम्मणंति वा सिव्वर्णति वा एगहूँ । एगसरा डंडी उन्वट्टणि घग्गरसिव्वणि य एसा प्रविही, झसकंटगदुसरिगा य विही ।।५८१५॥ इदाणि ""विभूस" ति - उदाहडा जे हरियाहडीए, परेहि धोतादिपदा उ वत्थे । भूसाणिमित्तं खलु ते करेंते, उग्घातिता वत्थ सवित्थरा उ ॥५८१६॥ "उदाहड" ति मणिया "२हरिया हडिया'' सुत्ते । परेहि ति तेणगेहि जे घोताती पदा कता ते जति अपणा विभूसावडियाए करेति तं जहा धोवति वा, रयति वा, घट्टेति वा, मटुं वा करेति, 3विवरित्तरंगेहि वा रयति तस्स चउलहुं । सवित्थरगहणातो घोतादिपदे करेंतस्स जा प्रायविराहणा तासु जं पच्छित्तं तं च . भवति ।।५८१६॥ विभूसं करेंतस्स इमो अभिप्पासो - मलेण पत्थं बहुणा उ वत्थं, उज्झाइओ हं चिमिणा भवामि । हं तस्स धोवम्मि करेमि तत्ति, वरंण जोगो मलिणाण जोगो ॥५८१७॥ मलिनं वस्त्रं तेन वाऽहं विरूपो दृश्ये, यस्माद्विरूपोऽहं दृश्ये तस्मात्तस्य वस्त्रस्य धोतव्ये “तत्ति" त्ति - जेण तं धोवति. गोमुत्तातिणा तं उदाहरामि, “वरं ण जोगो" ति - वरं मे अवत्थगस्स कप्पति प्रच्छिउ, ण य मलिणेहि वत्थेहि सह संजोगो ॥५८१७।। कारणे पुणो धोवंतो सुद्धो। चोदगो भणाति - णणु धोवंतस्स । “विभूसा इत्यीसंसग्गी" सिलोगो। पायरियो भणइ - कामं विभूसा खलु लोभदोसो, तहावि तं पाहुणतो ण दोसो । मा हीलणिज्जो इमिणा भविम्स, पुन्विडिमादी इय संजती वि ॥५८१८॥ कामं चादगाभिप्पायस्स अणुमयत्थे, खलु अवधारणे, जा एषा विभूसा - एस लोभ एवेत्यर्थः, तहावि तं वत्थं ""सुविभूसितं कारणे काऊण पाउरणे ण दोसो भवति । रायाइइड्डिम जो इडि विहाय पव्वइप्रो सो चितेति - "मा इमस्स प्रबुहजणस्स इहलोकपडिबद्धस्स इमेहि मलिणवत्थेहि होलणिज्जो भविस्सामि त्ति । एस सावसत्तो ग तं तारिसं विभूति परिचज्ज इमं प्रवत्थं पत्तो किमण्णं तवेण पाविहित्ति" ति, एवं संजती वि हिंडइ अच्छति वा णिचं पंडरपडपाउमा ॥५८१८॥ ण तस्स वत्थादिसु कोइ संगो, रज्जं तणं चेव जहाय तेणं । जो सो उवज्झाइय वत्थसंगो, तं गारवा सो ण चएइ मोत्तं ॥५८१६।। जो सो इडिम पव्वतितो ण तस्स वत्मादिसु कोइ संगो ति वा बंधणं ति वा एगहूँ। कह णज्जति जहा सगो पत्थि ?, उच्यते - जतो तेण रज्जं बहुगुणं तृणमिव जढं । सेसं कंठं ॥५८१६॥ विभूसत्ति गयं। १ गा० ५७८६ । २ बृहत्कल्पे सू० ४५। ३ विचित्त '' इत्यपि पाठः । ४ दशव० प्र०८ गा० ५७ । ५ सईभूयं इत्यपि पाठः । ६ किमणेण इत्यपि पाठः । . Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [मूत्र-३६ इदाणि 'मुच्छ त्ति - महद्धणे अप्पधणे व वत्थे, मुच्छिज्जती जो अविवित्तभावो। सई पि नो भुंजइ मा हु झिज्झे, वारेति वणं कसिणा दुगा दो ॥५८२०॥ बहुमुल्ल अप्पमोल्लं वा अविवित्तभावो ति अविसुद्धभावो, प्रविवित्तो - लोहिल्लमित्यर्थः । तं पहाणवत्थं ण सयं भुंजति, जो प्रणं वारेइ परिभुजतं तस्स पच्छित्तं, “कसिणा दुगा दो" ति, कमिण ति संपुष्णा, दुगा दो चउरो - चउगुरुमित्यर्थः ।।५८२०॥ वत्थे इमाणि मुच्छाकारंणाणि - देसिल्लगं पम्हजयं मणुण्णं, चिरायणं दाइ सिणेहतो वा । लभं च अण्णं पि इमप्पभावा, मुच्छिज्जती एव भिसं कुसत्तो ॥५८२१॥ देसिल्लगं जहा पोंड़वधनक, पम्हजुगं जहा पूरवुढपावारगो, सोहं थूलं सदेस-परदेसं वा, मणस्स जं उच्च तं मणण्णं, चिरायणं पायरियपरंपरागयं, दाइंति विकारार्थे जेण वा तं दिणं तस्स सिणेहतोण परिभजति. इमेण वा अच्छतेण एयप्पभावाप्रो अण्णं पि लभामो एवं मुच्छाए ण परि जति, एवं ति एवं "भिसं" प्रत्यर्थ कुत्सितं सत्त्वं यस्य भवति स कुसत्वो अल्पसत्व इत्यर्थः, एवं भिसं कुसत्वो लोभं करोतीत्यर्थः ॥५८२१॥ वत्ये त्ति गतं । इदाणिं पायं भणामि ; तस्स इमाणि दाराणि - दव्वप्पमाणअतिरेग हीणदोसा तहेव अववादे । लक्खणमलक्खणं तिविह उवहि वोच्चत्य आणादी ॥५८२२॥ १० . १३ को पोरिसीए काले, आकर चाउल जहण्ण जयणाए । 'चोदग असती असिव, प्पमाणउवोग छेदण मुहे य ॥५८२३॥ पमाणाइरेगधरणे, चउरो मासा हवंति उग्घाया। आणादिणो य दोसा, विराहणा संजमा-ऽऽयाए ॥५८२४॥ द्रव्यपात्रं, तस्य दुविषं प्रमाणं - गणणप्पमाणं पमाणप्पमाणं च । दुविहस्स वि पमाणस्स मतिरेगधरणे चउलहुगा । सेसं कंठय। गणणाते पमाणेण व, गणणाते समत्तो पडिग्गहो। पलिमंथ भरुडंडुग, अतिप्पमाणे इमे दोसा ॥५८२॥ दुविहं पमाणं, तत्थ गणणप्पमाणेण दो पादा - पडिग्गही मत्तगो य । ग्रह एतो तिगादिप्रतिरित्तं घरेति तो परिकम्मण-रंगण पडिलेहणादिसु सुत्तत्यालिमयो प्रद्धाणे वहतो भारो उइंडकरच जनहास्यो भवति'अहो ! भारवाहिता इमे' ॥५८२५।। ५ गा० ५७८६। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५८१८-५८३०] षोडश उद्देशकः 'दुप्पमाणाइरित्ते वि इमे दोसा - भारेण वेयणाते, अभिहणमादी ण पेहए दोसा । रीयादि संजमम्मि य, छक्काया भाणभेदम्मि ॥५८२६॥ भारो भवति, भारक्कंतस्स य वेयणा भवति, वेयणाए य अदितो गोणहत्थिमाइ ग पस्सति, ते अभिहणेज्जा, वडसालक्खाणुमाइ वा न पेहइ, इरिउवउत्तो वा न भवइ, अणुवउत्तो वा छक्काए विराहेज्ज, मणुव उत्तो वा भायणभेयं करेज्जा । ।५८२६॥ इमे प्रइरेगदोसा । "अइरेग" ति पमाणप्पमाणातो - भाणऽप्पमाणगहणे, भुंजण गेलण्णभुज उज्झिमिता । एसणपेल्लण भेदो, हाणि अडते दुविध दोसा ॥५८२७॥ भाजनं मप्रमाणं – भाणऽपमाणति तं, प्रतिवुडं गेण्हति । तम्मि भरिए जइ सव्वं भुजति तो हा (तो)देज्ज वा मारेज्ज वा गेलग्नं वा कुजा. अह ण भुजति तो उज्झिमिता प्रहिकरणादी दोसा । मायणं भरेमि त्ति प्रलम्भमाणं एसणं पेलित्ता भरेति, भरिए प्रतिभारेण पच्चुप्पिडित्ता भजति, भायणेण विणा अप्पणो कज्जपरिहाणी, भायणट्ठा पडतस्स भायणभूमीजतस्स दुविह ति - प्रायसंजमविराहणा दोसा भवंति ।।५८२७॥ हीणदोसत्ति अस्य व्याख्या - हीणप्पमाणवरणे, चउरो मासा हवंति उग्धाता। आणादिया य दोसा, विराहणा संजमा-ऽऽयाए ॥५८२८॥ जं पडिग्गहगमत्तगप्पमाणं भणियं ततो जति हीणं धरेति ततो पडिग्गहगे चउलहुं, मत्तगे मासलहूं ।।५८२८॥ कि चान्यत् - ऊणेण ण पूरिस्म, आकंठा तेण गेण्हती उभयं । मा लेवकडं ति ततो, तत्थुवोगं न भूमीए ।।५८२६॥ ऊणेणं ति प्रमाणतो एतेण भरिएण वि ण पूरेस्संति ण संथरिस्संति ताहे कण्णाकण्णि भरेति, उभयं ति कूरं कुसणं च, अहवा - भत्तं पाणं वा । तम्मि प्रतिभरिए मा पत्तबंधो लेवाडिस्सति ति - तदुवप्रोगेण भूमीए उवमोगं न करेति ।।५८२६॥ अणुवत्तस्स य इमे दोसा खाण कंटग विसमे, अभिहणमादी ण पेहती दोसा । रीया पगलित तेणग, भायणभेदे य छक्काया ॥५८३०॥ अणुवउत्तो खाणुणा दुक्खाविज्जति, कंटगेण वा विझति, विसमे वा पडति, गवादिणा वा अभिहष्णति । एसा पायविराहणा। रीयादी संजमविराहणा कंठ्या ।।५८३०॥ . १ गा० ५८२० दा० २ । २ गा• ५८२० । ३ गा० ५८२० । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ सभाष्य-णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-३१ अहवा इमे दोसा 'हीणप्पमाणधरणे, चउरो मासा हवंति उग्घाया। आणादिया य दोसा, विराहणा संजमायाए ॥५८३१॥ कंख्या गुरुमाइयाण अदाणे इमं पच्छित्तं - गुरु पाहुणए दुब्बल, पाले वुड्डे गिलाण सेहे य । लाभा-ऽऽलाभऽद्धाणे, अणुकंपा लाभवोच्छेदो ॥५८३२॥ गुरुगा य गुरु-गिलाणे, पाहुण-खमए य चउलहू होंति । सेहम्मि य मासगुरू, दुब्वल जुव (य) ले य मासलहुं ॥५८३३।। कंठ्या गुरुमादियाण इमा विभासा - . अप्प-परपरिच्चाओ, गुरुमादीण तु अदेत-दंतस्स । अपरिच्छिते य दोसा, वोच्छेदो णिज्जराऽलाभो ॥५८३४॥ डहरभायणभरियं गुरुमादियाण जति देति तो अप्पा चत्तो, अह ण देति तो गुरुमातिया परिचत्ता । दुब्बलो सभावतो रोगतो वा न तरति हिंडिउं तस्स दायव्वं ।। __ "रलाभाऽऽलोभ" त्ति अस्य व्याख्या - "अपरिच्छिते य दोसा", जस्स हीणप्पमाणं भायणं सो खेत्तपडिलेहगो पट्टितो, स तेण खुडुलगेण भाणेण किह लाभं परिक्खउ, ताहे जे अपरिक्खित्ते खेत्ते दोसा, ते मंदपरिक्खिए वि गच्छस्स य आगयस्स अलभंते जं असंयरणं जा य परिहाणी सा सव्वा खुड्डुलभाणग्गाहिणो भवति, प्रद्धाणे वा पवण्णाण संखडी होज्जा तत्थ पज्जत्तियलाभे लब्भमाणे कहिं गेहउ ? तं भायणं थेवेणं चेव भरियं। अहवा - अणुकंपलाभवोच्छतो" त्ति - छिण्णद्धाणे वा कोइ अणु कंपाए वा जं जं पडिज्जति तं भायणं भरेति, तत्थ गच्छसाधारणकरं भायणं उड्डयव्वं, हीणभायणे पुण प्रडिज्जते लाभस्स वोच्छेदो णिज्जराए य अलाभो भवति । अहवा - सट्ठाणेऽवि घयादिदव्वे लन्भमाणे खुड्डलभायणेण लाभवोच्छेदं करेज्ज निज्जगए वा प्रलाभ पावेज्ज ॥५८३४॥ इमे य डहरभायणे दोसा - लेवकडे वोसट्टे, सुक्के लग्गेज्ज कोडिए सिहरे । एते हवंति दोसा, डहरे भाणे य उड्डाहो ॥५८३॥ तेण अतीव पाहुडियं ताहे तेण वोमटुं, तेण अतिपलोट्टमाणेण लेवाडिज्जति । अहवा - मा येवं भत्तं देहोति, ताहे सुक्कस्स चप्पाचप्पं भरेड, तं च सुक्क भत्तं लगेज्ज अजिण्णं हवेज्ज । कोडियं ति चप्पियं चपिज्जत वा भजेज्ज, सुक्कभत्तस्स वा सिहरं करेंतो भरेज्ज, तं जणो दटुंभणति - अहो ! असंतुट्टा । पच्छदं कंठं ॥५८३५॥ १ गाथेयमधिका प्रतिभाति । २ गा० ५८३२ । ३ गा० ५८३२। Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५८३१-५ षोडश उद्देशकः धुवणाधुवणे दोसा, वोसट्ठते य काय आतुसिणे । सुक्खे लग्गाऽजीरग कोडित सिह भेद उड्डाहो ॥५८३६॥ वोस,तेण चं लेवाहितं तं जति धोवति तो उन्भावणादी दोसा, अहण धोवति तो रातीभोयणभंगो। अहवा - वोसट्टे पगलंते पुढवादी छक्कायविराधणा । अहवा - वोसढते उसिणेण दड्डे प्रायविराहणा, पच्छद्ध गतार्थ । चप्पिज्जते उस्सिहरभरिने य बहि फोड ति उड्डाहो, जम्हा एवमादी दोसा तम्हा जुत्तप्पमाण पादं घेतव्वं ।।५८३६।। केरिसं पुण तं जुत्तपमाणं ?, अत उच्यते - तिणि विहत्थी चउरंगुलं च भाण मज्झिमप्पमाणं । एतो हीण जहण्णं, अतिरेगतरं तु उक्कोसं ॥५८३७॥ उक्कोसतिसामासे, दुगाउश्रद्धाणमागश्रो साहू । चउरंगुलऊणं भायणं तु पज्जत्तियं हेट्ठा ॥५८३८॥ एयं चेव पमाणं, सविसेसतरं अणुग्गहपवत्तं । कंतारे दुभिक्खे, रोहगमादीसु भतियव्वं ॥५८३६।। एयानो जहा पामुद्देसगे तहेव ॥५८३६॥ "प्रववाय" ति अस्य व्याख्या - अण्णाणे गारवे लुद्ध, असंपत्ती य जाणए । लहुओ लहुया गुरुगा, चउत्थ सुद्ध उ जाणो ॥५८४०॥ पच्छा प्रववायं भणीहामि, जइ इमेहिं धरेति तो इमं पच्छित्तं पच्छद्धगहियं जहसंखं - अण्णाणेण मासलहुं, गारवेण चउलहुं, लुद्धस्स च उगुरुगा । प्रसंपत्ती जाणगे दो वि सुद्धा ।।५८४०।। तत्थ अण्णाणस्स वक्खाणं - हीणा-ऽतिरेगदोसे, अयाणमाणो उ धरति हीण-ऽहियं । पगतीए थोवभोई, सति लाभे वा करतोमं ॥५८४१॥ पुष्वद्ध कंठं। इमं गारवस्स वक्खाणं - पगतीए पच्छदं, पगती स्वभावो य, स्वभावतो चेव थोवभोइ । अहवा - लभते वि मोमं करेति, वरं मे थोवासि त्ति जणवातो भविस्सइ ।।५८४१।। इस्सरनिक्खंतो वा, आयरिओ वा वि एस डहरेणं । अतिगारवेण ओम, अतिप्पमाणं इमेहिं तु ॥५८४२॥ ईसरो को वि एस जेण हरेण भायणेण भिक्खं हिंडइ, पायरियत्ते ण गारवेण वा डहरमायणं गेहति ॥५८४२॥ १गा०५५२०। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ सभाष्य चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-३६ अतिप्पमाणं इमेण गारवेण धरेइ अणिमूहियबलविरिओ, वेयावच्चं करेइ अह समणो । बाहुबलं च अती से, पसंसकामी महल्लेणं ॥५८४३।। महल्लभायणेण वेयावच्च करे - एवं मे साधू पसंसिस्संति, अहवा - साहुजणो वा भणिसइ - "एयस्स विसिटुं बाहुबलं जेण महल्लेण भायणेण भिक्खं हिंडइ" ||५८४३।। 'लुद्धस्स व्याख्या - अंतं न होइ देयं, थोवासी एस देह से सुद्धं । उक्कोसस्स व लभे, कहि घेच्छ महल्ल लोभेणं ॥५८४४॥ खुडलगभायणे गहिए घरंगणे वि ठितं दद्रु घरसामी भणति - "एयम्स ग्रंतपंतभत्तं ण देयं" । अहवा भणेज्ज - "एस थोवासी, जेण एस खुड्डलएणं गेहति"। अहवा भणेज्ज- "एयस्स सुद्धं देह"। "सुदं" ति उक्कोस, शाल्योदनपढमदोच्चंगादी सुद्धो चेव । महल्लं इमेण कारणेण गेण्हति - "उक्कोसं लन्भमाणं पभूतं सामण्णं वा समुद्दाणियं लब्ममाणं कत्थ गेण्हिस्सामि' ति एवं लुद्धत्तणेण महल्लं गेहति ॥५८४४।। "असंपत्ति" दारं चउत्थं, तस्स इमं वक्खाणं जुत्तपमाणस्सऽसती, हिण-ऽतिरित्तं चउत्थो धारेति । । लक्खणजुतहीण-ऽहियं, नंदी गच्छट्टता चरिमो ॥५८४१॥ पुवढं कंठं । ""जाणगें" त्ति भस्य व्याख्या - लक्खणपच्छदं, जं लक्खणजुत्तं तं जाणगो हीणं वा अहियं वा धरेति, णाणादिगच्छवृद्धिनिमित्तं । प्रहवा - गच्छस्स उवग्गहकर गंदीभायणं, "चरिमो" ति जाणगो सो घरेति न दोसो ॥५८४५।। अववाए त्ति गयं । इदाणि "लक्खणमलक्खणे" त्ति दारं वट्ट समचउरंसं, होति थिरं थावरं च वणं च : हुंडं वायाइद्ध, भिन्नं च अधारणिज्जाइं ॥५८४६॥ वृत्ताकृति उच्छित कुक्षिपरिधितुल्यं चतुरंसं दृढं स्थिरं स्थावरं प्रप्रतिहारिक एतेहिं गुहि जुतं धणं । अहवा - अण्णेहि वि वण्णादिगुणहि जं जुत्तं तं धणं, एयं लक्खणजुत्तं । इमं अलक्खणं - विसमसंठियं हुंडं अणिप्फण्णं तुप्पडयं वाताइद्ध जं च भिणं, एते प्रलक्खणा ॥५८४६॥ संठियम्मि भरे लाभो, पतिट्ठा सुपतिहिते । निव्वणे कित्तिमारोग्गं, वण्णडु णाणसंपया ॥५८४७॥ १ गा० ५८४० द्वा० ३ । २ व्यअनादि । ३ गा० ५८४० द्वा० ४ । ४ गा० ५८४० द्वा० ५ । ५ गा० ५५२० द्वा० ५। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५५४३-५८५३,] षोडश उद्देशकः १४६ हुंडे चरित्तभेदो, सवलंमि य चित्तविन्ममं जाणे । दुप्पुते खीलसंठाणे, गणे य चरणे य नो ठाणं ॥५८४८॥ पउमुप्पले अकुसले, सम्वणे वणमाइसे । अंतो बहिं व दड्ड, मरणं तत्थ निद्दिसे ॥५८४६॥ सुसंठाणसंठिए भत्तादि लाभो भवति, जं फुल्लगबंधेण' सुपइट्ठियं तेण चरणे गणे मायरियादिपदे वा सुप्पतिद्वितो भवति । जस्स पातस्स वणो नत्यि तेण पातेण गिब्वणो भवति, कित्ती जसो य भवति, 'पारोग्गं च से भवति । पवालसण्णिभेण वणेण जं अड्डति जुत्तं तेण णाणं भवति । जं हुंडं तेण चरित्तविराहणा भवति, मूलुत रचरित्ताइयारा भवंति । सबलं चित्तविचित्तं तेग चित्तविन्भमो खित्तादिचित्तो भवति । पुष्पगं मूले न सुपइट्टियं दुप्पुतं कोप्परागारं खीलसंठियं, एरिसे गणे चरणे वा ण थिरो भवति । अहवा-हिजो चेव पन्छति । अंतो बहिं व दड्ढे, पुप्फगं भिण्णे य चउगुरू होति । इयरब्भिण्णे लहुगा, हुंडादिसु सत्तसू लहुओ॥५८५०॥ हुड सबले सव्वण, दुप्पुत वातिद्भवण्ण होणे य । कीलगसंठाणे विय, हंडाई होति सत्तेते ॥५८५१॥ जं तो बहिं वा दढं तत्थ मरणं गेलण्णं वा तं गेहते चउगुरु । पुप्फगमझ णामिभिण्णे एवं चेव। - इयरं ति - जं अण्णकुशिमादिसु भिण्णं तत्थ चउलहुं । हुंडे वाताइद्ध दुप्पुते खीलसंठाणे मवण्णड्ढे सबले सव्वणे एतेसु मासलहुं ॥५८५१॥ लक्खणमलक्खण ति गत। इदागि “२तिविहं उवहि" ति - तिविहं च होति पादं, अहाकडं अप्प-सपरिकम्मं च । पुष्वमहाकडगहणे, तस्सऽसति कमेण दोणितरे ॥५८५२।। तिविहं पादं - लाउयं दारुयं मट्टि यापायं च । पुणो एकेक्कं तिविहं - महाकडं अप्पपरिकम्म बहुपरिकम्मं च । गहणकाले पुव्वं महाकडं गेण्हियवं, तस्स प्रति अप्पपरिकम्म, तस्स मसति बहुपरिकम्म ५८८२॥ इदाणिं "वोच्चत्थ" सि तिविहे परूवितम्मि, वोच्चत्थे गहण लहुग आणादी। छेदण-भेदण करणे, जा जहि आरोवणा भणिया ॥५८५३॥ जो एस प्रहाकडाइगो गहणकमो भणियो, एयानो जं वोचत्थं विवरीयं गेहति । अहाकडस्स जोगं प्रकाउं जो अप्पपरिकम्मं बहुपरिकम्मं वा गेण्हति तस्स चउलहुं, अन्नं च ७ सपरिकम्मे पादे वि छयण-भेयणं तं करेंतस्स जा य छेपण-भेयणादिगा प्रायविराहणा संजमविराधणा व पढमुद्देसगे भणिया, सच्चेव इहं अपरिसेसा सहारोवणाए माणियन्वा ।।५८५३॥ १ रोग वा से न भवति । २ गा. ५८२. द्वा० ६ । ३ गा० ५८२. द्वा०६। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .३५. सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे बितियद्दारगाहा आदिद्दारे 'कोत्ति अस्य व्याख्या - को गेण्हति गीयत्थो, असतीए पादकप्पिओ जो उ । उस्सग्ग-बवातेहिं, कहिज्जती पादगहणं से ॥५८५४।। को पादं गेण्हति ? जो गीयत्यो सो गेण्हति । गीयत्यस्स प्रसूति जेण पादेसणा सुत्तत्थो गहिरो सो पायकप्पितो गेण्हति । तस्स वि असति जो मेहावी तस्स पादेसणा उस्सग्गववाएहि कहिज्जति, सो वा गेण्हति ॥५८५४॥ इदाणि '२पोरिसि” त्ति - हुंडादि एगबंधे, सुत्तत्थे करेंतो मग्गणं कुज्जा । दुग-तिगबंधे सुत्तं, तिण्हुवरि दो वि वज्जेज्जा ॥५८५५॥ जं हुं प्रादिसद्दातो दुप्पुतं खीलसंठियं सबलं एगबधं च, एताणि परिभूतो सुत्तत्थं करेंतो प्रहाकडादि मग्गेज्ज । जइ पुण दुगबंधणं तिगबंधणं वा पादं से, तो सुतपोरिसि काउं प्रत्थपोरिसि वज्बेत्ता मम्गति । ___ अह पादं से तिगबंधणाप्रो उरि चउसु ठाणेसु बद्ध, एरिसे पाद दो वि सुत्तत्थपोरिसीमो वजेता मादिचुदयाप्रो चेव प्राढवेता मग्गति ॥५८५५॥ पोरिसि त्ति गयं। इदाणि "काले" ति दारं । अहाकडादियाणं के केतियं मग्गियव्वं ? चत्तारि अहाकडए, दो मासा हुंति अप्पपरिकम्मे । तेण परिमग्गिऊणं, असती गहणं सपरिकम्मे ||५८५६॥ चत्तारि मासा प्रहाकडं मग्गियवं, नउहि मासेहिं पुणेहिं तस्स अलाभे अण्णे दो मासा प्रप्पपरिकम्म मगति, तेण परिमग्गि उण ति प्रहाकडकालाप्रो परत: अप्पपरिकम्म एनियं कालं मग्गति, एते छम्मासे बितियस्स वि अलंभे ताहे सपरिकम्मं मग्गियत्वं ॥५८५६।। केच्चिरं कालं ?, अत उच्यते - पणयालीसं दिवसे, मग्गित्ता जा ण लब्भते ततियं । तेण परेण ण गेण्हति, मा पक्खेणं रज्जेज्जा ॥५८५७॥ पणयालीस दिवसे बहुपरिम्म गेहति, ततो परं न गेहति, जेण पण रसेहि दिवसेहिं वरिसाकालो भास्सिति । मा तेण पक्खकालेण परिकम्मणं रंगणं रोहवणं च न परिवारिज्जति ।।५८५८।। काले त्ति गतं । इदाणि '२ग्राकरे" त्ति । अहाकडं कहि मग्गियव्वं ?, प्रत उच्यते - कुत्तीय-सिद्ध-णिण्हग,-पवज्जुवासादिसू अहाकडयं । कुत्तियवज्ज बितियं, आगरमादीसु वा दो वि ॥५८५८|| १ गा० ५८२१ द्वा० । २ गा० ५८२१ द्वा० १० । ३ गा० ५८२१ द्वा० ११ । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५८५४-५ षोडश उद्देशक: १५१ कुत्तियावणे मग्गति, सिद्ध त्ति सिद्धपुत्तो जो पव्वतितकामो कते उबकरणे वाधामो उप्पण्णो ताहे तं पडिग्गहगादि साधूणं देज्जा, णिण्हयस्स वा, एवं च समणस्स वा पासे लन्भति । ___ समणोवासप्रो वा परिमं करेउं घरं पञ्चागमो पडिग्गहगं साधूर्ण देज्ज, महाकडं एतेषु स्थानेषु प्राप्यते । अप्पपरिकम्मं कतरेषु प्राप्यते ?, मत्रोच्यते "कुतियवज्ज बितिय" - कुत्तियावणं वज्जेउं सिद्धपुत्तादिसु प्रप्पपरिकम्मं लगभति । अहवा - "प्रागरमादीसु वा दो वि" ति अप्परिकम्मं ॥५८५८।। कानि च तानि ागरमादीनि स्थानानि ? अतस्तेषां प्रदर्शनार्थ उच्यते - आगर णदी कुडंगे, वाहे तेणे य भिक्ख जंत विही। कत कारितं व कीतं, जति कप्पति तु विप्पति अज्जो ! ॥५८५६।। आगराइताण इमं वक्खाणं - आगर पल्लीमादी, णिच्चुदग-णदी कुडंग ओसरणं । वाहे तेणे भिक्खे, जंते परिभोगऽसंसत्तं ॥५८६०॥ प्रागरो भिल्लपल्ली भिल्लकोट्टं वा, 'नदि" ति जेसु गामनगरंतरेसु नदीमो लाउएहि संतरिज्जति णिनोदगातो, तासिं चेव गदीणं कूलेसु जे वच्छकुङगा तेसु वा विज्जति तुबीभो, वाहतेणपल्लीसु वा, अहवावाहतेणा प्रडविं गच्छंता लाउए उदगं घेतुं गच्छति, भिक्खट्ठा भिक्खयरो लाउयं गेण्हेज्ज, गुलजंतसालादिसु वा उस्सिंचगट्ठा भत्ततेल्लादिठावणट्ठा वा लाउयं गेहेन्जा । एतेसु प्रामरादिसु जं लन्भंति तं विधीए गेहति, पणं च जं एतेसु चैत्र परिभुज्जमाणं तं गेहति, जेण त पसंसत्तं भवति ॥५८६०॥ आगरादिसु अोभट्ठ पुच्छियं च 'कस्सेयं, कस्सट्टा वा कयं" ति। स पुच्छितो भणाति - "'कय कारिपच्छद्ध" अस्य व्याख्या - तुब्मट्ठाए कतमिणं, अन्नस्सट्टाए अहव सट्टाए । जो घेच्छति व तदट्ठा, एमेव य कीय-पामिच्चे ॥५८६१॥ तुम्भट्ठाए कयं वा, तुन्भट्ठाए वा कारितं, अण्णस्स वा साहुस्स भिक्खतरस वा अट्ठाए कयं । अहवा - सट्टाए ति अप्पणो पढाए, अहवा - जो चेव गेण्हति तम्सट्टाए कयं जावतिगमित्यर्थः । महाकम्मे भणियं एवं कोयगडपामिच्चादिसु वि भाणियन्वं । अणे वि उग्गमदोसा जहासंभवं सोहेयम्बा, एसणदोसा य । जं सुद्धतं घेप्पइ, प्रसुद्धतं वज्यव्वं ॥५८६॥ पागर त्तिगयं । इदाणि “२चाउले" ति - चाउल उण्होदग तुवर कूर फुसणे तहेव तक्के य । जं होति भावितं कप्पती तु भइयच तं सेसं ॥५८६२॥ चाउलसोधणं तुवरो कुसुभगोदगादी भइयन ॥५८६२।। १ गा० ५८५६ । २ गा० ५८२१ दा० १२। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-३९ 'सेसंति अस्य व्याख्या - सीतोदगमावितं अविगते तु सीतोदएण गेहंति । मज-वस-तेल्ल-सप्पी,-महुमातीभावियं भइतं ॥५८६३॥ परिणए पुण सीतोदगे गेहति, मज्जादिएसु जति निक्खारे उं सक्कति तो घेप्पइ, इयरहा न घेप्पइ। एस भयणा। ग्रहवा - वियडभावितं जत्य दुगुंछियं तत्थ न घेप्पइ, अदुगुछिए घेप्पति।।५८६३॥ अोभासणा य पुच्छा, दिट्टे रिक्के मुहे वहंते य । संसट्टे णिक्खित्ते, सुक्खे य पगास दठ्ठणं ॥५८६४॥ प्रोमासण त्ति जहा वत्थस्स "कस्सेयं, कि वासी, किं वा भवस्सति, कत्थ वा मासी ?"-एवं पुच्छा। सुद्धे गहणं । पुणो सीसो पुच्छइ - "दिट्ठादिपदे"। आयरिग्रो प्राह - अदिट्ठातो दिटुं खेमतरं । कहं ?, उच्यते - प्रदिढे देये किं काए संघट्टेतो गेहति ण वा ? अहवा - कायाणं उरि ठवियल्लयं होज्जा, अहवा - बीजाती छूढा होज्ज, दिढे पुण सव्वं दीसइ, एएण कारणेण दिटुं वरं, णो अष्टुिं । "कि रिवकं, प्रणरिक्कं तं घेप्पतु ?" ज दहिखीरादीहि अणरिक्क तं घेप्पउ । इयरं प्राउक्कायादीहिं अणरिक्कं तत्थ कायवहो होज्ज, रिक्के वि कुंथुमाती भवति । 'किं कयमुहं घेप्पइ अकयमुहं ?" कय मुहं घेप्पड । "वहंतयं, अवहंतयं ?" जं तक्कमादि फासुएणं वहंतयं त घेप्पति, णावि जं पाउक्कायादीहिं । "कि संसद्वं, असंसटुं गेण्हउ" ? जं फासुदब्वेणं संसट्टं तं घेप्पउ । 'उक्खितं, गिक्खित्तं"? एत्थ उक्खित्तं कप्पति । 'सुक्कं, उल्लं" ? फासुएण उल्लं पसत्यं । "पगासमुह, अपगासमुहं' ? पगासमुहं कप्पति । अहवा - "पगासट्ठियं मणगासट्ठिय" ? पगासट्टियं कप्पति । "दणं' ति जदा सुद्ध तदा चक्खुणा पडिलेहेति, जदि न पडिलेहेइ ताहे तसबीयादी होज्ज ॥५८६४।। जइ तसबीयादी होज्ज, ताहे इमं पुणो जयणं करेइ - अोमंथ पाणमादी, पुच्छा मूलगुण-उत्तरगुणेसुं । तिहाणे तिक्खुत्तो, सुद्धो ससणिद्धमादीसु ॥५८६॥ "प्रोमत्थ" त्ति पयस्स विभासा - दाहिणकरेण कण्णे, घेतुत्ताणे य वाममणिबंधे । घट्टेति तिण्णि वारा, तिण्णि तले तिण्णि भूमीए ॥५८६६॥ १गा० ५०६२। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५८६१-५८७० ] षोडश उद्देशकः १५३ कणं तस्स मुहं । कण्णे घेत्तुं हत्वं उत्ताणयं काउं, तं पायं कण्णगहियं वामबाहूमणिबंधप्पदेसं संघटेति त्ति तिणि वारा पाहणति । जत्थ जइ बीयं तसा वा दिट्ठा तो ण कप्पति, प्रह दिट्टा ताहे हत्थतने ततो वारा पाहणति । तत्य वि तस-बीए विद्वे कप्पति, अदितुसु पुणो मोमययं भूमीए तिणि वारा पप्फोडेति ॥५८६६॥ 'पाणमादी, एयस्स विभासा तिवाणे तिक्खुत्तो खोडिए समाणे - तस बीयम्मि वि दिढे, ण गेण्हती गेण्हती उ अदिखे। गहणम्मि उ परिसुद्धे, कप्पति दिटेहि वि बहूहिं ॥५८६७॥ गहणकाले परिसुद्धे जइ पच्छा तसबीयं वा पासति, ससणिद्धाणि वा पासति, तहावि तं सुदं चेव, न परिदुवैति । अन्न पुण भणंति - जइ तजाए बीए जीव सत्त कुणगा ताव न परिटुवेइ । प्रह बहुतरे पासइ तजाए तो गहणकाले सुद्धपि सपडिग्गहमाताते परिटुवेति । प्रतजाएमु बहूसु वि ठियेसु ण परिवेइ, ते प्रतजाए सडियं जयणाए फडेंति ॥५८६७॥ २पुच्छा मूलगुणउत्तरगुणेसु" त्ति सीसो पुच्छति - तस्स के मूलगुणा, के वा उत्तरगुणा ? मुहकरणं मूलगुणा, मोयकरणं उत्तरगुणा । एत्थ मूलगुण उत्तरगुणेहिं चउभंगो कायव्वो। पढमभंगे च उगुरु तवकालगुरु, बितियभंगे चउगुरु चेव तवगुरू । ततियभंगे चउलहुं चउगुरु । चउत्थो सुदो। “चाउल" त्ति गयं । इदाणि “3जहण्णजयण" त्ति दारं - पच्छित्त पण जहण्णे ते णेउ तन्त्रुट्टिए उ जयणाए । जहण्णा उ सरिसवादी, तेहि तु जयणेतर कलादी ॥५८६८॥ पच्छित्तं पणगं जहणं प्रसंतासति तववुड्डिजयणाए गिण्हति, अहवा - सरिसवाती बीया जहण्णा, तहिं छन्भागकरवड्डिजयणाए गेहति । इयरे त्ति बादरा कलादी, कल त्ति चणगा ।।५८६८।। इयाणि एसेवत्थो विवरिज्जति हत्थपमाणं काउं - छब्भागकए हत्थे, सुहुमेसु पढमपव्व पंचदिणा । दस बितिते रातिदिणा, अंगुलिमूलेसु पण्णरस ॥५८६९॥ हत्थो छभाए कीरइ, पढमपव्वा एको भागो, वितियपवा बितियभागो, अंगुलिमूले ततिम्रो, पाउरेहा चउत्थो, पंचमो अंगुट्ठबंधे, सेसो छुट्ठो । एस पठमपन्वमेत्तेसु सुहमबीएसु पंचराइंदिया, बितियपत्रमेते दसराईदिया, अंगुलमूलमत्तेसु पण्ण रस ।।५८६६।। वीसं तु आउलेहा, अंगुट्ठयमूले होति पणुवीस । पसतिम्मि होति मासो, चाउम्मासो भवे चउसु ॥५-७०॥ १ गा० ५८६५। २ गा० ५८६५। ३ मा० ७००द्वा० १३ । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-पूर्णिके निशीयसूत्रे [ सूत्र - ३६ श्राहमेते वीस राइंदिया, प्रगुटुबुंधमेत्तेसु पणुत्रीसं, पसतीए मासलहुं, चउसु पसतीसु च उलहुं एसेव गमो णियमा, धूलेसु वि बितियपव्वमारद्धो । अंजलि चक्क लहुगा, ते च्चिय गुरुगा अणतेसु ॥ ५८७१ ॥ मासमादिसु सु बितियपव्वमेत्तेसु पणगं, अंगुलिमूले दस, श्रायुरेहाए पण्णरस, अंगुट्ठमूले बीसा, पसतीए भिण्णमासो, अंजलीए मासलहुं, चउसु अंजलीसु चउलहुं । एते चैव पच्छिता सुहुमयूरेसु प्रणते गुरुगा काथव्वा ।।५८७१ ॥ १५४ ।।५८७०॥ णिक्कारणम्मि एते, पच्छित्ता वणिया उ बितिएसु । णायव्वऽणुपुब्बीए, एसेव य कारणे जयणा ॥ ५८७२॥ जा एसा पच्छित्तवुड्डी भणिया णिक्कारणे, कारणे पुण गेण्हंतस्स सेवं जयणा पणगादिगा भवति । जर पुण ग्रहाकडे पढमपव्वप्यमाणा बीया श्रप्पपरिकम्म च सुद्धं लब्भति । एत्थ श्रप्पबहुचिताए कतरं घेत्तव्वं ? भण्णति - ग्रहाकड घेतव्वं, णो प्रप्यपरिकम्मं । एवं वितियपन्नादिसु वि वत्तव्वं ॥ ५८७२ ॥ जाव - वोसङ्कं पि हु कप्पति, वीयादीणं अहाकडं पायें | अप्प सपरिकम्मा, तहेव अप्पं सपरिकम्मा ॥ ५८७३ || वोस त भरियं, ग्रहाकडं प्रागंतुगाण भरियं पिकप्पति, ण य अप्पपरिकम्मं बहुपरिकम्मं वा । एवं परिक्रम्मं पि श्रागंतुगाण भरियं कप्पति ण य बहुपरिकम्मं सुद्धं ॥ ५८७ ॥ इमं जयणाए णिच्छतो छडेति - धूले वा सुहुमे वां, अवहंते वा असंथरं तम्मि । आगंतु संकामिय, अप्पबहु असंथ रंतम्मि || ५८७४ || थूलाण वा चणगा दियाण बीयाण सुहुमाण वा सरिसवादियाण भरियं होज्जा तस्स य जति पुव्वभायणं, णवरं तं ण वहति । "असंथरं" ति प्रपज्जत्तियं वा भायणं, भायणस्स वा प्रभावो, ताहे तम्मि असंथरे अप्पबहुश्रं तुलेत्ता बहुगुणकरे ति काउं श्रहाकडं, श्रागंतुगाण बीयाण भरियं ति प्रागंतुगे संकामेता जयणाए अष्णत्थ, ग्रहाकडं चेव गेण्हति ण दोसो ||५८७४ ।। जयण त्ति गता । इदाणि चोदगो" त्ति - धूल-सुमेसु वोत्तुं, पच्छित्तं तेसु चैव भरितेसु । जं कप्पति त्ति भणियं, ण जुज्जते पुव्वमवरेणं ॥ ५८७५ || कंठ्या प्राचार्यं ग्राह - असति असिव" ति 4. - चोदग ! दुविधा असती, संताऽसंता य संत असिवादी । इयरो उ झामियादी, कप्पति दोसुं पि जा भरिते || ५८७६॥ १ गा० ५८२० द्वा० १४ । २ गा० ५८२० द्वा० १५ । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५८७१-५६७६ ] षोडश उद्देशकः १५३ संतासंती जत्थ गामे णगरे विसए वा भायणे प्रत्थि तत्यंतरा या प्रसिवं, सग्गामे वा जेसु कुलेसु अस्थि तेसु वा प्रसिवं, प्रोमोयरियादीणि वा तत्यंतरा वा एसा संतासती । अहवा - संतासंती अत्थि भायणं, णवरं -तं ण बहति । अहवा- संतासती प्रसंथरम्मि ति प्रत्थि भायणं. डहरं ण संथरति । तेण इयर त्ति प्रसंतासवी सा इमा - "झामियं" ति, पलीवए दढ पातं, तेहिं वा हडं, रायदुद्रुण वा हर्ड, भग्गं वा, सम्वहा प्रभावो पातस्स, एवमादिकारणेहि कप्पति दोसु वि असतीसु प्रहाकडं पादं मागंतुगबीयाण भरियं घेत्तुं, ण य सुद्ध अपपरिकम्मं । जं पुण मए भणियं पच्छित्तं तं दुविहाए प्रसतीए प्रभावे जो गेण्हति तस्स तं भवति । अहाकडे जइ विधीए दोसा तहावि तं बहुगुणकरं, अप्पपरिकम्ममि पुण सुद्धं पि बहुदोसकरं ॥५८७६।। कह? उच्यते - जो तु गुणो दोसकरो, ण सो गुणो दोस एव सो होती । अगणो वि य होति गुणो, जो सुंदर णिच्छो होति ॥५८७७॥ एवं इहं पि अपपरिकम्मे सुद्धेवि दोसा, प्रहाकडे वीयस्स सहिए दु? वि गुणो चेव । कहं ?, उच्यते - महाकडे जति वि ताणि प्रागंतुगबीयाणि जयणाए अण्णस्थ संकातस्स अप्पो संघट्टणादोसो, तहावि ण य सुत्तत्थपलिमंथो, ण य छेदणा दिनातोवघायदोमा । अण्णो य इमो नवरं - गुणो, तक्खणादेव घेत्तुं हिंडियव्व । एवं तं सदोसं पि बहुगुणं । अप्पपरिकम्मे पुण एवं चेव विवरीयं भाणियव्य, प्रतो तं सगुणं पि सदोसं ॥५८७७।। असति असिव त्ति गयं । इदाणि "'पमाण-उवयोग-छेदणं" ति तिण्णि वि पदे जुगवं भण्णति - पादं सामण्णेण वा उवकरणं जइ अहाकडं पमाणजुत्तं वा ण लब्भति, तो तं पमाणजुत्तं कायव्वं, उवउत्तेण छेत्तु इणमेव । जतो भण्णति - असति तिगे पुण जुत्तजोग ओहोवधी उवग्गहिते । दण-भेदणकरणे, सुद्धो तं निज्जरा विउला ।।५८७८॥ असति त्ति प्रहाकडस्स "तिगे" ति तिन्निवारा "जुत्तो जोगो" महाकडं तयो वारा मागितमित्यर्थः, पुण ति अवधारणे । कि अवधारेति ?, उच्यते - तिण्हं वाराण परप्रो अप्पपरिकम्मेव गेण्हति । एस ओहिए उवग्गहिए वा पादे, वत्थे अम्मि वा उवहिम्मि विही गेण्हियव्यो। एवं क्रमागते अप्पपरिकम्मे उवउत्तो छेदणभेदणं करेंतो विसुद्धो, ण तत्थ पच्छित्तं । तं विहिं प्रतेक्खंतस्स, प्रत्युत निर्जरा विपुला वति ॥५८७८।। चोदगाह - "णणु अप्पपरिकम्ममादिसु घेप्पमाणेसु छेदणादिकरणे आयसंजमविराहणा भवति ।" प्राचार्याह - चोदग ! एताए चिय, असती य अहाकडस्स दो इतरे । कप्पंते छेदणे पुण, उवओगं मा दुवे दोसा ॥५८७६।। हे चोदग ! जा एसा दुविहा संतासंतासती भणिया ताए अहाकडस्स असतीते दो इतर त्ति १ गा ५०२० द्वा० १६-१८ । २ प्रक्खेवंतस्स इत्यपि पाठः । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाध्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे [ मुत्र- ३६ अप्पपरिकम्मं बहुपरिकम्मं व कप्पते घेतुं, तेसु पुण छेदणादि करेंलो सुठुव उतो करेति मा दुवे दोसा भविस्संति, प्रायसंजमवि राहणा दोसा इत्यर्थः ।। ५८७६ ॥ १५६ अस्यैवार्थस्य अपरः कल्पः श्रहवा वि को णेणं, उवओोगो ण वि य लब्भती पढमं । stosधियं वा लग्भइ, पमाणो तेण दो इयरे ॥ ५८८०|| उद्योगोति मग्गणजोगे पढमं ति ग्रहाकडयं, ग्रहवा - लब्भई ग्रहाकडं तं पमाणतो होणं प्रहियं वा लव. तेण कारणेण "दो इतरे" त्ति, "इतर " ति - अप्पारिकम्मं सुद्धं पमाणजुत्तं गेहति तम्सासति हमारेभे वा बहारिकम्मं सुद्धं जुष्यमाणं घेप्पति ॥ ५६८० ।। - इमं च अप्पपरिकम्मं पडुच्च भण्णइ जह सपरिकम्मलंभे, मग्गंते अहाकडं भवे विपुला । णिज्जरमेवमलंभे, बितियस्सितरे भवे विपुला || ५८८१ ॥ - जहा सपरिकम्मे तिप्पपरिकम्मे सुद्धे जुत्तप्पमाणे लब्भभाणे वि श्रहाकडं मग्गंतस्स णिज्जरा विपुला भवति, तहा पढमस्स त्ति ग्रहाकडस्स प्रलंभे इयरं ति पपरिकम्मं मग्गंतस्स विपुला णिज्जरा भवति । → ग्रहवा - एतीए गाहाए चउत्थं पादं पढति 'बीयस्सितरे भवे विउल" त्ति | बितियं श्रप्यपरिकम्मं तस्स प्रलाभे इयरं ति बहुपरिकम्मं तं मगतस्स णिज्जरा विउला भवति, पढमबितियाण अलंभे संतासंतास तीए * 11855211 अहवा जत्थ ते लब्भंति तत्थिमे कारणा सिवे श्रोमोरिए, रायदुट्ठे भए व गेलण्णे । " सेहे चरित सावय भए व ततियं पि गेण्हेज्जा || ५८८२|| गयमत्थं सीहावलोयणेण भणति - १ गा० ५८२० द्वा० १६ । 1 जत्थ ग्रहाकडं पादं प्रप्यपरिकम्मं वा लब्भति तत्थ प्रसिवं, अंतरे वा परिरयगमणं च णत्थि एवं श्रोमरायदुटुं बोहिगादीण वा भयं गिलाणपडिबंघेण वा तत्य न गग्मइ, सेहस्स वा तत्थ सागारियं चारितभेदो त्ति, तत्यंतरा वा चरित्ताश्रो उवसग्गंति, सोहादिसावयभयं तत्थ अंतरा वा, एवमादिकारणेहि अगच्छंतो ततियं । तत्तियं ति – बहुपरिकम्मं सत्याणे चैव गेहति ॥५६८२ ॥ } आगंतुगाणि ताणि य, सपरिक्कम्मे य सुत्तपरिहाणी । एएण कारणेणं, श्रहाकडे होति गहणं तु ॥ ५८८३ ॥ चरिमं परिकम्मेंतस्स सुत्तत्यपरिहाणी । शेषं गतार्थम् ॥ ५८८३ ।। पमाण उवप्रोगछेयणं ति गतं । इदाणि ""मुहे" त्ति दारं - बितिय - ततिसु नियमा मुहकरणं होज्ज तस्सिमं माणं । तंपि यतिविहं पाद, करंडयं दीह वट्टं च ५८८४ ॥ 2 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाध्यगाथा ५८८०-५८ षोडश उद्देशकः बितियं अप्पपरिकम्म, (ततियं बहुपरिकम्म) एतेसु णियमा मुहकरणं, तब पुह तिविहं - करंडाकृति, दीह ति प्रोलंबगं, वह ति समवउरंसं ॥५८८४॥ तेसिं मुहस्स इमं माणं - _ अकरंडगम्मि भाणे, हत्थो 'उडढं जहा ण घट्टेति । एवं जहण्णयमुहं, वत्थु पप्पा ततो विसालं ॥५८८शा प्रकरंड प्रोलबमो समचउरस्सं वा, एतेसु मुहप्पमाणं हत्यो पविसंतो णिप्फिडतो वा जहा उड्डग्रह यण घट्टेति - ण स्पृशतीत्यर्थः । एवं सवजहणमुहप्पमाणं । अतो परं वत्थु ति महते महंततरं विसाले विसालतरं मुहं कज्जति, जं पुण करंडगाकृति तस्स विसालमेव मुहं कज्जति । अण्णहा तं दुकप्पयं भवति ॥१८८४॥ एस पडिग्गहो भणितो। इदाणि रमत्तगो भण्णति - अत्राह चोदकः - न तित्थकरेहि मत्तगो प्रणुणःतो । कहं ?, यस्मादुक्तं - दव्वे एगं पादं, वुत्तं तरुणो य एगपादो उ। अप्पोवही पसत्थो, चोदेति न मत्तो तम्हा ॥५८८६॥ उपकरणदयोमोयरियाए भणियं - " 3एगे वत्थे एगे पाए चियत्तोवगरणसमणया" । तथा चोक्तं - ""जे भिक्खू तरुणे बलवं जुवाणे से एगं पादं धरेज्ज" तथा चोक्तं - ""अप्पोवही कलहविवज्जणां य, विहारचरिया इसिणं पसत्था"। चोदगो भणति - जम्हा एवं बहुसुयं, भण्सु वि सुत्तपदेसु भणियं, तम्हा ण मत्तगो घेत्तव्यो ॥५८८६॥ पायरियाह - जिणकप्पे सुत्तेतं, सपडिग्गहकस्स तस्स तं एगं । णियमा थेराणं पुण, बितिज्जो मसो मणिओ ॥५८८७|| एगवत्यपादादिया जे सुत्तपदा चोदेसि, एते सपंडिग्गहस्स सपाउरणस्स य जिणकप्पियस्स सुत्ता 1. घेराणं पुण णियमा पडिग्गहस्स बितितो मत्तगो भवति, स तित्थयरेहिं चेव अणुणातो, अप्पोवहिगहषातो दुपत्तो पप्पोवही चेर, जतो तिप्पमिति बहुतं, तम्हा दिटुं मत्तगगहणं ॥५३८५॥ तं अगेण्हते पच्छित्तं। इमे य दोसा - अग्गहणे वारत्तग, पमाण हीणाऽहियसोही अववाए । परिभोग गहण वितियपद लक्खणादी मुहं जाव ॥५८८८॥ १ उटुं., इति वृहत्कल्पे गा० ४०६०। २ गा० ५८२३ । ३ उव० सू०१८। ४ प्राचा० श्रुत० २ प्र. ६ उ० १० १५२ । ५ दश० पू० २ गा. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ग्रहणे ति अस्य व्याख्या मत्तगऽगेण्हणे गुरुगा, मिच्छतं अप्प - परपरिच्चाश्रो । संसत्तग्गहणम्मि य, संजमदोसा मुणेयव्वा ||५८८६|| सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे मत्तगं प्रगेण्हते चउगुरुगा पच्छ्रितं, गवसङ्घादि मिच्छतं गच्छे । कहं ?, उच्यते - तेण चैव पडिग्गहेण णिल्लेवंतं दठ्ठे दुद्दिट्ठधम्मे त्ति, जति पडिग्गहे प्रायरियातीणं गेहति अप्पा चत्तो, मह अप्पणी गेण्हति तो प्रायरियादी पदा चत्ता । मत्तगप्रभावे संसत्तभत्तपाणं कहिं गेण्हउ ? श्रहापडिलेहियं पडिग्गहे चैव गेहति, तो संत्रमविराहणा सवित्रा भाणियन्त्रा । 'छक्काय च० गाहा ।।५८८ ॥ "वारत" त्ति अस्य व्याख्या वारत्तग पव्वज्जा, पुत्तो तप्पडिम देवथलि साहू | पडिचरणेगपडिग्गह, श्रयमणुच्चालणा छेदो || ५८६०|| वारत्तपुरं नगरं तत्थ य अभग्ग सेणो राया, तस्स श्रमच्चो वारतगो णाम । सो घरसारं पुत्तस्स णिसिउं पव्वतो । तस्स पुत्तेण पिउभत्तीए देवकुलं करितु रयहरणमुहपोत्तियपडिग्गहधारी पिउपडिमा तत्थ ठाविया । तत्थ थलीए सत्तागारो पवत्तितो । तत्थ एगो साधू एगपडिग्गहधारी तत्थ थलीए पडिग्गह भिवखं घेत्तु तं भोत्तु तत्थेव पडिग्गहे पुणो पाणगं घेत्तु सण्णं वोसिरिउं, तेणेव पडिग्गहेण पिल्लेवेति । > 7 इमं मत्तगस्स पमाणं तेसि सत्ताकारणउत्ताणं चिंता - कहं णिल्लेवेइ त्ति, पडियरतो दिट्ठो, तेहिं णिच्छूढो । तेहि य ताणि भायणाणि श्रगणिकाइयाणि ग्रण्णाणि छड्डियाणि तस्स अण्णेसि च साधूणं वोच्छेप्र तत्थ जातो, उड्डाहो य ॥ ५८६० पत्थो, सविसेसतरं तु मत्तगपमाणं । जो माग दोसु विदव्वग्गहणं, वासावासेसु अहिगारो || ५८६१ ॥ महाविस पत्थो त्ति कुलवो । दोसु वित्ति उषुबद्ध वासामु य कारणे असणं पागगदव्वं वा हति । अण्णे पुण भांति - दोसु वित्ति - पडिग्गहे मतं मत्तगे पाणगं । इहं पुण मत्तगेण वासावा सासु अधिकारी । वासासु पढमं चैव जत्थ धम्मलामोत्ति तत्थ पाणगस्स जोगो कायव्वो । अधवा इमं पमाणं 1. सूत्र - ३६ किं कारणं ?, कयाति वग्घारियवासं पडेज, जेण घराम्रो घरं न सक्केति संवरिउ, ताहे विणा दब्वेग लेवाडो भवति, तम्हा पढभिवखातो चेव पाणगं मग्गियन्वं । अहवा सोहि त्ति प्रतो तेण अधिकारो ॥। ४८६१॥ . वासासु संसज्जति त्ति तेश सुक्खील्ल ओदणस्सा, दुगाउतद्वाणमागओ साहू | भुंजति एगट्ठाणे, एतं खलु मत्तगपमाणं || ५८६२ || १ पीठिकायाम् गा० ४६ । २ गा० ५८८६ । ३ गा०५८८८ । - Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५८८६-५८६७ ] षोडश उद्देशक: अप्पेण उल्लिो सुक्खोयणो, अहवा - मुक्खो चेव प्रोयणो अण्णभायणगहितेण तिम्मणेण जो पज्जत्तियो मवइ, एयं मत्तमस्स पमाणं ॥५८६२॥ अधवा इमं पमाणं - भतस्स व पाणम्म व, एगतरागस्स जो भवे भरिओ। पजत्तो साहुस्मा, एनं किर मत्तगपमाणं ।।५८६३।। कंठ्या मत्तगो जुत्तप्पमाणो घेत्तव्यो, होगप्पमाणे अतिरित्ते वा बहू दोसा ॥५८६३॥ एत्थ 'हीणे त्ति दारं - तस्सिमे दोसा - डहरम्स एते दोसा, अोभावण खिसणा गलंते य । छण्हं विराहणा भाणभेयो जं वा गिलाणस्स ॥५८६४।। प्रोभावणा. चपाचप्पि भरेमाणं दटुं भणाति - इमे दरिद्दा दुक्ख भग्गा पव इत ति। अहवा - वणवा भरेमाणं दठ्ठ भणाति .. इमे असंतुटु ति, खीति २पतिलोभगिच्चे ति वा भणाति, प्रतिभारियगलत य पुढवा दिछक्काविराहणा लेवाडिज्जति, तत्य धुवणाघुवणे दोसा। अहवा - लेवाडणभया तत्थुवनांगेण खाणुमादी ण पेहति, अतो भायणविराहणा । चप्पाचप्पि वा करेंतम्म भाषणविराहणा । गिलाणमादियाण वा अप्पज्जतं भवति तेण तेसि विराहणा ॥५८६४॥ अहवा इमे डहरे दोसा - __ पडणं अवंगुतम्मि, पुढवी-तसपाण-तरुगणादीणं । आणिज्जते गामंतरातो गलणे य छक्काया ॥५८६॥ करणाकण्णिा भरिते लेवाडणभएणं अवंगुएणं त्ति तत्व पुढविकाया तसा तरुपुष्काइया पडेज्ज, ग्रहवा - गामंत रतो प्रतिभरिए प्राणिज्जते परिगलमाणे छक्काया विराहिज्जति ॥५८१५॥ हीणे त्ति गतं । इदाणि अधिगे ति दार - अहियस्म इमे दोसा, एगतर सोग्गहम्मि भरियम्मि । सहसा मत्तगभरण, भारो व विगिचणियमादी ५८६६॥ प्रमाणाधिके इमे दोसा - गत रस्स सि भत्तस्स पाणस्म वा पडिग्गहे भरिते पच्छा मतगे गहनं करेन्ज, महमा तम्मि मत्तगे भरिए प्रतिभारेण खाणुमादिए दोसे ण पेहेइ, अण्णं च दोसु वि भरितेसु विगिंचणिया दोसा, प्रहण विगिति तो अतिखद्धण गेलगादिया दोमा !"५८६६।। अधिगे ति गयं । ___ जम्हा एते दोसा तम्हा होगऽइरित्ते वज्जेउं प्रमाण पत्तो घेप्पयो । तं च प्रप्पणट्ठा ण परि जति । प्रायरियादीगट्टा परिभृजति । अह णिक्कारणे अप्पणट्ठा परिभुजति, तो इमं 'पच्छित - जति भोयणमावहती, दिबसेणं तत्तिया चउम्मासा । दिवसे दिवसे तस्स उ, बितिएणाऽऽरोवणा भणिता ॥५८६७॥ १ गा० ५८८६ । २ पत्य इत्यपि पाठः । ३ गा० ५८८८ । ४ गा० ५२८८ । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [गूत्र--३६ एगदिवसेग जत्तिए वारे मत्तगेण भतपाणं प्राणेति तत्तिया पउलहुगा भवंति, दिवसे दिवसे त्ति वीप्सायां. वितियादिदिवसेसु पच्छित्तवुड्ढी दरिसेति - जत्तियवारा माणेति ततो से बितिएण पारोवणा कज्जति, चउलहुस्स प्रवितियं च उगुरुगं तं वितियवारे दिज्जति, एवं उरि पि 'वं, मट्टमे दिवसे पारंचियं पावति ।।५८६७॥ सोही गया। इदाणि 'अववादे त्ति-- अण्णाणे गारवे लुद्ध, असंपत्ती य जाणए । लहुओ लहुओ गुरुगा, चउत्थो सुद्धो य जाणो ||५८६८॥ एरिसा जहा पहिगरे भणिया तहेव मत्तगे वि भाणियव्वा ।।५८६८।। इदाणि परिभोगो त्ति दारं। मत्तगो णो अप्पणट्ठा परिभुजइ, पायरियादीणट्ठा परिभुजइ - आयरिय बाल वुड्डा, खमग गिलाणा य सेह अाएसा । दुल्लम संसत्त असंथरम्मि अद्धाणकप्पम्मि ॥५८६॥ पायरियस्स य गिलाणस्स य मतगे पाउग्गं घंप्पइ. सेहबालादियाण प्रणहिताण मत्तग भत्तं धेपद पाउग्गं वा । अहवा -बालादिया पडिग्गहय ण सकेंति वट्टावे, ताहे मत्तगेण हिरति । गच्छदा वा दुल्लमदव्वं घतादियं पडुप्पण्णं मत्तगे गेण्हेज्जा । तत्थ वा संसजति भत्तपाणं तत्य मत्तगे गेण्हिजति भत्तपाणं, तत्प मत्तए घेतुं सोहेति, पच्छा पडिग्गहे छुम्भ । प्रोमादि प्रसंचरणे वा, प्रसंथरणे पडिगहे भरिए प्रष्णम्म य लन्मते मत्तगे गेण्हेज्जा। प्रदाणं कप्पो पदागकप्पो भदाणे विधिरित्यर्थः । कपगहणं कारणे विधीए प्रद्धाणं पडिवण्णेति दंसेति, तत्य प्रसंथरणे पडिग्गहे परिए मत्तगे गेहति ॥५८६६। परिभोगि ति गतं । "3गहणपदबितियपदलक्खणादि मुहं जाव" त्ति - एतेसि पदाणं प्रत्यो बहा पडिग्गहे। तहावि अक्खरत्थो भण्णति - गहणे । मत्तगं को गेण्हति ? बितियपदं असिवादिकारणेहिं सत्थाणे चेव अप्पबहुपरिकम्मा गेण्हति । 'लक्खणादि दारा जहा पडिग्गहे तहा मत्तगे वि वत्तन्वा, मुहकरणं च, अप्पपरिकम्म सपरिकम्मं च लेवेयव्वं । तत्थ लेवग्गहणे इमा विही हरिए बीए चले जुत्ते, वत्थे साणे जलट्ठिते । पुढवीऽसंपातिमा सामा, महावाते महिताऽमिते ।।५६००॥ अोहणिज्जुत्तिमादीसु प्रणेगसो गतत्था । एस उवही अव्वोकहो भणियो। विभागतो पुण उवही दुविहो - प्रोहियो उवग्गहितो य । जिणाणं परिहारविसुद्धियाणं प्रहालंदियाणं परिमापडिवण्णगाणं, एतेसि मोहितो चेव उवही । जिणकप्पिया दुविहा - पाणिपडिग्गही, पडिग्गहधारी य । पाणिपडिग्गही दुविहा-- पाउरणवज्जिया, सहिया य । १ गा० ५८६५। २ गा० ५८८८ । ३ गा. ५८२१, ५८२१ गाथोक्तानि द्वाराणि । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यमाथा ५८६८- ५६०१ ] षोडश उद्देशकः पाउरणवज्जियाणं दुविहो - रयहरणं मुहपोत्तिया य । पाउरणसहियाणं तिविहं, चउव्विहं, पंचविहं । डिग्गहधारी वि पाउरणवज्जिम्रो पाउरणसहितो वा । पाउरणवज्जियस्स नवविहो । पाउरणसहियस्स दसविहो एक्कारसविहो बारसविहोय । परिहारविसुद्धिगादी नियमा पडिग्गहधारी पाउरणं । धितिसंघयणप्रभिग्गह बिसेसचो भवणिज्जं 1 महालंदियाण विसेसो गच्छे पडिबद्धा अप्पडिबद्धा वा होज्ज । इमं थेरकप्पियाणं चोहसगं पणुवीसा, श्रोहोवधुवग्गहो यऽणेगविहो । संथारपट्टमादी, उभयो पक्खे वि नायव्वो || ५६०१॥ थेरकप्पियाणं मोहोवही चोट्सविहो । संजतीण मोहोवही पणवीसविहो । उभयवखेति साधुसाधुगोणं उनग्गहिम्रो उबही संथारगपट्टादि प्रणेगविहो भवति ॥ ५६०१॥ जे भिक्खु अणंतरहियाए पुढवीए जीवपइट्ठिए सांडे सपाणे सबीए सहरिए सस्से सउदए सउत्तिंग पणग-दंग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि, दुब्बद्ध, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिद्ववेद, परिट्ठतं वा सातिज्जति ||०||४०|| १६१ जे भिक्खू ससणिद्धा पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए, सोसे सउद सउलिंग-पणग-दंग-मट्टिय मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्ध, दुन्निखित्ते, अनिकंप, चलाचले उच्चारपासवणं परिवेश, परिद्ववेंतं वा साइज्जइ ॥ सू०||४१ ॥ जे भिक्खु ससरक्खा पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सोम्से सउदए सउत्तिंग-पणगदग मट्टिय-मक्कडा संताणगंसि दुब्बद्ध, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिवेश, परिट्ठतं वा सातिज्जति ॥सू०||४२ || जे भिक्खु मट्टियाकडा पुढवीए जीवपइट्टिए सांडे सपाणे सबीए सहरिए सोसे सउद सउत्तिंग-पणग-दंग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसिं दुब्बद्ध, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिवेश, परिट्टतं वा सातिज्जति | | ० ||४३|| २१ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ सभाष्य चूणिके निशीथसूत्र [सूत्र ४०-५. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सोस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्ध, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिट्ठवेड, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४४॥ जे भिक्खू सिलाए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सोस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्ध, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिहवेइ, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ॥०॥४५॥ जे भिक्खू लेलूए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगंसि दुब्बद्धे, दुनिखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिद्ववेइ, परिहवेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४६॥ जे भिक्खू कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मडिय-मक्डासंताणगंसि दुबद्धे, दुनिखित्ते, अनिकंप, चलाचले उच्चारपासवणं परिदुवेइ, परिहवेंतं वा साइज्जइ ।।सू०॥४७॥ जे भिक्खू थूणसि वा गिहेलुयंसि वा उसुयालंसि वा झामवलंसि वा दुबद्ध, दुन्निखिने, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिहवेइ, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ॥०॥४८॥ जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अंतलिक्खजायंसि वा दुबद्ध, दुनिखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिहवेइ, परिहवेतं वा साइज्जइ ॥५०॥४६॥ जे भिक्खू खधंसि वा फलहंसि वा मंचंसि वा मंडवंसि वा मालंसि वा पासायसि वा दुब्बद्ध. दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चारपासवर्ण परिवेइ, परिडवेतं वा सातिजति । तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धातिया।स०॥५०॥ पुहवीमादी कुलिमादिएसु शृणादिखंधमादीसु । तेसुच्चारादीणि, परिहवे आणमादीणि ।।५६०२॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६०२-५६०३ ] षोडश उद्देशकः प्रादिसहातो ससद्धिस रक्खादी जे सुत्तपदा भणिता तेसु उच्चारपारावणं परिद्ववेतस्स श्रायसंजमविराणा भवति श्राणादिया य दोसा । चउलहं पच्छितं । एतेसु पुढवादी पदा जहा तेरसमे उद्देसने वक्खाया तहा भाणिव्वा । णवरं तत्य ठाणानि भणिया, इहं उच्चारपासत्रणं भागियव्वं ॥ ५६०२।। इमो प्रववातो वितियपद मणप्पज्झे, श्रोसण्णाइण्णरोहगद्धाणे | 7 दुब्बलगहणि गिलाणे, बोसिरणं होति जयणाए || ५६०३ || पणज्भो खित्तचित्तादि, प्रोष्णं ति चिरायतणं अपरिभोग "भ्राइष्णं", जणो वि तस्थ वोसिरति, रोहगे वा तं प्रणुष्णा, दुब्बलो वा साधू, गहणिदुब्बलो वा, थॉडलं गंतुमसमत्थो वा गिलाणो वा प्रसमत्थो, एते वोसिरंति । जयणाए वोसिरंति, जहा प्रायसंजम विराणा ण भवतीत्यर्थः ॥ ५६०३ ।। " देहडो सीह थोरा य ततो जेट्ठा सहोयरा । कणिट्ठा देउलो णण्णो, सत्तमो यतिइज्जगो । एतेसि मज्झिमो जो उ, मंदे वी तेण वित्तिता । ॥ इति णिसीह - विसेसचुण्णीए सोलसमो उद्देस समत्तो ॥ १६३ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तदश उद्देशकः उक्तः षोडशमः । इदानीं सप्तदशमोद्दे शकः । तस्सिमो संबंधो - श्रातपरे वावत्ती, खंधादीएसु वोसिरेंतस्स । मा सच्चिय कोतुहला, बंधंताऽऽरंभो सत्तरसे ॥५६०४॥ खंधादिएसु उच्चारपासवणं करेंतस्स आपविराहणा पडतस्स हवेज्ज, उभएण पडतेण कुंथुमादि विराहिज्जति, मा सच्चेव मायपरविराहणा कोउपमादीहि तण्णगादिबंधतस्स भविस्मति । अतो सत्तरसमस्स प्रारंभो ॥५९०४॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अन्नयरंतसपाणजायं तणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्ठपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा बंधइ, बंधंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥१॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अन्नयरं तसपाणजायंतणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्ठपासएण वा चम्मपासएक वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा बंधेलगं मुयइ, मुयंतं वा सातिज्जति ॥२०॥२॥ तसपाणतण्णगादी, कोतूहलपडियाए जो उ बंधेज्जा । तणपासगमादीहिं, सो पावति आणमादीणि ॥५६०५।। तसपाणगो वन्भमादि मेदुरं, माणादी चउलहुं च । तण्णग-वाणर-बरहिण,-चगोर-हंस-सुगमाइणो पक्खी। गामारण्ण चउप्पद, दिट्ठमदिट्ठा य परिसप्पा ॥५६०६।। तण्णगग्गहणातो इमे वि पविखणो गहिता-बरिहणो त्ति-मोरी, रक्तपादो दीर्घग्रीवो जलचरी पक्सी चकोरो, प्रणं वा किं चि किसोरादि गामेयग, मृगादि वा पारणं दिट्ठपुव्वं वा अदिट्टपुत्वं वा, ण उलादि वा, मुयपरिसप्पं, सप्पादि वा उरपरिसप्पं, एवमाति बंधति मुयति वा ॥५६०६॥ बंधमुयणे वा इमं कारणं - दिस्सिहिति चिरं बद्धो, णयणादि 'चउप्पडंत दुप्पस्स । गमणपुत्तादिकुतूहल, मुयति व जे बारसे दोसा ॥५६०७॥ १ चडफडत इत्यपि पाठः । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे वितियपदमणप्पज्झे, बंधे अविकोविते य अप्पज्झे । जाणते वा वि पुणो, कज्जेसु बहुप्पगारेसु ॥ ५६०८ || चितियपदमणप्पज्झे, मुंचे अविकविते व अप | जाणते वा वि पुणो, कज्जेसु बहुप्पगारेसु || ५६०६।। उस्सग्गो अववातो य जहा बारसमे उद्देसने तहा भागियन्वो । जे भिक्खू को हल्लपडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा भेंडमालियं वा मयणमा लियं वा पिंछमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हडमालियं वा कट्टमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमा लियं वा फलमालियं वा बीयमालियं वा हरियमालियं वा करेह, करेंतं वा सातिज्जति ॥ सू०||३|| [ सूत्र १-११ जे भिक्खु को उहल्लपडियाए तणमा लियं वा मुंजमालियं वा भेंडमालियं वा, मयणमा लियं वा पिंछमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा, संखमालियं वा हडमालियं वा कहमालियं वा पत्तमालियं वा, पुप्फमालियं वा फलमालियं वा चीयमालियं वा हरियमालियं वा, धरेड, घरेंतं वा सातिज्जति ||२०|| ४ || जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा भेंडमालियं वा, सिंगमालियं वा मणमालियं वा पिंछमालियं वा दंतमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्टमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीयमालियं वा पिण, पिणद्धतं वा सातिज्जति ||०||५|| aणमादिमालिया जत्तियमेत्ता उ अहियासुत्ते । ताओ कुतूहलेणं, धारेंतं श्राणमादीणि || ५६१० ॥ त्रितियपदमणप्पज्भे, करेज्ज अविकोविते व अप्प | जाणते वा वि पुणो, कज्जेसु बहुप्पगारे || ५६११ ॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अगलोहाणि वा तंबलोहाणि वा वउयलोहाणि वा, सीसलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा सुवण्णलोहाणि वा, करेति, करें तं वा सातिज्जति | | ० ||६|| पत्तमालियं वा, हरियमालियं वा Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६०-५६१५ । सप्तदश उद्दशक: अयमादी 'आगरा खलु, जत्तियमेत्ता उ श्राहिया सुत्ते। ताई कुतूहलेणं, मालेते आणमादीणि ॥५६१२।। बितियपदमणप्पज्झे. करेज्ज अोविकोविते व अप्पज्झे । जाणंते वा वि पुणो, कज्जेमु बहुप्पगारेसु ॥५६१३।। जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अयलोहाणि वा तंबलोहाणि वा तउयलोहाणि वा सीसलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा सुवष्णलोहाणि वा धरेइ, धरतं वा सातिज्जइ ।।सू०॥७॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अयलोहाणि वा तंबलोहाणि वा तउयलोहाणि वा सीसलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा सुवण्णलोहाणि वा पिणद्धइ, पिणदंतं वा सातिज्जइ ॥सू०॥८॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए हाराणि या अद्धहाराणि वा एगावलि वा मुत्तावलि वा कणगावलि वा रयणावलिं वा कणगाणि वा तुडियाणि वा केउराणि वा कुंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणिवा पलंबसुत्ताणिवा सुवण्णमुत्ताणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।।सू०।६।। जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि गएगावलि वा मुत्तावलि वा कणगावलिं वा रयणावलिं वा कडगाणि वा तुडियाणिवा केऊराणि वा कंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणिवा पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णमुत्ताणि वा घरेइ, धरतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१०॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावलि वा मुत्तावलि वा कणगावलिं वा रयणावलि वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा पटटाणि वा मउडाणिवा पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णसुत्ताणिवा पिणद्धइ पिणद्धतं वा सातिज्जति ॥२०॥११॥ कडगादी आभरणा, जत्तियमेत्ता उ आहियासुत्ते । ताई कुतूहलेणं, 'मालते आणमादीणि ।।५६१४॥ बितियपदमणप्पज्झ, माले अविकोविते व अप्पज्झे । जाणंते या वि पुणो, कज्जेसु बहुप्पगारेसु ॥५६१५॥ १ लोहा, इत्यपि पाठः । २ कुव्वते, इत्यपि पाठः । ३ परिहंते, इत्यपि पाठः । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [ सूत्र १२-१६ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए आईणाणि वा आईणपावराणि वा कंबलाणि वा कंबलपावराणि वा कोयराणि वा कोयरपावराणि वा कालमियाणि वा नीलमियाणि वा सामाणि वा मिहासामाणि वा उट्टाणि वा उट्टलेस्साणि वा वग्याणि वा विवग्पाणि वा परवंगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणि वा खोमाणि वा दुगूलाणि वा पणलाणि वा आवरंताणि वा चीणाणि वा अंसुयाणि वा कणगकंताणि वा कणगखंसियाणि वा कणगचित्ताणि वा कणगविचित्ताणि वा आभरणविचित्ताणि वा करेइ, करेंतं वा सातिज्जइ :।सू०।१२।। . जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए आईणाणि वा आईणपावराण वा कंबलाणि वा कंबलपावराणि वा कोयराणि वा कोयरपावराणि वा कालमियाणि वा नीलमियाणि वा सामाणि वा मिहासामाणि वा उट्टाणि वा उट्टलेस्साणि वा वग्धाणि वा विवग्घाणि वा परवंगाणि वा साहिणाणि वा सहिणकल्लाणि वा खोमाणि वा दुगूलाणि वा पणलाणि वा आवरंताणि का चीणाणि वा अंसुयाणि वा कणगकंताणि वा कणगखंसियाणि वा कणगचित्ताणि वा कणगविचित्ताणि वा आभरणविचित्ताणि वा धरेइ, धरतं वा सातिज्जति ।।सू०॥१३॥ जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए आईणाणि वा आईणपावराणि वा कंबलाणि वा कंबलपावराणि वा कोयराणि वा कोयरपावराणि वा कालमियाणि वा नीलमियाणि वा सामाणि वा मिहासामाणि वा उट्टाणि वा उट्ट लेस्साणि वा वग्याणि वा विवग्याणि वा परवंगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणि वा खोमाणि वा दुगुलाणि वा पणलाणि वा आवरंताणिवा चीणाणि वा अंसुयाणि वा कणगकताणिवा कणगखंसियाणि वा कणगचित्ताणि वा कणगविचित्ताणि वा आभरणविचित्ताणि वा परिभुंजइ, परि जंतं वा सातिज्जति।सा॥१४॥ अजिगादी वत्था खलु, जत्तियमेत्ता उ आहियासुत्ते । ताई कुतूहलेणं, परिहंते आणमादीणि ।।५६१६ वितियपदमणप्पज्झे, परिहे अविकोविते व अप्पज्झे । जाणते वा वि पुणो, कज्जेसु बहुप्पगारेसु ॥५६१७॥ जेभिक्खू इत्यादि । करेति घरेति पिणद्धति, एयं लोह सुत्ते पाभरण सुत्तं, पणादि जाव वत्थसुतं । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६१७ ] एतेसि सुत्ताणं भासगाहाण य प्रत्थो जहा सत्तमुद्देसगे तहा भाणियम्वो, णवरं तत्थ माउग्गामस्स मेहुणपडियए करेति इह पुण कोउयपडियाएं करेति । इहं चउलहुं पच्छितं । सेसं उस्सग्गववादेहिं सवित्थरं तुल्ल, णवरं – श्रववादे कज्जेसु बहुप्पगारेसु त्ति जहा प्रोमे तण्णमालियाको दाणसड्ढा दियाण प्रभत्थिश्रो करेति freeट्टा वा काउं घरेति, कारणे परलिंगट्ठिते वा पिषिद्धति । एवं सेसा वि उवउज्जिरं भावेयव्वा ||५६१७॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथरस -- पपदे णत्थि मज्जा वेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा वा गारत्थियण वा मज्जातं वा पमज्जावेंत वा सातिज्जति ॥ सू०||१५|| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स पादे णउत्थिण वा गारत्थियण वा संवाहवेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा संवाहावेतं वा पलिमदावतं वा सातिज्जति | | ० ||१६|| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स सप्तदश उद्देशक: - - पादे णत्थि वा गारन्थिएण वा तेल्लेण वा घरण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगा वेज्ज वा, मक्खावेंतं वा भिलिंगावेंतं वा सातिज्जति ||सू०||१७|| पादे णउत्थिन वा गारत्थिएण वा लोद्वेण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उवट्टादेज्ज वा उल्लोलावेंतं वा उवट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ | सू०||१८|| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स पादे णत्थि वा गारत्थियण वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलावेंतं वा पधोयावतं वा सातिज्जति ॥ | सू०||१६| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - पादे णउत्थि वा गारत्थिएण वा फूमावेज्ज वा रयांवेज्ज वा फूमावेंतं वा स्यातं वा सातिज्जति | | ० ||२०| * *$ 8 १६६ २२ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र २१-१४ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा ग्रामज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जावेंतं या गमज्जावेंतं वा सातिजति ॥सू०।।२१।। जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण पा संवाहावेज्ज वा पलिमदावेज्ज वा संबाहावेंतं वा पलिमदातं वा सातिज्जति ॥सू०।२२।। जा णिग्गथी णिग्गंथस्स - कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा मक्खावेतं वा भिलिंगावेतं वा सातिज्जति॥०॥२३॥ जा णिग्गंथी णिग्गंधस्स - कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धण वा कोण वा उल्लोलावेज्ज वा उन्चट्टावेज्ज वा उल्लोलावेतं वा उबट्टावेतं वा सातिज्जति ।। मू०।२४।। जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स -- कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण या सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलावेतंवा पधोयावेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥२५॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज वा फूमावेतं वा रयावतं वा मातिज्जति ।।सू०॥२६॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा प्रामज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जावेंतं पा पमज्जावंतं वा सातिज्जति ।।सू०||२७|| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कापंसि वणं अण्णउथिएण वा गारत्थिएण वा Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माम्यगाथा] सप्तदश उद्देशक: संबाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा संबाहावेतं वा पलिमहावेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥२८॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएक वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खाकेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा मक्खावेंतं वा भिलिंगावतं वा सातिज्जति ॥२०॥२६॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेतं वा उव्वट्टावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥३०॥ जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स - कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा, उच्छोलावेतं वा पधोया-तं वासातिजति ॥सू०॥३१॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फूमावेतं वा रयातं वा सातिज्जति ।।सू०॥३२॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिंदावेज्ज वा विच्छिंदावेज्ज वा अच्छिदावेतं वा बिच्छिंदावेंतं वा सातिज्जति ॥५०॥३३॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरेणं तिक्खणं सत्यजाएणं अच्छिदावित्ता विच्छिदावित्ता पूर्व वा सोणियं वा नीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा नीहरावेतं वा विसोहावेतं वा सातिजति ॥१०॥३४॥ जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स - कार्यसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [सूत्र ३५-४५ अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता विच्छिदावेत्ता पूयं वा सोणियं वा नीहरावेत्ता विसोहावेत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पयोयावेज्ज वा उच्छोलावेंतं वा पधोयावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥३५॥ जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायंसि गंडं वा पिलग वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता विच्छिदावेत्तापूयंवा सोणियंवा नीहरावेत्ता विसोहावेत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेत्ता पधोयावेत्ता अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेज्ज वा विलिंपावेज्ज वा आलिंपावेतं वा विलिंपावेतं वा सातिज्जति सू०॥३६।। जा णिग्गंथी णिग्गयस्स - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अन्नयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता विच्छिदावत्ता पूर्व वा सोणियंवा नीहरावेत्ता विसोहावेत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेत्ता पधोयावेत्ता अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता विलिंपावेत्ता तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा अभंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥३७॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरेणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता विच्छिदावेत्ता पूर्व वा सोणियंवा नीहरावेत्ता विसोहावेत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेत्ता पधोयावेत्ता अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता विलिंपावेत्ता तेल्लेण वा घएण वी वसाए वा णवणीएण वा अभंगावेत्ता मक्खावेत्ता अन्नयरेणं धूवणजाएणं धूवावेज्ज वा पधुवावेज्ज वा धूवावेतं वा पधूवावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥३८॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायगाथा ] सप्तदश उद्देशक जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण का अंगुलीए निवेसाविय निवेसाविय नीहरावेइ नीहरावेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥३६॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाओ नहसिहाअो अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संठवावेतं वा सातिज्जति ॥५०॥४०॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई जंघरोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संठवावेतं वा सातिज्जति ॥२०॥४१॥ . जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई कक्खरोमाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥२०॥४२॥ जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई मंसुरोमाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संठवावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४३॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई वत्थिरोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥०॥४४॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई चक्खुरोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४५॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र ४६-६० जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दंते अण्णउत्थिएण वा गारस्थिएण वा आघसावेज्ज वा पघंसावेज्ज वा, आघसावेतं या पधंसावेतंवा सातिज्जति ॥२०॥४६।। जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दंते अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा, उच्छोलावेतंवा पधोयावेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥४७॥ जा णिग्गंथी णिर्गथस्स - दंते अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फूमावतं वा रयातं वा सातिज्जति ।।मु०॥४८॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - उट्टे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जातं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥०॥४६॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - उठे अण्णउथिएण वा गारथिएण वा संबाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा संवाहावेतं वा पलिमदावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥५०॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स --- उद्धे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा मक्खावेतं वा भिलिंगावेतं वा सातिज्जति ॥०॥५१॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - उढे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेतं वा उबट्टावतं वा सातिज्जति ॥सू०॥५२॥ जा ग्गिंथी णिग्गंथस्स - उडे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो सीअोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलावेंतं वा पधोयावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥५३॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মাথা ) सप्तदश उद्देशकः १७५ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फूमावेतं वा रया-तं वा सातिज्जति । सू०॥५४॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई उत्तरोढाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥५|| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - दीहाई अच्छिपत्ताई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥५६॥ जा णिग्गंधी णिग्गंथस्स - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा श्रामज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जातं वा पमज्जावतं वा सातिज्जति ॥२०॥५७|| जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संबाहावेज्ज वा पलिमदावेज्ज वा संवाहावेंतं वा पलिमदावें । वा सातिजति ।। ०।५८।। जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा, मक्खावें वाभिलिंगावेंतं वा सातिज्जति।।०॥५६।। जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - अच्छीणि अण्णउत्थि एण वा गारथिएण वा लोद्धण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेतं वा उव्वट्टावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥६०|| Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स सभाष्य चूर्णिके निशीथमूत्रे - अच्छीणि अण्णउत्थि एण वा गारत्थि एण वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोला वेज्ज वा पधोया वेज्ज वा उच्छोलावेंतं वा पघोयावेतं वा सातिज्जति ॥ | सू०|| ६१ ॥ जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - अच्छीणि अण्णउत्थि एण वा गारत्थि एण वा फूमावेज्ज वा रथावेज्ज वा फुमातं वा स्यातं वा सातिज्जति ||०||६२|| 8 * * जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स दीहाई भुमगरोमाई अण्णउत्थि एण वा गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति | | ० ||६३|| जाणिग्गंथी णिग्गंथस्स - - दीहाई पासरोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थियण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पातं वा संठवावेतं वा सातिज्जति | | ० ||६४ || - जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - च्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा नहमलं वा पण उत्थि एण वा गारत्थि एण वा नीहरावेज्ज वा विसोहा वेज्ज वा नहतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ||०||६५|| जा णिग्गंधी णिग्गंथस्स जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स - - 1 [ सूत्र ६१-६७ कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा अण्णउत्थिण वा गारत्थिएण वा नीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा नीरा वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ॥ सू०||६६ || -- गामाणुगामं दुइज्जमाणे अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सीसवारिय कारावेइ, कारावेंनं वा सातिज्जति ||०||६७ || Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६१८-५६२२ ] श्रामजणं सकृत् पुनः पुनः प्रमार्जनं । इमं अधिकयसुते भण्णति सप्तदश उद्देशक: जा समणि संजयाणं, गिहिणी अहवा वि अण्णतित्थीणं । पादप्पमज्जणमादी, कारेज्जा श्राणमादीणि ॥ ५६१८॥ प्रादिसदातो संबाधणादिसुता पंच, कायमुत्ता छ, वणसुत्ता छ, गंडत्ता छ, पालुकिमित्तं, णहसिहा रोमती-मंसुतं च एते तिण्णि, दंतसुत्ता तिष्णि, उत्तरोट्ठ [ णासिगा ] सुत्तं च, मच्छिपत्तामज्जणसुत्ता तिष्णि (घ) महसुतं, सेयसुतं, मच्छिमलातिसुत्तं, सीसदुवारियसुतं च । एते (एग ) चत्तालीस सुत्ता 'ततिम्रो सगगमेण भाणियन्वा । तत्थ सयं करण, इह पुण णिगांधीणं समणस्स प्रण्णतित्थिएण गारन्थिएण कारवेति त्ति विसेसो ॥५६१८।। - समणाण संजतीहिं, अस्संजतएहि तह गिहत्थेहिं । गुरुगा गुरुगा लहुगा, तत्थ वि आणादिणो दोसा ||५६१६ || संत जति समणस्स पायप्पमज्जणादी करेति तो चउगुरुगा, प्रसंजतीश्रो त्ति गिहत्थोश्रो जति करेंति तत्थ विचउगुरुगा, गिहत्य पुरिसा जति करेंति तो चउलहुगा, प्राणादिणो य दोसा भवंति ।।५६१६ ।। मिच्छत्ते उड्डाहो, विराहणा फासभावसंबंधो । पडिगमणादी दोसा, भुत्ताभुत्ते य णायव्वा || ५६२०॥ इत्थियाहि कीरतं पासिता कोई मिच्छतं गच्छेज्जा, एते कावडिय त्ति काउं । संजमविराहणा य । इत्थिफा से मोहोदयो परोप्परनो वा फासेण भावसंबंधो हवेज्जा, ताहे पडिंगमणं प्रष्णतित्थियादि दोना । श्रहवा - फासतो जो भुनभोगी सो पुत्ररयादि संभरिज्जा । श्रहवा - चितिज्ज एरिसो मम भोइयाए फासो, एरिसी वा मम भोइया प्रासि । प्रभुत्तभोइस्स इत्थिफासेण कोउयादि विभासा ।। ५९२० ॥ दीहं च णीससेज्जा, पुच्छा किं एरिसेण कहिए णं । मम भोइया सरिसी, सा वा चलणे वदे एवं ॥ ५६२१ ॥ सो वा संजो संगतीए पमज्जमानीए दीहं फीससिज्जा । ताहे सा पुच्छति - किमेयं दीहं ते नीससियं ? १७७ सो भणाति - कि एरिसेण कहिएणं ति ? निब्बंधे कहेइ, "मम भोइयाए सरिसी तुमं ति ।" सा वा बल पमज्जती दीहं णीससेज्जा । पुच्छा कहणं च एवं चैव । एते संजतीहि दोसा || ५६२१॥ एते चैव य दोसा, अस्संजतियाहि पच्छकम्मं च । आतपरमोहुदीरण, बाउस तह सुत्तपरिहाणी || ५६२२|| गिहत्यसु प्रतिरिक्त दोसा- पच्द्रः कम्मं हत्ये सीतोदकेण पक्खालेज्जा, पादामज्जणादीहि य उज्जलवेसस्स श्रप्पणी मोहो उदीज्जेज्जा, सोभामि, [वा] ग्रह को मे एरिसं ण कामेति त्ति गव्वो हवेज्ज, तं वा उज्जलवे दट्टु भण्णेसि इत्थियाणं मोहो उदिज्जेज्ज, सरीरबाउसतं च कतं भवति, जाय तं करेति ताव सुतत्वपलिमंथो भवेज्जा ।। ५६२२ ।। १ तृतीयोदेशके तु १६ संख्यकसूत्रादारभ्य ६६ संख्यकसूत्रपर्यन्त ५३ संख्याकानि सूत्राणि भवन्ति । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे संपातिमादिघातो, विवज्जओ चेत्र लोगपरिवाओ । गिहिएहि पच्छकम्मं, तम्हा समणेहि कायव्वं ॥ ५६२३|| मज्जमाणी संपातिमे अभिघाएज्जा अजयत्तोग | "विवज्जतो" ति साधुणा विभूसापरिवज्जिएण होय, भणियं च ""विभूसा इत्थिसंग्गो" सिलोगो, एयस्स विवरीयकरणं विवज्जतो भवति । लोगपरिवादोत्ति, जारि सेवेसग्गहणं एरिसेण श्रनिवृत्तेन भवितव्यं । एवमादि इत्थीसु दोसा । गिहत्थ रिसेसु वि इत्थिफासादिया मोतुं एते चेव दोना पच्छ कम्मं च || ५६२३॥ इमे य दोसा - १७८ ते पष्फोडेंते, पाणा उप्पीलणं च संपादी । अतिपेल्लणम्मिता, फोडण खय अट्टिभंगादी || ५६२४ || संजो जगाए पप्फोडतो पाणे त्रमिहोज्ज, बहुणः वा दवेण घोवंतो पाणे उपिलावेज्ज, खिल्लर बंधे वा संगतिमा पडेज्ज । एस संजमविराधणा । आयविराधणा इमा टेण गिहिणा प्रतीव पेल्लिम्रो पादो ताहे संधी विकरेज्ज, फोडणं ति णित्थर भल्लेण णहादिणा वा खयं करेज, अट्ठि वा भजेज्ज ||५६२४ ॥ एते चैव य दोसा, अस्संजतियाहि पच्छकम्मं च । गिहिएहि पच्छकम्मं, कुच्छा तम्हा तु समणेहिं ।। ५६२५ || [ सूत्र ६७-७१ - गतार्था । किं चि विसेमो - पुत्रद्वेण गिहत्थी भणिता, पच्छद्वेण गित्या | दो वि पाए पप्फोडतो कुच्छं करेज्ज, कुच्छंतो य पच्छाकम्मसंभवो । जम्हा एते दोमा तम्हा समणाण समणेहि कायव्वं, समग्रीण समणीहि कायव्वं, if गहत्था प्रतित्थिया वा छंदेयव्वा ॥५६२५॥ चितिगपदमणप्पज्झे, श्रद्धाणुच्चाते अप्पणा उ करे । मज्जणमादी तु पदे, जयणाए समायरे भिक्खू || ५६२६ ॥ अणपज्झो कारवेजा, अगप्पज्झस्स वा कारविजति, श्रद्धाणे पडिवण्णो वा ग्रतीव उच्चाम्रो मज्जादिपदे अप्पणो चेव जयगाए करेज्ज, अपणो असत्तो संतेहि कारवेज्जा ॥५६२६॥ असती य संजाणं, पच्छाकडमा दिएहि कारेज्जा । गिहि- अण्णतित्थिए हिं, गिहत्थि - परतित्थितिविहाहिं ॥ ५६२७|| | असति संजयागं पच्छाकडेहिं कार वेति । तम्रो साभिग्ग हेहिं ततो गिरभिग्गहेहि । ततो श्रहा भद्दएहि । ततो यिल्लएहिं मिच्छदिट्ठीहि । ततो अभिगहियमिच्छादि । ततो अगतित्यिएहि मिच्छद्दिट्टिमा दिएहि । पुवं असोयवादीहि पच्छा सोयवादीहि । ततो पच्छा "गिहत्यिपरतित्थितिविहाहि" ति । तनो गित्यीहि णालबद्धाहि प्रणालबद्धाहि तिविधाहि थेरमज्झिमतरुणीहिं, एवं परतित्थिणीहि वि संजतीहि वि एवं चेव । ।। ५६२७।। एसोचैव प्रत्थो वित्थरतो भण्णति, तती पच्छा "गिहत्थिपरतित्थितिविहाहिं" ति गिहत्थी दुविहा - णालबद्धा ग्रणालबद्धा य । १ दशवं० प्र० ८ गा० ५७ । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६२३-५६३० ] ततो इमाहिं हित्थीहि णालबंद्धाहिं - माता भगिणी धूया, अज्जियणीयल्लयाण असतीए । अणियल्लियथेरोहिं, मज्झ - तरुण - अण्णतित्थीहिं ॥ ५६२८ || माता भगिणी धुना प्रज्जिया णतुगी य । एतेसि प्रसतीते एयाहि चेव अण्णतित्थिणीहि, एतेसि सती प्रणालबद्धाहि गित्यीहि तिविधाहि कमेण थेर मज्झिम-तरुणीहि तम्रो एयाहि चेत्र प्रणतित्थियाहि तिविधाहि ॥५६२८ ।। सप्तदश उद्देशक: तिविहाण वि एयासिं, असतीए संजतिमा तिभगिणीहि । अज्जियभगिणीणऽसती, तप्पच्छाऽविसेस तिविहाहिं ॥ ५६२६|| प्रणालबद्धाणं थेर-मज्झिम-तरुणीणं प्रसति संजतीतो माता भगिणी घ्या य अज्जियणत्तुप्रमादितातो करेंति, ततो पच्छा ग्रवसेतातो प्रणालबद्धातो तिविहाम्रो थेर मज्झिम- तरुणीश्रो करावेति करेंति वा ॥ ५६२६ ॥ एयम्मि चेव प्रत्ये अण्णायरियकया इमा गाहा माता भगिणी धूया, अज्जिय णत्तीय सेसतिविहा उ । एतासं असती, तिविहा वि करेंति जयणाए || ५६३०॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - एयासि प्रसतीए त्ति मायभगिणिमादियाणं श्रसति सेसतिविहाउ ति प्रणालबद्धातो • संजतीतो तिविधातो थेरमज्झिमतरुणीश्रो, जयणा जहा फाससंबद्धणाणि ण भवति तहा कारर्वेति करेति वा ॥५६३०॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए पादे णउत्थिण वा गारत्थिएण वा मज्जा वेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा मज्जातं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ | सू०||६८ || जे निम्गंथे निग्गंथीए - पादे उत्थि वा गारत्थिएण वा संवाहवेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा बाहावेंतं वा लिमहावतं वा सातिज्जति ||सू०||६६ || ― - जे निग्गंथे निग्गंथीए - १७१ पादे अण्णउत्थिण वा गारत्थियण वा तेल्लेण वा घरण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा, मक्खावेंतं वा मिलिंगावेंतं वा सातिज्जति ||सू०||७० ॥ पादे उत्थण वा गारत्थियण वा लोण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उवट्टावेज्ज वा उल्लोलावेंतं वा उबट्टावेंतं वा सातिज्जति ||सू०||७१ || Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जे निग्गंथे निग्गंथीए - सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे जे निग्गंथे णिग्गंथीए पादे अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सदगविग्रडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोला वेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलावेंतं वा पधोयावंतं वा सातिज्जति ||म्०||७२॥ - पादे अण्णउत्थिण वा गारत्थिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज दा फुमातं वा स्यातं वा सातिज्जति ||०||७३ || 83 8 जे निग्गंथे निग्गंथीए - जे निग्गंथे निग्गंथीए - कार्य णउत्थिण वा गारत्थिएण वा श्रमज्जावेज्ज वा पमज्जा वेज्ज वा श्रमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ||०||७४ || जं निग्गंथे निग्गंथीए - [ सूत्र ७२-८५ कार्य थिए वा गारत्थिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा संवाहावेंतं वा पलिमदावेंतं वा सातिज्जति ॥ सू०||७५|| जे निग्गंथे निग्गंथीए - कार्य अण्णउत्थिण वा गारत्थिएण वा तेल्लेण वा घरण वा बसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा मक्खावें तं वा भिलिंगावेंतं वा सातिज्जति ||सू०||७६ ॥ ari oणउत्थि वा गारत्थिएण वा लोण वा कक्त्रेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेंतं वा उबट्टावंतं वा सातिज्जति ॥ सू०||७७|| जे निरगंथे निग्गंथीए -- कार्य अण्णउत्थिण वा गारत्थिएण वा सोगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्जवा उच्छोलावेंतं वा पधोयात्रेतं वा सातिज्जति || मू०||७८ || Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा सप्तदश उद्देशक: जे निग्गंथे निग्गंथीए - कार्य अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज वा फूमातं वा रयावेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥७४।। 23 जे निग्गंथे निग्गंथीए - कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥२०॥८०॥ जे निग्गथे निग्गंथीए - कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा संबाहावतं वा पलिमदावतं वा सातिज्जति ||सू०॥८॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - कार्यसि वणं अण्ण उ थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीए वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा मक्खावेंतं वा मिलिंगावेतं वा सातिज्जति ॥२०॥८२॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए --- कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उचट्टावेज्ज वा उल्लोलावेंतं वा उबट्टावेतं वा सातिज्जति ॥५०॥३॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारस्थिएण वा सीअोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा, उच्छोलावेतं वा पधोयावेतवा सातिज्जति ।।मू०॥४॥ जे निग्गथे निग्गंथीए - कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फूमावेतं वा रया-तं वा सातिज्जति ।।मू०॥५॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-णिके निशोथसूत्रे [ मूत्र ८६-१५ जे निग्गंथे निग्गंथीए - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा अमियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नघरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिंदावेज्ज वा विच्छिंदावेज्ज वा अच्छिदावेंतं वा विच्छिंदावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥८६॥ जे निगंथे निर्माथीए - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा अांसयं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा । अन्नयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावित्ता विच्छिदावित्ता पूर्व वा सोणियं वा नीहरावेज्ज वा विमोहावेज्ज वा नीहरावेंतं वा विसोहावेतं वा सातिजति ॥५०॥८॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरेणं दिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता विच्छिदावेत्ता पूर्व वा सोणियं वा नीहरावेत्ता विसोहावेत्ता मीग्रोदगवियडेण । उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलावेतं वा पधोयावेतं वा सातिज्जति ।।मू०॥८८|| जं निग्गंथे निग्गंथीए - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारन्थिएण वा अन्नयरणं तिरखणं मत्थजाएणं अच्छिदावेना विच्छिदावत्ता पूर्व वा माणियं वा नीहरावेत्ता विसोहावत्ता मीओदगायडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छालाना पधोयावेत्ता अन्नयरणं आलंवणजाएणं आलिंपावज्ज वा विलिपावज्ज वा आलिंपानं वा विलिपावेतं वा मातिज्जति ॥०॥६॥ जे निग्गथे निगयीए - कायंमि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, अण्णउन्थिएण या गारन्थिएण वा अन्नयग्णं निक्खणं मन्थजाएणं अच्छिदावत्ता विच्छिदावेना पूयं वा साणियं वा नीहगवेत्ता विमोहावना Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माश्यगाथा ] सप्तदश उद्देशकः १८३ सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेत्ता पधोयावेत्ता अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता विलिंपावेत्ता तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा अभंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१०॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - कायंसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्नयरेणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता विच्छिदावेत्ता पूर्व वा सोणियंवा नीहरावेत्ताविसोहावेत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेत्तापधोयावेत्ता अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता विलिंपावेत्ता तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगावेत्ता मक्खावेत्ता अन्नयरेणं धूवणजाएणं धवावेज्ज वा पधुवावेज्ज वा धूवावेंतं वा पधूवावेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥११॥ जे निगंथे निग्गंथीए - पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अण्ण उत्थिएण वा गारथिए ण वा अंगुलीए निवेसाविय निवेसाविय नीहरावेइ नीहरावेंतं वा सातिज्जति ||मू०॥२॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाश्रो नहसिहाअोअण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संठवावेतं वा मातिज्जति ॥ ०.१६३।। जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाई जंघरोमाई अण्ण उत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावज्ज वा कप्पावेंतं वा मंठवावेतं वा सातिज्जति ।।मू०॥४॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाई कखरोमाइ अण्णउथिएण वा गारथिएण वा कप्पावज्ज वा संठवावज वा कापावेतं वा मंठवावेंनं वा मातिज्जति ।।मू०५|| Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ जे निग्गंथे निग्गंथीए समाष्य- चूणिके निशीयसूत्रे - दीहाड़ मंसुरोमा श्रण्णउत्थिष्ण वा गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पा का संवातं वा सातिज्जति ॥ मू०||६६|| जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाई वत्थिरोमाई अण्णउन्थिएण वा गारस्थिरण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पा वा संवातं वा सातिज्जति ॥ ० ॥ ६७ ॥ ! जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाई क्रोमाई अण्णउन्थिएण वा गारन्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संख्यातं वा सातिज्जति || मू०|८|| * ज निग्गंधे निग्गंधीए ** ज निग्गंथे निग्गंथीए - दंते अण्णउत्थिण वा गारन्थिएण वा श्रघंसावेज्ज वा पघंसावेज्ज वा, आवंसावंतं वा पर्व सावेंतं वा सातिज्जति ||३०||६|| जे निग्थे निम्गंथीए दंते उत्थिए वा गारत्थिएण वा उच्छा लावेज्ज वा पधोया वेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पथोया तं वा सातिज्जति||सू०॥१००॥ - [ सूत्र ४६-११० जे निग्गंथे निग्गंथीए - दंते अण्णउत्थिएण वा गारन्थिए वा मावज्ज वा यावज्ज वा, फुमावतं वा स्यातं वा सातिज्जति ॥ ० ॥ १०१ ॥ ॐ * उसे अण्णउन्थिए वा गारस्थिएण वा श्रमज्जा वेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा * मज्जातं वा मज्जावेंचं वा सातिज्जति ||५० ||१०२ || जं निग्गंध निग्गंधीए - उडे अण्णउत्थिष्ण वा गारत्थियण वा मंत्राहवेज्ज वा पलिमहावेज वा संवाहावतं वा पतिमहावेनं का सातिज्जति ||३०||१०३|| Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा मतदश उद्देशक: १८५ जे निग्गंथे णिग्गंधीए - उद्धे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा मक्खावेंतं वा भिलिंगावतं वा सातिज्जति ॥१०॥१०४॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - उढे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोखूण वा कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावें तं वा सातिज्जति सू०॥१०॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - उट्टे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलात वा पधोयावेतं वा सातिज्जति ॥२०॥१०६॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फूमावेज्ज वा रयावेज्न वा, मावेतं या रया-तं वा सातिज्जति ॥सू०॥१०७॥ जे निग्गंथे निग्गंधीस्स - दीहाइं उत्तरोट्ठाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संख्या-तं वा सातिज्जति ॥सू०॥१०८।। जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाई अल्छिपत्ताई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा मंठवावेंतं वा मातिज्जति ॥सू०।१०।। जे निग्गंथे निग्गंधीए - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जातं वा पमज्जातं वा सातिज्जति ॥२०॥११०॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र १११-१२१ जे निग्गंथे णिग्गंथीए - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संबाहावेज्ज वा पलिमदायेज्ज वा संवाहावेतं वा पलिमदावेंतं वा सातिज्जति ॥०॥१११।। जे निग्गंथे निग्गंथीए - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खावेज्ज वा भिलिंगावेज्ज वा, मक्खावेंतं वा भिलिंगावेंतं वा सातिज्जति।स।।११२।। जे निग्गथे निग्गंथीए - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धण का कक्केण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेतं वा उव्वट्टावेतं वा सातिज्जति ॥०॥११३।। जे निग्गंथे निग्गंधीए - अच्छीणि अध्याउथिएण वा गारथिएण वा सीओदगविषडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा उच्छोलावेतं वा पधोयावेतं वा सातिज्जति।।।।११४|| जे निग्गंथे निग्गंथीए - अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारस्थिएण वा फूमावेज्ज वा ग्यावेज वा फूमातं वा रयावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥११॥ जे निग्गथे निग्गंथीए - दीहाई भुमगरोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिरण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥११६॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - दीहाई पासरोमाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण का कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जनि ।।सू०॥११७|| Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाध्यगाथा ५६३१-५६३३ ] सप्तक्ष्य उदेशक: १८७ जे निग्गंथे निग्गंथीए - अच्छिमलं वा काणमलं वा दंतमलं वा नहमलं वा अण्णउत्थिरण वा गारथिएण वा नीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा नीहरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥११८॥ जे निग्गंथे निग्गंथीए - कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मन्नं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा नीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा नीहरावेंतं वा विसोहावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥११॥ जे निग्गंथे निम्माथीए - गामाणुगामं दूइज्जमाणे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीसदुवारियं कारावेइ, कारावेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१२०॥ सुत्ता एकचत्तालीसं ततिम्रो सगगमेण जाव सीसदुवारेति सुत्तं ! प्रत्थो पूर्ववत् । एसेव गमो जियमा, णिग्गंथीणं पि होइ णायव्यो । कारावण संजतेहि, पुब्वे अवरम्मि य पदम्मि ॥५६३१॥ संजतो गारस्थिमादिएहिं संजतीणं पादपमज्जणाती कारवेति, उत्तरोटुसुत्तं ण संभवति, अलक्खणार वा संभवति ॥५९२६॥ जे निग्गंथे निग्गंथस्स सरिसगस्स अंते अओवासे संते. ओवासे न देइ, न देतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१२१॥ णिग्गयगंयो मंतो वसहीए व्रतसंजमगुणादीहिं तुल्लो सरिसो संतमिति विजमाणं मोवासो ति - प्रवगासो - स्थानमित्यर्थः । प्रदेंतस्स च उलहू । इमो सरिसो ठितकप्पम्मि दसविहे, ठवणाकप्पे य दुविहमण्णतरे। . उत्तरगुणकप्पम्मि य, जो सरिसकप्पो स सरिसो उ ॥५६३२।। दसविहो ठियकप्पो इमो - आचेलक्कुद्देसिय, सेज्जायर गयपिंड किइकम्मे । वय जेट्ट पडिक्कमणे, मासं पज्जोसवणकप्पे ॥५६३३॥ इसस्स वि 'अचेलको धम्मो, इमस्स वि उद्देसियं ण कप्पइ । एवं सेज्जायरपिंडो रापिडो य । कितिकम्मं दुविधं - अन्मुट्ठाणं बंदणं च । तं दुविहं पि इमोवि जहारुहं करेति, इमो वि जहारुह । अधवा - कितिकम्मं सव्वाहिं संजतीहि प्रज्जदिक्खियस्स वि संजतस्स कायव्वं दो वि तुल्लमिच्छति । १ आचेलक्को, इत्यपि पाठः । Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-णिके निशीथसूने [सूत्र-२१ इमस्स वि पंच महव्वयाणि । जो परमं पंचमहव्वयारूढो सो जिट्टो सामाइए वा ठविमो। इमस्स वि इमस्स वि महयारो होउ मा वा, उमयसंझ इमस्स वि इमस्स वि पडिक्कमति । उदुबळे मासं मासं एगत्व मच्छति इमस्स वि इमस्स वि । चत्तारि मासा वासासु पज्जोसवणकप्पे ण हिरंति इमस्स वि इमस्स वि । एसो दसविहो ठियकप्पो ॥५६३३॥ ठवणाकप्पो दुविहो - अकप्पठवणाकप्पो सेहठवणाकप्पो य - आहार उवहि सेज्जा, अकप्पिएणं तु जो ण गिव्हावे । ण य दिक्खेति अणट्ठा, अडयालीसं पि पडिकुट्टे ॥५६३४|| पाहार-उवहि-सज्ज प्रकप्पियं ण गिण्हति । एम प्रकप्पठवणा । सेहठवणाकप्पो-अट्ठारस पुरिसेसु, वोस इत्योसु, दस णपुंसेसु, एते अडयालीसं ण दिक्खेइ णिक्कारणे ॥५६३४।। सो वि इमो 'उत्तरगुणकप्पो - उग्गमविसुद्धिमादिसु, सीलंगेसु तु समणधम्मेसु । उत्तरगुणसरिसकप्पो, विसरिसधम्मो विसरिसो उ ॥५६३५॥ पिंडस्स जा विसोही । गाहा ।। तत्य उग्गमसुद्धं गेहति, प्रादिसद्दामो उपायणएसणातो, समितीमो पंच, भावणा बारस, तवो दुनिहो, पडिमा बारस, अभिग्गहा दन्वादिया, एते सोलंगगहोण महिया। अहवा - सोलंगगहणाप्रो अट्ठारससीलंगसहस्सा । एयम्मि ठितकप्पे उत्तरगुणकप्पे वा जो सरिसकप्पो सो सरिसो भवति, जो पुण एतेसि ठाणाणं प्रणयरे वि ठाणे सीदति सो विसरिसधम्मो भवति । अहवा - ठियकप्पे दसविहे, ठवणाकप्पे य दुविहे, णियमा सरिसो । उत्तरगुणे पुण केस विसरिसो चेव, जहा तवपडिभाभिग्गहेसु ।।५६३५॥ अहवा सरिसो इमो अण्णो वि य पाएसो, संविग्गो अहव एस संभोगी । दोसु वि य अधीगारो, कारणे इतरे वि सरिसाश्रो ॥५६३६॥ जो संविग्गो सो सव्वो चेव सरिसो, अहवा - जो संभोइसो सो सरिसो। अहवा - कारणं पप्प इयरे त्ति - पासत्थप्रसंभोतिता ते वि सरिसा भवंति ।१५६३६॥ जो तस्स सरिसगम्स तु, संतो वा से ण देति ओवासं । णिक्कारणमिम लहुया, कारणे गुरुगा य आणादी ।।५६३७।। संतमोवासं निक्कारणियमागयस्स जइ ण देति तो चउलहुं । संतमोवास कारणियमागय जद न देइ तो चउगुरु, प्राणादिया य दोसा ॥५६३७॥ इमे कारणा जेहिं प्रागो उदगागणितणोमे, अद्धाण गिलाण साक्यपउद्वे । एतेहिं कारणिो, णिक्कारणियो य विवरीओ ॥५६३८।। १गा० ५९२७ । www.jainelibrary:org Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६३४- ५६४३ ] सप्तदश उद्देशकः प्रणामे सग्गामे वा प्रष्णवसधीए साधू ठिता, ते म सा वस्ती उदकेन प्लाविता प्रगणिया वा दड्ढा ते आता ते सावदुहि वा उवद्विज्जमाना सरणमागया, श्रद्धाणपडिवण्णा वा, वेज्जोसहरूज्जेसु वा गिलाणटु मागयस्स एवमादिएहि पयोयणेहि जो श्रागतो सो कारणियो । भतो विवरीम्रो दप्पती आगतो शिक्कारशिश्रो ।। ५६३८ ॥ सहि प्रभावे बहिं वसंतस्स इमे दोसा कूयरदंसमसोससीता, सावय-वाल - सतक्करगा वा ! दोस बहू वसतो बहितो जे, ते सविसेस उविंति देते || ५६३६ || - किं चान्यत् - कुच्छियचरा कुचरा पारदारिकादि तेहि उवद्दविज्जति, दंसमरागादीहि वा खज्जति, उम्सादि वा जलं सीतं वा पडति, सोहादिसावरण सप्पादिवालेण वा खज्जइ, तक्करे ति चोरा तेहि वा मुस्संति हरिज्जति । एवमादि बहि वसंते बहुदोसा । जे तस्स साधुरस वहि वसतो दोसा ते सव्वे उवेंति ति भवति तस्स । जं तेसु पन्छित्तं तं सव्वं प्रदेतस्स भवतीत्यर्थः || ५६३९॥ एगट्टा संभोगो, जा कारुवकारिता परोप्परश्र । विवित्साऽवच्छल्ला, हवंति एवं तु छेदो य ॥ ५६४०॥ १८६ प्रविवित्तभावा प्रदेतस्य प्रवच्छलता य भवति, संभोगवोच्छित्ती, साहम्मियवच्छल्लवोच्छिती वा ग्रहवा - पवयणवुच्छिती वा, तम्हा साहुणा साहुस्स दढसोहिएण होयब्वं ।। ५६४० ।। जति एक्कभाणजिमित्ता, निहिणो वि हु दीहसोहिया होंति । जिणवयणवाहिभूया, धम्मं पुण्णं श्रयाणंता || ५६४१ ॥ कंख्या किं पुण जगजीवसुहावण संभंजिऊण समणेणं । सक्का हु एक्कमेक्के, नियगं पिव रक्खितो देहो ॥ ५६४२ ॥ आवत्तीए जहा अप्पं रक्खति तहा अण्णो वि प्रवत्तीए रक्खियव्वो ।। ५६४२ ।। एवं खेत्ते श्रखेत्ते वा वसीए वासो दाता । असंथरणे खेत्ते वि प्रन्नगच्छस्स प्रवगासो दानुब्यो । जतो भण्णति - अथ हुवसभग्गामा, कुदेस- जगरोवमा सुहविहारा । बहुगच्छुवग्गहकरा, सीमाछेदेण वसियच्चा || ५६४३ ।। ग्रन्थि त्ति-विज्जए वसभग्गामो णाम जन्थ उडुब प्रायरियो प्रप्पवितिम्रो गणावच्छेश्रो अप्पततियो एस पंच, एतेण पमाणे जत्थ तिणि गच्छा परिवसति एयं वसभवेत्तं । वासासु प्रयरिश्रो अप्पततितो, गुणावच्छेतितो अप्पच उत्यो एते सत्त, ते पमाणेण जत्य तिि गच्छा परिवसंति एवं वराभखेत्तं । एते एक्कवीसं एयं वसभखेत्तं । कुन्छियो देसो कुदेसो उवमिज्जति जो गामो कुदेस- नगरोवमो, सो य सुहविहारो सुलभभत्तपाणं वसधी वत्थं णिरुवध्वं च नृप्रभृतिबहुत्वं पुत्र्वभरि सत्यप्पमार्णण उवग्गहे वट्टति, ते य बहुगच्छा जति समं दिया तो साधारणं खेत्तं । तत्थ सीमच्छेदेण व सियव्वं, इमो सीमच्छेदो - तुम्ह सचित्तं, श्रम्ह प्रचितं । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे अहवा - तुम्ह बाहि, ग्रम्ह अंतो । तुम्ह इत्थी, भ्रम्ह पुरिसा । अहवा - तुम्ह सग्गामो श्रम्ह वाताहडा कलेहि वा वाडगसाहाहि वा उन्भामगेहि । - जं लब्भति तं सव्वं सामण्णं । अहवा अहवा - जो जं लाही तस्स तं । एवं सीमच्छेदेण वसियव्वं, णो अधिकरणं कायव्वं । परखेते वि खेत्तियव सेण सीमच्छेदो कायव्वो । खित्तएग वि प्रमायाविणा भवियव्वं ।।५८४३|| भवे कारणं ण देना वि विनयपदं पारंचिय, असिव गिलाणे य उत्तमट्ठे य । अव्वोच्छित्तोवासे, असति णिक्कारणे जतणा || ५६४४ ॥ पारंचिय असिवस्स इमा विभासा - पारंचि ण दिज्ज व, दिज्जति व ण तस्सुवस्सए ठाओ । वे बाहिं, ठितपडियरणं च ते वा वी ॥ ५६४५|| दुविहे पारंचि प्रोसि श्रप्पणी ठाणं ण देज्जा, पारंचियस्स वा ठाम्रो न दिज्जति, प्रसिवर्गाहियस्स ग दिज्जति, प्रसिवगहियो वा वसहीए ठाणं ण देउज, प्रसिवगहियस्स अण्णवसहिठियस्स वेयावच्चं कायव्वं, प्रणवसहिठितो वा असित्रगहियाण वेयावच्चं करेइ । दुविहं पुण असिवं । चउभंगे पच्छिमा जा दो मंगा साहु श्रभद्दा ।। ५६४५।। इयाणि गिलाण उत्तिमट्ठाण विभासा - तरंत मिगावण्णहि, मिगपरिसा वा तरंतो अण्णत्थ | एमेव उतिमट्ठे, समाहि पाणादि उभयम्मि || ५६४६ ।। जेसिं प्रतरंतो प्रत्थि सो य प्रागंतुगो पिगो प्रगीयत्थो होज्ज अपरिणामो वा ताहे सो प्रणवसहीए ठविज्जति पहवा - गिलाणो भागो वत्थव्वाण य मिगपरिसा ताहे सो गिलाणो श्रष्णत्थ ठत्रिज्जति, एवं उत्तिमट्ठपडिवणे व समाहिणिमित्तं पाणगादि दायत्वं । तत्थ " उभयंमि" ति जति भागंतुगो मिगो तो श्रणवसहीए विज्जति । ग्रह वत्थब्दगपरिसा मिगा तो उत्तिमट्टपडिवण्णे प्रणवसहीए विज्जति ॥५६४६ ॥ वोच्छित्तिविभासा इमा - छेद सुतणिसहादी, प्रत्थो य गतो य छेदसुत्तादी | मंत निमित्तोसहिपाहुडे, य गार्हति अण्णत्य | ५६४७।। [ सूत्र - १२३ णि सीहमादियस्स छेदसुत्तस्स जो त्यो श्रागतो मुत्तं वा मोक्कलाणि वा पच्छित्तविहागाणि मताणि वा जोणिपाहुडं वा गाहंतो अगत्य वा गाहेति अगत्य वा ते मिगा टविज्जति जत्थ वसहीए वा दिज्जति तत्थ मिगाण श्रीवासो ण दिज्जति । एवतः विकारणे पारंचियादियाण श्रवासो दिज्जते ।।५६४७॥ इमां ग्रववादे ग्रववादों - पुणो इमं कारणमविविश्वऊण असिवादिके पारंचियादी विप्रवास दिज्जति - १ गा० ५६४२ । २ गा० ५६४२ । 2 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६४४-५६६३ ] सप्तदश उद्देशक: १६१ जा निग्गंथी निग्गंथीए सरिसियाए अंते ओवासे संते ओवासे न देइ न देंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१२२॥ एसेव गमो णियमा, णिग्गंथीणं पि होइ नायव्यो । पुञ्चे अवरे य पदे, एगं पारंचियं मोत्तुं ॥५६४८॥ कंठ्या णवरं - अववादपदे संजतीण पारंचियं णस्थि । जे भिक्खू मालोहडं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।।सू०।१२३।। मालोहडं पि तिविहं, उड्रमहो उभयो य णायव्वं । एक्केक्कं पि य दुविहं जहण्णमुक्कोसयं चेव ॥५६४६।। उड्डमालोहड विभूमादिसु, अहोमालोहडं भूमिघरादिस्, उभयमालोहडं मंचादिमु, समश्रेणिस्थितः, ग्रहवा - कुडिमादिसु भूमिद्वितो प्रधोतिरो जं कडति । अग्गतलेहि ठाउं जं उत्तारेइ तं जहणं । पीढगादिसु जं पारोळ उतारेइ तं सव्वं उक्कोसं ।।५६४६।। भिक्खू जहण्णयम्मी, गेरुट उक्कोसयम्मि नायब्वो। अहिदसण मालपडणे, एवमादी नहिं दोसा ।।५६५०|| सिवकताप्रो उपारिउकामा साहुणा पडिसिद्धा तच्चनियट्ठा गिण्हइ अहिणः डक्का मया । मालामो उपारिउकामा साहुणा पडिसिद्धा परिव्वायगट्ठा उत्तारेंती पडिया, जंतखीलेण पोट्ट फाडियं मया ॥५६५०॥ इमे उक्कोसे उदाहरणा आसंद पीढ मंचग, जंतोदुक्खलपडत उभयवहो । वोच्छेय-पदोसादी, उड्डाहमणा णिवातो य ॥५६५१॥ सेसं पिंडणिज्जुत्ति-अणुसारेण भाणियव्वं । इमा सोही - _. सुत्तणिवातो उक्कोसयम्मि तं खंधमादिसु हवेज्जा । एतेसामण्णतरं, तं सेवंतम्मि प्राणादी ॥५६५२।। उक्कोसे च उलहुँ, जहणे मासलहुं, सेमं कठं । इमं बितियपदं - असिवे अोमोयरिए, रायदुट्टे भए व गेलण्णे । अद्धाणरोहए वा, जयणागहणं तु गीयत्थे ॥५६५३॥ प्रणेगसो गतत्था । णवरं-गीयत्थो पणगपरिहाणीए जयगाए गेण्हइ ॥५६५३।। जे भिक्खू कोट्ठियाउत्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उक्कुज्जिय निक्कुज्जिय देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥१०॥१२४॥ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे सूत्र १२४-१२६ पुरिसप्पमाणा होणाधिया वा चिक्खल्लमती कोट्टिा गवति, कलिजो णाम वंसमयो कडवल्लो सट्टतो वि भणति । अण्णे भणंति - उट्टियाउवरि हुत्तिकरणं उक्कुज्जियं, उड्डाए तिरियहुतकरणं प्रवकुज्जियं, उहरिय त्ति - पेढियमादिमु पारुभिउं प्रोप्रारेति । अथवा - कायं उच्च करेज्जा उक्कज्जियडंडायदं तदद् गृण्हाति, कायं उड्डे कृत्वा गृहाति - उमिय इत्यर्थः । कोट्ठियमादीएस, उभो मालोहडं तु णायव्वं । . ते चेव तत्थ दोसा, तं चेव य होति बितियपयं ॥५६५४॥ एवं उभयमालोहड दमियं ते चेव दोसा बितियपयं च। जे भिक्खु मट्टिोलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उम्भिंदिय निम्भिंदिय देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१२॥ घयफाणियादिमायणे छूहं तं पिहितं सरावगादिणा मट्टियाए उल्लित्तं तं उभिदियं देंतस्म जो गेण्हइ तस्स चउलहुं । पिहितुभिण्णकवाडे, फासुग अफासुगे य बोधव्ने । अफासु पुढविमादी, फासुगछगणादिदद्दरए ॥५६५५।। उम्भिण्णं दुविधं - पिहुभिणं वा कवाडुभिण्णं च । पिहुभिणं दुविध-फासुयं अफासुयं च। जंतं फासुयं तं अचिरा वा मोसं वा । प्रफासुयं पुढविमादिछसु काएसु जहासंभवं भाणियव्वं । जं फासुमं छगणेन अहवा - वत्थेग चम्मेण वा ददरियं । दद्दरपिहिउभिण्णे मासलहं, मेसपिभिणेस चउलहं, अर्णतेस उगुरु, परित्तमीसेस मासलाई, अगतमीसेसु मासगुरु, साहुणिमितं उभिणे कयविक्कतेसु प्रधिकरणं कवाडपिहितुभिण्णे कंचियवेधे तालए वा प्रावत्तणपेडियाए वा तसमादिविराधणा । सेसं जहा पिंडणिज्जुत्तीए !:५६५५।। एतेसामण्यतरं, पिहितुभिण्णं तु गेण्हती जो तु । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्त-विराहणं पावे ॥५६५६॥ कंध्या असिवे प्रोमोयरिए, रायगुडे भए व गेलण्णे । श्रद्धाण रोहए वा, जयणा गहणं तु गीयत्थो ॥५६५७।। पूर्ववत् जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पुढविपतिट्ठियं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा मातिज्जति ॥०॥१२६। जे भिक्ख असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउपनिट्ठियं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा मातिज्जति ।। ०।१२७।। जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं गा तेउपतिहियं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेत वा मातिज्जति । मू०॥१२८! Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६५४-५६६३ ] सप्तदश उद्देशक: १६३ जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सतिकायपतिट्टियं पडिग्गाहंति पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥१०॥१२६।। सच्चित्तमीसएसुं, काएसु य होति दुविहनिक्खित्तं । अणंतर-परंपरे वि य, विभासियध्वं जहा सुत्ते ॥५६५८॥ पढवादी काया ते दुविधा – सच्चिता मोसा वा । सचित्तेमु अणंतरणिविखतं परंपरणिक्खित्तं वा । मीमेम वि प्रणतरणिविखत्तं परंपरणिक्खितं वा । पिंडणिज्जुत्तिगाहासुत्ते जहा तहा सवित्थरं भाणियध्वं । यायारबितियसुयक्खधे वा जहा सत्तमे पिंडेसणासुत्ते तहा भाणियव्वं ॥५६५८।। सुत्तणिवातो सच्चित्तऽणंतरे तं तु गेण्हती जो उ । सो आणा अणवत्थं मिच्छत्त-विराधणं पावे ॥५६५४॥ परितमचित्तेस प्रणतरणिक्खित्ते च उलहुं, एत्थ सुत्तं णिवयति । सचित्तपरंपरे मासलहं, मीसप्रणतरे मामलहुं. परंपरे पणगं, अणते एते चेव गुरुगा पन्छित्ता ।। ५६५६।। चोदगाह - तत्थ भवे णणु एवं, उक्खिप्पंतम्मि तेसि आसासो। संजनिणिमित्ने घट्टण, थेरुवमाए ण तं जुत्तं ।।५६६०॥ पृढ वादिकायाण उवरि ठिगं जं तम्मि उक्खिप्पते णणु तेसिं प्रासासो भवति ? आचार्याह - तम्मि उक्विपते जा संघट्टणा मा म नयगिमित्तं, ताण य अप्पमंघयणाण संघट्टणाए महंती वेदाणा भवति ।५६६०॥ पत्थ थेरुवमा - जरजज्जरो उ थेरो, तरुणणं जगलपाणिमुहतो। जारिसवेदण देहे, एगिदियघट्टिते तह उ ॥५६६१॥ जहा जराजुण्णदेहो थेरो बलवता तरुणेण जमलपाणिणा मुद्धे पाहते जारिसं वेयणं वेयति, नतो अधिकतर ते संघट्टिता वेगणं अणुहवंति, तम्हा ण जुत्तं जं तुम भणसि ॥५६६१॥ इमं वितियपदं - असिवे ओमोयरिए, रायढे भए व गेलण्णे । अद्धाण रोहए वा, जयणा गहणं तु गीयत्थे ॥५६६२॥ पूर्ववत् । गीयत्थो इमाए जयणाए गहणं करेति - पृव्वं मीसे परंपरट्टितो गेहति, ततो गीसे प्रगत रो, तता मच्चिने परंपरे, ततो सचित्ते प्रणतरे, एवं अणतकाए वि, एस परित्ताणतेसु कमो दरिसियो १६॥ पहणे पुण इमा जयणा - पुत्वं मीसपरंपर, मीस तत्तो अणंतरे गहणं । मच्चित्त परंपरऽणंतर य एमेव य अणंते ॥५६६३।। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ .. सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र १३० -१३२ पुव्यं परिते मोसे परंपट्टितो गेण्डति, ततो मोसणंतपरंपर, ततो सचित्तपरित्तपरंपर, ततो प्रणंतमीसप्रणंतरं, ततो अणंतसचिनएरंपरं, ततो परित्तसचित्तप्रणंतरं, ततो अणंतसचित्तप्रणंतरं आहारे भणियं ॥५६६३॥ आहारे जो उ गमो, णियमा सो चेव होइ उवहिम्मि । णायन्वो तु मतिमता, पुन्चे अवरम्मि य पदम्मि ॥५६६४॥ कंठ्या जे भिक्ख अच्चुसिणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सुप्पेण वा विहुणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा पत्तभंगेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पेहुणेण वा पेहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमित्ता वीइत्ता आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१३॥ जे मिक्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उसिणुसिणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१३१॥ जे भिक्खू असणादी, उसिणं णिब्ववियसंजयट्ठाए । विहुवणमाईएहिं, पडिच्छए आणमादीणि ॥५६६५।। "णिवाविय" ति उल्लवेऊण, सेमं कंठ्य । उसिणे घेप्पते इमे दोसा दायग-गाहगडाहो, परिसडणे काय-लेव-णासो य । डझति करोति पादस्स छड्डणे हाणि उड्डाहो ॥५६६६।। परिसडते वा भूमीते छक्कायवहो, अच्चुसिणेण व. भाणस्स लेवो डझति, उसिणे दिज्जमाणे वा करे उज्झमाणो पायं तं छड्डे ज्ज, तम्मि भग्गे असति भायणस्स अप्पणो हाणी, बहु असणादि परिदृवियं द? "बहि फोड" ति उड्डाहो । जणो वा पुच्छति -- "कह डड्ढो" ? ति । संजयस्स भिक्ख देजमाणो जणे फुसते उड्डाहो ति ॥५६६६॥ इमो अववादो असिवे ओमोयरिए. रायदुढे भए व गेलण्णे । अद्धाण रोहए वा, काले वा अतिच्छमाणम्मि ॥५६६७॥ पूर्ववत् काले प्रतिच्छमाणे ति जाव तं परिक्कमेण सीतीभवति ताव प्राइचो उक्त्यम गच्छति । अतो मूगादीहिं तुरियं सीयलिज्जति, ण, दोसो ॥५६६७।। उसिणे पुण कारणे घेप्पते इमा जयणा - गिण्हनि णिमीतितं वा, सज्झाए महीय वा ठवेऊण । पत्ताधगते वा, घोलणगहिते व जतणाए ॥५६६॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानावा १९६४- सप्तदश उद्देशक १६२ उवासिता पदसषिवं बहा न उज्झति तहा गेहति । अहवा- मंचने मंचिकाए का मके भूमीए वा पार्ट बेत्ता मेहति । पत्तमधवतो वा गेण्हति । अच्चुसिणं च पाद्रुतं धोनेइ, मा लेवो डज्झिहिति । एकाए जपणाए सारसे महतो बोसो ॥५६६८॥ बे मिक्स उस्सेइमं वा संसेइमं वा चाउलोदगं वा वालोदगंवा तिलोदयं वा तुमोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा अंजियं वा सुदवियउं वा अहुणा धोयं अणंबितं अपरिषयं अक्क्वंतजीवं अविदत्वं पडिग्गाहे पडिम्मा.तं वा सातिजति ।मु०॥१३२॥ उस्सेतिममादीया, पापा वृत्ता उ जचिया सुचे। तेसि अपतरायं, गव्हते आषमादीमि।६६६॥ उसि सोतोदने कुति तं उस्सेइमकाणायं । पुष रसिक व उचारि सोतोदमोणा देवा शिक्षित समेइमा अहवा-मसेतिम, तिना उगहपालिएका सिष्णा जति सीतोदया धोति तो सासोक्तिम मापाति। चाडला पोवर्ष चाउनोदय । अधुना धोतं अचिरकालपोतं । रसातो गणत्रीच्या जीवेण्णा विष्पापकतात, र बात अवमतं, अचेतन मिश्र वा इत्यर्थः । नवव्याजातं परिणयन परिणामं अपारिणयस्वमानवस्वमित्यर्थः । बचपरसफामेहि साब्वेहि धस्तं तं विवस्तं, प्रयोगधा का वास्ता विध्वस्त, कविद्वत्वं अविटत्य, सवंगा स्त्रमावस्वमित्यर्थः। अहवा-एए एमट्टिया । पारिएका मोहतास्सा चलाइ, आमाझ्यास दोसा ॥२६॥ उस्सेइमस्स इमं वक्खान सीतोदगम्मि छुमति, दोगमादी उसेइमं पिहूँ। संसेइमं पुष तिला, सिम्म छुगंति बन्दए ॥१७॥ मरहद्धविसए उस्लेइमा दोबमा सो मोदयो । कुमति । उस्तोइसे उदाहरणों, कहा- मिट्ठ । श्राहमा - फिल्मा उसमेन्चमानस्ल हेढवं पात्रिय त उस्मेऽम्म । पच्छाद मातार्थ #HEGelu मुस्मेतिमाहवं, अपाषं च होति केसिचि। नं तुप जुज्जति जम्हा, उसिय मीसं नि जा दंडो॥७१॥ ते दोकमाटी उस्मेतिया, एकल्मि 'कामाय दोस्तु लिनु बा मिच्चालिाज्याति तात्या निलिमालालिमा म मामि केव कप्पा, पटम पाणिय तंणि प्रकप चेक ॥ सि चि आरिवारमा काण, ता या मालिा । कम्दा ? बम्हा उसिमोदमामति अधुकतो डडे मील माति, टं शुमा कहि उससेतिमेस्सु छुळेसु जिलों विष्यतीवर्षः? १७॥ इमो चाउतोदे विही स्टमं वितियं तनियं, चाउलउदगं तु होति सम्बिस्सं । नेष परंतु चउत्ये. सुचवितातो हं गणितो ॥५६७२॥ पडम-दितिव-नातिय बाउनोदना एस्तो पिसमा मिला भवति, नेका परं च सत्वयादि माचिका ॥ एका मुन्नाशिवानो चउनहमित्यर्थ । दिल्लेसु तिस कि मामलाई । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे - [मूत्र-१३३ .. अण्णे पुण - ततिए वा चाउलसोधणे सुत्तणिवामिच्छति, जेण तत्य बहु प्रारिणयं, थोवं परिणयमिति ॥५६७२।। जं उस्सेतिमादि मिस्सं तस्सिमो गहणविही - कालेणं पुण कप्पति, अंबरसं वण्णगंधपरिणामं । वण्णातिविगतलिंगं, णज्जति बुक्कंतजीचं ति ॥५६७३।। तं उस्सेतिमं चिरकालं अच्छत जया रसतो अंबरसं, वणतो विवष्णं, गंधो मागंध, फासतो चिक्खिल्लं, एवं तं उदगं वण्णादिविगतलिंगं दलृ णज्जति जहा विगयजीवं ति तहा घेप्पति । चोदगाह - "बेसि फुडं गमणादिकं जीवलिंगं ते णअंति, जहा विगयजीवा ति। पुढवादी पुण अन्वत्तजीवलिंगे कह पाता, जहा विगतजीवं?'' ति ।।५६७३।। प्राचार्याह - काम खल चेतण्णं, सव्वेसेगिदियाण अव्वत्तं । 'परिणामो पुण तेसिं, वण्णादि इधणासज्ज ॥५६७४॥ · पुवढं कंठ । पच्छद्ध इमो प्रत्यो-बहुमज्झत्थो चिंधणेण जहासंखं अप्पमझ चिरकालोवलक्खिता जहा वण्णादी तहा तेसि अवभिचारी अजीवत्ते परिणामो लक्विज्जति ॥५६७४|| एमेव चाउलोदे, पढमे बिति-ततिर तिणि आएसा । तेण परं चिरधोतं, जहि सुत्तं मीसयं सेसं ॥५६७५॥ चाललोदगे वि जे पढमबितिता चाउलोदगा ते अहुणा घोता मीसा । तेण परं चिर घोयं हि सुत्तं" ति तेण परं धउत्थादि चाउलोदगं तं चिरषोयं पि सचित्तं, बहि सुतं णिवयति तस्याग्रहणमेव । जं पुण "मोसयं सेस" ति तम्मि इमे तिणि प्रणागमिगा प्रादेशा - तत्थेगो भणति -- चाउला घोवित्ता जत्थ तं चाउलोदगं सुमति तत्थ जातो कण्णे फुसितामो लग्गाग्रो तारो मजाक सुक्कति ताव तं मीसं, "तेण परं" ति - तासु मुक्कासु तं प्रचित्तं भवतीत्यर्थः ।। ____ अवरो भणति - चाउला जाव सिज्झति ताव त मीसं, तेण परं अचित्तं पूर्ववत् । २ । ___ अवरो भणति - तम्मि चाउलोदगे जे बुन्नुमा ते जाव अच्छति ताव मीसं, तेण परं अचित्तं पूर्ववत् । ३ । प्राचार्याह-"तेण परं चिरधोयं' ति एते अक्खरा पुणो चारिज्जंति, जेण फुसिताप्रो सि(सी)यकाले चिरं पि अच्छनि । गिम्हकाले लहुं सुसंशि, चाउला वि लहुं चिरेण वा सिझत. बुब्बुप्रा वि चिरं नीवाए अन्छति, पवाए लहुं विणस्संति, "तणं" ति तेण कारणेण एते प्रणादेसा । "परं" ति एतेसि पाएसाणं इमं वरं प्रधानं प्रागमितं प्रादेरांतरं - "'जं जाणेज्ज चिराघोत" सिलोगो। बहुप्पसणं च मतीए दंसणेण य अचित्तं जाणेत्ता गेण्हति : जत्थ “२वालधोवणं" ति पालावगो-चमरिवाला धोवंति तककादीहिं, पच्छा ते चमरा सुद्धोदगेण धोवति । तस्थऽवि पढमबितियततिया मीसा, जं च पच्छिमं तं सचित्तं, तत्थ सुत्तनिवातो। अहवा वालधोवणं सुरा गालिन्जति जाए कंबलीए सा पच्छा उदएण धोवइ, तत्थ वि पढमाति घोषणा मीसा. १ दशवै० म० ५ उ० १ गा० ७६ । २ गा० सूत्र १३२ । . Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाव: ५६७३-५६८१ ] सप्तदश उद्देशक: 3 पच्छिमा सचिता, तम्मि सुत्तणित्रातो। प्रहवा - वालधोवणं रलयोरेकत्वात् वारागागदुगो सो तक्कवियडादिभाfort stors are fव पढमादी मीसा, पच्छिमा सचित्ता, तम्मि सुत्तणित्रातो। सव्वेसु मीसं कालेण परिणयं गेज्मं ।। ५६७५ ।। इमं बितियपदं - सिवे मोरिए, रायदुट्ठे भए व गेलण्णे । श्रद्धाण रोहए वा, जयणा गहणं तु गीयत्थे ॥ ५६७६ ।। पूर्ववत् जे भिक्खु अप्पणो यरियत्ताए लक्खणाई वागरेइ वागतं वा सातिज्जति ॥ ० ॥ १३३ ॥ जहा में करपा देसु लेहा जिन्वसिता, चंदजवकं कुसादी दीसंति सुसंठाणे, सुपमानता य देहस्स, तह' मे श्रवस्सं प्रायरिएण भवियव्वं, जो एवं वागरेइ तस्स चउलहं प्रागादिया य ते लक्खणा इमे - माणुम्माणपमाणं, लेहसत्तवपुअंगमंगाईं । जे भिक्खु त्रागरेति, आयरियत्तादि आणादी || ५६७७॥ माणस्स उम्माणस्स य इमा विभासा - छड्डेति तो य दोणं, छूढो दोणीए जो तु पुण्णाए । सो माणजुतो पुरिसो, श्रीमाणे श्रद्धभारगुरु ॥ ५६७८ || १६७ माणं नाम पुरिसप्पमाणातो ईसिप्रतिरिक्ता उट्टिया कोरइ सा पाणियस्स समणिबद्धा भरिज्जति, पच्छा तत्थ पुरिसो पक्विप्पति, जति द्रोणो पाणियस्म खड्ड ेति तो माणजुती पुरिसो, अहवा - पुरिसं खोण पच्छा पाणियस्स भरिज्जति तम्मि पुरिसे प्रोसितं जइसा कुंडी द्रोणं पाणियस्स पडिच्छर तो माणजुतो । उम्मत जति तुला भारोविप्रो श्रद्धमारं तुलति तो उम्माणजुत्तो भवति ।। ५६७८ ।। अट्ठसतमंगुलुच्चो, समुहाई वा समुस्सितो णवओो । सो होति पमाणजुतो, संपुण्णंगो व जो होति ॥५६७६ || संख्या 'लेह त्ति अस्य व्याख्या - मणिबंधा पवत्ता, अंगुड्डे जस्स परिगता लेहा । सा कुणति घणसमिद्धं लोगपहाणं च आयरियं || ५६८० || कंख्या सत्तवपुअंगमगाणं इमा विभासा - सत्तं अदीणता खलु, वपुतेओ जस्म ऊ भवड़ देहे । अंगा वा सुपडा, लक्खण सिरिवच्छेमा इतरे || ५६८१ ॥ सत्यं प्रधानं महंनीए वि श्रावदीए जो प्रदीणो भवति सो सत्वमंतो । वपू णाम तेयो, सो जम्म प्रत्थि देहो सो वपुमंतो । टुगा ताणि जस्स सुपतिमुमंठाण. णि, अमति ति उवंगाणि ताणि वि जस्स १ गा० ५६७७ । २ गा० ५६७७ । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ समाप-णिके निशीथसूत्रे [मू-२३४ सुपावसुसंठियाणि, प्रण्याचिन सिरियादोषि लक्खणाणि, "इबरे" ति जना ते मानिनपाते। बहवा - सह जायं लान, या बाय बंज, ॥५६८१॥ अहवा भवेब श्रमापरिक्सरिच्छाई लक्खणाई ण पासह महं ति। एरिस्ताखकजुत्तो, य होति अचिरेण भावरियो॥१९८२॥ प्रमुगस्स पायरियस्स बारिखा हत्थपादादिसु लक्खणा, जारिस पि वा देई, ममं पितारिख चेत्र। पच्छदं कठं ॥५६५२॥ इमे दोसा - गारक्कारणखेचाइणो य सच्चमलियं च होज्जा हि। विक्रीवं एति बदो, केति निमित्ता ण सन्चे उ ॥१८॥ महं पायरियो गाविस्सामि ति गारवकारणे खित्तादिचित्तो भवेन्ना, सायवाहको इव । ग्रहवा - छउमत्थोवलक्सिया नक्सया सचा वा हवेज्जा अलिता व होय । पच्छद क । अहवा- इमो पायरिमो होहिइ त्ति कोइ पडिणीयो चौवितामो ववरोविज्ज ।।५६२३॥ एयस्स इमो अववातो वितियपदमणप्पज्झ, वागरे अविकोविते य अप्पज्ये। कज्जे अण्णपभावण, वियाणणट्ठा य जाणमवि ॥५६॥ पडिणीयपुच्छणे को, गुरु मे किं सो हं ति पेच्छ मे अंगं । गिहि-अण्णतित्विपुढे, व जंगिते जो अणोतणे ॥२८॥ सित्तादिगो प्रणप्पज्झो सेहो अजाणतो अप्पणो लक्खणो पगासेन्चामपन्कोवा 'कन्वें" ति कोह पडिणीतो पुच्छेज्जा - कतमो भे गुरू ? ताहे जो पारोहपरिणाहजुत्तो सो भणति - किं तेण ? प्रहं सो। पडिणीमो भगति - कहं णायं? साहू भणति - पिच्छ मे अंग लक्खणजुतं । "अण्णाप्पभावणं" ति अस्य व्याख्या-गिहिप्रणतित्यिएण वा पुन्छि-को में गुरु ? ति। पायरियो जति सरीरजंगितो ताहे जो अण्णो साहू अणुत्तरदेहो प्रसन्नचिन्नो, भावमेनु व कया. गमो, एवं सो मण्णो पभाविज्जति, अप्पणा वा पमावेति ॥५९८५।। वियाणणट्ठाए त्ति अस्य व्याख्या - अट्ठवितगणहरे वा, कालगते गुरुम्मि भणतऽहं जोग्यो। देहस्स संपदं मे, आरोहादी पलोएह ॥५९८६॥ १ गा० ५६८४ द्वा० १ । २ गा० ५६८४ दा० २ । ६ गा० १९८४ दा०३ । . Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५६५२-५६६.] सप्तदश उद्देशक: १६९ भविते गणघरे प्रायरिया कालगया । तत्थ बे वसमा अण्णं प्रलक्खणजुत्तं विउकामा, ताहे सो लक्खणजुत्तो प्रणेहि भणावेति - अप्पणो वा भणति - मायरियपदजोगो देहसंपदं मे पेच्छह । मह मायरियो वि अलक्खगजुत्तं ठवेउकामो, तत्थ वि एयं चेव प्रप्पाणं पगासेति - खमासमणो जारिसो सुत्ते भणिनो तारिसं ठवेह, सरीरसंपदाते मारोहादिजुत्तो ठवेयव्यो । एवं 'जाणतो वि भणेज्जा ॥५६८६॥ जे भिक्खू गाएज्ज वा हसेज्ज वा वाएज्ज वा गच्चेज्ज वा अभिणवेज्ज वा हयहेसियं हत्थिगुलगुलाइयं उक्कुट्ठसीहनायं वा करेइ करेंतं वा सातिज्जति ॥०॥१३४॥ मरकरणं सरसंचारो वा गेयं, मुहं विष्फालिय सविकारकहक्कहं हसणं, संखमादि मानोज्यं वा वाएज, पाद-जंघा-ऊरु-कडि उदर-बाहु-अगुलि-वदण-णयण-भग्रहादिविकारकरणं नृत्यं, पुक्कारकरणं, उक्किट्ठसंघयणसत्तिसंपन्नो रुट्ठो तुट्टो वा भूमी प्रप्फालेता सीहस्सेव जायं करेति, हयस सरिसं गायं करेइ हयहेसियं । वापरस्स सरिसं किलिकिलितं करेति, प्रणं वा गयगस्जिमादिजीवरतं करेंतस्स चउलहुं माणादिया य दोसा। जे भिक्खू गाएज्जा, णच्चे वाएज्ज अभिणवेज्जा वा । उक्किट्ठहसियं वा, कुज्जा वग्गेज्ज वीणादी ।।५४८७॥ अहिणप्रो परस्स सिक्खावणा, नृत्यविकार एव वल्गितं डिडिकवत्. जावतिण मुहं विष्फालेता गीय उपकुडिमादिया करेंति ॥५:८७॥ तेसु इमे दोसा - पुवामयप्पकोवो, अमिणवसलं व अण्णगहणं वा । अस्संपुडणं च भवे, गायणउक्किट्ठिमादीसु ॥५६८८॥ मामयो त्ति गेगो सो उवसंतो पप्पति, पहिणवं वा सूलं उप्पजह, "प्रनगहण" ति गलगस्स उभभो 'कण्णबुधेसु सरणीतो मतातो तासु वातसें मगहितासु य प्रणायतं मुहर्जतं हवेज्ज, अहवा - अण्णगहणं मधविउ त्ति काउं रायादिणा घेप्पेजा, मुहं वा अस्संपुडं वातसिंभदोसेण मच्छेबा ॥५९८८।। एते चेव य दोसा, अस्संपुडणं मुइत्तु सेसेसु । अण्णतरइंदियस्स व, विराहणा कायमुड्डाहो ॥५६८६।। मेसा जे णच्चणादिता पदा तेसु वि एते चेव दोसा । मुहस्सवि प्रसंपुडणं एक्कं मोतुं प्रणतरं वा हत्यपादादि सोतादि वा उप्फिडेंतो लुसेजा, एवमादिया मायविराहणा । गायणादिसु वा पाणजातिमुहप्पवेसे __ मविराहणा । णच्चणादिसु उप्फिरतो पाणविराहणं करेज अभिहणेज्ज वा । एवं कायविराहणा । एयासु प्रायसंजमविराहणासु सट्टाणपच्छित्तं, गेय-पच्चणादिसु सविगारो प्रणिहुतो वाजतो त्ति जणो भणेबा, उड्डाहं वा करेजा ॥५६८६।। बितियपदमणप्पज्झे, पसत्थजोगे य अतिसयप्पमत्ते । श्रद्धाण वसण अभियोग बोहिए तेणमादिसु वा ॥५६६०॥ वित्तादिप्रणप्परझो सेहो वा अजाणतो गीतादि करेज ॥५६॥ १गा.१९८४दा०४। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र १३५-१४० "पसत्थजोए" त्ति अस्य व्याख्या - एस पसत्थो जोगो, सद्दप्पडिबद्धे वाए गाए वा । अण्णो वि य पाएसो, धम्मकहं पक्त्तयंतो उ ॥५६६१|| कारणडिया सद्दपडिबद्धाए वसहीए तत्य गेयं करेंति, प्रायोज्जं वा वाएंति, मा अपणो प्रणसि मोहुम्भवेग विसोत्ति हवेज्ज । अहवा - समोसरणा दिसु पुच्छगवायणं करेंतो गंधव्वेण कज्जति ॥५६६ १॥ "अतिसय पत्ते" ति अस्य व्याख्या - केवलवज्जेसु तु अतिसएसु हरिसेण सीहणायादी। उहि मेलण विहे, पुधव्वसणं व गीतादि ।।५६१२।। वीतरागत्वात् न करोति, नेन केवलातिसउप्पत्ति वज्जेत्ता सेसेसु अवधिलंभादिएस प्रतिसएम उमणेमु हरिमिउं मीहणायं करेज । अण्णत्थ वा पडिगियत्तेग स वेइयासु प्रारूढो सीहनाय करिज्जा । प्राणपडिवणा महल्लमत्थेण परोप्पर फिडित्ता मिलणा उक्किट्टसई संकरिज्जा । ""वसण" ति कस्म ति पुवं गिहिकाले गीतादिगं मासि, तं स पनतितोवि वसणाग्रो करेजा, रायादिअभियोगेण वा ॥५६६२।। अहवा - 'अभिओगे कविलज्जो, उज्जेणीए उ रोधसीसो तु । घोहियतेणे महुरा, खमएणं सीहणादादी ।।५६६३।। मगारअभियोगमो जहा कविलेण कयं तहा करिज । अहवा - जहा रोहसीसेण उज्जेणीए रायपुरो हय सुयाभिप्रोगतो कयं । बोहिगतेणेसु जहा महराए खमएण सीहणा दो को तहा करेज ।।५६६३॥ जे भिक्खू भेरि-सदाणि वा पडह-सहाणि वा मुरव-महाणि वा मुइंग-सद्दाणि वा नंदि-सहाणि वा झल्लरि-सहाणि वा वल्लरि-सदाणि वा डमरुग-सदाणिवा मड्डय-सदाणिवा सदुय-सदाणि वा पएम-सदाणिवा गोलुइ-सदाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि वितयाणि सदाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ।।१३५॥ जे भिक्खू वीणा-सदाणि वा विवंचि-मक्षाणि वा तुण-सदाणि वा बव्वीसग-सदाणि वा वीणाइय-सहाणि वा तंबवीणा-सहाणि वा झोडय-सदाणि वा ईकुण-महाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि वा तयाणि सदाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारतं वा सातिजति ॥१०॥१३६॥ १ गा० ५६८० । २ गा० ५.६६०। ६ पडिणिदत्तण सावयाइम पास्ट्टो इत्यपि पाठः। ४ गा० ५.६६० । ५ कुक्कूडिय, इत्यपि पाठः । ६ गा० ५६००। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ५९९१-५ सप्तदश उद्देशकः जे मिक्खू ताल-सदाणि वा फंसताल-सदाणि वा लितिय-सहाणि वा गोहिय-सहाणि वा मकरिय-सदाणि वा कच्छभि-सद्दाणि वा महइ-दागि वा सणालिया-सहाणि वा वलिया-सहाणि वा अत्रयराणि वा तहप्पगाराणि वा मुसिराणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥०॥१३७॥ . जे भिक्खू संख-सदाणि वा स-सद्दाणि वा वेणु-सद्दाणि वा खरमुहि-सहाणि वा परिलिस-सद्दाणि वा वेवा-सहाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि वा झुसिराणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥१३८॥ शंखं शृग, वृत्तः शंख:, दीर्घाकृति स्वल्पा च संखिगा। खरमुखी काहला, तस्स मुहत्थाणे खरमुहाकारं कट्ठमयं मुहं कज्जति । पिरिपिरित्ता तततोणसलागातो सु (अ) सिरानो जमलामो संपा (वा) सिज्जति । मुहमूले पगमुद्रा सा संखागारेण वाइजमाणी जुगवं तिणि सद्दे पिरिपिरिती करेति ।। अण्णे भणंति - गुजापगवो मठाण भवति । मंभा मायंगाणः भवति । मेरिप्रागारसंकुडमुही दुदु भी। महत्यमाणो मुरजो । सेसा पसिद्धा। ततवितते घणझुसिरे, तविवरीते य बहुविहे सहे। सद्दपडियाइ पदमवि, अभिधारे आणमादीणि १५६६४॥ __ प्रालविणीयमादि ततं, तीणातिसरिमं बहुतंतीहि विततं । अहवा-तंतीहि ततं, मुहमउदादि विततं। घण उजउललकुडा. मुसिरं वंजादिया । तलिवरीया कंसिग-कसालग-भल-तालजल-वादित्रा, जीवरुतादयश्च बहवो तब्दिवरीया ॥५६१४॥ बितियपदमणप्पज्झे, अभिधारऽविकोविते व अप्पज्झे । जाणंते वा वि पुणो, कज्जेसु बहुप्पगारेसु ॥५६६५।। कज्जेसु बहुप्पमारेसु ति जहा जे अभिवोवसमणपयुत्ता संख सद्दातिया तेसि सवणट्ठाते अभिसंधारेज्जा गमणारा वारवतीय, जहा भेरिस दस्रा ।।५६६५।। जे भिकावू वप्पाणि वा फलिहाणि वा उप्फलाणि वा पल्ललाणि वा उज्झराणि बा निझराणि वा वावीणि वा पोक्खराणि वा दीहियाणि वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा कण्णसोपपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१३६।। जे भिका कच्छाणि वा गहणाणि वा नूमाणि वा वणाणि वा वणविदुग्गाणि वा पव्ययाणि या पब्वयविदुग्गाणि का कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥०॥१४॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २.२ सभाष्य-चूषिके निजीथसूत्रे [मूत्र १४१-१५१ जे भिक्ख गामाणि वा नगराणि वा खेडाणि वा कव्वडाणि वा मडंबाणि वा दोणमुहाणि वा पट्टणाणि वा गराणि वा संवाहाणि वा सचिवसाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेड, अभिसंधारेत वा सातिज्जति ॥१०॥१४१॥ जे मिक्खू गाम-महाणि वा नगर-महाणि वा खेड-महाणि वा कन्वड-महाणि वा मडंब-महाणिवादोणमुह-महाणि वापट्टण-महाणिवा आगार-महाणिवा संवाह-महाणि वा सन्निवेस-महाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥२०॥१४॥ जे भिक्खू गाम-वहाणि वा नगर-वहाणि वा खेड-वहाणि वा कव्वड-वहाणि वा मडंब-वहाणि वादोणमुह-वहाणि वा पट्टण-वहाणिवा आगार-वहाणिवा संबाह-वहाणि वा सन्निवेस-वहाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१४३।। जे भिक्खू गाम-पहाणि वा नगर-पहाणि वा खेड-पहाणि वा कन्वड-पहाणि वा मडंव-पहाणिवादोणमुह-पहाणि वापट्टण-पहाणिवा आगार-पहाणिवा संबाह-पहाणि वा सनिवेस-पहाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेह, अभिसंधारेतं का सातिज्जति ॥२०॥१४॥ जे मिक्ख प्रास-करणाणि वा हत्थि-करणाणि वा उट्ट-करणाणि वा गोण-करणाणि वा महिस-करणाणि वा स्यर-करणाणि वा कण्णसोय पडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥०॥१४॥ जे भिक्खू आस-जुद्वाणि वा हस्थि-जुद्वाणि वा उट्ट-जुद्धाणि वा गोण-जुद्धाणि वा महिस-जुद्धाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥५०॥१४६॥ जे भिक्खू उज्जूहियट्ठाणाणि वा हय-जूहियट्ठाणाणि वा गय-जूहियट्ठाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारतवासातिज्जति ।।१४७। जे भिक्खू अभिसेय-द्वाणाणि वा अक्खाइय-हाणाणि या माणुम्माण-ट्ठाणाणि वा महया हय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिग-पडुप्पवाइयडाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिजति ॥२०॥१४८॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ५६६६ ] सप्तदश उदेशक: जे मिक्त डिंबराणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा कण्णसोयपडियाए । अभिसंधारेइ, अमिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥२०॥१४६।। जे मिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झिमाणि वा डहराणि वा अलंदियाणि वा सुभलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा नच्चंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विउलं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परिभायंताणि वा परिभुजंताणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥१५॥ जे भिक्खू इहलोइएसुवा रूवेसु, परलोइएसु वा स्वेसु,दिद्रुसु वा स्वेसु,अदिदुसुवा रूवेसु, सुएसु वा स्वेसु, असुएसु वा रूवेसु, विनाएसु वा रूवेस, अविन्नाएसु वा रूवेसु सजह रज्जइ गिज्मा अज्झोववज्जइ सज्जंतं रज्जतं गिझतं अज्झोववज्जंतं वा सातिज्जति ॥५०॥१५॥ ॥ तं सेवमाणे पावज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्याइयं ।। एते चोद्दसमुत्ता बहा बारसमे उद्देसगे भपिता तहा इह पि सत्तरसमे उद्देसगे भाणियब्बा। वपादी जा विह लोइयादि सदादि जो तु अमिधारे। तं चेव तत्थ दोसा, तं चेव य होति बितियपदं ॥५६६६॥ विसेसो तत्प चक्सुदंसणप्रतिजया, इहं पुण कष्णसवणपडियाए गच्छति, वप्पादिएसु ठाणेसु बे सहा ते अभिधारेउं गच्छति ॥५६॥ ॥ इति विसेस-णिसीहचुण्णीए सत्तरसमो उदेसओ सम्मतो ।। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टादश उद्देशकः भणिनो सत्तरसमो । इदाणिं अट्ठारसमो इमो भण्णति । तस्सिमो संबंधो सद्दे पुण धारेउ, गच्छति तं पुण जलेण य थलेणं । जलपगतं अट्ठारे तं च अणट्ठा णिवारेति ॥५९६७|| संखादिसद्दे अभिधारतो गच्छतो बलेण वा गच्छति थलेन वा मच्छति । इह जलगमणेण अधिगारो, अधवा - जलेण गमणं प्रणाट्ठए ण गंतव्वं । एवं प्रहारसमे णिवारेति । एस संबंधो ॥५६६७॥ अणेण संबंधेणागयस्स इमं पढमसुत्तं - जे भिक्खू अणट्ठाए णावं दूरुहइ दुरुहंतं का सातिज्जति ।।सू०।।१।। णो पढाए, अणटार । दुरुहइ ति विलग्गइ ति प्रारुभति ति एगटुं । प्राणादिया दोसा चउलहुं । वारसमे उद्द से, नावासंतारिमम्मि जे दोसा । ते चेव अणट्ठाए, अट्ठारसमे निरवसेसा ॥५६६८॥ अणटे दंसेति अंतो मणे किरिसिया, णावारूढहिं कच्चइ कहं वा। अहवा णाणातिजढं, दुरूहणं होतऽणट्ठाए ॥५६६६|| केरिसि भन्मंतर त्ति चक्षुदंसणपडियाए प्रारुमति, गमणकुतूहलेण दा दुरुहति, अहवा- नाणानिजर दुरुहंतस्स सेसं सव्वं प्रणट्ठा ॥५६६६ अववादेण आगाढे कारणे दुरुहेज्जा। थलपहेण संघट्टादिजलेण वा जइ इमे दोसा हवेज - बितियपद तेण सावय, भिक्खे वा कारणे व आगाढे । कज्जुवहिमगरवुज्झण, णावोदग तं पि जयणाए ॥६०००॥ एस बारसमुद्देसगे जहा, तहा माणियव्वा । सुत्तं दिटुं, कारणेण विलगियध्वं । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ सभाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे रिसं पुण णावं विलम्गति ? केरिसं वा ण विलग्गति ? तो सुत्तं गण्णति जे भिक्खु नावं किणइ किणावे, की आहटट्टु देज्जमाणं दुरुहइ दुरुतं वा सातिज्जति ॥०॥२॥ जे भिक्खु नावं पामिच्चेड पामिच्चावेद, पामिच्वं आहट्ड देज्जमाणं दुरुहर दुरुतं वा सातज्जति ॥सू०||३|| जे भिक्खु नावं परियट्टे परियट्टावेइ, परियङ्कं श्राइट्स देज्जमाणं दुरुहेइ दुरुतं वा सातिज्जति ||०||४|| जे भिक्खू नावं अच्छेज्जं अनिसिङ्कं अभिहडं चाहट्ड देज्जमाणं दुरुहेड़ दुरुतं वा सातिज्जति ! | सू०||५|| ये प्रपणा कीण, भण्णेण वा कीणावेइ, कितं प्रणुमोदति वा । पामिच्चेति पामिच्चावेति पामिन्वंतं प्रणुमोदेति । पामिच्वं णाम उच्छिष्णं । जे गाव परियट्टेति ३, डू | डहरियणावाए महल्लं गावं परिणावेति - परिवर्तयतीत्यर्थः । महल्लाए वा डहरं परावर्तयति । अण्णस्स वा बला प्रच्छेत् साहूण नेति । प्रणिसट्टा परिहारिया गहिता भ्रप्पणी कए कज्ये तं साघूण समध्येति साघूण वा णंति सु । एतेहि सुत्तपदेहि सव्वे उम्गम-उप्पादण-एसणादोसा य सूचिता । तेण णावणिज्जुत्ति भण्णइ - नावा उग्गमउप्पायनेसणा संजोयणा पमाणे य । इंगालधूमकारण, अट्ठविहा णावणिज्जुती || ६००१ ॥ उग्गमदोसेसु जे चउलहू ते जहा संभव, णावं पडुच वा । उच्चत्तमचिए वा, दुविहा किणणा उ होति णावाए । हीणाहियणावाए, भंडगुरुए य पामिच्चे ॥ ६००२॥ [ सून २-७ अप्पणा से णावा हीणप्पमाणा ग्रहियप्पमाणा वा । ग्रहवा - भंडगुरु ति गुरु साहू यणो मिहितित्ति, ता एवमादिकज्जेहि णावं पामिच्चेति । अहवा शीघ्रगामिनीत्यर्थः ॥ ६००२ ॥ साघुपट्टाए उबताए नावं किणाति सर्वथा प्रात्मीकरोतीत्यर्थः । मत्तीए ति - भाउएणं मेहति । - जं तत्थ भंडभारो विज्जति तं सा णावा स्वयमेव गुरुत्वान - दोह वि उवट्टियाए, जत्ताए हीण अहिय सिग्धट्ठा । गावापरिणामं पुण, परियट्टियमाहु आयरिया || ६००३॥ दो वणिया जत्ताए णावाहि उवट्ठिता, तत्थ य एगस्स होगा, एगस्स ग्रहिया, तो परोप्परं जावापरिणाम करेति - नावा नावं परावर्त्तयतीत्यर्थः । ग्रहवा - मंदगामिनी शीघ्रगामिन्या परावर्तयति । एवं साध्वर्थमपि ॥ ६००३॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काध्यमाषा ६०.१-६ अष्टादश उद्देशकः २ . ७ एमेव सेसएसु वि, उपायण-एसणाए दोसेसुं । जं जं जुज्जति सुत्ने, विमासियव्वं दुचत्ताए ॥६००४॥ कीयगडादीणावासुत्तेसु जं जं जुज्जति तं तं पिंडणिज्जुत्तिए माणियव्यं-दुबता बायासीसा, सोलन उम्ममदोप्ता, सोलस उपायपदोसा, दस एसणदोसा, एते मिलिया नाताला उग्गमउपायणेसणा तिणि दारा गता। 'संजोगादियाण चउण्हं इमा विभासा। संजोए रणमादी, जले य बावाए होति माणं तु। सुहगमणित्र्तिगालं, छड्डीखोमादिसुं धूमो ॥६००५॥ साघुपट्टाए रणमादि किंचि कटुं संजोएति, प्रासणमझदूरगममा जलप्रमाणं साधुप्पमाणाप्रो वहीणं जुत्तमधियप्पमाणेण वा होन। सुहगमणि त्ति रागणं इंगालसरिसं चरणं करेति, गावागमणे छडी हवइ. छा वाहया वा नावाभएणं मगरसंखोहो भवति । कंपो, पुच्छा, सिरत्ती य । एवमादी दोसा पर धामधणेण समं करेति ॥६००५॥ कारणे विलग्गियन्वं, अकारणे चउलहू मुणेयव्वं । किं पुण कारण होज्जा, असिवादि थलासती दुरुहे ॥६००६।। गाणाइकारणेण य दुरुहियव्यं, निक्कारणे चउलहूं, असिवाइकारणे वा गच्छास्स ॥६००६॥ तं नावातारिमं चउव्विहं नावासंतारपहो, चउब्विहो वणितो उ जो पुब्बिं । णिज्जुत्तीए सुविहिय, सो चेव इहं पि गायत्रो ॥६००१॥ निजुतीपेढं इमस्सेव जहा पेढया पाउकायाधिगारेण भाणिया तहा भाणियम्वा ॥६०.७॥ तिरिओ गाणुज्जाणे, समुद्दगामी य चेव नावाए । - चउलहुगा अंतगुरू, जोया मद्धद्ध जा सपदं ॥६००८॥ तत्र इस ६००८॥ बीयपय तेण सावय, मिक्खे वा कारणे व आगाढे । कज्जुवहिमगर वुज्मण, नावोदग तं पि जयणाए ॥६००६।। बारसमे पूर्ववत् ॥६००६॥ जे मिक्खू थलाओ नावं जले अोकसावेइ ओकसावेतं वा सातिज्जति॥२०॥६॥ थलस्थं बले करेति । जे भिक्खू जलाओ नावं थले उक्कसावेइ उक्कसावेतं वा साविज्जति ॥७॥ जलस्यं पले करेति । १ गा० ६००१ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र ८.१८ जे भिक्खू पुण्णं णावं उस्सिंचइ उस्सिंचंत वा सातिज्जति ॥२०॥८॥ जे भिक्खू सणं णावं उप्पिलाइ उप्पिलावेंतं वा सातिज्जति ॥२०॥६॥ "सण" ति - कद्दमे खुत्ता, उप्पिलावेई ति - ततो उक्खणति । गाहेइ जलाओ थलं; जो व थलायो जलं समोगाढे । सणं व उप्पिलावे, दोसा ने तं च बितियपदं ॥६०१०॥ दोसा जे बारसमे भगिता ते भवंति, बितियपदं च जं तत्थेत भणियं तं चेव भाणियव्वं ॥६०१०॥ जे भिक्खू उबद्वियं णावं उत्तिगं वा उदगं वा आसिंचमाणिं वा उवरुवरि वा कज्जलावेमाणि पेहाए हत्थेण वा पाएण वा असिपत्तेण वा कुसपत्तेण वा मट्टियाए वा चेलेण वा पडिपिहेइ पडिपिहनं वा साइज्जति ॥०॥ १०॥ जे भिक्खू पाडणावियं कटटु णावाए दुरुहइ दुरुहंतं वा तातिज्जति ॥२०॥११॥ जे भिक्ख उड्रगामिणिं वा नावं अहो गामिणि वा नावं दुरुहइ . दुरुहंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥१२॥ जे भिक्खू जोयणवेलागामिणिं वा अद्धजायणवेलागामिणिं वा नावं दुरुहइ दुरुहंतं वा सातिज्जति ॥१०॥१३॥ जलनावा वलाए हीरति, दीहरज्जुए तडंसि रुक्खे वा की लगे वा बद्ध वा मृत्तित्ता वाहेज्ज, सुब्भमाणि वा बघेज्ज, उत्तिगेण वा भरितं भरजमाणी वा जो उवसिंचति, सबलपाणियस्स वा भरेति रित्तं वा, धिमिती गच्छउ ति पाणियस्स भरेति, । तस्स चउलहुं । उब्बद्धपवाहेती, बंधइ बुज्झइ य भरिय उस्सिंचे। रित्तं वा पूरेति, ते दोसा तं च वितियपदं ॥६०११॥ कंठ्या जे भिक्खू नावं आकसइ आकसावेइ आकसावंतं वा सातिज्जति ॥२०॥१४॥ जे भिक्खू नावं खेवेइ खेवावेइ खेवावंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१५॥ जे भिक्खू णावं रज्जुणा या कट्टेण वा कड्डइ, कडतं वा सातिज्जति ॥०॥१६॥ जे भिक्खू णावं अलित्तएण वा पप्फिडएण वा वंसेण वा पलेण वा वाहेइ, . वाहेंतं वा सातिज्जति ।।मु०॥१७॥ जे भिक्खू नावाप्रो उदगं भायणेण वा पडिगमहणेण वा मत्तेण वा नावाउस्सिंचणेण वा उस्सिंचइ उस्सिंचंतं वा सातिज्जति ॥२०॥१८॥ गावाए उत्तिगं जाव पिहितं सातिज्नति । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६०१०-६०१७ ] अष्टादश उद्देशकः एसि सुत्ताणं पदा सुत्त सिद्धा चैव तहावि केइ पदे सुत्तफासिया फुसति नावाए खिoण वाहण, उस्सिंचण पिहण साहणं वा वि । जे भिक्खू कुज्जा ही, सो पात्रति आणमादीणि ||६०१२|| प्रष्णणावद्वितो जलट्ठितो तद्वितो वा णावं पराहुतं खिवति, णावण्णतरणयणप्पगारेण जयणं बाहणं भण्गति । उत्तिगादिणावाए चिट्टमुदगं श्रण्णयरेण कव्वादिणा उस्सिंचणएण उस्सिंचइ । उत्तिंगादिणा उदगं पविसमा हत्यादिणा पिहेति । एवमष्पणा करेति प्रष्णस्स वा कहेति, प्राणादि चउलहुं च ।। ६०१२ ॥ एते सुय सुतपदेस इमं बितियपदं - बितियपद तेण सावय, भिक्खे वा कारणे व श्रागादे | कज्जोवहिमगरवुज्झण, णावोदग तं पि जगणाए ||६०१३ || पूर्ववत् आकडूणमाकसणं, उक्कसणं पेल्लणं जओ उदगं । उडूमतिरियकडूण, रज्जू कट्ठम्मि वा धेतुं ॥ ६०१४ || प्पणी तेण प्राकङ्कणमागमणं उदगं तेण प्रेरणं उक्कसणं, "उड्ढ" ति गदीए समुद्दे वा वेला पाणिस्स प्रतिकूलं उड्ढ, "ग्रह" त्ति तस्सेव उदगस्त श्रोतोऽनुकूलं ग्रहो भष्णति, नो प्रतिकूलं नो अनुकूलं वितिरिच्छं तिरियं भणति एयं उड्ढं ग्रह तिरियं वा रज्जुए कट्ठम्मि वा घेत्तुं कङ्क्षति ||६०१४ || तणुयमलित्तं सत्यपत्त सरिसो पिहो हवति रुदो | वंसेण थाहि गम्मति, चलएण वलिज्जती णावा || ६०१५ || ततर दीहं प्रलितागिती 'अलित्तं प्रासत्यो पिप्पलो तस्स पत्तस्स सरिसो रुंदो पिहो भवति, वंसो वेणू तस्स प्रत्रभेण पादेहि पेरिक्षा णावा गच्छति, जेग वामं दक्खिणं वा वालिज्जति सो चलगो रणं वि भाति ||६०१५।। मूले रुंद कण्णा, अंते तणुगा हवंति णायव्वा । दब्वी तणुगी लहुगी, दोणी वाहिज्जती तीए || ६०१६ || २०६ पुन्वद्धं कंठं । लहुगी जा दोणी सा तीर दव्वीए वाहिति णात्रा उत्सिचगगं च दुगं ( उस चलगं ) दव्यगादि वा भवति, उत्तिगं णाम छिद्र तं हत्थमादीहिं पिहेति ||६०१६॥ सरतिसिगा वा विप्पिय, होति उ उसुमत्तिया य मिस्सा | मोतिमाइ दुमाणं, वातो छल्ली कुविंदो उ ।। ६०१७॥ ग्रहवा सरस्स छल्ली ईसिगि ति तस्सेव उवरि तस्स छल्ली सोय मुंजो दब्भो वा एते वि विप्पितति कुट्टिया पुणो मट्टियाए सह कुट्टिज्जंति एन उसुमट्टिया, कुमुमट्टिया वा, मोदती गुलवंजणी, श्रादिसद्दाश्रो वड-पिप्पल-प्रासत्ययमादियाण वक्को मट्टियाए सह कुट्टिज्जति सो कुट्टविंदो भण्णति, अहवा चेलेण सह मट्टिया कुट्टिया चेलमट्टिया भय्यति । एमईएहि तं उत्तिगं पिहेति जो तहस चउलहुं प्राणादिया य दोसा ।।६०१७ ।। १ नौकादंड | Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे 1 सूत्र - १६ जे भिक्खू नावं उत्तिगेण उदगं आसवमाणं उवरुवरिं कज्जलमाणं पलोग हत्थेण वा पाएण वा व्यासत्थपत्तेण वा कुसपत्तेण वा मट्टियाए वा चेलकण्गेण वा पडिपेड़ पडिपेतं वा सातिज्जति | | ० ||१६|| उत्तिगेण गाताए उदगं प्रासवति पेहे त्ति प्रक्ष्य उवरुपरि कज्जलमाणि ति भरिज्जमागं पेक्खित्ता परस्स दाएंति प्राणादिया चउलहु च । उत्तिंगो पुण छिड, तेणासत्र उवरिएण कज्जलणं । बितियपदेण दुरूढो, णावाए मंडभूतो वा ॥ ६०१८|| २१० पुवद्धं गतार्थ । असिवादिगाणादिकारणंहि दुख्दो गावं जहा भंडं निव्वावारं तहा शिवावारभूतेय भवियः । सव्वसुत्तेमु जाणि [ वा ] पडिसिद्धाणि ताणि कारणारूढो सव्वाणि सयं करेज्ज वा कारवेज्ज वा, तत् साधुब्विवारं दट्टु कोइ पडिणीम्रो जले पक्खिवेज || ६०१८।। ग्रहवा णावा । । नावादोसे सव्वे, तारेयव्वा गुणेहि वा अधि पत्रयणपभाव वा, एगे पुण बेंति णिग्गंथी ||६०१६ || एवं वच्चतस्स णावाएं संभवो हवेज जहा तेसि माकंदियदाराणं णावाए दोसो ति भिण्णा सा इयदुद्धराति गाढे, ग्रावश्वत्तो सबालवुड्डो उ । सहसा णिब्बुडमाणो, उद्धरियव्वो समत्येणं ॥ एस जिणाणं आणा, एमुवदेसो उ गणधराणं च । एसपणा तस्स वि, जं उद्धरते दुविहगच्छं ।। जो प्रतिसे सविसेस संपण्णो तेण सत्रो नित्थारेयव्वो, प्रतिसेसप्रभावे सारीरबलस मत्थे वा ते सव्वे णित्थायव्वा । ग्रह सव्वे ण सक्केति ताहे एक्केवक हावंतेण, जो पवयगप्पभावगो सो पुव्वं तारेयव्वो । ग्रपणे पुण भांति जहा - गिग्गयो पुव्वं तारेयव्वा ।। ६०१६ || इमा पुरिसे केवलेसु जयणा आयरिए अभिसेगे, भिक्खू खुडुडे तहेव थेरे य. | गहणं तेसिंइणमो, संजोगकमं तु वोच्छामि ||६०२०|| जइ समत्यो एते चेव सव्वे वि तारेउं तो सब्बे तारेति । ग्रह ण सक्केति ताहे थेरवबा चउरो । ग्रहण तरति ताहे थेरखुड्डुगवजा तिणि । ग्रहण तरति ताहे प्रायरिय अभिसेगा दोणि । श्रहण तरति ताहे प्रायरियं ||६०२०|| दो ग्रायरिया होज्य, दो वि नित्थारेतु । ' Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६०१८-६०२३ ] रिजति । ग्रह न तरइ ताहे इमं भष्णति - तरुणे निष्कण्ण परिवारे, सलद्धिए जे य होति अब्भासे । अभिगम्मी चउरो, सेसाणं पंच चेव गमा ||६०२१॥ भ्रष्टादश उद्देशक: आयरिश्री एगो तरुणो, एगो थेरो । जो तरुणो सो नित्या रेयव्वो । दोवि तरुण थेरा वा एक्को सुत्तत्थे निष्कण्णो, एक्को श्रनिष्कण्णो । जो निष्कण्णो सो नित्थर दोवि फिन्ना प्रणिफन्ना वा । एक्को सपरिवारो, एक्को अपरिवारो । जो सपरिवारो सो नित्था रिज्जति । दोवि सपरिवारा तो उक्कोसलद्धीतो जो भत्तवत्थसिस्सादिएहि सहितो सो णित्थारिज्जति । दोवि सलद्धिया वा तत्थ जो प्रब्भासतरो सो णित्थारिजति मा दूरत्थं । समीवं जं तं जाव जाहिति ताव सो हडो | इयरो वि जाव पव्वेहिति ताव हडो । दोण्ह वि चुक्को तम्हा जो श्रासण्णो सो तारेयव्वो । अभिगे पुण चउरो गमा भवंति - तरुणो सपरिवारो सलद्धी प्रासण्णो य, जम्हा सो मियमा निष्फण्णो तम्हा तस्स निष्फण्णानिष्कण्णं इति न कर्तव्यं । साणि भिक्खूथेरखुड्डाणं जहा प्रायरियस्स तरुणादिया पंच गया तहा कायव्वा । तरुणे शिष्फण्ण परिवारे सलद्धिए प्रभासे । अण्णे पंच गमा एवं करेंति ग्रहवा पंच गमा तरुणे निष्कण्ण परिवारे सलद्धीए भन्भासे थलवासी । जो थलविसयवासी तं नित्थारेति; सो प्रतारगो । जलविसयवासी पुण तारगो भवति, ण सहसा जलस्स बीहेति ॥ ६०२१|| इदाणि णिग्गंथीण पत्तेयं भण्णति - पत्रत्तिणं अभिसंगपत थेरि तह भिक्खुणी य खुड्डी य । अभिगाए चउरो, जलथलवासीसु संजोगा || ६०२२ || जहा साहूण भणियं तहा साहुणीण विभागियव्वं ।। ६०२२ || एस पत्तेयाणं विधी | इमा मीसाणं सव्वत्थ वियरो, आयरियाओ पवत्तिणी होति । तो अभिसेगप्पत्तो, सेसेस् इत्थिया पढमं || ६०२३|| २११ भणियं च दो वि वग्गे जुगवं प्रावइपत्तेसु इमा जयणा - जति समत्यो सव्वाणि वि तारेउं तो सव्वे तारेति । ग्रह असमत्यो ताहे एगदुगातिपरिहाणीए, जाहे दोण्ह वि श्रसमत्यो ताहे सव्वे प्रच्छंतु प्रायरियं पढमं णित्थारे, ततो पवित्तिणीं, ततो अभिसेगं, सेसेसु इत्थिया पढमं, ति भिक्खुण पढमं ततो भिक्खु, खुड्डि ततो खुड्डु थरि ततो थेरं । एत्थपबहूचिता कायव्वा - सुणिपुणो होऊणं लंघेऊणुत्तविहि बहुगुणवेटं (वड्ढ) करेजा । - "बहुवित्थरमुस्सग्गं, बहुतरमववायवित्थरं णाउं । जह जह संजमवुड्डी, तह जयसू णिबरा जह य” ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ सभाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे [सूत्र २०-३३ पायरियवज्जाणं को परिवारो? भण्णति - माया पिया पुत्तो माया भगिणी सुण्हा धूया, अण्णे र संबंधिणो मित्ता तदुवसमणिक्खंताय । जे भिक्खू नावानो नावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥०॥२०॥ जे भिक्खू नावाओ जलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥२०॥२१॥ जे भिक्खू नावाओ पंकगयस्स असणं या पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं का सातिज्जति ॥२०॥२२॥ जे भिक्खू नावाओ थलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं का साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥२३॥ णावागयस्सेव दायगरस हत्यातो पटिग्गाहेति तस्स चउल हुँ । अण्णेसु तिसु भगेसु भिक्खू गावागतो चेव, दायगो जल-पंक-थलगतो। एतेसु चउरो भंगा। अण्णेसु चउभंगेसु भिक्खू जलगतो, दायगो णावा-जल पंक-थलगतो। प्रणेसु धउसु भिवखू पंकगो, दायगो णावा-जल-पंक-थलगप्रो । भणेसु चउमु भिक्खू थलगतो, दायगो णावा-जल-पंक-थलगतो । एते सब्वे सोलससु वि पत्तेयं चउलहुं । णावागते दायगे पडिसेहो, जेणं सो सचित्तग्राउकायपरंपरपतिट्ठो जलपंकथला सचिता मीसा वा, तो पडिसेहो । तत्य कर्म दरिसेइ - . नावजले पंकथले, संजोगा एत्थ होति णायव्वा । तत्थ गएणं एक्को गमणागमणेण बितिम्रो उ ॥६०२४॥ एतेसु णाव-जल-पंक-थलपदेसु ठितो भिक्खू दायगस्स सट्टाण-परद्वाणसंजोगेण ठियस्स हत्याप्रो गेहंतस्स दुगसंजोगाभिलावं अमुंचतेण सोलस मंगा कायवा पूर्ववत् । ___ "तत्थ गएणं एकको" ति णावारूढो णावागयस्स हत्थातो गेहति एस पढममंगो, णावागतो मलगयस्स हत्थदायगस्स अच्छमाणस्स जलट्ठियस्स हत्थातो गेहति, एवं पकपलेसु वि गमणागमणेम ततियबउत्थ भंगा, एवं सेसभंगा वि बारस उवउज भाणियब्धा ।।६०२४१॥ एत्तो एगतरेणं, संजोगेणं तु जो उ पडिगाहे । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्त विराधणं पावे ॥६०२५॥ . कंठ्या । सोलसमो मंगो थलगप्रो, थलगतस्स ममुद्दस्स अंतरदीवे संभवति, सा पुढ वी सचित्ता मोसा वा ससमिदा वा तेण पडिसिज्मति ।।६०२५॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मात्र्यगाथा ६०२४-६०२६ ] इमं बितियपदं - - अष्टादश उद्देशक: सिवे मोरिए, रायदुट्टे भए व गेलण्णे । श्रद्धाण रोहए वा, जयणा गहणं तु गीयत्थे ॥ ६०२६|| त्रणा पणपरिहाणी, मीसपरंपरठितादि वा जयणा भाणित्र्वा । जे भिक्खू वत्थं कि किणावे की आहट्टु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जसि ||सू०||२४|| जे भिक्खु वत्थं पामिच्चेति, पामिचावेति पामिचमाहट्ड दिज्जमाणं 'पडिग्गाहेति, पडिग्गाहतं वा सातिज्जति | | ० ||२५|| १ जे भिक्खु वत्थं परियह, परियट्टावे, परियद्वियमाहटड दिज्जमाणं 'पडिग्गाहेति, पडिग्गाहतं वा सातिज्जति | | ० || २६॥ जे भिक्खु वत्थं अच्छेज्जं अनिसिङ्कं अभिहडमाहट्ड देज्जमाणं पड़िग्गाहेड़, 'पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ||सू०||२७|| जे भिक्खू अतिरेग-वत्थं गणि उद्दिसिय गणिं समुद्दिसिय तं गणिं श्रणापुच्छिय अणामंतिय अण्णमण्णस्स वियर, वियरंतं वा सातिज्जति ||सू०||२८|| जे भिक्खू इरेगं वत्थं खुड्डगस्स वा खुडियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा हत्थच्छिणस्स अपायच्छिण्णस्स अनासच्छिण्णस्स कण्णच्छिष्णस्स अोच्छिष्णस्स सत्तस्स देइ, देतं वा सातिज्जति ||०||२६|| २१३ जे भिक्खू इरेगं वत्थं, खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा इत्थच्छिण्णस्स पायच्छिण्णस्स नासच्छिण्णस्स कण्णच्छिण्णस्स श्रोट्ठच्छिष्णस्स सक्क्स्स न देइ, न देंतं वा सातिज्जति | | | |३०|| जे भिक्खू वत्थं अणलं अथिरं भुवं अधारणिज्जं धरेह, धरेतं वा सातिज्जति | | ० ||३१|| जे भिक्खु वत्थं लं धिरं धुवं धारणिज्जं न धरेह, न धरेतं वा सातिज्जति ||सू०||३२|| जे भिक्खू वण्णमंतं वत्थं विवण्णं करेइ, करेंतं वा सातिज्जति ||सू०||३३|| जे भिक्खू विवणं वत्थं वण्णमंतं करेइ, करेंतं वा सातिज्जति | | ० ||३४|| Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 - समाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र ३४-५२ जे भिक्खू "नो नवए मे वत्थे लद्धे" त्ति कट्ठ तेल्लेण वा पएण वा णवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा मिलिंगेतं वा सातिज्जति ।।२०।।३५॥ . जे भिक्खू "नो नवए मे वन्थे लद्ध" त्ति कट्ठ लोण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णण वा उल्लोलेज्ज वा 'उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेंतं वा सातिज्जति ॥१०॥३६॥ जे भिक्खू "नो नवए मे क्त्थे लद्ध" त्ति कट्ट सीप्रोदगविंयडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोल्लेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोल्लेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥३७॥ . जे भिक्खू "नो नवए मे वत्थे लद्ध" त्ति कट्ट बहुदेवसिएण तेल्लेण वा वएण वा णवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खतं वा भिलिंगेतं वा सातिज्जति सू०॥३८॥ जे भिक्खू "नो नवए मे वत्थे लद्धे" ति कट्ठ बहुदेवसिएण लोद्धेग वा कक्केण वा चुपणेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज दा उव्वलेज्ज वा उल्लोलतं वा उव्वलतं वा सातिज्जति ॥सू०॥३६॥ जे भिक्खू "नो नवए मे वत्थे लद्ध" ति कट्ट बहुदेवसिएण सीओदगविय डेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥०॥४०॥ जे भिक्खू ''दुब्भिगंधे मे वत्थे लद्ध" त्ति कट्ठ तेल्लंण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा भक्खेंतं वा भिलिंगेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥४१॥ जे भिक्खू "दुभिगंधे मे वत्थे लद्ध" त्ति कट्ट लोद्धण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उबलेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४२॥ जे भिक्खू "दुभिगंधे मे वत्थे लद्ध" त्ति कटु सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४३॥ १ पधोवेल इत्यपि पाठः। २ पधोवेज्जतं इत्यपि पाठः । : Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यगाथा ] प्रष्टादश उद्देशक: जे भिक्खू "दुन्भिगंधे मे वत्थे लद्ध" त्ति कटु बहुदेवसिएण तेल्लेण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४४॥ जे भिक्खू ''दुन्भिगंधे मे वत्थं लद्ध" त्ति कटु बहुदेवसिएण लोद्धण वा कोण वा चुण्णेण वा वण्णण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥४५॥ जे भिक्खू "दुभिगंधे मे वत्थं लद्ध" त्ति कटु बहुदेवसिएण सीओदग वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥४६॥ जे भिक्खू 'नो नवए मे सुब्भिगंधे क्त्थे लद्ध" ति कटु तेल्लेण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥४७॥ जे भिक्ख "नो नवए मे सुब्भिगंधे वत्थे लद्ध" ति कटु लोद्धण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उचलेंतं वा सातिज्जति ॥०॥४८॥ जे भिक्ख “नो नवए मे सुब्भिगंधे वत्थे लद्ध" त्ति कटु सीओदगवियडेण वा उसिणोदगदियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥२०॥४६॥ जे भिक्खू "नो नवए मे सुब्भिगंधे वत्थे लद्ध" ति कटु बहुदेवसिएण तेल्लेण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेंतं वा सातिज्जति ॥०॥५०॥ जे भिक्खू "नो नवए मे सुब्भिगंधे वत्थे लद्ध" त्ति कटु बहुदेबसिएण लोद्धण वा कक्केण वा चुण्णण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥५१॥ जे भिक्खू "नो नवए मे सुब्भिगंधे वत्थे लद्धे" त्ति कटु बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥५२॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ सभाष्य- चूर्णिके निशीयसूत्रे पुढवीए दुब्बद्ध दुनिखित्ते अनिकंपे चलाचले जे भिक्खू अतरहिया वत्थ यावज्ज वा पयावेज्ज वा, [ सूत्र ४८-७२ आयातं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ | सू० ॥ ५३ ॥ | जे भिक्खू ससणिद्रा पुढवीए दुब्बद्धे दुन्निखित्ते अनिकंप चलाचले वत्थं श्रयवेज्ज वा पयावेज्ज वा, आ यातं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ सू० ||५४ || जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए दुब्बंधे दुनिखित्ते अनिक चलाचले वत्थं श्रयावज्ज वा पयात्रेज्ज वा, आयात वा पयातं वा सातिज्जति ॥ | सू० ॥५५॥ जे भिक्खु मट्टिया कडा पुढवीए दुब्बंधे दुन्निखित्ते अनिकंपे चलाचले वत्थं यावज्ज वा पयावेज्ज बा, यातं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ सू० || ५६ || जे भिक्खु चित्तताए पुढवीए दुब्बंधे दुन्निखित्ते अनिकंपे चलाचले 'वत्थ आयावेज वा पयावेज वा, आयातं वा पयातं वा सातिज्जति ||म्० ||५७|| जे भिक्खू चित्तiताए सिलाए दुब्बंधे दुन्निखिते अनिकंपे चलाचले त्या वा पयावेज वा, आयातं वा पयातं वा सातिज्जति ||सू०||५८ || जे भिक्ख चित्तताए लेलूए दुब्वे दुन्निखिते अनिकंप चलाचले वत्थ आयावज्ज वा पयावेज वा, यातं वा पयातं वा सातिज्जति ||सू०|| ५६ जे भिक्खु कोलावासंसि वा दारुए जीवपट्ठिए सांडे सपाणे सबीए सहरिए सस्से सउद सउलिंग-पणग-दंग-मट्टिय-मक्कडा संताणगंसि दुब्बंधे दुन्निखित्ते निकंप चलाचले वत्थ आयावेज वा पयाज वा आयातं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ||०|| ६० || जे व धूर्णसि वा गहेलुयंसि वा उसुगालंसि वा कामवलंसि वा दुब्बंधे दुनिखित्ते अनिकपे चलाचले वन्थ' आयावेज्ज वा पगावेज्ज वा आयतं वा पयातं वा मातिज्जति || मन६१ || Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा अष्टादश उद्देशकः २१७ जे भिक्ख कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलसि वा लेलसि वा अंतलिक्ख जायंसि वा दुब्बद्धे दुनिखित्ते अनिकंपे चलाचले वत्थ आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा आया-तं वा पयावेतं वा सातिज्जति ॥सू०॥६२॥ जे भिक्खू खंधंसि या फलहंसि वा मंचंसि वा मंडवंसि का मालसि वा पासायंसि वा दुब्बंधे दुन्निखित्ते अनिकंपे चलाचले वत्थं आयवेज्ज वा पयावेज्ज वा आयातं वा पयावेतं वा सातिज्जति ।।सू०॥६३॥. जे भिक्खू वत्थातो पुढविकायं नीहरइ, नीहरावेइ, नीहरियं आह? देज्जमाणं पडिग्गाहेड, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥०॥६४॥ जे भिक्खू वत्थाओ आउक्कायं नीहरइ, नीहरावेइ, नीहरियं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥२०॥६॥ जे भिक्खू वत्थातो तेउ कायं नीहरइ, नीहराबेइ, नीहरियं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥६६॥ जं भिक्खू वत्थातो कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि या पुष्पाणि वा फलाणि वा नीहरइ, नीहरावेइ, नीहरियं आहटटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं बा सातिज्जति ॥सू०॥६७।। जे भिक्खू वत्थातो ओसहि-बीयाणि नीहरइ, नीहरावेइ, नीहरियं आह? देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥६८॥ जे भिक्ख वत्थातो तसपाणजाई नीहरइ, नीहरावेइ, नीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।।सू०१६६।। जे भिवखू वत्थ कोरेइ, कोरावेइ, कोरियं आहा देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥७०॥ जे भिक्ख णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणुवासगं वा गामंतरंगि वा गामपहंतरंसि वा वत्थ अोभासिय श्रोभासिय जायइ . जायंतं वा सातिन्जति ॥सू०।।७१।। जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणुवासगं वा परिसामझाओ उहवेत्ता वत्थं प्रोभासिय अोभासिय जायइ जायंतं वा सातिज्जति ।।सू०||७२।। ज भिक्खू वत्थनीसाए उडुबद्ध वसइ, वसंतं वा सातिज्जति ॥सू०।७३।। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-७४ जे भिक्खू वत्थनीसाए वासावासं वसइ, वसंतं वा सातिज्जति ॥०॥७४॥ ॥ तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं ॥ चोद्दसमे उद्देसे, पातम्मि उ जो गमो समक्खाओ । सो चेव निरवसेसो, वत्थम्मि वि होति अट्ठारे ॥६०२७॥ मुत्ताणि 'पणुवीस उच्चारेयवाणि जाव समतो उद्देसगो। एतेसि प्रत्थो चोद्दसमे, जहा चोहसमे पादं भणितं तहा अट्टारसमे वत्थं भाणियब्वं । ॥ इति विसेस-णिसीहचुण्णीए अट्ठारसमो उद्देसो समत्ती ॥ १ चतुर्दशगोदशकानुसारेण तु पञ्चचत्वारिंशत्सूत्राणि भवन्ति । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकोनविंशतितम उद्देशकः भणियो अट्ठारसमो । इदाणि एक्कोणवीसइमो भण्णति । तस्सिमो संबंधी - वत्थत्था वसमाणो, जयणाजुत्तो वि होति तु पमत्तो । अन्नो वि जो पमात्रओ, पडिसिद्धी एस एकूणे ॥६०२८।। जो उदुबद्ध वामावासे वा वत्थ्टा वसति, सो जति जयणाजुत्तो तहावि सो पमत्तो लब्भति । एवं पट्ठारसमस्स अंतमुले पमातो दिवो । इहावि गूणवीस ईमम्स आदिसुत्ते पमा चेव पडिसिज्झति । एस पट्ठारसमानो एगणवीसइमल्स संबंधो ।।६०२८।। अहवा चिरं वसंतो, संथवणेहेहि किणति तं वत्थं । अक्कीतं पि ए कप्पति, वियडं किमु कीयसंबंधो ॥६०२६।। चिरं ति वारिसिनो चउरो मासे, मेसं कळं। इमं पढगसुत्तं - जे भिक्खू रियडं किणड, किणावेइ, कीयं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्माहेनं वा सातिज्जति ॥स०॥१॥ कीय किणाविय अणुमोदितं च वियर्ड जमाहियं सुत्ते । एक्केक्कं तं दुविहं, दव्ये भावे य णायव्वं ॥६०३०॥ प्रप्पणा किणति, अणोण वा किणावेइ, साहुनटुा वा कोयं परिभोगमो अणुजोगति, अण्णं वा प्रणु मोइ, प्राणादिया दोसा च उलहुं च । सो कोप्रो दुविधो- अप्पणा परेण च । एक्केको पुणो दुविहो- दव्वे भावे य । शेषं पूर्ववत् । परभानकोए मासलहुं । ज प्रपणा किणति, एस उपायणा ! जं परेण किणावेइ, एम उम्गमो ।।६०३०॥ एएमामण्णतरं, वियडं कातं तु जो पडिग्गाहे । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्तविराधणं पावे ॥६०३१॥ कंठा । विगडग्गहणं परिभोगो वा प्रकप्पग्गहणं प्रकप्पपडिसेवा य संजमविराणा य । जतो भण्णति - इहरह वि ता न कप्पइ, किमु पियर्ड कीतमादि अरिसुद्ध। असमितिऽगुत्ति गेही, उड्डाह महबसा आता ॥६०३२।। . Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र २-५ इहरहा मकीतं । किं पुण कोयं ?, उग्गमदोसजुतं सुठुतरं न कप्पइ । वियडते पंचसु वि समितीसु समितो भवति, गुत्तीसु वि श्रगुतो, तम्मि लद्धसायस्स अपरिच्चागो गेही, जगेण जाते उड्डाहो, पराधीणो वा महम्वए मंजेज ||६०३२।। कहूं ? उच्यते - २२० विडत्तो छक्का, विराहए भासती तु सावज्जं । अगडागणिउदए अ, पडणं वा तेसु वा घेप्पे ||६०३३|| पराहीणत्तणम्रो छक्काए विराहेज्ज, मोसं वा भासेज्ज, प्रदत्तं वा गेव्हेज्ज, मेहूणं वा सेवेज्ज, हिरणादिपरिम्यहं वा करेज्ज । प्रायविराहणा इमा - अगडे ति कूवे पडेज्ज, पलिते वा उज्झिज्ज, उदगेश वा पेरेज्ज, तेगे वा कसाएण वा णिक्कासति तो वा तेहि घेप्पह ||६०३३ ॥ ग्रहवा - कारणे पत्ते गेण्हेज्जा - - वितियपदं गेलणे, विज्जुवदेसे तहेव सिक्खाए । तेहि कारणेहिं, जयणाए कप्पती घेतुं ||६०३४ || तेजोवएसेण गिलाणट्टा घेप्पेज्ज, कस्सति कोति वाही तेणेव उवसमति ति ण दोसो । गिलागट्ठा वा वेज्जो प्राणितो, तस्सद्वा वा घिप्पेज्ज. एकप्पं वा सिक्खतो गहणं करेज्ज || ६०३४ || कहं ? उच्यते संभोइयमण्णसंभोइयाण असतीते लिंगमादीणं । ravi पकप्पो सिखयो सुसतो प्रत्थतो वि गुरुस्स पासे, प्रसति सगुरुस्स ताहे सगणे, सगणस्स वि असति ताहे संभोतिताण समासे सिक्खति । प्रसति संभोतिताण ताहे मण्णसंभोतियाण समासे, तेसि पि श्रसतीए लिंगत्यादियाण पांसे पकप्पं प्रविज्जति । तस्स य लिंगस्स तं वियष्डवसणं हवेज्जा, सो भ्रप्पणा चेत्र उप्पाएउ | ग्रह सो उप्पाएउं सुत्तत्थे ण तरति दाउ ताहे स साधू उप्पाएइ सुद्धं, जति सद्धं पण लव्ह नाहे कोयमादि गेटेज्जा १६०३५॥ अमाणो, सुद्वासंति कीयमादीणि ||६०३५|| जे भिक्खू विडं पामिच्चेह पामिचावेइ पामिच्चं यह देखमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गार्हतं वा सातिजति ||सू०||२|| ॥सू०॥२॥ जे भिक्खु विडं परियट्टेति परियट्टावे परियट्टियं आहट्टु देअमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिजति ||०||३|| जे भिक्खू विडं अच्छेज्जं अणिसिहं अभिहडं ग्राहड देऊमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ||०||४|| एसि सवं पूर्ववत् जहा पिडणिज्जुत्तीए, एतेषु पच्छित्तं चउलहू, जं च दुर्गा छिप डिग्ग पच्छितं भवति । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६०३३-६० एकोनविंशतितम उद्देशकः २२१ एमेव तिविहकरणं, पामिच्चे तह य परियट्टे । अच्छिज्जे अणिसिढे, तिविहं करणं णवरि पत्थि ॥६०३६॥ तिविहं करणं कृतं कारितं अनुमोदितं प, मच्छेज्जऽणिसिद्धेसु तिविहं करणं भवति, सेसं सव्वं वितियपदं च पूर्ववत् ॥६०३६॥ जे भिक्खू गिलाणस्सऽढाए परं तिहं दियडदत्तीणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंन वा सातिज्जति ॥०॥५॥ दत्तीए पमाणं पसती, तिण्हं पसतीणं परेण चउत्या पसती गिलाणकज्जे वि ण घेत्तव्वो, जो . मेहति तस्स चउलहूं। जे भिक्खू गिलाणस्सा, परेण तिण्हं तु वियडदत्तीणं । गिण्हेज्ज आदिएज्ज व, सो पावति प्राणमादीणि ॥६०३७॥ तिण्हं दत्तीणं परतो गहणे वि चतलहुं । "मादिएज्व" ति पिबंतस्स वि चउलहुं ॥६०३७।। तिण्हं दत्तीणं परतो गहणे आदियणे वा इमे दोसा - अप्पच्चो य गरहा, मददोसा गेहिवडणं खिसा । तिण्ह परं गेण्हते, परेण तिन्हाइयंते य ॥६०३८।। अपच्चरो ति जहा एस पव्वइयो होउं वियर्ड गिण्हति प्रादियति वा तहा एस प्रणं पि करेति मेहुणादियं । “गरह" ति एस गूणं णियकुलजातितो ति । मददोसा-पीते पलवति वग्गइ वा । पुणो पुणो गहणे वा वियडे गेही वदति । खिसा-घिरत्यु ते एरिसपब्वज्जाए ति ।।६०३८॥ दिटुं कारणगहणं, तस्स पमाणं तु तिण्णि दत्तीओ। पातुं व असागरिए, सेहादि असंलवंतो य॥६०३६।। तिणि दत्तीग्रो तिणि पसतीमो सकार प्रो तानो पाउं प्रराागरिगे अच्छति, णिहुतो ति गग्गायते पलवति णच्चइ वा । प्रभावियसेह अपरिण गेहि सदि उल्लावणं न करेति गिहीहि वा ॥६०३६॥ वियडत्तस्स उ वाहिं, णिग्गंतु ण देंति अह बला णीति । जयणाए पत्तवासे, गायणे व लवंते आसमवि ।।६०४०॥ जइ जुत्तमेत्तपीएण अतिरित्तेण वा भत्तो वियडत्तगो कति मत्तो पराधीणमो बाहिं णिग्गच्छक तो ग देंति से णिग्गंतुं, बला. णितो "जयण" ति जहा ण पीडिज्जति तहा "पत्तवासे" त्ति-बज्झइ । मह पत्तवासितो मोक्कलो वा गाएज्जा पलवेज्ज वा तो "प्रासमवि" त्ति प्रासं मुहं तं पि सिविज्जति ॥६०४०॥ अववादतो तिण्हं दत्तीणं अतिरित्तमवि गिण्हेज -- बितियपदं गेलण्णे, विज्जुवदेसे तहेव सिक्खाते। गहणं अतिरित्तस्सा, वेज्जुवदेसे य आइयणं ॥६०४१॥ . १ उन्मत्तः । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र ६-७ गेलण्यट्ठा रेज्जुवदेसेण सिक्खाए वा एतेहि कारणेहिं गहणं अतिरित्तस्स प्रातियणं पि, प्रतिरित्तम्स गेलणसिक्खाहिं विसेसतो वेज्जुवदेसेण । तं पुण इमेसु ठाणेसु कमेण गेण्हेजा - “गहणं पुराणसावग, सम्म अहाभद्र दाणसङ्घ य । भावियकुलेसु ततो, जयणाए तत्तु परलिंगे" ।।१।। जे भिक्खू वियर्ड गहाय गामाणुगामं दूइज्जइ, दूइज्जतं वा सातिज्जति। सू०॥६॥ वियडेण हत्थगतेण जो गामाणुगार्म दूधजइ गच्छइ, तरस प्राणादी च उलहुं च । कारणग्रो सग्गामे, सइलाभे गंतु जो परग्गामे । आणिज्जा ही वियर्ड, णिज्जा वा आणमादीणि ॥६०४२॥ कारानो वियडं घेत्तत्वं, तं पि सग्गामे "सति" त्ति लब्भमाणे जो परगामतो प्राणति, सग्गामानो वा पर गाम णेजा, तस्स प्रागा दिया दोसा ॥६०४२।। इमे य - परिगलण पवडणे वा, अणुपंथियगंधमादि उड्डाहो । आहारतरतेणा, किं लद्ध कुतूहले चेव ॥६०४३।। परिगलते पुढवातिछक्काया विराहिज्जंति, पहियस्स वा भायणभग्गे य छक्कायविराहणा, अहवा - परिगलते पडियस्स वा छड्डिते अणुपंथियो वा पडिपंथियो वा गंघमाघाएज, सो य उड्डाहं करेज, अंतरा वा प्राहारतेणा भायणं उग्घाडेजति, दटुं आदिएज्ज उड्डाहं वा करेज्ज । इयरे ति उवकरणतेणा ते वा कुतूलहेश भायगं उग्घाडेजा, कि लद्धति ? ते वा उड्डाहं करेज्ज ।।६०४३।। जम्हा एवमादिया दोसा - तम्हा खलु सन्गामे, घेत्तणं बंधणं धणं कुजा । एत्तो चिय उवउत्तो, गिहीण दूरेण संवरितो ॥६०४४॥ खलुसद्दो सगामावधारणे, स्वग्राम एव गृहीतव्य, सग्गामासति परगामातो प्राणियव्वं, कारणे वा परगाम यन्वं इमेण विहिणा - संकुडमुहभायणे प्रोमंथियं भरावं घणचीरबंधणं कुज्जा, पंथं उवउत्तो गच्छति, जहा णो परिगलति पक्खलति वा । गिहीण य एयंतजंताण हेढोवारण दूरतो गच्छति, तं पि भायणं वास कप्पादिणा संवृतं करेति ॥६०४४॥ ग्रववादकारणेण परगामे णेति, प्राणवेति वा बितियपदं गेलण्णे, वेज्जुबएसे तहेब सिक्खाए। एतेहि कारणेहिं, जयण इमा तत्थ कायव्वा ॥६०४५।। पूर्ववत एवमादिकारणेहि गेण्हंतस्स इमा जयणा - पुराणेसु सावतेसु, व सण्णि-अहाभद्द-दाणसड सु। मज्झत्थकुलीणेसुं, किरियावादीसु गहणं तु ॥६०४६॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६०४२-६०५१ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः २२३ पुव्वं पुराणस्स हत्थातो घेप्पइ, तस्स असति गहिताणुब्बतसावगस्स, ततो अविरयमम्मद्दिट्ठिस्स, ततो प्रहाद्दगस्स, ततो दाणसढस्स । मज्झत्था जं जो प्रम्हं सासणं पडिवण्णा णो अग्णेसिं, ते य जातिकूलीणा। एत्थ कुलीणो सभावद्वितो दिढे य सदृशेत्यर्थः । क्रियां वदति क्रियावादीति वेज्जेत्यर्थः ॥६०४६।। खेत्ततो पुण इमेसु गहणं - गिहि-कुल-पाणागारे, गहणं पुण तस्स दोहि ठाणेहिं । मागारियमादीहि उ, आगाढे अन्नलिंगेणं ॥६०४७॥ दोहिं ठाणेहिं गहणं, गिहेत्ति पुराणादियाण गिहेसु, “पाणागार" त्ति-कल्लालावणे, गिहासइ पच्छा कल्लालावणे । 'गिहे" ति पुग्वं सेज्जातरगिहातो आणिज्जति जे दूराणयणे दोसा ते परिहरिया भवंति, सेज्जातरगिहासति पच्छा णिवेसणतो वाडग-साहि-सगाम-परगामाती य । जत्थ सलिगेण उड्डाहो तत्थ परलिंगेण गहणं करेति ॥६०४७॥ अद्दिट्टमस्सुतेसु, परलिंगेणेतरे सलिंगणं । आसज्ज वा विदेसं, अदिट्ठपुव्वे वि लिंगेणं ॥६०४८॥ जत्थ णगरे गामे वा सो साधू ण केणइ दिट्ठो वण्णागारेहि वा सुतो तत्थ परलिंगेण ठितो गेण्डाइ । "इतरे" ति - जत्थ पुण सो परलिंगठितो वि पच्चभिण्णज्जति तत्थ सलिंगेण वा गेण्हति । अहवा - "प्रासज्ज वा वि देस" - ति जत्थ देसे ण णज्जति किं एतेसि वियड कप्प प्रकप्पं ति, ण वा लोगो गरहति, तत्थ सलिगेण गेण्हति । "अदिट्टपुव्वे' ति-जस्थ गाम-णगरादिसु ण दिट्टपुब्यो तत्थ वा सलिंगेण गेण्हति ।।६०४८।। जे भिक्खू वियडं गालेइ, गालावेइ, गालियं आहह देज्जमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहतं वा सातिन्जति ॥सू०॥७॥ परिपूणगादीहि गालेति तस्स चउलहुं प्राणादीया य दोसा । जे भिक्ख वियडं तू, गालिज्जा तिरिहकरणजोगणं । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्त विराधणं पावे ॥६०४६।। अप्पणो गालेइ, अण्णेण वा गालावेइ, गालेतमणुमोदेति एव तिविहकरणं, सेसं कंठ । इमे दोसा - इहरह वि ताव गंधो, किमु गालेतम्मि जं उज्झिमिया । खोलेसु पक्कसम्मिय, पाणादिविराधणा चेव ॥६०५०॥ "इहरह" त्ति-अगालिज्जतस्स वि गंधो, गालिज्जते पुण सुटठुतरं गंधो खोलपक्सेसु उभिज्झमाणेसु उज्झिमिता भवति, मजस्स हेट्टा धोयगिमादिकिट्टिसंखेलो सुराए किणिमादिकिट्ठिसंपक्कसं अश्यं च खोलपक्केसु छडिजमाणेमु मक्खिगपिपीलिगा विराधणा, मधुविदोवक्खाणो य प्राणिविराङ्गणा ॥६०५०। बितियपदं गेलण्णे, वेज्जुवएसे तहेव सिक्खाए । एतेहिं कारणेहिं, जयण इमा तत्थ कातव्वा ॥६०५१॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ कारणे इमाए जयणाए गेण्हेज्जा - सभाष्य-कूणिनेः निशीथसूत्रे पुव्वपरिगालियस्स उ, गवसणा पढमताए कायब्वा । पुव्वपरिगालियरस व, असतीते अपणा गाले ॥ ६०५२ ॥ रिजु पुवपरित्ति कंठ्या ॥ ६०५२।। सव्वे वियडसत्ता जहा णिद्दोस-सदोसा भवति तहा ग्रह - कारणगहणे जयणा, दत्ती दूतिज्जगालणं चैव । कीतादी पुण दप्पे, कज्जे वा जोगमकरेत्ता || ६०५३॥ दत्तीसुतं दूइजणामुतं गालणासुतं च एते सुत्ता कारणिया, एतेसु कारणेसु विपडं घेप्पर, गहणे गिद्दोसो जयणं करेंतोऽजयणं करेंतस्स दोसा भवंति । कोयगड-पा मिश्र परियट्टि प्रच्छेजा दिया पुण सुप्ता दप्पतो डिसिद्धा, दम्पतो गेहंतो सदोसो, कज्जे प्रववादतो गेव्हंतो जति तिष्णि वारा सुद्धग्स जोगं ण पउंजति पगगपरिहाणी वा न पउंजति तो सदोसो ||६०५३ || जे भिक्खू चउहिं संझाहिं सझायं करेइ करेंतं वा साइज्जर, तं जहा पुव्वाए संभाए, पच्छिमाए संज्झाए, अवरण्डे, अडूरते ||०||८|| तासु जो सज्झायं करेइ तस्स चउलहुं श्राणादिया य दोसा । पुव्वावर संझाए, मज्झरहे तह य श्रद्धरत्तम्मि | चतुसंझासज्झायं, जो कुणती आणमादीणि ॥ ६०५४ || पाढे इमं कारणं लोए त्रि होति गरहा, संझासु तु गुज्झगा पवियरंति । आवास उपयोगो, श्रासासो चेव खिन्नाणं ||६०५५|| [ सूत्र ८-१० लोइयवेइसामादियाणा य संझासु पाढो गरहियो, अन्न संझासु गुज्भग ति देवा ते विचरंति ते मत्तं छलेज, संभाए सज्झायविणियदुचित्तो प्रावासगो उवउत्तो भवति, सज्झायखिष्णस्स य तं वेलं प्रासासो भवति, णाणायारो य विराहितो, णाणविराहणं करेंतेण संजमो बिराहितो, जम्हा एत्तिया दोसा तम्हा जो करेजा ||६०५५।। तेसिं इमा विभासा कारणे वा करेज - बितियाssगाढे सागारियादि कालगत असति वोच्छेदे । एतेहि कारणेहिं, जयणाए कप्पती कातुं || ६०५६ ।। श्रागाढजोगो महाकप्पसुयाइउद्दिनं पडिसुणावणणिमित्तं संझासु कडिज्जेजा, ग्रहवा - प्रागाढकारणा सागारिगादि ॥ ६०५६ ।। जं जस्स जियं सागारियम्मि णिसिमरणे जेण जग्गंति । श्रहिणवगहितम्मि पते, पडिपुच्छं नत्थि उभयस्स ||६०५७ || Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६०५२-६०६० ] एकोनविंशतितम उद्देशकः २२५ "सागारिग' त्ति सद्दपडिबढाए वसधीए ठिता तत्थ जस्स जं सुयं कालिगं उक्कालिगं बाएइति सो तं संझाए परिट्टेति । कालगतो" त्ति - कोइ साघू निसीए मनो तदट्टा राम्रो जग्गियव्वं, तत्थ जेण सुतेण रसिएण णायमादिणा कढिज्जतेण जग्गंति तं संझामु वि कड्ढिअति, गिलाणो वा प्रोसही पोत्रो जेण जग्गति तं कढिज्जति । २प्रसति" त्ति किंचि श्रज्झणं कस्सद गुरुणो समीवाम्रो गहितं सो गुरू कालगतो, तस्स व प्रहिणवगहियस्स सुत्तत्थस्स प्रणतो पडिपुच्छं पि णत्थि प्रतो तं संझासु वि परियईति ॥ ६०५७ || 43 • वोच्छेदि" त्ति अस्य व्याख्या - वोच्छेदे तस्सेव उ, तदत्थि सेसेसु तं समुछिष्णे । अणुहाए बलिओ, घोससु यं वा वि सदणं ॥ ६०५८ || कस्स इ प्रायरियस किंचि प्रभवणं प्रत्थि, भण्णेसु तं वोच्छिष्णं, सो संझासु प्रसंभाकाले वा परियट्टेति मा ममं पि वोच्छिजिहिति । श्रहवा तस्स समीवातो पढतो लहुँ पढामित्ति संझासु वि पढति, मावोच्छिति त्ति । संझासु कारणे प्रणुप्पेहियव्वं । जो पुण प्रणुपेहाए ण सक्केति सो सद्देण वि पढेज्जा । अहवा तं घोससद्द ेण घोसेयव्यं तं पि जयणाए, जहा प्रष्णो अपरिणामगो ण जालति ।।६०५८।। जे भिक्खू कालियसुयस्स परं तिन्हं पुच्छाणं पुच्छइ पुच्छंतं वा सातिज्जति ॥ सू०||६|| जे भिक्खू दिवास्स परं सत्तण्हं पुच्छाणं पुच्छर पुच्छंतं वा सातिज्जति ॥सू०||१०|| कालिय सुस्त उक्काले संझासु वा प्रसज्झाए वा तिन्हं पुच्छागं परेण पुच्छइ तस्स चउलहुँ । दिवास्स सासु प्रसज्झाए वा सत्तष्टं परेण पुच्छंतस्स ङ्क । तिण्डुवरि कालियस्सा, सत्तण्ह परेण दिट्ठिवायस्स । जे भिक्खू पुच्छाणं, चउसंकं पुच्छ आणादी ||६०५६ || चउसु संझासु प्रणयरीए वा तस्स प्राणादी ।।६०५६ ।। पुच्छाते पुण किं प्रमाणं ?, तो भण्णति - पुच्छाणं परिमाणं, जावतियं पुच्छति अपुणरुत्तं । पुच्छेज्जा ही भिक्खू, पुच्छ णिसज्झाए चउभंगो || ६०६० ॥ पुणरुतं जावतियं कड्डिउ पुच्छति सा एगा पुच्छा । एत्थ चउभंगो - एक्का मिसेज्जा एक्का पुच्छा, एत्थ सुद्धो । एक्का मिसेज्जा भगाश्रो पुच्छाप्रो, एत्थ तिन्हं वा सत्तण्हं वा परेण चउलहुगा । अगा णिसिज्जा एक्का पुच्छा, एत्थ त्रि मुद्धो । अगा णिसिज्जा अणेगा पुच्छा, १ गा० ६०५६ । २ गा० ६०५६ । ३ गा० ६०५६ । एत्थ वितिरहं सत्तग्रहं वा परेण पुच्छंतस्स चउलहुगा ||६०६०॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २-२६ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे हवा तिणि सिलोगा, ते तिसु णव कालिएतरे तिगा सत्त जत्थ य पगयसमत्ती, जावतियं वाचिओ गिण्हे ||६०६१ || तिहि सिलोगेहि एगा पुच्छा, तिहि पुच्छाहिं णव सिलोगा भवंति एवं कालियसुयस्स एगतरं । दिट्टिवाए सत्तसु पुच्छासु एगवी सिलोगा भवंति | अहवा जत्थ पगतं समप्पति थोवं बहुं वा सा एगा पुच्छा | हवा - जत्तियं प्रायरिएण तरइ उच्चारितं घेत्तुं सा एगा पुच्छा ||६०६१ ॥ - बितियागाढे सागरियादि कालगत असति वोच्छेदे । एतेहि कारणेहिं, तिन्हं सत्तण्ह व परेणं ॥ ६०६२ || कम्हा दिट्टिवाए सत्त पुच्छातो ?, तो भण्णति [ सूत्र ११-१४ नयवातसुहुमाए, गणिते भंग हुमे णिमित्य । गंथस्सय बाहुल्ला, सत्त कया दिट्टिवातम्मि || ६०६३|| गमादि सत्तगया, एक्केक्को य सयविहो, तेहि सभेदा जाव दव्त्रपरूवणा दिट्टिवार कज्जंति सा यवादमा भणति । तह परिकम्मत्तेसु गणियसुहुमया, तहा परमाणुमादीसु वण्णगंघरसफासेसु एग गुणकालगादिपज्जव भंग सुहुमता । तहा श्रटुंगमादिणिमित्तं बहुवित्यरत्तणतो दिट्ठिवायगंथस्स य बहुप्रत्तणतो सत्त पुच्छात्रो कताओ ||६०६३ || तं जहा जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेइ करेंतं वा साइज्जइ, इंदमहे खंदमहं जक्खमहे भूमहे | | ० ||११|| रंधण-पयण-खाण-पाण-नृत्य-गेय- प्रमोदे च महता महामहा तेसु जो सज्झायं करेइ तस्स चहुं । जे भिक्खू चउसु महापडिवएस सज्झायं करेइ करेंतं वा साइज्जइ, तं जहा सुगम्यपाडवर साठीपाडिवए सोयपाडिवर कनियपाडिवए वा || सू०॥१२॥ एतेसिं चेव महामहाणं जे चउरो पडिवयदिवसा, एतेसु वि करेंतस्स चउलहुँ । चतुसुं महामहेसुं, चतुपाडिवदे तहेव तेसिं च । जो कुज्जा सज्झायं, सो पावति श्रणमादीणि ॥ ६०६४ || कंज्य के पुण ते महामहा ?, उच्यंते - साठी इंदमहो, कत्तिय - सुगिम्हओ य बोधव्वो । एते महामहा खलु, एतेसिं चेव पाडिवया || ६०६५|| - आसाढी - आसाढपोणिमाए, 'इह लाडेसु सावणपोणिमाए भवति इंदमहो, ग्रासोपुष्णिमाए कत्तियपुण्णिमाए चेत्र, सुगिम्हातो चेत्तपुणिमाए । एते अंतदिवसा गहिया | आदितो पुणे जत्य विसए १ 'इह' मनेन ज्ञायते लाटदेशीयोऽयं चूर्णिकार इति । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६०६१-६०१०] एकोनविंशतितम उद्देशक: २२७ बतो दिवसातो महामहो पवत्तति ततो दिवसातो प्रारभ जाव अंतदिवसो ताव सज्झातो ण कायव्यो । एएसि व पुणिमाणं अणंतरं जे बहुलपडिवगा चउरो तेवि वज्जेयन्वा ॥६०६५॥ पडिसिद्धकाले करेंतस्स इमे दोसा - अन्नतरपमादजुत्तं, छलेज्ज अप्पिडिप्रोण पुण जुत्तं । अद्धोदहिद्विती पुण, छलेज्ज जयणोवउत्तं पि ॥६०६६॥ सरागसंजतो सरागतणतो इंदियविसयादि अण्णतरे पमादजुत्तो हवेज्ज, विसेसतो महामहेसु तं पमायजुनं पडिणीयदेवता अप्पिढिया खित्तादि छलणं करेग्ज: जयणाजुत्तं पुण साहुं जो अप्पिड्ढितो देवो पद्धोदधीमो ऊण टिइत्ति सो ण सक्केति छलेउ - अद्धसागरोवमठितितो पुण जयणाजुत्तं पि छलेति, अत्यि से सामत्थं, तं पि पुव्ववेरसंबंधसरणतो कोति छलेज्ज ॥६०६६।। चोदगाह - "बारसविहम्मिवि तवे, सभिंतर बाहिरे कुसलदिटे। ण वि अत्थि ण वि य होही, सज्झायसमो तवोकम्म ॥" कि महेसु संझासु वा पडिसिज्झति ?, आचार्याह - कामं सुअोवोगो, तवोवहाणं अणुत्तरं भणितं । पडिसेहितम्मि काले, तहावि खलु कम्मबंधाय ॥६०६७।। दिटुं महेसु सज्झायस्स पडिसेहकारणं । पाडिवएसु किं पडिसिज्झइ ?, उच्यते - छणियाऽवसेसएणं, पाडिवएसु वि छणाऽणुसज्जति । महवाउलत्तणेणं, असारिताणं च सम्माणो ॥६०६८॥ छणस्स उवसाहियं जं मज्जपाणादिगं तं सव्वं णोवभुत्तं, त पडिवयासु उवभुति, प्रतो पडिवतासु विछणो अणसज्जति । अण्णं च महदिणेसु वाउलत्तणतो जे य मित्तादि ण सारिता ते पडिवयास संभारिज्जति ... त्ति छणो वट्टति, तेसु वि ते चेव दोसा, तम्हा तेसु वि णो करेज्जा ॥६०६८।। बितियागाढे सागारियादि कालगत असति वोच्छेदे । एतेहि कारणेहिं, जयणाए कप्पती कातुं ॥६०६६॥ कंठ्या जे भिक्खू पोरिसिं सज्मायं उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा साइज्जति।।सू०॥१३॥ जे भिक्खू चउकालं सज्झायं न करेइ न करेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥१४॥ कालियमुत्तस्स भउरो सज्झायकाला, ते य चउपोरिसिणिप्फण्णा, ते उवातिणावेति ति - जो तेसु सज्झायं न करेइ तस्स चउलहुं प्राणादिणो य दोसा । अंतो अहोरत्तस्स उ, चउरो सज्झायपोरिसीओ उ । जे भिक्ख उवायणति, सो पावति आणमादीणि ॥६०७०॥ . ग्रहोरत्तस्स अंतो अन्भतरे, सेसं कंम्य ॥६०७०।। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१५ चाउकालं सज्झायं अकरेंतस्स इमे दोसा। पुन्वगहितं च नासति, अपुव्वगहणं को सि विकहाहि । दिवस-निसि-आदि-चरिमासु चतुसु सेसासु भइयव्वं ॥६०७१।। मुत्तत्थे मोत्तुं देस-भन्न-राय-इत्थिकहादिसु पमत्तो अच्छति प्रगुणेतस्स पुम्वगहितं णासति, विकहापमत्तस्स य अपुव्वं गहणं पत्थि, तम्हा णो विकहासु रमेज्जा। ___ दिवसस्स पढमचरिमासु णिसीए य पढमचरिमासु य-एयासु च उसु वि कालियसुयस्स गहणं गुणणं च करेज्ज । सेसासु त्ति दिवसस्स बितियाए उक्का लियसुयस्स गहणं करेति प्रत्यं वा सुणेति, एसा चेव भयणा । ततियाए वा भिक्खं हिंडइ, अह ण हिंडति तो उक्कालियं पढति, पुबगहियमुक्कालियं वा गुणेति, प्रत्यं वा सुणेइ । णिसिस्स बिइयाए एसा चेव भयणा सुवइ वा । णिसिस्स ततियाए णिहाविमोक्खं करेइ, उक्कालियं गेहति गुणेति वा, कालियं वा सुत्तमत्थं दा करेति । एवं सेसासु मयणा भावेयव्वा ॥६०७१।। चाउकालियसज्झायस्स वा अकरणे इमे कारणा असिवे प्रोमोयरिए, रायदुढे भए व गेलण्णे। अद्धाण रोहए वा, कालं च पडुच्च नो कुज्जा ॥६०७२॥ अस्य व्याख्या - सज्झायवज्जमसिवे, रायदुद्रु भय रोहग असुद्ध। इतरमवि रोहमसिवे, भइतं इतरे अलं भयसु ॥६०७३।। __"सज्झायवज्जमसिवे" त्ति - लोगे असिवं वा साधू अप्पणा वा गहितो तत्थ सज्झायं ण पदुति मावस्सगादि उक्कालियं करेंति । रायदुढे बोहिगभए य तुहिक्का मच्छंति, मा णज्जिहामो, तत्य कालिगमुक्कालिगं वा ण करेंति । अहवा - "रायदुटे भय" त्ति-णिव्विसया भत्तपाणे पडिसेहे य ण करेंति सज्झायं । उवकरण (सरीर) हरे दुविधभेरवे य ण करेंति, मा णज्जीहामो ति । रोधगै असुढे काले वा ग करेंति । इयरमवि प्रावस्सगादि उक्कालियं, जत्य रोधगे प्रचियत्तं प्रसिवेण य गहिया तत्थ तं पि ण करति । इयरे त्ति - प्रोमोदरिया तत्व भयणा - जइ वितियजामादिसु वेलासु ण करेंति सज्झायं, मह ण फम्बंति पच्चूसियवेलातो मादिच्चोदयात्रो प्रारद्धा ताय हिंडंति जाव प्रवरण्हो त्ति । गेलण्णट्ठाणेसु 'प्रलं भयसु" त्तिजइ गिलाणो सत्तो प्रद्धाणिगेण वा न खिण्णो तो करेंति, मह असत्ता तो ण करेंति । अहवा - गिलाणपडियरगा वा ण करेंति, कालं वा पडुछ णो कुज्जति । प्रसुद्ध वा काले ण करेंति । प्रणुपेहा सव्वत्य अविरुद्धा ॥६०७३॥ जे भिक्खू असज्झाइए सज्झायं करेइ, करेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१५॥ चम्मि जम्मि कारणे साझामो ण कीरति तं सव्वं प्रसज्झाइयं, तं च बहुविहं वक्खमाणं, तस्थ जो करेइ तस्स चटलहुं प्राणामंगो प्रणवत्या मिच्छतं पायसं जमविराहणा य ।। ___ तस्सिमे भेदा - असज्झायं च दुविहं, आतसमुत्थं च परसमुन्थं च । जं तत्थ परसमुत्थं, तं पंचविहं तु नायव्वं ॥६०७४॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६०७१-६०७६] एकोनविंशतितम उद्देशकः २२९ प्रायसमुत्थं चिट्ठउ ताव उरि भणिहिति प्रणंतरसुत्ते, जं परसमुत्पं तं इमं पंचविहं ॥६०७४॥ संजमघाउप्पाते, सा दिव्वे बुग्गहे य सारीरे। घोसणयमेच्छरणो, कोइ छलिश्रो पमाएणं ॥६०७५॥ एयम्मि पंचविहे असम्झाइए जो सन्झायं करेति तस्सिमा मायसंजमविराहणा । दिटुंतो-घोसणय मेच्छरण्णो त्ति ॥६०७५।। अस्य व्याख्या - मेच्छभयघोसणणिवे, हियसेसा ते तु डंडिया रण्णा । एवं दुहश्रो डंडो, सुर पच्छित्ते इह परे य ॥६०७६॥ खिइपतिट्ठितं णगरं, जियसत्तू राया । तेण सविसए घोसावितं जहा - मेच्छो राया प्रागच्छति, तं गामणगराणि मोतु समासण्णे दुग्गेसु ठायह, मा विणस्सिहिह । जेठिया रण्णो वयणेण दुग्गादिसु ते ण विणट्ठा । जे पुण न ठिता ते मेच्छेसु विलुत्ता, ते पुण रण्णा आणाभंगो मम को त्ति जं किंचि हियसेस पि तं पि डंडिता। एवं असज्झाइए सज्झायं करेंतस्स दुहतो डंडो इह भवे "सुर" ति देवताए छलिजति, परभवं पडुच्च णाणादिविराहणा पच्छित्तं च ॥६०७६॥ इमो दिटुंतोवणो - राया इव तित्थकरो, जाणवता साधु घोसणं सुत्तं । मेच्छो य असज्झाओ, रतणधणाईच गाणादी॥६०७७॥ जह राया तहा तित्थकरो, जहा जणपदजणा तहा साधू, जहा माघोसणं तहा सुतपोरिसिकरणं, जारिसा मेच्छा तारिसा प्रसग्झाया, जहा रयणघणावहारो तहा जाणदंसणचरणविणासो। तं पि सव्वं उवसंधारेयध्वं ।।६०७७॥ "कोति छलियो, पमादेणं" ति अस्य विभासा थोवाऽवसेसपोरिसि, अज्झयणं वा वि जो कुणति सोचा । णाणादिसारहीणस्स तस्स छलणा तु संसारे ॥६०७८॥ सज्झातं करेंतस्स योवावसेसगो उद्देसगो प्रज्झयणं वा, तो पोरिसी पागय त्ति सुता, अहवा - प्रसज्झाइयं कालवेला वा सोच्चा वि जो भाउट्टियाए सज्झायं करोति सो गाणादिसारहीणो भवति । प्रणायारत्यो य देवयाए छलिज्जति, संसारे य दीहकालं परियट्टेति, पमादेण वि कारेंतो छलिज्जति चेव, दुक्खं संसारे प्रणुभवति ॥६०७८।। जं तं संजमोवघाति तं इमं तिविहं - महिया य भिण्णवासे, सचित्तरजो य संजमे तिविहे । दव्वे खेते काले, जहियं वा जचिरं भव्वं ॥६०७६॥ १गा०६०७५ । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूग-१५ पंचविहसज्झायस्स किं कह परिहरियव्वमिति तप्पसाहगो इमो दिटुंतो - दुग्गादि तोसियणियो, पंचण्ह देति इच्छियपयारं । गहिए य देति मोल्लं, जणस्स आहारवत्थादी ॥६०८०॥ एगस्स रण्णो पच पुरिसा, ते बहुसमरलद्धविजया। अण्णया तेहिं अच्चंतविसमं दुग्गं गहितं । तेसिं तुटो राया। इच्छियं णगरे पयारं देति, जं ते किंचि असणादिगं वत्थादिगं वा जणस्स गेण्हति तस्स वेणइयं (वेयणियं) सव्वं राया पयच्छति ॥६०८०॥ एगेण तोसिततरो, गिहमगिहे तस्स सव्वहिं पयारो। रत्थादीसु चउण्ह, एवं परमं तु सव्वत्थ ॥६०८१॥ तेसिं पंचण्हं पुरिसाणं एक्केणं राया तोसिततरो, तस्स गिहाण रत्थासु सम्वत्य इच्छियपयारं पयच्छति । चउण्हं रच्छासु चेव इच्छियपयारं पयच्छइ । जो एते दिण्णप्पयारे प्रासाएन तस्स राया डंडं करेति । एस दिटुंतो। इमो उवसंघारो- जहा पंच पुरिसा तहा पंचविहमसज्झायं, जहा सो एगो अमरहिततरो पुरिसो एवं पढमं संजमोवपातित सव्वहा णासतिज्जति, तम्मि वट्टमाणे ण सज्झामो ण पडिलेहणादिका काइ चिट्ठा कोरइ, इतरेसु चउसु प्रसज्म इएसु जहा ते चउरो पुरिसा रच्छासु चेव प्रणासायणिज्जा तहा तेसु सज्झायो चेव ण कोरइ, सेसा सवा चिट्ठा कीरइ, प्रावस्मगादिउकालियं पहिज्जति ॥६०८।। महियादितिविहस्स संजमोवघातिस्स इमं वक्खाण - महिया तु गब्भमासे, सच्चित्तरयो तु ईसिआयंबो । वासे तिण्णि पंगारा, बुब्बुय तव्वज्ज फुसिता य ॥६०८२॥ महियत्ति धूमिया, सा य कत्तियमन्गसिरादिसु गम्भमासेसु भवति, सा य पडण पमकालं चेव सुहुमतणमो सव्वं प्राउक्कायभावितं करेति, तत्थ तत्कालसमयं चेव सम्बचेट्ठा णिरुज्झति । ववहारसचित्तो पुढविकामो मारण्णो वा उदो प्रागतो सचित्त रो भन्नति, तस्स लक्खणं-वण्णतो ईसि प्रायंबो दिसंतरेस दीसति, सोवि गिरंतरपारण तिण्हं दिणाणं परतो सव्वं पुढविकायभावितं करेति, तत्पाताशंकासंभवश्च । भिन्नवासं तिविहं - बुब्बुयाइ, जत्य वासे पडमाणे उदगबुब्बुया भवंति तं बुब्बुयत्ररिसं, तेहिं वज्जितं तब्बज्जियं । सुहुमफूसारेहिं पडमाणेहिं फुसियं वरिसं, एतेसु जहासंखं तिमि-पंच-सत्तदिणपरमो सव्वं प्राउकायभावियं भव॥६०८२।। संजमघायस्स सव्वभेदाणं इमो उविहो परिहारो - "२दव्वे खेत्ते" पच्छद्ध अस्य व्याख्या दवे तं चिय दव्वं, खेत्ते जहि पडति जन्चिरं कालं । ठाणभासादिभावे, मोत्तुं उस्सास उम्मेसं ॥६०८३॥ दव्वतो तं चेव दव्वं ति महिया सचित्तरयो भिन्नवासं च परिहरिज्जति । " 3जहियं व" ति -- जहिं खेते महियादी पडंति तेहिं चेव परिहरिज्जति । 'जच्चिरं" ति - पडणकालातो प्रारभ जच्चिर १ गा०६०७६ । २ गा०६०७६। ३ गा०६०७६ । ४ गा०६०७६ । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६०८०-६०८७] एकोनविंशतितम उद्देशकः २३१ कार पडति तच्चिरं परिहारो। "भव्वं" ति-भावतो "ठाणभासादि" ति-काउस्सग्गं ण करेंति, ण य भासंति । प्रादिसद्दामो गमणागमगं पडिलेहणसज्झायादि ण करेंति । “मोत्तुं उस्सास उम्मेस" मोत्तुं ति जो पडिसिझति उस्सासादिया प्रशक्यत्वात् जीवितव्याघातकत्वाच्च, दोषा क्रिया सर्वा निषिद्धयते। एस उस्सग्गपरिहारो। प्रातिण्णं पुण सच्चित्तरए तिणि भिण्णवासे तिणि पंच सत्त, प्रतो परं समझायादि ण करेंति। अन्न भणंति - बुब्बुयावरिसे महोरत्तं, तवज्जे दो महोरत्ता, फुसियवरिसे सत्त, प्रतो परं पाउनकायभाविते सव्वचेट्ठा णिरुज्झति ॥६०५३।। जासत्ताणाऽऽवरिया, णिक्कारणे ठंति कज्जे जतणाए । हत्यऽच्छिंगुलिसण्णा, 'पोत्तोवरिया व भासंति ॥६०८४॥ णिक्कारणे वा सकप्पकंबलीए पाउया २णिहुया सव्वन्भतरे चिटुंति, अवस्सकायव्वे वा कज्जे वत्तव्वे वा इमा जतणा हत्येण भूमादिप्रच्छिविकारेण वा अंगुलीए वा सणेति - 'इमं करेहि, मा वा करेहि" त्ति । अहवा-एवं णावगच्छति मुहपोत्तिय अंतरिया जयणाए भासंति. गिलाणादिकज्जेसु वा सकप्पपाउमा गच्छति ॥६०८४।। संजमघाति त्ति गत्तं । इदाणिं - "3उप्पाए" ति दारं - अब्भादिविकारवत् विश्रसा परिणामतो उत्पातो पांसुमादी भवति । पंसू य मंस रुहिरे, केस-सिल-बुद्धि तह रघुग्घाए । मंसरुहिरऽहोरत्तं, अवसेसे जच्चिरं सुत्तं ॥६०८५॥ पंसुवरिसं मंसरिसं रुधिरवरिसं, केसत्ति-वालवरिसं, करगादि वा सिलारिस, रयुग्घायपयडणं च । तेसिं इमो परिहारो-- मंसरुहिर अहोरत्तं सज्झामो ण कीरइ, प्रवसेसा पंसुमादिया जचिरं-कालं पडंति तत्तियं कालं सुत्तं णंदिमादियं ण पढंति ॥६०८५॥ पंसुरउग्घातणे इमं वक्खाणं - पंस अचित्तरयो रयुग्धातो धूलिपडणसव्वत्तो। तत्थ सवाए णिवायए य सुत्तं परिहरंति ॥६०८६॥ घूमागारो प्रापंडुरो रयो अचित्तो य पंसू भण्णइ, महास्कन्धावारगमनसमुद्धता इव विश्रसापरिणामतो समंता रेणुफ्तनं रयुग्घातो भण्णइ, अहवा - एस रमो, उग्धातो पुण पंसुरता भण्णति, एतेसु बातसहितेसु प्रसहितेसु वा सुत्तपोरिसिं ण करेंति ।।३०८६।। किं चान्यत् - साभावित तिण्णि दिणा, सुगिम्हते निक्खिवंति जति जोग्गं । तो तम्मि पडते वी, कुणंति संवच्छरज्झायं ॥६०८७॥ एते पंसुरयुग्धाता साभाविगा हवेज्ज, असाभाविका वा । तत्थ असाभाविगः जे णिग्यायभूमिकंप चंदोपरागादिदिवसहिता, एरिसेसु असाभाविगेसु कते वि उस्सग्गे ण करेंति सज्झायं । “सुगिम्हए" त्ति १ पोत्तेतरिया इति चूणि । २ निर्व्यापाराः । ३ मा० ६०७३ । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ साध्य चूणिके निशीथसूत्रे . [ सूत्र-१५ जइ पुण चेत्तसुद्धपक्खदसमीए प्रवरण्हे जोगं णिक्खिवंति दसमीभो परेण जाव पुणिमाए एत्यंतरे तिणि दिगा उवरुवरि प्रचित्तरउग्घाडावणं काउस्सग्ग करेति, तेरसिमादिसु वा तिसु दिणेसु तो साभाविके पडते वि सज्झायं संवत्सरं करेंति, ग्रह तं उस्सग्गं ण करेंति तो साभाविगे वि पडते सज्झायं ण करेंति ।।६०८७॥ उप्पाय त्ति गय। इदाणि "'सादेव्वे" त्ति - स दिव्वेण सादिव्वं दिव्वकृतमित्यर्थः । गंधव्व दिसा विज्जुग, गज्जिते जूव जक्ख श्रालित्ते । एक्केक्कपोरिसी गज्जियं तु दो पोरिसी हणति ॥६०८८॥ गंधवणगरविउवणं दिसाडाहकरणं विजुम्भवणं सक्कापडणं गज्जियकरणं जूवगो वक्खमाणो जपखालितं जक्खदित्तं मागासे भवति, तत्थ गंधवणगरं जक्खदित्तं च एते णियमा दिव्वकया, सेसा भ्यणिज्जा, जतो फुडं ण णज्जति । तेण तेसि परिहारो। एते गंववादिया सबे एक्कं पोरिसिं उवहणति, गज्जियं तु पोरिसिं दुर्ग हणइ ॥६०८८॥ दिसिदाहो छिण्णमूलो, उक्क सरेहा पगासजुत्ता वा । संझा छेदावरणो, तु जूवश्रो सुक्के दिण तिण्णि ॥६०८६॥ अन्यतमदिगंतरविभागे महाणगरप्रदीप्तमिवोद्योतः किन्तु उवरि प्रकाशमधस्तादंधकार ईहा छिष्णमूला दिग्दाहाः । उक्कालक्खणं सदेहवणं रेहं करती जा पडइ सा उक्का, रेहविरहिता वा उज्जोयं करेंती पडति सा वि उक्का । "जूवगो" त्ति संझप्पभा य चंदप्पभा जेण जुगवं भवति तेण जूवगो, सा य सझप्पमा चंदप्पभावरिया फिट्टती ण णज्जति सुक्कपक्खपडिवयादिसु दिणेसु. संझोच्छेदे ग भणजमाणे कालवेलं ण मुणंति, प्रतो तिणि दिणे पातोसियं कालं ण गेष्हंति, तेसु तिसुवि दिणेसु पादोसियसुत्तपोरिसिं ण करेंति ॥६०८६॥ केसि चि होतऽमोहा, उ जूयो ताव होंति आइण्णा । जेसि तु प्रणाइण्णा, 'तेसिं दो पोरिसी हणति ॥६०६०॥ . जगस्स सुभासुभमत्थणिमित्तुप्पादो पवितधो प्रादिच्चकिरणविकारजणिपो आइच्चमुदयत्यमे प्रायंवो किण्ह सामो वा सगडुद्धिसंठितो डंडा अ मोह ति एस जूवगो, सेसं कंध्य ॥६०६०।। किं चान्यत् - चंदिमसूरुवरागे, णिग्याए गुंजिते अहोरत्तं । संझाचतुपाडिवए, जं जहि सुगिम्हए नियमा ॥६०६१।। चंदसूरुवरागो गहणं भण्णति, एवं वक्खमाणं साभ्रे निरभ्र वा व्यंतरकृतो महाजितसमो ध्वनिनिर्धातः, तस्सेव विकारो गुंजमानो महाध्वनिः, गंजितं सामण्णतो, एतेसु चउसु वि अहोरतं सज्झामो ण. कीरइ । णिग्या गुंजितेसु विसेसो-दितियदिणे जाव सा वेला विज्जति, णो अहोरत्तछेदेण छिज्जति, जहा अण्णेसु प्रसज्झाईएसु ॥६०६१॥ १ गा० ६०७५ । २ तेसि किर पोरिसी तिनि । (प्रा० नि०)। ३ प्राताम्रः । Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६०८८-६०६५ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः २३३ सम्भावनो ति अणुदिते सूरिए, मज्झण्हे. अंथमाणे, भड्डरतेय - एयासु धउसु सज्झायं ण करेंति । दोसा पुखुत्ता । चउण्हं महामहेसु चउसु पाडिवएसु सज्झायं ण करेंति पुव्युत्तं, एवं अण्णं पि जत्तियं जाणंति "ज" ति महं जाणेज्जा । "जहि" ति गामणगरादिसु तं पि तत्य वज्जेज । सुगिम्हगो पुण सम्वत्थ णियमा भवइ । एत्य प्रणागाढजोग णियमा णिक्खिवंति । मागाढं ण णिक्खिवंति णपढंति पुण ॥६०६१॥ चंदिम-सूरिमग त्ति अस्य व्याख्या - उक्कोसेण दुवालस, अट्ठ जहण्णेण पोरिसी चंदे । सूरो जहण्ण बारस, पोरिसि उक्कोस दो अट्टा ॥६०६२॥ चंदोदयकाले चेव गहिरो, संदूसियरातीए चउरो, अण्णं न अहोरत्तं एवं दुवालस । अहवा - उपाय गहणे सवरातीयं गहणं सगहो चेव णिध्वुडो, संदूसियरातीए चउरो, अण्णं च अहोरत्तं एवं बारस । अहवा - भजाणया सभच्छण्णे संकाते ण नजति किं वेलं गणं ?, परिहरिता राती पभाए दिटुं सग्गहो निव्वुडो, अण्णं च अहोरत्तं, एवं दुवालस । एवं चंदस्त सूरस्स भत्थमग्गहणे साहनिन्वुडो उवहयरात्तीए चउरो, प्रणां च महोरत्तं परिहरति, एवं बारस । प्रह उदेंतो गहितो तो संदूसियमहोरत्तस्स अट्ठ, अण्णं च महोरत्तं परिहरंति एवं सोलस । अहवा - उदयवेलागहिरो उत्पादियगहणे सव्वदिणे गहणं होउं सग्गहो चेव णिव्युडो संदूसियग्रहोरत्तस्स अट्ट, मणं च अहोरत्तं एवं सोलस । अहवा - अभच्छण्णे ण णज्जति किं वेलं होहिति गहणं, दिवसतो संकाए ण पढियं, प्रत्थमणवेलाए दिटुं गहणं साहो णिज्युडोसदूसियस्स अट्ट, अण्णं च अहोरत्तं, एवं सोलस ॥६०६२॥ सग्गहणिव्वुड एवं, सूरादी जेण होतऽहोरला । आइण्णं दिणमुक्के, सोचिय दिवसो य रादी य ॥६०६३॥ सम्गहणिन्वुडे तं अहोरतं उवहतं । कहं ? उच्यते "सूरादी जेण प्रहोरत्ता," सूरुदयकालाप्रो जेण अहोरत्तस्स प्रादी भवति तं परिहरितुं संदूसितं अण्णं पि अहोरत्तं परिहरियध्वं । इमं पुण आदिण्णं चंदो गहितो रातीए व मुक्को, तीसे चेव राईए सेसं चेव वजणिज्ज, जम्हा प्रागामिसूरुदए ग्रहोरत्तसमत्ती। सूरस्स वि दिया गहितो दिया चेव मुक्को, तस्सेव दिवसस्स सेसं राती य वज्जणिज्जा। अहवा-सग्गहगिव्वुडे विधी भणितो। ततो सीसो पुच्छति - "कहं चंदे दुवालस, सूरे सोलस जामा ?" प्राचार्याह - "सूराती जेण होंति अहोरत्ता", चंदस्स णियमा प्रहोरत्तद्ध गते गहणसंभवो अणां च अहोरक्तं एवं दुवालस, सूरस्स पुणो अहोरत्तातीए संदूसियमहोरत्तं परिहरिगं, अन्नं पि अहोरत्तं परिहरिव्वं एवं सोलस ॥६०६३।। सादेव्वेत्ति गतं ! । इदाणिं वुग्गहे त्ति दारं - वुग्गहडंडियमादी, संखोमे डंडिए व कालगते । अणरायए व सभए, जच्चिर णिदोच्चऽहोरत्तं ॥६०६४॥ “बुगाहडंडियमादि" ति अस्य व्याख्या -- सेणाहिव भोइ महयर, पुंसित्थीणं च मल्लजुद्ध वा । लोहादि-भंडणे वा, गुज्झमुडाहमचियत्तं ॥६०६५।। १ गा० ६०६१ । २ गा० ६०६१ । ३ गा० ६००० । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - १५ इंडियस्स इंडियस्स य वुग्गहो, प्रादिसद्दातो सेणाहिवस्स सेणाहिवस्त य । एवं दोन्हं भोइयाणं, दोहं महत्तराणं, दोन्हं पुरिसाणं, दोन्हं इत्थीणं, मल्लाण वा जुद्धं पिट्टायगलोट्ठभंडणेण वा । प्रादिसद्द तो विसय सिद्धासु 'संसुरुलासु । विग्गहा प्रायो व्यंतरबहुला, तत्थ पमत्तं देवया छलेज्ज । “२ उड्डाहो" हा निदुक्ख त्ति, जणो भणेज - अम्हे प्रावइपत्ताणं इमे सज्झायं करेति त्ति श्रचियत्तं हवेज | विसयसंखोमो परचक्रागमे । डंडि वा कालगए भवति । "अणराश" त्ति रष्णो कालगते म्भिएवि जाव प्रष्णो रामा न ठविज्जति । " सभए" त्ति जीवंतस्स वि रष्णो बोहिगेहि समंततो अभिदुयं जच्चिरं सभयं तत्तियं कालं सज्झायं करेंति । जद्दिवसं सुनं गिद्दोच्यं तस्स पुरतो महोरतं परिहरति ।।६०६५॥ एस डंडिए कालगते विधी । सेसेसु इमा विधी - २३४ तद्दिवसभोयगादी, अंतो सतह जाव सज्झायो । णास्सय हत्थस, दिट्ठविवित्तम्मि सुद्ध तु ॥ ६०६६॥ गामभोइए कालगते तद्दिवसं ति श्रहोरसं परिहरति । प्रादिसद्दातो - महतरपगते बहुपक्खिते, व सजघर अंतरमते वा । क्खिति य गरहा, ण करेंति सणीयगं वा वि || ६०६७|| गाम महत्तरे अधिकारणिजुत्तो बहुसम्मतो य पगतो "बहुपक्खिते" त्ति बहुयणो वाडगा घ अधिवो सेज्जातरो य प्रणम्मि वा श्रणंतरधरातो प्रारम्भ जान सत्तमघर, एतेसु मएस प्रहोरतं सज्झायो ग कीरति । अह करेंति तो विदुक्ख त्ति काउं जणो गरहति, प्रक्कोसेज वा णिच्छुभेज वा । श्रप्पस वा सर्णियं सणियं करेति श्रणुपेर्हति वा । जो पुण प्रणाहो मतो तं जति उन्मिष्णं हृत्य सयं वज्जेयव्वं श्रणुभिणं सभायं न भवति, तह वि कुच्छियं ति काउं प्रायरणओ य दिट्ठ हत्थसयं वज्जिजति ।। ६०६७।। जइ तस्स णत्थि कोई परिट्ठवेंतो ताहे - सागारियादिकहणं, णिच्छे रतिं वसभा विगिंचंति । विक्रुिष्णे व समंता, जं दिट्ठ सढेतरे सुद्धा ||६०६८|| सागारियस श्रादिसदातो पुराणस्स सडस्स महाभद्दस्त वा कहिज्जति - "इमं छड्डेह, भ्रम्हं सज्झायो मुज्झइ ।" जति तेहि छड़िड़यं तो सुद्धं । श्रह ते गेच्छति ताहे अण्णं वसहि "गम्मति । ग्रह प्रण्णा वसही ण लब्भति ताहे वसभा अपतागारियं परिवृवेंति । एस भिण्णे विधी | अह भिण्णं काकसाणा दिएह समता विदिखणणं तम्मि दिट्ठिविवित्तम्मि सुद्धासुद्धं असढभावं गवेसंतेहि जदिट्ठ तं सद्दं विचित्तं छड्डियं । "इयरं" ति श्रदिट्ठ तम्मि तत्यत्ये विसुद्धा सज्झायं करताण विण पच्छ्रितं । एत्थ एवं पसंगतोऽभिहितं ॥ ६०६८ !! इयाणि सारीरं - > सारीरं पिदुविहं, माणुस - तेरिच्वगं समासेणं । तेरिच्छं पि य तिविहं, जल-थल - खयरं चउद्धा तु ||६०६६ || १ भंगलासु ( आ० वृ० ) भंसुभलाभसु इत्यपि पाठः । २ गा० ६०६४ | ३ गा० ६०६४ । ४ गा० ६०९४ । ५ मग्गति इत्यपि पाठः । ६ गा० ६०७५ । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६.६६-६१०३ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः २३५ एत्थ माणुसंताव चिट्ठउ, तेरिच्छं ताव भणाभि-त तिविघं मच्छादिया जलज, गवादियाण थलज, मयूरादियाण खहचरं । एतेसि एककेक्कं दन्वादि चउव्विहं ॥६०६६।। एक्केक्कस्स वा दव्वादियो इमो चउहा परिहारो - पंचेंदियाण दव्वे, खेत्ते सहिहत्थ पोग्गलाइण्णं । तिकुरत्थ महंतेगा, णगरे बाहिं तु गामस्स ॥६१००॥ दठवतो पंचेंदियाण रुहिरादि दव्वं असञ्झाइयं । खेत्तो सट्ठिहत्थमंतरे असज्झाइयं, परतो ण भवति । अहवा-खेत्ततो पोग्गलाइण्णं पोग्गलं मंसं तेण सव्वं पाकिणं व्याप्तं तस्सिमो परिहारो, तिहिं कुरत्याहिं अंतरियं सुज्झति, आरतो ण सुज्झति । महंतरत्याए एक्काए बि अंतरियं सुज्झति, अणंतरियं दूरट्टितं ण सुज्झति । महंतरत्था रायमग्गो जेण राया बलसमग्गो गच्छति देवजाणरहो वा विविधा संवहणा गच्छति, सेसा कुरत्था । एसा णगरविधी।। गामस्स णियमा बाहिं, एत्थ गामो अविसुद्धणेगमणयदरिसणेण सीमापज्जतो, परग्गामसीमाए सुज्झतीत्यर्थः ॥६१००॥ काले तिपोरिसऽट्ठव, भावे सुत्तं तु नंदिमादीयं । सोणिय मंसं चम्म, अट्ठीणि य होंति चत्तारि ॥६१०१॥ तिरियं च असल्झाइयं संभवकालातो जाव ततिय पोरिसी ताव प्रसज्झाइयं, परतो सुज्झइ । अहवा अट्ठजामा प्रसज्झाइयं, ते जत्थ घायणं तत्थ भवति ।। ___ भावतो पुण परिहरंति सुत्तं, तं च णंदिमणुप्रोगदारं तंदुलक्यालियं चंदगवेझगं पोरिसीमंडलमादी । अहवा - “२चउद्धा उ" ति - प्रसज्झाइतं. चउम्विहं, मंसं सोणियं चम्म पट्टिं च ।।६१०१।। मंस-सोणिउक्खित्तमंसे इमा विधी -- अंतो बहिं च धोतं, सट्ठी हत्थाण पोरिसी तिण्णि । महकाये अहोरत्तं, रद्ध वृढे य सुद्धंतु ॥६१०२॥ माधुवसही सदीहत्थाणं अंतो बहिं च धोवति । भंगदर्शनमेतत् - अंतो धोतं अतो पक्क, अंतो धोतं बाहिं पक्कं, बाहिं धोतं वा अंतो पक्कं । अंतग्गहणायो पढमबितिया भंगा, बहिरगहणातो ततियभंगो, एतेम् तिसु वि असज्झायं । जम्मि पदेसे धोतं पाणेउ वा रदं सो पदेसो सट्टीए हत्येहि परिहरियव्वो। कालतो तिणि पोरिसीमो॥६१०२॥ बहिधोतरद्ध सुद्धो, अंतो धोयम्मि अवयवा होति । महाकाए बिरालादी, अविभिण्णं के इच्छति ॥६१०३॥ एस च उत्थो भंगो । एरिसं जति सट्ठीए हत्याणं अब्भंतरे प्राणियं तहावि तं असझाय ' भवति, पढम-बितियभगेसु अंतो धोवित्तु णोए रद्धे वा तम्मि धोताणे अवयवा पडंति तेण प्रसज्झाए । ननियभग बहि धोवित्त अंतो व जीए मंसमेव असज्झाइयं ति । तं च उक्खिनमसं प्राइणपोग्गल न भवइ । ज काकसाशादीदि प्रणिवारयविपकिण्णं णिज्जति तं आतिभापोग्गलं भाणियव्वं । महाकानो पचिदिनो जयनान प्रयायण २ गा०६०६६। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१५ वज्येयव्वं । खेत्तमो सद्धि हत्था, कालतो महोरत्तं, एत्थ अहोरत्तच्छेदो। सूरुदए रद्धपक्कं मंसं असज्झाइयं ण भवति, जत्थ असज्झाइयं पडितं तेण पदेसेण उदगवाहो 'वूढो, तम्मि पोरिसिकाले अपुण्णे विसुद्ध प्राघायणं ण सुज्झति । "२महाकाए" त्ति अस्य व्याख्या - महकाए पच्छदं, मूसगादी महाकायो स बिरालादिणा हतो, जति तं अभिष्णं चेव गिलि पेत्तुं का सहीए हत्थाणं बाहिं गच्छति तो के इ पायरियाऽसज्झायं णेच्छति, थितपक्खो पुण प्रसज्झाइयं चेव ॥६१.३॥ ठियपक्खो पलाए सुज्झति, अस्य व्याख्या -- मूसादि महाकायं, मज्जारादी हताऽऽधयण केती। अविभिण्णे गेण्हेतुं, पढंति एगे जति पलाति ॥६१०४॥ गतार्था तिरियं च असज्झायाधिकार एवं इमं भण्णति अंतो बहिं च भिण्णं, अंडय बिंदू तहा विधाता य। रायपह वह सुद्ध, परवयणं साणमादीणि ॥६१०५॥ अंतो बहिं च भिण्णं अंडयं ति अस्य व्याख्या - अंडयमुज्झिय कप्पे, ण य भूमि खणंति इहरहा तिणि । सज्झाइयप्पमाणं, मच्छियपादो जहिं वुहु ॥६१०६॥ साघुवसधीतो सट्ठोहत्थाणं अंतो भिणे अंडए असज्झ'यं, बाहिभिणो ण भवति। अहवा- साहुवसहीए अंतो बाहिं वा अंडयं भिन्न ति वा उज्झियं ति वा एगहूँ,तं च कप्पे वा उज्झितं भूमीए वा, जति कप्पे तो तं कप्पं सट्ठीए हत्थाणं बाहि जेउं धोवति ततो सुद्धं । अह भूमीए भिष्णं तो भूमीए खणित्तु ण छड्डिज्जति, ण सुज्झतीत्यर्थः । इहरह त्ति तत्थत्थे सढेि हत्था तिणि य पोरिसीअो परिहरिज्जति । इदाणि "बिंदु' त्ति प्रसज्झा इयम्स किं बिदुप्पमाणमेतेण हीण अधिकतरेण वा असज्झायो भवति ? त्ति पुच्छा। उच्यते - मच्छिताए पादो नहिं बुडुति तं असज्झाइयप्पमाणं ॥६१०६।। इदाणि "६वियाय" त्ति - - अजरायु तिण्णि पोरिसि, जराउगाणं जरे चुते तिण्णि । रायपह बिंदु गलिते, कप्पति अण्णत्ध पुण बूढे ॥६१०७॥ जरा जेसि ण भवति ताणं पसूताणं वग्गुलिमादियाणं तासि पमूइकालो प्रारम्भ तिणि पोरिसीमो असम्झातो मोत्तं अहोरत्तछेदं पासण्णपसूयाएवि अहोरत्तच्छेदेण सुज्झति । गोमादिजरायुजाणं पुण जाव जरं लंबति ताव असज्झाइयं, जरे चुते तिणि । जाहे जर पडितं ततो पडणकालातो प्रारब्भ तिण्णि पहरा परिहरिज्जति । “रायपह चूढमुद्ध" त्ति अस्य व्याख्या - "रायपह बिंदु' पच्छद्धं, साधूवसहीए प्रासणोण गच्छमाणस्म तिरियंचस्स जइ रहिरबिंदू गलिता ते जइ रायपहंतरिता तो सुद्धो, प्रह रायपहे चेव बिंदू -गलिना तहावि कप्पति सज्झा प्रो काउं । प्रह प्रणम्मि पहे अगत्थ वा पडितं तं जइ उदगवुड्डिवाहेण वाहरियं तो मुद्ध, पण ति विशेषार्थ प्रदर्शने, पन्नीवगेगा वा दड्ड सुज्झति ॥६१०७।। १ गा० .. १०२ । २ गा.१०२ । : जहि न बुडु (प्रा०नि०) । ४ गा० ६१०५। ५ गा० ६१०५ । ६ गा०६१०५ । : Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६१०४-६१११] एकोनविंशतितम उदेशकः २३७ "परवयणं" साणमादीणि त्ति परो त्ति चोदगो, तस्स इमं वयणं, “जइ साणो पोग्गलं समुद्दिसित्ता जाव २वसहिसमीवे चिट्ठइ ताव प्रसज्झाइयं । आदिसहातो मज्जाराती"। प्राचार्याह - ... जति फुसति तहिं तुंडं, जति वा लेच्छारिएण संचिक्खे । इहरा ण होति चोदग !, वंतं वा परिणतं जम्हा ॥६१०८॥ साणो भोत्तुं मंसं लेच्छारिएण तुंडेण वसहियासणेण गच्छंतो, तस्स गच्छंतस्स जइ तुडं रुहिरमादी. लित्तं खोडादिषु फुसति, तो प्रसज्झायं । अहवा-लेच्छारियतुंडो वसहि-पासण्णे चिट्ठइ तहवि प्रसज्झाइयं । "इहरह" त्ति - पाहारिएण हे चोदग! प्रसज्झातियं ण भवति, जम्हा तं पाहारियं वंत अवंतं पा पाहारपरिणामेन परिणयं, माहारपरिणयं च असज्झाइयं ण भवति, प्रणं परिणामतो मुत्तपुरिसादि वा ।।६१०८ तेरिच्छं गतं । इदाणि माणुस्सएं - माणुस्सयं चतुद्धा, अढि मोत्तण सत्तमहोरत्तं । परियावण्णविवण्णे, सेसे तिग सत्त अटेव ॥६१०६॥ . त माणुस्सयं प्रसज्झामं चउन्विहं - चम्मं मंसं रुहिरं अटुिं च । अढेि मोतुं सेसस्स तिविधस्स इमो परिहारो-खेततो हत्थसतं, कालतो अहोरत्तं, जं पुण सरीरातो चेव वणादिसु प्रागच्छति परियावणं विवष्णं वा तं प्रसझाइयं ण भवइ । 'परियावणं' जहा रुहिरं चेव पूयपरिणामेन ठियं, विवष्णं खदिरकल्लसमाणं रसगादिगं च, सेसं असज्झा इयं भवति । अहवा- सेसं प्रगारी रिउसंभवं तिणि दिग्णा, बीयायाणे दा- जो सावो सो सत्त वा अट्ठ वा दिणे असज्झाइयं भवति ।।६१०६।। बीयायाणे कहं सत्त अट्ट वा ?, उच्यते - रत्तुक्कडाओ इत्थी, अट्ठदिणे तेण सुक्कऽहिते । तिण्ह दिणाण परेणं, अणोउतं तं महारत्तं ॥६११०॥ णिसेगकाले रत्तुकडयाए इत्थियं पसवेइ तेण तस्स अट्ठ दिणा परिहरियव्वा, सुक्काधिगत्तणतो पुरिसं पसवति तेण तस्स सत्त दिणा । पुण इत्थीए तिण्हं रिउदिणाणं परेण भवति तं सरोगजोणित्थीए महारतं भवति । तस्सुस्सग्गं काउं सज्झायं करेंति । एस रुहिरे विही ॥६११०॥ जं वुत्तं अदि मोत्तूणं ति, तस्स इदाणि विधी इमो भण्णति - दंते दिढे विगिचण, सेसट्ठी बारसेव वरिसाणि । झामितसुद्धे सीयाण पाणमादी य रुघरे ॥६१११॥ __ जति दंतो पडितो सो पयत्ततो गवेलिययो, जइ पिट्ठो तो हत्यसतातो परं विगिंचयब्बो । प्रह ण दिट्ठो तो उग्घाडकाउस्सर काउं गन्झ यं कति । सेसट्टितेसु जीवमुक्कदिणारंभातो हत्थसतऽभंतरट्टिते बारस वरिसे असज्झातियं ॥६०११।। १ गा० ६१०५ । २ साधु इत्यपि पाठः । ३ गा० ६०६६ । ४ गा० ६१०६ । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ सभाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-१५ "'झामितसुद्धे सीताण" ति अस्य व्याख्या - सीताणे जं दड, ण तं तु मोतुं प्रणाह णिहताई। आडंबरे य रुद्दे, मादिसु हेट्टट्ठिया वारा ॥६११२॥ पुन्ववं, "सीयाणि'' त्ति सुमाणे जाणि चियगारोविष दड्डाणि ण तं तु मट्टितं असज्झायं करेति, जाणि पुण तत्य अण्णत्थ वा प्रणाहकलेवगणि पट्टिवियाणि, सण हाणि वा इंधणादिन वे 'णिय" त्तिणिक्खिया ते असज्झातियं करेंति, "पाण" ति - मातंगा तेसि भाडंबरो जक्खो हिरिमिकको वि भण्गति तस्स हेट्ठा सज्जोमतअट्ठीणि ठविजंति, एवं रुद्दघरे, मातिधरे। कालतो बारस वरिसा। खेततो हत्थसतं परिहरणिज्जा ॥६११२॥ आवासितं व बूढं, सेसे दिट्ठम्मि मग्गण विवेगो। सारीरगामपाडग, साहीउ ण णीणियं जाव ॥६११३॥ एतीए पुव्वद्धस्स इमा विभासा असिवोमाघयणेसुं, बारस अविसोहितम्मि ण करेंति । झामियबूढे कीरति, आवासितमग्गिते चेव ॥६११४॥ जं सीयाणट्ठाणं जत्थ वा असिवप्रोममताणि बहूणि छड्डियाणि । प्राघयणं ति - जत्थ वा महासंगाममता बहू, एतेसु ठाणेसु अविसोधीए कालतो बारस वरिसा, खेत्तो हत्थसतं परिहरंति सज्भाग्यं ण करतीत्यर्थः अह एते ठाणा दवग्गिमादिणा दड्ढा । उदगवाहो वा तेण बूढो, गामणयरे वा आवासंतेण अप्पगो घरट्ठाणा सोधिता । 'सेस' त्ति जं गिहीहि न सोधितं पच्छा तत्थ साधू ठिता प्रपणो वसही समतेण मगिता जं दिटुं तं विगिचित्ता प्रदिट्टे वा तिणि दिणे उग्घाड-उस्सग्गं करेता असढभावा सज्झायं करेइ ॥६१५४॥ "२सारीरगाम" पच्छद्ध इमा विभासा - डहरगामम्मि मते, ण करेंती जा ण गीणियं होइ । पुरगामे व महंते, वाडगसाही परिहरंति ॥६११५॥ "सारीरं" ति मयसरीरं तं जाव डहरमाणे ण णिप्फेडियं ताव राज्झायं ण करेंति । अह गरे महंते वा गामे तत्थ वाडगसाघीतो वा जाव ण णिप्फेडितं ताव सज्झायं परिहरति । मा लोगो निददुक्खेत्ति उड्डाहं करेज्जा :।६११५॥ चोदगाह - "साहुवसहिसमीवेण मतसरीरस्स जइ पुफवत्यादि किंचि पडति तं प्रसज्झायं ?" प्राचार्य आह णिज्जतं मोत्तुणं, परवयणे पुष्पमादिपडिसेहो । जम्हा चउप्पगारं, सारीरमओ ण वज्जेंति ॥६११६॥ मतसरीरं उभयो वसधीए हत्थसयभंतरत्थं जाव जिइ ताव तं प्रसज्झाइय, सेसा पश्वयणभणिया पुप्फाई पडिसेहेयव्वा ते असज्झाइयं न भवंति । जम्हा सारीग्मसज्झाइयं च विहं - सोणियं मंस अट्ठियं सम्म च । अग्रो तेसु सज्झामो न वज्जणिज्यो ।।६११६।। १ सा० ६१११ । २ गा० ६११३ । ३ गा० ६११३ । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६११२-६१२२] . एकोनविंशतितम उद्देशक: एसो उ असज्झाओ, तव्वज्जियमातो तत्थिमा मेरा। कालपडिलेहणाए, गंडगमरुएण दिद्वतो ॥६११७॥ एसो संजमघातादितो पंचविहो असज्झानो भणितो, तेहि चेव पंचहि वज्जितो सज्झामो भवति । तत्य ति तम्मि सज्झायकाले इमा वक्खमाणा मेर त्ति समाचारी - पडिक्कमित्त जाव वेला ण भवति ताव कालपडिलेहणाए कयाए गहण काले पत्ते गंडगदिटुंतो भविस्सति । गहिते सुढे काले पट्ठवणवेलाए मरुगदिटुंतो भविस्सति ॥६११७॥ स्याबुद्धिः किमर्थ कालग्रहणं ?, अत्रोच्यते - पंचविहमसज्झायस्स जाणणट्ठाए पेहए कालं । चरिमा चउभागवसे, सियाइ भूमि ततो पेहे ॥६११८॥ पंचविहं संजमघायाइगं 'जइ कालं अघेत्तु सञ्झायं करेति तो चउलहुगा, तम्हा कालपडिलेहणाए इमा सामाचारी-दिवसचरिमपोरिसीए चउभागावसेसाते कालग्गहणभूमीनो ततो पडिलेहेयव्वा । अहवाततो उञ्चारपासवणकालभूमी य ॥६११८॥ अहियासिया तु अंतो, आसण्णे मज्झ दूर तिण्णि भवे । तिण्णेव अणहियासिय, अंतो 'छच्छच्च बाहिरतो ॥६११६॥ अंतोणिवेसणस्म तिग्णि उच्चारअषिया सियथंडिले पासण्ण-मज्झ-दूरे पडिलेहेति, प्रणधियासियपंडिल्ले वि अंतो एवं चेव लिणि पडिलेहेति, एवं अतो थंडिल्ला । बाहिं पि णिवे मस्स एवं चेव छ भवंति एत्थ अधियासियदूरत्तरे अणधियासिया ग्रासण्णतरे कायव्वा ॥६११६॥ एमेव य पासवणे, बारस चउवीसतिं तु पेहित्ता । कालस्स य तिण्णि भवे, अह सूरो अत्थमुवयाति ॥६१२०॥ पासवणे वि एतेणेव कमेणं बारस, एते सव्वे च उब्बीसं । प्रतुरियमसंभंत उपउत्तो पडिलेहित्ता पच्छा तिणि कालग्गहणथंडिले डिलेहेति । जहणणं हत्यंतरिते। "प्रह" त्ति प्रणंतर थंडिलपडिलेहजोगाणंतरमेव सूरो प्रत्थमेति, ततो प्रावस्सगं करेंति ।।६१२०॥ तस्सिमो विधी - अह पुण णिव्वाघायं, आवासंतो करेंति सव्वे वि। सडादिकहणाघाततो य पच्छा गुरू ठति ॥६१२१॥ अहमित्यनंतरे सूरत्यमणाणंतरमेव प्रावस्सगं करेंति, पुनविशेषणे दुविधमावस्सगकरणं विसेसेति. णिवाधातिम वाघातिमं च । जइ णिवाघातं तो सब्वे गुरुसहिता आवस्सयं करेंति । प्रह गुरू सड्ढेसु धम्म कहेंति तो प्रावस्सगस्स साहूहि सह कर णिज्जस्स दाधातो भवति, जम्मि वा काले तं करणिज्जं पासितस्स वाघातो भवति, ततो गुरू णिज्जधरो य पच्छा चरित्ता इयारजागाटा उस्स ठायति ।।६१२१॥ सेसा उ जहासत्ती, आपुच्छित्ताण ठंति सहाणे । सुत्तत्थसरणहेतुं, आयरिए ठितम्मि देवसियं ॥६१२२॥ १ असज्झाइयजाणणढाए कालं गेहए, - इइ संझड ! २ छच्चद्ध इत्यपि पाठः । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सून-१५ सेसा साधू गुरु प्रापुच्छित्ता गुट्ठाणस्स मरगतो णासण्णदूरे महारातिणिए जं जस्स ठाणं तस्य पडिक्कमंताण इमा ठवणा । गुरू पच्छा ठायंतो मझेण गंतुं सट्टाणे ठायति । जे वामतो ते अणंतर सब्वेण गंतुं सटाणे ठायंति । जे दाहिणतो अणंतरं सव्वेण तं च प्रणागयं ठायति । सुत्तत्यसरणहेउं तत्य य पुवामेव ठायंता करेमि भंते सामातियमिति सुत्तं करेंति । जाहे गुरु पच्छा सामाइयं करेंता वोसिरामि त्ति भणेता ठिता उस्सग्गं ताहे पुवट्ठिया देवसिया. इयारे चितेति । अण्णे भणंति- जाहे गुरू सामाइयं करेंति, ताहे पुनहिता पितं सामाइतं करेंति। सेसं कण्ठ्य ॥६१२२॥ जो होज्ज उ असमत्थो, बालो बुड्रो गिलाण परितंतो। सो विकहाए विरहिओ, ठाएज्जा जा गुरू टंति ॥६१२३॥ परिसंतो पाहुणगादि सो वि सज्झायज्झाणारो अच्छइ, जाहे गुरू उति ताहे ते वि बालादिया 'ति ।।६१२३॥ एतेण विहिणा आवासग कातूणं, जिणोवदिटुं गुरूवएसेणं । तिपिग थुई पडिलेहा, कालस्स इमो विही तत्थ ।।६१२४॥ जिणेहिं गणधराणं उवदिटुं, ततो परंपरएण जाव अम्हं गुरूवएसेण प्रागतं, तं काउं प्रावस्सगं अंते तिम्णि युतीतो करेंति । अहवा-एगा एगसिलोइया, बितिया बिसिलोइया. ततिया तिसिलोइया, तेसिं समत्तीए कालपडिलेहविधी इमा कायव्वा ॥६१२४।। अच्छउ ताव विधी, इमो कालभेदो ताव वुच्चति - दुविहो य होति कालो, वाघातिम एतरो य णायव्यो । वाघालो घंघसालाए घट्टणं सडकहणं वा ॥६१२।। पुव्वद्धं कंठं । जो अतिरित्तवसही बहुकप्पपडिसेविता य सा धंधसाला, एतो णितप्रतिताणं घट्टणे पडणादिवावातदोसा सड्ढकहणेण वेलातिक्कमदोसा ॥६१२५॥ एवमादि - वाघाते ततिओ सिं, दिज्जति तस्सेव ते णिवेदेति । णिवाशते दोणि उ, पुच्नंति उ काल घेच्छामो ॥६१२६।। तम्मि वाघाति ने दोषिण जे कालपडिलेहगा णिग्गच्छति तेभि ततिम्रो उवज्झायादि दिज्जति । ते कालगाहिणो पापुच्छण संदिसावण कालपदेयण च सत्वं तस्सेव करेंति, एत्थ गंडगदिद्रुतो न भवति । इयरे उवउता चिट्ठति । सुद्धे काले तत्थेव उवज्झायस्स पवेयंति, ताहे डंडधरे बाहिं कालपडियरगो चिट्ठइ, इयरे - दुयगावि अतो पविसंति, ताहे उवज्झायस्स समीत्रे सव्वे जुगव पट्ठवेंति, पच्छा एगो डडधरो अनीति, तेण पट्ठविते सज्झायं करेति ॥६१२६।। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६१२३-६१३१] एकोनविंशतितम उद्देशक: निव्वाधातो पच्छद्धं अस्यार्थः आपुच्छण कितिकम्मे, आवासित खलिय पडिय वाघाते। इंदिय दिसाए तारा, वासमसज्झाइयं चेव ॥६१२७॥ णिवाधाए दोण्णि जणा गुरु पुच्छति - कालं धेच्छामो, गुरुणा प्रभYण्णा, कितिकम्म ति वंदणं दाउं डंडगं घेत्तुं उवउत्ता प्रावस्सियमासज्ज करेता पमज्जंता य णिग्गच्छति । अंतरे य जइ पक्खलंति पडंति वा वत्यादि वा विलग्गति कितिकम्मादि किंचि वितहं करेति, गुरू वा किंचि पडिच्छतो वितहं करेति तो कालवाघातो। इमा कालभूमीए पडियरणविधी - इदिएहि उवउत्ता पडियरंता । "दिसं" ति जत्थ चउरोवि दिसाप्रो दिस्संति, उडुम्मि तिणि तारा जति दीसंति । जइ पुण अणुवउत्ता प्रणिट्टो वा इंदियविसयो। दिस त्ति दिसामोहो दिसामो तारगाप्रो वा ण दीसंति, वासं वा पडति असज्झाइयं च जातं, तो कालवधो ॥६१२७।। किंच - जति पुण गच्छंताणं, छीतं जोतिं च तो णियत्तेति । णिव्वापाते दोण्णि उ, अच्छंति दिसा णिरिक्खंता ॥६१२८॥ तेसिं चेव गुरुसमिवातो कालभूमी गच्छंताणं जं अतरे जति छोयं जोती वा फुसइ तो णियत्तंति, एवमादि कारणेहि प्रवाहता ते णिवाघातेण दो वि कालभूमीए गता संडासगादि विधीए पमज्जित्ता णिसण्णा उट्ठिया वा एक्केकको दो दिसामो णिरिक्खंता अच्छति ॥६१२८।। किं च तत्व कालभूमीए ठिता - सज्झायमचिंतेता, कणगं ठूण तो नियटृति । पत्तेय डंडधारी. मा बोलं गंडए उवमा ॥६१२६।। तत्थ सज्झायं प्रकरेंता अच्छति, कालवेलं च पडियरता । जइ गिम्हे तिणि, सिसिरे पंच, वासासु सत कणगा पिक्खेज्जा तहा वि नियत्तंति । मह निव्वाघाएण पत्ता कालग्गणवेलाए ताहे जो डंडधारी सो अंतो पविसित्ता साहुसमीवे भणाति - बहुपडिपुण्णा कालवेला, मा बोलं करेह । तत्थ 'गंडगोवमा पुनभणियां कज्जति ॥६१२६॥ *गंडघोसिते बहुएहि सुतम्मी सेसगाण दंडो उ । अह तं बहूहिं न सुयं, तो डंडो गंडए होति ।।६१३०॥ जहा लोगे गोमादिगंडगेणाघोसिए बहूहि सुए थेवेसु असुए गोमादि किच्चं प्रकरतो सुदंडो भवति, बहूहिं भसुए गंडगस्स डंडो भवति । तहा इहं पि उपसंहारेयव्वं ।।६१३०॥ ततो डंडधरे णिग्गते कालग्गाही उट्टेइ, सो कालग्गाही इमेरिसो पियधम्मो दढधम्मो, संविग्गो चेव वज्जभीरू य। खेयपणो य अभीरू, कालं पडिलेहए साहू ॥६१३१॥ पियधम्मो दढधम्मो य । एत्थ च उभंगो,तत्थ इमो पठमो भंगो- णिच्च संसारभउम्विगचित्तो संविग्गो, १ गा० ६११७ । २ प्राघोसिते ( आव ० ० )। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ समाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१५ वज्ज-पावं तस्स भीरू वज्जभीरू, जहा तं ण भवति तहा जयति, एल्प कालविहिजाणगो खेयण्णो, सत्तमंतो मभीर एरिसो साधू कालं पहिलेहेड, पडिजग्गति - गृहातीत्यर्थः ।।६१३१॥ ते य तं वेलं पडियरेता इमेरिसं कालं त्ति - कालो संझा य तहा, दो वि समप्पेंति जह समं चेव । तह तं तुलेति कालं, चरिमदिसि वा असज्झायं ॥६१३२॥ संझाए धरतीए कालग्गहणमाढतं, तं कालग्गहणं संझाए ज सेसं एते दो वि जहा समं समति तहा तं कालवेलं तुलॊत, अहवा-तिसु उत्तरादियासु संझ गेण्हति । “चरिम" ति प्रवरा तीए वदगयसंझाते दि गिण्हति न दोसो ॥६१३२।।। सो कालग्गाही वेलं तुलेत्ता कालभूमीग्रो संदिसावणनिमित्तं गुरुपादमूलं गच्छति । तत्थ इमा विधी आउत्तपुबभणिते, अणपुच्छा खलिय पडिय वाघाते । भासंतमूढसंकिय, इंदियविसए य अमणुण्णे ॥६१३३।। जहा णिगच्छमाणो पाउत्तो णिग्गतो तहा पविसंतो वि पाउत्तो पविसति, पुष्वनिग्गतो चेव जइ प्रणापुच्छाए कालं गेहति पविसंतो वि जति स्वलति पडति वा एत्थ वि कालुवघातो। अहवा "वाघाए" त्ति किरियासु वा मूढो अभिघातो लेट्छुइहालादिणा । भासंतमूढपच्छद्धं-सांन्यासिकं उवरि वक्ष्यमाणं, अहदा-एत्प वि इमो प्रत्थो भाणियव्वो-वंदणं देतो अण्णं भासंतो देति वंदणं दुप्रो ण ददाति, किरियासु वा मूढो, पावत्तादिसु वा संका - "कया ण कय" त्ति, वंदणं देंतस्स इंदियविसो वा ममणुण्णमागमो ॥६१३३॥ मिसीहिया णमोक्कारे, काउस्सग्गे य पंचमंगलए । कितिकम्मं च करेत्ता, बितिओ कालं च पडियरती॥६१३४॥ पविसंतो तिणि णिसीहियानो करेति, णमो खमासमणाणं ति णमोक्कारं करेति, इरियावहियाए पंच उस्सासकालियं उस्सग्गं करेति, उस्सारिए णमो प्ररहताणं ति पंचमंगलं चेव कड्ढति, ताहे कितिकम्म बारसावत्तं वंदणं देति, भणति य - संदिसह पादोसियं कालं गेण्डामो, गुरुपयणं गेहह ति। एवं जाव कालग्गाही संदिसावेत्ता प्रागच्छति । ताव बितिउति डंडधरो सो कालं पडियरेति ॥६१३॥ पुणो पुव्वुत्तेण विधिणा मिन्नतो कालम्गाही थोवावसेसियाए, संमाए ठाति उत्तराहुत्तो। चउवीसग दुमपुफिय, पुब्धि य एक्केस्क य दिसाए ॥६१३॥ उत्तराहुत्तो उत्तराभिमुखो डधारीवि वामपासे रिजु तिरियं डंडधारी पुव्वाभिमुहो ठायति कालग्गहणणिमित्तं च अटठुस्सास काउस्सग्गं करेति, प्रणे पंचूसासियं करेति, उस्सारिए चउवीसत्य दुमपुफियं सामण्णपुव्वयं च, एए तिणि अक्खलिए अणुपेहेत्ता पच्छा पुव्वा एए चेव तिण्णि अणुपेहेइ, एवं दक्खिणाए ॥६१३५॥ अवराए य गेण्हंतस्स इमे उवघाया जाणियव्वा - बिंदू य छीय परिणय, सगणे वा संकिए भवे तिण्हं । भासंत मूढ संकिय, इंदियविसए य अमणुण्णे ॥६१३६॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाज्यगाथा ६१३२-६१४१ एकोनविंशतितम उद्देशकः २४३ गेण्हंतस्स बइ अंगे उदा बिदू पडेब, अप्पणा परेण वा जति छीतं, प्रज्झयणं कटुतस्स जति प्रष्णो भावो परिणतो अनुपयुक्तेत्यर्थः । सगणे सगच्छे लिण्हं साघूर्ण गज्जिए संका एवं विज्जुतादिसु ॥६१३६।। 'भासंत पच्छद्धस्स पूर्वन्यस्तस्य इमस्य च विभासा - मूढो य दिसज्झयणे, भासंतो वा वि गेण्हति न सुज्झे। अण्णं च दिसज्झयणं, संकंतोऽणिविसए य ॥६१३७॥ दिसामोहो संजातो। अहवा - मूढो दिसं पडुच्च अज्झयणं वा । कहं ?, उच्यते-पढमे उत्तराहुतेण ठायव्वं सो पुण पुवहुत्तो पढमं ठायति । अज्झयणेतु वि पढमं चउवीसत्यमो सो पुण मूढत्तणमो दुमपुफियं सामन्नपुग्विय वा कड्ढति, फुडमेवं जणाभिलावेण भासंतो कड्ढइ, बुडबुडेतो वा गेण्हइ, एवं ण सुज्झइ । "संकेतो" ति पुव्वं उत्तराहुत्तेण .ठाउं ततो पुवाहुत्तेण ठायथ्वं, सो पुण उत्तराभो अवराहुत्तो ठायति, प्रज्झयणेसु वि चउवीसत्थयामा अण्णं चेव खुड्डियायारकहादि प्रज्झयणं संकमति, प्रहवा - संकति कि प्रमुगीए दिसाए ठितो “ण व" ति ?, प्रज्झयणे वि किं कड्ढियं ण व ति ? "२इंदियविसए य प्रमणुणे" ति प्रणिटो पत्तो, जहा सो दिएण रुदितं वत्तरेण वा अट्टहासं कृतं, रूवे विभीसगादिविकृते स्वं दिटुं, गंधे कलेवरादिगंधो, रसस्तव, स्पर्श अग्निज्वालादि, अहवा - इ8सु रागं गच्छइ, अगिटेसु इंदियविसएसु दोसं, एवमादि उवधायवज्जियं कालं घेत्तुं कालणिवेदणाए गुरुसमीवं गच्छति ॥६१३७॥ तस्स इमं भण्णति - जो वच्चंतम्मि विधी, आगच्छंतम्मि होति सो चेव । जं एत्यं णाणत्तं, तमहं वोच्छं समासेणं ॥६१३८|| एसा गाहा भद्दबाहुकया। एईए अतिदेसे कए वि सिद्धसेणखमासमणो पुव्वद्धस्स भणियं अतिदेसं वक्खाणेति आवस्सिया णिसीहिय, अकरण आवडण पडणजोतिक्खे । अपमज्जिते य भीते, छीए छिण्णे व कालवहो ॥६१३६।। जति णितो प्रावस्सियं ण करेति पविसंतो वा णिसीहियं, अहवा-प्रकरणमिति मासज्जं न करेति कालभूमीतो गुरुसमीवं पट्टियस्स जति प्रतरेण साणमज्जारादी छिदति, सेसा पदा पुव्वणिता । एतेसु सब्वेसु कालवषो भवति ।।६१३६।। गोणादिकालभूमी, व होज्ज संसप्पगा व उद्वेज्जा। कविहसिय विज्जु गज्जिय, जक्खालित्ते य कालवहो ॥६१४०॥ पढमयाए गुरु मापुच्छित्ता कालभूमि गतो, जति कालभूमीए गोणं णिसण्णं संसप्पगा वा उद्विता पेक्खेज्ज तो गियत्तए, जइ कालं पडिलेहेंतस्स गेण्हंतस्स वा णिवेदगाए वा गच्छतस्स कविहसियादी, एएहिं कालवधो भवति, कविहसितं णाम मागासे विकृतरूपं मुखं वाणरंसरिस हासं करेज, सेसा पदा गयत्था ॥६१४०।। कालग्गाही णिव्वाधाएण गुरुसमीवमागप्रो इरियावहिया हत्यंतरे वि मंगलनिवेदणं दारे । सव्वेहि वि पट्ठविए, पच्छा करणं अकरणं वा ॥६१४१| १ गा० ६१३३ । २ गा० ६१३६ । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [मूत्र-१५ जइ वि गुरुस्स हत्यंतरमित्ते कालो गहितो तहावि कालपवेदणाए इरियावहिया पडिक्कमियन्या, पंचुस्सासमेत्तं कालं उस्सगं करेइ, उस्सारिए वि पंचमंगलं ठियाण कड्ढइ, ताहे वदणं दाउं कालं निवेदेति । सुद्धो पाउसिगकाले ति ताहे डंडधरं मोत्तुं सेसा सव्वे जुगवं पट्ठति ॥६१४१॥ किं कारणं ?, उच्यते पुवं 'जम्मरुगदिद्रुतो त्ति सनिहिताण वडारो, पट्टवित पमादि णो दए कालं । बाहिडिते पडिचरए, पविसति ताहे य दंडधरो ॥६१४२॥ वडो वंटगो विभागो एगटुं । पारिप्रो आगारितो सारितो वा एगहूँ । वडेण पारितो वडारो, जहा सो वडारो सण्णिहियाण मरुताण लम्भति न परोक्खस्स तहा देसकहादिपमादिस्स पच्छा कालं ण देति॥६१४२।। 'बाहिट्टिते" पच्छद्ध कंठं। "२सवेहि वि" पच्छद्ध, अस्य व्याख्या पट्ठवित वंदिते ताहे पुच्छति केण किं सुतं भंते ! । ते वि य कहंति सव्वं, जं जेण सुतं च दिटुं वा ॥६१४३॥ डंडधरेणं पटुविते वंदिए एवं सव्वेहिं वि पट्टविते पुच्छा भवति - "मज्जो केण किं सुयं दिट वा? दंडधरो पुन्छति-मण्णो वा । ते वि सव्वं कहेंति, जति सव्वेहिं भणियं- 'ण किंचि दिटुं सुयं वा" तो सुद्ध, करेंति सज्झायं । अह एगेण वि फुडं ति विज्जमादि दिटुं, गजितादि वा सुतं, ततो प्रसुद्धे ण करेति ॥६१४३।। अह संकितो एक्कस्स दोण्ह वा संकितम्मि कीरइ ण कीरई तिण्हं । सगणम्मि संकिते पर-गणम्मि गंतुं न पुच्छंति ॥६१४४॥ जति एगेण संदिद्धं सुतं वा तो कीरति सन्झानो, दोण्ह वि संविद्ध कीरइ, तिण्हं विज्जुमादिसंदेहे ण कीरइ सज्झातो, तिण्हं अण्णोण्णसंदेहे कीरइ, सगणसं किते परगणवयणतो सब्जामो ण कायव्यो । खेत्तविभागेण तेसि.चेव प्रसज्झाइयसंभवो ॥६१४४॥ "जं एत्थ णाणत्तं तमहं वोच्छं समासेणं" ति अस्यार्थः कालचउक्के णाणत्तगं तु पादोसियाए सव्वे वि । समयं पट्टवयंती, सेसेसु समं व विसमं वा ॥६१४॥ एयं सव्वं पादोसिकाले भणियं । इदाणि चउसु कालेसु किंचि सामण्णं, किं.चि विसेसियं भणामिपादोसिए डंडधरं एक्कं मोत्तुं सेसा सब्वे जुगवं पवेति । सेसेसु तिसु अड्ढरत्त वेरत्तिय पाभातिए य समं वा विसम वा पट्ठति ॥६१४५।। कि चान्यत् इंदियमाउत्ताणं, हणंति कणगा उ तिणि उक्कोसं ! वासासु य तिणि दिसा, उदुबद्ध तारगा तिणि ।६१४६।। १ गा. ६११७ । २ गा० ६१४१ । ३ गा० ६१३८ । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यगाथा ६१४२-६१५१ ] एकोनविंशतितम उददेशक: २४५ सुट्टु इंदियउवतेहि सव्वकाले पडिजागरियव्या घेतव्वा । कणगेसु कीलसंखाको विसेसम्रो ? भणति - तिणि सिग्ध मुवहणंति त्ति तेण उक्कोसं भणति चिरेण उबधातो त्ति तेण सत्त जहष्णे, सेसं ममं ॥ ६१४६ ॥ अस्य व्याख्या 18 - कणगा हणंति कालं, ति पंच सत्तेव घिसिसिरवासे । उक्का उ सरेहागा, पगासजुत्ताव नायव्वा ॥ ६१४७ ॥ heat गिम्हे सिसिरे पंत्र वासासु सत्त उवहणंति, उक्का एक्का चेव उत्रहणति कालं कणगो सहरेहो पगासविरहितो य, उक्का महंतरेहा पगासकारिणी य, ग्रहवा - रेहविरहितोवि फुलिंगो पहासकारो उक्का चेत्र ।। ६१४७।। वासासु य तिणि दिसा" अस्य व्याख्या वासासु व तिणि दिसा, हवंति पाभातियम्मि कालम्मि | सेसेसु तिसु वि चउरो, उडुम्मि चतुरो चतुदिसिं पि ॥ ६१४८ ॥ जत् ठितो वासकाले तिणि विदिसा पेक्वइ, तत्य ठितो पभातियं कालं गेण्हति सेसेसु तिसु वि कावासा चैव । जत्थ ठितो चउरो दिसाविभागे पेच्छति तत्थ ठितो गेहइ ।।६१४८५ ।। "" उदुबद्धे तारगा तिण्णि" ति अस्य व्याख्या तिसु तिणि तारगाओ, उडुम्मि पाभाइए श्रदिट्ठे वि । वासासु तारागा, चउरो छन्ने निविट्ठो वि ॥ ६१४६ ॥ तिसु काले पाउसिते श्रडुरत्तिए य जहणेण जति तिष्णि तारगा पेक्खति तो गेन्हंति, उडुबद्धे चैव प्रभादिसंथडे जति वि एक्कं पितारं ण पेक्खति तहा वि पभातियं कालं गेव्हंति, वासाकाले पुण चउरो वि काला श्रम्भसंथडे तारासु प्रद्दीसंतीसु गिहंति ||६१४८ || 41 'छष्णे णिविट्टो वि" त्ति प्रस्य व्याख्या ठागासति बिंदूसु व, गेण्हति विट्टो वि पच्छिमं कालं । पडियरति बहिं एक्को, गेहति अंतठिओ एक्को | ६१५० ॥ जति वसहिस्स बाहि कालगहिस्स ठागो णत्थि ताहे अंतो छष्णे उद्घट्टितो गेण्हति मह उद्घट्टियस्स वि तो ठाम्रो पत्थि ताहे अंतो छष्णे चेत्र जिविट्टो गेहति । बाहि ठितो य एक्को पडियरति, वार्सासि पडती गियमा तो ठिम्रो गिव्हइ, तत्थ वि उद्घट्टिम्रो निसष्णो वा, नवरं - पडियरगोवि चैव ठिम्रो पडियर । एस पाभाइए गच्छ्रवगाहट्ठा श्रववायविही, सेसा काला ठागासति न घेत्तव्वा. ग्राइण्ण वा जाणियव्वं ।। ६१५० ॥ कस्स कालस्स कं दिसं अभिमुहेहिं पुव्वं ठायव्वमिति भण्णांत पादोसिय अडरते, उत्तरदिसि पुव्वपेहए कालं । वेरतियम्मि भयणा, पुव्वदिसा पच्छिमे काले || ६१५१ ॥ १ गा० गिम्हेउ, इत्यपि पाठः । २ गा० ६१४६ । ३ गा० ६१४६ । ४ गा० ६१४६ | Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१५ पादोसिए प्रद्धरतिए णियमा उत्तरमुहो ठाति, वेरत्तिए भयणि ति इच्छा, उत्तरमुहो पुत्रमुहो वा, पामातिए पुष्वं - णिममा पुष्वमुहो ॥६१५१॥ इदाणिं कालग्गहणं पमाणं भण्णति - कालचउक्कं उक्कोसएण जहण्णेण तिगं तु बोधव्वं । बितियपदम्मि दुगं तु, मातिट्ठाणा विमुक्काणं ॥६१५२।। ___ उस्सग्गे उककोसेण चउरो काला घेप्पंति, उस्सग्गे चेव - जहणेण तिगं भण्णति । "बितियपदं" ति - अववादो, तेण कालदुगं भवति, अमायाविनः कारणे भगृहानस्येत्यर्थः । अहवा - उक्कोसेण चउक्कं भण्णति । अहवा - जहणे हाणिपदे तिगं भवति, एक्कम्मि भगहिते इत्यर्थः । बितिए हाणिपदे दुगं भवति, दयोरग्रहणादित्यर्थः । एवं प्रमायाविणो तिष्णि वा अगेण्हंतस्स एक्को भवति । अहवा - मायाविमुक्तस्य कारणे एकमपि कालं म गृण्हतः न दोषः, प्रायश्चित्तं वा न भवति ।।६१५२॥ कहं पुण कालचउक्कं ?, उच्यते - फिडितम्मि अद्धरत्ते, कालं घेत्तुं सुवंति जागरिता । ताहे गुरू गुणंती, चउत्थे सव्वे गुरू सुवति ॥६१५३॥ पादोसियं कालं घेत्तुं पोरिति काउं पुण्णपोरिसीए सुत्तपाढी सुवंति, प्रत्यचितगा उक्कालियपाढिणो य जागरंति जाव अङ्गरत्तो। ततो फिडिए अडरते कालं घेत्तुं ते जागरिता सुवंति, ताहे गुरू उद्विता गुणंति जाव चरिमो लामो पत्तो । चरिमे जामे सम्वे उद्वित्ता वेरतियं घेत्तुं सम्झ यं करेंति ताहे गुरू तुवंति । पत्ते पाभातिते काले जो पभातियकालं घेच्छिहिति सो कालस्स पडिक्कमिउं पाभाइयकालं गेहइ, सेसा कालवेलाए पलस्स पक्किमंति, तो प्रावस्सयं करेंति । एवं चउरो काला भवंति ॥६१५३॥ तिण्णि कहं ?, उच्यते - पाभातिते अगहिते सेसा तिणि भवे । अहवा - गहितम्मि अद्धरत्ते, वेरत्तिय अगहिते भवे तिण्णि । वेरत्तिय अद्धरते, अतिउवोगा भवे दुनि ॥६१५४॥ वेरत्तिए अग्गहिए सेसेसु गहितेसु तिष्णि, अड्डरत्तिए वा भगहिते तिष्णि, पादोसिए वा अम्महिते तिग्णि । दोण्णि कहं ?, उच्यते । पादोसियमवरत्तिएसु गहिएसु सेसेसु प्रगहिएसु दोणि भवे । . अहवा - पादोसिए वेरत्तिए य गहिते दोणि । अहवा - पादोसितपभातितेसु गहिएसु सेसेसु अगहिएसु दोणि, एस कप्पो विकप्पे । पादोसिएग चेक अणुवहतेण उवभोगतो सुपडिजग्गिएण सव्वकाले पढंति ण दोसो। अहवा - प्रहरत्तियवेरत्तियगहिते दोणि । अधवा - अढरतियपभातिएसु गहितेसु दोण्णि । अहवा - वेरत्तियपमातिएसु दोण्णि । जया एक्को ततो प्रणतरो गेण्हति । कालचउक्ककारणा इमे - कालचउगहणं उस्सग्गतो विही चेव । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६१५२-६१५७ ] एकोनविशतितम उद्देशक: २४७ अहवा - पामोसिए गहिए उवहते अडरते घेत्तुं सज्झायं करेंति, तम्मि वि उवहते वेरतियं घेतुं सम्झायं करेंति, पाभातितो दिवसट्टा घेत्तन्यो चेव एवं कालचउक्कं टिटुं। अणुवहते पुण पाउसिते सुपडिअम्गिते सब्दगति पढंति, प्रहरत्तिएण वि वेरत्तियं पढंति, वेरतिएंण अणुवहते सुपडिजग्गितेण पाभातियमसुद्ध ट्टि दिवसतो वि पढंति । कालचउक्के प्रगहणकारणा इमे-पादोसियंग गेष्हति, प्रसिवादिकारणतो ग सुज्झति वा, पादो. सिएण वा सुप्पडिग्गितेण पटति ति ण गेण्हइ, वेरत्तिय कारणतो ण सुज्झति वा पादोसिय भड्डरत्तिएण वा पढति ति ग गेहति, पाभातितं ण गेण्हति, कारणतो ण सुज्झति वा ।।६१५४।। इदाणि पाभातितकालग्गहणे विधिपत्तेयं भणामि पाभाइतम्मि काले, संचिक्खे तिण्णि छीयरुग्णाई । परवयणे खरमादी, पावासिय एवमादीणि ॥६१५॥ पाभातियम्मि काले गहणविधी य । तत्थ गहणविधी इमा णवकालवेलसेसे, उवग्गहिय 'अट्ठया पडिक्कमते । ण पडिक्कमते वेगो, नववारहते धुवमसज्झाओ ॥६१५६।। दिवसतो सज्झायविरहियाण देसादिकहासंभवे वजणट्ठा, मेहावीतराग य पलिभंगवज्जणट्ठा, एवं सबसिमणुम्गहट्ठा णवकालग्गहणकाला पामातिए मन्मणाया, अतो गवकालग्गहवेलाहि पाभातियकालग्गाही कालस्स पडिक्कमति, सेसा वि तं वेलं उवत्ता चिति कालस्स तं वेल पडिक्कमति वा ण वा। एगो पियमा ण पडिक्कमइ, जइ छीयरुयादीहिं न सुज्झिहिति तो सो चेव वेरत्तिनो पडिग्गहिरो होहिति ति, सो वि पडिक्कतेसु गुरुस्स कालं वेदित्ता अणुदिए सूरिए कालस्स पडिक्कमते. जति य घेणमाणो णववारा उत्रहमो कालो तो गजति जहा धुवमसम्झाइयमत्यि, न करेंति सन्झायं ॥६१५६।। नववारग्गहणविधी इमो। "संचिक्ख तिण्णि छीयरुण्णाणि" ति अस्य व्याख्या - एक्केक्को तिण्णि वारा, छीतादिहतम्मि गेण्हती कालं । चोदेति खरो बारस, अणिदुविसए व कालवहो ॥६१५७॥ एक्कम्स गेण्हतो छीयरुयादिहते संचिक्खति ति गहणा विरमतीत्यर्थः, पुणो गेण्हइ, एवं तिष्णि बारा । ततो परं अण्णो अण्णम्मि पंडिले तिणि वाग। तस्स वि उवहते अण्णो मण्णम्मि थंडिले तिष्णि बारा । तिण्हं असतीते दोण्णि जणा पववारामो पूरेति । दोह वि असतीए एकको चेव गववारामो पूरेति । पंडिलेसु वि भववातो तिसु दोसु वा एक्कम्मि वा गेण्हनि । "२परवयणे खरमादि" त्ति अस्य व्याख्या - "चोटेति खरो पच्छद्धं । चोदगाह - "जइ रुदितमणिटे कालवहो ततो खरेण रहिते बारस वरिसे उवहम्मउ । अण्णेसु वि प्रणिटइंदियविसएसु एवं चेव कालवहो भवति ।।६१५७॥ १ उवगहितट्टयाए इत्यपि पाठः । २ गा० ६१५५ । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ सभाष्य चूर्णिके निशीथसूत्रे । सूत्र-१६ प्राचार्याह चोदग माणुसणिढे, कालवहो सेसगाण तु पहारे । पावासियाए पुव्वं, पण्णवणमणिच्छे उग्घाडे ॥६१५८॥ माणुससरे प्रणि? कालवहो, सेसगतिरिया तेसिं जति अणिट्ठो पहारसद्दो सुणिजति तो कालवहो । "पावासिय" अस्य व्याख्या - पावासिया पच्छद्धं, जति ५भातियकालगणवेलाए पवासियभज्जा पतिणो गुणे संभरंती दिणे दिणे रुवेज्जा तो तीए रुवणवेलाए पुब्वतरो कालो घेत्तबो। ग्रह सा पि पच्चूसे रुवेज्ज ताहे दिवा गंतु पण्णविज्जति, पणवणमणिच्छाए उग्घाडणकाउस्सग्गो कीरंति ॥६१५८।। २एवमादीणि त्ति अस्य व्याख्या वीसरसद्दरवंते, अव्वत्तग-डिंभगम्मि मा गिण्हे । गोसे दरपट्टविते, तिगुण च्छीयऽण्णहिं पेहे ॥६१५६।। अच्चायासेण रुवणं तं वीसरस्सरं भण्णति, तं उवहणते । जं पुण महुरस घोलमाणं च नोवहणइ । जाव अजंपिर ताव अव्वत्तं, तं अण्णेणवि विस्सरसरेणं उवहणति, महंत उस्संभररोवणेण वि उवहणति । पामातिगकालगहणविधी गया, झ्याणि पाभातियढवण विधी - "गोसे दर" पच्छद्धं, गोसि त्ति उदिते प्रादिच्चे दिसावलोयं करेता पट्ठति । दरपट्टविति त्ति प्रद्ध पढविते अति छीयादिणा भग्गं पट्ठवणं अण्णो दिसावलोगं करेत्ता तत्थेव पट्टति, एवं तित्तियवाराए वि ।।२१५६।। दिसावलोयकरणे इमं कारणं - आइण्णपिसित महिगा, पेहंता तिण्णि तिणि ठाणाई । णववार खुते कालो, हतो त्ति पढमाए ण करेंति ॥६१६०॥ पाइणपिसियं प्रातिण्णपोग्गलं तं काकमादोहिं प्राणियं होज्ज, महिया वा पडिउमारदा, एवमादि एगट्टाणे तयो वारा उवहसे हत्यसयबाहिं अण्णं ठाणं गंतुं फेहति पडिलेहति पट्ठति ति वुत्तं भवति, तत्थ वि पुवुत्तविहाणेण तिणि वारा पट्ठति । एवं बितियट्ठाणे वि असुद्धे ततो वि हत्यसयं अण्णं ठाणं गंतुं तिष्णि वारा पुव्युत्तविहाणेण पट्टति, अइ सुद्धं तो करेंति सज्झायं गववारा। खुत्तादिणा हते णियमा हतो कालो, पढमाएं पोरिसीए ण करति सज्झायं ॥६१६०॥ पट्टवितम्मि सिलोगे, छीते पडिलेह तिण्णि अण्णत्थ । सोणित मुत्त पुरीसे, पाणालोगं परिहरिज्जा ॥६१६१॥ . जया पट्ठवणातो तिणि दु अज्झपणा सम्मत्ता तदा उरि एगो सिलोगो कडिढयचो, तम्मि समत्ते पटवणे समप्पति ॥६१६१॥ ""तव्वज्जो झातो" बितियपादो गतत्थो। ५सोणिय त्ति अस्य व्याख्या -- आलोगम्मि चिलिमिली, गंधे अण्णत्थ गंतु पकरेंति । वाघातिम कालम्मी, गंडगमरुगा णवरि पत्थि ॥६१६२॥ ' १ गा० ६१५५ । २ गा० ६१५५ । ३ छीए छीए तिगी पेहे ( प्राव०वृ० )। ४ गा० ६१६१ । ५ गा.६११७। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६१५८-६१६८ ] एकोनविंशतितम उददेशकः जत्य मज्झा करेंतेहि सोणियचिरिक्का दिस्संति तस्थ ण करेंति सज्झायं, कडगं चिलिमिलो वा अंतरे दाउ करेंति । जत्थ पुर्ण सञ्झायं चैव करेंताण मुत्तपुरीसकलेवरादियाण य गंधो, भण्णम्मि वा प्रसुभगंधे प्रागच्छंते तत्थ सज्झायं ण करेंति, अण्णत्थ गंतुं करेंति । भ्रष्णं पि बंघणसेहणादि प्रालोगं परिहरिज्जा । एवं सव्वं णिग्वाघातकाले भणितं । वाघातिमकाले वि एवं चेत्र : णवरं - गडगमरुप्रदिट्ठता ण भवंति ।। ६१६२ ।। सज्झाते जो करेइ सज्झायं । एतेसामण्णतरे, सो आणा वत्थं, मिच्छत्त विराधणं पावे ।। ६१६३॥ बितिया गाठे सागारियादि कालगत अहव वोच्छेदे । एतेहि कारणेहिं, जयणाए कप्पती काउं ॥ ६१६४॥ दो वि कंठाभो ||६१६३, ४॥ जे भिक्खू पण सज्झाइए सज्झायं करेह, करें तं वा सातिज्जति ||०||१६|| प्रप्पणो सरीरसमुत्थे प्रसज्झातिते सज्झाम्रो श्रप्पणा ण कायव्त्रो, परस्स पुण कायन्त्रो, परस्स पुण वाया दायन्त्रा । महंतेसु गच्छेसु प्रन्याउलत्तणमो समणीग य णिच्चोउयसंभवो मा सज्झाम्रो ण भविस्सति, तेण वाणत्ते वही भणति । प्रायसमुत्थमसज्झाइयस्स इमे भेदा - श्रव्वाउलाण णिच्चोउयाण मा होज्ज निच्चऽसज्झाओ । अदिसा भगंदलादिसु इति वायणसुत्तसंबंधो ॥ ६१६५ ।। श्रातसमुत्थमसज्झाइयं तु एगविहं होति दुविहं वा । एगविहं समणाणं, दुविहं पुण होति समणीणं ॥ ६१६६॥ एहिं समणाणं तं च व्रणे भवति, समणीणं दुविहं व्रणे उदुसंभवे च ॥६१६६॥ इमं व्रणे विहाणं - धोतम्मि य निप्पगले, बंधा तिष्णेव होंति उक्कोसा । २४६ परिगलमाणे जयणा, दुविहम्मि य होति कायव्वा ||६१६७ || पढमं विय व्रणो हत्यसयस्स बाहिरतो घोविउं णिपगलो कतो ततो परिगलने तिष्णि बंघा उक्कोसेण करेंतो वाति । दुविहं व्रणसंभवं उउयं च, दुविहे वि एवं पट्टगजयणा कायच्वा ॥ ६१६७।। समणो उवणे व भगंदले व बंधेक्कका उ वाएति । तह वि गलते छारं, दाउं दो तिष्णि वा बंधे ॥ ६१६८|| "व्रणे धोयणिष्पगले हत्थसयबाहिरतो पट्टग दाउ वाएइ, परिगलमाणेण भिण्णे तम्मि पट्टगे तस्सेव उवरि छारं दारं पुणो पट्टगं देति वातेति य एवं ततियं पि पट्टगं बंधेज्जा वायणं च देख, ततो परं परिगलमाणे हत्यसबाहिरंगंतुं व्रणं पट्टगे य श्रोविडं पुणो एतेणेव क्रमेण वाएति । श्रहवा - अण्णत्य गंतुं पढति १६१६८॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे एमेव य समणीणं, वणम्मि इतरम्मि सत्तबंधा उ । तह वि य अठायमाणे, घोऊणं अहव अण्णत्थ ॥ ६१६६॥ इयरंति उडु एवं चेव, णवरं - सत्तबंधा उनकोसेण कायव्वा, तह वि भट्टते हत्यसयबाहिरतो घोविडं पुणो दाएति, अहवा - प्रण्णत्थ पढति ॥ ६१६६ । एतेसामण्णतरे, असज्झाए अप्पणो व सज्झायं । जो कुणति अजयणाए, सो पावति ऋणमादीणि ॥ ६१७० ॥ श्राणादिया य दोसा भवंति । इमे य सुयनाणम्मिय भत्ती, लोगविरुद्धं पमत्तछलणा य । विज्जासाहण वइगुण्ण धम्मयाए य मा कुणसु ||६१७१ ॥ सुयणाणे प्रणुवचारतो प्रभत्ती भवति । ग्रहवा सुयणाणभत्तिरागेण प्रसज्जातिते सज्झायं मा कुणसु, उवदेसो एस-जं लोगधम्मविरुद्धं च तं ण कायव्वं । प्रविहीए पमत्तो लग्भति तं देवया छलेज्ज | जहा विज्जासाहणवइगुणयाए विद्या न सिज्झति तहा इहूं पि कम्मखम्रो न भवइ । वैगुण्यं वैधर्मता - विपरीतभावेत्यर्थः । " धम्मयाए य" सुयवम्मस्स एस धम्मो जं प्रसज्झाइए सज्झायवजणं ण करेंतो सुयणाणायारं विराहेइ, तम्हा मा कुणसु ।। ६१७१ ॥ चोदकाह - " जति दंतप्रट्टिमंससोणियादी प्रसज्झाया जणु देहो एयमतो चेव, कहं तेण सभायं करेह ?" प्राचार्याह - कामं देहावयवा, दंतादी अवजुता तह विवज्जा । अणऋजुता उ ण वज्जा, इति लोगे उत्तरे चेत्रं ॥ ६१७२॥ [ सूत्र - १६ कामं चोदगाभिप्पायप्रणुमयत्ये सच्चं, तम्मयो देहोवि । सरीराम्रो प्रवजुत त्ति पृथग्भावा ते वज्जणिज्जा, जे पुण अणवजुया तत्थत्था ते ण वज्जणिज्जा, इति उपप्रदर्शने । एवं लोके दृष्टं, लोकोतरेऽ प्येवमित्यर्थः ।। ६१७२॥ किं चान्यत् - अन्तरमललित्तो, वि कुणति देवाण अच्चणं लोए । बाहिरमललितो पुण, ण कुणइ अवणेह य ततो णं ॥ ६१७३ ॥ श्रमंतरा मूत्रपुरीषादी, तेहि चेव बाहिरे उवलित्तो कुणइ तो श्रवण्णं करेइ ॥ ६१७३॥ किं चान्यत् - - उट्टियावराहं, सन्निहिता ण खमए जहा पडिमा । इय परलोए दंडो, पमत्तछलणा य इति आणा ॥ ६१७४ | Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६१६६-६१७६ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः २५१ ___जाय पडिमा सणिहिय त्ति-देवयाअधिट्ठिता, सा जति कोइ प्रणाढिएण माउट्टित त्ति जाणतो बाहिरमललितो तं पडिमं छिवति, मच्चणं वा से कुणइ तो ण खमइ, खेत्तादि करेइ, रोगं च जणेइ, मारेइवा! इय त्ति - एवं जो असमझाइए सज्झायं करेति तस्स णाणायारविराहणाए कम्मबंधो, एस से परलोइनो दंडो, - इह लोए पमत्तं देवता छलेज्ज स्यात् । माणादिविराधणा वा धुवा चेव ।।६१७४॥ कोइ इमेहि अप्पसत्थकारणेहिं असज्झाइए सज्झायं करेज्ज - रागा दोसा मोहा, असज्झाए जो करेज्ज सज्झायं । पासायणा तु का से, को वा भणितो अणायारो॥६१७५॥ रागेण दोसेण वा करेज्ज । अहवा-दरिसणमोहमोहितो भणेज्ज-का प्रमुत्तस्स णाणस्स प्रासायणा ? को वा तस्स प्रणायारो ? - नास्तीत्यर्थः ॥६१७५।। एतेसिं इमा विभासा - गणिसदमाइमहितो, रागे दोसेण ण सहती सदं । सव्वमसज्झायमयं, एमादी होति मोहाओ ॥६१७६।। महियो ति हृष्टतुष्टनंदितो, परेण गणिवायगो वाहरिज्जतो भवति, तदभिलासी प्रसज्झातिए एवं सज्झायं करेइ, एवं रागे । दोसेण - कि वा गणी वाहरिज्जति वायगो ? अहं पि अधिज्जामि जेण एयस्स पहिसवत्तिभूतो भवामि, जम्हा जीवसरीरावयवो - प्रसज्झायमयं न श्रद्दधातीत्यर्थः ॥६१७६॥ इमे दोसा - उम्मायं च लभेज्जा, रोगायंकं च पाउणे दीहं । तित्थकरभासियाओ, खिप्पं धम्माओ भंसेज्जा ॥६१७७॥ खित्तादिगो उम्मातो, चिरकालिगो रोगो, प्रासुघाती प्रायंको - एस वा पावेज्ज, धम्मामो भंसो, मिच्छादिट्ठी वा भवति, चरित्ताप्रो वा परिवडति ॥६१७७॥ इह लोए फलमेयं, परलोए फलं न देंति विज्जाश्रो । आसायणा सुयस्स य, कुव्वति दीहं तु संसारं ॥६१७८॥ सुयणाणायारविवरीयकारी जो सो णाणावरणिज्जं कम्मं बंधति, तदुदयानो य विज्ञानो कयोवचाराप्रो वि फल ण देंति-ण सिद्धय तीत्यर्थः, विधीए प्रकरणं परिभवो एवं सुतासादणा, अविधीए वटुंतो णियमा अट्ठ कम्मप्रगती प्रो बंधइ, हस्सद्वितियानो दीहठिईओ करेइ, मंदाणुभावा य तिव्वाणुभावाप्रो करेइ, गप्पपदेसाप्रो य बहुपदेसाप्रो करेति, एवंकारी य णियमा दीहं संसारं णिवत्तेति । अहवा - णाणायारविराहणाए दंसणविराहणा, णाणदंसणविराहणाहिं णियमा चरणविराहणा । एवं तिण्हं विराहणाए प्रमोक्खो, प्रमोक्खे णियमा संसारो ।।६१७८॥ बितियागाढे सागारियादि कालगत असति वोच्छेदे। एएहिं कारणेहिं, कप्पति जयणाए काउ जे ॥६१७६।। पूर्ववत् सव्वत्थ अणुप्पेहा, अप्रतिसिद्धादित्यर्थः । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ सभाष्य-पूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र १७-१८ जे भिक्खू हेडिल्लाइं समोसरणाई अवाएत्ता उवरिल्लाई समोसरणाई वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जति ॥२०॥१७॥ आवासगमादीयं, सुयणाणं जाव बिंदुसाराश्रो। उक्कमश्रो वादेतो, पावति प्राणाइणो दोसा ॥६१८०॥ जं जस्स आदीए तं तस्स हिदिल्लं, जं जस्स उवरिल्ल तं तस्स उवरिल्लं, जहा दसवेयालिस्सावस्सगं हेडिल्लं, उत्तरझियणाण दसवेयालियं हेडिल्लं, एवं णेयं जाव बिंदुसारेति ॥६१८०॥ सुत्तत्थ तदुभयाणं, ओसरणं अहव भावमादीणं । तं पुण नियमा अंगं, सुयखंधो अहव अज्झयणं ॥६१८१।। समोसरणं णाम मेलम्रो, सो य सुत्तस्थाणं, अहवा - जीवादि गवपदस्थभावाणं । अहवा - दव्वखेत्तकालभावा, एए जत्य समोसढा सव्वे अत्पित्तिदुत्तं भवति, तं समोसरणं भण्णति । तं पुण किं होज्ज ? उच्यते-अंग, सुयक्खंधो, अज्झयणं, देसगो। अंगं जहा प्रायारो तं प्रवाएत्ता सुयगरंगं वाएति।सुयक्खंधो-जहा प्रावस्सयं तं प्रवाएत्ता दसवेयालियसुयखंघ वाएति । प्रज्झयणं जहा सामातितं प्रवाएत्ता चउवीसत्ययं वाएति, अहवा- सत्थपरिणं प्रवाएत्ता लोगविजयं वाएति । उद्देसगेसु जहा सत्थपरिणाए पढम सामन्नउद्देसियं प्रवाएता पुढविक्काउद्देसियं बितियं वाएति । एवं सुत्तेसु वि दट्ठव्वं । अहवादोसु सुप्रखंधेसु जहा बंभचेरे प्रवाएत्ता मायारग्गे वाएति । सम्वत्थ उक्कमतो। एवं तस्स प्राणादिया दोसा पउलहुगा य, प्रत्ये चउगुरू भण्णति, पमत्तं देवया छलेज्ज ॥६१८१।। इमो य दोसो उवरिसुयमसद्दहणं, हेडिल्लेहि य प्रभावितमतिस्स । ण य तं भुज्जो गेहति, हाणी अण्णेसु वि श्रवण्णो ॥६१८२॥ हेछिल्ला उस्सग्गसुता तेहिं प्रमाविस्स उवरिल्ला प्रववादसुया ते ण सद्दहति प्रतिपरिणामगो भवति, पच्छा वा उस्सगं न रोचेइ अतिक्कामेय ति काउं तं ण गेण्हति । अण्ण उरिंगेहति एवं प्रादिसुत्तस्स हाणी नासमित्यर्थः । प्रादिसुत्तवज्जितो उवरिसु अट्ठाणेण य पयत्तेण बहुस्सुतो भण्णति, पुच्छिज्जमाणो य पुच्छ गणिव्वहति, जारिसो एस प्रणायगो तारिसा अण्णे वि एवं प्रणेसि पि अवण्णो भवति, जम्हा एवमादी दोसा तम्हा परिवाडीए दायव्वं ॥६१८२।। इमो अववातो - णाऊण य वोच्छेदं, पुव्वगते कालियाणुजोगे य । सुत्तत्थ तदुभए वा, उक्कमश्रो वा वि वाएज्जा॥६१८३॥ पियधम्म-दढधम्मस्प्त, निस्सग्गतो परिणामगस्स, मंविग्गसभावस्स, विणीयस्स परममेहाविणो - एरिसस्स कालियसुत्ते पुत्वगए च मा वोच्छिजउत्ति उक्कमेण वि देज्ज ,६१८३॥ जे भिक्खू णवबंभचेराई अवाएत्ता उवरियसुयं वाए। वाएंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥१८॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६१८०-६१८८] एकोनविंशतितम उद्देशक: २५३ णवबंभचेरगहणेणं सव्यो मायारो गहितो, अहवा - सव्वो चरणाणुप्रोगो तं प्रवाएत्ता उत्तमसुतं वाएति, तस्स प्राणादिया दोसा चउलहुं च ॥६१८२॥ किं पुण तं उत्तमसुतं ? उच्यते - छेयसुयमुत्तमसुयं, अहवा वी दिहिवाश्रो भण्णइ उ । जं तहि सुत्ते सुत्ते, वणिज्जइ चउह अणुोगो ॥६१८४॥ पुम्बद्ध कंठं । अहवा - बंभचेरादी प्रायारं भवाएत्ता धम्माणुप्रोगं इसिभासियादि वाएति, अहवा - सूरपण्णत्तियाइगणियाणुप्रोगं वाएति, अहवा - दिट्ठिवातं दवियाणुप्रोगं वाएति, अहवाजदा चरणाणुप्रोगो वातितो तदा धम्माणुयोगं प्रवाएत्ता गणियाणुयोगं वाएति, एवं उक्कमो चारणयाए सन्यो वि भासियव्वो, एवं सुत्ते। प्रत्ये वि चरणाणुप्रोगस प्रत्यं प्रकहेना धम्मादियाण प्रत्यं कहेति :: । प्रादेसमो वा चउगुरु । छेदसुयं कम्हा उत्तमसुत्तं ?, भण्णति - जम्हा एत्थ सपायच्छित्तो विधी भण्णति, जम्हा य तेण वरणविसुद्धी करेति, तम्हा तं उत्तमसुतं । दिद्विवानो कम्हा?, उच्यते - जम्हा तत्थ सुत्ते चउरो अणुप्रोगा वणिज्जंति, सव्वाहिं णयविहीहिं दव्वा दंसिज्जंति, विविधा य इड्डीप्रो प्रतिसता य उप्पज्जति, तम्हा तं उत्तमसुतं । एवं सुत्तस्स उक्कमवायणा वजिया ॥६१८३॥ अत्थस्स कहं भाणियव्वं ?, उच्यते - अपुहुत्ते अणुप्रोगो, चत्तारि दुवार भासई एगो। पुहुत्ताणुअोगकरणे, ते अत्थ तो उ वुच्छिन्ना ॥६१८५॥ कंख्या ग्रहवा - सुत्तवायणं पडुच्च कमो भण्णति, णो अटुं पट्टवणं । कम्हा !, जम्हा सुत्ते सुत्ते चउरो प्रणुप्रोगा दंसिज्जंति । उक्तं च - अपुहुत्ते व कहेंते, पुहुत्ते वुक्कमेण वाययंतम्मि । पुवभणिता उ दोसा, वोच्छेदादी मुणेयव्वा ॥६१८६॥ कंठ्या णवरं - वोच्छिज्जति एगसुत्ते चउण्हमणुप्रोगाणं जा कहणविधी सा पहत्तकरणेण वोच्छिष्णा, ग संपयं पवत्तहणजइ वा, अहवा - तेसिं प्रत्थाण कहणसरूवेण एगसुत्ते ववत्थाणं वोच्छिण्णं पृथक् स्थापित. मित्यर्थः ।।६१८॥ केण पुहत्तीकयं ?, उच्यते - बलवुड्डिमेहाधारणाहाणी गाउं विज्झ दुब्बलियपूसमित्तं च पडुच्च - देविंदवं दिएहिं, महाणुभागेहि रक्खि अज्जेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो, अणुओगो तो को चउहा ॥६१८७॥ कंठ्या के पुण ते चउरो अणुप्रोगा ?, उच्यते कालियसुयं च इसिभासियाणि तइयाए सूरपण्णत्ती। जुगमासज्ज विभत्तो, अणुअोगो तो को चउहा ॥६१८८॥ कंठ्या Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे अहवा - किं कारणं णयवज्जितो चरणांणुग्रोगो पढमं दारठवियं ?, उच्यते - यवज्जि विहु अलं, दुक्खक्खयकारओ सुविहियाणं । चरणकरणाणुओगो, तेण कयमिणं पढमदारं ॥ ६१८६ ॥ कंठ्या शिष्याह - "कालियसुयं श्रायारादि एक्का रस अंगा, तत्थ पकप्पो प्रायारगतो । जे पुण अंगबाहिरा छेयसुयज्झयणा ते कत्थ अणुओगे वत्तव्वा ? उच्यते जं च महाकप्पसुयं, जाणि य सेसाई छेदसुत्ताई । चरणकरणाणुयोगो, ति कालियवायाणि य ॥६१६० ॥ श्रावस्सयं दसवेयालियं चरणधम्मगणियदवियाण पुहत्ताणुप्रोगे । कमठवे कारण इमं - - अहत्ते विहु चरणं, पढमं वणिज्जते ततो धम्मो । गणित दवियाणि वि ततो, सो चेत्र गमो पुहत्ते वी ॥ ३१६१ || कं ते पुण जुगवं वणिज्नमाणेसु इमा विधी - एक्केक्कम्मिउ सुत्ते, चउण्ह दाराण श्रासि तु विभासा । दारे दारे य नया, गाहगगेव्हंतए पप्प ||६१६२॥ सुते सुते चउरो दार सि अणुओोगा, पुणो एक्केक्को अणुप्रोगो णएहि चितिज्जति, ते य नया गागं पडुच गिरहंतगं वा संखेव वित्थ रेहि दट्ठव्वा जइ गाहगो गातुं समत्थो गिव्हंतगो वि समत्यो तो सव्वणएहिं वित्थरेणवि भासियव्वं, बितियभंगे गेव्हंतगवसेण वत्तव्वं, ततियभंगे जत्तियं वृत्तं तस्स धारणसमत्यो तत्तियं भासति, चरिमे दोणि वि जं सुत्तागुरूवं पुहते पुहते वा ॥६१६२ ।। ते चउरो अणुगा कहं विभासिज्जंति ?, उच्यते - समत त्ति होति चरणं, समभावम्मि य ठितस्स धम्मो उ । [ सूत्र १६-२२ काले तिकाल विसयं, दविए वि गुणो णु दव्वण्णू || ६१६३॥ तुलाधरणं व समभावकरणं । चरणसमभावट्टियम्स गियमा विसुद्धिसरूवो धम्मो भवति । काले णियमातिकालविस चरणं, जम्हा समयखेते कालविरहितं न किंचिमत्थि । ग्रहवा - तिकालविसयं ति पंचकाया जहा धुवे गितियया सासती तहा चरणं भुवि च भवति भविस्सति य । दव्वाणुप्रोगे चरणचिता । किं दव्वो गुणो त्ति ? दव्वद्विताभिप्पाएण चरणं दव्वं, पज्जवट्ठिताभिप्पाएण चरणं गुणे, ग्रहवा – पढमतो सामाइयगुणे पडिवत्तीतो पुत्रमेव चरणं लब्भति, चरणट्टितस्स घम्माणुग्रोगो लभति, चरणधम्मद्वियस्स गणियाणुप्रोगो दिजति, ततो तिम्रणुप्रोगभावित थिरमतिस्स दव्त्राणुप्रोगो य णयविधीहि दंसिजति ॥६१६३॥ इदं च वर्ण्यते - एत्थं पुण एक्क्के, दारम्मि गुणा य होंतवाया य । गुणदोसादिसारो, णियत्तत्ति सुहं पवत्तत्ति य || ६१६४|| Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ६१८६-६१६९ ] एकोनविंशतितम उददेशकः स्थ ति एतेसि मणुग्रोगाण प्रत्यकहणे, पुन विसेसणे । कि विसेसेति ?, एक्केक्के प्रणुयोगे गुणा दरिसिज्जति । वायत्ति - दोसा य कहं ?, उच्यते - पडिसिद्धं प्रायरंतस्स विहि मकरेतस्स य इहपरलोइयदोसा, पडिसिद्धवज्जेतस्स विहि करेंतस्स इहपरलोइया गुणा । चरणाणुवचयभवणं गुणसारो, चरणविषातो कम्मुवचयभवणं च दोससारो, एवं गुणदोसदिट्ठसारो दोसट्ठाणेसु सुहं णिवत्तति, गुणठाणेसु य सुहं पवतते । अहवा :- नयवादेसु एगतग्गाहे दिट्ठदोसो सुहं णिवत्तेति, प्रणेगंतगाहे य दिट्ठगुणो सुहं पवसति ।।६१६४।। प्रतो भण्णइ - अपुहुत्ते य कहते, पुत्ते वुक्कमेण वाययंतम्मि । पुव्वभणिता उ दोसा, बोच्छेदादी मुणेयव्वा ॥ ६१६५ ॥ अणुप्रमाणं प्रपुहत्तकाले पुहतं विणा कारणे ण कायव्वं, पुहत्ते णाकारणेण उक्कमकरणं कायव्वं । अहवा - करेति पडिसिद्ध तो इमातो घ्रादिसुत्ते जे वोच्छेदादिया दोसा बुत्ता ते भवति ।। ६१६४ ।। या अणहीए, चउण्ह दाराण अण्णतरगं तु । जे भिक्खू वाती, सो पावति आणमादीणि ॥ ६१६६ || सुयकडादी चरणाणुश्रोगे ददृग्वो, सेसं कंठ पाऊण य वोच्छेयं, पुव्वगए कालियाणुओगे य । सुत्तत्थजाणएणं, अप्पा बहुयं तु णायव्वं ॥ ६१६७॥ पूर्ववत् जे भिक्खू पत्तं वाइ वाएतं वा सातिज्जति ॥ | सू०||१६|| जे भिक्खू पत्तं वाएइ वाएंतं ण वा सातिज्जति ||०||२०|| पात्रं प्रायोग्यं प्रभाजनमित्यर्थः, तप्पडिपक्खो पत्तं । जे भिक्खू पत्तं वाइ वाएतं वा सातिज्जति ॥ सू० ||२१|| जे भिक्खू पत्तं ण वाएति ण वातं वा सातिज्जति ||०||२२|| प्राप्तकं क्रमानधीतश्रुतमित्यर्थः, पडिपक्खो पत्तं, माणादी चउलहुं वा । एते चउरो वि सुत्ता एगट्ठा वक्खाणिज्जं ति । केरिस अपात्रं ? उच्यते - तिंतिणिए चलचित्ते, गाणंगणिए य दुब्बलचरिते । आयरिय पारिभासी, वामावट्टे य पिसुणे य ॥ ६१६८|| २५५ तितिणी त्ति प्रस्य व्याख्या - दुविधो तितिणो दव्वे भावे य । तेंदुरुदारुयं पिव, अग्निहितं तिडितिडेति दिवस पि । यह दव्वनिंतिणो भावतो य आहारुवहिसेज्जासु ॥ ६१६६ || Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२२ जं अग्गीए खुढं तिडीतिडेति तं दव्यतितिणं । भावतितिणो दुखिहो वयणे रसे य, वयणे तितिको कयाकएसु किंचि भणितो चोदितो वा दिवसं पि तिडितितो पच्छति । रसतितिणो तिविहो - माहार उवहि सेवासु ॥६१६६॥ तत्थ आहारे इमो अंतोवहिसंजोयण, आहारे बाहि खीरदहिमादी। __ अंतो तु होति तिविहा, भायण हत्थे मुहे चेव ।।६२००॥ __ अाहारो दुविधो - बाहिं अंतो य । तत्थ बाहिं खीरं दधिं वा लंभित्ता हिंडतो चेव तंबीर कलमसालिप्रोदणं उप्पाएंतो खंडमादि वा संजोएंतो बाहिं संजोयणं करेति ।। मंतो ति वसहीए, सा विविधा - भायणे हत्ये मुहे ति वा । तत्थ भायणे - जत्थ कलमसालिमोदणो .. तत्थ खीरं दधिं वा पक्खिवति, हत्थे तलाहणादिणा पिंडविगतिमादियं हत्यट्टियं वेढेत्ता मुहे पक्खिपति, पुत्र मुहे तलाहणादि पक्खिवित्ता पच्छा पिंडविगति पक्खिवति ॥६२,०॥ एमेव उवहिसेज्जा, गुणोवगारी य जस्स जो होति । सो तेण जो अतंतो, तदभावे तितिणो णाम ॥६२०१।। उक्कोसं अतरकप्पं लद्ध उक्कोसं चेव चीलपट्टकं उप्पाएत्ता तेण सह परिभोगेण संजोएति । एवं सेसोहि पि, एवं सेज्ज प्रकवाडं ला कवाडेण सह संजोएति । जं जस्स माहारादि तस्स गुणोवकारी प्रलभंतो तितिणो भवति ।।६२०१।। इदाणि चलचिते त्ति अस्य व्याख्या गति ठाण भास भावे, लहुओ मासो य होति एक्कक्के । आणाइणो य दोसा विराहणा संजमायाए ॥६२०२॥ चपलो गतिमादितो चउब्विहो, चउसु वि पत्तेयं मासलहुं पच्छित्तं ॥६१०२॥ तत्थ गतिट्ठाणचवलाण इमा विभासा - दावद्दविओ गतिचवलो उ थाणचवलो इमो तिविहो । कुड्डादसई फुसती, भमति व पादे व णिच्छुभति ॥६२०३।। __ गतिचवलो दुयं गच्छति - तुरितगामीत्यर्थः । णिसण्णो पट्ठिबाहुऊरूकरचरणादिएहिं कुडधंभादिपहि णेगसो फुसइ, णिसण्णो य हत्थो भासणं अमुंचतो समंता भ्रमति । हत्यपादाण पुणो पुणो य संकोयणं विक्खेवं व करेति, गायरस वा कंपं ।।६२०३।। 'भासाचवलो इमो भासचवलो चउद्धा, असत्ति अलियं असोहणं वा वि । असमाजोग्गमसभं, अणहितं तु असमिक्खं ॥६२०४॥ १गा० १६६७ । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६२०० - ६२०६ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः प्रसन्भप्पलादी प्रसमिक्खियप्पलावी प्रदेसकालप्लावी । प्रसत्ति, श्रलियं जहा गो अश्व ब्रवीति, अघवा प्रसत्ति प्रसोभणं च प्रसन्भावत्थं, जहा श्यामाकतंदुलमात्रोऽयमात्मा । श्रपंडिता जे ते प्रसन्भा तेसि जं जं जोगं तं तं प्रसभं । अहवा - जा विदुसभा न भवति सा प्रसन्भा, तीए जं जोग्गं तं सब्भं तं च ग्राम्यवचनं कर्कश कटुकं निष्ठुरं जकारादिकं वा । बुद्धी हियं पुव्वावरं इहपरलोयगुणदोषं वा जो सहसा भणइ, सो समिक्खियप्पलावी ॥ ६२०४॥ प्रदेस कालप्लावी इमो - कज्जविवति दट्ठूण भणति पुव्वं मते तु विष्णातं । एवमिणं ति भविस्सति, अदेसकालप्लावी तु ||६२०५|| प्रदेसकालप्लावी - जहा भायणं पडिक्कमियं श्रट्टकरणं पि से कथं लेवितं रूढं, ततो पमाएण तं भग्गं ताहे सो प्रदेसकालप्लावी - "मए पुव्वं चेत्र णायं, जहा एयं भज्जि हिति" ॥६२०५ ॥ इमो भावचवलो - जं जं सुगमत्थो वा, उद्दिट्टं तस्स पारमप्पत्ती । अण्णोष्णसुतदुमाणं, पल्लवगाही उ भावचलो || ६२०६ || कंठ्या इदाणि गाणंगणितो छम्मासे अपूरेत्ता, गुरुगा बारससमा तु चतुलहुगा । तेण परं मासो उ, गाणंगणि कारणे भइतो || ६२०७|| णिक्कारणे गणातो भ्रष्णं गणं संकमंतो गाणंगणिश्रो, सो य उवसंपण्णो छम्मासे प्रपूरिता गच्छति तो चउगुरु, बारसवरिसे प्रपूरिता गच्छद तो चउलहुगा, वारसण्हं वरिसाणं परतो गच्छतस्स मासलहुं । एवं freकारणे गाणंगणितो । कारणे भतितो, भत्र भयणा सेवाए गाणंगणियत्तं कारणिज्जं । दारं ||६२०७॥ इदाणि दुब्बलचरणो - २५७ मूलगुण उत्तरगुणे, पडिसेवति पणगमादि जा चरिमं । धितिबलपरिहीणो खलु, दुब्बलचरणो श्रणट्ठाए ||६२०८|| सव्वजहष्णो चरणावराहो जहन्न पणगं भवति, तदादी जाव चरिमं ति पारंचितावराहं पडिसेवितो भट्ठा चरणदुम्बले ॥६२०८ || कि च पंचमहल्वयभेदो, छक्का यवहो तु तेणऽणुष्णातो । सुहसीलवियत्ताणं, कहेति जो पत्रयणरहस्सं ||६२०६ ॥ सुहे सीलं व्यक्तं येषां ते सुहसीलवियत्ता, ते पासत्यादी मंदधम्मा । ग्रहवा - मोक्खमुहे सीलं जं तम्मि विगतो प्राया जेसि ते सुहसीलवियत्ता ॥६२०६ ॥ १ गा० ६२०२ । २ गा० ६२०२ । ३ गा० ६१६७ । ४ गा० ६१६७ । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२२ आयरियपारिभासी इमोडहरो अकुलीणो त्ति य, दुम्मेहो दमग मंदबुद्धी य । अवि यऽप्पलाभलद्धी, सीसो परिभवति आयरियं ॥६२१०॥ इमे उहरादिपदभावेसु जुत्तं पायरियं कोइ प्रायबद्धो सूयाए असूयाए वा भणति । तत्य मूया परभावं भत्तववदेसेण भणंति-जहा अज्ज वि डहरा अम्हे, के पायरियत्तस्स जोग्गा ? असूया परं होणभावजुत्तं फुडमेव भणति । जहा को वि वयपरिणतो नि पक्कबुद्धी डहरं गुरु भणाति-अज्ज वि तुमं थणदुदगंधियमुहो रुवंतो भत्तं मगसि, केरिसमायरियत्तं ते ? एवं उत्तमकुलो हीणाहियकुलं, मेहावी मंदमेहं, ईसरो पब्वतिम्रो दरिद्दपव्वतिय, बुद्धिसंपण्णो मंदबुद्धि, लद्धिसंपणो मंदलद्धि । दारं ॥६२१०॥ इदाणि 'वामावट्टो एहि भणितो त्ति वच्चति, वच्चसु भणिो त्ति तो समुल्लियति । ___ जं जह भणितो तं तह, अकरेंतो वामवट्टो उ ॥६२११॥ वाम विवति त्ति वामवट्टो, विवरीयकारीत्यर्थः । दारं ॥६२११॥ इदाणि पिसुणो पीतीसुण्णो पिसुणो, गुरुगादि चउण्ह जाव लहुओ य । अहवा संतासंते, लहुओ लहुगा गिहं गुरुगा ॥६२१२॥ अलिएतरागि अक्खते पीतिसुण्णं करेति ति पिसुणो, प्रीतिविच्छेदं करेतीत्यर्थः । तत्य जइ प्रायरिपो पिसुणतं करेइ तो चउगुरु, उवज्झायस्स चउलहुँ, भिक्खुस्स मासगुरु, खुड्डुस्स मासलहूं। अहवासामण्णतो जति संजतो संजएसु पिसुणतं करेड तत्थ संतेण करेंतस्स मासलहुं, असंतेग चउलहुगा । मह संजतो गिहत्थेसु पिसुणतं करेइ एते चेव पच्छित्ता गुरुगा भाणियव्वा, मासग्ररु संते, असंते :: ॥१२१२॥ अहवा- इमे अपात्रा अप्राप्ताश्च इहं भणति, किंचि अश्वत्तस्स वि एत्येव भणति श्रादीअदिट्ठभावे, अकडसमायारिए तरुणधम्मे । गव्वित पइण्ण णिण्हयि, छेदसुते वज्जिते अत्थं ॥६२१३॥ ""प्रादीप्रदिट्ठभाव" त्ति अस्य व्याख्या आवासगमादीया, सूयकडा जाव आदिमा भावा । ते जेण होतऽदिट्ठा, अदिवभावो भवति एसो ॥६२१४॥ कंध्या ."अकडसामायारि" त्ति अस्य व्याख्या - दुविहा सामायारी, उवसंपद मंडली य वोधव्वा । अणलोइतम्मि गुरुगा, मंडलिसामायारिं अओ वोच्छं ॥६२१॥ १ गा० ६१६७ । २ गा० ६१६७ । ३ गा० ६१६७ । ४ गा० ६२०७ । ५ गा० ६२१३ । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६२.१०-६२२१] एकोनविंशतितम उद्देशक: २५१ उपसंपदाए तिविषा-णागोवसंपवा दंसणे य चरणे य । तं पण्णगणातो मागयं प्रणालोयावेत्ता मणुवसंपण्णं वा जं परिभुजंति वाएइ वा तस्स चउगुरुं। मंडलिसामायारी दुविषा-मुत्तमंडली पत्थमंडली व ।।६२१५॥ तेसु इमा विधी - सुत्तम्मि होति भयणा, पमाणतो या वि होइ भयणाओ । अत्यम्मि तु जावतिया, सुणेति थोवेसु अने वि ॥६२१६॥ दो चेव निसिज्जाओ, अक्खाणेक्का वितिज्जिया गुरुणो । दो चेव मत्तया खलु, गुरुणो खेले य पासवणे ॥६२१७॥ मज्जण निसेज्ज अक्खा, कितिकम्मुस्सग्गवंदणं जेटे । परियागजातिसु य सुणण समत्ते भासती जो तु ॥६२१८॥ सुत्तमंडलीए णिसेज्जा कजति वा ण वा, वसभाणुगो एगकप्पे चिद्वितो वारय ति । अहवामयणा सद्दे कंबलामो देंति वा न वा । अधवा - पमाणतो भयणा, जाहे गुरू णिसण्णो ताहे तस्स विहिणा कितिकम्मं बारसावतं देति, पच्छा अणुभोगस्स पाठवण उस्सग्गं करेंति, तं उस्सग्गं पारेता ततो गुरु दिट्टविहिं. परवखेसु करेत्ता पच्छा जेट्ठस्स वंदणयं देति, जहा बेटो परियागजाईसु ण घेत्तब्यो। सुणेत्ताण जो गहणधारणाजुत्तो समत्ते वक्खाणे जो भासती-पडिमणतीत्यर्थः सो बेट्ठो, ततो सुणेत्ता कालवेलाए अणुप्रोगं विसज्वेता गुरुस्स वंदणं देति, पुणो वंदित्ता कालस्स पडिक्कमति ॥६२१८॥ अवितहकरणे सुद्धा, वितहकरेंताण मासियं लहुगं । अक्खनिसिज्जा लहुगा, सेसेसु वि मासियं लहुगं ॥६२१६॥ जं सदोसं तं वितहकरणं, तत्थ मासलहुं, अक्खणिसिज्जाए विणा प्रत्थं कहेंतस्स सुर्णेताण चउलहुं, सेसेसु वि पमज्जणादि प्रकरणे मासलहुं चेव, एवं सव्वं पवितहं सामायारि जो न करइ सो प्रकडसामायारी। इदाणि ""तरुणधम्मे" ति - तिण्हारेण समाणं, होति पकप्पम्मि तरुणधम्मो तु । पंचण्ह दसाकप्पे, जस्स व जो जत्तिो कालो ॥६२२०॥ "गम" त्ति वारसा, पकप्पो णिसीहज्झयणं । तरुणो प्रविपक्वः, जस्स वा सुत्तस्स जो कालो भणितो तं प्रपूरतो तरुणधम्मो भवति । दारं ॥६२२०॥ इदाणिं "गम्विय" त्ति, अविणीतो णियमा गवितो त्ति । अतो भण्णति - पुरिसम्मि दुन्विणीए, विणयविहाणं ण किंचि आइक्खे । न वि दिन्जति आभरणं, पलियत्तियकण्णहत्थस्स ॥६२२१॥ विणयविहाणं सुमं, पलियत्ति तं छिण्णं । सेसं कंध्य । १ गा० ६२१ । २ गा० ६२१३ । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [सूत्र-२२ मद्दवकरणं णाणं, तेणेव य जे मदं समुचियंति । ऊणगमायणसरिसा, अगदो. वि विसायते तेसिं ॥६२२२॥ कंठ्या इदाणिं "१पइण्णो त्ति, सो दुविहो-पइण्णपण्हो पइण्णविज्जो य - सोतुं अणभिगयाणं, कति अमुगं कहिज्जए अत्थं । एस तु पइण्णपण्हो, पइण्णविज्जो उ सव्वं पि ॥६२२३।। गुरुसमीवे सुणेत्ता प्रणभिगताणं कहेति । अगधीयसुमो प्रगीतो अपरिणामगो य - एतेसि उद्देसुद्देसं कधितो पइण्णपणो भणइ । जो पुण प्रादिरंतेण सव्वं कहेति सो पइण्णविज्जो ॥६२२३।। तेसि कहंतस्स इमे दोसा - अप्पच्चरो अकित्ती, जिणाण ओवातमइलणा चेव । दुल्लभबोहीयत्तं, पावंति पइण्णवागरणा ॥६२२४॥ सो अपात्र: अप्राप्तः, अव्यक्तानां च काले प्रविधीए छेदसुतादि अणरुहस्स तं कहिज्जंतं अप्पच्चयं करेति। कहं ? उच्यते - एते च्चिय पुव्वं उस्सग्गे पडिसेहे कधिता इह प्रववादे अणुण्णं कहेंति, एवं अप्पच्चो अविस्सासो भवति, एते वि घम्मकारिणो ण भवतीत्यर्थः । पडिसिद्धसमायरेण व्रतभंगो व्रतभंगकारिणो ति अकित्ती। जिणाण प्राणा प्रोवातो भण्णति,तस्स मतिलणा पडिसिद्धस्स अणं कहतेण पुन्वावरविरुद्धं उम्मत्तवयणं च दंसियं । सुयधम्मं च विराहेंतो दुल्लभबोधि णिवत्तैइ पइण्णपण्हो पइण्णदिज्जो वा ॥ दारं ।।६२२४।। इयाणि २णिण्हयि त्ति - सुत्तत्थतदुभयाई, जो घेत्तुं निण्हवे तमायरियं । लहु गुरुग सुत्त अत्थे, गेरुयनायं अबोही य ॥६२२॥ सुत्तस्स वायणायरियं णिण्हवति : : । प्रत्यस्स वायणायरियं निण्डवति : : । “गेरुय” त्ति परिव्राजको, जहा तेण सो हाविमो निण्हविप्रो पडिप्रो य असण्णातो । एवं इह णिण्हवेंतस्स छलणा, परलोगे प्रबोधिलाभो । एते सव्वे तितिणिगादिगा अदिदुभावादिगा यं अप्पत्तभूता काउं अवायणिज्जा ॥६२२५।। कि अकज्जं?, उच्यते - उवहम्मति विण्णाणे, न कहेयव्वं सुतं च अत्थं वा । न मणी सतसाहस्सो, श्रावज्जति कोच्छुभासस्स ॥६२२६।। उवहयं ति - सदोसं स्वसमुत्था मति, गुरूवदेसेण जा मती तं विण्णाणं । अहवा - मतो चेव विणाणं ।. भासो त्ति - संकुतो। कोच्छुभो मणी सतसाहस्सो कोच्छभासस्स अयोग्यत्वात् णो विज्जइ, ॥६२२६।। एवं जम्हा तितिणिगादि अजोग्गा तम्हा ण कहेयव्वं, आयरिएणं तु पवयणरहस्सं । खेत्तं कालं पुरिसं, नाऊण पगासए गुज्झं ॥६२२७॥ १ गा० ६२१३ । २ गा० ६२१३ । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६२२२-६२३३ ] एकोनविंशतितम उद्देशक: परहस्तं भववादपदं सव्वं वा छेदसुतं । श्रववायतो खेत्तकालपुरिसभावं च जाउं प्रपात्रं पि वाज्ज | खेत्तो श्रद्धाणे लद्धिसंपण्णो समत्यो गन्छुवग्गहकरोति काउं प्रपात्रं तं पि वाएज्जति । एवं काले ft प्रमादिसु परिणामपुरिसो वा वाइज्जति । भावे गिलाणादियाण उवग्गहकरो गुरुस्स वाऽसहायस्स सहाम्रो । वोच्छेते वा प्रसइ पत्ते प्रपत्ते वि वा एज्जा । एवमादिकारणेसु भरतदुट्ठो पवयणरहस्सं पवाएज्ज ||६२२७॥ एते होंति अपत्ता, तव्विवरीता हवंति पत्ता उ । वाएंते य पत्तं, पत्तमत्राएंते आणादी || ६२२८|| जे एते तितिणिगादी अपत्ता, एतेसि परिपक्खभूता सव्वे पात्राणि भवंति । लम्हा प्रपात्रे बहू दोसा तम्हा ण वायव्वं, पात्र वाएयव्वं, भ्रष्णहा करणे प्राणाइया दोसा ||६२२८|| सुविसते इमं च्छित्तं - अव्वत्ते य पत्ते, लडुगा लहुगा य होंति अप्पत्ते । लहुगा य दव्वर्तितिणे, रसतिंतिणे होतऽणुग्वाया ॥ ६२२६॥ वयसा भव्यत्तं प्रपातं प्रप्राप्तं उवकरणं तितिणि च एते वाएंतस्स चउलहुगा । रसत्ति ब्राहारतितिषे वउगुरुगा भवति, मा उत्सग्गणिच्छिउं ॥ ६२२६॥ मरेज्ज सह विज्जाए, कालेणं आगते विद् । अप्पत्तं च ण वातेज्जा, पत्तं च ण विमाणए ||६२३०|| काले गए त्ति प्राधानकालादारभ्य प्रतिसमयं कालेनागतः यावन्मरणसमयः, मत्रान्तरे प्रपात्रं न वाचयेत्, पात्र न न विमानयेदिति ।। ६२३०॥ अपात्रस्य इमो प्रववातो - बितियपदं गेलणे, श्रद्धाणसहाय असति वोच्छेदे । एतेहि कारणेहिं, वाएज्ज विदू अपत्तं पि ॥ ६२३१ ॥ जहा पूर्व तहा वक्तव्यं । अहवा - अपात्रे अण्णं इमं प्रववादकरणं वाएंतस्स परिजितं, अण्णं पडिपुच्छगं च मे णत्थि । मा वोच्छिज्जतु सव्वं, वोच्छेदे पदीवदिट्ठतो ॥६२३२॥ २६१ जस्स समोवातो गहियं सो मतो, भण्णम्रो तस्स पडिपुच्छगं पि णत्थि, अतो परिजयट्टा प्रपात्रं पि वाएजा । सयं वा मरतो वत्तस्स प्रभावे मा सव्व सव्वहा वोच्छिउत्ति, वोच्छिष्णे पदीवदितो ण भवति, तम्हा प्रपत्तं वाएज । प्रपत्ताओ पत्तेसु संचरिस्संति पदीवदितेज-जह दीवा दीवसयं० कंख्या ।। ६२३२॥ जो पात्रं ण वाएति तस्सिमे दोसा सो पवयणहाणी, सुत्तत्थाणं तहेव वोच्छेदो । पत्तं तु श्रवाएंते, मच्छरिवाते सपक्खे वा ॥ ६२३३॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ समाष्य-पूर्णिके निशीथसूत्रे ! मूत्र २३-२७ प्रवाएंतस्स अयसो ति - एस दुवादी ईहति वा किंचि, मुहा वा सव्वं कितिकम्म कारवेषि, भावसंगहेणं वा पकजं तेणं गच्छो से सयहा फुट्टो, एवमादि अयसो। पश्यणं वा उब्वण्णो, तस्स हाणी। कहं ?, आगमसुण्णे तित्थे ण पव्वयति कोति । सेसं कंठं ॥६२३३।। कारणेन पात्रमपि न वाचयेत् - दव्वं खेत्तं कालं, भावं पुरिसं तहा समासज्ज । एतेहिं कारणेहि, पत्तमवि विद् ण वाएज्जा ॥६२३४॥ "दव्वे खेत्ते य" त्ति अस्य व्याख्या - आहारादीणऽसती, अहवा आयंबिलस्स तिविहस्स । खेत्ते अद्धाणादी, जत्थ सज्झाओ ण सुज्झज्जा ॥६२३॥ प्रायंबिलवारए प्रायंबिलम्स प्रसति ण वाएति, तिविहं - मोदणकुम्माससत्तुगा वा । खेत्तमो अदाणपडिवण्णो ण वाएति, जत्थ वा खेत्ते सज्झामो ण सुज्झति, जहा वइदोसभगवती | सुज्झति ॥६२३५।। कालभावपुरिसे य इमा विभासा - असिवोमाईकाले, असुद्धकाले व भावगेलण्णे । आतगत परगतं वा पुरिसो पुण जोगमसमत्थो ॥६२३६।। असिवकाले मोमकाले य सुदे वा काले प्रसज्झाइए ण वाएजा। भावे अप्पणा गिलाणो "परगयं व" ति वाइजमाणे वा गेलण्णं णालं, अहवा - परगिलाणवेयावच्चवावडे पुरिसो वा जोग्गस असमत्थो ण वाइजद, एवमादिकारणेहिं पत्तो वि ण वाइबाइ ॥६२३६॥ जे भिक्खू अव्वत्तं वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जइ ॥सू०॥२३॥ जे भिक्खू वत्तं न वाएइ, न वाएंतं वा सातिज्जह ॥सू०॥२४॥ अव्वंजणजातो खलु, अव्वत्तो सोलसह वरिसेणं . तन्विवरीतो वत्तो, वातेतिगरेण आणादी ॥६२३७॥ जाव कक्खादिसु रोमसंभवो न भवति ताव अम्वत्तो, तस्संभवे वत्तो। अहवा - जाव सोलसवरिसो ताव अव्वतो, परतो वत्तो । जइ प्रवत्तं वाएति, इयरं ति वत्तं न वाएति । तो प्राणादिया दासा चउलहुं च ॥६२३७॥ अव्वत्ते इमो अववादो णाऊण य वोच्छेदं, पुव्वगते कालियाणुयोगे य । सुत्तत्थ जाणएणं, अप्पाबहुयं मुणेयव्वं ॥६२३८।। अववादे वत्तो इमेहि कारणेहिं न वाएज्जा - दव्वं खेत्तं कालं, भावं पुरिसं तहा समासज्ज । एतेहिं कारणेहिं, वत्तमवि विद् ण वाएज्जा ॥६२३६॥ पूर्ववन Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकोनविंशतितम उद्देशक: जे भिक्खू पत्तं वाइ, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ | सू०||२५|| जे भिक्खू पत्तं न वाएइ न वाएंतं वा सातिज्जइ ||०||२६|| प्राप्तं एयरस प्रत्यो पात्रसूत्रे गत एव, "दिट्ठ भावे" त्ति । तहा नि इह प्रसुष्णत्यं भण्णति भाष्यगाथा ६२३४-६२४८ ] प्रव्वतसुत्तस्स । प्रातसूत्रे चउभंगो भाणियव्वो परियाएण सुतेण य, वत्तमवत्ते चउक्क भयणा उ । श्रव्वत्तं वाएंते, वत्तमवाएंति आणादी || ६२४० ॥ - परिया दुविहो - जम्मणश्रो पवज्जाए य । जम्मणश्रो सोलसहं वरिमाणं भारतो भव्वत्तो, पव्वज्जाए तिन्हं वरिसागं पकप्पस्स अव्वतो । जो वा जस्स सुत्तस्स कालो वृत्तो तं प्रपावेंतो भव्वतो, सुएन श्रावस्ती प्रणधीए दसवेयालीए श्रव्वतो, दसवेयालीए प्रणधीए उत्तरज्झयणाणं भव्वत्तो, एवं सर्वत्र । एत्थ परियायते च भंगो कायव्वो । पढमभगो दोसु वि वत्तो, बितिम्रो सुएण श्रव्वतो, ततियो वण प्रव्त्रत्तो, चरिमो दोहि वि । प्रव्त्रते वाएंतस्स पढमभंगिल्लं अवाएंतस्स श्राणादिया य दोसा चउलहुं च ।। ६२४० ।। प्राप्तोपि वायव्वो इमेहि कारणेहिं - णाऊण य वोच्छेद, पुव्वगए कालियाणुयोगे य । एएहिं कारणेहिं, अव्वत्तमवि पवाएज्जा ॥ ६२४१ ॥ पूर्ववत् प्राप्तं पि न वाएइ, इमेहिं कारणेहिं - दव्वं खेत्तं कालं, भावं पुरिसं तहा समासज्ज । एहि कारणेहिं, पत्तमत्रिवि ण वाएज्जा ! | ६२४२ ॥ पूर्ववत् अव्वत्ते अप्राप्तछेदसुतं वाएज्जमाणे इदं दोसदंसगं उदाहरणं - श्रामे घडे निहित्तं, जहा जलं तं घडं विणासेति । इय सिद्ध तरहस्सं, अप्पाहारं विणासेइ || ६२४३|| १ गा० ६२१३ । निहितं पवित्तं सिद्धं कहियं । श्रथा श्राहारता जत्थ तं प्रप्पाहारं, अप्पधारणसामर्थ्य मित्यर्थः । जे भिक्खु दोहं सरिसगाणं एक्कं संचिक्खावेड, एक्कं न संचिक्खावेइ, एक्कं वाएइ, एक्कं न वाएइ, तं करतं वा सातिज्जति ॥ सू० ||२७|| सरिस त्ति तुल्ला, तेसि उ तुल्लत्तणं वक्खमाणं । तं सरिसं एवकं वाएइ, एक्कं न संचिक्ख: वेति, तस्स प्राणादिया दोसा चउलहुं च । एगं संचिकखाए, एगं तु तर्हि पवायए जो उ । दाहं तु सरिसयाणं, सो पावति आणमादीणि ॥ ६२४४ || गतार्था २६३ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२६ सादृश्यं इमेहिं संविग्गा समगुण्णा, परिणामग दुविह भूमिपत्ता य । सरिस अदाणे रागो, बाहिरयं णिज्जरा लाभो ॥६२४५॥ दो वि संविग्गा सति संविगते समणुण्णत्ति, दो वि संभोइता सति संविग्गसमणुष्णाते, दोवि परिणामगा सति संविग्गसमणुण्णापरिणामगते । दो वि दुविधभूमीरत्ता । दुविधभूमी - वएण सुएण य । वएण वंजणजातका, सुएण जस्स सुत्तस्स जावइए परियाए वायणा वुत्ता तं दो वि पत्ता, जहा आयारस्स तिणि संवच्छराणि, सूयगडदसाण पंचसंवत्सराणि,एवमादिसरिसाणं एक्कं संचिक्खावेइ,एवकं वाएइ सुत्ते::। प्रत्ये :: । सरिसाण चेव एक्कस्स अदाणे दोसो लब्भति, बितियस्स दाणे रागो लभति । जरस ण दिज्जति सो बाहिरभावं गच्छइ, तप्पच्चयं च णिज्जरं ण लन्भति, अण्णं च सो पदोसं गच्छति, पदुट्ठो वा जं काहिति तष्णिप्फण्णं ॥६२४५|| भवे कारणं जेण एक्कं संचिक्खावेज्ज - दव्वं खेत्तं कालं, भावं पुरिसं तहा समासज्ज । एएहि कारणेहिं, संचिक्खाए पत्राए वा ॥६२४६।। दव्वखेत्तकालभावाण इमा विभासा आयंबिलणिव्धितियं, एगस्स सिया ण होज्ज वितियस्स । एमेव खेत्तकाले, भावेण ण तिण्ण हटेक्को ॥६२४७॥ दब्वं प्रायंबिलं णिन्वितियं वा असणादि दोण्ह वि ण पहुप्पति, एवं कक्खडखेते वि असणादिगं ण पहुप्पति, प्रोमकाले वि दोण्हं ण लभति. भावे एक्को ण तिणो ति गिलाणो, हट्टे त्ति प्रगिलाणो, तं वादेति गिलाणं सचिक्खावेइ ॥६२४७।। अहवा सयं गिलाणो, असमत्थो दोण्ह वायणं दाउं । संविग्गादिगुणजुओ, असहु पुरिसो य रायादी ॥६२४८॥ पुव्वद्ध कंठं । अहवा - भावतो संविग्गादिगुणजुत्ताण वि तत्थेकको असहू । असहु त्ति सभावतो चेव जोग्गस्स असमत्यो राया च रायमंती, एवमादी पुरिसो कुस्सुयभावितो जाव भाविज्जति ताव संचिक्खाविज्जति ॥६२४८॥ जोधरिज्जति, सो इमं वुत्तं धारिज्जति - अण्णत्थ वा वि णिज्जति, भण्णति समत्ते वि तुझ वि दलिस्सं । अण्णे ण वि वाइज्जति, परिकम्म सहं तु कारेंति ॥६२४६।। जइ वा असहू तो तं परिकम्मणेण सहू करेंति जाव, ताव अरेति । इयरं पुण वाएइ, सेसं कंठं । जे भिक्खू पायरिय-उवज्झाएहिं अविदिन्नं गिरं आइयइ, आइयंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥२८॥ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६२४५-६२५५] एकोनविशतितम उदेशक: २६५ ___गिर त्ति वाणी वयणं, तं पुण सुने चरणे वा। जो तं प्रायरिय-उवझाएहि.प्रदत्तं गेण्हति तत्थ सुत्ते छ। प्रत्ये डा। चरणे जुत्तरगुणेसु प्रणेगविहं पच्छित्त ।।६२४६॥ दुविहमदत्ता उ गिरा, सुत्त पडुच्चा तहेव य चरित्तम्मि । सुत्तत्थेसु सुतम्मि, भासादोसे चरित्तरिम ॥६२५०|| जा सुत्ते गिरा सा दुविधा – सुत्ते अत्थे वा । चरणे सावज्जदोसजुत्ता भासा ॥६२५०।। कहं पुण सो अदिण्णं आइयत्ति ?, उच्यते - रातिणियगारवेणं, बहुस्सुतमतेण अन्नतो वा वि। . गंतुं अपुच्छमाणो, उभयं पऽण्णावदेसेणं ॥६२५१॥ तस्स किंचि सुयत्यसदिटुं, सो सवरातिणियो हं लि गारवेण प्रोमे ण पुच्छति, सीसत्तं वा न करेइ, सव्वबहुसुप्रो वा हं भणामि, कहमणं पुच्छिस्सं एवमादिगारवट्ठितो प्रणतो वि ण गच्छति, गतो वाण पुच्छति, ताहे जत्थ सुत्तत्याणि वाइज्जति तत्थ चिलिमिलिकुडकडतरिमो वा ठिो अण्णावदेसेण वा गतागतं करेंतो सुर्कोति, उभयं पि अण्णावदेसेणं ॥६२५१॥ एसा सुत्त अदत्ता, होति चरिते तु जा ससावज्जा। गारत्थियभासा वा, ढङ्कर पलिकुंचिता वा वि ॥६२५२॥ चरित्ते ढड्डरसरं करेति, पालोयणकाले पलिउंचेति, कताकते वा अत्थे पलिकुंचति । सेसं कंठं २५२।। बितिओ वि य आएसो, तवतेणादीणि पंच तु पदाणि । जे भिक्खू आतियती, सो पावति आणमादीणि ॥६२५३।। तवतेणे वतितेणे, रूवतेणे य जे नरे । आयारभावतेणे य, कुम्वई देवकिव्विसं ।। (दत प्र० ५ गा० ४६) एतेसि इमा विभासा--- खमश्रो सि? आम मोणं, करेति को वा वि पुच्छति जतीणं । धम्मकहि-वादि-वयणे, रुवे णीयल्लपडिमा वा ॥६२५४|| सभावदुब्बलो भिक्खागमो अण्णत्थ वा पुच्छियो “तुमं सो खमयो त्ति भते ?" ताहे सो भणतिप्राम, मोणेण वा अच्छति । अहवा भणति - को जतीसु खमणं पुच्छ । वइतेणे त्ति "तुम सो धम्मकही वादी मित्तिमो गणी वायगो वा ?" एत्थ वि भणति - प्राम, तुहिकको वा अच्छति त्ति । भणाति रूवे - "तुम प्रम्ह सयगो सि ?' अहवा - "तुम सो पडिम पडिवण्णमासी ?" एत्थेव तहेव तुहिक्कादी अच्छति।।६२५४।। बाहिरठवणावलियो, परपच्चयकारणाओ आयारे। महुराहरणं तु तहिं, भावे गोविंदपव्वज्जा ॥६२५॥ अायारतेणे मथुरा कोंडयइल्ला उदाहरणं ते भावतुण्णा । परप्पईतिणिमित्त बाहिरकिरियासु तुछ उज्जता जे ते मायारतणा । भावतेणो जहा गोविंदवायगो वादे णिज्जियो सिद्धतहरणट्टयाए पयज्जम ३४ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र २६-४० न्भुवगतो, पच्छा सम्मत्तं पडिवण्णो । एवमादि गिराणं अदित्ताणं णो गहणं कायव्वं । एक्कं ताव णियन्भंसो कतो भवति । मुसावादादिया च चरणभंसदोसा ॥६२५५।। एतेसामण्णतरं, गिरं अदत्तं तु आतिए जो तु । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्त विराधणं पावे ॥६२५६॥ कंठ्या प्रावण्णसड्ढाण पच्छित्तं च ॥ भवे कारणं ते अदत्तं पि ग्रादिएजा - वितियपदसणप्पज्झ, आतिए अविकोविते व अप्पज्झ । दुद्दाइ संजमट्ठा, दुल्लभदव्वे य जाणमवी ॥६२५७।। खित्तादिचितो वा प्राहाएज्ज, सेहो दा अजाणतो, ''दुहाइ" ति उवसंपन्नाण वि न देई तस्स, उवसंपणो अणुवसंपण्णो वा जत्य गृणे इ वक्खाणे इ वा कस्सति तत्ण कुडुतरिप्रो सुणति गयागयं व करेंतो। "संजमहेउं व" ति अच्छितो क इ मिया दिट्ठ त्ति पुच्छितो, दिवा वि न दिट्ठ ति भणेज्ज । जत्थ वा संजयभासाते भासिज्जमाणा तागारिका संजयभासाम्रो गेण्हेज्जा तत्थ अविदिण्णाते गारत्यिगभासाए भासेज्जा। प्रायरियस्स गिलाणस्स वा सयपागेग वा सहस्तपागेण वा दुल्लमदव्वेणं कज्जं तदट्ठा णिमित्तं पउजेज, पम्म वा किंचि संथववयणं भणेज्ज, तट्ठा चेव तेणादि वा पंचपदे भणेज्ज ॥६२५७॥ जे भिक्खू अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जति सू०॥२६॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारन्थियं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा सातिज्जइ ।।सू०॥३०॥ जे भिक्खू पासत्थं वाएइ, वाएंतं या सातिज्जइ ॥सू०॥३१॥ जे भिक्खू पासत्थं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥२०॥३२॥ जे भिक्खू ओसन्नं वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जति सू०॥३३॥ जे भिक्खू ओसन्नं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा सातिज्जइ ॥सू०॥३४।। जे भिक्खू कूसीलं वाएइ, वाएंतं वा मातिन्जइ ।। सू०॥३॥ जे भिक्खू कुसीलं पडिच्छद्द पडिच्छंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥३६॥ जे भिक्खु नितियं वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जति ॥०॥३७॥ जे भिक्खू नितियं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा सातिज्जइ ॥सू०॥३८॥ जे भिक्खू संसतं वाएइ, वाएंतं वा सातिज्जइ ।।सू०॥३६॥ जे भिक्खू संसत्तं पडिन्छइ, पडिच्छंतं वा साइन्जइ ।।सू०॥४०॥ तं सेवमाणे आवज्जति चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यमाथा ६२५६-६२६२ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः एतेसि वायणं देति परिच्छति । भावतेणो वा सव्वेसु प्रहाच्छंदवज्जिएस चउलहुं, अहवा - प्रत्ये डू। प्रहाच्छंदे चउगुरु सुते. प्रत्थे । अण्णपासंडी य गिही, सुहसीलं वा वि जो पवाएज्जा। अहव पडिच्छति तेसिं, चाउम्मासाओ पोरिसिं ॥६२५८॥ पोरिसि त्ति सुत्तपोरिसिं प्रत्थपोरिसिं वादेतस्स, तेसि वा समीवातो पोरिसिं करेंतस्स, अहवा - एक्को पोरिसिं वाएंतस्स । अणेगासु इमं - सत्तरत्तं तवो होति, ततो छेदो पहावती। छेदेण छिण्णपरियाए, ततो मूलं ततो दुगं ॥६२५६॥ सत्तदिवसे चउलहुं तवो, ततो एक्कं दिवसं चउलहुच्छेदो, ततो एक्केक्कदिवस मूलणवदुपारंचिया । अहवा - तवो तहेव चउलहुं छेदो सत्तदिवसे । सेसा एक्केक्कदिवसं । अहवा- तवो तहेव छगुरुछेदो सत्तदिवमे, सेसा एक्केक्कं । अहवा - चउलहु तवो सतदिवसे, ततो चउगुरू तवो सत्तदिवसे ?, ततो छल्लहू तवो सत्तदिवसे, ततो छग्गुरू तवो सत्तदिवसे, ततो एते चेव छेदो सत्त सत्त दिवसे, ततो मूलऽणवटुपारंचिया एक्कक्कदिणं । अहवा - ते च्चेव चउलहुगादि वा सत्त दिवसिगा, ततो छेदा लहुपणगादिगा सत्त सत्त दिवसिगा सत्त दिवसे णेयध्वा जाव छग्गुरू, ततो मूलऽणवट्ठपारंचिया एकक्कदिवसं ॥६२५६॥ गिहिअण्णतित्थिएसुइमे दोसा मिच्छत्तथिरीकरणं, तित्थस्सोभावणा य गेण्हंते । देंते पवंचकरणं, तेणेवऽक्खेवकरणं च ॥६२६० कह मिच्छत्तं थिरतरं ?, उच्यते - ते तं दटुं तेसिं समीवे गन्छत मिच्छट्ठिी चितेति - इमे वेव पहाणतरा जाता, एते वि एतेसि समीवे सिक्खंति । लोगो दर्छ भणाति - एतेसिं प्रप्पणो पागमो त्थि, परसंतिताणि सिक्खंति । निस्सारं पवयणंति प्रोभावणा । अह तेसिं देति तो ते सद्दसत्थादिनाविता महाजणमध्ये वटै चोरं खुज्जाविलियासणए करीसए पिलुपए ति एवमादिपवंचणं करेंति उड्डाहं न । अहवा - तेणेव सिक्खिएण प्रक्खेवे त्ति चोयणं करेज्ज दूसेज वा ।।६२६०।। गिहिअण्णतित्थियाणं, एए दोसा उ देंत गणांते । गहण-पडिच्छणदोसा, पासत्थादीण पुन्बुत्ता ॥६२६१॥ कंठ्या । णवरं - पासत्थादिसु गहणपडिच्छणदोसा जे ते पणारसमे उद्देसगे वुत्ता ते इन्वा । वंदण-पसंसणादिया तेरसमे । .जम्हा एते दोसा तम्हा गिहिण्यतित्थिया मा ७ वाएयव्वा ।।६२६१॥ परपासंडिलक्खणं - जो अण्णाणं मिच्छत्तं कुव्वंतो कुतिस्थिए वाएति, जिणवयणं च णाभिगच्छति सो परपासंडी। जो पुण गिहि-अण्णतिथिो वा इमेरिसो णाणे चरणे परूवणं, कुणति गिही अहव अण्णपासंडी। एएहि संपउत्तो, जिणवयणं सो सपासंडी ॥६२६२॥ णाणदंसणचरित्ताणि पस्वेति, जिणवयणं च रोएति सो सपासंडी वेव, सो वाइनइ जं तस्स जोग्गं । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीषसूत्रे [सूत्र-४० एएहि संपउत्तो, जिणवयणमएण सोग्गतिं जाति । एएहि विप्पमुक्को, गच्छति गति अण्णतित्थीणं ॥६२६३॥ जो अण्णतित्थियाणुरूवागिती तं गच्छति । सेस कंठ्य । भवे कारणं वाएज्जा वि - पव्वज्जाए अभिमुहं, वाएति गिही अहव अण्णपासंडी। अववायविहारं वा ओसण्णुवगंतुकामं वा ॥६२६४॥ गिहिं अण्णपासंडिं वा पध्वजाभिमुहं सावगं वा छज्जीवणिय त्ति जाव सुत्ततो, प्रत्थतो जाव पिंडेसणा, एस गिहत्थाविसु अववादो। इमो पासत्यादिसु प्रववादो त्ति उवसपदा उज्जयविहारीणं उवसंपण्णो जो पासत्थादी सो अववादविहारठितो तं वा वाएज्ज । अहवा - पासत्यादिगाण जो संविग्गविहारं उवगंतुकामो - अन्भुट्ठि उकाम इत्यर्थः । तं वा पासत्यादिभावरहितं चेव वाएजा, जाव अन्भुट्टेति ॥६२६४॥ एवं वायणा दिट्टा, तेसिं समीवातो गहणं कहं होज्ज ?, उच्यते - बितियपद समुच्छेदे, देसाहीते तहा पकप्पम्मि । अण्णस्स व असतीए, पडिक्कमंते व जयणाए॥६२६॥ जस्स भिवखुस्स णिरुद्धपरियाप्रो वदृति, णिरुद्धपरियागो णाम जस्स तिणि वरिसाणि परियायस्स संपुण्णाणि, तस्स य प्रायारपकप्पो अघिजियव्वो । पायरिया य कालगता, एसेव समुच्छेदो, अहवा - कस्साह साहुस्स प्रायारपकप्पस्स देसेण प्रणधीते समुच्छेदो य जातो, एतेसि सव्वो आयारपकप्पो पढमस्स बितियस्स देसो र वस्सं अहिज्जियन्बो ॥६२६५।। सो कस्स पासे अहिज्जियव्वो?, उच्यते - संविग्गमसंविग्गे, पच्छाकड सिद्धपुत्त सारूवी। पडिकंते अब्भुठिते, असती अण्णत्थ तत्थेव ॥६२६६।। सगच्छे चेव जे गीयत्था, तेसिं असति परगच्छे संविग्गमणुनसगासे, तस्स असति ताहे मण्णस्स, "अण्णम्स वि असतीए" ति अण्णसंभोइयस्स वि असति णियादिउक्कमेणं असंविग्गेसु । तेसु वि णितियादिट्ठाणामो प्रावकहाए पडिक्कमावितो, अणिच्छि जाव अहिजइ ताव पडिक्कमावित्ता तहावि प्रणिच्छे तस्स व सगासे अहिज्जइ । सव्वस्थ वंदणादीणि ण हावेइ । एसे व जयणा । तेसि असतीए पच्छाकडो त्ति जेण चारित्तं पच्छाकडं उन्निवखंतो भिवखं हिंडइ वा न वा। सारूविगो पुण सुक्किल्लवत्थपरिहिनो मुडमसिहं धरेइ प्रभजगो म पत्तादिसु भिक्खं हिंडइ । अण्णे भण्णंति - पच्छाकडा सिद्धपुत्ता चेव, जे असिहा ते सारूविगा। एएसि सगासे सारूविगाइ पच्छाणुलोमेण अधिजति, तेसु सारूविगादिसु पडिक्कते अब्भुट्ठिए त्ति सामातियकडो व्रतारोपिता अब्भुट्ठिो, अहवा - पच्छाकडादिएसु पडिक्कतेसु । एते सव्वे पासत्यादिया पच्छाकडादिया य प्रणं खेतं णेउ पडिक्कमाविजति, प्रणिच्छेमु तव त्ति ॥६२६६।।। “२देसाहीते" त्ति अस्य व्याख्या - देसो सुत्तमहीयं, न तु अत्थतो व असमत्ती । असति मणुण्णमणुण्णे, इतरेतरपक्खियमपक्खी ॥६२६७॥ गा० ६२६५ । २ गा० ६२६५ । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाचा ६२६३-६२७१ ] एकोनविंशतितम उद्देशकः पुग्वद्धं कंठं । “प्रसति भणुष्णमणुष्णे" त्ति पयं गयत्थं ति । " इतरेतर" त्ति प्रसति णितियाण इतरे संसत्ता, सि प्रसति इतरे कुसीला एवं गेयव्वं, एसो वि प्रत्थो गतो चेव । तेसु वि जे पुव्वं संविपक्खिता पच्छा संविग्गपलिए इमेरिसा जे पच्छाकडादिया मुंडगा ते । पच्छाकडादिया जावज्जीवाए पडिक्क माविज्जति, जावज्जीवमणिच्छेसु जाव महिज्जति ।। ६२६७।। तहवि णिच्छेसु - मुंडं च धरेमाणे, सिहं च फेडत णिच्छ ससिहे वी । लिंगेण सागरिए, ण वंदणादीणि हावेति ॥ ६२६८|| जति मुंड घरेति तो रोहरणादी दव्वलिंगं दिज्जति जाव उद्देसाती करेइ, ससिहस्स वि सिहं फेडे एमेव लिंगं दिजति सिहं वा णो इच्छति फेडेउं तो ससिहस्सेव पासे प्रधिजति, सलिंगे ठिम्रो चेव सगारिए पदेसे सुयपूय ति काउं वंदणाइ सव्वं ण हावेइ, तेण विचारेयव्वं ॥ ६२६८ ।। पच्छाकडयस्स पासत्थादियस्स वा जस्स पासे प्रधिज्जति । तत्थ वेयावच्चकरणे इमो विही - आहार उवहि सेज्जा, एसणमादीसु होति जतियव्वं । अणुमयण कारावण, सिक्खति पदम्मि सो सुद्धो ||६२६६॥ जति तस्स श्राहारादिया प्रत्थि तो पहाणं । श्रह णत्थि ताहे सव्वं प्रप्वणा एसणिज्जं प्राहाराति उप्पा एव्वं ॥ ६२६६ ॥ अप्पा असमत्थो " चोदेति से परिवारं करेमाणे भणाति वा सङ्गृ । अव्वोच्छित्तिकरस्स उ, सुयभत्तीए कुणह पूयं ॥ ६२७० ॥ दुविहासती य तेसिं, आहारादी करेंति सव्वं तो । पणहाणी य जयंती, त्तट्ठाए वि एमेव ॥ ६२७१॥ २६६ जो तस्स परिवारो, पासत्यादियाण वा सीसपरिवारों, सड्ढा वि संता ण करेंति, प्रसंता वा णत्थि सड्डा, एवं प्रसतीए सो सिक्खगो प्राहारादी सव्वं पणगपरिहाणीते जयणाते तस्स विसोहिकोडीहि सयं करेंतो सुज्झति । प्रप्पणो वि एमेव पुव्वं सुद्धं गेहति प्रसति सुद्धस्स पच्छा विसोहिकोडीहि गेव्हंतो सिक्खद । अववादपण विसुज्झइ ॥ ६२७१ ॥ ।। इति विसेस - णिसीहचुण्णीए एगूणवीसइमो उद्देस समत्तो ॥ " Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विंशतितम उद्देशकः भणि गुणवीसइमो उद्दे सम्रो। इदाणि वीसइमो भण्णइ । तस्सिमो संबंधो - हत्थादि - वागणंते, पडिसेहे वितहमाय तस्स | वीसे दाणाऽऽरोवण, मासादी जाव छम्मासा ||६२७२ ॥ सहत्थकम्मत्तं जाव वायतं सुत्तं एत्थ वितहमायरंतस्स दिट्ठमेयं एगुणविसाए वि उद्देसेसु प्रावजगपच्छित्तं, तेसि श्रावणणाणं वीसतिमउसे दागपच्छित्तेगं वबहारो भगति दाणतेण पच्छित्तस्स आरोवणा दाणारोवणा । प्रारोवणत्ति - चडावणा, ग्रहवा - जं दव्वादिपुरिसविभागेण दाणं सा श्रारोवणा । तं च कस्स ? कहं ? प्राथरियमुवज्झायाणं कताकतकरणाणं, भिक्खुण वि गीतमगीताणं, थिरकयकरणसंघयणसंपणारा य गच्छंताणं च सव्वेसि तेसि इह दाणपच्छितं भण्णइ, तं च इह मुत्ततो मासादी जाव दम्मासा, णो पणगादिभिण्णमासंता, ते वि प्रत्थतो भानिया || ३२७२ ।। एते संबधेागस इमं पढमसुत्त जे भिक्खु मासिगं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जापलिउंचि आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचिय लोएमाणस्स दोमा सियं || सू० ॥ १ ॥ जे, भिदिर, विदारणे, क्षुध इति कर्तणः प्राख्या, तं भिनत्तीति भिक्षु, भिक्षणशीलो वा भिक्षु, भिक्षाभोगी वा भिक्खु । मासान्निप्फन्नं मासि यथा - कोशिकं, द्रौणिकं । ग्रहवा - माणेसणातो वा मासो, जम्हा समयादिकालमाणाई असति तम्हा मासे समयावलियमुहुत्ता माणा तत्रान्तर्गतादित्यर्थः । अहवा दत्तकाल भावमाणा प्रसतीति मासो । दवतो जत्तिया दव्त्रा मासेणं असति, खेतम्रो जावत्तियं खेत्तं मासेण असति । कालतो तीस दिवसा, भावतो जाव तया सुत्तत्यादिया भावा मासेणं गेण्हति । परिहरणं - परिहारो वज्रति वृत्तं भवति । ग्रहवा परिहारो वहणं त्ति वृत्तं भवति, तं प्रायश्चित्तं । ठा गतिनिवृत्ती, तिष्ठन्त्यस्मिन्निति स्थानं इह प्रायश्चित्तमेव ठाणं तं प्रायश्चित्तठाणं पारं मूत्तरदप्प कप्पजयाजय भेदप्रभेदभिणं भवति । श्राङ्-मर्यादा वचने, लोकृ-दर्शने, ग्रालोयणा णाम जहा प्रप्पणी जाणति तहा परम पागडं करेइ । परि सन्तो भावे कुच कौटिल्ये, तस्म पलिकुंवणे त्ति रूवं भवति, रलयोरैक्यम् इति कृत्वा न पलिकुंत्रणा अपलिकुंचणा, तस्मेवं अपलिकुंचियं प्रालो एमाणस्स मासिगं लहूगं गुरुगं वा पडिसेणागिफणणं दिज्जति । जो पुण पलिकुंचियं प्रालोएर तस्स जं दिजति पलिउंचणमासो णिफण्णो गुरुगो दिज्जति । एम सुत्तत्थो । - Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ समाष्य-चूर्णिके निशीयसूत्रे [ सूत्र-१ इदाणि एसेवत्थो सुत्तफासियणिज्जुत्तीए वित्थरेणं भष्णति - जे ति व से त्ति व के त्ति व, णिद्देसा होंति एवमादीया । भिक्खुस्स परूवणया, जे त्ति को होति णिद्देसो ॥६२७३॥ जे त्ति वा, से त्ति वा, के त्ति वा एवमादी । णिसवायगा भवंति । जे-कारस्स णिसरिसणं - जे असंतएणं अभक्खाणेणं अभक्खाइ" इत्यादि । से-गारो जहा -- “से गामंसि वा" इत्यादि । के कारो जहा - "कयरे आगच्छति दित्ते रूवे" इत्यादि । चोदगाह - किं कारणं सेसणि से भोत्तु जे कारेणं नि(सं करेइ ? प्राचार्याह- एत्य कारणं भण्णइ - सेगारस्स णिसो पुवपगतापेक्खी जहा -. 'भिक्खू वा" इत्यादि । ककारो संसयपुच्छाए वा भवति, जहा – “किं कस्स केण व कहं केवचिर क इविहे" इत्यादि । बेगारो पुण अणिद्दिठ्ठवायगुइसे जहा- "जेणेव जं पड़च्च" इत्यादि, अहवा-जहा इमो चेव जेगारो उस्सग्गववायट्ठिएण पडिसेवियं व ति न निद्दिढं गुरु लहुं वा जयणाजयणाहिं वा तेण जेगारेण निद्देसो कृतेत्यर्थः अहवा-जेकारेण अनिद्दिट्टभिक्खुस्मट्ठा निद्देसो ।। ६२७३।। सो भिक्खू चउब्विहो इमो नाम ठवणा भिक्खू, दवभिक्खू य भावभिक्खू य । दव्वे सरीरभविओ, भावेण उ संजतो भिक्खू ।।६२७४॥ नाम भिक्खू, जस्स भिक्खूत्ति नाम कयं । ठवणा भिक्खू चित्रकर्म लिहितो। दव्व भिक्खू दुविधो, पागमतो नो पागमतो य । आगमतो जाणए अणुवप्रोगो दवमिति वचनात् । नोमागमपो जाणगादिति वधो, दोण्णि वि भासित्ता तब्बतिरित्तो गभवियादितिविधो, एगभविग्रो णाम जो रइयतिरिए य - मणुयदेवेसु वा अणंतरं उज्वट्टित्ता जत्थ भिक्खू भविस्सति तत्य उवजिहिति, बद्धाउप्रो णाम जत्थ भिक्खू भविस्सइ तत्थ प्राज्यं बद्धं, अभिमुहणामगोत्तो णाम जत्थ भिक्खू भविस्सति जत्थ उववजिउकामो समोहतो पदेसा णिच्छूढा । अहवा-सयणधणादिपरिच्च इयं पव्वजाभिमुहो गच्छमाणो। गो दवभिक्खू । इदाणि भावभिक्खू । सो दुविधो - पागमतो णो प्रागमतो य । प्रागमतो जाणए भिक्खुसद्दोपयुत्ते, णो पागमतो इहलोगगिप्पिवासो संवेगभावितमती संजमकरणुजतो भाव भिक्खू ॥६२७४।। चोदगाह - त्वयोक्तम् - भिक्खणसीलो भिक्खू, अण्णे वि ण ते अणऽण्णवित्तित्ता। णिप्पिसिएणं णातं, पिसितालंभेण सेसाउ ॥६२७॥ "भिक्खाहारो वा भिक्खू", एवमन्ये रक्तपटादयोऽपि - भिक्षवो भवन्ति" । प्राचार्याह-न ते भिक्षव: । कुतः ?, येन तेषां भिक्षावृत्तिनिरुपधा न भवति । आहूतमपि प्राधाकर्मदोषयुक्ता च तेषां वृत्तिः प्रलंबादि, अन्यान्यवृत्तयश्च नेन ते भिक्षवो न भवन्ति । तस्मात् साधव एव भिक्षवो भवन्ति, सेन साधूनामाषाकर्मादिदोषवजिता निरुपधा वृत्तिः । "अणणवितित्ता" -- अणण्ण Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६२७३-६२७६ ] विंशतितम उद्देशकः २७३ वृत्तयश्च, भिक्षा मुक्त्वा नास्त्यन्या साधूनां वृत्तिः । एत्थ आयरियो णिप्पिसिएण दिदंतं करेति, सपिसियं जो भुजति सो सपिसिओ, जो ण भुजति सो णिप्पिसियो। "पिसियालंभेण सेसा य" ति - जे पुण भणंति - "णिव्वि (प्पि) सा वयं जाव पिसियस्स अलाभो" ति, एवं भयंता सेसा न निप्पिसिया भवतीत्यर्थः ॥६२७॥ इमे वि एयस्सेव अत्थस्स पसाहगा दिटुंता अविहिंस बंभचारी, पोसहिय अमज्जमंसियाऽचोरा । सति लंभ परिच्चाती, होति तदक्खा ण पुण सेसा ॥६२७६॥ अहवा कोइ भणेज्जा - अहिंसगोऽहं जाव मिए ण पस्सामि । अण्णो कोति भणेज - बंभचारी अहं जाव मे इत्थी ण पडुप्पज्जति । अहवा एवं भणेज्ज -प्राहारपोसही हं जाव मे पाहारो ण पडुप्पज्जइ। अहवा कोति भणेज्ज- अमज्जमंसवृत्ती हं जाव मज्जमंसे ण लहामि । अहवा कोति भणेज्ज - अचोरक्कवृत्ती हं जाव परच्छिद्र न लभामि । एते असतिलंभपरिच्चागिणोवि णो तदक्खा भवंति, तेग प्रत्येण अक्खा जेसि भवति ते तदक्खा अहिंसगा इत्यर्थः, सेसा अनिवृत्तचित्तास्तदाख्या न भवंति, ते उ रक्तपटादयो न भवंति भिक्षवः, ससावध. भिक्षामतिलंभपरित्यागिन: साधन एव भिक्षवो भवन्ति । “सेसे" त्ति भिक्खग्गहणे वा साधूण चरगादियाण इमो विसेसो ॥६२७६।। भण्णति - अहवा एसणासुद्ध, जहा गेहंति भिक्खुणो। भिक्खं णेवं कुलिंगत्था, भिक्खजीवी वि ते जती ॥६२७७।। "एसणासुद्ध" ति - उग्गमादिसुद्ध, पच्छाणपुब्बिग्गहणं वा एयं, सेसं कंठं। अहवा-ते चरगादिकुलिंगी नं केवलं भिक्षुवृत्युपजीवी ॥६२७७॥ जाव इमाणि य भुजति - दगमुद्देसियं चेव, कंदमूलफलाणि य । सयं गाहा परत्तो य, गेहंता कह भिक्खुणो ॥६२७८॥ "नगं ति - उदगं, "उद्देसियं" ति तमुद्दिश्य कृतं, "कंद" इति मूल कंदादी, पयिन्यादि मूला, भाम्रादि फला, एयाणि स्वयं गेहता कहं भिक्खुणो भवंति ? इत्युक्तं भवति ॥६२७८॥ जो पुण सण्णिच्छियभिक्खू इमेरिसी वृत्ती भवति - अच्चित्ता एसणिज्जा य, मिता काले परिक्खिता । जहालद्धविसुद्धा य, एसा वित्ती उ भिक्खुणो॥६२७६।। अगरहिता अगरहियकुलेसु वा भत्तिबहुमाणपुर्व वा दिज्जमाणी तिा वातालीसदोसविसुद्धा एसणिज्जा भत्तट्टप्पमागजुत्ता मिता। "काले" ति दिवा। अहवा -- गामणगरदेसकाले। अहवा ततियापोरिसीए Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ सभाष्य - चूर्णिके निशीथ सूत्रे दायगादिदोसविसुद्धा | परिक्खिता "जहालद्धा" नाम संजोयणादिदोसवज्जिता, एरिसवृत्तियो भिक्खु भवंति ॥६२७६ ।। “भिक्खणसीले" त्ति गतं । इदाणि ""भिनत्ति" त्ति भिक्षु - "मिदिर्" विदारणे, "क्षुष" इति कर्मण. श्राख्यानं तं भित्तीति भिक्षुः, एष भेदको गृहीतः सो दुविहस्स भवति - दव्त्रस्स य भावस्स य । भेदकग्रहणाच्च तज्जातीयद्वयं सूचितं - भेदणं भेत्तव्वं च । जतो भण्णति - "दव्वे य भाव" गाहा । तत्थ - दव्वे य भाव भेयग, भेदण भेत्तव्वगं च तिविहं तु । णाणात भाव-भेयण, कम्म खुहेगट्ठतं भेज्जं ॥ ६२८०|| दव्वे तिविहो - दव्वभेदको दव्वभेयणाणि दव्वभेयव्वं । दव्वभेदको रहकारादि, दव्वभेदणाण परसुमादीणि, दव्वतो भेत्तव्वं कट्टुमादियं । भावे भावभेदको भिक्षुः, भावभेदणा णि णाणादीणि, भावभेतव्यं कम्मं तिवा, खुहंति वा वोष्णं ति वा, कलुषं ति वा, वज्जं ति वा, वेरं ति वा, पंको ति वा, मलो ति वा, एते एगट्ठिता । एवं जाव भेज्जं भवति ॥ ६२८० ॥ इमानि भिक्षोरेकार्थकानि शक्रेन्द्रपुरन्दरवत् भिक्खु त्ति वा जति त्ति वा खमग त्ति वा तवस्सि त्ति वा भवंते त्ति वा । एतेसिं इमा व्याख्या - भिदतो वा वि खुधं, भिक्खू जयमाणो जई होइ । तवसंजमे तवस्सी, भवं खवेंतो भवतो ति ॥ ६२८१॥ i [ सूत्र - १ भिनत्तति भिक्षुः । यती प्रयत्ने । तपः सन्तापे, तप अस्यास्तीति तपस्वी । श्रहवा अधिकरणाभिघानादिदं सूचितं - तपसि भवः तापसः । ग्रहवा - तपः संयमासना तवस्सी नारकादिभवाणमंत करेंतो भवंतो । नारकादिभवे वा क्षपयतीति क्षपकः, एत्थ भावभिक्षुणा श्रधिकारो ।। ६२८१॥ भिक्खुत्ति गयं । इदाणि मासो तस्स णामादिछक्को णिक्खेवो - - नामं ठवणा दविए, खेत्ते काले तहेव भावे य । मासस्स परूवणया, पगतं पुण कालमासेणं || ६२८२|| गाठत्रणा गताओ, दव्वमासो दुविहो- प्रागमप्रो गोद्यागमयो । श्रागमप्रो जाणश्रो श्रणुवउत्तो । जो श्रागमतो जाणगसरीयं भविगसरीरं, जाणगभवियइरित्तो इमो - Goa भवि णिव्वित्तिो य खेत्तम्मि जम्मि वण्णणया । काले जहि वणिज्जर, णवत्तादी व पंचविहो ||६२८३|| भविश्र ति एगभविप्रो बद्धाउ प्रभिमुह्णामगोतो य । ग्रहवा - ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्तः । "णिव्वित्तिश्रो" त्ति - मूलगुणणिव्वित्तितो उत्तरगुणणिव्वित्तिश्रो य । तत्य मूलगुणजिव्बित्ती जेहि जीवेहि तप्पढमताए णामगोत्तस्स कम्मस्स उदएण मासदव्वस्स उदगं मासदव्वपाउगाई दव्वाई गहियाई । १ सू० १ ० । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यमाचा ६२८०-६२८६ ] विशतितम उद्देशकः २७१ उत्तम गुण वित्तणा निम्बतितो चित्रकर्मणि मासत्यं वा लिहितो । जम्मि खेत्ते मासकथ्पो कीरह, जम्मि वा खेले ठविrs जम्मि वा खेत्ते वणिजइ, सो खेत्तमासो । कालमासो जम्मि वा कालमासो ठाविज्जइ । श्रहवा कालमास सावणभद्दवयादी । ग्रहवा- सलक्खणणिष्कण्णो णक्खत्तादी पंचविहो इमो - णक्खत्तो चंदो उड्डु इच्चो प्रभिवतिम्रो य ।। ६२८३॥ तत्थ णक्खत्तचंदा इमे - अहोर सत्तावीसं, तिसत्तसत्तट्ठिभाग णक्खत्तो । चंदो उणत्तीसं बिसट्टि भागा य बत्तीसं ||६२८४|| णक्खत्तमासो सत्तावीसं महोरत्तो, "तिसत्त" ति एक्कवीसं च सत्तसट्टिभागा - एस लक्खणम्रो य परिमाण प्र य णक्खत्तमासो | चंद्रमासो प्रउणत्तीसं महोरते बत्तीसं च बिसट्टिभागे ।। ६२८४ ॥ उडुमासो तीसदिणो, इच्चो तीस होड़ श्रद्धं च । अभिवढितोय मासो, पगतं पुण कम्ममा सेणं ।। ६२८५|| उडुमासोती व पुणा दिणा । श्रादिच्चमासो तीसं दिणा दिनद्धं च । श्रभिवड्ढितो श्रहिमासगो भणति । एतेसि पंच पदाणं इह पगतं ति अधिकारो कम्ममासेणं, कम्ममासो त्ति उडुमासो ।। ६२८५ ।। भिडियस इमं पमाणं - एक्कत्तीस च दिणा, दिणभागसयं तहेक्कत्रीसं च । अभिवडिओ उ मासो, चउवीससतेण देणं ॥ ६२८६ ॥ -- एगत्तीस दिवसा दिवसस्स चउवीससयखंडियस्स इगवीसुत्तरं ३११३४ च भागसतं एवं अधिमासगप्पमाणं ति । एतेसि च णक्वत्तादीयाण मासाणं उप्पत्ती इमा भण्णति - प्रमीइमादी चंदो चारं चरमाणो जाव उत्तरासादाण अंतं गमो ताव अट्ठारससता तीसुतरा सत्तट्टी भागाणं भवति एतावता सव्यणवखत्तमंडलं भवति ।। १६ । एतेसि सत्तसड्ढीए चेव भागो, भागलद्धं सत्तावीसं ग्रहोरता ग्रहो रत्तस्स य इगवीसं सत्तसड्डिभागा २७ ३७ एस नक्खत्तम । सो परिमाणलक्खणश्रो । अहवा - एयं चैव फुडतरं भण्णति अभियस्स चंदयोगो इगवीसं सत्तसट्टि भागा । श्रवरे छण्णक्खता पारस मुहुत्ता भोगामो एतेसि छन्हं सनभिसा भरणी श्रद्दा भस्सेसा साती जेट्ठा य । एतेसि छण्हं तिष्णि महोरता । to छणवत्ता पणयालमुहुत्तभोगी तं जहा - तिष्णि उत्तरा, पुणज्वसु, रोहिणी, विसाहा य । एते गव महोरता | तिरहं मज्भे मेलित्ता बारस जाता । अणे पण्णरस गक्खता तीसमुहुत्तभोगी, तं जहा - प्रस्सिणी, कित्तिया, मिगसिर, पुस, मघा तिनि पुत्रा, हत्य, वित्ता, अगुराहा, मूल, सत्रण, घणिट्ठा, रेवती य, एते पण्णरस प्रहोरता । बारस मिलिता जाया. सत्तावीस सव्वे । रुक्ख मंडल परिभोगकालो णक्खत्तमासो भण्गति । इदाणि चंद्रमासो, तस्स गिदरसगं, तंजहा - सावण बहुलपडिवयातातो प्रारम्भ जाव सावगोणिमा समतो - एस परिमाणतो चंद्रमासो । एवं भवतादितो वि सेसा ददुव्वा । लक्खणम्रो पुण प्रासादपोणिमाए वतिक्कताए सावणबहुलपडिवयाए रुद्दमुहुत्तसमयपढमात्र ग्रभितिस्स भोगो पवत्तति चंद्रेण सह । इमो णव मुहुत्ते चउवीसं बिसट्टिभागे छावट्ठि सत्तसट्ठि चोण्णियाश्रो य । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७४ TE ६७. २७६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१ एते इमेण विहिणा भवंति-जे अभीयस्स इगवीसं सत्तसट्ठी भागा ते सह च्छेदेण बासट्टीए गुणिता जाता तेरससया बिउत्तरा, अंसाणं छेदो इगतालीसं सत्ता चउप्पण्णा (+६२ = १३६३) तेण भागे ण देइ त्ति अंसा तीसगुणा कायव्वा, १३०२ + ३० = ३६०६० ४१५४ १०३७८८ १६७४ ४१५४ ५७ तेहिं भागेहिते लद्ध नव मुहुत्ता, ६ सेसं बासट्ठीए गुणेयव्वं, एत्थ उ वट्टो (छेदो) कज्जतिबासट्ठिभागेण, एक्कतालोसताणं चउप्पण्णाण बासट्ठिभागेण सत्तसट्ठी १२ भवंति, एक्केण गुणितं एत्तियं चेव सत्त सट्टीए ६७ भागे हिते लद्ध चउवीसं बासद्विभागा ३३ छावटुं च सेसचुण्णीया भागा है। एत्थ अभीति - भोगे सवणादिया सव्वे णक्खत्तभोगा छोढव्वा जाव उत्तरासाढाणं असंपत्तो, तत्थ इमा रासी जाता अट्ठसया एगुणविसुत्तरा ८१६ मुहुत्ताणं, चउव्वीसं च बासट्ठिभागे ३६ छावट्ठि चुण्णीया भागा । ६६ एत्य पुणो अभीतिभोगो य छोढव्वो, सवणभोगो य सम्मत्तो ३०, धणिट्ठाण य छव्वीसं २६ मुहुत्ता बायालीसं बावद्विभागा दो यचुण्णिया ४२,६२,२ भागा, ताहे इमो रासी, एयम्मि ८८४, ६०, ६२, १३२, ६७ भुत्तै । सावणपोण्णिमा सम्मत्ता। एत्थ चउतीसुत्तरसयस्स सत्तसडीए भागो हायव्वो, दो लद्धा, ते उवरि पक्खित्ता, जाता बाणउतीए बावट्ठिभाग त्ति काउं बावट्ठिए भातिता एक्को लद्धो सो उवरि पक्खित्तो, सेसा तीसं. बावट्ठिभागा ठिता ८८५ जे पंचासीया अट्ठसया मुहत्ताणं तेसिं ३० तीसाए भागा लद्धा एगूणतीसं अहोरत्ता, जे सेसा पण्णरसा मुहुत्ता ते ६२ वासट्ठीए गुणिता जाता णवसया तीसुत्तरा, एत्थ जे ते सेसा तीसं बावट्ठिभागा ते पक्खित्ता जाया णवसया सट्ठी ६६० । एयस्स भागो तीसाए, लद्धा बत्तीस, बिसट्ठिभागा एते अउणत्तीसाए अहोरत्ताण हेट्ठा ठविया विसट्टित्ता छेदसहिता। एवं एसो चंदमासो अउणत्तीसं दिवसा विसट्ठिभागा य बत्तीसं भवंति। इदाणि उडुमासो भण्णति - एवकं अहोरत्तं वुड्डीए बावट्टि भागे छेत्ता तस्स एक्कसट्ठी भागा चंदगतीए तेहि समत्ती भवति । ___ कहं पुण ?, उच्यते - जति अट्ठारसहिं अहोग्त्तसएहिं सट्टेहिं अट्ठारसतीसुत्तरासया लन्भंति तो एक्केण अहोरतेण कि लन्मामो । एवं तेरासियकम्मे कते पागयं एगसद्विहं बावट्ठिभागा १३ अहो रत्तस्स, एसा एक्कसट्ठी तीसाए तिहीहिं मासो भवति तितीसाए गुणेयव्वा, ताहे इमो रासी जातो १८३० । एयस्स एगसट्ठीए भागो हायबो लद्धा तीसं तिही, एसो एवं उडुमा सो णिप्फण्णो, एस चेव कम्ममासो, सहाणमासो य भण्णति । एस चेव रासी बावट्टिहितो चंदमासो वि लब्भात । इदाणि आइच्चमासो भण्णइ । सो इमेण विहिणा आणेयव्वो - आदिच्चो पुस्सभागे चउसु अहोरत्तेसु अट्ठारससु य मुहुत्तेसु दक्षिणायणं पवत्तति, सो य अप्पणो चारेण सव्वणक्खत्तमंडलचारं चरित्ता जाव पुणो पुस्सस्स अट्ठ अहोरत्ता चउव्वीस मुहुत्ता भुत्ता। एस सव्वो ग्राइच्चस्स णक्खत्तभोगकालो पिंडेयव्वो, इमेण विहिणा - सयभिसयभरणीयो, अद्दा अस्सेस साति जेट्टा य । वच्चंति मुहुत्ते एक्कवीसति छच्च अहोरत्ते ॥ तिण्णुत्तरा विसाहा, पुणव्वसू रोहिणी य बोधव्वा । गच्छंति मुहुत्ते तिण्णि चेव वीसं च अहोरत्ते ॥ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशकः श्रवसेसा णक्खत्ता, पण्णरस वि सूरसहगया जंति । बारस चेव मुहुत्ते, तेरसय समे अहोरते ॥ प्रभिति छच्च मुहुत्ते, चत्तारि य केवले ग्रहोरते । सूरेण समं गच्छइ, एत्तो करणं च वोच्छामि ॥ एयं सव्वं मेलिय इमो ग्रहोरतरासी भवति ॥ ३६६ ॥ एयं श्रादिच्च वरिसं । एयस्स बारसहि भागो भागलद्धं श्रादिच्चमासो। ग्रहवा - पंचगुणस्स सट्टीए भागो भागलद्धं तीसं ग्रहोरत्ता, ग्रहोरत्तस्स य अद्धं एस आदिच्चमासो पमाणम्रो लक्खणतो य । एत्थ वि सव्वमासा प्रणो भागहा रेहि उप्पज्जेति । इदाणि अभिवडिओ - भाष्यगाथा - ६२८६ ] वर्षमिति वाक्यशेषः । छच्चेव प्रतीरित्ता, हवंति चंदम्मि वासम्मि । वारसमासेणते, श्रृड्ढाइज्जेहि पूरितो मासो || एवमभिवड्ढितो खलु तेरसमासो उ बोधव्वो । सीए प्रतीताए, होति तु अधिमासगो जुगद्धम्मि | बावीसे पक्खसते होई बितिम्रो जुगतम्मि ॥ १८ ३१ हवा - णक्खत्तादीमासाण दिणाण य णं इमातो पंचविहातो पमाणबरिस दिवसरासीतो अट्ठारससततीसुत्तरात्र प्राणिजति । तेसु पंचप्यमाणा वरिसा इमे चंदं चंदं प्रभिवडियं पुणो चंदं प्रभिवडियं । तेसिमं करणं - चदमासो एगूगतीसं २६ दिवसे दिवसस्स य बासट्टिभागा बत्तीसं ३, एस चंद मासो । बारमासवरिसं ति एस बारसगुणी कज्जति, तांहे इमं भवति प्रडयाला तिष्णिसया दिवसाणं, विसट्टिभागाण य तिष्णिसया चुनसीया, ते बावट्टी भइया लद्धा छद्दिवसा ते उर्वारि पक्खित्ता जाता तिष्णि सता चउपण्णा, ३५४ सेसा बारस, ते देयंसा श्रद्धेग उर्वाद्विता जाया एगतीसं भागा, एयं चंदवरिसपमाणं । " तिष्णि चंद्रवरिस ति तो तिगुणं कज्जति तिगुणकथं इमं भवति वासदृहियं दिणसहस्सं, एगतीस विभागा यारस । एयं तिण्ह चंदवरिसाणं पमाणं । एत्तो अभिवड्डियकरणं भण्णति सो एक्कतीसं दिणाति एक्कवीससयं चउवीससयं भागाणं, एरिस " बारस मासा वरिस" त्ति काउं बारसहि गुणेयव्वा, गुणिए इमो रासी, तिष्णि सया बोहत्तरा दिणाणं चउवीससया भागा चोदससया बावण्णा र छेदेण भातिते लद्धा एक्कारस, ते उवरि छूढा जाता तिणिसया दिवमागं तेसीया हिट्ठा अट्ठासीति सेसगा, ते सच्छेया चउहि उवट्ठिता जाया एक्कतीभागा बावीस, एयं ग्रभिविढियवरिसप्पमाणं । < " - १-१०६२ । २- ३१ ३७२ । १२१ १४५२ १२४ १२४ 1 "दो अभिवढियवरिस" ति एस रासी दोहि गुणेयव्वो, दोहि गुणिए इमो रासी सत्तसया छावट्ठा दिवसाण इगतीस भागा य च्वोयाला ए एक्कतीसभातियालद्धो तत्थेक्को, सो सर्वारि छूढो, जाया सत्तसया सत्तट्ठा एक्कतीसतिभागा य तेरसा । ७६७ । एस श्रभिवड्ढियवरिसरासी प्रव्त्रभणियचंदवरिसरासिस्स मेलितो । कहं ?, उच्यते - दिवसा दिवसेस, भागा भागेसु । ताहे पंचवरिसरासी "सरतविसुद्धो भवइ उ" : अट्टारससया तीसुत्तरा ।। १८३०|| एस ध्रुवरासी ठाविज्जति । एयाओ ध्रुवरासीग्रो सव्वमासा णक्खत्तादिया उप्पा इज्जति अप्पप्पणो भागहारेहिं । ३-३८३ २७७ २२ । ३१ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ जनो भणितं - समान्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे भा-ससि - रितु - सूरमासा, सत्तट्ठि वि एगसट्ठि सट्ठी य । अभिवडियस तेरस, भागाणं सत्त चोयाला || ६२८७॥ सत्तट्ठि णक्खत्ते, छेदे बावडिमेव चंदम्मि | एगट्टि उडुम्मि सट्ठीं पुण होइ इच्चे || ६२८८|| सत्तसया चोयाला, तेरसभागाण होंति नायव्वा । अभिवड्डियस्स एसो, नियमा छेदो मुणेयव्व ॥ ६२८६ ॥ अट्ठारसया तीसुतरा उ ते तेरसेसु संगुणिता । चोयाल सत्तभइया, छावट्टतिगिवट्टिया य फलं ॥६२६०॥ मा इति णक्खत्तमासो, ससि त्ति चंदमासो, रिउ ति वा कम्ममासो वा एगट्ठे, सूरमासो य, एसि मासाणं जहासंखं भागद्वारा इमेरिसा सत्तसट्ठी बिस ट्ठ एगसट्टी सट्ठी य अभिवढिय मासस्स भागहारो सत्तसया चोयाला तेरसभागेणं । एतेसि इमा उप्पत्ती जइ तेरसेहि चंद्रमासेहि बारस प्रभिवड्ढियमासा लब्भंति तो बावट्ठीए चंदमासेहिं कति प्रभिवढियमासा लभिस्सामो एवं तेरासिए कते श्रागतं सतावण्णमा सो मासस्स य तिष्णि तेरसभागा, एते पुणो सवण्णिया जाता सत्तमया चोयाला तेरसभागाणं ति एतेहि श्रद्वारसहं सयाणं तीसुत्तराणं तेरसगुगिताण २३७६० भागो हायव्त्रो, लद्धं एक्कतीसं दिणा, सेसं सत्तसया छव्विसा ते छह उवट्ठिया जाया सयं एक्कवीसुत्तरं अंसाणं, छेदे वि सयं चउवीमुत्तरं, एस श्रभिवढियवरिसबारसभागो प्रधिमासगो । जो पुण ससिसूरगतिविसेसणिप्फण्णो प्रधिमासगो सो प्रउणत्तीसं दिणा बिसद्विभागा य बत्तीस भवंति । कहं ?, उच्यते - “ससिणोय जो विसेसो प्राइच्वस्त य हवेज्ज मासस्स तीसाए संगुणितो अधिमास चदो । ग्राइच्चमासो तीसं दिणा तीसाय सट्टिभागा, चंदमासो प्रउणत्तीसं दिणा विसट्टिभागा य बत्तीसं । एतेसिं विसेसे कते सेसमुद्धरितं एक्कतीसं बासट्टिभागा ग्रण्णे तीसं चेव वासट्टिभागा, एते उवट्ठिया परोप्परं छेदगुणकाउं एगस्स सरिसच्छेदो नेट्टो अंसेसु पक्खित्ता तेसु वि च्छेयं सर्वाट्ठिएस एगसट्ठि बासट्टि भागा ( उ ) जाया ग्रहोरत्तस्स, एस एक्को तिही सोमगतीए सोतीसगुणितो बिसट्टिभातिश्रो चंद्रमासपरिमाणणिष्फण्णो ग्रहिमासगो भवति । [ सूत्र - १ हवा - इमेण विहिणा कायव्वं जइ एक्केण श्राइच्चमासेण एक्का सोमतिही लब्भति तो तोसाए श्रादिच्चमा सेहिं कतितिही लग्भामो भागतं तीसं सोमतिहीप्रो, एस श्रादिच्चचंदवरिसप्रभिछम्मा से य प्रतिदिन प्रतिमासं च कला वडमाणी तीसाए मासेसु मासो पूरति ति, एसो अधिमासगो चंदमासनमाणो चंदो अधिमानगो भण्ाति एयं चेत्र प्रभिवद्धिं पडुच्च प्रभिवडियवरिसं भण्गति । - भणियं च सूरपण्णत्तीए - "तेरस य चंदमासो, एसो ग्रभिवडियो त्ति णायव्वो" वर्षमिति वाक्यशेषः । तस्स बारसभागो विमासगो अभित्र ढियवर्ष मासेत्यर्थः । अथवा - प्रषिमासगप्यमाणं इमं गतीस दिना श्रउणतीस मुहुत्ता बिसट्ठि भागा एस सतरसा, एते कहं भवंति ? उच्यते - जं एगवीसउत्तरस्यं साणं तीसगुणं कायध्वं तस्स भागो सयेण चउवीस उत्तरेण भागलद्ध उणतीस मुहुता, सेसस्स श्रद्धे ताव दो तत्थ विसट्ठि भागा सरस भवंति एवं वा एकतीसदिणसहिय अधिकमासपमाणं । एसो पंचविहो कालमासो भण्णति ।। ६२६०।। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशकः इदाणि भावमासो सो दुविहो आागमतो णो प्रागमतो य मूलादिवेद खलु भावे जो वा वियाणतो तस्स । न हि श्रग्गिणाणोऽग्गी-णाणं भावो ततोऽणण्णो ।। ६२६१ ॥ जो जीवो घण्ण-मास-मूल कंद-पत्त- पुप्फ-फलादि वेदेति सो भावमासो, जो वा श्रागमतो उवउत्तो मारा इति पदत्थ जाणो । भाष्यगाथा ६२५७-६२९४ ] चोदगाह - "ण हि श्रग्गिणाण अग्गि" ति नत्वग्निज्ञानोपयोगतः श्रात्मा श्रग्न्याख्यो भवति । एवमुक्ते चोदकेनाचार्याह - "जाणं भावो ततो ऽभ्यो" त्ति जाणं ति ज्ञानं, भावः अधिगम: उपयोग इत्यनन्तरमिति कृत्य प्रग्निद्रव्यग्युक्त श्रात्मा तस्मादग्निद्रव्यभावादन्यो न भवति ।। ६२६१॥ एत्य छत्रहो मागिखेवो, कालमासेग अधिकारो तत्थ वि उडुपासेण, सेसा सीसस्स विकोणा भणिया, मासे त्ति गयं । इदाणि "परिहारे" त्ति, तस्स इमो णिक्खेवो - १ २ 3 Y ७ णामं ठवणा दविए, परिगम परिहरण वज्जगोग्गहे चेव । ९ १० भावावणे सुद्ध, णत्र परिहारस्स नामाई ||६२६२॥ E भावपरिहारो दुविधो कज्जति ( भावण्णपरिहारो सुद्धो य ) ग्रावण्णपरिहारितो एस चरितायारो | हवा - भावारिहारितो दुविधो पसत्यो अप्पसत्यो य । पसत्थे जो प्रष्णाणमिच्छादि परिहरति पथ जो नागदसणचरिताणि परिहरति । एवं भावे तिविहे कज्जमणं दसविहो परिहार निक्खेवो भवति ।। ६२६२ ।। एतेसि इमा व्याख्या णामउवणातो गतातो, वतिरित्तो दव्वपरिहारो । कंटगमादी दवे, गिरिनदिमादीसु परिर होति । परिहरण धरण भोगे, लोउत्तर वज इत्तरिए || ६२६३ || लोगे जह माता ऊ. पुत्तं परिहरति एवमादी उ । लोउत्तरपरिहारो, दुविहो परिभोग धरणे य || ६२६४॥ - गणपरिहरति मादिग्गहणेणं खाणू विससप्यादी । परिगमपरिहारो णाम जो गिरि नदि पज्जहारो त्ति वा परिरोति वा "लोगे जह" पुव्वद्धं कंठं । परिभुजति पाउ णिज्जतीत्यर्थः । या परिहरतो जाति प्रादिगहणतो समुहमडवि वा । परिगमोति वा एग | परिहरणं परिहारो दुविहो लोइयो लोउत्तरो य । तत्य लोगे इमो लो उत्तरपरिहारो दुविहो - परिभोगे धरणे य । परिभोये धारणारिहारो नाम जं संगोविज्जति पडिलेहिज्जति य ण य परिभुजति । २७६ ' सू० १ । " २ भावपरिहारो दुविहो प पसत्थो । प्रपत्थो जो प्रशाणमिच्छद्दिट्ठी परिहरति भावपरिहारितो एवं नवविधोभवति भावसामान्यतो प्रविधो भवति । ग्रहवा सुद्ध परिहारितो एस श्रणइमारो, श्रावन परिहारितो एस चरितायारो।" प्रमं पाठ स्तावत् टाइपग्रकित प्रती टिप्पणीरूपेण सूचितः । - Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे । सूत्र-१ दुविहो - लोइलो लोउत्तरिमो य । लोइयो इत्तरितो प्रावकहियो य । इतरिमो सूयगमतगादिदसदिवसवजणं, प्रावकहितो जहा णड-वरुड-छिपग- न . . . , तरिमो दुविहो - इत्तरिमो प्रावकहितो य । तत्य इत्तरिमो सेज्जायरदाणअभिगमसड्ढादि, भावकहितो रायपिंडो । अहवा - "अट्ठारस पुरिसेसु।" अणुग्गहपरिहारो - खोडादिभंगऽणुग्गह, भावे श्रावण युद्धपरिहारे । मासादी श्रावण्णो, तेण तु पगतं न अन्नेहिं ॥६२६५।। "खोडभंगो" नि वा, "उकोडभंगो" ति वा, "अक्खोडभंगो" त्ति वा एगटुं, माड़ मर्यादायां । खोडं णाम जं रायकुलस्स हिरण्णादि दव्वं दायव्वं देट्टिकरणं परं परिणयणं चोरभटादियाण य चोल्लगादिप्पदाणं तस्स भंगो खोडभंगो, तं रायगुग्गहेणं मज्जायाए भंजतो एक दो तिणि वा सेवति जावतिय अणुग्गहो से कज्जति तत्तियं कालं सो दव्वादिसु परिहरिजति तावत् कालं न दाप्यतेत्यर्थः । एस अणुगह परिहारो। भावपरिहारो दुवहो – आवरणपरिहारो सुद्धपरिहारो य । तत्य सुद्धपरिहारो जो वि मुच्चा पंचयामं अणुतरं धम्म परिहरइ - करोतीत्यर्थः । विसुद्धपरिहारकप्पो वा घेप्पइ । प्रावणपरिहारो पुण जो मासियं वा जाव छम्मासियं वा पायच्छित्तं प्रावण्णो तेण सो सपञ्छित्ती असुद्धो अविसुद्धचरणेहिं साहूहि परिहरिज्जति । इह तेण अहिकारो ण सेसेहि ( अधिकारो) 'विकोवणट्टा पुण परूविया ।।६२६६।। इदाणि 'ठाणं, तस्सिमो चोट्सविहो निक्लेवो - नाम ठवणा दविए, खेत्तद्धा उड्यो विरति असही । संजम पग्गह जोहो, अचल गणण संधणा भावे ॥६२६६।। णामठवणातो गयाप्रो, जाणगसरीर भवियवइरित्तं दवट्ठाणं इमं - सच्चित्तादी दव्वे, खेत्ते गामादि अद्धदुविहा उ । तिरियनरे कायठिती, भवठिति चेवावसेसाण ।।६२६७।। सच्चितदव्वट्ठाणं अचित्तं मीसं । सचित्तदन्वट्ठाणं तिविध - दुपयं चउप्पयं अपय । दुपयट्ठाणं दिणे जत्थ मणूसा उवविसंति तत्थ ठाणं जायति, चउप्पदाणं पि एवं चेव, अपदाणं पि जत्थ गरुय फलं निक्खिप्पइ तत्थ ठाणं संजायति । अचित्तं जत्थ फलगाणि साहजतादि णो निविखप्पति तत्थ ठाणं । एतेसिं चेव दुपदादियाण समलंकिताण पूर्ववत् घडस्स वा जलभरियस्स ठाणं ( मीसं ) । खेतं गामणगरादियं तेसिं ठाणं खेतट्ठाणं, अहवा - खेतो गामणगरादियाण ठाणं । प्रद्धा काल इत्यर्थः, सो दुविधो उवलक्खितो जीवेस अजीवेसु य । अजीवेसु जा जस्स ठिई । संसारिजीवेसु दुविधा ठिई - कायठिई भवठिती य, तत्थ तिरियणरेसु प्रणेगभवग्गहणसंभवातो कायठिई, सेसाणं ति - देवनारगाणं एगभवसंचिढणा भवठिई, अहवा - कालढाणं समयावलियादि णेयं ॥६२६८।। १ सू०१। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६२६५- ६३०० ] " ठाण निसीय तुट्टण, उड़ाती विरति सव्व देसे य । संजमठाणमसंखा, पग्गह लोगीतर दो पणगा ||६२६८ || "उड्ड" ति तज्जातीयग्गहणातो निसीयणतुयट्टणा वि गहिता, तेसि उद्धट्ठाणं प्रादि तं पुण काउस्सगं णिमीयगं उबविसणं तुप्रदृगं संपिणं उ । "विरति" ठाणं दुविधं - देसे सव्वे य, तत्थ देसे सावयाणं अणुब्वया पंच, सव्वे साघूण महव्वया पंच । २वसहिद्वाणं उवस्सओ जस्स वा जं श्रावस्तहद्वाणं । " संजमठाणं" ति वा प्रज्भवसायठाणं ति वा परिणामठाणं ति वा एगट्ठ । एत्थ पढमसंजमट्टाणे पजयपरिमाणं सव्वागास सिग्गं, सव्वागासपदेसेहि अनंतगुणितं पढमं संजमद्वाणं पञ्चवग्गेण भवति । ततो बितियादिसंजमट्टणा उवरुवरिविसुद्धीए प्रगत भागाहिगा नेया, एवं लक्खणा सामण्णतो संजमठाणा श्रसंखेज्जा । विभागतो सामातियछेद संजमठाणा दो वि सरिसा असंखेज्जे ठाणे गच्छति, ततो परिहारसहिता ते चेव असंखेज्जठाणे गच्छति, ताहे परिहारितो वोच्छिज्जति । तदुपरि सामातियछेदोवद्वावणिया अण्णे प्रसंखेज्जठाणे गच्छति, ताहे ते वोच्छिज्जति । तदुवरि सुहुमसंपरायसंजमठाणा केवलकालतो अंतोमुहुत्तिया प्रसंखेज्जा भवति, ततो प्रणतगुणं एवं श्रहवखायं संजमट्ठाणं भवति । इमा ठत्रणा | "पग्गहठाणं" दुविहं - लोइयं, इतरं लोउत्तरं । - "दो पणग" त्ति लोइयं पंचविहं ॥ ६२६८ ॥ तं जहा - विंशतितम उद्देशक : रायाऽमच्च पुरोहिय, सेट्टी सेणावती य लोगम्मि | आयरियादी उत्तरे, पग्गहणं होइ उ निरोहो || ६२६६॥ राया जुवराया श्रमच्चो सेट्ठी पुरोहितो । उत्तरे पग्गहे ठाणं पंचविहं - प्रायरिए उवज्झाए पवत्ति थेरो गणावच्छेइ । प्रकर्षण ग्रहः, प्रकृष्टो वा ग्रहः, प्रधानस्य वा ग्रहणं प्रग्रह इत्यर्थः ।।६२६|| इदाणि जोहद्वाणं पंचविहं इमं - ६ गा० ६२६५ । लीट पचलीढे, वेसाहे मंडले समपदे य । अचले य निरेयकाले, गणणे एगादि जा कोडी ॥ ६३०० ॥ वास्काउं दाहिणं पिट्ठतो वामहत्येण घणुं घेत्तूण दाहीणेण अपगच्छत्ति प्रालीढं । तं चिय विवरीयं पच्चालीढं । श्रालीढं तो पण्डितातो काउं अग्गतले बाहि जं रहट्टिम्रो वा जुज्झइ त वइसाहं । जाणूरुजंचे य मंडले काउं जं जुज्झइ तं मंडलं । जं पुण तेसु चेव जाणूरुसु प्रायतेसु समपादट्टितो जुज्झति तं समपादं । अण्णे भांति - जं एतेसि चेव ठाणाणं जहासंभव चलियठितो पासतो पिट्ठतो वा जुज्झति तं घट्ट चलियणाम ठाणं । १ गा० ६२६५ । २ गा० ६२६ 1 २८१ 1 "" अचलट्ठा" नाम जहा - परमाणुपोग्गलेणं भंते! निरेए कालतो केवचिरं होति ?, जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, असंखेज्जा उस्सप्पिणि श्रसप्पिणी । निरेया निश्चल इत्यर्थः । एवं दुपदेसादियाण वि वत्तव्वं । "गगन" त्ति गणियं, तस्स ठाणा अणेगविहा, जहा एक दहं सतं सहस्सं दस सहस्साई सय सहस्सं दहशतसहस्साई कोडी । उवरि पि जहासंभव भाणिय ।।६२६.६।। ३ गा० ६२६५ । ४ पश्चान्मुखमपसरति । ५ गा० ६२६५ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे इदाणि ""संघणा" सा दुविहा- दव्वे भावे य । पुणो एक्केका दुविहा - छिष्णसंघाणा प्रछिण्णसंधाणाय । तत्थ दव्वे "छिण्णमछिण्णसंधणा" इमा रज्जूमादि अधिणं, कंचुगमादीण छिष्णसंधणया । सेडिगं अच्छिणं, अपुष्वगहणं तु भावम्मि ||६३०१ ॥ मीसा श्रदइयं, गयस्स मीसगमणे पुणो छिष्णं । " सत्थं पत्थं वा भावे पगतं तु छणं ||६३०२ || जं सूत्रं वा मुंजं वा रज्जुं प्रच्छिष्णं संघेति सा श्रच्छिष्णसंवणा । प्रण्णोष्णखंडाणं इमा छिण्णसंधणा जहा कंचुगादीगं । भावसंघणा दुविहा- छिष्णा प्रच्छिणाय तत्थ श्रच्छिण संघणाए सेढिदुगं उवसामगसेढी खवगसेढी य । उवसामगसेढीए पविट्टो प्रणताणुबंधिपभिइ आढत्तो उवसामेउं न थक्कइ ताव जाव सव्वं मोहणिज्जं उवसामितं । खवगसेढीए वि एवं चैव श्रपुव्वभावग्गणं करेंतो न थक्कइ ताव जाव सव्वं मोहं स्ववियं । एसा अच्छिण्णसंधणा । एवं अपसत्याओ वि पसत्यसम्मत्तभावं संकेतस्म जं पुणो अप्पसत्यमिच्छतादिभावं संकमति । एसा अपसत्यछण्णभावसंधणा । ग्रहवा - भावद्वाणं प्रदइय उवसमिय खइय-खप्रोवस मिय- परिणामिय- सन्निवाइयाणं श्रप्पप्पणी भावसरूवठाणं भण्णइ । एत्थ अधिकारी भावद्वाणेण तत्थ वि छिण्णभाव संघणाए । कहं ? उच्यते - जेण सो पसत्यभावाम्रो अपसत्यं भावं गत्र, तत्थ य मासियाति श्रवण्णी, पुणो लोणार रिण पसत्थं चैव भावं संघेति ॥ ६३०२ || इयाणि पडिवणा, सा इमा दुविहा - मूलुत्तर पडिसेवण, मूले पंचविह उत्तरे दसहा | एक्केक्का वियदुविहा, दप्पे कप्पे य नायव्वा ॥ ६३०३ || [ सूत्र- १ मूलगुणातियार पडि सेवा उत्तरगुणाइयारपडिसेवणा य। मूलगुणातियारे पाणातिवायादि पंचविह्ना । उत्तरगुणेसु दसविहा इमा पिडल्स जा विमोही, समितीतो ६, भावणाओ य ७, तवो दुविहो ८, पडिमा है, अभिग्गहा १० ! ― अहवा प्रणागमतिक्कत को डिसहियं गिट्टियं चेव सागारमणागारं परिमाणकडं गिरवसेर्स संकेयं श्रद्धापच्चक्खाणं चेति । अहवा उत्तरगुणे श्रगविहा पडिसेवणा कोहातिया । मूलुत्तरेसु दुबिहा पडिसेवणा । सा पुणो एक्केक्का दुविहा - दप्पेण कप्पेण वा ।।६३०३।। दप्पकपा पुत्रभणिता | सीसो पुच्छति किह भिक्खू जयमाणो, आवञ्जति मासियं तु परिहारं । कंटगपहे व छलणा, भिक्खू वि तहा विहरमाणो ||६३०४ ॥ पुत्रद्धं कंठं प्रायरियो भणति - कंटगपहे व पच्छद्धं कंठं ।।६३०४ ।। Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६३०१-६३१.] विशतितम उद्देशक: २८३ किं चान्यत् - तिक्खम्मि उदग्वेगे, विसमम्मि वि विजलम्मि वच्चंतो । कुणमाणो वि पयत्तं, अवसो जह पावती पडणं ॥६३०५।। पूर्ववत् दृष्टान्तोपसंहार - तह समणसुविहिगाणं, सव्वपयत्तेण वी जयंताणं । कम्मोदयपञ्चतिया, विराहणा कस्सइ हवेज्जा ॥६३०६॥ अण्णा वि हु पडिसेवा, सा उण कम्मोदएण जा जतणा । सा कम्मक्खयकरणी, दप्पाऽजय कम्मजणणी उ ॥६३०७॥ पूर्ववत् पुणरप्याह चोदक - किमेकान्तेनैव कर्मोदयप्रत्यया प्रतिसेवना उतान्योऽपि कश्चित्प्रतिसेवनाया प्रस्ति भेदः? उच्यते, प्रस्तीति ब्रुमः । यतमानस्य या कलिका प्रतिसेवना सा कर्मोदय प्रत्यया न भवति, ण य तत्थ कम्मबंधो, जतो तं पडिलेवंतस्स वि कम्मखमो भवति । जो पुण दप्पेण कप्पेण वा पत्ते अजयणाए पडिसेवणा सा कम्मं जति -- कर्मबंधं करोतीत्यर्यः । यतश्चैवं ततः इदं सिद्ध भवति - पडिसेवणा वि कम्मोदएण कम्ममवि तं निमित्तागं । अण्णोण्णहेउसिद्धी, तेसिं चीयंकुराणं व ॥६३०८॥ कंठ्या। पडिसेवणाए हेऊ ( कम्मोदयो, कम्मोदयहेऊ ) पडिसेवणा, एवमेषामन्योन्य हेतुत्वं, तस्यापि प्रसाधको दृष्टान्तः - यथा बीजांकुरयोः ।।६३०८।। दिट्टा पडिसेवणा कम्महेतु पमादमूला या, सा य खेत्तमो कहं हुज्जा ?, उवस्सये बहि वा वियारादिणिग्गयस्स । कालतो दिया वा रातो वा । भावमो दप्पेण वा कंप्पेण वा प्रजयणाए पडिसेवति । मासातिप्रतिचारपत्तेण संवेगमुवगएण पालोयणा. पउंजियव्वा । इमं च चितंतेण णज्जति केवलं जीवितघातो भविस्सति. ससल्लमरणेण दीहसंसारी भवति त्ति काउं भण्णति - तं ण खमं सु पमादो, मुहुत्तमवि अच्छितुं ससल्लेणं । आयरियपादमूले, गंतूणं उद्धरे सल्लं ॥६३०६।। मालोयणाविहाणेण पञ्छित्तकरणेण य प्रतियारसल्लं उद्धरति विसोधयतीत्यर्थः, ।।६३०६।। जम्हा ससल्लो न सिझति, उद्धरियसल्लो य सिंज्झइ। तम्हा तेण इमं चितियव्वं - अहयं च सावराही, आसो इव पत्थिरओ गुरुसगासं। वइतग्गामे संखडिपत्ते आलोयणा तिविहा ॥६३१०।। प्रणाणं प्रतियारसल्लसल्लियं गाउं तस्स विसोहणटुं गुरुसमीवे प्रस्थितो। कहं च?, उच्यते प्रश्ववत् । तं च गुरुसमीवं गच्छंतो वइयाए खदादाणियगामे वा संखडीए वा अपडिबज्झतो गच्छइ, गुरुसमीवं पत्तो मालोयणं देति, सा य पालोयणा तिविहा इमा - विहारालोयणा, उवसंपयालोयणा, प्रवराहालोयणा य ।।६३१०॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૩૬૪ से इव औपम्ये अस्य व्याख्या सिग्घुज्जुगती असो, अणुवत्तति सारहिं ण अत्ताणं । अकिओ साहू || ६३११॥ सभाष्य - चूणिके निशीथसूत्रे — ― इय संजममणुवत्तति, वइया सिग्घं मंदं वा उज्जुक्कं वा वक्रं वा सारहिस्स छंदमवत्तमाणो गच्छति, गो य प्यछंदेणं चारि पाणि वा प्रणुयत्त । एवं साधू वि जहा जहा संजमो भवति तहा तहा संजममणुवत्तमाणो गच्छर, गो वइयादिसु सायासोक्खया पडिवतो वइयादिसु वा ण वक्रेण पहेण गच्छति । प्रालोयणपरिणम्रो जति वि प्रणालोतिए कालं करेति तहावि श्राराहगो विसुद्धत्वात् ।।६३११ ।। तत्थ विहारालोयणा इमा 9 आलोयणापरिणय सम्मं संपट्टि जइ अंतरा उ कालं, करेज्ज पक्खिय चउ संवच्छर, उक्कोसं वारसह वरिसाणं । समगुण्णा आयरिया, फड्डगपतिया वि विगर्डेति ||६३१३ || संभोतिया प्रायरिया पक्खिए आलोएति, रायणियस्स । राइणितो वि श्रमरातिणियस्स प्रालोएति । गुरुसगासे । राहओ तहऽवि ॥ ६३१२ ॥ तं पुण हविभागे, दरभुत्ते ह जाव भिणो उ । तेण परेण विभाओ, संभमत्यादिसुं भतं ॥ ६३१४ ॥ जति पुराणि प्रोमो वाऽगीयत्यो चाउम्मासिए पालोएति । तत्य वि असतीते संवच्छरिए एति । तत्थ वि असतीते जत्थ मिलति गीयत्यस्स उक्कोसेणं वारसह वरिसेहि दूरातो वि गीयत्थसमीव गतं श्रालोएव्वं । फड्डुगवतिया वि श्रागंतुं पक्खियादिसु मूलायरियस्स श्रालोति ॥६३१३ ॥ इदाणि लोणार कालनियमो भणति तं विहारालयणं श्रहेण विभागेण वा देति । तत्य श्रहेण जे साधू समगुण्णा "दरभुत्ते" त्ति भोनुं प्राढत्ताणं पाहुणता श्रागता ते श्रागतुगा श्रोहेग आलोएति, जइ य अतियारो पणगं दस गण्णरस दोस fromमासो यतो श्रीहालोयणं दाउं भुजति । श्रह भिण्णमासात परेण श्रइयारो मासादितो भवति तो वीमुं मुद्दता विभागेण लोएंति । " संभमसत्यादिसु भतियं" ति संभमो अग्गिसंभमादि सत्येण वा समं गाणं अंतरा सत्यसवेसे पाहुणया प्रागया होज्ज, सत्यो य चलिउकामो, ते य मासादिया ष्णा, भायणाणि य णत्थि जे वपुं समुद्दिसिस्संति, ताहे श्रोहेणं आलोएत्ता एक्कट्टं समुद्दिसत्ता पच्छा विभागेणं श्रालोयव्वं विस्तारेणेत्यर्थः ।।६३१४।। - } हे एगदिवसिया, विभागतो एगऽणेगदिवसा तु । रति पि दिवस वा विभागयो ओहओ दिवसे ॥ ६३१५॥ सू-१ मोहालीयणा णियमा एक्कदिवसता, प्रप्पावराहत्तणम्रो आसण्णभोयणकालत्तणश्रो य विभागालोयणा एगदिवसिया वा होज, अणेगदिवसिया वा होञ्ज । Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाष्यगाथा ६३११-६३२० ] विंशतितम उद्देशक: २८५ कहं पुण अणे गदिवसिया वा होज ? बहुप्रवराहत्तणयो। बहुं पालोएयब्वं पायरिया वावडा होजा, ण वहुं वेलं पडिच्छति । प्रालागो वा वावडो होज । एवं प्रोगदिवसिता भवति । विभागालोयगा नियमा दिवसतो रनि वा भवति । अोहालोयणा णियमा दिवसतो, जेण रातो ण भुंजति ॥६३१।। पोहालोयणाए इमं विहाणं-- अप्पा मूलगुणेस, दिराहणा अप्पउत्तरगुणेसं । अप्पा पासत्थाइसु, दाणग्गह संपोगोहा ॥६३१६॥ कम्या, एवं पालोएसा मंडलीए एक्कटुं समुद्दिमति ।।६३१६।। विहारविभागालोयणाए इमं कालविहाणं - भिक्खाति-णिग्गएमुं, रहिने विगडेति फड्डगवती उ । सव्वसमक्वं केती, ते वीसरियं तु कहयंति ॥६३१७॥ प्रादिग्गहणेगं वियारभूमि विहारभूमि वा जाहे सोसपडिच्छया णिग्गया ताहे फड्डुगपती एगाणियस्स मायरियम्स पालोएति । कंड ग्रारिया भणंति -- जह फडापती सेहादियाणं सव्वसमिक्खं पालोएंति । किं कारण ?, उन्यते - ज किचि वि-सरिय पदं होज्ज तं ते सारेहिति - कहयंतीत्यर्थः । तं पुण केरिस पालोएति ? काए वा परिवाडीए ? अत उच्यते - मूलगुण पढमकाया, तेसु वि पढमं तु पंथमादीसु । पादप्पमज्जणादी, वितियं उल्लादि पंथे वा ॥६३१८॥ दुविहो अबराहो -- मूल गुणावराहो उत्तरगुणावराहो य | एत्य पढम मूलगुणा पालोएयचा, तेसु वि मूलगुणेसु पढम पाणातिवातो, तत्थ वि पढमं पृढविश्कायविराधणे जा पंथे वच्चतेण विराहणा कया, इंडिल्लामो प्रथंडिल्लं प्रपंडिल्लायो वा थंडिल्ल संकमतेग पदाण पमज्जिता, सम रक्खे मट्टियादिहत्थमत्तेहि वा मिक्खग्गहणं कतं, एवमादि पुढदिकायवि राहणं प्रा एंति । ततो पाउकाए उदउल्लेहि हत्यहिं मत्तेहि भिक्खग्गहणं कयं, पंथे वा अजयणाए उद मुत्तिष्णो, स्वमादि प्राउ काए ॥६३१८।। ततिए पतिट्ठियादी, अभिधारणवीयणादि वायुम्मि । बीतादिघट्ट पंचमे, इंदिय अणुवातियो छट्टे ॥६३१६।। ततिए त्ति ते उक्काए परंपरा दिपतिदियगहियं सजोतिवमहीए वा ठितो एवमादि तेउकाए । वाउकाए जं घम्गनेण बाहिं णिग्गंतु वातो अभिधारेउं भत्तादि सरीरं वा वीयणादिणा वीवियं, एवमादि वाउकाए । पंचमे वणम्सतिकाए बीयादिसंघट्टणा कया, भिक्खादि वा गहता, एवमादि वणस्सतिकाए । "छठे" त्ति तसकाए, तत्य इंदियात्रुवारण मालोए, पुव्वं बेइंदियाइयारं ततो तेइंदि-चरिदि-पंचेंदियाइयारं । एवमादि पाणातिवायो ।।६३१६।। दुभासियहसितादी, बितिए ततिए अजाइतो गहणे । घट्टण-पुव्वरतादी, इंदिय आलोग मेहुण्णे ॥६३२०॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१ बितिए मुसावाए, तत्थ किंचि दुम्भासित भणितं, हासेण मुसावाप्रो भासियो, एवमादि मुसावाए । ततिए त्ति प्रदत्तादाणे, तत्थ अयाचियं तणडगलादि गहियं होज्जा, उग्गहं वा अणणण्णवेत्ता कातियादि बोसिरितं होज्ज, एवमादि अदिणादाणे । मेहुणे, चेतिते महिमादिसु जगसम्मद्दे इत्थिसंघट्टणफासो सातिजियो होज्ज, पुवरयकीलियादि वा अणुसरिय होज, इत्थीण वा वयणाणि मगोहराणि इंदियाणि दठु ईसि ति रागं गतो होज, एवमादि मेहुणे ।। ६३२०॥ मुच्छातिरित्त पंचमे, छटे लेवाड अगय सुंठादि । उत्तरभिक्खऽविसोही, असमितत्तं च समितीसु ॥६३२१॥ परिग्गहे उपकरणादिसु मुच्छा कया होज्ज, अतिरित्तोवही वा गहितो होज । "पंचमे" त्ति परिग्गहे एवमादि । 'छ8" ति राईभोयणे, तत्थ लेवाडगपरिवासी को होज्ज, अगतं किंचि सुंठमादि वा सणिहियं किंचि परिभुत्तं होज, एवमादि रातीभोयणे । एवमादि मूलगुणेसु पालोयणा । उत्तरगुणेसु अविमुद्धभिक्खग्गहणं कयं होज्ज, समितीसु वा प्रसमितो होज्ज, गुनीसु वा प्रगुत्तो ।।६३२१॥ संतम्मि य बलविरिए, तवोवहाणम्मि जं न उज्जमियं । एस विहारवियडणा, वोच्छं उवसंपणाणत्तं ॥६३२२॥ कंध्या । गता विहारालोयणा। इदाणि उवसंपदालोयणा भण्णति - एगमणेगा दिवसेसु होति अोहेण पदविभागो य । उवसंपयावराहे, णायमणायं परिच्छंति !॥६३२३॥ सा उवसंपदालोयणा समणुण्णाण वा प्ररामणुण्ण ण वा, तत्थ समगुणाग सगासे समणुण्णो उवसंपअंतो दुगणिमित्तं उवसंपज्जति ॥६३२३॥ जतो भण्णाति - समणुण्णदुगणिमित्तं, उवसंपज्जते होइ एमेव । अमणुण्णेणं णवरिं, विभागतो कारणे भइतं ॥६३२४॥ सुत्तट्ठा सणचरित्तट्ठा जेण ते चरणं प्रति सरिसा चेव । “एमेव" त्ति जहा विहारालोयणा दहा उपसंपदालोयणं देंतो एगदिवसेण वा अणे दिवसे मु वा मोहेण वा पदविभागेण वा एवं समणुष्णो उवसंपदालोयणं देति । "अण्ण" इति अण्णसंभोइग्रो प्रमाणो वा असंविग्गो तेसु अण्णत्थ उवसंपज्जतेसु तिगनिमित्त उवसंपदा णाणदंसणचरित्तट्टा, विभागालोयणा य, ण पोहतो । संभमसत्थादिसु वा कारणेसु प्रोहेण वि देति एस भयणा । अवराहे वि एवं जो विसेसो भणिहिति सो उवपज्जमा णो दुविहो- णाप्रो अणाप्रो वा, जत्थ जो गज्जति सो ण परिक्खिज्जति, जो ण णज्जति सो प्रावस्सगाईहि पएहिं परिक्खिजति । एयं उरि वक्खमाणं ॥६२२४॥ दियरातो उवसंपय, अवराहे दिवसो परुत्थम्मि । उव्वाते तदिवसं, तिहं तु वइक्कमे गुरुगा ।।६३२५॥ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६३२१-६३२६ ] विशतितम उद्देशक: २८७ उवसंपदालोपणा सा (मोहेण) विभागेण वा (पोहेग) सा दिवसतो, न राम्रो । जा पुण प्रवराहा लोयणा सा विभागेण दिवसतो, न रातो। दिवसतो वि विद्विवति वातादिदोसवज्जिते "पसत्थे" दयातिसु य पसत्थेसु, एयं पि वक्खमाणं, प्रवराहे वि ग्रोहालोयणा अववादकारणे भतियत्वा ॥६३२५॥ "उव्वातो" ति पच्छद्ध अस्य व्याख्या - पढमदिणे म विफाले, लहुओ बितिय गुरु ततियए लहुगा । तस्स विकहणे ते चिय, सुद्धमसुद्धो इमेहिं तु ॥६३२६।। अमणुण्णो जो उवसंपज्जगद्वयाए प्रागमो मायरियो तं जति पढमदिवसे ण विफालेति न पृच्छती. त्यर्थः । कुतो प्रागतो ? कहिं वा गच्छति ? किं णिमित्तं वा प्रागतो ?" एवं अपुच्छमाणस्स तद्दिवसं मासलहुं, बिनियदिदसे जति ॥ पुच्छति चउलहुं, "तिण्हं तु वइक्कमे गुरुगा" इति च उत्थदिवसे जति ण पुच्छति । सो वि पुच्छियो भणति – “कहेहामि" मासलहुं, बितियदिवसे मासलहुँ, ततियदिवसे ४ (ल), चउत्थदिवसे प्रकहेंतस्स च उगुरुगा । अहवा - "दिवसे" त्ति पढमदिवसे "उव्वाते" श्रान्ता इति कृत्वा ण पुच्छितो प्रायरिप्रो सुद्धो। अह बितियदिवसे ण पुच्छति तो मासगुरु । ततिए ण पुच्छति चउलहुँ, चउत्ये दिवसे चउगुरु । एवं तेण पुच्छिएण वा अक्खायं जेण कज्जेण प्रागयो। तस्स पुण प्रागंतुगस्स प्रागमो सुद्धो प्रसुद्धो वा हवेज्ज, एत्थ चत्तारि भंगा। इमेण विहणा भंगा कायव्वा - शिग्गमणं पि प्रागमणं पि असुद्धं । एवं चउरो भंगा कायबा । तत्थ णिग्गमो इ भवति ॥६.२६॥ अहिकरण विगति जोए, पडिणीए थद्ध लुद्ध णिद्धम्मे । अलमाणुबद्धवेरो, सच्छंदमती परिहियव्वे ॥६३२७॥ 'अहिकरणे" त्ति अस्य व्याख्या - गिहिसंजयअहिकरणे, लहुगा गुरुगा तस्स अप्पणो छेदो। विगती ण देति घेत्तुं, भोत्तुद्धरितं च गहिते वि ॥६३२८॥ जति निहत्थेण सम अहिकरणं काउं प्रागो तं पायरि प्रो संगिण्हइ तो चउलहुगा। मह संजएण समं महिकरणं काउं पागतं संगिण्डइ तो चउगुरुगा, तस्स पुण प्रागंतुगस्स पंचराइंदिनो छेदो। अहवा -- पुट्ठो अपुटो या इमं भणेज्ज - “विगति" त्ति “विगती ण" पच्छदं ।।६३२८।। किच - ण य वज्जिया य देहो, पगतीए दुब्बलो अहं भंते ! । तब्भावितस्स एण्हिं, ण य गहणं धारणं कत्तो ॥६३२६।। सो य प्रायरिमो विगतिगिण्हणाए । देति जोगवाहीणं । “२गहियं" ति अण्णेहि भुत्तद्धरियं तं गि नाणुजाणइ, किं वा भगवं अम्हे ण पव्वजितवसभस्म तुल्ला, अण्णं च प्रम्ह सभावेणेव दुब्बला विगतीए बलामो मण्णं च अम्हे विगतिभावियदेहा इदाणिं तस्स प्रभावेण बलामो, ण य सुत्तत्थे घेत्तुं समत्था, गुवगहिए वि धरितुं समत्था | भवामो ॥६३२६॥ १ गा० ६२२० । २ गा० ६२२० । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ सभाष्य- चूर्णिके निशीथ सूत्रे "जोगे पडिणीए " त्ति दो दारे जुगवं वक्खाणेति एगंतरणिब्विगती, जोगो पच्चत्थिको त्र तहि साहू | चुक्कखलितेसु गेहति छिट्टाणि कहेति तं गुरुणं ॥ ६३३०|| पुच्छि भणाति तस्स प्रायरियम्स एंगंतरउवासेण जोगी वुज्झइ. एगंतर आयंबिलेण वा, जोगवा हिस्स वा ते प्रायरिया विगति ण विसज्जति, एवमादि कल्वडो जोगो त्ति तेण श्रागयो । पुच्छिप्रां वा भणे - तम्मि गच्छे एगो साधू मम " पच्चत्थिगो" त्ति - पडिणीम्रो । कहं चि सामाया रिजोगे चुक्केति, वीरुरिए खलिए वि दुष्पडिलेहादिके गेण्हति श्रच्चत्थं खरंटेति, चुक्कखलिताणि वा भवराहपदच्छिद्दाणि गेण्हति सेय गुरूणं कहेति, पच्छा ते गुरुवो मे खरिटेति । ग्रहवा - प्रणाभोगा चुक्कखलिताणि भण्णंति, जं पुत्र ब्राभोगम्रो प्रसामायारि करेइ तं छिद्दं भणति ॥ ६३३० ।। दाणि "थद्ध-लुद्ध" दो वि भण्णति - - - चकमणादी उट्टण, कडिगहणे झाओ णत्थि थद्धवं । उक्कोस सयं भुंजति, देत गेसिं तु लुद्ध वं ॥ ६३३१ ॥ प्रायरिया जइ वि चकमणं करेंति तहावि प्रब्भुट्टे यव्वा प्रदिग्गहणातो जइ वि काश्यभूमि गच्छति श्रागच्छति वा, एवमादि तत्थ श्रब्भुट्टंताणं श्रम्ह कडीम्रो वाएण गहिताश्रो, प्रभुद्वाणपलिमयेण यह सभा तत्थ ण सरति । श्रह ण न्युमो तो पच्छितं देति खरंटेति वा, एवं थद्धो भणाति । जो लुद्धो सो भणाति जं उक्कसयं किंचि वि सिद्दिणिलडुगादि लब्भति तं श्रपणा भुजति, अण्णांसि वा बाल-वुड दुब्बल - पाहुणगाण वा देति, अम्हे ण लब्भामो, लुद्धो एवं भणाति ।।६३३१।। - "द्धिम्म ग्रलसे" दो वि जुगवं भणाति १ भसितः । आवासियमज्जणया, अकरण अति उग्गडंड विद्धम्मे । बालादट्ठा दीहा, भिक्खाऽलसियो य उन्भामं ॥ ६३३२ || जो णिद्धमो सो पुच्छिश्रो भवति जइ कहिं चि भावसिता निसीहिया वा ण कज्जति ण पमज्जति वा, णितो पविसंतो वा । डंडगादि वा णिक्खिवंतो ण पमज्जति, तो श्रायरिया "उग्गो" - दुट्टत्ति वृत्तं भवति, पच्छितं देति, ग्रहवा - उग्गं पच्छित्तडंडं देति णिरणुकंपा इत्यर्थः । - [ सूत्र - १ जो प्रालस्सिम्रो सो भणाति अप्पणी पज्जते व गच्छे हिडिज्जद, खुडुलकं कक्खडं वा तं खेत्तं दिणे दिणे ग्रामान्तरं गम्यत इत्यर्थः । अपज्जते प्रागया गुरु भांति - "किमिह वसहीए महाणसो जं अपज्जत्ते भागता ? वञ्चह पुणो, हिंडह खेत्तं, कालो भायणं च पहुप्पह, " एवमादि दोहभिक्खायरियाए 'भत्थितो भागतोमिति ॥ ३६३२ ।। अणुबद्धवेरो य सच्छंदो य दो वि जुगवं भणाति - बालबुड्डाणं पट्टाए दोहा भिक्खार्थरिया तम्मि "उब्भामं" ति भिक्खायरियं गम्मइ प्रतिदिनं पाणसुणगा य भुंजंति, एक्कर असंखडेव मणुबद्धो । एक्कल्लस्स ण लग्भा, चलितुं पेवं तु सच्छंदो ॥ ६३३३॥ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ६३३०- ६३३६ ] विशतितम उद्देशक: - प्रणुबद्धवेरो भणाति - येवं वा बहुं वा प्रसंखडं काउं जहा सुलगा पाणा वा परोप्परं तक्खणादेव - एककमायणे भुजति एवं तत्थ संजया वि, णवरं मिच्छादुक्कडं दाविज्जति । भ्रम्हे उण सबकेमो हियत्येमं सल्लेगं तेहिं समं समुद्दिसिउं । एवं भागम्रो प्रबद्धवेरो भणाति । जो सच्छंदो सो भणाति -सण्णाभूमि पिएगाजियस्स गंतुं ण देति, नियमा संघाडसहिएहि गंतव्यं । तं श्रसहमाणो प्रागश्रो हं । एते अधिकरणादिए पदे प्रायरितो सोउं परिच्चयइ, न संगृण्हातीत्यर्थः ।।६३३३॥ ग्रधिकरणादिहिं पदेहिं आगयस्स इमं पच्छित्तं - समणऽधिकरणे पडिणीय लुद्ध अणुबद्धवेरे चउगुरुगा । सेसाण होंति लहुगा, एमेव पडिच्यमाणस्स || ६३३४॥ जो समगेहि सममधिकरणं काउं प्रागतो, जो य भणाति तत्थ मे पडिणीतो साहू, जो य लुद्धो, जो अणुबद्धवेरो, एतेसु चउमु उगुरुगा, सेसेसु छसु गिहिश्रकिरणे य चउलहुगा । जो य प्रायरिभ्रो एते पडिन्छति तस्प वि एवं चेत्र पच्छित्ता ॥ ६३३४ ॥ ग्रहवा - जे एते दोसा वृत्ता एतेसि एक्केण वि णागग्रो होज्ज । इमेहिं दोसेहिं प्रागो होज्ज - हवा गेऽपरिणते, अप्पाहारे य थेरए । गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहुडे || ६३३५॥ एस सोलसमे व्याख्यातो, तथापि इहोच्यते - एक्कल्लं मोत्तूर्णं वत्थादिकप्पिएहि सहितं वा । सो उ परिसा व थेरा, अहऽण्ण सेहादि वट्टावे ||६३३६|| श्रायरियं गागि मोतुं ण गंतव्वं, प्रसणवत्थादिकप्पिया सेहसहियं च मोत्तुं ण गंतव्वं । "अप्पाहारो" नाम जो प्रायरियो संकियसुतत्था, तं चैव पुच्छिउं वायणं देति, तारिसं वि मोत्तुं ण गंतव्वं । "थेरं " ति प्रजंगमं गुरु, परिसा वा से थेरा, तेसिं सेहाण थेराण य श्रहं चेव वट्टावगो ग्रासि ।। ६३३६ ।। तत्थ गिलाणो एगो, जप्पसरीरो तु होति बहुरोगी | द्विम्मा गुरु आणं, न करेंति ममं पमोत्तूर्णं || ६३३७॥ तत्थ वा गच्छे एगो जररादिणा गिलाणो, तस्स श्रहं चैव वट्टावगो प्रासी । बहूहि साहारणरोगेहि जप्पसरीरो भणति तस्सवि श्रहं चेव वट्टावगो प्रासी । मंदधम्मा गुरु भ्राणं न करेंति मम पुण एगस्स करेंति । संजय गिहीहि वा सह अधिकरणं काउं भागतो, गुरुस्स वा केणइ सह ग्रहिकरणं वट्टति ।। ६३३७॥ एतारिसं विउसज्ज, विप्पवासो ण कप्पती । सीसप डिच्छारिए, पायच्छित्तं विहिज्जती ॥ ६३३८|| पुवद्धं कंठं । एरिस मोत्तुं जइ सीसो आगनो पच्छिमो वा, जो य पडिच्छर प्रायरियो तेसि इमं पच्छितं ॥ ६३३८ ॥ एगो गिलाणपाहुड, तिन्ह वि गुरुगा उ सीसगादीणं । सेसे सीसे गुरुगा, लहुय पडिच्छे गुरू सरिसं ||६३३६|| २८६ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९. सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१ जो एगागि गुरु मोत्तुं प्रागमो, गिलाणं वा मोत्त, अधिकरणं वा काउं प्रागमो, एतेसु सीसम्स पडिच्छगस्स पडिच्छमाणस्स य प्रायरियस्स तिण्हवि चउगुरुगा। जेण अण्णे सेसा अपरिणय अप्पाहार थेर बहुरोग मंदधम्मा य-एतेसु जइ सीसो प्रागो चउगुरुगा, ग्रह पडिच्छतो तो चउलहुगा, गुरुस्स भयणा । “सरिसं व" ति जइ सीसं मेहति तो चउगुरुगा, पडिच्छगे चउलहगा. ॥६६३६॥ अहवा पाहुडे इमं - सीसपडिच्छे पाहुड, छेदो राईदियाणि पंचेव । पायरियस्स उ गुरुगा, दो चेव पडिच्छमाणस्स ॥६३४०॥ सीसस्स पडिच्छगस्स वा अहिकरणं काउं अण्णगच्छे संवसंतस्स पंवराइदिन छेदो भवति, पुरुस्स पडिच्छमाणस्स चउगुरुगा । एते पढमभंगे णिग्गम-दोसा भणिता, प्रागमो वि से असुद्धो भवति, वइयादिसु पडिवज्जतो प्रागतो तत्थ वि पच्छित्तं वत्तव्वं ॥६३४०।। एस पढमभंगो गतो, बितियभंगो वि एरिसो चेव, णवरं पागमो सुद्धो।। इमे उक्कमेण ततिय-चउत्थभंगा - एतद्दोसविमुक्कं, वतियादी अपडिबद्धमायायं । दाऊण व पच्छित्तं, पडिबद्धं वी पडिच्छेज्जा ॥६३४१॥ इमो चउत्थो भंगो। एतेसु जे प्रधिकरणादी णिग्गमदोसा तेसु वज्जितो आगमणदोसेसु न वइयादिसु अपडिबज्झतमागप्रो जो, एस चउत्थभंगिल्लो सुद्धो। ___ ततियभगे जिनमदोसेसु सुद्धो प्रागमणदोसेसु वइयादिसु जो पडिबज्झतो पागनो तं ण पडिम्छति । प्रववादतो वा तस्स पच्छित्तं दाउं पडिच्छंति, ण दोषेत्यर्थः ॥६३४१।। सुद्धं पडिच्छिऊणं, अपरिछिण्णे लहुग तिणि दिवसाई । सीसे आयरिए वा, पारिच्छा तत्थिमा होति ॥६३४२।। यथोक्तदोषरहितं सुद्धं पडिच्छित्ता तिणि दिवसाणि परिविवयवो-कि धम्मसहितो ण व ति, जहण परिक्खंति तो चउलहुगा, अण्णायरियाभिप्रायेण वा मासलहुं । सा पुण परिक्खा उभयो पि भवति ।।६३४२।। एत्थ पढमं ताव तस्स परिक्खा भण्णति - आवासग सज्झाए, पडिलेहण भुंजणे य भासाए । वीयारे गेलन्ने, भिक्खग्गहणे परिच्छति ।।६३४३।। केई पुव्वणिसिद्धा, केई सारेंति तं न सारेंति । संविग्गो सिक्ख मग्गति, मुत्तावलिमो अणाहोऽहं ॥६३४४॥ केइ ति साहू भवराहपदा वा संबज्झति, तस्स उवसंपदकालापों पुवणिसिद्धा “प्रज्जो ! इमं इम चन कायव्वं", जत्थ जड पमादेति ते सारिज्जति त्ति वुत्तं भवति, णो उवसंपज्जमाणं तेसु णिसिद्धपदेसु वद्रमाणं सारेंति ॥६३४४।। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विंशतितम उद्देशक: तत्थ आवस्सए ताव इमेण विहिणा परिक्खिज्जइ - माष्यगाथा ६३४०-६३४८ ] हा हियविवरी, सति च बले पुव्वगतें चोदेति । अप्पणए चोदेती, न ममं ति इहं सुहं वसितुं ॥ ६३४५॥ होणं गाम काउस्सग्ग सुत्ताणि दरकड्डिताणि करेत्ता भण्णेहिं साधुहि चिरवीसट्ठेहि वोसिरइ, अधिकं नाम काउसम्मसुताणि श्रतितुरितं क ेता प्रणुपेहणट्टाए पुत्रमेव वोसिरइ, उस्सारिए वि रायणिएणं पच्छा उस्सा रेति, विवरीए त्ति पानोसियका उस्सग्गा पभातिए जहा करेति, पभाइए वि पादोसिए जं करेति । ग्रहवा- सूरे अत्यमिते चेव णिव्वाघ ते सह श्रायरिएण सव्वसाहूहि पडिक्कमियव्वं, श्रह प्रायरिया सड्ढा तिधम्मकहा वाघातो होज्ज तो बालवुड्ढगिलाणश्रसहु णिसेज्जघरं च मोत्तुं सेसा सुत्तत्थकरणटुता का उस्तग्गेण ठायंति, जे सति बले पुव्वं काउस्सग्गे गोट्ठति थेरा तेसु श्रप्पणाए चोदेंति, जो पुण परिक्खिज्जइ सो ण चोइज्जइ पमादेतो । ताहे जइ सो एवं च सति "सुठु जं मे ण पडिचोदेति, सुई अच्छामि सो पंजरभग्गो णायव्वो ण पडिच्छित्त्रो ||६३४५ ।। - ग्रहणमंते ण पचोदेति त्ति काउं" "संविग्गो सिक्खं मग्गति" पच्छद्ध अस्य व्याख्या - जो पुण चोइज्जतो, दट्टूण ततो नियत्तती ठाणा । भणति अहं भे चत्तो, चोदेह ममं पि सीदंतं ॥ ६३४६ ॥ जति पुण सो भणति जेसुठाणेसु श्रहं पपादेमि तेसु चेत्र ठाणेसु अप्पणी सीसा पमादेमाणा पडिचोइज्जति, अहं तु ण पडिचोदजामि "अणाहोऽहं”- परिचतो, ताहे संविग्गविहारं इच्छतो प्रासेवणभिक्सं मग्गंतो अप्पणी चेव ततो ठाणाश्रो नियत्तति, अहवा - छिण्णमुत्तावलिपगासाणि मंसूणि विणिमुपमाणे प्रायरियाणं पादेसु पडिप्रो भणाति - मा मं सरणमुवगयं पडिच्चयह, ममं पि सीदंतं चोएह ॥ ६३४६ ।। एसा ताव प्रावस्तयं पडुच्च, परिक्खा गता । इदाणि सज्झाय-पडिलेहण भुजण-भासदारा पडुच्च परिक्खा भण्णति पडिले हणसज्झाए, एमेव य हीण अहिय विवरीए । दोसेहि वा विभुंजति, गारत्थियढडूरा भासा || ६३४७॥ पडिले हणकालतो हीणं श्रहिय वा करेंति ग्रहवा - खोडगादीहं हीणं श्रहियं वा करेति विवरीगं नाम मुहपोत्तियादी पडिले हेति, ग्रहवा पर रयहरणं त्ति पच्छिम पडिलेहेति, अवरण्हे पढमं अप्पणी - पडिलेहेत्ता सेहगिलाणपरिणि पच्छा प्रायरियस्स एवं वा विवरीयं । सञ्झाए वि होणं - प्रणागताए कालवे नए कालस्स पडिक्कमति, श्रहियं प्रतिच्छिताए कालवेलाए कालस्स पडिक्कमति, वंदनातिकिरिय हीणातिरित करेइ, विवरीयं पोरिसिपाढं उग्वाडकालियपोरिसीए परियट्टेति वा विवरीयं करेइ, सत्तविहश्रालोवगविहोते ण भुंजति, कार्यसिगालक्खतियादिदोमेहिं वा भुंजति, सुरसरादिदो रोहिं वा भुजति, सावज्जादि भासा वा भासति एतेसु चोदणा तहेव भाणियन्त्रा जहा आवस्सए भणिता ।। ६३४७ ।। - साणि तिणि दाराणि एगगाहाए वक्खाणेति - थंडिल्लसमायारी, हावेति तरंतगं न पडिजग्गे । मणि भिक्खण हिंडर, असणादी व पेल्लेति ॥ ६३४८ || गा० ६३४४ । २ गा० आलोकादिविधिना सूत्रोक्तेन न भुंक्ते । . २६१ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१ थंडिल्ले पादपमज्जणा डगलगहणा दिसालोगादिसामायारिं परिहावेति, गिलाणं ण पडिजग्गड, गिलाणस्स वा खेलमल्लादि वेयावच्चं ण करेति, भिवखं ण हिंडइ, दरहिंडतो वा सण्णियट्टइ, कोटलेण वा उप्पाएति, अणेसणाए वा गेहति ॥६३४८।। तस्स पुण इमानो ठाणाप्रो आगभो होज्ज - जयमाणपरिहवेंते, आगमणं तस्स दोहि ठाणेहिं । पंजरभग्गअभिमुहे, आवासयमादि आयरिए ॥६३४६॥ ___ सो जयमाण साधूण मूलाग्रो प्रागमो होज्ज, परिहवेंताण वा मूलामो प्रागप्रो होज्ज, परिहविता नाम पासत्थादी, तत्थ जो जयमाणगाणं मूलातो पागतो सो णाणदंसणट्टाए वा प्रागतो, पंजरभग्गो वा प्रागतो। जो पुण परिहवेंताण मूलातो पागतो सो चरित्तट्टाए उज्जमिउकामो । प्रहवा - प्रज्जमिउकामो विणाणदंसणट्ठाए । अहवा - जो जयमाणेहिंतो पागमो सो पंजरभग्गो, जो पुण परिहवेंतेहितो प्रागतो सो पंज राभिमुहो । एतेसु दोसु वि प्रागएसु प्रायरिएण प्रावस्सयादिपरिच्छा कायव्वा ॥६३४६।। आह पंजर इति कोऽर्थः ? अतः उच्यते - पणगादि संगहो होति पंजरो जाय सारणऽण्णोण्णे । पच्छित्तचमढणादी, णिवारणा सउणिदिटुंतो ॥६३५०॥ पायरियो उवज्झातो पवत्ती थेरो गणावच्छेतितो एतेहिं पंचहि परिग्गहितो गच्छो पंजरो भण्णति, पादिग्गहणाप्रो भिवखु-वसह-वुड्ड-खुडगा य घेप्पंति । अहवा - जं पायरियादी परोप्परं चोदेंति मितं मधुरं सोवालभं वा खरफरुसादीहिं वा चमढेत्ता पच्छित्तदाणेण य असामायारीमो णियत्ति ति एसो वा पंजरो। पंजरभग्गो पुण एवं चेव असहतो गच्छप्रो णोति । "गच्छम्मि केई पुरिसा कारग गाहा कंठा । "जह सउण पंजरे दुक्खं अच्छति तहा" ~ एत्थ सउणदिटुंतो कजति - जहा पंजरत्थस्स सउणस्स सलागादीहं सच्छंदगमण णिवारिजति एवं प्रारियादि पुरिसगच्छपंजरे सारणसलागादियं सामायारि उम्मग्गगमणं णिवारिबति । एत्थ जे संविग्गाणं मूलामो णाणदसणढाए पागता, जे य परिहतेण मूलाग्रो आगया चरित्तट्ठा एते संगेण्हियव्वा। जे पुण पंजरभग्गा गाणदंसणढाए पागता, जे परिहवेंताण मूलागो गाणदंराणट्टाए मागया, एते न संगिहियव्वा ॥६३५०॥ एत्थ जे संगिव्हियव्वा ते एगो वा होज, अणेगा वा। जतो भणति - ते 'पुण एगमणेगाणेगाणं सारणं जहा कप्पे । उवसंपद प्राउट्टे, अविउट्टे अण्णहिं गच्छे ॥६३५१।। तत्थ जे अणेगा तेसिं सोदंताणं सारणा जहा कप्पे भणिता "उबदेसो सारणा चेव ततिता पडिसारणा" इत्यादि, 'घट्टिज्जतं वत्थं प्रतिरुवणकुंकुमसिली जता" इत्यादि। जो पुण एगो सो असामायारिं करेंतो चोदितो जइ पाउट्टितो तस्स उवसंपदा भवति, प्रविउ?" त्ति - जति ण प्रा उट्टितो, भण्णति 'अण्णहि गच्छे" ति ।।६३५१॥ एसा आगयाणं परिच्छा गता। १ "जे पुण' इति चूर्णी। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६३४६-६३५६ ] विशतितम, उद्देशकः अहवा - एयं पच्छद्धं - अण्णा भण्णति - तेण वि प्रागंतुणा गच्छो परिच्छियब्वो श्रावस्सगमादीहि पुनर्भाणयदा रहि । गच्छिलगाणं जति किचि प्रावस्सगदारेहि सीदंतं परसइ तो प्रायरियातीणं कहेति, जति यो कहिए सम्मं प्राउट्टति ति तं साधुं चोदेति पच्छितं च से देति तो तत्य उवसंपदा । श्रह कहिते सो प्रायश्रितुसिणी प्रच्छति भगति वा - किं तुज्झ, णो सम्मं प्राउट्टति ? तो प्रविउट्टे प्रायरिए अण्णहि गच्छति प्रन्यत्रोपसंनतेत्यर्थः ॥६३५२ ॥ ततियभंगिल्ले इमा पडिच्छणविही " णिग्गमणे परिमुद्धो, आगमणे सुद्धे देति पच्छित्तं । णिग्गमण परिसुद्ध, इमा उ जयणा तहिं होति ||६३५२ || ततियमं गिल्लस्स वडयादिसु पडिबद्धस्स सुद्धस्स जं भावष्णो तं पच्तिं दाउ परिच्छति । जति पूण पढमबितिज्जेश वा भंगेण अहिकरणादीहि एगे अपरिणयादीहि वा श्रागता, जे य पंजरभग्गा, जे परिहावेंतेसु णाणदंसणद्वाते श्रागता ते ण संगिहियव्वा, न य फुडं पडिसेहिज्जति ॥ ६३५२ ।। तेसि इमा पडिसेहणजयणा - णत्थि संकियसंघाडमंडली भिक्ख बाहिराणयणे । पच्छित विसग्गे, णिग्गय सुत्तस्स छष्णेणं ॥ ६३५३॥ 4 " णत्थि संकिय" अस्य व्याख्या - त्थेयं मे जमिच्छह, सुत्तं मए श्रम संकियं तं तु । न य संकियं तु दिज्जइ, णिस्संकसुते गवेसाहि ||६३५४ || — जं एतं सुत्तत्थं तुभे इच्छह एयं सम णत्थि । ग्रह सो भणाति - अण्णसमीवे सुतं मए जहा तुब्भं एयं श्रत्थि ग्रहवा भणाति • मए चेव तुमं वायणं देता सुप्ता । प्रायरियो भणाति - श्रामं ति सच्च, दाणि तं मे संकितं जातं, ण य दाणजोग्गं, ण य संकियसुत्तत्थं दिज्जति श्रागमे पडिसिद्धं गच्छ मण्णतो जत्थ णिस्संकं सुतं ॥ ६३५४ || तं संघाडए त्ति जो संघाडयस्स उव्वयाति सो भण्णति एक्कल्लेण ण लब्भा, वीयारादी वि जयण सच्छंदे । भोणसुते मंडल, पढ़ते वी अंत ||६३५५ || २६३ सणभूमिमादि णिग्गंत एसा सच्छंदेण इमाए जयणाए पडिसेहिज्जति । जो य मंडलीते समुद्दिसियन्वं, सुत्तत्थमंडली सु अहं एरिसा सामायारी जो संघाडणं विणा लब्भति जयणा । " मंडलि" त्ति जो सो प्रणुबद्धवेरत्तणेण श्रागतो सो सुत्तमंडलीए उव्वियाति, "भोयण" पच्छद्धं, ग्रम्हं मामायारी अवस्सं जति ण पढति ण सुणेति वा तहावि मंडलीए उवविट्ठो अच्छति ण सच्छंदेश प्रच्छिउं लब्भति ।। ६३५५॥ सं भणति बाहि, जति हिंडसि अम्ह एत्थ बालाती । पच्छित्तं हाडहडं, अवि उस्सग्गं तहा विगती ||६३५६ || १ गा० ६२५३ । २ गा० ६२५३ । ३ ० ६२५३ । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [मूग-१ 'बाहिराणयणे" ति जो पालस्सियत्तणेणं प्रागतो सो इमाए पडिसेहिज्जति, प्रलसितो भणति - अहं एत्थ सखेते बाल-गिलाण-वुड्डावि हिंडंति, जति दिणे दिणे भिक्खायरियं करेसि तो मत्थ पच्छित्तंति । जो निधम्मो “अइउग्गदंडो मायरिमोत्ति" एतेहिं कारणहिं प्रागतो सो इमाए जयणाए पडिसेहिज्जति सो प्राई सामायारी जइ दुप्पमज्जियादीणि करेति तो विप्रम्हं हाडहडं पच्छित्तं दिज्जति, हाडहडं णाम तत्कालं चेव दिज्जति ण कालहरणं कज्जति । "प्रवि उस्सग्गे" ति जो सो प्रविगती णाणुजाणति ति प्रागनो, सो भणति-प्रम्ह सामायारी जोगवाहिणा विगतिका उस्सगं अकरेंतेण पढियव्वं । "तह" ति - किं चान्यत् - अम्हं सामाचारी जोगव हिणाऽजोगवाहिगा वा विगती न गृहीतव्या इत्यर्थः । अहवा - "तह" त्ति जं सो कारणं दीवेति तस्स तहेव प्रतिलोम उवण्णसिज्जति ॥६३५६।। एत्थ चोदग आह - तत्थ भवे मायमोसो, एवं तु भवे अणज्जवजुतस्स । वुत्तं च उज्जुभूते, सोही तेलोक्कदंसीहिं ॥६३५७॥ तत्रेति या एषा णिग्गमे असुद्धे उव'एणं पडिसेहणा भणिता । अत्र कस्यचिन्मतिः स्यात् - एवं पडिसेहतस्स माया भवति मुसावायं च भासति, जेण विज्जमाण सुतं णत्थि ति भणति संकियं वा, एवं संघाडगादिसु अणज्जवं अरिजुत्तं करेमाणो मायामुसावाएण य जुत्तो भवति अवज्जवयणजुत्तो वा, उक्तं च .. "सोही उज्जुग्रभूतस्स य" कारग - सिलोकोऽयं, तं च प्रज्जवं अकरम णस्स संजनसोही ण भवति । आचार्याह - ण मायामुसावानो य, जतो कारणे मायामुसानातो य अणुमायो । इमं च कारणंणिग्गमणं से प्रसुद्धं, तेण उवायपडिसेहो करो ।।६३५४।। कि च -- एसा उ अगीयत्थे, जयणा गीते वि जुञ्जती जं तु । विद्देसकरं इहरा, मच्छरिवादो य फुडरुक्खे ॥६३५८|| एवं अगीयत्था पडिसेधिज्जति, गीयत्था पुण फुडं चेव भणति, ते सामायारी जाणता किह अप्पतियं दोसं वा कहेंति, तेसु वि य जं मातामुतावादकारणं जुज्जति तं च कायव्वं । अगीयत्थाणं पुण "इहर" ति फुडं भर्णताणं विहेसकरं भवति, चितंति य, एते मच्छरभावेण ण देंति सुत्तत्थे । सपक्खजणे य न एवं प्रदाणेण मच्छरभावो भवति । सम्भूयदोसुच्चरणं फुडं, हवज्जियं रुवख, अहवा - फुडमेव रुक्खं तं च अधिकरणादि रागादिणा वा दोसेण प्रागतो ति ण पडिच्छानो, एत्थ मच्छरभाव अयसो संपज्जति ।।६३१८।। एतेसिं पडिच्छाण इमो अववातो - णिग्गमसुद्धमुवाए ण वारितं गेण्हती समाउट्टे । अहिकरण पडिणिऽणुबद्धे, ए गागि जहं ण संगिण्हे ॥६३५६।। पत्र प्रकारलोपो दृष्टव्यः, एवं णिग्गमो असुद्धो जस्स सो उवाएण जयणाए वारियो ण पडिच्छत इत्यर्थः । अहवा - दोसा जहा वारणामो ण उत्पज्जति तहा उवाएण वारितो प्रतिषिद्ध इत्यर्थः । पडिसिद्धो जइ सो भणइ "मिच्छामि दुक्कडं, ण पुणो एव काहं, जं वा भणइ तं करेमि, मुक्को मे पावभावो दुग्गइवट्टयो इहलोए वि गरहितो" एवं प्राउट्टो गेण्हियन्यो । तत्थ वि इमो ण गेण्हियवो-जो अधिकरणं काउमागतो, जो म पडिणीमो ति भणतो, जो य अणुबद्धरोसो जेण प्रायरियो एगादि भावेश ज हो ॥६३५६।। १ गा० ६२५३ । २ गा० ६२५३ । ३ उत्त० अ. ३ गा० १२ । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६ ३५७-६३६३ ] विशतितम उद्देशक: २६५ पडिणीए इमो अववादो पडिणीयम्मि वि भयणा, गिहम्मि आयरियमादिदुट्ठम्मि । संजयपडिणीए पुण, ण होति तं खाम भयणा वा ॥६३६०॥ . ___इमा भयणा, कोति गीयत्थोपायरियस्स पदुट्ठो, मादिग्गहगेणं उबज्झाय-पवत्ति-थेर-गणावच्छेदग-भिक्खूण, सो उवसामिज्जते वि गोवसमति, तस्स भएण प्रागतो स गिहियव्वो । जइ पुण संजतो मे पदुट्ठा पडिणीय त्ति भणेज्जा तो ण होइ उवसंपदा, ण पडिच्छिज्जति त्ति वुत्तं भवति । अहवा सो भण्णति - गच्छ, तं खामेउं प्रागच्छ । जइ वुत्तो गतुं तं ण खामेति तो ण पडिच्छिज्जति, गयस्स वा सो ण खमति तो पच्छागतो पडिच्छिज्जति । अहवा सो भणेज्ज - मए प्रागच्छमागेण स्वामितो ण खमति तो पडच्छियव्वो चेव, एसा भयणा ।।६३६०॥ ___ इदाणि जे अविसुद्धणिग्गमा - उवाएण वारिता वि स गच्छंति, जे य विसुद्धणिग्गमा पडिच्छिता वि सीदति, तसि वोसिरणविही इमो। "णिग्गयसुत्तस्स छष्णेण" ति वयणा, जया भिक्खादिगतो होति तदा छड्डत्ता गच्छति । सुत्तस्स वि प्रायरिया दिवसतो सोऊणं पव्वइए वि रातो पढमपोरिसीए सावेत्ता तस्स पुण प्रक्खेवणा कहा कहिज्जति ताव जाव णिहावसंगतो ज हे पासुत्तो ताहे संजता उट्रावेत्ता तं सुत्तं छडुत्ता वच्चति । छण्णेणं ति अप्पसागारियं मंतं मंतेति, नो अपरिणयाणं तप्पक्खियाणं । वच्चतो ण य कहेंति जहा णस्सियव्वं, मा रहस्स भेदं काहिति । जति सो चेव पच्छा समाउट्टो पागतो जो य सुद्धणिग्गमो य एते दंसणाइयाणं ति एगट्ठा पागता पडिच्छियव्वा । तत्थ दंसण-णाणेसु पुव्वद्धगहितो इमो विधी - वत्तणा संधणा चेव, गहणं सुत्तत्थ तदुभए । वेयावच्चे खमणे, काले आवकहादि य ॥६३६१॥ एते वत्तणादिपदा सगच्छे असतीए वक्खेवेण वा णत्थि परगच्छे पुण जत्य वत्तणादिया णियमा अस्थि तत्य उवसंपदा । पुबगहियस्स पुणो पुणो प्रभस्सणा वत्तणा, पुब्बगहियविसरियस्स मुक्कसारणा संघणा, अपुवस्स गहणं, एते तिणि विगप्पा सुत्ते, प्रत्ये वि तिण्णि उभए वि तिण्णि. एए शव विगप्पा । उत्तरचरणोवसंपदट्ठा उवसंजतो वेयावच्चकरणखमगकरणट्टया वा उपसंपज्जति, ते पुण वेयावच्चस्खमाने कालतो प्रावकहाते त्ति जावजीवं करेइ, प्रादिग्गहणालो इत्तरिय वा कालं करेज ॥६३६१।। तत्थ दंसणणाणा इमे, इमा य तेसु विही - दसणणाणे सुत्तत्थ तदुभए वत्तणादि एक्केक्के । उवसंपदा चरित्ते, वेयावच्चे य खमणे य ।।६३६२।। दसणविसोहया जे सुत्ता सत्थाणि वा तेसु सुत्तेसु वत्तणा संघणा गहणं, एवं प्रत्ये तिगं, तदुभए तिगं, "एक्केक्के" त्ति - एवं दंसणे णवविगप्पा, आयारादिए य णाणे एवं चेव विगप्पा । चरित्तोवसंपया इमा दुविहा - वेयावच्चट्ठता खमणट्ठा वा ।।६३६२।। सुद्ध पुण अपडिच्छंतस्स इमं पच्छित्तं - सुद्धपडिच्छणे लहुगा, अकरते सारणा अणापुच्छा । तीसु वि मासो लहुओ, वत्तणादीसु ठाणेसु ।।६३६३॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१ जं गुरुसगासे सुत्तत्थं तं मे गहित गुरूहि अणु ण्णासो, विहीए प्रापुच्छित्ता वइदादिसु अपडिबझनो प्रागतो, परिच्छितो सुद्धो य, जो तं + पडिच्छति प्रायरिओ तस्स चउलहुँ । जो विदू पणो वत्तणाणिमित्तं सो जति वत्तणं ण करेति तो से मासलहुं, एव संधणगहणेसु वि । पायरिमो वि जइ तं उपसंपणं दूरादिसु अच्छंतं ण सारेति, ण चोदेति तस्स वि वत्तणादिसु ठाणेसु मासलहुं । प्रत्ये पुण अकरेंत-प्रसारंताणं तिसु वि वत्तणादिसु ठागेम पत्तेयं मासगुरु । उभए वि पच्छित्तं । जम्हा एते दोसा तम्हा गुरुणा सारेयन्या - "प्रज्जो ! जटुं प्रागतो तं वत्तणादिकं न करेसि" ॥६३६३॥ "प्रणापुच्छ" त्ति अस्य व्याख्या - अणणुण्णाऽणुण्णाते, देंत पडिच्छंत्त भंगचउरो तु । भंगतिए मासलहु, दुहतोऽणुण्णाते सुद्धो उ ॥६३६४॥ अणुण्णाप्रो अणणुण्णातेण सह वत्तणं करेति, एवं चउभंगो कायम्बो, एवं संघणागहणेसु वि चउभंगो, एत्थ प्रादिल्लेसु तिसु मंगेसु देते गेण्हताणं सुत्ते मासलहुं । तबकालविसेसितं अत्थे मासगुरु । चउत्थभंगो पुण दुहतोऽगुणणातत्तणमो सुद्धो ॥६३६४ । णाणे ति गयं । इदाणि दंसणं एमेव दंसणे वी, ववणमादी पदा उ जह णाणे । सगणामंतण-खमण, अणिच्छमाणं न उ णिोए ॥६३६५।। पुनद्धं कंठं इदाणि चरित्तोवसंपदा सा दुविधा- वेयावच्चे खमणे य । तत्थ वेयावच्चोवसंपदाए इमा कारावणविही - तुल्लेसु जो सलद्धी, अण्णस्स व वारएण इच्छंते ! तुल्लेसु य आवकही, तस्साणुमते व इत्तरिए ॥६३६६॥ प्रायरियाणं एक्को गच्छे वेयावच्चकरो, प्रवरो अण्णगणातो पच्छा प्रागतो भणति - प्रहं मे क्यावच्चं करेमि, तत्य कतरो कारविज्जति ?, "तुल्लेसु" तत्थ जति दो वि तुल्ला कालतो वि इत्तरिया तत्येगो सलदी सो कारविज्जति, अहवा - दो वि प्रावकही तत्थ वि जो सलद्धी सो कारविज्जति । अह दो वि इत्तरिया दो वि सलद्धिया, एत्थ प्रागंतुगो उवज्झायदीण अण्णस्स वेयावच्चं कारविज्जति, भणियं च- "उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापजवसाणे भवति ।" अहवा-जति वत्ययो वेयावच्चकरो इच्छति तो वारोवारेणं कारविज्जति, प्रागंतुगो वा कालं पडिक्खाविज्जति जाव पुविल्लस्स इत्तरकालो समप्पड़, आवकहीसु वि दोसु सलद्धिएम एवं वारयं मोतुं । अहवा-एक्को इत्तरियो एक्को प्रावकही "तुल्लेसु" त्ति लडीए एत्थ प्रावकही कारविज्जति, इत्तरिमो अण्णस्स सण्णिउज्जति, अहवा- सो वत्थन्वो प्रावकही भण्णति तुमं ताव वीसमाहि एवं वुत्तो जति इच्छति तो तस्स प्रणमते प्रागंतु इत्तरिमो कारविज्जइ, तम्मि अणिच्छे णो कारविज्जति, सो समत्ते गच्छिहिति, पच्छा इयरोण काहिति, तो पायरियो उभयभट्ठो भविस्सइ । प्रह इत्तरिमो प्रावकहितो य य दो वि अलढिसंपण्णा तत्थ प्रावकहिणा कारेयव्वं, इयरो अण्णस्स सणिउज्जति विसज्जिज्जइ वा। मह Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाव्यगाथा ६३६३-६३६८] विशतितम उद्देशकः २९७ इत्तरिमो सलद्धी, प्रावकही भण्णति - "वीसमाहि ता तुम एस इत्तरिमो समदी करेतु, पच्छा तुम चेव काहिसि ।" अणिच्छे एसा चेव काहिति, इतरिमो अण्णस्स वा कारविज्जति, दो वि वा संवृता करेंति । मह इत्तरिमो अलदी मावकही सलद्धी एत्य प्रावहिणा कारवेयवं, इत्तरिमो मण्ण स्स कारविज्जइ, अणिच्छे पडिसेहिज्जइ ॥६३६६।। अह वत्थव्ववेयावच्चकरेण अणुण्णाओ कारवेइ, तस्स अणापुच्छाए अण्णं वेयावच्चकरं ठवेति तो इमे दोसा - अणणुण्णाते लहुगा, अचियत्तमसाह जोग्गदाणादी। णिज्जर महती हु भवे, तवस्सिमादीण उ करेंते ॥६३६७|| बत्थव्व-प्रावकहि-वैयावच्चकरस्स प्रणापुच्छा प्रागंतु इतिरिया वेयावच्चकर ठावेंति, प्रणYणातो वा वेयावच्चकर ठवेइ तो चउलहुगा । अण्णे भणंति - प्रणापुच्छाए वेयावच्चकरे ठविए मासलहुं, अणणुष्णातो वेयावच्चकारवणे चउलहुँ। वत्थव्ववेयावच्चकरस्स वा प्रचियत्तं, अचियत्तेण वा असंखडं करेज्जा । “मसाह" ति- ण कहेति सो पुव्ववेयावच्चकरो उड्डकट्टो जेसु कुलेसु प्रायरियादीणं पा उग्गं लब्भति ते ण कहेति, सडकुलाणि वा ण कहेज्ज, तम्हा सो इत्तरिमो भणति - खमगादित वस्सीणं तुमं करेहि, तेसि पि कज्जमाणे महती णिज्जरा भवति ॥६३६७॥ वेयावच्चे त्ति गयं । इदाणि “खमण" त्ति तथिम गाहापच्छदं "सगणामंतण" इत्यादि, जो अण्णगणाप्रो खमणट्टयानो उवसंपज्जति सो दुविहो- अविगिट्ठो विगिट्ठो । अट्ठमादि विगिट्ठो, दोसु वि उवसंपज्जतेसु सगणो प्रायरिएण आमतेयव्वो पापुच्छियन्वो त्ति वुत्तं भवति - प्रज्जो ! एस खमणकरणटुया मागतो कि पडिच्छिन्जति उग्र पडिसिज्झउ ति, तेसि प्रणमए पडिच्छिज्जइ प्रणिच्छेसु पडिसिज्झइ । ण वा ते अणिच्छमाणे तस्स वेयावच्चे बला णिमोएति ।।६३६७।। __ जो पडिच्छि पो सो पुच्छियन्वो - तुम कि प्रविगिटुं करेसि विगिटुं वा ? तेण एगतरे कहिते पुणो पुच्छिज्जइ -- तुम प्रविगिटुं करेत्ता पारणदिणे केरिसो भवसि ? सो भणइ - गिलाणोवमो, ण य सज्झाय पडिले हणादियाण जोगाण समत्थो भवामि । तस्सिमो उवदेसो - अविकिट्ठकिलामंतं, भणंति मा खम करेहि सज्झायं । सक्का किलामिउं जे, विकिट्टेणं तहिं वितरे ॥६३६८॥ प्रविगिट्ठतवकरणकिलामंत भणति - (मा) तुम खमणं करेहि, ण वट्टति तव खमणं काउं, सज्झायकरणे वेयावच्चे वा उज्जुत्तो भवाहि, सज्झायमणिज्जते विसज्जेयचो । अह गिलाणोवमो ण भवति ततो पडिच्छियव्यो। जो पुण विकिदुःखमयो सो जइ ण किलिस्सति - सज्झायपडिलेहणादि जोगे य सव्वे सयमेव महीणमतिरित्ते करेति - सो पडिच्छियवो। जो पुण विगिटेणं किलिस्सति तत्थिमं गाहापच्छदं - "सक्का किलाम्मिउं" सक्का इति युक्तं, जइ वि विगिढतवकरणे गिलाणोवमो भवति तहावि तत्थ वितरंति त्ति तनकरणे प्रणुजाणतीत्यर्थः ॥६३६८॥ १ गा० ६३६२ । २ गा० ६३६५ । Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे विगतवकरणे जो गिलाणीवमो भवति तत्थिमा सामायारी - पच्छिणे लहुगा, गुरुग गिलाणोवमे अडते य । पडिलेहण संथारग, पाणग तह मत्तगतिगम्मि || ६३६६॥ अस्य विभाषा दोसा य । - दोष्णेकतरे खमणे, अण्णपडिच्छंत संथरे आणा | अप्पत्ति परितावण, सुत्ते हाणऽण्णहिं वतिमो ||६३७० ॥ " दोहं" ति - तम्मि प्रविगि विगिट्ठाणं श्रष्णतरो समग्रो होज्ज, ग्रहवा - विगिट्ठो गिलाणोत्रमो होज्ज । एतेसिं खमगाणं प्रणयरे खमगे गच्छे विज्जमाणे जति प्रायरिभो प्रष्णं खमगं गच्छे प्रणापुच्छाए पढिच्छति तो चउलहुँ । दोह वि खमगाण जुगवं पारणदिणे पज्जत्तपारणगस्स प्रसंथरणं हवेज्ज | दुगादिखमग वेयावच्चकरणे वावडाण वेलातिक्कमे वैयावच्चकरणे असंथरणं हवेज्ज । प्रसंथरता य जं एसणादि पेलेज्ज तणिप्फष्णं पावति प्राणादिणो य दोसा । असंथरे य अकज्ज माणे व परितावणादि दुक्ख हवेज्जा, सिस्सपच्छिगा वि चितेज्जा इह प्रष्णोष्णख मगवेयावच्च करणेण श्रम्हं तत्परिहाणी, तो भ्रष्णं गणं "वइमो" त्ति - गच्छेज्ज, ॥६३७० ॥ गणप्रणापुच्छाए खमगे पडिच्छिते गणे य अकरेमाणे आयरियस्स य इमं पच्छित्तं ""गुरुग गिलाणोवमे अडते य" ग्रस्य व्याख्या - गेलण्णतुल्ल गुरुगा, अडते परितावणादि सयं करणे । सण- गहणागहणे, दुगट्ट हिंडंत मुच्छा य || ६३७१ ॥ . ते सु गच्छिल्ल गेसु वेयावच्च प्रकरतेसु जइ खमगो गिलाणोवगो जाओ तो प्रायरियस्स चउगुरुगा, "अडते" "सयं" "दुगट्ठ" ति भत्तपाणट्टा वा सयमेव हिंडतो खुहापिपासादि सीउण्हेण वा पडिलेहणा दिकिरियं वा सयमेव करेंतो परिस्समेण जं प्रणागाढादि परियाविज्जति, मुच्छादि वा पावति, तत्थ चउलहुगादि जाव चरिमं पार्वति । परियाविज्जंतो प्रणेस णिज्जं गेण्हति एत्थ वि गुरुस्स तणिप्फण्णं, श्रहण गेण्हति तो बहु तस्स परियावणादि णिष्कष्णं ॥ ६३७१। [ सूत्र- १ सीसो पुच्छति - किं तस्स चउव्विहाहारविसयस्स कायव्वं । आचार्याह - वडिलेहण" एच्छद्धं, उवगरणं से पडिले हियध्वं संथारगो सो कायब्वो, वाणगं से श्राउं दिज्जति, पारणदिणे भत्तं पि से प्राणे दिज्जति । उच्चारपासवणखेल मत्तगो य एते तिष्णि ढोइज्जति परिविज्जति य, जम्हा एवमादि दोसा गणिणो तम्हां गच्छं प्रापुच्छित्ता समणुष्णाते खमगं पडिच्छति । ग्रह णत्थि गच्छे खमगो तो पडिच्छियव्वो चेव, पडिच्छियस्स य सव्वं सव्वपयत्तेण काव्वं णिज्जरट्ठा। तं परिक्खासुद्ध जा तिण्णि दिवसे किमागतो त्ति प्रणापुच्छिता प्रणालोवेत्ता १ गा० ६३६६ । २ गा० ६३६६ । , 1 Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६३६६-६३७५ ] वा संवसावेति तो इमं पच्छितं साववादं भण्णइ - ।।६३७२।। विशतितम उद्देशक : पढमदिणाणापुच्छ्रे, लहुगो गुरुगा य हुंति वितियम्मि । ततियम्मि होंति लहुगा, तिन्हं तु वतिक्कमे गुरुगा ॥ ६३७२ ॥ पढमदि मासलहं ति, बितिए मासगुरु, ततिए चउलहुं ति, परम्रो चउत्पादिदिष्णेसु चउगुरुगा - प्रववातो तो कज्जे तिष्णि दिणा बहुतरं च कालं तं संवसावेंता वि श्रपच्छिती । जतो भण्णति - कज्जे भत्तपरिण्णा, गिलाण राया य धम्मकह वादी । छम्मासा उक्कोसा, तेसिं तु वतिक्कमे गुरुगा ||६३७३ || कुल- गण संघकज्जेहिं वावडो प्रायरितो भत्तपश्चवखातो वा साधू तस्स लोगो एति, तत्थ प्रायरिनो धम्मक हकहणेण वावडो वावडो, राया वा धम्मट्ठी एइ, तस्स धम्मो कहेयव्वो, वादी वा गिहियन्दो, एवमादिकारणेहिं वावडो आयरिश्रो होज्ज, एवं जाव छम्मासा ण पुच्छेज्ज, आलोयणं वा ण पडिच्छेज्ज ॥६३७३॥ एवमादिकज्जवावडो वा इमं जयणं करेज्ज प्रणेण पडिच्छावे, तस्सऽसति सयं पडिच्छए रतिं । उत्तरवीमंसाए, खिष्णो वा णिसिं पि ण पविसे ||६३७४|| २६६ जइ प्रत्थि प्रण्णो गीयत्यो प्रालोयणारिहो सो संदिस्सिज्जति तुमं पुच्छिज्जसि श्रालोयणं पडिच्छा हि । ग्रह णत्थि गीयत्यो ताहे सयमेव रति श्रालोयणा पडिच्छियध्वा । ग्रह परप्पवादिणिगिरहट्ठा जहा सिरिगुत्तस्स छलुगस्स पराजयट्टा उत्तरवीमंसं करेंतस्स राम्रो वि परिच्छणा णत्थि दिवा परिस्समकिष्णो वा रातो सुवति एवं रातो वि ण पडिच्छति जाव उक्कोसं छम्मासा | जति य छम्पासे पुण्णे ण पुच्छति श्रालोयणं वा ण पडिच्छति तो 'बउगुरुगा भवति । अण्णे भणति - छण्हं परतो पढमे दिणे मासलहुं, बितिए मासगुरु, ततिए चउलहुं, परतो चउगुरु ति ।। ६३७४ ।। वा एत्थ वि वाताववातो भण्णति - दोही तिहि वा दिहि, जति छिजति तो ण होति पच्छित्तं । तेण परमणुण्णवणा, कुलादि रण्णो व दीवंति ||६३७५|| जति छण्हं मासाणं परतो णिरुतं दोहि तीहि वा दिहिं कज्जसमत्ती भवति तो तेसु वि पच्छतं न भवति, ग्रह तेसु विकज्जसमत्ती न भवति ताहे छम्मासासमतीए चेव कुलादिया अणुण्णविज्जेति रण्णो वा दीवि जति त्ति "हं कल्ले इमेण कज्जेग अक्खणितो जो प्रागमिसंति, विदितं भवतु तुज्भं, परप्पवाइणो था" । जइ एवं न कहेति तो चउगुरुगा ।। ६३७५।। १ गा० ६३७३ । Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१ सोवि सुद्धो आलोयगो विज्झतो कहं आलोयणं करेति ? उच्यते आलोयण तह चेव तु, मूलुत्तर णवरि विगडिते इमं तु । इत्थं सारण चोयण, निवेयणं ते वि एमेव ।।६३७६॥ "तह लेव" त्ति जहा संभोइयाणं विहारालोयगाए भणियं तहा भाणियत्वं । "मूलुत्तरे" ति - पुव्वं मूलगुणातियारं, णवरं-इमो विसेसो,“विगडिए" त्ति पालोए एगतो. ठिता विभिण्णे वा साहुणो वंदित्ता भणाति - पालोयणा भे दिण्णा, इच्छामि सारणं वारणं चोयणं च मे काउं । तेहिं वि पडिमाणियब्वं-तुमं पि प्रज्जो ! अम्हं सारेज्जासि चोए ज्जासि य ॥६३७६॥ उवसंपदालोयणा गया। इदाणि अवराहालोयणा यत्र प्रकृतं - एमेव य अवराहे, किं ते ण कया तर्हि चिय विसोही । अहिगरणादि कहयती, गीतत्थो वा तहिं पत्थि ॥६३७७॥ "एमेव" त्ति जहा विहारउवसंपदालोयणासु विही भणितो तहेव इम पि जाव पुट्ठो वा भणति - प्रहं प्रवराहालोयगो प्रागतो। ताहे आयरिएहि भाणियव्वं - किं ते ण कया तेहि चिय विसोधी ?, ततो कहेति-अधिकरणं मे कयं तत्थ, आदिग्गहणणं विगति संघाडगादी कधेति । अहवा भणति - तत्थ गीतत्थो गत्थि, ॥६३७७॥ एत्थ अहिकरणादिअविसुद्धकरणेसु आयरिएण भाणियन्वो - ___ण वि य इहं परियरगा, खुल खेत्तं उग्गमवि य पच्छित्तं ! संकितमादी व पदे, जहक्कम ते तह विभासे ॥६३७८|| पडियरगा नाम अवराहावण्णस्स पच्छित्ते दिपणे गिलायमाणस्स पत्थि वेयावच्चगरा । खुलत्तेणं णाम मंदभिक्खं जत्थ वा घयादि उवग्गहदव्वं न लब्भप्ति, एत्थ वा न धम्मसड्ढी लोगो। प्रहवा भणाइ - अम्हे उग्गं पच्छित्तं देमो। "णत्थि संकिय" - ( गाथा ६३५३) "संकियमादी य पए" त्ति । हेट्ठा व्याख्याता एवं व्याख्येया इत्यर्थः । इइ संकियस्स प्रत्थं ण याणामि, किह पच्छित्तं दिज्जति ? विस्सग्यिं वा पच्छित्तं, एवं संकियादिपदा जहक्कमेण पच्छित्ताभिलावेण भाणियव्वा । अहवा-ते संकितादिपदे "जहक्कम' त्ति-जहासंभवं ते विभासिज्जति ॥६३७८।। एवं असुद्ध' पडिसेहेत्ता सुद्ध पडिच्छति। तस्स विही जं तं हेट्ठा भणियं-"'प्रवराहे दिवसतो पसथम्मि" तं इदाणि भण्णति । अवराहालोयणा णियमा विभागेण दिवसतो दव्वादिसु देति, जतो भण्णति दव्वादि चतुरभिग्गह, पसत्थमपसत्थ ते दुहेक्केक्का । अपसत्थे वज्जेउं, पालोयणमो पसत्थेसं ॥६३७६।। दव्वखेसकालभावं च अभिगिज्झ देति, एते य दव्वादिया पसत्था वा अपसत्था वा होज्जा, अप्पसत्थादीणि वज्जेत्ता पसत्थेहिं पालोएयव्व ॥६३७६।। १ मा० ६३२५॥ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६७६-६३-५] विंशतितम उदेशक: ३०१ एत्थ पढमे अपसत्था - भग्गवरे 'कुड्ड सु य, रासीसु. य जे दुमा य श्रमणुण्णा । तत्थ ण आलोएज्जा, तप्पडिपक्खे दिसा तिण्णि ॥६३८०॥ जत्थ खंभतुलाकुड्डादि कि चि पडितं तं भग्गघर, कुड्डगहणातो वा मिष्णकुडसे सं, पाठांतरेण वा घर ।।६३८०॥ एयं अप्पमत्थखेत्तग्गहणं, रासिदुमग्गहण अप्पसत्थदव्यग्गहणं । अस्य व्याख्या अमणुण्णधण्णरासी, अमणुण्णदुमा य होंति दव्वम्मि । भग्गघर रुद्द ऊसर-पवात दड्डादि खेत्तम्मि ॥६३८१॥ अमणुण्णधण्णा तिलमासकोदवादी। अमणुण्णदुमा एते णिप्पत्त कंटइल्ले, विज्जुहते खार कडुय दड्डू य । अय तंब तउय कयवर, दव्वे धण्णा य अपसत्था ॥६३८२॥ समावतो करीरपलासादिया वा प्रणो पत्त साडकाले णिप्पत्ता, अग्घाडगवत्थुलमोक्खादिया खार रुक्खा, गेहिणिकुडगणिबादिया कडुरुवावा, अयादि लोहदव्या, अप्पस्सत्थ रासी सव्वे बज्जणिज्जा, अंगाग्तुसभुमचीवरादी प्रणेगदव्वणिगरो कयवरो, मासतिलकोद्दवादिया अपसत्था घण्णा, एते दव्वग्रो भणिता खेत्तो भग्गघरादि रुद्दघरं महादेवघरं दुग्गमादि घरा य, जत्थ वा भुसकुटुं हिरण्णादिकुट्टो वा, ऊसरं ति ऊ मरभूमी, छिण्णटं का तटी प्रपातं, दवादिदड्डा वा भूमी, जत्थ एवं खेत्तग्रो अप्पमत्थं ॥६३८२।। इमं कालतो पडिकुट्टेल्लगदिवसे, वज्जेज्जा अट्ठमि च नवमि च । छडिं चउत्थिं वारसिं च दोहं पि पक्खाणं ॥६३८३।। कंठ्या भावतो इमं अप्पसत्थं संझागतं रविगतं, विड्डरं सग्गहं विलंबिं च । राहुहतं गहभिण्णं, च वज्जए सत्त णक्खत्ते ॥६३८४॥ जम्मि उदिते सूरो उदेति तं संझागतं, जत्थ सूरो ठितो तं रविगतं, जं सूरस्स पिटुतो अणंतरं तं विलंबी। अण्णे भणंति - जं सूरस्स पिट्ठतो अग्गतो वा अणंतरं तं संझागयं । जं पुण पिढतो सूरगतातो तं ति तं (?) विलंबी। जं जत्थ गमणकम्मसमारंभादिसु अणभिहियं तं विडुरं विगतद्वारमित्यर्थः । जं करग्रहेण कान्तं तं सग्गहं, जत्थ रविससीण गहणं प्रासी तं राहुहतं, मझेग जस्स गहो गतो तं गहभिण्णं, एते सन वि णवखत्ता चंदजोगजुत्ता पालोयगादिसु सव्वपयत्तेण वज्जणिज्जा ॥६३८४॥ ... एतेसु इमं फलं - संझागतम्मि कलहो, होति कुभत्तं विलंबिणक्खत्ते । . विड्डेरे परविजयो, आइच्चगते अणेव्वाणी ॥६३८॥ १ रुद्देसु इत्यपि पाठः । २ राहुगतं इत्यपि पाठः । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ समाप्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे जं सग्गहम्मि कीरह, णक्खत्ते तत्थ बुग्गहो होति । राहुहतम्मि य मरणं, गहभिण्णे सोणिउग्गालो | ६३८६ ॥ एयातो दोवि कंठातो। एते प्रसत्यदत्र्वादिया । एतेसु णो प्रालोएज्जा ।। ६३८६ ।। तप्पडिपक्खे दव्वे, खेत्ते उच्छुवण चेइयघरे वा । गंभीर साणुणादी, पयाहिणावत्तउदए उ || ६३८७॥ तप्प पिक्खं ति अप्पसत्याण दवा दियाण प्रतिपक्षाः पसत्या दव्वादिया, तेसु प्रालोएज्ज । तत्ब दवे सालिमा दिपसत्यवष्णरासीसु, हिरण्ण-सुत्रष्ण नणि रयण- बितिय र विदुमरासिसमीवे ना, खेत्तनो उच्करण - समोवे सालिकरणे चेंतियघरे पत्त उप्फलोववेते वा प्रारामे गंभीरे, जत्थ वा खेत्ते पडिसद्दो भवति तं सागुणाती जत्थ वा नदीए पदाहिगावत्तं उदगं वहति पठमसरे वा ।।६३८७।। कालतो - - उत्तदिणसेसकाले, उद्धट्टाणा गहा य भावम्मि | पुव्वदिस उत्तरा वा, चरंतिया जाव णवपुच्ची ||६३८८ || उक्त दिन प्रमीमादते वज्जेत्ता सेसा बितियादी दिवसा पसत्था, तेसु वि व्यतिवातादि दोस वज्जिते पसत्थकरणमुहत्तेसु, भावतो उच्चट्ठाजगतेसु महेसु रविस्स 'मेसो उच्चो, सोमस्स वसभो अंगारस्स १० मगरो, बुहस्स ६ कष्णा, विहस्सतिस्स कक्कड, १२ मीणो सुक्कस्स, तुलो सणिच्छरस्स । सर्व्वेसि गहाण श्रपणो उचट्ठाणात जं सत्तमं तं णीयं । ग्रहवा - भावतो पसत्यं ब्रहो सुक्को वहस्सती ससी य । एतेसि रासिहोरा-द्रक्काणते उदिए सोम्मग्गहबलाइएसु य प्रालोएज्जा | सो पुण झालोएंतो श्रालोयणारिहो वा तिन्हं दिसाणं श्रन्नयरीए प्रभिनुहो ठाति उत्तरा पुव्ववरंतिया य सा इमा जाए दिसाए तित्थकरों केवली मणपज्जवगणी श्रहिणांगी चोद्दसपुत्री जाव णत्रपुत्र्वी जो जम्मि वा जुगे पहाणो प्रायरियो जत्तो विहरति तत्तो हुत्तो पडिच्छति श्रालोति वा ।।६३८८|| अलोएंतस्स इमा सामायारी [ सूत्र- १ णिसेज्जाऽसति पडिहारिय कितिकम्मं काउ पंजलुक्कुडश्रो । बहुपडि सेवsरिसेसु, अणुण्णत्रे णिसज्जगतो ॥ ६३८६॥ श्रप्पणिसेज्जकप्पे अपरिभूतेहि परिभुक्तेहि णिज्जं करेति श्रसति अप्पणिसेज्जाणं श्रणस्स संतिया पडिहारकप्पा घेत्तुं करेति । तत्थ जति प्रायश्रिो पुत्रहुत्तो णिसीयति तो घालोयगो दाहिणो, उत्तरा हुत्तो मिसीयत तो इयरो वामतो पुत्रहुत्तो ठाति चरंति य दाउ कयंजली उस्सग्गत्रकुडुयठिम्रो पालोएइ । जइ पुण तस्स दिसाभिहो ठावितो विहीए वारसावत्तं वंदणं बहुपडि सेवणत्ताम्रो चिरेण श्रालोयणा समप्पिहिइ, 7 न सक्केइ तच्चिरं उक्कुडुमो ठाउं श्ररिसालुयस्स श्ररिसाप्रो खुभेज्जा, तो गुरु प्रणुण्णवेत्ता जिसिज्जाए उवग्गहिय पादपुंछणे वा जहारुहे ठाविप्रो श्रालोति ॥ ६३८६ ।। किं पुण तं प्रालोइज्जति ?, उच्यते - चउव्विहं इदं दव्वादी चेयणमचित्तदव्वे, जणत्रयमग्गे य होति खेत्तम्मि | णिसिदिण- सुभिक्ख-दुभिक्खकाल-भावम्मि हिट्ठितरे ||६३६०|| - Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाया ६३८६-६३६४] एकोनविंशतितम उद्देशकः ३०३ दव्वतो प्रचित्तं सचित्तं मीसं वा अकप्पियं किंचि पडिसेवियं होज्जा । खेतो जणवते वा पदाणे बा। कालतो दिया वा राम्रो वा सुभिवखे वा दुम्भिवखे वा। भावतो हट्टण वा गिलाण ता, जयणाए अजयणाए वा, दप्पो कप्पो वा ॥३६०।।. आलोयणाए इमे गुणा - लहुताल्हादीजणयं, अप्पपरणियत्ति अञ्जवं सोही । दुक्करकरणं विणो, णिस्सल लत्तं च सोहिगुणा ॥६३६१॥ जहा भारवाहो ओहरियभरोग्य पालोइए उद्धरियसल्लो लहू भवति, अतियारधम्मतवियस्स चित्तस्स पालोयगाए णिस्सल्लो चित्तस्स प्रल्हादणं जनयति पल्हादित्ति वुत्तं भवति, पालोयणकरणो सयं दोसेहि णियत्तति तं पासित्ता अणे वि पालोयणाभिमुहा भवंति, प्रतियारपसंगतो वि णियत्तिया भवंति, जं रहे परिसेवितं परस्स प्रालोएतेण अज्जव त्ति प्रमायावित्तं कयं भवति, अतियारपंकमलिणस्स अप्पणो चरणस्स वा सोही कता भवति. दुक्करकरणं च । कह ? उच्यते - ण दुक्करं जं पडिसेवितं, तं दुक्करं जं पालोइयंति, अहवा - जं पडिसेवितं तं जीवस्म संसार सुहाणुकूल न दुक्कर, तो जं चित्तनिवित्तिकरणं नं दुक्करकरणं ति अप्पतेण गुरुस्स विणप्रो कतो भवति. चरितविणग्रो बा एस कमो भवति, ससल्लो य अप्पा णिसल्लो कंभो। प्र.लोयण त्ति वा सेहित्ति वा एगटु ॥६३६१॥ तेणं पुण पालोयंतेण मायामयविप्पमुक्केण - जह बालो जंपंतो, कज्जमकजं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोएज्जा, मायामयविप्पमुक्को उ ॥६३६२।। कंठ्या जो पालोयणारिहो सो इमो दुविहो - आगमसुयववहारी, आगमतो छव्विहो उ ववहारी। केवलि मणोहि चोद्दस, रस णव पुब्बी य णायव्वा ॥६३६३।। भागमववहारी सुयववहारी य, तत्थ जो सो प्रागमवहारी सो छविहो इमो - केवलनाणी मोहिणाणी मगपज्जवणाणी चोदसपुवी अभिण्ण दसपुत्री शवपुवी य । एते प्रागमववहारी पच्चक्खणाणिणो मेण जहा अइयारो कतो तं तहा अतियारं जाणंति ॥६३६।। तं च प्रागमववहारिस्स पालोएज्जमाणे जति आलोयगो पडिकुचति - पम्हुतु पडिसारण, अप्पडिबज्जंतगं ण खलु सारे । जति पडिवजति मारे, दुविहऽतियारं वि पञ्चक्खी ॥६३६४॥ "पम्हुढे" त्ति -- विस्सरिए तं पच्चक्खणाणी गाउं "पडिसारिज्जइ" ति - ताहे भणाति-अमुगं ते विस्सरितं तं पालोएहि ।। अह जाणइ-ण पडिवज्जति तो ण पडिसारेइ । दुविहो अइयारो मूलगुणाइयारो उत्तरगुणा. इयारो य । एवं पच्चक्खणाणी सम्मं प्राउट्टस्स देति पच्छित्तं, अणाउटुंतस्स ण देति ॥६३६४।। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-१ एते पञ्चक्खववहारी वुत्ता - सेसा जे ते इमे सुयववहारी कप्प-पकप्पा तु सुते, आलोयाति ते उ तिक्खुत्तो। सरिसत्थेऽपलिउंची, विसरिस पडिकुंचितं जाणे ॥६३६५॥ "कप्पो" ति दसाकप्पववहारा, "पकप्पो' ति णिसीहं, तुशब्दान्महाकप्पसुत्तं महाणिसीह णिज्जुत्तीपेढियधरा य, एवमादि सव्वे सुयववहारिणो। ते य सुयववहारी एगवारालोइए पलिउचिते अपलिउंचिए वा विसेसं ण याणंति, तेण कारणेण "तिक्खुत्तो" त्ति णियमा तिणि वारे मालोयाति । एक्कवारा भणाति- "ण सुठु मए अवधारिय," "णिहावसंगो"। ततियवाराए भणाति "अणुव उत्तेण किंचि णो अवधारियं, पुणो पालोएहि" । जति तिहि वाराहि सरिसं चेव पालोतियं तो णायव्वं अपलिउंची । ग्रह विसरिसं वुल्लुवतो य पालोएति तो पलिउंचियं जाणियव्वं ॥६३६५॥ तत्थ जो पलिउंची सो इमेण अस्सदिटुंतेण चोएयवो आसेण य दिढतो, चउविहा तिण्णि दंडिएण जहा । सद्धस्स होति मासो, पलिउंचिते तं चिमं चऽन्नं ॥६३६६॥ दव्वादिचउविहपडिसेवणापलिउंची मागमसुयववहारादीहिं भाणियव्यो। सुणेहि अज्जो ! उदाहरणं, जहा- एक्कस्स रण्णो आसो सव्वलक्खणजुत्तो धावण-पवणसमत्थो, तस्स पासस्स गुणेण अजेयो सो राया । सामंतराइणो य सव्वे अज्जो आणावेति । ताहे सामंतरायाणो अप्पप्पणो सभासु भणेति - अत्थि कोइ एरिसो पुरिसो, जोतं हरित्ता आणेति ? सव्वेहि भणियं - सो पुरिसपंजरत्यो चिट्ठति, गच्छति वा, ण सक्कति हाउं । एगस्स रण्णो एगेण पुरिसेण भणियं - जइ सो मारेयव्वो तो मारेमि त्ति ।। ताहे रण्णा भणियं - "मा अहं तस्स वा भवतु, वावादेहि" ति । तो तत्थ गतो सो। तेण य छण्णपदेसट्टितेण पडिक्करूव धणुहकंडस्स अंते क्षुद्रकीकंटकं लाएता विद्धो प्रासो, तं इसिया कंडग आहणित्ता पडियं, क्षुद्रकीकंटकोवि ग्राससरीरमणुपविट्ठो, सो पभूअजवजोगासणं चरंतो वि तेण अव्वत्तसल्लेण वाहिज्जमाणो परिहाइउमाढत्तो। ताहे वेज्जस्स अक्खातो, वेज्जेण दिट्ठो, भणियं च - णत्यि से कोति धाउबिसंवादरोगो, अस्थि से कोइ अव्वत्तसल्लो। ताहे वेज्जेण जमगसमगं पुरिसेहिं कद्दमेण प्रालिपावियो सो पासो, सो सल्लपएसो अति उण्हत्तणतो पढमं सुक्को, तं फाडेत्ता अवणीनो क्षुद्रकीकटकसल्लो, सो य पण्णत्तो। बितिको एवं अणुद्धरियसल्लो मतो। इदाणि उवसंहारो-जहा सो पासो अणुद्धरियसल्लो बलं गा गेण्हइ, असमत्थो य जुद्धे मतो य, एवं तुम पि ससल्लो करेंतो किरियकलावं संजमड्ढिं णो करेसि, ण य कम्मणो जयं करेसि, अजए य कम्मणो अणेगाणि जम्मणभरणाणि पाविहिसि, गो य मोक्खत्थं साहेहिसि, तम्हा सव्वं सम्म पालोएहिति । अहवा च उम्विहा आलोवगा- अपलि उचिए पलिउचियं - एतेसि च उण्हं भगाणं पढमततिये सुद्धभावस्स मासमावन्नस्स मासो चेव पच्छित्त, बितियच उत्थेसु माइणा तं च प्रावणमासियं इमं च अण्णं मासग्ररु मायागिप्फ मासियं ॥६३९६॥ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशक: स्यान्मतिः - "कि तिष्णं प्रालोयणाणं भारतो माई णोवलग्मति तो (जम्रो ) तिष्णिवारा घालोया माध्यगाथा ६३९५-६३६६ ] विज्जति ? आचार्य ग्रह - एग-दुवारा सुद्धि स्पष्टां न उबलब्भति मायीति, तहावि फुडतर उवलद्धिनिमित्तं तिनि वारा मालोयाविज्जति पुव्वं च मायाणिफणं मासगुरुं दिज्जति ति । एत्थ इमोदितो ""तिष्णि दंडिएण जहा" ग्रस्य व्याख्या अप्पत्ती विसरिस - णिवेयणे दंड पच्छ ववहारो । इति लोउत्तरियम्मि वि, कुंचितभावं तु दंडेति ॥ ६३६७॥ - प्रर्थस्य उत्पत्तिरर्थी व्यवहारादुत्पद्यत इति श्रट्टुप्पती ववहारो भगति - जहा कोइ पुरिसो प्रण्णातितो रायकरणं उद्वितो णिवेदेति श्रहं देवदत्तेण अण्णातितो, ताहे करण (पई) पुच्छति - कहं तुझं कलहो समुट्टितो?, ताहे सो कहेति । कहिए करणपती भणति - पुणो कहेहि, कहिए पुण ततियवारा कहाविज्जइ, जति तिसु वि सरिसं तो जाणति सब्भावो कहिप्रो, ग्रह विसरिसं तो जाणति करणपती एस पलिउंचियं कहेइ त्ति । कीस राजकुले मुसावायं भणति ? प्रतारेति त्ति पुव्वं डंडिज्जति, पच्छा जइ ववहारे जियति तो पुणो डंडिज्जइ । एवं सो मायावी वि डडोवहतो कीरति । इय एवं लोउत्तरे विभ्रम्ह तिणि वारा श्रालोयावेत्ता जइ पलिउंची कीस मायं करेहि त्ति तो माया पच्चग्रो मासगुरू दिजति पुषं पुणो वि से पच्छा जं श्रावण्णो तं दिज्जति, एवं चेत्र सो सुज्झति णत्यि से प्रष्णो सोधणप्पगारो इति ।। ६३६७।। अह आगमववहारी पच्चक्खणाणपच्चयतो पलिउंचियं प्रपलिउंचियं वा जाणति । जे पुत्र सुतववहारी, ते कहं दुरवलक्खं सुभं पलिउंचियभावं अंतोगत जाणंति ? ग्रत उच्यतेआगारेहि सरेहि य, पुत्रावरवाहयाहि य गिराहिं । नाउं कुंचितभावं, परोक्खणाणी ववहति ||६३६८ ॥ ३०५ प्रालोयगस्स प्रागारो ण संविग्गभावोवदसगो, सरोवि से श्रव्वत्तमविट्टो खूभियगग्गरो, पुव्वावर वाहताय गिरा । झालोयंती भणाति श्रयिं मे जयणाए पडिसेवियं, ण य तियपरियहं काउं तं गहियं ति एवमादिकारणेहिं कुंचियभावं जाउं पच्छा प्रालोय गेण य प्रालोतिते फुडीकए । एवं परोक्खणाणी ववहारं ववहति ||६३६८|| जे भिक्खू दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा लोएमाणस्स दोमासिय पलिउंचिय पलिउंचिय आलोएमाणस्स तेमासियं || सू०||२॥ दोमासादिपलिउं चितेसु जहक्कभं इमे दिट्ठता अस्य व्याख्या - द्वाभ्यां मासाभ्यां निष्पन्नं दोमासिय, सेसं जहा मासियसुते । णवरं - इमो बिसेसो, पलिउचिते ततिम्रो गुरुमासो दिज्जति । कुंचित सल्ले मालागारे मेहे पलिकुंचिते तिगट्ठाणा | पंचगमा णेयव्दा, बहूहि उक्खड्डमड्डाहिं || ६३६६॥ १ गा० ६३६६ । २ प्रच्चंत विपट्टो = श्रव्यक्तमविस्पष्टः । पुनः पुनरित्यथः । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र ३-७ दोमा सिपलिकुचियस्स कुंचितो दिदूंतो दिज्जति - कुचितो तावसो, फलाणं श्रट्टाए | तेण दीए सयं मत्रो मच्छो दिट्ठो । तेण सो ग्रप्पसागारियं एइत्ता खाइतो । तम्स वेण श्रणुचियाहारेण अजीरंतेणागाढं गेलपणं जातं । sa तेण वेज्जो तं पुच्छति किं ते खाइयं ? जो रोगो उप्पण्णो । तावसो भणाति - फलाई मोत्तु प्रष्णं ण किंचि खाइयं । ३०६ वेज्जो भणइ – “कंदादीहिं णिक्कसातियं ते सरीरं, घयं पिवाहि त्ति । तेण पीयं सुठुतरं गिलाणीभूतो । पुणो पुच्छिग्रो, वेज्जेण भणियं - "सम्मं कहेहि" । कहितं तेण - मच्छो मे खाइतो । वेज्जेण संसोहण-वमण- विरेयणकिरियाहि णिक्कसात्ता लद्धी को । इमो उवण - जो पलिउंचति तस्स पच्छित किरिया णो सक्केति सुद्धं काउं सम्म पुग प्रतियाररोगं आलोए तो तस्स पच्छिते सुहकिरिया काउं सक्केति ॥ ६३६६॥ जे भिक्खू तेमासि पडिहारट्टाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा पलिङ चिय आलोएमाणस्स तेमासिय पलिउ चिय लोएमाणस्स चउमासियं ||सू०||३|| त्रापि मासिकव्याख्या एव, नवरं - त्रिभिर्मासं निष्पन्नं त्रैमासिकं, पलिउ चिए चउत्थो मासो गुरुप्रो दिज्जति । पलिउंचगे य इमो 'सल्लदितो कज्जति । दो रायाणो संगामं संगामेंति । तस्स एक्स्स रण्णो एक्को मणूस सूरतणेण प्रतीववल्लभो । सो य बहूहिं सल्लेहिं सल्लियो । ते तस्स सल्लाई वेज्जो प्रवणेति, वणिज्ज्ञमाणेहिं प्रतीव दुक्खविज्जइ, एकम्मि से अंगे सल्लो विज्जमाणो तेण विहितो वेज्जस्स दुक्खाविज्जिहामि त्ति । सो य तेण सल्लेण विवट्टमाणेण बलं णो गिण्हति दुब्बलो भवति, पुणो तेण पुच्छिलमाणेण णिबंधे कहितं णीणिग्रो सल्लो, पच्छा बलवं जातो । एत्थ वि उवण पूर्ववत् । जे भिक्खु चाउम्मासयं परिहारट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा पलिउंचिय लोएमाणस्स चाउमा सियं पलिउ चिय आलोएमाणस्स पंचमासिगं || सू० ॥४॥ अत्रापि तदेव व्याख्यानं, णवरं पलिउंचणा गिप्फण्णो पंचमो गुरुप्रमासो दिज्जति । इलाकादितो- दो मालाकारा कोमुदिवारे पुप्फाणि बहूणि उवणित्ता गत्ता विहीए उवट्ठिता । तत्थेगेण कयगेसु उवट्टितेसु पागडा कया, तेहि गाउं तेसि मोल्लं दिण्णं, बहू य लाभो लद्धो । जेण पुण ण कयाणि पागडाणि, तस्स न कोइ कयगो अल्लीणो, ते तत्थेव विट्ठा, ण य लाभो लद्धो । एवं जो मूलगुणउत्तरगुणावराहा ण पागडेति सो पच्छित्तं व्वाणलाभं चण लभति । I १ गा० ६३६६ । २ ० ६३६६ । - Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६३६६] विंशतितम उद्देशकः जे भिक्खू पंचमासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिय आलोएमाणस्म पंचमासियं पलिचिय आलोएमाणस्स छम्मासियं ॥सू०॥५॥ तथैव व्याख्यानं, गाणतं इमं - पलिउंचितिए छट्टो मासो गुरुमो रिजति । इमो य से 'मेहदिटुंतो दिज्जति - चत्तारि मेह गाहा - गजित्ता णामेगे णो वासित्ता, चउभंगा कायव्वा, एवं तुम नि पालोएमि त्ति गजिता णिसजकरणं वंदणदाणण उज्जमित्ता पालोवे उमाढतो णो अवराहपाणियं मंचसि, जम्हा पलिउचणं करेसि, तम्हा मा विफलं गजितं करेहि, सम्म मालोएहि ति । “२तिगट्टाणे' त्ति अस्य व्याख्या - पलिउंचिए प्राउट्टे समाणे सुतववहारी पुणो तिण्णि वारा मालोयाविति, जइ पुणो तिहिं वारराहिं सरिसं पालोतियं तो जाणति - "एस सम्म प्रारट्रो, जं से दायव्वं तं देति"। अह विसरिसं तो भांति --अण्णत्व सोहि करेहि, जहं तव सक्के मि एरिसियाए अणिच्छियपालोयणाए सम्भावं प्रयागंतो सोहि काउं । अहवा सीसो पुच्छति - "एते मासादि छम्मासंता पायच्छित्तठाणा कुप्रो पत्ता ?" __ प्राचार्याह- “तिगट्ठाणे" ति, उग्गप्पादणे सणासु जं अकप्पपडिसेवणाए प्रणायारकरणं तेण एते मासादिछम्मासता पायच्छित्तट्ठाणा पत्ता इति । अहवा - णामाइतिगाणायारेहितो । अहवा - आहारउवाहिसेज्जा अकप्पिएहितो। इदाणि छम्मासियसुत्तस्स अतिदेसकरणं इमं- जम्हा पंचमासिए पलिउंचिए छम्मासा दिट्टा, तेसु पारोवणं विहाणं जं, तं चेव छम्मालपडिसेवणाए वि, तम्हा छम्मासियसुत्तं ण पति, अतिसं करेति । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ||२०||६|| "ते"'' ति तस्स पंचमासियस्स पुरप्रो छम्मासियं भवति, तम्मि पडिसेविए आलोयणाकाले जति अपलिउंचियं पालोएति तो छम्मासितं, पलिउंचियं पालोइए वि ते वेव छम्मासा, जहा मासादिसु पलिउंचिए य मायाणिप्फण्णो गुरुप्रो मासो पावत्तीयो अहिगो दिज्जइ तहा छम्मासावत्तीए भवतीत्यर्थः । कम्हा ? उच्यते - जम्हा जियकप्पो इमो। जस्स तित्थकरस्स जं उक्कोस्सं तवकरणं तस्स तित्थे तमेव उक्कोसं पच्छित्तदाणं सेससाधूणं भवति । सत्तिजुत्तेण वि परतो तवो ण कायव्वो, प्रासायणभया, चरिमतित्थकरस्स य अम्ह सव्वुक्कोसा छम्मासिया तवभूमी सूत्रखंड गतं । जे भिक्खू बहुसो वि मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउंचिय आलोएमाणस्स दोमासियं ॥सू०||७|| १ गा० ६३६६ । । गा० ६३६६ । ३ चूगिकृता त्वेदं पश्चिमसूत्रांशत्वेन गृहीतम् । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ सभाष्य-चूणि के निशीथसूत्रे [ मूत्र ८-१२ जे भिक्खू बहुसो वि दोमा सियं परिहाहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिय आलोएमाणस्स दोमासि पलिउंचिय आलोएमाणस्स तेमासियं ॥सू०॥८॥ जे भिक्खू बहुसो वि तिमासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिय आलोएमाणस्स तिमासियं पलिउंचिय आलोएमाणस्स चउमासियं ॥सू०||६|| जे भिक्खू बहुसो वि चउमासियं परिहाट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउचियालोएमाणस्स चउमासियं पलिउंचिय आलोएमाणस्स पंचमासियं ॥सू०॥१०॥ जे भिक्खू बहुसो वि पंचमासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्ज अपलिउंचिय आलोएमाणस्स पंचमासियं पलिउंचिय आलएमाणस्स छम्मासियं ॥२०॥११॥ 'तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।।सू०॥१२॥ प्रत्र पंचानामपि सूत्राणां सूत्रकं गाथापश्चार्धमपि दिश्यते "पंचर" इति संख्या, "गमा" इति सूत्रप्रकारो, ते य मासदुमासादि, “3णेयवे" ति वयणुच्चारणमग्गेण, 'बहूहि" ति - बहुस सुत्ता। 'उखड्डमड्डाहि" ति बहुस वक्खाणं, उखड्डमड त्ति वा बहुसो त्ति वा भूयो भूयो ति वा पुणो पुणो त्ति वा एगटुं । एषां पंचानामपि बहुससूत्राणमयमर्थः - त्रिप्रभृतिबहुत्वं तिणि वारा मासियं पडिसेवेत्ता अपलिउ चियं पालोएइ एक्क चेव मासियं दिजइ, मह पलिउ चियं आलोएति तो बितितो मासो मायाणिप्फण्णो गुरुगो दिजति, एवं दोमासियं पि। णवरं - ततिम्रो मासो मायाणिफण्णो गुरुग्रो मासो दिजति । तेमासिए तिणि मासा, चउत्थो मायाणिप्फण्णो गुरुप्रो दिजति । चाउम्मासिए चत्तारि मासा, पंचमो मायाणिप्फण्णो गुरुग्रो दिजति । पंचमासिए पंच, छट्ठो मायाणिप्फणो। तेण पर पलिउचिते वा ते च्चेव छम्मासा, एतत्सूत्रमुक्तार्थमेव । एवं मासादिसु एगपडिसेवणसुत्ते पंचसु मासादिसु बहुसु पडिसेवणसुत्तेसु पंचसु वक्खागिएसु । अत्र चोदकाह - ' तुम्हे रागदोसी' । कि चान्यत् सूत्र - चोदग मा गद्दभत्ति कोट्ठारतिगं दुवे य खल्लाडा । अद्धाणसेवितम्मि, सव्वेसु वि घेत्तुणं दिण्णं ॥६४००॥ १ दशमसूत्रांशो गृहीतश्च णिकृता । २ गा० ६३६६ । ३ गा० ६३६६ । ४ गा० ६३६६ । Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा - ६४००-६४०४ ] विशतितम उद्देशकः बहुसु एक्कदाणे, रागो दासो य एगदाणे उ । चोदग एवमगीए, गीयम्मि व अजत सेवम्मि || ६४०१ ॥ प्राचार्याह - रागो, एक्कसि जं सेवितं तं चैव पडणं एक्क देताण तम्मि भे प्रायरियो भणति - "चोदग एवमगीते" पच्छद्धं दिति एवं प्रगीयत्यस्स एवं दिज्जति । जं पुण बहुससुत्तेसु दाणं सेवति, तस्सेदं दिज्जति ।।६४०१ || भवति ? कम्हा अम्हे रागद्दोसी ? पुणो चोदगाह - पुग्वद्धं - "बहुए सु" त्ति, बहुससुत्ते मासियट्ठाणेसु वि बहुसो सेविएस एक्कदाणे द्वेषो भवति । सगलबहुससुत्ताणं विसमपडिसेवणासु समदाणपसाहणट्ठा इमो दिट्टंतो दिजतिजो जतिएण रोगो, पसमति तं देति भेसगं वेज्जा । एवागमसुतनाणी, तं देति विसुज्झते जेणं || ६४०२ || कंख्या ग्राचार्य एवाह, ""सुत्तं" त्ति अस्य व्याख्या वि यहु सुत्ते भणियं, सुत्तं विसमं ति मा भणसु एवं । संभवति ण सो हेतू, अत्ता जेणालियं बूया || ६४०३ ।। day जं प्रादिसत्तेसु पंचसु पडिसेवितं तं चैव भणियं, एयं जो गीयत्थो कारण अजयणाए आयरिश्रो भइ न वयं रागदोसिल्ला, जेण सुत्तं चैव फुडं समदाणं भणति । चोदगो त्ति चोदगो भणति, "जं तुमे भगति सुत्ते वृत्तं ति, तं चैव सुत्तं विसमं ति, जेण श्रादिपंचसगलसुत्ताणि पंच य बहुससुत्ताणि पुल्वायरविरुद्धाणि, जतो एतेसि दोण्ह वि पंचगसुत्ताणं विसमा पडिसेवणा समं दाणं" ति । आयरिश्रो भणइ - "चोदग! जे तुमं भणसि सुत्तं विसमं ति तं "मा" अस्य व्याख्या, मा भण एवं ति । सेसं कंठ । "वीतरागो हि सर्वज्ञः " श्लोकः ||६४०३|| पुणो सीसो भणइ भगवं ! णशु त्रिसमा पडिसेवणा वत्थू कहं वा विसमवत्थूसु सुद्धी समा उच्यते २०६ कामं विसमा वत्थू, तुल्ला सोहि तधावि खलु तेसिं । पंच वणि तिपंच खरा अतुल्लमुल्ला उ आहरणं || ६४०४ || , "काम" प्रणुमयत्थे, 'खलु' सद्दो इमं श्रवधारेति, विसमवत्थुपडि सेवणासु वि भवति चेव तुल्ला सुद्धी, सा यसमा चेव, समसुद्धिवसाहणत्थं दितो इमो, “४ गद्दर्भे" ति प्राय व्याख्या "पंचवणि" पच्छद्ध, जहा • पंच वणिया समभागसमाइत्ता ववहति, तेसि प्रण्णया कयाइ समुप्पण्णं जहा विरिचामो | सव्वम्मि विभत्ते खरा विभयामो त्ति, ते य "तिपंचक्खरा " - पण्णरस त्ति वुत्तं भवति, ते य बिसम भरवा विसममोल्ला || ६४०४|| - १ गा० ६४०० । २ गा० ६४०० । ३ गा० ६४०० । ४ गो० ६४०० । - Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [ मूत्र-१२ ते सम्म विभज्जता तिणि आवडंति, मुल्लतो पुण अतुलमुल्ला भवंति । ताहें ते - विणिउत्तभंड भंडण, मा भंडह एत्थ एगो सट्ठीए । दो तीस तिणि पीसग, चउ पण्णर पंच बारसगा ॥६४०५॥ 'विणिउत्तभंडि" ति सभंडोवकरणे विभत्ते विक्रीत रासभणिमित्त भंडि उमारद्धा। असमत्था य समं अप्पणा विभातियं अण्णं कुसलमुवदिता, तेण य भपिता - "मा भंडह, अहं भे समं विभयामि, कहेहि किं को वहति ? कस्स कि मुल्लं ? ति। तेहिं कहियं - एत्थ एक्को रासभो सठुिमोल्लो, सट्टि च पलसते वहति, दो पत्तयं तीसमुल्ला तीसपलसत्तो वाहिणो, एवं तिण्णि वीसा, चत्तारि पण्णरसा. पंच बारसा एवं कहिए। तेण मुल्लसमा विभत्ता, एगस्स एगो सट्ठिमुल्लो दिण्णो, बितियवणियस्स तीसा दो, ततियस्स बीसा तिण्णि, चउत्थस्स पण्णरसमुल्ला चउरो, पंचमस्स पंच बारसमुल्ला। विसमवत्यूसु वि तेण सममुल्ला कया, ण य सो विभयंतो रागदोसिल्लो, ण य वणियाणं अत्थि हाणी ॥६४०५।। एयस्स इमो उवसंघारो कुसलबिभागसरिसओ, गुरू य साहू य होंति वणिया वा । रासभसमा य मासा, मोल्लं पुण रागदोसा तु ॥६४०६।। कंठ्या णवरं - "मुल्लं पुण रागदोसा उ" ति -जहा रासभदश्वगुणवुड्डिहाणीमो मुल्लस्स वुडिहाणी तहा भावे रागद्दोसवुड्ढीहाणीजनितपडिसेवणाहितो पच्छित्तस्स वुढिहाणी भवतीत्यर्थः । जतो तिम्व रागद्दोसाझवसाण सेवते मासट्ठाणे मासो चेव दिज्जति, मदभावस्स दोसु भासियट्ठाणेसु पण्णरस पण्णरस घेत्तुं मासो दिज्जइ, एवं तिसु दस दम घेतुं मासो दिज्जइ, च उसु पत्तेयं अट्ठमा राइंदिया घेत्तुं दिज्जंति, पंचसु छ छ घेत्तुं मासो दिज्जति, एवं सगलदुमासा चेत्ति सुत्ते वि बहुससुत्ते य कारणा अजयणपडिसेविणो रागादि. बुढिहाणीतो य उव उज्ज बहुवित्थरमणियव्वं । “२अद्धाणसेवितम्मि" त्ति-गीयत्थेण श्रद्धाणातिकारणे जं सेवितं अजयणाए तत्थ बहू मासा प्रावणो, एतेग एककसरा चेव आलोइदा तत्य गुरुणा राजयणसुद्धीणिमित्तं तस्सऽवणेसिं च प्रणवत्यणि धारणत्थं सव्वेसि मामाणं समविसमेण वा दिवसग्गहणेण दिवसो घेत्तं एक्को मासो दिण्णो। अगीयत्थो वि जो मंदणुभावो बहुमासे सेवित्ता तिव्वउझवसाणो वा हा दुटुकयादीहिं पालोइते, तेण णायं एस एक्केण चेव मासेण सुज्झति, तहावि प्रगीयस्था परिणाममो वा चितेज्ज - दोमासियादि प्रावण्णो हं कहं एक्केण मासेण सुज्झिस्सामि त्ति ताहे पच्चयकरण?ताए सुतवहारी सव्वसफलमासकरणत्थं सव्वेसु दिवसे घेत्तुं एक्कमासं दलाति । प्रागमववहारी पुण ण दो वि मासा सफला करेइ एक्कं वेव दलाति, बितियं मासं झोसेति, जो पुण तिव्वज्झवसाणे णिक्कारणपडिसेवी तस्स मासादिमावण्णस्स मासादि चेव पडिपुणं दिबति । एवं अगीयगीयत्थाण णिक्कारणे वा पृढो ।।६४०६॥ पायच्छिते दिण्णे सिस्सायरियाण पुच्छ्रुत्तरगाहा इमा - वीसुं दिण्णे पुच्छा, दि₹तो तत्थ डंडलइतेणं । डंडो रक्खा तेसिं, भयजणगो चेव सेसाणं ॥६४०७।। १ गा० ६४०० । २ गा० ६४०० । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६४०५-६४११] विशतितम उद्देशक: ३११ दीसुं पृथक् पृच्छति-प्रगीतगीताणं णिक्कारणकारणे वा किं वि सरिसं पच्छित्तं दिण्णं ति?॥६४०।। एत्थ "'कोट्ठागारे" ति वयणं, अस्य व्याख्या - "दिटुंतो तत्थ दंडलइएणं" ति अस्य व्याख्या - डंडतिगं तु पुरतिगे, ठवितं पच्चंतपरनिवारोहे ! भत्तटुं तीसतीसं, कुंभग्गहमागमो जेत्तुं ॥६४०८|| सुणेहि चोदग - “एगस्स अहिवरण्णो पच्चंतियराया वियट्ठो । अहिवरण्णा तस्स पासण्णपुरेसु तिण्णि दंडा विसज्जिता, गच्छह पगराणि रवखह । एतेसु पत्तेयं णगरेसु तेसु पच्चंतिराइणो ते आगतु रोहिता । तेहि य रोहिएहि खीणभत्तेहिं, जे तेसु पुरेसु अहिवरणो कोद्वागारा तेहितो पत्तेयं धण्णस्स तीसं तीसं कुभा गहिया। तेहि य सो पच्चंतियरामो जितो। आगता रण्णो समीवं, कहितं, तुट्ठो राया। पुणो तेहिं कहियं-तुज्झ कज्जं करतेहिं धन्नं खइय । रण्णा चितियं-जइ एतेसिं डंडो ण कज्जति, तो मे पुणो पुणो उप्पण्णपयोणेहिं कोट्ठागारा विलुपिहिति, ण य एतेसि अण्णेसि च भयं भवति । तम्हा "२दंडो" पच्छद्ध, अस्य व्याख्या कामं ममेतं कज्जं, कतवित्तीएहि कीस भे गहितं । एस पमादो तुब्भं, दस दस कुंभे वहह दंडं ॥६४०६॥ सव्वं मम कज्ज तहावि कयवित्तीहिं कीस मे धण्णं गहियं ?, एस तुम्हं पमादो। तेसि प्रणवत्थपसंगणिवारणत्थं दंडं वत्तेति, देह मे घण्ण ति । एचं भणित्ता पुणो राया अणुग्गहं करेति, वोस वीस कुंभा तुन्भे मुक्का, दस दस कुभे छुन्भह कोट्ठागारे ॥६४०६॥ ___ "3रक्खा" त्ति तेहिं ते छूढा, चिंतियं च - "अम्हेहिं रण्णो कज्जं कयं, तहावि डंडिया, ण पुणो एवं करिस्सामो" । अण्णेसि पि भयं जायं, एस दिटुंतो। इमो उवसंहारो तित्थंकर रायाणो, जइणो दंडा य काय कोट्ठारा । असिवादि युग्गहा पुण, अजयपमादारुवण दंडो ॥६४१०॥ तित्थकरा रायत्थाणीया, साधू डंडत्थाणीया, छक्कायस्थाणीया कोट्ठागारा, विग्गहत्थाणीयाणि असिवादीणि । गीयत्यस्स प्रजयणाए प्रसंगवारणाणिमित्तं मासादीहिं बहुसो सेवितेहि तेहिं एक्को मासो दिजति, अगीयत्थस्स पुण प्रमादवारमाणिमित्तं दोहिं मासेहिं दुमासो दियो। अहवा - दो वि सफला काउं मासो चेव दंडो दिण्णो ॥६४१०॥ चोदगो भणइ - बहुएहि नि मासेहिं, एगो जति दिज्जती तु पच्छित्तं । एवं बहु सेवित्ता, एक्कसि विगडेमि चोदेति ॥६४११।। १ गा. ६४०० । २ गा० ६४०७ । ३ गा० ६४०७ । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ सभाष्य-पूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१२ अति गीयत्थस्स कारणा अजयणाए बहूहिं मासिएहिं सेविएहि एक्कसराए पालोइयं ति का एक्को मासो दिज्जति, तया भम्हे वि बहुमासे पडिसेवित्ता एक्कसराण पालोयामो, तो एक्कमासो लम्मामो॥६४११॥ एत्य पायरियो भणइ - मा वद एवं एक्कसि, विगडेमो सुबहुए वि सेविता । लम्भिसि एवं चोदग, देंतो खल्लाड खडुगं वा ।।६४१२॥ खल्लाडगम्मि खडुगा, दिण्णा तंबोलियस्स एक्केणं । सक्कारेत्ता जुयलं, दिण्णं वितिएण वोरवितो ॥६४१३॥ "'दुवे य खल्लाडं" ति दिटुंतं करेइ, एक्को खल्लाडो तंबोलियवाणियप्रो पण्णं विक्केति । सो एक्केण चारभडचोद्देण पण्णे मग्गितो।तेण न दिण्णा।थेवेसु वा दिण्णेसु रुसिएण चारभडचोद्दे ण खल्लाइसिरे खलुक्का दिण्णा, "टक्कर" त्ति वुत्तं भवति । - वणिएण चितियं - "जइ कलहेमि ता मे रूसितो मारेज, तो उवायेण सो वेरणिज्जायणं करेमि' । वणिएण उद्वेत्ता हट्ठो समाइच्छ वत्थजुयलं च से दिण्णं, पाएसु पडितो, महंतं से तंबोलं। चारभडचोद्दो पुच्छति – "किं कज्जं तुम न रुट्ठो, पेच्छगं मम पूएसि, पाएसु य पडसि" त्ति । वणिएण भणियं - "सव्वखल्लाडाण एस ठिई, परमं सुहं च उप्पज्जइ"। चारभडचोद्दे ण चिंतियं - "लद्धो मे जीवणोवारो। ताहे तेण चितियं - "तस्स एरिसस्स खडुक्क देमि, जो मे प्रदरिद्द करेज" । ताहे तेण ठक्कुरस्स दिण्णा, तेण मारितो ॥६४१३।। एवं तुम पि चोदग, एक्कसि पडिसेविऊण मासेण । मुच्चिहिसी बितियं पुण, लब्भिहिसी छेदमूलं तु पच्छित्तं ॥६४१४॥ चोदग ! तुम पि एक्कंसि पडिसेविए मासिएण मुक्को, प्राउट्टियाए बहुं सेवंतो छेदं मूलं वा लन्भिहिसि । अण्णं च सो चोदो एक्कं मरणं पत्तो, तुमं पुण संसारे प्रणेगमरणाई पाविहिसि ॥६४१४॥ किं चान्यत् ? इमं च तुमं ण याणसि - दिण्णमदिण्णो दंडो, हितदुहजणणो उ दोण्ह वग्गाणं । साहूणं दिण्णसुहो, अदिण्णसुक्खो गिहत्थाणं ॥६४१५॥ दो वग्गा इमे - माहुवग्गो गिहत्यवगो य। साहुवम्गे पच्छित्तदंडो दिज्जतो सुहं जणेति, अदिज्जतो दुक्खं करेति । गिहिवग्गे एयं चेव विवरीयं भवति ॥६४१५॥ कहं ?, उच्यते - उद्धियदंडो साहू, अचिरेण उवेति सासयं ठाणं । सो च्चियऽणुद्धियदंडो, 'संसारपकडअो होति ॥६४१६॥ १ गा० ६४०० । २ पोट्टेण ( व्यव० ) । ३ व्यवहारे 'छेद' इति पदं नास्ति, तुशब्दात् छेदो गृहीतः । ४ पवनो (व्यव०)। साह Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६४१२-६४१६ ] विशतितम उद्देशकः ३१३ पच्छित्तण र उद्धितं पावं भवति तदा विसुद्धचरणो मुक्खं पावति । भविमुढचरणो पुण अप्पाणं __ संसारं, तेण कडति - नया यर्थः । संसारभावं वा प्रणाणं, तेण "कड्ढति" - पाकर्षतीत्यर्थः ।।६४१६॥ गिहत्या पुण - उद्धियढंडो गिहत्थो, असण-वसण-रहिओ दुही होति । सो च्चियऽणुद्धियदंडो, असण-वराण-भोगवं होति ॥६४१७॥ "असणं" भत्तं, "वत्थं' वसणं, तेसि णासाति । इंडिग्रो पुण तेसिं प्रभागी, अडंडियो पुण भोगी य भवति । जम्हा एवं साधूण पच्छित्तदंडो दिण्णो सुहो, तम्हा जो जेण सुज्झइ तस्स तं एगमणेगमासियं वा प्रणुरूवं दायव्वमिति ॥६४१७॥ जे भिक्खू मासियं वा दोमासिां वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं दा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा - अपलिउंचिय आलोएमाणस्स नासियं वा दो मासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं पलिउंचिय पालोएणमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा तेण परंपलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ॥सू०॥१३॥ सूत्रे उच्चारिते शिष्याह कसिणारूषणा पढमे, बितिए बहुसो वि सेविता सरिसा । संजोगो पुण ततिए, तत्थंतिमसुत्त वल्लीव ॥६४१८॥ सिस्सो भणति - मासिगादिसु पंवसु मगलसुतगमेसु कसिणारूवणे ति जं सेवितं तं चेव सवं दिणं, न किंचि विज्झोसितं । आदिमा पंच वि सगलसुत्तगमा सगलसुतसामण्णमो एक्क सुत्तं भवति । "बितिय" त्ति-बहुसाभिषाणसामण्णतो पंच दि बहुससुत्ता बितियसुत्तं भवति, तत्थ य सरिसा. वराहा मासादी बहुपडिसेविता ते य झोसियसेसा पढमसुत्तसमा चेव दिण्णा । एवं एगदोसु सुत्तेसु इमो ततियसुत्तारंभो किमत्थं भण्णति ? प्राचार्याह-बहुवित्थरततियसुत्तप्पदरिसणत्थं, जतो भण्णति- "संजोगो पुण" पच्छद्धं । ग्रहवा - सुत्ते उच्चारिते सिस्साह “णणु मासदुमासादिया पुव्वाभिहिता किं पुणो भण्णति'' ?, प्राचार्याह - ण तुमं सत्ताभिप्पायं जाणसि - कसिणारुवणा पढमे, बितिए बहुसो वि सेविता सरिसा । संजोगो पुण ततिए, तत्यंतिमसुत्त वल्लीव ॥६४१६॥ कंठ्या पूर्ववत् जे अत्थतो संजोगसुत्ता भंगविकप्पा वा तेसि भाणियत्वे इमो विही आदिमसुत्ते भणिते, पढमे सेसा कमेण संजोगा। अंतिल्ले पुण भणिए, प्रातिल्ला अत्थो पुन्वं ॥१॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-१४ मझे गहिए जे सेसगा तु ते उभयतो भवे णेया। तेसिं पुव्वापुन्वं, सेसा य ततो कमेणं तु ॥२॥ विभासा - जत्थ सुत्तादिसंजोगेसु मंगेसु वा प्रादिल्ला सुत्ते भणिता तत्व रोसा कमेण प्रत्यतो पच्छा भाणियव्वा । अह सुत्ते अंतिल्ला पुवं भणिया तत्य अत्यतो प्रादिल्ला पुन्वं भागियया । ग्रह सुत्ते मझग्गहणं कयं तो प्रत्ययो संजोगा उभयो वि माणियव्वा । इमं ततियं सुत्तं छब्बीसतिभेदभिणं, तत्थ अंतिम पंचमसंजोगे सुत्तं इमं सुत्तण गहियं, जे आदिमविगप्पा ते वल्लिदिटुंतसामत्यो गेज्मा, जहा वल्लो अग्गे घेत्तु आघट्टिता सवा समूलमज्झा आघट्टिजइ एवं एतेणं अंतिमपंचगसंजोगसुत्तेण सम्वे मादिमा दुगादी संयोगा गहिया भवंति, प्रतोऽर्थमिदं सूत्रमारब्धं । तत्य इमे दसदुगसंजोगा, तं जहा - जे भिक्खू मासियं च दोमासियं च परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता पालोएन अपलिउंचियं पालोएमाणस्स मासियं च दोमासियं च पलिउंचियं पालोएमाणस्स दोमासियं तेमासियं च उच्चारेयब्वं । जे भिक्खू मासियं च तेमासियं च । जे भिक्खू मासियं च उम्मासियं च । ओ भिक्खू मासियं पंचमासियं च । एवं दो मासियं तेमासियं, चाउम्मासियं पंचमासियं च पेयव्वं, तेमासिए चाउम्मासिय पंचमासिया णेयव्वा, चाउम्मासिए पंचमासियं णेयव्वं, एते दस दुअसंजोगा, एवं तियसंजोगे दस, चउकसंजोगेण पंच, एगो पंचगसंजोगो ॥६४१६।। सो य इमो सुत्तेणेव गहितो -- जे भिक्खू बहुसो वि मासियं वा, बहुमो वि दोमासियं वा बहुसो वि तेमासियं वा बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुसो वि पंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा अपलिउंचिय (बहुसो वि) आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा देजा। पलिउंचिय (बहुसो वि) आलोएमाणस्स दोमासियं का तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा ।।सू०॥१४॥ एवं चउत्थसुत्तं । इमा से णिज्जुत्ती जे भिक्खू बहुसो मासियाइ सुत्तं विभासियन्वं तु । दोमासिय तेमासिय, कयाइ एक्कुत्तरा बुडी ॥६४२०॥ बहुसो ति--त्रिप्रभृति बहुत्वं । किं पुण तं?, बहुसो पडिसेवितं मासियट्ठाणं ति वुत्तं भवति । "विभास" त्ति - व्याख्या, सा य कायचा, जहा बहु सगलसुत्ते तहा बहु संजोगसुते वीत्यर्थः । जहा मासिपढाणा बहुपडिसेवाते कया तहा दोमासियतेमासियट्ठाणा वि, एवं चउपंचमासिया वि दृढव्वा, एगुत्तरवुड्डीए तेसिं दुगादिसंजोगा गहिता, सुत्ते पुण पंचसंजोगो महिमो । जहा ततियसुत्ते अतिम Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६४२०-६४२२] विंशतितम उद्देशकः ३१५ संजोगेण दुगाइसंजोगा गहिया तहा बहुससंजोगसुत्ते वि अंतिमसंजोगेण दुगादि वा संजोगा सूइया । इहं पि ते चेव छन्वीसं संजोगसुत्ता, णवरं - बहुसाभिहाणेण कायवा, एवं एतेसु च उसु सुत्तेसु सभेदभिण्णेसु बावढि सुत्ता भणिया । एते य उग्घायाणुग्घाएहिं प्रविसेसिता भणिता ॥६३२०॥ इदाणि पुण एतेसिं चेव विशेषज्ञापनार्थमिदमुच्यते उग्धाताणुग्पाते, मूलुत्तरदप्पकप्पतो या वि । संजोगा कायव्वा, पत्तेगं मीसगा चेव ॥६४२१॥ सगलसुत्ता पंच, बहुससुन्ता पंच, सगलसुत्ते य संजोगसुत्ता छन्वीसं, बहुससुत्ते य संजोगसुत्ता छव्वीसं । एते बावढेि सुत्ता उग्घायाभिहाणेण णेयव्वा । एते चेव बावढेि सुत्ता प्रणुग्धायाभिहाणेण णेयव्वा । एता तिष्णि बावट्ठीप्रो छासीयं सुत्तसयं । एत्य तीसं असंजोगसुत्ता, सेसछपण्णसयं पत्तेग संजोगसुत्ताण भवति । इदाणि उग्घाताणुग्घातमीसगाभिहाणेणं संजोगसुत्ता भाणियव्वा । तेसिं इमो उच्चारणविहीजे भिक्खू उग्घायमासियं च पलिउंचियं च पालोए उग्घातमासियं च अणुग्घायदोमासियं च । एवं उग्घायमासियं अमुयंतेहिं अणुग्घायदोमासियादि वि भाणियव्वा । एवं चेव अणुग्धातमासिते उग्घायतो य दुगादिसंजोगा भाणियव्वा ।।६४२१॥ एत्थ इमं एगदुगादिपडिसेवणपगारदरिसणत्यं एगदुगादिसंजोगफलग्रागतककरणदरिसणत्थं च भण्णति एत्थ पडिसेवणाओ, एक्कगद्गतिगचउक्कपणएहि । दस दस पंचग एक्कग, अदुव अणेगाओ णेयाओ !।६४२२॥ "एत्थं" ति- अतिक्कते संजोगसुत्तसमूहे, अहवा - उग्घाताणुग्घातसंजोगे वा वश्वमाणे मासदुमामिएसु एगादिपडिसेवणप्रकारा भवंतीत्यर्थः । तत्थ उग्घातिएसु एक्कपडिसेवणाते पंचप्पगारा ते य सुत्तसिद्धा चेव, तेण पच्छद्धेण न गहिया, दुगसंजोगे दस, तिगसंजोगे दस, चउक्कसंजोगे पंच, पचगसंजोगे एक्को, एवं अणुग्घातेसु वि एते पत्तेगसंजोगा। 'इदाणि एतेसिं मीसगसंजोगो भण्णति -- एत्थ एक्कादि उग्घातिगसंजोगट्ठाणा पंच वि अणुग्घातियसंजोगेण पंचगेण गुणित्ता जहासंखं इमे जाता। पणुवीसं पण्णासा पणासा पणवीस पंच य, एवं उग्धातियाण एग-दु-ति-चउ-पंचसंजोगेसु अणुग्धातियाण य एक्कगजोगे जातं पणपण्णसयं । पुणो उग्धातियाण एग-दु-ति-नउ-पंचसंजोगा अगुग्घातियदुगसंजोगेहिं दसहिं गुणिया जहाखं इमे जाता पण्णासा। सतं, पुणो सतं, पुणो पणासा, दस य, एवं उग्घातिया. सव्वसंजोगा अणुग्घातियाण दुगर जोगेहि मिलिया तिणि सया दसुत्तरा भवंति । पुणो उग्धातियाण सव्वसंजोगा अणुग्यातियतिगसंजोगेहिं दसहिं गुणिया तहिं जहासंखं जाता पण्णासा, सतं, सतं, पण्णासा, दस य, एते वि सव्वे मिलिया दसुतरा तिण्णिसया भवति । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१४ पुणो उग्घातियसव्वसंजोगो अणुग्धातियचउक्कसंजोगेहिं पंचहि गुणिता जाता जहासंखं पणुवीस पण्णासा पणवीसं पंच य, एयं पि मिलियं पणपण्णसयं भवति । पुणो उग्घ तियसव्वसंजोगा अणुग्घातियसव्वसंजोगेण एक्केण गुणिता जहासंखं पंच दस दस पंच एकको य, एते सत्वे एक्कतीसं, एवं उग्धाताणुग्यातसगलसव्वसुत्ताण संखेवो णव सया एक्कसट्ठा । इदाणि बहुससुत्तेसु वि मीसा सुत्त संजोगा एतेण चेव विहिणा णव सया एगसट्ठा भवंति, सके मीसगसुत्ता संपिंडिता अउणवीसं सया बावीसुतरा भवंति, एते चेवं आदिमछासीसतसहिया एक्कवीसं सय अछुत्तरा भवंति । जम्हा दुविहो अवराहो - मूलगुण उत्तरगुणे वा, तम्हा एते सव्वे सगलसुत्ता संजोगजुना ८ मूलगुणावराहाभिहाणेण लद्धा, उत्तरगुणावराहाभिहाणेण वि एत्तिया चेव, जम्हा एवं तम्हा एस रासी दोहि ग्रणितो जातो चत्तारि साहःसा दो य सया सोलसुतरा। जम्हा एतेसु मूलुत्तरगुणेसु दप्पतो कप्पतो य अजयणाए प्रवराहो लब्भति तम्हा एस रासी पुगो दुगुणो कजति, कते य इमं भवति - अट्ठ सहस्सा चत्तारि सता य बत्तीसाहिया भवंति । एत्थ जा मीसगसुत्तसंखा सा ततियच उत्थसुत्तेहितो उप्पण्णा संखेवो भणिता। तं चेव बहुवित्थरं दरिसंतो पायरिओ भणति “अदुव अणेगानो णेयानो" त्ति अधवा - ण केवलं पडिसेवणाए एते संजोगमुत्त पगारा भवंति । अण्णे वि अण्णण पगारेण पडिसेवणाए अणेगसुत्तप्पगारा भवंति, ता य पडिसेवणाप्रो “णेयायो" त्ति णायचा इत्यर्थः । तेस् णिदरिसणं इमं - जे भिक्खू पंचराइदियं पडिसेवित्ता आलोएज्जा । अपलिउचियं पालोएमाणस्स पंच राइंदियं। पलिउंचियं आलोएमाणस्स सपंचराई मासितं दसगं । एवं दस पण्णरस वीस पणुवीसराइदिएसु वि सव्व भाणियव्वं । एवं बहुसाभिलावेण भाणियव्वा, एतेसु वि संजोगे सुत्ता भाणियव्वा । एवं सामण्णतो भणितेस पच्छा उग्धाताणग्यायमूलुत्तरदप्पकप्पेस अट्र सहस्सा चत्तारि सया य बत्तीससहिता पुन्वभिहाणेण अणूणमइरित्ता कायव्वा, एत्थ पणगादिराइंदिया मासदुमासा दिएहिं सह ण चारेयव्वा, जम्हा उवरि पंचमासातिरेगसुत्तं भाण्णहिति, तं च सातिरेगं पणगादि संजोगा भवंति, स संयोगसूत्रैव भविष्यतीत्यर्थः । एत्थ चोदगो सगलबहुससंजोगसुत्तेसु विगोवितमती भण्णति - "गणु . बहुसमुत्तावत्तिर दुमासादिसुत्ता भणिया, अहवा- जत्थ परट्ठाणवुड्ढी दिट्ठा तत्थ दुमासादिया पावत्ती भवतीत्यत्र निदरिसण जहा एत्थेव दसमुद्दे सगे लतियसुत्ते तिविहे तवगेलणद्धाणे असंथडे भणियं । एग दुग तिण्णि मासा, चउमासा पंचमासा छम्मासा। सव्वे वि होति लगा, एगुत्तरवुड्डिता जेणं ॥ एवं दुमासादिया एते प्रावत्तिसंभवातो भवंतीत्यर्थः । अहवा जम्हा बहुसु मासिएसु प्रपलिउंचियं पालोएमाणरस मासियं चेव दिटुं, दुमासियादिए सु वि अपलिउंचियं पालोएमाणस्स दुमासातिया चेव, तम्हा वा दुमासादिसुत्ता पुढो कया, ता य पावत्तीप्रो एगादिदोमासदुद्द्दव्वाभावसंकिलेसामो वा भवंति । Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग्यगाथा ६४२३-६४२५ ] विंशतितम उद्देशकः ३१७ तत्थ दवे सागारियपिडे मासियं, सागारियपिंडे हडं दोमासियं, सागारियपिडाहड उदउल्ले तेमासियं सागारिए गिडहे सियउद उल्लाहडे चाउम्मा सियं, सागारिर्यापडुद्देसिय उदउल्लाहडे पुढविसचित्तपरंपरणिक्खित्ते व पंचमासियं, तम्मि चेव क्यणसंथवमजुत्ते छम्मासियं । भावतो मदतिव्वत रझवसाण पडिसेवगातो मासदुमासादी प्रावतीतो भवंति, ग्रहवा - भावनो इमा च उभंगासेवणा जे भिक्खू मासिए मासियं, मासिए अणेगमासियं । ग्रणेगमातिए मासियं, अणेगमासिए अणेगमासियं । एवं मासस्स दुमासादिट्ठाणेहि वि सह चउभंगा कायव्वा । पच्छा दुमासादियाण वि सट्ठाण-परट्ठाणेहिं च उभंगा कायब्वा । एत्थ पण्णरस चउभंगा भवंति ।। पढमच उभंगे बितियच उभंगादिसु सीसो इमं पुच्छति - जहमण्णे बहुसो मासियाइ सेवित्त बुड़ती उवरिं। तह हेट्ठा परिहायति, दुविहं तिविहं च आमं ती ॥६४२३।। दुविहं च दोसु मासेसु मासो जाव सुद्धो तिविहं च । तिसु मासो जाव सुद्धो चसदा चतुसु पंचसु छसुत्ति एमेव ॥६४२४॥ "जह" त्ति जेण पगारेण अहं मण्णामि - चितेमि ति ( प्रहं ) मासियं पडिसेवेत्ता बहुसो मासियाई सट्टाणे पावति त्ति वुत्त भवति, एवं मासियं सेविता उरि एगुत्तरवुड्ढी एग दुग ति चउ जाव पारंचियं पावति ति मण्णामि । किं वा हं मण्णे तह" ति एतेण पगारेण मामियं पडिसेवित्ता भिण्णमासादी "हेट्ठाहु" ति परिहाणी भवति जाव "पणगं" ति, अह्वा - पारंचियो 'हेटाउ" ति परिहाणी जाव पणगं ति, "दुविह' त्ति एवं दोमासियाठाणे वि पडिसेविते उवरि वड्ढी जाव पारंचियं पावति, हेट्टायो वि मासादिपरिहाणी जाव पणगं ति, पारंचियानो जाव पणगं ति, तिविहं चेति तिमासिए एव उवरिहत्ती वड्ढी हेट्ठाहुत्ति य परिहाणी भाणियब्वा, चसद्दामो एवं सवपच्छित्तठाणंसु कायव्व । आयरियो भणति - "प्राम" ति,, मामशब्द अनुमतार्थो द्रष्टव्यः ॥६४२४।। पुणरप्याह चोदकः - केण गुण कारणेणं, जिणपण्णत्ताणि काणि पुण ताणि । जिण जाणते ताई, चोदग पुच्छा बहुं गाउं॥६४२५।। चोदगो पुच्छति - केण कारणेण म सादीठाणे पडिसेविते पच्छित्तस्स वुड्डी हाणी वा गवति ति । पायरियो भणति - जिणपण्णत्ताणि वुढिहाणि भावकरणाणि । सीसो पुच्छति - काणि पुण ताणि भावकरणाणि । आयरियो भणति- रागहोसाणवश्वग्वुिड्ढीए मामियठाणपडिसेवणाते वि पच्छित्तवुड्ढी भवति, पच्छा वा हरिसायतस्स पच्छित्तवुड्ढी भवति. सिंहव्यापादकस्येव । तेसिं चेव रागदोसादिहाणीए पच्चित्त वि हागी दवा, पच्छा वा हा दुटुकतादीहिं भवति, शृगालव्यापादकस्येव । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे सूत्र-१४ पुणो नोदको पुच्छति -जे मासिगादिठाणा पच्छित्ता ते पालोयकमुहातो चेव जे पुण रागादिभाववड्विणिप्फण्णा ते कहं उवलम्भति ? पायरियो भणइ - जिणा जाणंति ताई, ते य जिणा केवलि-मोहि-मणपजव-चोदस-दस-णवपुठवी य, एते गियमा जाणंति - रागादिएहि जहा वुड्ढी हाणी वा भवति, ज वा पच्छित्तमावण्णो, जेण वा विसुज्झति पणगावत्तिट्ठाणपडिसेवणाए वि जाव पारंचियं देति, पारंचियावक्ति ठागपडि सेविए वि परिहाणीए जाव पणगं देति । पुणो चोदगाह - जे छउमत्था कपकपदवहारधारी ते कि न जाणंति ?, वुड्ढिहाणिणिप्पण्णं वा पच्छितं कहं वा जाणंति ? प्राचार्याह-ते वि जाणंति, तदुबइगुसुयणाणप्पमाणतो तिक्खुत्तो पालोयावेउं मासियमावणो बहुसु वा मासिएसु मासियं चेव देंति । एत्य पुणो चोदग पुच्छा - "बहु मासिय" ति ज भणह, एयमहं णाउमिच्छामि ।।६४२५:। प्राचार्याह - तिविहं च होइ बहुगं, जहण्णगं मज्झिमं च उक्कोसं । जहण्णेण तिण्णी वहुगा, पंचसयुक्कोस चुलसीता ॥६४२६।। जे सुत्तणिबद्धा मासिया ते पडुच्च बहुं तिविहं जहन्नमज्झिमुक्कोस, तत्थ जहणं तिणि मासा, उक्कोसेणं पंचमाससया चुलसीया, जे पुण चउरादी ठाणा पंचसया तेसीया, एयं मज्झिम बहुं ॥६४२६॥ । इदाणि जहा पच्छित्तं दिनति तहा भण्णति, तहा मासिकादि जाव छम्मासा ताब विणा ठवणारोवणाए सुतेण व दिजनि, सत्तमासिमादिगा पुणो मज्झिमा पच्छित्ता ।। . उक्कोसं च जहा दिज्जति तहा इमेहिं दारेहि भण्णति - ठवणासंचयरासी, माणाइ पभू य केत्तिया सिद्धा। दिट्ठा णिसीहनामे, सव्वे वि तहा अणाचारा ॥६४२७|| दार. "ठवणासंचय" ति दारं, ठविजनीति ठवणा, ठवणगहणालो यारोवणा. (त्थ गहिता, श्रा मज्जायाए रोवणा मासादि जाव छम्मासियादाण मित्यर्थः । "संचय' ति ठवणारोवणापगारेहि अण्णोणमासेहितो दिण्णं संचिणितो जम्हा छम्मासा दिज्जति . तम्हा छण्हं . मासाणं संचय ति सण्णा । अधवा - "सचय" त्ति ठवणारोवाहि जे संचयमासा लड़ा ते ठवणारोवणप्पगारेण छम्मासा काउं दायबा ॥६४२७॥ इमेसिं पुरिसाणं - बहुपडिसेविय सो या-वि अगीओ अवि य अपरिणामो वि । ___अहवा अतिपरिणामो, तप्पच्चयकारणा ठवणं ॥६४२८|| जेण अगीयत्थपुरिसेण बहुमासिठाणं पडिसेवितं अण्णं च अपरिणामगो अधवा - सो चेव प्रगोयत्थो अतिपरिणामगो, एतेसिं दोण्ह वि पुरिसाण पच्चयकरणत्थ ठवणारोवणप्पगारेण छम्मासियपच्छितं दिज्जति ॥६४२८॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशकः जेण एतेसि पडिवक्खभूता पुरिसा तेसि णो उवणरंपगारेण दिज्जति । जो भण्णति भाष्यगाथा ६४२६-६४३९ ] एगम्मिऽणेगदाणे, गेसु य एगणे गणेगा वा । जं दिज्जति तं गेहति, गीयमगीओ तु परिणामी ||६४२६ ॥ चउमंग विगप्पेग पच्छित्तदाणपढमभंगे इमे गीथो प्रगीयो परिणामगो अपरिणामगो प्रतिपरिणामगरे य सच्चे सम्मं पडिवज्जंति, बितियादिभंगेसु गीतो प्रगीतो वा परिणामको एते दो वि जं जहा दिज्जति तं तहा सम्म पडिवज्जति । चोदगाह - पमो णणु पढमसरिसो जतो श्रणेगे प्रणेगा चेव दिण्णा सव्वे इत्यर्थः ", । आचार्याह-ण एवं सुगेहि जह महंतधण्णरासीतो कस्स ति घण्णकुडवे दायव्वे, जं तत्थ कुडवे ठाति तं दिज्जति, जं तत्थ न मायति तं परिसडड, एवं सत्तादिमासपडिसेवणाए ण सत्तादिमासो चेव दिजति छम्मासाहियं पडिसाडिता "प्रोग" त्ति छम्मासा दिज्जति, श्रववादओ चउवुडीए पंचमासा दिज्जंति, एवं गो पढमभंग इत्यर्थः ॥ ६४२३॥ अगीतो जो परिणामगो सो ततियभंगे इमं प्रासंकेज्ज - - बहुए एगदाणे, सो च्चिय सुद्धो ण सेसंगा मासा ! रितु संका, सफला मासा कता तेणं || ६४३०|| जइ बहुसु मासिएस पडिमेविएस थेवं एक्को मासो दिज्जति तो सो प्रगीतो अपरिणामगो चित्तेणाकिज्जं भासेज्ज वा जो मे दिष्णो मासो सो सुद्धो, सेमा जे मासा ते मे न सुद्धा, तेण तस्स सासंकपरिहरणत्थं समामाण ठेवणारायणयकारेण सम-विसम-दिवसग्गहणेण सफलीकरणं कयं इत्यर्थः || ३४३० | बितियभंगेसु ठेवणारोवणमंतरेण पच्छित्तदाणेण इमे दोसा ठवणामेतं श्रवण त्ति इति णाउमतिपरीणामो । कुज्जा तु प्रतिपसंगं, बहुगं सेवित्तु मा विगड़े || ६४३१ ॥ तस्सिमे चउरो भेदा "ठत्रण" त्ति प्रसन्भावठवणा, "मात्रा" श द तुल्यवाची, अमब्भावरुत्रणाए तुल्यं प्रपरमार्थभूतं जं तं भणति ठत्रणामेत्तं तं व "आरोवण" त्ति इति उपप्रदर्शने, एवं प्रतिपरिणामगो चितेज्जा भासेज्ज वा । ग्रधवा - प्रकप्पमेवणाए वा पसंग करेज्ज, प्राउट्टियाए वा बहुमासादिठाणे सेवित्ता प्रालोएज्ज, जम्हा बितियभंगे बहुं च्छित्तं ततियभंगे थोवं इत्यर्थः । जम्हा एते दोसा तम्हा ठवणारोवणप्पगारेण सव्वे मासा सफल करेत्ता छम्मासे दिज्जा से ।। ६४३१ ।। इदाणि ठेवणारोदणप्पगारो भण्णति । ६१६ aणा वीसिग पक्खिग, पंचिंग एगाहिता य णायव्वा । श्रावणा विपक्खिग, पंचिग तह पंचिगेगाहा ||६४३२|| १ एगदान मेगेगं ( व्यवहार भाष्य ) । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२. सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूग-१४ ठवणाठाणा चउरो, तेसि प्राइभेदा इमे - वीसिया ठवणा, पक्खिया ठवणा, पंचिया ठवणा, एगाहिया ठवणा । प्रारोवणा वि पक्खियारोवणा, पंचियारोवणा, एगाहिया य भारोवणा ॥६४३२।। ण णज्जए का आरोवणा, काय ठवणत्ति, कस्स जाणणत्थं इमं भण्णति वीसाए अद्धमासं, पक्खे पंचाहमारुहेज्जाहि । पंचाहे पंचाहं, एगाहे चेव एगाहं ।।६४३३॥ वीसाए ठवणा पक्खिादी पारोवणा, पक्खियाए ठवणाए पंचियादी प्रारोवणा, पंचियादी ठवणाए पंचियादी प्रारोवणा, पक्खियाए ठवणाए गादियादि प्रारोवणा ।। ६४३३॥ जहण्णुक्कोसदरिसणत्थं इमं भण्णइ - ठवणा होति जहण्णा, वीसं राईदियाइ पुण्णाई । पण्णटुं चेव सयं, ठवणा उक्कोसिया होति ॥६४३४।। सव्वजहण्णा ठवणा वीस राइंदिया, ततो अण्णा पणवीसई राईदिया, ततो प्रन्ना तीसं राइंदिया, एवं पंच पंच वुड्डीए णेयव्वं जाव तीसइमा उक्कोसिया ठवणा पगट्ठ राइदिय सत, ॥६४३४॥ एवं प्रारोवणाए वि इमानो-- आरोवणा जहण्णा, पनरसराइंदियाइ पुण्णाई। उक्कोसं सट्ठसयं, दोहि वि पक्खेवो पंच ॥६४३५।। "दोहि वि" ति ठवणासु पंच पंच उत्तरं करतेण जहण्णामो उक्कोसा पावेयव्वा इत्यर्थः ।।६४३५॥ आदियाण तिण्हं ठवणारोवणाण इमं उत्तरलक्खणं - पंचण्हं परिखुट्टी, ओवडी चेव होति पंचण्हं । एतेण पमाणेणं, नेयन्वं जाव चरिमं ति ॥६४३६।। जो पुण एक्किया ठवणारोवणाम्रो तेसि उत्तरं एक्को चेव परिठवति, उवरुवरि वुडि उत्तरं प्रोवष्टि ति तीसतिमानो ठाणाप्रो हेट्ठा पच्छाणुपुवीए हाणी जाव पढमठाणं ति । एतेणं पंचगेण वा प्रमाणेन ताव यव्वं जाव चरिमं ति, पच्छिमा ठवणारोवणातो उक्कोसा इत्यर्थः । एक्क्के ठवणाठाणे उक्कोसारोवणा जाणियम्वा ॥६४३६॥ लक्खणं इमं - जाव ठवण उद्दिट्ठा, छम्मासा ऊणगा भवे ताए । आरोवण उक्कोसा, तीसे उवणाए णायव्वा ॥६४३७|| छण्हं मासाणं असीयं दिवससतं भवति, तं ठवेत्ता पच्छा जाए ठवणाए पत्थइ अंतिल्लं मारोवणं जाणियत्तए तं इच्छियठवणं असीतापो दिवससयानो सोहेज्जा, जं तत्थ सेसं सा तीसे ठवणाए उक्कोसा पारोवणा भवतीत्यर्थः । जहा वीसियठवणा असीयसतातो मुच्चा सेसं सटुं सतं, तं वीसितठवणाए उक्कोसिया मारोवणा, पक्खिया से जहण्णा । सेसाग्रो से प्रहावीस प्रजहण्णुक्कोसा भवंति । एवं पसीतातो सतामो पणुत्रीसिया उवणा सोहिया सेसं पणपण्णं सयं पणनीसियाए ठवणाए उक्कोसिया प्रारोवणा भवति, वीसिया से जहण्णा । सेसाप्रो से सत्तावीसमजहण्णुनकोसिया। एवं तीसादिसू वि उक्कोसारोवणलक्खणं गंयन्वं ॥६४३७॥ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यमाथा ६४३३-६४४० ) विशतितम उददेशक: इदाणि उक्कोसठवणालक्खणं आरोवण उद्दिट्ठा, छम्मासा ऊणगा भवे ताए । आरोवणाए तीसे, ठवणा उक्कोसिया होति ॥६४३८॥ जहा पविखता भारोवणा प्रसीतातो सतानो सुद्धा, सेस पणसटुं सतं तं पक्खियप्रारोवणाए उक्कोसा ठवणा भवति, वीसिया से जहण्णा, सेसं अट्ठावीसं अजहष्णुक्कोसा भवंति । एवं वितिर भारोवणाठाणे माढते अंतिल्लं तीसइमं ठाणं फिट्टति । ततिए भारोवणाठाणे माढत्ते एगणतीसतिमं ठवणाठाणं फिट्टति, एवं एक्केक्के उपरि उरि मारोवणाठाणे ठवणाणं भोवड्डीए एक्केक्कं ठाणं हुसेजा, जाव सढिसयारोवणाए वीसिया चेव एक्का ठवणा भवतीत्यर्थः ॥६४३८॥ पढमे ठवणारोवणठाणे ठाणसंखा इमा - तीसं ठवणाठाणा, तीसं आरोवणाए ठाणाई । ठवणाणं संवेहो, चत्तारि सया य पण्णट्ठा ॥६४३६॥ तीसं ठवणादि काउं पंचुत्तरवुड्ढीए जाव पणसट्ठसतं ताव तीसं ठवणठाणा भवंति, पारोवणासु विपणरसाइ काउं पंचुत्तरवुड्ढीए चेव जाव सविसयं नाव तीसं चेव आरोवणाठाणा भवंति, एतेसिं ठवणारोवणाण परोप्परं "संवेहो" ति संजोगा, तेमि संजोगाण संखा इमा - चत्तारि सता पंचसट्ठा भवंति । . कह ?, उच्यते - वीसियठवणाए पणरता दयारोवणठाणा जाव सट्ठ पयं ताव छम्मासाणयणकरणं कजति । एवं वीसियठवणाए तीसं प्रारोवणसंवेहा भवति । एवं पणुवीसियठवणाए पण्णरसादिया ग्रारोवणठाणा गेयधा, जाव पणपण्णसयारोवण ति, एत्य एक्कं ग्रारोवणठाणं हुसितं। एवं तीसियठवणाए पण्णरसादि णेया जाव पण्णानं सतं, एत्य दो पारोवणठाणा हुसिता। एवं उवरिठवणाए आरोवणा प्रोवड्ढीए एककेक्कं ठाणं हुसेजा, जाव पणसट्ठसयठवणाए एक्का चेव पण्णरसिया प्रारोवणा भवतीत्यर्थः ।।६४३६।। एयस्स ठवणारोवणसंवेहस्स संवग्गफलाण य णिमित्तं पायरिएहि इमो सुहुमो सेढिगउवायो उद्दिवो - गच्छुत्तरसंवग्गे, उत्तरहीणम्मि पक्खिवे आदी। अंतिमधणमादिजुयं, गच्छद्धगुणं तु सव्वधणं ॥६४४०॥ एतीए गाहाए इमा परिभासा गणियकरणं च, जम्हा पढम पारोवणठाणं संवेहो एक्कं लभति तम्हा तं चेव एक्कं प्रादी, जम्हा एक्कुतरवड्डीए बितियादिप्रारोवणठाणा सब्वे लभंति तम्हा पढमठवणाए उत्तरं पि एकको चेव, जम्हा य पढमठवणाठाणवुड्ढीए तीस ठाणा भवंति तम्हा पढमठवणाए तीसं गच्छो । बितियाए ठवणारोवणठाणे तेत्तीसं गच्छो । ततियाए ठवणारोवणटाणे पणतीसं गच्छो । चउत्थे ठवणारोवणट्ठाणे प्रउणासीतं सयं गच्छो । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૨૨ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१४ एतेसिं गच्छाणं इमो प्राणयणोवायो-ठवणारोवण विजुत्ता छम्मासा पंचभागभत्तीया चे रूपबुता ठवणापदा तेसु चरिमादेसभागिको । छम्मासदिवसाणं असीतसयं तं पढमेहि ठवणारोवणदिवसेहिं विजुनं कबति, सेसस्स पंचहि भागो हीरइ. जे तत्थ लद्धा ते रूवजुता कणा, जावतियाते एवतिया पत्तेयं ठवणारोवणपदा भवंति । एतं. करणं प्रादिल्लेसु ठवणारोवणठागेसु । चरिमे पुण ठवणारोवणठाणे एसेव प्रादेसो, णवरं एक्केण भागो हायव्वो त्ति। इदाणि गणियकरणं एक्को आदी, एक्को उत्तरं, तीसं गच्छो । गच्छो उत्तरेणं संविग्गउ त्ति - गुणितो तीसा चेव जाता "उत्तरहीणे" त्ति-तीसाप्रो एक्को उत्तरं पाडितंजाया अउणत्तीसा। तम्मि आदि पक्खित्ता एक्को जाता तीसा चेव, एवं वीसियाए ठवणाए, अंतं धणं सह आदिल्लेहि लद्धति वुत्तं भवति । आदी एक्को सो तीसाए पक्खित्तो जाता एक्कतीसा । "गच्छद्ध" पण्णरस तेहिं गुणिया एक्कतीसा जाता चत्तारि य सया पण्णट्ठा, पढमे ठवणारोवणट्ठाणे तं सव्वधणं ति । ॥६४४०॥ अधवाऽयमन्यो विकल्प : दो रासी ठावेज्जा, रूवं पुण पक्खिवेहि एगत्तो। जुत्तो य देइ अद्ध, तेण गुणं जाण संकलियं ॥६४४१॥ दो रासि त्ति उवरि हेट्ठा य, तीसे ठवियाए एककत्थ रूवं पक्खित्तं जो रासी तत्य "अद्ध देति" - तस्स पद्ध घेत्तव्वं, तेणदण इतरो रासी गुणे यचो, एवं वा सव्वसंवेधफल देति ॥६४४१॥ इदाणि सव्वट्ठवणारोवणाण दिवसमासाण य लक्खणं सधाणुवाती भण्णति दिवसा पंचहि भतिता, दुरूवहीणा हवंति मासाओ । मासा दुरूवसहिता, पंचगुणा ते भवे दिवसा ।।६४४२।। पस्यार्थ:- "दिदस" ति वीसियठवणा दिवसा पण्णरसादियारोवणादिवसा य । इमं णिदरिसणं- वीसियाए ठवणा पंचहि भाए हिते भागलद्धा चत्तारि, तातो दोण्णि रूवा केडिया जाया दोणि मासा, पण्णरसियाए प्रारोवगाए पंचहि भागेहिते भागलद्धा तिणि मासा ते दुरूवहीणा या जाग्रो एक्कमासो त्ति- । इमं दिवसलक्खणं- एते वि य मासा लद्धा ते दुरूपसहिया काउं पंचगुणा कायव्या, ताहे पासेहितो दिवसम्गं पुबिल्लपमाणसमं पागच्छ इ, एवं सेसासु वि सनातु ठवणारोवणासु कायव्यं ।।६४४२॥ इयाणि जहा ठवणाहिं छम्मासा काउ पच्छित्तं दिजति तहा भण्णति पढमा ठवणा वीसा, पढमा आरोवणा भवे परखो। तेरसहिं मासेहि, पंच तु सइंदिया झोसो ॥६४४३॥ वीसियठवणा पण्णरसियारोवणाहिं एयानो कतिहिं मासेसि सेविएहि णिप्फण्णातो होज्ज ? दिटुं तेरसहि, कहं ? उच्यते. ठवणारोवणदिवसमाणाउ विसोहित्तुं जं सेशं । इच्छियारोवणाए भाए प्रसुज्झमाणे खिवे झोसो। छण्हमासाणं असीतं दिवसतं भवति, तमो वीसिया ठवणा पन्नरसिया य भारोवणा सोहेयन्वा, सेसं Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशक: माष्यगाथा ६४४१-६४४४ ] पणयालसयं, एयस्स पण्णरसियाए भारोवणाए भागो दायव्वों, जम्रो प्रद्ध भागं न देति त्ति ततोझोसो पक्खियब्यो, इमं झोसपक्खे वलवखणं - "जत्तियमेण सो सुद्ध भागं पयच्छए रासी, तत्तियमेतं पक्खिव प्रकसि रोवणाए झोसग्गं" । झोस त्ति वा समकरणं ति वा एगट्ठ, एत्थ पंचज्झोसा पक्खिता, पच्छा भागे हिते भागलद्ध दसमासा, एत्थ इमं करणलक्खणगाहा पुग्वद्वेण मणइ - प्रारोवणा जतिभी ततिहि गुणाते करेज भागलद्धा । जं एत्थ "पढम" ति - प्रारोवणा ततो एक्केण गुणिता दस दस चेत्र भवंत, एत्थ - ठवणारोवणासहिता संचयमासा हवंति, "एवतिय" त्ति - पुष्व भणितमासाण य करणेण ठवणाए दो मासा uraणाए एक्को मासो, एते दससु पक्खित्ता जाया तेरस संचयमासा । इदाणि इच्छामो गाउं "कतो कि गहियं ? ति ठवण मासे ततो फेडेइ" । सीसो पुच्छर - तेरसहं सं त्रयमासाणं कि कतो मासाम्रो गहितं जेण खम्मासा जाया ? कई वा करणं कतं ? भणति - तेरसहं मासागं दोणि ठवणामासा फेडिता, तत्थ सुद्धा सेसा एक्कारस मासा जाता, एत्थ करणं इमं - " जतिसु ठवणाए मासततियभागं करेइ ति पंचगुणं", एत्थ श्रारोवणाए एक्को मासो एक्कभागकर्ता एक्कारस चेव, ते तिपंचगुण त्ति कायव्वा, तिणि य पंच पण्णरस, तेहिं एक्कारसगुणिता जाता पंचस सयं एत्थ दोणि ठवणामासा पुव्यकरणेण दिवसे काएं पक्खित्ता वीसं, जात पंचासीतं सयं एत्थ पंचराइंडिया भोसो कनो, सेसं असीयं सयं । ३२३ ग्रहवा - किंचि विसेसेण एयं चेव ग्रहणहा भण्णति - तेरसह संचयमासाणं इच्छामो गाउ एक्के क्का मासाग्रो कि गहियं जेम छम्मासा ? जतो भण्णति - तेरसण्हं मासाणं तिष्णि ठवणारोवणामासा फेडिता जाता तत्थ सद्धा सेसा दस मासा, एएहितो एक्केक्कायो मासाग्रो मद्धमासो श्रद्धमासो गहितो, एते पंच मासा, दोहि ठवणामासेहितो दस दस राइदिया महिता, प्राशेवणमासो एक्को, ताभो पवखो गहितो, पंच झोसो को । कः प्रत्ययः ? एत्थ गाहा - "जइभि भवे प्रारुवणा" गाहा, एसा पढमठवणा, पढममणेण करणलक्खणं भणियं प्रारोवर भागलद्धमासाणं पण्णरसहि गुणेयब्वा, ते दस मासा पण्णरसहि गुणिता जाता पण्णासुत्तरसतं, एतत्तो पंचज्झोसो सोहितो सेसं पणयालं सतं । एत्थ ठवणारोवणादिवसा परिवत्ता जायं असीयं सयं ।। ६४४२ ।। पढमा ठवणा वीसा, बितिया आरोवणा भवे वीसा | अट्ठारस मासेहिं एसा पदमा भवे कसिणा || ६४४४ ॥ या ठवणारोवणाश्रो श्रसीयस्याश्रो सोहिया सेसं नतालीससयं, एयस्स वीसियाए आरोवणाए भागे भागलद्ध सत्त मासा श्रारोवणा, पुव्व करणेणं "दोहि मानेहि णिष्फण्णं" ति काउ सत्तमासा दोहि गुणेयव्वा जाता चोदसमासा, “दिवसा पंचहि भइया " गाहा ||६४४३॥ एतेणं करणं दोठवणामासा दो य प्रारोवणमासा निष्कण्णा, एए चत्तारि वि चोहसण्हं मेलिता जाता अट्ठास मासा, कमिणा णाम जत्य भोसो णत्थि । "कातो मासातो कि गहियं" ति एत्य लक्खणं एक्कातो मासातो णिष्कण्णा श्रारोवणा तो सेवियमासेहितो रुवणारोवणमापा सोहेयव्वा, ग्रह दुगादिमासेहितो णिष्कण्णा श्रारोवणा तो सेवियमासेहितो ठवणमासा चैव सोहेयव्वा णो श्रावणमासति । इमाम बितिया रोवणा दोहि मासेहि णिफण्ण त्ति काउं श्रद्वारसहं मासणं मज्झातो दोणि ठवणामासा सोहिता, १ गा० प्रारूवणा जति मासा ततिभागं तं करेति पंचगुणं ६४६४ । २ गा० मारूवणा जइ मासा, सइभाग तं करेति पंचगुणं ६४८४ | ३ गा० ६४६५ | Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र- १४ सेसा सोलस मासा । “दोहि मासेहि प्रारोवणा निष्कण्ण" त्ति काउ सोलस दुहा कायव्वा, एक्को अट्ठयो उवरि बितिट्ठा | कि कारणं एवं कज्जति ?, उच्यते जनो इमं भण्गति - ३२४ "जतिभि भवे श्रारुवणा, तति भागं तस्स पष्णरसहि गुणिए ! सेसं पंचहि गुणिए, ठत्रणदिणजुत्ता उ छम्मासा" || पढमातो भट्टगातो पक्खो पक्खो गहितो. बितियातो प्रदूगातो पंच पंच राइंदिया हिता, Sणामासहितो दस दस राईदिया गहिता । कः प्रत्ययः ? उच्यते - "जइभि भवे श्ररुवणा" गाहा, जे संचयमासातो ठत्रणामाससुद्धा जइत्थी प्रारोवणा श्रावणातो वा जति मांसा णिष्फण्णा ततिभागा कज्जति, बितियनारोवणा दो वा श्रारोवणामास त्ति तेण सोलसमासा दुहां कता अट्ठ एत्थ एक्कम्मि अट्ठगे पण्णरसरच्छित्तरा इंदियागहियत्ति पण्णरसगुणो कतो उ जातं वीसुत्तरं सयं । बितियदुगाश्रो पंच पंच गहियत्ति पंच गुणितो जातो चत्तालीसा, चत्तालीसा वीसुत्तरे सते पक्खित्ता जातं सट्टसयं एत्थ श्रवणीयं ठवणमासानं दोन्हं दस दस राइदिय गहियत्ति ते वीसं पक्खित्ता जायं असीयसयं ॥६४४४॥ पढमा ठवणा वीसा, ततिया आरोवणा उपणुवीमा | वीसा मासेहिं पक्खो तु तहिं भवे कोसो || ६४४५॥ या ठवणारोवणाओ असीयसता सुद्धा, सेसं पणतीस सयं । एयस्स पणुवीसारोवणाए भागो 'हायब्वो, जम्हा सुद्धं भागं ण देति तम्हा पक्खं पक्खिवित्ता भागलद्वा छम्मासा, तिहि मासेहि श्रारोवणा णिफण्णा तम्हा छम्मासातिगुणा कता जाया श्रट्ठारस मासा, ठवणारोवणमासपुव्वकरणं उप्पाएता तत्व पक्खित्ता जाता तेवीसं संचयमासा | एत्थ इच्छामो गाउं "कतो मासा किं पच्छित्तं गहियं" ? उच्यते - सेवितमासेहितो दोठवणामासा सोहिया, सेसा एक्कवीसं मासा, एते तिहा ठविज्जति तिन्निसत्तगा पूजा कया तत्थ पढमपुंजातो पक्खो पक्खो गहितो, प्रन्नहिं दोहि सत्तगजेहि पंच पंच राईदिया गहिया । दोहि ठवणामासेहितो दस दस राइदिया गहिया । कः प्रत्ययः ?, पढमसत्तगं पष्णरसगुणं काउं पक्खो सोहेलो, सेसं णउती, सेसा दो सत्तगपुंजा मेलिया चउदस भवंति एते चोट्स पंचगुणिया सत्तरी हवति, सत्तरी णउतीए मेलिया सदूं सतं "भवति, एत्थं वीसं ठवणादिवसा पविखत्ता जातं प्रसीतं सतं ||६४४५॥ एवं एया गमिया, गाहा होंति श्रणुपुव्वीए । एएण कमेण भवे, चत्तारि सया उपन्नट्ठा ||६४४६ ॥ एवं वीसियठवणं प्रमुयंतेण उवरुवरि आरोवणाए पंच पंच पविखवतेणं णेयव्वं जान प्रतिमा श्रावणा, एयासु इमं करणविहाणं कायव्वं प्रसीयातो दिवससयाश्रो ठवणारोवणदिवसा सोहेयव्वा, पच्छा सेसस्स इच्छिमारोवणाए भागो हायन्त्रो, जइ सुद्धं भागं ण देइ तो जावति ण सुज्झइ तावतिम्रो झोसो पक्खियव्वो, पच्छा भागेहिते भागलद्धा मासा जइहिं मासेहि आरोवणा णिप्फण्णा ततिहिय भागलद्धा मासा गुणेयव्वा, ठवणारोवणमासा तत्थेव पक्खियव्वा । एवं पडिसेवणामासगं जाणियव्व । एत्थ जं इच्छति गाउं कतो मासाओ कि गहियं त हे संचयमासहितो ठवणा सोहिता सेसा जे मःसा ते जइहि महि श्रावणा निष्कण्णा तइए पंजे करेंति, तेसु एक्कातो पुजातो श्रद्धमासो श्रद्धमासो गहिश्रो, तं पुण पण्णरसहि गं, सेसा जे पुंजा ते एक्केहिं मिलित्ता तेसु एक्केक्कातो मासातो पंच पंच राइंदिया गहिया, एवं सव्वत्थ १' गा० ६४८५ । -- Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६४४५-६४४६ ) विंशतितम उद्देशकः - ३२५ यालेउ कायव्यं, एते दिणा मासीकता परोप्परमासाण मेलियब्वा, जइ झोसो पक्खितो तो सोहेयम्वो, ठवणामासा एस्थेव पक्खियव्वा एवं छम्मासा भवति । कः प्रत्ययः ?, पडिसेवणाणिमित्तं जातो पुंजातो अद्धमासो गहिरो तं पुंजं पण्णरसहि गुणिते सेसा पुंजा एकं वा जावतियं गप्रियं तावतिएण गुणेता तत्थेव पक्विवियब्वा, अति झोसो पक्खित्तो तो सोहेयव्वो, सेसठवणामासो दुरूवसहिमो काउं पंचहि गुणेत्ता ते दिवसा पक्खियन्वा । एवं प्रसीतं दिवसमतं भवति । एव पणु वीसियाए ठवणाए पक्खियादिप्रारोवणातो कायन्यातो जाव पणपणं सतं । एवं तीसियाए वि ठवणाए पक्वियादियारोवणाप्रो जाव पण्णासं सतं भवति । एवं ठवणाम्रो पणगवड्ढीए णेयब्वामो जाव चरिमट्टवणा प्रारोवणामो पुण पणगहाणीए हावियवाभो जाव पक्खिया प्रारोवण त्ति । एयाप्रो सव्वानो एतेण पुवमणियलक्खणेण पुहत्तिया काउं पत्तारि सया पणट्टा गाहाण कायव्वा ॥६४४६।। इति पढम उवणारोवणट्ठाणं सम्मत्तं । इदाणि बितियं ठवणारोवणट्ठाणं भण्णति दो रासी ठावेजा, रूवं पुण पक्खिवेहि एगत्तो। जुत्तो य देइ अद्ध, तेण गुणं जाण संकलियं ॥६४४७॥ तेत्तीसं ठवणपदा, तेत्तीसारोवणाए ठाणाई। ठवणाणं संवेहो, पंचेव सया तु एगट्ठा ॥६४४८॥ कहं तेत्तीसं ठदणारोवणढाणा भवंति ?, उच्यते असीयातो दिवससतातो पढमा पक्खियाउवणा, पढमा य पंचिया प्रारोवणा, एया सोहेत्ता सेसस्स पंचहि भागो, भागलद्धं बत्तीसा, तत्थ रूवं पक्खित्तं गुणियं भवंति, एस गच्छो एक्को प्रादी एक्को उत्तरं “गच्छुतर" गाहा ॥ (३० २०-६४४१) पूर्ववत् ।। तेत्तीसं का पंचसया एक्कसदा भवंति ॥६४४॥ पढमा ठवणा पक्खो, पढमा पारोवणा भवे पंच । चोत्तीसा मासेहि, एसा पढमा भवे कसिणा ॥६४४४॥ असीयानो सयानो एया ठवणारोवणाम्रो सोहेत्ता सेसस्स पंचा मागो, भागलद्धा बत्तीसं मासा, मारोवणा एक्कानो मासाप्रो णिप्फणंति काउं एककेण गुणिया, एतिया चेव, पण रसियाए ठवणाए पंचहि भागे भागलद्धं तिणि मासा, ते दुरूवहीणा कया जाएं एक्को मासो । पंचियाए वि प्रारोवणाए पंचहिं भागो भागलदं एक्को मासो, एत्य णस्थि दुरूवहीणं तहा वि एस्थ मासो चेव घेपति, एए दो वि ठवणारोवणामासा बत्तीसाए मेलिया जाया चोत्तीसं मासा । इच्छामो नाउं कत्तो किं गहियं ?, बत्तीसाए मासेहिं पंच पंच राइंदिया गहिया, ठवणारोवणमासेहितो ठवणारोवण दिवसा गहिया । __कः प्रत्ययः ?, बत्तीसमासा पंचहिं गुणया काउं ठवणारोवणादिवसा पक्खिता प्रसीयं सतं भवति । एक्कं दा ठवणामासं फेडित्ता तेत्तीसं पंचगुणा कायब्वा, ठवणादिवसजुत्ता य छम्मासा भवंति ॥६४४६।। १ पहोउया इत्यपि पाठः । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ समाष्य- चूर्शिके निशीथसुत्रे पडमा ठक्णा पक्खो, बितिया आरोवणा भने दस ऊ । अट्ठारसहिं मासेहिं, पंच य रादिया कोसो ||६४५०|| प्रसीयातो समायो एयाम्रो ठवणारोवणाम्रो सोहेत्ता सेसे पंच झोसे पक्खिवित्ता दसिया ए भारोवजाए भागो भागलद्धं सोलस मासा, भारोवणा एक्कातो मासातो निष्कण्ण ति काउं एक्केण गुणियं जाता सोलस चेव, पण रसियाए ठवणाए पंचहि भागो भागलद्धं तिष्णि दुरूदहीणा कया जातो एक्लो मासो, दसियाए प्रारोवणाए पंचहि भागो भागलद्धं दोण्णि, जत्थ दुरूनहीणं न होइ मागासं वा भवति तत्य वि ( एक्को मासो नायव्वो, तेण एत्थ वि एक्को मासो, एते दो वि ठाणारोवणामासा सोलसहं मेलिता जाता अट्ठारस संचयमासा । कतो मासा कि गहियं ?, मट्ठारसहं म.साणं सोलसह मासहितो दस दस राईदिया गहिया, ठवणारोवणमासे हितो ठवणा दिवसा महिता । कः प्रत्ययः ?, सोलस मासा दस गुणा काउं, पंच उ झोसो सोहियव्त्रो, सेसा ठवणारोवण दिवसा पक्खित्ता जायं प्रसीयं सयं । अहवा - मट्ठारसहं एवकं वा ठवणामासं फेडेला दसगुणा कायव्वा, भोसो पंच सोहियत्रो, car दिन- सहिता धम्मासा हवंति ।।६४१०१ । पढमा ठवणा पक्खो, ततिया आरोवणा भवे पक्खो । बारसहिं मासेहिं, एसा बितिया भवे कसिणा ।। ६४५१ ।। [ सूत्र - १४ सीतातो तातो एयाम्रो ठत्रणा सोहेत्ता सेयं पन्नासं सयं एयम्स पण्णरसियाए प्रारोवणाए भागो भागलद्धं दस मासा, प्रारोवणा एक्काओ मासाम्रो विष्फष्ण ति एक्केण युमियं एत्तियं चैत्र, एत्थ दोष्णि ठेवणारोवणमासा पविखत्ता जाता बाग्स मासा | कतो किं गहियं ?, एक्केक्काचो मासाओ पक्खो गहिो । कः प्रत्यय ?, बारस मासा पण्णरसहि गुणिया जातं असीयं सतं, एत्थ सव्वत्य समं महणं ॥ ६४५१ ।। एवं एता गमिया, गाहाचो होंति श्रणुपुब्बीए । एएण कमेण भवे, पंचेव सया उ एगट्ठा || ६४५२ ॥ एवं पक्खियं ठवणं प्रमुयंतेण आरोवणाए उवरुवरि पंच पंच पक्खिनितेश प्रारोवणासु एक्के वर्क ठाणं परिहरितेण ताव णेयव्वं जाव तित्तीसतिमा प्रारोवण ति । ताहे वीसियं ठवणं प्रमुयंतेण एवं चेव णेयव्वं जान बत्तीसइमा घारोवणा । एवं ठवणासु पंच पंच पक्खिवंत आरोवणासु एक्केवकं ठाणं परिहरतेण णेयवं जाव होउयपुहत्तियकरणेणं गाहाणं पंचसया एगसट्टा जाता । सव्वत्थ जतीहि मासेहि श्रावणाणिफण ततीहि भागलद्धं गुणेयव्वं सेसं उवउज्जिता भणियव्वं ।। ६४५२ || बितियठवणारोवणं सम्मत्तं । इदाणि ततियं भणति - - पणतीसं ठवणपदा, पणतीसारोवणाए ठाणाई । टवणाणं संवेहो, छ च्चेव सया भवे तीसा || ६४५३|| Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६४५०-६४५६ ] विंशतितम उद्देशकः प्रसीतातो सयायो पंचिया ठत्रणा पंचिया पारोवणा य, एयामो सोहेपम्वामो, सेसं सत्तरि सवं, एयस्स पंचहिं भागो भागलदं चोत्तीस रूवं पक्खित्तं जायं पणतीसं, एकको पादिरा एक्कोत्तरं पणतीसतो गन्यो । गच्चतर गाहा ( उ० २०, ६४४० ) पूर्ववत् गणिएण प्राणेयव्या छ सता तीसुतरा ॥६४५३॥ पढमा ठवणा पंच य, पढमा आरोवणा भवे पंच । छत्तीसा मासेहि, एसा पढमा भवे कसिणा॥६४५४|| भसातातो सयामो पंचिय ठवणा पंचिया उ मारोवणा सोहिया सेसं सत्तरि सतं, एयस पंचियाए भारोवणातो भागो, भागललं चोत्तीसं मासा भारोवणा एक्कामो माम्गमो गिफणं ति काउं एक्कम गुणिय एत्तियं चेव, पंचयाए ठवणाए पंचहि भागलई एक्को मासो, जत्य दुत्वहीणा ण होति तत्य उ हवंति साभाविय त्ति य वयणाप्रो एक्क एव मासो भवति । एवं पारोवणाए वि, दोणि मासा चोत्तीसाए मेलिता जाया छत्तीसं मासा। कामो किं गहियं !, एकोक्कामो मासामो पंच पंा दिवसा गहिया एत्य वि सम्वत्थ समं गहणं । कः प्रत्ययः ?, छत्तीसेहिं मासेहिं पंच गुणियन्वा जात प्रसीयं सतं । प्रहवा - छत्तीसहं मासाणं को ठवणामासो फेडितो, सेसा पणतीसं, ते पंचगुणा ठवणदिवसता छम्मासा मवंति ॥६४५४॥ पढमा ठवणा पंचा, वितिया प्रारोवणा भवे दस तू । एगूणवीस मासेहि पंच राइंदिया झोसो ॥६४५शा प्रसीयातो सतातो पंचिया ठवणा दसिया भारोवणा एतातो ठत्रणारोवणामो सो सुद्धता सेसं पणसट्ठि सयं, एस्थ पंचज्झोसो पक्खित्तो, जातं सत्र.रि सयं, एयस्स दसियाए प्रारोवणाए भागो, भागलदं सत्तरस मासा मागेवणा, एक्केकातो मासाम्रो णिप्फण्ण ति काउं एस्केण गुणियं एत्तियं चेव, ठवणादिवसा पंचहिं मइया साभावितो मासो, पारोवणातो वि एक्को मासो, एते दो मासा सत्तरसण्हं मेलिता जाता एक्कोणवीसं मासा। कतो किं गहियं ? ठवणामासातो पंच राइंदिया गहिया सेसेहि भट्ठारसहिं मासेहिं एक्केक्कातो मासापो दस दस राइंदिया गहिता। कः प्रत्ययः?, अट्ठारस दसगुणिता जातं प्रसीतं दिवससतं, एतातो पंचतो झोसो सुद्धो, सेसं पंचसत्तरिसतं, पंच ठवणादिवसा मेलिता जातं असीतं दिवससतं ।।६४५५॥ पदमा ठवणा पंचा, ततिया आरोवणा भवे पक्खो। तेरसहिं मासेहि, पंच उ राइंदिया ज्झोसो ॥६४५६।। मसीतातो दिवससतातो पंचियं ठवर्ष पण्परसियं भारोवणं एयामो ठवणारोवणाम्रो सोहेत्ता सेसं सढेि सयं पंच मोसं पक्खिवित्ता ५क्खित्तातो पारोवणातो भागो मागलदं एक्कारस प्रारोवणा, एक्कामो मासाप्रो णिप्फन ति काउं एक्केण गुणियं एत्तियं चेव पुवकरणेण ठवणारोवममासे करेत्ता भागलद्धा दो मासा एते एककारसण्हं मेलिता जाता तेरस संचयमासा । कतो किं गहियं ?, बारसमासेहिं अदमासो गहिरो तेरसमासातो ठवणामासापो पंच राइंदिया गहिता। कः प्रत्ययः ?, बारस पण्णरसेहिं गुणित्ता पंच झोसेहि सोहेत्ता सेसं पंचहत्तरं सतं पंच ठपणा दिवसा मेलिता जायं प्रसीयं सयं ॥६४५६॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१४ एवं एत्ता गमिया, गाहाम्रो होंति आणुपुचीए । एएण कमेण भवे, 'छ च्चेव सयाइ तीसाई ॥६४५७॥ एवं पंचियं ठवणं प्रमुयतेण प्रारोवणाए १५ पंच उवरुवरि पविखवंतेणं णेयव्वं जाव पणतीसइमा पारोवणा, ताहे पुणो दसियं ठवण काउं एवं चेत्र नेयव्वं जाव च उतीसइमा प्रारोषणा । एवं ठवणारोवणासु पंच पंच पक्खिवतेण एकेक्कं ठाणं परिहातेण नेयव्वं जतीहि मासेहि पारोवणा णिप्फण्णा ततीहि भागलद्धं गुणेयवं, सेसं उवउज्जित्ता णेयव्वं ॥६४५७॥ ततियठवणारोवणठाणं गयं । इदाणि च उत्थं भण्णति - अउणासीतं ठवणाण सतं आरोवणाण तह चेव । सोलस चेव सहस्सा, दसुत्तरसयं च संवेहो ॥६४५८॥ कहं ?, उच्यते - प्रसीतातो दिवससतानो पढमाठवणारोवणाप्रो एक्कियानो सोहेयवानो, सेसं अट्ठहत्तरिसतं, एयस्स एक्कियाए. पारोवणाए भागो भागलद्धं एत्तियं चेव रूवेण पक्खित्ते अउगासीतं सयं भवति । ___ इयाणि संवेहकरणे इमे भण्णति - "गच्छुनर' गाहा, एकको अाती, एकको उत्तरं, अउणासीयं सतं गच्छो, पूर्ववत् गणिते कते प्रागत सोलमहस्साणि सतं च दहुत्तर ।।६०५८।। पढमा ठवणा एक्को, पढमा आरोवणा भवे एक्को । पासीतं माससतं, एसा पढमा भवे कसिणा ॥६४५६।। असीतातो सतातो एक्किया ठवण', एक्किया य ग्रारोवणा सोहित्ता सेस अट्ठहत्तरसतं एक्कियार ग्रारोवणाए भागो भागलद्धं एत्तियं चेव । एत्थ एकको ठवणामासो एगो पारोवणामासो पक्खित्तो जातं असीयं माससतं। - कानो कि गहियं?, एक्केक्कानो मासाप्रो एक्को दिवसो गहतो, एत्थ वि सब्वत्थ समगहणं ॥६४५६।। पढमा ठवणा एक्को, वितिया आरोवणा भवे दोणि । एक्काणउतीमासेहि, एक्को उ तहिं भवे भोसो ॥६४६०॥ एयाप्रो ठवणारोवणाम्रो असीतातो सयातो सोहेता सेसं सन्न हत्तरि सयं एयस्स अट्ठाए दुतियाए आरोवणाए भागो एक्कं ज्झोसं पविखविता भागलदं एगूणणउतिमासा एत्थ ठवणामासो पारोवणामासो य पक्खिता जाता एक्काणउति मासा । कातो कि गहियं ?, ठवणा मासा एथवि सव्यथाहंतो एक्को दिवसो गहितो, उतिमासेहि दो दो वि दिवसा गहिता। कः प्रत्ययः ?, संचयमासेहितो ठवणामासो फेडितो सेसा णउईतो दोहिं गुणिया जायं असीयं सय, एयातो एकको सुद्धो सेसं अउणासीत सतं, एक्को ठवणादिवसो पक्खित्तो, एत्य जायं असीतं सतं ॥१४६०॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६४५७-६४६२ ] विंशतितम उद्देशकः ३२६ पटमा ठवणा एक्को, ततिया आरोवणा भवे तिन्नि । इगसट्टीमासेहि. एक्को उ तहिं भवेझोसो ॥६४६॥ तहेव काउं जाव एक्कसर्टि संचयमासा ।। कायो कि गहियं ? उवणामासातो एक्केकको दिवसो गहिरो, सेसेहिं सट्ठीए मासे हि तिष्णि तिष्णि राईदिया गहिया ! कः प्रत्ययः ? एक्कसट्टिमासेहिं एक्को ठवणामासो फेडितो सेसा सटुिं, ते तिहिं गुणिता जातं असीयं दिवससतं, एकको झोसो सुद्धो, सेसं एगूणासीतं सतं, एक्को ठवणा दिवसो पक्खित्तो जायं असीयं सतं ॥६४६१॥ एवं खलु गमिताणं, गाहाणं होंति सोलससहस्सा। सतमेकं च दसहियं, नेयध्वं आणुपुन्वीए ॥६४६२॥ एवं एक्कियं ठवणं प्रमुयंतेण प्रारोवणाए उवरुवरि आणे एक्कमारोवयंतेण ताव गेयव्वं जाय चरिमा प्रउणासीयसयारोवणा । एवं दुतिगादिठवणासु वि एमादि मारोवणा यन्वा ला जाव जस्स चरिमं ति । एयाप्रो सव्वामो पुवकयविहिणा कायन्वा जाव एक्केकपाहा (हो) डगणिबद्धरासिगगाहाण सोलस सहस्सा सतं च दसुत्तरं पुण्णां ति । एयासु ठवणारोवणासु मासकरणं करतेण एगादियासु जाव चउरो पंचसु भागं प्रदेते मासो चेव घेत्तव्यो । एवं 'पण्णरसगादिसु दुरूवे प्रसुज्झते दसादिमु य दुरूवे प्रसुद्ध पागासे जाते एकको चैव मासो घेतब्बो, जाव चउदस, पण्णरसोवरि विकला जाव उणवीसाए वि एक्कातो मासातो णिप्फण्ण त्ति दट्टवा । एवं एक्कवीसादिसु केवलपणमागविसुद्धदुरूबहीणकयमासप्पमाणेहितो गिफण्णा दट्ठन्वा । एवं सत्रत्य सकलकरणं करतेण कायव्वं । प्रह भिग्णिय ठवणारोवणकरणं इच्छति तो इम कायव-एक्कियठवणाए एगादिप्रासेवणातो जाव पण्णरस ताव सगलकरणं चेव कायव्वं, जत्थ एक्किया ठवणा सोलसिया आरोवणा एता दो वि असीतसतातो सुद्धा, सेसं तेसट्ठिमतं, एयस्स सोलसहिं भागो भागं सुद्धण देति त्ति तेरसपक्खिता भागलद्ध एक्कारस, ते ठविता, सगलच्छेदसहिया इमे ११ । सोलसियारोव गाए पचहि भागो भागलद्धं तिष्णि, ते दुरूवहीणा कता सेसो एक्को मासो मासस्स य एक्को पंचभागो। एस वणि प्रो मासो पंचगुणो अंसो पविखत्तो जाया छ पंच भागा, एक्कियठवणाए वि हेट्ठा पंचभागो छेदो दियो । इदाणि आरोवणा भागलद्धं तं प्रारोवणामासगुणं कायव्वं, ति काउं अंसी अंसगुणो छेदो छेदगुणो छहि एक्कारसगुणि ता पंचहिं एक्को गुणितो जाया छावटि पंच भागा ठवणारोवण माससहिय त्ति कायव्वा, एत्थ एकको ठवणा पंचागो, छञ्च मारोवणपंचभागा खित्ता, जाया संचयमासाण तेहत्तरि पंच भागा-31 कत्तो किं गहियं ति ?, एकको ठवणभागो फेडितो मेसं प्रारोवणभागपरावत्तीए अंसा अंसगुणा, छेदो छेदगुणो भागे हिए जं लद्धं तं दोसु ठाणेसु ठवियं तत्थेगो रासी पण रसगुणो, बितितो पारोवणाए जति विगला दिवसा असीतेहिं गुणितो पविखत्तो य ठवणादिवसजुत्तो झोसपरिसुद्धो असीयं सतं भवति, एवं सत्तरस अट्ठारस प्रउणवीसियासु वि कायव्व, णवरं-- बितियरासो दोहिं तीहिं चउहि गुणेयव्वो, वीसियाए १ पगा..... इत्यपि पाठः । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्प-वृषिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१४ संगलकरणं कायव्यं. इगवीसियाए वि सव्वं एवं चेव कायव्वं, णवरं-ठवणभागफेडिएसु 5 सेसं तं भारोवणभागं परावत्तिय गुपियं भागहियलढे तिस ठाणेस अयब्वं, तत्येकको रासो पण्णरसगुषो, विनिमो विगलदिवसगुणो, ततिप्रो पंचगुणो, सव्वे एक्कट्ठा मेलिता ठवणदिणजुत्ता झोसविसुद्धा असोतं सतं भवति । एवं बावीसियासु वि कायय्वं, एगतीसादिसु वि एवं, णवरं-बइ वि विकलमासो लम्मति तति ठाणत्थं ठवेयव्वं, भारोवणमाहियलढं जत्थ दो रासी ठाविता तत्य एगो पण्णरसगुणो, वितितो णियमा. विगलदिवसगुणो, किं च संचयमासमागेहितो संचयठवणभागफेडियन्वा पक्सियतेण पुण बइ ठवणादिणा तति सगला पक्विवियव्वा मारां वा दुरूवसाड़ियं पंचगुणं असंगहियं काउं पश्खिवेजा। एवं वितियादिठवणासु वि सोलसियादिमारोवणातो अउज कायवानो इति ॥६४६२॥ठवणासंचए त्ति दारं गतं । इदाणि 'रासि त्ति दारं। एस पच्छित्तरासी को उप्पण्णो? प्रत उच्यते - असमाहीठाणा खलु, सबला य परिस्सहा य मोहम्मि । पलिओवम सागरोवम, परमाणु तो असंखेजा ॥६४६३३॥ वीसाए असमाहिठाणेहि, खलुसदो संभावणत्ये, किं संभावयति "प्रसंखिजेहिं वा असमाहिठाणेहि" ति, एवं एककवीसाए सबलेहि, बावीसाए परिसहेहिं, अट्ठावीसतिविषामो वा मोहणिजातो, अहवातीसाए मोहणिज्जठाणेहितो, एतेहि असंजमठाणेहिं एस पच्छित्तरासी उप्पण्णो। सीसो पुच्छति - कत्तिया ते असंजमठाणाई ?, जत्तिया पलिग्रोवमे वालग्गा?, णो तिणढे समढे। तो जत्तिया सागरोवमे वालग्गा ?, णो तिण समढें । तो सागरोवमवालग्गाण एक्केक्कं वालग्गं असंखेजखंड कयं । ते य खंडा संववहारियपरमाणु मेत्ता, एवतिया असंजमठाणा ?, णो तिणद्वे समढे, "ततो" ति एतेहितो प्रसंखेजगुणा दटुव्वा । अण्णे भणति - "सुहुमपरमाणुमेत्ता संडा कता" । ते य प्रणेता भवंति, तं न भवति, जतो प्रसंजमठाणा मसंखेज्जलोगागासमेत्ता भवंति, संजमठाणा वि एत्तिया चेव ॥६४६३।। जे जत्तिया उ...' गाहा ॥६४६४॥ कंठ्या रासित्ति....' गाहा ॥६४६।। रासि त्ति गतं । इदाणि 3"माण" ति, मीयते मनेनेति मानं परिच्छेदो। तं दुविहं - दव्वे भावे य । दवे प्रस्थकादि। भावे इमं - बारस अट्ठग छक्कग, माणं भणितं जिणेहि सोहिकरं । तेण परं जे मासा, संभहण्णंता परिसडंति ॥६४६६।। तित्थकरेहि विविहं पायच्छित्तमाणं दिटुं, पढमतित्थकरस्स बारसमासा, मज्झिमतित्थकराणं प्रदुमासा, वद्धमाणसामिगो छम्मासा, एत्तो भन्भहियं न दिज्जति, बहुएहि पडिसेवितं पि एत्तियं चेव दिति, १ गा० ६४२७ । २-६४६४, ६५ कमिते द्वे गाये चूामुपरिनिर्दिष्टाकारेणेव समुल्लिखिते, मूलभाष्यप्रती तु न कोऽपि निर्देशः । ३ गा० ६४२७ । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६४६३-६४७० ] विशतितम उद्देशकः धम्मयाए सुन्झति । जहा पत्थए मविज्जते ताव मविज्जति जाव तस्स सिहा पारुहति, सेसं आरुभिज्जतं पि अधिकं परिसइति । एवं छण्हं मासाणं जं अधियं पडिसेवितं तं ठवणारोवणप्पगारेण संहण्णामाणं परिसडति, तित्थकरघाणा य एमा अणुगालियव्व ति, जहा रणो अप्पणो रज्जे जं माणं प्रतिष्ठापितं जो ततो माणातो अतिरेगमूलं वा करेति सो अवराही डंडिजति, एवं जो तित्थकराणं माणं कोवेति सो दोहसंसारी ॥६४६६।। माण ति गयं । इदाणि "पभु त्ति" पच्छित्ते दायव्वे पभु त्ति वा लोग्गो त्ति वा एगटुं । को पुण सो ?, इमो केवल-मणपज्जवणाणिणो य तत्तो य ओहिनाणजिणा । चोदस-दस-नवपुब्बी, कप्पधर-पकप्पधारी य ॥६४६८।। केवलणाणी, मणपज्जवणाणी, प्रोहीणाणी, जिणसदो शुद्धावधिप्रदर्शकः, चोद्दसपुषी, अभिण्णदसपुवी, भिण्णे सु प्रोवड्ढीए जाव णवम सुब्बस्स ततियं पायारवत्थु, कप्पववहारधरा, पकप्पो ति णिसीहऽज्झयणं कि च घेप्पंति चसद्देणं, णिज्जुत्तीसुत्तपेढियधरा य । आणाधारणजीते, य होंति पभुणो य पच्छित्ते ॥६४६८॥ भद्दबाहुकयणिज्जुत्तीगाहासुतधरा णिसीहकप्पववहारपेढगाहामुत्तघरा य, अहवा-सुत्तं परति मुत्तधरा जे महाणिसीहं महाकप्पसुतादि प्रज्झयणे य धरेंति । "प्राण" त्ति प्राणाववहारी धारणाववहारी जीयववहारी एते पच्छित्तदाणे पहुणो भवंति ॥६४६८।। पभु त्ति गतं । इदाणि "केवत्तिया सिद्ध" त्ति दारं। सीसो पुच्छति - "केवतिया पच्छित्ता ?" आयरियाह - दुविहं पच्छित्तदरिसणं - प्रत्यतो सुनतो प्र । प्रत्यतो अपरिमाणा, सुत्ततो इहज्झयणे इमे अणुग्धाइयमासाणं, दो चेव सया हवंति बावना । तिण्णि सया बत्तीसा, होति उग्धाइगाणं पि ॥६४६६।। पढममुद्दसते अणुग्घातियमासातो संखित्ता दोणि सया बावण्णा भवं ते, बितिय ततिय-च उत्थ-पंचमुद्देसतेसु मासलहुमा पच्छित्ता ते संखित्ता तिणि सया बत्तीस' भवति ।।६४६६।। पंच सता चुलसीता, सव्वेसि मासियाण बोद्धव्वा । तेण परं वोच्छामि, चाउम्मासाण संखेवो ॥६४७०॥ उघातियमासाणं प्रणुग्घातियमासाणं एक्कतो संखित्ताण पंच सया चुलसीता भवति । प्रतो परं चाउम्मासिते भणामि ॥६४७०।। १ गा०६४२७ । २ गा० ६४२७ । Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे छच्च सया चोयाला, चाउम्मासा य होतऽणुग्धाया । सत्त सया चउवीसा, चाउम्मासाण उग्वाया ।। ६४७१ ।। खट्ट-सत्तम-प्रट्ठम-णवम- दसम एक्कारसमुद्देसए य चाउम्मासिया प्रणुग्धातिया छ सया चोयाला वृत्ता । ( एतेसि सव्वसंखेवो ) बारस-तेरस-चोट्स-पन्न रस- सोलस-सत्तरस मट्ठा रस- एगुणवीसुद्दे सएसु उग्धाया चउमासिया सतसता चडवीस वुत्ता ( एतेसि सव्वसंखे वो) ।।६४७१। तेरस सय अट्ठा, चाउम्मासाण होंति सव्वेसिं । ते परं वोच्छामि, सव्वसमासेण संखेचं ॥ ६४७२। चउलहुगाणं वा चउगुरुगाणं च सव्वसंखेवो तेरस सता प्रट्ठसट्टा, श्रतो परं मास व उमासाण सव्वसंखेवेगं भणामि ॥ ६४७२ ॥ मज्भाणं वयसा य सहस्सं, ठाणाणं पडिवत्तियो । बावन्नट्टाणाई, सत्तरि आरोवणा कसिणा ||६४७३॥ सहस्सं व सता बावन्नहिया मासादीनां प्रायश्चित्तस्थानानामित्यर्थः । "सत्तरि आरोवणा कसिणाउ" त्ति को अस्याभिसंबंध: ? उच्यते गणु एसेव संबंधो 'केत्तिया सिद्ध" त्ति, केवतिता आरोवणाम्रो जहण्णा प्रो सिद्धा, उक्कोसा य सिद्धा, एवं प्रजहणमणूक कोसा य कसिणा प्रकसिणाओ य । [ सूत्र - १४ तत्थ पढमे ठवणारोवणठाणे एक्का जहण्णा, वी (ती) सं उक्कोसा, चत्तारितया चउत्तीसा श्रजहष्णमक्का | बितिया ठवणारीवणठाणे एक्का जहष्णा, तेत्तीमं उक्कोसा, सत्तवीसघिया पंचसया मज्झाणं । ततियठा एक्का जहणा, पणती उक्कोसा, पंचसया चउणउया मज्भाणं । उत्थे ठाणे एका जहष्णा, प्रणासीतं सय उनकोमाणं, पष्णरस सहस्सा णव य सया तीसुत्तर पढमे टवणारोवणठाणे सत्तरियारोवणा कसिणा झोसविरहिय त्ति वृत्तं भवति ।। ६४७३ ।। ताय इमा सव्वासिं ठवणाणं, उक्कोसारोवणा भवे कसिणा । सेसा चत्ता कमिणा, ता खलु णियमा अणुक्कोसा ||६४७४ || पढमे ठावठाणे तीसं ठाणाणि तत्थ एक्के क्काए ठवणाए श्रंतिल्ला श्रारोवणा उक्कोसिता भवति, सायगियमा झोसविरहिया, एयाओ तीसं, एतासि मज्झा जातो प्रारोवणाश्रो झोसविरहिताम्रो ताम्रो चत्तालीसं भवति, एया उक्कोसियाण मेलिता सत्तरि भवति ॥ ६४७४ | कतराम्रो पुण ताम्रो चत्तालीसं झोसविरहिताओ ? उच्यते - वीसाए तू वीसं चत्तमसीती य तिष्णि कसिणाओ । " तीमा पक्खपणुवीस तीस पण्णास पणमतरी || ६४७५।। एवा वोसिया प्राशेवगा चत्तालोनिया असीता एयाओ तिणि कसणातो । ती सिया बगाए इमाती पंच प्रारोवणातो प्रभोसिया तो पक्खिता पणवीसिता तीसिता पण्णासिया पंचसत्तरीया ।। ६ ४७५ ।। Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशकः चत्ताए वीस पणतीस सत्तरी चेव तिष्णि कसिणाओ । पणताला पक्खो, पणताला चेव दो कसिणा || ६४७६ || पण्णा पण्णड्डी, पणपण्णाए तु पण्णवीसा तु । मट्ठठवणाए पक्खो, वीसा तीसा य चत्ता य ||६४७७|| चत्तालीसियाए ठत्रणाए इमाते तिष्णि प्रारोवणाम्रो कसिणातो वोसिता पणतीसिया सत्तरिया । पालीसवणाए इमाम्रो दोणि श्रारोवणा कसिणातो पक्खिता पणयाला य प्रारोवणा कसिणा (पणपण्णाए ठवणाए इमाते तिणि आरोवणाओ कसिणाओ पण्णत्रीस, पणपण्णा पणट्ठी । ) सद्विविकता ते 'ठवणाते इमा चत्तारि प्रारोत्रणा कमिणा पक्खिया वीसिया तीसिया चत्तालीसिया य ।।६४७७। भाष्यगाथा - ६४७१-६४८२ ] सयरीए पणपण्णा, तत्तो पणसत्तरी य पन्नरसा । पणतीसा असितीए, वीसा पणुवीस पन्ना य || ६४७८ || सत्तरीए ठत्रणाए एक्का पणपणिया प्रारोवणा कतिणा । पणपन्नसत्तरियाए ठवणाए भारोवणा कसिणातो पक्खिता पणतीमिया य । असीतिक्कियाग ठत्रणाए इमाम्रो तिष्णि प्रारोवणाम्रो कसिणाश्रो - श्रीसिया पणुवीसिया पण्णा सिया य ॥६४७८ ॥ - ठवणाए कसिणा - उतीए पक्ख तीसा, पणताला चेव तिण्णि कसिणा । सतियाए वीस चत्ता, पंचुत्तर पक्ख पणुत्रीसा || ६४७६॥ दस उत्तर सतियाए पणतीसा वीस उत्तरे पक्खो । वीसा तीसा य तहा, कसिणा निणि वीसऽहिए ||६४८० || न उतियाए ठवणाए तिष्णि श्रारोवणा कसिणा - पक्खिया तीसिया पणयालीसिया य । सतियाए दोन्नि प्रावणा कसिणा - वीसिया चत्तालीसिया य । पंचुत्तरसतियाए ठत्रणाए दोनि श्रारोवणा पक्खिया पणुवीसिया य २६४७६ ॥ दसुत्तरगाहा दसुत्तरसतियाए ठवणाए एक्का पणतीसिया श्रावणा कसिणा । वीसुत्तरसतिया ठवाए तिणि आरोवणा ( कसिणा ) पक्खिया वीसिया तीसिया ||६४८० || तीसुत्तरे पणुवीसा, पणतीसे पक्खिया भवे कसिणा । चत्ताले एगवीसा, पण्णासे पक्खिया कसिणा || ६४८१ ॥ बीसियठवणार तू, एयाओ हवंति सत्तरी कसिणा । सेसाणऽवि जा जत्तिय, नाऊणं ता भणिज्जाहि ||६४८२|| ३३३ तीसुत्तरसतियाए ठवणाए एवका पशुवीसिया प्रारोवणा कसिणा । पणतीसुत्तरसतियाए ठवणाए एक्क्का पक्खिया श्रारोवणा कसिणा । चत्तालुत्तरसतियाए ठवणाए एगवीसा प्रारोवणा कमिणा । पण पणामुत्तरसतियःए एक्का पक्खिया प्रारोवणा कसिणा । एवं एयाम्रो सत्तरि कसिणाश्रो । सेसा पंचाणउया तिणि सया ते अकसिणाश्रो भवति । सेसासुवि तिसु ठेवणारोवणठाणेसु उवउज्जिऊण कसिणाऽकसिणप्पमाणं भाणियव्वं ॥ ६३८२ ॥ १ - न्नासियाते ठत्रणा एक्का पंचसट्ठिता प्रारोवणा कसिका । २ बीयाए ( व्यव० ) । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे तो परं जेण एयाण सव्वासि सरूवं वण्णिज्जति तं भणामि - सव्वासि ठवणाणं, एत्तो सामण्णलक्खणं वोच्छं । मासग्गे भोसग्गे, होणाहीणे य गहणे य || ६४८३ ॥ 1 "सव्वासि" ति चउसु टवणा रोवणठ णेसु जातो ठत्रणाशेवणाम्रो प्रणो णुवेो भवति ताम्र य जहा णज्जंति तहा तेसि "सामगं" त्ति पिडिय प्रविसिद्ध सखेवप्रो य लक्खणं भणामि - लविखज्जति ताण सरूवो जेण तं लक्खगं । "मासग्गे" त्ति - पडिसेवितं, संचयमासाणामग्गं परिमाणमित्यर्थः । झोसग्गि" त्ति - सेवितमासाण उत्पत्तिनिमित्तमेव प्रारोवणादिवसेहि भागे हीरमाणे कित्तिय पक्खेवं काउ सुद्धं भाग दाहिति ति एयस्स लक्खणं भगियध्वं । "हो" त्ति विसमग्गहणं, तं संवयमासेहि कहं भवतीत्यर्थः । प्रहीणगहणं नाम समग्गहणमित्यर्थः ।। ६४८३ ।। - आरुवणा जति मासा, ततिभागं तं करे ति पंचगुणं । सेसं पंचहि गुणिए, ठवणदिणजुत्ता उ छम्मासा || ६४८४ || प्रारोवणाए जतिमासलद्धा संन्वयमासा ठेवणामाससुद्धसेसा तइभागे काय वा, तत्थेगो भागो "तिपंचगुणो" ति - पारसगुणो कायव्वो, सेसा भागा सपिंडिया पंचगुणा काय वा ठवणा दिण जुता जति महिया तो भोमविसुद्धा छम्मासा भवंति एयं कम्मं पण्णरसादिसु श्रारोवणासु कायव्वं, एगादिप्रारोवणासु पुण जाव चोट्स ताव आरोवणदिणेहि चेव गुगेयव्वं ॥ ६४८४|| जतिभि (मि) भत्रे आरुवणा, ततिभागं तस्स पण्णरसहि गुणे । ठवणारोवणसहिता, छम्मासा होंति नायव्वा ।। ६.४८५ ॥ "जतिभि" ति - जतिस्थो भारोवणा पढम-बितिय ततियादि वा तत्थ जे संचया मासा लद्धा ते ठवगाशेवणमः सविसुद्धा जतित्थिया प्रारोवणा तत्तियभागत्था ते करेयव्वा, जति एगभागत्या तो पण्णरसगुणा ठगावणसहिता भोसविसुद्धा छम्मासा भवंति । अध णेगभागत्था तो एगभागो पष्णरसगुणो सेसा पंचगुणा ठवणारोवणदिणसहिया छम्मासा, कचिदेवं कर्तव्यं ॥ ६४८५ ॥ गुणकारेण कसिणाकसिणजाणणत्थं इमं भण्णति - - जेण तु पण गुणिता, होऊणं सो ण होति गुणकारो । तस्सुवरिं जेण गुणे, होति समो सो तु गुणकारो ||६४८६|| [ सूत्र - १४ "पदेण" ति - एगदुगतिगादितेहि जेग श्रारोवणा "गुणिया होउ" त्ति गुणिता संतीत्यर्थः । अहवा - ठवणादिणसंजुत्ता "होउ" ति ऊगा अहिया वा भवंति त्ति, सो तस्स गुणकारी ण भवति, जहा पक्खिया श्रावणा दसहि गुणिना वीसियठवण संजुत्ता ऊगा छम्मासा, एक्कारसगुणा महिया भवंति तो णायव्वं एतेसि कसिण करणं न होइ नास्त्येवेत्यर्थः । प्रकसिणत्वात्, "तस्मुरि" ति एक्कारमह उवरि श्रोमत्थग परिहाणीए पक्खिया आरोवणा " जेण गुणे" त्ति दसगुणिता तीसिय ठत्रण! होइ । “समो" त्ति छम्मासितो रासी, एत्थ सो दसको समकरणं पडुच्च गुणकारो भवतीत्यर्थः । - एवं वह अहिं सतहि छहि पंचहि चउहि तीहि बीहि एक्केण य पक्खितं भारोवणं गुणंउ जीए ठत्रणाए संजुत्ता छम्मासा भवंति तत्थ सो गुणकारो गायत्री. तावतिया य पक्खियाए कसिया लब्भति । एवं वीसिया रोवणादि णवरं श्रट्टभागाय ओमत्थियगुणकारी कायन्त्रो एवं सेसाम्रो वि सव्वाओ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मात्यगाथा ६४८३-६४८६] विशतितम उद्देशक: गुणकारेहिं वेयालियब्वामो । अधवा-"जेण पदेण" एतीए गाहाए इमं वक्खाणं - जति दोहिं गुणा प्रारोवणादिवसेहिं पक्खित्तेहिं प्रसीतं सतं प पूरेति तो सो समकरणे गुणकारो ण भवति, ताहे समकरणथं तदुवरि ण गुणकारणेहि वेयालेयव्वं ताव जाण गणिते ठवणाए पक्खित्ताए प्रसीयं सयं भवइ, सो गुणकारो कसिणारोवाणिमित्तं समो भवति । प्रह सव्वगुणकारा वेयालिए ऊणं अहियं वा असीयं सत भवति ताहे गायव्यं ण एम गुणकारो, प्रकसिणा य एस गायध्वं ति ॥६४८६।। अहवा सव्वकसिणजाणणत्यं इमं भण्णइ - जतिहि गुणा आरोवणा, ठवणाए जुता हवंति छम्मासा । तावतियारुवणाओ, हवंति सरिसाभिलावाओ॥६४८७।। जति गुणा भारोवणठवणाए पक्खित्ताए प्रसीयं सतं भवति सा आरोवणा कसिणा णायला, तविवरीया सव्वा अकसिणा, तेसु इमं करणं - जेण गुणा आरोवणा ठवणादिणसंजुला जत्तिएण ऊणा अहिबा वा भवति त चेव तत्य झोसगं, अकसिणा एसा णायव्वा ॥६४८७।। कि च पालोयगमुहातो पडिसेवियमासम्मं सोउं तं मासग्गं जाए ठवणाए संचयमाससमं भवति तं ठवणारोवणं ठवेति । तत्यिमं करणं - उदाहरणं, जहा- अट्ठावण्णं मासा आलोयगमुहातो उवलद्धा, तत्व पायरिएण वीसिया ठवणा पण्णाससतिमा आरोवणा टविता, एयासिं ठवणारोवणाण सत्तरं दिवससतं छम्मासिय असीयदिवससतमाणातो सुद्ध, सेसा दस एतेसिं पण्णास सतित्थी आरोवणाए भागो ण सुज्झति त्ति चत्तालं सतं पक्खित्तं, भागे हिते एक्को लद्धो, एसो एक्को अट्ठावीसतिमग्रारोवत्ति अट्ठावीसारोवणमास त्ति वा अट्ठावीसगुणो कतो जाता अट्ठावीसं चेव । एत्थ चेव इम भण्णति - ठरणारोवणदिवसे. णाऊणं तो भणाहि मासग्गं । जं च समं तं कसिणं, जेणहियं तं च झोसग्गं ॥६४८८॥ ठवणारोवणाण मासे णा ताहे संचयमासगं भणे जाह "एवतित" Eि - दो ठवणामासा अट्ठावीसं प्रारोवणमासा एते तीसं, एते अट्ठावीसाए मेलियाए या अट्ठावरणं संचयमासा, एवं सव्वत्थ संचयमासग्गं भाणियत्वं । जत्थ पुण प्रारोवणाए भागे हीरमाणे झोसविरहियं सम सुज्झरि त कसिर्णति समेत्यर्थः, जत्थ पुण ण सुज्झति तत्य जावतिएण चेव सुज्झति तावतियं चेव सझोसग्गं जाणियब्व ॥६४८८।। ठवणारोवणदिवसेहिं मासुप्पादणकरणं इमं - जत्थ उ दुरूवहीणा, ण होंति तत्थ उ भवंति साभावी । एगादी जा चोद्दस, एगाओ सेस गहीणा ॥६४८६।। सनासि ठवणारोवणाणं दिवसेहितो मासुपादणे तो णियमा पंचहि मागो हायवो, भागे हिते जं लद्धं तं गियमा दुरूवहीणं कायव्वं, जत्य दुरूवहीणं ण होज्जा जहा एग दियासु वामु जत्थ वा दुरूव होणं कते आगासं भवति जहा दसराइंदियासु तासु · साभाविय" ति - ण तेसि काति विकृती जति, तत्तिया चेव ते तेहिं मचयमासा ठवणामासा परिमुद्धा गुणेयव्व ति, अहवा- "साभाविय" ति - ते एगादिमभावभेदभिण्णा व सव्वे एक्कातो मासातो णिप्फण्णा इति, एवं जाव चोद्दसिता आरोवणा, ततो परं सेसासु पण्णरसियासु दुगहीणकरण लमति ॥६४८६।। Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ सभाष्य- चूर्णिके निशीथ सूत्रे विकलेसु सकलकरणत्यं भणति - उवरिं तु पंच भइते, जे सेसा के इ तत्थ दिवसा उ । ते सव्वे एगाओ, मासाओ होंति णायव्वा ॥ ६६६०|| पण्णर सियाए उवरि सोलसमादियासु ठवणासु पंचहि भागे हिते उवरि भागलद्धे सेसा एक्कगमादी दीसंति, ते लद्वाण पूरणमेव णायव्वा, ण तेसि किनि सकलकरणे पुढो करणं कजति, सो चैत्र एक्को मासो इत्यर्थः ।। ६४६०। कहं पुण ठेवणारोवणमासेहि सव्वं संचयमासेहिं वा दिवसग्गहणं कज्जति ? एत्थ इमं भण्णति - [ सूत्र - १७ होति समे समगहणं, तह वि य पडिसेवणा व नाऊणं । हीणं वा अहियं वा, सव्त्रत्थ समं च गेण्हेजा || ६४६१ ॥ होति सामण्णे ठवणारोवणाण दिवसमाणे समे तेसुं समं दिवसग्गहणं भवति, सेमेसु मासेसु समं दिसमं वा । कहं ? उच्यते - जहा सत्तिया ठत्रणा सत्तिया चेत्र आरोवगा, एत्थ पुव्वकरणेण छथ्वीसं संचयमासा मंति, एत्थ ठेवणारोवणमासेसु सत्तसत्तदिणा गहिया, जे पुण प्रारोवणाहि लद्धा मासा चउवीसं तेसु एक्कातो मासाम्रो पंच दिशा गहिता तम्हा दो तत्थ झोसा पंडिता, सेसा जे तेवीस तेसु सत्त चेव दिणा गहिता । एवं समासु ठरणारोवणासु समाहणं दिट्ठ, प्रणासु कत्यति जइ विसमं ठवणारोवर्णादिवसमा " तह विय" ति - ण पुञ्वकरणं कर्तव्यं । "पडिसेवणा” - पडिसेवणमासा भण्ांति, ते य जे ठवणारोवणाए भागे हिते लब्भंति ते पडिसेवणमासा ते णाएं जहा छम्मासा पूरति तहा ठरणारोवणासु होणमतिरितं वा दिवसग्गहणं कायवं । कत्थ ति ठवणादिहीणं प्रारोवणाए श्रहियं । प्रष्णत्थ श्रारोवणाए हीणं ठवणाए महियं । जहा वीसियास ठेवणारोवणासु वोसियाठवणाए दम दस दिवसा गहिता, दोसु श्रारोवणामासेसु दुहाविभत्सु एक्कातो प्रारोवणामासातो पण्णरस गहिता बितियातो पंच एवं अण्णासु वि भावेयव्वं । " सव्वत्य समं च गेव्हिज्ज " त्ति - जे आरोवणाहि हियभागनद्वा मासा जं य ठवणारोवणामासा सव्र्व्वहितो गहणं जहा पक्खियठवणाए पक्खियाए प्रारोवणाए, एवं पंत्रितासु ठवणारोवणासु, तहा एक्कियासु ठेवणारोवणासु, दुगादिसु य ।।६४६१।। विसमा रोवणार, गहणं विसमं तु होइ नायव्वं । सरिसे व सेवितम्मि, जह झोसो तह खलु विसुज्झे ||६४६२ || जाठवणात दिवसमाणेण परोप्परतो विसमातो तासु जे संचयमासा लद्धा तेसु पडिसेवते जति विसरिसावराहसेवणं तं तहवि दिवसग्गणं करतेहि विसमं चेत्र दिवसग्गहणं कायव्वं, तासु इमा सर्विसमत्तणतो चेत्र विसमग्गहणं भवति, एवं विसमकसिणासु गहणं दिट्ठ. जा पुण विसमाकसिणासु गहणं तत्थ य दिवसग्गहणं करेंगे जहा भोमो विसुज्झति तहा कायव्वं, "खलु" श्रवधारणे, झोसविसमार्थे, विशेषप्रदर्शनार्थे वा ।।६४६२।। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ. व्यगाथा ६४६.० - ६४६४ ] एवं खलु ठत्रणाओ, आरुवणाओ समास होंति । ताहि गुणा तावइया, नायव्व तहेव झोसो य ॥ ६४६३॥ श्रावणाश्रो समास त्ति संखेश्रो भणिया, अहवा पाढंतरं "प्रारोवणाम्रो विसेसओ होति" त्ति - एतेसि त्रिसेसो होगा हियदिवसग्गहणेण पायव्वो । हवा - पाढतरं "मारुवणाश्रो विसेसिता होंति" ति । विशतितम उद्देशक: - कहं पुण ठेवणाय प्रारोवणाहितो विसेसिज्जंति ?, उच्यते जहा ठत्रणमाससुद्धे सेसमासा श्रावणमाससरिस भागच्या ते पण्णरसपणगुणा य कया प्रारोवणादिणेहि वा गुणिया जाया एवं श्रारोवणादिवसपरिमाणलद्धं तहा ठवणदिणपक्खेवेणं छम्मासा पूरंति त्ति सह पूरणवत् एवं ठत्रणादिर्णोह विसेसिज्जेतीत्यर्थः । " ताहि गुणा तावइय" त्ति एग-दु-तिमा दिएहिं संखाहि श्रारोवणा गुणिया ठवणादिणसंजुप्रा जावतियासु 'छम्मासा भवति तावतिया उ कसिणा भवतीत्यर्थः । अधवा - "ताहि गुणा तावइय" त्ति - इच्छियठवणारोहि प्रसीययपरिसुद्धेहि सेसस्स इच्छियासेवगाए मागे हिते जे लद्धा ते एगादि श्रावणमास संखाहि गुणिया ठवणारोवणमाससंजुग्रा " तावतिय" ति - संचयमासा भवति । श्रहवा जत्थ संखित्ततरं ठवणारोवणाहि विणा प्रारोवणकम्मं काउं इच्छंति तत्थ असीयसयस्स पालोयगमुहाम्रो जे उबलद्धा पडिसेवियमासा तेहि भागो हायम्वो, ते चैव संवया मासा, जड़ सव्वं सुद्धं तो कसिणं णायव्वं, जं च भागलद्ध तं एक्केक्कमासातो दिवसग्गहणं दट्ठव्वं । कः प्रत्ययः ? उच्यते - जतो ताहि चेव भागहारगरासीहि भागलद्धं गुणितं तावतियं ति प्रसीयं सतं भवति, ग्रह पडिसेवणमासेहि भागे होरमाणे किंचि तत्थ विकल भवति ततो तं मागल भागहारगसंखमित्तेहि ठाणेहि णायव्वं, तत्थ एक्कभाग विकलं पक्खिवे सेसा भागतोहि गुणंति, जावतिता भागा तावतिमेतो रासी भागहारगुणो कज्जति, जो य त्रिगलसम्मिस्सो भागो सो य तत्थ पक्खित्तो ताहे तावतिया चेव भस्संति प्रसीतसत मित्यर्थः । " नायव्वं तहेव भोसो य" ति - प्रारोवणाए भागे हीरमाणे प्रसुज्झमाणे जो छेदं स विसेसो झोसो णायन्त्रो ।।६४६३।। कसिणाए रुवणाए, समगहणं तेसु होइ मासेसु । आरुवण अकसिणा, विसमं झोसो जह विसुज्झे || ६४६४ || इदं दिवसग्गहणलक्खणं जाकसिणा रोवणा सा झोसविरहिय ति वृत्तं भवति, तत्थ श्रारोवणभागहा रहियलद्धमासा जे तेसु एगभागत्थेषु समं दिवसग्गहणं अह दुगादिभागत्थतो पत्तेयं मांगेमु समग्गहणं दट्ठवं अकसिणारोवणातो णियमा तेसु मासेसु विसमग्गहणं, तं पुण विसमग्गहं झोसवसेण भवति जहा झोसो विसुज्झतीत्यर्थः ।।६४६४॥ ཋཱ༣༦༠ जइ इच्छसि नाऊणं ठवणारुवणा य तह य मासेहि । किं गहियं तद्दिवसा, मासेहि तो हरे भागं ॥१॥ ठवणारुवणादिवसाण संतमासेहिं सो य ( भागो) हायव्वो । लद्ध दिवसा जाणे, सेसं जाणेज्ज तब्भागा ॥२॥ जति णत्थि ठेवणारोवणा य णज्भंति सेविता मासा । सेवियमासेहि भए (वे. ) ग्रासीयं लद्धिमोग्गहियं ॥ ३ ॥ गतार्थाः Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथमूत्रे एवं तु समासेणं, भणियं सामण्णलक्खणं बीयं । एएण लक्खणेणं, झोसेयव्वा सव्वाश्री ॥ ६४६५ || कंठया कसिणाकसिणा एता, सिद्धा उ भवे पकप्पनामम्मि | चउरो य अतिक्कमादी सुद्धा तत्थेव श्रज्झयणे || ६४६६ || पकप्पो ति णिसीहूं, सेसं पुव्वद्धस्स कंठं । णिसीहणाम त्ति गयं । इदाणि "सव्वे य तहा प्रतियारे" त्ति, श्रइयारगहणातो चउरो प्रतिक्कमादि दटुव्वा, तेवि तत्येव णिसीहज्झयणे सपायच्छ्रितसवा सिद्धा ।।६४६५।। ३३८ सव्वो एस पच्छित्तगणो प्रतिवक्रमादिसु भवति । ते य प्रतिक्कमादी इमे श्रतिक्कमे वतिक्कमे चेव अतियारे तह श्रणाचारे । गुरुश्रो य प्रतीयारो, गुरुगतरो उ णायारो ||६४६७|| प्रतिक्कमादियाण इमं णिदरिसणं - माहाकम्मेण णिमतिम्रो पडिसुणणे अतिक्क मे वट्टति, ००० तग्गहणणिमित्तं पयभेदं करेइ वइक्कमे वट्टति, तं गेण्हंतो प्रतियारे वट्टति, तं भुजंतो प्रणायारे वट्टति । एतेसु जहक्कमं पच्छित्तं इमं । एते तवकालविसेसिना । प्रतियारठाणा प्रतिक्कमो गुरु प्रतिक्कमतो वतिक्कमो गुरुतरं ठाणं, तम्रो वि गुरुप्रो प्रइयारो, ततो वि गुरुयतरो भणायारो । एवं दोसाणपच्छितकम्मबंधेहि गुरुतरो क्रमशः ।। ६४६६ ।। - चोदकाह - तत्थ भवेण तु सुत्ते, अतिक्कमादी उ वणिया के ति । चोदग सुत्ते सुत्ते, प्रतिक्कमादी उ जोएज्जा ||६४६८|| चोदको भणति - तत्थ त्ति हत्यादिवायणंतसुत्तगणेसु ण कत्थ ति प्रतिक्कमादी सुत्तं वण्णिता जतो भण्णति - दिट्ठा ? | आयरियो भणति - हे चोदग ! णायव्वं सञ्चसुतेसु प्रतिक्कमादी ण तुमे दिट्ठा ?, "जोएज्ज" ति प्रायरिएण भाणियन्त्रा ||६४६८ || सव्वे वि य पच्छित्ता, जे सुत्ते ते पडुच्चऽणायारं । थेराण भवे कप्पे, जिणकप्पे चतुसु वि पदेसु || ६४६६॥ [ मूत्र–१४ - सव्वेसु विप्रतिक्कमादिसु चउसु वि पदेसु धेरकम्प्रियाणं पच्छित्ता णत्थि ति काउं ते मे पच्छित्ता सुते भणिता ते सव्वे थेरप्पियाण अणावारं पडुच्च भगिया । कह ? उच्यते - जति परिसुत्ते पदभेदातो णियत्तति गहियं वा परिवेति तहावि सुज्झति, ग्रह भुंजति तो प्रणायारे वट्टंतस्स पच्छितं भवति । जिणकप्पियाणं पुण प्रतिक्कमादिसु चउसु विपदेसु पच्छितं भवति, ण पुण एवं काहिति ॥ ६४६६॥ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देश कः अत्राह “जति एवं मिसीहे सिद्ध तो णिसीहं कतो सिद्ध ?" उच्यते णिसोहं णवमा पुव्वा, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थूओ । श्रायारनामधेज्जा, वीसतिमा पाहुडच्छेदा ||६५०० || माध्यगाथा ६४६५- ६५०४ ] पत्तेयं पत्ते, पदे पदे भासिऊण अवराहे । तो केण कारणेणं, दोसा एगत्तमावण्णा || ६५०१ ॥ पुन्वगतेहितो पञ्चक्खाणपुब्वं णाम णत्रमपुब्वं तस्स वीसं वत्युं वत्थु त्ति वत्थुभूतं वीसं प्रत्था - धिकारा, तेसु ततियं प्रायारणामधिज्जं जं वत्युं तस्स वीसं पाहुच्छेदा परिमाणपरिच्छिष्णा, प्राभृतवत् ग्रथंछेदा पाहुछेदा भण्णंति, तेसु वि जं वोसतिमं पाहुडछेदं ततो किसीहं सिद्धं ॥ ६५००। चोदकाह - सव्वं साघूक्तं, किन्तु - - एगुमाए उद्देसएसु पदे पदेसु पत्तेयं पत्तेयं केसु वि मासलहू पच्छित्ता, केसु वि मासगुरु, केसु वि चउलहुं, केसु वि चउगुरु एवं सुत्तमो प्रत्यो पुरा भवराहपदेसु पत्तेयं पणगादि जाव पारंचियं दातुं तह सगल बहु ससुतपदविधि पत्तेयं पत्तेयं च दंसेउं दारुदंड पग्यपुंछस लोमगिल्लोममादि सुतपदा पत्तेयं वण्णे तो कि दोसा एगत्तमावण्णा ?, एगतं णाम बहुसमासपदावणेसु एक्कं चैव देह, ग्रहवा - बहूहि तहारिहेसु एक्कं चैव छम्मासं देह, गुरुसु वा लहुं देह, लहुसु वा गुरुगं, मासिए वा दुमासादि जाव पारंचियं देह, पारंचिए वा हेट्ठाहुतं जाव पणगं देह, तं मा एवं एगत्तं करेह, जहा पत्तेयं परूवणा श्रावत्ती य तहा पत्तेयं दाणं पि करेह, कारणं वा वच्च ।। ६०१ ॥ आचार्याह - सुणेहि एगत्तकारणं - २ ४ जिण चोदस जातीए, आलोयण दुब्बले य आयरिए । एतेण कारणेणं, दोसा एगचमावण्णा ||६५०२ ।। पडुच्च, प्रायरियं पडुच्च, एते जिणा दिए पडुच्च दोसाणं एगलं भवति ||६५०२ ।। एत्थ जिणादिसु छ जहक्कमेण इमे दिट्ठता जिणं पडुच्च, चोट्सपुव्विमादि पहुन्च, एगा जाईए पढन्च, पलिउंचणं श्रालोयणं पटुच्च, दुब्बले ३३ε घयकुडवो य जिणस्सा, चोहसपुव्विस्स नालिया होति । दव्वे एगमणेगे, णिसज्ज एगा अणेगा य || ६५०३ || जिणेसु घयकुदितो, चोट्सपुव्वीसु य णालियदिट्ठतो, जाईए एगं अणेगदव्वदिट्ठतो, ग्रालय गए एगाणेगणिसज्जदितो ।।६५०३ || तत्थ जिणं पडुच्च जहा दोसा एगत्तमावण्णा तहा वेज्जपउत्तेणं घयकुडदिट्ठतेणं भणति - उप्पत्ती रोगाणं, तस्समणे सहे य विभंगी । गाउं तिविहामइणं, देति तहा सहगणं तु ||६५०४|| " उत्पत्ति" ति रोगाण निदाणकरणं, तदित्यनेन रोगो संबज्झति, "समने" त्ति रोगप्रशमनं रोगापहारीत्यर्थः । तस्स किं ( तोसहतं ) रोगपममणं श्रोसहं, तं जहावणातुं विभंगी, “विभंगि” त्ति भंगेण Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१४ ठितं भंगी तच्च नाणं, ततो विगतं तं विभंगी, सो य मिच्छट्टिी उप्पण्णमोही मणति । "तिविहो" ति वाता पित्ता सिंभो वा तेसि वा समवायातो सण्णिवातितो भवति । "मामइणं" ति प्रामतो रोगो, सो प्रामतो जस्स भत्थि सो प्रामती मणुस्सो भण्णति, तस्स सो विभंगी सव्वादमादिकिरियं जाणंतो एगो गो प्रोसहसामत्यं जाणतो रोगिणो उवसंपण्णस्स तहा तं घयाइतोसहगणं देति जहा सेसो वातातिरोगो असेसो फिट्टति ।।६४०४।। प्रोसहपयाणे य इमो चउभंगो एगेणेगो छिज्जति, एगेण अणेग गहिं एक्को। णेगेहिं पि अणेगा, पडिसेवा एव मासेहिं ॥६५०५।। एक्कोसहेण छिज्जंति केति कुविता वि तिमि वाताती । बहुएहिं वि छिज्जती, बहूहि एक्केको वा वि ॥६५०६॥ जहा एगेण घयकुडेण एगो वायातिरोगो छिज्जति, तहा एक्केण धयकुडेण "प्रणेगे' त्ति तिष्णि वायाइखुभिया मंदणुभावा छिज्जति ति । 'बहुएहि वि हिज्जति" त्ति बहुएहि वि धयकुडेहिं बहुं चेव वायातीखुभियाइ छिज्जति । एस चरिमभगो। 'बहूहिं एक्केको वा वि"त्ति बहि घयकुडेहिं अच्चत्यमवगाढो एक्केको वायाइ वाही छिज्जति । एस ततियभंगो । एवं जेण मासारुहेहिं रागाइएहिं मासो सेवितो सो मासेण सुज्झइ त्ति, जिणा तस्स मासं चेव देंति । बितियभंगे बहुमासा पडिसेविता मंदाणुभ वेग हा दुठ्ठयादीहि य पयाकया जहा मासेणेव सुज्झति ति जिमा तस्स चेव मासं देंति, जेण वा पणगादिणा सुज्झति तं देंति । तरियभंगे तिव्वझवसाणसेविते मासे रागादीहि वा हरिसायंतस्स मासेण ण सुज्झति ति जिणा गाउं दुमासादी देंति, रागुवरुवरि वढिते जाव पारंचियं देंति । चरिमभंगो पुण पढमसरिच्छो । अहवा - बहुसु संचयमासे सु जिणा छम्मासं चेव दिति ठवणारोवणवज्ज, एक अणेसु वि प्रोसहेसु चरमंगो भाणियन्वो ॥६५०६।। इमो दिद्रुतोवणतो - धण्णंतरितुल्लो जिणो, णायव्यो आतुरोवमो साहू । रागा इव अवराहा, ओसहसरिसा य पच्छित्ता ॥६५०७॥ जहा धण्णंतरी तहा जिणो, जहा रोगी तहा साहू सावराधी, जहा ते रोगा तहा ते मुलुत्तर गुणावराहा, जहा ताणि ग्रोसहाणि तहा मासादी पच्छिता। एवं जिणा जाउं जत्तिएणेव सुज्झति तत्तिय चेव दिति । एवं जिणं च पडुच्च दोसा एगत्तमावण्णा ॥६५०७॥ इदाणि 'चोद्दसपुग्विं पडुच्च जहा दोसाण एगत्तं तहा भण्णति - एसेव य दिटुंतो, विभंगिकतेहि वेज्जसत्थेहिं । भिसजा करेंति किरियं, सोहंति तहेव पुष्वधरा ॥६५०८|| जहा विभंगी रोगोसह चउभंगा विकप्पेण अवितह किरियं करेंति । “भिसज' ति - वेज्जा ते वि तहा विभंगीकयवेज्जितसत्थाणुसारेण चउविकप्पेण अवितह रोगावणयणकिरियं करेंति । "एसेव दिटुंतो" तिएसेव चोद्दसपुवीण दिटुंतो कज्जति, जहा ते वेज्जा तहा चोद्दसपुष्वधरा, परिहाणीए जाव पुवघरा, परिहाणि णाम णवपुलततियवत्थु ति, एए वि जिणाभिहितागमाणुसारप्रो जिणा इव प्रवितहं बेग विसुज्झति त चेव पच्छित्तं देति ॥६:०८।। १.गा० ६५०२। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६५०५-६५११] विशतितम उद्देशक: चोदकाह - "जिणा केवलणाणसामत्थतो पच्चवक्त्रं रागादियाण वडोवट्टि पस्संता तहा पच्छित्तं देति, चोदसपुग्बी अपेच्छतो कहि दिन" ? अत्रोच्यते - णालीत परूवणता, जह तीइ गतो उ गज्जती कालो। तह पुव्वधरा भावं, जाणंती सुज्झते जेणं ॥६५०६।। "गामीत" त्ति - घडितो उद्गगलणोवलक्खित्तो कालो, तोए य घडियाए परूवणा कायव्वा, जहा 'पलित्तयकए कालणाणे, जहा तीए दिध रातिकालस्स य कि गत सेसं वा गति सहा पुव्वधरा दुरूवलक्खं भावं पागमप्पमाणतो जाणंति, भावे य गाए जेण पच्छित्तण सुज्झति तम्मत्तं हीणमहियं वा चउभंग विगप्पेण जिणा इव पुम्बधरा वि देंति, एवं चोहसपुम्बीए पहुच्च दोसा एगत्तमावण्णा ॥६५०६।। चोद्दसपुव्वीण णालिय त्ति गयं । इदाणिं जाति पडुच्च दोसा जहा एगत्तमावण्णा तहा भष्णति । अत्र वावयं 3'दवे एगमणेग' ति, जाती दुविहा - पच्छित्तजाती दन्वजातीय। एत्थ इमे भण्णति - मासचउमासिएहिं, बहूहि एगं तु दिज्जए सरिसं । असणादी दव्याओ, विसरिसवत्यो जं गुरुगं ॥६५१०॥ तत्य पच्छित्तेकजातिय बहसु लहुमासिएसु मरिसतणयो - "धम्मयए एक्कं चेव मासं दिज्जति, एक्कं गुरुग्रं दिज्जति, लहुगुरुसंजोगे गुरु एक्कं पोहाडणं दिज्जति, एवं दु-ति-चउ-पंच-अम्मासिएन वि सव्वेसु वा प्रावणस्स छम्मासियं एक्कं दिज्जति । दवेगजातीएं “असणादी" पच्छदं, एक्कम्मि वा दध्वे प्रणेगेसु वा दनेस प्रणेगा पच्छित्ता, "तस्थिवकदव" ति - असणं तं प्रणेगदोसपुट्टणिरिसणं, जहा तं असणं रायपिडो पाहडो उद उल्लो प्राहाकम्मिग्रो य, एत्य एक्क चेव प्रोहाडणं गुरुतरं प्राहाकम्मियणिप्फष्णं च 3गुरु दिज्जति, "अणेगदव्वेसु वि' ति-असणं माहाकम्मियं, पाणं बीयादिवणस्सतिसंघटुं, खातिमं पूतिम, सातिमं उद्देसियं, अहवा-प्रगदव्वा एक्क असणं पाहाकम्मियं अण्णं प्रसणं कोयगड, प्रठवियं एवं पाणादिया वि भाणियन्वा, एत्थ विसरिसवत्थुसु जं माहाकम्मादि गरुतरं तं दिनति, सेसा तदंतभावपविट्ठा दटुब्वा । एत्थ केति भेगारिदिटुंतं कहेंति, "दोसु वि प्रविरोहो" त्ति-अम्हे मालोयणाए भणिहामो, एवं जातीए एगत्तमावण्णा दोसा, एत्य धम्मताए सुझंति । अहवा-जहा अतिपंकावणयणपयुत्तो खारजोगो सेसमलं पि सोहेति तहा प्रोहाडणपच्छित्तं पि सेसेपच्छित्ते सोहेति ॥६५१०।। "जातीए" "दव्वे एगमणेगे" ति पयं गयं । इदाणि 'पालोयणादिया तिणि दारा भण्णंति, तेसि इमे दिटुंता - आगारिय दिटुंतो, एगमणेगे य सेण अवराहा । मंडी चउक्कमंगो, सामियपत्ते य तेणम्मि ॥६५११॥ भालोयणाए प्रागारिदिट्टतो, तेश दिटुंतो य । दुबले भंडिदिटुंतो। प्रायरिए सामितपत्त, तेग दिद्रुतो १ पादलिप्तसूरिकृते । २ तं समं । ३ गा० २२७ । ४ मंदपरिणामतया, इत्यपि पाठः । ५ गा० ६५०२ । ६ गा० ६५०३। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ तत्थ आलोयणविगप्पा इमे - सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे "वियडण" ति - श्रालोयणाए विधी विग्घेण प्रसाइयारे श्रालोयगस्स । णिसेजा य विगडणे, एगमणेगा य होति चउभंगो । वीसरिसण्णपदे, बिति तति चरिमे सिया दो वि || ६५१२ || · एक्का पिसिजा एक्का प्रालोयणा, एवं चउमंगो । तत्थ पढमो - बितिम्रो पहट्टाइयारस्स मायाविणो वा श्रालोचियवंदिएसु पुणो पच्छा सम्मालोयणपरिणयस्स गुरुम्मि तह णिविट्ठे चैव वंदणं दाउ भालोवेति तस्स भवति । ततियभंगो बहुणा कालेण उस्सण्णवराहपदस्प बहुप डिसेविस्स वा एगदिशे प्रालोयणं श्रवधारेंतस्स, ग्रहवागुरुम् वा काइगभूमिगतपच्छागते तत्थ णिसीदणं णिसेजा एक्का एव श्रालोयणा भवति । चरिमभंगे दो वि संभवत्ति अंतराहा विस्मरणं उस्सण्णपदत्तणं च ।। ६५१२ । । एत्थ चउसु वि भंगेसु श्रमायाविणो ग्रणेगावराहस्सऽवि गुरुतरं एक्कं पच्छित्तं इमेण प्रगारिदिट्ठतेण गावराहडंडे, वि कहेतऽगारि हं मंती | एवं गपदेसु वि, डंडो लोउत्तरे एगो ।। ६५१३ ॥ [ सूत्र -१४ जहा एगो रहगारो । तस्स भज्जाए बहू श्रवराहा कया, ण य भत्तुणा गायव्वा । श्रण्णया घरं वाउडदारं मोतु पमायश्रो सेज्झिलियघरे ठिता । तत्थ य घरे साणो पविट्ठो । तस्समयं च भता आग | तेण दिट्ठो । पच्छा सा अगारी प्रागया । तं प्रवराहि त्ति काउं पिट्टिउमारद्धो । सा वि चितेइ प्रणेवि मे बहू ग्रवराहा प्रत्थि, ते वि मे गाउं एसमं पुणो पिट्टे हिति त्ति इमेणं से ते सव्वे कमि । भणाति - गावी पीता वासी, त हारिता भायणं पि ते भिण्णं । अज्जेव ममं सुहतं, करेहिं पडवो व ते हरिश्र ।। ६५१४ ॥ गावी वच्छेण पीया, कंसभायण मण्णं वा भग्ग एवमादिश्रवराहे स एकसरा कहिएसु ते सा तं एकवारं पिट्टिता । एवं लोउत्तरे वि गावराहपदावण्णेसु एगो पच्छित्तदंडो प्रविरुद्धो । ।।६५१४॥ अधवा - एत्थेव आलोयणत्थे इमो दिलो गासु चोरियासू, मारणडंडो न सेसगा डंडा | एवं गपदेसु वि, एगो डंडो ण उ विरुद्धो || ६५१५।। एगो चोरो । तेण य बहुगागीता चोरिया कयायो । कस्स ति भायण हरियं, कस्स ति पो, कस्स ति हिरणं, कस्स ति सुवण्णं । अण्णया तेण राउले खत्तं खयं, रयणा गहिया, गहि यसो रक्खेण रण्णो उवट्ठविग्रो । १ इच्छे (इयाणि) । Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६५१२-६५१७] विशतितमउदेशक: ३४३ तस्समयं अण्णे उवट्ठिता भणंति - अम्ह वि एतेण हडं ति। रण्णा रयणहारि त्ति काउं सेसचोरियाग्रो य गाउं तस्स मारणदंडो एक्को प्राणत्ता, सेसचोरियदंडा तत्थेव पविट्ठा । एवं लोउतरे वि प्रणेगपदेसु एगडंडो अधिकृट्ठो। बितियभंगे मायाविणो पुणो पालोएतस्स प्रण मि पच्चित्तं दिग्जति । एवं जत्तिया वारा माई पालोगति तत्तिया पच्छिता। ततियभंगे असढस्स जद्दिवस पालोयणा 'समायाति तदिवसं एगपच्छित्तं दिज्जति ।। चरिमभंगे तेण णिसेज्जा कया मालोइयं च भणति य सम्मत्ता मम पालोयणा, दिण्णं पच्छितं, उट्टिता गुरू, पणो संभरियं तक्खणं चे गिसज्जं काउं पुणो य पालोइयं, ताहे गुरू प्रसढस्स भणंति तं चेव ते पच्छित्तं, असढभावा मण्णं 7 देइ । अहवा - साघूणं देवसियालोयणकाले गुरूणं प्रणेग णिसिजा साघूणं मणेगा मालोयणामो, एवं प्रालोयणं पडुच्च एगत्तमावण्णा ।।६५१५।। उदाणि दुब्बलं पडुच्च भण्णति । तत्थ भंडीचउकुभंगदिद्रुतो। भंडी बलिया बइल्ला बलिया, एवं चउक्कभंगो। पढमभंगे बहु आरुभिज्जति, सेसेसु तिसु भंगेसु इपा विभासा - बितिय भंगे जं बइल्ला सक्कति कड्डिउं तत्तियं पारुभिज्जति । ततियभंगे जेण भंडी ण भज्जति । चरिमभंगे उभयं पि जत्तियं तरति तत्तियं पारुभिज्जति । एयस्सिमो उवणग्रो - संघयणं जह सगडं, धिती उ धुज्जेहि होति उवणीतो । बिय तिय चरिमे भंगे, तं विज्जति जं तरति वोढुं ॥६५१६।। सगडसरिच्छ सघयणं, धितियलं बइल्लतुल्लं, एत्य वि च उभगो। पढमे सव्वं दिज्जति, बितिए धितिप्रणुरूवं, ततिए संघपणाणुरूवं, चरिमे उभयागुरूवं. जं तरति तत्तियं दिज्जति ॥६५१६।। एवं दुब्बलं पडुच्च दोसाणं एगतं । इदाणि पायरियं पडुच्च भण्णति, "सामिपत्तेयतेगम्मि" त्ति - णिवमरण मूलदेवो, आसऽहिवासे य पढि ण तु डंडो । संकप्पियगुरुदंडो, मुंचति जं वा तरति वोढुं ॥६५१७॥ एगत्थ णगरे राया अपुत्तो मनो, तत्थ य राचितगेहि देवयाराहणणिमित्तं अस्सो य हत्थी य अहियासियो । इप्रो य - मूलदेवो चोरियं करेंतो गहियो, तेहि रचितगेहिं वज्झो आणतो, णगरं हिंडाविज्जति । इतो य अस्स हत्थी मुक्का, अट्ठारसपयतिपरिवारो दिट्ठो मूलदेवो । अस्सेण हेसियं पट्ठी च उड्डिया, हत्थिणा गुलुगुलावियं गंधोदगं च करेण घेत्तुं अभिसित्तो खंधे य उड्डिअो, सामुद्दपाढएहि य आइट्ठों एस राय ति । तस्स चोरियप्रवराहा सत्वे मुक्का रज्जे ठवियो। एस दिट्ठतो। इमो उवणग्रो- एगस्स बहुसुयस्स अहवा -- पच्छित्तदंडो गुरुसं पितो गच्छे मायरियो कालगतो, सो य साधू प्रायरियजोग्गो ति पायरिप्रो ठविमो, विगडच्छेयसुत्तत्थतदुभयादीहि संगहो कायव्वो, ताहे जं सक्केति वोढुं तं दिज्जति, प्रह ण सक्केति तो से सव्वं मुंचति, एवं दोसा एगत्तमावण्णा ॥६५१७॥ १ समप्पति, इत्यपि पाठः । २ गा० ६५०२ । ३ गा० ६५११ । ४ गा० ६५०रा ५ गा० ६५११ । Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - १४ चोदगाह - साधूक्तं दोसेगत्तकारणं, कि इमाए एद्दहमेत्तीए ठवणारोवणमात्र द्विविकट्टीए इतो पंच इतो दस त्ति पच्छित्ता घेत्तु ं दिज्जंति, जुत्तं गुरुणा आगममणुसरित्ता जं पच्छित्तं ग्रारुहं तं ठवणारोवणमंतरेण एक्कसरा हंदि इमं पच्छित्तं एवं दिज्जउ । ३४४ श्राचार्याह - star पुरिसा दुनिहा, वणिए मरुए णिहीण दिट्ठतो । दोह वि पच्चयकरणं, सव्वे सफला कया मासा ।। ६५१८ ।। मरुगसमाणो उ गुरू, पूइज्जति मुच्चते य से सव्वं । साहू वणिश्रो व जहा, वाहिज्जति सव्वपच्छित्तं ॥ ६५१६ ॥ सुबहूहि वि मासेहिं छण्हं मासाण परं न दायव्वं । श्रविकोक्तिस्स एवं विकोविए अण्णा होति ॥ ६५२०॥ 9 वीसं वीसं भंडी, वणमरुसव्वाओ तुल्ल भंडीओ । वीसतिभा सुक्कं, मरुगसरिच्छो इय अगीओ ||६५२१|| हे चोदग ! पुरिसा दुविहा गोया प्रगीयत्या य । तत्थ गोयत्यागं श्रगीयपरिणामगाण य श्रावण्णाणं जतियं दायव्वं तं त्रिणः प्राकट्ठिविकट्ठोए दिज्जति । तत्य दितो वणिएणं । तस्स वीसं भंडीग्रो एगजातिय भंडभरियाओ य सव्वाश्रो समभराम्रो तस्स य गच्छतो सुकठाणे सुकियो उवद्वितो - "सुकं देहि" त्ति । वणि भणति किं दायव्वं ? सुकितो भण्णति - वीसतिभाओ । ता तेण वणिण सुकिएण य परिच्छित्ता, मा ग्रहणपच्चारुहणते सु वक्खेवो 'भविस्मति त्ति काउं एक्का भंडी सुके दिण्णा । एवं सव्वेंस गीयत्थाणं प्रगीयपरिणामगान य विणा प्राकट्टित्रिकट्टीए दिज्जति । प्रगीयत्था अपरिणामगा य प्रतिपरिणाभगा य ते जति छण्ह मासाणं परेण श्रावण्णा, तेसि दोह वि पञ्चयकरणट्ठा सन्वे मासा ठेवणारो विहाण सफला काउं दिज्जति । पुण एत्थ दितो - मुक्खमरुप्रो, तस्स वीस भंडीग्रो एक्कभंडतुल्लभराम्रो । सुकितेण भणि - एक्कभंडी भंडं दाउं वच्चसु, किमहोनारणवाखेवेण । मुक्खमरुप्रो भणति - ग्रोहरेत्ता एक्केक्काग्रो वीमनिभागो गेहमु, मकिएण तस्स पच्चट्ठा मोहरेत्ता एक्केवकिग्रो वीसतिभागो गहिनो । मरगसरिच्छा प्रगीता, सुकियसरिसो गुरु ॥६५१६-२१ ।। अहवा - णिहिदिनो इमेसु कज्जेसु ग्रकज्जेसु य जनाजसु उवसंघरिज्जति, जो इम भण्णति - १ हवउ ( व्यव ० ) Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५१८-६५२४] विशतितम उद्देशकः ३४५ अहवा वणिमरुएण य, णिहिलंभणिवेदणे वणियदंडो। मरुए पूविसज्जण, इय कज्जमकज्ज जतमजते ॥६५२२॥ एक्केणं वणिएणं णिही उक्वणियो, तं अग्णेहिं गाउं रण्णो णिवेइयं, वणियो दंडियो णिही य से हडो। एवं मरुएण वि णिही लद्धो । रपणो णिवेइयो । रण्णा पुच्छियो । तेण सव्वं कहियं । मरुप्रो पुज्जो त्ति काउं सो से णिही दक्खिणा दिण्णा । "इय" त्ति - एवं जो कज्जे जयगाकारी तस्स सब्द मरुगस्सेव मुञ्चति । जो य कज्जे अजयडाकारी, जे य प्रकज्जे (जयणाकारी य प्रजयणाकारो) वा एतेसु वारपत्तेसु वणिगस्सेव पच्छित्तं दिज्जति । णवरं - कज्जे प्रजयणाकारिस्स लहुतरं दिज्जति ॥६५२२॥ __ अहवा - जं हिट्ठा भणियं जहा पायरियस्स सव्वं मोत्तन्वं तं कीस पायरियो मुच्चति ? कोस वा सेसा वाहिज्जति ? एत्थ वा गिहिदिटुनो। जतो इमं भण्णइ - मरुगसमाणो उ गुरू, पूइज्जति मुच्चते य से सव्वं । साहू वणिो व जहा, वाहिज्जति सव्वपच्छित्तं ॥६५२३।। उवसंघारो प्रायरिएण कायब्वो पूर्ववत् । पायरियस्स गच्छोवग्गहं करेंतस्स सव्वं पच्छित्तं फिट्टइ, सेसं कंठं ॥६५२३।। पुनरप्याह चोदकः - जं तुम्भे सुत्तखण्ड पण्णवेह इमं- "तेण परं पलिउचिए वा अपलिउचिए या ते चेव छम्मासा", तं किं एस सव्वस्सेव णियमो मह पुरिसविभागेण तं भाइ। प्राचार्याह सुबहूहि वि मासेहिं, 'छण्हं मासाण परं न दायव्वं । अविकोक्तिस्स एवं, विकोविए अण्णहा होति ॥६५२४॥ तवारिहेहिं बहूहि मासेहिं छम्भासाण परं न दिजति, सव्वस्सेव एस णियमो, एत्थ कारणं जम्हा अम्हं वद्धमाणसामिणो एवं चेव एरं पमाणं ठवितं, छम्मासपरतो बहुसु वि मासेसु प्रावणेसु सव्वे मासा ठवणारोवणप्पभारेण सफला काउं अविकोग्धिस्स एवं दिज्जति । जो पुण विक्कोवितो तस्स "अण्णह" त्ति विणा ठवधारोवणाए छम्मासा वेव दिज्जति, सेसं अतिरितं सव्वं छडिजति । चोदकाह - "जति भगवया तवारिहे उक्कोसं छम्मासा दिट्ठा तो छम्मासातिरित्तमाससेवीण छेदादि कि न दिजति" ? प्राचार्याह - "सुबहूहि" गाहा - जो अगीयत्यो अपरिणामतो प्रतिपरिणामतो वा छेदस्स वा अणरिहो छेदादि वा जो ण सद्दहति एतेसि छम्मासो वरिसबहूहि वि मासेहिं प्रावणाण छम्मासा चेव ठवणारोवणप्पगारेण दिज्जति । 'प्रवि' पदत्थसंभावणे. एते अविकोविता जति वि छेदमूलातिपत्ता तहा वि छेदो मूलं वाण दिज्जति, तवो वेव दिज्जति । अहवा - अवि पदत्थसंभावणे, जति पुण प्रविकोवितो वि पाउट्टियाए पंचिदियं घातेति दप्पेग वा भेहणं सेवति, तो से वेदो वा मूलं वा दिज्जति । जे पुण एगिदियादिविराहणे अजयणसेवाए वा निक्कारणसेवाए १ गा०६५२० । Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - १४ वा श्रभवख सेवाए वा छेदमूला पत्ता ते प्रविकोवियस्स ण दिज्जंति, तेसु छम्मासा चैव दिज्जति । जो पुण विकोवितो तस्स " अष्णह" त्ति छम्मासोवरि बहुसु मासेमु वा श्रावण्णस्स उग्घातियं । वितियवाराए अणुग्धातियं दिज्जति, छेदो ण दिज्जति । ततियवाराए छेदो वि दिज्जति मूलं ण दिज्जति ॥ ६५२४।। ३४६ को पुरिस पुणविकोवितो ग्रविकोवितो वा ? भण्णति - विकोवितो खलु, कयपच्छित्तो सिया अगीओ वि । धम्मासयपडवणा, एतस्स सेसाण पक्खवो ||६५२५|| पुव्वद्धं कंठं । जो वा भणिश्रो- "अज्जो ! जइ भुज्जो भुजो सेविहिसि तो ते च्छेदं मूलं वा दाहामो", एसो वि विकोविदा भण्णति, एसो वि विकोविदववहारेण ववहारियव्वो । एतेसि चेव विवरीता जो य पढमताए पच्छित्तं पडिवज्जते - एते अविकोविद्या भण्ांति । एत्थ जो विकोवितो सो जति छसु मासेसु पट्ठवितेसु अंतरा जति वि मासियादि पडिसेवति तं तरस पुत्रठविय छम्मासरस जे सेसा मासा दिशा वा अच्छति ताण मज्भे पक्खेवो अशुग्गहरू सिणेण णिरणुग्गहक सिणेण वा कज्जति ।। ६५२५ ॥ एवं वक्खमाणं " " णिहीण दिट्ठतो" त्ति एयस्स इमं वा वक्खाणं हवा महानिहिम्मि, जो उवचारो स चैव थोवे वि । विणयादुपचारो पुण, छम्मासे तहेब मासे वि ||६५२६ || ग्रहवेत्ययं विकल्पे, महाणिहि उक्खममाणे जारिसो उवयारो कीरइ तारिसी थेवे वि मिहिम्मि, एवं प्रवराहालोयणाए जारियो छम्मासावराहालोयगाए निसिज्जादि विषयोक्तारो कीरइ तारिस मासिए वि श्रदिग्गहाम्रो दव्वादिसु तारिसी य पसत्थेसु चेष प्रयत्नो ॥६५२६॥ सीसो पुच्छति - "त्वं तवच्छेदमूला रुहं पच्छित्तं को उप्पल्जइ ? ।” गुरू भणइ मूलतिचारेहिंतो, पच्छित्तं होति उत्तरेहिं वा । तम्हा खलु मूलगुणे, नऽइक्कमे उत्तरगुणे वा || ६५२७|| पाणवहादीहि वा उत्तरगुणेहिं विराहिएहि एयं पच्छित्तं भवइ तम् मूलगुणा ण विराहेयत्वा उत्तरगुणा वा ॥ ६५२७।। चोदगो भणइ - " वा " सहोवादाणतो इमा प्रत्यावत्ती उवलक्खिज्जति मूलव्वयातिचारा, जयसुद्धा चरणसगा होंति । उत्तरगुणातिचारा, जिणसासणे किं पडिक्कुट्ठा ||६५२८ ।। जति मूलगुणातियारा चेव चरणभ्रं सका भवंति तो साहूणं उत्तरगुणातियारा चरण वराहा होता साहूणं जिणसासणे किं पडिसिद्धा ? तेसि पडिसेवो णिरत्यगो पावति ॥ ६९२८ ॥ ग्रह इमं होज्ज - उत्तरगुणातिचारा, जयसुद्धा चरणभंसगा होंति । मूलव्वया तिचारा, जिणसासणे किं पडिक्कट्ठा १ ||६५२६ ॥ १ गा० ६५१८ । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५२५- ६५३३ ] विशतितम उद्देशकः ग्रह तुम्भे भणह उत्तरगुणाइयारा चरण सका होंति तो मूलगुणाइयारा साधूणं मा पडिसिज्यंतु अत्रि राहणत्वाच्च, पडिसेविज्जंतु, ण दोसो ।।६५२६ ।। प्रायरियो भइ मूलगुण उत्तरगुणा, जम्हा भंसंति चरणसेढीओ । तम्हा जिणेहि दोनिवि, पडिसिद्धा सव्वसाहूणं ।। ६५३० || - मूलुत्तरगुणा जम्हा दो वि पडिसेविज्जमाणा चरणसेढीओ भ्रंशंति, तेण कारणेण दोषह वि अतिचरणं जिहिं पडिसिद्धं । जं पुण "वाकारश्र" प्रत्थावति घोसेह, तत्थ वाकारो इमं दरिसेइ - मूलगुणा वि पडिसेविज्जमाणा चरणाश्रो भंसंति, उत्तरगुणा वि पडिसेविज्जमाणा चरणाम्रो भसंति, दो वि वा जुगवं सेवमाणा चरणाश्रो भसंति । ग्रहवा - वागारो इमं प्रत्यं दरिसेइ - मूलगुणेहि पडिसेविज्जमाणेहि मूलगुणा ताव हता चैत्र उत्तरगुणाविहम्मत, उत्तरगुणेहिं पडिसेविज्जतेहि उत्तरगुणा ताव पडिसेविते चैव ह्ता, मूलगुणा वि हता लब्भति ||६५३०॥ कहं ?, उच्यते इमेण दिट्ठतसामत्येण गघातो हणे मूलं, मूलघातोय अग्गगं । छक्कायसंजमो जाव, तात्र ऽणुसज्जणा दोहं ॥ ६५३१॥ जहा तालदुमस्स प्रसूतीए हताए मूलो हतो चेव, मूले वि हते अग्गसूती हता, एवं मूलत्तरगुणेसु वि उवसंहारो । एत्थ चोदगाह - “जति मूलुत्तरगुणातो प्रण्णोष्ण विणासो तो णत्थि को य पवयणे मूलुत्तरगुणधारी । कम्हा ? जम्हा णत्थि कोति सो संजतो जो मृलुत्त रगुणाण श्रण्णयर णं पडिसेवति, अण्णयर पडिमेवणाए य दोह वि मूलुत्तराण प्रभावो, दुण्ह वि प्रभावे सामादियादिसंजमस्स प्रभावो, संजमस्स प्रभावे पंचन्हं नियंठाण अभावो, एवं ते सव्वं चारितातो भंसो लब्भति, अचरितं वा तित्थं भवति सुष्णं वा पत्रयणमिति ।। ६५३१ ।। प्राचार्याह- - "छक्काय" पच्छद्धं एयस्स इमा वक्खा - जा संजमता 'जीवेसु ताव मूलगुणउत्तरगुणा य । इत्तरिय छेद संजम नियंठ बकुसा य पडिसेवी ||६५३२ || ३४७ "भूते" - जाव छसु जीवणि कायेषु संजमता लब्भति ताव “दोन्ह" त्ति मूलुत्तरगुणाणं प्रणुसज्जा लब्भति, ताव इत्तरसामाइयसंजमस्स छेदोवद्वावणियस्स य श्रणुसज्जणा लब्भति । जाव य दो संजना लब्भंति ताव बउसनियंठो पडिसेवणाणियंठो य अगुसज्जति । तम्हा णो सुष्णं पवयणं, ण वा प्रचरितो, ण वा मूलुत्तरपडिसेवाए सज्जं चारिताप्रो भंसो भवति ।। ६५३२ ।। मूलुत्तरपडिसेवाए चरितब्भं से इमो विसेसो मूलगुण दtयसगडे, उत्तरगुण मंडवे सरिसवायी । छक्का रक्खणडा, दोसु वि सुद्धे चरणसुद्धी ||६५३३॥ १ भूतेसु ( चु० ) । Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र -१४ मूलगुणे दो दिता - दतितो सगडं चं, उत्तरगुणा वि एतेसु दसेयव्वा । उत्तरगुणेसु मंडतो, एत्थ व मूलगुणा दंसेयव्वा । तत्थ दतिते उदगभरिते जइ पंचमहद्दारा जुगवं मुळेचंति तो तक्खणा रिक्को दतितो भवति । यह पंचमहद्दाराण अण्णयरदारं एक्कं मुंचति तो कमेण रिक्को भवति । तस्सेव दतितस्स जे अण्णे सुहुमछिद्दा तेसु गलमाणेसु चिरकालेण रिक्को भवति । एवं महत्वए वि उवसंहारेयव्वं । भगति य गुरवो एगजयभगे सर्वव्रतभंगो भवति, एस णिच्छयतो, ववहारतो पुण तमेवेक्कं भग्गं, एगभंगेण कमेण चरितं गलड | ૩૪૬ प्रणे भणति - दप्पतो चउत्था सेवणे सव्वचरितभंगो, सेसेसु पुण श्रभिक्खा सेवाए महल्लऽतियारे वा भंगो भवति । सगडस्स पंच मूलंगा - दो चक्का, दो उद्धी, ग्रक्खो य । तेहि अविणद्वेहिं उत्तरंगेहि या वज्जकीलकलोहपट्टादीहिं य समग्गं सगडं भारवहणखमं भवति पलोट्टए य । ग्रह तेसि मूलगाणं एक्कं पि भज्जति तो न भारखमं भवति ण पलोट्टए य । सेसेहि उत्तरंगेहि केहि चि विणा सगड भारकखमं पलोदृतिय । बहूहिं पुण उत्तरंगेहिं वि विसंघातितं ण तहा भारक्खमं पलोट्टति य । एवं चरणेवि मूलुत्तरगुणजुलो साधू चरणभरं उव्वहति, सब्वो उवणम्रो कायश्वो । उत्तरगुणविराहणाए पुण चिरकालेण चारितं भजति । कथं ?, उच्यते - मंडवदिट्ठतेणं जहा एरंडमंडवो, तत्थ एगदुगादिसरिसवपक्खेवेण बहूहिं पक्खित्तेहिं मंडवभंगो न भवति, ग्रह तत्थ महल्लसिलापक्खेवो कज्जति तो तक्खणा भज्जति, एवं चारितमंडवो बहूहिं उत्तरगुणेहि कालओ य चिरेण भजति, मूलगुणातिया रसिलाहि पुण सज्जं चैव भजति, प्रतिगहणाओ सिगय-सालि तंदुलाइ | जम्हा एवं मूलगुणपडिसेवाए खिप्पं, उत्तरगुणपडिसेवाए य चिरेण चारितभंगो भवति, तम्हा मूलुत्तरगुणा नो अइक्कमेजा। कम्हा ?, उच्यते - "छक्काय रखखणट्ठा", छक्कायरवखणे "दो वि" ति मूलुत्तरगुणा सुद्धा भवति, तेसु य सुद्धसु नियमा चरितसुद्धी, चरित्तसुद्धीप्रो य प्रभिलसिताराहणा भवति ।। ६५३३ ।। - शिष्याह - "पाणवहादिया पंच मूलगुणा ते णजंते, उत्तरगुणा न याणामो । ते के केवतिया वा" ? तो भण्णति - पिंडस्स जा विसुद्धी, समिती भावणा तवो दुविहो । पडिमा अभिग्गहा विय, उत्तरगुण मो वियाणाहि ।। ६५३४ ।। एसि कमेण इमा संखा - तिग बाताला अट्ठय, पणुवीसा बार बारस च्चेव । छण्णउदी दव्वादी, अभिग्गहा उत्तरगुणा उ ॥६५३५॥ पिटविसोही तिविहा उगमी उप्पादणा एसणा य । तत्थुग्गमो सोलसविहो, उप्पादणा सोलसविहा, एसणा दसविहा, एते बायालीसं । इरियादियाओ पंच, मणःतियाओ तिणि, एयातो भट्ट समिती | महत्वयभावणा पणवीसं । तत्रो दुविहो - प्रभिंतरो बाहिरो य एक्केक्को छव्त्रिहो य एस दुवालसविहो । भिक्खुप डमाग्री दुवालस, एते सव्वे णवणउति भेदा । श्रह् इरियादियाश्रो पंच समितीश्रो कज्जति तो उई भेदा भवति । अभिग्गहा संखेको चउव्विहा - दव्वखेत्तकालभावभिण्णा ग्रहवाएक्कं चैत्र प्रभिग्गहं दव्वखेत्त कालभावविसिद्धं गेण्ड्इ, अभिग्गहा य परिमाणश्रो प्रणियतत्ति तेण ण एतेसु Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५३४-६५३६] विंशतितम उद्देशक: ३४६ पक्खित्ता, ण वा परिमाणमभिहितं ॥६५३५॥ एवं संखेवतो भणिता उत्तरगुणा तेऽतिपसंगतो भणियं । इदाणि पगतं भण्णति - जं ति हेट्ठा एगुणवोसाय उद्देसएसु पच्छित्तं वण्णियं तस्सिमे पुरिसेसु ग्रावत्तिविसेसा - जिग्गयवट्टता या, संचड़या खलु तहा असंचइता । एक्केक्का ते दुविहा, उग्घात सहा अणुग्धाता ॥६५३६।। जे ते पायच्छित्तं वहंत गा ते दुविहा - "णिग्गत: वट्टमाणा य ।' गिगया णाम जे तवं वोलीणा छेदादिपता, वटुंता गाम जे तवे चेव वद॒ति । तत्थ जे वट्टता ते पुणो दुविहा - "संचतिता प्रसंचइया य।" संचतिता णाम जे छह मासाणं परेण पच्छितं पत्ता त सतमासादि जाव ग्रासीतं सतं मासाणं ति तेसि ठवणागेवण विशागेण दिवसा घेत्तुं छम्मासो शिपाए ता दिज्जति । प्रसंचइता णाम जे मास दुमास-तिमास-चउ-पंव-छम्मासिए वा वट्टति । एते संवइया प्रसंवइया पुगो एककेक्का दुविधा - उग्धाया अणुग्घाइया य । उग्घाय ति लहुगा अणुग्वाय त्ति गुरुगा ॥६५३६।। संचयासच इएसु उग्घाताणुग्घाए सु इमो पट्ठवणविही - मासाइ असंचइए, संचइए छहि उ होइ पट्ठवणा । तेरस पदऽसंचहिए, संचति एक्कारम पदाई ॥६५३७॥ तत्य प्रसंचतिते जो मासं प्रावणो तस्स मासेणं चेव पढवणा, एवं दुमासावण्णस्स दोमासिया पट्टवणा, एवं जाव छम्मासावण्यस्स छम्मामिता पट्ठवणा । जो पुण संचइयानण्णो तस्स णियमा छहिं चेव मासएहि पट्टवणा । पट्टवणः णाम दाणं । तं दाणमसंचयसं वएसु जहासंखं तेरसपद एक्कारसपदं च ।।६५३७॥ कहं तेरसपदा एकारस वा?, उच्यते - तवतिगं छेदनिगं, मूलतिगं अणवट्ठाणतिगं च । चरिमं च एगसरयं, पहमं तवज्जियं वितियं ॥६५३८।। प्रसंचए तेरसं पदा इमे - प्रसंचए उग्घायमाममाणस्स पढमं मासी दिजति, बितियवारे उग्घायचउम सो दिजति, तइयवारे उपाय छगसतवं दिज्जइ । ते वि उम्पाततवे उग्धाता चेव दिज्जति ततो, पर तिन्नि वारा छेद, ततो परं तिणि वारा मूलं, ततो परं तिणि वारा प्रणबटुं, ततो परं "चरिम" ति - पारंचियं तं । "गसरग" ति एक वार दिज्जति । असंचए अणुग्घातिए वि एवं चेव तेरसपदा भाणियन्वा । “पढम" ति - असंचतितं एयं गय । “तवयज्जित वितियं" ति-पढमतवदुगं जं तेण वज्जिय । "बितिय" ति संवतियं एककारसपदियं भवति । अहवा-"पढमतववज्जितं बितिय" ति-पढमतवद्गं जं तेण यज्जियं “बितिय" ति संचतियं एक्कारमादिय भवति, ॥६५३८॥ ते एककारस पदा संचतिए, उग्धातिए इमे .. छेदतिगं मूलतिगं, अणवट्ठतिगं च चरिममेगं च । संवट्टितावराहे, एक्कारस पदा उ संचइए ॥६५३६।। Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-१४ "संवट्टिताव राहे" शि - जं ठवणारोवणप्पगारेण बहुमासे हितो दिणा घेत्तुं ते संवट्टिता एक्कं छम्मासियं गिप्फातियं तं संवट्टितावराहो भण्णति, तं एवकं दाउं ततो परं छेदादिगा पूर्ववत् । एवं संचइए उग्वातिए एक्कारसपदा, अणुग्घातिते वि एवं चेव एक्कारस पदा भवंति । ॥६५३६।। एयं पच्छित्तं जे वहति पुरिसा ते तिविहा इमे - आततर परतरे वा, आततरे अभिमुहे य निक्खित्ते । एक्केक्कमसंचतिए, संचति उग्घातऽणुग्धाते ॥६५४०॥ पढमो प्रायतरो परतरोधि । बितिम्रो प्राततरो णो परतरो। ततितो परतरो णो प्राततरो। अण्णे पुण अण्णतरतरं चउत्थं भणति, सो य भद्दबाहुकणिज्जुति प्रभिप्पाततो ण सम्मप्रो। कम्हा ? उच्यते - जम्हा सो जइ इच्छिमं करेति तो प्रायतरसमो ददुब्लो, मह वेयावच्चं करेति तो परतरसमो दट्ठम्वोति, ताहा णत्यि च उत्यो पुरिसभेदो । जे पुण च उत्थ पुरिसभेदं भणति ते पुरिसभेदविकप्पोवलंभाप्रो प्रत्यतो उण अणंतगमपज्जवत्तणतो अविरोहियत्तण प्रो य संभवंतीत्यर्थः । एतेसि इमं सरूवंपडमो सो तवबलिप्रो जाव छम्मासखमणं पि काउं समत्यो, त च तवं करेतो पायरिया इवेयावच्चं पि करेति, सलद्धितणतो, तेण एस उभयतरो। अायतरो पुण तववलियो वेयावच्चलद्धी । पत्थि । परतरस्स पच्छित्तकरणे सामत्थं णत्थि वेयावच्चकरणलद्धी से अस्थि । च उत्थस्स पुण अण्णत रस्त तववेयावच्चेसु दोसु वि सामत्थं प्रत्थि. णवरं--जगवं ण सक्केति काउ, तवं करेंतो वेयावच्चं ण सकेति, वेयावच्चं वा करेंतो तवं ण पति वं प्रणतरतरो क्रमात करोतीत्यर्थः । एत्थ जो उभयतरो प्रायतरो य एते दो वि गियमा पच्छितवहणाभिमुहा भवति, ततिए पुण जाव वेयावच्चं करेति ताध सपच्छिते गिक्खिस्ते कज्जति । एत्थ एकेके पुरिसे पच्छित्तं जं वहेति तं वा णिक्खितं । तं संच इयं वा पुगो एकोक्कं दुविहं - उग्धातं अणुग्घात ति । ।।६५४०।। एवं संखेवा परूवितं । इदाणिं एसेवत्थो सवित्यरो भण्णति । तत्थ जो पढमो उभयतरो त्ति तस्स पायरिया इमं दिलुतं कप्पंति - मास जुयल हरिसुप्पत्ती, सोइंदियमाइ इंदिया पंच । मासो दुगतिगमासो, चउमासो पंचनासो य ॥६५४१।। एक्को सेवगपुरिसो रायं उल्लग्गति, सो य राया तस्स वित्ति ण देति । अण्णया तेण राया कम्हि य कारणे परितोसियो, ततो परं तेण रण्णा तस्स तुट्ठणं पतिदिवस सुवण्णमासतो वित्ती कता, पहाणं च से वत्यजुयलं दिण्णं । एवं तस्स उभयतरस्स दुहा हरि सो जातो, हक्कं मे पायच्चित्तदाणेण प्रतियारमलिणो अप्पा सोहिरो, बितियं गुरूहि वेयावच्चे णिज्जुत्तो गिजरा मे भविस्वति ति । एवं सो पायच्छित्तं वहतो वेयावच्चं करेंतो अण्णं पि पायच्छित्तं प्रावज्जेज्ज । कह? उच्यते - सोइदियमादोणं इंदियाणं पं च ण्हं अण्णतरेण प्रातिगहणातो कोहादीहिं वाऽऽपज्जेज्ज, तं पुण थोवं पणगादी जाव वीसतिरातिदियं, बहु पारंचियारि, प्रौमत्थगपरिहाणीए जाव मा सियं, पत्थ थोवे बहुए वा प्रावणस्स भिणमासो दिज्जइ ।।६५४१॥ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५४०-६५४५ ] कम्हा ? उच्यते - व्याख्या विशतितम उद्देशक: तवलियो सो जम्हा, तेण व अप्पे विदिज्जए बहुगं । परतर पुण जम्हा, दिज्जति बहुए वि तो अप्पं ॥ ६५४२ ॥ जम्हा सो पायच्छित्ततवोकरणे धितिसंघयणबलितो "ते व" ति - तेण किल कारणेण पणगादी अप्पं श्रवणस्स बहुभिणमासां दिज्जति । जम्हा पुण सो आयरियादि परं वैयावच्चकरणेण भन्ने तारेइ तसेचयादि बहुपच्छित्तं श्रावणरस थोदं भिण्णमासो दिज्जति । थोवे बहुत वि श्रवण्णस्स भिण्णमासदाणे कारणं भणियं - इंदियादीहि पुणो पुणो ग्रावज्जनस्स श्रवत्तीकमो भण्णति - "२मासो दुगति" पच्छद्ध, मासगण भिष्णमासो सगलमासो य गहियो ।। ६५४२ ।। - एतेसि च भिण्णमासादियाण ग्रावतीदाणे इमं परिमाणं 'वीसारस लहु गुरु, भिण्णाणं मासियाण आवष्णो । सत्तारस पण्णा रस, लहुगुरुगा मासिया होंति ॥ ६५४३ ॥ उभयतो पट्टाविपच्छितं वहतो वैयावच्चं च करेंनो जति थोवं बहुं वा उग्धायमणुग्घायं वा श्रवणतो तस्स जति उघातितं पट्टवितं तो से उग्धातिते चेत्र भिण्णमासो दिज्जति जति पुणो वि तो से पुणोवि भिण्णमासो दिज्जति, एवं वीस वारा भिणमासो दायन्त्रो । जइ वीसा तो परेश प्रावज्जेज्जततो से थोवे बहुए वा लहुमःसो सत्तर वारा दिज्जति, एन्थ थोवं पणगादिभिण्णमासंतं, बहु पुण मासादिपरंचियं तं एवं दुमासातिसु वि, दिल्लठाणा थोवं उवरिमठाणा बहू भाणियन्त्रा । ।।६५४३॥ सत्तरसण्हं मासियाण उवरि जतो पुणो वि आवज्जति तो "दुगतिगमासो" ति अस्य 3 ३५१ उघातियमामाणं, सत्तरसेव य णमुतेणं । णेयव्व दोष्णि तिष्णि य, गुरुगा पुण होंति पण्णरस || ६५४४ || दोमासि पि उग्घातियं सत्तरसवारा ज्जिति, जइ पुणो वि श्रावज्जइ तो तेमासियं पिसत्तरवारा दिज्जति ||६५४४॥ सत्तचउक्का उग्घाइयाण पंचेव होंतऽणुग्धाया । पंच लहुगा उ पंच उ, गुरुगा पुण पंचगा तिष्णि ॥। ६५४५ ॥ सतरससु तेपासिएस इक्कतेमु जति पुणो आवज्जति तो चउलहुत्रं सतवारा दिज्जति, तो वि परं जइ पुणो वि श्रावज्जति तो पंचमासियं लहु पंववारा दिज्जति, जइ पुणो श्रावज्जइ तो छल्लहुयं एवक वारं दिज्जइ, एत्थ श्री पंचम सियठाणाश्रो उवरि छम्मायिं न परूविति, पंचमासितोवरि यतियं भणति तं न भवति, जम्हा एस पच्छित्तवड्ढी अनंतराणंतरठाणवड्डीए दिट्ठा तम्हा छम्मासिय त्वं । छम्मःसोवरि जइ पुणो श्रावज्जति तो तिणि वारा लहू चैव छेदो दायव्वो । एस अविसिट्ठी वा तिष्ण वारा छल्लहू छेदो । गा० ६५४१ । २ गा० ६५४५ चू० । ३ मा ६५४५ । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१४ अहवा - जं चेव तपतियं तं चेव छेदतियं नि मासभंतरं चउमासम्भंतरं छम्मासन्भतरं च, जम्हा एवं तम्हा भिण्णमासादिछम्मासं तेसु छिण्णेसु छेदतियं प्रतिक्कतं भवति, ततो यि जति परं प्रावति तो तिणि वारा मूलं दिजति । जइ पुणो वि प्रावज्जइ तो निणि वारा अगवटुं दिज्जति । जइ पुणो प्रावज्जइ तो एक बार पारंचियं पावति । एवं प्रसंचतियं उग्वातियं गतं । जइ पुण असंचतियं अणुग्घानिय पट्टवियं तो एयायो चेव अइक्कंतगाहाम्रो सिंघावलोयणेणं अणुसरियव्वा । इमेग अत्थेण सो चेव उभयतरगो पच्छित्तं वहतो वेयावच्चं करतो पावज्जइ अप्प बहुग्रं वा तो से गुरुयो भिण्णमासो दिज्जति । पुणो प्रावज्जतस्स सो प्रहारसवार। दिज्जति । ततो परं पण्णरसवारा दिज्जति । ततो परं पणरसवारा मासियं गुरुन दिज्जति । ततो परं पण्णरस्स चेव वारा दोमालियं गुरुप दिज्जति । ततो परं पण्णरसवारा तेगासियं गुरुग्रं दिज्जति । ततो वि जइ परं आवज्जइ तो चउमासियं गुरु पंचवारा दिज्जति । जइ पुणो वि पावज्जति पंचमासियं तिणिवारा दिज्जति । जइ पुणो वि प्रावनइ तो एकक वारं बग्गुरुप दिज्जति । जइ पुणो वि पावज्जइ तो छेदतिगं, ततो मूलतिगं, ततो अणतद्वतिग, ततो परं एक्कं पारंचियं, एवं प्रसंचतितं अणुग्घातितं ।।६५४५।। एत्थ असंचतिते उग्घायाणुग्धायावत्तिठाणलक्खणं इमं - उक्कोसाउ पयायो, ठाणे ठाणे दुवे परिहवेजा। एवं दुगपरिहाणी, नेगव्वा जाव तिण्णेव ॥६५४६॥ उक्कोसा उग्घातिया वीसं भिण्णमासपदा भवंति, तेहितो दो पडिया, जाया अद्वारस, ते उक्कोसा प्रणुग्घातियभिण्णमासा भवंति, एवं मास-दुभास-तिमास-च उम्मास-पचमासठाणेमु ।।६५४६।। एते प्रावत्तिठाणा भणिया - दोण्हं पुण एतेसि इमेण विहिणा बारस दम नव चेव तु, सत्तेव जहण्णगाइ ठाणाई । वीसऽट्ठारस सत्तर, पण्णरहाणी मुणेयव्वा ॥६५४७।। ये सेसा वीसा भिण्णमासाणं अढ झोसिय पच्छद्रेण जुतेहितो झोसियंति ते गहिया, पुल्व देण झोसियसेसा गहिया ॥६५४७॥ के पुण झोसिज्जति ? इमे अट्ठ? उ अवणेत्ता, सेसा दिज्जंति जाव तु तिमासो । जत्थऽटकावहारो, न होति तं झोसए सव्यं ॥६५४८॥ __वीसा भिण्णमासाणं अट्ट झोसिया सेसा बारस भवंति, एते वि बारस तहेव छम्मासा काउं दायव्व।। Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५४६-६५५२] विशतितम उद्देशकः भारसहं श्रट्ट भोसित्ता सेसा दस भवंति एते दस तत्र छम्मासा काउं दायव्वा । सत्तरसहं श्रट्ट भोसित्ता सेसा णव भवंति, ते वि तहेव छम्मासा काउं दायव्वा । पण्णरसहं श्रट्ट भोसित्ता सेसा सत्त भवंति ते वि तहेव छम्मासा काउं दायव्वा । वीसियादि अट्ठ भोसित्ता सेसा बारसादिया जहण्णठाणा माशियव्त्रा । जत्थ पुण घट्ट ण पूरेज जहा चउभासपंचम।सेसु तत्थ सव्वं चेत्र झोसिज्जति । प्रट्ठत्ति - अट्टमासिया मज्झिमा तवभूमी, एतीए अणुमाहकरणं ति प्रतो भागहारेण झोसणा कता, जे वारसादिया जहणठणा ते वि ठवणारोवणप्पगारेण छम्मा से काउं साणुमाहं णिरामहं वा प्रारोविज्जति ॥६५४८।। जतो भण्णति छहि दिवसेहि गतेहिं छण्हं मासाण होंति पक्खेवो । छहि चेव य सेसेहिं छण्हं मासाण पक्खेवो ॥। ६५४६ ।। एतीए पच्छद्धस्स इमो प्रत्थो - जे ते झोसियसेसा, छम्मासा तत्थं पट्टवित्ताणं ! छद्दिवणे छोढुं, छम्मासे सेसपक्खेवो ||६५५० ॥ ववहारे (भाग हारे) कते जे तज्झोसियसेसा बारसादिया तेसु वि ठवणारोवण पगारेण अधितं पडसाडेता जे णिष्फातिणा छम्मासा ते तत्थ पट्टवित्ताणंति "तत्थ" त्ति जे ते पुव्वपट्ठविता छम्मासा ते छह दिवसेहि ऊणा वूढा सेसा छद्दिणा प्रच्छति, तेसु चेव छमु दिवमेसु जे ते पच्छिमा छम्मासा तेसि पवस्व कज्जति । कि वृत्तं भवति ? तेहि चैव छहि दिवसेहि पन्छितेहि पच्छितं छम्मासितं खमण त्ति, एवं दुल्लंघित. संघयण त्ति - वसिऊणं पटुवित्ताणं सगल ग्रहकसिणं कतं भवति छहिं दिवसेहि गहिएहि ति ।। ६५५० ।। एवं तस्स पुग्वद्धस्स इमं वक्खाणं हवा छहि दिवसेहिं गतेहि जति सेवती तु छम्मासे । नत्थेव तेसिखेवो, छद्दिणसेसेसु वि तहेव ॥ ६५५१ ।। छम्म सियं पवित्तं तस्स छदिवसा वुढा, तेहि श्रणे छम्मासा श्रावणो ताहे पुव्वपट्ठविथछम्मासस्स पंचमासा चउवीसं च दिवसा झोसिज्जति तत्थ पच्छिमछम्मासा पक्विप्पति तं पिछद्दिवमु बहति एवं पि सगलाणुग्गहकसिणं भवति । ग्रह छसु दिवसेसु वढेसु श्रण्णं छम्मासियं वहति तो णिरणुग्गहं पच्छितं एवं छद्दिमा छच्च मासा भवंति । छद्दिणसेसेसु तहेव त्ति - घितिसंघयणबलियस्स गिरगुग्गहकसिणं मावेयव्वं । 1 ३५३ कहं ?, उच्यते - जाहे छद्दिवसूणा छम्मासा वूढा ताहे पष्णं छम्मासियं प्रावण्णा ते खद्दिणा भोसिता पच्छिम छम्मासितं पट्टवितं तं सव्वं वहति ।। ६५५१।। एवं बारस मासा, छदिवसूणा उ जेदुपट्ट्वणा । छविसगतेऽणुग्गह, णिरणुग्गह छागते खेवो || ६५५२ ।। एवं कालतो बारसमासा छहिं दिवसेहि ऊणा "जेट्ठ" त्ति उनकोसा पट्टवणा भवति, प्रतो परं तवारि उक्कोसतरा णत्थि एत्थ साणुग्गहणिरणुग्महेसु वा इमो पच्छद्धणियमो - जं ग्रादीए छहि दिवसेहि Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [सूत्र-१४ गएहि अण्णं छम्मासितं प्रारोविजति तं णियमा सव्वं साणुग्गहं । जं पुण प्रसाणे छहिं दिवसे हिं सेसेहिं ते छदिवसा झोसेत्ता प्रणं छम्मासियं पारोविज्जति तं पि गियमा गिरणग्गहकसिणं । एवं अणुग्घातिए वि एवं ताव प्रसंचयिए वि, उग्घाताणुग्धाते (वि) एवं । णवरं-तस्स प्रादिमा तवा नत्थि, नियमा छम्मासियं भारोविज्जति, तं पि साणुग्गहणिरणुग्गहं पूर्ववत् ।।६५५२।। एत्थ साणुग्गहणिरणुग्गहदाणे चोदगाह - चोदेति रागदोसे, दुब्बलबलिए य जाणए चक्खू । भिण्णे खंधग्गिम्भि य, मासचउम्मा मेए चेडे ॥६५५३॥ चोदगो भणति - "भगवं ! तुब्भे रागद्दोसिया। कहं ?, उच्यते - जस्स छद्दिवसूणा छम्मासा झोसेह तम्भि भे रागो जाणइ त्ति, जहा एस बलवं वेयावच्चं करेउ वेयावच्चवगारगहिया य साणुग्गहं पच्छित्तं देह । जस्स पुण पंचसु मासेसु चउवीसाए य दिणेसु बढेसु छद्दिणे झोसेत्ता तवोखीणस्स वि प्रणे छम्मासे प्रारोवेह, तत्ये वि "जाणए" त्ति जाणह, जहा एस प्रतीवतवज्झोसितदेहो पा सकेति वेयावच्चं काउं तेण से गिरणुग्गहं पच्छित्तं देह, एवं च करेंता तुन्भे चक्खुमेंट करेह, चवखु मेंटा णाम एवक प्रच्छिं उम्मिल्लेति, बितियं णिमिल्लेति । एवं एवकं साणग्गहकरणेणं जीवावेह, बितियं णिरणुग्गह करणेणं मारेह । किं च एक्कस्स किलाम पेक्खह, बितियस ण पेक्खह" ति । __ प्राचार्याह - "भिन्न" ति पच्छदं, ण वय रागहोसिया, सुणेहि अग्गिदिटुंत, - दोदारयदिटुंतं च। __ "भिण्णे'त्ति जहा अग्गी अहरुत्तरेहि पाडित्तमेत्तो जति तम्मि महल्लकट्टपक्खेवो कज्जति तो सो ते डहिउं अपच्चलो सिग्घं विद्दाति - उज्झाति त्ति वुत्तं भवति । अह सो सहिणकट्ठछगणमादीहिं चुण्णेहिं थोव थोवेहि संधुक्किज्जति तो सो ण विद्दाति, पच्छा जाहे खंधग्गी विपुलो जातो ताहे विउलं पि इंधणं डहिउं समत्थो भवति । एवं तस्स छसु मासेसु पट्टवियमेत्तेसु छसु दिवसेसु गएसु य जइ अण्णं छम्मासियं दिज्जति सो वि अहणुभिण्णअग्गिव्व विद्दाइ - विसादं वा गच्छति, जस्स पुण छद्दिणसेसे पट्टविज्जति सो तवलद्धिबलाभिहाणो क्तकरणत्तणतो ण विद्दाति, पुणो वि वि उलतववहणसमत्थो भवति, खंधग्गीवत् । अहवा - इमो दुचेडदिटुंतो। मासजातचेडो चउमासिनो य। तस्स जति मासजातचेडस्स जावतियो चउमासजात. चे डस्स पीहगादि अाहारो तत्तियो दिजति तो सो अतिमेत्ताहारेण अजीतेण विणस्सति । च उमासजातचेडस्स वि जति मासजातचेडस्स जो आहारो तावत्तियमेत्तो दिजति तो सो वि अप्पाहारतणतो अप्पाणं ण संधारेति, खिजति वा । एवं जस्स प्रादीए साणुग्गह कतं सो मासितचेडतुल्लो असमत्थो बहुपच्छित्तं करेउं । जस्स अवसाणे गिरणुरहिं सो वि च उमामियचेडतुल्लो पछिसकरणसहो अप्पेण ण सुज्झति । एवं प्रम्ह देंताण रागो दोसो वा ण भवति ॥६.५३।। गतो आयपरतरो। इदाणि 'प्रणतरनरो, सो एयस्सेव अणसरिसोति काउं उक्कमेण भण्णति - तस्स इम सरूवं। १गा०६५४० चू० । Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५५३-६५५६ ] विशतितम उद्देशकः जहा दो कावडी एगखंधेण वोढुं ण सक्केति तहा सो वि पच्छितं वैयावच्चं च काउं ण तरति सो य संचतियं प्रसंवतियं वा भावष्णो गुरूण य वेधावच्चकरो णत्थि ताहे से तं प्रावण्णं णिक्खितं कज्जति, गुरूणं तात्र वेयावच्चं करेंतो जं भावज्जति तं सेसं सव्वं झोसिज्जति, वेयावच्चे समते तं णिक्खित्तं वाज्जिति तं वहतस्स जमावज्जति तं इमेण विहिणा दिज्जति - सत्त चउक्का उग्वाड्याण पंचेच होतऽणुग्वाता । पंच लहुगा उ पंच उ, गुरुगा पुण पंचगा तिष्णि ||६५५४ ।। सत्तारस पण्णारस, निक्खेवो होति मासियाणं पि । वीसङ्कारस भिण्णे, तेण परं णिक्खिवणया उ || ६५५५ ।। एसि त्यो विचित्तवक्खाणसंभवातो बितियगाहापच्छाणुपुथ्वीम्रो पुव्वं भणियम्वो, जति से असंच उग्घांतियं पट्टवियं तो पुत्रविहिणा लहू वीरां भिण्मासा, ततो सत्तरस मासा लहु एवं दुमासतिमास लहू वि, ताहे बितियगाहत्थो सत्त चउलहू, ततो पंच मांसलहू, तिष्णि ततो छेदमुलणव दृतिगो पारंचियं चक्कं । ग्रह से अणुग्धातं पट्टवितं ताहे द्वारस गुरुभिण्णमासा पण्णरस मासगुरु एवं दुगतिगमासा वि, ततो पंच चउगुरु, ततो पंच मासगा तिणि गुरुगा, ततो तिणि छेदादी । एवं संचइए वि उग्धायाग्याए, णवरं प्रादिमतत्रा ण दिज्जति । एत्थ वि श्रट्टगापहारादि पूर्ववत् ।। ६५५५ ।। एक्के आयरिया एवं वक्खार्णेति । अण्णे पुण भांति - अण्णतरतरे जो प्रायतरो तस्सिमं - सत्त चउक्का० गाहा । व्याख्येया पूर्ववत्, परतो से छेदादी । ग्रण्णतरतरे जो परतरो तस्सिमं - सत्त रस पण्णारस० गाहा । थोत्रे बहुए वा श्रावण्णस्य सत्तरस तेमासिया "णिक्खेवो" ति पुग्वं दायव्वा, ततो दुमासिया सत्तरस, ततो मासिया सत्तरस, ततो भिण्णमासा लहू वीसं शिवित्रियच्वा इत्यर्थः । श्रतो "परं" ति छेदादिप्रणुग्घातिए वितिमासिया य पण्णरस भाणियव्वा श्रद्वा रस भिणमासा । श्रतो परं छेदादी ||६५५७।। एवं प्रणतरतरगतो ३५५ इदाणि प्रातरस्स वि पटुविधं ग्रसंचतियं संचतियं वा तं पि एक्केक्कं उग्घातमणुग्घातं वा तं वहतो जति थोवं बहुं वा इंदियादीहिं श्रावज्जति तो इमं दाणं - आततरमा दियाणं, मासा लहु गुरुग सत्त पंचेव । चउ तिग चाउम्मासा, तत्तो य चउव्विहो भेदो || ६५५६ || प्राततरी जस्स वेयावच्चकरणलद्धी णत्थि श्रादिसहातो परतरे य विही भणीहामि, तत्थ प्राततरे श्रावणे सत्तवारा मासिय लहुयं दिजति, जइ पुणो ग्रावजति तो चत्तारि वारा चरलहुयं दिजति, जइ पुगो वि श्रावज्जइ तो छेदतिय एवं मूलतियं प्रणवट्ठतितं, एक्कं पारंचियं । एवं प्रणुग्धातिए वि, णवरं - पंचवारा मासितं गुरुग्रं दिज्जति, तिणि वारा चउगुरुग्रं दिज्जति, "ततोय चउब्विहो भेदो" नि छेदमूल प्रवट्ठ पारंचियं एत्थ छेदमूलमवट्टा तिगतिगा दट्टन्त्रा, गतो आयतरो ॥ ६५५६ ।। १ गा० ६५४० । Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ सभाष्य-पूणिके निशीथसूत्र सूत्र-१४ इदाणि 'परतरो, सो य जस्स वेयाच्चकरणलद्धी प्रत्थि सो य सम्बहा पच्छित्तस्स प्रतरो ण भवति, जम्हा गिग्वितितादिता तरनि काउं तम्हा एत्थ वि एगखंघकावोडीदिटुंतो भाणियव्वो, जंचं प्रावण्यो स णिक्खितं कज्जति, जाव वेयावच्च करेति, वेयावच्चं करतो जं मावज्जति तं से सय्वं झोसिज्जति, वेयावच्चे समत्ते तं से पुञ्च णिक्खित्तं पद्धविज्जति । तं च वहंतस्स जइ इंदियादीहि पावज्जति । तत्थ दाणे इमातो दो गाहामो परोप्परभाववक्खाणे भावद्वियानो एगत्थानो - सत्त य मासा उग्धाइयाण छ च्चेव होतऽणुग्घाया । पंचेव य चतुलहुगा, चतुगुरुगा होति चत्तारि ॥६५५७।। श्रावण्णो इंदिएहि, परतरए झोसणा ततो परेणं । मासा सत्त य छच्च य, पणग चउक्कं चउ चउम्कं ॥६५५८।। तस्स परतरस्स संचइयासंचइयाए वा उग्घाताण घातीए वा पट्टविते पुणो योवबहुए दा प्रावणस्स सत्त वारा मासियं लहुअं दिज्जति, पुवगमेणं पंचवारा चउलहुन दिज्जति, ततो छेदतियं मूलतियं प्रणवहुतियं एक पारंचियं । अह अणुग्धातियं पट्टविय तो उग्घातियं अणुग्धातियं वा येवं बहुमं वा प्रावणस्स छन्वारा मासियं गुरुग्रं दिज्जति, चत्तारि वारा चउगुरु दिज्जति, ततो छेदतियं मूलतियं एक्क पारंचियं ॥६५५८॥ "झोसणा ततो परेणं" ति अस्य व्याख्या - तं चेव पुव्वभणियं, परतरए णस्थि एगखंधादी। . दो जोए अचएते, वेयावच्चट्ठिया झोसो ॥६५५६॥ "पुश्वभणिय" त्ति - जं अण्णतरतरे भणिय तं चेव परतरे. वि भाणियव्वं, तं च उच्यते - कावोडिदिटुंतेण, दो जोए ण सक्कते कापायच्छित्तं वेयावच्च च, ततो से वेयावच्चकरणारंभका नतो परेण जाव वेयावच्चं करेति ताव जं प्रावज्जति तं से सव्वं परोपकारे त्ति काउं झोसिज्जइ, एवं एस तवो भागतो, ने जत्थ भिण्णमासादिया मासाइ वा तवट्ठाणा गणिया ते चेव छेदे पत्ते छेदा कायवा ततो वारा, ततो परं मूलं ॥३५५६॥ केरिसस्स दिज्जति ? अतो भण्णइ - तवतीयमसद्दहए, तवचलिए चेव होति परियाए । दुब्बल अपरीणामे, अत्थिरं अबहुस्सुए मूलं ॥६५६०॥ . मासादि जाव छम्मासा तवं जो वोलिणो - तवेग णो सुज्झति ति वृत्तं भवइ, प्रणवलुपारंचियतवाणि वा प्रतिच्छितो सम.नेत्यर्थः । देशच्छेदं पि अतिच्छितो - तेण वि | सुज्झति ति तस्स वि मूलं, तवेण पावं सुन्झति ति । तवं जो ण सद्दहति, ग्रहवा - अरादहमाणे ति मिच्छादिट्टी वनेषु ठवितो पच्छा सम्मतं पडिवनस्स सम्म प्राउट्टस्स मूलं, जहा गोविंदवायगस्स। तववलितो जो तवेण ण किलिस्सड, तवं काहामि ति पडिसेवति तस्स मूलं । छम्मासिएण वा तवे दिणो भणाति - ममत्थो हं प्राणं पि मे देहि तस्स वि मूलं । छेदे वा दिज्जमा जस्स य परियागो ण पूरेति इत्यर्थः । अहवा- छेद परियागा समं अटति । ग्रहवा भणतिरातिगियो हं बहुणा विच्छितेण परियागो मे अस्थि दोहो तस्स वि परियागगटिव यस्म मूलं । दुबलो घिति सघयणेहिं तवं च काउमसमत्यो वहं च प्रावणो तस्स वि मूलं । अपरिणामतो भणाति - जो सो तुम्भेहि Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६१५५०-६५६२] विशतितम उद्देशकः जयो दिण्णो एतेण णाह सुझो, तस्स वि मूलं । प्रथिरो जो पितिदुम्बलत्तणनो पुणो पुणो पडिसेवति, प्रबहुसुप्रो अगोयत्यो सो य प्रणवदुपारंचियं वा प्रावणो सम्मु एसु मूसं दिज्जति ॥६५६०॥ पुणरवि पायरियो विसेसं दरिसि उकामो जं हेट्ठा भणियं तं पुणो चोदेति । इमं - जह मण्णे एगमासियं, सेविऊण एगेण सो उ णिग्गच्छे । तह मण्णे एगमासियं, सेविऊण णिग्गच्छते दोहि ॥६५६१॥ कंठा आयरिओ भणति - ग्राम, एस मासियं पडुच्च प्रादिल्लगमो गहितो, एतेण सेसा वि गमा सूचिता। जहा मासं सेवित्ता मासे "गिगच्छई" त्ति - सुज्झति भणियं भवति, तहा मासं सेवित्ता दोहिं मामेहि णिग्गच्छति त्ति । एवं मासं सेवित्ता तिहिं गिग्गच्छद, मासं सेविता चउहि, मासं सेवित्ता पंचहि णिग्गच्छद, मासं सेवित्ता देण णिग्गच्छा, मासं वित्ता मूलेण णिगछा, मासं सेवित्ता प्रणवद्वेण णिग्गच्छइ. मासं सेवित्ता पारंचिएण जिग्गच्छइ । दो-मासियं सेवित्ता दोमासिएण णिग्गच्छे, दोयासियं सेवित्ता जाव चरिमेण णिग्गच्छे । तेमासितं सेवित्ता जाव चरमेण णिग्गच्छे । एवं चउमासियाए वि सट्ठाणपरट्ठाणेहि भाभियव्वं जाव चरिमेश णिग्गच्छे । एवं पंचमासिए वि गाव परिमेण जिग्गच्छे । एवं छम्मासियाएवि जाव चरिमेण वि गिगच्छे । छेदे वि जाव चरमेण णिग्गच्छे । मूले वि जाव परिमेण णिग्गच्छे । प्रणवढें सेवित्ता प्रणवद्वेग णिग्गच्छे, प्रणवटुं से वित्ता चरिमेण णिग्गच्छे ।।६५६ ।। एवं विसमारोवणं दछ सोसो भणति - मासे सेविए जं मासं चेव देह तं मावत्ति समं दार्थ । जं पुण मासे सेविए दुमासो वि छेदादि देह, तं कहं को वात्र हेतुः ? माचार्याह - . जिण णिल्लेवण कुडए, मासे अपलिकुंचमाणे सट्ठाणं । मासेहि विसुज्झिहिती, तो देति गुरूवएसेण ॥६५६२।। जिया केवलिणो, जिणग्गहणा प्रोही मणपज्जव चोद्दस दस नव पुवी य गहिता, एते संकिलेसविसोहीमो जाणिऊण प्रवराहणिप्फण्णं मासियं जाव गप्फण्णं वा दुमासादि बेण जेण विसुज्झति तं देति, तत्य मासाठहमाझवसाठिएण मासे पडिसेवि अपलिउंचियं पालोएमाणस्स सट्टापं ति मासं नेव देंति, प्रहवा - पालोएति पलिउंचियं दुमासादियाण वा जे अरिहा मज्भवसाणठाणा तस्थ य ठिएप मासोपडिसेवितो तो एस दुमासादिमातेहि विसुज्झिहिइ त्ति ताहे जिगा सुतववहारिणो वा गुरुवदेसेण प्रधिगं देति पच्छित्तं । तथिमो दिटुंतो - "णिल्लेवण कुडए" त्ति, णिल्लेवगो ति रयगो, सो जहा - जलकुडेहि वत्थं धोवति तहा दिद्रुतो कजति । अहवा - "लेवो" त्ति वत्थमलो, "कुडो" ति घडो जलभरितो, एत्थ चउभंगो इमेण विहिणा कायव्वो-एक्कं वत्थं एक्केण जलकुडेण पिल्लेवं कज्जति, एवं चउभंगो ॥६५६२।। Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३५८ समाष्य-चूणिके निशीघसूत्रे [ मूत्र-१४ तत्थ पढमबितियभंगेसु वक्खाणं इमं - एक्कुत्तरिया घडछक्कएण छेदाति होति णिग्गमणं । एतेहिं दोसवुड्डी, उप्पज्जति रागदोसेहिं ॥६५६३॥ “एगुत्तरिया घडछक्कएण" ति अस्य व्याख्या - अप्पमलो होति सुची, कोति पडो जलकुडेण एगेणं। मलपरिवड्डी य भवे, कुडपरिवडी य जाव छ तू ॥६५६४॥ कोइ अप्पमलो पडो पविट्ठो एगेण जलकुडेण घरे चेव धोवति, गतो पढ़मभंगो। इमो बितियभंगो "मलपरिवड्डीय" ति, जो ततो वि मलिणतरो कठिणमलो वा दो वि दोहिं जलकुडेहिं धोव्वति, एवं जहा जहा मलपरिवड्डी भवति तहा तहा एगुत्तरजलकुडपरिवुड्डी कज्जति, "जाव" अभिप्रेतार्थ, समेहिं जलकुडेहिं छहिं घडेहिं चेव धोव्वति ॥६५६४।। "छेदादि होति निग्गमण" त्ति अस्य व्याख्या - तेण परं सरितादी, गंतुं सोधेति बहुतरमलं तु । मलणाणत्तेण भवे, आयंचण-जत्त-णाणतं ॥६५६॥ जे ततो वि मलिणतरा, सरित त्ति णदी, ताए गंतु घोव्वति, पादिसद्दामो हद-कूव-तडागादिसु । नितिगादिपदेसु जहा जहा मलणाणतं तहा तहा "पायंचणजत्तणाणत्तं" ति - प्रायंचणं णाम गोमुत्तं पसुलेंड ऊसादि उसमादी तम्मि णाणत्तं बहुतरं पधानतरं च करेंति, बतो पयत्तो प्रयलो, तत्य वि अच्छोडपिट्टणादिसु प्रयत्नततरं करोतीत्यर्थः ।।६५६५॥ चरिमततियभंगेसु इमं वक्खाणं - बहुएहिं जलकुडेहि, बहूणि वत्थाणि काणि यि विसुज्झे । __अप्पमलाणि बहुणि वि, काणिति सुज्झति एगेणं ॥६५६६।। पुव्वद्धेण चरिममंगो, पच्छरेण च ततियमंगो, सेसं कंठं । इदाणि च उभंगे वत्थजलकुडदिद्रुतो जा णितो तस्स उवसंहारो भगति - जस्स मासियं येन तं पडिसेवेत्ता" जो मासेम विसुज्झतीति तस्स मासं चेव देति । अण्णस्स पुण मासियं पडिसेवतो एतेहिं रागदोसेहिं तिब्बतरेहि बहुतरा उप्पज्जति, "दोसवडि" त्ति-कम्मवड्डी, तविसुद्ध बहुतरं पच्छित्तं दु-ति-चउ-पंच-छम्मासियं वा देति । प्रणास्स मासिए त्ति - रागदोसझवसाणासेविए सरितादिसरिच्छेव बहुतरं छेदादि ॥६४६६॥ भगवंसे जहा से रागदोसवुद्धीतो पच्छिते बुडी दिट्ठा। किमेवं रागदोसहाणीतो पायच्छित्ते हाणी? इत्याह - जह मण्णे दसमं सेविऊण णिग्गच्छे तु दसमेणं । तह मण्णे दसमं सेविऊण एगेण णिग्गच्छे ॥६५६७|| १.गा० ६५४३ । Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यंगाचा ६५६३-६५७२] विशतितम उद्देशकः "दसमं" ति पारचियं तं सेवित्ता तेणेव "णिग्गच्छद्द" ति - विसुज्झतीत्यर्थः । तहा दसमं सेवित्ता व मेण णिभ्गच्छर, नवमं – प्रणवट्ठे ? आयरिश्र - "ग्रामं ति श्रणुमयत्ये भवति । अण्णे भांति - "एगेण णिग्गच्छे", "एगेणं" ति मासेणं । एत्थ श्रोवुड्डीए प्रणवत्या तिता सब्वेagar जाव पणगं णिव्वितियं वा ।।६५६७॥ अपरितुष्टमनाः शिष्यः पुनरप्याह - "बहुसुतं दिट्ठ बहुसु मासेसु पडिसेवितेसु प्रपलिउंचिय अलोएमाणस्स मासां चैव दिट्टो, जो बहूणि मासियाणि सेवित्ता सुत्तेणेव बहू मासा दिष्ण त्ति । तो पुच्छा इमा जह मण्णे बहुसो मासियाणि सेवित्तु एगेण णिग्गच्छे | तह मण्णे बहुसो मासियाइ सेवित्तु बहूहिं णिग्गच्छे ॥ ६५६८ || 1 प्रत्राप्याचार्येण ग्रामं इत्यनुमतार्थे वक्तव्यं, कि बहुणा रागदोसावक्खित्तो एक्केक्का वलिद्वाणे सव्वपच्छिता रोवणद्वाणा दट्ठव्वा ।। ६५६६ ॥ इहापि केचित् बहुससूत्रे प्रत्येकार्थे इमं गाथाद्वयं पठति प्राचार्याह - गुरिया घडछक्कएणं छेदादि होति णिग्गमणं । एएहि दोसवड़ी, उप्पअति रागदोसेहिं ॥ ६५६६ || जिणणिल्लेवणकुडए, मासे अपलिकंचमाणे सङ्काणं । मासेहि विसुज्झिहिती, तो देंति जिणोवएसेणं ॥ ६५७० ॥ इह एयासु च्छित्तडी भाणिऊण पूर्ववत् पुणो एतासु चेव हाणी भाणियव्वा इति । पुनरप्याह चोदक पत्तेयं पत्तेयं, पदे पदे माणिऊण अवराहे । तो केण कारणेणं, हीणन्भहिया व पट्टव्वणा || ६ ५७१ ।। - - EXE सुतपदे पत्तेयं प्रवराहे भणिऊणं पच्छित्तं च ततो कि पुणो प्रत्येणं थोए बहुयं, बहुए वा यच्छतं देह, सहा वा झोस करेह. एतीए होणम्भतिपपट्टवणाए को हेतु ? ।। ६५७१ ॥ मण परमोहि जिणं वा, चोइस दसपूर्व्विं च णवपुव्विं । थेरेव समासज्जा, उणऽब्भहिया व पट्टवणा ||६५७२|| ते परमोहिजिणा दिया पञ्चवखणा गिणो, पच्चक्खं रागदोसहाणी वुड्डी वा पेक्खति, कम्मबंधो यथ दव्य पडिसेवणाणुरूत्रो रागदोसाणुरूवो भवति श्रतो पच्चक्खणाणिणो रागदोसाणुरूवं होणमहियं वा पट्टवयंति - ददतीत्यर्थः । शिष्याह - " प्रत्यक्षज्ञानिनां युक्तमेतत् ये पुनः स्थविरास्ते कथं रागद्वेषवृद्धि पश्येयुः " । आचार्याह - हाणि ताव इमेण प्रागारभासितेगं पेरा जाणंति ।। ६५७२ ।। Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-णिके निशीवसूत्र [सूत्र १५-१६ हा दुटु कयं हा दुठ्ठ कारियं दुठ्ठ अणुमयं मे त्ति । अंतो अंतो डज्झति, पच्छात्तावेण वेवंतो ॥६५७३।। प्राणातिपातादि कृत्वा उत्तरं कालं अंत: पश्चात्तापकरणेन च दह्यते, तत् पश्चातापकरणे न - वेपते कंपतेत्यर्थः । पत्रोदाहरण गोव्यापादकवत् ॥६५७२।। वुड्ढिं पुण इमेहिं जाणंति - जिणपण्णत्ते भावे, असद्दहंतस्स पत्तियं तस्स । हरिसं वि व वेदंतो, तहा तहा वड्ढ़ते उवरिं । ६५७४॥ जिणेहि जीवादिका भावाः प्रकर्षण प्रतिभेदेन वा श्रोतृजने ज्ञापिता ये ते प्रतिज्ञापिता तेषुः अश्रद्धपान जहा जमालीवत् ! ण पत्तियं अपत्तिय तेसु जिणरणत्तेसुवि अधीनि कुर्वाणस्येत्यर्थः । सर्वथा वा अप्रतिपत्ति: अपत्तियं वा तं महानिधिलामहर्षमिव वेदतो, अहवा-हर्षागतमिव पापं कुरुतो तककारणहर्षतो वेपते च यथा । यथा स्वचित्तेन जनाभिस्तुतो वा हर्ष गच्छति तथा प्रकृतिस्थितिप्रदेशानुभावा उपहार करोति वर्षयतीत्यर्थः । अत्रोदाहरण सिंहव्यापादकवत् ॥६५७४।। ___इदाणि पंचमछ? सुत्ताणं इमो सम्बन्धो भणति - णिसीहस्स पच्छिमे उद्देसगे तिविहभेदा सुत्ता तंजहा - भावत्तिसुत्ता, मालोयणविधिसुक्ता, प्रारोवणा सुत्ता य। एएमि एक्केक्के भेदे दस दस सुत्ता, सम्वे तीसं सुत्ता, तत्थ प्रावत्तिसुत्ता जे दस तेसि चउरो सुत्तेणेव भणिता। इमे प्रत्थतो छ भाणियव्वा तं जहा -- सातिरेगसुत्तं १ बहुसो सातिरेगमुक्त २ सातिरेगसंजोगसुत्तं ३ बहुसो सातिरेगसंजोगसुतं ४ वमं सगलस्स सातिरेगस्स य संजोगे सुतं ५ दसमं बहसस्स बहुमसाइरेगस्म य संजोग सुत्तं ६ एवं एतेसु दससु प्रावत्ति सुत्तेसु भणिए सु तेणेव विहिणा दस मालोयणासुना भाणियन्वा, तेसु वि प्रादिमेसु भट्टसुत्तेसु प्रत्थतो मणिासु म गवमसुत्तं । तत्थ वि अत्यतो एग-दुग-तिगसंजोगेसु मणिएस इमं चउक्कसंजोगे अंतिल्ल व उकसंजोगसुतं - जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा - अपलिउंचिय आलोएमाणस्स चउम्मासियं वा, साइरेगंवा पंचमासियं वा, साइरेगं वा । पलिउंचिय आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगं वा, छम्मासियं वा, तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउचिए वा ते चेव छम्मासा।।सू०॥१५॥ इदाणि छटुं बहुसंसुत्तं च उच्चारियन्वं, तं च दसमेसु च उक्कसंजोगे अंतिल्लच उक्कसंजोगे सुतं इमेण विहिणा उच्चारियव्वं - जे भिक्खु बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुसो वि साइरेग चाउम्मासियं वा बहुसो वि पंचमासियं वा, बहुसो वि साइरेगपंचमासियं वा - Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा-६५७२-६५५ विशतितम उद्देशक: सिं परिहारहाणाणं अनयरं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएआ, अपलिउंचिय आलोएमाणस्स बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुसो वि साइरेगं वा, बहुसो वि पंचमासियं वा, बहुसो वि साइरेगं वा पलिउंचिय आलोएमाणस्स बहुसो वि पंचमासियं वा वहुसो वि साइग्गं वा, बहुसो वि छम्मासियं वा तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव अम्मासा ॥१६॥ रोसि पालोयणसुत्ताणं अत्थो पूर्ववत् । इमो विसेसो - एत्तो णिक्कायणा मासियाण जह घोसणं पुहविपालो । दंतपुरे कासीया, आहरणं तत्थ कायव्वं ॥६५७।। "एत्तो" त्ति प्रतः परं पालोयणाविहाणं भण्णइ । “णिक्कायणा" णाम मासादि पडिसेवितं जाव मालोयणारिहस्स ण कजति ताव प्रणिक्कातियं भण्णात । __ अधवा- तं मासादि पडिसेवितं पालोयमविहीए गुरको जाउं जं मासातिमाशेवगाए वि होणधियाए वा जहारुहाए प्रारोवणाए भारोवयंति तं णिक्कातितं मण्पद ।। अथवा- केरिसस्स पालोइज्जइ ति एवं इमेण दिटुंतेण पिकाइज्जइ । "दंतपुरं दंतवक्के, सच्चवती दोहले य वणयरए । धणमित्त-धणसिरीए, पउमसिरी व दमित्ते ।। जारिसस्स आलोइज्जति तत्थोदाहरणं इमं - दंतपुरं णगरं, दंतवक्को राया, तस्स सच्चवती देवी। तस्स दोहलओ-"जति हं सच्चदंतमए पासाए कीलिज्जा।" रणो कहियं ।। रण्णा अमञ्चो आणत्तो - "सिग्घं मे दंते उवट्टवेसि।" तेण वि णयरे घोसावितं - जो रण्णो दंते कीणति ण देति वा घरे संते तस्स सारीरो दंडो। तत्थ णगरे धणमित्तो सत्थवाहो, तस्स य दो भज्जायो-धणसिरी पउमसिरी य । अण्णया तासि दोण्ह वि भंडणं जातं । तत्थ धणसिरीए पउमसिरी भणिया-किं तुमं गन्दमुव्वहसि ? किं तए सच्चवतीए अहिगो दंतमग्रो पासादो कतो? ताहे पउमसिरीए प्रसग्गाहो गहितो-“जति मे दंतमो पासादो ण कज्जति, तो मे प्रलं जीविएणं।" ण देति धणमित्तस्स पालावं। तस्स वयंसो दढमित्तो णाम । तस्स कहियं । तेण भणिया - "अहं ते कालहीणं इच्छं पूरेमि" छड्डाविया असग्गहं । ताहे सो दढमित्तो वणचरादीए सम्माणसंगहिए करेति । तेहि भणियं - "कि आणेमो, किं वा पयच्छामो" तेण भणियं- "दंते मे देह" । तेहि य ते दंता खडपूलगेहिं गोविता। सगडं भरियं, णयरद्दारे य पवेसिज्जंताणं गोणाऽऽकडितो दंतो पडिग्रो, “चोरो" त्ति सहोडो वणयरो गहितो। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মাটি লিথ [सूत्र-१६ रायपुरिसेहिं पुच्छिज्जति कस्सेते दंता, सो ण साहति । एत्यंतरे दढमित्तेण भणियं-"मम एए दंता, एस मे कम्मकरो।" वणचरो मुक्को, दढमित्तो गहितो। सो रण्णातो पुच्छितो-“कस्सेते दंता ?" सो भणति "ममं" ति । एत्यंतरे. दढमित्तं गहियं गाउं धणमित्तो पागत्तो। रण्णो पुरतो भणाति - "मम एते दंता, मम दंडं सारीरं वा णिग्गहं करेहि" त्ति। दढमित्तो वि भणाति - "अहमेयं ण जाणामि, मम संतिता दंता, मम णिग्गहं करेहि" त्ति, एवं ते अण्णण्णावराहरक्खणट्टिया मिरवराही रण्णा भणिया - "अभयो । भूयत्थं कहेह।" तेहिं सव्वं जहाभूयं कहियं ।। रण्णा तुद्वेण मुक्का, उस्सुका । जहा सो दमित्तो हिरवलावी भवि य मरणमन्भुवगतो णय परावराहो सिट्ठो, तहा ऽऽलोयणारिहेन अपारसाटिणा भवियव्वं । जहा सो धमित्तो भूयत्यं कहेति ममेसोवराहो ति एवं पालोयगेणं मूलुत्तरावयहा अपलिउंचमाणे जट्ठिया कहेयब्वा ।।६५७५।। पंचमे य सुत्ते इमो य विसेसो दंसिज्जति - पणगातिरेग जा पणवीससुत्तम्मि पंचमे विसेसो । आलोयणारिऽऽहालोयो य आलोयणा चेव ॥६५७६।। एतीए पुव्वद्धस्स इमं वक्खाणं - अहवा पणएणहिओ, मासो दसपक्खवीसभिण्णेणं । संजोगा कायव्वा, लहुगुरुमासेहि य अणेगा ।।६५७७॥ "महवे" त्ययं विकप्पवाची। कः पुनः विकल्प ?, उच्यते - पणगातिता ठाणा अतियारतो व णिप्फण्णा - भावनो वा निष्पन्ना भवतीत्यर्थः । पचमे सुते इमो विसेसो-मासो लहपणगदसगातिरित्तो य कायम्वो, एवं दस पण्णरस वीसं भिण्णमासातिरित्तो य । एवं दोमासादिया। वि पणगादियातिरित्ता कायब्धा । पुणोः पणगादिएहिं लहुगुरुएहि लहुमीसगसंजोगसुत्ता कायबा, इमेण विहिमा - जे भिबखू गुरुगलहुगपणगातिरेगमासियं परिहारहाणं इत्यादि । जे मिक्खू लहुगपणगदसगातिरेगमासितं परिहारट्ठाणं इत्यादि । जे भिवखलहगपणगगुरुदसगसातिरेगमासियं परिहारदाणं इत्यादि। एवं मासियं लहपणगं च प्रमयंतेण भाणियव्वं जाव ग्ररुभिण्णमासो ति । ततो मासियं गुरुपणगं च अपुयंतेण भाणियच्वं जाव गुरुभिणामासो त्ति । एवं मासियं ममुंयंतेण पणगादियाण सव्वे दुगसंजोगा भाणियन्वा । ततो मासिगस्सेव पणगादियाण सव्वे तिगमंजोगा च उक्कादिसजोगा य जाव दसगसंजोगो ताव सव्वे भाणियव्या। ततो मासगुरुममंचंतेण पण दसग पण रस वीसभिणामासंताण लहुगुरुभेदभिण्णाण दुगादिसंजोगा जाव दसगसजोगा ताव सम्वे कायव्वा । एवं दोमासियादिठाणेस वि लहुगपणगादीयाण सव्वे संजोगा कायदा । एवं प्रणेगा संजोगा भवंतीत्यर्थः । एवं पंचमे विसेसो उवउज्जिय सवित्थरतो भाणियन्यो । इमे य एत्य पंचमे सुत्ते मालोयणारिहा भाणियव्वा - Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६५७६ ] विचतितम उद्देशकः ३६३ 'प्रायारवं आहारवं, ववहारोन्वीलए पकुव्वी य । णिज्जवगवायदंसी, अपरिस्सावी य अट्ठमए ।। पचविहं प्रायारं जो मुणइ मायरह वा सम्म सो मायारवं । आलोइज्जमाणं जो सभेदं सव्वं प्रवधारेति सो माहारवं । पंचविहं प्रागमादि ववहारं जो मुणइ सम्म सो ववहारवं । (मालोयय गृहंतं जो महुरादिवयणपयोगेहिं तहा भणइ जहा सम्मं पालोएति सो उन्धीलगो। पालोइए जो पच्छितं कारवेति सो पकुव्वी।। जहा णिबहइ तहा पायच्छित्तं कारवेति सो णिज्जवगो। प्रणालोएंतस्स पलिउंचंतस्स वा पच्छित्तं च प्रकरेंतस्स संसारे जम्मणमरणादीदुल्लभबोहीयत्तं परलोगावाए दरिसेति, इहलोगे च मोमासिवादी, सो प्रवायदंसी । पालोइयं जो ण परिस्सवति भण्मस्स ण कहेति ति वुत्तं भवति सो अपरिस्सागो । एरिसो आलोयणारिहो। इमेरिसो पालोयगो - २"जाती कुल" गाहा । जातीए कुलेण य संपण्णो अकिच्चं ण करेति ।।१।। काऊण वा सम्म कहेति ॥२॥ विणीयो णिसेज्जादिविणयं सव्वं करेति, सम्म च मालोएति ॥३॥णाणी णाणाण. सारेण पालोएइ॥४॥ प्रमुगसुतेण वा मे पच्छितं दिण्णं सुद्धो प्रहमिति दसणेण सद्दहति ॥५॥ एवं चारितं भवति, संपण्णो पुणो प्रतियारं ग करेति, प्रणालोतिए वा चरित्त णो सुज्झति त्ति सम्म पालोएइ ॥६॥ खमादिजुत्तो खमी, गुरुमादीहिं वा चोतितो कम्हे ति फरुण भणति, सम्म पडिवज्जति, जं पच्छित्तं प्रारोविज्जति त सम्मं वहतीति ॥७।। दंतो इंदिय गोइंदिरहि वा दंतो।८! अपलिउंचमाणो मालोएति वहति वा प्रमायी ॥६॥ पालोएता गो पच्छा परितप्पइ, दुठ्ठ मे पालोइयं ति अपच्छायावी ॥१०॥ एरिसगुणजुत्तो पालोयगो। इमे पालोयगस्स आलोयणादोसा - "प्रागपइत्ता अणुमाणइत्ता, जं दिढ़ बायरं च सुहमं वा । छण्णं सघाउलगं बहुजण अव्वत्त तस्सेवी" ॥१॥ वेयावच्चकरणेहि पायरियं पाराहेत्ता पालोयणं देति ॥१॥ "चरमं चोवं एस पच्छित्तं दाहिति ण वा दाहिति" पुवामेव पायरियं मणणेति - "दुबलो हं थोवं मे पच्छितं देज्जह" ॥२॥ जो पतियारो प्रणेणं कज्जमाणो दिट्ठो तं भालोएति, इयरं नो पालोएति ॥३॥ "बायरं" - महंता प्रवराहा ते भालोएति, सुहुमा गो ॥४॥ प्रहवा - सुहुमे पालोएति. नो बायरे । जो सुहुमे पालोएति सो कहं वायरे ण पालोएति, जो वा बायरे स कह सुहुमे नालोए ति ॥५॥ "छणं" ति - तहा प्रवराहे प्रप्पसहण उच्चरइ जहा मप्पणा चेव सुणेति, णो गुरु ।। "सद्दाकुलं" ति - महंतेण सद्देण वा पालोएति बहा भगोयातिणो वि सुगंति ।७। १ व्यव० उ०१ गा० ३३८ । २ व्यव० उ०१गा० ३३६-३४०।३व्यव० उ०१ गा० ३४२ । Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ समाष्य-धूणिके निशीयसूत्रे [ मूत्र-१६ बहुजण मज्झे वा पालोएति, महवा एक्कस्स पालोएति पुणो मण्णेसि पालोएति ॥८॥ "अव्वत्तो" अगीयत्थो तस्स पालोएति ।। "तस्सेव" ति-जो प्रायरियो तेहि चेव प्रवराहपदेहि वदृति तस्सालोएति, "एस मे प्रतियारतुल्ले ण दाहिति, ण वा मे खरंटेहिति" ॥१०॥ त्ति ॥६५७७॥ इदाणि पालोयणविधी भण्णति आलोयणाविहाणं, तं चेव दव्वखेत्तकाले य । भावे सुद्धमसुद्ध, ससणिद्ध साइरेगाई ॥६५७८॥ पालोयणाविहाणं जं पढमसुत्ते वुत्तं तं चैव सव्वं सवित्यरं इह दव्ववेत्तकालमावेहि पडिसेवितं मागियवं, पमत्येहिं वा दबखेत्तकालभावेहिं पालोएयव्वं पडिसेवितं पुण भावनो सुद्धेग वा प्रसुद्धण अप्पच्छिनी सप्पच्छित्ती वा । असुद्धेण सपायच्छित्तं, तं च पायच्छितं इह सुत्त सातिरेगमासो केण भवति ?, उच्यते – 'ससणि सातिरेगा" इति ॥६५७८।। अस्य व्याख्या - ससणिद्ध बीयघट्टे, काएK मीसएसु परिठविते । इतर सुहुमे सरक्खे, पणगा एमादिया होति ॥६५७६।। ससणिदेहि हत्यमत्तेहि भिक्खं गेण्हते पणगं, एवं जति बीयसंघट्टपरिसकाएसु वा मीसेसु पसरट्ठवियं इत्तरदृवियं वा मुहमपाहुडियं वा ससरखेहि वा हत्यमतेहि गेण्हति । एवमादिप्रवराहेसु पणगं भवइ । एत्थ इमं णिपरिसणं -- सागारियपिडं ससणिद्धहत्येहि गेण्हतो सातिरेगमासियं भवति, एवं परित्तकायं प्रणंतरणिविखत्तं बीयसंघटुं च गेण्हतो, एवमादिमासियं प्रवराहो पणगातिरित्तो मासो भवति ॥६५७६।। तं च आलोयणारिहो इमेण विहिणा जाणइ देति वा - ससिणिद्धमादि अहियं, तु परोक्खी सो उ देंति अहियं तु । हीणाहिय तुल्लं वा, नाउं भावं च पञ्चक्खी ॥६५८०॥ जो परोक्खणाणी प्रालोयणारिहो सो पालोयगमुहासो पणगातिरितं मासं सोच्चा पणगातिरित्तं चेव मासं देति, जो पुण पच्चकवणाणो सो पणगातिरित्ते वि मासे पालोइए रागदोसभावाणुरूवं कम्मबंषं जाणिऊणं हीणं पहियं वा पडिसेवणतुल्ल वा पायच्छित्तं देइ । इदाणि पालोयणसुत्ते वि आहे सगलसुत्ता, बहुससुत्ता वा, सगलसोगसुत्ता, बहुससंजोगसुक्ता य, एते चउरो सभेदा भणिया भवंति - ताहे जे पुणिद्दिद्या पंचम-खुटु-सतम-अट्ठमसुत्ता, ते प्रत्यतो भगामि । तत्थ पंचम इमं - "जे भिक्खू सातिरेगमासियं परिहारढाणं । सातिरेगबिमासियं परिहारट्ठाण । सातिरेगतिमासियं परिहारट्ठाणं । सातिरेग च उमासियं परिहारट्ठाणं । सातिरेग पंचमासिय परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता पालोएज्जा। अपलि चियं पालोएमाणम्स - Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यगाया ६५७८-६५८२] विशतितम उद्देशकः ३६५ साइरेगमासियं साइरेगदोमासियं साइरेगतिमासियं साइरेगचउमासियं । साइरेगपचमासियं । पलिउंचिय पालोएमाणस्स साइरेगदीमासितं, सातिरेगतिमासित । सातिरेगचउमासितं सातिरेगपंचमासिय च । एते पंच सामण्णसुत्ता । एवं पंच सातिरेगउग्धातियाण वि भागियव्वा, सातिरेग अणुग्घातियाण वि पंच, एते पण्णरस वि पंचमं सातिरेगसुतं । एवं चेव छटुं सुत्तं बहुसाभिलावेण णेयव्वं । इदाणि एतेसिं चेव दोण्ह वि सुत्ताणं पत्तेयं पत्तेयं संजोगा कायव्वा, जहा पढमबितियसुत्तेसु तहा कायव्वा, ताहे सत्तमट्टमा सुत्ता भवंति । सत्तमे सुत्ते णव सुत्ता एगट्ठा ण भवंति । सातिरेगसगलसुत्ताणं संजोगसुत्ताण सम्वसुत्तपिंडयं च उप्पण्णं सुत्तसहस्सं । बहुससातिरेगसुत्तेसु वि एवं चेव एत्तिया मवंति । एते सव्वे एक्कतो सिंडिया एकवीसं सया प्रठुनरा, मूलुत्तरेहिं गुणिया बायालीसं सता सोलसुत्तरा। दप्पकप्पेहिं गुणिता अटुसहस्सा चउरो य सता बत्तोसा भवंति । एवं प्राइमेसु च उसु सुत्तेसु पट्ठसहस्स पउरो य सत्ता बत्तीसा भवंति । अट्ठसु वि सुत्तेसु सव्वग्गं सोलससहस्सा अट्ठसता चउसट्ठा भवंति । एति ति प्रावत्ति सुता पालोयणासुत्तेसु वि एत्तिया चेव, पारोवणसुत्तेसु वि एत्तिया चेव, तम्हा एस रासी तीहिं गुणितो पण्णासं सहस्सा पंच सता बाणउपा भवंति ॥६५८७।। इदाणि णवमं सुत्तं. तं च सगलाणं साहियाण य संजोगे भवति, तत्थ प्रादिमा चउरो सगलसुत्ता पंचमादिया पटुंता चउरो साहियपुत्ता । एतेसिं सगलसाहियाणं संजोगविधिप्रदर्शनार्थमिदमाह - एत्थ पडिसेवणाओ, एक्कग-दुग-तिग-चउक्क-पणएहिं । छक्कग-सत्तग-अट्ठग,-णवग-दसहिं च णेगाओ ॥६५८१॥ "एत्यं" ति सगलसाहियसंजोगसुत्ता णव मे पडिसेवणपगारा इमे एगादिया दस य, तेहिं कायवा. तं जहा - मासितं, सातिरेगमासितं । दोमासित सातिरेगदोमासितं । तेमासितं सातिरेगतेमासितं । चउमा सितं, सातिरेगच उमासितं । पंचमासितं, सातिरेगपंचमासितं । एतेसिं उच्चारणविधी इमाजे भिक्खू मासियं परिहारहाण......"सेसं पूर्ववत् । जे भिक्खू सातिरेगमासियं जाव अपलिउंचियं पालोए, सातिरेगमासियं । जे सातिरेगदोमासियं जाव अपलिउंचियं पालोए सातिरेगदोमासियं । एवं तेमासियादिया वि वत्तव्वा एगादिसंजोगा भाणियन्वा ॥६५८१॥ जहासंखं च तेसि एगादियाणं इमे प्रागयफला - दस चेव य पणयाला, वीसा य सयं च दो दसहिगाई। दोणि सया बावण्णा, दमुत्तरा दोणि य सताओ ॥६५८२।। Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-१६ वीसा य सयं पणयालीसा दस चेव होंति एक्को य । तेवीसं च सहस्सं, अदुव अणेगाउ णेाओ ॥६५८३॥ एत्थ करणोवाम्रो इमो-एगादेगुत्तरिया पदसंखपमाणम्रो ठवेज्जाहि, गुणगारा जस्स जेत्तियामि पदाणि ते एगुत्तरवड्डिता ठवेऊणं तेसि हेट्ठा ताणि चेव विवरीयाणि ठवेयवाणि । एत्थ उवरिमा गुणगारा हिट्ठिमो रासी भागहारो, तेसि हेट्ठायो विवरीप्रो। एत्थ एक्कगसंजोग इच्छतेणं प्रष्णं सगलरूवं ठवेऊणं अंतिल्लेण दसगुणकारएण गुणेथव्वं, ताहे अतिल्लेण एक्कभागहारेण भागो हायवो, भागहारभागलदं दस, एतेसि एक्कसंजोगा दस लढा, एते एगते ठविया। दुगसंजोगं इच्छतेण एते दस णवहिं गुणिता दोहिं भागेहितो लद्धा, दुगसंजोगा पणयालं, एवं ठाणट्ठाणे पडिरासियगुणियहियभागलद्धफला जाणियत्वा । तिगस जोगे वीसुत्तरं सयं, चउक्कसंजोगे दो सता दसुत्तरा, पंचमंजोगेण दो सता बावन्ना, छक्कगसंजोगे दो सया दसुत्तरा, सत्तगसंजोगे सयं वीसुत्तरं, अट्ठगसंजोगेण पणयालीसं, णवसंजोगेण दस, दससंजोगेणं एक्को, सव्वेसि संखेतो तेवीसं सहस्सं । "अदुव" ति अहवा - "अगाउ" त्ति प्रणेगे पडिसेवणादिसुत्तभेदा णेयवा ज्ञेया वा। कहं ? उच्यते - एते सामण्णतो भणिया, एते चेव उग्घायाणुग्घाते मूलुत्तरदप्पकप्पेहि गणेयवा। अधवा - तीसपदाण इमा रयणा कायवा, तंजहा - मासियं पंचदिणातिरेगमासियं, दसदिणाइरेगमासियं, पनरसदिणाइरेगमासियं, बीसदिणातिरेगमासियं, भिकादिणातिरेगमासियं, एवं दुमासे तिमासे चउमासे पंचमासे य एक्केके छट्टाणा कायवा । एते पंच छक्कातीसं ठाणा । एतेसु वि करणं पूर्ववत् कायव्वं । सव्वागयफलाण संपिडियाण इमा सुत्तसंखा भवति - 'कोडिसयं सत्तऽहियं, सत्तत्तीसं व होति लक्खाई । ईयालीस सहस्सा, अट्ठसया अहिय तेवीसा ॥ एत्थ वि सामण्णुग्घाताणुग्घातमीसमूलुत्तरदपकप्पभेदभिन्ना कायन्वा । णवरं-- जत्थ मीसो तत्य उग्घातिया संजोगा एगादिण ठवेउं अणुग्घातिया वि एगादिसंजोगा पुढो ठवेडं, ताहे उग्घायएक्कगसजोएण सव्वे एगादिप्रणुग्धाता जोगा गुणिता । एवं मीसगसंजोगे एक्कगसंजोगफला भवति, एवं दुग-तिग-चउक्क पंचकसंजोगेहि गुणिता दुगादी सफला भवंति. एएण लक्खणेण सन्यत्थ मासफला प्राणेयन्वा, इमं निदिरसणं-उग्धातियस्स दसहिं एक्कगजोगेहिं दस प्रोग्याता गुणिया हवंति । सतं तु एक्कगसंजोगे अणुग्घातातिगकएहिं पणयालीसं दु प्रणुग्घाता गुणिता प्रदपंचमसता जाता दुगाणं प्रणुग्धाए बारससय इगवीससय पणवीसवीसा इक्कवीससय बारससय प्रपंचसत। य एग सत दम य । एते प्रण ग्घाताणं संजोगा एक्कगादिया सवे ते सम्मिलिता तीससहिया दोणिसया दससहस्सा य । अहुणा "उग्घातितदुगएहिं, पणयालीसाए सव्वसंजोगा। अणुग्धातियाण गुणिया, एक्कादितिमेत्तिया रामी। एक्के च उसतपण्णा, पणुवीसा दो सहस्म दुग जोगे। चउप्पण्णमया नव महस च उमयपत्रास च उजोगे ।। १व्यव० उ० गा०३५३ । Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशक: सेसा उवरि मुहुत्ता, णेयव्वा दस य पणचत्ता । एते सव्वे मिलिया छायालसहस्स होंति पणतीसा ॥ अघातियदुग्र एहि सव्वग्गेयं प्रणुग्घाते । अहणुग्धात दुएहि, पंणयालिसएण सव्वसंजोगा || प्रणुग्धातियाण गुणिया, एक्कादितिमेत्तिया रासी । बारस चउप्पण्णसया, चउसया चोहसय सहस्स तियजोए ।। पणुवीससहस्साइं दो य सया हुति चउजोगे । चत्तऽहिता दोण्णि सता, तीससहस्सा य पंच संजोगे || सेसा उवरिमुहुत्ता, जा वीसऽधियं सयं दसए । उघातितसंजोगा णुग्घाति य एक्कगातिसंजोगा || सत्त सया सट्ठऽहिया, बावीस सहस्स लक्खो य । इगवास सया एगे, चउणउति सता दुर्गाम्म पण्णऽहिया || तिगजोगेऽणुग्धाता, पणुवीस सहस दो य सया । चउचत्तसहस्स सतं, चउजोगपणम्म दुसय बावण्णा ॥ सेसा उवरिमुहुत्ता, दसगम्मि दसुत्तरा दोणि । एवं उग्घाय चउक्कएणं प्रधिग सत दसगेणं ॥ गादि अणुग्घाता, गुणियफला सव्विमो रासी । असया तीसहिया चोहससयसहस्स दोइ लक्खाई ।। काव्वसेस सुवि, एवं सव्वफला पिंडरासी य । उतानुग्ातमी सेग सुत्तसव्वसंखेवो इमो - वाष्यगाथा ६५५३ ] मीसग सुत्तसमासे, छायाल सहस्स दस य लक्खाई । पंचसय ग्रउणतीसा, दस पंद संखित्तसंखेवो ॥ 1 एवं कएस जे सगलसाहिया संजोगा लब्भंति ते नवमसुत्तभेदा भवंति, जे पुण सेसा ते संगलसुत्तभेदा वा साधितसुतभेदा वा इत्यर्थः । एवं बहुससुते वि दसमे वक्खाणं संखा य अपरिसेसा भाणियव्वा । णवरं साभिलावो भाणियन्त्रो, एते य दस सुत्ता बहुभंगाकुला गो इह सव्वभगेहि भणिया, य न भणिया प्रतिविरथरोत्ति काउं जे न भणिया ते उवउज्जिउं गुरूवदेसतो का भणेज्जाहि ति । गया आलोयणसुत्ता । इदाणि श्रावणसुक्ता तत्थवि श्रादिमा सुत्ता सवित्थरा पूर्ववत् । इदाणि णवम-दसमा, तेसु वि एगादिसंजोगा पूर्ववत् । प्रतिल्लच उक्कस जोगे इमे सुत्ता - जे भिक्खु चाउम्मा सियं वा साइरेगचा उम्मा सियं वा पंचमा सियं वा सातिरेगपंचमा सियं वा ३६७ एए सिं परिहारडाणाणं नगरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा । पलिउ चिय लोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं, ठवि वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सियापुच्विं पडिसेवियं पुव्विं लोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, - Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [ सूत्र १७-२० पच्छा पडिसेवियं पुल्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउचिए पलिउचियं, पलिउचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिचियं, अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सन्चमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्टविए निविसमाणे पडिसेवेइ से वि कसिणे तत्थेव आरुहियव्वे सिया ॥२०॥१७॥ जे भिक्खू बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुसो वि साइरेगचउम्मासियं वा पंचमासियं वा सातिरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा। अपलिचिय आलाएमाणे ठवणिज्ज ठवहत्ता करणिज्जं वेयावडियं ठविए वि पडिसेविना से विकसिणे तत्थेव पारुहेयव्वे सिया अपलिउचिए अपलिचियं, अपलिचिए पलिचियं, पलिउचिए अपलिउ चियं, पलिउचिए पलिउचियं, अपलिउचिए अपलिचियं पालोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पदुवणाए पट्टविए निविसमाणे पडिसेवेइ से विकसिणे तत्थेव पारुहेयव्वे सिया । एयं पलिउंचिए ॥॥१८॥ जे मिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारहाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता भालोएज्जा। पलिउंचिय आलोएमाणे ठवणिज्ज ठवहत्ता करणिज्ज वेयावडियं ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं, पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिचियं, पलिउचिए पलिचियं आलोएमाणम्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्टविए निविसमाणे पडिसेयेई से वि ऋसिणे तत्थेव पारुहेयव्वे मिया ॥५०॥१६॥ जे भिक्खू बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुमो वि साइरंगचाउम्मासियं वा, पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारहाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिमवित्ता आलोएजा। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ भाष्यगाथा ६५८४-६५८९] विशतितम उद्देशक: पलिचिय पालोएमाणे ठवणिज्ज ठवइत्ता काणिज्जं वेयावडियं ठविए वि पडिसेवित्ता से विकसिणे तत्थेव पारुहेयव्वे सिया अपलिचिए अपलिउचियं, अपलिचिए पलिचियं, पलिउचिए अपलिउ चियं, पलिउचिए पलिउचियं । पलिउचिए पलिउचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्ठविए निविसमाणे पडिसेवेइ से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया ॥सू०॥२०॥ (इत्यादि सर्व उच्चारेयव्वं, एवं बहुसो वि सुत्तं उच्चारेयन्वं) एते वि तहेव वक्खाणेयधा । यदि सा एवं व्याख्या को विशेषः ? प्रत उच्यते - हेट्ठिमसुत्तेसु परिहारतवो ण भणियो । इह परिहारतवो वि भाणिज्जइ - को भंते ! परियाओ, सुत्तत्याभिग्गहो तबोकम्मं । कक्खडमकक्खडेसु, सुद्धतवे मंडवा दोण्णि ॥६५८४॥ "को भंते" अस्य व्याख्या - गीयमगीओ गीओ, अहं ति किं वत्थं कासवसि (कस्स तवस्स) जोग्गो। अगीतो त्ति य भणिते, थिरमथिर तवे य कयजोग्गो ॥६५८॥ सो अत्तियारपत्तो पालोए पुच्छिज्जइ-कि तुम गीतो भगीतो का? जति भगइ - प्रहं गीतो, तो पुणो पुच्छिज्जइ ति-तुमं किं वत्यु ति, प्रायरिमो उवज्झामो बसभाति वा? मणतरे कहिए पुणो पुच्छिज्जति- "कास तवस्स जोगो" ति-कि तवं काउं प्रच्छिहसि ? कस्स वा तवस्त समर्थेत्यर्थः। प्रह सो भणति-अहं प्रगीतो, तो पुच्छिज्जति - किं तुमं थिरो प्रथिरो ति? थिरो णाम घितिसंधयणेहिं बलवं, अहवा- दरिसणे पव्वजाए वा थिरो पचलेत्यर्थः । इतरो पुण प्रथिरो। जा भणाति - थिरो हं, तो पुच्छिज्जइ "तये कयबोगो" ति कमखरतवेहि संभावितो प्रभावितो बा कृताभ्यासेत्यर्थः । जति भावितो तो से परिहारतवो दिज्जति, इयरस्स सुखतवो ॥६५८५।। जो सो एवं पुच्छिज्जइ साधू सो सगणिच्चतो अण्णगणातो वा प्रागतो सगणम्मि पत्थि पुच्छा, अण्णगणा आगतं व जं जाणे । परियाओ जम्मदिक्खा, अउणचीस वीस कोडी य ॥६५८६॥ जो सगणिच्चो, जो य परगणामो गीतादिभावेहिं णबति, एते ण पुन्छिन । जो परगणाऽऽगमो न अति । परियामो दुविहो - जम्मपरियामो दिक्सपरियाम्रो य । जम्मपरियाप्रो जहणणं पणत्तीसं वासा, उस्कोमेणं जा देसूणा पुष्वकोडी । दिक्सपरियामो जहणणं वीसं वासा, उक्कोसेण देसूणा पुनकोडी ॥६५८६॥ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० सभाष्य-चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र-२० इदाणि सुत्तत्थाणे - णवमस्स ततियवत्थं, जहण्ण उक्कोसऊणगा दसओ । सुत्तत्थभिग्गहा पुण, दव्वादि तवो रयणमादी ॥६५८७॥ सुत्तत्थेणं जहणेणं जेण प्रधीयं णवमस्स ततियं पायारवत्), उक्कोसेणं जाव ऊणगा दसपुवा, समत्तदसपुत्वादियाण परिहारतवो ण दिज्जति । कम्हा ? जम्हा वायणादिपंचविहसज्झायविहाणं चेव तेसिं महंततरं कम्मणिज्जरठाणं । किं च सगलसुयणाणी महतं ठाणं णो परिहारतवविहाणेण विमाणिज्जति । किं च प्रणालावादिपदेसु य सुयस्स अभत्ती भवति । अभिग्गहा दव्वादिया । दवतो जहा - मए अज्जकुम्मासा घेत्तव्वा तककादि वा एकदव्वं । खेत्ततो - एलुयं विवखंभित्ता। कालतो - ततियाए पोरुसीए । भावतो - हसंती रुवंती वा। तवो य रयणावलिमादि, सीह 'निक्कीलियादि । एवमादिगुणजुत्तस्स परिहारतवो दिज्जति । एवमादिगुणविपहीणे पुण सुद्धतवो दिज्जति । परिहारतको कक्खडो दुश्चरेत्यर्थः । प्रकक्खडो सुदतवो सुकरेत्यर्थः ।।६५८७॥ सीसो पुच्छति - कम्हा गीतादिगुणजुत्तस्स परिहारो, इतरस्स य सुद्धतवो? आयरियो भणइ - एत्थ दोहि मंडवेहि दिद्रुतं करेइ । सेलमंडवेण एरंडमंडवेण य जुत्तो। जं मायति तं छुब्भति, सेलमए मंडवे ण एरंडे । उभयवलिए वि एवं, परिहारो दुबले सुद्धो॥६५८८॥ जावतियं मायति तावतिसं सेलमंडवे छुभति तहा वि न भज्जति । एरंडमंडवो पुण जावतियं समति तावतितं शुभति । एवं "उभय" त्ति जो घितीए सरीरेण य संघयणसंपण्णो गीतादिगुणजुत्तो य तस्स परिहारतवो दिज्जति । "दुबलो" त्ति धितीए संघयणेग वा उभयेण वा दुब्बलो, तस्स मुदतवो दिज्जति ॥६५८६॥ परिहारसुद्धतवाणं प्रायश्चित्तं विसेसो दिज्जति, ततो भन्नति - अतिसिट्टा आवत्ती, सुद्धतवे तह य होति परिहारे । वत्थं पुण आसज्जा, दिज्जति इतरो व इतरो वा ॥६५८६॥ परिहारतवे सुद्धतवे य अविसिट्ठा "प्रावत्ति” त्ति दोणि जणा तुल्लं प्रावत्तिठाणं प्रावणा । तत्य "वत्थु पासज्ज" ति-धितिसंघयणसंपण्णं पुरिसवत्थु गाउं । "इयरो" ति परिहारो तवो दिज्जति। जं पुणो वितिसंघयणेहि हीणं पुरिसवत्थु तस्स ताए चेव आवत्तीए "इयरो" ति सुद्धतवो दिज्जति । एत्थ अण्णोणाविक्खत्तो इयरसद्दा ठिता ॥६५८६। ___एत्थ एगावत्तीए विसमदाणपसाहणत्थं इमो दिटुंतो - वमण-विरेयणमादी, कक्खडकिरिया जहाऽऽउरे बलिए। कीरति व दुब्बलम्मि वि, अह दिहतो तवे दुविहो ॥६५६०॥ १ वि (व्यव०)। Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगापा ६५८८-६५६४] विशतितम उद्देशकः ३७१ जहा दो जणा सरिसरोगाभिभूया, तस्म जो पाउरो बलवं सरीरेण तस्स वमणविरेयणादिका कक्खडादिकिरिया कज्जति । दुबलो वि जहा सहति तहा प्रकक्खडा किरिया कज्जति । "ग्रह" ति - अयं दिटुंतो तवे दुविहो उवसंहारणिज्जो- कक्खडकिरियसमाणो परिहारतवो, सुद्धतवो अकक्खडकिरियसमाणो ॥६५६०॥ जेसि णियमा सुद्धतवो परिहारतवो वा दिज्जति तन्नियमार्थमिदमुच्यते सुद्धतवो अज्जाणं, अगीयत्थे दुबले असंघयणे । धितिबलिए य समण्णा-गयसव्वेसि पि परिहारो ॥६५६१॥ दुबलो धितीए अणुवचितदेहो रोगादिणा, असंघयणो ति-प्रादिल्लेहि तिहि संघयणेहि वज्जितो, एतेसि मुदतवो दिज्जति । जो धितीए बलवं वज्जकुड्डसमाणो, जो य संघयंगेहिं समण्णागो पाइल्लेहि संघयणभावेहि जुत्तो ति वुत्तं भवति, गीतातिगुणैहि वा समण्णागो युक्त इत्यर्थः, सव्वेसि सि परिहारतवो दिज्जति, ॥६५६१॥ तस्सिमो विधी - "ठवणिज्ज ठवइत्ता'' सुत्तपदं, जं तेण सह णायरिज्जति तं ठवणिज्ज, तं सव्वं गच्छसमक्खं ठविज्जइत्ति -परूविज्जति । अधवा - सव्वा चेव तस्स सामायारी ठवणिनापरूवणिज्जा इत्यर्थः । कहं पुण तं ठविन्जति ?, उच्यते - विउसग्गो जाणणहा, ठरणा भी (ती) ए य दोसु ठवितेसु । अगडे णदी य राया, दिद्रुतो भीय अासत्थो ॥६५१२॥ तस्स परिहारतवं प्रावज्जतो पादावेव उस्सगो कीरइ । कह ?, उच्यते - गुरू पुन्वदिसाभिमुहो वा उत्तरदिसाभिग्रहो ना चरंतदिसाभिमुहो वा चेइयाण वा अभिमुहो। एवं परिहाररावो वि । णवरं - गुरुस्स वामपासे ईसि पिट्ठतो ते दुवग्गा वि भणंति - "परिहारतववज्जणट्ठा करेमि काउस्सगं निरुवसग्गवत्तियाए" इत्यादि ताव भणंति जाव वोसिरामी ति । पणवीसुस्सासकालं सुभज्झवसिता ठिच्या चउवीसत्ययं वा चिते णमोक्कारेण पारेता प्रक्खलियं चउवीसत्यं उच्चरंति ॥६५६२॥ एत्थ सीसो पुच्छति - एस उस्सग्गो कि निमित्तं कीरइ ?, उच्यते-साधूण जाणणट्ठा कीरइ । अहवा निरुवस्सग्गनिमित्तं, भयजणणहा य सेसगाणं च । तस्सऽप्पणो य गुरुणो, य साहए होति. पडिवत्ती॥६५६३॥ पुबद्ध कंठं । सुभेसु तिहिकरणमुहुत्तेसु ताराचंद्रबलेमु य अप्पणो गुरुस्स य जहा साहगं भवति तहा परिहारतवं पडिवज्जइ, ॥६५६३।। काउस्सग्गकरणाणंतरं ठवणा ठविज्जइ, तत्थ भादावेव तं परिहारितं गुरू भणति - कप्पट्ठिो अहं ते, अणुपरिहारी य एस ते गीतो। पुट्विं कयपरिहारो, तस्सऽसतियरो वि दढदेहो ॥६५६४॥ कप्पट्ठाती अहं ते, जाव ते. परिहारकप्पो ताव अहं ते वंदणवायणादिसु सहजो ते सेससागो। एत्य कप्पसद्दो कालवाची । अहवा - कप्पभावहितो, अहं ते वंदणावायणादिसु कप्पो अपरिहार्य · इत्यर्थः । Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ सभाष्य-पूर्णिके निशीषसूत्रे [सूत्र-२० शेषाः साधवः परिहार्याः । अण्णं च से एस गीयत्थो साधू पुव्वं कतपरिहारतणमो जाणगो "प्रणुपरिहारि" त्ति भिक्खादि जतो जतो परिहारी गच्छति, ततो ततो प्रणुपिट्ठतो गच्छह त्ति अणुपरिहारी भण्णइ । अहवापरिहारस्स अणु थोवं पडिलेहणादिसु साहेज्जं करेती ति प्रणुपरिहारी भण्यति । "तस्सऽसति" ति - जेग पुष्वं परिहारतवो कतो तस्सासति इयरो त्ति अकयपरिहारो वि गीयत्यो दढसंघयणो अशुपरिहारी ठविग्यति ॥६५६४॥ . ठवणं ठवेंतो पायरितो सेससाधू इमं भणाति एस तवं पडिवजति, न किं चि आलवति मा य ालवह । अत्तचिंतगस्सा, वाघातो (भे) न कायन्वो ॥६५६५॥ सबालवुहुँ गच्छं गुरू पामतेउं भणाति - एस साधू परिहारतवं परिवज्जति, न एस किंचि मालवति, तुम्मे वि एवं मा मालवेज्जह । पप्पणो अट्ठो प्रत्तट्टो, सो य भत्तादियो, तं प्रप्पणो 'परं चितेति ण बालादिताणं ति । अहवा - णिच्छयतो अत्तट्ठो प्रतियारमलिणं अप्पाणं जहुत्तेण पच्छित्तण विधिमा प्रतिपरंतो विसोहेतीति अत्तचितगो। एयस्स भे वाघातो इमेहिं पदेहि न कायदो ॥६६६५॥ आलावण पडिपुच्छण, परियट्ठाण वंदणग मत्ते। पडिलेहण संघाडग, भत्तदाण संभुंजणा चेव ॥६५६६॥ हे देवदत्त ! इत्यादि पालावो गतार्थः । एस तुम्भे सुत्तमत्थं वा किंचि ण पुच्छति, एयं मा पुच्छेन्जह १, एवं एस तुन्भेहिं सह सुत्तं प्रत्थं वा ण परियट्टेति २, कालवेलादिसु वा न उट्ठवेति ३. एस तुमं वंदणयंग करेति ४, उच्चारपासवणखेलमत्तए ण वा देति प्रोहियमत्तगं वा ५, ण य उवकरणादि किं चि पडिलेहेति ६, न वा एस तुम्भं संघाडगभाव करेति ७, ण वा भत्तपाणं देति ८, ण वा एस तुब्मेहि सह मॅजेति ६, तुम्मे वि एसस्स एते प्रत्ये मा करेज्जह १०, एवं दसहिं पदेहिं गच्छेण सो वजितो सो वि गच्छं वज्जेति ॥६६६६॥ ___ जति गच्छवासी एते पदे अतिचरांति तो इमं पच्छित्तं संघाडगा उ जाव तु, लहुश्रो मासो दसण्ह उ पदाणं । लहुगा य भत्तपाणे, संभुंजणे होतऽणुग्धाया ॥६५९७॥ दाहं पदाण मालावणपदातो पाढत्तं जाव अट्ठमं संघाडगपदें ताव मासलहु पच्छित्तं, जति भत्तपाणं देंति तो पउलहुगा, अष भुजंति तो चउगुरुगा ॥६५६७॥ एतेसु बेव परिहारियस्स इमं संघाडगा उ जाव तु, गुरुओ मासो दसण्ह उ पदाणं । - मचे पाणे संमुंजणे य परिहारिए गुरुगा ॥६५९८॥ पालवणपदातो जाव संघाडपदं, एते पतिवरतस्स परिहारियस्स मासगुरु, मह भत्तं देति संभुजति वा तो दोसु विच उगुरुगा भवंति ।।६५६८॥ एवायें। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६५६५-६६०१ ] विशतितमउद्देशकः । कप्पट्टितो सो इमं करोति कितिकम्मं तु पडिच्छति, परिणपडिपुच्छणं पि से देति । सो वि य गुरुमुवचिट्ठति, उदंतमवि पुच्छितो कहए ॥६५६६।। कितिकम्मं ति वंदणं, तं जति परिहारितो देति तो गुरू पडिच्छति, पालोयणं पि.पहिच्छति, परिण त्ति - पच्चूसे प्रवरण्हे वा पच्चखाणं से करेति, सत्तत्थे पडिपुच्छ देति । “सो वि य" ति - परिहारितो "गुरू" मायरिया ते अन्भुट्टाणादिविणएण "उवचिद्रति" - विणयं करोतीत्यर्थः । "उंदतं" - सरीरबट्टमाणी वत्ता तं गुरुणा पुछितो कहेति ।।६५६६॥ एवं ठवणाए ठवियाए "दोसु ठविएसु'' त्ति - कप्पट्ठिते अणुपरिहारिए य । सो परिहारिमो कया इ भीतो होज्ज "कहमहं अालावणादीहिं गच्छवज्जितो एगागी इमं उग्गतवं काहामि ? एत्तियं वा कालं गमिस्सामि ?' ति एवं भीग्रो २प्रगडादिदिटुंतेहिं प्रासासेयन्बो। जहा-कोति अगडे पडितो कहमुत्तरिस्सामि त्ति भीमो ताहे सो तडत्थेहि आसासिज्नतिमा तुमं बीहेहि, वयं तुम उत्तारेमो, एस रज्जू आणिज्जइ, एवमासासिउं णिब्भो थाहं बंधति । अह सो भण्णति – “मग्रो एस वरात्रो, ण एयं कोइ उतारेइ", ताहे सो णिरासो अंगे मुयति, मरति य । एवं परिहारितो वि पासासेयन्वो । जहा कोइ उणदीए अगुसोयं वत्तंतो भीग्रो ताहे सो तडत्थेहि प्रासासितो थाह 'बंधइ । प्रणासासितो णिरासो भया मरति । जहा वा कस्सइ "राया दो ताहे भीग्रो मारिजिहामि त्ति ताहे सो अण्णेहिं आसासिज्जत्ति - "मा बीहेहि, राया वि अन्नायं न करेति", एवं सो न विद्दाति । अह सो भण्णति - "विणट्ठो सि" ताहे विपज्जति । . एवं परिहारित्तो वि भाणियन्वो - मा भीहि, अहं ते वंदणदायणादिसु कप्पट्टितो, एस ते तवोकिलंतस्स असमत्थस्स अणुपरिहारियो । एवं प्रासासितो तवं वहतो किलामिमो विरियायार प्रहावेतो परिहारितो अण्णतरं किरियं काउमसमत्थो अणुपरिहारियस्स पुरो इम भणाति - उद्वेज्ज णिसीएजा, भिक्खं हिंडेज भंडगं पेहे । कुविय पियवंधवस्स व, करेइ इतरो वि तुसिणीओ ॥६६००॥ जइ उट्टेउ ण सक्कति ताहे भाइ उट्टेज्जामि, ताहे अणुपरिहारितो उढुवेइ । एवं णिसिएज्जामि । भिक्खायरियाए जं | सक्के ति तं भिक्खग्गहणादि सव्वं करेति । अह सव्वहा भिक्खं हिंडिउं ण सकेति ताहे भणाति - भिक्खं हिडिज्जामि । एवं उत्तरे अणुपरिहारितो से हिंडिउ देति, भंडगापेहणे वि साहज्ज करेति, सवं वा पडिलेहेति । जहा कोवि प्रियबधुस्स कुवितो जं से करणिज्जं तं सव्वं तुहिक्को करेति तहा "इयरो" त्ति- अणुपरिहारी परिहारियस्स सव्वं करणिज्जं तुसिगीमो करेति ॥६६००। चोदगाह-जइ भयं से उप्पज्जा, एरिसी वा अवस्था भवति, ता किं पच्छित्तं कज्जति ? किं चाह - अवसो व रायदंडो, ण य एवं च होइ पच्छित्तं । संकर सरिसव सकडे, मंडव वत्थेण दिटुंता ॥६६०१।। १ गा) ६५६२ । २ गा० ६५६२ । ३ गा० ६५६२ । ४ पप्पति, इत्यपि पाठः । ५ गा० ६५६२ । Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूणिके निशीथसूत्रे जहा धवसेहि रायदंडो सुम्मति, किमेवं पच्छितं पि ? प्राचार्याह - ण एवं रायदंडो विव प्रवसेहिं वि वोढव्वो, पन्छितं सवसेहिं इच्छातो वोढव्वं चरणविद्धिनिमित्तं । श्रहवा एवं जहा श्रवस्स रायदंडो सुम्भति, जति ण छुन्भति तो दोसो भवति । पच्छितं पि भवस्सं वोढध्वं जति ण वहति तो चरणविसुद्धी न भवति । पुनरप्याह चोदकः - बहु भावण्णं सुम्भउ येवं पच्छितं किं छुम्भइ ? कि तत्तिलएण होहिति" त्ति । ३७४ प्रायरियो भाइ "संकर" पच्छद्धं । संकर त्ति जहा सारणीए खेते पज्जिज्जते एक्कं वि तिष्णं लग्गतं णो श्रवणीयं, तण्णिस्साए प्रणे लग्गा, सिणिस्साए पतकट्ठमादीवि, एवं तम्मि सोते रुद्धे विसोय गयं जलं कुसारढंढणादी पज्जेत्ति छेत्तं सुक्खसस्सं । एवं चरणसोते पच्छित्तसंकरेषु प्रसो हिज्जते सव्वा चरणणासो भवति । एवं जाउं जं जहा प्रावज्जति तं तहा सोहेयव्यं । -- जावा मंडवे एक्को सरिसवो पक्खित्तो सो णावणीमो, प्रण्णो वि, एवं पक्खिप्पमाणेहि पक्खिप्पमाणेह होहिहि सो सरिसवो जेण पक्खित्तेण मंडवो भज्जिहिति । एवं वथेवेण प्रावण्णेण प्रसोहिज्जेतेण चरितमंडवो वि भज्जिहति । जहा भंडी एक्को पासाणो वलयिम्रो, जहा सरिसवस्स विभासा तहा भंडीए वि । हवा - भंडीए एक्कं दारुचं भग्गं, तं ण संठवितं, एवं ग्रपणं पि, एवं सव्वा भंडी भग्गा । एवं चरितभंडीए वि उवसंहारो । [ सूत्र - २० जहा वा सुद्धे वत्थे कज्जलबिंदू पडिप्रो, सो ण धोश्रो, अण्णो वि पडितो सो ण धोतो, एवं पडतेहि अधोयतेहि सव्बं तं वत्थं कज्जलवण्णं जायं । एवं सुद्धं चरितं त्रयेत्रावतीहि प्रसो हिज्जतीहि सव्वा भचरिती भवति ।। ६६०१ || एवं दितेहिं पच्छित्तदाणकारणे पसाहिते चोदकः अणुकंपिता व चत्ता, श्रहवा सोही न विज्जते तेसिं । कप्पट्टगभंडीए, दिट्ठतो धम्मया सुद्धो ॥ ६६०२ ॥ चोदगो भणति - एगावतीए जस्स सुद्धतवं देह, सो भे अणुकंपितो रागो य । तत्थ जस्स परिहारं सो भे त्रत्तो दोमो य तत्थ । ग्रहवा - परलोगं पडुच्च परिहारतवी प्रणुकंपिश्रो चरणसुद्धीश्रो सुद्धतवी चत्तो चरितस्स श्रसुद्धत्तणतो । ग्रहवा - जइ परिहारतवेण सुद्धी तो सुद्धतवइत्ताण सोही ण विज्जति । ग्रह सुद्धतवेण विसुद्धी भवति ता परिहारतवकक्खडकरणं सव्वं णिरत्थयं । एत्थ प्रायरिया कप्पट्ठगभंडीए महल्लभडीए य दिट्ठत करेंति । जहा कप्पट्ठा अप्पणी सगडियाए ववहरंति, सकज्जणिप्फत्ति च करेंति, णो तरंति महल्लभंडीए, कज्जं ति काउंण वा महल्लभंडीए ग्रारोविज्जति । ग्रह प्रारोविज्जति तो सा भज्जति, कज्जं च ण सिज्झति । एवं महल्लगा वि कप्पट्ठगभंडीए कज्जं ण करेंति, ग्रह करेंति तो पलिमंथो, सकज्जसिद्धी य ण भवति । Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशक: एवं सुद्धतवेणेव सुद्धी भवति, परिहारतवेण णेव भवइ । कहं ? उच्यते - " अम्मया सुद्धो" त्ति अस्य व्यख्या - माध्यगाथा ६६०२-६६०८ ] जो जं काउ समत्थो, सो तेण विसुज्झते सदभावो । गूहितबलो ण सुज्झति, धम्मसभावो ति एगट्ठा ॥ ६६०३ ॥ जो साधू "जं" ति सुद्धतवं परिहारतवं वा काचं समत्यो भवति स साधू तेणेव तवेण सुज्झति । भावोति स्ववीयं प्रतिमायां प्रकुव्यमाणो स्वधर्मव्यवस्थितस्त्राच्च, जो पुण स्ववीयं गृहति सो न सुज्झति, जती तस्स धम्मो ति वा, सभावो त्ति वा दो वि एगट्ठा ॥६६०३॥ एते शुद्धपरिहारतव विशेषज्ञापनार्थमिदमुच्यते - सुद्धतवे परिहारिय, आलवणादीसु कक्खडे इतरे । कपट्टिय अणुपरिट्टण वेयावच्चकरणे य ||६६०४॥ सीसो पुच्छति - सुद्धतत्र परिहारतवाणं कतरो कक्खडो वा, प्रक्रक्खडो वा ? आयरियो भगति - सुद्धतवो घालवणादिहि श्रकक्खडो, इयरोति परिहारतवो सो प्रणालवणादीहि कक्खडो । जो पुण तवकालो, तवकरणं वा तं दोसु वि तुल्लं । श्रावण्णपरिहारं पवष्णस्स जे कप्पट्टतअणुपरिहारिया ठविया तेहि कर णिज्जं "वेयावडियं" ति सुत्तपदं ॥ ६६०४॥ किं पुण तं वेयावडियं, जं कायव्वं ?, प्रत उच्यते Ap ३७५ वेयावच्चे तिविहे, अप्पाणम्मि य परे तदुभए य । अणुसडि उबालंभे, उवग्गहो चैव तिविहम्मि || ६६०५|| दव्वेण भावेण वा जं प्रप्पणी परस्स वा उवकारकरणं तं सव्वं वेयावच्चं । तं च तिविहं प्रणुसट्टी, उवालंभो, उवणहो य । उवदेसपदाणमणुसट्ठी श्रुतिकरणं वा प्रसट्ठी । सा तिविहा - प्राय पर उभयाणुसो, प्रत्ताणुसट्ठी जो प्रत्ताणं प्रणुसासति, पराणुसट्ठी जो परं श्रणुसासति, परेण वा प्रसट्ठी ।। ६६०५ ।। अणुसीय सुभद्दा, उवलंभम्मि य मिगावती देवी । आयरियो दोसु वि उवग्गहेसु सव्वत्थ श्रायरियो || ६६०६ || पराणसट्ठीए जहा चंपानयरीए सुभद्दा णागरजणे अणुसट्टा “घण्णा सपुष्णा सि" ति । उभयाणुपट्टी जो प्रत्ताणं परं च प्रणुमासति ।। ६६०६ ।। - एवं तिविहं पि प्रणुट्ठि इमेण गाथाजुयलत्थेण श्रणुसरेज्जा - दंडसुलभम्मि लोए, मात्र मतिं कुणसु दंडियो मित्ति । एस दुलहो उदंडो, भवदंडणिवारणी जीव || ६६०७॥ कंख्या । ण केवलं एस दडो भवणिवारगो, श्रपि चात्मानाचारमलिनो विशोधितः || ६६०७॥ वि यहु विसोहितो ते, अप्पाऽणायारमतिलिचो जीव । इति अप्प परे उभए, अणुसट्टि धुइ ति एगट्ठा || ६६०८ || १ गा० ६६०२ । २ सू० १७ । Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- पूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र- २० साधु कयं ते जं धप्पाऽणायारमंलिणो विसोधितो ति एवं वुच्चति । सेसं कंठं ।। ६६०८ ।। इदाणि उवलंभो" त्ति प्रणायारकरणोवलंभातो, साघुणा ताव एस पदार्ण उवालंभो भण्णति । सो वितिविहो - प्रप्पाणऽपरे तदुगए य । जं अपणा चैव प्रप्पाणं उवालभति, जहा ३७६ तुमए चेव कतमिणं, न सुद्धकारिस्स दिज्जते दंडो । इह मुक्को विण मुच्चसि, परत्थ अह हो उवालंभो ॥ ६६०६॥ प्रायरियादिणा जो परेण उवालम्भति जहा मित्रावती देवी प्रज्जचंदणाए उवालद्धा " अकालचारिणि" त्ति काउं । उभयउवालंभो जो प्रणामप्पा उवालभति श्रायरियादिणा य उवालम्भति, अहवा गुरुणा उपलब्भमाणो तं गुरुवयणं सम्मं पडिवज्जंतो पच्चुयरति, एस उभय उवालंभो ।। ६६०६ ।। इदाणि उवग्गहो, "" उवग्गहो चेव तिविहम्मि" त्ति दव्वतो णामेगे उवग्गहो नो भावनो, नो दव्वमो भावप्रो, एगे दव्वतो वि भावतो वि, चउत्यो सुगो । तइयभंगविभासा इमा - " प्रायरियो दोसु" पच्छद्ध ं । अस्य व्याख्या - दव्वेण य भावेण य, उवग्गहो दव्वे अण्णपाणादी । भावे पडिपुच्छादी, करोति जं वा गिलाणस्स || ६६१०॥ पति प्रणुपरिहार वा असमत्यस्स श्रसमाती श्राणेउं देति । भावे आयरिश्रो सुत्ते प्रत्ये वा पsिपुच्छं देइ । ग्रहवा - जं गिलाणस्स कज्जति मो भावस्सुवग्गहो ।। ६६१०॥ हवा "४ दोसु वि उवग्गहेसु त्ति प्रस्य व्याख्या - परिहार ऽणुपरिहारी, दुविहेण उवग्गण आयरियो | उवगिण्हति सव्वं वा, सबालबुडाउलं गच्छं ॥ ६६११ ॥ सव्वस्था परिहारियं श्रणुपरिहारियं च एते दो वि दुविहेण वि दव्वभावोवग्गहेण उवगेण्हति । रिमो" ति परिहारियस्स अपरिहारियस्स श्रणुपरिहारियस्स सबालवुड्डुस्स य गच्छस्स दव्वभावेहि सव्वहा उग्गहं करेति ॥ ६६११॥ एवं परिहारियस्स परिहारतवेण गिलायम, णस्स पुव्वं अणुसंट्टी कज्जति, ततो उवालंभो दिज्जति, पच्छा से उवग्गहं कज्जति । भणियं च - - "दाण दवावण कारावणे य करणे य कयमणुष्णा य । विविधि जाणाहि उवग्गहं एवं " ॥१॥ प्रणुसट्ठि उवालंभ-उवग्गहे तिसु वि पदेसु श्रट्टभंगा कायव्वा, जतो भण्णति अहवाऽणुसडुवालंभुवग्गहे कुणति तिनि विगुरू से | सव्वस्स वा गणस्सा, अणुसट्टादीणि सो कुणति ॥ ६६१२॥ १ गा० ६६०५ । २ गा० ६६०५ । ३ गा० ६६०६ । ४ गा० ६६०६ । ५ गा० ६६०६ । - Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६०६-६६१६] विंशतितम उद्देशक: ३७७ एस अट्ठमो , आदिल्लेसु वि सत्तसु जत्तियं चेव भणति करेति वा । अहवा - ण केवलं परिहारियस्स करेति "सो" ति-पायरियो सवस्स गणस्स अट्टमंगीए अणुसट्ठिमादीणि करेति, अहवा- "सो" त्ति - परिहारिप्रो, गणस्स करोतीत्यर्थः ॥६६१२॥ अत्र चोदक : आयरिओ केरिसओ, इहलोए केरिसो व परलोए । इहलोए असारणिो , परलोए फुडं भणंतो उ ॥६६१३॥ छम्मासियं अणुग्गहकसिणं जो एस उवगहकरो मायरिमो तं चेव गाउमिच्छ केरिसो इहलोने परलोए वा हितकरो? आचार्याह - पायरियो चउविहो इमो - इहलोहिते णामेगो परलोगे। एवं चउभंगो । पढमबितियभंगवक्खाणं पच्छद्धं । इहलोगं पडुच्च जो य सारेति, पाहारवत्थपत्ता दियं च जोग्गं देति । परलोगहितो जो पमादेंतस्स चोयणं करेइ, ण वत्थपत्तादियं देति । उभयहितो जो चोदेति, वत्यादियं च देति । चउत्थो उभयरहिरो ॥६६१३॥ चोदगाह - "णणु जो भसभावत्तणो ण चोएति, सो इहलोए इच्छिज्जति । जो पुण खरपरुसं भणंतो चंडरुद्राचार्यवत् चोदेति, ण सो इच्छिज्जति"। प्राचार्याह जीहाए विलिहतो, ण भद्दतो जत्थ सारणा णत्थि । दंडेण वि ताडतो, स भद्दतो सारणा जत्थ ॥६६१४॥ कंठा एत्य कारणमिणं - जह सरणमुवगयाणं, जीवियवक्रोवणं णरो कुणति । एवं सारणियाणं, आयरिश्रो असारो गच्छे ॥६६१।। साधू कहं सरणमुत्रगया ?, उच्यते - जेग पक्खे पक्खे भणंति - "इच्छामि समासमणो !, कताई च मे कितिकम्माई" इत्यादि जाव "तुम्भं तवतेय सिरीश्रो (ए) चाउरंतामो संसारकंतारामो साहत्थं (टु) णित्वरिस्सामि" त्ति कटु, एवं सरणमुवगता पचोदेंतो परिचयइ ॥६६१५॥ तम्हा ततियभंगिल्लो पायरियो परिहारियस्स अणुसट्टा तिविहं वेयावच्चं करेति, कारवेइ, अणुमण्णति य। एवं वेयावच्चे कीरमाणे जं पडिसेवति प्रावज्जतीत्यर्थः । “से विकसिणे तत्थेव मारुभियन्वे", एवं सुत्तपदं कसिणं णाम कृत्स्नं निरवशेषं । तं इमं छव्विहं - पडिसेवणा य संचय, आरुवण अणुग्गहे य बोधव्वे । अणुधात गिरवसेसे, कसिणं.पुण छन्विहं होति ॥६६१६॥ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र सूत्र-२० पारंचि सतर्मसीतं छम्मासारुवणा छदिणगतेहिं । कालकणिरंतरं वा अण्णमहियं भवे छह ॥६६१७|| एषां यथासंख्येन इमा विभासा - पडिसेवणाकसिणं पारंचियं, संचयकसिणं असीयं माससयं, मारुवणकसिणं छम्मासियं, अणुग्गहक. सिणं णाम छण्हं मासाणं भारोवियाणं बद्दिवसा गता ताहे अण्णो छम्मासो प्रावण्णो ताहे जं तेण अद्धवढं तं झोसितं जं पच्छा प्रावणं छम्मासितं तं वहति, एत्य पंच मासा चउव्वीसं च दिवसा जेण भोसिया। एवं चणग्गहकसिणं । एत्येव गिरणग्गहकसिणं भाणियब्वं, जहा छम्मासियं पदविए पंच मासा चउवीसं च दिवसा बूढा ताहे अण्णं छम्मासियं प्रावण्णो ताहे तं वहति पुन्विल्लस्स छद्दिशा झोसो। अणग्यायकसिणं जं कालगं जहा मासगुरुगादि। अहवा - जंगिरंतरं दाणं एस्थ मासलहुगादी विणिरंतरं दिग्जमाणं प्रणुग्धातं भवति, ग्रहवामणुग्घातियं तिविहं- कालगुरु तवगुरु उभयगुरु - कालगुरुं जं गिम्हादिकक्खडे काले दिज्जति, तवगुरु जं प्रमादि दिजति गिरंतरं वा । उभयगुरु जं.गिम्हे गिरंतरं च । णिरवसेसकसिणं णाम जं प्रावणी त सव्वं अणूणमतिरित्तं दिजति ॥६६१७॥ एत्थ कयरेणं कसिणेणं तं आरुभियन्वं ? उच्यते - एत्तो समारुभेज्जा, अणुग्गहकसिणेण विण्णसेसम्मि । आलोयणं सुणेज्जा, पुरिसज्जातं च विनाय ॥६६१८॥ एतो ति छब्विह ( कसिणाणं अणुगह ) कसिणेण मारुभेयव्वं पुबिल्लस्स विण सेमदिवसेस, तं च पालोयणं सुणेत्ता हा दुछुकतादि पुरिसजायं च घितिसंघयणेहिं दुबलं एवं विणाय जति छम्मासियं मावण्णो तो छसु दिवसेसु गतेसु प्रारोविज्जति । अह तिव्वज्झवसिए पडिसेवितं रागायत्तेण पालोचित्तं घितिसंधयणेहिं य बलवंतो से णिरणुग्गहं प्रारोविज्जति 'छद्दिणसेस" त्ति ॥६६१८॥ ___इयाणि पडिसेवणाआलोयणासु चउभंगे इमं सुत्तखंडं उच्चारेयव्वं - " 'पुव्वं पडिसेवियं पुव्वं पालोतियं" इत्यादि, अस्यार्थः - पुवाणुपुबी दुविहा, पडिसेवणता तहेव आलोए । पडिसेवण आलोयण, पुट्विं पच्छा उ चउभंगो ॥६६१६॥ 'पुव्वाणुपुब्धि" त्ति प्रस्यार्थः - पूर्वस्य यः अनुपूर्वश्च म पूर्वानुपूर्वः, एत्थ निमिणं - एकस्स तो अणु, ते य तिगस्स पुव्वा, दुगस्स तिनि अणु, ते य चउक्कगस्स पुवा, एवं सर्वत्र। अहवा - पूर्व वा अनुपूर्वः स एव पूर्वानुपूर्वी, अनेन अधिकारः, जेणं जं पुव्वं पडिसेवितं पालोयणकाले तमेव पुव्वं पालोचितं ति । अधवा - सामयिगी सण्णा, जाव अणुपरिवाडी सा पुत्राणपुब्बी भण्णति, सा य दुविहा - पडिसेवणाए पालोयणाए या एयासु पडिसेवणा पालोयणासु पुव्वापच्चरणविकप्पेण चउभंगो कायवो ॥६६१६॥ १ सू० १७ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यमाथा ६६१७-६६२४ ] विंशतितम उद्देशक: ३७९ जहा सुत्ते भंगभावणा इमा पुव्वाणुपुल्वि पदमो, विवरीए वितियततियए गुरुओ। आयरियकारणा पुण, पच्छा पुच्छा य सुण्णो उ ॥६६२०॥ पुव्वाणुपुव्वी पढम सि एस पढमो भंगो, अस्य व्याख्या - पच्छित्तऽणुपुव्वीए जयणा पडिसेवणा य अणुपुव्वी । एमेव वियडणादी, वितिय-ततियमादिणो गुरुओ ॥६६२१।। पुव्वं गुरूणि पडिसेविऊण पच्छा लहूणि सेवित्ता। लहुए पुल्विं कथयति, मा मे दो देज्ज पच्छित्ते ॥६६२२॥ पु जं गीयत्वकारणे लहुगुरुपणगादिजयणाए पच्छित्तणुपुस्विं प्रवलबंतो पडिसेवति । एस पडिसेवणाणुपुःवी। वियडण त्ति मालोयणाणुपुग्वी, सा वि एवं चेव जं जहा पडिसेवितंतहा चेव पालोएति त्ति एस पढमभंगो । विवरीतो बितिम्रो- “पृथ्वं पडिसेवितं पच्छा पालोइयं" ति एस बितियमंगो। ततिम्रो वि पच्छा पडिसेवितं पुत्वं प्रालोइयं ति, एएसु बिइयततियभंगेसु जं प्रावणो तं दिज्जति, मायाविणो य काउं मायाणिप्फण्णं चउगुरुनो मासो दिज्जति । एतेसु वि ततियभंगेसु भावना इमा, एत्थ गुरु त्ति वृहद् द्रष्टव्यम्, लघु अल्पमिति, सो म मासलहु प्रादि देति, पुव्वं सेविऊण पणगादिया पच्छा पडिसेविए पुग्वं कहयति, मासादिया पुण पच्छा कहति । स्यात् किमेवं कहयति ?, उच्यते-प्रासंकया 'मा मे दो देज पच्छिते" ति अजयणणिप्फणं प्रतियारणिप्फणं च देति ॥६६२२॥ अहवाऽजतपडिसेवि, त्ति नेव दाहिंति मज्झ पच्छित्तं । इति दो मज्झिमभंगा, चरिमो पुण पढमसरिसो उ ॥६६२३॥ बितियभंगे वा करेति इमं चित्ते - "पणगादिप्रालोयणं सो" "मजयणपडिसेवि" ति गुरुगे ण दाहिति, पच्छित्तं पप्पं वा दाहिति" एवं मायिस्स मज्झिमदोभंगसंभवो भवति । अहवा-विसेसतो तसियभंगड स्थो इमो - "पायरियकारणा" ( गा० ६६२०) पच्छदं, पायरियादिकारणेण प्रणं गंतुकामो प्रायरिए वा गंतुकामो पायरियं भणति - इच्छामि भंते तुन्भेहिं अम्मणुण्णाभो इमेण कारणेण ममुगं विगति एवतियं कालं पाहारेत्तए । एवं तत्थ गीयत्था संभवाप्रो पुटवं पालोएत्ता पच्छा पडिसेवंति । अहवा - तृतीयभंगो शून्यो मंतव्यः । चरिमभंगो पढमभंगसरिच्छो चेव णायवो ॥६६२३॥ एत्य जम्हा पढमचरिमा दो वि भंगा भपलिकुंचियाभावे वितिय ततिय पलिकुचिताभावे तम्हा इमे अपलिउंचियभावे चउमंगसुतखंडं आगतं । 'अपलिचिते अपलिउचित्त' इत्यादि चउभंगसुत्तं उच्चारेयम् । पलिउंचण चउभंगो, वाहो गोणी य पढमयो सुद्धो। तं चेव य मच्छरिए, सहसा पलिउंचमाणे उ ॥६६२४॥ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूग-२० पलिउंचण इत्यर्थः प्रतिषेधदर्शनार्थः । जहा सूत्र तहा चउमंगो, क्वचित् सूत्रे प्रादिवरिमा मंगा मज्झिमा प्रत्थतो वत्तव्वा । प्रस्मिन् सूत्रे चउभंगे रहिते वा भिक्खुणिदिटुंतेहिं वक्खाणं फिज्जइ । जहा कोइ वाहो कस्सइ इस्सरस्स कयवित्तीग्रो मंसं उवाणेति । अण्णया सो वाहो सुदरं मंसं घेत्तु इस्सरते संपत्थितो, चितेइ य सव्वेतं ममं इस्सरस्स दायव्वमिति । पत्तो इस्सरसमीवं, तेण ईसरण सुहुमेण आभट्ठो-स्वागतं सुस्वागतं उवविसाहि त्ति, मज्जं च पातितो, वाहेण य तुट्टेण सव्वं तं मंसं जहा चिंतितं दिणं । एव को ति सावराही पालोइउकामो प्रायरियसगास पट्टितो चितेति य सुहुमबादरा सवे प्रतियारा पालोइयव्व ति पत्तो पायरियसमीवं । प्रायरिएण वि सुठु प्राढातितो- "धण्णो सपुष्णो ग्रासि । तं न दुक्कर जं पडिसेवितं, तं दुक्करं जं सम्मं पालोइज्जति ।" एवं अप्फालिएण सव्वं जहा चितिय पालोइयं, सुद्धो य, एस पढमभंगो। इदाणि बितियभंगो, “तं चेव य मच्छरिय" त्ति पच्छद्ध - खरंटणभीओ रुट्ठो, सक्कारं देंति ततियए सेसं । भिक्खुणि वाह चउत्थो, सहसा पलिउचमाणो उ ॥६६२५॥ पढमपातो त बितियभुगे “तं चेव" त्ति - नहेव वाहो आगो, जहा पढमभंगे अपलिउंचमाणो त्ति, तेण वि इस्सरेण कारणे वा मच्छरो से उप्पातितो, “सहस" त्ति - पुवावर प्रणालोवेउ "कीस उस्सूरे प्रागतो"? त्ति । तेण खरंटिएण भीग्रो पुव्वेण स्टेण य पलिउंचियं ण सव्वं मंसं दिण्णं, पलिउंचमाणे बितियभंगो भवति । पालोयगो वि नागभो । पुच्छियो - केण कारणेण प्रागपो त्ति ? भणियं - अवराह पालोइउं । मायरिएण खरंटितो । कीस तहा विहरियं जहा प्रवराहं पावह ?, पालोएंतो वा खरटितो, तेण वि ण सम्म मालोतितं । एस गतो बितियभंगो। इदाणि ततियभंगो - "सकारं देति ततियए सेसं" ति - तहेव वाहो संपद्वितो मंसं घेत्तु, पुव्वमंसमाणियं पलिउंचियचित्तो चितेइ ण सव्वं मंसं मए दायव्वमिति पत्तोइस्सरसमीवं, इस्सरेण सुठ्ठ आढातितो, तेण से सव्वं मंसं दिण्णं । एवं पालोयगो वि संपट्टियो पडिपहियं साहुं पुच्छति - "प्रमुगं पायरियं मझेग प्रागतो सि ?" भणति - "ग्राम"। "केरिसो सो सुहाभिगमो ण व" ति ? तेण भणियं - "दुरभिगमो'। तहेव तेण चितियंन सम्म मए पालोइयब्वं ति । प्रागतो गुरु-समीवं. तेण सम्ममाढातितो पुच्छितो य किमागमणं ?, तेण भणियं पालोएउं । ताहे पायरिएण सुछ उववूहियो घण्णो सि विभासा, तेण तुद्वेण सम्म पालोचितं । एस ततियभंगो गतो। इदाणिं चउत्थभंगो- "भिवखुगिवाह" पच्छद्धं, चउत्थभंगो तहेव प्रागतो जहा ततियभगे पलिउंचमाणो, णवरं - आगो इस्सरेण खरंटितो, तेण खरटिएण पुव्वपलिउंचियभावेण य सम्म ण दिण्णं, एवं पालोयगे वि उवणो कायव्वो। १ गा० ६६२४ । Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६२५- ६६२८ ] विंशतितम उद्देशकः इमो गोणी च उभंगदिदूंतो । जहा गोणी दोहिउकामा पण्हुया आगया, सामिणा उववहिता गोभत्तेणं, कंडुतिता, घूमादीहि य उवग्गहिया, पलिमत्ताए णिउत्ता सव्वं पण्डुता । एवं घालोयगविभासा वि । बितया गया, ण प्राढिया, पारद्धा य पहारेहिं, तीए ण दिण्णं सव्वं खीरं । श्रालोय गेह त उवण । ततिया गृहंती दोहे उकामा आगया उबज्झिता पलमेत्ताए णिउत्ता सव्वं पण्हुया, एवं आलोयगविभासा वि । चउत्था गृहंती आगता, सामिणा य पहारेहिं पारद्धा, ण सव्वं पण्डुया, प्रालोयगोवि तहेव त उवणप्रो । - दाणि भिक्खुणिदितो का इ भिक्खुणी करून इ पुव्वपरिचियस्स घरं गता, तीए तिरिक्खे 'खोरगं दिट्ठ. गहिय च तीए, पच्छा से परिणयभावे अप्पेमि त्ति घरं गता, तेहि प्राढाइता, सा तुट्ठा तीए दिष्णं ॥ १ ॥ अण्णाए गहियं चितियं च ताए दाहामि ति घरं गता सा य न माढाइया, तेहि खरंटिया य, तीए न दिष्णं ॥२॥ ततियाए वि गहियं चितियं च नाएण दायव्वं ति, घरं गता, सुस्वागता, श्रासणादीहि भ्राढातिया, तीए दिणां ||३|| चउत्थाए गहियं दितियं च णाएण दायव्वं ति, घरं गता, णाढाइया खरंटिता, ण दिष्णं ॥ व ।। "भिवखुणि वाह चउत्यो त्ति" भिक्खुणिवाहगोणिसु य एक्केक्के चउभंगो, तेसु चउत्थे भंगे पलिउंच माणेसु वि स्वामिना स्वार्थभ्रंशिना सहसा प्रणादरो कता खरंटणा वा पयुत्ताएं ततो तेहि तथा चितियं [भे] तहेव पलिउचितमित्यर्थः ॥ ६६२५।। पडरूवगोवसंहारो इमो - इस्सरसरिसो उ गुरू, साहू वाहो पडिसेरणा मंसं । णूमणता लिउ चण, सक्कारो वीलणा होति || ६६२६॥ कंठ्या सुत्तखंड इमं - "प्रपलिउंचि" इत्यादि, अस्यार्थः १ कचोलकं । आलोयण त्तिय पुणो, जा एस अकुंचिया उभयवि । सच्चे होति सोही, तत्थे य मेरा इमा होति ॥ ६६२७॥ ३८१ प्रालोयमाणो प्रपलिउंनियं जो प्रालोएति " उभउ" ति - प्रपलिउंचियसंकप्पेणं श्रपलिउंचियं चैव श्रालोतितं, अहवा पडि सेवागुलोमेणं पच्छित्ताणुलोमेग य " सच्चेव होइ सोधि" ति - जो एस पलिउंजिय अपलिउंचिय बालोएइ सोऽमाइणिप्फण्णो तो सुद्धेत्यर्थः । पुनविशेषणे । किं विशिनष्टि ?, उच्यतेपालो तस्स प्रालोयणारिहं प्रति तत्थ या मेर त्ति सामाचारी इत्यर्थः । तं प्रासण्णाभिग्गहेण श्रतियरंतस्स पच्छितं भणति एवं विसेसेति ॥ ६६२७ ।। अथवा एसा आलोयणा आयरियसिस्स भावे भवति । तेसि सामाचारी इमा - - श्रयरिए कह सोही, सीहाणुग व सभ - कोल्लुगाणूए । हवा विसभावेणं, णिम्मंसुगे मासिगा तिष्णि ||६६२८ || Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे सूत्र- २० जया आलोयणारिहारिए आलोयगा आलोयणं पउंजति तदा कस्स कहूं सुद्धी प्रसुद्धी वा भवति ? उच्यते - श्रायरियो तिविहो- सीहाणुगो वसहाणुगो कोल्लुगाणुगो । तत्थ जो महंत णिसिज्जाए ठितो सुत्तमत्थं वाएति चिट्ठइ वा सो सोहागुगो । जो एक्कमि कप्पे ठिनी वाएति चिट्ठइ वा सो वसहाणुगो । जो रयहरणणिसेज्जाए उवग्गहियपादपुंछणे वा ठितो वाएति चिट्ठति वा सो कोल्लुगाणुगो । एवं सहभिगो विविकप्पेयव्त्रा एवं प्रालोयगा वि प्रायरियस भिक्खुणो विकप्पेयव्वा । णवरं - कोल्हुगाणुगे विसेसो- सदा णिसेज्जाए पादपुंछ वा उक्कुडुम्रो वा प्रालोएति, जइ उक्कुडुप्रो श्रालोएति तो सुद्धो । णिसेज्जपादपुंछ गेसु भयणा । " ग्रहवा - वि सभावेगं णिम्मंसुग" त्ति - ग्रहवेत्ययं नियनप्रदर्शनार्थः । स्त्रको भाव: स्वभाव:, कोति श्रयरिम्रो वसभो वा सभावेण कोल्लुगः णुगो हवेज्ज । ग्रहवाधम्मसद्धाए कोइ नेच्छति सिज्जाए उबविडिउं, तस्स निसिज्जा कायन्त्रा ण कायञ्वा ?, उच्यते जो होउ. सो होउ तस्स णिसिज्ज काउं प्रालोयगेण श्रालोएयव्वं, जइ ण करेइ तो पच्छितं पावइ । एत्य दिट्ठतो णिमंसुगेणं रण्णा । ३८२ करायाणमंसु, णत्थि से किंचि सरीरे रोमं ति । तस्स कासवगो कयवित्ती, णत्थि सेमं ति काउं परिभवेण न कताइ कमिजणाए उत्रद्वाति । ग्रण्णया रण्णा भणियं - प्राणहि छुर भंड, माहिति । तेण प्राणियं उग्धाडियं दिट्ठे पमादतो अपडिजग्गणाए सव्वं कट्टियं, एस मं परिभवति । रुद्वेणं रण्णा सव्वस्सहरणो कतो, वित्तीय छिण्णा, अण्णो य ठविप्रो, सो य सत्तमे दिवसे छुरभंडं सज्जेत्ता उवद्वाति, सुट्टेणं रण्णा वित्तो संवद्धिता भोगा भागी य जातो । एवं जा शिसेज्जं करेति सो इहलोगे जसं पावति, परलोगे वि कम्म णेज्जरणातो सिद्धि पावनि, जो पुण निसिज्जं न करेति सो पायच्छित्तदंड पावति । इमं - "मासिया तिणि" जत्थ प्रायरियाती सरिसो सरिमाणुप्रस श्रालोएइ । तत्थ तिणि मासिया । सोहागुस्स प्रायरियस सोहागो चेव प्रायरिओ प्रालोएति । एवं एक्कासि । वसभस्म वमभाणुगस्स वसभो चेत्र वसभागुगो आलोइए। एवं बितियं मासियं । भिक्खुस्स कोल्गागो ग्रालोएइ । एव ततिय मासियं । एयं सट्टा पच्छित्तं ।। ६६२= ।। इदागि सद्वाणपरट्ठाणजाणणत्थं तेसु चैव पच्छितं वत्तुकामो इदमाह - सहाणाणुग केई, परठाणाणुग य केइ गुरुगादी | सनिमिज्जाए कप्पो, पुच्छ निसिज्जा व उक्कुडए || ६६२६|| " सद्वाणः गुग के३" ति - प्रायरियस्स सच्छोभगा निषद्या सन्निषद्या, तट्ठियम्स सीहा सट्टाणगा सहागतं सद्वाणं, तस्स परद्वाणाणुगत्तणं कप्पपुंखगादीसु वसभकोल्लुगाणुयत्तणा । वसभस्स सट्टाणाणुगत्तं कप्पे सभागतं तस्स परद्वाणाणुगत्तणं मणिसेज्जपुंछणादिसु सीहाणुगकाल्लुगाणुगत्तणा । भिक्खुस्स सट्टा जुगत्तणं पदपुंग-गिसेज्ज उय कुडुप्रत्तणेण कोल्लुगाणुगत्तणं, तस्य परद्राणानुगत्तणं सणिसेज्जं, कप्पे य सीहाणुगवसहानुगत्तणा । सहानुगस्स प्रायरियस सीहाणुगो प्रायारेश्रो बालोएड, एसो पढमो गमप्रो । १ गालः । Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६६२६-६६३५ ] विशतितम उददेशकः सोहानुगस्स प्रायरियस्स वसभाणुगो प्रायरिम्रो प्रालो एति, एस बितितो गमो । सोहाग प्रायरियरस कोल्लुगाणुको प्रायरियो प्रालोयणं देति, एस ततिश्रो । इदाणि वसभागं प्रायरियं काउं ते चैत्र प्रायरिया सीह बसभ- कोल्लुगाणुगा तिष्णि प्रालोयगा ऐते वितिणि गमा [पुणो कोल्लुगाणुगा तिणि प्रालोयगा, एते वि तिणि गमा] पुणो कोल्लुगाणुगं आयरियं काउं ते चैव सीह वसभा कोल्लुगा निष्णि श्रालोयगा । एते तिणि सव्वे एते गवगमा जाया ||६६२६॥ ठाणा वृत्ता । एतेसि जहासंखेण इमं पच्छितं - मासो दोणि य सुद्धा, चउलहु लहुओ य अंतिमो सुद्धो । गुरुगा हुआ लहुआ, भेदा गणिणो णव गणिम्मि ||६६३०|| ० । सु । सु । ङ्क। ० । सु । ङ्का : क । ० । कोल्लुगस्स कोल्लुगो प्रालोयगो पादपुंखण णिसेज्जासु सरिसा स मासलहुं । अह सबकुडुम्रो तो सुद्धो चेव । एते नवभेदा । प्रायरिए आलोयणा रिहां प्रायरिएसु चैव प्रालोयगेसु प्रायरियस्स आलोयगस्स एते पच्छिता तवकालेहिं गुरुप्रा । एयं तिष्हं प्रायरियाणं सोहवसह्कोल्लुगाण वसभा विपत्र आलोएगा । एतेसि पि ते चैव पच्छिता, णवरं तवगुरु काललहु, एवं तिन्हं श्रायरियाणं सीह-वसभकोल्लुगाणं भिखुणो वि णव आलोएंगा। एएसि पि ते चैव पच्छिना नवरं - तवलहुगा कालगुरू ।। ६६३० ।। दोहि वि गुरुगा एते, गुरुम्मि णियमा तवेण कालेणं । वसभम्मिय तवगुरुगा, कालगुरू होंति भिक्खुम्मि ||६६३१ || गतार्थं एवं आलोयणारिहं प्रायरियं पडुच्च प्रायरिय-वमभ- भिवखुप्रालोयगेहि सत्तावीसं पच्छित्त - इयाणि वसमस्त प्रालोयणारिहस्त सोह-वसभ - कोल्हूगाणुगस्स पुण्वक मेण नव प्रायरिया श्रालोयगा । तेसि इमं पच्छित्तं जहासंखेण एमेव यवसभस्स वि, आयरियादीसु नवसु ठाणेसु । नवरं चउलहुगा पुण, तम्सादी छल्लहू अंते ॥ ६६३२॥ - ३=३ "दोहि वि" च उलहुगा || || सु ।। ४ण्का ||" || सु । ७ ।। ' ॥ १०॥ गुरुगस्स एते. पच्तिा गाहा वसभाणं विवहं श्रालो एंतगाणं एते चैव पच्छिता, गवरं तत्रगुरुगा काललहू, भिक्खूप विवहं आलोएं गाणं एते चेव पछिता । नवरं - तवलहूगा कालगुरू ||६६३२।। क्वचित् पाठांतरं - लहुया लहुओ सुद्धो, गुरुगा लहुगो य अंतिमो सुद्धो । छल्लहु चउलहु लहुओ, वसभस्स तु णवसु ठाणेसु ॥ ६६३३|| दोहि वि गुरुगा एते, गुरुम्मि नियमा तवेण कालें । सहम्मि वितवगुरुगा, कालगुरू होंति भिक्खुम्मि ||६६३४ || एमेव य भिक्खुस्स वि, आलोएतस्स णवसु ठाणेमु । चउगुरुगा पुण आदी, वग्गुरुगा तस्स अंतम्मि ||६६३५|| Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [ मूत्र-२० एवं वसभस्स वि आलोयणारिहस्म अविणयप्रतिपत्ती इमं पच्छित्तं । प्रायरियस्स णवविहस्स प्रालोयगस्स प्रादिसद्दानो वसहभिक्खूश वि णवविहाणं । प्रादिसीहाणुगे चउलहुं, मज्झिमे चउगुरु, अंतिल्ले छल्लहुं, वसभःणुगेसु दोसु मासलहुं, अंतिल्ले चउलहुं. दो कोल्लुगा सुद्धा, अतिल्ले मासलहुं । सेसं पूर्ववत् । भिक्खुस्स भालोयणारिहस्स सीहाणुगादिभेदस्स णव प्रायग्यिा सीहाणुगादिभेदभिण्णा पालोयगा। एवं च वसभा णव पालोएंतगा, भिक्खुणो वि णव पालोएंतगाणं, तत्थ जे पायरिया णव पालोयगा। एतेसि पच्छित्तं। जहासंखेण इमं - चउगुरु चउलहु सुद्धो, छल्लहु चउगुरुग अंतिमो सुद्धो । छग्गुरु चउगुरु लहुओ, भिखुस्स तु नवसु ठाणेसु ॥६६३६।। हा, क, सु, फ, बा, सु, , बा, ' । दोहि वि गुरुगा एते, गुरुम्मि नियमा तवेण कालेणं । वसभम्मि वि तवगुरुगा, कालगुरू होंति भिक्खुम्मि ॥६६३७।। प्रायरियस्स एते पच्छित्ता तवेण कालेग वि गुरुगा, वसभाण वि णवण्हं आलोएंनगाणं एते चेव पच्छित्ता, नवरं - तवगुरुगा काललहुगा, भिक्खूण वि णवण्हं पालोएंतगाणं एते चेव पच्छिता, णवरं - तवलहुगा कालगुरुगा। क्वचित् पाठान्तरं - "एमेव य भिक्खू" गाहा - भिवखुप्स तिविधभेदभिण्णस्स पालोयणारिहस्स प्रायरियवसभभिक्खुणो पालोएतगा। णव भेदा पूर्ववत् । प्राइट्ठाणे सोहाणुगे चउगुरु, मज्झट्ठाणसीहाणुगे छल्लहुं, अंतट्ठाणसीहाणुगे छग्गुरु। सेसं पूर्ववत् ।।६६३७।। । पच्छित्तदाणलक्खणं अविनयप्रतिपत्तौ इमं - सव्वत्थ वि सट्टाणं, अणुमुयंतस्स चउगुरू होंति । विसमासण णीयतरे, अकारणे अविहिए मासो ॥६६३८॥ 'सव्वत्थ" ति सर्वालोचनारिहस्याविनयप्रतिपतो इमं पालोणारिहो जारिसे प्रासणे णिविट्ठो मालोयगो वि जति तारिसं प्रासणं अमंचतो पालोएति तत्तुल्य एव स्थितेत्यर्थः । तो चउगुरु पच्छित्तं । मह विसमे अधिकतीतो छल्ल हुं छग्गुरु वा स्थानापेक्षयेत्यर्थः । अह विसमे णीयतरे ठितो मासलहुं, अयं प्रकारणे णिसीएइ तस्स पच्छित्तं । पालोयणकाले सेस प्रविहीसु वि अप्पमज्जणादीसु मासलहुं चेव ॥६६३८।। इमं अववादतो भण्णति - सव्वत्थ वि सट्ठाणं, अणुमुयंतस्स मासियं लहुयं । परठाणम्मि य सुद्धो, जति उच्चतरे भवे इतरो ॥६६३६॥ मालोएंतो वि कारणे जति सट्टाणं ण मुंचति, सटाणं णाम सरिससरिसाणं पायरिय वसह भिवखुणो य सरिसाणुगो होउं पालोएति त्ति तो मासलहुं. अह णीयतरद्वाणट्टितो पालोएति तो सव्वत्थ सुज्झति । सीहागुगस्स वसभकोल्छुगा परट्ठाणं । कोल्लुगस्स कोल्लुगो चेव उक्कुडुप्रो परढाणं । "इयरो" त्ति मालोयणारिहो जति उच्चतरे ठितो पालोयगो कारणे णीयतरे पासणे णिसीयंतो सुज्झतीत्यर्थः । एवं विभागतो एक्कासीतिविभागेण पच्छित्तं वृत्तं ॥६६३६॥ . Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६३६-६६४२] विंशतितम उद्देशकः इमं अोहेण पवविहं पच्छित्तं भण्णति चउगुरुगं मासो या, मासो छल्लहुग चउगुरू मासो। छग्गुरु छल्लहु चउगुरु, बितियादेसे भवे सोही ॥६६४०॥ सीहाणुगो होउं सीहाणुगस्स पालोएति चउगुरु, सीहाणुगम्स वसभाणुगो भालोएति मासलहू, सीहाशुगस्स कोल्लुगाणुप्रो होउं मासलहू. वसभाणु गस्स सीहाणुगो पालोएति छल्लहू, वसभाणुगस्स वसभाणुगो पालोएति चउगुरु', वसभाणुगस्स कोल्लुगाणुगो मासलहुँ, कोल्लुगाणुगस्स सीहाणुगो पालोएति छग्गुरु, कोल्लुगाणुस्स वसभाणगो छल्लहू, कोल्लुगाणुगस्स कोल्लुगाणुगो चउगुरु,एस बितियादेसे सोधी भणिया।।६६४०।। तेणं पालोयगेणं अपलिउंचिय अपलिउचिय पालोइयं, वीप्सा कृता, निरवशेषं सर्वमालोचितं, “सर्वमेत" ति । अधवा-"सव्वमेयं" ति जं प्रवराहावण्यं जं च पलिउचणाणिप्फण्णं अण्णं च कि विभालोयणकाले प्रसमायारणिप्फाणं संव्वमेतं स्वकृतं । "सगडं" "साहणिय" ति एक्कतो काउ से मासादि पट्टविज्जति जाव छम्मासा। अहवा - "साहणिय" नि जं छम्मासातिरित्तं तं परिसाडे ऊणं झोसेत्ता छम्मासादित्यर्थः । “जे" त्ति य साधू, “एयाए" त्ति या उक्ता विधि ] प्राकृतस्य अपराधस्य स्थापना "पट्ठवणा", अहवा - प्रकर्षेण कृतस्य स्थापना । अहवा - प्रविशुद्धचारित्र'त प्रात्मा श्रमायावित्वेन पालोचनाविधानेन उद्धृत्य क्सुिद्धे चारित्रे प्रकर्षेण स्थापितः । अहवा - "पढवणाए" ति प्रारंभः, य एष पालोचनाविधिः प्रायश्चित्तदान विधिश्च अनेन प्रस्थापित प्रवर्तित इत्यर्थः । “पट्टविय" ति तदेव यथारुह प्रायश्चित्तकरणत्वेनारोपितं, य एवं प्रायश्चित करणत्वेन स्थापितः । "गिव्विसमाणो" तं पच्छित्तं वहतो कुठवमाणेत्यर्थः । तं वहतो प्रमादतो विसयकसाएहि जइ अण्णं "पडिसेवति" ति ततो पडिसेवणामो “से वि" त्ति जं से पच्छितं त "कसिण" त्ति सव्वं । अहवा - अणुग्गहकसिणेण वा "तत्थेव" ति पुवपट्टविए पच्छित्ते पारोवेयव्वं चडावेयव्वं ति वुत्तं भवति । "सिप" त्ति अवधारणे दट्ठ व्वो। एस सुत्तत्थो । इमा णिज्जुत्ती मासादी पट्टविते, जं अण्णं सेवती तगं सव्वं । साहणिऊणं मासा, छद्दिज्जंतेतरे झोसो ॥६६४१॥ __जं छम्मासातिरित्तं तं एगतर तस्स झोससेसं इमाए गाहाए सुत्ते गतत्थं । “पट्ठविए" त्ति जं पदं तस्सिमे भेदा - दुविहा पट्ठवणा खलु, एगमणेगा य होतऽणेगा य । तवतिग परियत्ततिगं, तेरस उ जाणि त पताई ॥६६४२।। -प्रकृतं समाप्तम् । ___ सा पायच्छितपट्ठवणा दुविधा -- एगा अणेगा वा, तत्थ जा संचइया सा णियमा छम्मासिया एग विधा । सा य दुविधा - उम्घाताणुग्धाता वा। अहवा- केसि चि मएण एगविधा मासियादीणं अण्णतरठाणपट्टवणा । तत्थ जा अणे गविहा सा इमा - "तवतिग" पच्छदं । तत्थ पणगादिभिण्णमासतेसु परिहारतवो ण भवति, मासादिसु भवतीत्यर्थः । मासियं एक्कं तवठाणं, दुमासादि जाव चाउम्मासियं बितियं तवट्ठाणं, णमासछम्मासियं तइयं तवट्ठाणं ति, एते वि उग्धाताणुग्धाता वा, 'परियप्ततिग' णाम पव्वज्जा परियागस्स जत्थ परावत्ती भवति तं परियत्ततिगं तं च छेदतिगं, छेदो वि उग्घाताणुग्धाता वा,मूलतिगं, प्रणवट्ठतिगं, एक्क Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ सभाष्य-णिके निशीथसूत्रे [त्र २०-२३ च पारंचियं, एयामि तवतिगसहिताणि जाणि तेरस पदागि । एसा पारंचियवज्जिया प्रणेगविहा पट्टवणा भवतीत्यर्थः । अहवा- "जाणि य पदाणि" ति एते एक्कारस पदा गहिता, एतेसु तव पारंघिया एगविधा, छेदादितिगं मणेगविधा पट्टवणा भवतीत्यर्थः । एते हिट्ठा सिद्धा कि निमित्तं इह पुणो उच्चरिज्जति ? उच्यते - स्मरणार्थ । अहवा-जं एवं पट्टवियं पडिसेवति तं कसिणं प्रणग्गहेण व! णिरणग्गहेण वा पारोविज्जति, उग्धाते उग्धायं, अणुग्याए भणुग्घायं, अस्य शापनार्थमुच्चरितमित्यर्थः, अहवा-कसिणमप्यारोप्यमानं त्रयोदशकायशभिर्वा पदरारोप्यते, भस्य ज्ञापनार्थ मुच्वरितमित्यर्थः । "मपलिउचितं" ति एवं पढमभंगसुतं गतं । बितियभंगसुत्तं पि एवं चेव, णवरं - उच्चारणा से इमा -- "अपलिउंधिते पलिउचितं पालोएमाणस्स जाव सिया"। ततियभंगसुत्तं पि एवं चेव । णवरं- उच्चारणा से हमा - "पलिउचिते अपलिउचितं मालोएमाणस्स जाव सिया"। __ चउत्थभंगसुत्तं पि एवं चेव, तस्स उच्चारणा सुत्तेणेव भणिया – “जे भिक्खू बाउम्मासियं वा सातिरेगचाउम्मासियं वा जाव सिया।" जहा एते सुत्ता चउभंगविगप्पेण भणिया एवं मासिगदोमासिगा वि सुत्ता उवउज्जिऊण वित्थरो चउमंगविभागेण भाभियव्वा । एवं बहुससुत्ता वि चउमंगवाहादिदिटुंतेसु भाणियब्वा। पढमा दस प्रावत्तिसुत्ता भणिया। पुणो दस ते चेव कि विसेसंविभिट्ठा पालोयणसुत्ता मणिया?, एवं एए वीसं सुत्ता सप्रभेदा सम्मत्ता । सम्मत्तं च एत्थ ठवणारोवणपगयं ॥६६४२।। एयाणि पच्छित्त.णि सो वहतो अण्णं प्रावज्जेज, सो वि तत्थेव "प्रारुहेयन्त्र" त्ति जं वुत्तं तस्स मारोवणे कति भेदा ?, उच्यते-पंचभेदा । इमे पट्ठविता ठविता या, कसिणाकसिणा तहेव हाडहडा । आरोवण पंचविहा, पायच्छित्तं पुरिसजाते ॥६६४३।। पट्टविया य वहंते, वेयावच्चट्ठिता ठवितगा उ । कसिणा झोसविहिता जहि झोसो सा अकसिणा तू ॥६६४४॥ एषां व्याख्या - जं.च वहति पच्छितं सा पट्टवितिका भण्णति, ठविया णाम जं प्रावणो तं से छवियं कज्जति । किं निमित्तं?, उच्यते - सो वेयावच्चकरणलदिसंपण्णो जाव प्रायरियादीण वेयावच्चं करेति ताव से तं ठवितं कज्जति, दो जोगे काउं असमत्थो सो वेयावच्चे समत्ते तं काहिति त्ति, एव ठविया । कसिणा पाम जत्थ झोसो न कीरइ, प्रकसिणा नाम जत्थ किंचि झोसिज्जति ।।६६४४।। हाडहडा तिविधा-सज्जा ठविया पदविता य । तत्थ सज्जा इमा - उग्वायमणग्यायो, मासाइ तवो उ दिज्जते सज्जं । मासदुमासादियं उग्घातमणुग्धातियं वा जं प्रावण्णो तं जत्थ सिज्ज दिज्जति ण कालमपेक्वंति सा सज्जा । इमा ठविया - मासादी णिक्खित्त, जं सेसं तं अणुग्घायं ॥६६४५॥ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान्यगाथा ६६४३-६६४७ ] विशतितम उद्देशकः जं पुण मासादि श्रावण्णं णिविखत्तं ति वेयावचट्टया ठवियं कज्जति सा ठविया, तम्मि य ठवियसेसं ति जं प्रगं उग्घातमगुग्घातं वा भावज्जति तं सव्वं प्रणुग्धातं कज्जति । कम्हा ?, जम्हा सो प्रतिप्पमादी ।।६६४५।। इमा पविया - छम्मासादि वहते, अंतरे आवणे जा तु आरुवणा । सो होति श्रणुग्वाता, तिष्णि विकप्पा तु चरिमाए ||६६४६ || छम्मायिं वहतो प्रादिम्हणाओ पंचमासियं चउमा सियं तेमासियं दोम सियं मासियं वा वहंतो भ्रष्णं जं अंतरा श्रावज्जति उग्धातं प्रणुग्धातं वा तं से साणुग्गहेण णिरणुग्गहेण वा श्रारोविज्जमानं प्रणुग्धातं भारोविज्जति । कारणं पूर्ववत् । हाडहडाए एते तिणि विगप्पा ||६६४६॥ सा पुण जहण्ण उक्कोस मज्जिमा होंति तिणि उ विकप्पा | मासो छम्मासावा, अणुक्कोस जे मज् || ६६४७|| साहाडहडा छुम्भमाणी तिविषा - जहण्णादिगा, तत्थ मासगुरू जहण्णा, उक्कोसा छग्गुरू, एसि दोण्ह वि मज्झे जा सा प्रजहष्णमणुक्कोसा इमा दोमासिय गुरुगं, तिमःसियं गुरुगं, चउपासियं गुरुयं, पंचमा सियं गुरु ति । एसा आरोवणा पंचविहा समासश्रो भणिया ।। ६६४७ ।। इदाणि मासादी पविए जं अण्णं अंतरा पडिसेवति मासादी तत्थ जं जम्मि दिवसग्गहणमाणं भणति पट्ठविगाठविगा सरूवं जतो भण्णति सुत्तमागयं - छम्मासयं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ग्रहावरा वीसराइया आरोवणा आइमज्झावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं सवीसइराइया दो मासा || सू०||२१|| पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, श्रहावरा वीसइराइया आरोवणा श्रइमज्झावसाणे सङ्कं सहेउं सकारणं श्रहीणमतिरितं तेण परं सवीसहराइया दो मासा ||०||२२|| ३८७ चाउम्मा सियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया आरोवणा इमावसाणे स सहेउ सकारणं श्रहीणमतिरित्तं तेण परं सवीसइराइया दो मासा || सू०||२३|| तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, श्रहावरा वीसइराइया आरोवणा Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र २४-२६ श्रमज्यावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमतिरित्तं तेण परं सवीसइराइया दो मासा | | ० ||२४|| दोमासिगं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया श्रारोवणा श्रमभावसाणे सङ्कं सहेडं सकारणं श्रहीणमतिरित्तं तेण परं सवीसइगइया दो मासा ||२०||२५|| मासि परिहाराणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारड्डाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया रोवणा इमावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमतिरित्तं तेण परं सवीसइराइया दो मासा || सू०||२६|| सर्व संहितासूत्रं उच्चारेउं पदच्छेद काउ इमां पदत्थोपग्गहो " षडिति” संख्या | मानासनान्मासः, अन्यानि मानानि समयावलिकादीनि श्रसतीति मासः, मानानि वा द्रव्यक्षेत्रादीन्यसतीति मास: । मासोऽस्य परिमाणं मासमईति वा, मासनिष्पन्नं वा मासिकं । परिहार्यते इति परिहार:, परिहरणं वर्जन मित्यर्थः । हवा - परिहरणं परिहारः, ग्रहवा - परिह्रियते वर्ज्यते च ग्रस्मात् परिहारः । 'ष्ठा गतिनिवृत्तो" तिष्ठन्त्यस्मिन्निति स्थानं । परिहारस्य स्थानं परिहार स्थानं । "पट्ठविते" त्ति प्रादिकम्मणोदी रणभृतैश्वर्येष्वि ति कृत्वा प्रारब्धं यत् स्थापितं श्रद्धवृढं ति भणियं होइ । न गच्छन्तीत्यगा वृक्षा इत्यर्थः । प्रर्गः कृतं श्रगारं गृहमित्यर्थः । नास्य अगारं विद्यते इत्यनगारः । अंतस्य च अंतरं मज्भं अंतरं ति भण्णति । द्विमाम स्य परिमाणं दोमासियं । परिहारस्य स्थानं स्थानं प्रतिषेवित्वा, "प्रति" प्रतिदारयोः प्रतिसन्निधानयोर्वस्तु वस्तु प्रति मूलउत्तरगुणदप्पकप्प जयणसेवा करणं, क्त्वा प्रत्ययः, पूर्वस्य परेण सह संबंधमिच्छति कृत्वा अन्यत् किमपि कर्तव्यं तदपेक्षते । आङ्मर्यादायां, “लोक दर्शने", मर्यादयालोचनं दातव्यं प्रालोचनं दर्शयेदित्यर्थः । प्रथ इत्यय निपातः, अपरा नाम जा सा पुव्विं भणिता सतो जा अण्णा सा अपरा । विशतिरितिसंख्या । रज्जत इति रात्रिः, सा च रागस्वभावा. उभयोरपि विद्यते, रात्री उभयग्रहणार्थं, ग्रहवा - अहोरात्रपरिसमाप्तिरत्र भवतीति कृत्वा रात्रिग्रहणं, अन्योन्यप्रतिबद्धत्वात् इतरेतरग्रहणात् सिद्धिरिति । श्रारोविज्जतीति कृत्वा श्रारोवणा । पुव्वपायच्छित्ते छुमति, हवा - उवरि चडाविज्जतित्ति भणियं होइ । कस्स ? तस्स साहुस्स जं भगियं पायच्छित्तं दिज्जति, "आदिमज्झावसाणे सु" - तस्स छम्मामियस्स परिहारद्वाणस्स तिसु विभागेसु जत्थ जत्थ पडिसेवति दो मासि तत्थ तत्थ वीसतिरातिता आरोवणा श्ररुभेयव्वा । सह प्रत्येण सत्यं सह हेउणा सहेजं, सह कारणेण सकारणं । कि भणियं होति तस्स जतो णिष्फत्तिः प्रभवः, प्रसूतिः, तं तस्स प्रत्योत्ति वा उ त्ति वा कारणं ति वा एगटुं । जहा सुत्तस्स प्रत्थान प्रसूतिः उत्पत्तिरित्यर्थः । जहा व तंतुभ्यः पटः, मृत्पिंडात् घटः, एवं एसा वीसतिरातिया भारोवणा जतो णिफण्णा तीए तं से प्रत्थो त्ति वा हेतु · कारणं, एगट्ठा दिट्ठा | दोमासियाए पडिसेवणाए वीसिया प्रारोवणा, सा पुन सट्टा प्रहीणमतिरित्ता कितिया होइ ? आयरितो सयमेव पुच्छितो भणति - "ते परं सवीसतिराया दो मासा" । "ते" त्ति - तेण मूलवत्थुणा सह श्रारोवणापरिमाणं भवति, प्रवत्तिमाणं न श्रारोवणामाण, परं द्यण्णं चेव जं भणियं होति तेण सम्रद्धं सहेउं सकारणं तं मानमधिकृत्य, तं पुण सवीसतिराया दोमासा सह वीसा एहि सवसति दोमासा | Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा ६६४७] विशतितम उद्देशक: कि पूण दोमासियाए पडिसेवणाए वीसतिरपि पारोवणा?, उच्यते - लक्षणोक्तत्वात्, तत्थ लक्ख दिवसा पक्खितणमासा प्राणिज्जंति, मासा वि पेक्खिऊण दिवसा प्राणिज्जति । गाहा - "दिवसा पंचहि भतिता दुरूवहीणा हवंति मासाम्रो। मासा दुरूवसहिया, पंचगुणा ते भवे दिवसा ।।" एसा लक्खणगाहा एएण कारणेग दोहिं मासेहि पावन्ने हि वीसतिरातिया प्रारोवणा । अहवा- इमो अण्णो वि पाएसो सपढें सहेउं, सकारणं अहीणमतिरित्तमिति, तस्स अणगारस्स उभयत रगादीकारणं णाऊण पढमपडिसेवणाए साणुग्गहं वीसतिरातिया प्रारोवणा दिज्जति, जति तह वि ण आएज्जा तो से तेण परेण सूत्रादेसो चेव सवीसतिरायदोमासा । कह ? जा सा वीसतिरातिया आरोद णा सा संकप्पिया ण ताव दिज्जति, तेण वि पुणो दोमासियं तं पडिये वितं तस्म पढमं साणुग्गहं कीरइ, बीए सहोढोक्ति काऊणं ते चेव दो मासा गिरणुग्गहा दिण्णा, तेण पर सवीमतिराता दो मासा । एवं नमासिए वि पटुविते तं चेव सवं भाणियध्वं । एवं चाउम्मासिए तेमासिए एयाणि सव्वाणि दोमासिएण समं भाणियब्वाणि, णवरं - छम्मासिया संचतिया वा प्रसंवतिया होज, पंचमासिया प्रसंचतिय'पटुक्तिमुत्ता गता। ___ इयाणि ठवियसुत्ता-जे ते सवीसतिरातिता दो मासा ते कारणं पडुच्च ठविया प्रासी ते कारणे मिट्टिते पट्टविति । सवीसतिराइयं दोमासियं परिहारहाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अहावरा वीसइराइया आरोवणा आइमझावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं तेण परं सदसराया तिण्णिमासा ॥सू०॥२७॥ सदसरायतेमासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारहाणं पडिसेबित्ता आलोएजा, पाहावरा वीसइराइया आरोवणा आइमज्भावसाणे मअटुं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं तेण परं चत्तारि मासा ||सू०॥२८॥ चाउम्मासियं परिहारहाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया आरोवणा आइमझावमाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमतिरित्तं तेण परं सवीसइराया चत्तारि मासा ||सू०२६।। सवीसइरायचाउम्मासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया आरोवणा Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [सूत्र ३०-३७ आइमज्झावसाणे सअई सहेउसकारणं अहीणमतिरित्तं तेण परं सदसराया पंच मासा ।।मु०॥३०॥ सदसरायपंचमासियं परिहारद्वाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया आरोवणा आइमझावसाणे, सअटुं सहे सकारणं अहीणमतिरित्तं तेण परं छम्मासा ॥सू०॥३१॥ तेसु पढवितेसु जति पुणो पडिसेवेज्जा पणे अ दो मासा तत्थ वीसतिरातिया मारोवणा मादी माझे पजवसाणे, सह प्रदे॒ण सप्रष्टुं सहे उसकारणं । इह प्रत्यो जो प्रादिपवणा सवीसतिरातिया दो मासा । तेग पर दसरातो दो मासा, दसरातो तिणि मासा पटुविए। जइ पुणो वि दो मासा पडिसेवेज्ज ताहे साणुगह वीसतिराया दिज्जति जाव तेण परं चत्तारि मासा, एवं ताव णेयं जाव तेण परं छम्मासा । अहवा- केवलि मण प्रोहि चोदस णवपुग्विणो य तस्स माधुणो भावं जाणिऊण, इमो सवीसतिराएहि दोहि मासेहि सुज्झिहिति ति ताहे सवीसतिराया दो मासा मे पट्ठविज्जति । जति पुणो वि दो मासा पडिसेवेज्ज तत्थ वि तहेव, तेण परं दस राया तिगि मासा । एवं पुणो वीसतिरातिया एन्भतेहि जाव ते परं छम्मासा अणुग्गहढवणा चेव थोवे वा बहुए वा भावणे दीसं वीसं दिणा प्रारुभयब्वा, पडिसेवणा पडिसेवणा, जाव छम्मासा । एवं ताव छम्मासादिपट्टविए दुमासपडिसेविए कारणं भणियं । एवं ते सूत्रा पट्टवियाठवियाणं गया। इदाणिं अत्थवसो सुता - छम्मासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्भावसाणे सअटुं सहेउ सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं दिवडो मासो ।मु०॥३२॥ पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमइ रित्तं तेण परं दिवडो मासो।।सू०॥३३॥ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा प्राइमझावसाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं दिवडो मासो ॥०॥३४॥ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशक: मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ग्रहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरितं तेण परं दिवढो मासो ||०||३५|| भाष्यगाथा ६६४७ J दोमासिगं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मामियं परिहारट्ठाणं डिसेवित्ता आलोएज्जा, व्यहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे स सहेउ सकारणं अहीणमइरितं तेण परं दिवो मासो ||०||३६|| मासि परिहाराणं पविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया रोवणा ३६१ आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं दिवडो मासो ||सू०||३७|| छम्मा सियं पंत्रमासियं चाउम्मासियं तेमासियं दोमासियं मासियं सव्वा लक्खणाम्रो पत्ताम्रो लक्खणं पुण मज्भे गहिए श्रादिमा प्रतिमा व संजोगा ते भाणियव्वा, जहा हम्मा सियादिपवणा पट्ठविले दोमासिस्स संजोगो भणितो तहा एतेसि पि सव्वासि संजोगो भाणियव्वो । तेण इमं प्रत्थसुत्तं - "ब्रम्मासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अंतरा छम्मासियं चेत्र परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता प्रालोएज्जा ग्रहावरा चत्तालीसइराइया प्रारोवणा मादी जाव तेण परं सचत्तालीसतिराया छम्मासा", प्रत्थो पूर्ववत् । एवं पंचमासितं परिहारट्टाणं पट्ठविते छम्मासिय पडिसेवति । एवं चाउम्मा सियं पट्टत्रिए पडिसेवति, तेमासियं पट्टविए पडिसेवति, दोमासियं पटुदिए पडिसेवति, मासियं पट्टविए पडिसेवति । एए छ पडिसेवति । छवि सुत्ता इहं णत्थि । किं कारणं जेण छम्मासाणं परेणं ण दिज्जति ? ठविया य सचत्त'ला छम्मासा, तेण ठविता सुत्ता नत्थ । इदागि छम्मासिए पट्ठविए अंतरा पंचम सितं पडि सेवति । ग्रहावरा वीसतिरातिया प्रारोवणा श्रादि मज्झा साणे जाव तेण परं सपंचराया छम्मासा, एवं पंचमासे पविते पंचमासं पडिसेवइ । चाउम्मासिए वि पंचमासा, तेमासिए वि पंचमासा, दोमासिए पंचमासा, मासिते वि पंचमासा, एत्थ वि ठविया सुत्ता णत्थि, जेण सपंचराया छम्मासे ति । छम्मा सिए पट्ठविए अंतरा चाउम्मासितं पडिसेवेना, ग्रहावरा तीसति जाव तेण परं पंचमासा, एवं पंचमासितं चउमासितं तेमासियं दोमासि मासिए वि पट्ठत्रिए चउमासियं पडिसेवित्ता प्रालोएज्जा, ग्रहावरा ती (वी) सतिरातिता भारोवणा जाव ते परं पंवमासा ठविता । सुत्तं एत्थ ग्रत्थि - पंचमासियं परिहारट्ठाणं पटूत्रिते चाउमासितं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा ग्रहावरा ती (वी) सतिरातिता प्रारोवणा जाव तेण परं छम्मासो । प्रत्थो पूर्ववत् । सुत्ता छम्मासिय परिहारट्टाणं पडिसेविते श्रणगारे अंतरा तेमासितं परिहारट्ठाणं प्रालोएबा ग्रहावरा पणुवीसतिरा इंदिया प्रागेवणा प्राक्षे जाव तेण परं पंचूणा चत्तारि मासा पंचमासिते पट्टविए, चठमासिते पट्ठविए, तेमा सिते Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र ३८-८६ पट्टविए, दोमासिए, मासिए परिहारट्ठाणं पट्टविते, तेमासितं परिहारट्ठाणं पडिसेवेज जाव तेण परं पंचूणा चत्तारि मासा ठविता । ३६२ सुत्ता - पंचूणच उम्मा सियं परिहारट्टा पट्टविते अंतरा तेमासितं परिहारट्टाणं, ग्रहावरा पणुवीसा भारोवणा जाव तेण परं छम्मासा सत्रीसतिराया चत्तारिमासा, सवीसतिरायं चाउम्मासियं परिहारं श्रतरा तेमास्यिं महावरा पणुवीसा प्रारोवणा जाव ते श्रद्धधम्मासा श्रद्धछम्मानिय पट्टवइ । पट्ठविए अणगारे अंतरा तेमा सियं आलोए०, श्रहावरा पणुवीसराएंदियारोवणा तेण परं ब्रम्मासा | किं कारणं सदसराया छम्मासा ण भणिया ? उच्यते - सातिरेगा छम्मासा णारोविज्जति त्ति तेण सदसराया छम्मासा ण भगति । इदाणि मासियसंजोगलुत्ता लक्खणपत्ता सुतेण चैव भण्णंति, छम्मासिय परिहाराणं पविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेविए प्रालोए, ग्रहावरा पक्खिया श्रारोवणा श्रादी मज्भावसाणे साट्टं सहेउं सकारणं प्रहीणमइरितं तेण परं दिवड्डो मासो, एवं पंचमः सियं पट्ठविते तेमासिय पविते मासियं पट्ठविते अंतरा मासिय जाव तेण परं दिवड्डो मासो । ठविया सुत्ता दिवड्डमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठ । णं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया रोवणा इमज्झावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं दो मासा || सू०||३८|| दोमा सियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं डिसेवित्ता आलोएज्जा, ग्रहावरा पक्खिया रोवणा श्रमावसा सा सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं अढाइज्जा मासा ||०||३६|| अड्डाइज्जमा सियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ग्रहावरा पक्खिया आरोवणा इमावसा सा सहेउ सकारणं अहीणमहरितं तेण परं तिष्णि मासा || सू०||४०|| तेमासिगं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया रोवणा आइमकावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं अगुड्डा मासा || सू० ॥४१॥ अद्भुट्ठमासियं परिहारट्ठागं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा श्राइमज्झावसाणे साडुं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं चत्तारि मासा || सू०||४२|| Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६३ भाष्यगाथा ६६४७ ] विंशतितम उद्देशकः चाउम्मासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा, आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं अडपंचमा मासा ॥०॥४३॥ अपंचमासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा, आइमझावसाणे सअटुं सहे सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं पंचमासा ॥०॥४४॥ पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा, आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमइरितं तेण परं अद्धकट्ठा मासा ।।सू०॥४॥ अद्धछट्टमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा, आइमझावसाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं छम्मासा ।।सू०॥४६॥ एवं छम्मासादिपट्ठविते जं जं पडिसेवित्ता मारोवणा ठविया य विकला सट्ठाणबड्डीए भाणिया जाव छम्मासा। इदानि सगलठवियाए मासादिया १ । २ । ३।। ५। ६ । सट्टामवाडिया गेयध्वा जाव छम्मासा, ताहे परहाणे वड्डी भवति । तत्थ सट्टाणवड्डी इमा - जहा - मासियठवियपटुविए मासियं सेवित्ता पक्खिया जाव दिवडमासा एवं प्रारोवणं पक्खिय वडतेण ताव पेयव्वं जाव छम्मासा । एयं सट्टाणवडियं ।। इमं परट्ठाणवड्डियं-जहा - ठविए दोमासियं पहिसे वित्ता वीसतिरातिया आरोवणा, जाव. वोसतिरातो मासो, एवं वीसतियाखेवेष पायव्वं जाव छम्मासा, एवं मासिते ठदियपट्ठविते तेमासियं पडिसेवित्ता पणवीसारोवणा जाव छम्मासा । मासियठवियपट्टबिए चउम्मास पडिसेवित्ता तीसिय आरोवणाए जाव छम्मासा। मासियठवियपट्टविए पंचमासिय पडिसेवित्ता पणतीसं प्रारोवपाए जाव छम्मासा । मासियठवियपट्टविए छम्मासिय पडिसेवित्ता चत्तालीस राइंदियारोवमाए जाव यम्मासा । एवं मासियपट्ठवणाए परट्ठाणवड्डी भणिया । एवं दोमासियादिसु वि पद्वविएसु सट्ठाणवड्ढिं भणि ऊण पच्छा परट्टाणवढी भमियब्वा, सव्वस्य जाच छम्मासा। एसा एक्कगसंजोगवड्डी सटाणपरट्ठाणेसु भणिया। Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ सभाष्य चूणिके निशीथमत्रे [ सूत्र ४७--५३ इदाणि दुगसंजोगे सट्ठाणपरट्ठाणवढेि दुदिहं भणामि - मासियठवियपट्ठविए मासियं पडिसेवेज्ज पविखयप्रारोवमा तेण परं दिवड्ढो मासो । दिवढठविते पट्टविते दो मासो पडिसेवेज्ज वीसिया प्रारोवणा तेण परं पंचरातो तिणि (दोणि) मासा । सपंचरातो दो मासा ठविए पट्टविते तिमासियं पडिसे वित्ता पक्खिया प्रारोवणा, तेण परं सवीसराया दो मासा ठवियपट्ठविर दोमासियं पडिसे वित्तः वीसिया प्रारोवणा, तेण परं सदसराइ तिणि मासा । एवं पुणो मासियं, पुणो दोमासिय, एगंतरा सव्वत्थ दुगसंजोगवड्ढी दुविहा भाणियव्वा जाव छम्मासा। __ एवं मासिय-तेमासिए य दुगसंजोगो, पुणो मासे चउमासे य । पुणो मासे पंचमासे य (पुणो मासे) छम्मासे या दुगसंजोगे जत्य जाए प्रारोवणाते पक्खित्ताए छम्मासा अतिरित्ता भवंति तत्थ छ च्चेव मासा बत्तन्वा परप्रो न वत्तव्वा । कारणं तं चेव पूर्ववत् । एवं जत्तिया मासियाए ठवियाए दुगसंजोगा ते भाणिऊण ताहे मासियाए चेव ठवियपट्टवियाए तियसंजोगो च उक्कसंजोगा पंचसंजोगा य भाणियव्वा, रेण छक्कसंजोगो णस्थि, कारणं तं चेव । ताहे दोमासठवियाए दुगसंजोगवड्ढी दुविहा भाणियव्वा - मा य लक्खणेण पत्ता, सत्तेश चेव भण्यति । एत्तियं गंतूण सुनं णिवडितं । तं च इमं - दोमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा, आइमज्भावसाणे सअटुं सहे सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं अड्डाइज्जा मासा |सू०॥४७॥ अड्राइज्जमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसिया आरोवणा, आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउसकारणं अहीणमइरितं तेण परं . सपंचराइया तिणि मासा ॥सू०॥४८॥ सपंचरायतेमासिय परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आगोषणा, प्राइमज्झावसाणे, सअटुं सहेउ सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं सवीसतिराया तिण्णि मासा ॥सू०॥४६॥ सवीसतिरायतेमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, अहावरा वीसइराइया अरोवणा, . Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशतितम उद्देशक: आमावसाणे, सत्र सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं सदसराया चत्तारि मासा || सू०||५० || सदसरायचाउम्मा सियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, श्रहावरा पक्खिया रोवणा आमावसाने सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं पंचूणा पंचमासा ||० || ५१ ॥ पंचूणपंचमासिगं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, श्रहावरा वीसइराइया रोवणा मज्झावसाणे, सा सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं श्रद्धछट्ठा मासा ||०||५२|| श्रद्धमा सियं परिहारड्डाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं डिसेवित्ता आलोएज्जा, ग्रहावरा पक्खिया रोवणा हमज्यावसाणे सङ्कं सहेउ सकारणं श्रहीणमइरित्तं तेण परं गाथा ६६४७ ] छम्मासा || सू०॥५३॥ दंसणचरितजुत्तो, जुत्तो गुत्तीसु सज्जणहिएसु । नामेण विसाहगणी महत्तरस्रो गुणाण मंजूसा ॥१॥ कित्तीकंतिपिणद्धो, जसपत्तो (दो) पडहो तिसागरनिरुद्धो । पुणरुत्तं भमइ महिं, ससिव्व गगणं गुणं तस्स ॥२॥ तस्स लिहियं निसीहं, धम्मधुराधरणपवरपुज्जस्स । आरोग्गं धारणिज्जं, सिस्सपतिस्तोत्र भोज्जं च ॥३॥ ( एवं एक्केवक अंतरेता ताव णेयव्वं जावर म्मासा, एवं एयस्स वि सव्वदुगसंजोगादि भाणियव्वा ! एवं तेमा सियठत्रियपट्टविए दुविधा समतिग चउ पंच छ, परे णत्थि एवं चाउ० | १|२| ३ |४| ना । । परे णत्थि । एवं पंचमा सियंजोगा |२३|| ना । फुं । परतो णत्थि, कारणं त चेव । सव्वे वि जहा लवखणेण भाणियन्त्रा, एते दुगसंजोगादीणं संजोगा सट्टाणवडिता भाणियव्वा परट्ठाणवड्ढिया य । य भणिया । "साणवड्ढिय" ति किं भणियं होति ? जे मासियठवियदट्ठनियमासिंयं चेव श्रादि काऊण संजोगा होत तेवढता एवं दो ति चउ पंचमासिए । ३६५ इमे परट्ठाणवड्ढिता - जे मासियं ठवियपट्टविए दोमासियं वा तिमासियं वा चरमासियं वा पंचमासियं वा श्रादी काऊण संजोगा कीरंति । एसा परट्ठाणवड्ढी । एयासि प्रत्था चोणाए कारणाणि य जहा पढमठवियाणं एवं पढमसुत्तस्स पट्टणाए पडिसेवणा णि बितिय सुत्तस्स बहुसस्स इमा विधी - छम्मासियं परिहारद्वाणं पट्टविए अणगारे अतरा बहुसो वि मासि परिहारट्टाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, श्रहावरा पविखया मारोवणा आदिमज्झावसाणे स Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ सभाष्य-चूणिके निशीथमूत्रे [ मूत्र-५३ सहेउं सकारणं, अहीणमइरितं तेण परं दिवडढो मासो, एवं पंचमासिए पट्टविते मासिया पडिसेवणा चउम्मासिए पंचमासिया, तेमासिए पट्टविए. मासिए पट्टविए, दोमासिते पढविए, मासिया पडिसेवणा, पक्खिया प्रारोवणा. एवं ठवितगा सुत्ता वि दिवढमासादि भाणियव्वा । तं चेव निरवसेरा बहुमाऽभिलावेणं सव्वं भाणेयव्वं । एवं दस सुत्ता सुत्तक मेण चेव भाणियवा। नवरं - पट्टवणे छ वा पंच वा चत्तारि वा तिणि वा दो वा एक्को वा पडिसेवणट्ठाणेसु तं चेव सवत्थ । सेसं जहा कसिणमुने तहा ठविते य पट्ठविए य, मुत्ता वि तह चेव तेसि संजोगा वि तह चेव कायव्वा । जो वि को वि निसेसो वि बुद्धीए उवउज्जिऊण भाणियको इमातो जतगातो - फु ना ङ्क ३ २ १। फुफुफु फु फु फु। ' ना ना ना ना ना ना। एक एक एक एक एक क । २ २ २ २ २२। एवं पवितिगा मुत्ता समत्ता । इदाणि इह अज्झयणे सुत्तावत्तिपरिमाणदुवारेण पच्छित्तवहंतगा भण्णंति । जतो भण्णति - एक्कूणवीसतिविभासियम्मि हत्थादिवायणं तस्म । आरोवणरासिस्स तु, वहंतया होंतिमे पुरिसा ॥६६४८॥ जे भिक्खू हत्थकम्मं करेइ - इत्यादिसुत्तातो जाव एगणवीसतिमुद्देसगतमुत्ते वायणसुनं, एतेसु एणवीसुद्देसेसु जो पच्छित्तरासी विभासियो तस्स पच्छित्तस्स वहंतया इमे पुरिसा ॥६६४८।। कयकरणा इतरे या, सावेक्खा खलु तहेव णिरवेक्खा । णिरवेक्खा जिणमादी, सावेक्खा पायरियमादी ॥६६४६॥ कयकरणा जेहिं चउत्थछट्ठमादी तवो तो। "इतरे" ति - अकयकरणा। जे कयकरणा ते दुविहा - सावेक्खा हिरवेक्खा य । तत्थ णिरवेक्खा जिण दिया, ते सरी गच्छादिमिर वेक्खन णतो णिरवेक्खा । प्रादि. सदातो सुद्धपरिहारिया प्रहालंदिया पडिमापडिवण्णा एने णियमा कयकरणा इत्यर्थः । जे पुग सरीरगच्छे य मावेक्खा ते तिविहा -"प्रायरियादी", अादिसद्दातो उवज्झ या भिवादू य ॥६६५०।। अकयकरणा वि दुविहा, अणभिगता अभिगता य बोधव्वा । जं सेवती अभिगतो, अगभिगते अत्थिरे इच्छा ॥६६५०॥ जे अक्यकरणा ते दुविधा-अणभिगता इयरे य । तत्थ अभिगता णाम अगहियसुत्तत्था । इयर ति – 'अभिगता", ते य गहियसुत्तत्था । एत्य जो कयकरणो धितिसंघयणजुत्तो अभिगतो य सो जं सेवति तं चेव से पच्छित्तं दिज्जति । जो पुण प्रणभिगतो अथिरो अकयकरणो घितिसंघयणादिहीणो तस्स जं गवण्णो तं वा दिज्जति हुसियं वा अण्णं हुसियतरं वा "इच्छ" ति - जाव से झोसो वा इत्यर्थः ।।६६४६।। एवं संखेवो भणियं। . Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६४८-६६५४ ] इमं वित्थरतो - विंशतितम उद्देशक: हवा सावेक्खितरे, णिरवेक्खो णियमसा उ कयकरणा । इतरे कताकता वा थिराऽथिरा णवरि गीयत्था ॥ ६६५१ ॥ - 1 'इयरि" ति - गिरवेक्खा, ते एगविहा गियमा कयकरणादिगुणोवउत्ता, पुणो "इयरं" ति - सावेवखा, ते तिविहा प्रायरियाती । तत्यं प्रायरियउवज्झाया कयकरण - प्रकयकरणा भाणियव्वा, ते चेव णियमा अभिगता थिरा य भिक्खू अभिगता प्रणभिगता वा । पुणो एक्केक्का थिरा प्रथिरा भाणियन्त्रा । पुणो कयकरणप्रकयकरणभेदेण य भिदियव्त्रा । एत्थ थिराथिरत्तिज वृत्तं जात्र चरगादिएहि दंसणातो परीसहोव सभ्गेहि वा चरणातो प्रतिकवखडपच्छित्तदाणेण वा भावतो ण चालिज्जति सो थिरो, इतरो अथिरो । एवं विविएस पच्छद्धभावणा प्रायरियादी सव्वे कयकरणप्रकयकरणा भाणियन्त्रा । णवरं - भिक्खुपवखे थिराथि रगीतमगीयत्था य भाणियन्वा ॥६६५१ ।। इमं कयकरणेतराण वक्खाणं मादिहिं, कयकरणा ते उ उभयपरियारा । अभिगत कयकरणत्तं, जोगा य तवारिहा केई ||६६५२ ॥ मादितवो जेहि कतो कयकरणा, ते उ " उभयपरियाए" त्ति - गिहत्थपरियाए सामन्नपरियाए वा, ते कयकरणा, इयरे अककरणा । जे ते अभिगता तेसि केइ प्रायरिया कतकरणं इच्छति । कम्हा ? जम्हा तेहि प्रायरियजोगा वृढा महाकप्पसुतादीणं । सीसो चोदेति - जे ते णिरवेक्खा - तेसि एक्को चेव भेदो । जे पुण सावेक्खा तेसि किं णिमित्तं तिविधो भेदो - "इमो आयरिश्रो" "इमो उवज्झा प्रो" "इमो भिक्खू" ? प्रायरियाह - जे ते प्रायरिय उवज्झाया ते नियमा गोयत्था, जे भिक्खू ते गीयत्था प्रगीयत्या वा, एवमादिभेददरिणत्थं भेदो कतो ।। ६६५२।। अथवा - तत्थ तिविधभेदे जो गीयभेदो सो इमं जाणइ - कारणमकारणं वा, जयणाऽजयणाय तत्थ गीयत्थे । एएण कारणेणं, आयरियादी भवे तिविहा || ६६५३ ।। कंठ्या अथवा सावेक्खपुरिसभेदकरणे इमं कारणं ३६७ - - कज्जमकज्ज जताऽजत, श्रविजाणतो अगी जं सेवे । सो होति तस्स दप्पो, गीते दप्पाजते दोसा ॥ ६६५४ ॥ प्रगीश्रोण जाणति इमं कज्जं इमं प्रकज्ज इमा जयणा, इमा अजयगा । एवं जाणंतस्स जा सेवा सा सव्वा दप्पो चेत्र उवलब्भति, तम्हा तस्स दप्पणियां पच्छित्तं दिज्जति । गीयो पुण एवं सव्वं जानइ तम्हा तस्स दप्पणिफणणं अजयणणिष्कण्णं वा दायत्वं । ग्रहवा - जहा लोगे जुत्ररायादिवत्युविसे से दंडविसे भवति, तथा इ लोउत्तरे प्रायरियादीगं श्रासेवणदंडो प्रणष्णो भवति, तेण तिविधभेदो को ||६६५४।। साय वत्थविसेस इमा प्रावत्ती - सव्वजिट्टा आवत्ती पारंचिय, तत्थ णिरवेक्खपारचियकरणेऽसंभवतो सुन्नं, प्रायरिए कयकरणे पारंचिय, श्रकयकरणे प्रणव । उवज्झाए कयकरणे प्रकरणे मूलं । १ दाय। २ सव्वेसिपि अविसिट्टा, इत्यपि पाठ । Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथमूत्रे [ मूत्र-५३ भिक्खुम्मि गीते थिरे कयकरणे प्रणवटुं, अकयकरणे छेदो। प्रथिरे कयकरणे छेदो, प्रथिरे अकय. करणे छग्गुरू । भिक्खुम्मि अगीते थिरे कय करणे छग्गुरु, प्रकय करणे छल्लहू, अथिरे कतकरणे छल्लहू, अकयकरणे चउगुरू । एस एक्को आदेसो।। इमो बितियो - पारचियप्रावतीए चेव करणे अ'यरिए अणबटुं, अकयकरणे मूलं, उवज्झाए कयकरणे मूलं, अकयकरणं दो । एवं अड्डोवतीए णेयःवं जाव भिक्खुम्मि अगीते अथिरे अकथकरणे चउलहुन । एवं प्रणवढे वि दो प्रादेसा भाणि कव्वा । णवरं - तेसि अंता च उलहुं मासगुरु य । एत्थ वि गिरवेक्ने अणवट्ठासंभवतो सुगं। इदाणिं मूलं - सव्वेसि अधिसिट्ठा, आवत्ती तेण पढमता मूलं । सावेक्खे गुरुमूलं, कतमकते छेदमादी तु ॥६६५५।। सव्देसि गिरवेकवादीणं मूलं प्रावणा: तत्थ जे हिरवेक्खा ते जं चेव श्रावन्ना तं चेव दिजइ, जे ग कारणेणं ते णिग्णुग्गहा । सावेक्वाणं पुण दाणे इमो विही णायवो - पावेक्खस्स प्रायरियस्स कयकरणस्स मूलं, अकयकरणस्स छेदो । उज्झायस्स कयकरणम्स छेदो, प्रयकरणे छग्गुरु । भिवखुस्स अभिगयस्स थिरस्स कयक रणस्स छग्गुरुता, अकयकरणस्स छल्लहुया । प्रथिरस्स कयकरणस्स छल्लहप्रा, तस्सेवाकय करणस्स चउगुरुगा। प्रणभिगयस्स थिरस्त कय करणम्स च उगुरुगा. अकयकरणस्स च उलहुप्रा । प्रथि रस्स कयकरणस्स च उलहुआ, तस्सेव प्रयकरणस्स मासगुरु । मूलमावण्णो एवं मासगुरू ठाति । छेदावण्णे छेदःनो प्राढत्तं एतेसु चेव पुरिसठाणेसु अड्डोवतीए मासलहुए ठाति । छग्गुरुगातो गुरुए भिन्नमासे ठाति । चउलहुअातो छल्लहुए मासे ठाति । चउगुरुग्रामो गुरुए वीसरा इंदिए ठाति । चउलहप्रातो वीसराईदिए लहुए ठाति । मासगुरुग्रामो पण्णरसराईदिए गुरु ठाति । मासलहुअाग्रो परमराइदिए लहुए ठति । भिन्नमासारुपातो दसराईदिए गुरुए ठाति । भिण्णमासलातो दसराइं दिए लहुए ठाति वीसरायगुरुप्रातो पचराइदिए गुरुए ठाइ । वीसरायलहुप्रातो पंवरायलहुए ठाति । पण्णरसरायगुरुप्रातो दसमे ठाति । पण्णरसरायलहुप्रातो अट्ठमे ठाति । दसराइंदिएगुरुप्रातो छठे ठाति । दसराईदियलहुप्रातो चउत्थे ठाति । पंचराइंदियातो प्रायंबिले ठोति । एवं पंचराइंदियल हुअातो एक्कासणते ठाति । दसमातो पुरिमड्ढे ठाति । अट्ठमातो निव्वतते ठाति । एवं अड्डोक्कतीए सव्वं णेयव्वं । एत्थ एक्के प्रायरिया - चरिमाढत्तं अड्डोक्कतोए लहुपणए ठाति दसमादिपदे ण ठायति । अण्णे चरिमाढतं अड्डोवकंतीए पणगोवरि दसम छ?-च उत्था जाव एएभत्तपुरिमड्ड जाब णिवितिए ठायंति ॥६६५५।। आदेशान्तरप्रदर्शनार्थमिदमाह - पढमस्स होति मूलं, बितिए मूलं च छेद छग्गुरुगा। जयणाए होति सुद्धा, अजयण गुरुगा तिविहभेदो ॥६६५६।। • पढमो ति - जिण कमियो, तस्स अववादाभावा मूलं एवं । "बितितो" त्ति - सावेक्खो कयकरणो पायरिया, तस्स मूलावत्तीए मूलं चेव । “वा" विकल्पे । छेदो वा भवति । . Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माष्यगाथा-६६५५-६६६० ] विशतितम उद्देशक: अस्य व्याख्या - सावेक्खो त्ति व काउ, गुरुस्स कडजोगिणो भवे छेदो । अकयकरणम्मि छग्गुरु, अडोक्कंतीए णेयव्वं ॥६६५७|| एस पायरिय उवज्झाएमु अववादो । जो य भिवस्खू गोतो थिरो कयकरणो य, अगीयपरखे थिरो कयकरणो य, एतेसि पि एसो चेव अववादो। जे सेसा भिक्खुपक्खे तेसि इमो अववातो अकयकरणा य गीया, जे य अगीयाऽकता य अथिरा य । तेसावत्ति अणंतर, बहुअंतरिया व झोसो वा ॥६६५८।। जे भिक्खू गीयपवखे दोणि अकय करणा, चसहातो गीतो अथिरो कयकरणो य । जे अगीयपक्खे अकयकरणा दोष्णि, जो य अगीयो थिरो कयकरणो य । एतेसिं प्रावत्तीतो जं अण्णतरं दुगादिबहुअंतरं वा सव्वतिम वा दिज्जति, सब्बह! वा झोसो कज्जति । "'जयणाए" पच्छदं - सवावत्तिठाणेसु गीयत्थो कारणे जयणाए अरतो अदुट्ठो य पडिसेवंतो मुद्धो। जो पुण अजयणकारी तस्स अजयणणिफणं पुरिसभेदतो इमं तिविहं, पायरियस्स चउगुरु, उवज्झायस्स चउलहुँ, भिवखुस्स मासगुरु । एतेण कारणेण तिविधो पुरिसभेदो कृत इत्यर्थः ॥६६५८।। सीसो पुच्छति - "कि निमित्तं एस पायरियादिभेदेण विसमा सोही भणिता" ? उच्यते - दोसविभवाणुरूवो, लोए डंडो उ किमुत उत्तरिए । तित्थुच्छेदो इहरा, णिराणुकंपा ण वि य सोही ॥६६५६।। जहा लोगे ण सव्वदोसेस सरिसो दंडो, अप्पमहंतदोसाणुरूवो डंडो दिजति, किं च लोगे पुरिसागुरूवो विभवाणुरूवो य डंडो दिज्जति, जो जत्तियं खमति, एवं जति लोगे अणुकंपिणो होउं घरसाराणुरूवं रंडं ति, तो किमुत लोगुत्तरे वि अणुकंपपरायणहिं सुठुतरं अणुकंपा कायवा। अगं च जइ जो जं खमति तस्स तं जति ण दिज्जति तो तित्थच्छेदादिया दोसा पच्छित्तकरण असत्ता उणिवखमंति, किं च प्रबल पडुच्च निग्घिणता कवखडपच्छित्तकरणपराभग्गरस चरणसुद्धी ण भवति, जम्हा एवमा दियोसा तम्हा जुत्तं पुरिसभेदप्रो सोही । ६६५६।। "'जयणाए होति सुद्धा अजयणगुरुगा तिविहभेदो" त्ति एयस्स पच्छद्धस्स इमं वक्खाणंतिविधभेदो त्ति पायरिय उवज्झाय भिवखूण य। उस्सग्गतो ताव सव्वेसि गेलण्णे सुद्धण कायव्वं । ग्रह सुद्धं प लब्भति तो कारणाऽवलंबिणा पणगादिजयणातो असुद्धग करंता का रवेंता य सुद्धा । "अजयणगुरुग' ति अस्य व्याख्या - सुद्धालंभे अगीते, अजयणकरणे भवे गुरुगा। कुज्जा व अतिपसंगं, अमेवमाणे व असमाही ॥६६६०॥ १ गा० ६६५६ । २ गा० ६६५६ । Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [मूत्र-५३ प्रपरिणामगा अतिपरिणामगा य जे तेसि सुद्धस्स अलंभे जति अजयणाए करेंति, अहवा - एत्थ अजयणा - तहा असमंजसतो करेति जहा ते जाणंति कहंति का तेसि मसुद्धं ति, तो च उगुरुप पच्छित्तं । इमे य दोमा भवंति, प्रतिपरिणामगो प्रतिपसंग करेज्ज, अपरिणामगो वा अकप्पियं ति प्रसेवंतो प्रणगाढाइपरितावणा असमाहिमरणं वा ।।६६६०।। किं चान्यत् - तिविधे तेइच्छम्मि, उज्जुगवाउलण साहणा चेव । पण्णवण्ण मइच्छंते, दिटुंतो भंडिपोतेहिं ॥६६६१।। मायरियादितिविधे पुरिसभेदे, अहवा - तिविधा तेइच्छा वातिया पित्तिता सिभिता, तासु सुद्धालभे अकप्पिएण कोरमाणे पायरिय-उवझाय-गीयभिक्खूण य “उज्जुयं" ति - फुडमेव सीतति-एयं "प्राप्पिय" ति जं वा जहा गहियं । कम्हा? जम्हा ते उस्सग्गववादतो जोगाजोगं जाणंति, जंच जोग्गं तं प्रायरंति । जे पुण प्रगीता अपरिणामगा अतिपरिणामगा य तेसि अकप्पियं ति ण का हज्जति । अह ते भणेज - कतो एयं ति ? ताहे कहिज्जति-अमुगगिहाम्रो त्ति वाकुलिज्जति, जहा से प्राप्पिए वि कप्पियबुद्धी उप्पज्जतीत्यर्थः । अह तेहिं णायं - ताहे तेसि "असुद्ध" ति फुडं साहिज्जति । अहवा - तेहि सयमेव णायं तेसि इमं साहिज्जति - "जं गिलाणेहि प्रकप्पियं विधीए सेविज्जति तं णिद्दोस, अण्णं च अप्पेण बहुमेसिज्जा एयं पंडियलक्खणं । गिलाणं गिलाणपडिकम्मे य किज्जमाणे जति मरति तो असंजतो बहुतरं कम्मं बंधति, तेगिच्छे पुण कए चिरं जीवंतो सामगं करेंतो लहुं कम्मं खवेति, अन्नं च कताइ तेणेव भवेण सिज्झज्ज ।" उक्तं च – "अत्थि णं भंते लवसत्तमा देवा" इत्यादि पालावका: । एवं जो तरुणो बहूण य साहुसाहुणोणं उवग्गहं काहिति, सो एवं पण्णविज्जति । ग्रह पण्णवितो वि प्रकम्पियं ण इच्छति, ताहे से भडीपोतेहि दिटुंतो कज्जति । __ जो भंडी पोतो वा थोवसंठवणाए संठवितो वहति सोसंठविज्जति । अह अतीवविसण्णदारु तो ण संठविज्जति । एवं तुम पि गिलाणे अकप्पियसंठवणाए मठवितो बहुं संजमं काहिति, जो पुण वुड्ढो तरुणो वा प्रतीवरोगघच्छो अतिगिच्छो सो जति अप्पणा भणाति - "प्रणासगं करेमि" त्ति तस्स अणुमती कज्जति, अप्पणाऽभणंतस्सं "साहिज्जति" त्ति धम्मो कहिनति, पणविज्जइ य प्रणासगं करेहि" त्ति। इदाणि तेणेवं करणिज्जं अह णेच्छति प्रणासगं, ताहे से भंडीपोतगं दिदंता कज्जति, सो भण्णति - तुमं अतो विसन्नदारुतुल्लो प्रारोहणं करेहि त्ति । "जा एगदेसे अदढा तु मंडी" वृत्तं कंठं ॥६६६१॥ एवं कारणे जयणासेवणा वणिता, अजयणं करेंतस्स पारोवणा य । अहवा - सावेक्खा दस प्राय रियादिपुरिसा कज्जति । कहं ? उच्यते - जे भिक्खू गीयत्थो सो दुविहो कज्जति । कहं ? उच्यते – कयकरणो अकयकरणो य । थिराथिरो ण कज्जति । Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६६१-६६६६ ] एवं दस काउं इमा अण्णा आरोवणा भणंति - विशतितम उद्देशकः णिन्विगितिय पुरिमड्डू, एक्कासण अंबिले श्रमत्तट्ठे | पण दस पण्णर वीसा, तत्तो य भत्रे पणुव्वीसा ॥६६६२॥ मासो लहुआ गुरुओ, चउरो लहुगा य होंति गुरुगा य । छम्मासा लहुगुरुगा, छेदो मूलं तह दुगं च ॥ ६६६३|| प्रायरियादी सध्ये पंचरातिदियं प्रावण्णा, तेसि इमं दाणं प्रायरियस्स कयकरणस्स तं चैव दाणं, प्रकयकरणस्स प्रभतट्टो | उवज्झायस्स कयकरणस्स श्रभत्तट्टो, प्रकयकरणस्स प्रायंबिलं । भिक्खुस्स प्रभिगतस्स कयकरणस्स प्रायंबिलं, श्रकयकरणस्स एक्कासणयं । भिक्खुल्स अभियस्स प्रथिरकयकरणस्स प्रकयकरणस्स णिव्वितियं श्रहवा - प्रणभिगतथि रस्स इच्छा । एवं दसराईदिए भ्राढतं हेट्टाहुतं पुरिमड्ढे ठाइ, पण्णरससु प्राढतं एक्कासणगे ठाति, वीसाए श्राढतं प्रायबिले ठाति, भिण्णमासे प्राढतं प्रभत्तट्टे ठाति, मासगे भारद्धं पंचसु रातिदिए ठाटि, एवं दोमासिक तेमासिक चउमासिक पंचमासिक दुम्मासिक छेद मूल प्रणवटू पारंचिए भारद्धं सव्वेषु प्रोसायव्वं तेहि चैव पदेहि । सव्वेते तवारिहलहुगा भणिया ।। ६६६३॥ अहवा एसेव गमो नियमा, मासदुमासादिए उ संजोए । उग्वायमणुग्वार मीसं मीसाइरेगे य ||६६६४ | - एवं मासादिसगलसुत्तारोवणाओ भाणियव्वा, एवं उन्घाइएसु सव्वहा भाणिएस प्रणुग्धातिएसु वि एवं भाणियम्वा, तहा उग्धायाणुग्धा यमीस संजोगेसु वि भाणियव्वा । एवं मासादिगा जाव छम्मासा पणगसा तिरेगेहि भाणियव्वा । पुणो ते चैव गुरुगा पणगमासातिरेगेहि ताहे उग्धायाणुग्धायपणगमासाति रेगेहि तो दसरायउग्घाताणुग्धायसा तिरेगमीसा य भाणियव्वा । एवं जाव भिण्णमासातिरेगेहि ति । एवं सव्वावत्तिसु उवउज्ज दा दातव्यमिति ॥ ६६६४ ॥ एसेव गमो नियमा, समणीणं दुगविवज्जिओ होइ । आयरियादीण जहा, पवत्तिणिमादीण वि तहेव ॥ ६६६५|| एवं संगतीनं पि सव्वं भाणियव्वं । णवरं - तासि दुगवज्जियं ति प्रणवट्टपारंचियदानं णत्थि । श्रावत्तीप्रो पुण तासि अत्थि से सव्वावतीम्रो दाणाणि य मत्थि । णवरं परिहारोण किंचि, जहा पुरिसा प्रायरिया दिट्ठाणेसु भणियं तहा तासि पवत्तिणिमादिठाणेसु भाणियव्वं ।। ६६६५।। safir सस्ताणं सिस्सिणीणं च इमं णिसीहज्झयणं हिययम्मि थिरं भवउ ति णिकायणत्थं इमं भणइ - - चउहा णिसीहकप्पो, सद्दहणा आयरण गहण सोही । सहण बहुवि पुण, ओह णिसी विभागो य ॥ ६६६६॥ जं एवं पंचमचलाए युक्तं सव्वं एवं समासतो चउन्विहं । ४० १ - Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाध्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे जतो भण्णति -- " चउ० " गाहा ||६६६६ || चउत्रिहो निसीहकप्पो तं जहा रणकप्पो, गहणकप्पो, सोहिकप्पो य । तत्थ जा सद्दहणा सा दुविहा- श्रोहे विभागे य ॥ ६६६६ ॥ ४०२ एक्का प्रणेगविहा इमा अहवा - - हणिसहं पुण हो ति पेढिया सुत्तमो विभाओ उ । " उस्सग्गो वा ओहो, अववा होति उ विभागो ||६६६७॥ प्रोघः समासः सामान्यमित्यनर्थान्तरं तं च णिसीहपेढिया णामगिप्फण्णो णिक्खेको उ ( प्रोह) माहणादित्यर्थः । विभजनं विभागः विस्तर इत्यर्थः । सवीसाए उद्देसतेहि जो सुत्तसंगहो सुत्तत्थो य । अहवा उस्सगो ओहो, तस्यापवादः विभाग: ।। ६६६७।। उस्सग्गो वा उ ओहो, आणादिपसंगमो विभागो उ । वत्युं पप्प विभाग, अविसिडावज्जणा ओहो ||६६६८॥ - - सुत्ते सुत्ते जं उस्सग्गदरिसणं तं प्रोही, जं पुण सुत्ते सुत्ते प्राणाऽणवत्थमिच्छत्तविराहणा य विभागदरिसणं सो विभागो, ग्रहवा - प्रायरियादिपुरिसवत्थुभेदेण जं भणियं सो विभागो, जो पुण अविसिट्टा प्रावत्ती सो प्रोहो ॥ ६६८ ॥ अहवा पडिसेहो वा ओहो, तक्करणाऽऽणाति होइ वित्थारो । या संजम भरता, तस्स य भेदा बहुविकप्पा ||६६६६ || [ सूत्र - ५३ सद्दहणकप्पो, "ण कप्पइ" त्ति काउ जं जं पडिसिद्धं सो सन्वो प्रोहो, तस्स पडिसिद्धस्स करणानुष्णा जा प्राणादिणो य भेदा । एस सब्वो वित्थरो त्ति विभागो सवित्थरो पुण भाणियव्वो । णिक्कारण अविधिपडिसेवणे णियमा प्राणाभंगो प्रणवत्था य, मिच्छतं च -- "ण जहावादी तहाकारि" त्ति विराहणाश्रो आयसंजमविराहणाश्रो भयणिज्जा – कयावि भवंति ण वा । जहा करकम्मकरणे श्रायविराहणा भवति ण वा, सजमे नियमा भवति, प्रमत्तस्स य पडमाणस्स प्रायविराहणा, तस्सेव पाणाइवाय संपत्तीए णो संजमविराहणा । एवं "तस्स" ति विराहणाए सप्रभेदा । एवं बहुविरुप्पा श्रणे गप्रकारा उवउज्ज भाणियब्वा । एवं विभागो ॥ ६६६६ ॥ - हवा सुत्तनिबंधो, ओहो त्यो उ होति वित्थारो । विसेसोत्ति सुतमेत्तप्रतिबद्ध, जहा पढमसुते करकम्मकरणें मासगुरु एस हो । सेसो प्रत्थो जहा - पढमपोरिसीए करकम्मकरणे मूलं, बितिए छेदो, ततिए छग्गुरू, चउत्थीए चउगुरु, पंचमीए मासगुरु । एस विभागो । एवं पढमसुते । एवं चेव सव्त्रसुत्तेसु जो अणुवादी प्रत्थो सव्त्रो विभागो । ग्रहवा - जं दव्त्रादिपुरिसविसेसेण श्रविसे सिजति सो श्रोहो । दव्यादिपुरिसविसिद्धं पुण सव्वं वित्थरो । एयं सव्वं जं वृत्तं सद्राणसद्दहंतस्स सहण ।।६६७०॥ - हो, जो तु विसेसो स वित्थारो || ६६७० ॥ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६६७-६६७४ ] विशतितम उद्देशक: ४०३ इदाणि इमो 'प्रायरणकप्पो - जे भणिता उ पकापे, पुवावरवाहता भवे सुत्ता । सो तह समायरंतो, सव्वो सो आयरणकप्पो ॥६६७१।। जे पकप्पे एगूण वीसाते उद्देसगेहि पुवावरवाहया सुत्ता प्रत्था वा भणिता ते तहेव समायरंतम्स मायरणकप्पो भवति । एत्थ पुवो उस्सग्गो, अवरो अववादो। एते परोप्परवाहता - एतेसिं सट्ठाणे सेवणा कर्तव्येत्यर्थः ॥६६७१॥ उस्सग्गे अववार्य, आयरमाणो विराहो होति । अववाए पुण पत्ते, उस्सग्गनिसेवो भइओ ॥६६७२॥ कठ्या । भयणा कह ? उच्यते - जो धितिसंघयणसंपण्णो सो अववायठाणे पत्ते वि उस्सग्गं करतो सुद्धो, जो पुण घितिसंघयणहीणो अववायट्ठाणे उस्सग्गं करेइ सो विराहणं पावति । एस भयणागतो प्राय (क) रणकप्पो ॥६६७२।। इदाणि गहणकप्पो सुत्तत्थतदुभयाणं, गहणं बहुमाणविणयमच्छेरं । उक्कुडु-णिसेज्ज-अंजलि-गहितागहियम्मि य पणामो ॥६६७३॥ सुतं प्रत्थं उभयं वा गेण्हतेण भत्तिबहुमाणाम्भुट्ठाणातिविणो पजियन्वो । “प्रच्छेरं" ति प्राश्चयं मन्यते - "अहो ! इमेसु सुत्तत्थपदेसु एरिसा अविकला भावा गज्जति", अहवा - पाश्चर्यभूतं विणयं करोति तिव्वभावसंपण्णो प्रणेसि पि संवेगं जगंतो, प्रत्ये णियमा सण्णिसिज्ज करेति, सुत्ते वि करेति, वायणायरियइच्छाए वा सुणेति, उक्कुडुप्रो ठितो रयहरणणिसेज्जाए वा णिच्चकयंजली। एवं पुच्छमाणे वि सुत्तं पुण कयकच्छमो पढति, जया पुण पालावयं मगति तया कयंजली कयप्पणामो य, किं च अंग सुयक्खधं अझयणं उद्दसगा प्रत्याहिगारा मुत्तवल्के य गुरुणा दिपणे समतं वा । गहिए ति अवधारिएण प्रणवघारिते वा सिस्सेण पणामो कायव्वो॥६६७३।। इदाणि सोधिकप्पो' ति सोधि प्रायश्चितं तं द्रव्यादिपुरुषभेदेन कल्पते य: स सोधिकल्पः, जो प्रावण्णाणं पच्छितेण सोधिं करोतीत्यर्थः । केरिसो सो ? उच्यते - केवल मण मोहि चोट्स गवपुव्वी य । सीसो भणति - तित्थकरादिगो चोद्दसपुव्वादिया य जुत्तं सोहिकरा, जम्हा ते जाणंति नेण विसुज्झइ ति, तेसु. वोच्छिा.सु सोही वि वोच्छिण्णा ?। आचार्याह - का मं जिणपुव्वधरा, करिमुं सोधिं तहा वि खलु एहिं । चोद्दसपुव्वणिबद्धो, गणपरियट्टी पकप्पधरो ॥६६७४॥ पुव्वद्धं कंठं । इमं पकप्पज्झयणं चोद्दसपुव्वीहिं णिबद्धं, तं जो गणपरिवट्टी सुतत्त्थे धरेति सो वि सोधिकरो भवति । अहवा - चोहसपुवेहितो णिज्जूहिप्रो एस पकप्पो गिबद्धो, तदारी सोऽधिकारीत्यर्थः १ गा० ६६६६ । २ गा० ६६६६ । ३ गा० ६६६६ । Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ किं चान्यत् - उग्वायमणुग्धाया, मासचउम्मासिया उपच्छित्ता | पुव्वगते च्चिय एते, णिज्जूढा जे पकप्पम्मि || ६६७५ ।। सभाष्य - चूर्णिके निशीथसूत्रे जे उग्धायादिया पच्छित्ता जेसु प्रवराहेषु पुव्वगए सुते प्रत्थे वा भणिता ते चैव पुत्र्वगतसिद्धा इहं पि पप्पज्झयणे णिज्जूढा तेसु चैव प्रवराहेसु ति जम्हा एवं तम्हा पकप्पधारी सोहिकरोति मिद्ध ॥६६७५ सो पकप्पधारी कतिभेदो केरिसो वा गणपरिवट्टी इच्छिज्जति ? उच्यते तिविहो य पकप्पधरो, सुत्ते प्रत्थे य तदुभए चेव । सुत्तरवज्जियाणं, तिगदुगपरियट्टणा गच्छे || ६६७६ ॥ सुतं णामेगे घरेति णो प्रत्थं, अत्थं णामेगे घरेति णो सुत्तं । एगे सुतं पिधरेति प्रत्थं पि, एगे णो सुत्तं धरेति णो प्रत्यं । प्राचार्याह - एत्य चउत्थो पकप्पधरणे सुष्णेति श्रत्रत्थु चेव, सेसतिगभंगे पढमभंगिल्लो वि । जम्हा एते गणपरिवट्टी च्छित्तदाणे असमत्यो ति । तं सुत्तधरं बज्जेत्ता तइयभंगधरो गणपरिवट्टी प्रणुन्नातो । तस्सासति बितिय गिल्लो वि जम्हा एकभेदेण पच्छित्तदाणे समत्था तम्हा ण वोच्छिष्णं पच्छित्तं देतगा ६६७६ ॥ ग्रह -- "किं कारणं पच्छित्तं दिज्जति ?” पच्छित्तेण विसोही, पमायब हुयस्स होइ जीवस्स | तेण तदंकुसभूतं, चरित्तिणो चरणरक्खट्ठा || ६६७७॥ जहा मत्तगयो अवसो उम्मग्गगामी वा अंकुसेण धरिज्ज एव चरित्तिणो चरणं मलिणं पच्छित्तेण सुज्झति इंदियादिपमादयु प्र पयट्टमाणो पच्छित्तेण अंकुश भूतेन निवारिज्जति चरण रक्खणट्टा ।। ३६७७॥ जं च भणसि "पच्छित्तं वोच्छिण्णं" ति तत्थ पच्छित्ताभावे इमे दोसा पायच्छित्ते असंतम्मि, चरित्तं पिण चिट्ठी । चरितम्मि असंतम्मि, तित्थे नो संचरितया ||६६७८|| [ सूत्र -५३ - चरितम् संतम्मि, निव्वाणं पि ण गच्छती । निव्वाणम्मि असंतम्मि, सव्वा दिक्खा निरत्थया ।। ६६७६|| कंठ्या तम्हा पपधारिणो देता प्रत्थि, पच्छितं च देयमप्यत्थि, दातृदेयसबधात् । तं च पच्छितं. दहिं श्रालोयणादिसिद्धं । तेसि सेस जम्मि वोच्छिष्णं, जं वा प्रणुसज्जति तं भणामि दस ता श्रणुसज्जती, चोहसपुव्वी य जाव संघयणं । दो वि वोच्छिष्णेसुं, अट्ठविहं जाव तित्थं तु ॥ ६६८०॥ LA Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथा ६६७५-६६८५ ] विंशतितम उद्देशक: तं दसविषं ताव प्रणुसज्जति जाव चोट्सपुब्विणो, चोट्सपुव्विणो वि ताव प्रणुसज्जंति जाव पढमसंघयणं, चोहसपुग्वा य थूलभद्दे वोच्छिष्णा । प्रणवट्टपारचियतवपच्छित्ता वि दो तत्येव वोच्छिष्णा । तेसु य दोसु वोच्छिष्णेसु सेसं प्रालोयणादि जाव मूल, एयं प्रट्ठविह पि जाव तित्यं ताव प्रणुसबिहिति । लिंगखेत्तकालप्रणदप रंचिया य। लिंगे दव्वे भावे, दव्वेऽणला, भावे- प्रणुवरता, खेते - जो जत्थ दूसति, कालतो जाय अणुचरतोति ॥ ६६८०॥ 1 ।।६६८१ ॥ अहवा दुविहं पच्छित्तं - मोहनिष्कण्णं वित्थारगिप्फांच सुसुत्ते पुणणिबंधो इमो, जहा - - प्रहेण उ सहाणं, सहाणविभागतो य वित्थारो । चरणविसुद्धिनिमित्तं पच्छित्तं तू पुरिसजाते ।। ६६८१ ॥ " तत्य मोहणिफण्णं सट्टाणं, "सट्टाणं" ति जं सुत्ते निबद्धं तं च उद्देसगस्स प्रतसुते निद्दिसति कम्मादीणं करणं, सयं तु सातिज्जणा भवे दुविहा । कारावण श्रणुमोयण, ठाणा श्रहेण तिष्णेते ॥ ६६८२ | जे भिक्खू सयमेव हत्थकम्मं करेइ तस्स मासगुरु । साइजणा य दुविहा कारावणा प्रणुमती य । एयासु मासगुरुगा । एते तिणि वि श्रहणिबद्धाम्रो पच्छितं । एयाओ परं जं विभागेण दंसिजति सुत्तसूचितं तं सव्वं वित्थारो । एवं बहुविहं वणणेत्ता जत्थ जत्थ सुतनिवातो सो प्रोहो, सेसं वित्थारो । तं प्रहविभ! गे पच्छितं पडि सेवणपगार जागिता प्रायरियादिपुरिसविसेसं जाणिता मलिणविसोषिणिमित्तं च दंति ।। ६६८२ ॥ ४०५ किं चान्यत् - इह णिसोहज्भपणे सुत्ते उस्सग्गववाया दट्टुव्वा । तेसु इमा प्रणायरणविधी - हत्थादिवायणंतं, उस्सग्गेऽववातियं करेमाणो । अववाते उस्सग्गं, आसायण दीहसंसारी ॥ ६६८३ ॥ हन्थकम्मकरणं प्रादिसुत्तातो माण्डभ जाव एगूणवीसइमस्स चरिमस्स चरिमं वायणासुतं एत्थ जो उस्सग्गठाणे प्रवादं करेति श्रववादे वा जो उस्सग्गं करेति सो तित्थकरणाणाएं वट्टति, श्रीहसंसारियां च णिव्वत्तेइ | जम्हा एते दोसा तम्हा उस्सग्गे उस्सग्गं करेज्जा, भववादे अववादं ।। ६६८ ॥ हवा - छेदसुत्तेसु सुत्ते सुत्ते इमो चउव्विहो प्रत्थोवेक्खो विधीए दंसिज्जति - पडिसेहो श्रववा, अणुण्णजतणा य होइ णायव्वा । सुत्ते सुते चउहा, अणुगविही समक्खाया ॥ ६६८४॥ पडिसेहो जा आणा, मिच्छऽणवत्थो विराहणाऽवातो | बितियपदं च श्रणुष्णा, जयणा अप्पाबहूणं च ॥ ६६८५॥ पुग्वद्धस्स जहासंखं इमा वक्खा - पडिसेहो णाम जा प्राणा उस्सग्गववायत्थाणीयं च सूत्रमित्यर्थः । प्रववादो नाम दोसो, तं दोसठाणं पडिसेवतस्से मिच्छतं भवति, अण्णस्स जणेति प्रणवत्थं च पयट्टेति, Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [भूत्र-५३ पायसंजमविराहणं च पावति । अणण्णा णाम बितियपदं, अपवादपदमित्यर्थः । जयणा नाम प्रववादे पत्ते संचितेउ जं जं प्रपतरदोसठाणं तं तं णच्चा सेवति । जत्थ पुण बहुतरो दोसो तं गच्चा वज्जेति । एवं सम्वेमु सुत्तेसु अत्थो दंसिजति ॥६६८५॥ पायावाए इमो विसेसो भण्णति - देवतपमत्तवज्जा, आतावातो य होति भतियव्वा । चित्तवतिपुढविठाणादिएसु चोदेंत कलहो उ ॥६६८६॥ ___ सव्वपमायठाणेसु पमत्तभावं देवता छलेज्ज अतो तं देवयपच्चयं "वज्जे ता" मोत्तुं इत्यर्थः, सेसा जा पायावाया पमत्तभावस्स चितिज्जति । ते “भइयव्वं" ति - भवंति वा ण वा ति । केसुइ पमायठाणेसु भवंति, केसु वि न भवति । अधवा- सव्वापमादठाणेसु मायावातो इमेण पगारेग वितियव्वो, जहाचित्तमंताए पुढवीए ठाणणिसीदणादि करेंतो चोदितो तस्थ कलह करेज्जा, परोप्परं असहताण जुद्धे अप्फिडियाण प्रायविराहणा होज्ज, एवं सर्वत्र ॥६६८६।। एवं पायावाएण भणिए समप्पिउकामे अज्झयणे प्रायरितो संखेवतो उवदेसमाह - अवराहपदा सन्चे, वज्जेयव्वा य णिच्छओ एस । पुरिसादिपंचगं पुण, पडुच्चऽणुण्णा उ केसि चि ॥६६८७|| सुत्तभगिया प्रत्थणिता व। जे प्रवराहपदा ते सव्वे बज्जणिज्जा । एस णिच्छयत्थो । तेसि चेव प्रवराहपदाण पुरिसपंचगं पडुच्च केसि चि अणुण्णा भणता । ते इमे पंच-पायरिप्रो उवज्झामो भिक्खू पेरो खुड्डो य । प्रादिसद्दातो संजतीसु वि पंचगं । केति “पंग" ति गणावच्छेतिए छोळ पंच भणंति, तं न भवति प्रव्यापृतत्त्वात् ॥६६८७॥ कि चान्यत् - जति वि ण होज्ज अवाओ, गेण्हणदिट्ठादिया उ अवराहा । परितावणमादीया, आणादि ण णिप्फला तह वि ॥६६८८॥ जइ वि प्रवराहपदेसु ठियस्स प्रातावातो ण भवेज्जा, गेण्हण - कड्डणादिया वा ण होज, दिढे संका धाडियभोतियादिया वा ण होज्ज, परितावमहादुक्खे एवमादिया न होज्ज । एवमादिप्रववादप्रभावे वि प्राणाभंगऽणवत्थादियाण णिप्फल त्ति अवस्सं तेसु दोसो भवति ति ॥६६८८॥ अहवा को तस्स गुणो, अवायवत्थूणि जाणि सेवंतो। मुच्चेज्ज अवायाओ, जतिरिच्छा सा ण तं सुकयं ॥६६८६।। मादिणो अवबादठाणेस पबत्तमाणस जं पायावायो ण भवति स तस्य गणो न भवति. "अतिरिच्छा सा" - घुणक्खरसिद्धि व्व दट्ठव्वा, सुकतं तं ण भवति, पुवावरगगदोसालयणमित्यर्थः । तत्र भावप्राणातिपातं न फलवत्, जं अपायच्छितं दट्ठव्वं ।।६६८६।। सीसो पुच्छति - भगवं ! पमायमूलो बंधो भवति, पमत्तो य असंजतो लम्भति । प्राचार्याह - प्राम। पुणो सीसो पुच्छति - "जइ एवं तो कि दोण्हं पमादप्रजयत्तणतो प्रावण प्रणावणाणं तुल्लपच्छित्तं " भवति" ? Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६८६-६६६४] विशतितम उद्देशक: ४०७ प्राचार्याह - काम पमादमूलो, बंधो दोण्ह वि तहा वि अजयाणं । वहगस्स होति दंडो, कारणुवाया ण इतरस्स ॥६६६०॥ "कामं" अणुमयत्थे, पमादमूलबंधो, जति वि ते दो वि "प्रजयाणं" ति - पमादभावे वटुंति तहावि जो तत्थ "वहगो" ति - पाणातिवायं प्रावणो तस्स पुढवादिपरित्ताणंतकायाणुवातेण दंडो भवति, इंदियअणुवादेण वा । "इयरस्स" त्ति - अणावणस्त तं कायाणवायपच्छित्तं ण भवति, पमायपच्चयं वा भवति ॥६६६०॥ पुनरप्याह चोदक - "ततियच उत्थुद्देसगेसु सीसदुवारादिसुत्ता तुल्लाभिहाणा चरिमुद्देसगे य प्रावत्तिमाइया एवमादिमुत्ताणं तुल्लनणतो णणु पुणरुत्तदोसो भवति ?" | प्राचार्याह - जति वि य तुल्लऽभिधाणा, अवराहपदा पकप्पमझयणे । तहवि पुणरुत्तदोसो, ण पावती अत्थणाणत्ता ॥६६६१॥ "प्रवराहपयं" ति - प्रवराहणिबद्धमुत्तपदा अत्थणाणतं उद्देसगाधिकारातो वत्तव्वं अत्याधिकारवसातो वा. सेसं कंठं ॥६६६१॥ मूत्रनिबद्धप्रदर्शनार्थमाह - पडिसेविताणि पुन्वं, जो ताणि करेति एत्थ सुत्तं तु | हत्थादिवायणंतं, दाणं पुण तस्स चरिमम्मि ॥६६६२॥ पुव्वं जाणि पायार-सूयकडादिसु पडिसिद्धागि ताणि जो पडिसिद्धाणि करेति प्रायरतीत्यर्थः । एत्थ एगूणवीसाए उद्देसगेसु हत्थादिवायणंतमुत्तेमु प्रावत्ति पच्छित्तनिबंधो कतो, तेसि च पावत्तीणं विसतिमुद्दे सेण दाणं भणियं ॥६६६२।। किं च उस्सग्गववादविराहणं करेंतस्स दोषप्रदर्शनार्थमाह - आणाभंगे णाणं, ण हो । अणवत्थमिच्छदिट्ठी उ । .. विरतीविराहणाए, तिण्णि वि जुत्तस्स तु भवंति ॥६६६३॥ नित्थकरुवदिविधिमकरेंतस्स तित्यक राणाभगो, प्राणाभंगे य गाणी ण भवति त्ति प्रणाणी भवति, "प्रणवत्थमिच्छत्तो" ति - भूयो पय? अणवत्था, अणवट्टियत्तं तं इच्छतो प्रभिलसंतस्स दिट्ठी त्ति मम्मदिट्टी ग भवति उत्सुतमायरंतो य वट्टति । "विरती विराहणाए", विरती चरित्तं तं विररहेंतस्स अचरित्रित्वं भवतीत्यर्थः । जम्हा एवं तम्हा सम्मं चरणजुतस्स तित्थ कराणाए वा सम्म जुतस्स, तिणि दि जगदमणचरमाणि भवंति ॥६६६३।। सदृशार्थस्य विशेपप्रदर्शनार्थं विसदृशार्थस्य च अविशेषप्रदर्शनार्थमिदमाह - अविससे वि विसेसो, विसेसपक्खे वि होति अविसेसो । आवजणदाणाणं, पडुच्च पुरिसे य गुरुमादी ॥६६६४॥ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्र [ गूम-५३ प्रविसेसे विसेसो इमो, जहा - दो जणा पुढविकायविराहगा, तेति तुल्ल पच्छित्तं ण भवति । कहं ?, उच्यते - एकस्स भावत्ति पडुच्च चउलहुं, बितियस्स दाणं पडच्च मायाम । अहवा - पुढविकायविराहण ति अविसेसो, इत्थ विसे सो कजति - सचित्ते चउलहु, एवं दाणे विसेसो कायव्यो । . विसेसपक्खे कहं अविसेसो ?, उच्यते - दप्पनो एक्केश एक्को पंचिदियो पातितो, वितिएण दो तिणि वा, दोण्हं वि मूलं । अहवा-एक्केण तिव्वज्झवसाणेण मूलमासेवितं, बितिएण मंदमवसाणेण चरिमं, दोण्ह वि प्रणवटुं, पुरिसेसु वा गुरुप्रादिठाणेसु धितिसघयणादि वा प्रविक्खिउं दवःदि वा पडुच्च बहुधा गमणठाणलंबादिसुत्तेसु विसेसविसेसा दट्टब्बा ॥६६६४॥ सीसो पुच्छति - "भगवं ! तुम्भे सुत्ते प्रवायं दरिसेह, तत्व जो प्रवायभीतो पावोवरति करेति तस्स कि साहुतं णिजरा वा पत्थि?, जो वा सभाववेरग्गजुत्तो.पावोवरति करेति तस्स किं ततो विपुलतरा वा णिज्जरा भवति ?" आचार्याह - जो वि य अवायसंकी, पावातो नियत्तए तहवि साहू । किं पुण पात्रोवरती, निसग्गवरग्गजुत्तस्स ॥६६६५।। किमित्यतिशये, पुनर्विशेषणे, किं विशेषयति ? उच्यते-पायाशंकिनः समीपान्निसर्गः स्वभावः प्रकृत्रिमो भावः, य एवं वैराग्ययुक्त: पापादारतिं करोति तस्स अतिशयेन महंतरेण विपुलतरा गिजरा भवति । सेसं कंठं ।।६६६५॥ सीसो पुच्छति- 'सव्वमुत्तेसु भववादो प्रववादो, अववादमंतरेण वा जयणाऽजयणा उ भणिता नासि कि सरूवं लक्खणं वा ?" उच्यते रागदोसविउत्तो, जोगो असहस्स होति जयणा उ । रागद्दोसाणुगती, जो जोगो सा अजयणा उ ॥६६६६॥ असढभावस्स अववादपत्तस्स जो प्रकप्पपडिसेवणे जोगो तत्थिमं रागदोसवियुत्तत्तणं सा जयणा जयणालक्खणं च एवं चेव । एयविवरीया प्रजयणा, अजयणालक्खणं च एयं चेव ॥६६६६॥ पुनरप्याह - किं कारण सुत्ते सुत्ते अवाया भण्णंति ?, उच्यते-- पावं अवायभीतो, पाचायतणाइ परिहरति लोश्रो । तेण अवातो बहुहा, पदे पदे देसितो सुत्ते ॥६६६७।। जहा लोगो प्रवायभीमो पावायरणे वज्जेति तहा लोगुत्तरे वि इहपरलोगावायभीतो पावं ण काहिति, तेण सुत्ते सुत्ते बहुविधा प्रवाया देसिया ॥६६६७।। शिष्याह - "भगवं ! तु हि थेरकप्पे उस्सग्गऽववाया देसिया दप्पकप्पपडिसेवणातो वि दंसिता, किमेवं जिणकप्पे दि भवंति ?" न, इत्युच्यते - जम्हा ते एगतेण उस्सग्गठिया तम्हा तेसिं पववादो पत्थि, कप्पिया वि पडिसेवणा णत्थि, किमंग पुण दप्पिया ?, Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६६६५-६७०१] विशतितम उद्देशकः ४०६ जतो भण्णति - दुग्गविसमे वि न खलति, जो पंथे सो समे कहष्णु खले। कज्जे विश्वजवजी, स कहं सेवेज दप्पणं ॥६६१८॥ पूर्षि दिटुंतो कंठो, पच्छढे दिलृतियो प्रत्यो। "कज्ज" ति - प्रववादठाणपत्ते वि भववादो "अवज"मिति पावं, तं जो वजेति, स दप्पेण कहं पावं सेवेज्जा ? ॥६६६८॥ इदाणि अणुप्रोगधरो अप्पणो गारवणिरिहरणत्थं सोताराण य लजाणिरिहरणत्थं पाह अम्हे वि एतधम्मा, आसी वट्टति जत्थ सोतारा । इतिगारवलहुकरणं, कहए ण य सावए लजा ॥६६६६॥ अणुप्रोगकही चिंतेति भणाति वा - प्रम्हे वि एस एवं चेव गुरुसमीवातो सोयवधम्मा भासि, जत्य संपदं सोतारा वट्टति । "इति" उवप्पदरिसणे, एवं "अणुप्रोगधरो प्रह" मिति अप्पणो जं गारवं तं णिरिहरति । 'ण य सावए" ति, जे सोयारा तेहिं वि सुणंतेहि चितियव्वं "एस गणघरारद्धो सोतव्वकप्पो पारंपरेण प्रागते' त्ति श. उंग लज्जा कायवा ॥६६६६।। एत्थ पुणज्झयणे इमेहि पगारेहि अत्थऽधिकारा गया पच्छित्तऽणुवाएणं कातऽणुवातेण के ति अहिगारा । ज्वहिसरीरऽणुवाया, भावणुवादे ण य कहिं पि ॥६७००॥ पच्छित्ताणुवाते णए जहा सम्वे मासगुरुसुत्ता पढममुद्दे से अणुवत्तिया, बितियादिसु मासलहू, छट्ठादिम चउगुरु, बारसमादिसु चउलहू । अहवा-पच्छित्तणुवातो पणगादिगो जाव चरिमं, जहा दगतीरे प्रसंघसंघातिमेसु, एवमादि कायणुवाएग, जहा -- पेढियाए पुढवादिकाएसु भणियं । अहवा - छक्काय चउसु लहुगा ।। गाहा ।। एवमादिसु उवहिमणुवातो जहण्णमझिमुक्कोसो, तेसु जहा संखं - पणगमासच उमासो । अहवा - अहाकडस्स परिकम्मा बहुकम्मं ति । सरीरमगुवातो जहा -- वज्जरिसभनाराचसंघयणातिगो । __अहवा - वि दिश्चमणुयतिरियसरीरा सच्चित्तेतरा पडिमाजुत्ताणि वा पिसियचित्ताए वा बेइंदियसरीरादिणा। भावाणुवायतो, जहा- सप्रभेदा णागदंसगचरित्तायारा । अहवा - परितावमहादुक्खादिगा एवमादि ॥६७००॥ क्वचिदीदृशाः .. गविहकुसुमपुप्फोवयारसरिसा उ केइ अहिगारा । सस्सवतिभूमिभावित-गुणसतिवप्पे पकप्पम्मि ॥६७०१॥ प्रणेगजातिएहि अणेगवणहि पुप्फेहिं गुप्फोवयारो को विचित्तो दोसति, एवं सुत्तत्थविकप्पिया प्रणेगविहा मत्थाधिकारा दट्ठव्वा । कहं ?, उच्यते- पकप्पो, सो केरिसो? गुणसइ दप्रतुल्लो। वप्परूपकं इमं - सस्यं यस्यां भूमौ विद्यते सा भूमी सस्यवती सस्ययुक्ता, क्वचिच्छाली क्वचिदिक्षु क्वचिज्जवा क्वचिद्वीहयः, Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे [ सूत्र - ५३ भावितो गुणेहि जो सो भावितगुणः, गुगगत इत्यर्थः ते च गुणा सतिमादी, सती नाम विशिष्टा सस्यवृद्धिनिरुपहतत्वं ईतिवर्जितत्वं बहुफलं च, एभिर्गुणैरुपपेतो वप्रः । ४१० इदाणि उवणग्रो - वप्पो इव पवप्पो, सालिमादीण वा उद्देसत्याधिकारा सस्यवृद्धिरिव अनेकार्थः, freeतभिव दोषवर्जिता, ईतिवर्जितत्ववि पासत्थचरगादिश्लं षवर्जिता, बहुफलत्वमिव ऐहि कपारत्रिकलब्धिसंभवात् ईदृशे प्रकल्पे अनेकार्थाधिकारा इत्यर्थः ।।६७०१ | एयं पुण पकप्पऽज्झयणं कस्स ण दायव्वं, केरिसगुणजुत्तस्स वा दायव्वं ? प्रतो भण्णति - भिण्णरहस्से व नरे, निस्साकरए व मुक्कजोगी वा । छव्विहगतिगुविलम्मी, सो संसारे भमइ दीहे ||६७०२ || भिण्णरहस्सो णाम जो अववादपदे भण्णेसि सकप्पियाणं साहति । गिरसाकर णाम जो कि चि श्रववादपदं लभित्ता तं निस्सं करेत्ता भणाति एवं चेव करगिज्ज, जहा य एवं तहा अन्नपि करणिज्जं तत्य दिट्ठतो - जहा कोइ सूईमुहमेत्तमछिदं लभित्ता मुसलं पक्खिवइ । मुक्कजोगी णाम जेण मुक्को जोगो णाणदंसणचरितवणियम संजमादिसु सो एस मुक्कजोगी । एरिसस्स जो देति सो संसारे चउप्पगारे या पंचप्पगारे वा छप्पगारे वा एवमादिगतिगुविले "गुविलो" त्ति गणो घुण्णावयतीति घोरो, एरिसें संसारे भमिहिति दीहं कालं, एरिसेसु ण दायव्वा ।।६७०२ ।। एएसि पडिवक्खा जे तेसु दायव्वा । ते य इमे - इरहस्सधारए पारए य असढकरणे तुलोवमे समिते । पाणुपालणा दीचणाय आराहण छिष्णसंसारे ||६७०३ || प्रतीवरहस्सं श्रइरहस्सं, तं जो घरेति सो प्रइरहस्तधारगो । जो तं भइरहस्सं एक दो तिणि वा दिण्णा घरेति ण तेग अहिकारो, जो तं रहस्मधरणं जीवियंकाल पारं णेति तेण श्रहिकारी । प्रसढकरणो नाम सन्नच्छादने जो प्रयाणं मायाए ण ठाति, प्रसढो होऊणं करणं करेति । तुलसमो णाम समट्टिता तुला जहा ण मग्गतो पुरवो वा णमति, एवं जो रागदोसविमुक्को सो तुलासमो भण्णति । समितो णाम पंचहि समिती समितो । एयगुणसंपन्ते य देयो, एयगुणसंपत्ते पदेंतेण पप्पाणुपालणा कया भवति । ग्रहवाकप्पे जं जहा भणितं तस्स श्रणुगलणा जो करेति तस्स देयो, पकप्पागुपालणाए य दीवणा कया प्रसि दीवियं दरिसियं गमियं जहा एवं एवं कायन्वमिति । ग्रहवा - दीवणा जो अरिहाणं प्रणालस्से वक्खाणं करेति तस्सेयं देयं ति । दोवणाए य मोक्खमग्गस्स श्रराहणा कता भवति श्राराहणाए य चउगतिविलो दोहमणवयग्गो छिण्णो संसारो भवति, छिण्णम्मिय संसारे जं तं सित्रमयलमरुयमक्खय मन्त्र । वामपुणरावत्तयं ठाणं तं पावति, तं च पत्तो कम्मविमुक्को सिद्धो मति ||६७०३ ।। प्रणुगमो त्ति दारं सम्मत्तं । इदाणि "नय" त्ति दारं- "णीङ् प्रापणे", अनेकविधमर्थं प्रापयतीति नया, अधवा - णिच्छियमत्थं जयंतीति, तथा जो सो प्रत्थो उवक्कमादीहि दारेहिं वणिम्रो सो 'सम्वो णएहि समोयारेयब्वो, ते य सत्यसता दो चैव गया जाता, तं जहा - णाणणयो चरणणग्रो य । तत्य णाणणग्रो इमो - "णायम्मि" गाहा 'इदाणि चरणणओ - " सव्वेसि पि" गाहा १ सव्वेहिं इत्यपि पाठ: । २ इमो, इत्यपि पाठः । Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथा ६७०२-६७०३] विशतितम उददेशकः जो गाहात्तत्थो, सो चेव विधिपागडो फुडपदत्थो । रयितो परिभासाए, साहूण य प्रणुग्गहट्टाए ॥१॥ तिच पण टुमवग्गे, ति पणगं ति तिग अक्खरा व ते तेसिं । पढमततिएहि तिदुसरजुएहि णामं कयं जस्स ||२॥ गुरुदिण्णं च गणित्तं, महत्तरतं च तस्स तुट्ठेहिं । तेण कसा चुण्णी, विसेसनामा निसीहस्स || ३ || नमो सुदेवयाए भगवतीए । ॥ इति विसेस - मिसीह चुण्णीए वीसइमो उद्देस समत्तो ॥ ।। इति सनिर्युक्तिभाष्यचूर्ण्यपेतं निशीथसूत्रं समाप्तम् ॥ ४११ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथचूर्याः सुबोधा व्याख्या विंशतितमोद्देशकस्य विषमपद विवरणरूपा प्रणम्यवीरं सुरवन्दितक्रमं विशुद्धशुद्धया खिलनष्टकल्मषम् । गुरूंस्तथा निर्मलशुद्धिकारिणो, विशुद्धतत्त्वान् जगते हितैषिणः || १ || विंशोद्देशे श्रीनिशीथस्य चूर्णो, दुगं वाक्यं यत् पदं वा समस्ति । स्वस्मृत्यर्थं तस्य वक्ष्ये सुबोधां व्याख्यां कांचित् सद्गुरुभ्योऽवबुद्धाम् ॥२॥ प्रादौ मासिकपदमिह तत्प्रस्तावात् समागता मासाः तानवधिकृत्यादौ व्याख्या प्रारभ्यतेऽत्र, यथा - "नक्खत्ते" गाहा (२० उ० गा० ६२८३) "एगत्तीसं " गाहा (२० उ० गा० ६२८५६२८६) नक्षत्रमासानां पंचानामपि प्रमाणाभिधायिके एते गाथे, स्थापना - मा चन्द्र २६ ३२ ६२ आ न २७ २१ ६७ ६१ तत्र चन्द्रस्य नक्षत्रमण्डलभोगकालो नक्षत्रमासः । अत्र च सप्तविंशतेः सप्तषष्टया गुणने जातं १८०६ | एकविंशतिभागाश्च मध्ये क्षिप्यन्ते जातं १८३० सप्तषष्टिभागा । एतावन्तो भागाः नक्षत्रमण्डलभोगकाले भवन्ति, अस्य च राशेः सप्तषष्ट्या भागे हृते लब्धम् २७, २१, ६७ । “अहव त्ति तिन्नि ग्रहोरत्त" त्ति - द्विघटिकाप्रमाणो मुहूर्त:, तीसाए मुहुत्तेहिं ग्रहोरत्तं भवइ, पन्नरसहिं छ गुणिया ६० होइ, तो तीस मुहुत्तेहिं भागे हृते लभ्यन्ते दिनानि ३, उत्तराणं छण्हं नक्खत्ताणं पणयालीसाए छह गुणणे २७०, ३०, ६ । तीसाए भागे हृते दिन ६ । पण्णरस तीसाए गुणिया तीसाए भागे हृते लढवा १५.४५०, ३०, १५ । तस्रो मिलिया सत्तावीस दिणा २७, २१, ६७, चन्द्रमास उच्यते । अभिभोगो सावण बहुलपडिवयाए एवं पमाणो चंदस्स वत्तइ ६, २४, ६२ ६६, ६७ । ते सह "च्छेएण" त्ति - इगवीसा गुणितज्जइ वासट्ठीए, जायं १३०२, छेदश्व सप्तषष्टिरूपः स च द्वाषष्ट्या गुणित: ४१५४, प्रयं भागहारक:, भाज्यश्चायं १३०२, अयं च लघुर्भागहारकरा- (?) पेक्षयाऽतस्त्रिंशता गुण्यन्ते जातं ३६०६०, ४१५४, ६ । भागे हृते लब्धं मुहुर्ता ६, शेषं चोद्धरित १६७४ । एतच्च द्वाषष्ट्या गुणनीयं चतुर्विंशत्यंशानां द्वाषष्टिसप्तत्वात्परं ण गुण्यते अंक वृद्धिभयात् ऋतु ३० ३० ૐ अ ३१ १२१ १२४ १४४ १३ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथचूणिविंशतितमोद्देशके किन्त्वपवर्तनं - राशेह्रस्वीकरणं क्रियते, तथाहि - भाज्यस्य द्वाषष्टया किल गुणनमिति द्विषष्टिस्ता. वदेकाऽधस्तनराशेरपि द्वाषष्टया भागो हार्य इति द्विषष्टिस्तुल्यैव पश्चाविषष्टेरिति गुणकारको द्वाषष्टिरेकःछिद्यते, द्वाषष्टया एककश्च लभ्यते, तथा च तुल्येन सम्भवेन सति हरं विभाज्यं च राशिना छित्वा भागो हार्यः, क्रमशः इति न्यायोऽन्यत्रोक्तः, ततः ४१५४, अस्य राशे: द्वाषष्टया भागे हृते सप्तपष्टिलभ्यते, तया अस्य राशेः १६७४, ३ भागे हृते लब्धं २४, ६६, ६७ । षड्वास्य १६७४, राशेाषष्टया गुणने जातं १०६७८८, ४१५४ । अस्य भागोऽनेन ४१५४ हार्य : । लब्धं २४ शेषं ६६ च, ततो द्वाषष्टया अपवर्तनं द्वयोरपि क्रियते अधस्तने लभ्यते ६७ उपरितने च द्वाषष्टया हते ६६ लभ्यते, एवं च अभीचिभोगः प्राग् दर्शितरूपः सर्वोप्यागतः । "सवणाइया नक्खत्तभोग" त्ति मिलितानां ८१० अभीचिमुहूर्ते ६ क्षेपे ८१६ "पुणो अभीइभोगो" त्ति जग्रो एवं कए ६०, २७०, ४५० । नक्खत्तमास एवं भवति । चंदमासो य नक्खतमासाम्रो अधिकतरो अग्रो पुण्णे नक्खत्ततिगभोगकालः क्षिप्यते समत्तुति - समस्तः अभीमुहूर्त ६, २४०, ४२६ । मिलियं ६५, अस्य राशेः ८१६ मिलने जातं ८८४, वासट्ठिभागा य, अभीचि ४८, धणिट्ठा ४२ सक्का मीलिता ६० । अभिचिचुन्नी ६६, दुगुणिया १३२, धनिष्टाया दो चुन्नीप्रक्षेपे १३४, मिलितं च जातं, शेषं सुगमं । यावच्चन्द्रमासः समाप्तः । उऊमासइ त्ति-बुद्ध था छिन्नस्य द्विषष्टिभागतया एकाहोरात्रस्य एगषष्टिभागेहिं चन्द्रगत्या तिथिसमाप्तिर्भवति - एकषष्टिभागरूपा तिथिर्भवतीत्यर्थः । अत्र त्रैराशिक कर्तव्यं यथा१८६० । १८३० । १ । प्राद्यन्तयोस्त्रिराशावभिन्नजातीति प्रमाणमिच्छा च फलमन्यजातिमध्ये तदंत्यगुणमादिमेन भजेत्, १८३०, १८६०, त्रिंशता भागे हृतेऽधस्तनराशौ लब्धं ६२, उपरितने च लब्धं ६१, ततो न्यस्यते ६३ लब्धं । त्रिशता गुणितेऽस्मिन् ६१, जातं '१३ एकषष्टया भागे ३ हृते लब्धं ३, भागो न पूर्यते, लब्धं शून्यं, ततः ३० । ऋतुमासस्य च साधनमासकर्ममासाविति पर्यायौ, अत आह - "कम्ममासो सावणमासो य भन्नइ ति" "एस चेव" त्ति १६३०, लब्धं, तेन किल चंद्रगत्या तिथिर्भवति, ततश्चन्द्रमा सोऽपि एतस्मादेव तिथिराशेरानीयते इत्यावेदयते । या इव त्ति - कोऽर्थः ? अभुक्तेषु एतेषु ककस्थेन आदित्येन तद्दिनात् प्रभृत्येव दक्षिणायनप्रवृत्तिः, किन्तु पुष्यनक्षत्रस्याष्टभिरहोरात्रैश्चतुविशतिमुहूर्तेश्च मुक्तैरुत्तरायणमेवातिफ्रामति, तदूर्ध्वं चतुर्भिरहोरात्रैरष्टादशभिश्च मुहूर्तेः सावशेषैर्दक्षिणायनप्रवृत्तिरिति, सयभिसयेत्यादि षडहोरात्राः षड्भिर्गुणिताः ३६, मुहूर्ताश्च २१, षड्भिगुणिता १२६, अहोरात्रविशतिश्च - पड्भिगुणिता १२०, मुहूर्ताख्यभागाश्च त्रयः षड्गुणा १८, त्रयोदशाहोरात्राः पंचभिगुणिता १६५, भागा १२, गुणिता पंचदशभिः १८०, अभीचिभागा ६, सर्वभागमीलने ३३०, अत्र च विंशता भागे हृते लब्धा ११ अहोरात्राः, पूर्वोक्तानां षट्त्रिंशतादीनां अहोरात्रराशीनां मीलने ३५१, अभीचिग्रहोरात्रचतुष्कक्षेपे मुहूर्तेषु लब्धा एकादशाहोरात्रक्षेपे च ३३६ । अत्र च पुष्यभागः प्राग् दर्शितो न क्षिप्यते, पंचदशगुणकारकमध्ये पुष्यस्य सद्भावात्, ये दिवस ४,३६ मीलितो दिन १, ३, एतावत्प्रमाणः क्षिप्यते तदा चतुर्विशतिभिगुण्यते त्रयोदशाहोरात्रमाने राशिस्तदभागाश्च, अत एव पुष्यभक्तौ पृथग् दर्शितायामपि अवसेसा नक्खत्ता पन्नरसविस्तरसहगया “जति" त्ति पुष्यं मध्ये कृत्वा पंचदशेत्युक्तं, तत्र चतुर्दशगुणने त्रयोदशाहोरात्रराशौ १८२, भागेषु च १६८, अयं च मील्यते उपरितनराशिरस्य राशेः १६०, जात ३४२, भागराशेश्च १५०, भागराशिरयं, १६८, मील्यते जातं ३१८, पुष्यभागा १२, मीलने ३३०, त्रिंशता भागे हृते ११, पुष्यादि १३, सर्व २४, Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या मील्यते राशे ३४२, रित्यस्य जातं ३६६, कारणं तु वच्छामि त्ति - अत्र करणराशीनां मीलनमेवाभिप्रेतं, अस्य राशेः ३६६, भागे १२, हृते लब्धं ३०, ततोऽपवर्तनं द्वादशानां षड्भागे द्विकः, षण्णां षड्भागे एकक 2 इति दिनार्धे लब्धं, स्था० ३० ३ यद्वा अयं ३६६, पंचगुणा १८३०, ततः षड्भागे हृते लब्धं ३०, ततः षण्णां तृतीयभागे द्वौ त्रयाणां च तृतीयभागे एकैक एव, इत्यपवर्तः कार्यः । एत्थ वित्ति यत्र एतस्मिन् राशौ १८३०, प्रपेभिन्नक्रमत्वात् सर्वमासा प्रपीत्यर्थः, भवति इत्यादि ऋतुसंवत्सरो हि ३६०, एतावद्दिनप्रमाणस्तदापेक्षया चन्द्रादित्यसंवत्सरयोयूनाधिक्यं व्यवस्थापयन्नाह - ४१५ छच्चेव य (२० उ० पृष्ठ २२७ ) आदित्यसंवत्सरः ३६६, एतावद्दिनप्रमाणः, चंद्रसंवत्सरः ३५५, ६३ एतावत्प्रमाणः, तत्रादित्यसंवत्सरे षड्दिनानि ऋतुसंवत्सरापेक्षयाऽधिकानि चन्द्रसंवत्सरे ऋतुवर्षापेक्षयैव न्यूनानि, ओमरतत्ति अवमराशेः षडेव न्यूनानि दिनानीत्यर्थः । बारसवासेणए त्ति द्वादश दिनानि, एतानि वर्षेणाधिकानि षडवम रात्राश्चन्द्र संवत्स रसत्का षड् वाऽऽदित्यवत्सरसत्का इति द्वादश एकस्मिन् वर्षे दिवसा अधिका भवति, एवं द्वितीयवर्षेऽपि द्वादश षडभिर्मासैस्तृतीयसंवत्सरसत्कैः षड्दिवसा लभ्यते, ततस्त्रिंशद्दिनानि भवंति प्रर्धतृतीयवर्षैरतिक्रान्तैः, अत एवोक्तं प्रढाइज्जेहिं पुरमासो ति सडीए ( २० उ० गा० ६२८७ ) युगं हि पंच संवत्सरैनिष्पद्यते, पंचसंवत्सरेषु च मासाः षष्टिसंख्या, पक्षद्वयनिष्पन्नत्वाच्च मासस्य पक्षाणां विंशत्यधिकं शतं युगे भवति, युगस्य च मध्ये अन्ते वाधिकमासो भवति । श्रद्ध ं च मध्यमेव भवति इति मध्ये अधिमासकः । षष्टिपक्षाणामतिक्रान्तानां भवति - त्रिंशन्माशैरतिक्रान्तैरित्यथं । वावी पक्खसए त्ति युगान्ते हि विंशं शतं पक्षाणां भवति । परमार्थे युगस्य पक्षद्वयं यदतिक्रान्तं तत्प्रक्षेपे द्वाविंशं शतं मुक्तं इति द्वितीयाधिकमास क्षेपे युगान्ते - पक्षाणां १२५, भवति । युगान्ते चाधिकमासो भवन् प्रषाढान्ते भवत्याषाढद्वयं भवतीत्यर्थः । श्रहवं त्ति प्रमाणवर्षस्य दिवसराशिः १८३०, तस्मान्नक्षत्रादिमासदिनसंख्या ग्रानीयते, सेसा वारस त्ति अंशा छेदाश्च द्वापष्टिः, ते छेदा अंशाश्चार्धेनापवर्त्यन्ते द्वाषष्टेरर्धे ३१, द्वादशानामर्धे षट् परे । छेएण भाइए लद्ध त्ति - छेद १२५, इत्येषस्तेन भाजित इत्ययं राशिः १४५२, लब्धा ११, उद्धरिता ८८, एकादशसु एतस्मिन् ३२७ राशिमध्ये क्षिप्तेषु ३०३, छेदा १२४, अंशा ८८, उभयोश्चतुभिरपवर्तनेऽष्टाशीतेः, २२, चतुरधि कं विंशतिशतस्य च ३१, दिवसा दिवसेसु त्ति - चन्द्रवर्षत्रयराशि १०६२, अभिवर्धितवर्षद्वयराशिश्च ६७ दिवसानां मीलने १८२६ । भागा भागेसु त्ति १ एवंरूपा मिलिता ३१, एतेषामेकत्रिशता भागे हृते लब्ध एककस्तस्मिन् पूर्वराशिमध्ये क्षिप्ते १८३० । ज ए तेरसेहिं चंदमासेहिं इत्यादि स्थापना १३ । १२ । ३१, १२१, १२४, ६२ । द्वादशाभिवर्धितमासा अन्त्ये द्वाषष्ट्या गुण्यन्ते जातं १४४, त्रयोदशभिश्चादिमे भागे हृते लब्धं मासा ६२, ५७ - १ एए पुणो सवन्नियत्ति त्रयोदशभिरेव गुण्यन्ते सप्तपचाशन्मासा, जातं १४३, त्रयोदशभागत्रयप्रक्षेपे १४४, तेरसगुणियाणं ति लब्धं ३१ । - २७७४ शेषं ७ द्वयोरपि षड्भिरपवर्तनेऽधस्तनराशौ १२४, उपरितने च १२१, दिन । एवंप्रमाणो अभिवडियवरिसस्स भागरूवोऽधिकमासकः, यद्वाऽनयोराश्योः अर्धयोरपि षड्रिपवर्तनप्रथमतो विहिते जातं ॥ प्रस्याधस्तनराशिभागे हृते लब्धै त्रिशद्दिनरूपोऽधिकमासकः समागच्छति, एकत्रिंशदुपरि छेदांशयोर्न्यस्यते । Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ निशीथचूणिविंशतितमोद्देशके ससिणो य गाहा २० - शशिनश्चन्द्रमासस्यादित्यमासस्य च यः कश्चिद्विश्लेषः उद्धरितं किंचित्तस्य त्रिंशता गुणने द्विषष्टिभक्ते च यलब्धं तच्चन्द्रमासोऽभिवधितो भवति । एतदेव विवृणोति - एएसि विसेसे एक त्ति - विश्लेषेऽपसारणे कृते सति तच्चन्द्रमाससज्ञितराशेरादित्यराशिमध्यात् आदित्यराशेश्च यद्दिनमेकं तस्य मध्यात् द्वाषष्ठिभागा ३२, अपसायन्ते त्रिशच्च द्वाषष्टिभागा अवतिष्ठन्ते त्रिशच्च स्वगता षष्टिभागाः । ३३, एए वट्टिय ति आद्यस्य दशकेनापवतंने शून्यद्वयं गतं, द्वितीयस्य चाधनापवर्तने जातं । . परोप्परं छेयगुण त्ति कोऽर्थः ? एकत्रिशच्छेदाः षष्टित्रिंशद्भागाः स्थाप्या, अपरे चेतरस्याधस्तत इत्थं न्यासः ३ । १५१ । एकत्रिंशता च गुणने चाद्यराशौ जातं ६ द्वितीयस्य च षड्भिगुणने ६० एकत्रिंशतश्च षड्गुणने १८६, अयं च सदृशच्छेदो नष्ट उत्सार्यो गतार्थत्वात् अंसा अंसा अंसेसु पक्खित्ता जातं १८३, ततो अंशा १८३ अंशानां त्रिभिरपवर्तने लब्धं ६१, छेदानां त्रिभिरपवर्तने लब्धं ६२, न्यास ३ । एस तीसगुण त्ति - एकषष्टिद्वाषष्टिभागरूपः एकस्तिथिस्त्रिंशद्गुणः १८३०, द्वाषष्टिविभक्तः २६३३ चन्द्रमासप्रमाणोऽधिकमासको भवति। अहवे त्ति- १ । १।३०।त्रिंशता मध्यभूत एकको गुणितस्त्रिंशद् भवति। एककेन वाद्येन त्रिंशतो भागेहते लब्धे त्रिशदेव लभ्यते । एसा आइदुचंद त्ति एसा एकषष्टिभागरूपा सोमतिथिः मासस्यान्ते एका तिथिर्वधते, एवं चेव अभिवड्ढिं पडुच्च त्ति - एतां पूवेक्तां - त्रिंशत्तिथिरूपां यद्वा २६१३ एतद्रुपा अभिवधितवर्षमासः ३१ १३६ एतावत्प्रमाणः । सेसस्स त्ति- उद्धरितस्स ३४, एवं रूपस्यार्धे भवंति चतुर्विशत्यधिकशतस्य चार्धे द्वाषष्टि, स्थापना ३१, २६, १७, ६२ । नक्षत्रादिमासपंचकव्याख्यानमिदं समाप्तम् । तिपरिरयाइजयणाजुत्तस्स जा पडिसेवणा सा कम्मोदयप्रत्यया न भवति, क्रोधादिभावस्थो यतोऽसावशुद्धन गृहीतवान्, किं च म्हे भयवं ! न य वज्जीपावसस्सतुल्ल त्ति न च वर्जका विकृतेर्वयं वृषस्य तुल्यास्सन्त इति भावः । बालामोत्ति वर्तयामः । भिन्नं सत् कुड्डसेसं भिन्नकुडसेसं छक्कायगेसु त्ति - कायकेषु, अणिच्छिय त्ति अनिश्चितालोचनया पण्णरसघेत्तु मासो दिज्जइ त्ति द्वयोरपि मासयोः पंचदश पचदश गृह्यन्ते, ततो मास इति उग्धाइमाणुग्घाइममिश्रभंगकेषु इत्थं विन्यस्स भंगकाश्चारणीया १, २, ३, ४, ५, उग्या । १, २, ३, ४, ५ । नु ६ । पंच दश दश पंच एकद्वयादिसंयोगानां संख्यानां - उभयमुहराशिदुगं उवरिल्लं आइमेण गुणिऊण । हेट्ठिल्लभागलद्ध उवरि ठिए हुति सजोगा ॥ इत्यनेन करणेनागच्छतस्तत एककादिसंयोगत्वेनोद्घातिमानां यानि संयोगस्थानानि पंचाइग त्ति - पंचकादी तान्यनुद्घातिमानां एककादिसंयोगत्वेन ये पंचकादयो गुणकारकास्तैगुणनीयानि, ततः पंचविंशत्यादिकं संख्यानं जायते । बहुससुत्तेसु वि मीसगसुत्तसंजोग त्ति - उग्घाइयग्रणुग्घाश्यमीलकेन मिश्रत्वं ज्ञेयं । ___ ननु बहुससुत्तावतीसु इत्यादि एकमपि मासिकयोग्यमतिचारजात यदा बव्हीरा पासेवते तदा बाहुल्यासेवनतो बहुससूत्रविषयता तस्यां च बहुवारासेवनलब्धो द्विमासाद्यापत्तिसम्भवोऽप्यस्तीति भावः । सव्वे वि हुँति लहुगा इत्यादि एकोत्तरवृद्धया वृद्धा एकापेक्षया द्विश्यादयो मासास्ते च लववो मासाः सर्वेऽपि प्राप्यन्ते, ग्रतो द्वितीयतृतीयपंचममासा अनुक्ता अपि सन्तो गुरवोऽपि Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या द्रष्टव्याः । अयमर्थः - सूत्रे किल मासलघु मासगुरु तथा इत्येवमेवोक्तं, द्वयादिमासानां च न चिन्ता कृता, तथाऽपि लघवो मासाः षडपि सूचिताः सूत्रे, अतो गुरवो पि मासाः यादयो द्रष्टव्याः, एकोत्तरवृद्ध या वृद्धत्वात् । जे भिक्खू मासिए मासिमित्यादि एवं सामान्येन चतुभंगीयं विशेषतश्च चिन्त्यमानाः पंचदश भवन्तीत्याह-एवं मासस्सेत्यादि चारणिका, यथा मासिए मासियं १ मासिए दोमासियं २ दोमासिए मासियं, दोमासिए दोमासियमित्येका ११, १२, २१, २२ । एवं शेषा अपि अंकतो दन्ते, यथा- ११ ११ ११ ११ १३ १४ १५ १६ ३१ ४१ ५१ ६१ इत्येवं मासस्य द्विकादिमासैः सह चतुभंगिकापंचकं लब्धं । एवं द्वित्र्यादिमासानामपि स्वस्थानपरस्थानै: सह चारणे चतुभंगिका भवंति, तत्र द्विकचतुभंगिकायां द्विकः स्वस्थानम् । त्रिकादिचतुर्भगिकासु स्वस्वांकमपं स्वस्थानम्, तद्विसदृशं तु परस्थानम् । अंकतः स्थापना चेयं-२२ २२ २२ २२ २३ २४ २५ २६ ३२ ४२ ५२ ६२ ३३ ४४ ५५ ६६ दुमासिए दुमासियं । दुमासिए तिमासियमित्यादि चारणिका कार्या, एवं द्विकचतुर्भगिकाश्चतस्रः त्रिकभंगिकानिसः - ३३ ३३ ३३ ३४ ३५ ३६ ४३ ५३६३ ४४ ५५ ६६ चतुभंगिकाद्वितयं, ४४ ४४ ५४ ६४ ५५ ६६ पंचकचतुर्भंगिका ५५, ५६, ६५, ६६ । मिलिता सर्वाः १५ । जहमन्ने २० उ० गा० (६४२३) "एवं" ति- अमुना प्रकारेण वुड्डिहाणिनिष्पन्न', "च" त्ति - वाऽर्थः जे सुत्तनिबद्धा मासिय त्ति-प्रतिपदं सूत्रेण यानि प्रायश्चित्तानि निरूपितानि जहा - सेज्जायरपिंडे मासो इत्यादि, तानि सूत्रनिबद्धानि मामिकानि, किमुक्त भवति ? एकस्मिन् अपि बहुदोषदुष्टत्वेन यका मासिकादिबहुत्वापत्तिः, सा न सूत्रनिबद्धति न तदाश्रितं बहुत्वं त्रेधा, किन्तु एकैकदोषदुष्टासेवनेन यद् बहुत्वं तत् त्रिविधमिति । तत्थ-जहन्नमित्यादि,अयमर्थः-पढ़मुद्दे सएअणग्याइयमासपच्छित्ता २५२, । बिइयतइयचउत्थपंचमुद्दे सएसु मासलहुयपच्छित्ता ३३२। एएसि उग्धाइयाणुग्धाइयमासाणं इक्कमो संखित्ताणं ५८४ । एवं सति मासिकपायच्छित्ततिगसेवणे जहन्नमो बहुत्वं तिन्नि मासा तु Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ निशीथचूर्णिविशतितमोद्देशक प्रतिबहुत्वं यतः शेषं सुगमम् । अहवा- ठवणासेवणाहीत्यादि इदं व्यापकं लक्षणं । संचयमास त्ति - प्रायश्चित्तापत्तितो यावन्तो मासाः शिष्येणासेवितास्ते संचयमासा इति तात्पर्यम् । च उभंगविगप्पेण ति - मासिए मासियं । मासिए प्रणेगमासियं । अणेगमासिए मासियं । अणेगमासिए प्रणेगमासियं । उबड्डीइ ति अपवृद्धया ह्रासेन । ठवणा वीसिगपक्खिव २० उ० गा० (६४३२ )वीसाए अद्धमासं २० उ० गा० ( ६४३३ ) - आभ्यां गाथाभ्यां स्थापनारोपणाभ्यां स्थानरचनाऽभिहिता, साचेयं पढ़मा ठवणारोवणपंतीए ठवणा - २०, २५, ३०, ३५, ४०, ४५ । इत्येवं पंचकवृद्धया स्थानानि तावन्ने यानि यावदन्त्यं त्रिशत्संख्यं स्थानं, पंचषष्टयधिकं शतमिति १५५, आरोपणास्त्वत्र पंचदशाद्याः १५, २०, २५, ३०, ३५, ४०, ४५, ५०.५५ । इत्येवमत्रापि पंचकपंचक०वृद्धया तावन्ने यं यावत् त्रिशत्संख्यं स्थानं षष्टयधिकं शतमिति १६० । __ द्वितीयस्थापनारोपणपंक्तो ठवणा पंचदशाद्याः १५, २०, २५, ३०, ३५ । इत्येवं पंचोत्तरया वृद्ध या तावन्नेयं यावत् त्रिंशत्संख्यं स्थानं पंचसप्तत्यधिक शतमिति १७५॥ प्रारोपणास्त्वत्र पंचाद्या: ५, १०. १५, २०, २५, ३० । इत्येवं पंचोतरया वृद्ध्या तावन्नेयं यावत् त्रयस्त्रिंशत्संख्यं स्थानं पंचषष्टयधिकं शतमिति १६५। तृतीयस्थापनारोपणपंक्तौ ठवणा पंचकाद्याः ५, १०, १५. २०, २५, ३०, ३५ । इत्येवं पंचकवृद्धया तावन्नेयं यावत् पंचत्रिंशत्संख्यं स्थानं पंचसनत्यधिकं शतमिति १७५, अत्रारोपणा अपि पंचाद्याः ५, १०, १५ इत्यादि पंचसप्तत्यधिकशतानां ताः स्थापनास्थानानामधोदृश्याः । चतुर्थस्थापनारोपणक्तौ ठवणा एकाद्याः १, २, ३, ४, ५, ६, । इत्येवमेकोत्तरवृद्धया तावन्नेयं यावदेकोनाशीत्यधिकशतसंख्यं स्थानमेतदेव १७६, अत्रारोपणा अप्येकाद्याः १, २, ३, ४, ५ । एकोत्तरवृद्ध्या तावन्नेयं यावदेकोनाशीत्यधिकं शमिति १७६ । दोहि वि पक्खे चउ पंच त्ति भाष्यपदं द्वयोरपि स्थापनारोपणयोः पंचानां प्रक्षेपतः उत्कृष्ट ठवणारोवणाठाणं पावेयव्व । यदुपरि यस्य प्रभवति तदुत्कृष्ट', पच्छिमठवणारोवणाउ ति पश्चिमाश्चतस्रोऽपि स्थापनारोपणा उत्कृष्टा-अन्त्या इति यावत् , एवं तीसियासु त्ति - ठवणासु इति द्रष्टव्यं वीसिया से जहन्न त्ति - वीसिया ठवणा से त्ति - पक्खियारोपणयोः जघन्या । एवं बीए प्रारोवणा- ठाणे त्ति - विशतिरूपे अंतिल्लं तीसइमं ठाणं "फिट्टई" त्ति - ठवणायाः सत्कमन्यं त्रिशत्तमं स्थानं पंचषष्टयधिकशतरूपं न तद्योग्यं भवति, अशीत्यधिकशतस्याधिक्यात् ठवणाठाणं उवहिए त्ति- अपवृद्धया पाश्चात्यगत्या प्रारोपणस्थानवृद्धी ठवणास्थानस्य हासः कार्यः । पारोवणावुड्डीए त्ति ठवणास्थानवृद्धौ प्रारोपणास्थानस्यापवृद्धिः ह्रासः । ठवणारोवणसहस्स त्ति - एगम्मि एगम्मि ठवणारोवणठाण कइ कइ ग्रारोवणाठाणाणि भवंति संवेहो, गणियकरण व त्ति - संकलितगणितानयनोपायः जम्हा पढमा ठवण त्ति- १६५, एतद्रूपा पढमारोवणाठाणं १६०, एतद्रूपं इक्कं लब्भइ त्ति । कोर्थः ? पंचकपंचकनिष्पन्न एकैकस्थानवृद्ध या निष्पन्नत्वादनयोः तवं पंचकपंचकनिष्पन्नस्य स्थानस्याभावाच्चरिमयोरप्यनयोः प्राथम्यं विवक्ष्यते, जम्हा एगुत्तरवुड्डीए त्ति - पंचकपंचकनिष्पन्न एकैकस्थानवृद्ध या द्वितीयादीनि च तानि अारोपणास्थानानि पंचदशकापेक्षया विंशत्यादीनीति भावः । सव्वे ति - उत्तरतः पढमठवणा १६५ उत्तरं पि एको चेव त्ति - पंचदश Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या रूपस्तदूवं उत्तरस्यापरस्याभावात् पंचदशरूपमेव, यत पाद्यं स्थानं पढमठवणायां स्थानवृद्धिस्तथा गच्छुत्तरसंवग्गे उत्तरहीणम्मि ( २० उ० गा० ६४४०) व्याख्या - गच्छो पढमठवणाठाणे तीसं, बिईए गच्छो तित्तीसं, तइए ३५, चउत्थे १७६, गच्छस्य उत्तरेण संवर्गः - गुणनं कार्य । अत्र चोत्तर एककरूपस्तेन हीनः कार्यो राशिः, ततः आदिः प्रक्षेण्यः, स चात्रैककरूप एव, एतच्च यदागतं तदन्त्यधनं चतसृष्वपि पंक्तिषु प्रथमे प्रथमे ठवणाठाणे एतावत्संख्यान्यारोपणस्थानानि भवंति, तदप्यादियुतं प्रस्तुते एककयुक्तं कार्य तस्या कार्य, ततश्च यः कश्चिद् गच्छो न्यस्तस्तस्यार्धनार्थीकृतेन राशिना गुणन्तु त्ति गुणनं कार्य । तस्मिंश्च कृते ठवणारोवणठाणाणं संवेहेण सर्वसंख्यानं भवति । तत्थ पढमे ठवणारोवणठाणे संवेहतो सर्वाग्र ४६५, द्वितीये ५६१, तृतीये ६३०, चतुर्थे १६११० । ठवणारोवणविज्जय ।। गाहा ।। २० - स्थापनारोपणसंख्यानेन वियुता रहिता विधेयाः, षण्मासदिनराशिः तस्य पंचभिर्भागो हार्यः, भागे हृते ये लब्धा मासास्ते रूपयुताः कार्याः । स चैतावान् ठवणारोवणाणं गच्छो होइ पंचभिर्भागो हार्य इत्येवंरूपश्च प्रकार आद्यासु तिसृषु ठवणारोवणासु विन्नेग्रो। चरिमे ठवणे एक्केण भागो हार्यः । इत्ययमादेशः उपदेश इत्यर्थः ।। अयं भावार्थः-प्रथमतीर्थकरकाले उत्कृष्टं प्रायश्चित्तदानं द्वादशमासाः, मध्यमतीर्थकृत्काले चाष्टौ मासाः, चरमस्य षण्मासा इति । अतस्तीर्थमाश्रित्य षण्मासा इत्युक्तम्, तत् तिसणामपि पचकपंचकनिष्पन्नस्थानवृद्धया निष्पन्नत्वादुक्तं रूपयुतत्वं यदुक्तं तत् सर्वास्वपि स्थापनारोपणास्वाद्यपदस्य पचकादिवृद्धथाऽनिष्पन्नत्वात् तस्य प्रक्षेपसूचनाथम् । इयाणि गणियकरणमित्यादि वीसियाए उवणाए अंतधणं ति सर्वाग्र आरोपणापदानां भवतीत्यर्थः। सह पाइल्लेहि ति अन्त्यस्यारोपणापदस्य १६०, एतद्रूपस्यापेक्षया आदिमाः पंचदशप्रभृतयः पंचपंचाशदधिकशतान्ताः सख्याविशेषा एकोनत्रिशत्संख्यास्तैः सह त्रिंशत्सर्वाग्रमारोपणापदानां विशे स्थापनापदे भवतीत्यर्थः । वीसियठवणादीनां दिवसा इति विग्रहः । एवं सेसासु त्ति पंचविसियाइसु । दिवसा पंचहिं भइया ( २० उ० गा० ६४४०) व्याख्या - यस्यां स्थापनायामारोपणायां वा यावंतो दिवसास्ते पंचभिर्भजनीयास्ततो यल्लब्धं तद् द्विरूपहीनं विधेयं, स राशि: मासप्रमाणं व्रते. तस्मिन् ठवणापदे अारोपणापदे च अकसिणरूवणाए प्रोसग्गं ति झोषनिष्पन्ना अकसिणा, झोषरहिता तु कसिणारोवणा । जइ मासा तइएहिं गुण करिज्ज २० - व्याख्या - दिवसा पंचहि भइया इत्यादि करणतो द्विरूपहीनत्वेनारोपणायां यावन्तो मासा लब्धास्तै गलब्धान् गुणयेत्, ततः स्थापनारोपणासु यावन्तो लब्धा मासास्तत्समासां गाहा तत्तियभागं करे त्ति तावत्प्रमाणैर्भागः तं पूर्व राशि कुर्यात् । तिपंचगुणं ति - पंचदशगुणः कार्य: प्राद्यो भागसेस ति- शेषाश्च तद्वयतिरिक्ता द्वितीयाद्या भागा एकत्र सम्मील्य पंचगुणाः कार्यास्ततो Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ चूर्णविशतितमोद्देश के गुणाकारगुणिता राशीनेकत्र सम्मील्य स्थापनारोपणदिवससमन्विता विधेयास्ततः षण्मासप्रमाणो राशि: १८०, भवति । तेहि एक्कारस गुणिय त्ति - एक्कारसमासाणं पन्नरस दिवसमासात्र गिज्झति त्ति काउं एए मासा त्ति दसहि अद्धमासेहिं पंचमासाए भवंति पंच झोसो को त्ति पंचानां प्रक्षिप्तानां भोष उत्सारंणं कर्त्तव्यम् । ४२० जइमि भवे प्रारुवणा, तइभागं तस्स पन्नरसहि गुणये । सेसं पंचहि गुणियं ठवणदिणजुया उ छम्मासा ॥ (२० उ० गा० ६४८५ ) एसा गाहा पढमठवणाए पडिसमणाणस्स षण्मासप्रमाणदिनराशेरानयनस्याकारणलक्षणं रुवणाए जइ मासा तइ भागं तं करे इत्यादि । का च सर्वसामान्येति पाश्चात्यगाथाया व्याख्यानमाह - प्रारोवणभागलद्धमास त्ति एतस्मात् १८०, राशेः पंचत्रिशत उत्सारणे १४५ पंचप्रक्षेपे १५०, आरोपणा १५, अनया भागे हृते लब्धा मासा १०, एते पंचदशगुणाः कार्याः । पुव्वकरणेणं तिदिवसा पच भइया इत्यादिकेन अट्ठारसहं मासाणं सभाओ इत्यादि, एवकारो ग्रत्र दृश्यस्ततो दुन्नि ठवणामासा व सोहीयत्ति योज्यम् । अन्नेहि सत्तपु जेहि पंचराईदिया गहियत्ति सर्वे दिवसा ७० । तइयभागलद्ध त्ति तावत्प्र- / माणैर्मासैर्भागलब्धान् गुणयेत् । अयं प्राचीन: वीसियाए ठवणाए पगारो भणिश्रो, पुण वीसियाए वि तहेव ने । अत एवाह एवं पुण वीसियाए इत्यादि द्वितीयतृतीयेत्यादि, द्वितीय तृतीये चतुर्थे च स्थापना रोपणस्थानेऽयं विशेषो, यथा 1 जत्थ उ दुरूवहीणा, न होज्ज भागं च पंच हि न हुज्जा । एक्का मासाओ, ते दिवसा तत्थ नायव्वा ॥ व्याख्या - पंचिकायामारोपणाया पंचभिर्भागे हृते द्विरूपहीनत्वं मासस्य न प्राप्यते खंड वा भवति । चतुर्थे च ठवणारोवणठाणे एकद्विकादिके प्रारोपणास्थाने पंचभिर्भागो न घटते, तत तत्राप्येको मासो द्रष्टव्यः । कुतः इत्याह - यत एकस्मान्मासात् ते ठवणारोवणदिवसा निष्पन्नास्तत्र द्वितीयादिके ठवणारोवणठाणा ज्ञातव्याः । अत एवाह् - " जत्थ उ दुरूवहीणं न होइ " इत्यादि, आगासं वा शून्यमित्यर्थः । तथात्राम्नायात् भोषः प्रक्षिप्यते यदा तदारोपणराशेः झोषो हीनः समो वा प्रक्षेतव्यो न त्वधिक: । अत्र सर्वत्र तथा तथा कर्तव्यं स्थापनारोपणयोर्मोलनं यथाऽशीत्यधिकं शतमुत्पद्यते, सेसं पन्नासं सयमित्यादि रोवणा एक्का उत्ति मासद्वयोत्सारणे सत्येकमास एवावशिष्यते । कः प्रत्यय ? इत्यादि एत्थ सव्वत्थे त्ति इत्थं पंचदसिपाठवणारोवणाए सर्वमासेषु ठवणामासे आरोवणामासे मासदशके पक्षः पक्षो ग्रहीतव्यो न न्यूनमधिकं वा । सव्वत्य जइहिं मासेही त्या दि तत्र ५, १०, १५, एतास्तिस्रो मासनिष्पन्ना यतस्तिसृष्वपि मासो लभ्यते । पंचभिर्भागे हृते सति विशतिपंचविशत्यादिकाश्वारोपणा द्विमासत्रिमासनिष्पन्ना ग्रतस्तासु द्विमासादयो लभ्यन्ते ततः श्रारोपणामासैस्तावद्भिर्भागलब्धं गुणितव्यम् । छ सय तीसुत्तर त्ति ठेवणारोवणाणं संवेहणसंखाणमेयं संभोग त्ति, वेयणाउ त्ति स्वाभाविक मास एवेत्यर्थः । इयाणि च उत्थमित्यादि इक्कियाए आरोवणाए भागो त्ति एकोत्तरवृद्धया वृद्धत्वात् ग्रारोपणपदानामत्रैककेन भागो हार्यः । तहेव काउं जावेत्यादि ठवणारोवणदिवसानुत्सार्य एकक झोषक्षेपेऽस्य १७७, राशेस्त्रिभिर्भागे हृते लब्धं ५६, ठवणारोवणमासद्विक प्रक्षेपे ६१ लब्धम् । एवं Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोषा व्याख्या ४२१ दुतिगाइठवणासु वि त्रिचतुर्थठवणारोवणपंक्त्या द्विश्यादिस्थापनापदेष्वप्येकादय आरोपणा ज्ञेयाः । पुवकयविहिण त्ति एकैकारोपणस्थानवृद्धया एकैकस्थापनापदस्य ह्रासः तथा विहीए प्रारोवणाठाणे पाढत्ते इदं १७८, ठवणाठाणं न भवइ । एवं एक्के आरोवणाठाणे उवरि उवरि वड्डीए एक्किक्कं ठवणाठाणं उवट्ठिए हुसिज्जा इत्येवं पूर्वकृते विधिः । इह च एगाइसु च उदंसतेसु एक्को चेव मासो घेत्तव्यो । पन्नरसोवरि विकलत्ति पन्नरस १५ १८ १६ इत्येते विगताः कला पंचभरूपा यत्र ते विकला। इक्कामो मासाम्रो निप्फन्न त्ति उद्धरितायामपि कलायामेक एव लभ्यते, न त्वधिकं तद्वसेन किंचिल्लभत इति भावः । एवमेकविंशत्यादिषु चतुर्विशत्यन्तेषु केवल त्ति केवला अनुद्धरितकलाराशयः शद्धाः पंचकपंचनिष्पन्ना इति यावत, ते पंचकभागविशुद्धा द्विरूपहीनत्वकृता ये मासास्तैः प्रमाणं येषां दिवसानां ते तथा तेभ्यः दिनेभ्यः इति शेषः मासभागा यत्रानेतुमिष्यन्ते यकाभिस्ताः स्थापनारोपणाः, इयं च षोडशिकाप्रभृत्येवाभवति, नार्वाक् इत्याह इक्कियेत्यादि, ते ठविय त्ति एकादश स्थाप्यन्ते सकलश्च छेदः तेन सहिताः ११, एसि ति मासस्स पंचमो भागो स विन्नेप्रो । कोऽर्थः ? मासो पंचगुणो सो पक्खित्तो त्ति। इदाणि आरोवणाभागलद्धति पारोपणाया भागस्तेन यल्लब्धं एकादशमासाख्यं वस्तु सेसा सेसं ति यदुद्धरितं प्रतिक्रियाजातं प्रारोपणाभागश्च ते परावर्तिताश्च तैः, कोऽर्थः ? छेदांशयोर्विपर्यासः, कार्यःषट्कोऽधपंचकाश्चोपरि अत्र पंचकेन गुण्यते द्वासप्ततति,जातं ३६०, षट्केन पंचकगुणने ३०, त्रिंशता भागे हृतेऽस्य ३६० राशेलंन्धा १२, यद्वा छेदांशकयोविपर्यये कृते द्वासप्तत्यधोवर्तिनः पंचकस्य षट्कोपरिवर्तिनश्चापवर्तनं विधेयं-अपनयनं तयोः कार्यमित्यर्थः । ततः षट्केन द्वासप्तेतेभागे लब्वा १२ । एवं सत्तरसासु छेदांशरूपयोः पंचकयोरुभयोरपि उत्सारणं कृत्वा शेषेण छेदेन इतरांशे संचयमासभागाभिवायकस्य भागो हरणीय इति, यद्वा अंशानंशैगुणयित्वा छेदांश्च छेदैगुणयित्वा भागो हार्य इति, प्रक्रियाद्वयेऽपि न वस्तुक्षतिरिति ततो लब्धा १२, अत्र स्थानद्वये स्थाप्यन्त एको द्वादशकः पंचदशगुणः १८० । आरोवणाए जइ विगला दिवस त्ति प्रारोपणायां पंचभिर्भागे हृते शेषं यदुद्धरितमित्यर्थः । तेन द्वितीयो राशिगुणनीयः, अनेको विकलो दिवस उद्धरित इत्यर्थः । एक्केण गुणियं तत्तियं चेव स्थापनादिवसेन युक्तश्च द्वादशकस्त्रयोदशकीभूतः प्रक्षिप्तः पंचदशगुणकृतपूर्वराशौ स च राशिः झोषरहितः सन् आशीत्यधिकं शतं भवति । एगवीसिया वी इत्यादिठवणा १ प्रारोवणा २१, असीयसयानो अवणीए १५१, एयस्स एक्कवीसाए भागो, भागं सुद्ध न देइ इति दस पक्खिता १६८, भागे लब्धं ८, ते ठविया सगलच्छेदसहिताः, आरोवणाभागे हिए लद्ध ४ दुरूवहीणत्वे कृते मास २, मासस्स य एक्को पंचभागो मासदुगे पंचगुणे असपक्खेवे कए जाता ११, एक्कियाए वि ठवणाए हेट्ठा पंचगो छेप्रो दिनो, तो प्रारोवणाभागलब्धं ८, त आरोवणामासगुणं कायन्वं ति काउं अंसो अंसगुणो छेप्रो छेयगुणो एक्कारसहिं अट्ठ गुणिया पंचहि एक्को गुणिनो जाया अट्टासी पंचभागा ८८ ठवणारोवणमाससहिय त्ति कायव्वा, एत्य एक्को ठवणाभागो फेडियन्वो, एवं कृते सत्याह "नवरमित्यादि - जं सेसं ति ६६ एतच्चारोपणभागाश्च ते परावर्तिताश्च इत्थं तैगुणितं कार्य परं न गुण्यते प्रक्रियात् (?) किन्त्वपवर्तनं पंचकयोविधेयम्, ततो भागहियलद्धि त्ति - एकादशभिर्नवनवतिभागे हृते लब्धं ६, तिसु ठाणेसु स्थाप्यं ततः एकनवकः पंचदशगुणः १३५, द्वितीयस्य विकला दिवसायात्रैकरूपत्वात् तेन गुणितो नवक एव भवति, तृतीयश्च पंचगुण: (पंचगुणः) सर्वे मिलिता १८६, ठवणादिणजुया दशकझोषरहिता इदं १८०, भवति । Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ निशीथंचूणिविंशतितमोद्देश के एगतीसेत्यादि ठवणा १, आरोवणा ३१, एतयोरेतस्मात् १८०, उस्सारणे जातं १४८, सत्तज्झोषपक्खेवे ५५५, आरोपणाए भागे हिते लब्धा ५, ते ठविया सगलछेयसहिता ५, पारोवणाए पंचहिं भागे दुरूवहीणे कए जाता ४, उद्धरितपंचमासस्स एक्को पंचभागो, तो मासच उक्कं पंचगुणियं असंजुयं २१, एविकयठवणाए हेट्ठा पंचको छेत्रो दिन्नो १, तनो आरोवणाभागलब्धं पंचमासकं आरोवणामासगुणं कायव्वं ति अंसो अंसगुणो छेप्रो छेअगुणो एकवीसाए पंच ५, गुणिया पंचहिं एक्को गुणियं जायं १०५, पंचभागाणं ते उ ठवणामाससहिय त्ति कायव्वाए छक्को ठवणापंचभागो फेडियो सेसं प्रारीवणा पंचभागा पविखत्ता जाया संचयमासाण सत्तावीस सयं पंचभागाणं १२७ । ____ कत्तो कि गहियं ति एक्को ठवणाभागो फेडियो सेसं १२६, तत प्रारोपणाछेदांशयोः से इत्थं परावृत्ति कृत्वा पंचकयोरपवर्तने कृते एकविंशत्या भागे हृतेऽस्य १२६, राशेलंब्धं ६, एवं कृते नवरमित्यादिकस्य चूणिवाक्यस्यावसरः । एगतीसारोवणा पंचहि भागे हृते द्विरूपहीनकृतमासापेक्षया विगलदिनं पंचममाससत्कं लब्धं वर्तते ततश्चारोपणांशैः परावतितैयल्लब्धं तत् तावत् स्थानस्थं स्थाप्यमानं पचषट्का न्यस्यन्त इति। तत्थिक्को रासी पन्नरसगुणो ६० बिइयो विगलदिवसगुणो ठवणदिवससुत्तो ७, तृतीयादय एकत्र मीलिताः १८, ते पंचगुणा ६०, नवतिद्वयं अगीत्यधिकशतं सतकझोषरहितश्च कार्यः, प्रत ऊवं सामान्यलक्षणमाह आरोवणेत्यादि, ठवणासंचयभाग त्ति संचयमासभागान्तर्वतित्वात स्थापनामासभागा अपि संचया भागा उच्यन्ते, स्थापनामासभागा अपनेतव्या इत्यर्थः । पविखवतेणमित्यादिना च ठवणादिणजुया य छम्मासा इति यत् क्रिया तदुक्तं, तेइसगल त्ति- परिपूर्णदिन. तया न तु खंडरूपतयेति मासं चेत्यादिवाक्ये नवमासा दुरूव सहिया पंचगुणा ते भवे दिवसा इतीयं प्रक्रिया उक्ता, उवउज्ज कायव्वाउ त्ति - भिन्निय ठवणारोवणं इच्छतेणं ति शेषः । रासि त्ति हेतुसंख्या, ते खंडा संववहारिए इत्यादि, तउत्ति तेभ्यः व्यावहारिकपरमाणुमात्रकृतखंडेभ्यः आनंत्यादि निश्चयपरमाणुमात्राणि खंडान्येकै कस्मिन् वालग्रेऽनन्तानि भवन्त्यसंयम स्थानानामपि तत्प्रमाणत्वात् तावंतीष्यन्ते कैश्चिदिति पराभ्युपगमार्थः, संहन्नमाणं ति कस्मादपि मासात् पंचदशपंचकदशकादि-कियद्दिनग्रहणरूपतया शेपमुत्सार्यमाणमित्यर्थः । भिन्नेसु उवड्डी त्ति अपवृद्धिः, पाश्चात्यगत्या हानिद्रष्टव्या, नवमपूर्वकस्यापि स्तोकेनोनं अन्यस्य तदपि बहुतरेणेत्यादिना तावद् यावद् नवमपूर्वस्य तृतीयमाचाराख्यं वस्त्विति भद्रबाहुकृता नियुक्तिगाथा एव सूत्रं, तद्धरंतीति विग्रहः, निशीथकल्पव्यवहारयोये पीठे ते एव गाथासूत्रं, तद्धरन्तीति । अथवा नियुक्तिधराः सूत्रधराः पीठिकाधराश्चेति त्रितयं व्याख्येयं । कित्तिया सिद्धतीत्यत्र सिद्धशब्दो निष्पन्नार्थः, ननु ण एसेवेत्यादि प्रथमस्थापनारोपणपंक्तो एक्का जहन्नत्ति उत्कृष्ट स्थापनास्थानं ५४(१६५)तत्प्रतीत्य जघन्यारोपणाऽयं १५ द्वितीयादीनां तत्र भावात्। तीसं उक्कोस त्ति विशतिरूपस्थापनास्थानमाद्यं प्रतीत्य त्रिंशत् संख्या अप्यारोपणा भवन्तीति, त्रिंशत उत्कृष्टत्वं अंतिल्ला अारोपणा । उक्कोसिय त्ति जाव ठवणा उद्दिट्टा छम्मासा ऊणया भवे ताए ग्रारोवणा उक्कोसा तीसे ठवणाए नायव्वा । इत्यनेन लक्षणेन यस्यां याऽन्त्या सा तस्य उत्कृष्टा भवति, एयासि मज्झेत्ति पच पंच निष्पन्न त्रिशत् स्थानसंख्यानां मझे त्ति मध्ये वर्तिन्यः, तत्र उत्कृष्टास्त्रिंशत् शेषाश्चत्वारिंशदिति सप्ततिः वीसियठवणाए उ ति भाष्यगाथापदं, अस्यार्थः -विंशत्या उपलक्षितं आदिभूतया यत् स्थापनारोपणस्थानं तत्रता भवन्तीत्यर्थः । अन्नोन्नवेहनो भवंति त्ति अन्यस्यामन्यस्यां वेधः सम्बन्धोऽन्योऽन्यवेधस्तस्मात् Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या पंचदशाद्यारोपणा एकैकस्मिन् स्थापने संयुज्यत इत्यर्थः । तथाहि-पंचदशात्रिंशत् स्थापनारोपणा विंशती संयुज्यन्ते, भूयोऽपि ता एवैकस्थानन्यूनाः पंचविंशत्या सह संयुज्यन्ते इत्येवमन्योऽन्यानुवेधः संभाव्यते । होण ति विसमग्रहणमिति काउ वि मासाम्रो कत्थ कयं ति दिणाणि गिझंति पंचपंचदशेत्यादिकमित्यर्थः । समग्गहणं णाम सव्वमासेसु विकत्थइ तुल्यान्येव दिनानि गृह्मन्ते इत्येवंरूपं एवं कम्म ति एतत् कर्मठवणाठाणं पंक्तित्रिकं प्रतीत्य पंचदशाद्यारोपणासु कर्तव्यम्। चतुर्थेष्वपि विशेषमाह एगा इत्यादि यथा ठवणा ५ प्रारो० १२, पासीयसयानो तेरस ऊसारिऊण एककझोषप्रक्षेपे - १६८, बारसहिं भागहृते लब्धमास १४, ततश्च प्रारोपणामासेन एकलक्षणेन गुणने एतदेव, ततो ठवणारोवणामासद्वयप्रक्षेपे १६, एतावन्तः संचया मासाः । कत्तो कि गहियं ? ति पट्टवणा माससोहीऐ १४, तो आरुवणा जइ मासा तइभागं तं कारेइत्ति क्रियते,अत्रारोपणमास १ इति चतुर्दश एवावतिष्ठन्ते, एवं कृते प्रस्तुतणि वाक्यस्यावसरः, एको पि सन्नयं भागोनपंचदशगुणः क्रियते किन्त्वारोपणाराशिदिनैरिति ततो द्वादशभिगुणनेऽस्य १४ जात १६८, ठवणारोवणदिनत्रयोदशप्रक्षेपे एककझोषोत्सारणे च जातं १८०, एवमन्यास्वप्येकाद्यास्वारोपणासु चतुर्दशान्तासु निजनिजदिनरेव गुणनमिति । जइमि भवे गाह त्ति, प्राचोनगाथोक्त एवार्थोऽनया सामान्येनाभिहितः, जइत्थी आरोवण त्ति पढमठवणारोवणठाणपंतीए इति शेषः । अणेग भागत्य त्ति द्वित्र्यादिभागस्था इत्यर्थः । क्वचिदेवमिति प्रथमस्थापनारोपणस्थानपंक्तावित्यर्थः । अहवा - ठवणादिणसंजुत्त त्ति अथवाशब्द होउ ति पदं शं तृ ज्ञ तं संयोज्य भूयोऽपि त्याद्यन्तं कृत्वा योज्यत इत्याचष्टे, यद्वा शतृऽन्तं स्वत एव गम्यते, होइऊणं ति क्रियापदमेव कृत्वा -योज्यमिति कथयति । ठवणादिणसंजुत्त त्ति पदं च उभयपक्षेऽपि समान, तदयं वाक्यार्थः येन गुणकारेणारोपणा गुणिता ठवणादिणयुता सती षण्मासप्रमाणदिनराश्यपेक्षया ऊनाधिका वा भवति स गुणकारस्तस्यारोपणपदस्य न भवति । एएसिं ति एतयोः विंशयठवणापंचदशकारोवणपदयोः एते द्वे पाश्रित्येति । कोऽर्थः ? विशति प्रतीत्य पंचदशारोपणायाः समकरणत्वमाश्रित्य दशकाख्यो गुणकारको न भवति, त्रिशद्रूपं च ठवणाठाणं प्रतीत्य भवति, इह च दशकगुणकारभणनं पाक्षिकारोपणां प्रतीत्य तस्या अप्येकद्विादिगुणकारपरिहारेण यदुक्तं तद् दशस्थापनास्थानानि प्रतीत्य पाक्षिकारोपणा कृत्स्ना प्रा यते इति ज्ञापनार्थ । किमपि स्थापनास्थानं प्रतीत्य दशगुणाकारपरिहारेण य सती पाक्षिकारोवणा कृत्स्नोच्यते, किमपि च नवगुणा तावद् यावदेकगुणाऽपि सती कुत्रापि कृत्स्नाऽपि भवति, स्थापनास्थानानि - १६५ । १५० । १३५ । १२० । १०५ १० । ७५ । ६० । ४४ । ३० । एतेषु एकद्वित्र्यादिगुणा सती यथाक्रमं षण्मासप्रमाणदिनराशिपूर्वक त्वात् पाक्षिकारोपणा कृस्ना भवति दशकगुणा नवगुणेत्यादि तावद् यावदेकगुणेति, यदा प्रोमत्थगपरिहाणीए त्ति पाश्चात्यगत्या योज्यते तदा पूर्वोक्तानि स्थापनास्थानान्यपि पाश्चात्यगत्या योज्यमानानि त्रिंशतादीनि वेदितव्यानि तेन पाक्षिकारोपणा दश कृत्स्ना भवन्ति, नाधिक्या इत्यावेदितं भवति, एवं वीसिएत्यादि विंशत्यारोपणा अष्टौ स्थापनास्थानानि प्रतीत्य कृत्स्ना भवति, अन्यानि वाऽऽश्रित्य विशतेगुणकारेण गुणिताया अपि षण्मासराश्यपेक्षया हीनाधिकत्वसंभवान्न कृत्स्नत्वसम्भवः, तानि चाष्टौ यथा-१६० । १४०। १२० । १०० । ८० । ६० । ४०। २०। एतेषु विंशतिरेकद्वयादिगुणासती यथाक्रमं प्रशीत्यधिकशतपूरकत्वात् कृत्स्ना भवति, वियाले यथा उत्ति विचारयितव्याः । Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ चूगिविंशतितमोद्देश के महवेत्यादि प्रत्र प्रथमे गाथाव्याख्यानपक्षे प्राधान्यं गुणकारगुणितस्य स्थापनापदस्य गौणता गुणकारगुणिते यत् क्षमा तस्य स्थापनास्थापनपदस्य न्यसनात्, द्वितीयव्याख्याने तु प्राधान्यं स्थापनापदस्य, गुणकारगुणितस्य च गौणत्वं स्थापनापदं नियतं कृत्वारोपणापदविषये स गुणकारः कश्चित् मृग्यो येन गुणिताऽशीत्यधिकशतपूरिका भवतीति कृत्वा तदुपरि माइति तस्य द्विकस्योपरि त्र्यादयो ये गुणकारास्तैः तदुवरि माई इत्यादिवाक्येन तस्सुवरि जेण गुणा इत्यादि गाथोत्तरार्ध व्याख्यातं । जइ गुण त्ति येन गुणनं यस्याः सा यद्गुणा, प्राचीनो गाथोक्त एवार्थोऽनया भंग्यन्तरेणोक्तः । जेण गुणा प्रारोवणेत्यादि षण्मासप्रमाणदिनराश्यपेक्षया येन गुणकारेण गुणित्तारोपणास्थापनादिनसंयुक्ता विहिता सती यावता ऊना भवत्यधिका वा सातां व्यवस्थापनां प्रतीत्य कृत्स्ना ज्ञातव्या भोषसद्भावात् । ४२४ कियान् पुनस्तत्र झोषः ? इत्याह- तं चैव तत्थज्झोसणं ति यावदूनं यावदधिकं वा तावत् प्रमाण एतत् स्थापनास्थानं प्रतीत्य तस्यां भोषो भवति । यथा वीसियं ठवणं पडुच्च पक्खियारोवणाए पंचग्रो ज्झोसो लग्भइ तम्रो तेरससंचयामासा निष्पन्ना लब्भति । हुति सरिसाभिलावाओ त्ति भाष्यपदं । प्रस्यार्थः - एक द्वित्र्यादिसंख्याभिरारोपणाः पंचदशाद्या गुणिताः सत्यः स्थापनादिनयुक्ता यावत्योऽशीत्यधिकशतपूरिका भवति तावत्यस्ताः सर्वाः सदृशाभिलापा भवति - कृत्स्ना भवतीत्यर्थः । किं चेत्यादि जाए ठवणाए ति यया स्थापनारोपणयोः स्थापनया, अट्ठावीस रोवणमासत्ति वत्ति आरोपणायाः १५० पंचभिर्भागे हृते लब्धा मासा ३० मासद्विकोत्सारणे सत्यष्टाविंशतिरिति जड़ पुण न सुज्भइत्यादि तत्थ जावइएण चेव विणा न सुज्झइ त्ति योज्यं । ठवणारोवणामासे नाऊणमित्युक्तं प्राग् यतोऽतः स्थापनारोपणदिनैर्मासोत्पादनकारणमाह - प्रागासं भवतीत्यादि तत्तिया चेव ते इति यत्संख्याः पूर्वमासान् तावन्त एव दिवसास्ते इत्यर्थः । तेहि ति प्रारोवणदिणेहिं इगाइसभावभेदभिन्नाविति ये स्वभावभिन्ना किल भवन्ति तेषु किल नानारूपमा सप्रतिपत्तिः प्राप्नोतीत्यभिप्रायः । पंचदशकादिषु मासत्रयं यतः प्राप्यते ततो द्विरूपहीनत्वसंभवः । कहं पुणेत्यादि काम्रो ठवणमासाओ, कियंतो दिणा गिति, कियंती वाऽऽरोवणमासाओ संचयमासेहितो वा, कियंतो गिज्भति त्ति वितर्कोर्थः । दिवसमाणो समि त्ति सदृश्यां स्थापनायां सदृश्यां चारोपणायामित्यर्थः । पुव्वकरणेणं ति ठवणारोवणदिवसमाणाश्रो विसोहइत्तु इत्यादिकेन जे पुणेत्यादि श्रारोपणया भागे हृतेऽस्य १६६ राशेयें लब्धा २४ इत्यर्थः । अन्नासु कत्थइति पूर्वासु तिसृषु स्थापनारोपणपंक्तिषु न पुव्वकरणं कर्तव्यमित्यर्थः । समदिवसग्गहणं न कर्तव्यमित्यर्थः । यथा वीसं ठ० २०, वीसं प्रारो० २०, इत्थ ठेवणारोवणदिवसे इत्यादिना करणेन तावत् कृतं यावत् वरुणोए जइ मासा तइ भागमित्यादि करणेन षोडशसु द्विधाऽष्टाष्टतया व्यवस्थितेषु एकः पंचदशगुणः १२०, अन्यस्य पंचगुणः ४०, ठवणादिणक्षेपे भवंति १५० भवति । अत्र च पढमाणो गाओ पक्खो पवखो गहिश्रो, पनरसगुण त्ति कालं बिइयाओ अगाश्रो पंच पंच इंदिया पंचगुणिय त्ति काउं ठवणामासेहिं दो दस दस राइंदिया इत्येवमत्र समेऽपि ठवणारोवणदिवसमाणेन समदिनग्रहणं दृष्टं, तह वि य पडिसेवणाम्रो णाऊणं हीणं वा अहियं व त्ति एक वाक्यं यथाप्रतिसेवनमासाश्च ज्ञात्वा हीनत्वेनाधिकत्वेन वा ठवणारोवणासु तथा कथंचिद्दिनग्रहणं कर्तव्यं । यथा - षण्यासा पूर्यन्ते, ते य जे आरोवणाए त्ति प्रशीत्यधिकशतात् स्थापनारोपणनिरहितात् ययाऽऽरोपणया तद्रहितं कृतं तयैव तस्य भागे इत्यर्थः । वीसियठवणं Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुबोषा व्याख्या ४२५ वीसियारोवणं च पडुच्च ठवणाए दो मासा प्रारोवणाए वि दो, तन्नैकस्मिन् ठवणामासे ये दश दिवसा गृह्यन्ते ते पंचदशदिनप्रमाणस्थापनामासापेक्षया न्यूनाः । पंचानां दशापेक्षया हीनत्वात्, दशकस्य च पंचापेक्षया. कित्वाद्, एतदेवाह -कत्थ इ ठवणाए होणमित्यादि, आरोवणामासेसु दुहा विभत्तेसु त्ति अष्टाष्टतया द्विधा व्यवस्थापितेषु पनरस गहिय त्ति पंचदशकेनाष्टकस्य गुणनात् तत्र चारोपणामासो वर्तते । द्वितीयश्चाष्टकः पंचभिगुण्यते, विंशतिस्थापनां प्रतीत्य पाक्षिकस्थापनारोपणायां सर्वत्र पक्षः पक्षो मासा गृह्यन्ते, ततः संचयमासा दश, पंचदशगुणा १५०, ठवणारोवणदिनयुताः १८०, एवमित्यादि पंचियठवणारोवणाए ठवणारोवण दिवसे माणाप्रो वि विसोहइत्तु इत्यादि करणेन षट्त्रिंशत् संचया मासा लब्धास्ततः स्थापनामासोऽपनीयते ३५, ततः प्रतिमासात् पंचदिनग्रहणात् पंचकेन गुणिते पंचत्रिशति स्थापनादिनयुतायां १८० । एक्कियाए विठवणारोवणाए असीइसंचयमासेहितो ठवणामासे फेडिए मास १७९, इत्थ एक्केक्कामो मासाप्रो एक्केक्को दिणो गहियो । ठवणादिणजुप्रो १८० । एवं एगियठवणा पंचियाइ आरोवणासु वि. तहा हि - ठवणा १, आरो०५, असीयसयानो अवणीए १७४, एक्को झोसो पंचभिर्भागे हृते लब्धा ३५, ठवणारोवणामासयुता ३७, ठवणामासे फेडिए ३६, एक्केक्कमासाओ पंच पंच दिणा गहिय ति काउं पंचभिगुणने एकझोषापनयने १८० । तहा ठवणा २, पारो० २ असीयसयानो अवणीए १७६, दुगुणैर्भागे हृते मासा लब्धा ८८, ठवणारोवणामाससहिया संचया मासा ६०, ठवणामासे फेडिए ८६, तो मासेहितो पत्तेयं दो दो दिणा गहिय त्ति काउं दुगेण गुणिए ठवणादिणजुए जातं १८०.। विसमा गाहाए पादत्रिकेण एको वाक्यार्थः। द्वितीवश्चतुर्थपादेनेति तानु(?)य मासविसमत्तणमो इत्यादि यथा ठव० ३०, पारोव० १५, असियसयाओ अवणीए १३५, पंचदशभिर्भागे हृते लब्धा ६, ठवणाए मास ४, पारोवणा एक्को मिलिया संचया मासा १४, ठवणामासापनयने १०, एवं कृते प्रस्तुतचूर्णिवाक्यस्यावसरो यथा- स्थापनामासानामत्र विषमदिननिष्पन्नत्वेन मासवैषम्यम् । कोऽर्थो ? न पूर्णदिननिष्पन्ना मासा लभ्यन्ते किन्तु दिनांशयुक्ता इति । तथाहि - मासो दिनसप्तकेन दिनार्धन चात्र निष्पन्न इति, स्थापनामासेषु वि दिनसप्तकस्याऽस्य च ग्रहणमत्र शेषमासेभ्यश्च पक्षपक्षो गृह्यते इति पंचदशगुणिता दश जातं १५० । ठवणादिनप्रक्षेपे ५८० । एवमन्यास्वपि विषमदशासु कसिणासु ठवणारोवणासु ठवणामासेसु विषमदिनग्रहणं द्रष्टव्यं, कृत्स्नास्वपि विषमदिवसासु यदि स्थापनामासेसु न पूर्णदिनग्रहणं भवति किन्तु दिनांशयुक्तमपि भवति तथापि तत् तथा गृह्यमानं तथा कार्य यथा झोषविशुद्ध तद्गृहीतं भवति, यथा ठव० २५, आरो० १५, असीयसयानो अवणीए १४०. झोषदशकक्षेपे कृते दशभिर्भागे हृते लब्धा १०, ठवणारोवणमासयुता संचयमासा १४, ठवणामासोत्सारणे ११, पंचदशभिगुणने ५६५, ठवणादिणयुते झोषविसुद्धे १८०, अत्र स्थापनामासेष्वष्टौ अष्टौ दिनानि दिनांशयुक्तानि शेषमासेभ्यश्च पक्षः पक्षो ग्रहीत इति झोषविषमार्थेति झोषात् ३ विषमार्थस्य ठवणामासेषु विषमं ग्रहणस्य रूपस्य विशेषप्रदर्शनं झोषविशुद्धदिनग्रहणरूपमर्थोऽस्येति विग्रहः । एवं खलु० गाहा ६४६३ । ठवणामासैरुत्सारिते शुद्धा ये झोषमासा अारोपणायां यावन्तो मासास्तत्समैर्भागः कृता पारोवणादिणेहि व त्ति चतुर्थीस्थापनारोपणपंक्तिमाश्रित्य उद्धरितविकलदिनैरित्यर्थः । यथाशतादिप्रक्षेपेण सहस्रपूर्यते विसेसिज्जतीत्यर्थः । इति प्रारोपणामासेभ्यः स्थापनामासा विशेष्यन्ते, विशिष्टाः क्रियन्ते, पृथक क्रियन्ते इति यावत्, षण्मासदिनराशिपूरकत्वातेषामिति भावः । Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .४२६ निशीथचूर्णिविंशतितमोद्देशके एगदुतिमाइयाहिं इत्यादि अनेन व्याख्यानेनारोपणांनां कृत्स्नानां मध्ये एकस्या प्रारोपणायाः प्रतिनियतं संख्यानमाह अहवा - जत्थ संखित्तितरमित्यादि, ते चेव त्ति आलोचकमुखश्रुताः यथाअष्टादशमासाः श्रुताः तेरशीत्यधिकशताद् भागे हृते लब्धा १० सर्वविशुद्धिसद्भावात् कृत्स्नं चैतत् , अत्रैकैकस्मान्मासाहिनदशंकं गृहीतं, अष्टादशमासैदशकस्य गुणनेऽशीत्यधिकशतभवनात्, किंचि तत्थ विकलं भवइ ति किंचिदुद्धरति, परिपूर्णतया यदि स राशिन शुद्धयतीत्यर्थः । तदा तद्भागलब्धं भागहारकस्य यका संख्या तत्प्रमाणः स्थानस्तावत्यो वारा न्यसनीयमित्यर्थः।' जावइय ति विकलयुक्तभागाच्छेषा ये अन्ये भागास्ते यावत् स्थानसंख्याकास्तावन्मात्रो राशिर्भागहारगुणो त्ति भागहारेण यो लब्धो राशिः स भागहार उक्तस्तेन गुण्यते यः स वा गुणो गुणकारो यस्य स तथा यद्वा साध्याहारं योज्यते, यथा विकलयुक्तभागाद् येऽन्ये भागास्ते यावन्तः यावत्स्थानसंख्याकाः स गुणकारो दृश्यस्तेन भागहारलब्धो राशि गहारस्तस्य गुणनं गुण्यते वाऽसौ तेनेति विग्रहः । यथा - संचया मासा १३ श्रुताः, अशीत्यधिकशताद् भागे हुते लब्धा १३, उद्धरिता ५१, लब्धं त्रयोदशभिः स्थानैय॑स्यते, एकश्च भागो विकलयुक्तः कार्यः, जातं २४ । अपरे च द्वादशत्रयोदशभागास्ततो द्वादशसंख्यया त्रयोदशको गुणितः जातं ५५६, चतुर्विशते: प्रक्षेपे जातं १८०, तथा संचया मासा २५, श्रुताः । असीयसयाप्रो भागे हिए लद्ध ७, उद्धरिता ५, ससकः पंचविंशतिस्थानेषु न्यस्यते, एको विकलयुक्तः १२, अपरे चतुर्विंशतिस्ततः सप्तकेन चतुर्विशतिगुणिता १६८, द्वादशप्रक्षेपे १८० । एवमन्यत्रापि अधुना यदा स्थापनारोपणप्रकारेणाशीत्यधिकशतमुत्पद्यते तदा अकसिणारोपणायां सत्यां झोषप्रक्षेपे कृते भागो हर्तव्य इत्युक्तं प्राक् इति विकलप्रस्तावादेव यस्यां यावत्प्रमाणो झोषो भवति तत्परिज्ञानार्थमाह - "नायव्व तहेव झोसो य" ति, तथा यस्य मासस्य यद्दिनप्रमाणं गृह्यते इत्येतत् ज्ञातं तथा "झोषो अपि यस्यां यावत्प्रमाणो झोष इत्येतदपि ज्ञातव्यमित्यर्थः ।। कथं ? इत्याह - आरोवणा इत्यादि चूर्णिवाक्यं, यथा वीसियठवणा पणुवीसारोवणा तयोरशीत्यधिकशतादुत्सारणे कृते जातं १३५, प्रारोपणया भागे हृते लब्धा ५, उद्धरिता १०, एवं कृते चूणिवाक्यस्यावसरः असुज्झमाणो त्ति सर्वथा निर्लोपमध्याल्लघुराशी यच्छेदांशविशेषः । छेदोऽत्र पंचविंशतिरूपः उद्धरितदशकस्त्वंशस्तयोविशेषो यस्मात् पतति स तस्मात् पात्यते इत्येवं न्यायेन बृहद्राशिमध्याल्लघुराशेरुत्सारणे कृते उद्धरितरूपः । अत्र हि दशकपंचविंशत्योर्मध्ये पंचविंशतिर बृहद्राशिः, दशकस्तु लघुः,तस्य लघोरुत्सारणे कृते पंचविंशतेमध्यादुद्धरिताः पंचदश, एतावत्प्रमाणो झोषोऽत्रारोपणायां भवति, तथा ठ० २०, ग्रारो० २५, अशीत्यधिकशतादुत्सारणे १४५, अत्रारोपणया भागे हृते लब्धा ६, उद्धरिता दश, पंचदशभ्यो मध्यादृशानामुत्सारणे उद्धरिताः पंचकपंचकरूपो झोषोऽत्रेत्येवमन्यास्वपि छेदांशयोविशेषो झोसो विज्ञेयः । ततो झोषमित्थं प्रथमत एव विज्ञाय ठवणारोवणदिवसरहितराशिमध्ये प्रक्षिप्यारोपणाया भागो हर्तव्यस्ततो यल्लभ्यते तदारोपणामासैगुण्यत इत्यादि प्रागदर्शितप्रकारस्तदूर्ध्वं कार्यः। कसिणा० २० गा० ६४१६ । तेसु भागत्थेसुत्ति यथा ठव०६०, आरो० १५, असीयसयानो अवणीए १३५, पंचदशभिर्भागे हृते मास ६, ठवणामास ४, आरो० १ ठवणारोवणमाससहिया संचया मासा १४, ठवणामासे फेडिए जाया १०, आरोपणाया एकत्वात् एकभागस्थो दशकः पंचदशकेन गुणितः १५०, अत्र दशस्वपि मासेषु पक्खो पक्खो गहिनो, ठवणादिणजुया १८० } Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्यापा ४२७ ग्रह दुगाइभागत्थ त्ति यथा ठव० ३०, आरो० २५, असीयसन्यानो अवणीए १२५, आरोवणया भागे हृते लब्धा ५, आरोवणामासा ३, तैगुणित : पंचक १५, ठवणामास ४, आरोवणमासयुत २२, ठवणामासोत्सारणे १८, आरोपणायां मासत्रयसद्भावात् त्रिभिः स्थानैः षट् स्थितान् मीलयित्वाऽष्टादश प्रियन्तेऽत्रैकस्मिन् भागो पंचदश दिवसा गृह्यन्ते, अपरयोश्च यो भागयोः पंच पंच इति प्रत्येकं भागेषु समदिनग्रहणं, ततो भागानां पंचदशभिः आरोपणामास ३ सहिया संचया मासाः पंचकेन गुणने ठवणादिनक्षेपे ५८० । ग्रह कसिणत्ति यथा ठव० २५, आरो० २०, असीयसयात्री श्रवणीए १३५, पंचदशभोषे कृते १५०, आरोपणया भागे हृते लब्धा ६, प्रारोपणास्त्रिभिः षड् गुणिताः १८०, ठवणामास २, प्रारोपणामास ३०, सहिया संचया मासा ३३ ठवणामासोत्सारणे प्रारोपणायां मासत्रयसद्भावात् त्रयः सप्तका न्यसनीयाः, एकः पंचदशगुणः, अपरौ च पंचगुणाविति ७०, झोषस्य पचदशकस्योत्सारणे पंचदशभिगुणिते सतके त्रयोदश त्रयोदश दिनानि किंचिन् न्यूनानि मासाद् गृह्यन्ते, इत्यायाता त्रयोदशसप्तका एकनवतियंतः स्यात्, प्रत ग्राह-- ता नियमा तेसु मासेसु विस मग्गहणमिति । जइ इच्छसि नाऊण० गाहा [ १ पृ० ३३७ चतुर्थ भाग ] " कस्मात् यिन्ति कियन्ति दिनानि गृह्यन्ते ? इति दिनग्रहणगाथेयं, अस्यार्थ :- यदीच्छसि ज्ञातु ं किं तद् ? इत्याह- किं गहियं मासेहिं तो त्ति सम्बन्धः कस्मान्मासाच्च कियद् गृहीतमित्यर्थः । तदा ठेवणारुवणा जहाहि त्ति असीयसयाओ ठवणारोवणदिणा उत्सा रेहि, मासेहि ति संचयामासेभ्यश्च ठवणामासानारोपणामासाश्चोरय तदूर्ध्वं तु मासेहिं ति विभक्तिव्यत्ययात् मासैः संचयमा लै: ठवणारोवणामासैश्च भागं हरेदिति योगः । केभ्य ? इत्याह - तद्दिवस त्तिविभक्तिपरिणामात् तेभ्यः स्थापनामासैः स्थापनादिनेभ्य आरोपणामासैरारोपणादिनेभ्यः संचयमासैश्च ठवणारोवणमासरहितै प्रसीयसयाओ ठवणारोवणदिणरहिया भागं हरेदित्यक्षरार्थः । यथा ठव २०, आरो० १५, असीयसयाओ उत्सारणे १४५, एत्थ ठेवणारोवणठाणे संचया मासा १३, ठवणारोवणमासतिगुत्सारणे स्थिताः १०, तैर्भागो हार्यः, अस्याः राशेर्लब्धा दिन १४, उद्धरितदिनपंचकस्य भागहारकस्य च दशकाख्यस्यापवर्तना देशानां पंचमे भागे ५ न्यासः ३ इति दिनार्धं लब्धं इति संचया मासेषु मासा ३२, दिन १४, दिनार्धं च गृहीतं, अ च दशकेन गुण्यते जाता १०, अधस्तनद्विकेन भागे हृते लब्धं दिनपंचकम् । कः प्रत्ययः ? चउदसगुणिया १४०, पंचकप्रक्षेपे इत्येवं संचयमासैर्भागे हृते संचयदिनप्रमाणं यावद्गृह्यते तावदनया गाथायोक्तं प्रधुना ठवणारोवणमासेहिंतो यावन्तो दिवसा गृह्यन्ते स्वसमासकैर्भागे हृतं तत्प्रदर्शनाय गाथामाह - ठवणारुवणा दिवसा ण० गाहा [ २ पृ० ३३७ चतुर्थ भाग ] व्याख्या - ठवणारुवणादिवसानां भागो हार्यः, कै: ? संतमासैः, स्वकीयस्वकीयमा सैरित्यर्थः, तत्र च ठवणारोवणदिवसराशेः पंचभिर्भागे हृते यल्लब्धं तद्विरूपेनं (?) तत्समासतया भवति, भागे च हृते यल्लब्धं तद्दिवसान् जानीहि शेषं चोद्धरितं दिनभागानेव जानीहि न पुनः पूर्णदिनानि इति, यथा ठव० २५. आरो० १५, प्रत्र च संचया मासा १०, तैर्भागे हृतेऽस्य १४० राशेर्लब्धदिन १४ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथचूर्णविशतितमोद्देशके मासान् गृह्यते, दशकेन गुणिता जातं १४०, प्रारोपणामासेनैकेन भागे हृते प्रारोपणदिन रा दिन १५, ठवणमासैः त्रिभिर्भागे हृतेऽस्य २५ राशैलंब्बदिना, मासान् गृह्यन्ते इति २४, उद्धरितश्चैककः स चाष्टकेन गुणितो जाता 5 भागे अष्टकेन हृते लब्धदिन १ मिलितं सर्व १८०, ठवणारोवणदिवसा ज्ञानसद्भावे इत्यमुक्तं यदा तु ठेवणारोवणराशिर्न ज्ञायते तदा कस्मान्मासात् कियद्दिनानि गृह्यन्त इति कथनार्थमाह ४२८ जइ नत्थि० गाहा [ ३ पृ० ३३७ चतुर्थ भाग ] व्याख्या -ठवणारोवणराशिर्न ज्ञायते विस्मृतत्वादिकारणतो यदा तदा शिष्यमुखात् श्रुता ये सेविता मासास्तैरशीत्यधिकं शतं विभजेत्, भागे हृते यहब्धं तत प्रोगहियं ति अवग्रहीतमेकैक स्मान्मासाद्दिनमानमित्यर्थः । इहापि यदुद्धरितं तद्दिनभागा ग्रवबोद्धव्यास्ते च लब्धदिनराशिना गुणयित्वा तेनैव लब्धदिनराशिना भागं हृत्वा दिनानि कार्याणि । कः प्रत्यय : ? सेवितमासैर्लब्धस्य गुणने तस्य च मध्ये उद्धारितस्य दिनीकृतस्य शतं प्रक्षेपे ग्रशीत्यधिकशतं वि भवति, यथा श्रुतमासाः १३, एभिरस्मात् १८०, राशेर्भागे हृते लब्धं उद्धरितं ११, त्रयोदश - त्रयोदशभिगुणिता ५६६, एकादश दिनप्रक्षेपे जातं ॥ १८०॥ इाणिमित्यादि प्रतिमादिषु यथाक्रमं प्रायश्चित्तं यथा - • तपः कालाभ्यां लघु, द्वितीये तवगुरु, तृतीये कालगुरु, चतुर्थे का उभयगुरु, प्राभृतवदित्यादि, यद्वा प्राभृतं प्रर्थाधिकारस्तथा प्राभृतच्छेदा प्रपि तथा सकलबहुससूत्रेषु ये पदविधयः पंच तांश्च प्रत्येकं दर्शयित्वा तो वि गयं ति ततः सम्यग् ज्ञानात् ॥ छ ॥ - गुरु एक्कं ओहाडणं ति लघुप्रायश्चित्तानां स्थगनकारित्वात् तस्य पिधानकल्पं तत् बृहन्मध्ये लघूनि प्रतिविशंती ति भावः । ग्रहवा – साहूणमित्यादि गुरूणं प्रणेगानि सिज्ज त्ति - मालोचक साधु बहुत्वात् साहूणं प्रणेगालोचणाउ त्ति एषोऽप्यगीतार्थोऽपि सन् जे सेसा मास त्ति उद्धरितरूपः पडिसेवप्रो चेव हाय त्ति प्रतिसेवनादेवेत्यर्थः । असंचए तेरस पया संचए एगारस पया तिष्णि दिणा छेश्रो दिज्जइत्ति दिनत्रयं यावदासेवने छेदोऽपि, मास ४, ६ रूपोदयः प्रायतरपरतरपदाभ्यां चतुभंगके चतुर्थशून्यः । अन्ये प्रन्यतरतरं चतुर्थभंगकं ब्रुवते, उभयोर्मध्येऽन्तरं तु किंच न कर्तुं तरति - शक्नोति ग्रन्यतरतरः जइ इच्छियं करेइत्ति ईप्सितं तपःप्रभृतिभेयविकप्पोवलं भाउ त्ति दोसु वि सामत्थे संतेऽन्यतरकारत्वात् पुरुषभेदविगप्पं सलद्धित्तणउत्ति गुरुयोग्यं भक्ताद्यानय त्ति पच्छित्ते निक्खित्ते कज्जइत्ति, प्रायश्चित्तं तस्य स्थाप्यं क्रियत इत्यर्थः, जं वहइ त्ति यत् करोति तत्थ थोवं पणगाइ इत्यादि लघुमासमापन्नत्वात् तस्य, तथाहि लघु मासलक्षणापन्नस्वस्थानापेक्षया यत् तदधोवति यः पंचकादिभिन्नमासान्तं तत् स्तोकं, तदुपरि च लघुद्विमासादिपारंचिकान्तं यत् तपस्तत् बहुलघुमासापेक्षया तस्य वृद्धत्वात् एवं लघुद्विमासादिष्वपि हिट्टिलठाणा थोवं ति पणगादि लघुमासांतं थोवं तिगमासियाइ पारंचियंत बहू एस ग्रविसिट्ठो त्ति लघुपणगादिमासादिसंकीर्णतया प्राप्तः प्रविशिष्ट: लघुपंचकच्छेदो लघुमासादि छेद इति प्रतिनियतविशेषविशिष्टः प्राप्तो विशिष्टच्छेदः । ग्रहवेत्यादि यन्नामकैर्मासैस्तप आपन्नं छेदोऽपि तन्नामकं मासप्रमाण आपद्यते । तवतियं पि तपत्रिकं तदेव दर्शयति - मासब्भं तरमित्यादिना मासान्ततिलघु पंचकादिभिन्नमासं लघुमास इति ज्ञेयमित्येकं तप:, द्वित्रिमासचतुर्मासरूपं तप: सर्वं चतुर्मासान्तर्वर्तित्वाच्चतुर्मासाभ्यन्तरमिति द्वितीयं, पंचमास . Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या ४२९ पण्मासरूप षण्मासाभ्यन्तरं तृतीयं, एवं छेदोऽपि योज्यमानोऽत्र पक्षे इत्थं योज्यः - यथा पंचमासियायो उरि छलहुयं एकवारा दिन्नं, तो उवरि जइ इक्कं वारं पावज्जइ पुणो वि बीयं वारं, एवं ताव जाव वीसवारा, ताव भिन्नमासछेप्रो पणमाइ पंचविंशतिपर्यन्तरूपो दातव्यः, भूयोऽपि वीसारो परेणं आवजमाणे जाव सत्तरसवारा ताव लघुमासछेग्रो कज्जइ, लघुमासप्रमाणपर्यायोऽपनीयत इत्यर्थः। सतरसलहुमासियाण उवरि पुणो एकैकवारासेवनेन श्रावन्ने जाव सत्तरस वारा ताव लघुद्विमासद्विकं छेदो दातव्यः, पुणो वि अावन्ने तदुवरि जाव सतरसवारा ताव चउलहुच्छेदः कर्तव्यः । तदुवरि प्रावन्ने जाव पंचवारा ताव लहुपंचमासियो छेद: कार्यः । तदुवरि एकं वारं सेविए छलहु छेदो दिजइ, एवं सति तपःसमाननामकं मासाभ्यन्तरादिरूपं छेदत्रिकं प्रदर्शितरीत्याऽतिक्रान्तं भवति, एतदेवाह - जम्हा एवमित्यादि सुगमं, एतच्च प्राचीनग्रन्थानुसारेण अत्रैव निगमनवाक्ये भिन्नमासाइ छम्मासंतेसु त्ति भणनाच्च सेवनावारासंख्यानमनुक्तमपि दृश्यमिति संभाव्यते । तत्त्वं तु बहुश्रुता विदंति । उद्घातानुद्धातयोरापत्तिस्थानानि, तेषां लक्षणम् । अहवा छहिं० गाहा। __ छण्हं मासाणं आरोवियाणं छदिवसा गया, ताहे अन्नो छम्मासो आवन्नो, ताहे जं तेण अद्धवूढ तं सेसिजइ, जं पच्छा प्रावन्नं छम्मासियं तं वहइ, इत्थंभूतेन पंचमासा चउत्रीसं च दिवसा सोसिज्जति. तं पि त्ति नूतनं, ग्रह छसु इत्यादि अन्नं छम्मासियं परिपूर्ण यदि वहतीत्यर्थः, ग्राइमते वा नत्थि त्ति मासच उमासलक्षणा अधरोत्तराभ्यां काटाभ्यां पातितो जइ तम्मि त्ति अग्नौ, डहिउं ति दग्धं, सहिण ति श्लक्ष्णानि, अप्पाणं न संधारेइ त्ति असमर्थः स्यात् उग्घायाणुग्घाए पट्ठविए ति वहतः सतः नत्थि एगखंबाइ ति भाष्यपदं एकस्कन्धेन कपोतिद्वयमुद्वोढुं न शक्यते - यप्पेघेत्यर्थः (?) । अणवढपारंचियतवाणि वत्ति अनवस्थाप्यं तपः पारचिकं वाऽतिक्रान्तः समान इति, ते यदा ये न विहिते भवत इत्यर्थः । छम्मासिनो छेग्रो छम्मासिनो वि जस्स परियानो अग्रो तस्स वि मूलं दिजड़ । जहमने० गाहा। पर प्राह - अहं एवं मन्ये यथा यदुतमासं सेवित्ता मासप्रायश्चित्तेनैव शुद्धयति तथा मासं सेवित्वैवं द्विमासादि पारंचिकान्तप्रायश्चितेनाप्यसौ शुद्धयतीति तदप्यहं मन्ये । प्राचार्योs प्याह - प्रामं ति एतदभ्युपगम्यत एवास्माभिर्नात्र काचिन्नो वाधाकं व्येति (?) । यदुक्तं चूर्णी तत् पराभिप्रायः सुगम एवेत्यपेक्षया प्राचार्याभिप्राययोजनां तु दर्शयति - एस मासियं पडुच्चेत्यादिना भाष्यगाथया हि मासोपेक्षयैव द्विमासादिपारचिकं ताव सा न शुद्धिरुक्ता, एतेन सेसा वि गमा सूइय त्ति द्विमासं सेवित्वा द्विमासादिना शुद्ध्यतीत्याद्यपि पापं द्विमामादिकदृश्यतम एव चूर्णिकृता दर्शितं । थोबे वा बहु चेव त्ति अपराधे इति शेषः, आवत्ति सुत्ता नाम शिष्यगतप्रतिसवनाद्वारेणापत्रप्रायश्चित्ताभिधायीनि, आलोचनाविधिसुत्ता नाम गुरुशिष्ययोर्मध्ये शिष्येण गुरोनिवेदिते गुरुणा प्रायश्चित्तपर्यालोचनविषयाणि प्रायश्चित्तारोपणं गुरुणा यत् क्रियते एतावत् त्वया कर्तव्यमित्येवं दानरूपाण्यारोपणासूत्राणि, चउरो सूत्रेणेव भणिय ति यथा - प्रत्येकसगलमुतं प्रत्येकबहुससुत्तं सगलसंजोगसुत्तं बहुससंजोगसुतमिति, तत्थ जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, जे दोमासियं, तेमासियं चाउम्मासियं पंचमासियं पडिसेवित्ता पालोएज्जा इति प्रत्येक सूत्र प्रतिसेवनायां सत्यां प्रायश्चित्तापत्तिः स्यात् इत्यापत्तिसूत्राण्युच्यन्ते । Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. निशीथचूणिविशतितमोद्देशके . जे भिक्खू बहुसो मासियं पडिसेवित्ता पालोइज्जा, बहुसो दोमासियं, बहुसो तमासयं०, बहुसो चउम्मासियं, बहुसो पंचमासियं पडिसेवित्ता आलोइजा इति प्रत्येकबहुससूत्र, जे मासियं चदोमासिय च तेमासियं च इत्यादि सगलसंयोगसूत्रं, जे बहुसो मासियं बहुसो दोमासियं तेमासियमित्यादि बहुसंयोगसूत्रं, एतत् सूत्रचतुष्टयमेतावता ग्रंथेन सूत्रोपात्तं व्याख्यातं, इमे अत्थयो त्ति अर्थो व्याख्यानं भाष्यादिकं, तस्मात् षड् बोद्धव्यानि, तं जहेत्यादि जे भिक्खू मासाइरेगदोमासिमित्यादि बहुससातिरेगसूत्रं । जे भिक्खू साइरेगमासियं च साइरेगदोमासियं च एवं सातिरेगमासियं सातिरेगमासाइणा सह धारेयव्वांमत्यादि सातिरेगसंजोगमूत्रं । जे बहुसो सातिरेगदोमासियं बहुसो साइरेगदोमासियं चेत्यादि बहुससातिरेकसंयोगसूत्रं मासियं सातिरेकमासियं । जे भिक्खू दुमासियं सातिरेकदृमामियं चेत्यादि सकलस्य सातिरेकस्य च संजोगसूत्रं । जे भिक्खू बहुसो मासियं बहुसो सातिरेकमासियं च । जे भिक्खू बहुसो दुमासियं बहुसो सातिरेगदुमासियं चेत्यादि बहुसस्स सातिरेगस्स य संजोगसुत्त, इत्येवमापत्तिसूत्राणि दस कथितानि, ग्रालोचनासूत्राण्यपि इत्यं वास्यानि, इमं नवमे सुत्ते इति इदमिति सूत्रादर्शोपात्तं पंचमं सूत्रं, पालोचना नवमसूत्रं च, बहुभंगसंकुलमिति नवमसूत्रस्य चतुष्कसंयोगेनान्त्यं चतुष्कसंजोगरूपं पंचमं सूत्रं षष्ठं च सूत्रं बहुसरूपं सूत्रोपात्तेनालोचनादशमसूत्रेऽन्यचतुष्कसंयोगरूपं तदनेन त्रिशत्सूत्रेषु मध्येऽष्टादशसूत्रष्वतिक्रांतेष्वेकोनविंशतितमे च सूत्रे षष्ठं सूत्रोपात्तं सूत्रमिति कथितं, न पुनर्नाममात्रेण कथनात् गतार्थममीषां दृश्य, किन्तु पंचमषष्ठसूत्रयोराश्रयदर्शनार्थमेवमेतेषु गतेष्वित्युक्तं, तथा चाग्रे आलोचनासूत्राणि व्याख्यास्यति, तद्व्याख्याते च सर्वेषां सदृशत्वात् सर्वाण्यपि व्याख्यातान्येव भवंति, तत्राप्याद्यः अापत्तिसूत्रचतुष्कभङ्ग नालोचनासूत्रचतुष्कं प्रारोपणासूत्रचतुष्क सूत्रेणैवोक्तं व्याख्यातं च द्रष्टव्यम् सातिरेकसूत्रादीनि च षड् व्याख्यास्यति, तत्राप्यालोचनाविषयपचमषष्ठसप्तमाष्टमसूत्रव्याख्याने आपत्तिसूत्रारोपणासूत्रयोरप्येतानि भवंति, आलोचना नवमदशमसूत्रयोाख्याने अापत्यारोपणासूत्रयोरपि द्विक व्याख्यानं भवतीत्यारोपणासूत्रद्विके च नवमदशमे यथाक्रम सूत्रादापत्ते सूत्रे सप्तमाष्टमे भविष्यत इत्यालोचनासूत्राणि पड् व्याख्यास्यति चूणिकृत् । इह चालोचनासूत्रयोनवमदशमयोरेते पंचषष्ठे सूत्रोपात्ते सूत्रे इति कुतो लभ्यते इति न वाच्यं । भाष्ये हीत्थमेवाड नयोः सूचितत्वात्, इयाणि छटुमित्यादि इदं पंचमषष्ठसंख्यानं सूत्रोपात्तमात्रापेक्षया द्रष्टव्यम्, न तु प्राग् दर्शितप्रत्येकसगलसूत्रमित्यादि, नामभेदेन सूत्रदशकापेक्षया नवमदशमसूत्रयोर्ये चतुष्कसंयोगास्तेष्वन्तचतुष्कसंयोगसूत्रे इमे, एएसिं अत्थो पूर्ववदिति, पंचमषष्ठसूत्रोपात्तसूत्रयोरित्यर्थः । अहवा - तं मासादीत्यादि त मासाइपडिसेवियं आलोयणविहीए गुरवो नाउं जं मासाइआरोवणाए पारोवयंति त ति काइयं भन्नइ इति योगः, पारोवणाए वि अारोप्यमानं यन्मासादि हीनाधिकतया यथारुहपरे यदारोप्यते तदित्यर्थः । भाव प्रो वा निष्पन्न त्ति रागद्वेषादिना तो मासियं गुरुपणगं वा मुचंतेणं लघुदशकं चेत्यादि ताव भाणियव्वं जाव गुरु भिण्णमामो त्ति पणगाइयाण सव्वे दुगसंजोग त्ति ५॥५॥१०॥१०॥१५॥१५॥२०॥२०॥२५।।२।। Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोषा व्याख्या ४३१ जाइ कुल० गाहा ।। सा चेयम् - जाइकुलविणयनाणे दंसणचरणे य खंतिदमजुत्ते । मायारहिए पच्छा-णुतावि इय दसगुणोगाही ॥ अमुगसुएण त्ति अमुकश्रुतेन कल्पनिशीथादिकेन दंसणेणं ति सम्यक्त्वेन मायारहिए इत्यस्य व्याख्यामाह - अपलिउंचमाणो इत्यादि अपच्छाणतावीत्यस्यार्थमाह आलोएत्ता नो पच्छेत्यादि केनापि किंचिदकथनीयमालोचितं, ततः पश्चाद् यो न खेदं याति स इत्यर्थः । सुहुमे आलोएइ नो बायरे एवं कुर्वतः शिष्यस्य गुरोरेवम्भूतः प्रत्ययो जायते, तमेवदर्शयितुमाह - जो य इत्यादिना, इयरठवियं व त्ति अणंतरठवियं, इयाणि एएस चेव दोण्ह वीत्यादि आलोचनासूत्रदशकसंख्यानमध्ये ये पंचमषष्ठसूत्रे तयोरित्यर्थः । जहा पढमबितियमुक्तेसुत्ति यथाद्यसूत्रचतुष्टयमध्ये आद्यसूत्रपदसंयोगैस्तृतीयं सकलसं योगसूत्रं निष्पद्यते यथा च द्वितीयबहुससूत्रपदसंयोगैश्चतुर्थ बहुससंयोगसूत्र निष्पद्यते तथालोचनाविषयसातिरेकपंचमसूत्रपदसंयोगेः ससमं सातिरेकसंयोगसूत्राणां संख्यानमाह - नवसया एगसट्टत्ति उद्घातिमानुद्घातिमाभ्यां मिश्रसंयोगसूत्रसंख्यानमिदं, इमं चेत्थं यथा - उग्घाइयसंजोगठाणा ५॥१०॥१०॥५॥१ गुण्याः, एते पंच वि अणुग्घाइयसंजोगेण गुणिया, जहासंखं इमे जाया २५॥५०॥५०॥२५॥.५।। एवं उग्घाइयाण एगदुतिचउपंचसंयोगो अणुग्घाइयदुगसंजोगेहि दसहिं गुणिए जहासंखं इमे जाया - ५०॥१००।१००॥५०॥१०॥ उग्घाइयाण सव्वसंजोगा अणुग्घाइयदुगसंजोगेहि मिलिया ३१०, पुणो उग्घाइयाण मव्वसंजोगा अणुग्धाइयतियसजोगेहि गुणिया जहासंखं जाया ५०॥१००।।१००।५०।१०।। एए सव्वं ३१० पुणो उग्धाइयसव्वमंजोगा अणुग्घाइयच उक्कसंजोगेहि पचहि गुणिया जहासंख जाया ॥२५॥५०॥५०॥२५।।५।। एए सव्वे मिलिया १५५, पुणो उग्घाइयसव्वसंजोगा अणुग्घाइयपंचसंजोगेहिं एक्केण गुणिया जहासंखं जाया श॥१०॥१०॥५॥१॥ एए सव्वे एक्कत्तीसं ३१, एवं उग्धाइयाणग्याइएहि सव्वसंजोगसुत्ताणं संखेवो ६६१ ।, सातिरेकाणि संति सगलसूत्राणि तेषां, तानि च त्रिनवतिसंख्यानि, सा च एगतीसत्तिभागेण भवइ, तत्थ एगा एगतीसा य वासातिरेगसगलसुत्ता ।।५।। उग्घातिमादिविशेषविकलसामान्यसंयोगसूत्राणि २६ । सर्वाणि ३१ । द्वितीया च उद्घातिमसातिरेगसूत्र ५ । अनुद्धातिमसातिरेक संयोगसूत्र २६ । षड्विंशतिश्च द्विकसंयोगाः १०। चतुष्कयोः ५ । पंचकयोः १ । एतन्मीलने निष्पद्यते, इयं च त्रिनवतिः पूर्वराशेः संयोगसूत्ररूपस्येत्यस्य ६६१ । मीलिता संजायते । १०५४ । बहुससुत्ते वि एवं तनो दुगुणिए जातं २१०८, पुणो मूलुत्तरदुगेण जायं ४२१६ । दप्पकप्पद्विकेन गुणने जातं ८४३२। एवं एय संखाणं पंचमछटुसत्तम प्रढमालोचनाविषयसुत्तचउक्कस्स प्राइमसुत्तचउक्के वि प्रत्येक सूत्रादिरूपे एतदेव संख्यानं, तो पुणो वि दुगुणिए जातं १६८६४ । एवमालोचना सूत्राष्टके एतावत् सूत्रसख्यानं जातं, अत एवाह - असु वि सुत्तेसु इत्यादि पालोचनासूत्राणां प्रस्तुतत्वात् कथमुक्त एत्ति या प्रावत्तिसुत्त ति, सत्यं सदृशत्वाद् येन केनापि गपदेशो न दोषायेति संभाव्यते, आपत्तिसूत्राष्टके आरोपणासूत्राष्टके च एतावत्येव संख्या इति त्रिगुणिते पूर्वराशौ त्रिशत्सूत्रमध्ये चतुर्विशतिसूत्राणामेतत् सूत्रसंख्यानं जायते ५५०५६२० । एगाइय त्ति एकादि दशान्ताः दशपदाः कर्तव्याः, तान्येव दशपदान्याह -- तं जहेत्यादि एगादेगुंतरिए इत्यादि, एकाद्या एकोत्तरवृद्धया पदसंख्याप्रमाणेन स्थापनीयाः, कोऽर्थः ? यावंति पदान्यभिलषितानि तावत्प्रमाणा गशय एकोत्तरवृद्धया व्यवस्थाप्याः, Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथपूर्णिविंशतितमोद्देशके गुणकार त्ति दशकादिभिरेककान्तरधोवर्तिभिःभागहारे लब्धस्य उपरितनैरेककादिभिर्दशकान्तैगुणनात् गुणकारा एते उच्यते, तथा ह्य परितनपंक्तो व्यवस्थितेन दशकेनापरस्य रूपस्य सकलस्य गुणने जाता १० । एककेन भागे हृते भागलब्धा १० । एकक संयोगा इत्यर्थः । तत्र दशकेन रूपस्य गुणनाशको गुणकारो जातः, एककश्चाधोवर्तिभागहारकः, तथायं दशको नवकेन गुणनाद् गुण्यनवकश्च गुणकारनवकाधोवर्ती द्विको भागहारकः, इत्येवमन्यत्रापि गुण्यगुणकारभागहार कल्पना कार्या, तथापि शिष्यहितार्थ सप्रपंचं दश्यते तत्र दशकस्प गुण्यं रूपं जातं ५०1 भाग एकेन १ लब्ध १०, नवकस्य गुण्यं १० । जाताऽस्य ६०, भागो द्वाभ्यां २ लब्धं ४५। अष्टकगुण्यं ४५, जातं ३६०, भाग ३ लब्धं १२०, सप्तकस्य गुण्यं १२० गुणिते जातं ८४०, भाग ४ लब्धं २१०, षट्कस्थ गुण्यं २१०, गुणिते जातं १२६०, भाग ५ लब्धं २५२, पंचकस्य गुण्यं २५२ गुणिते १२६०, भाग ६ लब्धं २१०, चतुष्कस्य गुण्य २५०, गुणिते ८४०, भाग ७ लब्धं १२०, त्रिकस्य गुण्यं १२० गुणिते ३६०, भाग ८ लब्धं ४५, द्विकस्य गुण्य ४५, गुणिते ६० भाग : लब्धं १०, एककस्य गुण्यं १० दशेव च, ते दशानां दशभिर्भागे हृते लब्व एकक दशयोग एक एव, अत्र चोभयमुखराशिद्वयापेक्षया पंक्तिरपरा प्रागतफलानामुत्तिष्ठते यथा १०४५॥१२००२५२।२१०।१२०।४५।१०। तथा च पडिराशिये त्ति द्वितीयस्थाने धृत्वा गुणिय त्ति यदागतफलं तस्य पाश्चात्यांकन तथा च नवकाद्दशकः पाश्चात्यो भवति, तस्माच्च सप्तक इत्यादि, येन गुणितस्तदधस्तनेन भागे हृते यद् लब्धं तत् फलं, आगतफलानां मीलने २०३३, प्रतिसेवनाशब्देन हि नवममापत्तिसूत्रं सूच्यते, आदिग्रहणालोचनारोपणासूत्रस्यापि नवमस्य भेदा ज्ञातव्याः, एए चेवोग्घायेत्यादि तत्रोद्धातिमानुद्धातिमाभ्यां मिश्रयोगे यावन्त उद्घातिमानां दशभिरेककयोगः पंचचत्वारिंशदादिद्विकादियोगैश्चानुद्धातिमानां दशापि दश पंचचत्वारिंशदाधराशयो गुणिता यत्संख्यां प्रपद्यन्ते तदुत्तरत्र चूर्णिकृत् दर्शयिष्यति, अत्रतावदन्यदपि करणं पाश्चात्यभंगकानयनविषयं व्याख्यायते - उभयमुहं रासिद्गं, हेडिल्लाणंतरेण भय पढमं । लद्ध हरासि विभत्ते तस्सुवरि गुणंतु संयोगा। प्राद्यपादः प्रतीतः अधस्तनादन्त्याद् योऽनंतरस्तेन प्रथममधस्तनादुपरिवतिनं भज, नाम तस्य हारः, अधोराशिना अनंतरेण विभक्ते सति उपरितनराशौ यल्लब्धं तेन लब्धेन तस्य भागहारकानन्तरराशेरुपरि योऽधस्तद्गुणनं कार्य, गुणिकोऽनन्तरस्तेन भागे हृते प्रथमस्य पंचचत्वारिंशद्रूपस्य लब्धा १५, तेनाष्टकस्य त्रिकस्योपरिवर्तिनो गुणने जातं १२०, एवमन्यत्रापि द्रष्टव्यं, द्वितीयं च करणं यथा - उभयमुहं रासिदुर्ग, उवरिल्लं आइलेण गुणिऊण । हेद्विल्लभायलद्धे उवरि ठिए हुंति संजोगा ॥ व्याख्या - प्राद्यपादः प्रतीतः, उपरितनमादिमेन गुणयित्वा हिट्ठिल त्ति आदिमात् गुणकाररूपादधोवतिकोऽधस्तनस्तेन भागे हृते यलब्धं तस्मिन् भागहारकादुपरिस्थिते संयोगमानं भवति ।::, अत्र ह्यकानां वामगत्या नयनांऽशकस्यादावपरांगो नास्तीत्यादित्वं, तदपेक्षया नवकस्य कल्पते, तदपेक्षया चाष्टकस्यादित्वमिति एवं तावद् यावदेककस्यादिमत्वं द्विकापेक्षति, ब्रिा परितनो दशकस्य गुण्यते, आदिमे नवके जातं ६०, नवकादधोवर्ती द्विकस्तेन भागे हृते नवत्याः वन्ध ४५, नवकादुत्सार्य द्विकायुपरिन्यस्ता सा एतावन्ते द्विकयोगाः उपरितना पंचचत्वारिंशत्तमा Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोध व्याख्या दिमेनाष्टकेन गुणयेत् जातं ३६०, श्रष्टकादघोबर्ती त्रिकस्तेन भागे हृते लब्धं १२०, अष्टकमुत्सार्य न्यस्यते १२०, इत्येवमन्यत्राप्युपरित्वादिमत्वाघस्तनादिकं स्वबुद्ध्या परिभाव्य सर्वं करणीयं, पत्र च करणे द्विकादिसंयोगपरिसंख्यानमेवागच्छति, एककसंख्यानं क्वतो दृश्यं, सामर्थ्यलब्धत्वात्तस्य वोच्छेददेशकस्य शेषं परमेकं सकलं न्यस्यते, तदपेक्षया दशक आदिमस्तेन तद्गुण्यते जाता, १०, दशकाच एक कस्तेन भागे हृते लब्धं १०, ते उपरिभागहारका न्यस्यन्ते, एवमन्यत्राप्येकोत्तरवृद्ध्या वृध्योः पद संख्याया अग्रेऽपरमेकं रूपं सर्वत्र न्यसनीयं तस्य च पूर्वप्रदर्शितप्रक्रियाविधाने कृते एगसंयोगे संख्यानं लभ्यते । ग्रहवा - तीसपयाणेणेत्यादि नवमालोचनासूत्रविषयाणामित्यर्थः, न केवलं दशपदेष्वेतेष्वपि करणमिति । उभयमुहं रासिदुगमित्यादिकं पूर्ववदित्यर्थः, स्थापना कार्या एककादारभ्य एकोत्तरवृद्ध्या अंकास्तावद् न्यसनीया यावत् त्रिशत्संख्यं स्थानं, नवरं त्रिशतोऽ रूपं न्यसनीयं, त्रिशतोऽधस्तु एककादारभ्य तावद् नेयं अंका यावदुपरितनैककादारभ्य त्रिशकः ततः उवरिल्लं प्राइमेण गुणिऊण इत्यादिक्रमेण कृते एककयोगाः ३०, द्विकयोगाः ४३५ इत्याद्यंक: स्थानानि भवति, सर्वाग्र त्रिशत्पदानां सूत्रसंख्यायाम् १०७३७४१८२३ । नवरं - जत्थेत्यादि एककादिसंयोगेन निष्पन्नान् श्रागतफलरूपान् त्रिशत् पंचत्रिंशदधिकचतुः शताद्यान् भागहारकान् विन्यस्यानुद्घातिमैककद्विकादिसंयोगफलं त्रिशदादिकं तैगुणयेत्, त्रिशतो त्रिंशत्स्थानेष्वेकैकस्थानगतं फलं गुणयेत्, एवं त्रिकयोगादिफलेन च गुणयेत् तावद् यावत् त्रिशद्योगफलेन त्रिशत्स्थानगतं फलमिति । इमं निदरसणं ति निदर्शनमेतत्, सामान्ये व (?) मिश्रसंयोगफलगुणनतायां न तु त्रिंशत्पदागतमिश्रसंयोगफल गुणनविषये तत्रोद्घातिमानामेककयोगा दशपचचत्वारिंशदादयश्च द्वद्यादिसंयोगविषया, एते गुणकाराः, एतेषु च गुणकारेण दशाप्यनुद्घातिमसंयोग फलान्येक कवृद्धयादिसंयोगविषयाणि गुण्यन्ते, तत्र दशकेन दशादी यथाक्रमगुणने जातं १०० । ४५० । १२०० | २१०० | २५२० । २१०० १२०० | ४५० | १०० | १० । एते उग्घाइय चैककसंयोगैर्दशभिर्दश पणयाला इत्यादिकस्य गुणने संपन्ना, एकत्र मीलने जातं १०३३० । प्रघुना उग्घातिमद्विकसंयोगैः पंचचत्वारिंशत्सङ्ख्यैरनुवातिमानामेकवृद्धयादिसंयोगफलानि गुण्यन्ते । जातं ४५० | २० | २५ | ५४०० । ६४५० | ११३४० । सेसा उवरितति शेषाणि षट्कसप्तमाष्टमनवमसंयोगफलानि पाश्चात्यगत्या यथाक्रमं पंचचत्वारिंशता गुणितानि चतुर्थतृतीयद्वितीयप्रथमसंयोगगुणितफलसंख्यानि भवंति, दशकसंयोगे चैकस्मन् पंचचत्वारिंशदेव एककेन गुणने तदेवेति न्यायात् तदत्र पंचकदशकसंयोगफलं ११३८५, एतद्रूपं पृथगुत्सार्यं प्रथमसंयोगादिफलं चतुष्कं सम्मील्यते जातं १७३२५, अस्य द्विगुणने ३४६५० । पंचकाद्युत्सारितफलमीलने जातं ४६०३५ । एवमुद्धातिमत्रिकयोगैः १२० एतावद्भिर्गुणने दशानां जातं १२०० । ५४०० | १४४०० | २५०० | एकत्र मीलने ४६२०० । द्विगुणने ६२४०० ॥ पंचकसंयोगे ३०२४० | दशकयोगश्च १२० । एतद्रूपमुभयोः पूर्वराशौ मीलने १२२७६० । उद्घातिमचतुष्कयोगफलेन २१० गुणने दशादीनां जातं २१०० । ६४५० । २५२०० । ४४१०० । चतुर्णामेकत्र मीलने जातं ८०८५० । द्विराहते १६१७०० | पंचकयोगफलं ५२६२० १ दशकयोगफलं च २१० । एतद्रूपमुभयोः पूर्वराशी प्रक्षेपे आगतं २१४८३० । अनुद्घातिमपंचक संयोगफलान्यपि दशादीन्युद्धातिमपंचकसंयोगफलेन २५२ । एतावद्रूपेण गुणनीयानि ततो जातं २५२० । ११३४० । ५२६२० । ६३५०४ । अयं पंचकयोगो विभिन्न उत्सारणीयः । षष्ठसप्तमाष्टमनवमफलानि च यथाक्रमं पंचक संयोगगुणितानि चतुर्थतृतीयद्वितीयप्रथममंयोगगुणितफलसंख्यां प्रपद्यन्ते, ततः चतुष्कमीलने ६७०२० । द्विराहते जातं १६४०४० । एतस्य मध्ये दशकयोगफलं २५२ | पंचयोगफलं च ६३५०४ । एतद्रूपमिलितं ततः पंचकयोगसर्वाग्रमिदं २५७७९६ । श्रमु विभिन्नमुत्सार्य एकद्विकत्रिकचतु - ૪૧ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ चूणिविंशतितमोद्देशके संयोगसर्वाग्रफलानि १०२३० । ४६०३५ । १२२७६० । २१४८३० । प्रमीषां मीलने जातं ३६३८५५ । षष्ठसतमाष्टमनवमसंयोगफलं सर्वाग्रमप्येतावदेवातो द्विगुणिते जातं ७८७११० । पंचक संयोगफलोत्सारितराशेः प्रक्षेपे जातं १०४५५०६ । एतच्च संख्यानमेककादीनां नवान्तानां संयोगानां दशकसंयोगफलानि च दशादीन्येककगुणानि तावन्त्येव मिलितानि च तानि १०२३ । अस्य च पूर्वराशौ प्रक्षेपे जातं १०४६५२६ । एतदेवाह - मीसग सुत्तसमास इत्यादि, एवं कएसु त्ति दशसु पदेषु भंगकरद्वारेण विस्तारितेषु यदि सा चेवेत्यादि आरोपणासूत्रदशकस्य यद्यप्यत्र सामस्त्येन पूर्वसूत्रातिदेशो दत्तस्तथाप्युच्चारणं प्रर्थविशेषभंगकसंख्यानादिकं च प्रतीत्य स द्रष्टव्यो न पुनः सर्वथा, तथा चारोपणासूत्रविषयेऽन्यदपि बहु वक्तव्यमस्ति । तथाहि प्रायश्चित्ते श्रारोपिते गुरुणा तदुद्वहन् आलाप संभोगादिना परिहियते शेषसाधुभिरिति पारिहारिकत्वं, तथा चारोपणा पंचविधा भवतीति, तस्याः स्वरूपं तथा मासाइयं पच्छित्तं वहतो जं श्रन्नं अंतरा आवज्जइ मासादिकं तत्थ जं जम्मि दिवसग्गहणप्पमाणं कज्जइ इत्यादिकमर्थः, जातमारोपणासूत्रविषयं सर्वमित ऊर्ध्वं सूत्रेण भाष्येण चूर्ष्या च भणिष्यते । इयाणि सुत्तत्थाण ति पुच्छा इति शेषः । 1 दाणे दवा० गाहा १ ॥ ( पृ० ३७६ चतुर्थ भाग ) ४३४ पहियंति संस्तारका रुपढौकनेन अन्येनास्यादानमनुपहितविधिः जत्तियं चेव भणइ करे वत्ति सप्तसु भंगकेषु वक्रत्वव्यवस्थापितपदेषु च विधिर्भवति ततश्चाष्टमभंगे सर्वजु त्वादनुशास्त्यादीनां त्रयाणां करणमेव सप्तसु च मध्ये यस्मिन् यावन्ति वक्राणि तावन्तः सर्वे निषेधाः शेषाश्च तद्यतिरिक्ता ये ॠजवस्तेषु यदाचार्य उपग्रहादिकं कुरुते तृतीयादिषूपलंभादिकं यद्भणतितत् सर्वं मुत्कलमिति सूचितं दृश्यं गमनिकामात्रमिदमन्यथा वाऽभ्यूह्य श्रावकप्पे इत्यादि अपवादपदे छद्दिणज्भोसो कज्जइ इति भावः पूर्वश्च अन्यापेक्षया ग्राद्यश्च ग्रहवेत्यादि प्रत्र पक्षे पूर्वस्मिन्नाद्ये सति अनु- पश्चाद्भावी अनुपूर्वंद्विकः ततः पूर्वं प्राद्यत्रिकापेक्षया अनुपूर्वी द्विको यस्यां परिपाट्यां ता सार्वानुपूर्वीति विग्रहः, यद्वा पूर्वस्मिन् प्रनुः - पूर्वः ततः स एवेति पूर्वक एव समास: कार्यः, यथा पूर्वस्याद्यस्य त्रिकापेक्षया द्विकस्यानुपूर्वस्त्रिको यस्यामिति विग्रह, मत्वर्थीयो वा इन्. नवरं तदाक्रम इति दृश्यं पुव्वपच्छुत्यरणविकप्पेण च उभंगो कायव्वो ति । पुव्वं पडिसेवियं पुव्वं आलोइयं । पुव्वं पडिसेवियं पच्छा ग्रालोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुव्वं प्रालोइयं । पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । बितियततियभंगा मायाविणो नरस्स हुंति मायासद्भावं च स्वत एवाग्रे भावयिष्यति किमर्थं पुनरसौ प्रथमत एवानुज्ञां याचते यावता यत्रासौ यास्यति स्थास्यति वा तत्रैवासावनुशां लप्यते इत्याह एवं तत्थ गीयत्था संभवाउ त्ति तृतीयभंगशून्य इति तथा ह्याचार्यसद्भावे सति यथा प्रथमालोचते तथा विकृत्यादिकं गृहीत्वा गतः सन् पश्चादपि तदन्तिके आलोचिते मायारहितश्च पश्चात् प्रतिसेवते इति शून्यता, पश्चादप्यालोचनसम्भवात् पूर्वमेवालोचते इत्यवधारणपरस्य पदस्याघटनात्, अप्पलिउंचि वा भावे त्ति मायारहितत्वसद्भावे इत्यर्थः, द्वितीयतृतीयो च मायासद्भावे स्तः, भावशब्दात् पाश्चात्यान्त्यवर्णस्य दीर्घता वाक्यद्वयेऽपि प्राकृतत्त्वात् । पलि उंचिए अलि उंचियं, ग्रपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए पलिउंचियं, पलिउंचियं पलिउंचियं चतुर्थभंग: । - Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा ग्यास्या ४३५ अपलिउंच० गाहा ॥६६२४॥ भाष्ये यद्यप्यपलिउंचणमिति नोक्तं तथापि पलिउंचणं माया, तनिषेधपरो निर्देशो द्रष्टव्यः, सूत्रे प्रकारयुक्तपदसद्भावादित्याह, पलिउंचरणमित्ययं प्रतिषेधदर्शनादिति, पलिमत्ताए निउत्त त्ति गोभत्ते नियोजिता क्वचित् सूत्रादर्श ग्रादिचरिमावेव भंगौ निर्दिष्टी, द्वितीयतृतीयौ चार्थलभ्याविति, यदुक्तं प्राक् चूर्णी, तदधुना सूत्रकारः स्पष्टीकुर्वनाह - अपलिउंचिय इत्यादि, प्रस्यार्थ इति तं असणादिग्गहणेति तं सामाचारीभासणाभिग्गहेणातित्रानतः प्रायश्चित्तं भवतीति विशेषयति तथाासनं गुरोर्नीचमात्मीयासनसमं वा यदि ददाति तदा सामाचायुल्लंघनमेव कृतं भवति, एवमित्यादि, वृषभशब्देनेहोपाध्यायो ग्राह्यो, भिक्षुश्च सामान्ययतिरेव, आलोचनाहं इति शेषः। नवरं - कोल्हुगाणुगे विशेष इत्यादि पालोचकस्य कोल्हुगाणुगस्याचार्यादेरालोचनाग्रहणकाले ग्रासनं प्रतीत्य विशेषो भवति, निषद्या चेहौपग्रहिकी पादप्रौंछनकल्पैव दृश्या, तत्र कोल्हुगाणुगो कोल्हुगाणुगसमीवे उक्कुडुप्रो आलोइतो सुद्धी, पायपुछणणिसिज्जोवविट्ठो पुण पालोएंतो असुद्धो, मीहवसभाणुगं वाऽऽलोचनाहं प्रतीत्य सो निषद्यापायपुछणोवविट्ठो वि सुद्धो इत्येषा भजना । अथ सिंहाणुगतम् वृषभस्य, सिंहानुगत्वं वृषभाणुगत्वे भिक्षोश्च कथं घटते अनुचितत्वात् ? इति चेद्, उच्यते, आलोचकेन ह्याचार्येणापि निषद्यादिविनयप्रतिपत्ति कृत्वैवालोचना ग्राह्या नान्यथेति, भिक्षुवृषभयोरपि सिंहाणुगत्वादिव्यपदेशस्तत्कालं प्रतीत्य संगच्छते । अत एवाह - जो होइ सो होउ इत्यादि सिंहाणुगत्वादिका च पारिभाषिकी संज्ञा, वसभस्स वसभाणुगस्स त्ति एक कप्पे उवट्ठिनस्येत्यर्थः । भिक्षुस्स कोल्हुगाणुगस्स ति पायपुछणे उवविट्ठस्स भिक्षुपादनिषद्यात्वासनग्रहेण द्वाभ्यां तपः कालाभ्यां प्रायश्चित्तं गुरुकं भवति । दोहि वि० गाहा ॥६६३१॥ एतस्या पूर्वार्धमाचार्य प्रतीत्य सुगमम् । उत्तरार्धव्याख्यामाह - वसभाणवीत्यादिना । अथ दोहि वीत्यादिगाथाया वृषभमालोचनाह प्रतीत्य प्रायश्चित्तनिरूपणपरताया भणितायाः प्राग अपरं यथा द्वयं भाष्ये दृश्यते तत् किमिति नामग्राहं न व्याख्यातं - यावता तत्परिहारेण दोहि वीत्यादिगाथैव निर्दिष्टा । उच्यते-क्वचिद् भाष्ये गाथाद्वयं भवति क्वचिच्च नेति ततश्च यत्र तन्न भवति तत्प्रतीत्य तदर्थो मुत्कल एव चूर्णिकृता स्वतन्त्रतया कथित : तमभिधाय दोहि वीत्यादि भाष्यदृष्टा गाथापत्तौ यत्र च तद्भवति तत्र पाठान्तरत्वान्नामग्राहं तां गाथां गृहीत्वा विवरीषुरिदमाह, क्वचित् पाठान्तरं एवमेव य गाहेत्यादि, तच्चेदं - एमेव य वसभस्स वि आयरियाईसु नवसु ठाणेसु । नवरं पुण चउलहुगा, तस्साई चउलहू अंते ॥६६३२।। उत्तरार्धव्याख्या यथा - तस्य सिंहाणगवृषभस्यालोचनाम्यालोचक पालोचके प्रादिभूते सिंहाएगे आयरिए ४, वसभाणुगवसभस्स मध्यमस्थाने सिंहाणुगपदभूते प्राचार्ये ४, कोल्हुगाणु. वसभस्स अन्त्यस्थाने आदिभूता सिंहाणुगा प्राचार्य ६, द्वितीयगाथा यथा - लहु लहुओ सुद्धो, गुरु लहुगो य अंतिमो सुद्धो । छल्लहु चउलहु लहुओ, वसमस्स उ नवसु ठाणेसु ॥६६३३।। Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YIS निशीथ चूर्णिविशतितमोदरेशके भिक्षुमप्यालोचनाहं प्रतीत्य - एमेव य मिक्स्स्स वि, आलोएंतस्स नवसु ठाणेसु । चउगुरुगा पुण आई, छग्गुरुगा तस्स अंतम्मि || ६६३४॥ इत्यस्या नामग्रहणेनार्थम् - एमेव य भिक्खुस्स वि, आलोइंतस्स नवसु ठाणेसु । चउगुरुगा पुण आई, वग्गुरुगा तस्स अंतम्मि || ६६३५|| इत्यस्या नामग्रहणेनार्थमेव मुत्कलं चूर्णिकृत् कथितवान्, क्वचित् पुस्तकेऽस्या दर्शनात्, श्रत एव पाठान्तरत्वेन एतामपि गृहीत्वा व्याख्यातवान् । एव विभागप्रो एक्कासीत्यादि, सीहाणुगं प्रायरियं पच प्रालोयणागाही प्रायरियो तिहा- सी० व० को ० ३ । वसभाणुगं सूरि पडुञ्च प्रायरिप्रो आलोयगो तिहा - सी० व० को० ३ । कोल्हुगागं पडुच्च सूरिं प्रालोयणा प्रायरिओ तिहा सी० व० को० ३ सर्वे ६ । प्रायरियं श्रालोचनाहं प्रतीत्य प्रालोचकवृषभोऽपीत्थं नवविधो वाच्यः, ततो भिक्षुरप्येवं नवविधो वाच्यः । प्रत्येका सप्तविंशतिनंवरमाचार्यस्यालोचकस्य प्रायश्चित्तं उभयगुरु, वृषभस्यालोचकस्य तपोगुरु, भिक्षोरालोचकस्य कालगुर्विति वाच्यम् । एवं वृषभो ग्रालोयणार्हविघा सी० व० को० । एतदधो प्रालोचनाग्राही सूरिः पूर्ववद् नवधा वाच्यः, वृषभोऽप्यालोचनाग्राही नवधा वाच्यः, भिक्षुरपि नवविध इति द्वितीया सप्तविंशतिः तृतीया तु भिक्षुमालोचनाह प्रतीन्य प्राचार्यवृषभ भिक्षूणां नव नव पदैः सप्तविंशतिरिति । " जैत्तिय साहुति जे इति निर्देश : साधुसूचक: । जाणि य तेरसपयाणि एसा पारंचियवज्जियत्ति पारंचिकमेकवारेव दीयते इति तस्यैकविधत्वात् तद्वर्जनं, शेषपदानि वाश्रित्याने कविधा प्रस्थापना भवति तेषामनेकवारं प्रदानात् । तं कसिणं ति तत् सर्वमारोप्यते । श्रणुग्गहेण वि ति तत्थाणुग्गहं छण्हं मासाणमारोवियाणं छद्दिवसा गया, ताहे मनो छम्मासो प्रवन्नो, ताहे जं जेण श्रद्धवूढं तं झोसिज्जइ, जं पच्छा आवन्नं छम्मासियं तं वहति एत्थ पंचमासा चउवीसं च दिवसा जेण भोसिया एयं श्रणुम्गहकसिणं, णिरणुग्गहेण व त्ति जहा छम्मासिए पट्ठविए पंचमासा चतुवीसं च दिवसा वूढा ताहे अन्नं धम्मासयं प्रावनो तं वहड़, पुव्विल्लस्स छद्दिणा झोसो । मानासनान्मास इत्यस्य वाक्यस्यान्वर्थमाह - प्रत्यानीत्यादिना (?) इह शूव्याप्तावित्यस्य निपातनान्मास इति, असतीति वाक्यं चूणिवाक्यत्वात् यद्वा भौवादिको स गत्यर्थोऽप्यनेकार्थत्वात् व्याप्त्यर्थस्तस्येदं रूपमिति, मानाद्वेति स्वमानेन द्रव्यादीन् प्राप्नोतीति मास:, तथाहि मासनिष्पन्नं द्रव्यं मासिकमुच्यते इति स्वमानेन द्रव्यप्राप्तिः, क्षेत्रे च तास्थ्यात् तद्व्यपदेशो द्रष्टव्य : | परिहार्यंत इति चूर्णित्वात् वाक्यं तु - परिह्नियत इति ज्ञेयं, तिष्ठन्त्यस्मिन्निति तपोविशेषे इति - स्थानं प्रादिकर्मण्यं च उदीरणंचेत्यादि द्वन्द्व : अन्तं प्राद्यन्तरूपं राति गृण्हातीति अंतरं मध्यमुक्तं प्रतिदानयोः प्रतिसन्निधानयोरिति नावबुध्यते मूलगुणादे : प्रतिसेवनोच्यते, ग्राङ्मर्यादयाऽशुद्ध निजाभिप्रायप्रकटनं सन्दर्शनम् प्रालो - चनम् । प्ररज्यते तमसा व्यापते या सा रात्रिः निपातनात् रज्यते वा स्यादौ प्राण्य Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या स्यामिति रात्रिः, रात्रिशब्दस्य रागः प्रवृत्तिनिमित्तं, रागश्च दिवसोऽपि भवतीति रात्रिशब्दोपादानेन तदपि ग्राह्यम्, उभयोऽपीति दिने रात्री च इह छम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए - अंतरा दो मासा पडि वीसइराइया आरोवणा इत्येकं वाक्यम् । द्वितीयं च आइ मज्झे अवसाणे य सट्ट इत्यादि तावद् यावत सवीसतिराइया दो मास त्ति ततः आदिवाक्येन सामान्यतः विंशत्यारोपणाऽऽरोप्यते विशेषतश्च प्रायश्चित्त निमित्तकवस्तुनो विवक्षायामननातिरिक्तमारोप्यते यदि तदा द्वौ मासौ विशतिरात्रिन्दिवाभ्याधिकावारोप्यो, प्रथमासेवनायां तदुपरि वा सेवने त्रिंशतिवृद्धिरेव प्रतिपदं कार्या इति । प्रतिसूत्र सामान्यारोपणा च प्रथमासेवनवारां प्रतीत्य द्रष्टव्या । तेण मूल वत्थुणा सहेत्यादि यस्मिन् शय्यातरपिंडादावाहतादिदोषदुष्टे द्विमासिकापत्तिस्तन्मूलं वस्तु, तथाचोक्तं प्राक् सागारियपिंडाहडे दोमासियं ति प्रायश्चित्तनिमित्तकं वस्तुद्विस्वान्यूनातिरिक्तद्वे मारोपणयोः परमाण भवतीत्यस्यैवार्थमाह-न प्रावत्तिमाणमित्यादि, आपत्तिर्मासिकद्वयरूपा तद्रूपं मानं न। कोऽर्थः? मासिकद्वयं शुद्ध, न केवला विंशत्यारोपणा, किन्तु परमन्यदेवारोप्यते, विंशत्यधिकमासद्वयमित्यर्थः । अहवा- इमो अन्नो वि आदेशो इत्यादि अंत्र व्याख्यानेन प्रायश्चित्तनिष्पत्तिकारणं वस्तूच्यतेऽर्थशब्देन किन्वर्थः प्रयोजनं तच्चात्मनः परस्य वा वैयावृत्यादिकरणरूपं तस्मिन् हि क्रियमाणे न प्रायश्चित्ततप उद्वोढुं शक्यते, प्रत उभयतर गादिकं कारणं प्रतीत्य प्रथमवारासेवने विंशत्यारोपणान्यूनातिरिक्ता रोपणीया, एषा च ठवियगा कज्जइ । उभयतरागादिगोत्ति काउ पुणोपडिसेविएशठ इति कृत्वा मासद्वयं दीयते,पाश्चात्ययाविशत्या युक्तंएगम्मि प्रायश्चित्ते वुज्झमाणे अंतरा अन्नमावजड, तं मग्झवत्तियं ठवियं कन्नइ त्ति काउं ठवियसन्न लभइ तत्प्रतिपादका सुत्ता ठवियसुत्ता, तं पि य वुज्झमाणे पट्टवियसन्नं पिलब्भइ, एवं च वुज्झमाणपच्छित्तवत्तन्वयाभिहाइणो सुत्ता पट्टवियसुत्ता भन्नति, अंतरा प्रावन्नाणं तेसिं चेव वुज्झमाणवत्तम्वया प्रतिपादनपरा सुत्ता ठवियसुता । सवीसतिराइयं. दोमासियं परिहारट्ठाणमित्यारभ्य ठवियमुत्ता तावत् यावद् दसरायपंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे जाव तेण परं छम्मासा इत्येतदंतम् । एतावता च षण्मासिए पट्टविए द्विमासापत्तिलक्षणसूत्रमाश्रित्य ठवियसूत्राण्युक्तानि, इत ऊवं शेषमासविषये चूर्णिसूत्राणि वाच्चानि, तान्येव भणितुमुपक्रमते । इयाणि अत्थवसतो इत्यादिना, एतानि वाच्चत्वादियाणि मासियसंजोगसुत्ता लक्षणपत्तेत्यादिवाक्यमिति स्थापनासूत्रादर्शसूत्रसत्कार्यतः अत्र च षण्मासिकादिपदमध्ये चूर्णी द्विमासिकपद न भवति। षण्मासिकं प्रस्थापितंप्रतीत्य द्विमासिकस्य सूत्रैवाभिहितत्वात्, सव्वानो लक्खणाम्रो पत्तागो त्ति सर्वाः संयोगसूत्रजातयो लक्षणात् प्राप्ताः सामर्थ्याल्लब्धा इत्यर्थः । षण्मासिके प्रस्थापिते द्विमासिकलक्षणसूत्रोक्तद्विकस्थानव्यतिरिक्ता त्रिकादिसंयोगा अन्त्याः आद्याश्च द्विकान्यास्यान्त्या एकरूपाः, तहा एसि पि मन्वासिं ति एतासां मासिकादिषण्मासान्तानां सर्वासा सूत्रजातीनां स्थापना १२३४५६ १२ ३ ४ ५६ १५, २०, २५, ३०, ३५, ४० । प्राद्यः प्रस्थापितपंक्तिः, द्वितीया आपत्तिपंक्तिः, तृतीया प्रारोपणापंक्तिः । मासिए पट्टविए चाउम्मासिए पडिसेविए तीसइमा पारोवणा से अदा दिज्जमा गा मासचउक्कं तीसारोवणाय मिलियं पंचमासा भवति । एतदेव ठविया सुत्तमित्थं पदे भवति । एयं ठवियसुत्तं पट्ठवणासुतं किच्चा भणइ - पंचमामियमित्यादि, तेण परं पंचूणा चतारि मास सि जनो पारोवणा पणुवीसिया Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y35 निशीथपूणिविंशतितमोद्देशके सट्ठा दिनमाणा चत्तारि मासा तहाहि सट्ठी इत्यादिन्यायेन मासा ३ आरोवणा २५ पंचदिणा हीणचत्तारिमासा। इयाणि मासियं संजोगे सुत्तेत्यादि सूत्रादर्शसूत्राणि छम्मासियं परिहारहाणं पट्टविए अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं सेवित्ता इत्याद्यारभ्य तावद् यावद् अट्ठ मासियं जाव तेण परं छम्मासा इत्येतदन्तानि वाच्यानि, एतान्येव चूणिकारो व्यलीलिखत् पट्टविया सुत्त त्ति एतानि प्रदर्शितरूपाणि प्रस्थापितसूत्रा ण गतानि । अधुना पट्टवियसुत्तेसु जे ठवियसुत्ता प्रासी ते भन्नतिदिवड्डमासियमित्यादि, अत्र क्वचित् ठविपसुता इति पाठः क्वचित् पट्टवियसुत्त त्ति, तत्राद्य उत्तरसूत्रपातनापेक्षया योज्यः, यत्र वितरसूत्रपाश्चात्यनिगमनतापती एवं छम्मासाइपट्टविए इत्यादिकः षण्मासान्ते यथाक्रनं ॥१५॥२०॥२५॥३०॥३५॥४०॥ इत्येवंरूपा विकला स्थापिता सती स्वस्थानवृद्ध्या षण्मासावसाना यका भवति, सो उति तथाहि षण्मासे प्रत्यापिते यदारोपणा पाक्षिकी प्रारोप्यमाणं सटुं इत्यादि न्यायेन दिवड्डो मासो आरोविजइ, इतीयं विकला परिपूर्णमासानामभावात् यद्यपरः पक्षः स्यात तदा परिपूर्णमासद्वयं किल भवे, स च नास्त्यतो विकलत्वं तथा स्थापिता चेयं, तथाहि जो सो दिवड्डो मासो ठवियप विनो यश्च मासः प्रतिसेवितः जाया दो मासा । दोमासिए पट्टविए पुणो वि मासि सेवइ, इत्येवं पाक्षिक्यारोपणेन तावद्वाच्यं यावदपरे षण्मासा पूर्यन्त इति स्वस्थानेन मासिकलक्षणेन वृद्धिरिति । यद्यपीहापरा मासासेवनेन द्विमासादि विजातीयं जायते तयाप्येकदोषदुष्यं मासिकयोग्यं किंविदासेवितं येन मास एव भवति, ननु दोषद्वयदुष्टं सेवितं शय्यातरपिंडं सोऽप्यातदोषदुष्ट इति, येन युगपदेव स मासिकद्वयमापद्यते ततो मासस्य प्रस्थापितत्त्वाद् मासस्यैव च सेवनात् स्वस्थानवृद्धित्वणापरापरमासेवनेन प्रायश्चित्तवृद्धया षण्मासावसाना वृद्धिरुक्ता, अधुना तु परिपूर्णमासानां प्रस्थापनद्वारेण रोपणा स्वस्थानवृद्धया परस्यानवृद्वया सा प्रोच्यते विफलमासनस्थापनाकृतः सकलमासप्रस्थापनकृतश्च पातनिकायां विशेषः, तत्र मासे प्रस्थापिते परमासानां प्रतिसेवने पक्ष पक्ष प्रारोपणेन यत्र षण्मासा पूर्यन्ते सा स्वस्थाने वृद्धिः । एवं द्विमासादिष्वपि योज्यम् । यथा मासिके प्रस्थापिते द्विमासिके वा सेविते विंशत्यारोपणेन यत्र षण्मासा पूर्यन्ते सा परस्थाने वृद्धिः । एवं त्रिमासा. दिसेवनेन षण्मासे पूरणमपि परस्थानवृद्धिः । मासियठविए इत्यादि प्रायश्चित्तमवहतः सतः स्वतन्त्र एव शय्यातरपिंडादिपरिभोगतो यो मास प्रापन्नः स वैयावृत्यकरणादौ साधोापृतत्वात् स्थाप्यः कृत आसीत् । ततः कार्ये सथिते मास उद्वौढुमारब्ध इति स्थापितत्वं, एवं दोमासियासु वि पटुविएसु त्ति दोमासिए ठवियपट्टविए दोमासियं पडिसेवइ इत्येवं तावद्वाच्यं बीयारोवणा तेण परं सवीसइराइया दो मासा सवीसइरायदोमासिए ठवियपविए दोमासिय वीसियारोवणा इत्येवं तावद्वाच्यं यावत् षण्मासा इति स्वस्थानवृद्धिः । दोमासिए पट्टविए तेमासिए पडिसेविए पणुवीसारोवणा दोमासा। पणुवीसतिराय. दोमासिए पट्टविए तेमासिए पडिसेविए पणवीसारोवणा, तेण परं पणुवीसतिराया दमासियं पढविए तेमासिए सेविए पणुवीसारोवणा, इत्येवं तावद् यावत् पण्मासा इति परस्थानवृद्धिः । इयाणि दुगसंजोगे इत्यादि मासे प्रस्थापिते मास द्विमासयोः सेवनेन षण्मासपूरण विधीयते, एवं मासे प्रस्थापिते मासियतेमासियप्रतिसेवनेनद्विवयोगे षण्मासा : पूरयितव्या इत्येवमन्येष्वपि । कारणं तं चेवत्यादि छम्मासाइरित्तो तवो न दिजइ इत्येवं रूपं । ताहेत्यादि Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोध व्याख्या ૪૨૨ दुविहति सट्टाणपरट्ठाणे हिट्ठे विध्यमित्यर्थः । एवं एयस्स वीत्यादि एतस्यापि द्वौ मासिकस्य प्रस्थापितस्य सर्वे द्विक्संयोगादयः संयोगा वाच्याः, यथा मासद्विमासरूपो द्विकयोगस्तथा मासादिरूपो पि वाच्यः, अत्र स्थाने निशीथसूत्रं सर्व समर्थितम् । इत ऊर्ध्वं शे चूर्णिकारो भाष्यकारश्च भणिष्यति । एवं तेमासिएत्यादि मासद्विमासा. दिप्रतिसेवनरूपो द्विकयोगः, मासद्विमासत्रिमासादिरूपस्त्रिकादियोगः, अत्र च यद्यप्येककयोगाः ६, द्विकयोगाः २०, चतुष्कयोगाः १५. पंचकयोगाः ६ षड्योगश्चैकस्तथापि मासिक एव स्थापिते द्विमासिके वा प्रस्थापिते सर्वे ते संगच्छन्ते । त्रैमासिके प्रस्थापिते द्विकयोर्गात्रक योगचतुष्क योगा एव भवन्ति, न परतः पण्मासानामाधिक्यात्, तथाहि - चाउम्मासिए ठवियपट्टविए मासिए पडिसेविए पक्खिया श्रारोपणा, तेण परं श्रद्धपचममासा अद्धपंचममासेसु पट्ठविएस दोमा सिए सेविए वीसिया रोवणा, तेण परं सपंचराया पचमासा तेसु पट्ठविएस तेमासिए सेविए पणुवीसारोवणा, तेण परं छम्मासा, इत्येव त्रिकयोगमेव यावच्चातुर्मासिकप्रस्थापनानि सगच्छते, दूध्वं चतुष्कयोगानाश्रित्य चतुर्माससेवने आरोपणायास्तत्र त्रिशद्रूपत्वात् सप्तमासा जायन्ते, माधिक्यात् । श्रत्र चुर्गों चातुर्मासिकपंचमासिकपदे प्राश्रित्यैककादयः षट्कपर्यवसाना ये अंका निर्दिष्टास्ते न संयोगसंख्याकथनपरतया किन्तु संयोगोच्चारणार्थं स्थापनामात्रतया दर्शिता । एवमङ्कानुर्ध्वमचश्त्र व्यवस्थाप्य द्विकादयः संयोगाश्चार्यन्ते, संयोगसंख्यानं तु यत्र पदे यावत् तत्प्रदर्शितरूपमेव द्रष्टव्यमित्येवं गमनिकामात्रमुक्तं, तत्वं तु बहुश्रुता विदन्ति । एवं दोतीत्यादि इह षण्मासपदनिदेशे सर्वत्र कारणं पण्मासाविकतपोऽभावरूपं द्रष्टव्यम् । एयासम्मीत्यादि, पढममुत्तस्स त्ति प्रारोपणासूत्रदशक विस्तरस्य प्रस्तुतत्वात् प्रथमं प्रत्येक सूत्रमारोपणाविषयं तद्विषयं सर्वमेतद् द्रष्टव्यम् । द्वितीयं बहुससूत्रं तत्रापि सर्वमिदं द्रष्टव्यं बहुसा भिलापेन | नवरं ठवण त्ति छम्मासिए पवि इत्येवं निर्देशरूप उवणाठाणं मासि पडिसेवित्ता आलोएजा इत्येवं निर्देशस्वरूपं पडिसेवणाठाणं कसिणसुत्ते सगले सुत्ते इत्यर्थः । मासियं ठवियपटुविए अंतरा बहुसो मासि पडिसेवर इत्यादिकानि ठवियपट्टवियसुताणि एतेषु द्विक्संयोगत्रिक संयोगादयः संयोगा बहुससूत्रेद्रष्टव्या इत्यर्थः । जिणाइय त्ति जिनकल्पिकादयः हुसियं चत्ति प्रपन्नाल्लघुतरं । पुणो इयर त्ति उत्तरार्धं व्याख्येयम् । ते चैव त्ति ते पुनरित्यर्थः तहारिह त्ति भाष्यपदान्तस्य व्याख्याते हिं प्रायरिया योगा वूढत्ति तथा तथा चरितार्थः । सावेक्खपुरिसाण भेदकरणं तत्र तत्थ निरविक्खे पारंचिए इत्यादि निरपेक्षः - जिनकल्लिकादिस्तस्य पारचिकमापन्नस्यापि पारंचिकं न दीयते, गच्छनिर्गतत्वादेव तेषां गच्छान्निष्कासनादिकरणरूपं हि किल पारंचिकं भवति, द्वयोः प्रायश्चित्तयोर्मध्याद् यत्रैकमतनपदे याति सार्थेऽपकान्तिरुच्यते, ग्रर्धस्यापक्रमगमुतरत्र गमनं यत्रेति कृत्वा, एवं ग्रणवट्टे वीत्यादि प्रणवावत्ती प्रणवट्ठो कज्जइ, मूल वा दीयते, इत्येवमादेतद्वयम् | अंतरा बहू ति ग्रनवस्थाप्यकरणपक्षे भिक्षोरगीतार्थेऽस्थिरे प्रकृतकरणे इत्येवंपपदे चतुलंघुर्भवति । मूलदानपक्षे द्वितीयेऽन्त्यपदे मासगुरुर्भवति । इत्थ वित्ति अनवस्था प्यापत्ती मूलापत्तौ प्राचार्यादिकं प्रतीत्य मूलं वा दीयते, छेदी वा क्रियते इत्युत्तरत्र वक्ष्यति सवसिं० भाष्यकारेण मुलप्रायश्चित्तमादौ यदुक्तं तत्र सर्वेषां जिनकल्पिनादीनामाचार्यादीनां च मूलायती मूलं दीयते एव इत्येवमाश्रित्योक्तम् पारंचिकानवस्थाप्ये च सापेक्षाणामेव जिनकल्पिकादेरपीति तच्चिन्ता चुणिकृताऽभिहिता अत्र यन्त्रकमुत्तिष्ठते यथा जिनकप्पिया आयरिओ कयकरण २, अंक. कर. ३. उव. कप. ४, अक्य ५ भिक्खू गीग्रोथ कय ६ । भि १० गाहा ॥ - Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीध चूणिविंशतितमोददेश के .. Sh. ७ भि.गी. थि. कय. ८ । भि.गी. ऽथि, कय ६ । भि. ऽगी. थि. कय. १० । भि.गी. sfr. क. ११ । भि. ऽगी. ऽथि. क. १२ । एतेषु यथाक्रमं पारचिकापत्तौ प्रायश्चित्तम् । द्वितीयपंक्तौ निरूप्यते यथा शून्य - ० । पारं । प्रण. 1 अण । मू । मू. ६ । ६ । ६ । ६ । धी । ४४० तृतीयपंक्तौ पारंचिकापत्तावाप्या देशान्तरेणेत्यं यथा - शून्यं प्रण. । मूलं । मू. ।। द्दी । ही । ६ । ६ । धी । धी । व्व । चतुर्थ पंक्ती सर्वेषां मूलापत्तौ यथाक्रमं मू.मू. 1 द्दी ही | ६ | ६ | धी । धी । व्व । व्व ।०। पंचमपंक्ती सर्वेषां छेदापती छे । छे । हो | हो । ६ । ६ । धी । धी । व्व । 1010101 षष्टपंक्तौ द्दी । द्दी । ६ । ६ । धी । धी । व्व । व्व । ० । ० । ० । २५ । सप्तमपंक्तौ ६ । ६ । धी । धी । ४ । व्व । ० ० ० ० । २५ । २५। २५ । श्रष्टमपंक्ती धी । धी । व्व । व्व । ० । ० । ० । ० । २५१ । २५। २५ । २० । २०१ । नवमपंक्ती । व्व । व्व | ० |०|०|० । २५ । २५। २५ | २५ | २० | २० | २०२० ॥ दशमपंक्ती ०1० | | ० | २५ | २५ | २५ | २५ | २० | २० एकादशपंक्ती ० । ० २५ | २५ | २५ | २५ | २० | २० १५१ । १५। | १५ । १५ । द्वादशपंक्ती २१ । २५१ । २५ | २५ | २० | २० | २० | २० | १५ | १५ । त्रयोदशपंक्ती | २५ | २५ | २० | २० | २० | २० | १५ | १५ | १५ | १५ । चतुर्दशपंक्ती २० | २० | २० | २० | १५ | १५ | १५ | १५ | १० | १० | १० । १० । ५ । 20718071 1 1 दशम । अट्ठम । पंचदशपंक्ती २० | २० | १५ | १५ | १५ | १५ | १० ! १०१ । ५१ । ५१ । ५ । षोडशपंक्ती १५ । १५ । १५ । १५ | १० | १० | १० | १० | ५ । ५ । ५ । ५ । दशमं । सप्तदशपंक्ती १५ | १५ | १० | १० । १० । १० । ५ । ५ । ५ । ५ । दशम । अट्टम । छट्ट । | २० | २० | १५ | २० | २० | १५१ । श्रष्टादशपंक्तौ । १०१ । १०१ । १० । १० । ५१ । ५१ । ५ । ५ । दशम । दशम प्रद्रुम । एकोनविंशतिपंक्ती । १० । १० । ५ । ५१ । ५ । ५ । दशम । दशम । दशम । अट्टम । छ । छटु । छटु । चउत्थ । विंशतिपंक्तौ । ५१ । ५ । ५ । ५ । दशम दशम । अट्ठम । टुम । छट्टु । छट्ट चउत्थ । चउत्थ । अंबिला । Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोषा म्यास्या ४४१ . एकविंशतितमपंक्तो। ५। ५ । दशम । दशमं । अट्ठ । अट्ठ । छटु । छट्ठ । चउ, । चउ, । अंबि. । अंबि. एकासणा। द्वाविंशतितमपंक्तो । दशम । दशम । अट्ट । अट्ठ । छ. । छ.। चउ. । चउ. । प्रायाम। मायाम । एगा। एगा० । पुरिम० । त्रयोविंशतितमपंक्ती अट्ठ । अट्ठ। छ.। छ.। च.। च. पाया० । प्राया.। एगा.। एगा. । पुरि. । पुरि. । निन्वीयं ति। एत्थ एक्केत्यादि चरिमं पारंचिकं द्वितीयपंक्त्यादौ निर्दिष्टं तस्मादारभ्य तृतीयादिप्रायश्चित्तपंक्तिक्रमेण तावन्नयन्ति यावत् पंचदशीकंपंक्तिरिति षोडशाद्याः पंक्तीः नेच्छन्ति, अन्ये तु पंचकादुपर्यपि दशमादिष्वपि पदेष्ववस्थानं मन्यन्ते । चतुर्विंशत्यादिकाःपंक्तीराश्रित्य यन्त्रकं यथा छ.। छ.। चउ. । चउ । पाया.। प्राया.। एगा. । एगा. । पुरि.। पुरि. । निव्वीयं ति। पंचविंशतितमपंक्तो चउ.। चउ.। प्रा.प्रा.एगा.पा.एगा.।पुरि.।पुरि.निव्वीयंति। षड्विंशतितमपंक्तौ प्रा. । प्रा. । एगा, । एगा. । पुरि.। पुरि० निव्वी० । सप्तविंशतिपंक्ती एगा.। एगा. । पुरि.। पुरि.। निव्वी. । अष्टाविंशतिपंक्तौ पुरि. । पुरि. । निव्वी. । एकोनत्रिंशत्पंक्तो निर्विकृतकमादिपद एव । पढमस्स० गाहा ।। जिनकालिकस्य पारंचिकापत्तौ मूलापत्तौ वा मूलमेवेत्यर्थः । प्राचार्यादेस्तु मूलापतौ मूलं वा दीयते छेदो वा विधीयते इत्ययं विकल्पः। जे सेसे त्ति अस्थिरा कृतकरणा दोन्नि अकयकरणत्तीत्यादि सप्तमाष्टमनवमाः दशमपदविहारेण एकादशद्वादशत्रयोदशपदवाच्याश्च ये तेषामित्यर्थः, द्विकाद्यन्तरितं बहतरितं चेत्यर्थः । अजयणं करेंतस्सावणाय ति तत्राचार्यस्य ४, उपाधाय व्व भि. थिराथिरो न कज्जइ त्ति गीतार्थस्य स्थिरस्यैव भावादित्यर्थः । पायरिय कय. १. अकय. २, ठव. क. ३, अकय. व्व, ४ भिक्खु गीग्रो कय. ५, भिक्खु गी. अक. ६, भि. गी. थि. कय. ७, भि. अगी. थि. sक. ८, भिऽगी. ऽथि. क. ६, भि. गी. ऽथि. क. १०, एतेषु दशसु पदेषु प्रायश्चित्त यथा आयरिए कयकरणे पंचराइंदियं प्रावन्ने तं चेव ५, अकृतकरणादिषु द्वितीयादिषु यथाक्रम प्रभत्तट्ठो २१अ. ३, अंबि. व्व.अंबि. ५, एगासणा ६, एगा. ७, पुरि. ८, पुरि. ६,अंते निव्वीयं १० । द्वितीय प्रायश्चित्तपंक्तो यथाक्रमं दसराईदिएसु ाढत्तं १० ।५।५ । अभ. व्व. अभ. ५। अं. ६ । अं. ६ । अं. ७ । एगा. ८, एगा. ६ । पुरि. १०।। तृतीयपंक्तो पंचदशसु पाढत्तं १५। १०। १०। ५। ५ प्रभ.। अभ. । अं. । अं.। का. ॥१०॥ चतुर्थपंक्तो यथाक्रम २० । १५ । १५ । १०।१०। ५। ५। अभ. । अभ.। अंबि. ॥१०॥ पंचमपंक्तौ २५ । २०।२० । १५ । १५ । १०।१०।५।५। अभ. । १०। षष्ठपंक्ती मासलहगामो माढत्तं . ।२५।२५। २० । २० । १५ । १५। १०।१०। ससमपंक्ती द्विमासिकादारद्ध .।।।। २५ । २५ । २० । २० । १५ । १५।१०। Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथचूर्णिविंशतितमो उद्देशके अष्टमपंक्तौ त्रिमासिकादारद्ध००।००। । । २५ । २५। २० । २०। १५ । नवमपंक्तौ चतुर्मासिकादारद्ध: । तेमा० । तेमा० । दोमा०दोमा०1०1०।२५॥ २५॥ दशमपंक्तो लघुपंचमादारद्ध। ५ । व्व । व्व । ३ । ३।२।२।.। ।२५। एकादशपंक्तौ ।। ६।५ । व्व । व्व । ३ । ३।२।२।। द्वादशपंक्तौ छेद. ६।६।५।५ । व्व । व्व । ३।३।२। त्रयोदशपंक्तो मूलाग्रो पाढत्तं मू० । छे० । छे०।६।६।५।५।व्व । व्व।३। चतुर्दशपंक्तौ अणवठ्ठामो प्राढत्तं अण. । मू० । मू । छे० । छे०।६।६।५।५। व्व । पंचदशपंक्ती पारंचिकादारद्ध पारं० । अणः । अण० । मू० । मू० । छे० । छे०। ६ । ६। लघुपंचमासिए ठाइ, अत्र च तपोरूपाणि प्रायश्चित्तानि सर्वाण्यपि लघूनि वाच्यानि, गुरूणि न । एसेव गमो० गाहा ॥ अनया गाथयाऽऽरोपणासूत्रदशकविषयमुपयुज्य सर्व वाच्यमित्याचष्टे तत्र सकलसूत्रविषय उक्तः प्राक् शेषं तुवाच्यमित्याह एवमित्यादि, एवं प्रदर्शितरीत्या उद्घातिममासादिसकलसूत्रारोपणा पुनस्तावद् भणिता। उद्घातिममासद्यारोपणासु च भणितासु अनुद्घातिमविशेषितास्ताएव भणनीया, उद्घातिमानुद्घातिममिश्रसंयोगारोपणा अपि वाच्याः, मासद्विमासाद्यापन्ने तदुपयुज्यवाच्यमित्यर्थः । एवं सातिरेकमासिकाद्यापत्तौ तदारोपणा वाच्या, लहुपंचकसातिरेकमासिकाद्यापत्तौ तदारोपणा वाच्याः । इत्यादि एतास्वापत्तिषूपयुज्यमानं दातव्यम् । नवरं- परिहारोन इति, संयतीनां पारिहारिकतपो न दीयते, शेषसाधुभिः साध्वीभिश्च परिहयत इत्युक्तं भवति, तस्सेव पाणाइवायस्सेत्ति तस्स त्ति पढमठाणस्स पढमपोरुसीए इत्यादि करकर्मकरणोत्पन्नाभिलापापेक्षया प्रथमपोरुषीप्रमाणकालमात्रमध्ये तत्करणे मूलं, प्रथमपौरूषीमुत्पन्नापेक्षया प्रतीक्ष्य द्वितीयपौरुष्या करणे छेद इत्यादि वाच्यं, न पुनः सूर्योद्गमापेक्षया प्रतीक्ष्य पौरुष्यां करणे छेद इत्यादि वाच्यम्, न पुनःसूर्योद्गमापेक्षया प्रथमपौरुष्यादि कालमानं ज्ञेयम् । अर्थ गृहन् निषद्यां निश्चयेन करोत्येव सूत्रेऽपि करोतीति वाचनाचार्यच्छया वा। कोऽर्थः ? न करोतीत्यपि कदा च नेति अथें च शृणोति शिष्यः उत्कटुकः सन् कयकच्छ उ ति उत्कृतकक्षः विहितममस्तवसतिप्रमार्जनादिव्यापारः सन् अयं च सूत्रार्थग्रहणादिवि. धिरत्रैव प्रागेकोनविंशतितमे उद्देशके "जे भिक्ख अप्पत्तं वाएइ" इत्यत्र सूत्र विस्तरे णोक्तस्तस्माद् बोद्धव्यः, गणपरिपालकः पूर्वगते श्रुते तद्गते अर्थे च लिंगेत्यादि लिंगक्षेत्रकालानाश्रित्यानवस्थाप्यपारचिको य ते अद्यापि प्रवर्तते न तु व्यवच्छिन्न इत्यर्थः । द्रालगं बाह्य नपुंस. कायाकारं दृष्ट्वा पारंचिको विधीयते, असौ संयतो न क्रियते परिहृयते इत्यर्थः । कृतो वा कारणे गच्छाग्निसारणेन परिहृयते इति पारंचिकता, भावतस्त्वनुपरतमोहोदयभावो परिहार्याः, एतेऽ नलादयो व्रते नावस्थाप्यन्ते इत्यनवस्थाप्यताऽपि घटते, मलिणविसोहि व ति मलिनत्वविशुदिः प्रायश्चित्तदानं निमित्तं च पारिहारिकत्वशुद्धतपोदानरूपमिति संभाव्यते । देवय० गाहा - अल्पधिको देवताविशेषोऽन्यतरप्रमादेऽपि वर्तमानं शुद्धचारित्रिणं छलयेत किं पुनः सर्वप्रमादस्थानवनिनम्. अवश्यं तस्य देवतापायः स्यादेव, इति तं मुक्त्वेत्युक्तं, तथा चोक्तम् - "प्रलयरपमायजुश्र, छलिन अप्पिड्डियो न उण जुत्तमि" त्ति - Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबोधा व्याख्या घाडिय त्ति मित्त जइरि ति भाष्यपदं यदृच्छा सेत्यर्थः । कायणुवाइ ति भाष्यपद पृथिव्यादीनां यत् कायं शरीरं तस्यानुपातेन विनाशेन वधकस्य बन्धो भवति, पृथिव्यादीनां द्वीन्द्रियादीनां च बध्यानां यानीन्द्रियाणि तदनुपातेन च वीसइमे उद्दे सगे भणियं ति प्रभूततरेप्यापत षण्मासतया कृत्वेत्यर्थः । अववायमंतरेणेत्यादि अपवादचिन्ताव्यतिरेकेणैव यतना प्रयतनाश्च उक्तः । कहए न य सावए लजित्ति भाष्यपदं - कथके श्रावके च श्रोतरि कथकश्रोतृभ्यां लज्जा न विधेया इत्युक्तं भवति । वप्यरूवगं इमं ति वप्र केदारो जलभृतस्तेन रूप्यते उपमीयत इति वप्ररूपणं, भाविताः संजाता गुणाः सत्यादयो यस्य ततः सस्यवद्भूमौ संजातगुणे सति को यो वास्तस्मिन्त्रीवेति अकप्पियाणं ति अयोग्यानां संसारश्चतूरूपो गति चतुष्कभेदात् पंचप्रकारश्च एकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियादिभेदात् । षट्प्रकारश्च पृथिव्यपप्रभृतिभिर्भेदात् इति सम्भाव्यते। ( संभाव्यन् ) घोर त्ति क्वचित् पाठो भाष्ये क्वचिच्च दीहे ति ततो द्वितीयपाठमप्यर्थतो व्याख्यातवान्, दीहं कालमित्यनेन, अनवदग्रोऽपरिमितः ।। इदानी चूणिकारो यदर्थ मया चूणिः कृता इत्येतदाविष्करोति - जो गाहेत्यादि गाथा शब्देन भाष्यगाथा निबद्धत्वादभिधीयते, ततो गाथा च सूत्रं च तयोरर्थ इति विग्रहः । पागडो त्ति प्राकृतः प्रगटो वा पदार्थो वस्तुभावो यत्र स, तथा परिभाष्यते: र्थोऽनयेति परिभाषा चूणिरुच्यते । अधुना चूर्णिकारः स्वनामकथनार्थ गाथायुग्ममाह - अतिथिं चेत्यादि वर्गा इह ग्र,क,च,ट,त,प,य,श, वर्गा इति वचनात् स्वरादयो हकारान्ता ग्राह्याः । तदिह प्रथम गाथया जिणदास इत्येवंरूपं नामाभिहितं, द्वितीयगाथया तदेव विशेषयितु. माह - जिणदास महत्तर इति तेन रचिता चूणिरियम् । सम्यग् तयाऽऽम्नांयाभावादत्रोक्तं यदुत्सूत्रम् .....(?) । मतिमान्द्याद्वा किंचित्तच्छोद्धय श्रुतधरैः कृपाकलितैः । श्रीशालिभद्रसूरीणां, शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विंशकोद्देशके व्याख्या, दृब्धा स्वपरहेतवे ।।१।। वेदाश्व रुद्रयुक्ते, विक्रमसंवत्सरे तु मृगशीर्षे । माघसितद्वादश्यां समथितेयं रवो वारे ॥२॥ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टानि Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्र मइया रिगज्जारणं यारो विहु चरणे प्रइरहम्स धार पार श्रइरेगोवधिगहणं हम इम्पिकहि उगामीतं ठेवणारा सतं प्रकयकराय गीया प्रयकररणा वि दुविहा करंडमम्मि भारणे सिमट्ठा रसगं अकसिसगलग्गहणे अक्कंतितो य तेरो प्रक्५ ठ चालिते वा अक्खर लभेरा समा अक्खर वंजरसुद्ध प्रवारणं चंदरणस्य वा अथातिगा उ अक्खारगारिण प्रक्वादी ट्ठाला खलु अक्खा संथारो य १ प्रथमं परिशिष्टम् निशीथ - भाष्यगाथानामकारादिवर्णक्रमेणानुक्रमणिका 'बृहत्कल्प भाष्यस्य समानगाथानामङ्कनिर्देशश्च । क्खी बाहू फुररगादि खुपसू गडे भातुए तिल गरि गिलाच्चारे अगरण व रिंग ब्रूया दोसह संजोग अगमकरणादपरं मेह कमगार अगुतिय बंभचेरे श्रगघातो हुऐ मूलं नि.भा.गा. बृ.भा.गा. १२८ ५. ४३१ ६७०३ २८४ ३३ = ६६५८ ६६५० ५८८५ ६४२ ૨૪૦ ३६५० २७८६ ४८२५ ५४ : ८ ३१२६ २१५० ४१४३ २६२० ५१२ ५२११ २३०१ १४१६ ४०६६ ४२६६ ३२८२ ११४१ १४४० ४०६० ३८७३ ५३२ ६५३१ २७१० ५३७३ ४६०६ २७३७ ५२६५ ३५२२ २५६७ रिसि मगहणं जे प्रगहणे कप्पस्स उ श्रग्गहणे वारतग श्रग्गिकुमारुववातो अग्गीतस्स ए कम्पति श्रीसु विगि भगीया खलु साहू श्रचित्तमसंबद्ध प्रचियत्त कुलप से प्रचियत्तमंतरायं अच्चावेद्रण मरताय प्रच्चित्तमोत तं पुग्ण अच्चित्ता एस णिज्जा र प्रच्चित्ते वि विडसरा अच्चीकरण र सिर चिक्कणे वा प्रच्छंतारण विगुरुगा श्रच्छंतु ताव समा प्रज्जियि तिविह ग्रच्छेज्जऽसिद्वा अच्छे ससित्य वव्विय प्रजनरण कारिस्सेवं अजरायु तिणि पोरिमि प्रजिरण सलोमं जतिरपं प्रजिलादी वत्था खलु अज्ज प्रतियानि गीति व सुहत्थाऽऽगमरणं प्रज्ज सुत्थि ममत्ते १ ग्रागम प्रभाकर श्री पुण्यविजय जी द्वारा सम्पादित । नि.भा.गा. नृ.भा.गा. ११५६ ५६८३ ५८८८ २७४३ ५.२५१ ५३७४ १६६४ ५२५३ ५३७६ ६१८ २८३४ ४५०७ ३६८१ ६०१ ६२७६ ૪:૪૪ १५६६ ४०६५ २५७६ २०२७ ४५०० ४५२३ २६६० ४४८ ६१०७ ३६६६ ५६१६ १२६ ५७४६ ५७५१ ३५३७ ३०६२ ૪૦૬૪ ३२७४ ३३३२ ५५६७ ६८४ १८२५ १६७६ ५८५५ ३२७७ ३२=२ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ प्रथम परिशिषः २६०० १६६५ ३७५५ ३०३४ १९३५ २६१ ३६२ प्रज्जं जक्खाइटू प्रज्जाग तेयजगणं प्रजाणं पडिकुट्ठ प्रज्जेव पाडिपुच्छं प्रभुसिरम वेद्धमफुडित प्रभुमरमादीपहि अझयाम्म पकप्पे अभयणं वोन्द्रिज्जति अभाविप्रोमि तेहि चेव अभुमिर-अमिरे लहुप्रो अझुसिराणंतरे लहु अट्टग व उक्क दुग अटुग मत्तग दस अट्ट उ यवोना अट्ठम घट्ट नउत्थं बटुमि दस नकोसो अधिकागहरे वा प्रविध-राय-पिंडे अट्टविट कम्म-पंको अहमत मागलुच्चो अट्ठारस पुरिसेमु प्रहारमया तीसुतरा अदुःरमविहमबंभ अट्टारनवीसा य ३३६२ m Arr. २७६३ m २४६१ ६०१० । ३७३२ मणणण्णाने तहुगा ३७५८ प्रत्यगय मंकणे २७०२ २७२४ प्रणत्य मोय गुरुपो ४५८३ प्रणपज्झ प्रगति प्राक १.३३ प्रणभिगयपुरकापाव १२३४ मणभृट्ठाणे गुरुमा १३८६ प्रण भोगा अतिरिन ५४६८ ५४०२ प्रणमोगे गेलो ३६१७ ५१८४ ५०३ ५०५ ४६०३ ४७३४ ८७४ प्रण रायं निवपरणे २५२ अ.राया जुगराया ६५४८ प्रणालमपजत्तं खलु ३२१७. अणवत्थरए पसंगो प्रग हार मोय छल्ली ५९८६ प्रगाहारो विस कपनि २५०१ ६३८५ अरिग काचिते लहम ग्रो अगिगूहिय बलबिरिग्रो ५६७९. ६५०५ परिणसटु पडिक्ट्ठ ६२६० २४६५ ६६० ३८६३ प्रणिसट्टपुरण कप्पति ३८६५ परिणसेज्जा अनुप्रोगं ६६४ ३८६७ प्रणुअत्तरणा गिलाणे अरणुप्रोगो पट्टविप्रो १६०५ प्रसूकंप भगिणिगेहे १६११ अणुकंपा पडिणीया ५०७६ २०२४ प्रणुकंपिता व चता ६३९७ मरगुग्घाइयमासाणं ५४१५ अणुग्घातियं वहने २८२७ ५७५७ अगुड्डाहो गिहिमत्ते ५६४६ अरगुण्णवरण अजयगाए १४०२ ४०८६ प्रणावित उम्गहंगण १४३२ अशुगरणविते दोसा ५१४२ अनुदित उदियो किह शु ६३६४ ५८४३ ४०१६ ४५०८ प्रहावीसा दो वाससया प्रष्टुिं व दारुगादी २१२७ २६९७ ३२९० ४४६५ ४२१२ ६६०२ ५६२२ अही विजा कुच्छिय पट्टप्पत्ती विससि पडवी पविसंतारणं अड्ढाइजा मागा अड्डोरुग मेतात्तो प्रडोरुगो तु ते दो दि प्रगाचावितं प्रवलियं भट्ट इंडो विकहा अरणगणाऽणणाते २८६६ ३४६७ ५२५७ ११४६ २.७३ २६१६ ३१२७ . Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य भूरिंग निशीय सूत्र धतु देत मरण कप्पे प्रसुमिरण कप्पे -संभोगो भगुभूता उदगरसा प्रमोद करावा भरणुयत्ता तु एसा परमाणे प्रवाती प्रस्तुरंगात्री जाणे तुलोपो नमो प्रसट्ठी धम्मका भरसट्ठीय सुभद्दा प्रमाणं सजाती प्रण उवस्मयगमणे to कूल-गीत- कहरणं om भिक्खुस्न प्रहणं तु दुविहं भरण जुण्णा प्रातरमादेणं तर ते इच्छ मातराग धातु अण्णत्थ अपसत्था प्रत्थ एरिसं दुल्लभं प्रत्थ ठवावेउ प्रगत्य तस्थ गहणे प्रत्थ व चकमती प्रस्थ वगी प्रात्त्य वा विणिज्जति प्रत्थ वि जत्थ भवे ग्रन्थ सनियेगं पच्छिणे लहुग़ा प्रणामंडी य मिही अग्मि व कालम्मि प्रणया विरं womanतीए प्रती श्रस्म व श्रमतीए प्रथम व दाहामो २५६१ २८८१ २८६४ २१३६ ५२६१ ५:८ २०७३ ५७५४ ५६६३ ३१५० २५६६ ३४८५ ६६०६ ८१४ १२८६ १३५१ २८२३ ४७२५ ५००० ६६ २३१४ ४३१२ १७०५ २५०६ ५७६४ ४७२४ ५३२२ ११४६ ६२४६ ४६९० २२३५ ६३६६ ६२५८ २७६६ ܚܐ १३२० ܘ ܀ 2. i? ५७६० ५७६१ ३४२१ ६६७२ ३२८५ ३०७१ २०६८ ५७५६ ४ घणं प्रभिधातुं प्रणं न उद्दिसावे "1 अण्णं पि ताव तेण्णं प्रण्णा गारवे लुद्ध "} सीता 31 अण्णाते परलिंगे पालसमत्थि अण्णा वि अप्पसत्था अण्णा पिडिसेवा गुणव अष्ण पडिच्छा वे ار प्रणेण सगिम्मि य अगे दो ग्रायरिया माणे पाणे भेम णणे वाण लहूगो प्रणेवि उतीसं अणे वि तस्स गीया पणे वीस सिमखे भण्णे वि होंति दोसा " " दिजमा भ्रष्णो महगोमां -र-वजा गोगाविरुद्ध तु ग्रो वा श्रो व अवि होइ उज्ज ने कि पहि ५४७३ २७३६ ५५७७ १३६१ ५८४० ५८६६ १७०६ ५४०६ २३८८ ५७७५ २३४५ ६३०७ १२६६ २७६६ * ६३७४ २२३७ २५०८ ६६५ २०६५ ३५६६ ३५२० १२६२ ३५२५ १२८४ २५०६ २५१७ ×××× १६३५ २:०६ १४८७ १२६ १७२७ ५६३६ ५६.५ ४३१६ ७२४ ५२१८ ४५८: ૪૪૨ ४०७४ २३६० Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० प्रथम परिशिष्ट १६२० प्रगुजा परेणं . प्रारंतस्स तु जोगामी प्रावस्मिण नवस्मि प्रतसि हिरिमंथ तिपुड अतिप्रातरो से दीमति अनिमे वनिक्कमे अनिम प्रमिला जरा ग्रनिभगिय प्रभागते वा ४६७७ ६४१७ ५१८१ प्रद्ध' तेरस पक्खे प्रधागा ग्रोम असिवे प्रतारण प्रोप दुई पद्धारण कज्ज संभम ७१२ ७२. २८३२ ४६२० १६०६ १८१६ २७०८ ५७४२ ५८४. २५३ १८८ ३२४२ प्रद्धागारिणग्मयट्ठा प्रद्धागतिग्गतादी पनि ने उग्गालो पतिपित्ताग ठितागं प्रतिग उवधिप्रघि अनिरेगदिट्ट दोमा प्रतिरेग-दुधित कारण अनि मि जगम्मि वो ग्रनेगाहडारण-गायगो अत्तट्ट परट्टा वा प्रत्तट्रा परम्स व अनागा नोरमेया प्रतागामादिए २६५३ ५५२ २१७६ ४५२६ ४५४६ १७३६ १२६६ ३२३३ ४६०० ४२५८ १५३२ १९६७ १९८५ २१६२ ३२३१ ५३०० ३२३२ २२१ ४२५६ २७६७ २७६८ प्रदागरणगतादीरामदेते ग्रवारगिग्गयादी .३६७ ४८८१ अत्तागमादियारणं यनीकरगां रणो अनीकरणादीम ग्रन्यवगे तु पमारणं प्रत्ययते प्रत्यी वा. অার বি নিশি प्रत्यगय मंकप्पे २१४८ २५५० ५१६५ ५२८५ १८५४ २२ १५७६ ३६८६ २८९२ २८१८ २४२३ ४६१२ ३२१४ ग्रन्थंडिल मेगतरे ग्रन्थि नि होइलह पो ग्रन्थि मि घरे वि त्या प्रत्यय मे जोगवादी प्रयि हु वमभग्गामा प्रदिपस्स्तेम अट्टिानो दिट्ट अट्ट अट्टमामा ग्रहमाम पखे १८४५ ५०३७ २६७८ १९४३ ६०४८ ४६११ ५७५७ प्रद्ध गणिग्गयादी प्रद्धाण गया वा ग्रद्धारा दुक्त मेज्जा प्रद्धागा पयिम मागो प्रद्धागबालकुवा १८८० अदाग-बाल दुर ४८५१ प्रद्धारगममथरगो प्रद्धागामि विदिता प्रदामिनहाजन प्रद्धा विविना वा ४८८३ ४६१८ ४५६७ ५००० २८७७ २८१६ २८ अदाग-मददोमा Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२१ सभाष्य पूणि निक्षीय सूत्र प्रवाणं पि य दुविहं भवामि विवित्ता अवारणावी परणले प्रदाणादी अतिरिणत प्रवाणा संघडिए पदणासंपरणे प्रवाणे उभ्याता पवारणे मोमऽसिवे पडाणे मोमे वा प्रमाणे गेलणे २३४ .४६२६ २२. २९२५ ३४५६ १०५८ ४५६८ ३४७३ ८१. १६१५ ४७८० १६०८ ५६५१ ४४८८ १६५५ १६१३ ४२६८ ४६०८ ६१०५ प्रदगो जयगाए अढाणे पलिमंथो प्रदाणे बत्त्यव्वा ४८८५ ३६३० २६३० २६४६ ३४६१ ३०४१ प्रपरिक्ख उमायवए अपरिग्गहम्मि बाहि मपरिग्गहित पलंबे अपरिग्गहिते बाहिं ५८२२ प्रपरिणामगमरणं २६११ अपरिमितणेहबुड्डी २७५५ अपरिमिते पारेण वि अपरिहरंतस्सेते अपहुच्चंत्ते काले अपुहत्ते विहु परणं पपुहत्ते अणुप्रोगो पपुहत्ते य कहेंतें अपुहत्ते व कहते १०२३ अप्पग्गंथ महत्थं च प्रपञ्चमो प्रकित्ती ५८३४ अप्पश्चरो प्रवणो २६१३ अप्पञ्चमो य गरहा अप्पश्चय वीमत्यत्तरणं । अप्पच्छित्ते उ पच्छित प्रप्पडिलेहऽपमजण ३८५४ अप्पडिलेहियदूसे प्रपतरमश्चिय तरं. प्रप्पत्तमइक्कते प्रप्पत्तं उ सुतेरणं अप्पत्ताण णिमित्तं अप्पत्तिए प्रसंखड अप्पत्तियादि पंचय अप्पत्ते अकहिता अप्पत्ते जो उ गमो अप्पपरप्रणायासो अप्पपर-परिवारो प्रप्प-बिति-अप्प-ततिमा प्रप्पभुणा तु विदिण्णे अप्पभु लहुप्रो दियगि मि अप्पमलो होति सुची अप्पा असंथरंनो २४४१ १०४३ ६२१ २०६५ २२३६ २०६६ ५७८१ ६४२२ ६१८६ ३६२१ १३५७ ६२२४ ३६८८ ६०३८ २८१५ २८६४ २७० ४००१ ६३ १०७७ ६७५३ ३४४२ १०५ प्रद्धारणे संघरणे अडिट्ठाभट्ठासुचीसु अदितिकरणे पुच्छा मद्धिति दिट्ठी पण्हय प्रद समत्त खल्लग अषवा गुरुस्स दोसा अधवा पायावची मधवा पुरिसाइण्णा भधवा वि समासेणं मधवा सो त विगडणं प्रधिकरणमंतराए अधिकरणमारणाणी अधिकरण राय? अधिकरणं कायवहो अधुम्मि भिक्खकाले . अनतरपमादजुत्तं प्रभारणकुतित्थिमते अन्नो पुण पल्लातो अपडिक्कमसोहम्मे अपडिहणता सो अपडप्पारणो बालो २८६५ १०८६ १३२४ । ४:१५ ३७५२ ४७७२ ४३३८ ५८३४ ४०१० ३७०१ ३३३४ ३१६६ ३०२६ ३७२८ ३५५६ ११८० ११७८ ६५६४ ५८०८ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ प्रथम परिशिष्ट ३२६७ ३६६५ ५२१८ ५३७२ १३४२ १०५६ १५४८ ५८०१ २०४६ ३३६२ ५४४० २७२३ २७०५ २३१६ ६३८१ ४६६३ ५१६१ ५.६६ ५०३१ २५४५ ५३७१ अप्पा मूलगुणेम अपाति पुराणातिनाग प्रप्पिगह तं बइल प्रत्युवमतिहिकरणे प्रद-विनित-बहुस्मता अप्पे मंत्तम्मिय प्रप्पोलं मिउपह अपकामरण देसे प्रवलकरं चक्खुतं मम्म्म ए अगोयत्थे प्रहम्मता यऽमदा ग्रबहुम्पने च पुरिसे पान वुडदाणे सम्भववारण रिणस्संकया पारहियम्स हरणे प्रभ-हिरवास-महिगा प्रभगय संवाहिय.. अभंतामललितो अम्भनरं च बाहिं प्रजापत्थं गनूग्ण प्रभासे व वर्मा प्रभुजत ग्रोहाणे मानुजनमेगतरं अभुट्टणे मारण ९८२ ५०१२ ६१२ ४६१० ५४८५ ३.८६ २६१४ ४३८५ पभिभूतो पुण भतितो अभिभूतो सम्मुग्झति अभि नावसुद्ध पुच्छा ५६८ अभिहारेत वयतो २७५३ प्रमणुण्णाणबहारं ग्रमणाधरणरासी ३१७८ प्रमिला अभिगवधिण्णं ५८५ प्रमिलादी उभयसुहा प्रमुगत्यऽमुमो वच्चति प्रमुगं कालमणागते प्रमुग च एपिसं वा प्रमुगायरियसरिच्छाई प्रमुगिच्चयं ण भुजे प्रमुगो अमुगं कालं मम्मा पितमादी उ प्रम्मापियरो कस्सति प्रम्मे ण वि जाणामो अम्मट्ठ समार ग्राह निकरेति परती अम्हे खमणा ण गणी ___ अम्हेदाणी विसे हिमो प्रम्हे मो प्रकतमुहा प्रम्हे मो पाएमा १९३३ प्रम्हे मो मादेमा प्रम्हे मो कुलहीणा प्रम्हे मो जातिहीगा पम्हे मो लिजष्ट्री अम्हे मो षणहीणा अम्हे भो रूबहीणा प्रम्हे वि एतधम्मा प्रम्हेहि तहिं गएहि प्रय-एलि-गावि-मडिसी मयते पाफोडते प्रयमण्णो उ विगप्पो प्रयमपरो उ विगप्पो प्रयम पाया खलु १०४५ प्रयमा मागग खलु ५३८१ प्रयमादी प्रागरा बलु १०७० ३७३२ ४२८० ४०८ २४४२ २६१६ १८४६ ४६२५ . ८६३ १७५८ ५५६५ २४१५ ३०३२ १८६० प्रभुट्ठणे गुरुगा प्रम्भुवगना य लोगो अम्भुगियगयवेरा प्रभगिणतो कोइ रग इच्छति अनयागी पेहेतु अभियोग्गविसकए वा प्रतियोगे कमिलजो . अभिगह मंभोगो पुगण प्रभाणवपुगणगहितं ३०३३ २४२५ ३२०१ २६८१ ४६२७ ५१४ २६११ २६१० २६८८ २६.५ २६१२ ६६६६ ६८७ ४००३ १८८६ ५६९३ २१.८ ५६२४ २२०० ३८० भिगोमिट्ठामति प्रभिगो महश्वयपुच्छा अभिवारते पामत्यमादियो ४६१६ ४१९९ ४६०८ ५६१२ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य पूणि निशीथ सूत्र प्रयमादी लोहा खलु प्रयसो पवष्णहानी २२९२ १८७० १४२५०२४ १७७० ४४२६ ६२१६ . ५७६२ ६२३३ . . प्रयसो य प्रकित्सीय प्रयसोय अकित्ती या ३११८ ३५८६ ५१६२ ३६६ २५३२ ५१६२ २१८ ९३२ ६३५६ परिसिल्लस्स अग्मिा अलभता पवियार अनमं धमिरं सुचिरं अलमं भरणं नि बाहि प्रवनागागादि रिपल्लोम प्रवरण्ड गिम्हकरणों प्रवराहपदा सम्ने शवराहे लहुगतरो प्रविकिट्ठकिलामंत प्रवि केवलमृप्यारे प्रतिकोविता त पुठ्ठा प्रविणाम होति सुलभो पवितहकरणे सुद्धा प्रतिदिन पाडिहारिय ५१६२ प्रविदिगोवहि पाग्गा प्रविधि अणुपाते भविमायरं पि मदि ५१६२ अवि यह कम्मरण्याा ५१६२ पवि य हु जुत्तो दंडो ३८६४ अवि यह बत्तीसाए ६३६२ प्रवि य हु विमोहितो ते १५६२ प्रति यह सम्मपलंमा अधि य हु सुत्ते भरिणय अविरुद्धा यारिणयका १९९८ अविरुद्धा मञ्चपदा प्रविसिट्ठा प्रावती १२४ २४८८ अविसुद्ध ठाणे काया प्रविमरम तु गहणे ५०२० पविसद्ध लंबा ५.२१ प्रतिमेस देवत-णि मिसमाबी प्रविमितमष्ट्रि प्रविसे व विमेसो प्रविदिम मारी पवने य प्रात प्रश्वजगजानो लु अव्वा उलागा गियो उधाण ६.६७ प्रयोच्छित्ति गिामिन ६०६७ ४०५५ ६४०३ ३३६४ २०३६ ५६८७ ४७८३ २८७५ ६५०६ १९२६ १८.. ५७६२ ७६२ २३५६ -२२२ ६६६४ अवगेपर सजिझलियामंजुना अनगे फायगडो प्रवगे विधारितो प्रबरों वि य प्रागमो अवलम्व रोगगहितं प्रवलकवरणेगगहने प्रवलक्ख रणेगबधे प्रवलक्षणेग बंध भवलकवो उनधी प्रवस्मगमणं दिम्मासू ६२२६ ६२३७ ७६४ २६९ ८८३ १५३० १५०४ १५०६ ३७३५ ४१९८ अवमा वमम्मि कीरनि प्रवयेमा प्रगागाग प्रदमेमः पुगा अगला पवमोद गयदंसो पवहन गोग्ग माने पवि अंबुज पादेग प्रवि ग्रामिम्मि लगा ४२०३ १२८१८६० २८४३ प्रमग्भायं च दुनिहं प्रमहर नन्थि मोटी प्रमादिया नउरो ६०७४ २७२६ २५०० ६३८४ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ . प्रथम परिशिष्ट ५४८० असणादि दबमाणे मसणादी वाऽहारे प्रसरणादी वाहारे मसणे पाणे वत्थे असति गिहि गालियाए प्रसति तिगे पुग असति बमधीए वीस १६१२ २३४७ असिवादीकाररिगतो २५५८ प्रसिवादी सुकत्याणि एम ११५३ अभिवादोहि गया पुरण : १९८ मसिवे अगम्ममाणे ४२५३ ५६६२ प्रसि के प्रोमोदरिए ५८७८ ४०५३ १६१८ ११५० ३५३१ प्रसिवे प्रोमोपरिए १९८३ २८२१ ४६०८ १६२१ ३७३ ३४५३ १६४ ४६७६ १३७२ . .४६३६ ४८१२ ५५४१ ५४४२ ५६५६ ३४२ ४५८ १४५४ ७२६४०५७ ७४७ ७७० ८१२ प्रसति विहि-णिग्गता प्रति समणारण चोदग' असती प्रधाकडारण असती एव दवम्स तु प्रमती गच्छविमजरण असती ते गम्ममारणे - ग्रंपती य परिरयस्त मपती य भद्दमो पुरण प्रपती य भेसणं वा प्रमती यःमतगस्पा प्रसती य लिंगकरणं ८१४ ९८४ १००७ १०२१ . १०१९ १९९१ ५.२२ ५६२७ २३७६ ३५६५ १४०१ १४६० १८४७ १८५३ २००७ २०१२ २.२४ १९८४ ५३८४ २०४४ असतीय संजयारण असती विनियमाणो असताण-खोम-रज्जू . प्रसघोणे परि पसमाही ठाणा खतु पसरीरतेमंगे प्रमहाप्रो परिसिल्लत्तणं असंघर प्रजोग्गावा यसंपत्ति प्रहालंदे प्रसिद्धी जति गाएवं असिवहितं ति काउ ममिवगहिता तणादी असिवाइकारणेहि असिवातिकारणे असिवादिकारण गता असिवादिकारणगतो असिवादिकारणेहि ५४७६ ३८५१. ५३२९ २४०३ ४८६७ ३४४ २०६१ २६६. २६८४ २६६७ २६६८ ३१०४ ४२८३ ३४३ ३१५२ ५०३२ १२२५ २४११ ३८४७ २७४१ ३१२६ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य रिण निशीथ सूत्र ४५५ प्रसिवे प्रोमोयाि ४०५७ ४०५७ ३२६६ ३३४२ ३३५५ ३४८७ ३४६१ २००२ १०१६ ५८८२ ५९५३ ५६५७ ५९६२ ५६६७ ५६७६ ६०२६ ६०७२ ७३४ १९१२ ६२३६ ४०५६ ४७४५ . ८८७ ४२८७ ३२५७ १४०० ४३६० २२७५ ४११८ ४२०७ असिवोम-दुटु-रोषग ४२८१ असिवोमाईकाले ४३०५ प्रसिवोमायणेसु ४३१७ , असिकंटकविसमादिसु ४३६५ अस्संजतमतरते ४४०३ अस्संजमजोगाणं ४४०६ अस्संजय-लिंगीहिं तु ४४१७ अस्संजयाय भिक्खू ४४३१ ग्रह अस्थिपदवियागे ४४३८ अह उगहणंतग ४४४३ मह जारिसनो देसो ४४५४ ग्रह जे य धोयमइले '४६७ प्रह-तिरिय-उड्ढलोगा । ४४८५ ४०५७ ग्रह दूरं गंतव्वं ४६१३ अह पुरण गिगवाघायं ४६३१ मह मागणसिगी गरहा ४६५४ अह वायगोति भण्णति ४६५८ ४०५७ अह सउदगा उ सेज्जा ४६७१ अह सिक्कयंतयं पुरंग ४६८३ ४०५७ अह मो विवायपुत्तो ४६८८ अहगं मिविस्सामी ४८ .१०१६ अहभावदरिमम्मि वि ४९७८ अहभावमागतेणं ४६६६ अहमेगकुलं गच्छं ५४१६ अहयं च सावराही अहव अभं जत्तो ०६. अहव जति अत्थि बेरा ४४१ ६१२१ २७२५ . ४७३७ २६३० ५२२८ ६४५ ३६६६ २२५३ ४०३२ २७४४ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ प्रथम परिविष्ट ५५८२ ४८१६ ५०६ ५३३१ २४०५ ६५२६ ६६८९ ८१७ ६६२३ ११६ 6८०० १२६३ ५८८० ५७७४ २०४० . ४०५५ ૩૨૨૯ MG . ४१५६ ८०३ ० ४७०६ -५.५ ६२७७ ४७४७ ६२४८ ६६५१ ३५२७ ६६७० ८३७६ २०७२ ५३१३ ६३२७ ३३२४ २०३५ ५०० महव जदि अस्थि घेरा अहव ए कत्ता सत्या प्रहन गा पुट्ठा पुग्वेग ग्रहवं रग मेतो पुत्वं महब गा मदा विभवे अहव ग हेटणंतर महाउजत पडिसेवी महवा अझुमिरगहरणे अहवाऽनुमछुवालंभुवगहे महता अंबीभूते प्रहवा प्रागादिविराहगाना ग्रहना आहारादी अहवाःऽहारे पूती ग्राका उम्मगु मग्गियं प्रहमा गगहगो अदना पारिते प्रहवा एमगामुद्ध ग्रहवा एमेव गमो ग्रहवा एमेव तवो ग्रंहवा ग्रीमहहे महवा को तस्म गुगा प्रहवा गुरुगा गुरगा अहया चिर वसंतो ग्रहवा छह दिवहि ग्रह्वा जं बद्धि प्रज्ञा जं भृक्वनो अवा ग चव वज्झनि महवा गा मज जन ग्रहवा तिते दोमो प्रहवा तिगमालवेग प्रहवा निगिग मिलोगा प्रहवा नेमि ततियं ग्रहवा दुग यावग महवा पढमे छेदो प्रहदा पढ़मे दिवसे प्रहवा पमएगाहियो ग्रह पचाट मंजतीग प्रहदा पातयतीति प्रहवा भिस्वम्मेय २३७ ग्रहवा भिक्खुस्स ग्रहवा महानिहिम्मि ८०७ ग्रहमा रागरागतो यत्वा वणिमामा य पाहवा वाती निविही ग्रहवा वि अगीयत्यो यहवा वि अमिम्मिय प्रहवा वि कोणेग्ण ग्रहवा वि गालबद्ध अहता मचिनकम्मे ४८५ अहवाममग्गाऽसंजय ग्रहवा मयं गिलारणों ग्रहवा मावविखतरे अहवा मिरवासिक्खे अहवा सुननिबंयो अहिकरना भदपंता अहिारगमहोकरण अहिकरगमंतराए अहिकरण विगति जोग अहिकिचाउ असुभातो अहिगरण गिहन्थेहि अहिगवजगणे मूल अहिमामयो उ काले अहियम्भ इमे दोसा अहियामिया तु अंतो प्रहिर गच्छ भगव अहि-विच्छग-विमकट अहुगुट्ठिय च अगाप्रहारतं मनवीस अंकम्मि व भूमीग अंके पलियके वा अंगात उवंगाग अंगू? पोरमेना अगुलिकोसे पगग २४.६ अंदगतवट्टग चा २७.६ अरणं मम्मटा २४७६ अजर-बंजग- नर्मालन ४०५२ M " ४९०६ ५८६६ GE ३०४३ २८ ६०६१ ४३८२ ६२८४ १२ ७ २३१. um. . .. ६५३० ५७ १२२७ . ..N .. Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभाष्य बृगि निशीथ सूत्र जग. गदहिखाण अंडयमुज्भिय कप्पं तारणा असती अंतरिम व मज्भमिव अंदर मिति वा अंतरपल्ली हितं अंतरपल्ली लहुगा अंतररहितारगंतर अंत न होइ देयं अंतेउरं च तिविधं अंतो अलब्भमाणेसण मादीसु अंत होत्तस्स उ. तो आवरणमादी गहू खलु हिं तो मिली पुग् अती पर सक्खीयं अंतो बहि कच्छपुडादि तो बहि च धोत संतो बहि च भि ं तो बाँह ए लब्भनि J! 27 तो बहि व दड्ढ़े अंतो मरणे किरिसिया प्रतीवस्य बाहि अंतो बहि संजोयरम अंधकारो पदीवेरण अब केा तिऊणं अंगमादी पक्कं श्रा श्राइ पिसित महिगा श्राइष्ण मरणाइण्ण काइ मरणादणा 90 〃 बाइ लहुसए‍ " " ५२ ६१०६ १७४३ २३७६ १३४७ ४१६३ ३२८७ ८२५८ y=૪૪ २५१३ २३६१ ६०७० ८७३१ १५३४ १४०३ ३०४८ ११६१ ६१०२ ६१०५ २६६३ २०६५ 988E ५८५० ५६६६ १२३५. ६२०० ४८६८ ..܀܀ ܕ ܐ3 ܽ ६१६० • *? ८६६ १४७१ १४६१ ६०० २०४ 208 २७६६ ४८१६ ५३१२ ४०२० ४८२८ ८७१ 5508. ३५७२ १८६५ १८६७ १८६८ 2006 प्राइम बहुए आइ रयरलाई आइण्णे लहुमकारण उक्काए लहुगा आउग्गहवेत्ताओ प्राउ ज्जोवरण af " आउट्ट जरते मरुगाग प्राउट्टियावराहं उत्तपुव्वभणित उरपाउम्मी ग्राउं बलं च वढनि आऊ अगणी वाळ प्राऊ नेऊ वाऊ आस विसंवादे आकड्डगामाकसणं आकपिता रिमितं आकंपिया गिमित्त रण आगम गम कालगते आगमसुयववहारी प्रागमिय परिहरता आगररणदी कुडंगे अगर पल्लीमादी आगंतागारादिसु प्रागंतागारादी आगंतागा रेसु " आगंतारागारे प्रागंतारादासु प्रागंतु ग्रहाकड आगंतु एतरो वा श्रागंतुसु पुव्यं आगंतुंग तज्जाता आगंतु तज्जाया श्रागंतुगं तु वेज्जं श्रागंतुगारिण तारण य ६०७ ६०५ २५१० ६०२ ५३४० २१८५ ५२२ ५२०७ ५३४४ ६१७४ ६१३३ २११७ ३३६५ २४०५ ३१३० २६६२ ६०१४ २६६४ ४४०६ ४५६० ६३६३ ४७८६ ५८५६ ५८६० २३१२ ४६५३ १४४६ १४५८ २३४२ १४३८ ५५६२ १८६२ ३२४४ ४६५२ ४६५५ २४३५ ५८८३ ४५७ ६३६४ २४१५ २५६० २५८७ २४१८ २७४२ ६२७ ४०३४ ४०३५ ४२६६ ४०५८ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ प्रागंतु तदुत्थे व आगंतु पर जायरा प्रगाढ फरुसमीसग "1 भागाढ़मणागाढं प्रगाढमरणागाढे " "1 गाढं पि य दुविहं प्रगाढे प्रालिंग भागाढे अहिगरणे आगामिदिएणं. मागारिदितो मागारेहि सरेहि य - श्राघातादी ठाणा प्रचंडाला पढमा प्रावेलक्कुदे सिय प्रणयर जा भया प्राणंद पहि प्राणो य दोसा प्राणाए जिगवराणं आखाए 5 मुक्कघुरा - प्रारणाए वोच्छेदे प्राणादिणो य दोसा प्राणादिया य दोसा 39 29 प्रारणादि रसपसंगा प्रारणाभंगे गाणं प्रागदेसे वासेण विरणा तर परतरे वा प्राततरमादियारणं शात-पर-मोहुदीरण प्रातपरे वावती प्रातरोभावरणता प्रातवेयं च परवयं २१५१ ३०६६ ४२८३ ४६६१ ४८८५ ४२१ १५६४ ३१०७ २६०७ ५७२४ २७६१ २३३५ ६५११ ६३६८ ४१३५ १४७३ ५६३३ १३०६ २६६० २८३६ ५४७२ १०२३ ६७० ५७४० २३५८ २७३५ ૪૯૦૪ ६६६३ ४६२४ ६५४० ६५५६ १४६८ १५१७ ५६०४ १४५२ १०४२ १६६५ १०२६ ३१३६ २७१३ ३१८५ ६३६४ ४६०६ ५३७७ ३२७१ १०३७ प्रतीती प्रतिसमुत्थमसज्झाइय कवि मुक्का भातावरण तह चैव उ श्रातावरण साहुस्सा प्रतियणे मोत्तूणं प्रादरिसपsिहता श्रादाणे चलहत्यो श्रदिग्गहणेणं उग्गमो प्रादिभयरणारण तिह श्रादीप्रदिभावे श्रसग्गं पचगुलादि प्रधाकम्मादी रिणकाए श्रधावधि दुविध श्रपुच्छण आवस्सग श्रपुच्छ कितिकम्मे प्राच्छित उग्गाहित प्रापुच्छिय श्रारक्खिय आभरणपिए जारणसु अभिगति क अभिगहिस्सासति भोत्ता वि भोगिगीय पसिणेरण ग्रामज्जा पमज्जरणा आमफलाइ न कप्पंति आमंति प्रब्भुवगए ग्रामे घडे निहितं आयपरउभयदोसा प्रायपर- पडिवनम्मं " श्रायपर-मोहुदीरणा मायपरोभदोसो आयरिया अभिसेभो प्राय अभिसे प्राय अभिसे प्रथम परिशिष्ट, ११३२ ६१६६ १७७८ ५३४२ ५३४५ ५६७० ४३२१ ४८६ ४३५ १६६७ ६२१३ ५३ १०८१ ११५२ ५२५ ६१२७ ११५५ २३६२ ३३८५ ५२१० १५४६ १२४६ २५७४ १३६६ १५१६ ४७५७ ५२८८ ६२४३ ३७८२ ३८१७ ३६३७ १२१ ५३० ८७१ २६६५ ६०२० ३६६१ ૭૬૩ २५६० ३५३६ ४८२६ २७८६ २५६३ ४६३३ ८६६ ३४११ २५६५ ६११० ६३७७ ४३३६ . Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनाप्य गिग निशीथ मूत्र ५५७४ २७४१ र ५५०२ - प्रायशिा उवज्भाए प्रायगि उवज्झायं प्रायगि कह सोही प्रायरिए कालगते प्रायगिा गालतो प्रायरिए दोणिण प्रागत प्रायणि भगाहि तुम प्रायणि य गिलारणे ४८७० ३३८६ २७८७ ५४८७ ४५५२ १४२८ ५०६५ २८०६ ९०६ ५८ पायारे अगाहीए ५४७३ पायारे च उसु य आयारे गिवेवो ५४०६ ग्रायारो अग्ग चिय ६१०७ ग्रायुहे शिगमट्टम्मि ५६६२ ग्रारविचनो विमज्जेति प्रारभडा मम्मदा प्रारं भनियत्तागं पागम मोल्लकाते पारिय-ग्रारियमंकम ५०८ प्रारियमगणासिस प्रामवगा जति मामा 2.४८ प्रारुहगो ग्रोर हो पारोवण उद्दिट्टा ५७६६ पारोबग्गा जहण्या प्रारोह परीगाहो पालन वाहिरे पालत गं पडिपुच्छ प्रालंबणं तु दुविहं प्रालंबणे विसद्ध ५४७६ २७८० पालावग पडिपुच्छग्ग ५७३० ५७२६ ६४८४ ४८३५ ६७५ ६४३५ २४५० ८६३ १८८७ ६२२ १६.५ पायरियो पायरियं पायरियो ग गा भगो २०६४ ग्रायग्गिो करिगा प्रायग्निो चउमासे २८०३ प्रायरियो वि हु तिहि ५५.७१ पायरितो कडिपदं प्रायरितो पत्तिगीय ४६०७ मायरिय प्रभावित ११०८ पायरिय उज्झाए ५५७६ पायरिय उवज्भाया मायरियपादमूलं ३८५६ पायरिय बालबुड्डा ५८६६ मायरिय-वसभ-अभिसेग ४६३३ पायरियसाधुवंदण १०५५ पायरियादीण भया ५४५५ पायरियादी वत्यु ४८१४ पायरिया भिक्खूरण य मायं कारगमागाढं ४८.१० भायंबिलरिणन्वितियं प्रायंबिलस्स.लंभे १६०७ पाया तु हत्थ पादं ६३५ पापा संजम पवयण १५४१ पावरपकप्पस्स उ पायारविणाय गुरुकप्पमादीवग्गा ३८६५ २०६२ ३२६२ ५८१२ २८५१ ६५६६ ३६८६ ५१३७ २४२४ २५२६ ६१६२ पालावो देवदत्तादि १०७० आलिहाल-मिच-तावरण २७५२ ग्रालिंगगगावतासगा प्रालिगते हत्यादिभंजणे ९५५ प्रालीढ पच्चली। पालोगम्मि चिलिमिली पालोयग तह चेद तु पालोयण ति य पुगो आलोयणाविहारणं पालोयगणापरिगो प्रावडणमादिएसु प्रावणणो इदिएहि प्रावरितो कम्मेहि ६६२७ ६५७८ ६३१२ ३०२१ ६५५८ १६२४ २ ५६१ १२० Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिशिष्ट प्रावरिसायरण उलिप गं प्रावस्सिया शिणसीहिय १८४६ ३५७४ ३४३८ ५२८५ २६५४ भावहति महादोसं मावातं तध चेव य प्रावाय गिठवावं मावासग कातूणं प्रावासग छवाया मावासग परिहाणी मावासगमादीयं पावासगमादीया प्रावासग सज्झाए ६१३६ ३६७५ ८२१ १२२ ६१२४ ३५५० ४३० ६१८० ६२१४ प्रामि नदा ममगागा आमित्ती जमिनो मासेग्ग य दिनो ग्राहच्चुवातिगाविन प्राह जति गमेव पाहा प्रधे कम्मे प्राहाकम्म मह घातो प्राहाकम्मिय प.गाग प्राहाकम्मुद्देमिय पाहालम्मे निविह पाहातच्च-पदारणे पाहारउग्गमेणं पाहारउम्भवो पुण आहार उहि देई पाहार उवहि देहे आहार उहि विभना आहार उवहि सेज्जा ३८२५ २५० २६६३ ४३०० ३१६३ ५७२ ५७८१ ४३५६ आवासगं परिणयतं मावास बाहिं असती ६३४३ ૪૩૪૭ २२४ ३४५४ ५६३४ ५३६ ५०१६ ६२३५ १९३५ २२८७ ६३३२ ४१३२ ९२५ ५२३ १२४ २५५५ ११३५ ४५५४ भावास-सोहि अखलंत मावासितं व वृक्ष भावासियमज्जण्या प्रासकरणादि ठाणा मासगतो हत्थिगतो पासज्जगिणसीहियावस्सियं पासणगतरो भयमायती भासण्णमुक्का उद्रिय पासण्णुवस्सए मोत्त मासम्णे परभरिणतो पासणणे साहति भासण्णी य छगूसवो प्रासंक-बेरजगागं प्रासंदग-कट्ठमो प्रासंद पीढ़ मंचग प्रासाद-पुणिमाए मासाढी इंदमहो प्रासाण य हत्थीरण य पासासोवीसासो मासा हत्थी खरिगाति २४२१ आहारदीएऽसती पाहारमणाहारस्स पाहारमंतभूसा ३८५७ पाहारमंतरेणाति ५८८ प्राहारविहारादिसु पाहारादीपट्टा पाहारादुप्पादन माहारादुवभोगो याहारे जो उ भमो प्राहारे ताव छिदाहि ३३५५ माहारो व दवं वा पाहारोवहिमादी .३७४५ प्राहिंडए विवित्त माहिंडति सो णिच्च ४२८० प्राहेणं दारगइत्तगारण ५२७६ १८२६ १७२३ ३८६८ ४१६६ ४५०६ २.११५ २७१६ ३१४६ २६०१ १७४८ ३६६५ __ ३७७१ इन अणुलोमण तेसि इच्छा गुलोमभावे ५५७ ३०२६ १९२६ . Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य चरिणनिशीथ सूत्र ४६१ ६६२६ ३५६३ ६५७ १६१३ ४६ १६८७ ८४० २४८५ २१०५ ४४४६ १४३५ ३२१५ ११८१ १३८० ४८६३ ४८०६ ५३०६ १६८९ २०१५ २४६६ ३११२ ६१७८ ४१४० २८४४ ६०३२ ५२६८ ६०५० ३३११ ५२६३ ५०६७ ५६६६ ३४०१ इस्सरसरिसो उ गुरू इस्सालुए वि वेदुक्कडयार ३७११ इह परलोए य फलं इहलोइयाण परसोइयाग इहलोए फलमे इह लोगादी ठारणा इह वि गिही अविसहरणा इहाह दितान कप्पा इहरह वि ताव अम्हं इहरह वि ताव गंधो इहरह वि ताव लोए इहरा कहासु सुरिणमो इहरा परिवरिणया इहरा वि मरति एसो इंगाल-खार-डाहो इंदमहादीएसु इंदमहादीसु समागएसु इंदियपडिसंचारो ५१५६ इंदियमाउत्तारणं ६४० इंदिय सलिंग गाते इंदियारिण कसाये य इंदेण बंभवरमा इंधरणधूमे गधे ३४२३ २८१२ २४८० इच्छामि कारणेणं इट्टग-छगम्मि परिपिंडताण ट्ठ-कलत्त-विभोगे इतरह वि ताव गरुयं इतरेसिं गहरणम्मी इतरेसु होति लहुगा इतरोवि य पंतावे इतरिमो पुरण उवधी इत्तरियं पि माहारं इति एस प्रणुण्णवरगा इति चोदगदितं इति दप्पतोमरणाइण्णं इति दोसा उ प्रगीते इति सउदगा तु एसा इति संदसण-संभासणे. इत्यि-परियार-सद्दे इत्थि पहुच्च सुतं इत्यिकह भत्तकहं इत्यिकहामो कहेति . इत्थी जूयं मञ्च इत्थी गपुसको वा इत्थी पुरिस नपुंसग इस्थोणं मज्झम्मी इत्यीणातिसुहीणं इत्यीमादी ठारणा इत्यी सागारिए इत्थीहि णाल-चढाहि इधरध वि ताव सद्दे इधरह वि ताव गस्यं इम इति पन्चक्खम्मी इय सत्तरी जहष्णा इय विरिणमो उ भयवं इयरह वि तारण कप्पति इरिएस-मासाणं इरियं ण सोयिस्सं इरियावहिया हत्यंतरें इरियासमिति भासेसरणा इस्सरनिस्संतो वा २७४५ ३८७८ ६१४६ ३५८३ ४७६९ १९१४ ५०३८ २४३० २४३३ ३८५८ १८५८ ८०५ ४७१० ५३६१ ८४१ इंधणसाला गुरुगा २५५२ ईसर-तलवर-मारंविएहि ईसर भोइयमादी ईसरियत्ता रज्जा इस प्रयोणता वा इस भूमिमपत्तं २५०२ २५०३ ५१६० १७६४ १७७२ ८२८ २५८६ ३१५४ १७८० ५०९२ ६३८६ ६३८७ २५१० ४२८५ ३४७८ . ४८८ ६१४१ उउबढपीढफलगं उक्कोसमो जिणाणं उस्कोसगा तु दुविहा उस्कोसतिसामासे ४३४८ १४१० ८. १८४२ ५८३० Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिचिट ५१६७ ३४६. २५१७ उक्कोस माउ-भज्जा उक्कोसं विगतीमो उक्कोसाउ पयामो उक्कोसेरण दुवालस उकोसो प्रविधो उक्कोसो थेराएं उक्कोसो दट्टणं उपत्तभत्तिए वा उच्चत्ताए दाणं उच्चसर-सरोसुतं उच्चारपासवरणखेल मसए उच्चारमायरित्ता wep २८१८ ३१७२ १८७३ १८८० १७३२ १४१२ १४११ ३५१२ ३५४७ २०१६ ४०६४ ३७५३ उक्क.सोवधिफलए उक्खिप्पत्तगिलागो उम्गम उप्यावरण उम्गम उपाय ३७५ १७५४ ५२७७ २०७३ १९३३ ४९७२ २०१७ उम्गमदोसावीया ४७१६ ४६७४ उच्चारं पासवरणं उच्चारं वोसिरिता उच्चाराति प्रपंरिल १९७८ उच्चारे पासवणे उच्छवछरणेसु संभारितं उच्छाहितो परेण उच्छाहो विसीदंते उच्छुडसरीरे वा उच्छोलखुप्पिलावण उच्छोल दोसु मार्षस उखाणट्ठाणादिसु उखाणटालदगे उजागरुक्खमूले उजाणा मारणं उज्जाणाऽउहणूमेण ५७६३ उधाणातो परेणं ५८२३ उज्जालज्मंपगारणं ५७८८ उज्जुसणं से मालोयणाए ४०५२ १९१६ उज्जोयफुडम्मि तु उट्ठ-रिगवेसुल्संघण . उट्ठज्ज णिसीएज्जा २६६१ ४०५१ . १८५१ ४६४१ ४९५८ २४२६ ३८७६ ५६३५ ५२८९ ३२७३ १२७५ २८६६ २९२६ २०६३ १३९८ उग्गमविसुद्विमादिसु उम्गममादिसु दोसेसु उग्गममादी सुद्धो - उम्पयमरणसंकणे उम्गयमरघुग्गए का · उग्गयवित्ती मुत्ती उग्गहणंतगपट्टे उग्गलवारणकुसले उम्गातिकुलेसु वि उग्गिण दिण्ण प्रमाये उग्धाताणु पाते उग्धातियमासारणं उग्यातियं वहते उग्घातिया परित्ते उग्यायमरणुग्घातो उग्यायमरघुग्घायं ५७४२ ४१८२ २११ २६८० २६८१ ४३२० ५९६ २८८५ ५३५७ २८४६ ६४२१ २०६८ ९६२ ३५३४ २८६१ ३५३३ ३५५४ उद्धेतं निवेसते उडुबलिंगमेगतरं उडुबड़े रयहरणं उडुमासो तीसदियो उहुवास सुहो कालो उड्डाहरक्खरगट्ठा उहाहं च करेग्या उडाहं व कुसीला उड्महे तिरियम्मिय ३५५२ १२३० ७०६. ६२८५ ८९० ३२१ १२६६ ४०२ ३३४१ उपायमपुग्षाया उग्यायमरग्यायो YY www.jainelibrary:org Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्य पूरिणनिशीष सूत्र २५०१ ६०१ ४५६३ ४२०८ १००० ३४६३ २०१६ २३५० २०२२ १७८१ २२ उस्सासो मपरिक्कमो य उड्वं पिरं प्रतुरितं उड्डे केरण कतमिरणं उढे वि तदुभए उण्णातिरित्तमासा उणियवासाकप्पा उणियं उट्टियं वावि उम्पोट्टे मियलोमे उन्होद-छगण-मट्टिय उत्तण-ससावयाणि य उसदिण सेसकाले उत्तरकरणं एगग्गया उत्तरगुणातिचारा उत्तरगम्मि परुविते उत्तरमाररास्स रादि उत्तरमूले सुढे उत्तर-साला उत्तर-गिहा उत्तिगो पुरण बिडु उत्यायो सहपाणे उउल्ल मट्टिया वा उदउल्मादीएसू उदए कप्पूरादी उदए चिखल्मपरित उदएण वातिगस्स उदग-ग्गि-तेरणसावयभएसु उदगसरिच्छा पसेणग्वेति उदगंतेण चिलिमिणी उदगागरिर तेगोमे उदगागणिवातादिसु . उदरियमम्रो चउस वि उदाहडा जे हरियाहडीए उदिजोहाउलसिटसेरणो उदुबढे मासं वा उद्दद्दरे वमित्ता उद्दहरे सुभिक्खे २२७२ ३२७१ ३६३१ उहावरण बिम्बिसए १४३१ १२६६ उद्दिष्ट तिमेमतरं उद्दिष्टमरपुद्धि ३२०६ उद्दिट्ठामो नईमो १८०२ उद्दिसिय मेह अंतर . उसेस बाहि ४६३४ उद्देसगा समुद्देसगा ३१३६ २७४७ उद्देसम्मि चउत्थे ६३८५ उद्देसियम्मि लहुगो । ३२१६ उद सित्ता य तेणं ६५२९ उबंसियामो लोंगसि ४२२५ उखियदंगे गिहत्यो ८४९ उरियदंगे साहू उपचारेण तु पगतं २४८८ उप्पक्कमे गत उप्पणकारणे गंतु १६७४ उप्पण्णाणुप्पण्णा १८४६ उप्पणे प्रधिकरणे १८५१ उप्पणे उपसग्गे ३७६१ ६०.१ उप्पण्णे गाएवरे ४२३१ ५६४१ उप्पत्ती रोगाणे ३५८४११६५ उप्परिवाडी गुरुगा ४९२ उप्पल-पउमाई पुरण ३१८६ उप्पात परिणच्छप्पितु २४२२ उप्पांदगमुष्पयो ५९३८ उप्पायरणेसणासु कि ३१३२ उम्बद पवाहेती ५७४८ उम्भामग:गुब्भामग ५८१६ उम्भामग वडसालेण ५७५८ ३२८९ समनो वि अदजोयण ४६८६ उभयगणी पेहेतु २६४ १९३० उभयट्ठातिरिणविट्ठ १९६८ उभयधरणम्मि दोसा ३४२६ उभयम्मि व भागाढ़े ४८५० उभयस्स निसिरणट्ठा •९ उमयो पडिबदाए ३९४५ ५७३६ १५०४ ३२६७ ३०६६ १७८ ४८३९ ३१६ १८१९ २०६४ ५३४८ ६११६ २७४४ ४०१२ १४. १८३६ ५०२२ ४६२७ २४६६ ४३३२ २०७१ १२२९ उहाण परिदृविया २६१४ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ प्रथम परिशिष्ट उभयो सह-कज्जे वा उम्मत्तवायसरिसं ५४६ ६५७ ५२४७ ५३७० ५७१६ २६१५ उवरिं तु पंचभइते २३८० उवरि तु मुंजयस्सा ३३२६ उरिसंते लहुगं ३३२६ उपलक्खिया य उदगा उवलजलेण तु पुग्वं उवसग-गणित विभावित उवसग्गवहिट्ठाणं उवसमगढ़ पउ8 उवसंते वि महाकुले ५६४७ ३५५४ उम्मर कोट्टिबेसु य उम्मादो खलु दुविधो उम्मायं च लभेज्जा उम्मायं पावेज्जा उल्लम्मि य पारिच्छा उल्लावं तु असत्तो उल्लोम लहु दिय रिणसि उल्लोमाणुण्णवणा उल्लोयरण रिणग्गमणे उदएसो संघाडग ६१७७ ३३४१ ३७५६ २६५५ ११६८ ११६७ ५३५० १९८८ १९८६ ८१८ २०८ ५३८० ५६४६ ६४६० ८२२ १२८२ ५२६१ ४२३७ २६७५ ४३६४ ११७३ ३५३७ ३५५७ ३६७७ २७६॥ २८४६ १७०० ३०६८ ३६७३ ३५७६ ६२२६ ४६०७ ४६०५ ३०६८ २०७१ ५५८०. ३७२२ १९९६ उवकरणपूतियं पुण उपकरणे पडिलेहा ५१५४ १९६७ २७६६ २९७४ ३५७८ उपसंतो रायमचो ३५७७ उवसंपयावराहे उवसामितो गिहत्यो २६९२ उवस्सए य संथारे २९६३ उवस्सग रिगवेसरण उवहत उट्ठिय गयणे ३४६२ उवहतं-उवकरणम्मि ३४३४ उवहम्मति विण्णाणे ३०५७ उवहयउग्गहलमे ३०६५ ___ उवयमावहते वा उवहिम्मि पडग साग उवहि सुत्त भत्त पाणे उवही माहाकम्म उवही य पूतियं पुण १८२५ उवेहमत्तियपरितावरण उवेहोभासणकरणे उवेहोभासण उवणा उवेहोभासण परितावरण उवेहोभासण वारण उब्वत्त खेल संचार उम्वत्तगणीहरणं उव्वत्तण परियत्तण उम्वत्तणमप्पत्ते उव्वत्ताइसंचार उठवताए पुब्वं ३१५६ २६२८ उवगरण-गेण्हणे भार उवगरण पुम्वभरिणतं उवग्गहिता सूयादिया उवचरग महिमरे वा उवचरति को गिलाणं उवर्जु जिउ' णिमित्ते उवदेस-अगुवदेसा उवधिममत्ते लहुगा उवधी पडिलेहेत्ता उवधी लोभ-भया वा उवधी सरीर चारित उवधी सरीरमलाघव उवधीहरणे गुरुगा उवभुत्त-थेरसद्धि उवभुत्तभोगथेरेहि उवरिमसिण्हा कप्पो उरि सुयमसद्दहणं उरि पंच मपुण्णे उरि तु अप्पजीवा उवार तु अंगुलीमो १९८४ १९८७ १९८६ १९८५ ३०८५ ३०८६ ३०६७ ३०५६ ३०५० २९८४ १४३८ १३३३ २४४६ १९६५ १८८६ २२३१ १९. ६१८२ ३२६६ १७५६ ३७६२ ५४६५ ३८८४ १९४६ १९५५ ३००२ १९०५ १३४४५७. उज्वरगस्स तु असती . उब्बरगे कोणे या . Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य चूरिनिशीथ सूत्र उसिसंस वा काहि मंडे उस्सग्गठिई सुद्ध "" उस्सग्गलक्खरणं खलु उस्सग्गसुतं किंची उस्सगसुयं किंची उस्सगाती वित उस्सगा पन्न - कहा य उस्सग्गित- बाघातं उस्सग्गियवाधा उस्सग्गियस्स पुवि " उस्सगे भववायं उस्सग्गे गोयरम्मी "1 उस्सग्गेण रिसिद्धारिण " उस्सग्गेण भणितारिण " उस्सग्गो वा उ मोहो उस्सीसग - गह उस्सुतनवहट्ठ उस्सेतिम पिट्ठादी उस्सेतिममादीणं उस्सेतिममादीया उहा पा ऊठ्ठेत्थि चरण ऊहिय दुब्बलं वा करणातिरितमासे राहिय मतो ऊरणेरण न पूरिस्सं ऊसत्याणे गानो एएर सुत ण कर्य एएस दोसा ऊ ३०५२ ४३८६ ५२३६ ५३५६ ३५७१ ५३५७ ५२३४ ५०२१ २१३१ ८३८ ८४१ ८३३ = ६६७२ ५२३७ ५३६० ५२४५ ५३६८ ५२४४ ५३६७ ६६६८ २१६५ ३४६२ ४७०६ ४७१३ ५६६६ ५६१० ३५३२ ૪૪૨૭ ३१४४ ३६६७ ५८२६ -१५३८ २६५१ ३२५२ १९५१ ३३१८ " ५१४८ ३३१६ "" ६२१ ३३१६ " ३३२७ 27 ३३२६ " ૪ ५२१७ ४००६ ૪૬ एए सामण्णतरं "" "? "" 18 19 एएसा मातरे एएसामण्यरं एएसि तिन्हं पी एएसि तु परूवरण एहि कारणेह " "2 ?? "" " "1 " एएहि तु उववेयं एएहि य प्रोहिय एएहि संपत्ती एक्कत्ती च दिरणा एक्कतो हिमवंतां एनल्स मोत्तूर्ण एक्कल्ले ग लम्भा एक्कस्स दोन्ह वा एक्कस्स न एक्कस व एक्कहि विदिष्ण रज्जे एक्कं दुगं चउक्कं एक्कं पाउरमाणे एक्कं भरेमि भाणं एक्कार तेर-सत्तर megafter user एवं एक्कूणवीसति विभातियम्मि एक्केesपदा मारणा एक्hrefम्म उ सुते २७२६ ३७७४ ४३६३ ૪૪=૪ ४६५३ ४६५७ ६०३१ ४३२५ २६२६ ५२१२ ५६२५ ३२६१ ३६०८ ३७६९ ३७७६ ४६१४ ४८८२ ५६५५ ३१३५ ४०५३ २७३३ २३६२ ६२६३ ६२८६ १५७१ ६३३६ ६३५५. ६१४४ ५०६२ २५८१ ३०१५ ७६५ ३४३८ २३२५ ६५६३ ६६४८ १६०३ ६१६२ ४६५ २५६५ ५१७५ १०२० २७५७ ४८०० २५०६ २८६० Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिक्षित एक्केक्कम्मि य ठाणे २४५४ ३५८२ एक्केक्कं तं दुविहं ५१०२ ५२०५ ५०४ १८९८ एगं ठवे रिणव्विसए एग व दोव तिमिण व एगं संचिक्खार एगंगि उणियं खलु एगंगितो उ दुविधो एगंगिय चल थिर एगंगियस्स असती एगंतरिणज्जरा से एक्केक्का उ पदाप्रो एक्केक्का ते तिविहा एक्केक्का सा तिविधा ४९०७ २५६६ १२०२ २०७५ ६२४४ ८२६ १२२० ४२३२ १२७४ ३६५२ ३९६३ ६३३० ३८२५ ५२१३ ७११ ५६४२ २६१७ ६१५७ ३०७६ एक्केक्का सा दुविहा एक्केक्को तिणिण वारा एक्केक्को वि यतिविघो एक्केको सो दुविहो एक्कोसहेरणं छिज्जंति एगवखेत्तरिणवासी एगचरिं मन्नता एगट्टा संभोगो ३१३८ ५६६७ ६५०६ १०२२ ५४३ ५६४० एगंतररिणविगती एगंतरियं रिणव्विबिल्स एगाणियस्स सुवणे एगापण्णं व सतावीसं एगा मूलगुणेहि एगावराहहंडे एगासति लंभे वा एगाह परणग पक्से ५७२६ २०६३ १२६६ २७३८ १००८ ५००३ ३५२६ ६५६६ ३५१८ ३५१७ ३५४९ एगिदियमादीसु तु एगिदि-विगल-पंचिदिएहिं ४०१४ एगुरणवीस जहणणे ३५६६ एगुत्तरिया घडछक्कएणं ५३०९ एगणतीस दिवसे एगूणतीस वीसा ३८४७ एगे भपरिणए या २४०७ ५००७ १४५६ २३७७ ११८५ ४११० २६२१ ६१४ ३१८० ६३२३ ५२८२ ५१४० ६४२९ ५११२ ४०३६ ४०७६ ४०८५ एगतरझामिए उवस्सयम्मि एगतररिगग्गतो वा एगत्ते जो तु गमो एगत्थ वसंतारणं एगत्य रंधरणे भुजणे य एगत्य होति मत्तं एग दुग तिषिण मासा एगपुड सगल कसिणं एगवतिल्लं भंडि एगमणेगा दिवसेसु होति एगमणेगे छेदो एगमरणं तु लोए एगम्मिप्रणेगदाणे एगम्मि दोसु तीसु व एगस्स प्ररणेगारण व एगस्स पुरेकम्म एगस्स वितियगहणे एगस्स मागजुत्तं एग उडुबम्मि एगं च दोव तिमिण व ५४३७ ५४६४ ५५३६ ५५४५ ३८४१ २४६० २२७१ एगे अपरिणते या एगे उ कज्जहाणी एगे गिलारणपाहुड एगे तु पुश्वभरि एगेण कयमकज्ज एगेण तोसिततरो एगेरण समारो १२८ १९३६ १८४२ ४५७६ ४७८७ ६०८१ ४०५६ ४.८६ ७४३ १८४३ २१६६ ३८३१ ३८३८ एगणं बंधेणं एगेरोगो बिज्जति Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सराव परिणनितीव सूर ४६७ एगे तू वन्यते ५४८६ २३६१ ५९२५ ५९८९ ४२० ११८२ एगे महारणसम्मी एगेसि जं भरिणवं 'एगो इत्यिगमो एगो गिलारणपाहु एगो रिणदिसतेगं एगो व होज्न गयो एगो संघाडो वा एगो संथारगतो एतरणंतरागाडे एतद्दोसविमुक्क एतेण मज्झ भावो एतेरण उवातेरणं एते तु.दवाति एते पदे ण रक्खति एतेसामण्णतरं ५४५६ ६३३६ ४५६४ १६५७ ३०३० ३८४० ४६३ १६४२ १३३० ६२३ ६३३ ६४१ १०७३ १५०२ १५४. १५८६ एतविहिमागतं तू एतं खलु माइगणं एतं चिय पच्छित एतं तं चैव परं एतं तु परिग्गहितं एतं सदेसाभिहां एताई सोहितो एतारिण वितरति एतारिसंमि देतो एतारिसाम्म वासो एतारिमं विउसज्ज ६३४१ ५४६३ ८१८ १६०२ १४६६ १८९९ १४८७ १९३८ २५८४ ४६६ ५२३२ ५४६५. ६३३८ ५५४६ २१५७ २१८३ २२२४ २४६५ २५१४ २६८३ २७१. ३७४. ४४९९ ४६७० ५६५६ ६२५६ ६०८ ४३८ . एतारिसं विप्रोसज्ज एतारिसे विप्रोसेज एतासि मसतीए एतविहिमागतं तू एते भण्णे य तहिं १७७५ एतेसामगतरे ३८२६ ६१७० ७७१ ५०३० एतेसामरगयरं ७२७ एते उ प्रवेप्पसे एतेथिय पच्छिता एते पेव गिहीणं. एते चेव दुवासस एते व य दोसा ३३८ ८७३ ८८४ ८८६ १२२१ ५६२६ ४२५० ५६२२ एतेसिं असमादी Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ # एसि असतीए एतेसि काररगाणं एतेसि च पयागं एसि तु पदा " एसि तु पया एतेसि पढमपदा एतेसिं परूवणता एतेसु उगेव्हंते एतेसु चित्र खमरणादिए सु एतेह संथरंतो तेहि कारणेहिं 23 39 #1 "1 " " " " " एते होंति प्रपत्ता एतो एगतरीए एत्तो एगत्तरेणं " 18 " 23 33 13 "} " "3 "" "} "3 "? 13 ૪૪o ३३५० ५६७३ २१३५ ४६२७ ५६७५ १४६६ ३१०६ ४७६५ २८ २६६८ ८६१ १०६७ ११२७ १२१६ १३०८ १५५० १५६८ १५७५ १५८२ १७४६ ६२२८ ७८३ १६२ ७३९ ६८० १०८४ १०६१ १०६७ १३५६ १४५१ १५५६ १५७० १५७८ १८५० २१६० ३३४० ६०२५ एतो शिकायer एसो समारुमेज्जा ३०८२ एतो हीतरागं ३०८२ एत्थ उ भणभिग्गहिय एत्थ उपरणगं परणगं एत्थ किर सन्नि सांग एत्य पडिसेवरणाच १८६५ ३१५१ ३१५३ ५७३८ ६४२२ 27 ६५८१ एत्थं पुरण एक्केक्के ६१९४ मादि भागय दोस रक्ख गुड्डा ३४४१ मादिकारह २४५४ एमेव भवहितमि बि एमेव सुवि एमेव भट्टजात एमेव प्रतिक्कते ४६०८ एमेव प्रणिहिते एमेन महादे एमेव इत्विग्गे एमेव उम्गमादी एमेव उत्तिम एमेव उवहिसेज्जा एमेव उवज्झाए एमेव कतिवियाए एमेव कागमादिसु एमेव मरणायरि "1 एमेव गरणावच्छे एमेव गिलाणे वी एमेव गित्येसु वि एमेव चरिमभंगे एमेव चरिमभंगो एमेव वाउलोदे एमेव चारणभडे एमेव चिट्ठादिसु एमेव चेइयाणं एमेव एव विकप्पा एमेव ततियमंगे एमेव ततियभंगो प्रथम परिशिष्ट ६५७५ ६६१८ ११३३ ४५५६ ३६५ १०७६ २२२६ ५५६७ ४५६५ २६७७ ३४२४ ६२०१ २८२१ १३२६ ४४२६ २८०९ २६०७ ५५५० १३३६ ३४७ ३७८४ २६३३ ५६७५ १३२२ ५३३७ ४५८० १८३६ ३७८३ ३४२२ ४२८४ ३२७० २८६४ ५४६६ ५३५३ २८७६ ७६६ ५७७५ ५८०४ ५६५ २८७४ . Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यपूणि निशीथसूत्र एमेव तिहिकरणं एमेव तिहिपातं एमेव तु संजोगा एमेव तेल्ल - गोलिय एमेव थंभकेयर एमेव दंसरणम्मि वि एमेव दंसणे वी एमेव देहवातो एमेव पउत्थे भोइयम्भि एमेव पउलिताऽपलिते एमेव बारसविहो एमेव वितियभंगे एमेव वितिय एमेव भावतो वि य एमेव भिक्खगह एमेव मज्जादि एमेव मामगस्स वि एमेव य श्ररणवे वी एमेव य वराहे एमेव थ श्रोमंमि वि एमेव य इत्थीए एमेन य उदितो त्ति य एमेव य उदगरणे एमेव य कम्मेण वि एमेव य गेलो एमेव य जंतम्मि वि एमेव य छेदादी एमेव य हागादिसु एमेव यं रिगज्जीवे एमेव य पडिबिम्बं एमेव य पप्पडए एमेव य परिमुत्ते एमेव य पासवणे एमेव य पुरिसा वि एमेव य भयादी एमेव य भिक्स वि मे यवसभर वि एमेव विज्जाए ६०३६ ૪૪૨૦ ४२४१ ५७५० ३१६० ३८७० ६३६५ २४२ ५०५५ ४६४३ ५२१४ ३७८० ५४४२ ४६०३ २६०६ ५०४८ ५०२६ ४६४० ६३७७ ३४८ २७१२ २६१२ ५०६३ ४३६ २६२४ ४५२१ ३५२१ २०३० ४८५६ ४३२४ १६६ ४१०६ ६१२० ५०४० ४६३४ ६६३५ ६६३२ ३७१५. ३२८१ २८०० १०८० १०४० ५८०६ ६४७ ६२८ ५०८० ५८०६ ५८२१ १.६७६ EFC १८६७ ६३६ १०७१ एमेव य सच्चित्त एमेव य समी एमेव विहारम्मी एमेव समवग्गे एमेव संजई वि एमेव संजतीणं मेव संजीव " एमेव सेery fa 21 19 33 19 11 " " एमेव सहि वि एमेव सेसम्म वि एमेत्र से गारण वि एमेज सेसिया वि एमेव होइ इत्थी एमेव होति उर "" "1 एमेव होति नियमा एमेवोवधिसेज्जा एयर मुक्के एगुरदिप यसमास्स तु एयविहिमा गयं तु एयस्स गुत्थि दोसो एस ग्राम दाहिह एवं चैव पाण एयं तु भावकसिणं एयं सुतं फलं एयाइ प्रकुव्वतो एयाणि य अण्णाfरण य ४७६७ ६१६६ २०६५ २६७१ ४६०१ ४६३६ २०७६ ४६४८. ५०७ २६१६ २६३६ २७१७ २७६२ ३३७७ ४१४५ ६००४ ४२३८ ३२३० २०८२ ४३८६ ५२२१ २५७ ३४६८ ५७०२ ४४८३ १८३७ ३०१७ ३१०८ ३११३ ५५४४ २८३८ ५१५२ ३०३८ ५८३६ ६३६ १५४६ ४३७४ २७२८ ૪૨ १०७ ५३४७ १०७३ १०८५ ૪૨૦૪ ५२६७ २५७६ २६१६ ". 33 ५३६८ ५५७२ २५०२ १६३६ ४०१५ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिविष्ट ५०५० ३२४८ ४७४३ ८८५ १९४७ २८०२ ५२७० एयारिण सोहयतो एयारिसम्मि वासो एयारिसे विहारे एरवति कुणालाए एरवति जत्य चक्किय एरवति जम्मि चक्किय एरिसमो उवभोगो एरिसयं वा दुक्खं एरिससेवी एयारिसा एवइयं मे जम्म एंवमपि तस्स रिणययं एवमसंखडे वी एवमुवस्सय पुरिमे एवं अड्डोक्कंती एवं प्रसाणादिसु एवं अलब्भमाणे एवं प्रवायदंसी एवं प्रामं ए कप्पति एवं पालोएति एवं उग्गमदोसा एवं उभयविरोधे एवं एस्केका तिगं एवं एक्केक्कदिणं १२३२ ३०४६ ५०५७ ४१४८ १२८६ ३१११ १५३ ३३५८ ५२०६ ४६१८ २५५६ ५८३२ ४७२८ ४६७३ ४९६४ ५३५५ ३३८१ ४२२६ ४२४३ ४२२८ ५१०५ ४४३५ ३५८७ १०३६ २६५८ ११० २६७३ ३५२६ ४८७६ १२३७ ४१५४ ४८९७ ३८७४ ४१५५ ११२५ ५२२२ २८०५ २८२५ ६०५२ ६४५७ ६४४६ ४६३१ ३८८६ ६४६२ १४४४ ६४६३ ५५६४ २६८६ १६३६ ५२६० ५७६७ १६१७ एवं जायगावत्थं एवं रणामं कप्पती एवं ता असहाए २७८२ एवं ता उबद्ध ५६३६ एवं ता गिहवामे ५६५३ ५६३८ एवं ता गेण्हते एवं ता जिगकप्पे २४५७ एव ता हरणं एवं ता पच्छित्तं एवं ता सचित्ते एवं ता सव्वादिसु एवं ता सविगारे एवं ताव अभिरे एवं ताव दिवसयो एवं तावऽदुगुछ एवं ताव विहारे एवंतियाल गहरणे एवं तु अगीयन्थे एवं तु अगसंभोइएम एवं तु अलन्भंते एवं तु असढभावो एवं तु ग्रहाछंदे २५६६ एवं तु केइ पुरिमा एवं तु गविट्ट सु एवं तु दिया गहणं एवं तु पयतमाणस्स एवं तु पाउसम्मी १०६८ एवं तु भु जमाणं एवं तुमपि चोदग एवं तु समासेण एव तु सो अवहितो एवं तेसि ठिताणं एवं दधतो छह एवं दिवसे दिवसे १८६१ एवं पराप्परस्सा १५६१ एवं पापोवगम ३३६६ एवं पाउसकाले एवं पादोवगम एवं पि पठायते ६४५ २८०१ १६५६ ५०१७ १८६४ ३५०१ ६५७६ ५०४६ १९८० ५६१० ५१५६ ६४८ २६८४ ३१२८ ५७७८ ६४१४ ६४६५ २७०७ एवं एत्ता गमिया एवं एत्ता गमिया एवं एया गमिया एवं एसा जयणा एवं खलु उक्कोसा एवं खलु गमिताणं एवं खलु जिरणकप्पे एवं खलु ठवरणामो एवं खलु संविग्गे एवं गिलाणलक्खेरण एवं च पुगो ठविते एवं च भरिगतमेतम्मि एवं चिय पिसिते. एवं चेव पमारणं ५०८१ १०७४ ६१४ ४७३ २८०० ४३८ ३६२२ २२६५ ३६७५ ५५८१ . ५४८१ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्यपूणि निशीथसूत्र एवं पि पठायंतो एवं पि कीरमाणे एवं पि परिवता एवं पीतिविवी एवं पुच्छासुद्धे एवं फासूमफा एवं बारसमासा एवं बारसमासे एवं भगतो दोसो एवं वितिमिच्छे वी एवं वि मग्गमाणे " 17 एवं सहकुलाई एवं सरण व मुंज चिप्पि एवं सतिराण वि एवं सिद्धं ग्रहणं एवं सुतगिबंधो एवं सुतं फलं एस गमो वंजरणमीसएरा एस तवं पडिवज्जति "P 17 एस तु पलंबहारी एस पत्थो जोगो एसमरणाइण्णा खलु एस विही तु विसज्जिते एसरण दोसे व कते एसरणमादी भिण्णो एसरणमादी रुद्दादि एसा श्रविही भरिणता एसा भाइण्णा खलु एसा उ श्रगीयत्ये एसा उ दप्पिया एसा खलु मोहे एसा विही विसज्जिते २७४३ ३००७ ४१८८ ४१७५ ૧૦૪૪ ४०६१ ६५५२ २८०४ २६५० २६१८ ७५८ ७६७ ८४३ १६३४ ८२७ ३५३६ ४५४० १२२३ ४१७१ ५२०८ ४२८ १८८६ २८८० ६५६५ ४७८२ ५६६१ १४७८ ५४६० १६४४ ४३२ ४४३ ४०८४ १४६२ ६३५८ ૪૨૪ ५१६७ ५५३३ ५४८१ १६१० ५३०७ ५२६४ ६४३ १८१८ ५७७० ५८१५ १५८६ ५२६० .२५६१ ५५६७ 31 "" ६२३ ५४३४ १६०३ १८४१ एसा मुत्त प्रदत्ता एसेव कमोरियमा " एमेत्र गमो यमा 71 " #1 "" 17 "} "F "" "0 " " " " " " " 11 " 21 " एसेव गमो नियमा " 18 एसेव चतुह पडिसेवरणातु एसेव यदि तो ६२५२ སྟངས ५६० ६०० ६१३ ८३५ ८४४ ६६८ १००८ १२९७ १३०६ १४८८ १७७७ १६६५ २०२८ २३०७ २५२५ २६४० ३०६४ ३२६८ ૪૬૬૪ ૪૬૨૭ ४८६० ४८६६ ५१६३ ५२२३ ५८७१ ५६३१ LEY ६६६४ १७८२ २८५४ ३३१० ५५५१ ६६६५ ६१ ४८६६ ६५०८ ४७१ ४२४० ܐ ४६०६ ३७६६ १००० १०३३ ३८०३ ༢༢ང་ ५४५१ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ प्रथम परिशिष्ट ४२३ मोवासादिसु सेहो मोवासे संथारे एसेव य विवरीमो एसो उ प्रसज्झामो एसो उ प्रामविही एसो वि ताव दमयउ एहि भरिणतो त्ति वच्चति ४०० १०१५ १०१७ २७८३ ६२११ २७०४ ७७४ २४६४ २११६ ४२९७ ३८६ १०८ ३११२ ६७२६ ५४८६ अोकच्छिय-वेकच्छिय प्रोगास संथारो प्रोगाहणग्ग सासतणगा" मोदइयादीयारणं मोदरण-गोरसभादी प्रोदण मीसे रिणम्मीसूवक्वडे प्रोदरिए पत्थयणा प्रोधोवधी जिणाणं मोबद्धपीढफलयं मोभामिमो मि . मोभावणा पवयणे मोभासणा य पुच्या प्रोभासिय डिसिद्धो प्रोमम्मि तोसलीए मोमं ति-भागमद्ध प्रोमंथ पाणमादी प्रोमारणस्स व दोसा प्रोमादिकारणेहि व मोमे एसण सोही ओमे तिभागमद्ध ३१४१ २४६३ ४६३८ ५६६७ १३८१ ५७६८ १५६४ १०८५ ५८६४ ४४४८ ४६२३ २६६१ ५८६५ १६८४ ५५९६ ५७०६ ४२६ ३९९५ प्रोसवकरण प्रहिसक्कम मोस? उज्झिय-धम्मिए प्रोसवणं अधिकरणे प्रोसणामलक्खरणसंजुयानी प्रोसण्णाऽपरिभोगा प्रोसण्णे दृढ णं प्रोसपणो वि विहारे मोह अभिग्गह दारणं पोहरिणसीहं पुग मोहाणं ता अज्जो मोहारणाभिमहीणं मोहातिय-कालगते मोहादीया भोगिरिग पोहारमगरादीया मोहावंता दुविहा ग्रोहावित-उस्सणे पोहावित प्रोसम्णे ओहावित-कालगते मोहिमगा अउज्जिय मोहीमाती णातुं मोहे उवग्गहम्मिय ओहे एगदिवसिया ओहे वत्त अवत्ते अोहे सवगिसेहो अोहेण सट्टारणं पोहेग विभागेग य. ५४६० २०७० ६६६७ ३६७८ १७०४ २७५१ २५७२ ४२२३ ४५७८ ५५६२ २७५५ ५५८६ ३५६० २५८३ १३८७ ६३१५ ५५२८ ५२०२ ६६८१ २०१७ १०६० ५४८६ ३७०८ ५४१६ ३११८ १७६ ४३६३ ५७०७ ३११६ ४७६७ ९३८ १०६७ मोमे वि गम्ममाणे प्रोमे संगमथेरा प्रोमोयरियागमणे प्रोमोयरिया म जहिं प्रोयन्भूतो खेतं पोरोहपरिसणाए प्रोलग्गगमरसुवयणं पोलंबिऊण समपाइतं पालोगम्मि चिलिमिली मोवटिया पदीसं ४६३० ४१२७ ३१२० ६६७ कक्खतरुक्खवेगच्छिताइसु कच्छादी ठाणा खलु कजकारणसंबंधो कजमकज जताऽजत कज्जविवत्ति दट्टण कजं गाणादीयं ४६१८ ५७०८ १४५६ ३८०४ ६१६२ ४३८५ ६६५४ ७५४ ५२४६ . Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभाष्यणि निशीथसूत्र ४७३ कज्जे भत्तपरिण्णा २७६८ ६३७३ २४० ५७८३ कटुकम्मादि ठाणा कट्ठण किलिंचेण व क?ण व सुत्तेण व कट्ठ पोत्ते चित्ते १८७५ ४६१६ ५११८ ५१५४ २२२ ५३६६ २२६५ ५६१४ १६६३ ३४४३ २०६४ ४१२० ३६०२ ३६०३ ३६०४ ३६०५ कडो व चिलिमिली वा १०५४ कडगाई प्राभरा कडगादी प्राभरणा कडजोगि एक्कगो वा कडजोगि सीहपरिसा कडिपट्टए य छिहली कडिपट्टनो अभिणवे कणगा हणंति कालं कण्णतेपुरमोलोग्रणेण कण्णं सोधिस्सामि कतकज्जे तु मा होज्जा कतगेण सभावेण व कतजत्तगहियमोल्लं कतरं दिसं गमिस्ससि कत्तरि पयोयणापेक्ख कत्तो ति पल्लिगादी कत्थई देसम्गहणं कत्थति देसग्गहरणं कप्पटू खेल्लग कप्पट्ट दिट्ठ लहुप्रो कापट्ठिो अहं ते ६१४७ ४०५१ ५४१७ ६६८२ ४९४७ ३७१२ ३७१३ ६६४६ ३८०६ ४६६८ २३१८ ४४४२ कमढगमादी लहुगो कमरेणु प्रबहुमायो कम्मचउक्कं दवे कम्मपसंगणवत्था १०५६ कम्मपसत्थपसत्थे कम्ममसंखेज्जभवं २४६६ ३४५१ ३४५१ कम्मस्स भोयणस्स य कम्मं कीतं पामिच्चियं च कम्मादीण करणं २६६७ कम्मे प्रादेसद्गं २८६६ कम्मे सिप्पे विज्जा ५१७७ ५१७८ कयकरणा इतरे या कम्मि मोहभेसज्जे १६१ कयमुह अकयमुहे वा कयवर-रेणुच्चारं करड्यभत्तमलद्ध करणे भए य संका . कर पाद डंडमादिहि ६०८५ कर-मत्ते संजोगो कलमत्तातो प्रद्दामल कलमादद्दामलगा ३३२१ ३३२१ कलमेत्त गरि गेम्म ४६०२ कलमोदणा वि भणिते कलमोदरणो य पयसा कलमोयणो य खीरं कवडगमादी तंबे कव्वाल उड्डमादी कसाय-विकहा-वियडे ३०५० कसिगत्तमोसहीणं कसिरणं पि गेण्हमारणो कसिरणाए रूवरणाए १००५ कसिणारूवरणा पढमे ३६६६ ३६६८ कसिरणाविहिभिण्याम्मि य ६२७ १३३० ३७२१ ६०० १४६ १५८ १५६ ४४१६ . ३४४७ ५२३६ ५३६२ १३०३ ४७२६ २८७६ ६५६४ ३४५८ ८०३ १६२८ १६६६ १८६ ४०३५ ३८५३ ३८५४ ३०२५ ३०७० ३९२० १०४ १५८३ ६३६ ६४६४ ६४१८ ६४१६ ४६१५ कप्पडियादीहि समं कप्पति ताहे गारथिएण कप्पति तु गिलाणट्ठा कप्पति समेसु तह कप्प-पकप्पा तु सुते कप्पम्मि प्रकप्पम्मि प्र कप्पा पातपमारणा कप्पासियस्स मसती ३८६६ ४०६६ ६३६५ ४८६६ ५७६४ १०५२ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ करिणे चतुव्विधम्मी कसिरगा कसिरा एता कस्स घरं पुच्छि कस्सति पुच्छियम्मी कस्स त्ति पुरेकम्म कस्सेते तरणफलगा कस्सेयंति य पुच्छा कस्सेयं पत्ति कहिता खलु आगारा कहितो तेसि धम्मो कंचपुर इह सा कंजियप्रायामासति कंजिय चाउलउदए कंटगमादी दब्बे कंटगमादीसु जहा isट्ठि खाणु विज्जल कंटऽट्ठि मच्छि विच्छुग कंट्ठमातिएहि कंटाइ-साहएट्ठा कंटादी पेहंतो कंटाऽहिसीत रक्खता कंडादि लोन रिसिररण कंडूस-बं कंतार - रिग्गताणं कंदप्पा-परवत्थं कंदादि प्रभु जंते काइयभूमी संथारए य काउस्सग्गमका काउं सयं गा कप्पति काऊरण प्रकाऊरण व कारण मासकष्पं 17 "" कारण व वायाए कावचिनो बलवं काकरिणवारणे लहुश्रो कारणंच्छि रोमहरिसो कारणच्छिमाइएहि कातूरण य परणामं ६७२ ६४६६ ૪૪૪૨ ५०२४ ४०६४ १२६० १७८८ ४७६५ २३४१ ५७५३ ३८४६ २०० ३०५६ ६२६३ १८८३ ४७३६ ४१७ ४७४१ २६५३ २६ ६३१ १८०७ २१७५ २५२८ ३१८ ५६६८ ३१५६ १५६६ ८३६ २८५६ २०३८ ३१४५ ३१५६ २२५८ ३६१० ३८४ २३३६ ५१४५ ५५२६ १८२१ २०३८ कामं खलु ग्रलसद्दो कामं खलु चेत कामं खलु धम्मकहा कामं खलु परकरणे कामं खलु पुरसद्दो कामं खलु सव्वष्ण कामं जिपच्चक्खो कामं विध ६३६ ३२८४ १६५८ ५५६६ ८८१ ८८३ ३८५८ ३८६३ ३११३ ५५८६ १६८७ ४२ : ६ कामं प्राउयवज्जा कामं उदुविवरीता कामं कम्मणिमित्त कामं कम्मं पि सो कप्पो कामं खलु श्ररतुगुरुणो २४६५ कामं तु सव्वकालं कामं देहावयवा कामं पमादमूलो कामं पातधिकारो कामं ममेतं कज्जं कामं विभूसा खलु लोभ-दोसो कामं विसमा वत्थू कामं सत्तविकप्पं कामं सभावसिद्धं कामं सव्वप कामं सुप्रोवोगो कामी सघरंगरग कामी सघरंऽगरणतो कयकरणा इतरे या कायल्ली का कायं परिच्चयंतो + कायारण वि उवओोगो काया वया य तच्चिय कायी सुहवीसा काहविसुद्ध पहा कारण तु विहिरणा कारण एग मडंबे कारण सग्गामे कारणगहणे जयरा कारणगउिन्वरयं प्रथम परिशिष्ट ३३२३ २०५८ ५१५ ५६६० ४८५६ ३५.०४ ૫૨૭૪ ૪૪ १६२३ ४०६२ ४८२२ ५-४३४ ६६७४ ३१७७ ६१७२ ६६६० ४५२२ ૬૪ & 1s{s ६४०४ ३३१५ ३१ ३६४ ६०६७ ४६८७ ४६६५ ६६४६ २८५ ४७६१ ३६५ ३३०८ १६७१ १४७६ ५८१५ २४१० ६०४२ ६०५३ ३३६६ ३१०० ६६६ १८१६ ६६३ ३६६५ ४६४४ ६३१ ૪૭૨ ३६६२ २८५१ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरिंग निशीथसूत्र ४७५ कारणजाए अवहडो कारणतो प्रविधीए कारणपडिसेवा विय कारणामकारग वा कारणमकारणेवा २७.६ १६६८ ४५६ ५०८४ कालो समयादीयो कालो सझा य तहा कावालिए य भिक्खू कावालिए सरक्ख कासातिमातिजं पुवकाले काहीगा तरुणेसु ३६६२ काहीता तरुगोसू २८२२ ५१८७ ܪܟ ܘ ܯ ३५०६ २०६६ ४६६७ ३२६८ १०६१ २१७१ ६००६ २५८० २५७६ २२७६ २५६७ ३१४३ ६१३२ ५०७७ ३६२२ ५०१३ ५२२५ ५२१६ ५२२४ ५२१५ १३११ २८८४ ६५६६ २०७२ २७७५ १७५६ ४४२४ ३००५ ६३०४ ६२६ ५८६ ३७७८ ४५६२ ६१५२ ३८६१ २७८१ १८६५ कारणमणुण्ण-विधिमा कारगलिंगे उड्ढोरगत्तणा कारणाणुपालगारण कारिणए वि य दुविधे कारणे उद्धगहिते कारणे विलग्गियब्वं कारणे सपाहुडि-ठित्ता कारणे हिंसित मा कारावरणमाभियोगो कालग्गं सव्वद्धा कालगतम्मि सहाये कालचउक्कं उक्कोसएण कालचउक्के णाणत्तगं कालदुगातीतादीरिण कालसभावाणुमतो कालातिक्कमदाणे कालादीते काले कालियपुन्वगते वा कालियमयं च इसिभासियागि कालुट्ठाई कालनिवेमी कालुट्ठादीमादिसु कालेण प्रपत्तागणं कालेरणं पुरण कप्पति कालेणेवतिएणं काले अपहुप्पते काले उ अरण्याते काले उ सुयमारणे काले गिलाण वावड काले तिपोरिसष्ट्र व काले वा घेच्छामो काले विणये बहुमाने काले सिहि-णंदिकरे कालो दव्यऽवतरती ५४२५ काहीया तरुणेसु किड्ड तुयट्ट प्रणाचार कितिकम्म च पडिच्छति कितिकम्मं तु पडिन्छति कितिकम्मस्स य करणे किमणभन्वं गिण्हसि किरियातीयं रणातु किवणेसु दुबलेसु य किह उप्पण्णो गिलामो किह भिक्खू जयमाणो किह भूतारगुवघातो कि प्रागतऽत्थ ते बिति किं उवघातो धोए कि उवघातो हत्थे किं कारण चंकमणं कि कारणं चमढरणा कि काहामि वरामो कि काहिं ति ममेते कि काहिति मे वेज्जो कि गीयत्थो केवल किं च मए अट्ठो भे? कि दमग्रो हं भंते कि पत्तो गो भुत्त कि पुरण प्रणगारसहायएरण कि पुग्ण जगजीवसुहावहेग कि पेच्छह ? सारिच्छं कि मण्णे गिसिगमणं कि वच्चसि वासंते किं वा कहेज्ज छारा किंचरण पट्टा एपहि १०१४ ३८८८ १६७५ ३८७ ५५२३ ६१८८ ५६७४ ५६६२ ३२३७ ५६७३ ३२३५ २३६७ ४१६० १५८४ ३०८३ ३१०२ ४२६२ १८८५ ३७६४ १९७५ ९६१ ४१०७ ४१०५ ३८.. १६३२ २९८३ १७४१ ३०७६ ४८२० १७८९ ५०३४ ३८६० ३६१३ ५६४२ १६८८ ५६३८ ३०२ ४४८२ २४७२ ४२६० ४८०५ ५२८२ ६३३ २६५४ ६१०१ १२६० ३७१२ ३०४४ २२६३ १०१२ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिशिष्ट कीयकर पि य दुविहं कीय किरणाविय भरसुमोदितं ५४२४ ५६६२ ४८२६ ४४७४ ६०३० ३५८८ ३७४२ ५०२५ ८५० ९६६ ५०२३ १६०६ ३५४६ कीवस्स गोष्णणाम कीवे दुई तेणे कीस ण पाहिह तुन्मे कुन्छादोसा उल्लेण कुन्छितलिंग कुलिंगी कुज्जाव पच्छकम्म कुज्जा वा अभियोग कुट्ठिस्स सक्करादीहि कुतरिया प्रसती कुतित्थ-कुसत्येसू कुत्तीय-सिणिण्हग कुलमादिकज्ज दंडिय कुलवंसम्मि पहीणे ४६५० ४०२८ ४२७२ ३२४७ ४२८७ ४३४५ केवल मरणोहि बोद्दस केवलवज्जेसु तु प्रतिसएसु केवलविणे प्रत्ये ५१६४ केसव-प्रद्धबलं पण्णाति केसि चि अभिग्गहिता ६२४ केसि चि एवं वाती केसि चि होतऽमोहा को माउरस्स कालो कोई तत्थ भणेज्जा कोउग-भूतीकम्म ३८६५ कोउय-भूतीकम्मे ३७५० कोउहलं च गमणं को गेण्हति गीयत्थो ४०३३ को जागति केरिसमो ३८६६ कोटुगमादिसु रन्ने ४६४८ कोट्रागारा य तहा ५२५४ कोट्टिय छण्णे उदिट्ट कोट्ठियमादीएसु कोणयमादी भेदो कोणामेकमणेगा को दोसो को दोसो को दोसो दोहि भिषणे कोद्दवपलालमादी कोम्मि पिता पुत्ता ३८३८ को पोरिसीए काले कोभते परियामो १७२८ ३३५३ ५८५८ ९३४ २२४२ २३५१ १०६६ ४२७३ ५८५४ ४०२६ २४५५ ८७२ २५३४ ४०४७ ४२७२ ४७७४ १२२६ ६४०६ ५०८ १२०८ ३४१६ ४८४६ २८७१ E८६ ८४२ ४००० कुलसंथवो तु तेसिं कुलियं तु होइ कुर्ड कुलियादि ठाणा खलु कुवरणय पत्थर लेट्लू कुसमादि प्रमुसिराई कुसलविभागसरिसमो कुचित सल्ले मालागारे कुभार-लोहकारेहि कूयति मदिज्जमाणे कूयरदंसमसोससीता कूरोणासेइ खुषं केइत्य भुत्तभोई केइत्य भुत्तभोगी केई परिसहेहि केई पुव्वणिसिद्धा केण पुण कारणेणं केणुवसमिमो सड्ढ़ो केयि महाभावेणं केलासभवणे एतें केवइय आस-हत्थी केवल मणप्पज्जवरणारिगणो ४०१५ ३५४३ ५६३६ ३७८६ ५१०४ २५४७ ३९२३ २६२ ५८२३ २०७० ६५८४ २२६४ ३०३७ ४२६० ५६६६ २४५६ १९३८ २४५६ ६४२५ ५८० १४५० ४४२७ २३६६ ६४६७ कोमुति णिसा य पवरा कोयी मज्जगागविही कोला उ घुग्गा तेसि कोलालियावग्गा खलु कोल्लतिरे वत्थव्वो कोल्लपरंपरसंकलिया को वा तहा समत्यो को दोच्छिति गेलो कोसग गहरक्खट्टा कोसंबाऽऽहारकए १३४६ ५४२७ ३०६५ ३४३३ १९६४ २८८५ ३२७५ ४८३३ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यभूमि निशीथ सूत्र कोसाऽहि- सल्ल-कंट कोहा गोगादीi कोहा वलवागम्भ कोहाई परिणामा कोहातिसमभिभू कोहादी मच्छरता कोण ग एसपिया कोहेण व मारणेण व 31 कोहो बलवा ग खम्गडे उवहते anमाणे कायवst वत्तियमादी ठारगा खादाणि य गेहे स्वमप्रोसि ग्राममोरणं मोहतिगच्छा लमरणेग्ग खामियं वा समरणे वेयावच्चे सय उवसम मीसं पि य खरए खरिया सुहा खर- फरुस-रिगट्ठरं खर- फरुस - रिगट्ठराई खरंटर भी रुट्ठो खरिया महिडिगरिया खगे एक्को बंधो खल्लाडगम्मि खडुगा खंडे पत्ते तह दम्भ स्वतादिसिद्धदेते संतिखमं मद्दवियं खते व भूरणते वा खंधकररणी चउहत्थ वित्थरा संघादी ठारणा खलु खंधारभया शासति धाराती गा खंबे दुवार जति घो खलु पायारो वागमादी मूलं ३४३७ ३२८ ४४०८ ४२६५ ३५६ ३५५ २६३ ३४० ३१६ २६६६ ४५८१ ६२४ २५६७ ३१८६ ६२५४ ३३६८ ३६६० २७ ५४३० ४०५० २६१४ २८१७ ६६२५ ५१७८ ६३८ ६४१३ १६८२ १३६५ ३१०५ १३६२ १४०७ ४२७५. १३३२ १३५३ १५२५ ४२७६ ३१० २८५० ४५५७ ५७५० २५२८ २१८६ ४६२६ ४६२६ ४०६१ ५५६ ५७६ ६३७३ लालू कंटग - विसमे बामित विउसविताइं तिम्मि बेतियेस्ता सिप्पं मरेज्ज मारेज्ज शिवणे वि अपावंतो खिसा खलु प्रोमम्मी सीर-दधिमादीहि सीर- दहीमादीण भ सीर- दुम-हे पंथे सीराहारो रोमति सीरुहोद जिलेबी सीरोदणे य दब्बे. सुज्जाई ठारणा ससु डुग ! जरणरणी ते मता गुडागसमोसरणेमु गुड्डी थेराणप्पे बेतस्स उ पडिहा बहिता व आ सेत्तमहायरणजोगं तं गतो य भवि सेतं जं बालादी सेतो खेत्तबहिया ततो वेिसरणादी बेत्ता जोयल-बुड्डी खेत्तारक्खिनिवेयरण खेत्तोऽयं कालोऽयं तेत्तोवiपयाए सेल वात- रिणवा सेवे सेवेलडुगा मोडादिभंगग्गह नम्रग दंडिवलित्तग गच्छम्हणे गच्छो गच्छपरिरक्खरगट्ठा गच्छम्म एस कप्पो गच्छम्मिय पट्ठविते गच्छसि ण ताव कालो गच्छसि रा ताव गच्छं ग ५८३० == ५४८६ ४२८६ ४७७५ २६३८ २२५३ ४१८१ ४५७५ १९८४ २४५१ ३००१ ८५६ ३४६६ ५६६६ २६४२ ४७२६ २६६२ ५५३१ ४८१७ ५५०५ १२७३ ४०४० ६२६५ ७८२ ३४१३ ४३६६ १६२७ २०१६ ४७७ १५१ ४३७७ २३१ ३८५२ २६०४ ३०७ ६०७५ ८५७ ३१३ ४००७ ་་་་ ११६ ५३०० २१८८ ३०७५ ५५३८ ६५८ ५४०८ २८६५ ४५४२ १५८३ ५७८२ ६०८४ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिन्टि ७८५ २७९६ ४५३ ६४. २५३५ १६. ३२.६ मच्छता तु दिवसतो गचा परिणग्नवस्ता गच्चायुकंपगट्ठा गनुतरखवग्ने गच्छे अपारमिय गन्छ करोडादी गच्छो महानुभागो गच्छो य दोष्णि मासे गचितमस्त एतो गणणाए पमाणेण य ३२८३ १६२६ २८०२ ५२७८ २४२७ ३७२४ ३३५४ २१६५ ५७८५ ५८२५ २४७६ २६३५ महणं तु भषाकरए महमि गिहिरणं गहणाईया दोसा महणे पक्समिय महिए व प्रगहिए वा महितम्मि पसरते गहितं च तेहि उदगं ५७६८ महिते उ पगासमुहे ३९८९ यहिते यहितेहिं दोहि गुरुणां गंगाती सक्कमया ४०.२ गंठीचेदगपहियजगदम्बहारी गंग्पोसिते बहुएहि ५८३१ गंव परतियंसि २४११ गंगदिएसु किमिए गंडी कच्चवि मुट्ठी मंडी-कोड-सयादी १०३० गंतब्बदेसरागी ६०९. गंतब्यस्सन कालो गंतव्योसह-पडिलेह गंतुविजामंतण गंतूरण पडिनियत्ते ५१४५ गंतूण परविदेसं गंधव्यगट्टाउज्जस्स गंधव्य दिसा विजुग गंधारगिरी देवय गंभीरविसदफुडमधुरगाहमो ३०७८ गंभीरे तसपागा गाउय दुगुणादुगुणं ३७२१ ६१३० १५०५ १५१० ४००० ३८१४ ३८१६ ४८९२ २६१८ ३८२२ १०२४ ३०६७ ४८८६ ५६५६ ८५५ ८५६ ४५८ गणणा पमाणेण व गरणभत्तं समवामो गरिण प्रायरिए सपयं गरिपरिणसरिसो उमेरो गणि रिणसिरणे परगणे गणि रिणसिरग्मि उवही गरिण-पता-पीयगरिणवायते बहुसुते गरिएसद्दमाइमहितो गति ठाण भासमावे गति-भास-अंग-कडि-पट्टि गती भवे पच्चवलोइयं च गम्भे कौते पणए गमणादि अपडिलेहा गमरणादि शंत-मुम्मुर गमणादी रूवमरूववं गमणे जो जुत्तगती गम्भीरविसदफुडमधुरगाहो गम्मति कारणजाते गल-कूड-पासमादी गविसण गहिए पालोय गविय कोहे बिसएसु गल्वेण ते उद्दिष्पा गब्वो रिणम्मद्दवता गहण गवेसण भोयण गहणं च जारणएणं गहरणं च संजयस्स १८५० ४०६३ २२३८ ३८७५ ६०८८ ३१८४ २६०१ ६२०२ ३५६६ ३५६८ ३६७६ २५२२ २३२ ४३२६ ५६६९ ५३६ १६६६ १८०५ २६०५ ३११० ५६२८ ४०२३ १५२ १७६ ३४६६ २१४ ५३८५ ५३८७ २६०८ ४१३१ ६२४ गाडुत्तं गृहणकरं ३८५६ गामपहादी ठारणा गामभासे बदरी गाममहादी ठाणा गामवहादी ठाणा ४१७६ ४१३ १२४७ ३५८१ ५२६८ ४१२६ ४१३० Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभापणि निशीथसूच २००४ मीयत्वमहलेणं ४१२८ ४०७० ४१०८ ३८३२ ३६२४ ५५५६ ५२८३ ३०३५ ५५६३ ४८८४ ४०. ५४६२ १.२२ १८४७ ४६४६ मामाइ-सम्णिवेसा गामारण दोन्ह बेरं गामादी ठाणा बसु गामेय कुन्छियमकुचिते गारवकारणवेत्ताइयो गावी उट्टी महिसी गावी पीता वासी गाह गिहं तस्स पती गाहेइ जलामो पलं गिम्हति णिसीतितुवा गिव्हते चिट्टते गिण्हामो प्रतिरेगं गिम्हातिकालपाणग गिम्हासु चउ पडला गिम्हासु तिष्णि पहला गिम्हासु पंच पडला गिरिजमगगमादीसु य गिरिजत्तपट्टियाणं गिरिजत्ता गयगहणी गिरिणदि पुण्गा वाला गिरिपडणादी मरणा गिह वच्चं पेरंता गिहि अण्णतिस्थि गिहि-पण्यतिथिएहि व गिहि-अण्णतित्थियारण व २०७१ ६५८५ ५४५६ ५४६० ३७७६ मीयत्वदुल्लमंस ५३१७ २३६१ मीयत्वममीयत्वं ५९८३ मीयत्वविहारातो १०३४ मीयत्वस्स वि एवं ६५१४ मीयत्वे मारण्यणं १०८२ गीयस्थे मेसिजति मीयत्वेण सयं वा ५६१८ गीयत्वेसु वि भयरणा गीयत्यो जतगाए ४५५५ गीयमगीमो गीमो २४१३ ५७६८ ३६५ गोयमगीतागीते ५७६७ ३६७४ गीयाण व मीसारण व ५७६९ ___३९७६ गुज्मंग-वयण-कक्खोर ३४०३ २०५५ गुणनिप्फत्ती बहुगी य २५६५ गुणपरिवुद्धिणिमित्तं २५६६ गुणसयसहस्सकलियं ४२३६ ५६४६ गुणसंपरेण पच्छा ३८०१ गुणसंयवेण पुल्चि १५३५ ३२१६ गुत्ता गुत्तदुवारा गुत्तो पुरण जो साधू ५७७१ गुरुमो पउलहु पउगुरु ४११२ गुरु गणिणिपादमूलं ४२८८ ४३०८ गुरु पाउणए दुव्वल ६२६१ गुरुवचइया भासायणा ६०४७ गुरुसज्मिलए समतिए गुरुगा प्राणालोके. ३३०५ गुरुगा उ समोसरणे गुरुगा पुण कोडुबे ४३६२ गुरुगा य गुरू-गिलाणे गुरुगो जावज्जीवं ४०४६ गुरुणो व अप्परगो वा २४७७ गुग्विरिण बालवच्छा य ६३२८ गूढसिरागं पत्तं ६५२५ गेण्हण कडणववहारो ५३५ गेण्हणे गुरुगा छम्मासा ३४५५ १८२७ गेण्हणे गुरुगा छम्मास ५५६१ १७५३ ४५३८ १०२४ ५४३८ १०४८ १०४६ २४५७ २०५८ ४००८ ५४२१ ३१२२ २७०४ २४१४ ५८३२ २६४ ५५१८ ५७१० ३३५ ४७५२ ५८३३ २६८६ ३६०७ ३५०८ ૪૨૭ ४५२. ३३७५ ४७६२ ५९४ ४००६ गिहिमण्णतित्थियाणं गिहि-कुल-पाणागारे गिहिणं भूलगुणेसू गिहिणात पिसीय सिंगे गिहिरिणक्खमणपवेसे गिहिरणोऽवरज्झमाणे गिहिमत्ते जो उ गमो गिहिसहितो वा संका गिहिसंजयअहिकरणे गीमो विकोवितो खलु गीतारिण य पढितारिण म गीयत्यग्गहरणेणं ३८३ ५१७४ ६०४ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिमिट गोवालवच्छवाला ३२७० ४३०१ ४५५० ३३७८ गेव्हणे गुरुगा समास गेव्हह वीसं पाते गेण्हंति वारएणं गेण्हतेसु थ दो वि गेरुय वणिय सेडिय गेलण्णतुल्ल गुरुगा मेलम्गद्धारगो, मे गेलगामरणमाठी गेसम्णमुत्तम? गेलण्ण रायदुई १२.४ ५२६६ १८४६ ६३७१ ४६२१ ४७७७ १५४७ १४५ १५६६ १५७४ १५८१ घणकुडा सकवाडा धरण-मसिणं निरुवहतं पणं मूले चिरं माझे बट्टण-रेणुविरणासो पट्टितसंठविताए २४५५ २०५६ ६४९३८८२ ५८.. ३९७७ २६४६ ७१५ ७२३ १०५८ पट्टितसंठविते वा २४७५ ५३८० ४५१५ पट्टे सच्चितं पट्टितसंठविताणं पतसतूदिट्ठतो षयकुडवो य जिरणस्सा घरघूमोसहकज्जे परसंताणग-पणगे सणे हत्थुवधातो १८६३ ७१८ १४३६ .. गेलपण-रोह-असिवे गेलगण वास महिता गेलण वास महिया गेलण्ण सुत्त जोए गेलण्णं पिय विहं गेलण्णं मे कीरति गेलण्णमणागाढे गोच्छयपादट्ठवणं . गोणादि कालभूमी गोगादी व अभिहणे गोगादीवाचाते. गोणे य साणमाती १९५१ १९५६ ४६८६ ४८८७ ५६३१ १६०४ ५८०६ ६१४० ३७२६ ४५६५ २६६३ ११०५ ५८५८ बेतु समयसमत्यो १०२५ घेतूणऽमारलिंग बेतण रिणसि पलायण घेतूण दोणि वि दवे घेत्तूरण भोयणदुर्ग घेत्तरण य मागमणं पेप्पति च-सद्देणं ४८०० ३३५२ घोडेहि व धुत्तेहि व ६४६८ १७१३ २३७० ५२७३ ५३८६ ३६६१ चउकम्पम्मि रहस्से चउगुरुग छच्च लहु __ चउ गुरुग छुच्च लहु गुरु ३८९८ २४७८ गोविन्दज्जो गाणे गोमंडलवन्नादी गोमियमहणं अण्णे गोयरमगोयरे वा गोयरमचित्तभोयरण गोरसभावियपोते गोवय उच्छेत्तं भति गोवाइतूर्ण वसधिं गोवालए य भतए ४८०२ ९७१ ४०४८ ३७४९ ३४४० ४५०२ २२१० ५१२८ ६६४० २२१४ २५२१ २८९२ चउ गुरुगं मासो या चउगुरुगा छग्गुरुगा पउगुरु चउलहु सुद्धो पउत्थपदं तु विदिण्णं चउपादा तेइच्छा उफल पोत्ति सीसे . ५२० २५८६ ३५२३ ४५०१ १५२७ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समावलि निसीपसूत्र ४८१ ९८१ पत्तारि महाकाए ५८१६ ५७८६ पत्तारि उ उस्कोसा बत्तारि छप लहु गुरु ३९६६ ૨૯૪ २४७७ पउमंगो गहरणपक्सेवए पउभंगो दाणगहणे उमंगो रातिमोयणे. चउभागवसेसाए पउभागसेसाए पउमूल पंचमूला पउरंगवग्गुरापरिखुढो चउरंगुलं वितत्वी चउरो मरुग विदेसं चउरो य गुंगिया सलु चउरो लहुगा. गुरुगा ३४२६ ३८२८ ३९८२ ४८४१ २१४३ ३३९७ १४२६ १८५८ ५२८६ ४००५ ५८०५ ४८७४ ३७०७ ३०६३ ३०६५ ३०६७ ५१८४ ३१२० २२१६ पत्तारि य उगवाया २२०६ ३०६९ ५१२७ ५१२० ५१२२ ५१८२ ३८२४ ३२३६ ५६५० १४१५ २४७७ २४७१ २४७३ २५३६ ४२६४ ३०५८ ४०६८ घउ लहुगा चउ गुरुगा बउलहुगादी मूलं २८८२ ३४३० १०८३ ५५६६ २२०३ ४९३५ १०३६ ३१६२ ५४६५ ५४४० ६६७६ २०४२ १९९१ चत्तारि विचित्ताइ बत्तारि समोसरणे चम्मकरण सत्यादी २५३८ चम्मतिगं पट्टदुगं १६६१ चम्मम्मि सलोमम्मी चम्मादि लोहगहणं चरगादिणियट्टे सुं चरण-करण-परिहाणे १०७२ चरित? देस दुविहा परित्तम्मि असंतम्मि चरिमे वि होइ जयणा चरिमोपरिणत कह६६८ चरू करेमि इहरा चंक्रममावडणे १९५६ चंकमरणं पिल्लेवण २५२१ चंकमरगादी उट्टण चंकम्मियं ठियं जंपियं १९७४ चंदगुत्तपपुत्तोय चंदिमसूरुवरागे चंदुज्जोए को दोसो चंपा मरणंगसेको चंपा महरा वाणारसी २८३३ चाउम्मासातीतं चाउम्मासुक्कोसे पउवग्गो विहु मच्छर पउसट्ठीपगारेणं पउसु कसातेसु गती चउहा रिगसीहकप्पो चक्कागं भज्जमाणस्स चक्की वीसतिभागं बहुग सराव कंसिय चतुगुरुगा छग्गुरुगा चतुगुरुगादी छेदो चतुपाया तेइच्छा चतुभंगे चतुगुरुगा चतुरंगुलप्पमाणं चतुरंगुलप्पमाणा चतुरेते करणेणं चतुरो य दिग्विया भागा चतुसुमहामहेसु चत्तकलहो वि ण पढति चत्ताए बीस पणतीस चत्तारि प्रधाकडए २३९५ ४८२८ २३५५ ३०६० ५१७१ २२०४ ३०७५ १६३७ १९३२ १५६ १०१२ ५०८८ ३४९० १५१६ ५३२१ ६३३१ ५३३ ५७४५ २५६८ २६४ २८६१ ३४०६ ३१८२ २५६० ३८८८ २७६० ६४७६ ७५७ ६५५ १४३४ ४०७३ ५००५ ५८६२ १८३० ४०३१ २४२ चाउल उण्होदग तुवर ४०३७ Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ २४६१ २५११ चोयं तु होति होरो २०६६ पोरया मावीमो ६३१५ पोरोति कलुबुल्बोरियो २२१ ४२६१ २३६१ चकाए व साति छक्कापावर पिसने ३१७१ ३९८२ ३३६९ २७७० २७७१ ३३७० ७३७ ३६७४ २७७१ बाकायविराहणता बाकायसमारंभो बकायारण विराषण ५७६१ ४०५४ छक्कायारण विराहरण चाककपुन्छालामा चार भड घोड मेंठा चारिय-बोराभिमरा चारिय-चोराहिमरा चारे वेरज्जे वा चिक्खल वास असिवातिएम चिट्ठरिणसिय तुपट्टे चितेंतो वइगादी चित्तं जीवो भणितो चित्ते य विचित्ते य चिधेहि मागमेत्तु चीयत्त कक्कडी कोउ चुणणखतरादि दा चुल्लुक्खलियं डोए चेइय-सावग पवति चेयरणमचित्तदग्वे चेयरगमचेयरणं वा चोएति रागदोसे चोदग एताएच्चिय चोदग कण्णसुहेसु चोदग दुविधा प्रसती चोदग पुरिसा दुविहा चोदग मा गद्दभति चोदग मारगुसरिण? चोदग वयरणं अप्पारणकपितो चोदावेति गुरूण व चोदेति प्रजीवत्ते चोदेति धरिज्जंते चोदेति रागदोसे चोदेति से परिवार चोदेती वणकाए चोद्दसगं पणुवीसा चोद्दसमे उद्देसे चोद्दस वासारिण तया चोद्दस सोलस वासा चोद्दा दो वाससया चोयग गुरुपडिसिद्ध चोयग रिणयतं चिय चोयगपुच्छा गमणे ३४६८ ३२६१ ५३२५ ५४६० ४२५६ २००१ १३३७ ४६१४ ५४१८ ८०० २५७८ ६३१० ३३४६ २८३३ ५८७६ ४७०५ ५८७६ ६५१८ ६४०० ६१५८ ४१८७ ५५५६ ४८४६ ४१५३ ६५५३ ६२७० ४८३६ ५६०१ ६०२७ ५६११ १६७४ १८५७ १८६७ १८६२ ३१२५ २७३६ ४०५१ ५६४० ३०५६ ६६५२ खच्च सया चोयाला छटुट्ठमादिएहिं ५३०६ छटुवत-विराषणता ५४५५ छट्टापविरहियं वा १८६ ५२७५ छहाणा जा गितिमो ५४८७ ५४८८ २७४९ ५५८७ २७५० ५५८८ ५८२ १३२३ १५४२ ४६३५ ४८५० १९० छट्टो य सत्तमो या ६७६ छड्डणे काउड्डाहो ४०७६ - छड्डावरण पंतावरण छड्डावित-कतवंडे छड्डेऊरण जति गता छड्डेति तो य दोणं छरिणयाऽवसेसएणं २८.३ छण्ण-वह-गट्ट-मरणे ९८३ छण्णे उड्डो व कतो १६१४ छण्णेतरं च लेहो १३२५ ५६७८ ६०६८ ६५८ १२६५ २२६१ ४८४३ ३०११ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समावलि निसीपसून ४३ ४२१३ ४५३० ३८६२ २५३३ २५१ ५०२ ६५३६ xcx रामगं बले बलातो हमाणे पंचकिरिवा वेदरणपत्तन्वेने छेवणे भेदले व छेदतिगं मूलतिगं छेवसुतरिणसीहादी वेवादी पारोवण छेदो घग्गुरु महवा छेदो खग्गुरु बल्लहु खेदो मूलं सहा ४. २६५ ४७८५ ५८६६ ४६६२ ३६३५ ३१०३ ४ २९१४ २५२२ २६२१ २२४१ ३४६२ २२१५ २२१७ ५१७२ ५१८५ ६१८४ २५३६ ४२९ ५४५३ ६२०७ ३१०० छेयसुयमुत्तमसुयं १९९८ ५४५२ ३१५७ २४६३ २०६८. बलं एक पात बत्तीसगुणसमण्णामएण बदोसायतणे पुण बपश्यपणगरक्सा बपति दोसा जग्मण बमुरिसा मग्म पुरे बामागकए हत्ये सम्मागकरं का बम्मासकरणजड्डे बम्मासा पायरिमो बमासादि वहते सम्मासियपारणए छम्मासे प्रपूरतो धम्मासे अपूरेता छम्मासे पायरियो सम्मासे उवसंपद बल्सहुगादी चरिम छल्सहुगा य गियते छल्लहुगे ठाति थेरी छवाससयाई नवुत्तराई यहि गिप्पज्जति सोक छहि दिवेसेहि गतेहिं चंदणिरुत्तं सई खंदं विधी विकप्पं चंदिय गहिय गुरुरणं - बंदिय सइंगयारण व छंदो गम्मागम छादेती परतुकुइए छायस्स पिवासस्स व चारो तु अपुजकडो छिण्णमछिण्णा काले छिण्णमचिण्णे दुविहे छिण्णमछिण्णे व धरणे छिण्णं परिकम्मितं खलु छिण्णण पछिण्णण व छिण्णो दिट्ठमदिट्ठो छिहली तु परिणच्छंतो छिदंतमछिदंता कुन्भरण सिंचरण बोलण २२०५ ३०६ ५३३५ ५६१७ ४८३७ ६५४६ ४३५८ ३४३७ १०५३ जइ अत्यि पविहारो ६०७७ जइ अंतो वाषातो २४१० जइउमलाभे गहणं जइ उस्सग्गे रण कुरणइ जइ ताव पलंबा जइ ताव सावताकुल जह देंतजाइया जा बइ पुरण पायरिएहि ५१५८ जइ पुरण पुरिमं संघ २८५६ जइ भणति लोइयं तू जइ वि य ता पन्जत्ता ४०८८ जइ सव्वसो प्रभावो जड्डे खग्गे महिसे २१. ४९१६ ३६१२ १९७२ ४५५३ २६७० १०३८ ४४४७ २९७६ ३५८२ ३४०४ १४०४ २६२३ २०२ ३४७१ १६३७ १६३८ ५६३२ १५५६ १५६० ५७१ १५३६ २०३४ ४५०६ ३७२२ ४०२६ ५६४६ ४५१० ३६१२ ३५१३ ४२१७ २५६१ १६८३ जड्डे महिसे चारी जड्डो जं वा तं वा जणपुरतो फासुएणं जण रहिते दुज्जाणे ३०५२ जणलावो परग्गामे जण सावगारण खिसण ५१७६ जण्णव छिदियव्वं जति प्रकसिरणस्स गहणं जति प्रगगिणा तु दड्डा ५२६१ ४१७६ ४४७१ ७६६ ६४३ ३८७३ Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रय परिषद ५४२६ ३३२९ ६६८९ ४६६१ ६६९१ ३४१२ ३४११ २८६४ २०६३ ४२ २९३७ ५२०० ३८५५ पति मच्छती तुसिरिणमो १०३१ जति उस्सगे ण कुरणति ५३९२ अति एक्कमारणजिमित्ता ५९४१ जति एते एव दोसा ४५१५ जति एयविपर्णा ४१६४ अति एवं संसटुं ४१८९ जति कालगता गणिणी १७०९ जति कुसलप्पियातो ४८७२ जति गहणा तति मासा १८७ अति छिडा तति मासा २३६ अति जग्गंति सुविहिता. ११४८ जति जं पुरतो कीरति ४०६० जति जीविहिति जति वा ४५६६ जति गाम पुष्य सुद ४६७२ अति णिक्खिवती दिवसे १६०३ जति णेतु एतुमारणा ५४८४ जति ताव पिहुगमादी ४१४५ जति ताव मम्मपरिषट्टियस्स ४२८५ अति ताव लोतियगुरुस्स जति ता सरणप्फतीसू ५१६२ जति तरण मासिएहि ४६७६ अति ते जगणे मूलं . २१७ जति तेसि जीवाणं ४००७ जति दिटुता सिटी ४८६५ अति दोण्ह चेव गहरणं ४५४५ अति पत्ता तु निसीधे २४७० जति परो पडिसेविज्जा २७५२ जति पुरण गच्छंताणं ६१२० जति पुण तेण ण विट्ठा २७१६ जति पुरण पव्वावेति ४९२६ अति पुरण पुव्वं सुख ४६५६ पति पुरण सम्वो वि ठितो ५१३३ जति पोरिसिइत्ता तं . ४१५० जति फुसति तहिं तु ६१०० जति भागगया मत्ता अतिमि (मि) भवे मारुवणा ६४०५ जति भोयणमावहती ५८६७ . जति मं जाणह सामि ५७५५ अति मूलग्गपलंबा ४७०४ पति रज्जातो भट्ठो अति रम्पो मनाए जति रिक्को तो दवमतगम्मि जति वा पिरतीचारा जति वा बज्झति सातं ५२८० जति विण होज्ज भवामो ५३०८ जति वि रिणबंधो सुसे ३७३१ जति वियतुल्लाभिधारणा बति विय पिवीलगादी जति वि य फासुगदव्वं जति विय विसोधिकोडी ३५२६ अति वि य समरणम्पाता १८१७ अति सब्वे गीतस्था जति सब्वे वय इत्यी जति संसिउं एकप्पति जति सि कम्जसमत्ती ५३८६ जतिहि-गुणा भारोवणा जत्तियमिता वारा ५३०५ असियमेता वारा २५४६ जत्तियमेत्ते दिवसे जत्तुग्गंतरादीणं ३८३० जत्तो कुतो विहारो १००४ जत्तो दुस्सीला खसु जत्य मषिता पुढवी बस्य उण होज्ज संका ५७३८ जस्य उ दुरूवहीणा जत्य उ देसग्गहणं १०६३ अत्यतु ण वि लग्गंति जत्य तु देसग्गहणं जत्य पवातो दीसति २४८३ जत्व पुण महाकडए ५२७२ जत्य पुण होति चिन्न जत्य वि य गंतुकामा २५१५ जत्थ विसेसं जाणंति ४०७३ अत्याइण्णं सम्ब जदि एगस्स उ दोसा जदि एतविप्पहूणा अदि तेसि तेण विणा १३६७ ६४८७ ६२२ ४००८ ४५४१ १६०२ २५६३ ५४९ २४६० ४२४० ४६८५ ६४५६ ५३६६ २०६५ ३३२५ २७६ ३३२५ ५२४३ ३८०२ ३७२५ ३३८७ ३४५७ ६.१ ४०६३ २७८८ २६१. ३२८६ ४१५८ ११३. Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाध्यणि निसीयसूत्र ४८५ ५३४५ अदि दोसा भवतेते जदि सब्वं उद्दिसिङ जब मातरो से दीसह जम्मण-णिक्खमणेसु य अम्हा तु हत्यमत्तेहि जम्हा घरेति सेज्वं जम्हा पढमे मूलं ५१५५ ३९४६ ३६७३ ३५७८ ४५७ ३८६३ ६३६२ ३५४८ ३५१६ २९५० २९७१ ५८४५ १८७३ ६५६७ ६४२३ ६५६८ जयमाणपरिहवेत जरजजरो उ थेरो जर-सास-कास-डाहे जलजाग्रो प्रसंपतिम जल-थल-पहे य रयगा जलदोगमदभारं जलमूए एलमूए जलसंभमे थलादिसु. जल्समलपंकितारण पल्लो तु होति कमढं जवमझ मुरियवंसो जस्स मूलस्स भग्गस्स ३९७२ ५८८१ ५९६ ४०५६ ६४१ बह वह पएसिरिंग २६६६ जह साम मसीकोसी १४४२ जह ते गोट्ठाणे ५७३५ ३२६६ जह पढमपाउसम्मी जह पारमो तह गरणी ११४२ ३५२४ बह बालो जपतो ५१३१ २४८१ ५१७३ जह भरिणतो तह उद्वितो ५१८६ ___जह भरिणतो तह चिट्ठइ जह भरिणय चउत्थस्सा जह भमर-महयर-गरणा ३६४७ . जह मण्णे एगमा सयं ५३२८ २४०२ जह मण्णे दसम २६६२ ५८५७ जह मण्णे बहसो ४२६५ ३६२६ ब्रह मोहप्पगडीरणं २४०६ जहऽवंती सुकुमालो जह सपरिकम्मलंमे १५२२ जह सरणमुवगयारणं ५७४७ ३२७८ जह सा बत्तीसषडा ४८२४ ६६६ जह सुकुसलो वि वेजो ४८३० जह सो कालासगवेसिउ ४८३१ ९७१ जह सो वंसिपदेसे ४८३२ ६७२ जह हास-खेड्ड प्राकार २१४६ जह हेमो तु कुमारो ४२४५ ५६५५ जहि अप्पतरा दोसा ५२१८ २५७३ जहियं एसपदोसा ३७६६ जहि लहुगा तहि गुरुगा ३८४१ जं अज्जियं चरित ४७४८ जं मज्जियं समीखल्लएहिं जं एत्य सव्व भम्हे २७५ ज कट्ठकम्मादिसु जं कि चि भवे वत्वं जं गहितं तं महितं ५२२० २५७५ जं गंधरसोवेतं २११२ जंगारणगारत २०३ जं च बीएसु पंचाहो ५२१७ २५७२ जंच महाकप्पसुयं जस्स मूलस्स सारातो २५४३ २५४६ ३६७४ ३८६० ३६७० ३६७१ ५१८६ ३५७५ ५१६६ ५५४० ४७३८ २७६३ २७६२ ३०३६ ५१०० ५०६० ४७५५ ११०४ २६४६ -१५८८ जस्सेते संभोगा वह कारणम्मि पुण्णे जह कारणम्मि पुरिसे जह कारणे भगाहारो जह कारणे सलोमं जह चेव अण्णगहणे जह चेव मुट्ठाणे जह चेव पुढविमादी जह चेव य प्रवाणे जह चेव य माहच्चा जह चेव य इत्पीसु जह चेव य कितिकम्मे जह चेव य पुढवीए जह चेव य पुरिसेसू २११७ २७१५ २७१४ १९४० २४५२ २८३५ ८९७ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिणा ११२१ २६२५ १२२ ४८२४ ७१८ . जंव पहाणे जंव सुम्मिसुत्ते जं चोद्दसपुवपरा अंधेदेणेगेणं जंजमि होइ कामे जं जं सुयमत्यो वा जं बारिसयं वत्वं जं जस्स जियं सामारियम्मि जं जस्स वि वत्वं जं जह सुते मरिणयं जहिता काए जं होज प्रभोज ९६५ जं होति प्रज्ज होति अप्पगासं अंगिय-मंगिय-सराय ७५५ षडा संघट्टो ७५९ ४२२६ ५२३३ ३२७ ४६९३ २३४३ जंण सरति पडिबुद्धो जतं शिम्बापातं ४३०३ ८२. ६२३ ३३८२ जंधातारिम कत्यह ६१५ अंबाहीणे प्रोमे ३३१५ जा इतवत्था दमुए जा एगदेसेरण दहा उ भंडी जा कामाहा सा जा चिट्ठा सा सव्या जा जेण व तेण बधा जा जेण होति वष्णेण जागरह गगरा पिच्चं जागरंतमजीरादी जारिता पम्मीरणं जाह जेरण हडो सो २९३० जाणंति एसणं वा ५३८२ जाणतेरण वि एवं जाणतो मसुजाणति जागरणामि णाम एतं जारिणति इंति तावन्दणे जाता प्रणाहसाला जा ताव ठवेमि वए य जाति कुल रूव भासा जंतं तु सकिलिट्ट जंते असंचरंता तेरण कतेण बचत तम जं पुरण खुहापसमणे पुण पढमं वत्वं वं पुरण सच्चित्तादी 5 पुग्धकतमुहं वा जं पुम्वं णितियं खलु पुष पडिसिद्ध ४६३५ २४२३ ४३०४ ५३०३ १५६८ ५३०६ १३७१ ४६०४ ३८६१ २५७५ २१५६ ३७९० ५०८५ ५४७७ ६८९ .४३५२ ५२४६ ५३६९ बं बहुधा छिज्जतं चंभिक्खू वत्यादि जं माप्रति मिति जं मायति तं बुमति जं लहुसगं तु फरसं जं बन्चंता काए जंवत्वं जंमिकालम्मि जं वत्वं जंमि वेसम्मि छ वा असहीणं तं जंवा मुक्खत्तस्स उ जं वेलं संसज्जति जं सग्गहम्मि कीरह जं सेवितं तु बितिवं ४६१० ६१८ २८५४ २६३६ ४६२३ ९५२ १५१ २५०४ ३६४९ १३५२ २६०६ २७३२ ४२८४ २९२८ ३७०६ ११९ २६३१ ३८८५ ३८८४ ३५५२ जाति-कुसस्स सरिस जाती कम्मे सिप्पे जाती कहं कुलकह जाती-कुलस्स सरिसं जाती कुलगण कम्मे जाती कुले विमासा जाती य चुंगितो ससु जाती य चुंगितो पुण जा तुपकारण सेवा ३७६३ २७३ ४१२ ४६२२ ४५७० Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समायणि निधीपसूत्र Ye. २६८६ जावेविय कामगता वा पुन्बढिता वा ३३०७ २७२५ .७२१ ४४०२ २०१८ ३११८ ५०२३ ४५२ २९९८ ३,०८१ ३०२८ जीवति मोत्ति वा जीवरहिनो उ देहो जीवरहिते व पेहा जीवा पोग्गलसमया जीहाए विलिहतो जुग-छिड्ड-गालिया जुज्जति हु पगासफुडे जुत्तपमाणस्सऽसती जुत्तप्पमारण अतिरेग जुत्तमदारगमसीले ४३२२ ५८४५, ४०२१ १९.१ १९८० १९३२ १६८२ ४६६१ ४६८३ २६३२ ३०४० ४३२३ २२५१ ३७३७ ३४३५ १९५५ २०३२ ३००६ १००२ ११२३ ४९४० जामातिपुत्तपतिमारणं जामातिय-मंग्वमो बायग्गहणे फासु जायण-रिणमंतरणाए जायसु ण एरिसो हं जायते तु प्रपत्वं बारिसदम्बे इच्छह जारिसयं मेला जाव ठवग उदिवदा जाव ग मंडलिबेला जाव ण मुक्को ताव जावतिएणट्ठो भे जावतियं उवयुज्जति जावतियं वा लम्बति बावतिया उपजति जावंतिगाए लामा जावंतियमुद्देसो जावंति वा परिणया जा समणि संजयाणं जा संजपता जीवेतु जाहे पराझ्या सा जाहे य माहणेहि विदियो घिणी दक्खो विणकप्पिया उ दुविधा जिणकप्पे सुत्ते के जिण पोहस जातीए जिपरिणलेवलपुरए स्वय ३१८६ ४०२० १८६० ३१८४ २०२० १४७२ ५६१८ ६५३२ ३६६२ ३७११ जुत्तं णाम तुमे वायएण जुत्तं सयं ण दाउ जे पादरिसंतत्तो जे कुज्जा बूया वा जे केइ प्रणल दोसा जे चेव कारणा सिकागस्स जे चेव सक्कदाणे जे जत्तिया उबे जहिं मसोयवाद जे जे दोसायतणा जे जे सरिसा धमा बेटा सुदंसण जमालिजेण ण पावति मूलं जेण तु पदेण मुरिणता जेगाहियं ऊणं वा जे ते झोसियसेसा जे ति य मणिद्दे से जे ति व से तिवत्तिव जे पुरण ठिता पकप्पे जे पुण संखडिपेही जे पुव्ववड्ढिता वा जे पुव्वं उवगरणा जे भरिसता उपकप्पे जे भिक्खा जीवपि जे भिक्खू प्रजोगी तु जे भिक्खु प्ररोगत बे भिक्खू प्रसरणादी २३८३ ४१०३ ३३५७ ५५६७ ४८२ ६४८६ २०५८ ६५५०, ६२७३ १३६० ५८८७ ६५०२ ६५६२ ६५७० ६५७४ २३७२ ३७४५ २६७ ७०२ ५६८० ३०१८ ४८०६ जिणपण्णत्ते भावे विलिंगमपडिहतं जिणबयण परिक्कुटुं जिएवयणमासितेरणं जिणवयरणमप्पमेयं जिरणा परसस्वाई जियसत्तु-परवरिवस्त ३६१४ १४०६ २३५२ २३२९ २६५८ ३४७२ ५२५५ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ प्रथम परिशिष्ट ३६६१ ४६५६ जे सूतं प्रवराहा जेसि एसुवदेसो १८३७ ४०८० ४५३२ ४५४२ ३०८४ २१२८ ५००६ ८५१ १९८३ ६०७ . १८१० १६०० इत्थियाए २५४५ उवगरणं . ४२०४ कोवपिंड गाएज्जा ५९८७ गिलारणस्मा ३११४ ६०३७ गिहवतिकुलं १४६५ गिहिमत्ते ४०४२ सुगपिंड ४४६२ जोगपिंड ४४६८ साह-सिहाम्रो १५१४ गातगाई ४६८१ गायगाई ४६७३ लिमित्तपिंड ४४०४ तिगिच्छपिंड ४४३२ तुय ते २१६२ तेगिच्छं ४०५४ दीहाई १६३० दूतिपिंडं ४३६६ ४३७५ पुढविकायं ४०३३ बहमो मासियाइ ६४२० माणपिडं ४४४४ रातीणं २५३६ वएज्जाहि २५२१ वरिणयपिंड वत्थाई ४६८० वत्थादी ४६६० वियर्ड तू ६०४६ सचेलो तू ३७७७ सच्चित्तं ४०३८ सुहुमाई .२१७३ जे मे जाणंति जिणा ३८७३ जे विज्जमंत दोसा ४४६६ जे सुत्तगुणा दुत्ता जो उ उमेहं कुज्जा जो उ रिएसज्जो व गतो जोगमकाउमहाकडे जो गंधो जीवजडो जो गंधो जीवजुए जोगे करणे सरंभमादी जोगे गेलमाम्मिय जो चेव वलियगमो जो चेव य उवधिम्मि जो जतिएण रोगो जो जत्थ प्रचित्तो खलु जो जत्थ होइ कुसलो जो जत्य होइ भग्गो जो जस्म उ उवसमती जो जस्सुवरि तु पभू जो जं काउ समत्यो जो जारिसमो कालो जो जेरण प्रकयपुग्यो जो जे जम्मि ठारम्मि २०१८ ६४०२ ९८६ ३६०० ५४४६ २७७६ धातिपिंड ५४६१ ६६०३ ३८८५ ३३३८ २७५६ ५५६३ ३३४५ ३४०५ २२३६ ५६३७ २८५८ जो जेए पगारेणं जोण्हा-मणी पतीवे जोगी वीए य तहिं जो तस्स सरिसगस्स तु जो तं संबद्ध वा जो तं तु सयं रणेती जोतिसनिमित्तमादी जो तु अमज्जाइल्ले जो तु गुणो दोसकरो जो पुरण अपुवगहरणे जो पुरण उभयावतो ५२५६ ५८७७ ४३३६ २७४६ ५५८४ ३६३६ ५४८४ जो पुरण करणे जड्डो जो पुरण चोइज्जतो जो पुरण तटाणामो जो पुरण तं मत्थं वा ४०८ २६५६ ५८५४ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभापरिण निशीपसूत्र जो मागहलो पत्थो ६६२B ५८६१ २४६७ ४८३३ गरणं वा ठायंती ४०६७ ठाणे नियमा स्वं ठितकप्पम्मि दसविहे ९७३ ठितिकप्पम्मि दसविहे ठितो जदा खेतबहिं सगारो ३०८८ ठियकप्पे परिसेहो ३९५४ ५२६४ ५२६. २५९४ ५९३२ २१४६ १९८१ ४३६५ जो मुदा अभिसित्तो जोयसयं तु गंता जो बच्चतम्मि विधी जो वा वि पेल्लिमो तं यो वि दुवस्य तिवत्यो जो कि य प्रवायसंकी जो वि यावाधिम्णो जो विय होतऽक्कतो जो सो उबगरणगणो जो स्टुस्साहारो वो होज्ज उ असमत्यो ३२३८ ४२६३ ५६७६ ५८०७ ६६६५ ४८०५ ४२३५ ३४५२ १९३६. ६१२३ ५६४५ २१०५ उगलग-समरक्ख कुडमुह उगलच्यारे लेवे म्हरगामम्मि मते ग्हरस्स एते दोसा सहरो अकुलीयो ति य ५८६४ ७७२ ६२१. २७६१ झिरिमरिसुरहिपमरे डहरो एस तव गुरु ८५१ संग विडए वा ४७०३ १७०६ तिगं तु पुरतिगे डियसोभादीमो ३१४० ४३९० १६१७ २०६९ १८८५ ६४३१ ६४८८ १५९७ ठवण कुलाइ ठवेलं बलाए रिएक्लेवो ठपणाकुला तु दुविधा ठवरणाकुले व मुंगति ठवणा तू पच्चित्त ठवरणामत मारोवण ठवणारोवणदिवसे ठवणा बीसिग पक्सिग ठवणा संचयरासी ठवणा होति बहल्या ठागासति प्रचियते ठागासति विदूसुब ठाण-रणसीयण-तुमट्टण ठाण विसीयण-तुयट्टण ठाण-णिसीय-सुभट्टण गण-णिसीय-सुपट्टण उड्ढसर पुष्णमुहो लिंकुण-पिसुगादि सहिं ग ण करेंति भुजितूरणं ण रिणरत्थयमोवसिया ण तस्स वत्यादिसु कोइ संगो ण पमाणं गणो एत्पं रण पमादो कातम्यो ण य वज्जिया य देहो ण य सम्बो वि पमत्तो रवि किं चि माण्णायं ५०१६ ११३६ ६३२६ ६४२७ ६४३४ २२३ ६१५० २६३ ३९३८ ६२६८ १५५ २७४ ५११६ ३०१५ १६९ ६२ ५२४८ ठाण पडिसेवरगाए ठाण-वसही-पसत्ये गणतियं मोतूण ठाणं गमणागमणं ण वि कोइ कि चि पुच्छति ण वि खातियं रण वि वयी २४७० रण वि छ महव्वता ण वि जाणामो रिणमित्तं ण वि य इह परियरगा १६०५ एविय समत्यो सम्बो २३८९ ४०४० ४६०६ ५०६० ६३७८ १७६८ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YE बिसिंग वाला रंग विवित्ता जत्थ मुणी गहु ते दव्वसंलेहं रण हु होति सोयितब्बो उतीए पक्ख तीसा क्से विदिस्तामि ति क्वेरावि हु विज्जति एभ्यासम्म ठो गच्चुप्पइतं दुक्तं पतितं तुम "1 " " -चुप्पतियं युक्रां गज्जं तमरणज्जं ट्ट' होति प्रगीयं गट्ठा पंचफिडिता हित विस्सरिते " 29 27 " "" "? 32 यि विसरिए गत्वि प्रगीयत्यो वा " पत्वि प्रणिदारणं तो गत्थि कहाली मे रात्थि खलु प्रपञ्छिती रणत्थि रग मोल्लं उबनि रणत्थि संकियसंघाडमंडली त्येयं मे जमिच्छह दिकण्हण्णादीने दिकोप्पर चरणं वा दिपूरण वसती रायणे दिट्ठ गहिते ३२११ १६७६ ३८५५ १७१७ ૬૪v૨ ६८१ ४८०४ २४३५ १५१२ १५०३ १५०८ ४१६७ ४२०२ ४३३३ ३५६५ ५१०१ ४३०६ ६६६ ८१३ ८३२ ८४६ १६४५ १९४७ १६५६ ४६८८ १६५४ ५२३१ ५३५४ ४६१२ १३४५ ५१३६ १३८२ ६३५३ ६३५४ ४४७० ४२३३ १७१२ १२६४ यदि सि यणे पूरे दिट्ठ यवज्जिग्रो विह भलं रणव भागकए वत्थे एगव य सया य सहस्सं रणवसोप्रो खलु पुरिसो गवकालवेलसेसे रणवबंभचेरमइम्रो रणवमस्स ततियवत्युं रणवमस्स ततियवत्थू गवसत्तए दसमवित्वरे वंगसोतपडिबोहयाए रणवारणवे विभासा तु रह-दंतादि तरं महारणादि कोउकम्मं गंदंति जेरण तवसंजमेसु गाइ लहुसणं गाकरणमगुणवरणा गाकरण य वोच्छेद 33 " राऊरण य वोच्छेयं " * " ל गागा जलवासीया राग दंसणा "" "" णार रिणमित्तं भद्धारणमेत रारिणमित्तं प्रासेवियं गारगस्स होइ भागी राणादट्ठा forear रंगागादि तिमकडिल्लं खारणादिति गस्सा राणादिसंघट्टा प्रथम परिशिष्ट १२६१ ५३११ ६१८६ ५०८६ ६४७३ २३२४ ६१५६ १ ६५८७ २८७३ ३८८७ ३६५६ १६३ ५०६ ४२८६ ૩૪૬૬ έος २५७१ ६१८३ ६२३८ ६२४१ २७३० २७६३ ५४७८ ५४६६ ५५०० ६१६७ २७८५ १६६६ ३४२७ WE ३८६८ ३८६७ ५४५७ ३६२८ १८८४ ૪૩ २२८४ २६२० ५७३६ २८७६ २६७३ ६५४ . Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वभाष्यवि मिश्रीयसूत्र वारणादी छत्तीसा गागादी परिवुड्ढी कारणायारे पगतं गागाविह उपकरण – गाली ग विरला गाणं लाज्जोया साहू गाणे चरणे परूवणं गाणे दंसण चरणे " गाणे सुपरिच्छित्ये गातग कहण पदोसे रणातगमरणातगं बा राती दुविहं रणामरण -घोवरण-वासरण लामंठवण-रिसीहं गामं ठवणा हत्यो रणामं ठवरणा कप्पो णामं ठवरणा भूला रामं ठवरणा दबिए 01 रामं ठवरणा भिक्खू रामं ठवरणायारो रणामुदया संघयणं गालस्सेरण समं सोक्खं णालीत परूवरणता गाव-यल-लेवहेटा गावाए उत्तिष्णो गावातारिम चतुरो गासपण पाइरे पासा मुहारिणस्सासा गासे प्रगीयत्यो ures प्रसंविग्गो उरणो खलु सुत्तत्थो " fuक्कारणगमरणमि रिक्कारणगि चमढर‍ बिकारण डिसेवा २१३६ ४६६ ૪૫ १०३५ ७५ २२५ ६२६२ ૪ २७२७ ૪૬ २२५२ २४६७ ५५०४ ६ ६७ XTE ५६ ६३ १७६७ ६२९२ ४६५ ५ ८५ ३४५३ ३८२६ ३८३४ ५२५२ ५३७५ १०६६ १७६३ ४६७ ४७३३ ५३०७ ६५०६ ४२४६ ५६५६ ४२५६ १८३ २४५६ ६१६ ३३८५ २०६० ३३३३ २७५८ ३७८६ fuक्कारणमविधीए गिक्कारणम्मि अप्पमा गिक्कारणम्मि एए fuक्कारणम्म एते fuक्कारणम्म एवं शिक्कारणम्मि गुरुगा futकारणम्मि लहुगो fuक्कारणिए भवएसिए रिक्काररियावदेसगा रिक्कारणे भ्रमरतुष्णे रिक्कारणे प्रविधि futer रणे रण कप्पति fueकारणे विधीए बि fuक्कारणे सकारणे fuftaar प्रमाणे रिविवरणा पप्पाणो रिग्गच्छति वाहती रिग्गच्छ मे हत्थे रिलग्गत पुरणरवि गैहति furगमरणं तहचैव उ fuग्गमणादि वहिठिते णिग्गमणे चउमंगो रिग्गमणे परिसुद्धो रिग्गमसुद्धमुबाए रिंगवता या रिग्गंथसक्कतावस ftrife वत्थगहणे ग्गिंथीगं गरणधर furjatti froj रिगग्गंधी उग्गालो चिरियं सरणमज्जण froafniसरिणयं ति य रिगच्वपरिगले बहिता freefoodfeeम्मे fusefutesकम्मो रिगन्धं पि दव्यकरणं ज्जित मोतूणं १६६६ १६२१ ૪૬૬૫ ४०७७ ५८७२ ५२८७ १६६८ १६२२ roe २६२६ २०७६ २७१ १५०७ १६६६ १६६७ १५११ २७५७ ५५६१ २३५ २३८ ४१०२ ५६२ ११८८ २६८० ६३५२ ६३५६ ६५३६ ४४२० ५०७० २४४६ ४६२२ २६५५ ५०४५ ५०४६ ६३१ YE? ३६४१ ३८१८ ५१०९ १२०० ३६६० " ३३६६ ३६९२ ३७१६ ३७१८ १८५६ ४६२८ ३५६६ १८८२ २८१५ २०४८ १०५६ ५८५० ૬૪ ૬૪ २४६१ ३५८० Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ प्रथम परिमिष्ट ४६३२ ४१३४ ५५३२ ५४३३ ६.६६ ३४५२ रिणहितादि ठाणा रिगण्हयसंसग्गीए पिण्हवणं मवलावो रिगव्हवणे रिगण्हवणे रिंगता ण पमति रिंगता ए पमज्जती रिणतिए उभग्गपिंडे गिद्दिदुस्स समीदं पिहोसं सारवंत रिपबमधुरेहि माउं रिण दवे पणीए रिणय व परिणययं वा रिगप्पचवाय-संबंधि रिगपत्त कंटइल्ले रिणफण्णो वि स अट्ठा रिगप्फेडणे सेहस्स तु पिग्मए गारवीणं १७८५ ५७६ ८७६ ६५०० ६१३४ ३२१२ ६५१२ ६३८६ २३ ४१४ २८२ ५२६६ ५३९७ २२३ Eee ४५७४ ३६२० ३५४१ ३७६७ ११८६ ૨૪૬૪ ६३८२ १.०५ णिसिदंतो व ठवेग्गा रिणसिपढमपोस्सुिम्भव रिणसिमादीसम्मूटो णिसिह णवमा पुख्या मिसीहिया समोक्कारे रिणसुदंते प्राउवषो रिगसेज्जा य वियरणे मिसेज्जाऽसति पम्हिारिय निस्संकिय रिपक्कंखिय हिस्संचया उसमा गोणेज्ज पूय-रुधिर रणीयल्लयदुचरितारणुकित्तणं पीयस्स मम्ह गेहे सोयासणंजलीपगहादि गीसको व ऽणुसट्ठो णेगषुणममुचते रोगविधा छीमो ऐगविह कुसुमपुप्फोक्यार ऐगारा उगारणतं ऐगासु चोरियासू णेगेसु एगगहणं २३३८ १२१४ ३५६७ २०७० ४५६८ १९२४ ३७३४ . २६ ४२५१ १९३१ ३३१७ ३०२७ १५८५ ४८७१ २८७८ ६७०१ १२५० ६५१५ ५२३५ ५३५८ ११७५ ४८७ १०८० ३५५६ णेगेसु पिता-पुत्ता णेहाति एवं काहं णो कप्पति भिक्खुस्सा ४९५३ १०४८ १०६६ १५४४ ५२३८ यो कप्पति वाभिग्णं ३३२० णिन्मए पिटुतो गमणं रिणयएहिं मोसहेहि य रिएयगट्ठितिमतिक्तता पिपस्स गदपमोगो रिगरुवस्सम्परिणमित्तं रिणस्वहत जोरिणत्वीयं रिपल्लोम-सलोमविणे णिवचित विकाल पडिन्छणा णिवत्तण रिणक्खिवणे णिवदिक्खितादि प्रसहू णिवपिरो गयमतं रिणवमरणं मूलदेवो रिणववल्लभबहुपक्सम्मि रिणवितिगरिणम्बले मोमे रिणवत्ता य दुविधा रिणब्वाषातववादी रिणविगितिय पुरिम? गिव्विसम्रोत्ति य पढमो रिणबीयमायतीए १७९ ४६१ ४५१२ ६५१७ ३६२३ यो तरती ममत्तट्ठी गोल्लेऊण ए सक्का गोवयणाम दुविहं २७६८ १६७७ ५७६४ ३७०१ ८४५ ५१८८ ४७१५ १८०१ ८२४ २८९९ ३५६५ तइया गवेसणाए तक्कम्मसेवि जोक तक्कंकुडेणाहरणं तक्कंतपरोप्परमो तचित्ता तल्लेसा १२ ५७०६ २५५१ ३१२१ ५१०७ २४५९ . Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभाध्य चूगि निनीय मूत्र ४६ ६४७ २०५५ .३७५४ १७३१ ३८१० ५४७० ५६६० ६४९८ ५३७५ ३९०७ ३३२ ११५४ ५०२६ १९०२ ५८३६ २२८६ ४९४१ २६६E २९४० ४७७६ ५५१५ ५१५३ ११९२ २८. ५४१८ २५०३ ४००६ नत्य गिलागो एगो नत्यजगत्य व दिवमं तत्य दमण्ड प्रवाते नत्य पवेसे लहुगा तत्व भवे गणु एवं ६० तत्व भवे ग तु सुने १०३ दत्य भवे मायमोमो तत्व वि घेप्पति जं ३५३५ तत्येव प्रयागामे ६०५ तस्येव गंतुकामा तत्व य गिट्टवरणं तत्येव य निम्मा ३८२ तत्वेव य पडिबंधो तद्दिणमण्णादणं वा तद्दिनमकतारण तु तद्दिवसभोयगादी तद्दिवमं पडिलेहा तप्पडिपक्खे दब्वे तमतिमिरपडलभूयो तम्मि असघीणे जेट्टा तम्मि चेव भवम्गी तम्मि तु असषीणे वा तम्मि य प्रतिगतमेते तम्मि य गिद्धो अण्णं तम्मि वि ग्गिव्याघाते तम्हट्टा जाएज्जा तम्हा मानोएज्जा नजातगतज्जातं तज्जातमतजाता नग-कटु-पुष्फ-फल नगकट्टहारगादी तगण कंबल पावारे तगमहमा पग्गिसेवणं तणगहणे झुसिरेतर तग उगलग-छार मल्लग तरण हगल-छार-मल्लग तण विगण संजयट्टा तग वेस-मुंज कट्ट सण-संचयमादीरणं तणपरणगम्मि वि दोसा तणमादिमालियामो तणमालियादिया उ तण्यमलित्तं मासत्य तष्णग-वार-वरहिण तमिणमखंता केई तण्हाछेदम्मि कते तण्हातिम्रो गिलागणी तततितते घमिरे ततिए पतिट्टियादी ततिए वि होति जयणा ततिमो उ गुरूसगास ततिम्रो जावज्जीवं ततिम्रो पिति-संपण्णो ततिमो लक्खणजुतं ततिम्रो संजम-पट्टी ततियभंगासंथडिनिविततियलताए गवेसी ततियव्ययाइयारे ततियस्स जावजीवं ततियं भावतो भिष्णं ततियाए दो मसुद्धा सतियादेसे भोत्तूरण तत्तस्थामते गंधे तस्थ गतो होज पहू तत्य गहरणं पि दुबिह २२८८ ६०१५ ५६०६ ५१११ १८६६ ५२६५ ५९६४ ५५८१ १२७६ ६३८७ २०४७ ११८३ ३.०६ १२६९ १६७३ ११०७ ५७२० ४०७७ ८४ ४५५१ १७४२ ३१२१ २९३२ २८६७ ३७२७ ४०७५. ४७२१ २८९५ ३४१५ २६५२ ४२५६ ५२६६ ५३०३ तम्हा उ अपरिकम्म ५७६४ तम्हा उ गिहियव्यं तम्हा उ जहिं गहियं तम्हा उ ए गंतव्वं तम्हा खलु प्रबाले तम्हा खलु घेत्तव्यो ५८४८ तम्हा खलु पट्ठवणं तम्हा खलु सम्यामे ८९१ तम्हा मवेसियब्दो ३२३४ ४१४७ ४१८३ १३४० १२४६ २८३६ ६०४४ १३५८ ४७४६ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ v६४ प्रथम परिशिय ७६० ४२५२ तस्संबंधि मुही वा नह प्रणनित्थियादी तह इत्थि-पालबाहि नह चेवभिहारते तह वि या सव्वकाल तह समासुविहियाणं २८४० ३२२७ १७६५ २०१४ ४६३० ३०५१ ३४३४ २८५३ २८८६ ५५८६ ३८३३ ६२२७ २४८६ २१६३ २४७३ २१७६ ११२४ ४५४४ १८७६ १२०७ १११६ ४६७८ २०६७ ३८४० १४६४ २५८२ २५९२ २३५३ ४०६१ २२४३ ६०२१ ४७०२ तह से कहेंति जह तहि सिक्कएहि हिंडंति तहिं वच्चंते गुरुगा तं अइपसंग-दोसा तं प्रतिस्थिएणं तं अम्ह सहदेसी तं काउं कोति ण तरति तं कायपरिच्चयती ७२ ७६९ १०३७ ५२७६ २६५६ ३९९२ तम्हा गोयत्येणं तम्हा ए कहेयब्वं तम्हा ग तत्व गमणं तम्हा ण वि भिदिज्जा तम्हा रण संवसेज्जा तम्हा तिपासियं खलु तम्हा पमाणगहणे तम्हा पमाणधरणे तम्हा पुवादाणं तम्हा वसधीदाता तम्हा विधीए भुजे तम्हा सट्टारगगयं तम्हा सव्वारपुण्णा तम्हा संविग्मेणं नया दूराहडं एतं तगा थेरा य तहा तरुणा वेसित्थि विवाहतरुणाइण्णे णिच्चं तरुणीनी पिडियामो तरुणीण य पक्खेतो तरुणे निप्फण्ण परिवारे तल गालिएरि लउए तलिय पुडग पद्धगा तलिया तु रत्तिामणे तव कप्पति ण तु म्हं तव छेदो लहु गुरुगा तवगेलष्णद्धाणे तव छेदो लहु गुरुगो तवतिगं छेदतिगं तवतीयमसद्दहए तवबलिमो सो जम्हा तस-उदग-वणे घट्टण तस-पाण-बीयरहिते तस-बीयम्मि वि दिट्ठ तसपाण तण्णगादी ९३० ५५८३ ९८२१ ५१४६ २८५० २३८४ ६५५६ ४०२७ १४७९ ६३०६ ३६६६ ६७२ ५२५६ तं चेव गिट्टवेंती १८४८ तं चेव निट्ठवेती ४६५० तं चेव पुब्वभरिणयं ४३३८ ८५२ तं जे उ संजतीणं २८८३ तं जो उ पलोएज्जा २८८४ तं रण खमं खुपमादो तं तु प्रसुट्टियदंड २४७६ तं दळूण सयं वा ५८१७ २४७६ तं दारुदंडयं पादपुछणं तं दुविहं णातव्वं तं पडिसेवेतूणं तं पाडिहारियं पायपुछणं तं पि य दुविहं वत्यं तं पुण मोहविभागे तं पुण गमेज दिवा तं पुण गहणं दुविध सं पुण पडिच्छमारणो तं पुण रूवं तिविहं ३४३२ ३७६२ २२११ २६२० ५१२६ ६५३८ ६५६० ६५४२ ४२२२ ३६४३ ५८६७ ३६७७ ५६०५ ३६४२ ७८६ ६७४ १२८३ ८३१ ५०१ १९४८ ५००१ ६३१४ ३०४२ तस्सट्टगतोभासण तस्सऽसति फालितम्मि ७८६ ३७३१ ५११५ . Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंभारयगि निशीथसूत्र YEX तिव्ह वि कतरो गुरुयो ५१५६ तं मूलमुबहिगहणं तं रणि अण्णत्था नं वेलं सारवती तं सन्चित्तं विह तं सारिसगं रयणं ताई तणफलगाई ना जेहि पगारेहि तालायो य धारे ४७७८ ३४८० २०४१ ४७६८ ३६२१ १२८८ २०८ ७८१ नावी भेदो अयमो ३२४३ ३२५५ १०१५ १८०१ ७८७ ३१२५ ३५४० ७४५ २१८६ ६२२० ६०५६ ७८० १७८ ५७१३ ११५९ ६४१० १६०० १९७० ०६७६ १८०६ ६००८ ५२७५ २२२३ ५३०८ ४६८० तामेतूग्ण अवहिते नाहे रिचय जनि गंतु नाहे पलंवभंगे निक्वम्मि उदगवेगे ३५५१ ५६ ३३५४ तिक्खुत्तो तिणि मामा तिक्खुत्तो सक्खेत तिग बाताला प्र? य निग संवच्छर तिगदुग तिगुनगागतेहिं गा दिट्टो ६३०५ १८४२ ११७४ ६५३५ ०५५ १४७ १४५५ ३७५१ ४५८२ ૨૭૯ १६६० निष्हं एगेगण समं तिण्हं तु तड्डियारणं तिण्हं तु बंधाणं ०७ तिण्हं तु विकप्पाणं तिण्हारेगा समाणं तिण्हुवरि कालियस्मा तिण्हुवरि फालियाणं तिण्हुवरि बंधाणं तिण्हंगतरे गमणं तित्यंकर पडिकुट्टो ६८८ तित्थंकर रायागो ति-परिग्गह-मीसं वा तिपरिरयमरणागारे तिप्पमितिघरा दिटु तिय मासिय तिग पराए तिरिमो यारगुज्जारणे ५५५ तिरियनिवारण अभिहणगा तिरियमचेतसचेते तिरियमयदेवीणं तिरियमणुस्सित्योणं तिरियाउ असुभनामस्स तिरियोथाणुजाणे तिविम्मि कालछेदे तिविम्मि वि पादम्मी तिविषं वोसिरिओ सो ३६६ तिविधा य दव्वचूला तिविधे तेइच्छम्मि तिविह परिगह दिन्ये तिविहं च होइ बहुगं . तिविहं च होति पादं तिविहं पुग्ण दवग्गं तिविहारण वि एथासि ४०५१ तिविहाऽऽमयभेसज्जे तिविहित्थि तत्थ थेरी विहे पवितम्मि तिविहो उ विसयदुट्ठो ६०२ ३३२७ १८४ ८६१ तिगुणपयाहिरणपादे तिट्ठाणे गंवेगो तिण वइ झुसिरहाणे तिमि उ हत्थे डंडो तिाि कसिणे जहाणे तिणि तिगेगंतरिते तिरिए दुवे एक्का वा निरिणे पमती य लहम तिणि विहत्थी चांगल ४७५० ८९२ ६४२६ ५८५२ १०२७ ५८०६ १६०५ ३१६५ ८६५ ६८६ ५८३७ १३६४ १३६७ ५७८८ ३२७८ निष्णेव य पच्छागा ५६२६ ५६८६ ५०३६ WwM ४०२८ निण्हट्टारसीसा तिहट्ट. मंकम ३६६० Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ve निविहो य पकप्पधरो निविहो य होइ जड्डो निविहो य होइ धातू निविहो य होइ बुड्डो निविहो य होति कीवो निविहो य होति बालो निविहो मरीरजड्डो तिब्यारबद्धरोसो निसु छल्लहुया छग्गुरु तिसु तिष्णि तारगाम्रो निसु लहु गुरु एगो तिसु लहुम्रो तिसु लहुगा निहि थेरेहि क्रयं जं तितिलिए चलचि तीतम्मिय प्रदुम्मी तीस दिले आरिए तीसं ठवरणाठारणा तीसुतरे पर बीसा तीसु वि दीवितकज्जा तीसु वि विज्जतीसु तुच्छेण वि लोहिज्जति तुम्भट्ठाए कतमिणं तुमेव ताव गवेसह तुम चैव कतमिणं तुमए समगं ग्रामं तुम्हे मम पायरिया तुल्लम्म प्रदत्तम्मि तुल्ले मेहुणभावे तुल्ले विसमारंभ तुल्लेसु जो सलद्धी तुवरे फले य पत्ते "T " तुसिणी प्रति गिति व तुसिरीए हुकारे तुह दंसण-संजो तूरपति देति मा ने तेक वाउविहरणा ६६७६ ३६२५ ४३१३ ३५४२ ३६३७ ३५१० ३६२६ ११४ २९४५ ६१४६ २६४४ १६४१ ३४०८ ६१६८ ८८१ २८११ .६४३६ ६४८१ २७५२ ५५१ २४५३ ५८६१ १३८१ ६६०६ ३६२४ २६३५ ३४६४ ५८४१ ४०७२ ६३६६ २०१ ३४७० ५७०४ २२६ ८६६ २२६६ ५०४२ ४२४२ ५६४० २८६० ७६२ ५७७७ ५४६२ २०५४ ४०३६ ४६४५ ५१८६ २६१७ ५१६३ २५१४ १८२६ २६२२ "" ६१०५ ६४१ ५६५२ तेगिच्छ्रिगस्स इच्छा ते चैव तत्थ दोसा "" मि मज्ज तेरण पर गिहत्थाणं तेरा परं सरितादी तेरणभव मात्रयभया तेरा भयोदककज्जे गादिसु जं पावे तेरगारक्खिय-सावय तेरणा व संजयट्ठा तेणे कीवे राया तेणे देव-मर से तेरणे य तेरणतेणे तेणेव साइया मो सुसि तेहि व अगरणीरण व तेतीसं ठवरणपदा ते तत्थ सगिविट्ठा ते तत्थ सन्निविट्ठा " ते दोsवुवालभित्ता ते पुरण एगमलेगा तेरस सय अट्ठट्ठा तेरिच्छं पि यतिविहं तेलुक्कदेवमहिता तेल्लुब्वट्टर पहावरण तेल्ले घत गावरणी ते वि य पुरिसा दुविहा तेमि प्रवारणे लहुगा तेसि अप्पा रिगज्जर तेसि तत्थ ठियाणं तेसि पडिच्छरणे प्राणा ते सीदिउमारद्वा तेसु श्रगिण्हतेस सु प्र तेसु श्रसरणवत्यादी सुठितेसु पउत्थो प्रथम परिशिष्ट ३०६२ ५१७५ ५१८८ ३३७८ २३८६ ६५६५ ३२७३ ५६५२ ३२६५ १५५३ ४५१३ ३७४१ ૪૭૪ ३७२६ ३०८३ ५३०२ १७२५ ६४४८ ५२६० ५२९३ ५३६४ ५४७४ ६३५१ ६४७२ ५१८० १७१५ ३०५३ १५६२ ५२०६ ५२७४ ३३३५ ३२४० ५६२६ ५११० २५३१ २४८४ ५७६१ ५२५८ २५२५ "" ४३०५ ३०६० ३२०६ ८८२ १९८२ ३३८१ ३७४७ ३३४१ ३३७२ ५३७६ २५३४ ६२०० १६५२ २५६२ ३३५३ ४२६५ २४६२ ३५८६ 27 ३३३६ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभाष्य चूगि निशीथ सूत्र ૪૬૪૨ तेसु तमगुणणातं नेमु असहीणेसु नेसु दिट्टिमवंधतो तंदुरुयदास्यं पिव तो कह चित्तम्वा उ नो पर मंथुएहिं नोसलिए बग्धरम्पा ३६८५ ४१२६ ६१६६ ८५२८ ३१६५ दगकक्कादीह नवे दगघट्ट तिणि सत्त व दग-रिणागमो पुवुत्ता दगतीरे ता चिट्ठ २०५६ १६७ ४२५२ ३४२८ २३६७ . थाजीवि तन्नगं खलु थल-देउलियटाणं थल-संकमणे जयरणा थलि गोगि सयं मत थंडिल-तिविहुवघाति थंडिल्ल प्रसति प्रधाग १६३ ३६८० ११६८ ४२४८ ४८५३ १५३३ १८६८ १६१८ ६:४८ ३५५१ ६४० ५३२० ५७२ ३६०४ दगभारणे द? ५२७६ दगमुद्देसियं चेव ६२७८ दंग-मेहुणसंकाए ५३२३ ३५४६ दगवाय मंधिकम्मे २०५७ दगवारबद्धणिया ४११३ दगवीरिणय दगवाहो दगतीरचिट्ठणादी ५३१० दछु पिणे ण लज्मा (भामो) १३४६ दळूण दुण्णिविट्ठ ३६४१ दळूण य राइडिं १७४० २५४३ .२३७४ २५६६ ५१६६ दकूरण व सतिकरणं ५३३६ ५१७१ दट्कूण व हिंडतेण वा १२५१ दगण वा रिणयत्तण ५३१४ दड्ढे मुत्ते छगणे दत्थी हामि व पीए १०५७ दधितक्कंबिलमादी दप्प-प्रकप्प-णिरालंब दप्पण मरिण प्राभरणे ४३१८ दप्पपमादागाभोगा ४७८ दप्पादी पडिसेवणा १४३ दप्पे कप्प-पमत्तारणाभोगा दप्पे सकारणमिय ८८ दप्पेरण होति लहुया दमए दूभगे भट्ठ ५०६३ ५५६० दमए पभारणपुरिसे ४०६६ दभगादी ठाणा खलु २६०० ३०४४ दहिडिते व भा ४१६४ २३८८ २६२ पंडिल्लसमायारी थंडिल्लं न वि पासति थावरगिगफण्णं पुरण थी-पुरिसप्रणायारे थी पुरिसा जह उदयं थी पुरिसा पत्तेयं थीसुते च्चिय गुरुगा थुल्लाए विगडपादो यूणामो होति वियली थूणादी ठाणा खलु थूल-सुहुमेसु वोत्तं यूले वा सुहमे वा थेरबहिट्ठा खुड्डा राणेस वि दिनो थेरातिनिविह प्रधा थेरिय दुष्णिखित्ते थेरी दुब्बलखीरा थेरुवमा अक्कते थेरेण अण्णाए यो जति प्रावण थोवाध्वमेमपोरिमि गोदावमेमियाए थोवा दिहणंति खुहं ४३६१ १२६८ ४२६७ ५८७५ ५८७४ २४०४ ४६३ ५२२६ ३४०० ४३८३ ४२६३ ४७६ ६३२ २८५७ ६०७८ ५३८५ , ५३१३ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ प्रथम परिशिष्ट ३८६७ ३३४३ दम्वेग य भावेण य १८५४ दवियपरिणामतो वा दन्वखएणं पंतो दवट्ठवरणाहारे दव्व-रिणसीहं कतगादिएसु दव्यतो चउरो सुता दबदिसखेतकाले दव्वपडिबद्ध एवं दश्वप्पमारणअतिरेग दब्बप्पमारण गगणा द... गाणगाइरेग दाम्म दाडिमंबाडिएसु दवम्मिा वत्थपत्तादिएसु ४७१८ ३६६४ २०६८ ५८२२ १६५३ १०११ ४०६८ ६६१० ६०८३ १०२६ ६२८३ ११६३ ४८० ३५४४ ३३४४ ८५३ ६२८० ४६ ४२५०. दब्वसिती भावसित दव्वं खेतं कालं ६०७३ ३८२२ ६२३४ ६२३६ ६२४२ ६२४६ १०६५ १७५५ ५०११ ३७५६ ६३७६ दव्यं जोग्गंण लब्भ दव्वं तु जाणितव्व दव्वाइ उभियं दवातिसाहए ता दव्वादि चतुरभिग्गह दब्वादि तिविहकसिणे दवादिविवच्चासं दवादी अपसत्थे दव्वे पाहारादिसु दवे इक्कड कठिरणादिमू दवे एगं पादं दब्वे खेत्ते काले ५२१४ दब्वे तं चिय दव्वं __ ३६६६ दवे पुट्ठमपुट्ठो १६११ दवे भविग्रो णियित्तिग्रो दब्बे भावेऽविमुत्ती दब्वे य भाव तितिण दन्ने यं भाव भेयग दव्योगहरणग पाएस दव्योवखरणेहादियागा दम प्राउविवागदसा दम उत्तर सतियाए दस एतस्स य मज्झय दस चेव य परणयाला दस ता अनुसज्जती ३७७६ दसउर-नगरुन्ध रे ६११ दसदुयए संजोगा दसमासा पक्खेणं दससु वि मूलायरिए दसहिं य रायहाणी दंडधरोहंडारक्खियो दंड पडिहार-वज्ज दंडसुलभम्मि लोए दंडार क्खिय दोवारेहि ४०६१ दंतच्छिण्णमलित्तं दंतपुरे आहरणं दंतामय दंतेसु दंतिक्क गोर-तेल्ले दते दि? विगिचण दंसगाचरणा मूढस्स दसगा-गाण-चरित्ताग्ग दमगा-गागा-चरित ३२२५ ३५४३ ६४८० ३०५ ६५८२ '६६८० ५६०७ २०६२ २८३१ ३६०१ २५८८ २५१६ १६७३ ६६०७ .२५१५ ३४६४ १२६५ १५२० ५६६४ २६७७ ३३५१ ३७५०. २६४२ ८८७ ५८८६ २०४३ ८६१ ३०७२ ८८६ २१५६ ४८४ १०२५ १०६४ ४३४१ ४३४२ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भापरिण निशीथसूप ३३८३ ४७२६ ३८३४ ४०११ ६०३६ १७७६ ३७६८ दमणगारणे माता दसरामारणे सुत्तत्य मणपाखे पायरियोपकार दमागपभावगाणं दंसहवाये लहुगा दाऊण अण्णदव्वं दाऊण गेहं तु सपुतदारो दाऊणं वा गच्छति दागरगहणे संवासो दागफनं लवितूणं दाणं गा होति प्रफलं दागाई संसग्गी दाणे अभिगमसड ५५३४ ४८६ १४७७ ४०६७ ११६३ २६७६ ५६२७ ६६३ २२७१ ५७० ४५२६ ४४३० २१७५ ४७२७ १२५५ १८४१ १६२० १६२६ ४६२३ ३०४६ १६३० १६३१ ३७०५ ५०२२ ५६६६ २३७८ १३५६ ५६४० ३३६३ ४१६६ २६६१ ६३२५ ३३६१ ५८५६ २०६४ दिट्रमदिऐ विदेसत्य दिटु सलोमे दोसा दिटु कारागहणं दिटुं च परामट्टच ३१८६ दिट्ठत पडिहरिणता १८२६ दिट्ठा व भोइएणं दिट्ठीपडिसंहारो १८८१ दिट्ठीमोहे अपसंसणे य दिटुं गिमंतरणा खलु दिटु सहस्सकारे दिदै संका भोतिय दिट्ठो वणेणम्हं १५८० दिण्मदिण्णोदडो १४८९ दिणगो भवबिधेण व १५७९ दियदिन्ने वि सचित्ते १५५१ दियभत्तस्स प्रवणं दियरामो गोमतेरणं दियरामो लहु गुरुगा दियरातो उवसंपय ४८१५ दियरातो भोयरणस्सा ३३७५ दियरातो लह-गुरुगा दियरातो लेवणं दिवसरिणसि पढमचरिमे ७५२ दिवसत्तो अन् मेगहति दिवसतो ग चेव कप्पति दिवसभयए य जत्ता दिवसभयो उ धिप्पति दिवमा पंचहि भतिता २८२७ दिव्य-मरपुय-तेरिच्छ १६४२ दिवमरणयाउ दुगतिगस्स दिव्वं अच्छेरं विम्हनो दिवाइतिग उक्कोसगाइ दिव्वेसु उत्तमो लाभो दिसि पवण गाम सूरिय ४६०१ दिसिमूढो पुवावर ४६४२ दिसिदाहो छिष्णमूलो दिस्सिहिति चिरं बद्धो दितेण तेसि प्रप्पा दारोग तोसिनो वा दातुवा उदु रुस्से दायग-गाहग-डाहो दारदुगस्स तु प्रमती दारं न होति एत्तो दाराभोग , एगागि दाराभोयण एगागि दाबद्दविप्रो गतिचवलो दासे दुढे य मूढे व दासो दासीवतियो दाहं ति तेरा भरिगुतं दाहामि त्ति य भलिते दाहामो णं कस्सयि दाहामोत्त व गुरुगा दाहिणकरम्मि गहितो दाहिणकरेण कण्णे दिक्खेहिं अच्छता दिज्जते पडिसेहो दिज्जते वि तदा दिज्जंतो विण गहितो दिट्ठमणेसियगहणे दिट्ठमदिट्ठा य पुणो ४२०० २६६५ ४४०७ ६२०३ ३५०७ ३१८५ ४४५० ३२२० ३७१८ २७१६ २४४२. ३३१४ ३६४६ ५०८२ ३०४१ ३५१५ ५८६६ २५८५ ४४७६ ५.०८६ १८७१ ५२१६ १३०४ १३७८ १०२ ६०८६ ५६०७ ४५३४ २२०१ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० दीह छेयरण डवको दहं च गीस सेज्जा दुक्करयं खुजह्रुतं दुक्खं कप्पो वो दुक्खं खु निरनुकंपा दुग-तिग- चउक्क परणगं दुगड - तिगडादी दुगुरो चउग्गुणो वा दुग्गविसमे वि न खलति दुग्गादि तोसियरिणवो दुग्गूढाणं छष्णंगदंसणे दुट्ठिय भग्ग पमादे दुष्य दोणि विट्ठा दुपदच उप्पदरा दपतुप्पद - बहुपद दुपय- चउप्पयमादी दुपय-चतुष्पदरासे दुप्पडिले हिदूसं दुपडिलेहियमादीसु दुप्पभिति पितापुता दुब्बलगहरिण गिलासा दुम्बलियत्त साहू दुग्भासयहसितादी दुमपुप्फपढमसुत दुल्लभदव्वं दाहिति दुल्लभदवेच सिया दुल्लभदव्वे पढमो दुल्लभपवेस लज्जालुगो दुविध तवपरूवरणया दुविधं च भावकसिरणं दुविषं च होई तेणं दुविधं च होति मज् दुविधा छ दुविधा कायमणाया दुविषे गेलपणम्मि " मरिणा " दुविषे तेइच्छम्मी २३० ५६२१ XX ३६६ ५६३३ १३६१ ६१७ ५८०४ ६६६८ ६०८० ५३१ ४०२२ ३४८६ ४६८२ ७०३ ३२६ १४६७ ४०२० २५६६ ३०४३ २७६७ ५७६३ ११७७ ३५५८ ४६५७ ४२०६ ६३२० २० ३६७ ११७२ ४५२ १५५८ ४१ ६५३ ३२४ २४३२ ४५४६ ३६३५ ११६६ २५२४ २५१२ २२५६ ३५५३ दुविधेतेगिच्छम्मी दुविधो उ भावमंथवो दुविधो कार्यम्मि वरणां दुविधो खलु पासत्यो दुविधो परिग्गो पुरा दुविधो य मुसावांतो दुविधो य संकमो खलु दुविह चउहि छउब्विह दुविह तिविहेण भति दुविहमदत्ता उ गिरा दुम्मि भैरवम्मि दुविहरुमा रा दुविहं च दोस मासेसु दुविहं चैव पमाणं दुविहा उ होइ वुड्ढी दुविहा तिविहाय तमा दुविहा दप्पे कप्पे दुविहा दुगुडिया खलु दुविहा पट्टया खलु दुविहाय लक्खरणा खलु दुविहा य होइ दूती दुविहाय होति जोई दुविहा लोउत्तरिया दुविहा सामायारी दुविहासती य तेसि दुविहे गेलष्णम्मी दुविहो प्रसग्गो खलु दुविहो जा मजारणी ३६ दुविहो तस्स दुविहोय अभिभूत दुविहोय पंडतो खलु दुविहो य होइ कुंभी दुविहो य होइ दुट्टो. ६३७६ दुविहो य होइ धम्मो ३५५० दुविहो य होइ पंथो ६३६६ दुविहो य होइ कीटो दुविहो य होति कालो प्रथम परिशिष्ट २२३० १०४० १५०१ ४३४०. ३७७ २९० ६२१ ११५१ ૪૨૬૪ ४६८६ ६२५० ५७२३ ४६२१ ६४२४ ५४३२ २६२३ ४१२३ १४४ . ५७५६ ६६४२ ४२६२ ૪૩૨૬ ५३५३ १६१६ ६२१५. ६२७१ २५३२ ३६७२ ३६०६ ३३०१ ३६३६ ३५७२ ३५६१ ३६८१ ३२६६ ५६४५ ३६३८ ६१२५ ३५३२ ३१३५ ५८१६ 19'9'S ३५५० ५१४६ ४६८६ ३०५१ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य चूरिण निशीथ सूत्र ६२१७ १३३ ५७४१ ५४०४ ४५.८५ ७५५ ४१२२ ३२८६ ३७८५ ३७८६ ६४६१ दो चेव निसिज्जाम्रो दो चेव सया सोला दोच्चेण प्रागतो दोच्चं पि उग्गहो ति य दो जोयगाइं गंतु दोगिण उ पमज्जगाग्रो ३२७२ २८११ ५६५७ ४२४७ । २८२ २७४६ ८८००. दुविहो य होति दीवो . दुविहोहावि वसभा दुव्वग्ण म्मि य पादम्मि दुस्मिक्खियस्स कम्म दुहयो गेलणम्मी. दुहतो वाघातो पुग्ण दुहतो वाघायझी दूइज्जंता दुविहा दतित्तं खु गरहितं दूमिय धूमिय वासिय दूरगमणे गिमि वा दूरे चिक्खिल्लो दुमपलासंतरिम दूसियवेदो दूसी देवतपमत्तवज्जा देवा हणे पमण्णा देविंदवंदिएहि देमकहा परिकहणे देसम्हणे बीए ३७६८ २०४८ ५७७० १४०६ ५५५७ १७४५ ६३७० १०६२ २७५३ ५८०१ ३५७३ ६६८६ ३०८२ ६१८७ २७७८ दोमिा तिहत्थायामा दोष्णि वि विसीयमाणे दोणि वि सह भवंति दोण्णेकतरे खमणे दोकागतरे काल बोट्टाए दाह वि . ५१५० दोन्ह वि उवट्टियाए दोण्ह वि कयरो गुरुयो दोण्ह वि चियत गमणं दोण्ह वि समागता दोहं जइ एक्कस्सा ३३२२ ___ दोण्हं पि गुरूमासो दोण्हं पि जुवलयाणं दोहं वच्चं पुम्वचियं तु दो थेर खुडु थेरे दो दविग्यग्गापहा वा दो पत्त पिया पुत्ता दो पायाऽरगुणाता ३६६८ दो मासे एसगाए दो रासी ठावेज्जा २६.४. ५६७७ ५६७८ ३२२४ ५६१ ५०४१ ३८६२ देसच्चाई सब्वच्चाई देसपदोसादीसु देसम्मि बायरा ते देसं भोच्चा कोई देसिय वाग्गिय लोभा देसिल्लगं पम्हजुयं मरगुण्ण देसे सखुवहिम्मि य देसो नाम पसती देसो वसोवसम्गो २८२६ ६५६ ३७६७ ४५२४ ५५४२ ६४४७ ५२४० ४८१ ३३२५ २०४३ ३८६३ ५०८१ ५८२१ ४५४८ ४६४३ ४७६६ ४८०१ ६२६७ २१६७ ३६०१ ५०६५ १८६१ ६५४ ६४२ देसो सुत्तमहीयं देहजुतो वि य दुविहो देहविउगा खिप्पं देहविभूसा बंभस्स देहस्स तु दोबल्लं देहहिको गणणेक्को दोग्गड पडणुपयरगा दोगच्च वइतो माणे दोरेहि व वझेहि व दो लहुया दो गुरुया दो लहुया दोसु लहुप्रो दो वारियपुवुत्ता दोसविभवारगुरूवो दोमा जेण गिगरु मंति दोसा जग निरु भति दोसा वा के तस्सा दोमाभरगा दीविच्चगाउ दोस वि अलटि कण्णावरेंनि ६६७ . २८६६ ३५२८ १५८६ २५२७ ६६५६ ५.७३ ५२५० ३५२० ९५८ ३८६१ २६१३ ५६०४ १५ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिवष्ट दोसु वि प्रबोच्छिण्णे दोहि तिहि वा दिणेहि दोहि वि गुरुगा एते ५३५२ ४९६७ २६७६ २५९८ ५६.१ दोहि वि णिसिज्जणेहि दोही तिहि वा दिणेहि ४५६३ १५४९ ३०२० २७११ ५४६२ २८६६ ४५०४ ४४८१ ५५७२ २६१७ ५४७२ ५८१४ ८३६ षरणधूयमच्चंकारिय-भट्टा घण्णंतरितुल्लो जियो धण्णाइ चउब्बीसं धरणाइं रतण्यावर घम्मकहातोऽहिज्जति धम्मकहा पाति य धम्मकहि वादि खमए धातादिपिंड अविसुद्धधातुनिधीण दरिसरणे धारयति धीयते वा धारेतध्वं जातं . धारोदए महासलिलजले धिति-बलजुत्तो वि मुगी धिति सारीरा सत्ती धीरपुरिसपणत्ते धीरपुरिसपरिहाणी धीमुडिअो दुरप्पा धुवरणाऽधुवणे दोसा धुवलंभो वा दवे धुवलोमो उ जिरगाणं ११८७ ३५६८ नबि रागो न वि दोसो २७७० नडपेच्छं दणं ६६३१ ४४२४ नडमादी ठारणा खलु ६६३४ नदिखेडजणव उल्लुग नयवातसुहुमयाए २१६० नंदिपडिग्गह वि पडिग्गह नंदीतूरं पुण्णस्स नाऊरम य वोच्छेदं । नागम्मि तिष्णि पक्खा ३१६४ नाणाति तिविहा मग्गो ६५०७ नारिणविट्ठलभति १०२४ १०२८ नारगुज्जोया साहू नाणे दंसरण-चरणे ३६१५ नाणे महकप्पसुयं ५१८२ नातिक्कमते मारणं ४४८० नातो मि ति परणासति ૪૪૭૩ नामं ठवणा माणं नाम टवणा दविए ४३७६ १७६१ ५२६२ ३४२२ नाम ठवणा पक्कं १७६०३७८३ नाम ठवरणा भिक्खू ४८१५ नाम ठवणा भिण्णं नाम ठवगा वत्यं ५४२३ नायगमनायगं वा ८६८ नावजले पंकथले ५८३६ नावा- उग्गमउप्पायरोसणा ३२१३ नावाए-खिवरण बाहरण ३१७३ नावादोसे सब्वे ३६९५ नावासंतारपहो ५२१५ नाविय-साहुपदोसे १९७४ निक्कारणम्मि दोसा २६७८ निक्खम-पवेसवज्जण निम्गंथी-गमरण-पहे ३९३४ निम्मल्लगंधगुलिया ३६७६ नियमा तिकालविसए ११२६ ४७०८ ३३५६ ६२८२ ६२६६ ४८९८ ६२७४ ४७१६ ५००२ २७४७ १०३४ ८५८ ६.३ ४०१२ ६०२४ ४०५ ६००१ ६०१२ ६०१६ धूमादी बाहिरितो घोतम्मि य निप्पगले धोतस्स व रत्तस्स व ५६२४ ४२१४ ५२८४ ५२६२ ३३७१ न पगासेज्ज लहत्तं न वि जोइसन गरिणतं नवि जोतिसं न गरिणयं न विरागोन विदोसो ५२८६ ४४०५ -- नियमा पच्छाकम्म ४११४ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य चूणि निशाथ सूत्र पच्छाकड-माभिग्गह निरुवस्सग्गनिमित्तं नीस?सु उवेहं नीसंकमणुदितो प्रतिछित्ता । नोमंकिमो वि गंतूरण नेच्छति जलूग वेज्जे नोइंदियस्स विसमो नोवेक्खति अप्पाणं ६५६३ ५३०० २६११ ४५६६ ५८०८ ४२९८ ३३१६ १६४५ १६२६ ७२५ १९२६ ४०३१ ४६५२ ३०४४ ३०२३ ५४१६ ६८२ ३७१० १०४४ ६६२१ ६७०० पउगम्मि य पच्छित्तं पउमप्पल मातुलिंगे ३०७२ १६४२ ४८६१ पच्छाकडादिएहि पच्छाकडादि जयणा पच्छाकडे य सण्णी पच्छाकम्ममतिते पच्छाकम्मपवहणे १०२६ पच्छा वि होति विगला ४०२५ पच्छा संथवदोसा ४०२५ पच्छित्तणुपुव्वीए ४८२७ पच्छित्तगुवाएणं १०३६ पच्छित्तपरूवणया पच्छित्तस्स विवड्डी पच्छित्तं खु वहेज्जह पच्छित्तं दोहि गुरु पउमृप्पले अकुसलं पउमुप्पले अकुमले पउरऽण्णपागमणे पक्के भिण्णाभिण्णे पक्खिय चउवरिसे वा पक्विय चउ संवच्छर पक्खिय-मासिय-छम्मासिए पक्वी-पसुमाईणं पक्खी-पसुमादीणं ५५४६ २३६० ४६०० २१४२ ५२६८ परखे-पक्खे भावो पक्खेवरमादीया पगतीए संमतो साधु पगती पेलवसना पच्चक्खाणं भिक्खू पच्चक्खाते संते पच्छण्ण असति गिाण्हग पच्छणा-पुल्वभरिंगते पच्छगणा सति वहिता पच्छाकड-वत-दंसण पच्छाकड-साभिग्गह ३२१४ २३२३ २३२१ २३२७ ३५६७ १२१२ ४१० ५०७३ ३६८६ १६१५ २३८१ २३८७ २३६६ १०६४ • ६२६ ६३८ ६४४ ६४६ ६६१ ६६७ ६६८ २००१ ४८७७ २२०७ २२१३ २२२१ ५८६८ ३२०२ ६६७७ ३१३८ ३२१८ ३१३७ ३२१० १४०१ २६८८ ४०८५ पच्छित्तं पण जहणे पच्छित्तं बहुपाणा पच्छित्तेण विसोही पज्जोसवरणाए अक्खराइ २८१८ पज्जोसवणा कप्पं पज्जोसवणा काले पज्जोसवणा केसे ४५१८ पट्टो वि होति एगो ४८२४ पट्टविनो मे अमुमो ४८०४ पट्टवित वंदिते ताहे पट्टवितम्मि सिलोगे पट्टविता ठविता या पट्टविया य वहंते पट्टीवंसो दो धारणाम्रो पडणं अवंगुतम्मि पडणं तु उप्पतिता पडिकारा य बहुविधा पडिकुट्ट देस कारण गता ६१६१ ६६४३ ५८२ २०४६ ५८६५ ३८०३ २४१६ ३४२४ २८८१ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ प्रथम परिशिष्ट पडिकुढल्लगदिवसे पडिगमरण अण्णतिस्थिय ६३८३ पडिलाभित वचंता २६०३ पडिलेहराण्णवाा १०५४ पडिलेहाय पप्फोडण १०५४ २५४८ ४४७२ ८९२ १४१८ १४२२ १४३३ १३५५ ३८२८ ४६७५ ४५०३ ३५९६ ३२७२ १७६२ ३९०८ ३७९५ १६७० २२७० ५९५५ १४२० ४१४६ ३७५६ ५५५५ ३००० ५४५४ १९०३ ३८७७ पडिलेहणमामायणे पडिलेहगा-मुहपोत्ती पडिलेहरण-सज्जाए पडिलेहण संधारे पडिलेहरगा तु तस्सा पडिलेहग्गा दिसारणं पडिलेहगा पमज्जग पडिलेहणा पमज्जगा पडिलेहणा बहुविहा पडिलेहणा य पप्फोडणा पडिलेह दियतुयट्टण पडिलेहपोरिसीमो पडिलेहा पलिमयो । पडिलेहिताम्म पादे पडिलेहियं च खेत्तं पडिलेहोभयमंडलि पडिलोमाणुलोमा वा पडिवत्तीइ सकुसलो पडिविजयंभणादी पडिसिद्ध समुशारो पडिसिद्ध तेगिच्छं पडिसिता खलु लीला पडिसेंधे पडिमेहो पडिसेधे वापाते पडिसेवभो उ साधू पडिसेवगाए एवं १७३४ ३९६८ १४८० १७०३ २२५६ ५६१५ १७८७ २०६६ २१७० २५४२ २१२२ १४२१ २४६४ पडिगमगादिपदोसे पडिगामो पडिवसभो पडिचरणपदोसेणं पडिचरती माचरती पडिजग्गति गिलाणं पडिजग्गिता य खिप्पं पडिगीयता य केई पडिगीयता य अण्णे पडिरणीय पुच्छरणे को पडिपीयम्मि वि भगणा पडिणीय-मेच्छ-सावत पांडणीयया य के पडिपीय विसक्लेवो पडितं पम्हट्ट वा पडिपक्खो तु.पट्ठो पडिपरिणयत्तमारणम्मि पडिपुच्छ-दारण-गहणे पडिपुग्छ अमणुष्णे पडिपुण्ण-हत्य पूरिम पडिपोग्गले अपडिपोग्गले पडिबद्धलंदि उग्गह पडिबडा सेज्जाए पहिवरा सेज्जा पुरण पडिमंसयंभरणादी पडिमाए झामियाए पडिमाजुत देहपुयं पडिमाजुते वि एवं पडिमाझामण मोरुमणं पडिमापडिवण्णा पडिमेतरं तु दुविहं पडियरिहामि गिलारणं पडियाणियाणि तिण्ह पडिलाभणष्टमम्मी पडिलामणा तु सड्ढी २३८९ २०६६ २३७६ ३८८२ ५१८ ४२४ ४८०६ ४८४२ १९३६ ४२५ ३४६५ २४८२ ५३७७ ३६२ ६०७ ५४०५ ३१४७ ५१३२ ५१७४ ५१८७ ३८७२ २९७६ ४६६ पडिसेवरणातियारा पडिसेवणा तु मावो पडिसेवगा य संचय पडिसेवणा वि कम्मोदएण ४६३४ पडिसेवती विगतीतो ४६३७, पडिसेवतो तु पडिसेवरणा ५८१ ५९४ ६३.८ ३८६६ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभाप्य चूगि निक्षीय सूत्र . गडिपेवंतम्म नहि २५१६ ३४४८ पडिमेविनागि पुवं पडिसेहगस्ग लहुगा पडिसेह प पिच्छुभरणं परिमेहगा वरंटगा परिसेहे अलंभे वा पडिसेहेऽजयगाए पडिसेहे पडिसेहो २२४८ ६६०२ ५४६२ ५६८० ४७५४ ३४४६ ३०४२ ४६७७ ४६६ ४९५८ पद्यमस्म ततियठाणे पदमस्स होति मुलं पदमं तु भंडसाला ५३६७ पढम बितियं ततियं ३०८६ पदम राइंठवेंते ८६६ पढमा ठवणा एकको २८६६ ५३६३ ५९७२ २९६४ ६४५६ पठमा ठवरणा पक्खो ६४५० पढमा ठवणा पंच य पढमा ठवरणा पंचा ६४५४ पढमा ठवणा बीसा ६४५६ ६४३ ६६८५ ६६६६ १३०० १९५२ १७५० ३३४ २९५७ २४६६ १४२७ ३७७३ पडिसेहो प्रक्वानो पडिसेही जा पारणा पडिसेहो वा पोहो पडिहरिगीनो पडिहारिमो पडिहारिए जो तु गमो परिहारिते पवेसो पडिहारियं प्रदेते पडुपण्णाऽरणागते वा पढमग-मंगो वज्जो पढमचरमाहिं तु . पढा-ततिय-मुक्कारणं पढमदिरणबितिय-सतिए पढमदिगारणापुच्छ पढमदिणे म विफाले पढमबितिएसु कप्पे पढमवितिएहि छड्डे पढमबितिय दिवा वी पढम-वितियदुतो वा परम-वितियारण करणं ६४ ५२८३ ४६३१ ५७६. पढमाए गिहिरणं ६३३३ पढमाए पोरिसीए पडमाए वितियाए २७७४ पढमालिम करणे वेला पढमासति मणुष्णे पढमासति सेसारण व पडमिल्लुगम्मि ठागो ६४४५ ४१६१ ५७८ २६०२ २४६ २३८५ २३७१ ५१२६ ४६२२ २४७५ २७६५ ६३७२ ६३२६ ३८७७ ३८२७ २६५६ ४७६ ६६५ २०७५ २५२० ११८३ ५१७० ५६७१ ५३४६ ०४२० ५८५१ पढसिल्लुगम्मि तदारिह पढमुस्रोतिममुदयं पढमे गिलाणकारण पढमे पंचविधम्मि वि पढमे पंच सरीरा पढमे बितिए ततिए २०७५ पढमे भंगे गहणं ४६१७ पढमे भंगे चउरो पगागं च भिण्णमासो ३५२८ ७१४ ७२२ ३४२३ १४४८ १३१५ ३६४८ ३२२२ ३२५३ पढमबितियातुरस्स य पढमन्मि जो तु गमो पढमम्मि य चतुलहुगा पढमम्मि य संघयणे पहमम्मि समोसरणे १८६६ १७९६ ११४७ २५३६ ४११७ ४६२८ २६८८ पगगं तु बीय घट्ट Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिनिष्ट ५०६ ४६४२ ६५७६ ८७० २४०६ ५७४ पदमागमंकमालवणे य पदमग्गो वागा पप्पडए मचित्त पप्पायरियं सोधी पभु-अरणुपभुगो प्रावेदणं पमागगाइरेगधरणे पम्हट्ठ प्रवहा वा पम्हुट्ठ पडिमारण पयतो पुगग संकलिता पयला उल्ले मला ५३३४ ६३५० ६४५३ ५३३३ २८१० ५८५७ २१०४ २९०८ ४००१ ५८२४ २५५६ ६३६४ ४३०२ २६८ ८८२ १६६१ ४०३२ " ५८०५ पयला गिद-सुय ३७१४ परणगातिमनिक्कतो परागाति मासपत्तो. परणगातिरेग जा पापणगाति हरितमुच्छा पणगादि प्रसंपादिमं पणगादि संगहो होति परगतीसं ठवरणपदा पण दस पण्णर वीसा परण्यालदिणे गणिग्गो पण्यालीसं दिवसे पणवीसजुतं पुण परगहीए तिभाग परिणधागा जोगजुत्तो पगिया य भंडसाला पण्णत्ति चंद-सूर पणत्ति जंबुद्दीवे पण्णारस दस व पंच व पण्णवणामेत्तमिदं पण्णवणिज्जा भावा पण्णवणे च उवेहं पण्णार पण्णही पण्णासा पाडिज्जति पति दिवसमलम्भंते पतम्मि सो व अन्नो पत्तं पत्ताबंधो ५३८४ १६६४ ३७१५ २८६१ ३२६५ २१६८ ३४३६ ३५४४ ३२७४ ५२७२ ५२९७ ४३०६ ४८२३ पयलामि कि दिवा परतित्थियउवगरणं एरतो सयं व गच्चा परदेसगए गणातु परपसम्मि य जयगा। परपक्खम्मि विदार परपक्खं तु सपक्खें परपक्खे उ सपक्खो परपक्खो उ सपक्खे परपक्खो परपक्खे परमद्धजोयगाग्रो ३३५६ ६४७७ ३४२१ ४५७३ ३६८८ ३६८६ ३६६० ३२८५ ३२६३ ५७८७ परमद्धजोयागातो ६८० ५२८७ ५३१४ ४८४० २७८ ५७६० पत्तं वा उच्छेदे पत्ताणं पुप्फाणं पत्तारगमसंसतं पत्ताबंधपमाणं पत्तेगे साहारण पत्तेयचडुगामति पत्तेय समरण दिक्खिय पत्तेयं पत्तेयं ४६४१ २५४ . २३६८ २३८० ४१६८ ४१६५ २७८१ १३७७ ३०४७ ६८६ २०८५ ५८१४ परवत्तियागा किरिया परवयणाऽऽउद्दे परसक्खियं गिबंधति परिकम्मरण मुक्कोसं परिकम्मो चउभंगो ४८०६ ४०१७ ६५०१ ६५७१ ५१६१ २४६६ पत्थारदोसकारी रस्थिव-गिडधिकारो परिगलण वडो वा २५११ परिघट्टण णिन्मोयगण परिघट्टणं तु णिहणं ६६४ ७०६ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाप्य चणि निशीथ सूत्र ५०७ १५६० २६६ ४८७५ ३४८८ ३४६६ ४७५९ २८६३ ३११६ ४४५७ ४००२ ६०२२ ४२७० ५७८२ ५५१७ ५४२० परिट्ठावरण-संकामरण परिणाममो उ तहि परिणामतेसु मच्छति परिरिपट्टियजीवजदं परितावरणा य पोरिपि परितावमरगणुकंपा परितावमहादुक्खे परिपिडितमुल्लाको परिभायणं तु दाणं परिभोगविवच्चासो परिमितभत्तगवाणे परियट्टरणारयुभोगो परियट्टिए अभिहडे परियट्टियं पि दुविहं परियाएण सुतेरण य परियाय परिस पुरिसं परियायपूयहेतु परियार सद्दजयरणा परियासियमाहारस्स परिवसणा पजुसणा परिवार-पूयहेउ परिवारियमझगते परिसंतो अदाणे परिसं व राय? परिसाए मज्झम्मि पि परिसाडिमपरिसाडी १५२६ ४१७४ २१२५ ३२५१ पलिमयो प्रणाइणं पल्हदि कोयवि पावारण पवत्तिरिण अभिसेगपत्त २६२१ पवडते कायवहो ६.२ पविसंते रिणक्खमंते पवाजाएगपक्खिय १८६६ पब्वज्जाए अभिमुहं पव्वज्जाए सुएण य पन्वज्जादी मालोयणा पव्वज्जादी काउं. ५२६३ पवज्जासिक्खावय ४२७६ पव्वयसी ग्राम कस्स त्ति पव्वसहितं तु खंडं पन्वावरण गीयत्थे पत्रावरिणज्ज-तुलगा पब्वावरिणज्ज-बाहिं २६०८ पव्वाविमो सियत्ति य पव्वाति जिणा खलु ५५१६ . ५४२२ ३८६६ ३८१२ ३६४० ३८१३ २७२२ ५४११ ६२४० ४३७३ ५४३७ ५१६० ५३६६ ३७८८ ३१३६ ५४६१ ५७७६ २४४७ ४११ ४६८४ २४१६ २७०० ३७४६ ३५३५ ३५५५ ३१६६ १४२६ ४२६० ११२ १५३६ २०२८ ७६२ ४२१० ३८३० ३८३७ पसत्थविगतिग्गहणं पसिढिल-पलंब-लोला पसिरणापसिणं सुविणे पहरणमग्गणे छग्गुरु पंको पुरण चिक्खल्लो पंच उ मासा पक्खे पंच परवेऊणं १३१२ ५७५८ १२१८ १२८१ १३१० १२८७ 'पंच व छ सत्त सते ६५६ ४०७४ ६४७० १४४ ३८७५ परिस्सु भीरु महिलासु परिहरणा वि य दुविहा परिहार पुपरिहारी परिहारतवकिलंतो परिहारिगगठवेंते परिहोणं तं दत्वं परीसहचमू पलिउंच चउमंगो पंचविचिलिमिणीए १८३१ पंचमता चुलसीता पंचंगुलपत्तेय पंचण्ह वि अम्गा रणं २६६६ पंचण्ह अण्णतरे १९७७ पंचण्हं एगतरे ७८४ १८९५ २७७७ ३०७८ ३६२५ ६६२४ ५४५२ ५४६७ ५५६८ ४२१२ पंचण्हं गहरणेणं Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ पंच परिवृड्डी पंचन्हं वारणं चव्हायरियाई पंचतिरितं दबे उ पंचमगम्मि वि एवं पंचम-छ-सत्तमियाए पंचमहव्यय भेदो पंचमे प्रसादी पंचविधम्मि वि बत्थे पंचविधं सज्झायं पंचविहमसज्यायस पंचविह-व-कसिणे पंचसतदारणगहणे पंचमितस्स मुणिरणो पंचसयभोगि प्रगगी पंचसया चुल्लसीओ पंचसया तुलसीया पंचसया चोयाला पंचसया जातेणं पंचादित्थ पंथे पंचादी गिक्खित्ते पंचादी लहुगुरुगा 39 पंचादी लहु लहुया पंचादी ससद्धिं पंचासवप्पवतो पंचू दोमा पंचेगतरे गीए पंचेंदियारण द ise वातिए की पंडुइयामि घरासे पंतसुर-परिग्गहिते पंता उ असंपत्ती पंथसहायमसड्डो पंथे ति गवरि रोम्मं पंसू प्रचित्तरयो पंसु य मंस- रुहिरे ६४३६ ૨૬૪ ૪૬૨૨ २६२४ २१८२ ५१२३ २६०३ ६२०१ ५६४१. ७८ १ २३३३ ६११८ ६३५ ३०४५. १०३ ५१५७ ५६२१ ५६१६ ५६१६ ३६६५ १४७ २०७ ૪૨ ३८२ ३४१ १७८ ४३५१ ३२६४ ५५६६ ६१०० ३५६१ १६८५ १६०१ ५१४७ Y== २४४३ ६०८६ ६०८५ ३८८३ २४७८ ५८०० ७.७० ३०४७ ३८६७ १६४६ २५०७ ४२६५ ५४६८ ५१६६ २४६७ ५३६३ पाउस प्रलंभ पाउनमपाउना घट्ट मट्ट पाउल दुविध 33 पाएगा प्रहात च्चं पाए देति लोगो पाएगा बीयभोई पाडेज्ज व भिदेज्ज व पाणगजोगाहा रे पाणगावी जोग्गाई पागड्डा व पि पदम करणे पाएगा य भुजंति पाणातिपातमादी पागादिरहितदेसे पाणा सीतल कु पातणिमित्तं वसिमां पादऽच्छिनास कर पादप्यमज्जरगादी 29 पादस्स जं पमारणं पादादी तु पमज्जए। पादे पमज्जगादी पादे जो तु गमो पादोवगमं भरियं पादोसिय अङ्कुरते पाभारतमि काले पमाणातिरेगधरणे पामिश्चित पामियावितं पायऽच्छि - रास कर पायच्छित्ते प्रसंतम्मि पायच्छिते पुच्छा पायप्पमज्जगादी 17 पार्याम्म य जो उ गमो पायसहरणं घेता पायावच कुडुबिय प्रथम परिशिष्ट ૨૪૪y ५.८६६ ८१६ १६४४ १६५३ ४३०१ ४५२% ४७९३ ४२०५ ३८८० ३८५० १६६४ ૪૫૨૭ ६३३३ १६६६ २७२ १२४५ ४६८७ ४६२४ ૪૨૪૨ ५०६१ ६१५ १८५५ २२८१ १५०० ३६४२ ६१५१ ६१५५ ४५२७ ४४८६ ४५७२ Fier ४८४५ २३०४ ३३१२ ११६४ ३१८७ २२०० ६३३ १६२२ ३६६३ ३८४८ ६८५ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाध्यरिण निशीथसूत्र पायावरण परिग्गहे २४७२ पासे तमाल सोहण ५१२१ ५१२४ " पारणग-पट्टिता-प्राणितं पारंचियो ण दिग्ज व पारंचि सतमसीतं पारिन्छ-पुच्छमण्णह पावं अवाउडातो पावं वायभीतो पावंते पत्तम्मिय पासग-मटिगिगसीयण पासत्थ-ग्रहाचंदे १६७६ ५६४५ ६६१७ २४१७ ५३१६ २४८० पायो पासो त्ति बंधणं ति य ३७०० पाहिज्जे गाणसं पाहुडिय ति य एगे पाहुडिया विहु दुविधा पाहुण्यं च पउत्थे पाहणविसेसदाणे पाहुण तेणणेण व पिप्पलग पहच्छेदण पिप्पलग विकरणट्ठा पियधम्मे दधम्मे ५३६५ ५४०७ ४३४३. ३०४६ ३०१२ । २०२५ ११७६ ४१७७ ५०५६ ६७६ ३४३६ २३६५ २४४६ १७५१ १९४८ १९१५ १६७४ ३५६. ५२९६ २८०४ ४७७० २८८८ ४५३२ २०५० ३७७४ पियधम्मो दधम्मो ४३५० ४६७१ ४९९२ ४०५७ १८४० २८२६ ४०६ ४६७० ४६६१ ३७६४ पासस्थमहाछंदे पासस्थमादियाणं पासत्यादि-कुसीले पासत्यादिगयस्सा पासत्यादिममत्तं पासत्यादी ठाणा पासस्थादी पुरिसा पासत्यादी मुडिते पासस्थि अण्णसंभोइणीण पासत्थि पंडरज्जा पासत्योसण्णकुसीलठाण पासत्थोसण्णाणं ५०१८ ५९५५ ६५३४ ४५७ २०६६ ४०६६ ३१६८ ३८८३ १८२८ १८३२ पिय-पुत्त खुड्ड थेरे पियपुत्तथैरए वा पिसियासि पुब्ब महिसि पिहितुभिण्णकवाडे पिंडस्स जा विसुदी १२६२ पिंडस्स परूवरणता पिडे उग्गम उप्पादरणेसरण पिंडो खलु भत्तट्टो पीढग-रिणसज्ज-दंडग पीढगमादी मासण पीढफलएसु पुवं पीतीसुण्णो पिसुरणो पुच्छ सहु-भीयपरिसे पुच्छतमरणक्खाए २६११ पुच्छा कताकतेसु पुच्छा सुदे अट्टा पुच्छाणं परिमाणं पुच्छाहीणं गहियं पुजा पासा गहितं ८८८ पुट्ठो जहा प्रबद्धो ४८१६ पुढवि-तण-बत्यमातिसु पुढवि-दग-अगणि-मारुन पुढवि-ससरक्ख-हरिते १००६ १४१३ ४०२१ ४०२५ ६२१२ ४६२५ ३६८४ ८६५ ३७४८ २५८५ पुच्छ सही ७७५ १०६२ ४९८६ पासवट्ठारपसरूदे पासवरण-पडरिणसिका पासवरणमत्तएगं पासवणुच्चारं वा २८०३ पासवरणुच्चाराणं पासवरपुच्चारादीण पासंडिरिणत्थि पंडे पासंडी पुरिसाणं पासंतणे पवाते पारित्ता भासित्ता १५५५ ५४५ १९६६ १८६६ १८५६ १८६० ४७४६ २३८२ ५७०५ १८२३ • ५०५८ १३१२ ५६०८ ५७६५ ३६१ २०११ www.jaiņelibrary.org Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܕ पुढवी- प्राक्काए पुढवी- प्राक्का पुढी-प्रोस सजोती मादी पुढवीमादीसू पुढवीमादी ठाणा पुढवीमादी पूरणादिएसु पुरणरवि दत्रे तिविहं पुरवि पडिते वासे पुण्णम्मि ग्गियाणं पुतो पिता व जाइतो पुतो पिया व भाया " पुप्फग गलगंड वा पुयातfरण विमद्दइ पुरकम्मम्मि य पुच्छा पुर-पच्छिमवज्जेहिं पुरतो दुरूह मेगंते पुरतो य पासतो पिट्ठतो पुरतो य वच्वंति मिगा पुरतो वच्चति साधू पुरतो व मग्गतो वा पुरतो वि हु जं धोयं पुराण सावग- सम्मद्दिट्ठि पुराणादि पण्णवेडं पुराणे सावतेसु पुरिमरिमाण कप्पो पुरिमंतरंति भूयगिह पुरिसज्जा प्रमु पुरि-सा एमेव पुरिसम्म इत्थिगम्मि य पुरिसम्म दुब्विणीए पुरिससागरिए उवस्वयम्मि पुरिसा उनकोस मज्झिम पुरिसा तिविहा संघयरण पुरिसा य भुक्तभोगी पुरिसाणं एगस्स वि पुरिसाण जो उ गमो •×× १३७५ ५५८ २३०८ ४६४८ ४२५७ ४६४७ ५००४ १२४३ ३२५८ १२६७ १७१४ १७१६ ४३२८ ३०६१ ४०५६ ११६० ४२५५ ३४४६ ३४४८ २४३८ २४३७ ४०७१ ५६७१ ५७१८ ६०४६ ३२०३ ५६०२ २०३७ ८७ २७०६ ६२२१ ५२०३ ७७ ७६ ५३७ २६७२ २२८६ गमो पुरिसाणं जो तु ४६३६ पुरिसित्थी प्रागमले ६०५ ४२८८ ३७३६ ३७४१ १८१६ ३५४१ ५६६४ २६०२ २६०१ १८२८ ३०८० ३१३० पुरिसेसु भीरु महिलासु पुरिसहितो वत्थं पुरिसो प्रायरियादी पुरे कम्मम्मि कयम्मी " पुव्वतोवर असती पुत्रगते पुरम्रो वा पुव्वगयका लियसुए पुष्वगहितं च नासति पुव्वधरं दाऊणं पुष्वण्हमपट्ठविते. पुव्वण्हे वरण्हे पुष्वतव- संजमा होंति पुष्वपयावितमुदए पुग्नपरिगालियस्स उ पुष्वपरिसाडितस्स पुब्वषवत्ते गहणं पुष्पविगतरे पुब्वभरिणतं तु जं एत्थ पुव्वभरिणतों व जयरा पुष्व भवियपेम्मेणं 33 पुवभवियवेरेर पुवमभिण्णा भिणा १६८६ पुरुवं प्रदता भूतेसु पुष्यं प्रपासिकरणं पुरुवं गुरुरिण पडिसेविऊरण ७८२ पुव्वं चिय पडिसिद्धा २५५६ पुव्वं चितेयन्वं पुब्वं तु प्रसंभोगी पुवं दुश्चरियागं २६०२ पुव्वं पच्छा कम्मे पुव्वं पच्छा संय पुवं पच्छुद्दिट्ठ ૨૪૪૭ ५५३ ३५७० ५०७१ १०६६ ४०६२ ४०६५ ४०६७ १७३ १०८६ £¥૪૭ ६०७१ २०२६ २०४० २०३६ ३३३२ १०७५ ६०५२ ८०१ २००८ २४०६ ५२०१ ५६८२ ३६५४ ३६५५ ३६४४ ३६५६ ४८६४ ६२७ 63 ६६२२ ३७७२ ५४६४ ४६१७ ३५७७ ५७७७ ५७७२ ५५०८, परिशिष्ट ५१४७ २०१६ १६७८ १६८६ १६८५ २५५४ १००३ ५४११ Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यगि निशोथसूत्र ५११ २८८ ३४५६ ५५१३ ५५०७ १४१३ पोग्गल मसती समितं ५४१५ पोग्गल दियमादी ५४१६ पोग्गल-मोयग-दंते ५४१० पोंडमयं वागमयं पोत्वगजिरणदिट्टतो ३०६१ पोगिसिरणासरण परिताव पोसगमादी ठारणा पोसग-संपर-गड-लंख पोसिता ताई कोती ३८२७ ५६६३ ५६६३ ५७१६ ३७०० ३०५७ १९६५ ४००४ ४७४२ २५९६ ३७०८ ३८६२ ४१४१ ६६२० पुव्वं पच्छुट्टि पुब्वं पि धीर सुगिया पुव्वं भगिता जतगा पुवं मीसपरंपर पुव्वं व उवक्खडियं पुव्वं वुग्गाहिता केती पुवाउत्ता उवचुल्ल चुल्लि पुवाए भत्तपारणं पुवाणुपुव्वि पढ मो पुन्वारगुपुन्वी दुविहा पुग्वामयप्पकोवा पुवामयप्पकोवो पुब्वावरदाहिण उत्तरेहि पुन्वावरसंजुत्तं पुवावरसंझाए पुवाहारोसवणं पुवाहीयं णासति पुब्धि पच्छाकम्मे पुवुद्दिढतस्स उ फलगादीत पभिक्खण फासुगमफासुगे या फासुगमफासुगेण य फासुग जोरिणपरित्ते १८६२ १९०६ २६१८ १८२५ ५६८८ ३६४७ २८६ २६६० ३००३ ३४६७ ५७०० ४५० २५६ ६१५३ ५२६५ ५१०५ ३११५ फासुगपरित्तमूले फासुयजोरिणपरित्ते फिडितम्मि मद्धरते फिडितं च दर्ल्डि वा फेडितमुद्दा तेणं ६०५४ ३१६७ ३२०७ ४०४४ HTTEEEEEEEEEEEEEEEEEEE .३३७४ ५५०६ ५५११ १०५३ ४६३२ पुबुट्टितत्सा पुग्वे प्रवरे य पदे पुवोगहिते खेत्ते पुवोवट्ठमलद्धे पुहवीमादी कुलिमादिएसु पूअलिय सत्त प्रोदरण पूतीकम्मं दुविधं पेच्छह तु प्रणाचारं पेजाति पातरासे पेसवितम्मि प्रदेते पेह पमज्जण वासए ६८७ ३६५७ ४२६३ ४५१७ ४६३६ ४२७ ५७०१ ३६०० १७१६ ५४१२ बत्तीसलक्खणधरो बत्तीसा अट्ठसयं बत्तीसा सामन्ने बत्तीसाई जा एक्कघासो १०६६ बत्तीसादि जा लंबरपो बढिए वि एवं बद्धिय चिप्पिय प्रविते ४८०३ बम्ही य सुन्दरी या बलवण्णरूवहेतु बलि धम्मकहा किड्डा २७९१ बहि अंतऽसन्निसन्निसु ३४३६ बहि वुड्डी अद्धजोयण बहिता व गिम्गताणं बहिधोतरद सुद्धो ३६६० बहियऽष्णगच्छवासी ४६३८ बहिया वि गमेतृणं २८७० १३२६ ३२४६ ५६०२ २३६५ ८०४ ३४१८ २४१८ ३३६० २०६ ५३८१ ५२६८ ५८१३ १३७४ ४२७१ ५०६६ २८१४ पेहपमज्जगसगिायं पहा मेहकता दोसा पेहुण तंदुल पचय २७६४ २३६४ ४८३१ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ प्रथम परिशिष्ट २५१९ २२४५ • ६४०१ ३७४६ ३५७१ ४२८१ बासत्ताणे पणगं बाहाए अंगुलीए व बाहाहि व पाएहि व बाहिठितपट्टितस्स तु बाहिट्ठिया वसभेहि बाहिरकरणेण समं बाहिर खेते विष्णे बाहिरठवगावलियो बाहिं मागमणपहे बाहिं तु वसितुकामं बाहिं दोहणवाडग बाहुल्ला गच्छस्स तु विइयपदमणप्पज्झे १४१४ १७२४ ४२०६ १९९० ३१५० ५४२५ १२०१ ६२५५ ४३७० २४०२ १९९६ ६४२८ ३५८१ ५५९६ २९८२ ३३८२ ३७१६ १८८४ २७८३ ४८३६ ३५७६ ३५४३ ४२६७ बहिया वि होंति दोसा वहुमाइण्णे इतरेसु बहुएसु एक्कदाणे वहुएसु एगदाणे बहुएहि वि मासेहि बहुएहिं जलकुडेहि बहुपडिसेविय सो या बहुमाणे त्ति भइता बहुरयपदेस प्रवत्त बहुसो पुच्छिज्जतो बंधं वहं च घोरं बंध वहो रोहो वा बंभवतीणं पुरतो भव्वए विराधण बंभस्स वतस्स फलं बंभस्स होतऽगुत्ती बाडग साहि-णिवेसरण बादरपूतीयं पुण बायालीसं दोसे बारग कोदव-कल्लारण बारस अट्टग छकग वारस चोइस परणवीसमो बारस दस नव चेव तु बारस य चउन्वीसा बारसगुलदीहा बारसमे उद्देसे बारसविहंमि वि तवे बालमरणे य पुरषो बालऽसहु-वुड्ढ-अतरंत बालं पंडित उभयं बाला बुड्ढा सेहा बाला मंदा किड्डा वालादि परिच्चत्ता ३५३१ ४०४६ १४८५ ८०६ ४४५ ३८७६ विइयं परिणविसए बितिए वि समोसरणे बितिए वि होति जयणा बितिएण एतऽकिच्चं बितिएपोलोएंति बितिमो वि य पाएसो ३९८३ ३९८६ ४३११ १३८५ ३२६६ ५७१७ ४८.६ ४८५२ ६५० ६२५३ ६६२ " ४०५६ १३८८ ६५४७ २१३२ ७१० ५९९८ वितिय गिलाणागारे वितियततिएसु नियमा बितियपए एमागी वितियपए कालगए बितियपदज्झामिते बा बितियपद तेण सावय ५८८४ ३७७५ ३०७१ १३०७ ४६०७ - ४२ ३८११ ___ ३२६३ ६०१३ १११० बितियपददोब्णि वि बह वितियपदमणप्पज्झे ४२६४ ११२८ ३५४५ १६०४ १६४८ ३७४४ बाले वुहहे कीवे बाले बुड्ढे गपुसे य बाले सुत्ते सूती बावरि पि तह चेव बावीसमाणुपुटिव ८७४ १४६४ १५२३ १५४३ १७८४ १८१७ १५२२ १८२७ ३२०८ २१३७ ३६७४ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभाष्यपूणि निशीथसूत्र बितिय पदमप्प 19 "" 19 " 11 11 13 "# 11 11 " " "" 17 "" 37 " "7 " 11 "I " "1 97 11 78 "1 23 "1 " #1 " " :::::: ?EEE २००३ २०१६ २१५८ २१७१ २१७७ २१८० २१८४ २१८७ २१६१ २१६४ २२२८ २२५४ २२६० २२६८ २२७३ २२७५ २२७७ २२८० २२८२ २२८५ २२६१ २२६४ २२६७ २३०० २३०२ २३०५ २३०६ २३११ २३१३ २३१५ २३२० २३२२ २३२६ २३२८ २३३० २३३२ २३३४ २३४० २३४६ वितियपदम गप्प " " " " "" #1 #1 22 " " " " "1 "I 21 " " 11 " " "# 12 " " " "P "I 18 # "0 "P " #1 ::::: 21 " २४३४ २४४४ २५४४ २५५० २५६२ २५७० २६२७ २७७१ ३३०६ ३३१३ ३३३६ ३३६६ ३५०२ ३७७६ ३८०८ ३६८४ ४०२४ ४०४१ ४१२४ ४३२७ ४३६७ ४३६८ ४६२५ ४६५० ૪૬૨૫ ૪૬૬ ४६५१ ४६५५ ५०६४ ५४४१ ૪:૦ ५७८४ ५६०३ ५६०८ ५६०६ ५६११ ५६१३ ५६१५ ५६१७ ५६२६ ५१३ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ बितियपदमरणप्पज्झे " 33 "" बितियपदमणागाढे faतिपदमरणाभोगा " fafaeपमा भोगे 33 " " 22 बितियपदमरिण उसे वा " 37 " "} "" 7 #1 "> 21 "" " वितियपदमधासंथड बितियपदमसति दीहे बितियपदमंचियंगी बितियपदमसंविग्गे "" "" वितियपदवुज्झराजतगा बितियपद व ज्भामित faतियपद वूढज्झामिय बितियपद बुडमुडोरगे बितियपद समुच्छेदे बितियपद साहूवंदरण बिaियपद सेहरोधरण बितियपद सेहसाहारणे बितियपद होज्ज भ्रमहू YESY ५६६० ५६६५ ६२५७ १५६६ १६६२ २५२० १०७८ १२०६ १४६८ १६६५ १७६५ ६२८ ६३७ ६४३ ६४८ ६६० ६६६ ६६७ ७०७ ७१६ ७२४ १६२८ ४०३० १३१३ २२० १०८८ ૪૬૭ ५५३८ ५५४७ ५१३ ६४२ ६४७ १६३४ ६२६५ २८८७ १८८२ ५७८० ८०२ ५४०१ बितियपद होज्जमणं बितियपदं प्रणवट्ठो fafaeपदं श्रद्धा fafaयपदं प्रायरिए वितियपदं उड्डा बितिपदं गम्यमारणे वितियपदं गेलपणे " 31 27 13 37 "" "" 21 "" "1 " " " 30 #1 "" " 17 " विनियपदं तत्थेव य वितियपदं तु गिलाणे विनियपदं तेगिच्छं fafaयपदं दोच्चे वा बितियपदं परलिंगे " बितियपदं पारंचिय बितिपदं संबंधी farयपदं सामं बितियपदे असिवादी बितियपदे प्राहारो प्रथम परिशिष्ट ११३७ ३११६ ११०२ २७३६ ८८५ ,EXT १२ १४६६ १५२८ १५६१ १६०६ १६४१ २४७४ २४८७ ३२८१ ३२८८ ३३५२ ३४२० ३४७६ ३६६४ ४०४५ ५७६६ ६०३४ ६०४१ ६०४५ ६०५१ ६२३१ ४१६२ ४०१३ ६१० ३१२२ ४६६६ ४६८६ ५६४४ ३७६० १५१८ E २५६५ १६१४ ५३११ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूगिण निशीय सूत्र ३०६६ ६७४ ४७२ वितियपदे कालगते विनियपदे जावोग्गहो वितियपदे जो तु परं बितियपदे दोषिण विबह बितियपदे वसपीए बितियपदे वाघातो बितियपदे वासासू बितियपदे सागारे रितियपदे सेहादी बितियपय तेग सावय बितियपयमगणाभोगे बितियाम्मि रयण देवय ११२० १२८५ १६५० ८४८ १५५४ २४४ १९६८ बीयपय तेरा सावय बीयं जोगागाढ बीयं तु अप्परूढ बीयादि मुहम घट्टण बीयारभूमि असती बीसीयठवणाए तू बीहावेती भिक्खू बैंटियमाइए बेरग्गकहा विसयारण बोडिय सिवभूइग्रो ५६६३ बोरीए दिट्ठतं बोहण पडिमोद्दायण बोहिंग-मेच्छादिभए ६००६ १९२० ४२६१ २४८ १०६३ ६४८२ ३३१८ २८७ ३६१४ ५६२० ४१७८ ५२६७ ५७२५ १००० ६३८० ४४३३ बितियम्मी दिवसम्मि बितियं अपहुप्पंते बितियं उप्पाएतु बितियं गिहि प्रोमणा बितियं गुरूवएसा बितियं च वुडढमड्डोरगे य बितियं पढमे ततिए बितियं पढमे बितिए बितिय पभुगिव्विसा ६०८० ३२७५ ५१५८ ५३७८ ५८० ५४८५ २८५६ ३२२१ २८६७ १६२७ २६५१ ४०३७ १२४० १२८० १२६८ ६०५६ ६०६२ ६०६६ ५३६० भगवं ! अगुग्गहंता ५५६२ भागधरे कुड्ड सु य भगइ य पाहं वेज्जो भाइ य दिट्ट णियत्ते भरणति रहे जइ एवं भगामारण भारावेतो भरिणतो य हंद गेण्हह भणिया तु अरगुग्धाया भण्रगति सज्झमसझं भगति जहा तु कोती भनट्टणमालोए भत्तद्वितऽपाहाडा भत्तपरिण गिलाणे २६५६ ५५५८ १७६० ५४५७ ४१५७ ५२७६ बितियं पहगि विमए बितियाऽऽगाढे सागारियादि २३६८ २४०० ४०१६ १२२८ ५१३६ ४८३५ ४८३७ ३८४२ २४८६ ६०६६ ६६२ बितियातो पढमपुव्वा बितियादेसे भिक्खू बिंदू य छिय परिणय बिय तिय चउरो ६१७६ ४१४२ ३४१४ ५६०७ १८८८ भत्तमदारणमडते भत्तस्स व पारणस्स व ५२६४ २८६६ भत्तं वा पारणं वा भत्ताति-संकिलेसो भत्तामासे लेवे भत्ते पाणे धोवरण भत्ते पारणे विस्सामणे भत्ते पाणे सयपासणे ३३२४ भत्ते पण्णावग निग्रहणा भत्तेग व पाणे व २६० ३७७ ३४०१ ४६६७ ५२४२ ५८६३ १८६३ २६८६ ८६७ ३५४० ३४५१ .३५५८ २७०३ ३४५४ बिले मूलं गुरुगा वा वीएसु जो उ गमो बीएहि कंदमादी २६०४ ५०७६ २६०७ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ प्रथम परिशिष्ट २४८३ १८०० २५३० ५६८१ २४८२ ४७५३ १०३२ ३५४५ भत्तोषिवोच्चेदं अत्तोवधिसंजोए भत्तोवहिवोच्छवं भगवयरणे ममत्र मदगो तथ्णीसाए महेतरसुर-मणुया भइतरा तु दोसा भद्देसु रायपि भद्दो उग्गमदोसे महो तष्णिस्साए मद्दो पुण अग्गहगं भद्दो सव्वं वितरति भमुहाम्रो दंतसोषण भयउत्तरपगडीए भयगेलणवाणे भयरणपदारण बउण्हं भयणपदाण चतुष्हं भावित करण सहायो भावितकुलारिण पविसति भावितकुलेसु गहणं ३०९. भावे उक्कोस-परणीत ३५८८ भावे पाउम्गस्सा ८९५ भावे पुण कोषादी भावेण य दवेण य भावो तुरिणग्गए सि भासचवलो चउरा ३५८८ भासणे संपातियहो ४६४३ भा-ससि-रितु-सूरमासा भिक्खचरस्सऽन्नस्स वि भिक्खरणसीलो भिक्खू भिक्ख-वियार-विहारे भिक्खस्स व वसघीय व भिक्खं चिय हिता भिक्खं पिय परिहायति ८५६ ४२६२ ७५३ २५३८ १४५३ २५२६ १३७६ २५७७ ५३५१ १७० ४८९५ ११६४ ८८८ ८६२ ४७२० ३२६२ ६२.४ ३१७८ ६२८७ ४०६६ ६२७५ १५२४ २३७६ ५०१६ ३७४ २२४७ ४३४ ६३१७ १८५२ ३३२१ ४८१३ ४९५७ २३४६ १९३८ २४३६ २२६६ भल्लायगमादी भवपच्चइया लीगा भववीरियं गुणवीरियं भवेज्ज जइ वाषातो भंडी वहिलग काए मंडी-बहिलग-भरवाहिएसु भागप्पमाणगहणे भारणस्स कप्पकरणं भायणदेसा एंतो भायणुकम्पपरिष्णा भारेण वेयरणाए भारेण वेयरणाते भारो भय परितावरण भारो भय परियावरण भारो विलवियमेतं भाववार सपदं भावम्मि उ पडिबढे ३८४६ १४८५ ५६६६ ५८२७ ११०६ २३६६ ४५६१ २३५६ ४१६६ ५८२६ ३२८० ६७० ५६७ ४७३० ५२७ ५२८ ५४० ३८८ ४७१४ भिक्खातिगतो रोगी भिक्खाति-णिग्गएसु भिक्खातिवियारगते भिक्खादी बच्चते भिक्खुगमादि उवासग ३१११ भिक्खुणो प्रतिक्कमंते ४००४ भिक्खुदगसमारंभे भिक्खुवसहीसुबह व ४६०७ भिक्खुसरक्ले ताबस भिक्खुसरिसी तु गणिणी ५२५६ भिवायुम्म ततियगहणे ५२८८ भिक्षुस्स दोहि लहगा भिक्खूगा जहि देसे ६०० भिक्खू जहणणयम्मी भिक्खे परिहार्यते भिण्णरहस्से वनरे २५९२ भिष्णस्स परूवणता २५६३ भिण्णं गणणाजुत्तं २६०५ भिण्णं समतिक्कतो ८४४ भिण्णाणि देह भेत्तूण ३२३ ३४१६ ४४८९ ३२८६ ५७३२ ८७२ २६२२ २८५५ ५५२४ ५८२० ५५८८ ५४२६ . . ४४६४ ६७०२ ४६१८ ९७३ ५८१० १४४६ ४६२८ भावंमिठायमारगो भावंमि रागदोसा भावामं पि य दुविहं १०६५ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यत्रूणि निशीथमूत्र भिग्गासति वेलातिक्कमे भिण्णे व ज्भामिते वा :: 39 भिण्णे व कामिते वा 19 भिसं तु होइ पद्ध भिन्ने व ज्यामिते वा भिदंतो वा विखुषं भीतावासो रतीधम्मे भुततारण तहि तभोगी पुरा जो वि भुतस्स समीकरणं भुतेयर दोस भुजइ र वत्ति सेहो भुज- वज्ज-गदाणं भुंजरण वज्जा प्रणं भुजसु पचवातं arita चित्तकम्मट्टिता भुजंतु मा व समरणा भुजामो कमगादिसु भुजसु मए सद्धि भूतर गादी असणे भूगुगगहते संतं भूमि घर-तरुणादि भूमिमिलाए फलए भूसलभ ! सासह भूसरा- विषट्टणारिण य भेद अडवाल से हे भेदो य मासकप्पे भोइत उत्तर-उत्तर भोइयकुलसेवा भोइय-महयरमादी भोइयमाविरोधे भाइयमादिमती भोगfत्रण विगने भोग् य श्रागमण ४६२६ ७३० ७४८ ७७६ ६८५ ७३५ ૪૫૪૭ ४६६६ ७७४ ६२८१ ૧૪:૪ २५६१ ३८८१ ४०१२ ५३१८ ३२५४ २१०२ २११३ ३०३ ४४२१ ११३१ ३२२ ३७६१ ३६६३ १३६३ १०३३ ३६०६ ५४२ २३३६ ३८५ १३१= १३६४ २१५२ २४५८ २४०८ १३७३ ५१४८ ३४०७ १०६६ ५७१४ ३५३५ २३६२ ६०७१ ४६२७ २६०७ ५४६ ४६२८ २०६१ ૪૬૩૭ २४६८ २८५६ भोयरणमा परमिट्ठ भोयरणे वा रुक्ते मइलकुचेले प्रमंगिए महलं च मइलियं वा मइले भरगुभहेतु मक्कसंतारणा पुरण मदंतियफाई मगहा कोसंबीया मग्गति थेरियानी मग्गो खलु सगडप हो मज्जग-गंधपुष्फोवयार " मज्जगतो मुरुडो मज्जगदी मज्जा हारट्ठाणेसु मज्जर - निसेज्जग्रक्खा मज्जति व सिचंति व मज्जादारणं ठवगा मज्झ पडो ऐस तुहं मज्झमि रामपाणं मज्भम्मि य तरुणीश्रो मज्भं दोहंतगतो मज्भा य वितिय ततिया ममिवीसं लहूगो मभेव गेव्हिअरण मज्भे व देउलादी मग उग्गमश्राहारादीया म उट्टियपदभेदे मग उपयभेदे मरण एसगाए सुद्धा मरण परमोहिजिरणं वा मरण-वरण कायगुत्तो afriधाम्रो पवत्ता मरगुणं भोयाज्जायं मतिमं प्ररोगि दीहाउश्रां मनिनितफालित फोसित मत्तगऽष्ण गुरुगा म ११६६ ४२६४ ३०१६ ४६८१ २२७६ ४२६२ ४८३६ ५७३३ ५०८३ ४३०७ ३६५८ ३६५३ ४२१५ ३०५० ५३२४ ६२१५ ५३४३ १६२८ ८७७ २७०२ २४०३ २४३१. ८२ ३५२४ ६८२ ५४०८ १८३४ २५४१ २५४६ २६०१ ६५७२ ३१७६ ५६८० १११८ ४३७८ ४४६१ ५८८६ ५१७ ३५७६ १६२२ € £ ३२६२ २८२८ ५६२५ ୧୧୪E २३६८ ७७९ २४१७ ५०७५ ३४७२ ५७६८ ४०६५ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ मद्दवकरणं गाणं मधुरा मंगू भागम मम सीस कुलिन्च ---- मयमातिवच्छतं पिव मरुएहि यदिट्ठ तो मरुगसमाणो उ गुरू 31 मरेज्ज सह विज्जाए मलेण घत्थं बहुरणा उ वत्थं महजरगजारणरणता पुरा महतरच णुमहयरए महतरपगते बहुपक्खिते महद्धणे अप्पधरणे व बस्थे महिलासहायो सरवन्नभेस्रो महिया तु गन्ममासे महिया य भिण्णवासे महिसादि छेत्तजाते महुपोग्गलम्मि तिथि‍ व मंगल- बुद्धिपवतरण मंगलममंगलिच्छा मंगलममंगले या मंगलममंगले वा 11 मंडलगम्मि वि धरितो मंतfरणमित्तं पुरण रायवल्लभे मंसखाया पारदिग्गिया मंसछवि भक्खराट्ठा मंसाई पगररणा खलु मंसा व मच्छारण व. मंसोवचया मेदो माउग्गामोतिवि मा किर पच्छाकम्मं मा रणं परो हरिस्सति मागी सयं दाहं मारणम्मारणपमारणा माम्माणमारणं मारगुस्सगं पतिविहं माणुस्सयं चतुडा ६२२२ ३२०० ३८६ ४४१६ ४८७३ - ६५१६ ६५२३ ६२३० ५८१७ ४७८१ ११६४ ६०६७ ५८२० ३५६७ ६०८२ ६०७१ ३२५ १५६३ २००६ २५६४ २००५ २०१० २५६८ ३५१४ १३६० २५.५३ २५५२ ३४७६ ३४८१ ५७३ २१६६ १८५२ ४६.३५ २३६३ ४२६४ ५६७७ ५१६६ ६१०६ ७८३ " १०१२ माति समुत्या जाती ३६६४ ६२२ ३५७४ ३६६७ ५१४४ ૪૬૨૪ मात पिता पुव्वसंयो माता पिता य भगिणी माता भगिणी धूर्या २५१६ मातुम्गामं हि मा मुंज रायडिं भायामोसमदत्तं 17 "} 17 19 मायावी चडुयारो मालवतेगा पडता मालोहड पि तिविहं मा वद एवं एक्कसि मासच उमासिएहि मास जुयल हरिसुप्पत्ती मासगुरुगादि छल्लहु " मासगुरु चउगुरुगा मामागुरु वज्जिता मामाइ प्रमन्वइए मामादी जा गुरुगा 31 मासादी पवि मा सीएज्ज पडिच्छ्रा मा पक्खे दमरातए मामो दोणिय सुद्धा मासो य भिमामो मामो लहु गुरु मिच्छत्तं गच्छेज्जा मिच्छत्तथरीकरणं " " प्रथम परिशिष्ट १०४१ ५०७८ ५६२८ ५६३० १२० २२४६ २६०६ १२३६ १२७९ १६४६ १६५८ १६६१ १०४५ १३३५ ५६४६ ६४१२ ६५१० ६५४१ ६०५ २०३५ ६६३० १४३० ३१२ ८६७ २८२३ २२०२ २२१६ १२६२ ६५३७ १०६८ ११०० ६६४१ ३७१ ४६५४ १६८४ ३२७६ ६६६३ ५०५३ ३८०७ ४४२२ ६२६० ५६१ १५५६ " " "1 २७६६ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाध्यपूर्ण निशीथसूत्र ५१६ ६२०८ ६५३३ मिच्छत्त-बहुयन्चारण मिच्छत सोच्च संका मिच्छता संचतिए मिच्छत्ते उड्डाहो :७४३ ५०५२ ३७६५ ५६३७ ५९२० ४७८८ २६४८ ५७२८ ५६०० ६३०२ २६१ २८३ ४३७१ ६३१८ ३३०६ ___ ८९ ३१३१ ६५२७ ६५२८ मिछत्ते संकादी मिच्छापडिवत्तीए मिल्लक्खूऽव्यत्तभासी मिहिलाए लन्छिषरे मीसाम्रो प्रोदइयं मुइंग-उवयी-मक्कोडगा मुइंगमादी-गगरग मुक्कधुरा संपागडकिच्चे मुक्को व मोहमो वा मुक्को व मोइतो वा २७६७ मूलगुण दइयसगडे ६००५ मूलगुरण पढमकाया ३०४३ मूलगुणे उत्तरगुणे ६१७० मूलगुणे छुट्टाणा ६२६. मूलग्गामे तिणि उ मूलतिचारेहितो मूलवयातिचारा मूलं छेदो छग्गुरु मूलं तु पडिक्कते मूलं दससु प्रसुस मूलं सएज्झएसु ३६६६ ५८७ २८०६ ४७४ ५२७.. ५२८१ ६२९१ ६३.३ २०५१ ६.१६ ६१०४ ६०४६ २५५४ ४३६४ २२१८ ५०५६ ३५२ ६३२१ ६३८२ ३६६४ २४६८ १२४१ ५१३७ २४८७ २८.१ मुक्को व मोतिमो वा मुच्छातिरित्त पंचमे मुच्या विसूइगा वा मुरिणसुनयंतवासी मुदिते मुदभिसित्तो मुय रिणब्धिसते पछुट्टिते मुरियादी माणाए मुह-रायण-चलण-दंता मुहपोसिय-रयहरणे मुहकोरण समगट्ठा मुहवंतगस्स गहणे मुहपोत्ति-णिसेज्जाए मुहमादि-वीरिणया खलु मुंडं च घरेमाणे मूइंगमानि-खइते मूगा विसंति रिगति व मूढेमसम्मद्दो मूढो य दिसज्झयणे मूलगिहमसंबद्धा मूलगुग्ण उत्तरगुरणा मूलगुण उत्तरगुणे ५२८१ मूलादिवेदो खनु मूलुत्तर पडिसेवण मूलुत्तरे चतुभंगो मूले रद प्रकण्णा मूसादि महाकायं मेच्छभयघोसणणिवे मेहा धारण इंदिय मेहावि पीयवत्ती मेहुणभावो तम्भावसेवणे मेहुणसंकमसंके मेहुण्णं पि य तिविधं मेहुण्णं पि य तिविहं मोक्खपसाहरणहे मोतु गिलाणकिच्छ मोत्त पुराण-भावितमोतूण एत्थ एक्कं मोत्तूण गवरि वुड्ढे मोत्तूरण वेदमूढं मोयगभत्तमलद्ध मोरग्गिवं कियदीरणार मोरी नउली बिराली मोल्लजुतं पुण तिविध मोह-तिगिच्छा खमणं मोहोदय अणुवसमें १४२५ ४६६६ ३६८५ २१८८ २०१३ ६२६८ २१८६ ५४०.. २१७४ ६१३७ २४६० ६५३० ३३०२ ४६० ३४५५ ४१५६ ३६३४ ३१७४ ५६२४ ३७३८ ३७०२ १३७ ४३१६ ५६०४ ६५७ १६८३ २२२६ २२५५ ५०१६ ३७०७ Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० रकम-पिसायतेग्गाइए रक्खानुसरण हेड रक्स्विज्जति वा पंथो रज्जुमादि प्रणिं रज्जू वेहो बंध रज्जे देसे गामे रण्णा कोंकणगामच्चा रगो मोरोहातिसु रण्लो उवनहरिणया रणो दुवारमादी रष्णो पतंग वा रणो महाभिसेगे रणो य इत्थिया खलु रतुकडाम्रो इत्थी रमरिगज्जभिक्ख गामो - खोल्लमादिसु मही रयरणाइ चतुव्वीम रत्ताणपत्तबंधे रयत्ता पमाणं रयमाइ मछि विच्छ य रहरीले रसगंधा तहि तुल्ला रसंगियो य थलीए रसगेहि freere रसगेही पडिबद्ध रसालमवि दुग्गंधि रवीरपुरं नगरं रह-हत्थि जाण तुरगे रंधरण किमि वाज्जं 38 राईण दोन्ह भंडगा राईभत्तं चव्विहे रागग्गि संजमिधरण रागद्दोसवितो रागोसवको रागद्दोसाणुगता रागद्दोसुप्पत्ती र ३३१७ १७० ३३७४ ६३०१ ४२६६ २८३७ ३८५६ ३६६३ २५५६ २५२६ २४८१ २५६७ ५१६५ ६११० ५२५४ ४७:१ १०३१ २८१ ५७६१ ४१४ ३२२८ ४६१३ ५५२६ १११६ ४७८६ १११३ ५६०६ ३०१४ ४६६२ ૨૪ ३३८८ ४१२ ६०१ ६६६६ ५६५८ ३६३ १२७ २७७५ ५५७१ २५१३ ३३३५ ३६७२ ४२५३ १०५० ५४२८ १६१६ २७८६ राना दोमा मोहा रागेण व दोसंग व "1 रागेतर गुरुलहूगा रातिरिगी उस्सारे रानियिगारवेणं रातिणिय सारिमतरगं रातो व दिवसतो वा रायगिहे गुण सिलए रादुटु भए वा रायदुद्रुभएस् "1 रायमरम्मि कुल घर राया इव तित्थकरो राया उ जहि उसिते या कुंथू सप्पे रायाऽमच्च पुरोहिय रायाऽमच्चे सेट्ठी या रायड़ी वा 71 राया रायाग्गो वा यादि-गाहरणट्ठा रामित्ति गाहा रोह व प्रमा रिक्म्म्म वा त्रिदोमो याति रियादमधि रति रुक्वविलग्गो रुषितो रुद्धं वोच्छिष्णे वा रुवस्सेव मरिसयं रुवं ग्राभर विहिं "P रूवं प्राभरणविही रूवे वसहते रोगेण व वाहीण व ३०६६ ૪૬૪૨ रोसेर परिवेसे वा रोहे मासे प्रथम परिविष्ट ६१७५ २७३१ २७५६ १३२ ५०२० ६२५१ २११६ २६३७ ५५६८ १६१३ १६०७ ३६०६ १५५७ ६०७७ २५५७ ३१५८ ६२६६ १७३५ १५६० १५७२ १५७६ ३७६८ २५६६ ૬૬ २३७५ १६८६ २५४१ ५६४२ ३६२६ २४०१ २६२६ २५६३ ५२०४ ५०६६ ३५३ ३६४५ ५४२२ २३७५ ६२० ५८३३ ३७५७ ३७१० ३०४८ ४८३५ २५५७ २४.१ ४८१२ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाष्यचूरिण निशीथसूत्र लक्रसि उवषाय पंड लज्जाए गोरवेण व तपय खलुते लसूण अवस्थे लगुण रणये इतरे लढण माणुसत्त लग वेिदेती लद्ध तीरित कज्जं लहु उ उहा लहु गुरु मासो लहू य दो दोसु भ लोय दो य लहुम्रो य होइ मासो लहुघो लहूगा गुरुगा लहु लहुया गुरुवा लहु लहुया दुपडादिएसु लहुगा तुम्हम्मी "1 "" लहुगा तो परि लहुगा य गिरालंबे गाय दो दो य लहु गुरु लहुया गुरुगा लहुगो गुरुगो गुरुगो लहुगो य होइ मासो लहुगो लहुगा गुरुगा लहुगो बंजरग भेदे लहुताहादीजण यं लहुयादी वा वारि लहुया लहु सुद्धो लाउयदास्यपाते लाउयदारुयपादे " लाभालाभपरिच्छा 27 लाभालाभ-सुह-दुक्ख लाभालाभ सुहदुहं लाभित नितो पुट्ठो ल ३५८० ६८ १ ४२३४ ५०१४ ३२४५ १७१८ ३३३ १३८४ २७८० २६४६ १०६ १०८ ३७२ १८२० ६६३ १६ ४७५८ ५२६६ ५२८० ४६०५ ४७३५ ४७२२ ५६४ १०७ २२४६ ३२० १८ ६३६१ ८६६ ६६३३ ६८५ ७२६ ६७५ ६७८ ૬૪ २६८७ ४२६१ ४५१६ ५६४४ ६१४ ४२७० ३७४० ४६४८ २६६६ ५८४४ लाला तया विसे वा लिक्खत - रिगज्जमाणे feng free d लिंगरथमादियाणं लिंगरथस्स गिरथेसु प्रकप्पं तु वज्जो लिंगम्मि य च उभंगो लिंगेण कालियाए लिंगेण चैव किढिया 33 १०४१ ८७७ ८६१ लिंगे लिंगे लिंगिणीए लित्थारणं दवेणं लिवि भासा प्रत्येण व लुद्धस्स भंतरम्रो लेवकडे वोसट्ठ ४६५५ ६१२० ६१२० लेवाडमणाभोगा ३८५२ लेवाडहत्यकेिरण ६१०८ पिसित गहणे ९०१ लेव्ह तीहि पूर्ति ३३४८ लोइय लोउत्तरियं लोइयववहारेस लोउत्तरम्मि ठविता लोए वि होति गरहा लोग हवाइ दुर्गा छा लोकारका लोगच्छेयभूयं लोगविरुद्ध दुपरिच्चयो लोगे जह माता ऊ लोगे वि य परिवाओ लोणं व गिलाण्ट्ठा लोभ एसघातो "" लोभे य श्राभियोगे लोयस्सग्गहकरा लोलंति मही य धूली लोती छम-मु लोवए पवए जोहे इगा प्रयोग-योगी व. ३४७५ २२६७ १९७७ ३०१३ ११५८ ५०२८ २२३४ ૪૪૬ २२३२ ४३७ १६६० १८७४ २२६२ २६६१ ५८३५ ४२० ४६०६ ५०६ ६६४ ४३५६ १६२२ ६०५५ ४५४३ ४४२३ ५७३७ ३०६३ ६२६४ ५५२५ १७४ २५०५ २५२३ ५०७२ ३५५३ ४३८७ १७४७ ३६२७ १६०÷ ५२१ २६८१ १६१७ ३५३६ ६२७ १८९३ ४०११ ३२६८ १६६२ ५४२७ ६३८६ २८१७ ३७७० Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १२२ प्रथम परिशिष्ट ५८३६ पहनाति भिक्षु भावित वइयासु व पल्लीसु व बमकंतजोणि तिच्छा वक्तजोरिण वडिल वक्केहि य सत्येहि य बच्चसि गाहं बच्चे बच्चह एगं दव्वं वच्चंतस्स य भेदा वच्चंतो वि य दुविहो बच्चामि वच्चमाणे वच्छल्ले असितमुडो बट्टति तु समुद्देसो वट्टति अपरितंती वट्ट समचउरसं २९४३ ३०६७ ६८० ५७८ ८५८ ६७१ ८५४ ३५६२ २६३७ १९८१ ३०४ २१८५ वडपादवउम्मूलण वरणगयपाटण कुडिय वण्णड्ढ-वण्णकसिणं वरणसंडसरे जल थल वरिणउव्व साहु रयरणा वरिणयं महिलामूढं वरिगया ण संचरंती वण्णमविवण्णकरणे वण्णविवच्चासं पुरण वण्ण-सर-रूवमेहा वगण य गंधेरण य वतियादि मंखमादी वत्तरणा संधणा चेव बत्तम्मि जो गमो खलु २३६४ ४८०२ वत्थव पउण जायगा ३०५६ १९५५ वत्थं छिदिरसामि त्ति ४८५८ ९६८ वत्थं वा पादं वा ४१२१ वत्थं वा पायं वा ६०७२ वरथं सिव्विस्सामी वत्यादिमपस्संतो ४७३३ ६०८७ वरिपरिणरोहे अभिवड्डमाणे ५४८१ ५३८६ वत्यु वियारिणम्णं २८४८ गरण व पाएरण व ४६० वप्पाई ठाणा खलु ३०६६०७४ वप्पादी जा विह लोइयादि ३८९९ वमण-विरेगादीहिं ४०२२ वमण-विरेयणमानी ५८४६ वमरणं विरेयरणं वा ५६५ २६६ वय-गंड-थुल्ल-तराय ३८५१ वयसंथवसंतेणं २७८६ २७०७ वरतर मए सि भरिणतो २६६४ वरिसघरट्रागादी ३६६६ वरिसा गिगसासु रीयति ३२२६ ४२५१ वरिसेज्ज मा हु छण्णे वलयं वलयायममागो ४६३८ वसधी ण एरिसा स्वलु ४६३३ वसधी य प्रसज्झाए ४३३१ वसधी य असंबवा १११२ ४४७७ वसधीपूतियं पुण वसभा सीहसु मिगेसु ६३६१ वसमे छग्गुरुगाई २७५४ ५४६४ वसही प्राधाकम्म ५५९० वसहीए दोसेणं ५५८३ ५४८३ वसही दुल्लभताए २७४५ वसहीरक्खरगवग्गा ५३८८ वसिकरण-सुत्तगस्मा २७३७ वसुमं ति व वसिम.ति व ५५७५ वहणं तु गिलाणस्सा ६०२८ वहबंधण उद्दवणं २७६८ २३१७ ६५६० ४३२६ ४:३० ४३८१ १०५२ २६३४ २६०३ ३३४८ १२६४ ३८०५ १०१८ १७०७ ३७२६ ६३२ ८११ ३४५० २६२३ २६६५ वत्तवप्रो उ अगीमो ४६५६ ३७६ वत्तस्स वि दामचो वत्ते खलु गीयत्थे ५४७५ ५२५५ १५२६ ५४२० २००० ३६५८ ३५७८ वत्थत्था वसमारणो बत्थम्मि पीरिणतम्मी . वत्थम्बजयणपना ५०५४ Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५२३ २६८२ ५३५८ २७३५ २१०३ २०४७ ३१२४ १२४४ ६१४८ ३२५६ ५८३ ४२८९ वासावासविहारे वासासु अपडिसाडी वासासु व तिणि दिसा वासासु वि गेण्हती वासासू दगवीरिणय वासेरण रणदीपूरेण वाहि-णिदाण-विकारे विउसग्ग जोग संघाडए विउसग्गो जागणट्टा ५६०६ ६२३२ ३१८८ ३०७३ १९२७ २७६६ १६४ मंभाष्यणि निशीथसूत्र बंका उ ण साहंती बंजणभिदमारणो बंदिय परामिय मंजलि .. वंसग कडपोकंपण बाउल्लादीकरणे वाए पराजिनो सो वाएंतस्स परिजितं वामोदएहि राई वापाते असिवाती वापाते ततिम्रो सि वाघातो सज्झाए वाणंतरिय जहण्णं वात खलु वात कंटग वातातवपरितावरण वादपरायणकुविया वादं जप्प वितं वादो जप्प वितंडा वापण पडिपुच्छण वायाए णमोकारो वायाए हत्येहि वायामवग्गणादी वायायवेहि सूमति वारगसाररिग अण्णावएस वारत्तग पव्वज्जा वारम य चउव्वीसा वारेइ एस एवं वाले तेणे तह सावा वाबारे काल धरणे वास उडु प्रहालंदे २६६५ ६१२६ २५०७ ५११७ ५६४७ ३०१५ ५५२७ २१३० २१२६ २०६४ ४३७२ २७८४ ४६४ ३३६४ ३२६ ५८६० २१३४ २७६५ ५६४३ ३७२३ २१२० २१२१ २४१ ६०८४ ३१६० ३१४६ १२७८ ३२४१ ३७६३ विकडुभमग्गणे दीहं २४६८ विगतिमणद्रा भुजति ३०५५ विगति विगतिब्भीमो १६१८ विगतिं विगतीभीतो विगतीए गहणम्मि वि विगतीकयाघुबंधो विगयम्मि कोउहल्ले विग्गहगते य सिदे ४५४५ विग्गहमणुप्पवेसिय २७०५ विच्चामेलण सुत्ते विच्छु य सप्पे भूसग विज्ज-दवियट्ठाए विज्जस्स य पुप्फ़ादी विज्जा-पोरस्सबली विज्जा-तवप्पभावं २७१७ विज्जा-मंत-गिगमित्ते ३०४६ विज्जाए मंतरण व विज्जादसती भोयादि विज्जादीहि गवेसण विज्जा मंत-पख्वरण ५६६५ ३०२४ ५०५१ २८७७ ६५६२ ४८५४ १५६५ १६१२ ३१६८ ३१७० ३८६६ ५२६४ ३६२० ३५९६ २७७६ ५६०३ ५३४७ ३०३१ २८६० ४४४०५५७३ ४४५५ १३७० १३६८ ४३०४ ४४५६ ६४०५ २६३१ ९५० १८६४ २४२१ ४६३४ वास-सिसिरेसु वातो वासत्तारगाऽऽवरिया वासं न उवरमती वासाखेत्तालभे वासारणं एगतरं वासाण एस कप्पो वासादिसु वा ठामोसि वासा पयरगगहरो विरिणउत्तभंड भंडरण वितिगिच्छ प्रभसंथड वित्थारायामेणं ५८२८ ३८८३ २५ ४२६६ विदु कुच्छत्ति व भगति विडंसरण छावरण लेवणे य विधिपरिहरणे सुद्धो १६७५ २०२६ २०१० Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिशिष्ट २०६४ ५०६ ३५३५ १८६० १२५७ ५६.८ ३२८७ वीयारे बहि गुरुगा वीरल्लसउरिण वित्तासियं वीरवरस्स भगवतो वीसज्जिता य तेणं वीसष्ट्रारस लह गुरु वीसत्यादी दोसा वीसस्था य गिलागणा वीसरसहरुवंते वीसं तु पाउलेहा २७१३ १०४६ ३३३७ २४५६ १६७२ ४२१८ ५७५६ ६५४३ ३७७८ १६७० ६१५६ ४६६३ ५८७० ६५२१ ६४३३ ६४७५ ५६१४ ४०४५ ६०४० ९३४ ५५७६ २६१५ विषुवरण गंत कुसादी विपुलकुले मस्थि बालो विपुलं च अण्णपारणं विप्परिणतम्मि भावे विप्परिणमेव सण्णी विप्परिणामणसेहे विमलीकतऽम्ह वक्खू विम्हावरणा तु दुविधा वियडत्तो छक्काए वियत्तस्स उ वाहिं वियडं गिण्हइ वियरति वियरऽभिधारण वाते विरए य प्रविरए वा विरतिसहावं चरणं विरहालंभे सूलविरहे उ मठायतं বিবাবি তা विलउलए य जायइ विलियंति प्रारुभंते विवरीय दन्त्रकहणे विसकुभ सेय मंते विसगरमादी लोए विसमा प्रारोवरणाए विसय कलहेतरं वा विसुप्रावरणसुक्कवरणं विहमदाणं भरिणतं विहरण वायरण भावामगागा विहि-प्रविहीभिण्णम्मी विहिरिणग्गतादि विहिणिग्गतो तु जतितु विहिबंधो विरण कप्पति विहिभिण्णम्मि ए कप्पति विहिसुत्ते जो उ गमो वीमंसा पडिणीता वीमंसा पडिणीयट्टया वीयरग समीवाराम वीयार-गोयरे थेरसंजुम्रो वीयारभूमि असती वीयारभूमि-दोसा ३७५८ ४०५५ ४७६४ ३५८ २६५७ ४१३६ ३४६५ ४६४६ २६१ २०४ १८०६ ६४६२ २२५७ ८४५ ५६३४ ३७६० वीसं वीसं भंडी वीसाए अदमासं वीसाए तू वीसं वीसा दो वाससया वीसा य सयं परणयालीमा वीसु उवस्मते वा वीसुदिण्णे पुच्छा वीसुभूयो राया बुग्गहडंडियमादी वुग्गहवक्कंताणं दुत्तं दबावातं वुत्त वत्थग्गहरणं सिरातियागरणातो दुसि संविग्गो भणिती वेउन्वियलद्धी वा वेकच्छिता तु पट्टो वेजस्स पुष्वभरिणयं वेज्जस्स व दग्वस्स व वेज ण चेव पुच्छह वेज्जेट्टग एगदुगादि वेज्जे पुच्छरण जयगणा वेण्टियगहरिणखेवे वेयावरचस्सट्टा वेयावच्चे अगलो वेयावच्चे तिविहे वेरग्गकरं जं वा वि वेरग्गकहा विसयागा वेरग्गितो विवित्तो य २८४२ ६४०७ १७३८ ६०१४ ५४६४ ३६६ ३२७६ ५४५१ ५४२१ २५८७ १४०५ ४६६८ ३०७४ ४०८६ ५४०१ १०२८ ७४० ४९२० ३१२३ १०५७ ४८६० ४८८६ २६८ २४६४ २०७४ ३७७३ ६६०५ २६१२ १०६३ १०६२ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूणि निशीथसूर ५२५ २७६. सगणम्मि पंच राइंदियाई ३३६० १०६० ५७५३ ५७५५ ८३० १९८८ वेरं जत्थ उ रज्जे वेलातिक्कमपसा वेलुममो वेराममो वेलुमयी लोहमयी वेवग्गि पंगु वडम वेहाणस मोहाणे वेहारुगाण मण्णे वोवस्थे चउलहुया योच्छिण्णमडबे वोच्छिण्णाम्मि मडंबे वोच्छेदे तस्सेवउ बोसट्रकायप्रसिवे सगच्चिया स-सिस्सिणि सगदेस परदेस विदेसे सम-पायम्मि य रातो सगला- सगलाइन्ने सगुरुकुल सदेसे वा सग्गहरिणम्वुड एवं सग्गाम-परग्गामे १०८१ २८८० ३६४६ ३०६० ४५३१ ३०१० ४२२ ३८०० ६०५८ ४२६६ १९१३ २८२० २०२२ २४३६ ३६५३ १५५१ ४१४४ ३४२८ ६०६३ १४८४ ३६६० ४३६७ ५०४३ २६६६ १५० १८२ १८१ २६४५ २७७४ ६४२ १८७० ४२७१ ४२७४ ४२७७ वोस? पि हु कप्पति ५८७३ सग्गामे सउवस्सए सचित्त-णंतर-परंपरे य सचित्तेरण उ धुवणे सचित्ते लहुमादी सच्चित्तखद्धकारग सच्चित्तचित्तमीसो सच्चित्तमीस अगणी सच्चित्तमीसएसु सञ्चित्तमीसगे वा सञ्चित्त-रुक्खमूलं सचित्त-रुक्खमूले ५७२७ ३५६४ ६४७८ २३३७ ४८५७ ६१३ २०८३ ३९८७ १६०८ ५६५८ १९६६ १८६६ १९०६ १९१६ १९१७ १९१६ ३६५७ ४६९२ ५४१० । सइ लाभम्मि प्ररिणयता सउणग-पाय-सरिच्छा सउगी उक्कडवेदो सयरीए परापण्णा सकडक्खपेहरणं बालसकड दह समभोम्मे सकल-प्पमाण-वणं स किमवि कातूरराऽधवा सकि भंजरगम्मि लहरो सक्कमहादीएसु सक्कयमत्तावि सक्कर-घय-गुलमीसा सक्का अपसत्थाणं सखेने जइ ए लभति सक्खेत्ते परखेने सक्खेत्ते सउवस्सए सग-जवणादि विरूवा सगरमम्मि गस्थि पुच्छा सच्चित्तं अचित्तं सच्चित्तंबफलेहि सच्चित्तं वा अंबं ३०६३ सच्चित्ताति हरंतिण सच्चित्तादि हरति णे सचित्तादी तिविधं ४२६० सच्चित्तादी दव्वे . ४६९२ २७४२ ५५८० ५४८० ५६८४ ३३२८ ४१७२ ३२६० १२०५ ५७२७ ६५८६ २०७२ ६२६७ सच्चित्ते अच्चिते सच्छंदमगिट्टि Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ प्रथम परिशिष्ट १९६४ ५२२७ ५२१६ २१७२ सच्छंद परिणत्ता सच्छंदेरण उ एक्क सच्छदेण य गमणं सच्छंदेरण सयं वा सजियपतिट्ठिए लहुनो सजग्गहरणातीतं सज्झाएण शु खिण्णो सज्झाए पलिमंथो सज्झाए वाघामो सज्झायट्ठा दप्पेण सज्झायमचितेता सज्झायमातिएहिं समायवज्जमसिवे सज्झायं काऊणं सज्झा-लेवरण-सिवरण सट्ठाणाणुग केई सट्ठाणे अणुकंपा सडित-पडिताण करणं सण्गी सगाता वा सलीम असणीसु सणीसु पढमवग्गे सण्डे करेति थुल्लं ६०६ सति कालदं रणातु २७६१ सति कालफेडरो ३७१६ सति कोउएण दोण्ह वि सति दो तिसिय प्रमादी ३७०३ सतुसा सचेतणा वि य ४२७६ सत्तचउक्का उग्धाइयारण २४५८ " ४५५६ ५७१४ ५७११ ५७१२ ४७६६ ३३६१ १६६३ १२२२ १६७६ ३२५६ ६१२६ २८१३ ६०७३ १२७१ ४१६३ ६६२६ १९७५ २०२१ २०५४ १४४३ १०७४ .१२०३ ५१०६ १८४३ १५८४ ६५४५ ६५५८ ४२४४ ५०७५ ५०६४ ६५५७ ५७७६ सत्त तु वासासु भवे सत्त दिवसे ठवेता ५६५४ २८२० २८२६ ५२८४ सत्त य मासा उग्घाइयागा सत्तट्ठगमुक्कोसो २६७६ सत्तट्टि रणक्खत्तं सत्तण्हं वसगारणं सत्तरत्तं तवो होइ सत्तरत्तं तवो होति ६३६ ५ . ६२८८ ४७६८ २७४८ ५५८६ ६२५६ ६२८६ ५६८१ ६५५५ ५६२३ ५६७२ ६०८१ सड्ढि गिही अण्णतित्थी सड्ढी गिहि अण्णतित्थी सड्ढेहि वा वि भरिणता सरणमाई वागविही सणसत्तरसा घण्णा सरिणसेज्जो व गतो पुग सण्णातगा वि उज्जुतणेगा सण्णातगिहे अण्णो सण्णातगे वि तध चेत्र सण्णाततेहि जीते सण्णातपल्लि रोहिण सण्णातसंखडीसू सण्णायग प्रागमणे सण्णा सिंगगमादी समिणधिसणिणचयानो सणिहितं जह स-जिय सण्णिहिय-भद्दियासु सणिहियं जह सजिय ३५८३ सत्तसया चोयाला सत्तं प्रदीगता खलु सत्तारस पण्णारस सत्तेया दिट्टीमो ५३५४ सत्थपणए व सुद्धे मत्थपरिणा उक्कम मत्थपरिणगा उक्कमो सत्यवाहादि ठाणा सत्थहताऽऽमति सत्थं च सत्थवाह सत्थाए अइमुत्तो सत्थाए पुवपिता सत्थाहट्ठगगुगिगता सत्य ति पंचभेदा सत्य वि वच्चमाणे मम्मि हत्थवत्थादिएहि मदहणा खलु मूलं ४६५६ २१२६ २६७८ १२६३ १२६१ १३३६ ५८५ १२१३ ३४१० २४७ २४६२ २२०६ २२२५ २२१२ २२२० ५२४१ २६०२ १७२ ३५३६ २०८ १६७० २६७४ . Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाध्यग्णि निभीयसूत्र ५२७ ५५३० १८४४ ५०२७ ४०८७ १८४४ २५१८ ५९६७ २२३३ २७०१ ५०६६ ६१६३ २४७९ ४१३८ १०५४ २६१३५८१० ५६५६ १६५३ सई च हेउसत्यं सई वा सोऊणं सहाइ इंदियत्योवयोगसद्दे पुरण धारे सद्दे से सिस्सिणि सझ सनातिगतो अद्धागिनो मन्नासुतं सागारियं सन्नि खरकम्मित्रो वा सन्निहितारण वडारो मपरक्कमे जो उ गमो सपरिकम्मा सेज्जा सपरिग्गहं अपरिग्गहं सपरिग्गहेतरो विय मपरिपक्खो विसयवो मप्पडियरो परिणी सबितिज्जए व मुचति सबीयम्मि अंतो मूलं सबैटऽप्पमुहे वा सभमादुज्जारागिहा सभए सरभेदादी समगं तु प्ररणेगेसू समणगुग्गा विदुऽत्थ जरणो समगऽधिकरणे पडिणीय समरण भडभावितेसु समरणाग संजतीहि समरणाणं इत्यीसु समणाणं जो उ गमो समग समरिग सपक्वो समरिण माण्णी छेदो समणी उ देति उभयं समगी जणे पविटे समगुण्णदुगरिणमित्तं ममरणण्यामगुण्ण वा समरगुणगा-संजतीणं समगुण्णस्स विधीए समगुण्णा परिसंकी समगुण्णेग्ग मरगुण्णो समरगुण्णेतर गिहि ६१४२ ३६३६ २०४५ १८९७ ४३१४ ३६६२ ४०६ ५७१५ २२४० ३४७७. २४२७ ५६८७ ३७७० ५७३४ ६३६४ ५७५७ ५६१६ ५१६८ ३७८७ १६८१ ५४३१ समणुण्णेसु विदेसं समणेग समरिण सावग समणेहि य अभएंतो समरणो उ वणे व भगंदले समत त्ति होति चरणं समवायाई तु पदा समवायादि ठाणा ५१८३ समारणे वुड्ढवासी समि-चिचिरिणयादीरणं समितीण य गुत्तीण य समिती पयाररूवा समितीसु य गुत्तीसु य समितो नियमा गुत्तो समुच्छंति तहिं वा समुदारणं पारियाग व ३१२७ समुदाणं पंथो वा समुदारिण प्रोयो सम्मज्जरग वरिसीय सम्ममसम्मा किरिया ३०६७ सम्मेयर सम्म दुहा सम्मेलो घडा भोज्जं ३२६६ सयकरणे चउलहुया सयगुणसहस्सपागं ३२८८ सयरो तस्स सरिसमो सयमेव कोइ साहति सयमेव छेदगाम्मी सयमेव दिपाढी ३०७७ सयमेव द अवहारो सयसिव्वणम्मि विद्ध सयं चेव चिरं वासो सरतिसिगा वा विप्पिय सरिकप्पे सरिच्छंदे मरिकप्पे सरिछंदे सरिसावराहदंडो सरीरमुज्झयं जेण १८६२ सरीरे उवकरणम्मिय सविकारो मोहुद्दीरणा २९८३ सविगार अमज्झत्थे ८९३ ३८७१ ४० ३७ ३४७४ ४५६७ ४२४६ ३०५४ २०३१ ४४१४ ४७५१ ३४८३ ९३६ ३१६७ १०२७ ३५६४ १९६७ १७५७ २७५८ १६२५ ३८४५ ६०१७ २१४७ २१४८ २०१४ १६३० ३६३३ २२६० २०१४ ६७८० २१०० २१०६ १७३० ६३२४ २१२४ २०८८ २१०१ ४१०४ २०७४ १९७६ ५७८० Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ प्रथम परिशिष्ट सविगारो मोहुद्दीरणा ३५४२ सव्वत्थ पुच्चणिज्जो सव्वत्थ वि पायरियो सव्वत्य वि सट्ठाणं २६७६ ६६५५ १२७२ २६४ १४८ ६५७६ ४३३ १८६ १४६ ५४०५ २२६३ २२६६ २२६६ ११६५ ६०२३ ६६३८ ६६३६ ३६३ २०६ २०३३ ३३०४ २९१६ २४२२ ५५२० ३६१६ ४८२१ ४७०७ ३८६५ ३८६४ १२१७ ३६१८ ३४८६ ४०७८ ६५८० १७७ सब्वपदाणाभोगा सवमसव्वरतरिणो सव्वम्मि उ चउलहुगा सबम्मि तु सुयणाणे सव्वस्स छडुरण विगिंचरणा सव्वस्स पुच्छरिणज्जा सव्वस्स वि कातव्वं सव्वसहप्पभावातो सव्वं नेयं चउहा . सव्वं पि य तं दुविहं सव्वं भोच्चा कोई सव्वं भोच्चा कोती सन्वंगिया उसेज्जा सव्वानो अज्जातो सव्वागामाइयाणं सव्वारिग पंचमो तहिरणं सव्वासि ठवरगाणं २००२ सम्वेसि तेसि भाणा सम्वेसि संजयारणं सम्वेसि प्रविसिट्ठा ३५७५ सब्वेसु वि गहिएसु ४३४६ सस-एलासाद ससगिद्ध दुहाकम्मे ससगिद्ध बीयघट्ट ससरिगद्ध-सुहुम ससरिगद्ध उदउल्ले १६८० ससरक्खाइहत्य पंथे ससहायअवरोण ५८१३ समिरिणद्धमादि प्रहियं ससिरिगदमादि सिण्हो५४२४ सहजेणागंतूण व सहमा व पमादेणं ६६२ सहमुपश्यम्मि जरे सहिगादी वत्था खलु संकप्पुट्टियपदभदणे संकप्पे पदभिंदरण संकप्पो संरंभो संकम-करणे य तहा संकम जूवे अचले १८३५ संकमथले य गो थले संकमतो अण्णागणं संकलदीवे वत्ती संका सागारहे संकुचित तरुगा ग्रातप्पमागा ६१८ संख-तिगिामागुलुचंदगगाइ संखडिगमणे वितितो संखडिमभिधारेता मखुण्यातो तबस्सी संखेज्जजीविता खलु संखे सिंगे करतल संगामदुगपरूवा संगामे साहमितो संघट्टपणा तु वाते मंघट्टणा य घट्टग मंघट्टणा य मिचग ५६४० ४८०७ २२६८ २५४० २५६ १९१३ २०५३ ५३३८ ४२३० २८१२ ५४०६ १८७२ ५७६५ १०३२ ३४०२ २६४१ ४१६५ ४०३६ ६४८३ ३४७० सवाहिं व लद्धीहि सब्वे गाणपदोसादिएम सम्वे वा गीयत्था सम्वे वि खलु गिहत्था ३६७० २८५४ ५८३७ सब्वे वि तत्थ रु भति सव्वे वि दिट्ररूवे सम्वे वि पद सेहो सब्वे वि य पच्छिता सव्वं वि लोहपादा सम्बे समणा समणी सव्वे सव्वद्धाते सबेसि एगचरणं ३३२६ ५०१८ ४६६० ४६८२ १३८३ १२७० २४५ ६४९९ ४०४३ ३६१५ ५४२८ ३६२८ १४६३ ४२२१ ४२२७ ५६३७ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरिण निशीथसूत्र ५२६ ३८२३ १०५६ २१५ १८५ ३६३६ ६५१६ संजमठाणाणं कंडगारण संजमतो छक्काया संजमदेहविरुद संजम-महातलागस्स संजमविग्घकरे वा ३७०४ संघट्टणादिएसु संघट्ट मासादी संघयणधितीजुत्तो संघयणं जह सगडं संघयणेण तु जुत्तो संघयणे संपण्णा संघस्स पुरिम-पच्छिम संघस्सायरियस्स संघं समुद्दिसित्ता संघाडए पविट्ठ संघाडगा उ जाव तु ७८ १६८० १५६१ . १५७३ १५८० ५६३६ २८५१ ५३४३ ४८५ ५३४४ ३०४५ ५५८४ २८१० २६६८ ५०६१ ६५६७ ६५६८ १८८८ २८८३ २८८२ २७७३ १८०४ १८७६ ४६६ २०८० ४०२६ संजम-विराहणाए संजयगणे गिहिगणे संजय-गिहि-तदुभयभद्दगा संजयगुरू तदहिवो संजयपदोसगहवति संजयपरे गिहिपरे संजयभद्दगमुक्के संजयभद्दा तेरणा संजोए रणमादी संजोगदिटुपाढी संजोय-विधि-विभागे संझागतम्मि कलहो संझागतम्मि रविगतं संझा राती भरिणता संठावरण लिपरणता संठियम्मि भने लामो संडासचिरेण हिमाइ एति । संणिहिमादी पदमो संतगुणगासणा सा संतविभवा अतित संतम्मिय बलगिरिए संतासंतसतीए २८५२ १०८७ १८८ ३३७२ ४५१४ ६००५ २६७७ २०६३ ६३८५ ६३८४ २४२६ २०५२ ५८४७ ५७१३ ४५४ ५४२६ ५२६२ १८०२ १४०८ १६५१ ३७८१ संघाडगा उ जावं संघाडगा उ जो वा संघाडगाग्रो जाव उ संघ डगाणुवद्धा संघाडगा य परिसाडगा संघाडमादिकधरणे संघाडं दाऊरणं संघाडिनो चउरो संघाडेगोठवणा संघातरणा य पडिसाडणा संघादिएतरो वा संबइयमसंघाइते संचरिते विदोसा संचालणा तु तस्सा संजतगतीए गमनं संजतरिणए गिहिरिगए संजत-भद्दा गिहि-महगा संजतिगमणे गुरुगा संबतिबग्ने गुरुया. संबतिबग्ने वे संगमयभिमुहस्स वि संबममातविरापणा अंजनेसमा सोचमा वा संसारपाते । संबस्तियोगा संगमजीविको ४०६२ १६०६ ४०२३ ३७५६ ६३२२ ९७८ १९७१ २४५२ २०६१ २०७० १९८१ ७२० ३२०५ ८२९ ६.७५ ४८९९ ७४२ १०३५ ४९४५ * Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम परिशिष्ट ७४६ ७७५ ६०३५ २०६६ २१४५ ५५५४ १८११ १७७३ १७२० २६०६ ३१०२ २८०७ ५५१४ ३१०१ २३७३ ३७६२ ३७४२ ७७७ ७८० ७८८ ९८३ ६६० ६६२ ११७ २५६१ २८८८ २६१० १६५० १०७६ ५२५६ १७४४ ४०१४ १३१४ २००० ५७७३ ५४१७ १९६६ ४८१० २३६३ मंती कुयू य अरो संथडमसंथडे वा संथडियो संथरंतो. संथरगन्मि असुद्ध संथरमारणमजारणंत संथारएहि य तहिं संथार कुसंघाडी संथारगगिलाणे संथारविप्पगासे संथारविप्पणासो मंथारं देहंत मंथारुत्तरपट्टो ४८०१ संभोइयमण्णासंभोइयारण मंभोगपरूवगता संभोगमा संभोइए संभोगा अवि हु तिहिं मरंभ मणेरणं तू संलवमागी वि अहं संलिहितं पिय तिविध संलेह पंच भागे संवच्छरं गगगो वा संवच्छरं च रुद्र ५७८५ संवच्छराणि तिणि उ ५८०७ संवच्छरा तिनि उ संवट्टरिणग्गया संवट्टम्मि तु जतगा ३३४० संवालादरगुरागो ३७६७ संवासे जे दोसा ३८३७ संवासे संभोगो संवाहणमभंगण संविग्ग रिणतियवासी संविग्ग-भाविताएं संविग्ग-भावितेसु संविग्गमसंविग्गा संविग्गदुल्लभं खलु संविम्गमगीतत्थं संविग्गमगीयत्थं संविग्गमगुण्णाते १८५७ संविग्गमा संभोइएहि ९४६ संविम्गम संभोगिएहि २४०१ मविग्गमसंविग्गे १७६२ २४७६ २१४१ १९६२ ६०७ १२५३ ३९८० संथारेगमणेगे संयारो दिट्ठो रण य मंदिसह य पाउग्गं संपति-राप्पती संपत्तीइ वि असती मंपत्ती व विवत्ती मंपाइमे असंपाइमेय संपातिमादिधातो ५४८५ ३०६४ १६४६ १९८७ ४७४४ ३८३६ ५५८५ २७४७ १६५८ २८२४ २०७७, ४५८७ १२३० १३०५ १२५२ २५८० २१५४ ४१०० ४८०८ ५३२७ २४३ ५६२३ ५३३० ३००६ १६११ संपातिमे वि एवं संफाणितम्म गहणं मंफासमरगुप्पत्तो संबंधभाविएसु संबंधज्जियत्ती संबाहणा पधोवगण मंभिच्चेणं व अच्छह २४०४ संविग्गमसंविग्गो संविग्गसंजतीग्रो ४२७४ संविग्गा गीयत्था संविग्गा समणुण्णा संविग्गारण सगामे ५४८ मंदिग्गादरणुसट्ठो ४२८२ ३०६२ ३०६१ ६२४५ १६६० १९८६ ३२४६ १७६६ १४६५ १३२० ४५८८ ४५८६ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभाष्यचूरिंग निशीथसूत्र संविग्गा संविग्गे संविग्नेतरभाविय हट्टो संविग्गी सेज्जायर सजमेसु सुभति संमसंस संसत्तपंथ-भत्ते संसतपोग्गलादी संसत्ताति न सुज्झति सत्परिभोगो संससु तु भत्तादिएसु संसकरणं संका संसारगडपडतो संसाहगस्स सो संमोहण संसमणं साएता गाऽज्भा सागतादावावो सागरिगए रिक्खिते सागरिया तू सेज्जा सागारिदिण्णेसु व सागारिउत्ति को पुरण सागारिपुत-भाउग सागारिय अधिकरणे सागारिय तुरियमरणभोगतो सागारिय-सभाए सागारिय-संतियं तं सागाfरमरिणखेवो सागारिfरसाए "" सागारियमस्वछंदरण सागारियातग सागारियसंदि सागाfरयस्स गंध सागारियस्स गामा सागारियं अपुच्छिय सागारियं क्खिति सागारिया उ सेज्ज्ञा सागारियादिकहणं ३००८ ११८६ ४५६१ ३०६६ ४१५२ १६६४ ५२७४ ४११६ १८६८ २५८ २८६ ३४०६ २६६ २६७ २४ ४६५ ५४६३ ४४३६ ३३४७ १२३ २०५ ५३५२ ४०१ ११३८ ११६६ २४७१ १६४ ६५५ १६५७ ५०६८ १२११ ३५६० ४४७८ १२१० ११४५ ३५६८ ११४० २६६० १२०६ ३५८४ ५०६७ ६०६८ २८५७ ५३६८ ३५४७ २४५० ३५२६ ३५२१ ५१६० सागारियादि पलियंक सागारिसंजताणं साडऽब्भंगरण उव्वलरण सारणादीभक्खरणता सारगुप्पग भिक्खट्ठा सातिज्जसुरज्जसिरि सादू जिपfset साघम्मत वेधम्मत साघम्मियत्यलीसु साघम्मिया य तिविधा साधारण-पत्रोगो साधारणे विरेगं साधु उपासमारो ?? सा पुग्ण जहणण उक्कोस साभावि रितिय कप्पति साभावितं च उचियं साभावित तिणि दिगा साभाविfरस्साए सा मग्गति साधम्मी सामणे जे पुठिव सामत्थरिव पुत्ते सामाइय पारेतूण #0 समाइमाईय सामा तु दिवा छाया सामायारिवितह सामित्त कररण अधिकररण सामित्ते करणम्मि य सामी चार भडा वा सारीरं पिय दुविहं साहवि - सावग- गिहिंगे सारुवि सिद्धपुत्ते वा सारेऊरण य कवयं सारेहिति सीयंत सासत्ति गवरि णेमं सालंबो सावज्जं साला तु श्रहे वियडा ३४६५ १३२१ ३०२२ ४१५ ३०७७ १५६२ ૪=૪૭ २१५३ ३४५ ३३६ २१२३ ४३५७ ३५०३ २४६८ ६६४७ १००४ १००३ ६०८७ १३२८ १७८३ १०७१ ३६८ ૪૨૬૩ ४६८५ ३३०३ ४३१६ ४३४६ ६० ३१४२ ४५०५ ६०६६ ५८६ ४६०२ ३८१६ ૪૬૪ २४८६ ४७५ २४२८ ५३१ AL १६७६ ३८०४ ४६४६ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ प्रथम परिशिष्ट ३७१४ ५६०५ ३६८७ ५३१२ ४२२० ४६६२ २३८६ ५६३० ४११५ १२१६ २६६२ २३६६ ३२६४ ५६२२ ५६६४ ५६६५ २५५ २२६ ४२२४ ५४०३ ६६५७ ३६८३ ३६८२ ३६४२ ४५२५ ३४२० सिप्पाई सिक्खंतो ५३४१ सिरिगुत्तेणं छलुगो ३८३६. सिहिरिरिण लंभाऽऽलोयण सिंचरण वीयी पुट्ठा सिंचति ते उहि वा सीमोदगभोईणं ३१०४ सीतं परिषणता सीताणे जं दड्ढं सातितरफासु चउहा ३४५८ सीतेण व उसिणेण व ५६३४ सीतोदगभावितं भविगते ३४५८ सीतोदगम्मि सुन्मति सीतोदगवियडेणं सीतोदे उसिरपोदे सीतोदे जो उगमो सीसगणम्मि विसेसो सीसगता वि र दुक्खं सीसपडिच्छे पाहुड सीसं उरो य उदर सीसोकंपण हत्ये ५४०७ सीसोकपिय गरहा सीहगुहं वग्धगुह सीहाऽऽसीविस प्रग्गी सुप अव्वत्तो प्रगीयो सुक्खोदणो समितिमा ३२८० सुक्खोल्ल मोदणस्सा ३३०० सुद्ध, कयं प्राभरणं सुद्ध, कया मह पडिमा ५२६६ सुटल्लसिते भीते सालितणादि मुसिरो साली-षय-गुल-गोरस सावगसगिट्ठाणे सावततेरणा दुविधा सावत्थी उसमपुर सांवय भण्टकडे सावय-तेरण-परढे सावय तेरभया वा सावय-भय मारणेति का सावयतेणे उभयं सावयभए मारिणति व सावेक्खो ति व काउं सासवरणाले छंदणं सासवरगाले मुहवंतए साहम्मि अण्णहम्मि य साहम्मि य उद्दे सो साहम्मि य वच्छल्लं साहम्मियत्थलासति साहारणस्स भावा साहारणं तु पढमे साहारणे वि एवं नाहिकरणो य दुविहो साहिति य पियधम्मा साई उवासमारणो साहूग्ण देह एवं साहूणं वसहीए सिक्कगकरणं दुविध सिग्षयरं मागमणं सिम्पुज्जुगती प्रासो सिज्जादिएसु उभयं सिम्मि ए संगिग्झा सिणेहो पलपी होइ सिम्हा मीसग हेटोरि सितिपयरगण पहिलामा सिद्धत्वगजालेण व सिखत्वग पुष्फे वा सिप्पसिलोगादीहिं सिप्पसिलो मट्ठाबए ६११२ ५२३० १६३६ ५८६३ ५६७० २२७४ ५२२६ २२७६ २१०८ ४२१६ ६३४० १९३ २७२४ २७२१ ५५६५ ५६२६ २९ ५७०३ ५५०३ ४७३२ ५४६४ २७७३ ५४८२ ४.६७४ ५७४६ ५३०१ ५०१२ ५१०८ ५१४३ ३.९६ ४०६८ २४६० २४१३ ४१०० ६३११ २२४४ २३९७ ४६३५ २०४५ ३८२१ १२४२ ४०६६ ४४५३ सुरणमाणे वि ण मुणिमो ५५७६ सुण्णं दुटुंबडुगा सुरणे एतं परिच्छए सुण्णो च उत्पमंगो सुतसुह दुक्रे ते ३०२६ सुत्तटुिंणक्खत्ते सुत्तरिणवामो इत्वं सुत्तणिवायो एवं सुत्तरिणवातो सञ्चित ४००६ २१४० ६२८८ २०१६ २०६० ४२७८ ४२७६ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरिंग निशीथसूत्र सुत्तfरणवातो उक्कोसम्म सुनरिज़वातो एवं #1 11 31 15 18 〃 3+ 1 12 " " "1 #T " मोहे कसिणे शितिए fuयमा तसु वितिए सगलक सि सुतत्थ प्रपविद्धं सुत्तत्यतदुभयविसारयम्मि सुतत्थतदुभया इं सुत्तस्थतदुभयाणं सुतत्यावस्सरिणसीधियासु सुतत् मकता सुत्ने पतिमंचो सुतनिवातो सग्गामा सुतमयी रज्जुमयी सुम्मि गालबढा सुतम्मि होति भयग्गा सुतवतो वयवत्तो सुतसुहदुक्ले खेले सुतस्स व प्रत्यस्स व सुतस्स विसंवादो सुत्तं कति बेट्टो सुतं तु कारग्गिय सुत्तं पहुच गहिते सुतं व प्रत्यं च दुवे वि काउं सुसंमि एते लहूगा सुतायामसिरोखत ते जहा शिबंधी सुव्रत परिहारिय सुतो जयागं ५६५२ १८८१ १६६८ २२२७ ३७४३ २०२३ ६६६ १०२० १०५० १२२४ १० ६२३ ३१०६ ३३८४ ६२२५ ६१८१ ६६७३ ५२१ ३७५४ १६६६ ४२१६ १४८६ ६५१ ५५२२ ६२१६ ५५७८ ५५२१ ५४५६ ५७३६ २११५ ४८६२ २६१५ १२३६ २१ २११४ ३२०४ ६६०४ २८७६ २३७४ सुद्धतवो मज्जा सुद्धपछि लहुया सुद्धमसुद्धं चरणं ७७८ सुद्धं एसि ठावेंति सुद्धं परिच्छिऊणं सुद्धा प्रगीते सुद्धे सड्डी इच्छकार सुढो लहुगा तिसु दुसु सुप्पे य तालवेंटे बहूहि विमासेहि सुन्मी दढग्गजीहो सुयमभिगमरगायविही २७८५ सुय-वरणे दुहा धम्मो ७८६ सुयधम्मो खलु दुविहो सुयनारणम्मिय भती सुववत्तो वयावत्तो सुलसा प्रमूढदिट्टि सुवद्द य अजगर भूतो सुवति सुवंतस्स सुयं ५६२६ सुहपडिबोहा लिहा " " सुहमवि प्रावेदंतो सुहविष्णप्पा सुहमोइया "1 " सुहसाह पिक सुहसीलतेग महिते. सुहिरणो व तस्स बीरिय सुहियामो ति य भरपती सुमं च बादरं वा सुमो य बादरो म सुमय बाद वा सूतिम्बति पुरानो सूतीमादीनागं सुभगभग ६५६१ ६३६३ ५४३३ ३६३१ ६३४२ ६६६० २९७२ ६०६ २३६ ६५२० ६५२४ १११७ ૪૪૬૭ २८६५ ३३०० ६१७१ २७४० ३२ ५३०५ ५३०४ १३३ ५३२६ ३३३० ५१५५ ५१७७ ५१६० Ygo} ३५१ १५६३ २६८५ ३३० ३८० २६७ YEUX YEEE ६६२ ६६५ ४४६९ ५३३ १८७४ ३३८७ ३३८४ २४.० 37 २५२७ २५४४ २५२७ er १८८७ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ प्रथम परिशिष्ट सूयग-मतग-कुलाई ३८१ सेहादी पडिकुट्ठो महुब्भामगभिच्छुणि सो प्राग्गा अगवत्थं ६६८ ३५३८ ७६३ ८३६ ११०६ ५७८६ १४६७ १५५२ सूयिमण्ढाए तु सूयिं प्रविधीए तू सूरत्यमणम्मि तु रिणग्गतागा सूरुग्गते जिणाणं सूरे अणुग्गयम्मि उ सूबोदरणस्स भरि सेएस कक्खमाती सेज्जा-कप्प-विहिण्णू सेज्जा-संथारदुर्ग सेज्जातर-रातपिंडे सेज्जातराण धम्म सेज्जातरो पभू वा सेज्जायरकप्पट्ठी सेज्जायरकुलनिस्सित सेज्जायरमादि सएज्झिया सेज्जायरस्स पिंडो सेज्जासंथारोक सेज्जोवहि पाहारे ३७४८ ३५२५ १४२४ २८६० ६६२ग ३६३२ १२४० १९६० ३४६६ १७२६ ११४४ ५५४८ ४३४ ५५४३ ३४८५ १३०१ २१०७ २११० ४४५१ १९६२ २३५७ ६०६५ ५५६६ १५२१ ३१६१ २६६६ ४७६६ सोपाती एव सोता सोउ हिंडण-कधणं सोऊण जो गिलारणं सोऊण य घोसरणय सोऊरण व पासित्ता सोऊण वा गिलाणं सेडंगुलि वग्गुडावे सेडुग रूते पिंजिय सेवादी गम्मिहिती मेणाहिय भोइ महयर मेयविपोलासाढे सेयं वा जल्लं वा सेलऽट्टि-थंभदारुपलया सेवंतो तु अकिच्वं सेसा उ जहासत्ती सेसेसु तु सन्भावं सेसेसु फासुएणं सेह-गिहिणा व विट्ठ सेहऽवहारो दुविहो सेहस्स विसीदरणता सेहस्स विसीयणता सेहादीरण प्रवण्णा सेहादीण दुगुबा १८२४ १८२६ १८६१ २१६६ २१६३ २३४८ २४४० २८६२ ३११५ ४०३४ ४३०६ ३६६० १२५८ २६६६ ४७४ १७६६ २६७० २६७३ २६७५ १७४६ १०४७ ३५६२ १३०२ १८७१ १२५ ३७८८ १८७१ १८७५ १८७७ १८७२ ६१२२ २७२० २०५० ३७६६ २६६१ २१२ ५३८४ ४६०० सोऊणं च गिलागि सो एसो जस्स गुणा सोगंधिए य प्रासित्ते सोचा गत त्ति लहुगा सोच्चाणं परसमीवे सोच्चा पत्तिमपत्तिय सोच्चा व मोवसम्ग सो रिगच्छुभति साधू सो गिगज्जति गिलारणो ३४३६ १३१७ २३६० २०४१ १५४५ ५५७५ १६७६ ३०८० Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरिण निशीथसूय ४०१८ ६७४ सो रिणज्जराए वट्टति मोरिणतपूयालित्ते मो तं ताए अगाए सोतु प्रणभिगयाणं सोत्थियबंधो दुविधो सो परिणामविहिण्णू सोपारयम्मि खयरे सो पुरंग पालेवो वा मो पु.ग पडिच्छगो वा मो पुग्ण लेको चउहा सो मग्गति साम्मि मो रायोऽवंतिवती मोलस वासागि तया मो समगसुविहितेहि सो समगमुविहियाणं सो होती पडिगीतो ४८११ ३७८४ हयगयलंचिक्काई ३८४० हयजुद्धादी ठारणा १८२३ हयमादी साला खलु हरिए बीए चले जुत्ते हरियाल मणोसिलं ३७७५ हविपूयो कम्मगरे २५०६ हाणी जा एगट्ठा हा दुछ कयं हासं दप्पं च रति हित सेसगारण असती ३७६३ हिडितो वहिले काये ३२८३ होगप्पमागधरणे ६२२३ ७३८ १७५२ ५१५६ ४८६४ ४५६२ ४२०१ १७७४ ५७५२ ५६१२ ३५८५ ४००५ २४६१ ५६०० ४८३४ १८०३ २३७४ ६५७३ ५६६ ५७२१ ३८५७ ५८२८ ५८३१ ५८४१ २१६८ ६३४५ २१६७ ३४०४ ७५२ ५८५५ ७५३ ५८४८ ५८५१ २४६२ २०५६ २३५४ ३०५८ ६५२ ..२४ २२५० १६१० १६.४ ५१६१ हीरणाऽतिरेगदोसे होणाधिए य पोरा हीणाहियविवरीए होणे. कज्जविवत्ती हीरंत गिज्जतं ५२५८ हुँड सबलं वाताइन' १९५७ हुंडादि एगबंधे २३.५ हुंडे चरित्तभेदो १८२० हुँडे सबले सन्वण हेट उवासरणहे हेमन्तकडा गिम्हे होऊग सन्नि सिद्धो होज्ज गुरुप्रो गिलाणो होज्ज हु वसगप्पत्तो होति समे समगहणं होमातिवितहकरणे होहिति जुगप्पहाणो होहिति वि गियंसरिणयं होंति उवंगा कण्णा हतविहतविप्परत . हत्यदमत्तदारुय हत्य-परणगं तु दीहा हत्यं वा मत्तं वा हत्याइ-जाव-सोतं हत्यादि पायघट्टण हत्यादिपादपट्टण हत्यादिवातणंतं हत्यादि-वायणते हत्यादिवायणंतहत्येगा देसिते हत्येण अपार्वतो हत्येण व मत्तेण व हत्थे पाए कण्णे हय-गय-रहसम्म २०६७ २६५२ ५४३५ ६४६१ ६२७२ ६६८३ १४८२ ८०० ४०५८ ३७०६ ३७३६ ५.४७ ६४६ २५६४ . Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् निशचूर्णी चूपिका रेगोद्ध तानि गायादिप्रमाणानि c काले खरसि भिक्लू feere य सूरिये प्रलुग्धातियारण गुलिया मट्ठविहं कम्मरयं अट्ठारसपपसहस्सियो बेबो अट्ठारसपुरितेषु परिवर्ण भन्ते समा अन्नं मंडेहि ब अपत्यं जंगमं भोपा किन मध्ये सिवा गोबलबाए १ [देश० प्र० ५, उ० २ गा० ५ | १ २१ विभाग पृष्ठ अप्पोबही कलहविषा य अम्भतरना सुनिया अभ्युवगते तु वासाबाले ४ 6. ' ૩૬૭ 1 १ १३२ [ निशीथभाष्य, गा० ३५०५ तुलना ] ४ ४०० I 1 ५ ३ ५४७ [देश० प्र०५ उ० १, ०७४] ४ 1 २ १७७ [ कल्पवृहदभाष्य ] ३ २५० [ उत्त० प्र० ७, गा० ११ ] १ ६५ I १५७ [ दश० ० २, पा० x २१ ३ १२२ [ माचा० ० २ ० ३ उ० १ सू० १११] ३ प्रभिति छका मुहते भरसं विरसं वा वि अरहा प्रत्थ भासति प्रवसेसा क्वता (घ) वंसी केयावती लोगंसि प्रसंसत afed प्रोमोfre ग्रहयं दुक्खं पत्तो महाकडेहि रंवंति कुसिय ] २ १२६ | दश० प्र० ५ उ० १, गा० ६८ ] १४ १ | बहकल्प भाष्य, गा० १९३] ४ २७७ प्रापइत्ता तुमालता प्रादिमते भतिते चासाचिय चरणं विभाग पृष्ठ २७७ 1 १ १३ प्राचा० ० १ ० ५ ३० १] २ ४१६ } Бе } ४५ } १३ } ३६३ } ** 1 246 ३१३ ५४ } Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ सभाष्यचूरिण निशीयसूत्र मायार पाहार १ इयदुवरातिगाढे ३६३ एगेण कयमकज्ज [बृहत्कल्पभाष्य, गा०६२८] २१० एतेसि रणं भंते ! बालारणं [भग० श० १२, उ० २, तुलना] १८५ एस जिरणाणं प्राणा २१० | बृहत्कल्प, उ०३ ] २८ कडते य ते कुडलए य ते इह खलु निग्गंधारण उक्कोसं गणगग्गं सलोमा हत्कल्प, ४. ३, २०३२ उग्गमउप्पायरण १५५ कण्णसोक्खेहि सहि ३ ४८३ [दश० प्र० ८, गा० २६] उम्यातितदुपहि ३६६ कति णं भंते ! कण्हराईप्रो [भग० श० ६, उ० ५] उग्यातिपदुभएहि ३६७ कप्पति णिगंथारणं पक्के- ३ ५३२ [बृहत्कल्प, उ० १, सू० ३] उचालम्मि पादे ५०० कप्पति रिणग्गंयाए वा ४ ३२ [अधिनियुकि, गा० ७४६] बृहत्कल्प, उ० १, सू० ० उचालियम्मि पाडे ४२ कप्पति गिग्गंधारण वा ४ ३२ [प्रोघ नियुक्ति, गा० ७४६] [बृह० उ० ३, सू० ६] उच्च बोलंति बई २ १३४ कप्पति रिंगग्गंयारणं सलोमाई ४ ३२ बृह० उ० १, भा० गा० १५३६] [बृहत्कल्प, उ० ३, सू० ४] [प्रोधनियुक्ति, गा० १७०] कप्पति रिणग्गंधीणं प्रलोमाई- ४ ३२ उद्दे से रिण से [आवश्यकनियुक्ति, गा० १४०] कप्पति गिग्गयोसं पक्के उवज्झायवेयावसकरेमारणे बृहत्कल्प, उ० १, मू० ५] कप्पति से सागारकां उवेहेत्ता संजमो वुत्तो वृह, उ०१, सू० ३६] ४० कम्ममसंखेजभवं ३ २१८ [प्रोनियुकि उस्सष्णं सव्वसुयं व्यवहारभाष्य, उ० १०, गा० ५१०] कयरे मागच्छति दित्तरूवे . ४ २७२ एपके घउसतपणा [उत्तराध्ययन, अ० १२, गा० ६ ] कागसियालप्रखइयं २ १२५ एग दुग तिष्णि मासा काम जानामि ते मलं २ २२ एगमेगस्स एं भंते ! जीवस्स महाभारत | भग० श० १०, उ०७/ कि कतिविहं कस्स एगादि प्रग्याता अावश्यकनियु नि, गा० १४१] ] कि मे कडं, कि च मे किबसेसं . एगे बाये एगे पाए चियत्तोवकरण- ४ १५७ दा० चू००, गा० १२ [प्रोपपातिक, तपोवरगन सू० ४०] कुणतु वसंपदं उ बद्धो १५८ [म्थाना० म्या० :, 3० ३६६ १०८ २ ३ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ कोडिस सत्तऽहियं को राजा यो न रक्षति को राया जो न रक्खइ कोहो य माणो य प्रणिग्गहीया कुत्स्नकर्मक्षयात् मोक्षः छम्म केई पुरिसा गजिता गामेगे गो वासिता गवाशनानां स गिरः शृणोति गणं पुराण सावग गोरापविट्टो उ बगुत्तपपुतो उ geचेव प्रतीरिता जइ इच्छसि नाऊणं मति पत्थि ठवरणारोवरणा जतिभि भवे प्रारुवरंगा जस्तो भिक्खं बलि देमि जत्थ राया सयं चोरो * ३३ [ दश० प्र०८, गा० ४० ] १ १५७ [ तत्त्वा० अ० १० सू० तुलना ] ' २६२ ] जमहं दिया य राम्रो प जह दीवा दीवसयं I १ १ * ३१ [ दशवं० प्र० ५ उ०२, गा० ८ । २ ३६२ * ३६६ ४ ३०७ | स्थाना० स्था० ४ ] ३ ५६२ ४ } ७ 1 १२२ ४ १ } | बृहत्कल्पभाष्य, गा० २६४ ] २७७ } ३३७ १ २२२ ] [ ३२४ | निशीथभाष्य, गा० ६४५६ ] १ २० T ३३७ } ܘ जाव युत्थं सुहं त्यं जीवे रणं भंते ! श्रोरालियसरीरं 1 ५ 1 जोवेणं भंते सता समितं जे प्रसंतएवं प्रभवखा लेख जेट्ठामूलंमि मासंमि जेरण रोहंति बीयाई जे भिक्खु प्रसरणं वा पारगं वा जे भिक्खु उग्धातियं जे भिक्खु तरुणे बलवं ओ मे जारणंति जिगा जो जेरण पगारे जं जारज्ज चिराधोतं सुज्जति उवकारे ठवरणारुवरणा दिवसारण २१ रण चरेज्ज वासे वासंते २१ .1 २ २८१ [ भग० श० १६, उ० १, तुलना ] २ ३२० [ भग० श० ३, उ० ३] ४ २७२ [ ] जो य ग दुक्खं पत्तो जं प्रज्जियं समीखल्लएहि ३२ [ बृह०, उ० ४, सू० ११, तुलना ] ३ २८ { * १५७ [ श्राचा० श्रु० २ ० ६, ३०१, सू० १५२ ] ३ २६६ ] ¥ द्वितीय परिशिष्ट रगमती सुयं तप्पुग्वियं १ एग य तस्स तणिमितो १ १ ३ २१ } ४ २० ] } } १६६ [देश० प्र० ५ उ० १, गा० ७६ ] १ ६३ ४०५ } ४३ ] ] १ १०६ [ दश० प्र० ५, उ०१, गा० ८ ] ५१४ [ नन्दी सूत्र, तुलना ] १ ३३७ 1 ४२ [प्रोघनियुक्ति, गा० ७४९ ] Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाप्यचूरिण निशीथसूत्र बमासाकुच्छिघालिए रण वि लोगं लोखिञ्जति प हु वीरियपरिहोलो पापस्स दंसरणस्स गिद्दा विगहा परिबज्जिए हि [ [ रो कप्पइ लिग्गंथारणं इत्थिसगारिए ४ गो कप्पs रिग्गंधारणं वेरेज्ज- रगो कप्पति निग्गंथारणं प्रलोमाई [ रगो कप्पति रिगंधारण वा गो कप्पति रिग्गंथारण रखो कप्पति णिग्गंथारण वा २१ } २ १७७ [ कल्पवृहद्भाष्य ] १ २७ ] २३ [ बृह०, उ० १ सू० २७-३० ] ३ २२७ [ बृहत् ० उ० १ सू० ३८ ] * ३२ ] ५ ] ε 1 ૪ ३२ | बृह० उ०३, सू० ५ ] ३ १५४ [ कल्पसूत्र ] ४ ३१ [ बृह० उ० ३, सू० २२] गो कप्पति ग्गिंथारण वा रिगग्गंथोरण वा ४ ३२ [ बृह०, उ० १ सू० ४२-४४] रमो कप्पति रिगग्गंथोणं सलोमाइ ४ तो प्रणवटुप्पा पण्णत्ता ३२ [ बृह० उ०३, सू० ३ ] ११२ १ [स्थाना० स्था० ३ ] १ ११६ [स्थाना० स्था० ३] १ २३ 1 ३३ तयुगतिकिरियसमिती [ समुक्काए गं भंते ! कहि १ [ भग० श० ६ उ० ५ ] तरुलो एवं पादं गेव्हेज्जा ३ २२६ [ श्राचा० ० २ ० ६, उ० १ सू० १५२] तव प्रसादाद्भूतु रच १०४ [ धूर्ताख्यानप्रकरगा ] १ तवाजतं घोरो तं खेच्छय गयमए तावदेव चलत्यर्थो तिगजोगेऽग्धता तिष्णुतरा विसाहा तिन्हमणगत रागस्स तेगिच्छं रणाभिरणंदेज्ज तेजो बापू द्वीन्द्रियादयश्च तेरस य चंदमासो तेषां कटतटभ्रष्टः त्रयः शल्या महाराज ! वत्वा दानमनीश्वर: दंडक ससत्थ दवं खेत्तं कालं दंतानां मंजनं श्रेष्ठं दारण दवावरण कारावरणे य दंतपुरं दंतवक्के धमे - धमे खातिघमे धम्मियागं कि सुत्तया ५३६ १ ་་་ [देश० प्र० ७ गा० ४७ ] १ २६ ] ५२६ ] ३६७ } २७६ ] ३२ [ दशवं ० अ० ६, गा० ६० ] , ३ ५०६ [ उत्त० प्र०२, गा० ३३] ३ ३१५ [ तत्वा०, ०२, सू० १४] २७५ [ सूर्य प्रज्ञप्ति ] २ १२० [ प्रोघनियुक्ति, गा० ६२३ समा] ५८ १ १०३ ] ] १५ J ५.३५ } ३७६ J ३६१ ] ६० ८ } ८६ [ भग० ० १२.३० २] Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० धम्मो मंगलमुक्क पज्जोसवरणकम्पस्स पञ्च वर्द्धन्ति कौन्तेय ! पणुवीससहस्साई परमाणु योग्गलेणं भंते ! परिताव महादुक्खो पिस जा विसोही पुरेकम्मे पच्छाकमे पुण्यभरियं तु जं एत्थ बहुट्ठियं पोग्गलं बहुदोसे माणूस्से बहुमोहो वि य णं पुचं बहुवित्थर मुस्सग्गं बारसविहम्मि वि तवे भद्द भट्टकं भोच्या मद्यं नाम प्रचुरकलहं मोस सुत्तसमासे मुसरिगेहे चक् माणुसतं सुई सद्धा माताप्येका पिताप्येको १ १३ [देश० प्र० १, गा० १] ३ १५८ [ १ २८१ | भग० अ० २५, उ० ४ | २ ४१८ 1 वृहत्कल्पभाव्य, गा० १८६६ ] १ ३२ [ ] [ १ ] ૪ ] ३६७ ] १ * ३२ | दश० प्र० ५, उ० १, गा० ७३] १ १८ ५८ ] ३ ] ४ २ १२५ | दग०, प्र० ५ उ०२, गा० ३३ ] १ ५३ २११ २२७ } ३ २६४ | उत्त० प्र० ३ गा० १] ३ ५.६१ } ३६७ ] ७२ ] वैरूप्यं व्याrिपिंड: मूढन सुयं कालियं ठु रगो भतं सिरगो जस्थ रस-रुषिर-मांस- मेदोऽस्थि लंधरण- पवरण - समस्थो वग्घस्स. मए भीतेरा २६७ 1 arare errors वरं प्रवेष्ट ज्वलितं हुताशनं सहि कह रिसेज्जिदि य बसही दुल्लभताए विभूसा इत्थोसंसग्गी वीतरागो हि सर्वशः सट्ठीए प्रतीताए सत्तसया सहिया समरगो य सि संजतो य सि सम्प्रातिश्च विपत्तिश्च समितो नियमा गुलो सयभिसयभरणीग्रो सयमेव उमए लवे द्वितीय परिशिष्ट १ 1 १ १ ! १ ४ ] १ १३ ] २६ ] २० 1 २ ३५६ [देश० प्र० ६, गा० ८ ] १ १२७ 1 २० } १४३ | दश० प्र०८, गा० ५७ ] Y ३०६ } ५० ] ३७ ] ५३ 1 २७७ ] ३६७ J २१ } ५०८ } २३ 1 २७६ 1 २१ 1 Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... 1 नशीथमत्र ३६७ सम्वत्थ संजमं संजमानो १ १५३ सेसा उरिमुहुत्ता । योपनियुकि, गा० ४६ सवामगंधं परिणाय ३ ४८५ सोलसमुग्गमदोसा प्राचा० शु० १, ग्र. २, 3०५) सवेसि पि १० सोही उज्जुप्रभूतस्स ४ २६४ [उत्त० अ०३, गा.१२] साहम्मिय वच्छल्लमि २२ संकप्पकिरियगोवरण सिरोए मतिमं तुस्से - संतं पि तमगाणं सूतोपदप्पमारणाणि اب وب संहिता य पदं चेव से गामंसि वा ४ २७२ हा दुटठ कयं दिश० अ०४] १५६ निशीथभाप्य, गा०६५७३] Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयं परिशिष्टम् चूर्णी प्रमाणत्वेन निदिष्टानां ग्रन्थानां नामानि २६ ३० १२२ विभाग पृष्ठ विभाग पृष्ठ प्रग्घकंड (अर्धकाण्ड) ३ ४०० । उपधानश्रुत (ग्राचारांग १-६) २ प्रत्यसत्थ (अर्थशास्त्र) ३ ३६६ प्रोह रिणबुत्ति (पोधनियुक्ति) २ ४३६ अणुप्रोगबार (अनुयोगद्वार) प्राचारप्रकल्प (निशीथ-मूत्र) , ४५०, प्राचारप्राभृत प्राचारांग ४ ६४,१०६, मायारराग (प्राचाराग्र-निशीथ) २१२ , १२० मायारपकप (प्राचारप्रकल्प) १ २,५,३१ पायारपगप्प ( , ) ४ । ३६८, मायारवत्यु (माचारवस्तु) ५८३ प्रायार (प्राचार) ३०४ कापसुत्त (कल्पसूत्र) ५२३ २३ २२३ कप्पपेट (कल्पपीठ) १३२ " २५४ कप्प-पेटिमा (कल्पपीठिका) १५५ २६४ मुडियायारकहा २४३ (क्षुल्लकाचारकथा, दश० प्र० ३) प्रावस्सम (प्रावश्यक) ४०५४ गोविंदरिणज्जुत्ति २१२ प्रावस्सग (अावश्यक) (गोविन्दनियुक्ति) २६० २४० चंदगवेझग २५३ चेडगकहा २ चंदपम्पत्ति छज्जीवरिया २३५ २६ इसिभासिय (ऋषिभाषित) उग्गहपरिमा (अवग्रहप्रतिमा, प्राचा० २.७) रारम्भयरण (उत्तराध्ययन) (चन्द्रकवेध्यक) (चेटककथा) (चन्द्रप्रज्ञप्ति) (षड्जीवनिका) दशव. प्र.४ . NMK २८० mm २ ४ २५२ २६८ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नभाष्य निधीयसूत्र छेदसुत (छेदमूत्र) जंबूदोवपत्ति ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ) जोगसंगह ( योगसंग्रह) जोरिण पाहुड ( योनिप्राभृत) २ ३ * मोक्कार पिज्जुति [ नमस्कार नियुक्ति] २ ३ " "" रणरवाहरणदंतकथा [नरवाहनदन्तकथा | २ ४ गंदी [ नन्दी ] खिसीह [ निशीथ ] तरंगवती 6 २ ४ ४ तन्दुलवेयालिय [ तंदुलवं चारिक | सवेयालिच [ दशवेकालिक ] 19 13 " 13 11 13 दसा [ दशाश्रुतरकन्ध ] " "" दिट्ठिवाय [दृष्टिवाद ] दिट्ठियात 1) 71 "" तक्खारगग [ धूर्त्ताख्यानक ] ४ "" नंदी] [ नंदी ] पकप [ प्रकल्प ] १ ३ १ २ ३ ४ 21 " ३ と १ दीवसागरपपत्ति [ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ] दुमपुष्किय [ द्रुमपुष्पिका, दश० श्र० १] १ बालसंग [ द्वादशांग ] १ ४ १ १ ३ 27 37 از १ ४ ४ १ ४ 11 13 ८५ ३१ २६६ २८१ १११ १६० २८५ ३६६ ४१५ २३५ १२० ४१५ २६ २३५ २,१८ っぱ २८० २५२ २५४ २६३ ७ ३०४ २६४ ૪ २६ ६३ ७३, २२६, २५३ ३१ २४ १५ १६५ १०५ २६ २३५ ३३ २५६, ३०४ ३३८ पपत्ति (प्रज्ञप्ति ) हवाकरण ( प्रश्नव्याकरण) पिडरिज्जुति (पिण्डनियुक्ति) 13 विसरा पिण्णा श्राचा०२।१ | पोरिसोमंडल बिंदुसार बंभचेर "J भगवतो सुत्त 13 Y भारह भावरणा [ ब्रह्मचर्य, प्राचा० श्रु० १] | भगवती सूत्र ] [भारत] [ भावना, प्राचा० २-२३ ] „ महारिणसोह रिज्युति " रइवक्का मगधसेना मरणविभक्ति मलयवती महाकप्पसुत [ महाकल्पसूत्र ] 19 | पौरुपीमण्डन | विन्दुमार ववहार [ महानिशीथनियुक्ति ] [रतिवाक्या, दश० चू० १] 11 [ वाक्यशुद्धि, दश० अ० ७ ] [ व्यवहार ] २ ३ 72 २. ४ " १ ४ 27 ४ ४ ४ ? २ १ १ २ ३ २ २ ४ रामायण १ रोगविधि ३ लोगविजय [लोकविजय, प्राचा० १३२ ] ४ वक्कसुद्धि २ ४ ३ १ ४ २४३ .२३८ ૩૬ १३२ १५५ २४६ ६७, १६१ १६२ १६३ २०७, २२० २ १६३ २६८ २३५ २०५२ २५२ ३३,७६ २३८ १०३ २ ८१५ २६८ ४१५ २३८ १६,२२४ ३०४ ८५० १०३ १०१ २५२ ८० ३५ ३०४ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ तृतीय परिशिष्ट ४ वसुदेवचरिय [वसुदेवचरित] विमोति [विमुक्ति, प्राचा० २-२४] विवाहपडल [विवाहपटल वेज्जसत्थ विद्यशास्त्र ३ २६ सामाइय णिज्जुत्ति सामायिकनियुक्ति सिद्धिविरिणच्छिय ४०० [सिद्धिविनिश्चय | १०१, सुति [श्रुति] ४१७ सूयकड [सूत्रकृत] ५२७ २ सूरपणति । सूर्यप्रज्ञप्ति ४२५२,२६४ २५३ ४ ३३,२५२ वेदरहस्स [वेदरहस्य शम-परीक्षा (प्राचा० श्रु० १, अ० १) सत्थपरिणा [शस्त्रपरीज्ञा, प्राचा० १.१] [शब्दव्याकरण] सम्मति [सन्मति] सम्मदि २७८ सत ३६६ सद्द [सेतुबन्ध [हेतुशास्त्र ८८ १६२ २०२ १ ४ ८८,६६ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थं परिशिष्टम् निशीथभाष्यचूर्ण्यन्तर्गता दृष्टान्ताः विषय अप्रशस्त भावोपक्रम प्रकाल स्वाध्याय ~ विनय भक्ति और बहुमान उपधान-तप निह्नवन=प्रपलाप शंका और प्रशंका कांक्षा और अकांक्षा विचिकित्सा प्रोर निर्विचिकित्सा विदुगुडा साधुओं के प्रति कुत्सा अमूढ दृष्टि उपबृहण स्थिरीकरण वात्सल्य ~ प्रथम भाग दृष्टान्त पृष्ठ संध्या गणिका, ब्राहगी और अमात्य तक बेचने वाली महीरी शृग बजानेवाला किसान शंख बजाने वाला दो छारणहारिका वृद्धाएं श्रेणिक राजा र विद्यातिशयो चाण्डाल शिवपूजक ब्राह्मण और भील प्रसगड पिता प्राभीर विद्यातिशयो नापित दो बालक राजा और अमात्य विद्यासाघक श्रावक और चोर एक श्रावक-कन्या (श्रेरिणक पत्नी) सलसा श्राविका और अम्मड परिवाजक श्रेणिक राजा प्राचार्य प्राषाढभूति २०-२१ बसस्वामी द्वारा संघरक्षा २१-२२ नन्दीरण प्रज्ज खउड महावीर द्वारा गर्भ में माता त्रिशला की कृक्षि का चालन पुद्गल-भक्षो श्रमरण मोदकभक्षी श्रमरण शिरश्छेदक कुम्भकार श्रमण गजदन्तोत्पाटक श्रमण वटशाखा-भज्जक श्रमरण विद्यासिद्ध लब्धिवीर्य स्त्यानद्धि निद्रा Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ प्राणातिपात-पिका प्रतिमेवना लौकिक मृषावाद भयनिमित्तक प्रकृत्य सेवन प्रणीत प्रहार निरन्तर कार्यसंलग्नता अंगादान का संचालनादि अखण्ड वस्त्र - ग्रहरण की सदोषता कलुष- परिष्ठापन रस-भोजन सम्बन्धी लुब्धता - प्रलुब्धता साधुगुरा का चिन्ह रजोहरण अविमुक्ति अर्थात् गृद्धि यथावसर स्थापना-कुलों में प्रवेश से हानि निष्कारण संयती वसति में गमन निर्वर्तनाधिकररण: = जीवोत्पादन संवृत हास्य " " " प्रस्रवण भूमि का प्रतिलेखन असंभोग सम्बन्धी पृच्छा विसंभोग का प्रारम्भ "3 अभियोग प्रतिसेजना लोक कथाओं का अनुपदेश सोपसर्ग- स्थिति में संयनी के साथ विहार " अधिकरगा का अनुपशम नम सपराध में विषम दण्ड स्वगग्ग तथा परगण में दण्ड की अल्पाधिकता दुष्ट राजा की शिक्षार्थ अनुशासन सिंहमारक कोंकण भिक्षु अवन्तो के शशकादि धृतं पुत्रार्थी राजा और भीत तरुण भिक्षु द्वितीय भाग ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का भोजन और पुरोहित कुलवधू का कामोपशमन सिंह, सर्प आदि सात उदाहरण कम्बल रत्नग्राही श्राचार्य और चोर Heat, छिपकली श्रादि प्रार्थमंग और प्रार्यसमुद्र मरहट्ट देश में रसापरण ध्वजा वीरल्लशकुनि ( श्येन पक्षी) यथावसर गो-दोहन न करने वाला गृहस्थ यथावसर फूल न तोड़ने वाला माली बीरल्ल शकुनि ( श्येन पक्षी) श्राचार्य सिद्धसेन द्वारा श्रश्वनिर्मारण महिष और दृष्टिविष सर्प का निर्माण श्रेष्ठी, पांच सौ तापस तृतीय भाग चतुथं परिशिष्ट भिक्षु का मृतक हास्य खेला (चेल्लग) और ऊँट प्रगड आदि के ६ उदाहरण श्रयं सुहस्ती और श्रयं महागिरि सम्प्रति राजा का जन्म पुत्रार्थी राजा और तरुण भिक्षु मल्ली गृहोत्पत्ति कथा कहने वाला भिक्षु दो यादव श्रमण-बन्धु और भगिनी सुकुमालिका साध्वी (मद्य की दूकान ) पर कलहरत सरटों द्वारा जलचर-नाश क्रोधो दमक और कनकरस राजा द्वारा तीन पुत्रों को विभिन्न दण्ड पति द्वारा चार भार्यानों को विभिन्न दण्ड प्रायं खउड बाहुबली संभूत (ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती का भ्राता) हरिकेश बल १०० १०२-१०५ १२७ २१ २२ २८ ६७ १२३ १२५ १३६ १३७ २४८ २४८ २६० २८१ २८१ २८५. २८६ २६८ ३५६ ३६० ३६० ३८१ ४१६ ४१७ ४१ ४३ ४८ ५२ ५८ ५८ ५८ ५८ 1 Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरणं नशीथसूत्र परिहार-तप मे भीत को प्राश्वासन अतिप्रमाण भोजन अवम भोजन बान्त भोजन का अपवाद ग्लानसेवा और तदर्थ अभ्यर्थना धर्म की आपण (दुकान) पषगा-काल में परिवर्तन पपणा में कलह-व्यपशमन क्रोध मान माया लोभ भाव वर अतिप्रमागा-भनग्रहरा प्रहाच्छंद द्वारा समानता का दावा वेदोपांत पण्डक उपकरणोपहत पण्डक बातिक क्लीब स्त्री-पुरुष के परस्पर संवास-सम्बन्धी दोष कालकाचार्य और उज्जयिनी-नरेश गर्दभिल्स अगड, नदी प्रादि प्रतिभोजी दरिद्र बटुक और अमात्य बटलोई रत्नवरिण द्वारा चोराकुल अटवी को यात्रा दानार्थी, साथ ही अभिमानी महक सुवर्णादि का क्रय गान्धिक प्रापरण में मद्य-क्रय ११० कालकाचार्य और महाराष्ट्र-नरेश सातवाहन १३१ खलिहान जलाने वाला कुम्भकार १३८ उदायन और चण्डप्रद्योत १४. दरित कृषक और चौर-सेनापति १४७ गोघातक मरुक १५० मच्चकारिय भट्टा १५० पंटरज्जा साध्वी १५१ रस-लोभ से प्रार्य मंगुका यक्ष-जन्म, सुखनंदी ग्राम महत्तर और चौर सेनापति मबिन्दु २०६ २२१ पैतृक सम्पत्ति के समानाधिकारी चार कृषक पुत्र राजकुमार हेम २४३ दुराचारी कपिल क्षुल्लक २४३ दुराचारी तच्चनिय भिक्षु मान्न साने वाला राजा २५० मातुदर्शन से वत्स को स्तनाभिलाषा २५० पान-दर्शन से लाला-स्त्राव २५० प्रार्य गोविन्द उदायो नृपमारक भट्ट मधुर कौण्डइल प्रभव २६१ मेतार्य-ऋषि-धातक २६१ मृत गुरु के दांत तोड़ने वाला भिक्ष २६४ मुहणंतक के लिए गुरुधातक भिक्षु गुरु को मार निकालने वाला भिक्ष २६५ गुरुकोस्पर मारने वाला भिक्षु २६५ मथुरा का जउरा (यवन) राजा २६६ दुःशील भार्या और अध्यापक पति २६७ एक महिषोपालक पिंडार २६७ ज्ञान-स्तेन चारित्र स्तेन ००० मकारण प्रव्रज्या ل स्वपक्ष की स्वपक्ष में कषाय-दुष्टता ل २६५ ل ل ل परपक्ष की स्वपक्ष में कषाय दुष्टता द्रव्य-मूट काल-मूढ له Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অখ ববি হাত २६७ गाना-मूड मादृश्य-मूढ वेद-मूह व्युद्ग्राहा मूड m २६६ २६६ २६९ २७६ हस्तपादादि-विजित बिम्ब अज्ञात भाव में गर्भवती की प्रव्रज्या प्रत्यनीक द्वारा माध्वी का गर्भवती होना पुग्धपानादि से अनभिज्ञ के महावत म्यविर से पूर्व क्षल्लक की उपस्थापना भाव-मलेखना एक ऊंटवाल प्राममहतर और चीर-सेनापति मात-गामी राजकुमार अनंग मातृ-गामी वणिक-पुत्र पंचशैल जाने वाला अनंग सेन अन्वपुरुष और धूर्त पशुपालक और स्वर्णकार मृगावती-पुत्र करकण्डमाता पावतो पेढाल के द्वारा गर्भवती ज्येष्टा स्थाणु पर पुष्पमालारोहण राजा के द्वारा पुत्र को राजसिंहासन अमात्य और कोंकणक क्रोध में अपनी उंगली तोड़ देने वाला भिक्षु सहस्रयोषो का कवच कंचनपुर में क्षमक का पारण २६६ २६८ उत्तमार्थ प्रतिपन्न का माहार प्रत्याख्यान-कालीन प्राभोग (उपयोग) पादोगमन में धैर्य ३१२ ३१२ mmmmm Morum पुस्तक में होने वाली जीव-हिंगा ३२२ चाणक्य पिपीलिकाओं का उसगं कालासग वेसिय अवन्ति सुकुमाल जल-प्रवाह का उपसर्ग बत्तीस घड़ा चतुरंगिणो सेना से प्रावेष्टित मृग दुग्ध-पतित मक्षिका मछली पकड़ने का जाल तिलपोलक चक्र (घाणी) जंन श्रमण और बौद्ध भिक्ष इन्द्र को ब्रह्महत्या का शाप कृपण वणिक् को गृहचिन्तिका पत्नी गांव के समीप कुबड़ी बदरो (बेरी) मुरुड राजा कम्बल सबल नागकुमार और नौकारूढ़ भगवान् महावीर जरा-जीर्ण स्थविर रुक्ष भोजनगत स्नेह-गुण पृथ्वीगत स्नेह गुण ३२२ ३२२ ३२५ म्यापित ग्रासन का मदोता पुर: कर्मकृत कर्मवन्ध का अधिकारी ? भिक्षार्थ क्षेत्रवृद्धि करने के गुग्ग ३५७ ३५८ s नौका-नयन सम्बन्धी अनुकम्पा नौका-नपन सम्बन्धी द्वेप m एकेन्द्रिय जीवों की वंदना एकेन्द्रिय जीवों का उपयोग . ३७ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरि निशीथसूत्र निधानदर्शन प्रनागत रोग का परिकर्म "1 लौकिक व्यवहारों का निर्णय घातृ-पिण्ड "" निमित्त पिण्ड चिकित्सा पिण्ड कोप पिण्ड मान पिण्ड विद्या-पिण्ड मन्त्र- पिण्ट अन्तर्धान पिण्ड योग - पिण्ड क्रीतकृत पामिच्च परिवर्तन प्राच्छेद्य " प्रनिःसृष्ट प्राज्ञा भंग ज्ञानादिलाभार्थ प्रलम्ब - प्रतिमेवना बलम्ब विदशना अनवस्था प्रसंग का निवारण " प्रलम्ब-रम की आसक्ति प्रलम्ब भक्षण से आत्मविराधना अनाचीर्ण यतना और प्रयतना परिणामक, परिणामक और प्रतिपरिणामक प्रकल्प सेवन की भूमिका मयूरनृपांकित दोनारों का निधान अंकुर तथा बद्धमूल वृक्ष का अन्तर प्रवद्धित तथा विवद्धित ऋण दो नारी और एक पुत्र पटक रोता हुआ बालक और भिक्ष प्राचार्य संगमस्थ विर और दत्त शिव्य भविष्यकथन से सगर्भा घोड़ी की हत्या दुर्बल व्याघ्र को चिकित्सा चन्द्रगुप्त मौर्य के यहाँ क्षुल्लक द्वय का अन्तर्धान-प्रयोग वस्वामी के मातुल समिताचार्य और ४११ ४१८ मासोपवासी धर्मरुचि भिक्षु ४१८ ४२२ हट्टगा भोजनार्थी क्षुल्लक ; श्वेतांगुलि प्रादि पुरुष ४१६ विद्या द्वारा उपासक का वशीकरण पादलिप्ताचार्य द्वारा मुरुड राजा की मंत्रचिकित्सा ५०० तापस शय्यातर मंख तैल पामिच्च के काररण बहन का दासोत्व कोद्रव कूर के बदले में शालि कूर दुग्ध प्राच्छेद्य से रुष्ट गोपाल सत्त श्रों में स्तेनाच्छेद्य घृत बत्तीस मोदक वाला भिक्षु राजा द्वारा प्रजा को बण्ड लाभार्थ वाणिज्य - कर्म दो प्रजघातक म्लेच्छ कृषक के इक्ष-क्षेत्र की हानि राजा की कन्याओं का अन्तःपुर भोलों द्वारा देवद्रोरणी (गो) की हत्या मद्यपान से मांसाहार की प्रासक्ति मूंग की कच्ची कली खाने से स्त्री को मृत्यु प्रचित तिलों से भरी गाड़ी और भगवान् ૪૨ चार मदक और श्व-मांस अंशतः भग्न गाड़ी की मरम्मत ३८८ ३६४ ३६४ ३६६ ३६६ ४०४ ४०५ ४२३ ४२३ ४२५ ४२५ ४३० ४३२ ४३३ ४३६ ४३७ ५०३ ५१० ५१८ ५१६ महावीर ५२३ प्रचित्त जल से भरा हब और भगवान् महावीर ५२३ विष, शस्त्र, बेताल और प्रौषध ५२५ ५२६ ५३१ ५२० ५२१ ५२१ ५२२ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० प्रभिन्न प्रलम्ब से संयती को मोहोदय संमर्ग का महत्त्व दत्त वस्तु का पुनरादान संयती पर कार्मण-प्रयोग वस्त्र-विभूषा से हानि स्त्रीयुक्त वसति से चारित्रहानि आज्ञा भंग पर गुरुतर दंड सुख-विज्ञप्य, सुख-मोच्य आदि स्त्री "" 39 11 व्युद्ग्रह अपक्रान्त अनार्य देशों में मुनि-विहार से आत्म-विराधना ग्रन्थ-द्रविडादि देशों में मुनि-विहार मात्रक की आवश्यकता अस्वाध्याय में स्वाध्याय से हानि पंचविध अस्वाध्याय ग्राचार्यादिपरिगृहीत गच्छ परिकुचित आलोचना तीन बार आलोचना द्विमासादि परिकुचित (अन्य संगोपन ) 33 " विषम प्रतिमेवना की ममसुद्धि अनवस्था-प्रसंग का निवारणा जानबूझकर बहु प्रतिमेवना अनेक अपराधों का एक दण्ड अपरिकुचितता की दृष्टि से एक दण्ड दुर्बलता की दृष्टि से एक दण्ड प्राचार्य की दृष्टि में एक दण्ड गीतार्थ और प्रगीत परिणामको को विन अगीन परिणामत्र और अतिपरिणामों को प्रायश्चित्त यतना और प्रयत्ना सम्बन्धी प्राचिन महादेवी को कर्कटी से विकारोत्पति दो शुक-बन्धु विक्रीत वृक्ष का पुनर्प्र हरण विद्याभिमन्त्रित पुष्प रत्न- कम्बल के काररण तस्करोपद्रव चतुर्थ भाग प्रग्नितप्त जतु चन्द्रगुप्त मौर्य पांच सौ व्यन्तर देवी रत्न देवता अर्हनक सिंही (शेरनी) मानुषी की कुक्कुर - रति प्रादि निह्नव बहुरत पालक द्वारा स्कन्दक का यन्त्र-पीलन मौर्य नरेश संप्रति वारत्तग मंत्रीपुत्र का सत्रागार म्लेच्छाक्रमरण पर नृप - घोषणा पाँच राजपुरुष पक्षी और पिंजरा अव्यक्त शल्य से अश्व- मृत्यु - न्यायाधीश के सम्मुख बयान को तीन बार श्रावृत्ति मत्स्य भक्षी तापस सशल्य सैनिक दो मालाकार चतुर्थ परिशिष्ट चार प्रकार के मेघ पाँच बरिगकों में १५ गधों का बंटवारा धान्य- ग्रहरण पर विजेता सेनापतियों को दण्ड गंजा तम्बोली और सिपाही रथकार की भार्या चोर बॅल और गाड़ी मूल देव चतुर वणिक का शुल्क मूखं ब्राह्मण का शुल्क निधि पाने वाले वरिषक और ब्रा ५३६ ५६१ ५८१ ५८४ sex ४ १० १४ १४ २१ 62 २२ २२ १०१ १२७ १२८ १५८ २२६ २३० २६२ ३०४ ३०५ ३०६ ३०६ ३०६ ३०७ ३०६ ३११ ३१२ ३४२ ३४२ ३४३ ३४३ ३४४ ३४४ ३४५ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्य चूरिंग निशीथसूत्र सभी मालोचनाओं में समान विनयोपचार मूलोतर गुणों की प्रति सेवना से अन्योन्यविनाश मूल गुण प्रतिसेवना से चारित्र - नाश उत्तर गुण प्रतिसेवना से चारित्र - नाश प्रायश्चित्त वहन करते हुए वैयावृत्त्य सानुग्रह और निरनुग्रह प्रायश्चित्त दान ". प्रायश्चित्त वृद्धि का रहस्य आलोचना की गम्भीरता परिहार तपस्वी को श्राश्वासन दोष-शुद्धि न करने से चारित्र नाश " शुद्ध तप और परिहार तप शुद्ध आलोचक के प्रति श्राचार्य का सद्व्यवहार 17 "" निषद्या का महत्व अकल्पित चाहने वाले को उद्बोधन निधि-उत्खनन ताल वृक्ष दृति श्री शकट एरण्ड-मण्डप पुरस्कृत राजसेवक श्रग्नि दारक जल घट, सरितादि बन्तपुरवासी दन्तवणिक का दृढ़ मित्र प्रगड, नदी भावि नाली में तृण मण्डप पर सर्वप गाड़ी में पावारण वस्त्र पर कज्जल-विन्दु छोटी-बड़ी गाड़ियाँ व्याघ माय भिक्ष. लो मधुरहित राजा और नापित भंडी-पोत ५५१ ३४६ ३४७ ३४८ ३४८ ३५० ३५४ ३५४ ३५८ ३६१ ३७३ ३७४ ३७४ ३७४ ३७४. ३७४ ३५० ३८१ ३८१ ३८२ ४०० Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर उसभ कु महावीर वर्द्ध मानसाशी महावीर रिसभ वद्धमाण मंती " " सुध "3 गोयम " मोहम्म प्रज्ज खउड 31 પૂ पंचमं परिशिष्टम् निशीथ भाष्यचूर्ण्यन्तर्गतानां विशेषनाम्नां विभागगोऽनुक्रमणिका 31 प्रज्ज मंगू अज्ज महागिरी 17 अज्जरविलय १ तीर्थंकर २ गरणधर भागांक पत्राक २ ३ २ ३ ४ २ ३ जंनाचार्य और जन अमरा २ २ १३६,३६० ३ १४२,१५३ १ ३ ३ ४ २ ४६६ १५३ ४६६ १४२,३६२ १ २ २ ५२३ १३६ १६८, ३६३ ४६ ४६६ १० ३६३, ५२२ १५३ १०६ ३६० " प्रज्जरक्खिय-पिया २ ३ ३ १२३,२३६, प्रज्ज वइर प्रज्ज सुहत्थी 21 प्रणय-पुत प्रतिमुत्तकुमार अवंती सोमाल 27 प्रसाद भूति उदाइ-मारक " करकडू कविल २२ ४६५ ३६१ १२८ १२५ १५२ जंबू कपिलार्य कालगज्ज खंदग 19 गोविंदज्ज गोविंदवाचक " चंडरुद्राचार्य जसभद्द जिरणदास भागांक पत्रांक ४४१ १६४ १६३ " १ १ २ ३६१,३६२ ૪ २ ३ २ २ 3 ३१२ १ १६.२०, २१ १ २ ३ ३७ ४ ३ १ ३ ४ ३ ४ ३ ४ ४ २ ४ १२८ २३१ २३५ ६० ६८,७० २२१, ४४५ २७७ १२४ - २४३ २०० ५८,१३१ 1 ३१२ १२७ २६० ३७ २६५ ३७७ ३६० ४४३ ३६० २ ३ २३६,५२२ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूणि निशीथसूत्र २ ३६०,३६१ सीह ४०८ सीहगिरी २५३ सुट्टिय सेज्जंभव २३३ २४३,४२३ पूलभद्द दत्त दुन्दलिय धम्मरुइ नंदिशेन-शिष्य पज्जुष्ण खमासरण पसण्णचंद पभव m marrm. २६८ शालिभद्र सूरी श्रीचन्द्रसूरी २३५ ४०८ ४४३ MannK0kW kWww.d ३६० जैन धमरणी पालित्त पूसमित्त बाहुबली ३७६ १५१. २६३ ४१७ २६३ भद्दबाहु बैन निहब १०२ २६१ अज्ज रंदरणा ४५ पंडरज्जा ४२३ बम्ही २५३ सुकुमालिया सुदरी १५१ १५,५७ प्रासमित्त ११३,१२१ प्रासाद २४३,३५० अमालि ४१७ तीसगुत्त पूसमित्त बोडिय २६१ २०० रोहगुत १३३ गोट्ठामाहिल २१,१६४ २३५ २५४ १०२ भस मरणग माष-तुष मेयज्ज ऋषि रोहमीस लाटाचार्य वइरसामी १०२ १२३ १०२ ६ विण्हु r mmm»rom or rxmr mrd m" १४१ ३६२ विस्सभूती विसाहगरणी समिय ससम संगमथेर संभूत सिद्धसेनाचार्य १५८ - प्रतिमा १६२ गोमीसदारुमय पडिमा जिय-पडिमा जियंत-पडिमा ४२५ नारायगादि पडिमा पिउ-पडिमा ४१७ ४०८ रिसभाति कराग-पडिमा ३६० लिप्पय-पडिमा ८८ लेपग-पडिमा ४,२८१ ३३४ पडिमा (अभिग्रहविशेष) ७५,१२१, मोयपडिमा २४३ १४५ 9 Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम परिशिष्ट कापालिका गेरुम प्रवकत्र ३३२ प्रगन्थिम गोव्वय १६५ २ ११८,२०० चरक ३ २५६,३२५ खीरपट्ट घतमहु तंडुलचूर्ण दंतिक्क पिण्णाम भेसज्ज सत्तुम समितिम सुक्खोदण सुक्खमंडग चरिका तञ्चनिय तच्चण्णगी तडिय तावस २०७,४५६ तिदंडी परिवायग दिसापोक्खय परिवाय, परिव्राजक ४१४ १२ १६५ २ ११८,२०० ४१४ अन्यतीथिक देव केसव पसुवति बंभा १०५ परिवाजिका १०४ पंचगव्वास गिगय १०४ पंचम्गितात्रय १४२ पंडरंग १ १४६,१४७ पंडर भिक्ख १ १४६,१४७ रत्तपड १ १०३,१०४ महादेव विण्हु ११६ ४१४ १ ११३,१२१ २ ११६ ३ ४१४,४२२ १२३ ४१४ सिव १० प्रन्यतीथिक श्रमण और श्रमरणी २ ११८,२०० रत्तपडा वरणवासी भगवी वृद्ध श्रावक सक्क-शाक्य पाजीवंक ३,११८, २००,३३२ ४१४ २५३ ४१४ २ २०७,४५६ सरक्ख समग १६८ हड्ड सरक्ख कप्पडिय .२०७ कव्वडिय कावालिय कावाल परिवाजक १२५ २५३ प्रक्खपाद ४८८ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभाप्यचूगिग निमीथमूत्र ૨૪ उडक रिसी ४० ३६६ कंबल-सबल कामदेव दर्शन प्रोर दार्शनिक खेतदेवया ४०८ १६५ गोरी १५ गंधारी xx १६५ प्राजीविग ईसरमत उलूग कपिलमत कविल कावाल कावालिय चरग १४४,२०८ १५ जक्ख १२५ ५८५ १४१ xr ४१ १४१ जइण-सासग जैनतंत्र तच्चनिय तावस जोइसिम डागिरणी गाइलदेव पाग-कुमार देविद पंतदेवया पिसाय पुण्णभद्द २० ३ २४६,२५३ १२५ १७ पुरंदर १८६ २२४ १३० ४० १४४ परिवायग पंडरंग बोडित भिस्तुग भिक्खू १२३ पूयरणा बहस्सति भवरणवासी १२५ ५५५ १२५ १७,११३ रतपड वेद सक्क । २२४ १९५ १२५ माग्गिभद्द रक्खस रयणदेवता वरणदेवता वारणमंतर मरक्ख ११८ ८,९ २५३ .५८५ सुतिवादी सेयवड सेयभिक्खु वारणमंतरी विज्जूमाली वेमारिणय . ८७ ४२२ ११३ शाक्यमत हसरक्ख ५८५ सम्मदिट्टी देवया १३ देव और देवी ११८ २४ श्रय देव सामारिणग सुदाढ ४१ Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम परिशिष्टम् हास पहासा हिरिमिक्क (चाण्डाल-यक्ष) १४० पज्जोत २३८ चंदगुत्त ३ १४६,१४७ २ ३६१,३६२ ४२४ १२६ चक्रवती, बलदेव और वासुदेव चाणक्य ४२४ प्रर कुथु केसव ४१६,४१७ २३१ जउरण राया जरकुमार ४६६ जराकुमार ३८३ जितारि २१ जियसत्त ४४६.४६५ बलदेव ब्रह्मदत्त मरह ir ar mox aan on me २२३ १०४ १२७ राम वासुदेव डंडगि दंडति दंतवक्क २ ४१६,४१७ संती धम्मसुत ४६ ३६१ १०५ १०५ पंह १५ राजा, रामकुमार श्रर अमात्य अर्जुन प्रणंगकुमार अरणंध राजा प्रभग्गसेन अभयकुमार १ पालग पालय बलभानु बलमित्त बिंदुसार २६८ २६६ १५८ ६,१०,१७ १२६ ४३,१०५ भसम भारा मित्त भीम मयूरंक महिडिढत मुरुड मूलदेव असोग असोगसिरी उदायन ३८८ ५२० १२६ १४६,५२३ ३६१ कुणाल १२८ कौन्तेय खुडुगकुमार ४२३ ३४३ १०४ २२६ २३१ १५८ ४१७ २३१ १२७ ४ १२७,१२८ मेच्छ (म्लेच्छ) वसुदेव वारत्तग सस संतारिणत संपति संब तंदग गद्दभिल्ल गंधप्रिय कुमार गंधार ५८ १२६ २ १ २८ १०५ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यभूमि निधसूत्र सातवाहन " माहि सुग्गीन सुबुद्धी मेरिए हर मंत हेमकुमार हेमकूड अपच्च ईश्वर कुराया कोदुत्रिय वत्तिय गामउड गामभोतिय जुवराया डंडिय तलवर पुरोहिय माडंबी मुद्धाभिसित्त टुउड राया सत्यवाह सेट्ठी मेगावई स्वग्ग छत्त चामर पाउया रायहत्थी प्रमिग्गह १६ राज्याधिकारी १७ राज्याहं १८ राजसेवक r 3 १ ३ १ १ ३ 3 २ こ २ ४ २ २ २ २ २ १६८ १३१ ५६ १०४ १५० ९,२०,१७ १०४, १०५ २४३ २४३ २ ૪૪૨ ૪૧ ૦ ४६७ १५ ४६७ २६७ ४५० २८१ १५. ४५० ૪૪૨ ४५० ४४६ २६७ ४६७ ૪૪૨ २ २ ४४६, ४५० ૪૪૨ " „ " अभंगावय उच्चट्टावय कंचुइज्ज कोतग्गह ૪૬૨ चामरग्गह छत्तग्गह डंडारक्खिय दीविग्गह दोवारिय घरगुग्गह परियदृग्गह मज्जावय मंडावय वरिसघर संवाहावय हडुग्गप्पह २६८ चंपा मल्ल सारस्सय कूयसभ प्रासबल पाइवकबल रहबल हत्थिबल कंपिल्ल कोसंबी महुरा मिहिला रायगिह वारणारसी साएग सावत्थी हणिपुर १६ गलधमं २० बल (सेना) २१ प्रभिषेक-राजधानी २ 19 "" " 13 "1 17 53 "1 11 ,, 19 19 71 m:: ३ २ "0 33 ::::::::: N २ ५५७ ૪૬૨ "S " PS " #1 07 " " " " " " #1 १६५ == ४५५ === ४६६ ----- ::: Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ पंचमं परिशिष्टम् पारस पुग्वदेस जनपद १११ अवंती अंध बब्बर ब्रह्मद्वीप मयल (मलय) मरहट्ट ३६२ १२५ ४२५ १२१,५२,६७, ८७,१५४ भाभीर उत्तरावह (उत्तरापथ) له ४७० ४२५ ३६६ १३६ ५२ २ ११,३७१ ३ १३१,१४६ ४ ११५,१६५ १३१,१४६ १०६ ५२३ १६३ سه ७६ उत्तरापथ ه कच्छ १२७ १३३ م ma س मगध س काय कुडुक्क कुणाल कुणाला १६१ १२५ मगह ه ३६८ م मालव ه ७६,१०६ १६३ १५० १२६ २१०८,११०, १६१ कुरुक्षेत्र له रिणकंठ सेम लाड, (लाट) سم कीरडुक कोणाला कोसल कोंकण ३६८ م ६४,२२३ ३६,५६६ २२६ م वच्छ س ५२, १०० १०१,१४५ १४४ १६१ ४७० ३९८,३६६ सिंधु س له गंधार गोल्लय चिलाइय चीण जवण टक्क तोसलि ६० ७६,१५० م १२५ ه सेंधव سه ७६ ३६६ له सग सुरट्ट (सोरट्ठ) س १४५ १६१ १२५ १ ५८,१३३ १२ ३५७,३६२ ४३,६१ १२५ له यूरगा दक्खिणावह दक्खिरणापह दमिल ३६,१११ हिंदुदेस ب २३ ه س ४१५ १२५ ३६२ ३८५ प्रक्कथली प्राम, नगर, नगरी प्रावि दविड سه १६२ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूरिण निगीथसूत्र ४१६ १३१ प्रयोज्झा अवंती अंधपुर पारणंदपुर । ४ १२८,१२६ ३ ५२० १६३ दारवती १ १३,१०२ पतिद्वारण २६६ पाड लिपुत्त २ ३२८,३३७ ३ १५८,१६२, ३४६ पुलिंदपल्ली पोंड्रवर्धन १ १०२,१०४ बारवइ ३ ५६,१३१, बीतिभय रणगर १४५ भरुकच्छ । २०० भिल्लपल्ली २३१,२६६ भिल्लमाल प्रामलकप्पा उज्जेणी ३ १४४,५२३ २ ४१५,४३६ १५१ १०३ मथुरा १२५ २६६ २ ३ १५२,३६६ २ उत्तर महुरा उसभपुर कंचगापुर कंचिपुरी कंपिल्लपुर कुसुमपुर (पाडलिपुत्त) कु भकारकड कुभाकारकड कुरणाला कोट्टग (पुलिदपल्ली) कोल्लइर कोसला कोसम्बाहार कोसंबी २१,४६६ मधुरा ९५ महुरा ३१२ १२७ माहरण कुडग्गाम ३६८ मिहिला ५२१ ४०८ मेहुणपल्ली रहवीरपुर ३६१ रायगिह ६००dWW.Know २ ३५७,४६६ २३६ १०२,१०३ १०२,१०३ ४६,१२५, १२८ ४६६ ४ ४३,१०१, १०६ १ १०४,१०५ खितिपतिट्ठिय १५० २२६ ४१६ गिरफुल्लिगा चंपा गयरी लंका वाणारसी वेण्णातड रागर सविसयपुर साए (साकेत) ४२५ ५०३ २० ४ ४६६ १२७,३७५ ४१७ सावत्थी तुरुमिरिण रणगरी तेयालग पट्टा दसपुर १६३ ४६६ १०३ सेअंबिना सोपारय हत्थिरणापुर ६१ हेमपूरिस नगर दंतपुर २४३ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० अग्गुज्जाग असोगवया गुणसिल जिजा तिदुग दीवग कोसंबार डंडगारण्ण प्राभीर ( महाकुल) गाहावइ दिवाभोज मद्दग भोतिय राज वणिय सामंत सावग सेज्जातर सेट्ठि आहीर कच्य २४ उद्यान मोरपोसग (चन्द्रगुप्तवंश ) मोरिय सग २५ भरण्य २६ फुल २७ मंझ २५ जाति और शिल्पी ३ r १ ४ २ K १ २ २ १ २ २ ४ ४ ●om ३ २ २ २ २४३,४३५ २ १२७ १४० १०१ १०२ १०१ १.०२ १ २ ४१६ १२८ कलाद कल्लाल कम्मकार कवडिय कुक्कुडपोसम कुंभकार १० ३६१ ५६ कोलिग कोसेज्जग खट्टिक ११ ४३३ ४०५ १५४ २०६ ३६१ जल्ल ३०५ डोंब ૪૬ ३६१ गट्ट ४३५ गड "7 " वत्तिय .. गोवाल चम्मकार 39 " " चारण चेड चंडाल ६ म्हाविय 31 " गिल्लेव लेक्कार संतिवरत तंतुकार "1 तालायर ८६१७ तुनकार ४६५ घरणिपुत्र पंचमं परिशिष्टम ३ ४ २ ३ ३ १ २ ३ ३ २ ३ १ २ ' ३ ३ ३ ३ ३ २ २ 3 २ ३ ३ २ २ ३ २ ३ ३ ३ २ २६६ १३२ २८० १६८ २७१ ६०,१३६ ३,२२५ १६६ २७० २७१ ६ २७१ १०४ ४६७ १३४ १६६ २७१ १३२ १६३ १६३ ५२७ ૪૬; २४३,२८४ २७० ४६८ १६३,१६३, २७१ १२ २७१ २४३ २४३ २७० २७० ३ १६६ १६३ २७२ ३५ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूगि निशीथसूत्र ५६१ तेरिमा धिज्जाति श्रीयार (धीचार) २ २४३ मालिय ११३,११३ माहन (ब्राह्मण) १६२,१६३ १८ मुट्ठिय १ मेय २४६ मोरत्तिय रजक २७१ रयग २४३ १० २१ ११६ ४६८ ३ १६८,२७० २४३ १०४ २७१ धीर २७१ पदकार परीषह पयकर पवग पारण ૨૪૩ २७० २३७ पारसीय पुरोहित लाउलिग लासग लोदया सोहार (लोहकार) २ २६७,४४८ १६६ ३४२ २७१ १६३ ४६८ १६८ १ ५६,१३६ २ ३,६,२८० १६६,२७० . १३६,१५३ ३ १४२,२६६, ५१० २७० १३२ २७१ ५८५ पुलिन्द १ ३ वरिणय ११,१४ २१६,५२१ ४६ २७१ पोसग बंभरण ४१३ १०० बोहिग भंड भिल्ल भोग मच्छिक मणियार मयूरपोसग मरुम १४ ४५४ वरुड वागुरिय वाणियम वालंजुय वाह (व्याध) विप्प वेसंबग सबर सस्थवाह mymumm rrm rm mum" rm m २७१ १०४ ४६८ ८७ २७१ १०५ ११८,२०८ संपर सुवण्णगार २८४ २७१ मल्ल महायरण (महाजन) मायंग, (मातंग) २७१ ६,२१ २६८,२६६ १२ ११६ ५२७ सद्र मालाकार सोगरिग (शौकरिक) सोपहिय ३६. १६८ Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ पंचमं परिशिष्टन सोबाग ५२७ २४३ २७१ सोहक सोधग हरिएस सार्थवाह २७. दढमित्त घणमित्त माकंदियदारग सागरदत्त ३६१ ३६१ २१० ८७ हेडण्हावित २६ पशु-पक्षि प्रादि-पोषक सामान्य पक्ति ४६८ इंददत्त २७१ ४६८ २ १५,१४७, २४५,३३४ ४२० प्रय- पोसय प्रास , इत्थी , कुक्कुड़ , चीरल्ल , तित्तिर पोय मयूर , महिस २३६ इंदसम्म उसमदत जण्णदत्त देवदत्त २,३१ ३०५ २७७ मिग मेंतु मोर . २४३ पेढाल विण्हुदत्त सत्यकि सोमदेव सोमसम्मा सोमिल ४६८ २३६ लावय वग्ध २३६ वट्टय वसह ३३ सीह नारी सुह १४६ सुय ११ १०४ सूयर हत्थि हंस अच्वंकारियभट्टा असगडा उमा कविला किण्हगुलिया खंडपाणा जयंती , १४२ १०४ बमक, मेंठ और पारोह जेट्ठा २७७ २७ १०३ मास-दमग हत्थि-दमग प्रास-मिठ हत्थि-मिठ प्रास-रोह हत्थि -रोह तिसला देवती धरणसिरी धारिणी पउमसिरी ३६१ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचू निशायसूत्र पउमावती "1 पभावती पुरंदरजसा भट्टा भद्दा #1 भानुसिरी मृगावती मियावती वीसत्था सच्चवती सीता सुकुमालिया सुभद्दा सुलसा सुवागुलिया हेमसंभवा मालवी ईसरणी खुज्जा थारुगिणी पडभी परिसरणी पल्हवी पाउसी पुलिन्दी बब्बरी लउसी लासी वामणी सबरी सिंहली प्रगड ३४ बासी ३५ उत्सव २ ३ ३ r ३ ३ ४ ३ * २ १ २ ४१७,४१८ * १ ३ "1 "" " " 11 २ 17 "" " 32 رو 21 "1 "" २ 20 २३१ २७७ १४२ ३१२ १२७ १५० १५० १३१ २७६ ३७६ २६८ ३६१ १०४ ३७५ १६,२० १४५ २४३ ४७० #1 21 13 ४७० 23 " " "" " 21 " "1 ४४३ अट्ठाहिमहिम आगर इट्टगा इंद ܚ " "" कौमुदी संद 31 गिरि इय जक्ख दी पाग तडाग तलागजण्णग धूम दरी दह देवउलजाग भूत " मुगु द रुक्ख 12 रुद्द लेपग विवाह सक्क सर सागर गिरिजत्ता इ भंडीर रह "1 "1 ३६ यात्रा * २ २ ३ २ २३६,४४३ ३ १२३,२४३ ४ २ " 13 ४ २ 22 13 २ 37 २ २ २ 23 ४ २ 19 ३ १ २ २ २ २ v=m.m ५६३ ३ १४१ ४४३ ४१६ २२६ ३०६ ४४३ २२६ ४४३. # " २२६ ४४३ " "" १४३ ४४३ ४४३ ४४३ १४३ ૪૪૨ २२६ ४४३ C 28 こ १४५ १७ ३६६ २४१ ४४३. 30 ૪૬૩ "1 ३६६ १३७, ३३४ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम परिशिष्ट ३ १७१ सिंग सिप्पी सुवभग १३७,३३४ हवरणसमा सुय ३८ २८७ नारगक (मुद्रा) कंजिग खीर २५३ २९७ १२३ १११ सड चिंचा तक्क द्राक्षापानक दालिम परिसिनग उत्तरापहक कवड्डग कागरणी कुसुमपुरग केवडिए केतरात चम्मलात गेलन (रूपक) तब दक्षिणापहग दीविच्चिक दीरणार (सुवण्ण) पाडलीपुत्तग पीय (सुवरण) रुप्प साहरक (रूपक) २८७ २२३ १२३ २५३ २८७ ६५ मुहिता सरकरा १११,३८८ ४१ विशिष्ट भोज्य पदार्थ ट्र ५. पयपुण्ण मण्डग सत्तागल १७१ हविपूय २८० २८२ पय २८. ५ कराग कटोरग करोडग कंस , अंसुय प्राईग प्राभरण विचित्त ३६६ वेल उट्टिय जायरूव तउय तंत्र दन्त मकुय रुप्प उष्णिय करणग-कंत करणग-खचिय करणग-चिन कप्पासिय १७१ किट्ट Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभाष्यचूणि निशीथसूत्र ५६५ कोयर कोसियार कंबल खोम्म चीरण ४५१ ४३३ ३१८ उवक्खडण , ५७ कम्मत ३६८ कम्म ३६६ कुभकार ३६६ १६० चीरणंसुय जंगिय ४३२ तिरीडपत दुगुल्ल ४५५ ३६६ - (५५,४५६ पट्ट कुविय कोद्रागार खीर गय गंज गुज्झ गुलजंत ५६ पोत्त पोंड मंगिय मियलोमिय वाग सराय ४५५,४५६ ४४६ १५१ गो ४३३ गोरण धंध ४३ विद्या २४. ४३२ १५१ जंत १२१ जारण ४३२ अभियोग अंजण अंतद्धारण प्राभोगिणी ४२३ ४६३ १९१,१६३ ४३३ ४३२ जोति तरण तुस निज्जारण परिणय पयण परिया पारण उण्णामिणी ऊसोवणी प्रोणामिणी गद्दही तालुग्याडिगी यंभग्गी पडिसाहरण मारणसी मातंग २ ४३२,४३४ ४५५ पोसह ५५८ ४३२ भिन्न भंडागार भंडसाला महारणस मंत ६१ मेहुरण ४३१ रहस्स ४४५ रुक्ख ४५५,४५६ ६१,६२ २ ४५५,४५६ ४ धरण- माला उज्जारण उत्तर ॥ . . १०३ Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ पंचम परिशिष्ट लेह १५ मंदर, मेरु १ २७,३२ मालवग त्यग ४६ विमोग्गल्ल २७ ३१२ २७ वेयड ४५ मास पासाह द्वीप और क्षेत्र भासोय ३ २३६,३११ कत्तिय १ २७,३१,३३ १४. ह हिमवन्त २ ४७,३३३ ३ १२१,१२६ १३२,१६२ भट्ट भरह ४ २२६.२७५ मरुणवर दीव १२८ उत्तर कुरु २२६ एरवत १३८ जंबुद्दीव ३ ६२,१२८ ४ २२६,२३० वंदीसर दीव ४ २२६ ४७,३३३ दीविचिक दीव ३ १२८ देवकुरु ३ १३०,१३१ पंचसेल दीव १३२,१६३ धाततिसंड १३८ भद्दीव ३ १२६,१३२ भरह ४ २३० ३३४ ३ १२१,१२६ महाविदेह १३२ हिमवय ४ २२६,२७५ हेमवय पोस भदयय १४१ ३ २३६,३११ १४० मग्गसिर १ ४२५ १०५ ३०५ ६८ वसाह सावरण १०५ ४८ समुद्र पर्वत अरुणोदय समुद २७ लवण-समुद्द , ३१,१६२ ४६ नबी अंजणग इंदपय कुडल कैलास गयग्ग मोरगिरि बुल्लि हिमवन्त दहिमुख २५ ४१६ उल्लुमा १३३ एरवती १. एरावती १४१ कण्हवेरणा २७ गंगा ३ ३६८,३७१ ३ ४२५ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मभाष्य चूर्णि निशीथमूत्र 37 जउला मही वेण्णा सरऊ सिंधु नालोदग नावोदग वादग (सत्तधारा) अखंड केवार गंगा पहास प्रयाग बुक्सर सिरिमाय (ल) उडुप गावा तुंब दति कट्ट कवडग गुंजा तगरपत्त ཟྭ 1 སྠཽ བྷྲ་ བླ ཟླ ; जीवग डिय ५० उबक ५१ लौकिक तीर्थ ५२ जल संतररण - साधन ५३ माला ३ १६५, ३६४ ३ ३६४ ३ ३६४ ३ ३ ४ ४ ३ AME "2 १ १ १ २ " "7 " "1 "r "" 22 " "" _४२५ ३६४ ३५ ४३ ४३ ३८ १६५ " 37 21 "" १४७ १६५ gr ७४ ७४ ७४ ३२६ " "" "" " " 18 37 फल बीय भिंड मया मु ंज मोरंग रुद्द क्ख वेत संख सिंग हड हरिय अट्टहार उलंवा एगावली कडग कडीसुतय करागावली कुंडल केयूर गलोलइया तिसरिय तुडिय पट्ट पलंब मउड, भुकुट मुक्तावली रयरणावली वालंभा सुवण सु हार अगरु कु कुम कप्पूर ५४ धाभरख ५५ गन्धद्रव्य "1 " " " 17 "} 11 " 17 " "" 11 २ 19 18 " "" "P " 17 19 }) 31 " 37 21 " 23 "? 10 २ :: ५६७ 21 21 "P 2 2 2 2 " ३६५. 31 " "" " " " " 23 19 " H " " 29 91 18 ૪૬૭ "1 == Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ पंचमं परिशिष्टम पंदरण तुरुक्ख मिगंड सट्टिया सरिसव सालि हिरिमय २ १०६,२३७ १०६ वाह पणय प्रतसि प्रलिसिंद कल r कलमसालि कलाय कुलत्थ . २०१ कोदव कच्छभी कंसताल कंसालग १५३ काहला २३३ खर मुही गुजापगाव १०६ गोलुई २ १०६,२३७ गोहिय २ १०६,२१३ झल्लरी झोडय १०६,२३७ डमरुग २ २३७,२४१ ढंकुरण ३ ३२७ गालिया ३३,१५३ ताल २३७ तुरण तुबवीणा २०. गोधूम . चणय . . . चवलग जव रिगप्फाव १०६ दुंदुभी १०४ M तंदुल तिल तुवरी २०० १०६ त्रिपुड धारणग पलाल नंदी २३६ पएस २ १०६,२३७ परिलिस पिरिपिरिता बब्बीसग भल भभा , १०६,२३७ भेरी मकरिय १०६,२३७ मडुय २४१ महई १०६ मुइंग २४१ मुरज १०६ मुरली २०१ २०१ २०० २०१ २०१ २०० . मास मुग्ग रालक २०. वल्ल बीहि २०१ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाध्यग्गि निसीयसूत्र ५६६ मुरव लिसिय वल्लरी बलिया विवंची वीणा २०० पधराग २०१ सूर्यमणी २०० सूरकान्त २०१ स्फटिक ३८६ ३६८ १०६ १०६ ३८६ ० २०० २०० ० वेणु देवा वंस सरणालि: सदुय संख संखिगा एलासाढ खंडपाणा मूलदेव ससग ६२ २०१ २०१ २०१ कल्लालावरण कुत्तियावरण मज्जावण ४ २२ ४ १५१.१-२२ माकर ३२६ रसावण १३६ भावा २ तंद रयण दइर मीसग सुवण्ण हिरण्ण प्रद्वारसदेसी भामा अद्धमागहं पायय पुरोहित पालग १२७ - - ३६७ ६५ सुवमणगार प्रय घंटा तउय तंव २६७ मरणंगसेग ० शौकरिक सीसग सुवगा ६० मरिण और रत्न इंद्रनील चंद्रकान्त ३८६ वनतरी ५१२ ३४. Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० पंचमं परिशष्ट मंगल बामर पडह १०१ पुण्णकलस ८८ भिंगार वंशावत्त एंदीमुख दधि संख सीहासरग Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभाषित-सुधासार ---गाथा, ६२ जं जम्मि होइ काले, पायरियव्वं स कालमायारो। वतिरित्तो हु अकालो, लहुगा उ अकालकारिस्स ।। -गाथा, ६ पडिसेवरणा तु भावो, सो पुण कुसलो व होज्ज अकुसलो वा । कुसलेण होति कप्पो, अकुसलेण पडिसेवणा दप्पो ॥ --गाथा, ७४ ण य सयो वि पमत्तो, पावज्जति तध वि सो भवे वधनो। जह अप्पमादसहियो, प्रावएणो वी अवहो उ॥ पंचसमितस्स मुरिगणो, ग्रासज्ज विराहणा जदि हवेज्जा। रीयंतस्म गुणवप्रो, सुव्वत्तमबन्धनो सो उ॥ -गाथा,१०३ रागद्दोसाणुगता तु, दप्पिया कप्पिया तु तदभावा । पाराधतो तु कप्पे, विराषतो होति दप्पेणं । -गाथा, ३६३ कामं सव्वपदेसु, विउस्सग्गऽववातधम्मता जुत्ता। मोतु मेहुण-धम्म, ण विणा सो रागदोसेहिं ।। -गाथा, ३६४ संसारगडडपडितो, पाणादवलंबित समारुहति । मोक्खतहं जप पुरिसो, वल्लिविताणेण विसमा उ ।। --गाथा,४६५ गच्चुप्पतितं दुखं, अभिभूतो वेयरणाए तिव्वाए । प्रद्दीगो अवहितो, तं दुक्खऽहियासए सम्म ।। --गाथा, १५०३ सोऊणं च गिलागि, पंथे गामे य भिक्खचरियाए। नति तुरितं रणागच्छति, लग्गति गुरुगे चतुम्मासे ।। -गाथा, १७४६ रूवस्सेव परिसयं, करेहि गहु कोदवो भवे साली। प्रामललियं वरामो, चाएति न गद्दभो काउं॥ -गाथा, २६२६ जं अज्जियं चरित्त, देसूणाए वि पुचकोडीए । तं पि कसाइयमेतो, नासेइ नरो मुहत्ते रणं ।। -गाथा, २७६३... Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ संपत्ती व विवत्ती व, होज्ज कज्जेमु प्रणुपादश्री विवत्ती, संपत्ती गाणं पिकाले हिज्जमारणं णिज्जराहेऊ भवति, काले पुरण उवघायकरं कम्मबन्धाय भवति, तम्हा काले पढियव्वं मोक्स्वत्थं कुलगर संघ समितीसु मुत्तधराम्रो उपयोगपूर्वक ररक्रियालक्खरणो प्रज्जवं पमाया हिंसादिकज्जकम्मकारिणो आहारविहाराइसु अहिगारो कीरति मामायारी प्रत्थघरो पमाणं कारणं पप्पं । कालुवाएहिं ॥ ---गाथा, ४८०८ - भाष्यकार, आचार्य सिद्धसेन क्षमाश्रम अप्रमाद: । जो जो माधुस्म अणायरिया रक्खति, प्रवत्तीए जहा अप्पं तहा रणोवि श्रवत्तीए रविखयव्वो । अकरेमाणस्स मंजमसोही ग - परूवणेसु य । भवति । - भाग १, पृ० ७ I -- भाग १ पृ०७ 1 भाग १, पृ० १४ - भाग १. पृ० ४२ -भाग ४, पृ० १२४ -भाग ४, १८६ भवति । भाग ४, पृ० २६४ दप्पो भवति, अप्पमाया कप्पो । --- भाग १, पृ० ४२ कम्मबंधो य ण दव्वपडि सेवा गुरूवो, रागदोसावो भवति । -- भाग ४, पृ० ३५६ गलति जहा ज उ गिरगा एवं जहुत्तसंजमजोगस्स ग्रकरणाती चरितं गलति । -भाग ४, पृ० ४ जारिसी रागभागमात्रा मंदा मध्या तीव्रा वा, तारिमी मात्रा कर्मबंधो भवति । -भाग ४, पृ० १६ दोसनिरोधकम्मखवरणो किरियाजोगो मो मो मोक्खोवातो । षष्ठ परिशिष्ट -- भाग ४. पृ० ३५ - चूणिकार श्राचार्य जिनदास महत्तर Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक परिचय निशीथ-भाष्य एक महत्त्वपूर्ण विशालकाय आगम है। उसमें आचार के सभी अंगों का जीवन एवं देश-काल की परिस्थितियों के अनुसार सांगोपांग वर्णन किया गया है। आचार के साथ दर्शन, तत्त्व-ज्ञान एवं उस समय की सारंकृतिक, राजनैतिक, सामाजिक स्थिति का, रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि सभ्यता का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। वस्तुत: निशीथ, एक ज्ञान-कोष है। जो अब तक अलभ्य था। उपाध्याय श्री अमरमुनि जी एवं सहयोगी पं0 मुनि श्री कन्हैयालाल जी महाराज जी द्वारा इसका संपादन तथा सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा द्वारा प्रकाशन हुआ था। उक्त संपादित निशीथ पर कुछ रिसर्च स्कॉलर पी0 एच0 डी0 भी कर चुके हैं। भारत के मूर्धन्य विद्वानों एवं विशेष कर जर्मनी के कई पुस्कालयों एवं विद्वानों की ओर से निरन्तर निशीथ की मॉग आ रही है, उसकी संपूर्ति के लिए 'निशीथ-सुत्रम्' का द्वितीय संस्करण मुद्रित किया गया था। प्रस्तुत आगम पर स्थविर पुंगव श्री विसाहगणी महत्तर का भाष्य और आचार्य प्रवर श्री जिनदास महत्तर की विशेष चूर्णि भी प्रकाशित हो रही है। सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् पं0 दलसुख मालवणिया, अहमदाबाद 'निशीथः एक अध्ययन तथा सुप्रसिद्ध शोधकर्ता बी0 बी0 रायनाडे (उज्जैन) द्वारा इंग्लिश में लिखित समालोचनात्मक विस्तृत प्रस्तावना भी साथ में संलग्न है। पुस्तक की विद्वानों द्वारा मांग पर हमने इसका तृतीय संस्करण की कुछ प्रतियां छापी है ताकि गुरुदेव जी का नाम अमर रहे। प्रस्तुत ग्रन्थ चार भागों में डेमी साइज 8 पेजी लगभग 2000 पृष्ठ। तृतीय संस्करण मूल्य : 1000 50 mary.ord ha For Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ardha Magadhi Ditionary: (Illustrated): Literary Philosophic and Scientific by Shatabdhani Rattan Chand ji maharaj, (Complete in Five Vols. ) with Introduction by A. C. Woolner (in original size), 1988 7500/श्रीमद्वादिदेवसूरिविरचित :- स्याद्वादरत्नाकरः / 800/जैन दर्शन - (सम्यक् ज्ञान दर्शन चरित्र के परिप्रेक्ष्य में) डॉ० साध्वीसुभाषा 500/जैन साहित्य में युवाचार्य मधुकर मुनि का योगदान - आर्या चन्द्रप्रभा आभा श्री 250/Jain Philosophy - (Religion and Ethics)-Prof. B.B. Rayanade, Demy8Vo. 2001 395/प्राकृतसूक्ति-कोश - मुनिचन्द्रप्रभसागर-2002 250/शौरसेनी प्राकृतभाषा और व्याकरण - प्रो० प्रेमसुमन जैन 125/कुन्दकुन्दाचार्य की प्रमुख कृतियों में दार्शनिक दृष्टि - डॉ० सुषमागांग 60/प्राकृतचन्द्रिका (Prakrtacandrika) : प्रभाकर झा 25/भारतीय दर्शन परम्परायां जैनदर्शनाम्मित-दे व तत्त्वम् (Bharatiyadarsana Paramparayam JainadarsanabhimataDevatafivam): डॉ० दामोदर शास्त्री, 1985 150/ अमर पब्लिकेशन्स सी० के० 13/23 सती चौतरा, वाराणसी। फोन 23923784