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________________ सभाष्य चूरिंग निशीथसूत्र सभी मालोचनाओं में समान विनयोपचार मूलोतर गुणों की प्रति सेवना से अन्योन्यविनाश मूल गुण प्रतिसेवना से चारित्र - नाश उत्तर गुण प्रतिसेवना से चारित्र - नाश प्रायश्चित्त वहन करते हुए वैयावृत्त्य सानुग्रह और निरनुग्रह प्रायश्चित्त दान ". प्रायश्चित्त वृद्धि का रहस्य आलोचना की गम्भीरता परिहार तपस्वी को श्राश्वासन दोष-शुद्धि न करने से चारित्र नाश " शुद्ध तप और परिहार तप शुद्ध आलोचक के प्रति श्राचार्य का सद्व्यवहार 17 "" निषद्या का महत्व अकल्पित चाहने वाले को उद्बोधन Jain Education International निधि-उत्खनन ताल वृक्ष दृति श्री शकट एरण्ड-मण्डप पुरस्कृत राजसेवक श्रग्नि दारक जल घट, सरितादि बन्तपुरवासी दन्तवणिक का दृढ़ मित्र प्रगड, नदी भावि नाली में तृण मण्डप पर सर्वप गाड़ी में पावारण वस्त्र पर कज्जल-विन्दु छोटी-बड़ी गाड़ियाँ व्याघ माय भिक्ष. लो मधुरहित राजा और नापित भंडी-पोत For Private & Personal Use Only ५५१ ३४६ ३४७ ३४८ ३४८ ३५० ३५४ ३५४ ३५८ ३६१ ३७३ ३७४ ३७४ ३७४ ३७४. ३७४ ३५० ३८१ ३८१ ३८२ ४०० www.jainelibrary.org
SR No.001831
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages608
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_nishith
File Size9 MB
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