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सूत्रसंख्या विषय
गाथाङ्क
पृष्ठाङ्क प्रायश्चित्त-दान के योग्य अधिकारी ५. कियान द्वार
६४६१-५६६ ३३१-३३८ प्रायश्चिनों की गणना तथा कृत्स्न और प्रकृत्स्न प्रारोपणा अतिक्रमादि के सम्बन्ध में विचार-चर्चा
६४६७-६४६६ ३३८-३३६ नवम पूर्व से निशीथ का उद्धार
३३६ अनेक दोषों की शुद्धि के लिए एक प्रायश्चित्त देने का हेतु, इस सम्बन्ध में घृत-कुट आदि के उदाहरण तथा अन्य आवश्यक शङ्का-समाधान
६५०५-६५२६ ३३६-३४६ मूल व्रतातिचार तथा उत्तर गुणातिचार-सम्बन्धी चर्चा ६५२७-६५३५ ३४६-३४८ प्रायश्चित्त वहन करने वालों के भेद-प्रभेद
६५३६-६५७४ ३४६-३६० १५-१६ चातुर्मासिक, सातिरेक चातुर्मासिक आदि पालोचना-सूत्र
३६०-३६७ प्रालोचक के गुण एवं दोष तथा प्रालोचना-विधि
६५७५-६५८३ ३६१-३६७ १७-२० चातुर्मासिक, सातिरेक चातुर्मासिक आदि अारोपणा-सूत्र
३६७-३८६ परिहार तप और शुद्ध तप की विवेचना
६५८४-६६०४ ३६६-३७५ वैयावृत्य के तीन प्रकार तथा प्राचार्य के गुण
६६०५-६६१५ ३७५-३७७ आरोपणा के भेद-प्रभेद तथा आलोचना की चतुर्भनी ६६.६-६६४७ ३७७-३८७ २१-५३ प्रायश्चित्त-स्वरूप तप वहन करते हए बीच में लगे
दोषों का प्रायश्चित्त निशीथ के निर्माता विशाखागणी की प्रशस्ति प्रायश्चित वहन करने वालों के कृत करणादि भेद-भेद ६६४८-६६६५ ३६६-४०१ निशीथ-कल्प के श्रद्धान कल्प प्रादि चार प्रकार
६६६६-६६७६ ४०१-४०४ प्रायश्चित्त-प्रदान के हेतु
६६७७-६६७६४०४ दशविध प्रायश्चित्तों का ऐतिहासिक काल-क्रम
६६८० प्रोधनिष्पन्न तथा विस्तार निष्पन्न के भेद से प्रायश्चित्त के दो प्रकार
६६८१-६६८२ ४८५ उत्सगं और अपवाद के आचरण की विधि, अथवा छेद-सूत्रों में प्रतिसूत्र-प्रतिषेध, अपवाद आदि चतुर्विध अनुयोग-विधि ६६८३-६६६८ ४०५-४०६ अनुयोगधर की ओर से स्वगौरव का परिहार
६६६
४०६ निशीथ-सूत्र के अनेकविध अर्थाधिकार
६७००-६७०१ ४०६-४१० निशीथ-सूत्र के अधिकारी और अनधिकारी
६७०२-६७०३ ४१० निशीथ-चूर्णिकार की स्वनामोल्लेखपूर्वक प्रशस्ति
४११ निशीथ-चूणि के विंशतितम उद्देशक की संस्कृत में सुबोधा व्याख्या
४१३-४४३
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