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________________ पृष्ठाङ्क २५५ २५५ २५५-२६२. २५५-२६० २६२-२६३ २६२-२६३ २६३-२६४ [ १४ । सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क १६ अपात्र (अयोग्य) को वाचना देने का निषेध २० पात्र को वाचना न देने पर प्रायश्चित २१ क्रम से अध्ययन न करने वाले को वाचना देने का निषेध २२ क्रमशः अध्ययन करने वाले को पाचना न देने पर प्रायश्चित्त तिन्तणिक आदि अपात्र तथा प्रदृष्टभाव' मादि अव्यक्त की विस्तृत व्याख्या, दोष एवं अपवाद ६१६८-६२३६ २३-२६ अब्यक्त तथा अप्राप्त को वाचना देने का निषेध और व्यक्त तथा प्रात को वाचना न देने पर प्रायश्चित व्यक्त और अव्यक्त की परिभाषा, अप्राप्त-सम्बन्धी चतुर्भङ्गी, दोष तथा अपवाद ६२३७-६२४३ २७ दो समान गुणवाले अध्येताओं में से एक को अध्ययन कराने और दूसरे को अध्ययन न कराने की भेद-बुद्धि का निषेध ६२४४-६२५६ २८ प्राचार्य तथा उपाध्याय द्वारा प्रदत्त वाणी के ग्रहण का निषेध वाणी के भेद, अदत वाणी-ग्रहण के कारण, तप:स्तेन मादि, मावस्तेन के सम्बन्ध में गोविन्द वाचक का उदाहरण, दोष तथा अपवाद ६२५०-६२५७ २६-४० अन्यतीर्थी, गृहस्थ, पार्श्वस्थ तथा कुशील आदि के साथ वाचना के दानाऽदान व्यवहार का निषेध . अन्यतीर्थी प्रादि को वाचना देने-लेने पर प्रायश्चित्त, वाचना के देने-लेने से दोष स्वपाषण्डी और अन्यपाषण्डी की व्याख्या. अपवाद और तद्विषयक यतना ६२५८-६२५१ विंशतितम उद्देशक एकोनविंशतितम और विंशतितम उद्देशक का सम्बन्ध ६२७२ १ मासिक परिहार-स्थान के दोषी को परिकुञ्चित तथा अपरिकुञ्चित पालोचना के भेद से प्रायश्चित्त भिक्षु-पद के निक्षेप और तत्सम्बन्धी शङ्का-समाधान ६२७३-६२८१ मास पद के निक्षेप और नक्षत्रादि मासों का प्रमाण ६२८२-६२६१ परिहार-पद के निक्षेप ६२६२-६२६५ स्थान-पद के निक्षेप ६२६६-६३०२ २६५-२६६ २६५-२६६ २६६-२६६ २६६-२६६ २७१ २७१-३०४ २७२-२७४ २७४-२७६ २७६-२८० २८०-२८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001831
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages608
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_nishith
File Size9 MB
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