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१४८-१४६
सूत्रसंख्या विषय
. गाथाङ्क संख्या से अधिक या कम, और प्रमाण से बड़े या छोटे पात्र रखने का अपवाद ३. लक्षणाऽलक्षण द्वार
५८४६-५८५१ पात्र के सुलक्षण तथा प्रपलक्षण, तद्विषयक गुण-दोष एवं प्रायश्चित ४. त्रिविधोपधि द्वार
५८५२ पात्र के तुम्बा भादि तथा यथाकृत प्रादि तीन प्रकार और उनके लेने का क्रम ५. विपर्यस्त द्वार
५८५३ पात्र-ग्रहण के क्रम को भंग करने से होने वाले दोष एवं प्रायश्चित्त ६. कः द्वार
५८५४ पात्र की याचना करने वाले अधिकारी निर्ग्रन्थ का स्वरूप ७. पौरुषी द्वार
५८५५ पात्र की याचना का समय ८. काल-द्वार
५८५६-५८५७ कितने दिनों तक पात्र की याचना करनी चाहिए ? ६. आकर द्वार
५८५८-५८६१ पात्र-प्राप्ति के योग्य स्थान और तत्सम्बन्धी विधि १०. चाउल द्वार
५८६२-५८६७ तन्दुल-धावन, तथा उष्णोदक आदि से भावित कल्पनीय पात्र, और उसके ग्रहण की विधि ११. जघन्य यतना द्वार
५८६८-५८७४ पात्र-ग्रहण विषयक जघन्य यतना
१२-१३. चोदक तथा असति अशिव द्वार ५८७५-५८७७ जघन्य यतना-विषयक शंका-समाधान १४. प्रमाण-उपयोग-छेदन द्वार
५८५८-५८८३ प्रमाण-युक्त पात्र के न मिलने पर उपलब्ध पात्र के छेदन का विधान १५. मुख प्रमाण द्वार
५८८४-५८८५ पात्र-मुख के तीन भेद और उनका प्रमाण मात्रक-विषयक विधि
५८८६-५६०१
१५०-१५१
१५१-१५३
१५३-१५४
१५४-१५५
१५५-१५६
१५६-१५७
१५७-१६०
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